Well-organized Class 11 Geography Notes in Hindi and Class 12 Geography Chapter 1 Notes in Hindi मानव भूगोल प्रकृति एवं विषय क्षेत्र can aid in exam preparation and quick revision.
Geography Class 12 Chapter 1 Notes in Hindi मानव भूगोल प्रकृति एवं विषय क्षेत्र
→ मानव भूगोल की प्रकृति:
भौतिक भूगोल भौतिक पर्यावरण का अध्ययन करता है, जबकि मानव भूगोल ‘भौतिक/प्राकृतिक पर्यावरण तथा मानवीय जगत् के बीच सम्बन्ध, मानवीय घटनाओं का स्थानिक वितरण तथा उनके घटित होने के कारण एवं विश्व के विभिन्न भागों में सामाजिक और आर्थिक विभिन्नताओं का अध्ययन करता है।’ भौतिक पर्यावरण के अंग हैं, यथा– स्थलाकृति, मृदा, जलवायु, जल तथा प्राकृतिक वनस्पति आदि।
→ मनुष्य का प्राकृतिकरण और प्रकृति का मानवीकरण:
मनुष्य अपनी प्रौद्योगिकी की सहायता से अपने भौतिक पर्यावरण से अन्योन्य क्रिया करता है। प्रौद्योगिकी किसी समाज में सांस्कृतिक विकास के स्तर की सूचक होती है। प्रौद्योगिकी को विकसित करने के लिए प्रकृति का ज्ञान महत्त्वपूर्ण है और प्रौद्योगिकी मनुष्य पर पर्यावरण की बंदिशों को कम करती है।
प्राकृतिक पर्यावरण से अन्योन्य क्रिया की आरम्भिक अवस्थाओं में मानव इससे अत्यधिक प्रभावित हुआ था। उन्होंने प्रकृति के आदेशों के अनुसार अपने आपको ढाल लिया, क्योंकि प्रौद्योगिकी का स्तर अत्यन्त निम्न था और मानव के सामाजिक विकास की अवस्था भी आदिम थी। आदिम मानव समाज और प्रकृति की प्रबल शक्तियों के बीच इस प्रकार की अन्योन्य क्रिया को ‘पर्यावरणीय निश्चयवाद’ (वातावरण निश्चयवाद) कहा गया।
→ प्रारम्भिक अवस्था में प्रकृति और मनुष्य के सम्बन्ध:
प्रारम्भिक अवस्था में प्रकृति और मनुष्य के पारस्परिक सम्बन्धों में मनुष्य प्रकृति से अधिक प्रभावित था। वह प्रकृति के अनुसार चलता था। ऐसे समाजों के लिए भौतिक पर्यावरण ‘माता – प्रकृति’ के समान था। समय के साथ मनुष्य ने प्रकृति तथा प्राकृतिक शक्तियों को पहचानना शुरू कर दिया। सामाजिक और सांस्कृतिक विकास के फलस्वरूप मनुष्य ने बेहतर तकनीक का विकास कर लिया। वह स्वतन्त्रता की स्थिति के लिए आगे बढ़ने लगा।
→ सम्भववाद:
मानव ने संसाधनों से सम्भावनाओं की जानकारी प्राप्त कर ली। मानव क्रियाओं की छाप को प्रत्येक स्थान पर देखा जा सकता है। उच्च स्थानों पर स्वास्थ्य विश्रामस्थल, विशाल नगरीय विस्तार, चरागाह, उद्यान आदि पर्वतों और मैदानों में देखे जा सकते हैं। तटीय भागों में बन्दरगाह, महासागरीय मार्ग तथा अन्तरिक्ष में उपग्रह आदि ये सभी मानव क्रियाएँ हैं। आरम्भिक विद्वानों ने इसे ‘सम्भववाद’ का नाम दिया। मानव वातावरण अन्तर्सम्बन्धों की इस विचारधारा के अनुसार प्रकृति अवसर प्रदान करती है और मनुष्य इनका लाभ उठाता है। इस प्रकार धीरे-धीरे प्रकृति मानवकृत हो जाती है और मानव छाप उस पर पड़नी शुरू हो जाती है।
→ नवनिश्चयवाद:
ग्रिफिथ टेलर ने मानव प्रकृति के सम्बन्ध में मध्यम मार्ग की खोज की। यह पर्यावरणीय नियतिवाद और संभववाद के मध्य था। उन्होंने इसे ‘नव निश्चयवाद अथवा रुको व जाओ निश्चयवाद’ कहा। इस विचारधारा के अनुसार न तो पर्यावरणीय नियतिवाद की स्थिति रहती है और न ही संभववाद की स्थिति रहती है। इसका अर्थ यह हुआ कि प्राकृतिक नियमों का पालन करते हुए मनुष्य अपने प्रयास से प्रकृति पर विजय प्राप्त कर सकता है।
→ समय के गलियारों से मानव भूगोल:
पर्यावरण से अनुकूलन व समायोजन की प्रक्रिया तथा इसका रूपान्तरण पृथ्वी के धरातल पर विभिन्न पारिस्थितिकीय रूप से पारिस्थितिकीय निकेत में मानव के उदय के साथ आरम्भ हुआ। इस प्रकार पर्यावरण और मानव की अन्योन्य क्रिया से मानव भूगोल के प्रारम्भ की कल्पना करें तो इसकी जड़ें इतिहास में अत्यन्त गहरी हैं।
अतः मानव भूगोल के विषयों में एक दीर्घकालिक सांतत्य पाया जाता है, यद्यपि समय के साथ इसे सुस्पष्ट करने वाले उपागमों में परिवर्तन आया है। उपागमों में यह गत्यात्मकता विषय की परिवर्तनशील प्रकृति को दर्शाती है। पहले विभिन्न समाजों के मध्य अन्योन्य क्रिया नगण्य थी और एक-दूसरे के बारे में ज्ञान सीमित था । 15वीं शताब्दी के अन्त में यूरोप में अन्वेषणों के प्रयास हुए और धीरे-धीरे देशों और लोगों के विषय में, मिथक और रहस्य खुलने शुरू हुए।
→ मानव भूगोल के क्षेत्र और उप-1 -क्षेत्र:
मानव भूगोल मानव जीवन के सभी तत्त्वों तथा अन्तराल जिसके अन्तर्गत वे घटित होते हैं, के मध्य सम्बन्ध की व्याख्या करने का प्रयास करती है। इस प्रकार मानव भूगोल की प्रकृति अत्यधिक अन्तर – विषयक है। मानवीय तत्त्वों को समझने व उनकी व्याख्या करने के लिए मानव भूगोल सामाजिक विज्ञानों के सहयोगी विषयों के साथ घनिष्ठ अन्तरापृष्ठ विकसित करता है। इसके उपक्षेत्रों के मध्य सीमाएँ प्रायः अतिव्यापी होती हैं। मानव भूगोल का विकास निम्न छह अवस्थाओं के अन्तर्गत हुआ है –
समय अवधि | उपागम |
(i) आरम्भिक उपनिवेश युग | अन्वेषण एवं विवरण |
(ii) उत्तर उपनिवेश युग | प्रादेशिक विश्लेषण |
(iii) अन्तर युद्ध अवधि के बीच 1930 का दशक | क्षेत्रीय विभेदन |
(iv) वर्ष 1950 के दशक के अन्त से 1960 के दशक के अन्त तक | स्थानिक संगठन |
(v) 1970 का दशक | मानवतावादी, आमूलवादी और व्यवहारवादी विचारधाराओं का उदय |
(vi) 1990 का दशक | भूगोल में उत्तर – आधुनिकवाद |
→ भौगोलिक शब्द
- मानव भूगोल – वह भूगोल जो भौतिक पर्यावरण तथा मानव जनित सामाजिक-सांस्कृतिक पर्यावरण के अन्तर्सम्बन्धों का अध्ययन उनकी परस्पर अन्योन्यक्रिया के द्वारा करता है।
- सामान्य भूगोल – भूगोल की वह शाखा जिसमें सम्पूर्ण पृथ्वी को एक इकाई मानकर इसके लक्षणों का विवेचन किया जाता है, सामान्य भूगोल कहलाती है।
- पर्यावरण – वे प्राकृतिक परिस्थितियाँ जिनमें मनुष्य रहता है तथा जिनसे वह प्रभावित होता है।
- प्रादेशिक भूगोल – यह किसी विशेष भौगोलिक कारक को लेकर सम्पूर्ण विश्व अथवा किसी क्षेत्र के सम्बन्ध में किया गया अध्ययन है।
- प्रणालीबद्ध भूगोल – किसी विशेष भौगोलिक कारक को लेकर सम्पूर्ण विश्व अथवा किसी क्षेत्र के सम्बन्ध में किया जाने वाला अध्ययन प्रणालीबद्ध भूगोल कहलाता है।
- पर्यावरणीय निश्चयवाद – मानव शक्तियों की तुलना में प्राकृतिक शक्तियों की प्रधानता मानने वाली विचारधारा । इस विचारधारा के अनुसार आदिम मानव समाज ने प्रकृति के आदेशों के अनुसार अपने आपको ढाल लिया।
- संभववाद मानव- – प्राकृतिक वातावरण के अन्तर्सम्बन्धों की यह विचारधारा मानवीय चयन या स्वतंत्रता को महत्त्व देती है।
- मानवतावाद – वह अध्ययन जिसमें मानव जागृति, मानव संसाधन, मानव चेतना तथा मानव की सृजनात्मकता के सन्दर्भ में मनुष्य की केन्द्रीय एवं क्रियाशील भूमिका पर जोर दिया जाता है।
- नव – निश्चयवाद अथवा नव नियतिवाद- इस विचारधारा के अनुसार मानव भूगोल में नियतिवाद तथा सम्भववाद की चरम स्थितियों के बीच मध्यम मार्ग का अनुसरण किया जाता है। इसके अनुसार प्राकृतिक नियमों का पालन कर मानव प्रकृति पर विजय प्राप्त कर सकता है।
- प्रत्यक्षवाद – वह विचारधारा जिसमें मात्रात्मक विधियों के उपयोग पर जोर दिया गया है जिससे विभिन्न कारकों के भौगोलिक प्रतिरूपों के अध्ययन के समय विश्लेषण को अधिक वस्तुनिष्ठ बनाया जा सका।
- कल्याणपरक विचारधारा – इस विचारधारा से तात्पर्य मानव भूगोल में पूँजीवाद से उत्पन्न ऐसी सामाजिक समस्याओं का समावेश है, जिसमें सामाजिक तथा प्रादेशिक असमानता, निर्धनता, नगरीय गन्दी बस्तियों आदि का अध्ययन किया जाता है जिससे उसके निराकरण पर जोर दिया जा सके।
- इडियोग्राफिक – एक विधि, जो घटनाओं की सामान्य किस्म की परिस्थितियों के विपरीत विशिष्ट परिस्थितियों पर अधिक बल देती है। परम्परागत प्रादेशिक भूगोल के अन्तर्गत इसी विधि को अपनाया जाता था क्योंकि इसमें यह विश्लेषण किया जाता है कि विभिन्न देश तथा प्रदेश एक-दूसरे से कैसे अलग होते हैं।