In this post, we have given Class 11 Hindi Antra Chapter 17 Summary – Badal Ko Ghirte Dekha Hai Summary Vyakhya. This Hindi Antra Class 11 Summary is necessary for all those students who are in are studying class 11 Hindi subject.
बादल को घिरते देखा है Summary – Class 11 Hindi Antra Chapter 17 Summary
बादल को घिरते देखा है – नागार्जुन – कवि परिचय
कवि-परिचय :
प्रश्न :
कवि नागार्जुन के जीवन एवं साहित्य का संक्षिप्त परिचय दीजिए।
उत्तर :
जीवन-परिचय-नागार्जुन का जन्म इनके ननिहाल सतलखा, जिला दरभंगा (बिहार) में सन 1911 में हुआ था। इनका पैतृक गाँव तरौनी, ज़िला मधुबनी था। इनका मूल नाम वैद्यनाथ मिश्र था। इनकी प्रारंभिक शिक्षा स्थानीय संस्कृत पाठशाला में हुई। इन्होंने उच्च शिक्षा वाराणसी और कोलकाता में प्राप्त की। सन 1936 में ये श्रीलंका गए और वहीं पर बौद्ध धर्म में दीक्षित हुए। ये सन 1938 में स्वदेश वापस आए। फक्कड़पन और घुमक्कड़ी इनके जीवन की प्रमुख विशेषताएँ रही हैं।
राजनीतिक कार्यकलापों के कारण कई बार इन्हें जेल भी जाना पड़ा। सन 1935 में इन्होंने ‘दीपक’ (हिंदी मासिक) तथा 1942-43 में ‘विश्वबंधु’ (साप्ताहिक) पत्रिका का संपादन किया। अपनी मातृभाषा मैथिली में ये ‘यात्री’ के नाम से लेखन करते रहे। मैथिली में नवीन भावबोध की रचनाओं का प्रारंभ इनके महत्वपूर्ण कविता-संग्रह ‘चित्रा’ से माना जाता है। नागार्जुन ने संस्कृत तथा बँगला भाषा में भी काव्य-रचना की है। इनकी मृत्यु सन 1998 में हुई।
रचनाएँ-नागार्जुन की प्रमुख कृतियाँ निम्नलिखित हैं :
(i) काव्य कृतियाँ – युगधारा, प्यासी पथराई आँखें, सतरंगे पंखों वाली, तालाब की मछालयाँ, हज़ार-हज़ार बाहों वाली, तुमने कहा था, पुरानी जूतियों का कोरस, आखिर ऐसा क्या कह दिया मैंने, रत्नगी, ऐसे भी हम क्या : ऐसे भी तुम क्या, पका है कटहल, मैं मिलटरी का बूढ़ा घोड़ा तथा भस्मांकुर (खंडकाव्य)।
(ii) उपन्यास – बलचनामा, रतिनाथ की चाची, कुंभी पाक, उग्रतारा, जमनिया का बाबा, वरुण के बेटे आदि उपन्यास विशेष उल्लेखनीय हैं।
‘पत्रहीन नग्न गाछ’ (मैथिली कविता संग्रह) पर इन्हें साहित्य अकादमी पुरस्कार प्रदान किया गया। ये उत्तर प्रदेश के भारत-भारती पुरस्कार, मध्य प्रदेश के मैधिलीशरण गुप्त पुरस्कार. बिहार सरकार के राजेंद्र प्रसाद पुरस्कार आदि पुरस्कारों से भी सम्मानित किए गए। इन्हें हिंदी अकादमी दिल्ली का शिखर सम्मान भी मिला। काव्यगत विशेषताएँ-नागार्जुन साहित्य और राजनीति दोनों में समान रूप से रुचि रखने वाले प्रगतिशील साहित्यकार थे। ये धरती, जनता और श्रम के गीत गाने वाले संवेदनशील कवि थे।
कबीर जैसी सहजता इनके काव्य की विशेषता है। इनकी भाषा में चट्टान की-सी मजबूती है। सामयिक बोध इनकी कविता का प्रधान स्वर है। इनकी रचनाओं में तीखा व्यंग्य पाया जाता है। यह इनकी कविता का प्रधान स्वर है। इनकी रचनाओं का जनता से जीवंत संपर्क है। इन्होंने कई आंदोलनधर्मी कविताएँ भी लिखी हैं, जिन्हें ‘पोस्टर कविता ‘ कहा जाता है। ये अच्छे उपन्यासकार भी थे।
इनकी रचनाओं में लोकजीवन, प्रकृति और समकालीन राजनीति काव्य-वस्तु के रूप में चित्रित हैं। अपनी सहजता और विषयों में विविधता के लिए ये विशेष रूप से जाने जाते हैं। विषय की जितनी विविधता और प्रस्तुति की जितनी सहजता नागार्जुन के रचना-संसार में है, उतनी शायद ही कहीं और हो। ये छायावादोत्तर काल के अकेले जनकवि हैं, जिनकी रचनाएँ चौपालों से लेकर विद्वानों की बैठकों तक में समान रूप से आदर पाती हैं। जटिल-से-जटिल विषय पर लिखी गई इनकी कविताएँ इतनी सहज, संप्रेषणीय और प्रभावशाली हैं कि वे पाठकों के मानस में बस जाती हैं। नागार्जुन की कविता में धारदार व्यंग्य मिलता है। जनता के हितों के प्रति ये अपनी कविताओं में सदा सचेत रहे हैं।
भाषा-शैली-नागार्जुन बहुमुखी प्रतिभा के धनी साहित्यकार थे। अपनी मातृभाषा मैथिली के समान ही इनका हिंदी पर भी अधिकार था। संस्कृत और बँगला भाषा इनकी काव्य-भाषा रही हैं। इनके काव्य में अरबी-फ़ारसी शब्द भी यदा-कदा आ जाते हैं। इन्होंने खड़ी बोली में काव्य का सृजन किया है, जिसकी सरसता एवं चित्रात्मकता देखते ही बनती है।
नागार्जुन ने छंदबद्ध और छंदमुक्त दोनों तरह की कविताएँ रचीं। इनकी काव्य-भाषा में एक ओर संस्कृत काव्य परंपरा की प्रतिध्वनि मिलती है, तो दूसरी ओर बोलचाल की भाषा की रवानी और जीवंतता। व्यंग्य कविताओं में इनका राजनीतिक व्यंग्य देखते ही बनता है।
कविता-परिचय :
‘बादल को घिरते देखा है’ कविता में नागार्जुन ने हिमालय की पहाड़ियों, दुर्गम बफ़ीली घाटियों, झीलों, झरनों, देवदारु के जंगलों के बीच दुर्लभ वनस्पतियों, जीव-जंतुओं, किन्नर-किन्नरियों का वास्तविक चित्र प्रस्तुत किया है। ऐसा लगता है कि कवि ने उनके बीच जो अनुभव किया है, वही कवि-सत्य बनकर कविता में अभिव्यक्त हुआ है। सामान्यतया साहित्य परंपरा में बादल का कोमल रूप ही अब तक कवियों के द्वारा अपनी कविता में प्रस्तुत किया गया है, किंतु नागार्जुन ने बादल की विकरालता, बीहड़ता यानी जिन-जिन रूपों को देखा, अनुभव किया, उन-उन रूपों का विस्तृत वर्णन किया। सही मायने में कालिदास की परंपरा से नागार्जुन आगे बढ़ते हैं, यह कविता उसका प्रमाण है।
कविता का सार :
नागार्जुन की कविता ‘बादल को घिरते देखा है’ ‘युगधारा’ काव्य-संग्रह से ली गई है, जिसमें प्राकृतिक चित्रण बेजोड़ है। वर्षा ऋतु में प्रकृति के विविध अंग नाना प्रकार की क्रियाएँ करते नज़र आते हैं। इन्हें देखकर कवि कहता है कि उसने पहाड़ों की स्वच्छता तथा बर्फ़ की सफ़ेद चोटियों पर बादल को घिरते हुए देखा है। उसने कमल के फूलों पर गिरती बूँदों के प्रत्यक्ष दर्शन किए हैं। बसंत ऋतु में अगल-बगल के पहाड़ों की ऊँची चोटियाँ उगते हुए सूरज के हल्के प्रकाश में नहाकर सुनहरी हो जाती है। उसने मानसरोवर के किनारे खड़े होकर चकवा-चकवी की लड़ाई देखी है, उसने कस्तूरी वाले उस युग हिरण को देखा है, जिसे यह पता नहीं कि उसके अंदर से खुशबू आ रही है।
कवि बताता है कि यहीं पर संस्कृत के कवि कालिदास ने आकाश में बहती गंगा की उज्ज्वल धारा के होने का भी उल्लेख किया है। उस बादल का भी यहाँ पता नहीं चलता, जिसे देखकर कवि ने ‘मेघदूत’ नामक काव्य की रचना की। कवि ने भयंकर सर्दी में कैलाश पर विशालकाय बादलों और तूफ़ानी गति से चलने वाली हवाओं को एक-दूसरे से टकराते देखा है। उसने मानसरोवर के आस-पास देवदार के जंगल देखे हैं। यहाँ किन्नर स्त्रियाँ रहती हैं, जो रंग-बिरंगे फूलों से बालों को सजाती हैं। वे नीलकमल की मालाएँ पहनती हैं। वह उनको देखता है, जो लाल नंदन की तिपाई के पास बिछी कस्तूरी हिरणी की मृगछाल पर बैठकर चाँदी से बने और रत्नों से जड़े पान-पात्रों में भरी द्राक्षासव पी रहे होते हैं।
सप्रसंग व्याख्या एवं काव्य-सौंदर्य संबंधी प्रश्न –
1. अमल-धवल गिरि के शिखरों पर,
बादल को घिरते देखा है।
छोटे-छोटे मोती जैसे
उसके शीतल तुहिन-कणों को,
मानसरोवर के उन स्वर्णिम
कमलों पर गिरते देखा है।
बादल को घिरते देखा है।
तुंग हिमालय के कंधों पर
छोटी-बड़ी कई झीलें हैं,
उनके श्यामल नील सलिल में
समतल देशों से आ-आकर
पावस की ऊमस से आकुल
तिक्त-मधुर विसतंतु खोजते
हंसों को तिरते देखा है।
बादल को घिरते देखा है।
शब्दार्थ : अमल-धवल-निर्मल तथा सफ़ेद (pure and white)। गिरि-पर्वत (mountain)। तुहिन-कण-ओस की बूँदें (droplets of fog)। स्वर्णिम-सोने के रंग वाले, सुनहरे (golden)। तुंग-ऊँचा (high)। श्यामल-साँवले (blackish)। सलिल-पानी (water)। पावस-वर्षा ऋतु (rainy season)। ऊमस-हवा न चलने से होने वाली गरमी (extreme hotness)। तिक्त-मधुर -कड़वे और मीठे (sour and sweet)। विसतंतु-कमलनाल के भीतर स्थित कोमल रेशे (inner fibres of lotus)।
प्रसंग – प्रस्तुत काव्यांश हमारी पाठ्यपुस्तक अंतरा, भाग-1 में संकलित प्रगतिवादी कवि नागार्जुन द्वारा रचित ‘बादल को घिरते देखा है’ से उद्धृत है। इस कविता के माध्यम से कवि के प्रकृति के प्रति स्वच्छ, निश्छल प्रेम की अभिव्यक्ति हुई है। इस काव्यांश में कवि ने यह स्पष्ट किया है कि वह यायावर और फक्कड़ प्रवृत्ति का रहा है। तिब्बत प्रवास के क्रम में कवि हिमालय पर्वत के अनुपम सौंदर्य को निहारता है।
व्याख्या – कवि हिमालय के सौंदर्य के बारे में कहता है कि जब मैं घूमने हेतु हिमालय पर्वत के शिखर पर पहुँचा, तब मैंने वहाँ उज्ज्वल, स्वच्छ व निर्मल बादलों को हिमालय की चोटियों पर उमड़ते हुए देखा। उस समय हिमालय पर्वत की चोटियाँ बर्फ़ से ढँकी हुई थीं और सफ़ेद-स्वच्छ पर्वत की चोटियों पर बादल घिर रहे थे। वहाँ पर मैंने देखा कि ओस की छोटी-छोटी बूँदें साक्षात मोतियों के समान चमक रही थीं और मानसरोवर के सुंदर कमल-पुष्पों पर ये मोती के समान गिर रही थीं।
हिमालय पर्वत की ऊँची-ऊँची चोटियों पर स्थित समतल मैदानों में छोटी-बड़ी कई झीलें विद्यमान हैं। उन झीलों के साँवले-नीले स्वच्छ जल में समतल मैदानों से हंस वर्षा ऋतु की उमस-भरी गर्मी से मुक्ति पाने के लिए आनंदपूर्वक तैरने आ जाते हैं। मैंने उन हंसों को तीखे और मीठे स्वाद वाले कमलनाल खोजते, आनंदपूर्वक तैरते एवं जल-क्रीड़ा करते हुए देखा है।
विशेष :
(i) इस काव्यांश में हिमालय पर्वत पर उमड़ते-घुमड़ते बादलों एवं झील में जल-क्रीड़ा करते हंसों का चित्रण है।
(ii) भाषा तत्सम शब्दावलीयुक्त खड़ी बोली है।
काव्य-सौंदर्य संबंधी प्रश्नोत्तर –
प्रश्न :
(क) काव्यांश का भाव-सौंदर्य स्पष्ट कीजिए।
(ख) काव्यांश की शिल्प-सौंदर्य संबंधी दो विशेषताएँ लिखिए।
उत्तर :
(क) भाव-सौंदर्य –
उपर्युक्त काव्यांश में हिमालय की झीलों में कमलनाल खोजते तथा जल-क्रीड़ा करते हंसों का सजीव वर्णन है।
प्रकृति के नैसर्गिक सौंदर्य का यथार्थ चित्रण है।
(ख) शिल्प-सौंदर्य-
(i) भाषा सरल, स्पष्ट तथा तत्सम शब्दावली से युक्त, साहित्यिक खड़ी बोली है।
‘तुहिन कणों को’, ‘के कंधों पर’ और ‘देशों से आ-आकर’ में अनुप्रास अलंकार का प्रयोग है।
‘छोटे-छोटे’ में पुनरूक्ति प्रकाश अलंकार है और ‘छोटे-छोटे मोती जैसे’ में उपमा अलंकार है।
संगीतात्मकता विद्यमान है।
(ii) कोमलकांत पदावली है।
माधुर्य गुण है।
भाव, भाषा और शैली की त्रिवेणी प्रवाहित हुई है।
‘हिमालय के कंधों पर झीले’ बताने से हिमालय का मानवीकरण हुआ है। अत: मानवीकरण अलंकार है।
अंतिम दो पंक्तियों में स्वर-मैत्री अलंकार है।
2. ऋतु वसंत का सुप्रभात था
मंद-मंद था अनिल बह रहा
बालारुण की मृदु किरणें थीं
अगल-बगल स्वर्णिम शिखर थे
एक दूसरे से विरहित हो
अलग-अलग रहकर ही जिनको
सारी रात बितानी होती,
निशा काल से चिर-अभिशापित
बेबस उस चकवा-चकई का
बंद हुआ क्रंदन, फिर उनमें
उस महान सरवर के तीरे
शैवालों की हरी दरी पर
प्रणय-कलह छिड़ते देखा है।
बादल को घिरते देखा है।
शब्दार्थ :
सुप्रभात-मनोहारी सबेरा (good morning)। अनिल-हवा (air)। बालारुण-सुबह का सूर्य (morning sun)। मृदु-कोमल (soft)। स्वर्णिमम-सुनहरा (golden)। विरहित-विरह से पीड़ित (sad due to departure)। निशा-रात्रि (night)। चिर-अभिशापित-बहुत समय से शापग्रस्त (cursed since long time)। क्रंदन-विलाप करना, रोना (cry)। सरवर-सरोवर (pond)। तीरे-किनारे (shore)। प्रणय-कलह-प्यार-भरी छेड़छाड़ (love)।
प्रसंग :
प्रस्तुत काव्यांश हमारी पाठ्यपुस्तक अंतरा, भाग-1 में संकलित नागार्जुन द्वारा रचित प्रसिद्ध कविता ‘बादल को घिरते देखा है’ से उद्धृत है। प्रस्तुत कविता में कवि ने प्रकृति का मनो-मुग्धकारी व यथार्थपरक चित्रण किया है। इस काव्यांश में कवि बसंतकालीन मनोरम प्रभात में स्वर्णिम आभा से चमकते पर्वत और चकवा-चकवी नामक पक्षियों की प्रणय-कलह देखकर अभिभूत हो रहा है।
व्याख्या – बसंत ऋतु की सुंदर सुबह का वर्णन करता हुआ कवि कहता है कि बसंत ऋतु का प्रभुत्व चारों तरफ़ फैल गया था। उसकी मादकता में संपूर्ण वातावरण आनंद-विभोर हो रहा था। मलयाचल पर्वत की शीतल एवं सुर्गंधित वायु बह रही थी और प्रातःकालीन सूर्य की सुनहली आभा सर्वत्र छिटकी हुई थी। इसके साथ ही आस-पास में बर्फ़ से ढँके तथा प्रातःकालीन सूर्य की स्वर्णिम आभा से युक्त शिखर थे। वे सभी इस प्रकार दिखाई दे रहे थे, मानो उन्हें अलग-अलग खड़ा कर दिया गया हो और उनका मिलन एक प्रकार से असंभव हो।
लेकिन, दूसरी ओर, चिरकाल से शापग्रस्त चकवा-चकई का जोड़ा था, जिन्हें यह शाप मिला हुआ था कि वे रात्रि में कभी नहीं मिल सकेंगे और प्रातःकाल होते ही एक-दूसरे से मिल सकेंगे। रात्रि के आने पर उन दोनों पक्षियों के जीवन में वियोग की बाधा रात्रि के रूप में सामने आ जाती है। सारी रात अलग-अलग रहकर वे चीख-पुकार करते रहते हैं, परंतु जैसे ही उनके मिलन का समय अर्थात प्रभात का समय आता है, उनका क्रंदन समाप्त हो जाता है। मिलन की बेला आने के बाद दोनों पक्षी (चकवा-चकई) मानसरोवर के किनारे काई की हरी दरी रूपी बिछौने पर प्रणय-क्रीड़ा करते हुए कवि को दिखाई पड़े अर्थात रात्रि के वियोग के पश्चात अब दोनों प्रेम किलोल करने लगे।
विशेष :
(i) इस काव्यांश में मनोरम प्रभात एवं पक्षी-युगल की प्रणय-क्रीड़ा का सजीव चित्रण है।
(ii) भाषा तत्सम शब्दावलीयुक्त खड़ी बोली है।
काव्य-सौंदर्य संबंधी प्रश्नोत्तर –
प्रश्न :
(क) काव्यांश का भाव-सौंदर्य स्पष्ट कीजिए।
(ख) काव्यांश की शिल्प-सौंदर्य संबंधी दो विशेषताएँ लिखिए।
उत्तर :
(क) भाव-सौंदर्य-
उपर्युक्त काव्यांश में मनोरम प्रातःकाल एवं प्रकृति का सुंदर चित्रण हुआ है।
चकवा-चकवी के वियोग और मिलन का दृश्य बाँधा गया है।
(ख) शिल्प-सौंदर्य-
(i) ‘मंद-मंद’, ‘अलग-अलग’ में पुनरुक्ति प्रकाश अलंकार तथा ‘चकवा-चकई’, ‘अगल-बगल’ में अनुप्रास अलंकार है।
‘शैवालों की हरी दरी’ में रूपक अलंकार है।
काव्यांश में वियोग एवं संयोग शृंगार रस घनीभूत है।
(ii) कोमलकांत पदावली का प्रयोग हुआ है।
चकवा-चकई के प्रणय-कलह का बिंब साकार हो उठा है।
संगीतात्मकता विद्यमान है।
भाषा तत्सम शब्दों से युक्त साहित्यिक खड़ी बोली है।
3. दुर्गम बरफ़ानी घाटी में
शत-सहस्त्र फुट ऊँचाई पर
अलख नाभि से उठनेवाले
निज के ही उन्मादक परिमल
के पीछे धावित हो-होकर
तरल तरुण कस्तूरी मृग को
अपने पर चिढ़ते देखा है।
बादल को घिरते देखा है।
कहाँ गया धनपति कुबेर वह
कहाँ गई उसकी वह अलका
नहीं ठिकाना कालिदास के
व्योम-प्रवाही गंगाजल का,
ढूँढा बहुत परंतु लगा क्या
मेघदूत का पता कहीं पर,
कौन बताए वह छायामय
बरस पड़ा होगा न यहीं पर,
जाने दो, वह कवि-कल्पित था,
मैंने तो भीषण जाड़ों में
नभ-चुंबी कैलाश शीर्ष पर,
महामेघ को झंझानिल से
गरज-गरज भिड़ते देखा है।
बादल को घिरते देखा है।
शब्दार्थ :
दुर्गम – जहाँ पहुँचना कठिन हो (difficult to go)। बरफ़ानी – बर्फ़ से ढँकी हुई (cover with snow)। शत-सहस्त्र-सैकड़ों हज़ार (hundreds thousand)। अलख नाभि-अदृश्य नाभि (the invisible navel)। निज-अपने (own)। उन्मादक परिमल-नशीली सुगंध (citing fragrance)। धावित-भागकर (running)। तरुण-युवा (youth)। धनपति-धन का स्वामी (god of wealth)। कुबेर-धन का स्वामी, यक्षों का राजा (Kuber, the god of wealth)। अलका-कुबेर की नगरी (town of Kuber)। व्योम-प्रवाही-आकाश में प्रवाहित होने वाली आकाश गंगा (river that flows in sky named Akash Ganga, milkyway)!
प्रसंग – प्रस्तुत काव्यांश हमारी पाठ्यपुस्तक ‘अंतरा, भाग-1’ में संकलित सुप्रसिद्ध प्रगतिवादी कवि, आधुनिक कबीर, नागार्जुन द्वारा रचित उनकी सुप्रसिद्ध कविता ‘बादल को घिरते देखा है’ से उद्धृत है। प्रस्तुत कविता में कवि ने प्रकृति का अत्यंत सुंदर एवं मनमोहक चित्रण किया है।
कवि ने तिब्बत में हिमालय पर्वत के अनिंद्य सौंदर्य को निहारा था। उस समय उसके मन में प्रकृति के प्रति अनन्य प्रेम उमड़ पड़ा था। उसी स्वच्छ, निर्मल प्रेम की निश्छल अभिव्यक्ति चित्रित हुई है।
व्याख्या – कवि ने हज़ारों फुट की ऊँचाई पर हिमालय पर्वत की बऱीीली घाटियों में अपनी ही नाभि में छिपी कस्तूरी की सुगंध से मदमस्त होकर दौड़ते हुए सुनहरे मृग को देखा अर्थात मृग की ही नाभि से कस्तूरी की सुगंध निकल रही थी, लेकिन अपनी नाभि से निकली सुगंध को न समझकर वह (मृग) उस सुर्गधित पदार्थ को पाने के लिए यहाँ-वहाँ दौड़ रहा था। कवि ने हिमालय पर्वत पर सुगंधित पदार्थ न पाने के कारण ही अपने पर खीझते हुए मृगों को निहारा है।
कवि प्रश्न पूछता है कि धन का स्वामी कुबेर कहाँ चला गया है और उसकी ऐश्वर्य की नगरी अलका अब कहाँ है? कालिदास का आकाश से उतरकर पृथ्वी पर बहने वाली गंगा नदी के जल का भी कहीं ठिकाना नहीं है। कवि स्पष्ट करता है कि मैने मेघदूत को बहुत ढूँढ़ा, परंतु उसका कहीं भी पता नहीं चला। उसके बारे में मुझे कौन जानकारी देगा। कहीं वह छायामय मेघदूत कहीं बरस न पड़ा हो, जिससे उसका अस्तित्व नष्ट हो गया होगा।
फिर कवि स्पष्ट करता है कि जाने दो इन सारी बातों को, क्योंक ये तो सारी कवि की कल्पना-प्रसूत बातें हैं। मैंने तो भयंकर शीत ऋतु में आकाश को छूने की होड़ करने वाले कैलाश पर्वत पर भीमकाय विराट बादलों को तूफ़ानों के साथ गरजते हुए, भिड़ते हुए देखा है। कवि स्पष्ट करता है कि अब मैं बादल को दूत बनाकर न विरहिणी को ठगने का कार्य करूँगा और न (धरती) यथार्थ की कटु-कठोर भूमि का परित्याग करके कल्पना (आकाश) की ऊँची उड़ान भरूँगा।
विशेष :
(i) इस काव्यांश में कालिदास के काव्य में वर्णित उस पौराणिक कथा का उल्लेख है, जिसमें यक्ष मेघ को दूत बनाकर अपनी प्रेयसी के पास भेजता है।
(ii) अनुप्रास अलंकार की छटा दर्शनीय है।
काव्य-सौंदर्य संबंधी प्रश्नोत्तर –
प्रश्न :
(क) काव्यांश का भाव-सौंदर्य स्पष्ट कीजिए।
(ख) काव्यांश की शिल्प-सौंदर्य संबंधी दो विशेषताएँ लिखिए।
उत्तर :
(क) भाव-सौंदर्य –
इस काव्यांश में प्रकृति का मनोरम चित्रण किया गया है। भागते हिरणों एवं उमड़ते-घुमड़ते बादलों का सजीव चित्रण है।
नाभि-स्थित कस्तूरी की गंध के पीछे हिरण का भागना काव्य-रूढ़ि का प्रयोग है।
(ख) शिल्प-सौंदर्य –
(i) ‘कवि-कल्पित’, ‘तरल-तरुण’ और ‘गरज-गरज’ में क्रमशः अनुप्रास और पुनरुक्ति प्रकाश अलंकारों का प्रयोग है।
कवि नागार्जुन स्वयं अतिशय कल्पना का मार्ग त्यागकर यथार्थ की ओर उन्मुख हुए हैं।
भाषा सरल, स्पष्ट एवं तत्सम शब्दावली से युक्त साहित्यिक खड़ी बोली है।
(ii) कोमलकांत पदावली है।
माधुर्य गुण है।
जगह-जगह पर दृश्य बिंब उपस्थित हैं।
4. शत-शत निर्झर-निर्मरणी कल
मुखरित देवदारु कानन में,
शोणित धवल भोज पत्रों से
छाई हुई कुटी के भीतर,
रंग-बिरंगे और सुगंधित
फूलों से कुंतल को साजे,
इंद्रनील की माला डाले
शंख-सरीखे सुघड़ गलों में,
कानों में कुवलय लटकाए,
शतदल लाल कमल वेणी में,
रजत-रचित मणि-खचित कलामय
पान-पात्र द्राक्षासव पूरित
रखे सामने अपने-अपने
लोहित चंदन की त्रिपदी पर,
नरम निदाग बाल-कस्तूरी
मृगछालों पर पलथी मारे
मदिरारुण आँखोंवाले उन
उन्मद किन्नर-किन्नरियों की
मृदुल मनोरम अंगुलियों को
वंशी पर फिरते देखा है।
बादल को घिरते देखा है।
शब्दार्थ :
शत-शत-सैकड़ों (hundreds)। निईर-झरना (waterfall)। निईरणी-नदी (river)। कल मुखरित-कल-कल की आवाज़ करती हुई (to make any sound)। कानन-जंगल (forest)। शोणित-रक्त वर्ण का (red coloured)। कुंतल-बाल (hair)। इंद्रनील-नीले रंग का कीमती पत्थर (blue coloured stone)। सुघड़–सुंदर आकार वाले (beautiful shape)। कुवलय-नील कमल (blue lotus)। शतदल-कमल (lotus)। रजत-रचित-चाँदी से बना हुआ (made of silver)। मणि-खचित-मणियों से जड़ा हुआ (embroider with precious stones)। पान-पात्र-मदिरा का पात्र, सुराही (pot of wine)। द्राक्षासव-अंगूरों से बनी सुरा (a wine)। त्रिपदी-तिपाई (stool)। निदाग-दाग रहित (spotless)। मदिरारुण आँखें-शराब पीने से लाल हुई आँखें (red eyes due to taking wine)। उन्मद-मदमस्त (joyful)। किन्नर–देवलोक की एक कलाप्रिय जाति (an art-loving caste of heaven)।
प्रसंग – प्रस्तुत काव्यांश हमारी पाठ्यपुस्तक अंतरा, भाग-1 में संकलित प्रगतिवादी कवि, स्वनामधन्य नागार्जुन द्वारा रचित उनकी प्रसिद्ध कविता ‘बादल को घिरते देखा है’ से उद्धृत है।
कवि की प्रकृति के प्रति गहरी आत्मीयता रही है। इस काव्यांश में प्रकृति के सौंदर्य का चित्रांकन करते हुए कवि ने किन्नर-किन्नरियों के विलासपूर्ण जीवन का उल्लेख किया है।
व्याख्या – कवि हिमालय क्षेत्र के प्राकृतिक सौंदर्य एवं वहाँ के किन्नर-किन्निियों का वर्णन करते हुए कहता है कि सैकड़ों झरनों की कल-कल ध्वनि से मुखरित देवदारु के वन में लाल-सफ़ेद भोजपत्रों से सजी हुई या सुशोभित हुई कुटिया के भीतर किन्नर जाति के स्त्री-पुरुष रंग-बिरंगे और सुरंधित फूलों से अपने बालों को सजाए हुए, गले में इंद्रनील की माला पहने हुए. शंख के समान सुंदर गलों (गर्दन) में सुर्गंधित, सुरभित फूलों की माला से शोभायमान थे। उनके कानों में कुवलय लटकते हुए शोभा पा रहे थे और सैकड़ों पंखुड़ियों वाले लाल कमलों से उन्होंने अपनी वेणी का शृंगार कर रखा था अर्थात सजा रखा था।
चाँदी से बनाए गए तथा मोती-माणिक्य से अलंकृत एवं सुशोभित, सहज-स्वाभाविक सुंदरता से युक्त मदिरा-पान का पात्र मदिरा से लबालब भरा हुआ रखा शोभा पा रहा था। वे अपने सामने लाल चंद्न की तिपाई पर नरम, स्वच्छ, धवल, निर्मल व उज्ज्वल बाल-कस्तूरी वाली मृगछाल पर पालथी मारकर बैठे हुए थे। किन्नर जाति के उन स्त्री-पुरुषों एवं युवतियों की आँखें मदिरापान तथा मस्ती के कारण लाल हो गई थीं। वे अपनी कोमल एवं सुंदर अँगुलियों में दबी बाँसुरी को बजा रहे थे। ऐसा कवि ने देखा। वास्तव में, किन्नर-किन्नरियाँ अद्भुत सौदर्य के स्वामी व राग-रंग-विलासिता के भाव से युक्त थे।
विशेष :
(i) किन्नर नर-नारियों के सुंदर साज-सज्जा एवं विलासतापूर्ण जीवन का वर्णन है।
(ii) भाषा तत्सम शब्दावलीयुक्त है।
काव्य-सौंदर्य संबंधी प्रश्नोत्तर –
प्रश्न :
(क) काव्यांश का भाव-सौंदर्य स्पष्ट कीजिए।
(ख) काव्यांश की शिल्प-सौंदर्य संबंधी दो विशेषताएँ लिखिए।
उत्तर :
(क) भाव-सौंदर्य-
इस काव्यांश में इंद्रियों पर आधारित-दृश्य बिंब, श्रवण बिंब, घ्राण बिंब, स्पर्श बिंब, आस्वाद्य बिंब आदि पाँचों बिंबों का चित्रण हुआ है।
किन्नर नर-नारियों के जीवन का सजीव चित्रण है।
(ख) शिल्प-सौंदर्य-
(i) ‘शत-शत’, ‘अपने-अपने’ में पुनरुक्ति प्रकाश अलंकार तथा ‘शंख सरीखे सुघड़ गलों में’ उपमा अलंकार है।
‘निईर-निर्शरणी’, ‘शंख-सरीखे’, ‘नरम निदाग’ में अनुप्रास अलंकार है।
भाषा सजीव, सरल, सुबोध साहित्यिक खड़ी बोली है।
काव्यात्मकता विद्यमान है।
(ii) त्सम शब्दों का प्रयोग हुआ है।
संगीतात्मकता एवं कोमलकांत पदावली विद्यमान है।
भाव-पक्ष और कला-पक्ष का सुंदर समन्वय है।
दृश्य बिंब साकार हो उठा है।