In this post, we have given Class 11 Hindi Antra Chapter 18 Summary – Hastakshep Summary Vyakhya. This Hindi Antra Class 11 Summary is necessary for all those students who are in are studying class 11 Hindi subject.
हस्तक्षेप Summary – Class 11 Hindi Antra Chapter 18 Summary
हस्तक्षेप – श्रीकांत वर्मा – कवि परिचय
कवि-परिचय :
प्रश्न :
श्रीकांत वर्मा के जीवन का संक्षिप्त परिचय देते हुए उनकी काव्यगत विशेषताओं पर प्रकाश डालिए तथा उनकी प्रमुख रचनाओं का नामोल्लेख कीजिए।
उत्तर :
जीवन-परिचय – श्रीकांत वर्मा का जन्म बिलासपुर, मध्य प्रदेश में हुआ था। इनकी आर्रोक शिक्षा बिलासपुर में ही हुई थी। सन 1956 में नागपुर विश्वविद्यालय से हिंदी में एम०ए० करने के बाद् इन्होंने एक पत्रकार के रूप में अपना साहित्यिक जीवन शुरू किया। ये ‘श्रमिक’, ‘कृति’, ‘दिनमान’ और ‘वर्णिका’ आदि पत्रों से संबद्ध रहे। मध्य प्रदेश सरकार ने इन्हें तुलसी पुरस्कार, आचार्य नंददुलारे वाजपेयी पुरस्कार और शिखर सम्मान से सम्मानित किया। इन्हें केरल का कुमारन आशान राष्ट्रीय पुरस्कार भी प्रदान किया गया। इनकी मृत्यु 1986 ई० में हुई।
रचनाएँ – श्रीकांत वर्मा ने समय और समाज की विसंगतियों एवं विद्रुपताओं के प्रति क्षोभ का स्वर प्रकट किया है। भटका मेघ, दिनारंभ, मायादर्पण, जलसाघर और मगध उनके चर्चित काव्य-संग्रह हैं।
इनकी अन्य महत्वपूर्ण रचनाएँ हैं-झाड़ी संवाद (कहानी-संग्रह), दूसरी बार (उपन्यास), जिरह (आलोचना), अपोलो का रथ (यात्रा-वृत्तांत), फ़ैसले का दिन (अनुवाद), बीसवीं शताब्दी के अँधेरे में (साक्षात्कार और वार्तालाप)। काव्यगत विशेषताएँ-श्रीकांत वर्मा का अपने परिवेश और संघर्षरत मनुष्य से गहरा लगाव था। उसके आत्मगौरव और भविष्य को लेकर ये लगातार चितित रहते थे।
इनमें यदि परंपरा की स्वीकृति थी, तो उसे तोड़ने और बदलने की बेचैनी भी। प्रारंभ में इनकी कविताएँ अपनी ज़मीन और ग्राम्य-जीवन की गंध को अभिव्यक्त करती हैं, किंतु ‘जलसाघर’ तक आते-आते महानगरीय बोध का प्रक्षेपण करने लगती हैं या कहना चाहिए कि शहरीकृत अमानवीयता के खिलाफ़ एक संवेदनात्मक बयान में बदल जाती हैं। इनके दायरे में शोषित-उत्पीड़ित और बर्बरता के आतंक में जीती पूरी-की-पूरी दुनिया सिमट आती है। इनकी कविताओं में अभिव्यक्त यथार्थ हमें अनेक स्तरों पर प्रभावित करता है। इनका अंतिम कविता-संग्रह ‘मगध’ तत्कालीन शासक वर्ग के त्रास और उसके अंधकारमय भविष्य को बहुत प्रभावी ढंग से रेखांकित करता है।
भाषा-शैली – कवि ने साहित्यिक खड़ी बोली में सहज अभिव्यक्ति की है। ये प्रतीकों का प्रयोग करने में कुशल हैं; जैसे –
कोई छींकता तक नहीं
इस डर से
कि मगध की शारति
भंग न हो जाए।
कवि की रचनाओं में गद्य का आभास मिलता है। इन्होंने मुक्त छंद में लिखा है और भाषा आम बोलचाल की है।
कविता-परिचय :
‘हस्तक्षेप’ नामक इस कविता में सत्ता की क्रूरता और उसके कारण पैदा होने वाले प्रतिरोध को दिखाया गया है। शासन-व्यवस्था को जनतांत्रिक बनाने के लिए समय-समय पर उसमें हस्तक्षेप की जरूरत होती है वरना व्यवस्था निरंकुश हो जाती है। कविता में ऐसे ही तंत्र का वर्णन है. जहाँ किसी भी प्रकार के विरोध के लिए गुंजाइश नहीं छोड़ी गई है। कवि सवाल खड़ा करता है कि जहाँ मुर्दे का भी हस्तक्षेप करना संभव है, उस समाज में जीता-जागता मनुष्य चुप क्यों है?
ककिता का सार :
श्रीकांत वर्मा द्वारा रचित कविता ‘हस्तक्षेप’ में मगध नामक राज्य को प्रतीक बनाकर सत्ता की क्रूरता और उसके प्रतिरोध को दर्शाया गया है। मगध में शासकों की निरंकुशता और स्वेच्छाचारिता इतनी बढ़ चुकी है कि उनके प्रति विरोध जताना आवश्यक हो गया है। मगध में शांति-व्यवस्था भली-भाँति कायम होने की बात कही जाती है, क्योंक वहाँ लोगों की अभिव्यक्ति पर प्रतिबंध है। शांति-व्यवस्था भंग होने और उसमें अवरोध होने के भय से लोगों को दबाने का हर संभव प्रयास किया जाता है।
शांति-व्यवस्था बनाए रखने के लिए लोगों का शोषण किया जाता है। उन्हें यह भय दिखाया जाता है कि यदि मगध में शांति भंग हो गई, तो लोग क्या कहेंगे। यद्यपि लोग इस व्यवस्था की चोरी-छिपे आलोचना तो करते हैं, परंतु मुखर होकर इसका विरोध नहीं करते, क्योंकि इससे रोकने-टोकने की प्रथा की शुरुआत होने की संभावना है। यदि एक बार रोक-टोक (हस्तक्षेप) शुरू हो गई, तो यह रुकने का नाम नहीं लेगी, किंतु लोकतांत्रिक व्यवस्था में हस्तक्षेप की आवश्यकता होती है।
अपने अधिकारों के प्रति सजग होकर शोषण और अन्याय के विरुद्ध आवाज़ उठानी पड़ती है। मगधवासी भी इससे बच नहीं सकते। इस प्रकार का हस्तक्षेप, तो कमज़ोर-से-कमज़ोर व्यक्ति भी कर सकता है, तो फिर सामान्य लोग क्यों नहीं कर सकते। उन्हें भी हस्तक्षेप करना ही होगा, ताकि शासक की निरंकुशता बढ़ने न पाए।
सप्रसंग क्याख्या एवं काव्य-सौंदर्य संबंधी प्रश्न –
1. कोई छींकता तक नहीं
इस डरे से
कि मगध की शांति
भंग न हो जाए,
मगध को बनाए रखना है, तो
मगध में शांति
रहनी ही चाहिए
मगध है, तो शांति है
कोई चीखता तक नहीं
इस डर से
कि मगध की व्यवस्था में
दखल न पड़ जाए
मगध में व्यवस्था रहनी ही चाहिए
मगध में न रही
तो कहाँ रहेगी?
क्या कहेंगे लोग?
लोगों का क्या?
लोग तो यह भी कहते हैं
मगध अब कहने को मगध है,
रहने को नहीं।
शब्दार्थ :
डर-भय (fear)। भंग-नष्ट (destroy)। दखल-हस्तक्षेप (interference)। मगध-निरंकुश सत्ता का प्रतीक (sign of cruelness)।
प्रसंग – प्रस्तुत काव्यांश हमारी पाठ्यपुस्तक अंतरा, भाग-1 में संकलित ‘हस्तक्षेप’ कविता से उद्धृत है। इसके रचयिता श्रीकांत वर्मा हैं। इस कविता में कवि ने सत्ता की क्रूरता और उसके कारण पैदा होने वाले प्रतिरोध को दिखाया है। इस अंश में मगध को निरंकुश सत्ता का प्रतीक बताया गया है तथा सत्ता के आतंक को दर्शाया गया है। वहाँ शांति-व्यवस्था भंग होने के भय से लोगों को दबाए रखा जाता है।
व्याख्या – मगध में सत्ताधारी वर्ग की निरंकुशता एवं स्वेच्छाचारिता पर व्यंग्य करते हुए कवि कहता है कि मगध में किसी भी हाल में शांति-व्यवस्था बनी रहनी चाहिए। इसे बनाए रखने के लिए लोगों को छींकने तक का अवसर नहीं दिया जाता। अर्थात उन्हें विरोध करने या अपनी बात कहने का तनिक भी मौका नहीं दिया जाता। सत्ताधारी वर्ग को भय है कि लोगों द्वारा विरोध का स्वर ऊँचा करते ही मगध की शांति-व्यवस्था में दखल पड़ जाएगा। सत्ताधारी वर्ग इस व्यवस्था में बदलाव नहीं करना चाहता। उसे तो कैसे भी मगध में शांति-व्यवस्था चाहिए। इसके लिए लोगों को उचित बातें कहने का भी अवसर नहीं दिया जाता।
वे अपनी निरंकुशता को छिपाने के लिए शांति-व्यवस्था बनाए रखने की दुहाई देते हैं। वे लोगों से कहते हैं कि यदि मगध में शांति-व्यवस्था न रही, तो कहाँ रहेगी? इसके भंग होते ही लोग क्या-क्या बातें बनाएँगे? इतनी व्यवस्था (शोषण) के बाद भी यदि शांति भंग होती है, तो इससे लोगों को आलोचना का अवसर मिल जाएगा कि मगध अब रहने लायक नहीं रहा। अर्थात मगध का बस नाम ही रह गया है, वह रहने के योग्य नहीं बचा है। भाव यह है कि सत्ताधारी अपनी सत्ता बनाए रखने, अपनी निरंकुशता छिपाए रखने और जनता की आवाज़ दबाए रखने के लिए शांति भंग होने का भय दिखाता रहता है।
विशेष :
(i) इस काव्यांश में सत्ताधारी वर्ग द्वारा अपनी सत्ता बनाए रखने के लिए लोगों की आवाज़ दबाए रखने का भाव प्रकट हुआ है।
(ii) भाषा खड़ी बोली है, जिसमें प्रतीकात्मकता है।
काव्य-सौंदर्य संबंधी प्रश्नोत्तर –
प्रश्न :
(क) काव्यांश का भाव-सौंदर्य स्पष्ट कीजिए।
(ख) काव्यांश की शिल्प-सौंदर्य संबंधी दो विशेषताएँ लिखिए।
उत्तर :
(क) भाव-सौंदर्य-
उपर्युक्त काव्यांश का भाव यह है कि जनता को शांति भंग होने का भय दिखाकर उसकी आवाज़ दबाने का प्रयास किया जाता है।
कवि ने सत्ता के निरंकुश रूप का प्रभावी चित्रण किया है। ऐसी व्यवस्था में व्यक्ति मौलिक अधिकार भी खो बैठता है।
(ख) शिल्प-सौंदर्य-
(i) ‘क्या कहेंगे’, ‘कहने को’ में अनुप्रास अलंकार है।
‘छींकना’, ‘चीखना’ आदि शब्दों का लाक्षणिक प्रयोग है।
‘मगध’ निरंकुश सत्ता का प्रतीक है। ‘छींकना’, ‘चीखना’ हस्तक्षेप को दर्शाते हैं।
(ii) खड़ी बोली में सहज अभिव्यक्ति हुई है।
मुक्त छंद है।
‘दखल पड़ना’ मुहावरे का प्रयोग है।
2. कोई टोकता तक नहीं इस डर से
कि मगध में
टोकने का रिवाज़ न बन जाए
एक बार शुरू होने पर
कहीं नहीं रुकता हस्तक्षेप –
वैसे तो मगधनिवासियों
कितना भी कतराओ
तुम बच नहीं सकते हस्तक्षेप से –
जब कोई नहीं करता
तब नगर के बीच से गुज़रता हुआ
मुर्दा
यह प्रश्न कर हस्तक्षेप करता है –
मनुष्य क्यों मरता है?
शब्दार्थ : रिवाज़-प्रथा (custom)। शुरू-प्रारंभ (start)। हस्तक्षेप-प्रश्न उठाना, दखल देना (interference)। कतराओ-बचकर निकलो (escape)। मुर्दा-मृत शरीर (dead body)।
प्रसंग – प्रस्तुत काव्यांश हमारी पाठ्यपुस्तक अंतरा, भाग-1 में संकलित ‘हस्तक्षेप’ कविता से उद्धृत है। इसके रचयिता श्रीकांत वर्मा हैं। इस कविता में कवि ने सत्ता की क्रूरता और उसके कारण पैदा होने वाले प्रतिरोध का वर्णन किया है। इस अंश में कवि ने समय-समय पर सत्ता में हस्तक्षेप को ज़रूरी बताया है, ताकि सत्ता स्वेच्छाचारी न होने पाए। इसके लिए जन-सामान्य को ही पहल करना चाहिए।
व्याख्या – मगध में सत्ताधारी वर्ग की शोषण प्रवृत्ति देख कवि कहता है कि मगध में सत्ता की कार्यप्रणाली में रोक-टोक करने का रिवाज़ ही नहीं है। सत्ता पक्ष को यह भय है कि ऐसी शुरुआत होते ही कहीं यह एक प्रथा न बन जाए। इसलिए इसने उसके लिए जगह ही नहीं छोड़ा है। जब एक बार व्यवस्था के बारे में प्रश्न उठने लगते हैं, तो फिर यह चलता ही रहता है। इससे सत्ता पक्ष की निरंकुशता पर अंकुश लगता है।
कवि मगधवासियों को संबोधित करते हुए कहता है कि तुम लोग प्रश्नों से बचने की कितनी भी कोशिश करो, इनसे बच नहीं सकते। जब कोई हस्तक्षेप नहीं करता है, तो नगर के बीच से गुज़रता हुआ मुर्दा अर्थात मरा व्यक्ति व्यवस्था के विरुद्ध आवाज़ उठाते हुए पूछता है कि आदमी मरता क्यों है? इस प्रकार कवि यह बताना चाहता है कि मगधवासी एक-न-एक दिन अपने अधिकारों के लिए आवाज़ अवश्य उठाएँगे और सत्ता पक्ष के शोषण का विरोध करेंगे।
विशेष :
(i) इस काव्यांश में शोषण के विरुद्ध आवाज़ उठाने की आवश्यकता का भाव प्रकट हुआ है।
(ii) भाषा खड़ी बोली है, जिसमें बोलचाल के शब्दों का प्रयोग है।
काव्य-सौंदर्य संबंधी प्रश्नोत्तर –
प्रश्न :
(क) काव्यांश का भाव-सौंदर्य स्पष्ट कीजिए।
(ख) काव्यांश की शिल्प-सौंदर्य संबंधी दो विशेषताएँ लिखिए।
उत्तर :
(क) भाव-सौंदर्य-
उपर्युक्त काव्यांश में कवि ने सत्ता के निरंकुश रूप तथा हस्तक्षेप की ज़रूरत को बताया है।
शोषणकर्ता के विरुद्ध देर-सबेर आवाज़ उठ ही जाती है।
(ख) शिल्प-सौंदर्य –
(i) ‘टोकना, ‘मुर्दा’ आदि लाक्षणिक प्रयोग हैं।
खड़ी बोली में सहज अभिव्यक्ति है।
(ii) तुकांत न होने के कारण कविता गद्यांश जैसी लगती है।
काव्यांश मुक्त छंद एवं अतुकांत रचना है।