In this post, we have given Class 11 Hindi Antra Chapter 15 Summary – Jaag Tujhko Door Jaana, Sab Aankho Ke Aansu Ujle Summary Vyakhya. This Hindi Antra Class 11 Summary is necessary for all those students who are in are studying class 11 Hindi subject.
जाग तुझको दूर जाना, सब आँखों के आँसू उजले Summary – Class 11 Hindi Antra Chapter 15 Summary
जाग तुझको दूर जाना, सब आँखों के आँसू उजले – महादेवी वर्मा – कवि परिचय
कवयित्री परिचय :
प्रश्न :
महादेवी वर्मा का जीवन-परिचय देते हुए उनकी रचनाओं एवं काव्यगत विशेषताओं पर प्रकाश डालिए।
उत्तर :
जीवन-परिचय-महादेवी वर्मा का जन्म फ़ररंखाबाद (उ०प्र०) में होली के दिन 1907 ई० में हुआ था। इनकी प्रारंभिक शिक्षा मिशन स्कूल, इंदौर में हुई थी। ये केवल बारह वर्ष की थीं कि इनका विवाह हो गया, पर विवाह के बाद भी इनका अध्ययन चलता रहा। 1929 ई० में इन्होंने बौद्ध धर्म की दीक्षा लेकर भिक्षुणी बनना चाहा, कितु महात्मा गांधी के संपर्क में आने पर वैसा न करके ये समाज-सेवा की ओर उन्मुख हो गई। 1932 ई० में इन्होंने इलाहाबाद विश्वविद्यालय से संस्कृत में एम०ए० की परीक्षा उत्तीर्ण की और नारी-समाज में शिक्षा-प्रसार के उद्देश्य से प्रयाग महिला विद्यापीठ की स्थापना करके उसकी प्रधानाचार्या के रूप में कार्य करने लगीं। मासिक पत्रिका ‘चाँद’ का भी इन्होंने कुछ समय तक नि:शुल्क संपादन किया। 1987 ई० में इनकी मृत्यु हो गई।
महादेवी जी का कर्म-क्षेत्र बहुमुखी रहा है। इन्हें 1952 ई० में उत्तर प्रदेश की विधान परिषद का सदस्य मनोनीत किया गया। 1954 ई० में ये साहित्य अकादमी की संस्थापक सदस्या बनीं। 1960 ई० में इन्हें प्रयाग महिला विद्यापीठ का कुलपति बनाया गया। इनके व्यापक शैक्षिक, साहित्यिक और सामाजिक कार्यों के लिए इन्हें भारत सरकार ने 1956 ई० में पद्मभूषण तथा 1983 ई० में ‘यामा’ के लिए ज्ञानपीठ पुरस्कार से सम्मानित किया। उत्तर प्रदेश हिंदी संस्थान ने भी इन्हें भारत भारती पुरस्कार से सम्मानित किया। साहित्य, दर्शन, संगीत, चित्रकला, प्रकृति एवं पशु-पक्षियों में इनकी गहरी रुचि रही।
रचनाएँ – इनकी रचनाएँ निम्नलिखित हैं :
- काव्य-संग्रह-नीहार, रश्मि, नीरजा, सांध्यगीत, यामा, दीपशिखा।
- संस्मरण-अतीत के चलचित्र, स्मृति की रेखाएँ, पथ के साथी, मेरा परिवार।
- निबंध-संग्रह-शृंखला की कड़ियाँ, क्षणदा, संकल्पिता, भारतीय संस्कृति के स्वर।
भाषा-शैली – महादेवी वर्मा के गीत अपने विशिष्ट रचाव और संगीतात्मकता के कारण अत्यंत आकर्षक हैं। उनमें लाक्षणिकता, चित्रमयता और बिंबर्धर्मिता है; जैसे –
कह न ठंडी साँस में अब भूल वह जलती कहानी,
आग हो उर में तभी दृग में सजेगा आज पानी।
महादेवी जी ने नए बिंबों और प्रतीकों के माध्यम से प्रगीत की अभिव्यक्ति तथा शक्ति का नया विकास किया है। इनकी काव्य-भाषा प्रायः तत्सम शब्दों से निर्मित है।
महादेवी जी ने अंतर्मन की अनुभूतियों का अंकन अत्यंत मार्मिकता से किया है। इनकी भाषा सधी-मँजी है और उसमें बनावटीपन नहीं है। इनकी भाषा कोमलता, मधुरता तथा तत्सम शब्दावली से युक्त परिमार्जित खड़ी बोली है। इनका शब्द-चयन उपयुक्त है। प्रसाद एवं माधुर्य गुण संपन्न भाषा के माध्यम से कोमल अनुभूतियाँ साकार एवं सजीव होकर इनके काव्य का शृंगार करती हैं। महादेवी जी के गीतों की मधुरता सचमुच हृदय को आंदोलित करती है। प्रेम और वेदनाजन्य अनुभूतियों से झंकृत होने के कारण इन गीतों में एक ऐसी करुणापूर्ण मिठास है, जो बरबस मन को मुग्ध कर लेती है। महादेवी जी स्वयं अच्छी चित्रकार थीं, इसलिए रंगीन दृश्य-बिंबों की योजना इनके काव्य को अतिरिक्त सौदर्य प्रदान करती है। आचार्य रामचंद्र शुक्ल ने महादेवी जी की गीति-कला के विषय में लिखा है-“गीत लिखने में जैसी सफलता महादेवी जी को मिली, वैसी और किसी को नहीं। न तो भाषा का ऐसा स्चिग्ध और प्रांजल प्रवाह और कहीं मिलता है, न हृदय की ऐसी भावर्भंगमा। जगह-जगह ऐसी ढली हुई और अनूठी व्यंजना से भरी हुई पदावली मिलती है कि हृदय खिल उठता है।”
कविता-परिचय :
इस पाठ में महादेवी वर्मा द्वारा रचित दो गीत संकलित हैं। पहला गीत स्वाधीनता आंदोलन की प्रेरणा से रचित जागरण गीत है। इसमें पथ में आने वाली भीषण कठिनाइयों की चिता न करते हुए आगे-ही-आगे बढ़ते जाने की प्रेरणा है। कवयित्री ने मनुष्य से कोमल बंधनों के आकर्षण से मुक्त होकर अपने लक्ष्य की ओर निरंतर बढ़ने का आह्वान किया है। मोह-माया के बंधन में जकड़े मनुष्य को जगाते हुए कवयित्री ने कहा है-‘जाग तुझको दूर जाना।’ दूसरे गीत ‘सब आँखों के आँसू उजले’ में प्रकृति के उस स्वरूप की चर्चा की गई है, जो सत्य है, यथार्थ है, और जो लक्ष्य तक पहुँचने में मनुष्य की मदद करता है। प्रकृति के इस परिवर्तनशील यथार्थ से जुड़कर मनुष्य अपने सपनों को साकार करने की राहें चुन सकता है।
कविता का सार :
1. जाग तुझको दूर जाना – यह गीत स्वाधीनता आंदोलन की प्रेरणा से रचित जागरण गीत है। इसमें भीषण कठिनाइयों की चिंता न करते हुए और कोमल बंधनों के आकर्षण से मुक्त होकर अपने लक्ष्य की ओर निरंतर आगे बढ़ते रहने का आहवान है। कवयित्री आलस्य में पड़े देशवासियों को निरतर आगे बढ़ते जाने की प्रेरणा देती है। वह उन्हें समझाती है कि मार्ग में अनेक प्रकार की प्राकृतिक बाधाएँ अवश्य आएँगी, पर तुझे उस नाश के पथ पर अपने चरण-चिह्न अंकित करते हुए आगे बढ़ते जाना है।
पर्वत काँप सकते हैं, आकाश प्रलय ला सकता है, पृथ्वी पर घनघोर अंधकार छा सकता है, तुफ़ान आ सकता है, पर तुझे इनसे भयभीत होने की ज़रूरत नहीं है। सांसारिक मोह भी मार्ग में अवरोध उत्पन्न कर सकते हैं। प्रेम का बंधन भी तेरे बढ़ते कदमों को पीछे खींच सकता है, पर तुझे किसी रूपाकर्षण के जाल में उलझना नहीं है। मार्ग में रूककर विश्राम तक नहीं करना है। तेरे अपने अंदर सुख-भोग की लालसा जाग्रत हो सकती है। तू जीवन-सुधा के बदले दो घूँट मदिरा का सौदा कर सकता है। सुगंध आदि तुझे पथ-भ्रमित कर सकती हैं।
तुझे यह स्मरण रखना है कि तू अमरता का पुत्र है, अतः तू मृत्यु को हदय में स्थान नहीं देना। असफलता से उत्पन्न निराशा को तू अपने निकट मत फटकने दे। तुझे हृदय में उत्साह और आँखों में आत्म-सम्मान की चमक बरकरार रखनी है। ऐसे संघर्षशील जीवन में हार भी जीत का रूप धारण कर लेती है। कवयित्री कहती है कि पतंग भी राख बनकर कभी हारता है। वह दीपक की लौ में जलता है, फिर भी अपने को जीता हुआ मानता है। तुझे तो विपरीत परिस्थितियों में भी मन के कोमल भावों को जगाए रखना है।
2. सब आँखों के आँसू उजले-‘सब आँखों के आँसू उजले’ गीत में कवयित्री का मानना है कि सभी लोगों की आँखों में जो आँसू होते हैं, उनमें पवित्रता होती है। उनकी कल्पनाएँ सत्य होती हैं। जो इन सपनों में उत्साह का संचार करते हैं, वही इसे साकार कर सकते हैं। दीप और फूल सच्चे संगी हैं, पर उनमें भी कुछ मूलभूत अंतर हैं। पर्वत अपने अंदर से सैकड़ों झरने धरती को भेंट करता है। यही धरती को घेरकर परिधि बनाता है।
बाहर से कठोर दिखने वाले पहाड़ के अंदर से निकला जल पवित्र एवं करुण होता है। इसी प्रकार कठोर स्वभाव वाला व्यक्ति भी करुण भावना वाला हो सकता है। कवयित्री प्रकृति के प्रतीकों के माध्यम से बताती है कि इसी प्रकार सोना और हीरा भी अलग-अलग विशेषताएँ रखते हुए भी अपना अस्तित्व बनाए रखते हैं। इसी प्रकार प्रत्येक व्यक्ति के सपने में कुछ-न-कुछ सच्चाई अवश्य छिपी होती है। हमें उसे समझना और स्वीकारना चाहिए।
सप्रसंग व्याख्या एवं काव्य-सौंदर्य संबंधी प्रश्न –
1. जाग तुझको दूर जाना –
1. चिर सजग आँखें उर्नींदी आज कैसी व्यस्त बाना!
जाग तुझको दूर जाना!
अचल हिमगिरि के हृदय में आज चाहे कंप हो ले;
या प्रलय के आँसुओं में मौन अलसित व्योम रो ले;
आज पी आलोक को डोले तिमिर की घोर छाया,
जागकर विद्युत-शिखाओं में निठुर तूफ़ान बोले!
पर तुझे है नाश-पथ पर चिह्न अपने छोड़ आना!
जाग तुझको दूर जाना !
शब्दार्थ :
चिर-सदा से (always)। सजग-सावधान (alert)। उनींदी-नींद से भरी हुई (sleepiness)। व्यस्त बाना-बिखरे वस्त्र (unkempt clothes)। अचल-पर्वत (mountain)। हिमगिरि-हिमालय (abode of snow)। कंप-कँपकँपाहट (vibration)। अलसित-आलस्य से भरा (laziness)। व्योम-आकाश (sky)। आलोक-प्रकाश (light)। तिमिर-अंधकार (darkness)। निठुर-कठोर (cruel)। नाश-पथ-विनाश का रास्ता (way of downfall)।
प्रसंग – प्रस्तुत काव्यांश हमारी पाठ्यपुस्तक अंतरा, भाग-1 में संकलित कविता ‘जाग तुझको दूर जाना’ से उद्धृत है। इसकी रचयित्री छायावादी विचारधारा की प्रमुख कवयित्री महादेवी वर्मा हैं। इस गीत में कवयित्री स्वाधीनता के मार्ग पर निरंतर आगे बढ़ते की प्रेरणा देती है, चाहे कितनी कठिनाइयाँ क्यों न आएँ। इन पंक्तियों में कवयित्री ने संघर्ष-पथ पर प्राकृतिक बाधाओं का वर्णन करते हुए, उनसे घबराए बिना आगे बढ़ते जाने के लिए प्रेरित किया है।
व्याख्या – कवयित्री देशवासियों का आहवान करती है कि तुम अपनी नींद से जागो। तुम्हें बहुत दूर जाना है। तुम हमेशा जागरूक रहते हो। आज तुम्हारी आँखें उनींदी क्यों हैं? तुम्हारी वेश-भूषा इतनी अस्त-व्यस्त क्यों हो रही है? तुम्हारा लक्ष्य अभी बहुत दूर है। मार्ग लंबा एवं कठिन है। इस मार्ग पर चलने के लिए आलस्य का त्याग करना होगा। कवयित्री कहती है कि चाहे अचल और दृढ़ हिमालय के कठोर हृय में आज कितना भी कंपन क्यों न हो अथवा मौन आकाश से प्रलयकारी आँसू बहने लगे, पर तुझ रूकना नहीं है।
चारों ओर अंधकार कितना ही घना होकर क्यों न छा जाए और वह रोशनी को भले ही मिटा दे अथवा बिजली की गड़गड़ाहट और भयंकरता में कठोर एवं नाशवान तूफ़ान क्यों न घिर आए, परंतु तुम्हें नाश के पथ पर अपना अमर बलिदान देकर अपने अमर निशान छोड़ने होंगे, जिनका भावी पीढ़ी अनुसरण कर सके। हे देशवासियो! तुम्हें आगे बढ़ना है, इसलिए अपनी निद्रा से जाग जाओ।
विशेष :
(i) कवयित्री का गीत प्रेरक है।
(ii) भाषा खड़ी बोली है।
काव्य-सौंदर्य संबंधी प्रश्नोत्तर –
प्रश्न :
(क) काव्यांश का भाव-सौंदर्य स्पष्ट कीजिए।
(ख) काव्यांश की शिल्प-सौंदर्य संबंधी दो विशेषताएँ लिखिए।
उत्तर :
(क) भाव-सौंदर्य –
इस काव्यांश में कवयित्री ने मार्ग की बाधाओं की परवाह न करते हुए संघर्ष-पथ पर चलते रहने की प्रेरणा दी है।
कालजयी काम करने की प्रेरणा दी गई है।
कवयित्री ने आत्मा की अमरता, भारतीय की दृढ़ता एवं शक्ति सामर्थ्य की याद दिलाई है।
(ख) शिल्प-सौंदर्य –
(i) भाषा तत्सम शब्दावलीयुक्त खड़ी बोली है।
काव्यांश में दृश्य-बिंब साकार हो उठा है।
‘जीवन-सुधा’ में रूपक अलंकार, ‘सजेगा आज पानी’ में श्लेष अलंकार तथा ‘सो गई आँधी’ में मानवीकरण अलंकार है।
‘आज पी आलोक’ एवं ‘अपने छोड़ आना’ में अनुप्रास अलंकार है।
(ii) छायावादी शैली का प्रभाव स्पष्ट है।
लक्षणा शब्द-शक्ति का प्रयोग है। काव्यांश वीर रस लिए उद्बोधन गीत है।
ओज गुण है।
प्रश्न शैली का प्रयोग है।
2. बाँध लेंगे क्या तुझे यह मोम के बंधन सजीले?
पंथ की बाधा बनेंगे तितलियों के पर रँगीले?
विश्व का क्रंदन भुला देगी मधुप की मधुर गुनगुन,
क्या डुबा देंगे तुझे यह फूल के दल ओस-गीले?
तू न अपनी छाँह को अपने लिए कारा बनाना!
जाग तुझको दूर जाना!
शब्दार्थ :
मोम के बंधन-रिश्ते (relations)। पंथ-रास्ता (way)। पर-पंख (feathers)। क्रंदन-रोना-धोना, विलाप (cry)। मधुप-भौंरा (black-bee)। कारा-बंधन, जेल (prison)।
प्रसंग – प्रस्तुत काव्यांश हमारी पाठ्यपुस्तक अंतरा, भाग-1 में संकलित कविता ‘जाग तुझको दूर जाना’ से उद्धृत है। इसकी रचयित्री छायावादी विचारधारा की प्रमुख कवयित्री महादेवी वर्मा हैं। इस गीत में कवयित्री स्वाधीनता के मार्ग पर निरंतर आगे बढ़ते रहते की प्रेरणा देती है, चाहे कितनी कठिनाइयाँ क्यों न आएँ। इन पंक्तियों में कवयित्री ने संघर्षशील व्यक्ति को भावनाओं से सावधान रहने की बात कही है।
व्याख्या – कवयित्री संघर्षशील देशवासियों से कहती है कि ये मोम के सुंदर बंधन क्या तुझे बाँध लेंगे? अर्थात तुझे घर-परिवार तथा निकट संबंधियों के कोमल बंधनों में नहीं बँधना है। रंग-बिरंगी तितलियाँ (सुंदर युवतियाँ) तेरे मार्ग में बाधा डालने का प्रयास करेंगी। अतः सतर्क रहो, उनके बहुरंगी पंख तेरे मार्ग की रुकावट न बनने पाएँ। भौरों की मद-भरी मधुर गुनगुनाहट क्या चारों ओर गूँजते, रोते-चीखते हुए विश्व के रोदन को भुला सकेगी? फूल के दलों पर फैली ओस क्या तुम्हें डुबो देगी अर्थात यदि तू दृढ़-प्रतिज्ञ है, तो ये सब आकर्षण धरे-के-धरे रह जाएँगे। अतः तू अपने लक्ष्य को पाने के लिए अपनी ही परछाई के बंधन में मत बँध जाना। तुझे अभी बहुत आगे जाना है। तुझे अपने लक्ष्य की प्राप्ति हेतु जागरूक रहकर आगे बढ़ते जाना है।
विशेष :
(i) इस काव्यांश में देशवासियों को अपने लक्ष्य के प्रति सजग रहने का संदेश दिया गया है।
(ii) भाषा तत्सम शब्दावलीयुक्त खड़ी बोली है।
काव्य-सौंदर्य संबंधी प्रश्नोत्तर –
प्रश्न :
(क) काव्यांश का भाव-सौंदर्य स्पष्ट कीजिए।
(ख) काव्यांश की शिल्प-सौंदर्य संबंधी दो विशेषताएँ लिखिए।
उत्तर :
(क) भाव-सौंदर्य-
इस काव्यांश में कवयित्री ने यह बताया है कि मनुष्य अपने लक्ष्य में तभी सफल हो सकता है, जब वह मार्ग की विघ्न-बाधाओं से न घबराएँ।
विविध प्रकार के आकर्षण लक्ष्य की प्राप्ति में बाधक होते हैं। यह भाव प्रकट हुआ है।
(ख) शिल्प-सौंदर्य-
(i) ‘पंथ की बाधा बनेंगे’ तथा ‘मधुप की मधुर गुनगुन’ में अनुप्रास अलंकार है।
लक्षणा शब्द-शक्ति का प्रयोग है।
प्रतीकों का सुंदर प्रयोग है। ‘तितलियाँ’ सुंदर युवतियों की प्रतीक हैं।
ओज गुण का समावेश है।
(ii) खड़ी बोली का प्रयोग किया गया है।
तत्सम शब्दावली है।
छायावादी शैली है।
3. वज्ञ का उर एक छोटे अश्रु-कण में धो गलाया,
दे किसे जीवन सुधा दो घूँट मदिरा माँग लाया?
सो गई आँधी मलय की वात का उपधान ले क्या?
विश्व का अभिशाप क्या चिर नींद बनकर पास आया?
अमरता-सुत चाहता क्यों मृत्यु को उर में बसाना?
जाग तुझको दूर जाना!
शब्दार्थ :
उर-हदयय (heart)। अश्रु-आँसू (tears)। गलाया-पिघला लिया (melt down)। सुधा – अमृत (nectar)। मदिरा-शराब (wine)। वात-हवा (air)। उपधान-सहारा (shelter)। अभिशाप-श्राप (curse)। अमरता-सुत-अमरता का पुत्र (son)।
प्रसंग – प्रस्तुत काव्यांश हमारी पाठ्यपुस्तक अंतरा, भाग-1 में संकलित कविता ‘जाग तुझको दूर जाना’ से उद्धृत है। इसकी रचयित्री छायावादी विचारधारा की प्रमुख कवयित्री महादेवी वर्मा हैं। इस गीत में कवयित्री स्वाधीनता के मार्ग पर निरंतर आगे बढ़ते रहने की प्रेरणा देती है, चाहे कितनी कठिनाइयाँ क्यों न आएँ। इन पंक्तियों में कवयित्री ने संघर्षशील व्यक्ति को भावनाओं से सावधान रहने और सांसारिक आकर्षणों में न फँसने की बात कही है।
व्याख्या – कवयित्री कहती है कि तेरा हृदय वज्र के समान है। क्या यह आँसू के एक छोटे-से कण से गल जाएगा। आशय यह है कि प्रेम, करुणा जैसी भावनाओं से बचकर संघर्ष के पथ पर चल। जीवन की अमरता, सुख-शांति और आनंद देकर किससे और कहाँ से दो घूँट शराब माँग लाया है? जबकि तुझे शराब की नहीं, बल्कि सुख-शांति, आनंद और अमरत्व की आवश्यकता है।
क्या आज जीवन की सारी भावनाओं की आँधी सुगंधित पवन का सहारा लेकर सो गई है? आज तेरी तीव्र अनुभूतियों में शीतलता क्यों आ गई है? क्या समस्त विश्व का दुख ही चिरनिद्रा और आलस्य बनकर तेरे पास आ गया है? क्या कारण है कि यह जीवात्मा जो अमरता का ही अंश है, उसे त्यागकर तू मृत्यु को अपने हृदय में बसा लेना चाहता है? अतः तुझे अपने पथ पर चलना है। तेरा रास्ता बहुत लंबा है। तू अपनी निद्रा से जाग। अभी तो तुझे बहुत दूर जाना है।
विशेष :
(i) इस आह्वान गीत में निरंतर बढ़ते जाने की प्रेरणा दी गई है।
(ii) भाषा तत्सम शब्दावलीयुक्त खड़ी बोली है।
काव्य-सौंदर्य संबंधी प्रश्नोत्तर –
प्रश्न :
(क) काव्यांश का भाव-सौंदर्य स्पष्ट कीजिए।
(ख) काव्यांश की शिल्प-सौंदर्य संबंधी दो विशेषताएँ लिखिए।
उत्तर :
(क) भाव-सौंदर्य-
उपर्युक्त काव्यांश के माध्यम से कवयित्री सांसारिक आकर्षणों में न उलझने और अपने अंदर दुर्बलता न लाने का परामर्श देती है।
कोमलता एवं दुर्बलता लक्ष्य की प्राप्ति में बाधक हैं-यह भाव व्यक्त हुआ है।
(ख) शिल्प-सौंदर्य-
(i) ‘जीवन सुधा’ में रूपक अलंकार है।
तत्सम शब्दावलीयुक्त खड़ी बोली है।
‘मदिरा माँग’ में अनुप्रास अलंकार है।
‘दो घूँट मदिरा’ का प्रतीकात्मक अर्थ है-क्षणिक सुख वाले साधन।
(ii) प्रश्नात्मक शैली है।
छायावादी शैली का प्रभाव है।
भाषा में लय व प्रवाह है।
4. कह न ठंडी साँस में अब भूल वह जलती कहानी,
आग हो उर में तभी दृग में सजेगा आज पानी;
हार भी तेरी बनेगी मानिनी जय की पताका,
राख क्षणिक पतंग को है अमर दीपक की निशानी!
है तुझे अंगार-शब्या पर मृदुल कलियाँ बिछाना!
जाग तुझको दूर जाना!
शब्दार्थ :
उर-हृदय (heart)। दृग-आँख (eyes)। पानी-सम्मान (honour)। मानिनी-स्वाभिमानी (self-respected)। मृदुल-कोमल (tender)। पतंग-कीट-पतंगें (insects)। अंगार-शय्या-अंगारों की सेज अर्थात दुखों के अंबार पर सुख की कलियाँ बिछानी है (bed of fire)।
प्रसंग – प्रस्तुत काव्यांश हमारी पाठ्यपुस्तक अंतरा, भाग-1 में संकलित कविता ‘जाग तुझको दूर जाना’ से उद्धृत है। इसकी रचयित्री छायावादी विचारधारा की प्रमुख कवयित्री महादेवी वर्मा हैं। इस गीत में कवयित्री स्वाधीनता के मार्ग पर निरंतर आगे बढ़ते रहने की प्रेरणा देती है, चाहे कितनी कठिनाइयाँ क्यों न आएँ। इन पंक्तियों में कवयित्री ने संघर्षशील व्यक्ति को भावनाओं से सावधान रहने एवं दृढ़ बने रहने की बात कही है।
व्याख्या – कवयित्री कहती है कि हे वीर, तू अपनी पराजय की कहानी को भुला दे और बिना ठंडी आहें भरे, बिना किसी को कुछ कहे अपने मार्ग की ओर बढ़ता रह। तेरे हदय में आग (उत्साह) होगी, तभी तेरी आँखों में आँसू सज पाएँगे। आशय यह है कि दृढ़ता पर ही आँखों में आत्म-सम्मान की भावना निर्भर करती है। यदि तुझे हार का भी सामना करना पड़ा, तो भी वह तेरे लिए स्वाभिमानी की विजय-पताका के समान होगी।
प्रेमी पतंगे के बलिदान के बाद उसकी राख ही उसके अमरदीप प्रेम की निशानी बन जाती है। तुझे भी पतंगे के समान अपना बलिदान देना है। हे क्रांतिकारी! तुझे तो अंगारों की सेज पर कोमल कलियाँ (भावनाएँ) बिछाना हैं। बलिदान के पथ पर अपनी कोमल भावनाओं का त्याग करना होगा। हे वीर! तू जाग, तुझे अभी बहुत दूर जाना है।
विशेष :
(i) इस काव्यांश में यह भाव स्पष्ट किया गया है कि निरंतर आगे बढ़ने के लिए मन में दृढ़ता चाहिए।
(ii) भाषा तत्सम शब्दावलीयुक्त खड़ी बोली है।
काव्य-सौंदर्य संबंधी प्रश्नोत्तर –
प्रश्न :
(क) काव्यांश का भाव-सौंदर्य स्पष्ट कीजिए।
(ख) काव्यांश की शिल्प-सौंदर्य संबंधी दो विशेषताएँ लिखिए।
उत्तर :
(क) भाव-सौंदर्य-
काव्यांश में दृढ़ता के साथ निरंतर आगे बढ़ते रहने का संदेश है।
इस भाव का उल्लेख है कि कोमल भावनाओं को त्यागने से ही आगे बढ़ने में सरलता होती है।
(ख) शिल्प-सौंदर्य-
(i) ‘अंगार-शय्या’ में रूपक अलंकार है।
‘पानी’ शब्द में श्लेष अलंकार है, जिसके दो अर्थ हैं-जल व सम्मान।
तत्सम-बहुल खड़ी बोली है।
(ii) छायावादी शैली का प्रभाव है।
लक्षणा शब्द-शक्ति है।
भाषा में लयात्मकता व प्रवाह है।
2. सब आँखों के आँसू उजले –
1. सब आँखों के आँसू उजले सबके सपनों में सत्य पला!
जिसने उसको ज्वाला सौंपी
उसने इसमें मकरंद भरा,
आलोक लुटाता वह घुल-घुल
देता झर यह सौरभ बिखरा!
दोनों संगी, पथ एक किंतु कब दीप खिला कब फूल
जला?
शब्दार्थ :
ज्वाला-लौ (flame)। मकरंद-फूलों का रस (nectar)। आलोक-प्रकाश (light)। घुल-घुल-नष्ट हो-होकर (ruined)। सौरभ-खुुबू (fragrance)। संगी-साथी (mate)। पथ-मार्ग, रास्ता (way)।
प्रसंग – प्रस्तुत काव्यांश हमारी पाठ्यपुस्तक अंतरा, भाग-1 में संकलित कविता ‘सब आँखों के आँसू उजले’ से उद्धृत है। इसकी रचयित्री छायावादी कविता की आधार-स्तंभ महादेवी वर्मा हैं। इस काव्यांश में, कवयित्री ने प्रकृति से जीवन सत्य चुनने की बात कही है। इसके लिए दीप और फूल का दृष्टांत दिया है। व्याख्या-कवयित्री कहती है कि हर संघर्षशील प्राणी की आँखों के आँसू उजले हैं। अर्थात उनमें पवित्रता है।
सभी सपने देखते हैं और उनमें सत्य पलता है। वह दीप और फूल का उदाहरण देकर कहती है कि कुदरत ने दीपक के हाथ में ज्वाला सौंपी है तथा फूल में मकरंद भरा है। दीपक घुल-घुलकर अर्थात अपना बलिदान देकर प्रकाश फैलाता है तथा स्वयं को मिटाता है और फूल खुशबू फैलाकर बिखर जाता है। दोनों एक-दूसरे के साथी हैं तथा उनका रास्ता एक है, परंतु यह पता नहीं चलता कि दोनों कब नष्ट हो जाते हैं। दीप खुशबू नहीं फैला सकता और फूल जल नहीं सकता। ऐसा अपनी-अपनी वैयक्तिक भिन्नता और सच्चाई के कारण है।
विशेष :
(i) कवयित्री ने वैयक्तिक भिन्नता और सच्चाई के कारण अलग अस्तित्व होने का उल्लेख किया है।
(ii) भाषा तत्सम शब्दावलीयुक्त है।
काव्य-सौंदर्य संबंधी प्रश्नोत्तर –
प्रश्न :
(क) काव्यांश का भाव-सौंदर्य स्पष्ट कीजिए।
(ख) काव्यांश की शिल्प-सौंदर्य संबंधी दो विशेषताएँ लिखिए।
उत्तर :
(क) भाव-सौंदर्य-
उपर्युक्त काव्यांश में लोकहित के उत्सर्ग का उल्लेख है।
कवयित्री वस्तुओं में भी पवित्रता, सत्यता और बलिदान की झलक देने में सफल हुई है।
(ख) शिल्प-सौंदर्य-
(i) घुल-घुल में पुनरुक्ति प्रकाश अलंकार है।
लाक्षणिकता है।
साहित्यिक खड़ी बोली में सशक्त अभिव्यक्ति है।
(ii) मिश्रित शब्दावली है।
काव्यांश छंदमुक्त रचना है।
प्रथम पंक्ति में अनुप्रास अलंकार की छटा है।
2. वह अचल धरा को भेंट रहा
शत-शत निर्सर में हो चंचल,
चिर परिधि बना भू को घेरे
इसका नित उर्मिल करुणा-जल
कब सागर उर पाषाण हुआ, कब गिरि ने निर्मम तन
बदला?
शब्दार्थ :
अचल-पर्वत (mountain)। धरा-धरती (earth)। शत-शत-सैकड़ों (hundreds)। निर्जर-झरना (waterfall)। परिधि-चारों ओर का घेरा (circumference)। नित-नित्य (daily)। पाषाण-कठोर हृय, पत्थर (stone)। गिरि-पर्वत (mountain)। निर्मम-भावनाहीन (emotionless)।
प्रसंग – प्रस्तुत काव्यांश हमारी पाठ्यपुस्तक अंतरा, भाग-1 में संकलित कविता ‘सब आँखों के आँसू उजले’ से उद्धृत है। इसकी रचयित्री छायावादी कविता की आधार-स्तंभ महादेवी वर्मा हैं। इस कविता में, कवयित्री ने प्रकृति से जीवन सत्य चुनने की बात कही है।
व्याख्या – कवयित्री प्रकृति के माध्यम से व्यक्ति को प्रेरणा देती हुई कहती है कि यह पर्वत जो अत्यंत कठोर शरीर वाला है, वह भी अंदर से सहदय है। वह धरती को अपने में समेटे हुए है। वह अपने हदय से सैकड़ों चंचल झरने प्रवाहित कर रहा है, जो धरती को जल देते हैं। सागर भी एक स्थायी परिधि बनाकर धरती को घेरे हुए हैं तथा करुणा-रूपी जल अनवरत दे रहे हैं। कवयित्री प्रश्न करती है कि कब सागर का हुदय पाषाण हुआ अर्थात सागर ने कब दयालुता छोड़ी तथा कब पर्वत ने अपने निर्मम तन को बदला अर्थात अपने स्वभाव की कठोरता को नहीं त्यागा।
विशेष :
(i) इस काव्यांश में कठोरता में छिपी सदयता की ओर संकेत है।
(ii) भाषा तत्सम शब्दावलीयुक्त खड़ी बोली है।
काव्य-सौंदर्य संबंधी प्रश्नोत्तर –
प्रश्न :
(क) काव्यांश का भाव-सौंदर्य स्पष्ट कीजिए।
(ख) काव्यांश की शिल्प-सौंदर्य संबंधी दो विशेषताएँ लिखिए।
उत्तर :
(क) भाव-सौंदर्य-
इस काव्यांश में प्रकृति की दयालुता एवं सहदयया का उल्लेख हुआ है।
प्रकृति की विभिन्न वस्तुओं द्वारा जन्मजात स्वभाव न छोड़ने का वर्णन है।
(ख) शिल्प-सौंदर्य-
(i) ‘करुणा-जल’ में रूपक अलंकार है।
‘शत-शत’ में पुनरुक्ति प्रकाश अलंकार है।
काव्यांश की रचना मुक्त छंद शैली में है।
छायावादी शैली है।
(ii) खड़ी बोली में सशक्त अभिव्यक्ति है।
मिश्रित शब्दावली है।
दृश्य बिंब है।
3. नभ तारक-सा खंडित पुलकित
यह क्षुर-धारा को चूम रहा,
वह अंगारों का मधु-रस पी
केशर-किरणों-सा झूम रहा,
अनमोल बना रहने को कब टूटा कंचन हीरक पिघला?
शब्दार्थ :
नभ-आकाश (sky)। तारक-तारा (star)। खंडित-दूटा हुआ (broken)। पुलकित-प्रसन्न (happy)। मधु-शहद (honey)। अनमोल-जिसका कोई मोल न हो (invaluable, priceless)। कंचन-सोना (gold)। हीरक-हीरा (diamond)।
प्रसंग – प्रस्तुत काव्यांश हमारी पाठ्यपुस्तक अंतरा, भाग-1 में संकलित कविता ‘सब आँखों के आँसू उजले’ से उद्धृत है। इसकी रचयित्री छायावादी कविता की आधार-स्तंभ महादेवी वर्मा हैं। इसमें कवयित्री ने प्रकृति से जीवन-सत्य चुनने की बात कही है। यहाँ सफलता पाने के लिए कष्टों को सहना पड़ता है। इसके लिए प्रकृति के अंगों का उदाहरण दिया गया है।
व्याख्या – कवयित्री कहती है कि आकाश तारे के समान खंडित होकर प्रसन्न होता है तथा यह क्षुर-धारा को चूम रहा है। उधर सूर्य अंगारों का शहद-रूपी रस पीकर केसर जैसी किरणों के समान झूम रहा है। वह प्रश्न करती है कि अनमोल बने रहने के लिए सोना कब दूटता है और हीरा कब पिघलता है। दोनों में से कोई भी अपना अस्तित्व नहीं खोता।
विशेष :
(i) इस काव्यांश में प्रकृति के अंगों-उपांगों द्वारा स्वाभिमान न त्यागने का उल्लेख है।
(ii) भाषा तत्सम शब्दावलीयुक्त खड़ी बोली है।
काव्य-सौंदर्य संबंधी प्रश्नोत्तर –
प्रश्न :
(क) काव्यांश का भाव-सौंदर्य स्पष्ट कीजिए।
(ख) काव्यांश की शिल्प-सौंदर्य संबंधी दो विशेषताएँ लिखिए।
उत्तर :
(क) भाव-सौंदर्य-
उपर्युक्त गद्यांश में अस्तित्व बनाए रखने का संदेश निहित है।
प्रकृति के विभिन्न अंगों-उपांगों का सटीक उदाहरण दिया गया है।
(ख) शिल्प-सौंदर्य-
(i) काव्यांश रचना छंदमुक्त शैली में है।
छायावादी शैली है।
‘क्षुर-धारा’, ‘मधु-रस’ में रूपक अलंकार है।
(ii) तत्सम शब्दावली की प्रमुखता है।
साहित्यिक खड़ी बोली है।
‘तारक-सा’, ‘किरणों-सा ‘ में उपमा अलंकार तथा ‘केसर-किरणों’ में अनुप्रास अलंकार है।
लाक्षणिकता है।
4. नीलम मरकत के संपुट दो
जिनमें बनता जीवन-मोती,
इसमें ढलते सब रंग-रूप
उसकी आभा स्पंदन होती!
जो नभ में विद्युत-मेघ बना वह रज में अंकुर हो निकला!
शब्दार्थ :
नीलम-नीले रंग का एक रत्न (sapphire)। मरकत-पन्ना (a precious stone)। संपुट-दोना या कटोरे जैसी वस्तु (leaves folded form of cup)। आभा-चमक (lust)। स्पंदन-हिलना (wavering)। नभ-आकाश (sky)। विद्युत-बिजली (electricity)। रज-धूल (dust)।
प्रसंग – प्रस्तुत काव्यांश हमारी पाठ्यपुस्तक अंतरा, भाग-1 में संकलित कविता ‘सब आँखों के आँसू उजले’ से उद्धृत है। इसकी रचयित्री छायावादी कविता की आधार-स्तंभ महादेवी वर्मा हैं।
इस कविता में कवयित्री ने प्रकृति से जीवन के सत्य चुनने की बात कही है।
व्याख्या – कवयित्री कहती है कि नीलम और पन्ने के दो कटोरे होते हैं, जिनमें जीवन-रूपी मोती बनते हैं। इसी में सारे रंग-रूप ढलते-बनते रहते हैं तथा जीवन की सारी चमक इसमें चमकती है। आकाश के बादलों में जो बिजली चमकती है
वही धूल में अंकुर के रूप में फूटता है। इनमें जीवन के सत्य की झलक मिलती है।
विशेष :
(i) इस काव्यांश में जीवन के सत्य की ओर संकेत किया गया है।
(ii) भाषा तत्सम शब्दावलीयुक्त खड़ी बोली है।
काव्य-सौंदर्य संबंधी प्रश्नोत्तर –
प्रश्न :
(क) काव्यांश का भाव-सौंदर्य स्पष्ट कीजिए।
(ख) काव्यांश की शिल्प-सौंदर्य संबंधी दो विशेषताएँ लिखिए।
उत्तर :
(क) भाव-सौंदर्य-
उपर्युक्त काव्यांश में प्रकृति के माध्यम से जीवन-सत्य चुनने के लिए प्रेरित किया गया है। प्रस्तुत काव्यांश में जीवन-सत्य का अभास कराया गया है।
(ख) शिल्प-सौंदर्य-
(i) इस काव्यांश में छायावादी शैली में प्रकृति के प्रेरक रूप को बताया गया है।
‘जीवन-मोती’ में रूपक अलंकार है।
साहित्यिक खड़ी बोली है।
लाक्षणिकता है।
(ii) ‘रंग-रूप’ में अनुप्रास अलंकार है।
तत्सम शब्दावली है।
काव्यांश छंदमुक्त रचना है।
5. संसृति के प्रति पग में मेरी
साँसों का नव अंकन चुन लो,
मेरे बनने-मिटने में नित
अपनी साधों के क्षण गिन लो!
जलते खिलते बढ़ते जग में घुलमिल एकाकी प्राण चला!
सपने-सपने में सत्य ढला!
शब्दार्थ :
संसृति-संसार (world)। प्रति-प्रत्येक (everyone)। पग-कदम (step)। नव-नया (new)। नित-नित्य (daily)। जग-संसार (world)। एकाकी-अकेला (alone)।
प्रसंग – प्रस्तुत काव्यांश हमारी पाठ्यपुस्तक अंतरा, भाग-1 में संकलित कविता ‘सब आँखों के आँसू उजले’ से उद्धृत है। इसकी रचयित्री छायावादी कविता की आधार-स्तंभ महादेवी वर्मा हैं। इस कविता में कवयित्री ने प्रकृति से जीवन के सत्य चुनने की बात कही है। यहाँ प्रत्येक व्यक्ति की महत्ता और अस्तित्व स्वीकारने की बात कही गई है।
व्याख्या – कवयित्री कहती है कि संसार के हर कदम पर प्रकृति की आहट महसूस की जा सकती है। इसमें उसकी साँसों का नया अंकन अर्थात नए अस्तित्व को स्पष्ट रूप से देखा जा सकता है। कवयित्री कहती है कि प्रकृति के बनने और मिटने में ही नित्य अपनी साधों के क्षण गिन लेने चाहिए। यह संसार कभी आग की तरह जलता है, तो कभी फूलों की तरह खिलता है। इसमें किसी अकेले व्यक्ति के प्राण चलते रहते हैं अर्थात अकेले व्यक्ति का अस्तित्व बना रहता है। वास्तव में प्रत्येक व्यक्ति के सपने में सत्यता होती है, जिसे हमें स्वीकारना चाहिए।
विशेष :
(i) इस काव्यांश में बताया गया है कि प्रत्येक व्यक्ति के सपनों में सच्चाई होती है।
(ii) भाषा तत्सम शब्दावलीयुक्त है।
काव्य-सौंदर्य संबंधी प्रश्नोत्तर –
प्रश्न :
(क) काव्यांश का भाव-सौंदर्य स्पष्ट कीजिए।
(ख) काव्यांश की शिल्प-सौंदर्य संबंधी दो विशेषताएँ लिखिए।
उत्तर :
(क) भाव-सौंदर्य-
उपर्युक्त काव्यांश में प्रकृति से प्रेरित होने की बात कही गई है।
प्रत्येक व्यक्ति एवं वस्तु का अस्तित्व स्वीकारने का उल्लेख है।
(ख) शिल्प-सौंदर्य-
(i) काव्यांश में छायावादी शैली है।
काव्यांश में लाक्षणिकता है।
काव्यांश में मिश्रित शब्दावली का प्रयोग है।
(ii) साहित्यिक खड़ी बोली में सशक्त अभिव्यक्ति की गई है।
‘जलते खिलते बढ़ते’ में स्वरमैत्री तथा ‘सपने-सपने’ में पुनरुक्ति प्रकाश अलंकार है।
काव्यांश छंदमुक्त रचना है।