In this post, we have given Class 12 Hindi Antra Chapter 20 Summary – Dusra Devdas Summary Vyakhya. This Hindi Antra Class 12 Summary is necessary for all those students who are in are studying class 12 Hindi subject.
दूसरा देवदास Summary – Class 12 Hindi Antra Chapter 20 Summary
दूसरा देवदास – ममता कालिया – कवि परिचय
प्रश्न :
ममता कालिया का जीवन परिचय देते हुए उनके साहित्यिक योगदान पर प्रकाश डालिए तथा भाषा-शैली पर टिप्पणी कीजिए।
उत्तर :
जीवन परिचय-ममता कालिया का जन्म सन् 1940 में मथुरा (उत्तर प्रदेश) में हुआ। उनकी शिक्षा के कई पड़ाव रहे; जैसे-नागपुर, पुणे, इंदौर, मुंबई आदि। उन्होंने दिल्ली विश्वविद्यालय से अंग्रेज़ी विषय में एम०ए० किया। एम०ए० करने के बाद् सन् 1963-65 तक दौलत राम कॉलेज, दिल्ली विश्वविद्यालय में अंग्रेज़ी की प्राध्यापिका रहीं। सन् 1966 से 1970 तक एस॰एन॰डी॰्टी॰ महिला विश्वविद्यालय, मुंबई में अध्यापन कार्य किया, फिर सन् 1973 से 2001 तक महिला सेवा सदन डिग्री कॉलेज, इलाहाबाद में प्रधानाचार्या रहीं। सन् 2003 से 2006 तक भारतीय भाषा परिषद् कलकत्ता (कोलकाता) की निदेशक रहीं। वर्तमान में नई दिल्ली में रहकर स्वतंत्र-लेखन कर रही हैं।
रचनाएँ – ममता कालिया की साहित्यिक कृतियाँ निम्नलिखित हैं-
उपन्यास – बेघर, नरक दर नरक, एक पत्नी के नोट्स, प्रेम कहानियाँ, दौड़, लड़कियाँ आदि।
कहानी-संग्रह – 12 कहानियाँ संपूर्ण कहानियाँ नाम से दो खंडों में प्रकाशित।
नव प्रकाशित कहानी-संग्रह-पच्चीस साल की लड़की, धियेटर रोड के कौवे।
कथा-साहित्य में उल्लेखनीय योगदान के लिए उन्हें उत्तर प्रदेश हिंदी संस्थान से ‘साहित्य भूषण’ सन् 2004 में तथा वहीं से ‘कहानी सम्मान’ सन् 1989 में प्राप्त हुआ। उनके समग्र साहित्य पर अभिनव भारती, कलकत्ता ने रचना पुरस्कार भी दिया। इसके अतिरिक्त उन्हें सरस्वती प्रेस तथा साप्ताहिक हिंदुस्तान का ‘ श्रेष्ठ कहानी पुरस्कार’ भी प्राप्त है।
भाषा-शिल्प – ममता कालिया शब्दों की पारखी हैं। उनका भाषा-ज्ञान अत्यंत उच्चकोटि का है। उन्होंने अत्यंत सरल, सहज, बोधात्मक भाषा में खड़ी बोली का प्रयोग किया है। वे साधारण शब्दों में भी अपने प्रयोग से जादुई प्रभाव उत्पन्न कर देती हैं। विषय के अनुरूप सहज भावाभिव्यक्ति उनकी खासियत है। व्यंग्य की सटीकता एवं सजीवता से भाषा में एक अनोखा प्रभाव उत्पन्न हो जाता है। अभिव्यक्ति की सरलता एवं सुबोधता उसे विशेष रूप से मर्मस्पर्शी बना देती है। उनकी शैली वर्णनात्मक, विचारात्मक तथा चित्रात्मक है। उनकी रचनाओं में एक ओर तत्सम, तद्भव और विदेशी शब्दों का खूब प्रयोग मिलता है वहीं दूसरी ओर मुहावरों और लोकोक्तियों के प्रयोग से भाषा सरस, रोचक और प्रभावपूर्ण हो गई है।
‘दूसरा देवदास’ कहानी हर की पौड़ी हरिद्वार के परिवेश को केंद्र में रखकर युवा मन की संवेदना, भावना और विचार जगत् की उथल-पुथल को आकर्षक भाषा-शैली में प्रस्तुत करती है। यह कहानी युवा हृदय में पहली आकस्मिक मुलाकात की हलचल, कल्पना और रूमानियत का उदाहरण है।
Dusra Devdas Class 12 Hindi Summary
इस पाठ में लेखिका ने हर की पौड़ी की शाम का वर्णन किया है। वहाँ लोग अपनी मनोकामनाओं की पूर्ति के लिए आते हैं। हर की पौड़ी पर संध्या अपने अलग रूप में ही उतरती है। वास्तव में यह गंगा-मैया की आरती की बेला होती है। ज्यों-ज्यों आरती का समय करीब आता जाता है, त्यों-त्यों फूलों के दोने महँगे होते जाते हैं। पाँच बजे एक रुपये में बिकने वाले फूलों के दोने दो-दो रुपये के हो गए हैं। आरती शुरू होने वाली है।
अब तक गंगा सभा के स्वयंसेवक सतर्क होकर लोगों से शांत होकर बैठने की प्रार्थना कर रहे हैं। कुछ भक्तों ने एक सौ इक्यावन रुपये वाली स्पेशल आरती बोल रखी है। पंडित गणों ने आरती के लिए पीतल की नीलांजलि में सहस्न बत्तियाँ भिगोकर रखी हैं। देशी घी के डिब्बे सजे हैं और सजी हैं गंगा मैया की मूर्ति के साथ-साथ अन्य देवी-देवताओं की मूर्तियाँ। जो जिसे चाहे आराध्य रूप में चुन सकते हैं। आरती से पहले औरतें स्नान कर रही हैं। उन्होंने सुरक्षा के लिए तट पर कुंडों में लगी जंज़ीरें पकड़ रखी हैं। जो पुरुष स्नान कर चुके हैं, पंडे उनके माथे पर तिलक लगा रहे हैं। हर व्यक्ति अपनी-अपनी मनोकामना पूर्ण होने के उपलक्ष्य में आरती करवा रहा है।
यह गोधूलि बेला है। अचानक हज़ारों दीप जल उठते हैं। पंडित अपना आसन छोड़ देते हैं और हाथों में नीलांजलि थामे जय गंगे माता, जो कोई तुमको ध्याता, सारे सुख पाता, जय गंगे माता के गायन के साथ आरती शुरू कर देते हैं। इसी के साथ घंटे-घड़ियाल बज उठते हैं और लोगों की मनौतियाँ लिए दोने लहरों पर बहने लगते हैं। गोताखोर उनमें से पैसे उठाने लगते हैं। यही तो उनकी आजीविका का साधन है। एक-एक गोताखोर बीस-बीस चक्कर मुँह भर रेज़गारी बटोरता है। उनकी बीवी और बहन अस्सी पचासी पैसे की रेजगारी देकर एक रुपये लेती हैं। अब तक पुजारियों का स्वर थकने लगता है और लता
मंगेशकर की सुरीली आवाज़ में लाउडस्पीकर पर ‘आम् जय जगदीश हरे’ की ध्वनि गूँजने लगती है। अधिकांश औरतें गीले कपड़ों में ही आरती में शामिल होती हैं। गंगा के पावन जल में हजारों दीपों की छाया छिलमिलाने लगती है और वातावरण अगरु-चंदन की अलौकिक महक से भर उठता है। भक्तगण इस समय पुजारियों को जी खोलकर दान देते हैं और पुजारीगण उन्हें ढेर सारा प्रसाद् दे रहे हैं। इतना सारा कि उनके खाने के बाद भी बच जाता है। इस दान-दक्षिणा में हुआ खर्च भक्तों को सुखदाई लगता है। आरती खत्म होने के बाद आरती के दोने फिर एक-एक रुपये में बिकने लगते हैं। संभव बड़ी देर से घाट पर नहा रहा था।
नहाकर जब वह घाट पर आया तो मंगल पंडा उसके पास आया और तिलक लगाना चाहा तो उसने ‘उहूँ’ कहकर चेहरा हटा लिया। मंगल पंडा के यह कहने पर ‘चंदन-तिलक के बगैर स्नान अधूरा होता है’ उसने तिलक लगवा लिया। वह वापस जा रहा था कि छोटे से मदिर के पुजारी ने आवाज लगाई-‘अरे दर्शन तो करते जाओ’। यह सुन संभव को नानी की बात याद् आई कि मंदिर में बीस आने चढ़ाकर आना। संभव को एक रुपया तो मिल गया। पर उसे चवन्नी न मिल सकी।
यह देख पुजारी ने उसे खुले पैसे वापस करने की बात कही। उसने पुजारी को दो रुपये का नोट दिया और कलाई पर कलावा बँधवाकर बाकी पैसे लेने के लिए खड़ा हो गंगा की छटा निहारने लगा, तभी पुजारी ने एक नाजुक-सी कलाई पर कलावा बाँधा। वह हाथ थाली में पाँच रुपये रखकर पूजा-अर्चना में रम गया। वास्तव में यह बेहद सौम्य लड़की का हाथ था। उसने देर से आने और आरती छूटने की बात ध्यान में रखकर पुजारी जी से कहा- “हम कल आरती की बेला में आएँगे।” संभव के पचहत्तर पैसे लौटाने की बात पुजारी भूल चुका था। उसने ‘हम’ को युगल के अर्थ में लिया और उसके मुँह से अनायास आशीष फूट पड़ा- “सुखी रहो, फूलो फलो, जब भी आओ साथ ही आना, गंगा मैया मनोरथ पूरा करें।
यह सुन दोनों हैरान रह गए। लड़की वहाँ से तुरंत हट गई और टोकन देकर चप्पलें लेने लगी। संयोग से संभव की भी चप्पलें वहीं थीं। चप्पल लेते समय दोनों की आँखें एक बार फिर चार हो गई। वे दोनों ही एक-दूसरे को निर्दोष बताना चाह रहे थे, पर लड़की ने जैसे-तैसे अपनी चप्पलें पहनीं और आगे बढ़ गई। संभव ने उसे बहुत खोजने की कोशिश की। उसे हर जगह भीड़ दिखी, पर वह गुलाबी भीगी आकृति न दिखी। भटकते-भटकते संभव हार गया और थककर घर वापस आ गया। घर पहुँचते ही नानी ने देर से आने की शिकायत की और हाथ-मुँह धोकर खाने की ज़िद् की, पर संभव की भूख उड़ चुकी थी।
गंगा को स्पर्श कर आती हवाओं ने औँगन को शीतलता से भर दिया था। संभव तख्त पर लेटा नींद् और स्वप्न में झूल रहा था कि अचानक उसे ‘लड़की दूवारा कल आने की बात’ याद हो आई। वह आशा और उत्साह से उठ बैठा। उसने नानी को जगाकर खाना माँगा। उसने खाते-खाते नानी द्वारा बनाए आलू-टमाटर की बहुत तारीफ़ की। खाते-खाते उसे घाट की बात. पुजारी का मंत्रोच्चार जैसा पवित्र उद्गार वह आशीष, लड़की का दूर हटना, ठीक से चप्पलें भी न पहन पाना सब याद आ गया। संभव खाना छोड़ उठ बैठा।
संभव इसी साल एम०ए० करके सिविल सेवाओं की प्रतियोगी परीक्षाओं में बैठने वाला था। उसके माता-पिता का मानना था कि गंगा मैया के दर्शन से वह इसमें निस्संदेह चुन लिया जाएगा, पर वह घूमने और नानी से मिलने हरिद्वार आ गया था। अभी तक उसके जीवन में कोई लड़की नहीं आई थी। आज जो कुछ भी घाट पर हुआ, सब कुछ उसके लिए नई अनुभूति थी, जिसमें उसे सुख थोड़ा और बेचैनी ज्यादा लग रही थी। उसने अगले दिन जल्दी ही जाकर ऐसी जगह पर बैठने का निर्णय किया, जहाँ से उस पुजारी का द्वालय साफ दिख सके।
उसने उस लड़की को याद करने की कोशिश की और महसूस किया उसे हज़ारों की भीड़ में भी पहचान लेगा। अगले दिन वह बीस रुपये डालकर हर की पौड़ी की ओर चला गया। वह आज घाट पर उमड़ी उत्कट भीड़ को आश्चर्य से देख रहा था कि तभी उसका ध्यान अपने पास बैठे बच्चे पर गया। बातचीत में उसने बताया कि वह रोहतक से अपनी बुआ के साथ आया है। वह मंसा देवी जाना चाहता है। संभव को भी वह स्थान आकर्षित कर रहा था, पर उसकी नानी ने उसे रोपवे पर चलनेवाली झूला गाड़ी में बैठने से मना किया था।
संभव ने बच्चे से कहा, “अगर गिर गए तो?” बच्चे ने हँसकर कहा- “इतने बड़े होकर भी डरते हो भैया? गिरेंगे कैसे, इतने लोग जो चढ़ रहे हैं।’ संभव रोपवे के पास कुछ देर में पहुँच गया। ‘उषा ब्रेको सर्विस’ की खिड़की के आगे लंबी लाइन थी। जल्दी ही वह दूसरे परिसर में पहुँच गया, जहाँ लाल, पीली, नीली, गुलाबी, केबिन कार बारी-बारी से आती थी और चार-चार सवारी लेकर जाती थी। संभव भी एक गुलाबी केबिन कार में जा बैठा। कल से उसे गुलाबी रंग के अलावा कोई और रंग अच्छा नहीं लग रहा था। उसने देखा कि उसके सामने सीट पर बैठे नवद्पति के पास चढ़ावे की बड़ी-सी थैली और एक वृद्ध के पास छोटी सी थैली थी। उसे चढ़ावा खरीदकर न लाने का अफसोस हुआ।
उसने नीचे की ओर देखा-पूरा हरिद्वार गंगा मैया की धवलधार, सड़कों के घुमाव, नीचे सड़क के रास्ते चढ़ते-हाँफते लोग, लिम्का की दुकानें और अनाम पेड़। मंसा देवी पहुँचकर उसने चढ़ावे की थैली खरीदी और सीढ़ियाँ चढ़कर प्रांगण में पहुँच गया। एकदम अंदर के प्रकोष्ठ में चामुंडा रूपधारिणी मंसा देवी स्थापित थी। मनोकामना के हेतु धागे सवा रुपये में बिक रहे थे। संभव ने भी पूरी श्रद्धा के साथ मनोकामना की गाँठ लगाई. नैवेद्य चढ़ाया और बाहर आ गया। वापस आते समय संभव के साथ तीन समवयस्क बैठे थे कि तभी संभव को पौड़ी पर मिला बच्चा दूर, पीली कार में नज़र आया। उसी बच्चे से सटकर बैठी थी वह सलोनी आकृति जो शाम के झुटपुटे में उससे टकराई थी।
केबिल कार के नीचे पहुँचते ही संभव ने भागकर आगे-आगे जाते लड़के के कंधे थाम लिए और बोला, “कहो दोस्त?” तभी आगे से एक महीन सी आवाज़ ने कहा “मन्नू घर नहीं चलना है।” उसने कहा, “अभी आया बुआ।” तब संभव ने कहा, “हमें नहीं मिलाओगे अपनी बुआ से, हम तो तुम्हारे दोस्त हैं।” यह सुन मन्नू उसका हाथ खींचते हुए बुआ के पास आया और बोला, “बुआ, बुआ, इनसे मिलो, ये हैं हमारे दोस्त…” उसे संभव का नाम पता न था। यह सुन उसकी बुआ ने कहा, “ऐसे कैसे दोस्त हैं तुम्हारे, तुम्हें उनका नाम भी पता नहीं।” लड़की ने आज सफेद साड़ी
पहना था, पर वह लाज से गुलाबी होती जा रही थी। उसने मंसा देवी पर एक और चुनरी चढ़ाने का संकल्प लेते हुए सोचा, ‘मनोकामना की गाँठ भी अद्भुत अनूठी है। इधर बाँधों, उधर लग जाती है…। “पारो बुआ, पारो बुआ इनका नाम है…।” “संभव देवदास” संभव ने हैसकर पूरा किया। उसे भी मनोकामना, लाल-पीला धागा और उसमें पड़ी गिठान का मधुर स्मरण हो आया।
शब्दार्थ और टिप्पणी :
- दोने – हरे पत्तों से बने पात्र (bowl made of green leaves)।
- बेला – समय (time)।
- मनोकामनाएँ – इच्छाएँ (desires)।
- मुस्सैदी – सतर्कता, सजगता से (alertness)।
- नीलांजलि – अंजलि के आकार का पात्र जिसका प्रयोग आरती के लिए करते हैं (a prayerpot which is used for the ceremony performed in the worship of gods by a lighted lamp)।
- आराध्य – जिसकी आराधना की जाती है (God)।
- निष्पाप – पापरहित (without sin) ।
- गोधूलि बेला – सूरज छिपने और रात होने के बीच का समय (twilight, dusk)।
- सहस्त्रजारों (thousands)।
- पंचमंज़िली – आरती का वह ऊँचा पात्र जिसमें ऊपर – नीचे करके पाँच जगह दीप जलाए जाते हैं (a high lighting pot in which five lighted lamp can be kept one by one upwards)।
- समवेत – सामूहिक (collective)।
- मनौतियों – इच्छापूर्ति के लिए कहे जाने वाले वचन (wishes)।
- किश्तियाँ – छोटी नावें (small size boats)।
- हतप्रभ – भय से चकित (astonished with fear)।
- जीविका – रोजी – रोटी का साधन (livelyhood)।
- स्निग्ध – प्रेममय (affectionate)।
- प्रतिच्छावियाँ – परछाइयाँ (an image)।
- दिव्य – अलौकिक (supernatural)।
- हुर्ज्जत – तर्क – वितर्क, कहा – सुनी (dispute)।
- जी खोलकर – उदारतापूर्वक (kindly)।
- मलाल – शिकायत (complaint)।
- फब उठना – सुंदर लगना (to be good looking)।
- आस्था – विश्वास, निष्ठा (faith)।
- खखोरा – तलाश, खोजा (searched)।
- ताड़ लेना – अनुमान कर लेना (to guess)।
- छटा – सींदर्य (beauty)।
- निहारना – ध्यानपूर्वक देखना (to look at)।
- नाजुक – कमज़ोर (tender)।
- संधि – बेला – मिलन का समय, सायंकाल (evening)।
- सौम्य – सुंदर, कोमल (graceful)।
- हिंया – यहाँ (here)।
- युगल – जोड़ा (couple)।
- अनायास – स्वत:, अपने – आप (all of a sudden)।
- आशीष – आशीर्वाद (blessings)।
- मनोरथ – मन की इच्छा (wish)।
- अकबकाना – हिचकिचाना, चकित होना (to hesitate)।
- छिटककर – हटकर (shifting away)।
- ओझल होना – गायब होना (to disappear)।
- पस्त – थके हुए (tired)।
- जी – मन, हदय (heart)।
- व्यालू – भोजन (eatables)।
- नाँय – नहीं (not)।
- सीक – सलाई (thin wire that used for knitting)।
- दुबली – पतली (feeble)। देही – शरीर (body)।
- काया – शरीर (appearance)।
- अर्चना – आराधना, पूजा करना (to worship)।
- मगन होकर – खुश होकर (happily)।
- उद्गार – बचन, बोल (statement)।
- मँडराती – घूमती (to move about in a circle)।
- बेखटके – निस्संदेह (doubtlessly)।
- सद्य – स्नात – अभी – अभी स्नान करके आई हुई (one who have taken a bath recently)।
- अनुभूति – अनुभव (experience)।
- देवालय – मंदिर (temple, a worship place)।
- श्याम सलोनी – काली सुंदर (blackish beauty)।
- उढ़काकर – बिना ढंग से बंद किए (without shutting properly)।
- सलोनी – साँवले रंग की तरुणी (a beautiful young woman)।
- पते की बात – बहुत ज़रूरी बातें (very important talks)।
- तंद्रा – हल्की नींद (drousiness)।
- उवाच – कही बातें (told something)।
- मानव – रेला – मनुष्यों की भीड़ (men crowd)।
- घनघोर – भयंकर, अत्यधिक (fearful)।
- एकजुटता – मिलाप (joining)।
- अतिक्रमण – मर्यादा का उल्लंधन (transgression)।
- उन्मुख – की ओर (toward, in direction of)।
- इंगित – इशारा (to point)। बरजना – मना कर देना (to refuse)।
- महातम – महात्म, महत्ता (importance)।
- हरकत – क्रियाकलाप (activities)।
- पृष्ठ 156 एतराज – विरोध (objection)।
- आत्मसात – मन में बिठाना (assimilated)।
- रोपवे – रज्जुमार्ग, रस्सीवाला रास्ता (ropeway)।
- धर्माडंबर – धार्मिक ढकोसला (affectedness of religion)।
- क्यू – कतार (queue)।
- अज्ञात यौवना – वह किशोरी जो यौवन के आगमन से बेखबर हो (a domsel who is unaware of the advent of her youth)।
- वादियाँ – घाटियाँ (mountain passes)।
- विहंगम – विस्तृत (vast)।
- वर्चस्व – तेज्ञ, प्रधानता (vigour)।
- सुहा रही – अच्छी लग रही (pleasant feeling)।
- प्रकोष्ठ – कमरा (room, chamber)।
- नैवेद्य – भोग (offerings that is made to God)।
- समवयस्क – एक समान उम्र वाले (having same age)।
- झुटपुटे – हल्के अँधेरे में (semi darkness)।
- चीहूनने – पहचानने (recognising)।
- अस्फुट – अस्पष्ट (unclear)।
- साश्चर्य – आश्चर्य सहित (with astonish)।
- पुलक – प्रसन्नता (pleasing)।
- परिधान – वस्त्र (garment)।
- गिठान – गाँठ (a knot)।
दूसरा देवदास सप्रसंग व्याख्या
1. आरती से पहले स्नान! हर-हर बहता गंगाजल, निर्मल, नीला, निष्पाप। औरतें डुबकी लगा रही हैं। बस उन्होंने तट पर लगे कुंडों से बँधी ज़ंजीरें पकड़ रखी हैं। पास ही कोई न कोई पंडा जजमानों के कपड़ो-लत्तों की सुरक्षा कर रहा है। हर एक के पास चंदन और सिंदुर की कटोरी है। मदों के माथे पर चंदन तिलक और औरतों के माथे पर सिंदूर का टीका लगा देते हैं पंडे। कहीं कोई दादी-बाबा पहला पोता होने की खुशी में आरती करवा रहे हैं, वहीं कोई नई बहू आने की खुशी में। अभी पूरा अँधररा नहीं घिरा है। गोधूलि बेला है।
प्रसंग-प्रस्तुत गद्यांश हमारी पाठ्यपुस्तक ‘अंतरा भाग 2’ में संकलित पाठ ‘दूसरा देवदास’ से उद्धुत है। इसकी लेखिका ममता कालिया है। इस कहानी में लेखिका ने प्रेम को नया व पवित्र रूप दिया है। उनका मानना है कि प्रेम अनजाने में कहीं भी हो सकता है।
इस अंश में, हर की पौड़ी पर श्रद्धालुओं के स्नान और सायंकालीन आरती का वर्णन है।
व्याख्या – लेखिका कहती है कि हर की पौड़ी के गंगातट पर आरती से पहले स्नान करना होता है। गंगाजल बह रहा है। वह पवित्र, पाप रहित तथा नीला है। गंगा नदी में औरतें भी स्नान कर रही हैं। पानी के तेज़ बहाव के कारण उन्होंने कुंडों से बंधी जंज़ीरें पकड़ रखी हैं। ये कुंडे तट पर बने हुए हैं। वहाँ पंडे भी अपने यजमानों के कपड़ों व सामान की सुरक्षा कर रहे हैं। हर पंडे के पास चंदन और सिंदूर की कटोरी है। वे पुरुषों के माथे पर चंदन का तिलक लगाते हैं तथा औरतों के माथे पर सिंदूर का टीका लगाते हैं। गंगातट पर हर व्यक्ति किसी कार्य के पूर्ण होने पर आरती करवा रहा है। कहीं दादी-बाबा अपने यहाँ पहला पोता होने की खुशी में आरती करवा रहे हैं तो किसी को नई बहू आने की खुशी है तो वह आरती करवा रहा है। अभी तक रात नहीं हुई थी। अँधेरा भी नहीं छाया था। यह सायं का सुहावना समय था।
विशेष :
- गंगातट पर श्रद्धालुओं के स्नान और आरती का सुंदर वर्णन है।
- पावन गंगा के प्रति भक्तों एवं श्रद्धालुओं की आस्था का वर्णन है।
- भाषा में सरलता, सहजता, बोधगम्यता एवं प्रवाह है।
- खड़ी बोली में प्रभावी अभिव्यक्ति है।
- चित्रात्मक शैली में गंगातट का दृश्य साकार हो उठा है।
2. औरतें ज़्यादातर नहाकर वस्त्र नहीं बदलतीं। गीले कपड़ों में ही खड़ी-खड़ी आरती में शामिल हो जाती हैं। पीतल की पंचमंज़िली नीलांजलि गरम हो उठी है। पुजारी नीलांजलि को गंगाजल से स्पर्श कर, हाथ में लिपटे अँगोछे को नामालूम ढंग से गीला कर लेते हैं। दूसरे यह दृश्य देखने पर मालूम होता है, वे अपना संबोधन गंगाजी के गर्भ तक पहुँचा रहे हैं। पानी पर सहस्र बाती वाले दीपकों की प्रतिच्छवियाँ झिलमिला रही हैं। पूरे वातावरण में अगरु-चंदन की दिव्य सुगंध है। आरती के बाद बारी है, संकल्प और मंत्रोच्चार की।
प्रसंग-प्रस्तुत गद्यांश हमारी पाठ्यपुस्तक ‘अंतरा भाग 2 ‘ में संकलित पाठ ‘दूसरा देवदास’ से उद्धृत है। इसकी लेखिका ममता कालिया हैं। इस अंश में लेखिका ने गंगातट पर गोधूलि बेला में आरती में शामिल महिलाओं और पुजारियों के क्रियाकलापों का वर्णन किया है, जिससे गंगातट पर अलौकिक सौंदर्य उपस्थित हो जाता है।
व्याख्या – गोधूलि बेला में होने वाली आरती के माध्यम से गंगा मैया के प्रति अपनी आस्था एवं श्रद्धा प्रकट करने वाली औरतें स्नान कर उन्हीं गीले वस्त्रों में आरती में शामिल हो जाती हैं। गंगा मैया की आरती में प्रयुक्त पीतल का पंचर्मंजिली अंजलि के आकार वाला पात्र, जिसमें अनेक लौ जल रही थीं, वह गर्म हो उठी है। इस गर्म नीलांजलि को गंगा मैया को स्पर्श कराते हुए पुजारी हाथ में लिपटे कपड़े को भी गीला कर लेते हैं ताकि नीलांजलि उन्हें गर्म न लगे। देखने में ऐसा लगता है कि वे अपनी बातें गंगाजी के गर्भ तक पहुँचा देना चाहते हैं। गंगा मैया के पावन जल में हजारों बत्तियों वाले दीपों की परछाइयाँ उसका सौंदर्य बढ़ा रही हैं। आरती के इस पावन समय को अगरबत्ती और चंदन की अलौकिक महक सुगंधमय बना रही है। आरती समाप्त होते ही संकल्प लेने और मंत्रों के उच्चारण करने का क्रम शुरू हो जाता है।
विशेष :
- गंगातट पर श्रद्धालुओं के स्नान और आरती का सुंदर वर्णन है।
- पावन गंगा के प्रति भक्तों एवं श्रद्धालुओं की आस्था का वर्णन है।
- भाषा में सरलता, सहजता, बोधगम्यता एवं प्रवाह है।
- खड़ी बोली में प्रभावी अभिव्यक्ति है।
- चित्रात्मक शैली में गंगातट का दृश्य साकार हो उठा है।
3. नानी का घर करीब आ गया था, लेकिन लड़का घर नहीं गया। वह वापस अनदेखी गलियों में चक्कर लगाता रहा। उसने चूड़ी की समस्त दुकानों पर नज़र दौड़ाई। हर दुकान पर भीड़ थी पर एक भीगी, गुलाबी आकृति नहीं थी। आखिर भटकते-भटकते संभव हार गया। पस्त कदमों से वह घर की ओर मुड़ा।
नानी ने द्वार खोलते हुए कहा, “कहाँ रह गए थे लल्ला। मैं तो जी में बड़ा काँप रही थी। तुझे तो तैरना भी न आवे। कहीं पैर फिसल जाता तो मैं तेरी माँ को कौन मुँह दिखाती।’
प्रसंग – प्रस्तुत गद्यांश हमारी पाठ्यपुस्तक ‘अंतरा भाग 2’ में संकलित पाठ ‘दूसरा देवदास’ से उद्धृत है। इसकी लेखिका ममता कालिया हैं। इस अंश में लेखिका ने संभव की परेशानी का चित्रण किया है। वह कुछ देर पहले मिली अपरिचिता को ढूँढ़ नहीं पा रहा है। उसके देर से घर आने पर उसकी नानी भी परेशान होती हैं।
व्याख्या – पुजारी से कलावा बँधाते समय अचानक जो लड़की बगल में आ गई थी और पुजारी ने युगल समझ आशीर्वाद की झड़ी लगा दी थी, संभव उस लड़की को मन ही मन चाहने लगा था। परेशानी यह थी कि वह अपरिचिता गई, किधर
यह संभव न जान सका। उसकी नानी का घर निकट ही था, पर वह गली-गली में उस लड़की को ढ़ँढ़ रहा था। हर की पौड़ी और सज्ज़ी मंडी के बीच घुमावदार गलियों में लड़की किधर गई. वह न समझ पाया। उसे हर ओर भीड़ दिखाई दे रही थी, पर वह लड़की कहीं नज़र नहीं आ रही थी। अंततः थक-हारकर वह घर आ गया।
उसके घर आते ही उसकी नानी ने अपनी चिता प्रकट करते हुए कहा कि वह तो मन-ही-मन बहुत डर रही थी कि तुझे तैरना भी नहीं आता और यदि तेरा पैर फिसल जाता तो मैं तुम्हारी माँ को क्या जवाब देती।
विशेष :
- संभव के द्वारा अपरिचिता को ढँढढने तथा उसकी असफलता का वर्णन है।
- नानी माँ की चिता और वात्सल्य का वर्णन है।
- भाषा सरल, सहज, प्रवाहमयी है, जिसमें सफल भावाधिव्यक्ति है।
- भाषा में चित्रात्मकता एवं संवाद शैली है।
- ‘नज़र दौड़ाना’, ‘जी में काँपना’, ‘पैर फिसल जाना’, ‘मुँह दिखाना’ मुहावरों का सुंदर प्रयोग है, जिनसे भाषा सजीव एवं रोचक हो गई है।
4. भीड़ लड़के ने दिल्नी में भी देखी थी, बल्कि रोज़ देखता था। दफ़्तर जाती भीड़, खरीद-फ़रोखत करती भीड़, तमाशा देखती भीड़, सड़क क्रॉस करती भीड़। लेकिन इस भीड़ का अंदाज़ निराला था। इस भीड़ में एकसूत्रता थी। न यहाँ जाति का महत्व था, न भाषा का, महत्व उद्देश्य का था और वह सबका समान था, जीवन के प्रति कल्याण की कामना। इस भीड़ में दौड़ नहीं थी, अतिक्रमण नहीं था और भी अनोखी बात यह थी कि कोई भी स्नानार्थी किसी सैलानी के आनंद में डुबकी नहीं लगा रहा था।
प्रसंग – प्रस्तुत गद्यांश हमारी पाठ्यपुस्तक ‘अंतरा भाग 2’ में संकलित पाठ ‘दूसरा देवदास’ से उद्धृत है। इसकी लेखिका ममता कालिया हैं। इस कहानी में लेखिका ने प्रेम को नया व पवित्र रूप दिया है।
इस अंश में दिल्ली के युवा संभव दुवारा हर की पौड़ी पर स्नानार्थियों की भीड़, उसके मर्यादित व्यवहार और गंगा के प्रति व्यक्त आस्था का वर्णन किया गया है।
व्याख्या – दिल्ली से हरिद्वार गया नवयुवक संभव गंगातट पर बैशाखी के अवसर पर होने वाली भीड़ को देखकर आश्चर्यचकित हो गया। उसने दिल्ली में भीड़ देखी थी। कोई दफ्रत्तर जा रहा है, कोई खरीद-बिक्री कर रहा है, कोई तमाशा देख रहा है तो कोई सड़क को पार कर रहा है। हर जगह भीड़ रहती है, परंतु यहाँ गंगातट पर जो भीड़ थी, उसका अंदाज़ दूसरों से हटकर था। इस भीड़ में तेज़ी नहीं थी। ये सभी एक सूत्र में बँधे थे।
इस भीड़ में जाति व भाषा का महत्व नहीं था। यहाँ केवल उद्देश्य का महत्व था। उद्दंश्य भी भीड़ का एक ही था। वे सभी जीवन के प्रति कल्याण की कामना चाहते थे। इस भीड़ में दौड़ नहीं थी। इस भीड़ के लोग एक-दूसरे को पछाड़ना नहीं चाहते थे। इसके अलावा इस भीड़ में अनोखी बात यह थी कि कोई भी स्नान करने वाला सैर-सपाटे की भावना से डुबकी नही लगा रहा था। वे मोक्ष की भावना से डुबकी लगा रहे थे।
विशेष :
- महानगरीय भीड़ तथा गंगातट पर एकत्रित भीड़ में अंतर बताया गया है।
- पावन गंगा के प्रति भक्तों एवं श्रद्धालुओं की आस्था का वर्णन है।
- भाषा में सरलता, सहजता, बोधगम्यता एवं प्रवाह है।
- खड़ी बोली में प्रभावी अभिव्यक्ति है।
- चित्रात्मक शैली में गंगातट का दृश्य साकार हो उठा है।
5. लड़की ने आज गुलाबी परिधान नहीं पहना था, पर सफ़ेद साड़ी में लाज से गुलाबी होते हुए उसने मनसा देवी पर एक और चुनरी चढ़ाने का संकल्य लेते हुए सोचा, ‘मनोकामना की गाँठ भी अद्भुत, अनूठी है, इधर बाँधो उधर लग जाती है…’ “पारो बुआ, पारो बुआ, इनका नाम है…” मन्नू ने बुआ का आँचल खींचते हुए कहा।
“संभव देवदास” संभव ने हँसते हुए वाक्य पूरा किया। उसे भी मनोकामना का पीला-लाल धागा और उसमें पड़ी गिठान का मधुर स्मरण हो आया।
प्रसंग – प्रस्तुत गद्यांश हमारी पाठ्यपुस्तक ‘अंतरा भाग 2’ में संकलित पाठ ‘दूसरा देवदास’ से उद्धृत है। इसकी लेखिका ममता कालिया हैं। इस कहानी में लेखिका ने प्रेम को नया व पवित्र रूप दिया है।
इन पंक्तियों में संभव की मनोकामना पूर्ण होने का वर्णन है।
व्याख्या – मनसा देवी पर संभव को वही लड़की दोबारा मिली, जिससे वह अचानक प्रेम करने लगा था। उस लड़की ने आज गुलाबी रंग के कपड़े नहीं पहने थे। आज वह सफ़ेद् साड़ी पहने हुए थी, परंतु वह लक्जा के कारण गुलाबी हुई जा रही थी। लड़की ने मनसा देवी पर एक और चुनरी चढ़ाने का संकल्प लिया। वह सोच रही थी कि मनोकामना की गाँठ भी अद्भुत है। इधर मनोकामना से गाँठ बाँधो, उधर वह लग जाती है। तभी मन्नू ने अपनी बुआ का आँचल खींचते हुए संभव का परिचय करवाते हुए कहा कि पारो बुआ इनका नाम है-इस पर संभव हैसकर अपनी परिचय देते हुए कहा-संभव देवदास। उसे भी मनोकामना पूर्ति के लिए मनसा देवी पर बाँधा हुआ पीला-लाल धागा तथा उसमें पड़ी गाँठ की मधुर याद आ गई।
विशेष :
- लेखिका ने भावनाओं को सुंदर अभिव्यक्ति प्रदान की है।
- मनसा देवी की महत्ता प्रतिपादित होने का भाव है, जहाँ मनोकामनाएँ अतिशीछ्र पूरी हो जाती हैं।
- भाषा सरल, सहज तथा मिश्रित शब्दावली युक्त है, जो भावाभिव्यक्ति में सक्षम है।
- शैली चित्रात्मक है।
- संवादों के प्रयोग से भाषा में रोचकता एवं सजीवता उत्पन्न हुई है।