In this post, we have given Class 11 Hindi Antra Chapter 16 Summary – Neend Uchat Jaati Hai Summary Vyakhya. This Hindi Antra Class 11 Summary is necessary for all those students who are in are studying class 11 Hindi subject.
नींद उचट जाती है Summary – Class 11 Hindi Antra Chapter 16 Summary
नींद उचट जाती है – नरेंद्र शर्मा – कवि परिचय
कवि-परिचय :
प्रश्न :
नरेंद्र शर्मा के जीवन एवं साहित्य का संक्षिप्त परिचय दीजिए।
उत्तर :
जीवन-परिचय – नरेंद्र शर्मा का जन्म उत्तर प्रदेश के बुलंदशहर जिले के जहाँगीरपुर गाँव में सन 1923 में हुआ था। इनकी प्रारंभिक शिक्षा गाँव में हुई थी। बाद में इन्होंने प्रयाग विश्वविद्यालय सेएम०ए० किया। ये शुरू से ही राजनीतिक गतिविधियों में सक्रिय रहे। इसी सक्रियता के कारण इन्हें सन 1940 से 1942 तक जेल में रहना पड़ा। सन 1943 में ये मुंबई चले गए और फ़िल्मों के लिए गीत एवं संवाद लिखने लगे तथा अंतिम समय तक फ़िल्मों से ही जुड़े रहे। इनकी मृत्यु सन 1989 में हुई।
रचनाएँ – नेंद्र शर्मां के प्रसिद्ध काव्य-संग्रह हैं-प्रभात फेरी, प्रवासी के गीत, पलाशवन, मिट्टी और फूल, हंसमाला, रक्तचंदन, प्रीतिकथा, कामिनी, कदलीवन, सुवर्ण, बहुत रात गए द्रौपदी, प्यासा निर्दर आदि।
काव्यगत विशेषताएँ – नेंद्र शर्मा मूलतः गीतकार हैं। इनके अधिकांश गीत यथार्थवादी दृष्टिकोण से लिखे गए हैं। ये प्रगतिवादी चेतना से प्रभावित थे। इन्होंने प्रकृति के सुंदर चित्र उकेरे हैं। व्याकुल प्रेम की अभिव्यक्ति और प्रकृति के कोमल रूप के चित्रण में इन्हें विशेष सफलता मिली है। अंतिम दौर की रचनाएँ आध्यात्मिक और दार्शनिक पृष्ठभूमि लिए हुई हैं। इन्होंने फ़िल्म के लिए भी गीत लिखे हैं। ये गीत सहित्यिकता के कारण अलग से पहचाने जाते हैं। संगीतात्मकता और स्पष्टता इनके गीतों की विशेषताएँ हैं; यथा –
“जब-तब नींद उचट जाती है
पर क्या नींद उचट जाने से
रात किसी की कट जाती है?”
भाषा-शैली – नरंद्र शर्मा ने साहित्यिक खड़ी बोली में अभिव्यक्ति की है। सामान्यत: गंभीर भावों को व्यक्त करने के लिए इन्होंने तत्सम शब्दों का प्रयोग किया है। मुक्त छंद होते हुए भी इनकी रचना में गेयता है। इनकी भाषा सरल एवं प्रभावपूर्ण है, जिसमें कोमल और कठोर भावों को अभिव्यक्त करने की सशक्त क्षमता है। ये भाषा में विभिन्न प्रकार के शब्दों का प्रयोग करने में कुशल हैं। ये संस्कृत के शब्दों के अलावा तद्भव, देशज और आंचलिक शब्दों का प्रयोग अत्यंत कुशलता से करते हैं। इनकी कविता में उपमा, रूपक, उत्र्रेक्षा, मानवीकरण, अन्योक्ति आदि अलंकार आए हैं, जिससे भाषा अलंकृत हो उठी है।
कविता-परिचय :
‘नींद उचट जाती है’ कविता में कवि ने ऐसी लंबी रात का वर्णन किया है, जो समाप्त होने का नाम नहीं ले रही है और कवि को प्रकाश की कोई किरण भी नहीं दिखाई दे रही है। कविता का यह अँधेरा दो स्तरों पर है। पहला, व्यक्ति के स्तर पर यह दु:स्वप्न और निराशा का अँधेरा है तथा दूसरा, समाज के स्तर पर विकास, चेतना और जागृति के न होने का अँधेरा है। कवि जागरण के द्वारा इन दोनों अँधरों से मुक्त होने और प्रकाश का कपाट खोलने की बात करता है। इसमें जीवन के प्रति निराशावादी दृष्टिकोण की भी अभिव्यक्ति हुई है।
कविता का सार :
‘नौंद उचट जाती है’ नामक कविता में कवि ने एक ऐसी रात का वर्णन किया है, जिसमें सोते-सोते अचानक उसकी नींद उचट जाती है। तुरंत दुबारा नींद न आने के कारण वह रात उसे लंबी प्रतीत होने लगती है। उसे बुरे स्वप्न आने लगते हैं। इनसे डरकर वह चौंककर उठ जाता है। उसे महसूस होता है कि उसके अंदर जो डर है, बाहर का अंधकार उससे भी डरावना है। उसको आशा की कोई किरण नहीं दिखाई देती है, बस उसकी आहट भर सुनाई देती है। बाहर के अँधेरे को देखते-देखते कवि की आँखें दुखने लगती हैं। इस गहन अंधकार से चितित उसके प्राण सूखने लगते हैं। सियार के बोलने और कुल्तों के भूकने से अंधकार और भी गहरा हो उठता है।
इससे भयभीत होकर कवि दुबारा सोना चाहता है। वह गहरी नींद में सोकर रात्रि रहने तक जड़ बना रहना चाहता है, परंतु व्याकुलता के कारण उसकी आँखों से नींद दूर है। मनुष्य तो करवट ले सकता है, परंतु अंधकार करवट भी नहीं लेता। गहन अंधकार में समय रुका-सा लगता है। मनुष्य की साँसें सबेरा होने तक अटकी रहती हैं। यह कवि की अनिद्रा की स्थिति है। संसार रूपी भयावह रात ज्यों-की-त्यों बनी है। अंतर्दृष्टि के आगे से अँधेरे का पत्थर हट नहीं पाता।
सप्रसंग व्याख्या एवं काव्य-सौंदर्य संबंधी प्रश्न –
1. जब-तब नींद उचट जाती है
पर क्या नींद उचट जाने से
रात किसी की कट जाती है?
देख-देख दुःस्वज्न भयंकर,
चौंक-चौंक उठता हूँ डरकर;
पर भीतर के दु:स्वप्नों से
अधिक भयावह है तम बाहर!
आती नहीं उषा, बस केवल
आने की आहट आती है!
शब्दार्थ :
उचटना-ध्यान भंग होना, खुलना (to be separated)। कट जाना-बीतना (to pass)। दु:स्वप्न-बुरा स्वप्न (terrible dream)। भीतर – अंदर (in)। भयावह-भयानक (fearful)। तम-अंधकार (darkness)। आहट-हल्की-सी आवाज़ (slow sound)।
प्रसंग – प्रस्तुत काव्यांश हमारी पाठ्यपुस्तक अंतरा, भाग-1 में संकलित कविता ‘नींद उचट जाती है’ से उद्धृत है। इसके रचयिता नरेंद्र शर्मा हैं। इस कविता में कवि ने जागरण के द्वारा अँधेरे से मुक्ति पाने की बात कही है। इस काव्यांश में कवि कहता है कि रात्रि में सोते समय उसकी नींद उचट जाती है। उसे अंधकार से मुक्ति पाने के लिए कोई किरण नज़र नहीं आती है।
व्याख्या – कवि सो रहा है। बीच-बीच में उसकी नींद उचट जाती है। इससे उसकी नींद में खलल पड़ता है। कवि प्रश्न करता है कि नींद उचटने पर क्या किसी की रात आसानी से कट जाती है? कवि को भयंकर बुरे स्वप्न दिखाई देते हैं। वह उनसे भयभीत होकर चौंकता है तथा उठ जाता है। नींद खुलने पर उसे लगता है कि मन के अंदर के जो भयंकर स्वप्न हैं, उनसे अधिक भयानक बाहर का अंधकार है। मनुष्य को आशा दिलाने वाली उषा नहीं आती है। उसके आने की केवल आहट ही सुनाई देती है। अर्थात मनुष्य को लगता है कि शींत्र ही सुख उसके पास होंगे, पर वास्तव में वे उसे मिल नहीं पाते हैं।
विशेष :
(i) कवि की चितित मनोदशा का स्वाभाविक वर्णन है।
(ii) भाषा तत्सम शब्दावलीयुक्त खड़ी बोली है।
काव्य-सौंदर्य संबंधी प्रश्नोत्तर –
प्रश्न :
(क) काव्यांश का भाव-सौंदर्य स्पष्ट कीजिए।
(ख) काव्यांश की शिल्प-सौंदर्य संबंधी दो विशेषताएँ लिखिए।
उत्तर :
(क) भाव-सौंदर्य-
कवि को अपने मन के अंधकार से बाहर का अंधकार अधिक डरावना लग रहा है।
कवि का जीवन के प्रति नैराश्यपूर्ण दुष्टिकोण प्रकट हुआ है।
(ख) शिल्प-सौंबर्य-
(i) ‘देख-देख’, ‘चौंक-चौंक’ में पुनरुक्तिप्रकाश अलंकार है।
उषा का मानवीकरण किया गया है। अतः यहाँ मानवीकरण अलंकार है।
गेयता का गुण है।
साहित्यिक खड़ी बोली में सशक्त अभिव्यक्ति है।
(ii) काव्यांश में अभिधा शब्द-शक्ति है।
काव्यांश में तत्सम शब्दों की बहुलता है।
काव्यांश मुक्त छंद रचना है।
काव्यांश में प्रश्नोत्तर शैली भी है।
2. देख अँधेरा नयन दूखते,
दुश्चिता में प्राण सूखते!
सन्नाटा गहरा हो जाता,
जब-जब श्वान भृंगाल भूँकते!
भीत भावना, भोर सुनहली
नयनों के न निकट लाती है!
शब्दार्थ :
अँधेरा-अंधकार (darkness)। नयन-आँखें (eyes)। दुशिंचता-दुख देने वाली चिंता (worries of sadness)। प्राण सूखते -डरना (fear)। गहरा-घना (dense)। श्वान-कुत्ता (dog)। शृंगाल-सियार (jackal)। भीत भावना-भय और शंका की भावना (terror)।
प्रसंग – प्रस्तुत काव्यांश हमारी पाठ्यपुस्तक अंतरा, भाग-1 में संकलित कविता ‘नींद उचट जाती है’ से उद्धृत है। इसके रचयिता नरेंद्र शर्मा हैं। इस कविता में कवि ने जागरण के द्वारा अँधेरे से मुक्ति पाने की बात कही है। इस काव्यांश में कबि कह रहा है कि बाहर के अंधकार की भयानकता देखकर उसकी यह चिता बढ़ती जाती है कि भोर उससे दूर होती जा रही है।
व्याख्या – कवि कहता है कि बाहर के घने अँधेरे को देखकर उसकी आँखें दुखने लगती हैं। इस गहनता को देखकर दुख देने वाली चिता से उसके प्राण सूखने लगते हैं। अर्थात उसका डर बढ़ता जा रहा है। जब कुत्ते-सियार आदि भूँकते हैं, तो सन्नाटा और अधिक गहरा हो जाता है। कवि कहता है कि भय और शंका की भावनाएँ सुनहली भोर को आँखों के समीप नहीं लातीं। अर्थात कवि जिस सुख की कल्पना कर रहा है, वह उससे दूर होता जा रहा है।
विशेष :
(i) इस काव्यांश में बाह्य अंधकार की गहनता का चित्रण है।
(ii) भाषा तत्सम शब्दावलीयुक्त है।
काव्य-सौंदर्य संबंधी प्रश्नोत्तर –
प्रश्न :
(क) काव्यांश का भाव-सौंदर्य स्पष्ट कीजिए।
(ख) काव्यांश की शिल्प-सौंदर्य संबंधी दो विशेषताएँ लिखिए।
उत्तर :
(क) भाव-सौंदर्य-
कवि बाहर के अंधकार को देखकर दुखी है।
कवि के जीवन में व्याप्त निराशा का संकेत मिलता है।
(ख) शिल्प-सौंदर्य-
(i) दृश्य बिंब है।
‘नयन दुखना’, ‘प्राण सूखना’ आदि मुहावरों का सटीक प्रयोग है।
तत्सम शब्दावलीयुक्त साहित्यिक खड़ी बोली है।
(ii) ‘भीत भावना, भोर सुनहली’ में अनुप्रास अलंकार है।
‘जब-जब’ में पुनरुक्ति प्रकाश अलंकार है।
श्रव्य एवं दृश्य बिंब है।
मुक्त छंद में गेयता है।
3. मन होता है फिर सो जाऊँ,
गहरी निद्रा में खो जाऊँ;
जब तक रात रहे धरती पर,
चेतन से फिर जड़ हो जाऊँ!
उस करवट अकुलाहट थी, पर
नींद न इस करवट आती है!
शब्दार्थ :
निद्रा – नींद (sleep)।
जड़ – संज्ञा-शून्य (lifeless)।
अकुलाहट – व्याकुलता (restlessness)।
प्रसंग – प्रस्तुत काव्यांश हमारी पाठ्यपुस्तक अंतरा, भाग-1 में संकलित कविता ‘नींद उचट जाती है’ से उद्धृत है। इसके रचयिता नरेंद्र शर्मा हैं। इस कविता में कवि ने जागरण के द्वारा अँधेरे से मुक्ति पाने की बात कही है।
इस काव्यांश में कवि कहता है कि अंधकार की गहनता से दुखी वह दुख न सह पाने के कारण संज्ञा-शून्य हो जाता है। व्याख्या-कवि बाहर के अँधेरे से डरकर सोचता है कि वह दुबारा सो जाए। इस प्रकार वह गहरी नींद में सोना चाहता है। उसकी इच्छा है कि जब तक धरती पर रात रहे, तब तक वह अपनी चेतनता छोड़कर जड़ बना रहे। वह एक तरफ़ व्याकुल है, दूसरी तरफ़ उसे नींद नहीं आ रही है। बाहर के अंधकार की भयावहता का दुख कवि सहने में असमर्थ है। वह इस पीड़ा से बचने के लिए जड़ अर्थात संज्ञा-शून्य हो जाना चाहता है।
विशेष :
(i) इस काव्यांश में बाहरी अंधकार की भयावहता का चित्रण है।
(ii) भाषा तत्सम शब्दावली से युक्त खड़ी बोली है।
काव्य-सौंदर्य संबंधी प्रश्नोत्तर –
प्रश्न :
(क) काव्यांश का भाव-सौंदर्य स्पष्ट कीजिए।
(ख) काव्यांश की शिल्प-सौंदर्य संबंधी दो विशेषताएँ लिखिए।
उत्तर :
(क) भाव-सौंदर्य –
इस काव्यांश में कवि ने अँधेरे से भागने की प्रवृत्ति को उजागर किया है।
कवि की व्याकुलता का वर्णन है।
(ख) शिल्प-सौंदर्य –
(i) इस काव्यांश में कवि ने आत्माभिव्यक्ति की है।
मुक्त छंद है।
साहित्यिक खड़ी बोली है।
(ii) ‘नींद न’ में अनुप्रास अलंकार है।
गेयता है।
‘जड़ हो जाना’ मुहावरे का प्रयोग है।
4. करवट नहीं बदलता है तम,
मन उतावलेपन में अक्षम!
जगते अपलक नयन बावले,
धिर न पुतलियाँ, निमिष गए थम!
साँस आस में अटकी, मन को
आस रात भर भटकाती है!
शब्दार्थ :
तम-अँधेरा (darkness)। उतावलापन-जल्दबाज़ी, अधीरता (eagerness)। अक्षम-कमज़ोर (incapable)। नयन-नेत्र (eyes)। बावले-पागल (mad)। निमिष-एक बार पलक झपकने में लगा समय (moment)। थिर-स्थिर (stable)। आस-आशा, उम्मीद् (hope)।
प्रसंग – प्रस्तुत काव्यांश हमारी पाठ्यपुस्तक अंतरा, भाग-1 में संकलित कविता ‘नींद उचट जाती है’ से उद्धृत है। इसके रचयिता नरेंद्र शर्मा हैं। इस कविता में कवि ने जागरण के द्वारा अँधेरे से मुक्ति पाने की बात कही है। इस काव्यांश में कवि बाहरी अंधकार से दुखी होकर अपनी स्थिति का वर्णन कर रहा है।
व्याख्या – कवि बताता है कि हम जागकर करवट बदल सकते हैं, परंतु अंधकार करवट नहीं बदलता। हमारा मन उतावलेपन के कारण अक्षम है। हमारी आँखें जागते रहने के कारण पागलों जैसी हो गई हैं। मनुष्य की पुतालियाँ स्थिर नहीं हैं। अँधेरे में समय थम-सा गया है। हमारी साँस इस आशा में अटकी हुई है कि शीच्र ही सबेरा होगा। यही आशा मनुष्य को रात भर भटकने को मजबूर करती है।
विशेष :
(i) इस काव्यांश में कवि कहता है कि अंधकार के समाप्त न होने की स्थिति से निराशा बढ़ रही है।
(ii) भाषा तत्सम शब्दावली से युक्त है।
काव्य-सौंदर्य संबंधी प्रश्नोत्तर –
प्रश्न :
(क) काव्यांश का भाव-सौंदर्य स्पष्ट कीजिए।
(ख) काव्यांश की शिल्प-सौंदर्य संबंधी दो विशेषताएँ लिखिए।
उत्तर :
(क) भाव-सौंदर्य-
इस काव्यांश में अंधकार से त्रस्त कवि की मनोद्शा का चित्रण है।
निराशा के वातावरण में कवि को आशा की किरण नज़र आ रही है।
(ख) शिल्प-सौंदर्य –
(i) ‘करवट नहीं बदलता है तम’ में मानवीकरण अलंकार है।
‘नयन बावले’ कहने से अर्थ में चमत्कार आया है।
तत्सम बहुल शब्दावली है।
(ii) साहित्यिक खड़ी बोली में सहज अभिव्यक्ति है।
मुक्त छंद में गेयता का गुण है।
‘रात भर भटकाती है!’ में अनुप्रास अलंकार है।
5. जागृति नहीं अनिद्रा मेरी,
नहीं गई भव-निशा अँधेरी!
अंधकार केंद्रित धरती पर,
देती रही ज्योति चकफेरी!
अंतर्नयनों के आगे से
शिला न तम की हट पाती है!
शब्दार्थ :
जागृति-चेतना (alertness)। भव-निशा-संसार रूपी भयावह रात (terrible night as world)। केंद्रित-किसी स्थान पर जम जाना, स्थिर होना (to be centralized)। चकफेरी-चारों ओर चक्कर काटना (to move round)। अंतर्नयनों-अंतर्द्षिष्टि (inner sight)। शिला-पत्थर (stone)। तम-अँधेरा (darkness)।
प्रसंग – प्रस्तुत काव्यांश हमारी पाठ्यपुस्तक अंतरा, भाग-1 में संकलित कविता ‘नींद उचट जाती है’ से उद्धृत है। इसके रचयिता नरेंद्र शर्मा हैं। इस कविता में कवि ने जागरण के द्वारा अँधेरे से मुक्ति पाने की बात कही है। कविता के इस अंश में कवि ने संसार में व्याप्त अँधेरे के प्रति निराशा का भाव प्रकट किया है।
व्याख्या – कवि कहता है कि रात को जागने का मतलब चेतना नहीं है। यह मेरी अनिद्रा अर्थांत नींद न आने की बीमारी है। संसार-रूपी भयावह रात समाप्त नहीं हुई है। धरती पर अंधकार स्थायी है। प्रकाश तो बीच-बीच में चक्कर काटता रहता है। अंतर्दृष्टि के आगे से पत्थर रूपी अँधेरा हट नहीं पाता।
विशेष :
(i) इस काव्यांश में कवि के निराशावादी दृष्टिकोण की अभिव्यक्ति की है।
(ii) तत्सम शब्दावली की बहुलता है।
काव्य-सौंदर्य संबंधी प्रश्नोत्तर –
प्रश्न :
(क) काव्यांश का भाव-सौंदर्य स्पष्ट कीजिए।
(ख) काव्यांश की शिल्प-सौंदर्य संबंधी दो विशेषताएँ लिखिए।
उत्तर :
(क) भाव-सौंदर्य –
उपर्युक्त काव्यांश में संसार में छाए अँधेरे की गहनता एवं व्यापकता का वर्णन है।
कवि की निराशा मुखरित हुई है।
(ख) शिल्प-सौंदर्य –
(i) अंतर्नयनों के आगे’ में अनुप्रास अलंकार है।
‘शिला न तम की’ एवं ‘भव-निशा’ में रूपक अलंकार है।
तत्सम शब्दों की बहुलता है।
(ii) मुक्त छंद में गेयता का गुण है।
दृश्य बिंब साकार हो उठा है।
भाषा साहित्यिक खड़ी बोली है।