Understanding the question and answering patterns through Class 12 Geography Question Answer in Hindi Chapter 6 जल-संसाधन will prepare you exam-ready.
Class 12 Geography Chapter 6 in Hindi Question Answer जल-संसाधन
अन्य महत्त्वपूर्ण प्रश्न
वस्तुनिष्ठ प्रश्न
प्रश्न 1.
पश्चिम बंगाल और बिहार राज्यों में भौमजल के अधिक उपयोग से भूमिगत जल में किस तत्त्व का संकेन्द्रण बढ़ गया है?
(क) सोडियम
(ग) जिप्सम
(ख) फ्लुओराइड
(घ) आर्सेनिक (संखिया)।
उत्तर:
(घ) आर्सेनिक (संखिया)।
प्रश्न 2.
भौमजल के अत्यधिक उपयोग के कारण राजस्थान व महाराष्ट्र में भूमिगत जल में किस तत्त्व का संकेन्द्रण बढ़ गया है?
(क) मैंगनीज
(ग) संखिया
(ख) जिप्सम
(घ) फ्लुओराइड।
उत्तर:
(घ) फ्लुओराइड।
प्रश्न 3.
प्रदूषण का निवारण और नियन्त्रण सम्बन्धी जल अधिनियम कब बनाया गया था ?
(क) 1964 में
(ख) 1974 में
(ग) 1984 में
(घ) 1994 में।
उत्तर:
(ख) 1974 में
प्रश्न 4.
पर्यावरण सुरक्षा अधिनियम कब पारित किया गया था?
(क) 1974 में
(ख) 1982 में
(ग) 1986 में
(घ) 1989 में।
उत्तर:
(ग) 1986 में
प्रश्न 5.
जल उपकर अधिनियम कब बनाया गया था ?
(क) 1974 में
(ग) 1986 में
(ख) 1977 में
(घ) 1997 में।
उत्तर:
(ख) 1977 में
प्रश्न 6.
जल संभर प्रबन्धन से सम्बन्धित ‘नीरू- मीरू’ कार्यक्रम
किस राज्य में चलाया जा रहा है?
(क) आन्ध्र प्रदेश
(ग) हरियाणा
(ख) जोधपुर
(घ) अलवर।
उत्तर:
(क) आन्ध्र प्रदेश
प्रश्न 7.
‘अरवारी पानी संसद’ कार्यक्रम राजस्थान के किस क्षेत्र में चलाया गया है?
(क) जयपुर
(ख) राजस्थान
(ग) चूरू
(घ) तमिलनाडु।
उत्तर:
(घ) तमिलनाडु।
प्रश्न 8.
भारतीय राष्ट्रीय जल नीति किस वर्ष घोषित की गई थी ?
(क) 1995 में
(ग) 2002 में
(ख) 1998 में
(घ) 2005 में।
उत्तर:
(ग) 2002 में
अतिलघूत्तरात्मक प्रश्न
प्रश्न 1.
जल संभर प्रबन्धन के कोई दो उद्देश्य लिखिये।
उत्तर:
(1) व्यर्थ बह जाने वाले जल को रोककर संचित करना।
(2) प्राकृतिक संसाधनों तथा समाज के बीच संतुलन लाना।
प्रश्न 2.
भारत में सिंचाई के प्रमुख साधनों के नाम बताइये।
उत्तर:
नलकूप, कुएं, तालाब और नहरें।
प्रश्न 3.
प्रायद्वीपीय पठारी भाग में सबसे महत्वपूर्ण सिंचाई का स्रोत कौनसा है?
उत्तर:
तालाब।
प्रश्न 4.
उत्तरी-पश्चिमी भारत के उन दो राज्यों के नाम बताइये, जिनमें सिंचित क्षेत्र का प्रतिशत सर्वाधिक है?
उत्तर:
पंजाब तथा हरियाणा।
प्रश्न 5.
उत्तरी भारत का जल अभावग्रस्त शुष्क प्रदेश कौनसा है?
उत्तर:
जम्मू-कश्मीर का उत्तरी भाग।
प्रश्न 6.
भारत के उत्तर-पश्चिम के कौनसे क्षेत्र जल- अभावग्रस्त शुष्क प्रदेश में सम्मिलित किए जाते हैं?
उत्तर:
पश्चिम राजस्थान, हरियाणा का पश्चिमी भाग तथा गुजरात का पश्चिमी भाग ।
प्रश्न 7.
पश्चिमी राजस्थान के सूखाग्रस्त रहने का मुख्य कारण क्या है?
उत्तर:
50 से.मी. से भी कम वार्षिक वर्षा प्राप्त होने के कारण पश्चिमी राजस्थान सूखाग्रस्त रहता है।
प्रश्न 8.
भारत में अधिकांश समय बाढ़ की चपेट में रहने वाले दो क्षेत्रों के नाम बताइये।
उत्तर:
हिमालयी क्षेत्र और असम।
प्रश्न 9.
भारत के किस भाग में नहरों द्वारा अधिक भाग पर सिंचाई की जाती है?
उत्तर:
उत्तर के विशाल मैदान में।
प्रश्न 10.
जल के मुख्य स्रोत कौन-कौनसे हैं?
उत्तर:
जल के मुख्यतया चार स्रोत हैं -धरातलीय जल, भौम जल, महासागरीय जल और वायुमण्डलीय जल।
प्रश्न 11.
धरातलीय जल के मुख्य स्रोत कौनसे हैं ?
उत्तर:
धरातलीय या पृष्ठीय जल के मुख्यतया चार स्रोत हैं – नदियाँ, झीलें, तालाब और तलैया।
प्रश्न 12.
नदी के जल का प्रवाह किस पर निर्भर करता है?
उत्तर:
नदी के जल का प्रवाह मुख्यतः नदी के जल ग्रहण क्षेत्र के आकार अर्थात् नदी बेसिन और इस जल ग्रहण क्षेत्र में हुई वर्षा पर निर्भर करता है।
प्रश्न 13.
भौमजल संसाधन का अत्यधिक उपयोग करने वाले चार राज्यों के नाम बताइये।
उत्तर:
देश में पंजाब, हरियाणा, राजस्थान और तमिलनाडु राज्यों द्वारा अपने भौमजल क्षमता का उपयोग सर्वाधिक किया जाता है।
प्रश्न 14.
गंगा नदी किस स्थान पर सर्वाधिक प्रदूषित है?
उत्तर:
कानपुर और वाराणसी के मध्य।
प्रश्न 15.
नदी जल ग्रहण क्षेत्र से क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
एक नदी प्रवाहित होती हुई एक विशिष्ट क्षेत्र से अपना जल बहाकर लाती है। यह क्षेत्र ही नदी जल ग्रहण क्षेत्र या नदी बेसिन कहलाता है।
प्रश्न 16.
भारत में पायी जाने वाली किन्हीं तीन लैगून झीलों के नाम बताइये।
उत्तर:
केरल में बेम्बनाद झील आन्ध्रप्रदेश की पुलीकट झील और उड़ीसा की चिल्का झील लैगून निर्मित झीलें ही हैं।
प्रश्न 17.
भारत में सबसे अधिक प्रदूषित दो नदियों के नाम लिखिए।
उत्तर:
गंगा और यमुना।
प्रश्न 18.
भारत के किन राज्यों में लैगून व झीलों के रूप में बड़े धरातलीय जल संसाधन मिलते हैं?
उत्तर:
केरल, उड़ीसा तथा पश्चिम बंगाल में लैगून व झीलों के रूप में बड़े धरातलीय जल संसाधन मिलते हैं।
प्रश्न 19.
उपयोगी जल संसाधनों की उपलब्धता के सीमित होने के प्रमुख कारण क्या हैं?
उत्तर:
दिन-प्रतिदिन बढ़ती जनसंख्या तथा उपलब्ध जल संसाधनों के औद्योगिक, कृषि और घरेलू निस्सरणों से प्रदूषित होना ।
प्रश्न 20.
सी.पी.सी.बी. का पूरा नाम क्या है?
उत्तर:
सी. पी. सी. बी. का पूरा नाम ‘केन्द्रीय प्रदूषण नियन्त्रण बोर्ड’ है।
प्रश्न 21.
नदियों में प्रदूषण के मुख्य स्रोत कौनसे हैं?
उत्तर:
जैव और जीवाण्विक संदूषण नदियों में प्रदूषण के मुख्य स्रोत हैं।
प्रश्न 22.
भौम जल प्रदूषण का क्या कारण है?
उत्तर:
भौम जल प्रदूषण देश के विभिन्न भागों में मुख्यतः विषैली धातुओं, नाइट्रेट्स और फ्लुओराइड के संकेन्द्रण के कारण होता है।
प्रश्न 23.
देश की सम्पूर्ण वर्षा का लगभग 90 प्रतिशत किससे प्राप्त होता है?
उत्तर:
देश में सम्पूर्ण वर्षा का लगभग 90 प्रतिशत ग्रीष्म ऋतु में दक्षिणी-पश्चिमी मानसून से होने वाली वर्षा से प्राप्त होता है।
प्रश्न 24.
भारत में सर्वाधिक वर्षा वाले दो स्थानों के नाम बताइये।
उत्तर:
भारत में सर्वाधिक वर्षा मेघालय राज्य के क्रमशः मासिनराम व चेरापूँजी में होती है।
प्रश्न 25.
सिंचाई से क्या तात्पर्य है?
उत्तर:
वर्षा की कमी या अभाव के कारण शुष्क मौसम में खेतों में कृत्रिम ढंग से जल आपूर्ति की क्रिया सिंचाई कहलाती है।
प्रश्न 26.
भारत में शीतकाल में उत्तर-पूर्वी मानसूनी वर्षा प्राप्त करने वाले दो राज्यों के नाम बताइये।
उत्तर:
भारत में शीतकाल में तमिलनाडु और आन्ध्रप्रदेश राज्य उत्तर-पूर्वी मानसून से वर्षा प्राप्त करते हैं।
लघुत्तरात्मक प्रश्न
प्रश्न 1.
पंजाब-हरियाणा व उत्तर प्रदेश में कुएँ व नलकूप अधिक संख्या में पाये जाने का क्या कारण है?
उत्तर:
पंजाब-हरियाणा व उत्तर प्रदेश मूलत: सतलज – गंगा बेसिन में स्थित हैं। चूँकि इस बेसिन में रन्ध्रयुक्त कोमल चट्टानों की प्रधानता है, जिस कारण यहाँ भूगर्भिक जल की उपलब्धता भी अपेक्षाकृत अधिक है। अतः भूमिगत जल की अधिकता के कारण इन राज्यों में कुएँ व नलकूप अधिक संख्या में पाए जाते हैं।
प्रश्न 2.
भारत में जल से सम्बन्धित किन्हीं तीन समस्याओं को बताइये।
उत्तर:
जल से सम्बन्धित समस्याएँ – भारत में जल से संबन्धित तीन समस्याएँ निम्न प्रकार से हैं-
- देश में तीव्र गति से निरन्तर बढ़ रही जनसंख्या के कारण जल की प्रति व्यक्ति उपलब्धता भी तीव्र गति से कम होती जा रही है।
- उपलब्ध जल संसाधनों के औद्योगिक, कृषि और घरेलू निस्सरणों से प्रदूषित होते रहने के कारण जल की गुणवत्ता में कमी आ रही है।
- पेय जल का उपयोग गहन रूप कृषि, घरेलू और औद्योगिक कार्यों में किया जा रहा है, जिससे जल संसाधनों के स्वरूप में कमी आती जा रही है।
प्रश्न 3.
जल संभर विकास से प्राप्त किये जा सकने वाले पाँच उद्देश्य बताइये।
उत्तर:
धरातलीय और भौम जल संसाधनों का उचित प्रबन्धन एवं संरक्षण करके ही जल संभर विकास किया जा सकता है। जल संभर विकास से निम्न उद्देश्यों को प्राप्त किया जा सकता है –
- कृषि उत्पादन में वृद्धि।
- पारिस्थितिकीय ह्रास को रोकना।
- कृषि योग्य भूमि का संरक्षण।
- वानिकी और वन वर्धन का विकास।
- प्राकृतिक संसाधन एवं मानव समुदाय के मध्य सन्तुलन लाना।
प्रश्न 4.
भीमजल भण्डार के पुनःभरण की कम मूल्य की तकनीकें कौन-कौनसी हो सकती हैं?
उत्तर:
भौमजल भंडार के पुनः भरण की कम मूल्य की तकनीकें ये निम्न प्रकार से हैं-
- घर व इमारतों की छतों पर वर्षा के जल का संग्रहण|
- खुदे हुए कुओं का पुनर्भरण।
- नलकूपों का पुनर्भरण।
- रिसाव गड्ढों का निर्माण।
- खेतों के चारों ओर बन्धिकाएँ और रोक बाँध बनाना।
प्रश्न 5.
भारत में लैगून और पश्चजल कहाँ पाये जाते हैं? इनके कोई दो उपयोग लिखिए।
अथवा
देश में लैगून और पश्चजल का वर्णन करते हुए इनका उपयोग बताइये।
उत्तर:
देश की समुद्रतटीय रेखा बहुत विशाल है तथा यह कुछ राज्यों में दंतुरित अर्थात् समान रूप से न होकर काफी कटी-फटी है। इसी कारण केरल, उड़ीसा, आंध्रप्रदेश, पश्चिम बंगाल जैसे राज्यों में बहुत-सी लैगून और पश्च जल झीलें बन गयी हैं। इन राज्यों में इन लैगूनों और झीलों में बड़े धरातलीय जल संसाधन हैं। यद्यपि इन अधिकांश जलाशयों में खारा जल है, फिर भी इनका उपयोग मछली पालन, चावल की कुछ निश्चित किस्मों, नारियल आदि की सिंचाई में किया जाता है।
प्रश्न 6.
लैगून किसे कहते हैं?
उत्तर:
लैगून सागरीय धाराओं एवं तरंगों द्वारा तट के समीप रेत, बालू आदि के निरन्तर निक्षेपण से निर्मित रोधिका तट के मध्य, जब सागरीय जल भर जाता है, तब वह आकृति लैगून कहलाती है। लैगून वास्तव में खारे जल की एक झील होती है। इनका उपयोग नारियल व चावल की खेती में सिंचाई हेतु तथा मछली पालन में किया जाता है।
प्रश्न 7.
राजस्थान, गुजरात, महाराष्ट्र और तमिलनाडु के सूखा संभाव्य क्षेत्र में भीम जल के उपयोग से क्षेत्र पर क्या-क्या प्रभाव पड़ा है? कोई दो लिखिए।
उत्तर:
राजस्थान, गुजरात, महाराष्ट्र और तमिलनाडु के सूखा संभाव्य क्षेत्र में भौम जल के उपयोग से क्षेत्र पर निम्नलिखित प्रभाव पड़े हैं –
- इन राज्यों में भौमजल संसाधन के अत्यधिक उपयोग से भौम जल स्तर निरन्तर नीचा होता जा रहा है।
- राजस्थान और महाराष्ट्र में अधिक जल निकालने के कारण भूमिगत जल में फ्लुओराइड का संकेन्द्रण बढ़ गया है।
प्रश्न 8.
पंजाब, हरियाणा और पश्चिमी उत्तर प्रदेश में गहन सिंचाई से मृदा से लवणता बढ़ रही है और भौमजल सिंचाई में कमी आ रही है। इसके कृषि पर संभावित प्रभाव लिखिए।
उत्तर:
पंजाब, हरियाणा और पश्चिमी उत्तर प्रदेश में गहन सिंचाई से मृदा लवणता बढ़ने एवं भौम जल सिंचाई में कमी के कारण कृषि पर निम्नलिखित प्रभाव पड़ रहे हैं –
- उपयोगी जल संसाधनों की उपलब्धता में कमी आ जाने से सिंचाई के लिए आवश्यक जल की पर्याप्त आपूर्ति नहीं हो पायेगी, जिससे कृषि उत्पादन में भी गिरावट आ सकती है।
- गहन सिंचाई से मृदा में लवणता बढ़ने के कारण उर्वरता पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ेगा, जिससे प्रति हैक्टेयर उत्पादकता में कमी आयेगी।
प्रश्न 9.
जल सिंचाई के कोई तीन लाभ लिखिए।
उत्तर:
जल सिंचाई से होने वाले लाभ –
- जल सिंचाई की उत्तम व्यवस्था से बहुफसलीकरण की प्रक्रिया संभव होती हैं।
- सिंचाई से भूमि की कृषि उत्पादकता में वृद्धि होती है।
- कुछ फसलों, जैसे-गन्ना, चावल, जूट आदि के उत्पादन के लिए अधिक जल की आवश्यकता होती है, जो सिंचाई से ही सम्भव है।
प्रश्न 10.
भीमजल संसाधन के अत्यधिक उपयोग के कोई तीन दुष्परिणाम लिखिए।
उत्तर:
भौमजल संसाधन के अत्यधिक उपयोग के कारण कई दुष्परिणाम उत्पन्न हो रहे हैं, जैसे –
- अत्यधिक उपयोग के कारण कुछ राज्यों में इसका स्तर नीचा हो गया है।
- राजस्थान और महाराष्ट्र में अधिक जल निकालने के कारण भूमिगत जल में फ्लुओराइड का संकेन्द्रण बढ़ गया है।
- पश्चिम बंगाल व बिहार के कुछ भागों में अत्यधिक भौमजल उपयोग के कारण संखिया (Aresenic) के संकेन्द्रण की वृद्धि हो गई है।
प्रश्न 11.
भारत में जल प्रदूषण निवारण हेतु लागू किए गए प्रमुख अधिनियम कौनसे हैं? नाम लिखिए।
उत्तर:
भारत में जल प्रदूषण निवारण से सम्बन्धित अधिनियम निम्न प्रकार से हैं –
- जल अधिनियम, 1974 (प्रदूषण का निवारण और नियंत्रण)
- पर्यावरण सुरक्षा अधिनियम, 1986
- जल उपकर अधिनियम, 1977
प्रश्न 12.
जलसंभर से आप क्या समझते हैं?
उत्तर:
जलसंभर भूमि की एक प्राकृतिक भू-जलीय इकाई है जिसमें जल एकत्रित होता है तथा एक सरिता तंत्र द्वारा सामान्य स्थान से बह जाता है। भूमि की यह इकाई कुछ हेक्टेयरों का छोटा क्षेत्र भी हो सकता है अथवा गंगा नदी बेसिन के समान सैकड़ों वर्ग किलोमीटर का बड़ा क्षेत्र भी हो सकता है।
प्रश्न 13.
जल-संभर प्रबन्धन से क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
जल-संभर प्रबन्धन – वस्तुतः धरातलीय तथा भूमिगत जलीय संसाधनों का कुशल प्रबंधन ही, जलसंभर प्रबन्धन कहलाता है। इसके अन्तर्गत अनावश्यक बहते जल को रोककर विभिन्न विधियों, जैसे अंत:स्रवण तालाब, पुनर्भरण कुओं आदि के द्वारा भौम या भूमिगत जल का संचय और पुनर्भरण किया जाता है।
प्रश्न 14.
‘हरियाली’ परियोजना के विषय में लिखो।
उत्तर:
‘हरियाली’ परियोजना यह परियोजना केन्द्र सरकार द्वारा संचालित एक जल संभर विकास परियोजना है। इस परियोजना का मुख्य उद्देश्य ग्रामीण जनसंख्या को पीने, सिंचाई, मत्स्य पालन और वनरोपण के लिए जल संरक्षण के योग्य बनाना है। यह परियोजना ग्राम पंचायतों के माध्यम से ग्रामीणों के लिए पर्याप्त जलापूर्ति हेतु ग्रामीण लोगों के सहयोग से संचालित की जा रही है।
प्रश्न 15.
कुंड अथवा टाँका से आप क्या समझते हैं? लिखिए।
उत्तर:
कुंड अथवा टांका- राजस्थान में वर्षा जल के संग्रहण हेतु निर्मित ढांचे, कुंड अथवा टांका कहलाते हैं। यह एक ढकी हुई भूमिगत टंकी होती है, जिसका निर्माण घर अथवा गाँव के पास या घर में संग्रहित वर्षा के जल को एकत्र करने के उद्देश्य से किया जाता है।
प्रश्न 16.
लैगून एवं पश्च जल के दो उपयोग लिखिये।
उत्तर:
लैगून एवं पश्च जल के उपयोग –
- इनका उपयोग मछली पालन में किया जाता है।
- सामान्यतः इन जलाशयों में खारा जल है, फिर भी चावल की कुछ निश्चित किस्मों, नारियल आदि की सिंचाई में इनका उपयोग किया जाता है।
प्रश्न 17.
जल संरक्षण क्यों आवश्यक है? इसके क्या उपाय हो सकते हैं?
उत्तर:
अलवणीय जल की उपलब्धता स्थान और समय के अनुसार भिन्न-भिन्न है। वर्तमान में इसकी घटती उपलब्धता एवं बढ़ती माँग के कारण इस दुर्लभ संसाधन के आवंटन और नियन्त्रण पर तनाव तथा लड़ाई-झगड़े सम्प्रदायों, प्रदेशों और राज्यों के मध्य विवाद का आम विषय बन गए हैं। अतः विकास को सुनिश्चित करने के लिए इस महत्त्वपूर्ण जीवनदायी संसाधन के संरक्षण और प्रबन्धन की आवश्यकता बढ़ गई है।
जल संरक्षण हेतु जल बचत तकनीकी और विधियों के विकास के साथ प्रदूषण से बचाव के प्रयास भी करने चाहिए। इस हेतु जल संभर विकास, वर्षा जल संग्रहण, जल के ‘पुन: चक्रण और पुन: उपयोग तथा लंबे समय तक जल की आपूर्ति के लिए जल के संयुक्त और सीमित उपयोग के लाभों को लोगों को बताकर इसके संरक्षण के प्रति जागरूकता उत्पन्न करने की आवश्यकता है।
प्रश्न 18.
जल की गुणवत्ता से क्या आशय है? जल के गुणों का ह्रास क्यों होता है?
उत्तर:
जल गुणवत्ता से तात्पर्य जल की शुद्धता अथवा अनावश्यक बाहरी पदार्थों से रहित जल से है। सामान्यतः जल बाहरी पदार्थों, जैसे—सूक्ष्म जीव, रासायनिक पदार्थ, औद्योगिक एवं अन्य अपशिष्टों के मिलने से प्रदूषित हो जाता है, जिस कारण जल मानव उपयोग के योग्य नहीं रह पाता। यह प्रदूषित जल जब झीलों, सरिताओं, समुद्रों और अन्य जलाशयों से मिलता है तो यह विषैले पदार्थ उस जल में घुल जाते हैं, जिससे जल प्रदूषण बढ़ता है। कभी-कभी प्रदूषक नीचे तक पहुँच जाते हैं, जिससे भौम जल भी प्रदूषित हो जाता है। इस प्रकार जल के गुणों में हुई कमी के कारण जलीय तन्त्र भी प्रभावित होता है। भारत में गंगा और यमुना सबसे प्रदूषित नदियाँ हैं।
प्रश्न 19.
प्रायद्वीपीय भारत की तुलना में विशाल मैदानों में सिंचाई अधिक विकसित क्यों है?
उत्तर:
देश के उत्तरी विशाल मैदान मूलतः गंगा- सतलज नदी बेसिन में स्थित हैं। इस बेसिन में मुख्यतः रन्ध्र युक्त कोमल चट्टान व जलोढ़ मृदा की प्रधानता है। अतः इस क्षेत्र में जल के आसानी से रिस कर नीचे चले जाने के कारण भूगर्भिक जल की उपलब्धता अधिक है। इसके विपरीत प्रायद्वीपीय भारत में चट्टानी धरातल की प्रधानता है, जिस कारण जल रिसाव बहुत ही धीमी गति से होता है।
भूमिगत जल की अधिकता के कारण उत्तरी विशाल मैदानों में कुएँ व नलकूप की भी अधिकता है, जिस कारण सिंचाई आसानी से की जा सकती है। इसके अतिरिक्त इस क्षेत्र में नित्यवाही नदियों की उपस्थिति के कारण नहरी तन्त्र भी विकसित हैं, जो सिंचाई में सहायक हैं, जबकि प्रायद्वीपीय भारत में मौसमी नदियों एवं धरातलीय जल की कमी के कारण सिंचाई अपेक्षाकृत कम विकसित है।
प्रश्न 20.
जल क्रान्ति अभियान पर टिप्पणी लिखिए।
उत्तर:
यह अभियान भारत सरकार ने 2015-16 में आरम्भ किया जिसका मुख्य उद्देश्य देश में प्रति व्यक्ति जल की उपलब्धता को सुनिश्चित करना है। जल क्रान्ति अभियान का लक्ष्य स्थानीय निकायों और सरकारी संगठन एवं नागरिकों को सम्मिलित करके इस अभियान के उद्देश्य के बारे में जागरूकता फैलाना है।
जल क्रान्ति अभियान के अन्तर्गत निम्नलिखित गतिविधियाँ प्रस्तावित की गई –
- ‘जल ग्राम’ बनाने के लिए देश के 672 जिलों में से प्रत्येक जिले में एक ग्राम जिसमें जल की कमी है, उसे चुना गया है।
- भारत के विभिन्न भागों में 1000 हेक्टेयर मॉडल कमाण्ड क्षेत्र की पहचान की गई। उदाहरण के लिए- उत्तर प्रदेश, हरियाणा (उत्तर), कर्नाटक, तेलंगाना, तमिलनाडु (दक्षिण), राजस्थान, गुजरात (पश्चिम), ओडिशा (पूर्व), मेघालय (उत्तर-पूर्व ) ।
- प्रदूषण को कम करने के लिए जल संरक्षण और कृत्रिम पुनर्भरण भूमिगत जल प्रदूषण को कम करना देश के चयनित क्षेत्रों में आर्सेनिक मुक्त कुओं का निर्माण
- लोगों में जागरूकत फैलाने के लिए जनसंचार माध्यम, जैसे रेडियो, टी. वी., प्रिंट मीडिया, पोस्टर प्रतिस्पर्द्धा, निबन्ध प्रतियोगिता माध्यम है। जल क्रान्ति अभियान इस तरह से बनाया गया है कि जल सुरक्षा द्वारा खाद्य सुरक्षा और आजीविका प्रदान की जाए।
प्रश्न 21.
प्रमुख जल संसाधन कौनसे हैं ?
उत्तर:
जल एक चक्रीय संसाधन है। मुख्यतः जल संसाधन चार प्रकार के हैं- पृष्ठीय या धरातलीय जल संसाधन, भौमजल संसाधन, वायुमण्डलीय जल संसाधन और महासागरीय जल संसाधन।
- पृष्ठीय या धरातलीय जल वर्षा के द्वारा जो जल पृथ्वी पर पहुँचता है, उसका कुछ भाग नदियों, झीलों, तालाबों आदि जलाशयों में चला जाता है, जो पृष्ठीय जल कहलाता है।
- भौम जल- – पृष्ठीय जल का कुछ भाग जब मृदा रंध्रों से रिसकर भूमि से नीचे चला जाता है, तब वह भौम या भूमिगत जल संसाधन कहलाता है।
- वायुमंडलीय जल पृष्ठीय जल का कुछ भाग वाष्पन एवं वाष्पोत्सर्जन की क्रियाओं से पुनः वायुमंडल में चला जाता है, जिसे वायुमंडलीय जल संसाधन कहते हैं।
- महासागरीय जल संसाधन जब पृष्ठीय जल महासागर में जाकर मिल जाता है, तब उसे महासागरीय जल संसाधन कहते हैं।
प्रश्न 22.
भारत के विशाल मैदान भीमजल संसाधनों में सम्पन्न क्यों हैं?
उत्तर:
पृथ्वी पर वर्षा के रूप में जो जल पहुँचता है, उसका कुछ भाग मृदा से रिसकर नीचे चला जाता है, जिसे भौमजल कहते हैं। भारत के विशाल मैदान भौम जल संसाधन से सम्पन्न हैं क्योंकि भारत के विशाल मैदान मूलत: जलोढ़ मृदा और रन्ध्रयुक्त कोमल चट्टानों से निर्मित हैं, जिस कारण इन क्षेत्रों में जल आसानी से रिसकर भूमिगत हो जाता है। भौमजल का लगभग 46 प्रतिशत भाग देश के विशाल मैदानी भागों में पाया जाता है।
प्रश्न 23.
पृष्ठीय जल और भौमजल में अन्तर स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
पृष्ठीय जल | भौमजल |
(i) पृथ्वी के धरातल पर जो जल वर्षा से प्राप्त होता है, उसका कुछ भाग नदियों, झीलों, तालाबों आदि जलाशयों में चला जाता है, इसे ही पृष्ठीय जल कहते हैं। | (i) पृथ्वी के धरातल पर वर्षा से प्राप्त होने वाले जल का कुछ भाग जब मृदा से रिसकर नीचे चला जाता है, तब वह भौमजल कहलाता है। |
(ii) पृष्ठीय जल का मुख्य स्रोत नदियाँ होती हैं। | (ii) भौमजल का मुख्य स्रोत जलोढ़ मृदा होती है। |
(iii) कुल पृष्ठीय जल का देश में लगभग 690 घन किलोमीटर जल का ही उपयोग किया जा सकता है। | (iii) देश में पुनः पूर्तियोग्य भौमजल संसाधन लगभग 432 घन किलोमीटर है। |
प्रश्न 24.
भारत में राज्यवार भौमजल के उपयोग का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
पृथ्वी पर वर्षा से प्राप्त जल का जो भाग मृदा से रिसर्कर नीचे चला जाता है, वह भौमजल कहलाता है। देश में, कुल पुनः पूर्तियोग्य भौम जल संसाधन लगभग 432 घन किलोमीटर है, जिसका लगभग 46 प्रतिशत गंगा और ब्रह्मपुत्र बेसिनों में पाया जाता है।
देश में सम्भावित भौमजल की उपयोगिता के आधार पर राज्यों का क्रम निम्नानुसार है –
- अधिक भौमजल का उपयोग करने वाले राज्य-पंजाब, हरियाणा, राजस्थान एवं तमिलनाडु राज्यों में भौम जल का अत्यधिक उपयोग किया जाता है।
- कम भौमजल का उपयोग करने वाले राज्य- इसके अन्तर्गत छत्तीसगढ़, उड़ीसा, केरल जैसे राज्यों को सम्मिलित करते हैं।
- मध्यम भौमजल उपयोग करने वाले राज्य- इसमें गुजरात, उत्तर प्रदेश, बिहार, त्रिपुरा, महाराष्ट्र आदि राज्यों को शामिल करते हैं।
प्रश्न 25.
“पंजाब तथा हरियाणा राज्यों में पर्याप्त जल संसाधन उपलब्ध है, परन्तु यहाँ भौमजल स्तर निरन्तर नीचे गिर रहा है।” इसके क्या कारण हैं?
उत्तर:
चूँकि सिंचित भूमि की कृषि उत्पादकता असिंचित भूमि की तुलना में अधिक होती है और सिंचाई की उत्तम व्यवस्था से बहुफसलीकरण भी सम्भव है। इसी कारण पंजाब व हरियाणा राज्य में निवल बोए गए क्षेत्र का 85 प्रतिशत भाग सिंचाई के अन्तर्गत आता है। इन राज्यों में मुख्यतः चावल और गेहूँ की कृषि की जाती है, जो सिंचाई के अभाव में सम्भव नहीं है। इन राज्यों के गंगा- सतलज बेसिन में स्थित होने के कारण यहाँ भूमिगत जल की उपलब्धता अधिक है। इसी कारण पंजाब के निवल सिंचित क्षेत्र का 76.1 प्रतिशत और हरियाणा का 513 प्रतिशत भाग कुओं और नलकूपों द्वारा सिंचित है। इस प्रकार यह राज्य अपने सम्भावित भौमजल के एक बड़े भाग का उपयोग सिंचाई के अन्तर्गत करते हैं, जिस कारण इन राज्यों में भौमजल के स्तर में कमी आ रही है।
प्रश्न 26.
जल के पुनः चक्र और पुनः उपयोग को समझाइये।
उत्तर:
जल के पुन: चक्र और पुन: उपयोग के द्वारा भी अलवणीय जल की उपलब्धता को बढ़ाया जा सकता है। सामान्यतः कम गुणवत्ता वाले जल, जैसे शोधित अपशिष्ट जल, नगरीय क्षेत्रों में स्नान और बर्तन धोने में प्रयुक्त जल तथा वाहनों को धोने के लिए प्रयुक्त जल आदि का उपयोग उद्योगों में शीतलन एवं अग्निशमन के लिए एवं बागवानी आदि कार्यों के लिए किया जा सकता है। ऐसा करके अच्छी गुणवत्ता वाले जल का पीने के उद्देश्य के लिए संरक्षण किया जा सकेगा। यद्यपि वर्तमान में जल का पुनः चक्रण एक सीमित मात्रा में किया जा रहा है, परन्तु भविष्य में इसके विकास एवं उपयोग की व्यापक सम्भावनाएँ हैं।
प्रश्न 27.
जल-संभर विकास से सम्बन्धित किन्हीं तीन परियोजनाओं के बारे में लिखिए।
उत्तर:
भारत के विभिन्न भागों में जल संभर विकास से सम्बन्धित निम्नलिखित परियोजनायें कार्यशील हैं –
- हरियाली परियोजना केन्द्र सरकार द्वारा भारत के ग्रामीण क्षेत्रों में।
- नीरू – मीरू (जल और आप ) कार्यक्रम आंध्र प्रदेश के ग्रामीण क्षेत्रों में।
- अरवारी पानी संसद कार्यक्रम – राजस्थान के अलवर जिले में।
इन कार्यक्रमों के अन्तर्गत स्थानीय ग्रामीण लोगों के सहयोग से विभिन्न जल संग्रहण संरचनाएँ जैसे-अंत: स्रवण तालाब ताल (जोहड़) की खुदाई करके रोक बाँध बनाए गए हैं। ग्रामीण क्षेत्रों में परम्परागत रूप से वर्षा जल संग्रहण हेतु विभिन्न प्रकार के जलाशयों, जैसे-झीलों, तालाबों, कुंडों आदि का निर्माण किया जाता रहा है। तमिलनाडु में तो घरों में जल संग्रहण संरचना को बनाना आवश्यक कर दिया गया है।
प्रश्न 28.
‘वर्षा जल संग्रहण’ से क्या तात्पर्य है?
उत्तर:
वर्षा जल संग्रहण – यह विभिन्न उपयोगों के लिए वर्षा के जल को रोकने और एकत्र करने की एक विधि है। इसका उपयोग भूमिगत जलभृतों के पुनर्भरण के लिए भी किया जाता है। यह एक कम मूल्य और पारिस्थितिकी अनुकूल विधि है, जिसके द्वारा पानी की प्रत्येक बूंद को संरक्षित करने के लिए वर्षा जल को नलकूपों, गड्ढों और कुओं में एकत्र किया जाता है। देश में विभिन्न समुदाय लंबे समय से अनेक विधियों से वर्षा जल संग्रहण करते आ रहे हैं। ग्रामीण क्षेत्रों में परम्परागत वर्षा जल संग्रहण सतह संचयन जलाशयों, जैसे— झीलों, तालाबों, सिंचाई तालाबों आदि में किया जाता है।
प्रश्न 29.
वर्षा जल संग्रहण के लाभ बताइये।
उत्तर:
वर्षा जल संग्रहण के लाभ –
- वर्षा के जल को संग्रहित करके पानी की उपलब्धता को बढ़ाया जा सकता है।
- लगातार नीचे गिरते भूमिगत जल के स्तर को रोका जा सकता है।
- इससे फ्लुओराइड और नाइट्रेट्स जैसे संदूषकों को कम करके अवमिश्रण भूमिगत जल की गुणवत्ता को बढ़ा सकते हैं।
- मृदा अपरदन और बाढ़ को रोका जा सकता है।
- भूमिगत जलभृतों का पुनर्भरण में इसका उपयोग करके तटीय क्षेत्रों में लवणीय जल के प्रवेश को रोका जा सकता है।
- सड़कों पर व्यर्थ बहते जल को रोका जा सकता है।
- ग्रीष्म ऋतु और सूखे के समय जल की घरेलू आवश्यकताओं की इससे पूर्ति की जा सकती है।
- वर्षा जल का संग्रहण घरेलू उपयोग के लिए भूमिगत जल पर समुदाय की निर्भरता को कम करता है।
निबन्धात्मक प्रश्न
प्रश्न 1.
वर्षा जल संग्रहण का अर्थ बताते हुए इससे होने वाले लाभों एवं इसके संग्रहण की विभिन्न विधियों का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
वर्षा जल संग्रहण – यह एक कम मूल्य और पारिस्थितिकी अनुकूल विधि है। इसके द्वारा पानी की प्रत्येक बूँद संरक्षित करने के लिए वर्षा के जल को नलकूपों, गड्ढों और कुओं में एकत्र किया जाता है। अतः वर्षा जल संग्रहण अनावश्यक बहते वर्षा के जल को रोक कर इसे एकत्र करने की विधि है, जिससे इसका उपयोग विभिन्न उद्देश्यों की पूर्ति हेतु किया जा सके।
वर्षा जल संग्रहण के लाभ-वर्षा के जल को संग्रहित करने से विविध प्रकार के लाभ प्राप्त हो सकते हैं, जैसे –
- वर्षा के जल को संग्रहित करके पानी की उपलब्धता को बढ़ाया जा सकता है।
- लगातार नीचे गिरते भूमिगत जल के स्तर को रोका जा सकता है।
- इससे फ्लुओराइड और नाइट्रेट्स जैसे संदूषकों को कम करके अवमिश्रण भूमिगत जल की गुणवत्ता को बढ़ा सकते हैं।
- मृदा अपरदन और बाढ़ को रोका जा सकता है।
- भूमिगत जलभृतों का पुनर्भरण में इसका उपयोग करके तटीय क्षेत्रों में लवणीय जल के प्रवेश को रोका जा सकता है।
- नालियों को रोकने वाले सतही जल के प्रवाह को कम किया जा सकता है।
- सड़कों पर व्यर्थ बहते जल को रोका जा सकता है।
- ग्रीष्म ऋतु और सूखे के समय जल की घरेलू आवश्यकताओं की इससे पूर्ति की जा सकती है।
- वर्षा जल का संग्रहण घरेलू उपयोग के लिए भूमिगत जल पर समुदाय की निर्भरता को कम करता है।
वर्षा जल संग्रहण की प्रचलित विधियाँ- उपरोक्त के अतिरिक्त अन्य विभिन्न उद्देश्यों की पूर्ति हेतु देश में विभिन्न स्थानों पर विभिन्न समुदायों द्वारा प्राचीन काल से ही अनेक विधियों से वर्षा जल संग्रहण किया जा रहा है।
उदाहरणस्वरूप –
1. ग्रामीण क्षेत्रों में परम्परागत रूप से, वर्षा जल का संग्रहण सतह संचयन जलाशयों, जैसे-झीलें, तालाब आदि में किया जाता है।
2. राजस्थान में मूलतः घर अथवा गाँव के पास या घर में वर्षा जल को एकत्र करने के लिए निर्मित वर्षा जल संग्रहण ढाँचे कुण्ड अथवा टाँका कहलाते हैं, जो मुख्यतः एक ढकी हुई भूमिगत टंकी होती है। इस प्रकार स्पष्ट है कि वर्षा के जल को संग्रहित करके भौम जल के स्तर में वृद्धि की जा सकती है, जिससे निरन्तर बढ़ती जनसंख्या और औद्योगिक, कृषि एवं घरेलू निस्सरणों से प्रदूषित होने से, सीमित होते जल संसाधनों की उपलब्धता को बढ़ाया जा सकता है।
प्रश्न 2.
भारतीय राष्ट्रीय जल नीति, 2002 की प्रमुख विशेषताओं का वर्णन कीजिए
अथवा
भारतीय राष्ट्रीय जल नीति, 2002 की विशेषताएँ बताइये।
उत्तर:
भारतीय राष्ट्रीय जल नीति, 2002 की विशेषताएँ – भारत में पहली राष्ट्रीय जल नीति, 2002 में घोषित की गई थी। 2002 में घोषित इस जल नीति में जल के आवंटन को प्राथमिकता के अनुसार क्रमशः पेयजल, सिंचाई, जल शक्ति, नौकायन, औद्योगिक और अन्य उपयोग के रूप में निर्धारित किया गया है। इस जल नीति में जल की समुचित व्यवस्था के लिए प्रगतिशील नए दृष्टिकोण निर्धारित किए गये हैं।
भारतीय राष्ट्रीय जल नीति, 2002 की मुख्य विशेषताएँ निम्न प्रकार से हैं –
- जल आवंटन में पहली प्राथमिकता सभी मानव जाति और प्राणियों को पेयजल उपलब्ध कराने की होनी चाहिए।
- भूमिगत जल के हो रहे अत्यधिक शोषण को सीमित और नियमित करने के उचित उपाय करने चाहिए।
- सतही और भौम जल, दोनों की गुणवत्ता की जाँच नियमित रूप से होनी चाहिए एवं जल की गुणवत्ता को सुधारने के लिए एक चरणबद्ध कार्यक्रम प्रारम्भ किया जाना चाहिए।
- जल के सभी विविध प्रयोगों में कार्यक्षमता को सुधारना चाहिए।
- दुर्लभ संसाधन के रूप में जल के बचाव हेतु लोगों में जागरूकता विकसित करनी चाहिए।
- शिक्षा विनिमय, उपक्रमणों, प्रेरकों और अनुक्रमणों के द्वारा जल संरक्षण चेतना को बढ़ाना चाहिए।
- सिंचाई व अन्य कार्यों में पेयजल का सीमित उपयोग करना चाहिए।
- जिन क्षेत्रों में पेयजल का कोई भी स्रोत नहीं है, वहाँ बहुउद्देश्यीय परियोजनाओं में पीने के जल की उपलब्धता को सुनिश्चित करना मुख्य प्राथमिकता होनी चाहिए।
प्रश्न 3.
जल प्रदूषण से क्या तात्पर्य है? जल प्रदूषण निवारण हेतु कौन-कौनसे नियम बनाए गये हैं?
उत्तर:
जल प्रदूषण – प्राकृतिक जल में बाह्य पदार्थों, जैसे सूक्ष्म जीव, रासायनिक पदार्थ, औद्योगिक, घरेल और अन्य अपशिष्टों के मिलने से, जल के गुणों में हुई कमी, जल प्रदूषण कहलाता है। प्रदूषित जल मानव व जीव-जन्तुओं के उपयोग के योग्य नहीं रहता है। यह विषैले पदार्थयुक्त प्रदूषित जल जब झीलों, नदियों, समुद्रों और अन्य जलाशयों में प्रवेश करता है, तब यह उस जल में घुलकर जल प्रदूषण को बढ़ाता है। देश में उपलब्ध जल संसाधनों का तेजी से निम्नीकरण हो रहा है।
देश में मुख्य नदियों में भी प्रायः पहाड़ी क्षेत्रों के ऊपरी भागों तथा कम बसे क्षेत्रों में ही जल की अच्छी गुणवत्ता पाई जाती है। मैदानी भागों में नदियों के जल में कृषिगत (उर्वरक और कीटनाशक), घरेलू (ठोस और अपशिष्ट पदार्थ) तथा औद्योगिक बहिःस्रावों के सम्मिश्रण के कारण नदी जल प्रदूषित हो जाता है। केन्द्रीय प्रदूषण नियन्त्रण बोर्ड (सी.पी.सी.बी.) और राज्य प्रदूषण नियन्त्रण बोर्ड (एस.पी. सी.) के अनुसार जैव और जीवाण्विक संदूषण नदियों प्रदूषण के मुख्य कारक हैं।
सामान्यतः नदियों में प्रदूषकों का संकेन्द्रण ग्रीष्म ऋतु में बहुत अधिक होता है; क्योंकि इस समय नदी में जल का प्रवाह अपेक्षाकृत कम होता है। वर्तमान में देश में कुछ स्थानों पर नदियाँ बहुत अधिक प्रदूषित हो गयी हैं, जैसे- दिल्ली और इटावा के मध्य यमुना नदी देश की सबसे प्रदूषित नदी है। इसके अतिरिक्त अहमदाबाद में साबरमती, लखनऊ में गोमती नदी, मदुरई में काली नदी, अडयार, कुअम बगई, हैदराबाद में मूसी नदी तथा कानपुर और वाराणसी में गंगा नदी, अन्य प्रदूषित नदियाँ हैं।
कभी-कभी प्रदूषक नीचे गहराई तक पहुँचकर भौमजल को भी प्रदूषित कर देते हैं। भौमजल प्रदूषण देश के विभिन्न भागों में सामान्यतः विषैली व भारी धातुओं, फ्लुओराइड और नाइट्रेट्स के संकेन्द्रण के कारण होता है। भारत में जल प्रदूषण की समस्या के निवारण सम्बन्धी उपाय-देश में निरन्तर बढ़ते जल प्रदूषण के निवारण विविध व्यवस्थाएँ एवं नियम बनाये गये हैं, जिनका मुख्य उद्देश्य जल प्रदूषण को कम करना है, जैसे –
- जल अधिनियम, 1974 (प्रदूषण का निवारण और नियन्त्रण)
- पर्यावरण सुरक्षा अधिनियम, 1986
- जल उपकर अधिनियम, 1977 आदि।
यद्यपि इनका निर्माण जल प्रदूषण को कम करने के उद्देश्य से ही किया गया था, परन्तु इनको देश में प्रभावपूर्ण ढंग से कार्यान्वित नहीं किये जाने के कारण इनके परिणाम सीमित ही प्राप्त हुए हैं। अतः वर्तमान में जल के महत्त्व और जल प्रदूषण के अधिप्रभावों के बारे में लोगों को जागरूक करने की सर्वप्रमुख आवश्यकता है। जन जागरूकता और इनकी भागीदारी से ही कृषिगत कार्यों तथा घरेलू और औद्योगिक विसर्जन से प्राप्त प्रदूषकों में बहुत प्रभावशाली ढंग से कमी लाकर जल प्रदूषण के प्रसार को रोका जा सकता है।
प्रश्न 4.
देश में विभिन्न सेक्टरों में धरातलीय और भौमजल के उपयोग को बताते हुए वृत्त आरेख द्वारा प्रदर्शित कीजिए।
उत्तर:
परम्परागत रूप से भारत एक कृषि प्रधान देश है और इसकी जनसंख्या का लगभग दो-तिहाई भाग कृषि पर ही निर्भर है। इसी कारण पंचवर्षीय योजनाओं में कृषि उत्पादन को बढ़ाने के लिए सिंचाई के विकास को उच्च प्राथमिकता देते हुए बहुउद्देश्यीय नदी घाटी परियोजनाएँ, जैसे- भाखड़ा नांगल परियोजना, हीराकुण्ड, दामोदर नदी घाटी परियोजना, नागार्जुन सागर, इन्दिरा गाँधी नहर परियोजना आदि प्रारम्भ की गई।
देश में धरातलीय और भौमजल का विभिन्न सेक्टरों में उपयोग निम्न प्रकार से है –
- कृषि क्षेत्र – वर्तमान में देश में जल की माँग सिंचाई की आवश्यकताओं के लिए अधिक होने के कारण धरातलीय और भौमजल का सबसे अधिक उपयोग कृषि में ही होता है। सामान्यतः कृषि में धरातलीय जल का 89 प्रतिशत और भौमजल का 92 प्रतिशत जल उपयोग में लिया जाता है।
- औद्योगिक सेक्टर- इस सेक्टर में धरातलीय जल के मात्र 2 प्रतिशत और भौमजल के 5 प्रतिशत भाग का ही उपयोग किया जाता है।
- घरेलू सेक्टर – देश में घरेलू सेक्टर में धरातलीय जल का उपयोग भौम- जल की तुलना में अपेक्षाकृत अधिक किया जाता है। इस सेक्टर में भौमजल का मात्र 3 प्रतिशत और धरातलीय जल का 9 प्रतिशत काम में लिया जाता है।
प्रश्न 5.
भारत में सिंचाई की आवश्यकता क्यों है?
उत्तर:
भारत में सिंचाई की आवश्यकता- देश में उपलब्ध कुल जल संसाधनों के सर्वाधिक भाग का उपयोग कृषि में सिंचाई के रूप में किया जाता है। साधारणतः वर्षा की कमी या अभाव के कारण शुष्क मौसम में खेतों में फसलों को कृत्रिम ढंग से जल आपूर्ति की क्रिया, सिंचाई कहलाती है। चूँकि भारत का अधिकतर भाग उष्ण कटिबन्धीय और उपोष्ण कटिबन्धीय क्षेत्र में स्थित है। अतः यहाँ वाष्पोत्सर्जन की क्रिया भी बहुत अधिक होती है, जिसके कारण यहाँ सिंचाई के लिए जल की बहुत आवश्यकता है।
इसके अतिरिक्त निम्न कारणों से देश में सिंचाई की आवश्यक्ता महसूस की जाती है –
- देश में वर्षा की अनिश्चित एवं अनियमितु प्रवृत्ति के कारण सिंचाई की आवश्यकता होती है।
- भारत में वर्षा का वितरण बहुत असमान है, इस कारण कम वर्षा वाले क्षेत्रों में कृषि के लिए सिंचाई आवश्यक है।
- देश में वर्षा की प्रवृत्ति बहुत अधिक परिवर्तनशील भी है, अतः पर्याप्त वर्षा वाले क्षेत्रों में भी सिंचाई अनिवार्य है।
- कुछ फसलों, जैसे-चावल, गन्ना, जूट आदि को पानी की अधिक आवश्यकता होती है, अतः इनके लिए सिंचाई आवश्यक है।
- देश का अधिकांश भाग 8 माह तक शुष्क रहता है। अतः इस अवधि में कृषि करने के लिए सिंचाई की आवश्यकता होती है।
- असिंचित क्षेत्र की तुलना में सिंचित क्षेत्र की उत्पादकता अधिक होती है। अतः सिंचाई के द्वारा फसलों का उत्पादन तथा उत्पादकता बढ़ाई जा सकती है।
- सिंचाई की उचित व्यवस्था कर बहुफसलीकरण की प्रक्रिया को भी बढ़ाया जा सकता है।
अतः स्पष्ट है कि देश में वर्षा के स्थानिक व सामयिक परिवर्तनशीलता के कारण सिंचाई की अधिक आवश्यकता है।