Students can find the 12th Class Hindi Book Antra Questions and Answers Chapter 12 प्रेमघन की छाया-स्मृति to practice the questions mentioned in the exercise section of the book.
NCERT Solutions for Class 12 Hindi Antra Chapter 12 प्रेमघन की छाया-स्मृति
Class 12 Hindi Chapter 12 Question Answer Antra प्रेमघन की छाया-स्मृति
प्रश्न 1.
लेखक ने अपने पिता जी की किन-किन विशेषताओं का उल्लेख किया है?
उत्तर :
लेखक ने अपने पिता जी की निम्नलिखित विशेषताओं का उल्लेख किया है –
- लेखक के पिता फ़ारसी के ज्ञाता थे।
- उन्हें हिंदी की पुरानी कविता से प्रेम था।
- वे फ़ारसी उक्तियों को हिंदी की उक्तियों से मिलाते थे।
- वे रात को रामचरितमानस तथा रामचंद्रिका का पाठ घर के सभी लोगों को इकट्ठा करके आकर्षक ढंग से करते थे।
- उन्हें भारतेंदु के नाटक प्रिय लगते थे तथा इन नाटकों को कभी-कभी लेखक को सुनाया करते थे।
- वे फ़ारसी कवियों की कहावतों को हिंदी कवियों की कहावतों के साथ मेल करते रहते थे, जिसमें उन्हें बड़ा आनंद आता था।
प्रश्न 2.
बचपन में लेखक के मन में भारतेंदु जी के संबंध में कैसी भावना जगी रहती थी?
उत्तर :
बचपन में लेखक के पिता उन्हें भारतेंदु जी के नाटक पढ़कर सुनाया करते थे। इस कारण लेखक के मन में भारतेंदु के बारे में मधुर भावना जगी रहती थी। वे सत्य हरिश्चंद्र नाटक के नायक राजा हरिश्चंद्र तथा सप्रसिद्ध साहित्यकार भारतेंदु हरिश्चंद्र में अंतर नहीं कर पाते थे। ‘ हरिश्चंद्र’ शब्द से दोनों की एक मिली- जुली भावना एक अपूर्व माधुर्य का संचार उनके मन में करती थी।
प्रश्न 3.
उपाध्याय बदरीनारायण चौधरी ‘प्रेमघन’ की पहली झलक लेखक ने किस प्रकार देखी?
उत्तर :
लेखक के पिता की बदली मिर्जापुर में हो गई थी। लेखक को पता लगा कि भारतेंदु हरिश्चंंद्र के मित्र उपाध्याय बदरीनारायण चौधरी वहाँ रहते हैं। लेखक ने वहाँ बालकों की मंडली बनाई जो उनके घर को जानती थी। डेढ़ मील का सफर तय करने के बाद वे पत्थर के एक बड़े मकान के पास पहुँचे। वहाँ से खाली बरामदा दिखाई देता था। घनी लताओं के कारण बीच-बीच में खंभे तथा खुली जगह दिखाई पड़ती थी। सड़क के चक्कर लगाने के बाद लताओं के समूह की एक मूर्ति खड़ी दिखाई पड़ी। दोनों कंधों पर बाल बिखरे हुए थे। एक हाथ खंभे पर था। इस रूप में इस तरह लेखक ने प्रेमघन की पहली झलक देखी।
प्रश्न 4.
लेखक का हिंदी साहित्य के प्रति झुकाव किस तरह बढ़ता गया?
उत्तर :
लेखक के पिता हिंदी प्रेमी थे। इस कारण बचपन से ही हिंदी साहित्य के प्रति झुकाव रहा। जैसे-जैसे लेखक बड़ा हुआ, उसका झुकाव हिंदी साहित्य की तरफ बढ़ता गया। उसके पिता के पास भारत जीवन प्रेस की पुस्तके आती थीं। इसके अलावा वह केदारनाथ जी पाठक के हिंदी पुस्तकालय से पुस्तकें लाकर पढ़ने लगा। वह अपनी साहित्य मंडली के साथ हिंदी में बात करता और कविता रचना करने लगा। इस प्रकार वह हिंदी साहित्य के रस में डूबता चला गया।
प्रश्न 5.
‘निस्संदेह’ शब्द को लेकर लेखक ने किस प्रसंग का ज़िक्र किया है?
उत्तर :
मिर्जापुर में लेखक के साथ हिंदी प्रेमियों की मंडली थी। ये हिंदी के नए-पुराने लेखकों की चर्चा करते रहते थे। वे बातचीत में प्राय: शुद्ध साहित्यिक हिंदी का प्रयोग करते थे। इसमें ‘निस्संदेह ‘ इत्यादि शब्द का प्रयोग अधिक होता था। लेखक के आस-पास उर्दू भाषा का अधिक प्रभाव था। लोग बातचीत और कार्य-व्यवहार में उर्दू का अधिक प्रयोग करते थे। उनके लिए शुद्ध हिंदी अनोखी भाषा थी। अतः उन्होंने लेखक मंडली का नाम ‘ निस्संदेह ‘ रखा हुआ था।
प्रश्न 6.
पाठ में कुछ रोचक घटनाओं का उल्लेख है। ऐसी तीन घटनाएँ चुनकर उन्हें अपने शब्दों में लिखिए।
उत्तर :
ये रोचक घटनाएँ निम्नलिखित हैं-
1. मिर्जापुर में पुरानी परिपाटी के एक बहुत ही प्रतिभाशाली कवि रहते थे, जिनका नाम था-वामनाचार्यगिरि। एक दिन वे सड़क पर चौधरी साहब के ऊपर एक कविता जोड़ते चले जा रहे थे। अंतिम चरण रह गया था कि चौधरी साहब अपने बरामदे में कंधों पर बाल छिटकाए खंभे के सहारे खड़े दिखाई पड़े। चट कवित्त पूरा हो गया और वामन जी ने नीचे से वह कवित्त ललकारा, जिसका अंतिम अंश था- “खंभा टेकि खड़ी जैसे नारि मुगलाने की।”
2. एक दिन कई लोग बैठे बातचीत कर रहे थे कि इतने में एक पंडित जी आ गए। चौधरी साहब ने पूछा- ‘कहिए क्या हाल है ?” पंडित जी बोले – “कुछ नहीं, आज एकादशी थी, कुछ जल खाया है और चले आ रहे हैं।” प्रश्न हुआ- “जल ही खाया है कि कुछ फलहार भी पिया है ?”
3. एक दिन चौधरी साहब के एक पड़ोसी उनके यहाँ पहुँचे। देखते ही सवाल हुआ-” क्यों साहब, एक लफ़्ज़ मैं अकसर सुना करता हँँ पर उसका ठीक अर्थ समझ में न आया। आखिर घनचक्कर के क्या मानी है। उसके क्या लक्षण हैं ?’ पड़ोसी महाशय बोले- ‘वाह! यह क्या मुश्किल बात है। एक दिन रात को सोने के पहले कागज़-कलम लेकर सवेरे से रात तक जो-जो काम किए हों, सब लिख जाइए और पढ़ जाइए।”
प्रश्न 7.
“इस पुरातत्व की दृष्टि में प्रेम और कुतूहल का अद्भुत मिश्रण रहता था।” यह कथन किसके संदर्भ में कहा गया है और क्यों? स्पष्ट कीजिए।
उत्तर :
“‘इस पुरातत्व की दृष्टि में प्रेम और कुतूहल का अद्भुत मिश्रण रहता था।” यह कथन उपाध्याय बदरीनारायण चौधरी के बारे में कहा गया है। इसका कारण यह है कि उनकी आयु लेखक मंडली से बहुत अधिक थी। उम्र अधिक होने के कारण लेखक और उसकी युवा साहित्यिक मंडली चौधरी साहब को पुरानी वस्तुओं के समान ही पुराने विचारों वाला आदमी समझते थे। लेखक को जब चौधरी प्रेमघन से मिलने का अवसर मिला, तब उसे उनकी अमीरी और उत्सवप्रियता का ज्ञान हुआ। उनके हर कार्य-व्यवहार से रियासत और तबीयतदारी की झलक मिलती थी जो लेखक के लिए कुतूहल का विषय था।
प्रश्न 8.
प्रस्तुत संस्मरण में लेखक ने चौधरी साहब के व्यक्तित्व के किन-किन पहलुओं को उजागर किया है?
उत्तर :
लेखक ने चौधरी साहब के व्यक्तित्व के निम्नलिखित पहलुओं को उजागर किया है –
- वे विलक्षण व्यक्तित्व के स्वामी थे। इनके बाल कंधे तक लंबे थे।
- चौधरी साहब खासे हिंदुस्तानी रईस थे। उनके घर पर हर त्योहार पर उत्सव होता था। उनकी हर अदा से रियासत तथा तबीयतदारी टपकती थी। जब वे टहलते थे तब एक लड़का पान लिए उनके पीछे घूमता रहता था। नौकरों से बातचीत में इसे स्पष्ट देखा जा सकता था।
- उनके बात करने का ढंग निराला था। उसमें विलक्षण वक्रता रहती थी।
- वे लोगों को प्राय: बनाया करते थे।
- वे अपने समय के सुप्रसिद्ध साहित्यकार थे। उनके घर साहित्यकारों की भीड़ जमा रहती थी।
- उनकी बातचीत का तौर-तरीका उनकी लेखन से बिलकुल अलग होता था।
प्रश्न 9.
समवयस्क हिंदी प्रेमियों की मंडली में कौन-कौन से लेखक मुख्य थे?
उत्तर :
लेखक की समवयस्क हिंदी प्रेमियों की मंडली में प्रमुख लेखक थे-श्रीयुत काशीप्रसाद जी जायसवाल, बाबू भगवानदास जी हालना, पं० बदरीनाथ गौड़, पं० उमाशंकर द्विवेदी।
10. ‘भारतेंदु जी के मकान के नीचे का यह हददय-परिचय बहुत शीघ्र गहरी मैत्री में परिणत हो गया।’ कथन का आशय स्पष्ट कीजिए।
उत्तर :
लेखक की भेंट पं० केदारनाथ जी पाठक से काशी में एक बारात में हुई थी। लेखक पाठक के पुस्तकालय में भी आया-जाया करता था। जब लेखक को पता चला कि पाठक जी भारतेंदु के मकान में ही रहते हैं तो लेखक भावनाओं में खो गया। लेखक बड़े कुतूहल भाव से वह मकान निहारने लगा। उनकी यह भावुकता देखकर केदारनाथ जी प्रभावित हुए। वे दोनों मित्र बन गए। यहीं से लेखक की हिंदी प्रेमियों की मंडली बननी शुरू हो गई। यह लेखक के जीवन का महत्वपूर्ण पड़ाव है।
भाषा-शिल्प –
प्रश्न 1.
हिंदी-उर्दू के विषय में लेखक के विचारों को देखिए। आप इन दोनों को एक ही भाषा की दो शैलियाँ मानते हैं या भिन्न भाषाएँ?
उत्तर :
हम हिंदी और उर्दू को एक भाषा की दो शैलियाँ मानते हैं। इसका कारण यह है कि उर्दू का जन्म भारत में हुआ। इसमें अधिकतर शब्द हिंदी तथा अरबी, फ़ारसी के हैं। यह भारत में मुस्लिम शासनकाल में उत्पन्न हुई तथा इसका प्रयोग आम व्यवहार के लिए होता था। हिंदी और उर्दू की शैलियों की तरह ही इन भाषाओं में तात्विक अंतर भी है।
प्रश्न 2.
चौधरी जी के व्यक्तित्व को बताने के लिए पाठ में कुछ मज़ेदार वाक्य आए हैं-उन्हें छाँटकर उनका संदर्भ लिखिए।
उत्तर :
चौधरी साहब का व्यक्तित्व बताने के लिए पाठ में आए कुछ मज़ेदार वाक्य निम्नलिखित हैं –
- वाक्य – लता-प्रतान के बीच एक मूर्ति खड़ी दिखाई दी।
- संदर्भ – लेखक को चौधरी प्रेमघन के प्रथम दर्शन उस समय हुए, जब वे सघन लताओं के जाल से आवृत बरामदे में खंभे पर टेक लिए इस मुद्रा में खड़े थे, मानो वह कोई मूर्ति हो।
- वाक्य – देखते ही यह मूर्ति ओझल हो गई।
- संदर्भ – बरामदे में खड़े चौधरी प्रेमघन को लेखक ने दूर से देखा। वह उन्हें दुबारा देखना चाहता था, पर चौधरी साहब वहाँ से उठ चुके थे।
- वाक्य – अब पिता जी उन पुस्तकों को छिपाकर रखने लगे।
- संदर्भ – लेखक का ध्यान उन पुस्तकों को पढ़कर बँट न जाए, इसलिए उसके पिता जी इन साहित्यिक पुस्तकों को छिपाकर रखने लगे।
- वाक्य – उन्होंने हम लोगों का नाम ‘निस्संदेह’ रख छोड़ा था।
- संदर्भ – लेखक और उसकी समवयस्क साहित्यमंडली शुद्ध साहित्यिक हिंदी में बातचीत किया करते थे, जिनमें ‘निस्संदेह’ जैसे शब्द हुआ करते थे जो आम बोलचाल में उर्दू प्रयोग करने वालों के लिए नवीन थी। वे लोग लेखक और उसकी मंडली को ‘निस्संदेह’ कहा करते थे।
- वाक्य – “खंभा टेकि खड़ी जैसी नारि मुगलाने की।”
- संदर्भ – प्रतिभाशाली साहित्यकार वामनाचार्य गिरि चौधरी साहब के ऊपर कोई पद्य-रचना कर रहे थे। कंधों तक बाल छिटकाए बरामदे में खड़े चौधरी साहब को देख वामनाचार्यगिरि के मुँह से ये पंक्तियाँ फूट पड़ीं।
प्रश्न 3.
पाठ की शैली की रोचकता पर टिप्पणी कीजिए।
उत्तर :
आचार्य रामचंद्र शुक्ल लिखित ‘प्रेमघन की छाया-स्मृति’ नामक यह संस्मरणात्मक निबंध अत्यंत रोचक शैली में लिखा गया है। पाठ का आरंभ ही रोचक ढंग से हुआ है। पूरे पाठ में कहीं भी क्लिष्टता नहीं है। पाठ में कहीं-कहीं संवादों का प्रयोग हुआ है। लेखक ने कहीं-कहीं रोचक वाक्यों का इस्तेमाल किया है; जैसे-जो बात उनके मुँह से निकलती थी, उनमें एक विलक्षण वक्रता रहती थी। लेखकमंडली और चौधरी प्रेमघन के अनेक चित्र उपस्थित हैं। इनको सजीव बनाने के लिए वर्णनात्मक और चित्रात्मक शैली का प्रयोग किया गया है।
योग्यता-विस्तार –
प्रश्न 1.
भारतेंदुमंडल के प्रमुख लेखकों के नाम और उनकी प्रमुख रचनाओं की सूची बनाकर स्पष्ट कीजिए कि आधुनिक हिंदी गद्य के विकास में इन लेखकों का क्या योगदान रहा?
उत्तर :
भारतेंदुमंडल के प्रमुख लेखक थे -बालकुष्ण भट्ट, पं॰ प्रतापनारायण मिश्र, राधाचरण गोस्वामी, बदरीनारायण चौधरी, राधाकृष्णदास आदि। इनकी प्रमुख रचनाएँ निम्नलिखित हैं –
बालकृष्ण भद्ट – आत्मगौरव, मेला-ठेला, सहानुभूति, खटका, इंग्लिश पढ़े तो बाबू होय आदि।
भारतेंदु हरिश्चंद्र – सत्य हरिश्चंद्र, कश्मीर कुसुम, कालचक्र, प्रेम माधुरी, प्रेम सरोवर आदि।
बालमुकुंद गुप्त – शिवशंभु के चिट्ठे।
प्रतापनारायण मिश्र – नमक, बात, दाँत, भौं आदि।
चौधरी प्रेमघन – मयंक महिमा, आनंद अरुणोदय, जीर्ण जनपद्, मन की लहर आदि।
इन सभी लेखकों का हिंदी गद्य के विकास में अभूतपूर्व योगदान था। इन्होंने हिंदी के प्रारंभिक रूप को विकसित किया। इन्होंने हिंदी में नाटक, निबंध, उपन्यास, व्यंग्य आदि नई विधाओं को प्रारंभ किया। इनकी भाषा आम बोलचाल की थी।इनकी वाक्य-संरचना अधिक बड़ी न थी।इन साहित्यकारों ने गद्य-लेखन के विकास में अपना योगदान दिया और उसे विकास की और अग्रसर किया।
प्रश्न 2.
आपको जिस व्यक्ति ने सर्वाधिक प्रभावित किया है, उसके व्यक्तित्व की विशेषताओं को लिखिए।
उत्तर :
विद्यार्थी स्वयं करें।
प्रश्न 3.
यदि आपको किसी साहित्यकार से मिलने का अवसर मिले तो आप उनसे क्या-क्या पूछना चाहेंगे और क्यों?
उत्तर :
यदि मुझे किसी साहित्यकार से मिलने का अवसर मिले तो में निम्नलिखित प्रश्न पूछना चाहूँगा –
- आप अपनी पृष्ठभूमि के बारे में कुछ बताएँ।
- साहित्य-क्षेत्र में आने की प्रेरणा आपको किससे मिली?
- आपकी पहली रचना कौन-सी है? वह कब प्रकाशित हुई?
- आपके विचार से साहित्य समाज को किस प्रकार प्रभावित कर सकते हैं?
- आपकी अन्य उपलब्धियाँ क्या-क्या हैं?
- आज के नेताओं को साहित्य में आप किस रूप में प्रस्तुत करेंगे?
- क्या आज की राजनीति साहित्य को प्रभावित कर रही है और यदि कर रही है तो कैसे? यह सब एक साहित्यकार का विश्लेषण करने के लिए ज़रूरी है।
प्रश्न 4.
संस्मरण साहित्य क्या है? इसके बारे में जानकारी प्राप्त कीजिए।
उत्तर :
‘संस्मरण’ वह विधा है, जिसमें लेखक अतीत में उसके साथ घटने वाली घटना या परिचित की स्मृति को शब्द-रूप देता है। इसमें लेखक जिस भी घटना या व्यक्ति से प्रभावित होता है, उसका चित्रण अपनी मनोभावनाओं के अनुरूप करता है। इसमें तटस्थता का भाव नहीं होता।
Class 12 Hindi NCERT Book Solutions Antra Chapter 12 प्रेमघन की छाया-स्मृति
लघूत्तरात्मक प्रश्न-I
प्रश्न 1.
लेखक के पिता भारत जीवन प्रेस की पुस्तकें छिपाकर क्यों रखते थे?
उत्तर :
लेखक के पिता साहित्य-प्रेमी थे। उनके संस्कारों का प्रभाव लेखक पर भी पड़ा। लेखक के घर पर भारतीय जीवन प्रेस की पुस्तकें आती थीं, परंतु लेखक के पिता उन पुस्तकों को छिपाकर रखने लगे। उन्हें यह भय था कि कहीं लेखक का मन स्कूल की पढ़ाई से न हट जाए तथा वह बिगड़ न जाए।
प्रश्न 2.
मुसलमान सब-जज ने लेखक के बारे में क्या कहा?
उत्तर :
लेखक के पिता की बदली मिर्जापुर में हो गई। उनके पड़ोस में मुसलमान सब-जज आ गए थे। एक दिन लेखक के पिता तथा सब-जज आपस में बात कर रहे थे। तभी लेखक वहाँ से गुजरा तो लेखक के पिता ने कहा कि इन्हें हिंदी पढ़ने का बड़ा शौक है। सब-जज ने कहा कि आपको बताने की ज़रूरत नहीं। इनकी सूरत देखते ही मुझे इस बात का पता चल गया था।
प्रश्न 3.
चौधरी साहब की बातचीत कला के बारे में बताइए।
उत्तर :
चौधरी साहब बातचीत कला में कुशल थे। उनके मुँह से जो बातें निकलती थीं, उनमें अजीब वक्रता रहती थी। उनकी बातचीत का ढंग उनके लेखों के ढंग से एकदम निराला होता था। नौकरों के साथ उनका संवाद सुनने योग्य होता था। अगर किसी नौकर के हाथ से कभी कोई गिलास वगैरह गिरा तो उनके मुँह से निकला- “‘कारे बचा त नाही”‘। उनके प्रश्नों के पहले ‘क्यों साहब’ अकसर लगा रहता था। वे लोगों को प्राय: बनाया करते थे।
प्रश्न 4.
लेखक के किन सहपाठियों ने कौन-सी पुस्तक लिखी?
उत्तर :
लेखक के सहपाठियों यानी पं० लक्ष्मीनारायण चौबे, बाबू भगवान दास हालना, बाबू भगवान दास मास्टर-इन्होंने ‘उर्दू बेगम’ नामक एक विनोदपूर्ण पुस्तक लिखी थी। इस पुस्तक में उर्दू की उत्पत्ति, प्रचार आदि का वृत्तांत एक कहानी की तर्ज पर दिया गया था।
प्रश्न 5.
वामनाचार्यगिरि कवि ने अपने कवित्त की अंतिम पंक्ति कैसे पूरी की?
उत्तर :
मिर्जापुर में पुरानी परंपरा से काव्य-रचना करने वाले एक प्रतिभाशाली कवि वामनाचायंगिरि रहते थे। एक दिन वे सड़क पर चौधरी साहब के ऊपर एक कविता जोड़ते चले जा रहे थे। उस कविता का अंतिम चरण रह गया था। तभी उन्हें चौधरी साहब अपने बरामदे में कंधों पर बाल छिटकाए खंभे के सहारे खड़े दिखाई दिए। उन्होंने चट से कवित्त रचा और नीचे से ललकारा। इस कवित्त का अंतिम अंश था :
‘खंभा टेकि खड़ी जैसे नारि मुगलाने की।’
लघूत्तरात्मक प्रश्न-II
प्रश्न 1.
‘प्रेमघन की छाया-स्मृति’ का कथ्य स्पष्ट कीजिए।
उत्तर :
‘प्रेमघन की छाया-स्मृति’ में लेखक ने बताया है कि किस प्रकार उसका रुझान हिंदी भाषा तथा साहित्य की तरफ़ बढ़ा। उसका बचपन साहित्यिक परिवेश से परिपूर्ण था। उसने बचपन से ही भारतेंदु तथा उनके साथी रचनाकारों का सानिध्य पाया तथा साहित्य का रसास्वादन किया। प्रेमघन के व्यक्तित्व ने लेखकमंडली को किस प्रकार आकर्षित तथा प्रभावित किया, इसकी झाँकी भी यहाँ मिलती है।
प्रश्न 2.
‘प्रेमघन की छाया-स्मृति’ पाठ के आधार पर रामचंद्र शुक्ल की भाषा-शैली की विशेषताएँ लिखिए।
उत्तर :
आचार्य रामचंद्र शुक्ल बहुमुखी प्रतिभा के धनी साहित्यकार हैं। उनकी भाषा-शैली सरस, सजीव और भावानुकूल है।
‘प्रेमघन की छाया-स्मृति’ नामक पाठ विवेचनात्मक शैली में है, जिसमें व्यंग्य एवं विनोद का पुट है। उनका शब्द-चयन अत्यंत प्रभावशाली है। साहित्यिक खड़ी बोली में तत्सम शब्दावाली का प्रयोग है। जगह-जगह उर्दू शब्दों का सहज प्रयोग है। उन्होंने भाषा की प्रवाहमयता बनाने के लिए देशज और तद्भव शब्दों से परहेज़ भी नहीं किया है। विचार-प्रधान सारगर्भित सूत्रात्मक वाक्य-रचना उनकी गद्य-शैली की विशेषता रही है।
प्रश्न 3.
‘प्रेमघन की छाया-स्मृति’ शीर्षक की सार्थकता सोदाहरण सिद्ध कीजिए।
उत्तर :
‘प्रेमघन की छाया स्मृति’ एक सार्थक शीर्षक है क्योंकि पूरी कहानी प्रेमघन के इर्गिर्द ही घूमती है। प्रेमघन का व्यक्तित्व अद्भुत है। लेखक तथा उनकी मित्रमंडली उनसे अत्यधिक प्रभावित है। पूरी कहानी में अनेक रोचक तथा विनोदपूर्ण घटनाओं का चित्रण किया गया है, जो पाठक को बाँधे रखती हैं। कहने का तात्पर्य यह है कि कहानी में अनेक रचनाकारों के होते हुए प्रेमघन ने ही लेखक तथा उसकी मित्रमंडली को सबसे अधिक तथा गहरे रूप में प्रभावित किया। इसलिए यह शीर्षक पूर्णरूप से सार्थक है।