In this post, we have given Class 11 Hindi Antra Chapter 1 Summary – Idgah Summary Vyakhya. This Hindi Antra Class 11 Summary is necessary for all those students who are in are studying class 11 Hindi subject.
ईदगाह Summary – Class 11 Hindi Antra Chapter 1 Summary
ईदगाह – प्रेमचंद – कवि परिचय
लेखक-परिचय :
प्रश्न-प्रेमचंद की साहित्यिक तथा भाषागत विशेषताओं का परिचय देते हुए उनकी कृतियों का उल्लेख कीजिए। उत्तर-जीवन-परिचय-प्रेमचंद का जन्म वाराणसी जिले के लमही ग्राम में सन 1880 में हुआ था। उनका मूल नाम धनपतराय था। उन्होंने प्रारंभिक शिक्षा वाराणसी में पाई। मैट्रिक करने के बाद वे अध्यापन-कार्य करने लगे। फिर उन्होंने स्वाध्याय करके बी०ए० की परीक्षा उत्तीर्ण की। वे सरकारी नौकरी में भी रहे, परंतु असहयोग आंदोलन के समय उन्होंने नौकरी से त्यागपत्र दे दिया और लेखन-कार्य में ही लग गए। प्रेमचंद् ने अपना लेखन-कार्य उर्दू में नवाबराय के नाम से आरंभ किया, बाद में वे हिंदी में लिखने लगे। उनकी पहली कहानी सन 1915 में ‘सरस्वती’ पत्रिका में प्रकाशित हुई। उनकी मृत्यु सन 1936 में हुई। रचनाएँ-प्रेमचंद की प्रमुख कृतियाँ निम्नलिखित हैं :
- कहानी-संग्रह – मानसरोवर (आठ भागों में), गुप्तधन (दो भागों में)।
- उपन्यास – सेवासदन, कर्मभूमि, रंगभूमि, निर्मला, गबन, गोदान, प्रेमाश्रम।
- नाटक – कर्बला, संग्राम, प्रेम की वेदी।
- निबंध-संग्रह – विविध प्रसंग (तीन खंडों में), कुछ विचार।
- संपादन कार्य – माधुरी, हंस, मर्यादा, जागरण।
साहित्यिक विशेषताएँ – प्रेमचंद ने अपनी रचनाओं में किसानों, दलितों एवं नारियों की वेदना तथा वर्ण-व्यवस्था की कुरीतियों का मार्मिक चित्रण किया है। वे साहित्य को सामाजिक परिवर्तन का सशक्त साधन मानते थे। उनकी दृष्टि में साहित्यकार समाज के भवन का विध्वंस नहीं, निर्माण करता है। उन्होंने समाज-सुधार और राष्ट्रीय भावना को अपनी कृतियों में स्थान दिया। कथा संगठन एवं चरित्र-चित्रण की दृष्टि से उनकी रचनाएँ बेजोड़ हैं।
प्रेमचंद की रचनाओं की भाषा सजीव, मुहावरेदार और बोलचाल के निकट है। इनमें उर्दू की स्वच्छंदता, गति और मुहावरों के साथ संस्कृत की भावमयी पदावली का सुंदर प्रयोग है। प्रेमचंद ने अपनी कहानियों और उपन्यासों से हिंदी को लोकप्रिय बनाया तथा हिंदी कथा-भाषा को नया आयाम दिया।
हिंदी में बाल-मनोविज्ञान से संबंधित कहानियाँ बहुत कम लिखी गई हैं। प्रेमचंद उन दुर्लभ कथाकारों में से हैं, जिन्होंने पूरी प्रामाणिकता एवं तन्मयता के साथ बाल-जीवन को अपनी कहानियों में जगह दी है। उनकी कहानियाँ भारत की साझी संस्कृति एवं ग्रामीण जीवन के विविध रंगों से सराबोर हैं।
पाठ-परिचय :
‘ईदगाह’ प्रेमचंद की बाल-मनोविज्ञान की विशेषताओं को अभिव्यक्त करने वाली प्रतिनिधि कहानी है। इस कहानी में ‘ईद’ जैसे पवित्र व प्रमुख त्योहार को आधार बनाकर ग्रामीण मुस्लिम जीवन का सुंदर चित्र प्रस्तुत किया गया है। हामिद का चरित्र हमें बताता है कि अभाव उम्र से पहले बच्चों में कैसे बड़ों जैसी समझदारी पैदा कर देता है। मेले में हामिद् अपनी हर चाह पर संयम रखने में विजयी होता है। साथ ही रुस्तमे-हिंद चिमटे के माध्यम से प्रेमचंद ने श्रम के सौंदर्य एवं महत्व को भी उद्घाटित किया है। चित्रात्मक भाषा की दृष्टि से यह कहानी अनूठी है।
पाठ का सार :
रमज़ान का पवित्र महीना बीतने के बाद ईद आई है। आज चारों ओर सब कुछ सुहावना दिख रहा है। पेड़ों की हरियाली, खेतों की रौनक, आसमान की लालिमा मनोहारी लग रही है। ऐसा लग रहा है, मानो सूरज ईद की बधाई दे रहा है। गाँव में हलचल मची है। सभी को ईदगाह जाने की जल्दी पड़ी है। लोग ज़ोर-शोर से तैयारियाँ कर रहे हैं। इस अवसर पर बच्चे सबसे ज्यादा खुश हैं। उन्हें ईदगाह जाने की सबसे जल्दी पड़ी है। उन्हें चिता-फ़क्र से क्या लेना-देना। वे ईदगाह जाने के लिए मिले पैसों को बार-बार गिन रहे हैं। महमूद के पास बारह पैसे और मोहसिन के पास पंद्रह पैसे हैं। इनसे वे अनगिनत चीज़ें खरीद लेना चाहते हैं। इन सभी में चार-पाँच साल का हामिद सबसे खुश है। वह अपनी बूढ़ी दादी अमीना के साथ रहता है। उसके पिता की मृत्यु हो चुकी है। उसे यह पता था कि उसके पिता पैसे कमाने गए हैं। उसकी दादी अमीना कोठरी में बैठी रो रही है, क्योंकि उसके घर दाना नहीं है। वह निराशा में डूबी जा रही है।
अमीना का दिल डर रहा है, क्योंक हामिद के साथ ईदगाह जाने के लिए उसका बाप नहीं है। हामिद को अकेले भेजते हुए उसका जी घबरा रहा है। तीन कोस दूर जाते हुए उसके पैरों में छाले पड़ जाएँगे। जूते भी तो नहीं हैं। घर पर सिवइयाँ पकाने तथा अन्य काम करने के कारण वह स्वयं भी हामिद के साथ ईदगाह नहीं जा सकती। अमीना को फ़हीमन के कपड़े सिलने पर जो आठ आने मिले थे, उनमें से छह आने ग्वालन को देने के बाद उसके पास अब दो आने ही बचे थे। उनमें से तीन पैसे हामिद की ज़ेब में और पाँच पैसे अमीना के बटुवे में थे। इसी में उसे ईद का त्योहार मनाना है।
गाँव के बच्चों के साथ-साथ हामिद भी ईदगाह की ओर चला। बच्चे जोश में भागे जा रहे थे। शहर आते ही दोनों ओर अमीरों के आम और लीचियों के बगीचे दिखने लगे। आगे इमारतें, अदालतें, कॉलेज, क्लब मिलते हैं। बच्चे तरह-तरह की बातें करते आगे बढ़ते ही जा रहे थे। आगे जाने पर रास्ते में हलवाइयों की दुकानें पड़ीं। वे मिठाइयों के बारे में अपनी कल्पना से बातें करते जा रहे थे। रास्ते में पुलिस लाइन आ गई। वे कांस्टेबल की रात की ड्यूटी और चोरी रोकने की प्रशंसा करते हैं, तभी मोहसिन ने प्रतिवाद करते हुए उनकी अनैतिक कमाई के बारे में सभी को बताया। उसने उनको अपने कांस्टेबल मामूँ की हराम की कमाई और उसकी परिणति के बारे में बताया।
बच्चे बातें करते बढ़ते ही जा रहे थे कि उन्हें ईदगाह नज़र आया। इमली के घने वृक्षों की छाया में बिछी जाजिम, नमाज़ के लिए पंक्तिबद्ध खड़े लोग, सिज़दे में एक साथ झुकते लाखों सिर, ये सब अपूर्व दृश्य उपस्थित कर रहे थे। इहेे देखकर हृदय श्रद्धा, गर्व और आत्मानंद से भर उठता था। नमाज़ खत्म होते ही सब एक-दूसरे के गले मिलकर खरीददारी में जुट गए। महमूद, नूरे, सम्मी और मोहसिन झूलों में लगे घोड़ों और ऊँटों पर चक्करों का मज़ा लेने लगे, पर दूर खड़ा हामिद अपने तीन पैसों में से एक पैसे खर्च नहीं कर सकता था। झूले से उतरकर बच्चे खिलौने खरीदने लगे। महमूद ने सिपाही. मोहसिन ने भिश्ती, नूरे ने वकील बने खिलौने दो-दो पैसे में खरीदे, पर हामिद ने इन्हें टूटने और रंग धुलने के डर से नहीं खरीदा। बच्चे अपने-अपने खिलौनों की प्रशंसा कर रहे थे, पर हामिद उन खिलौनों की निंदा कर रहा था। यद्यपि उसका जी ललचा रहा था, पर वह संयम बनाए रखने में सफल रहा। इसके बाद बच्चों ने मिठाइयाँ, रेवड़ियाँ खरीदीं पर हामिद अपने पैसे न खर्च सका।
मिठाइयों के बाद लोहे की वस्तुओं की दुकानें थी। यहाँ बच्चों को क्या खरीदना था? वे आगे बढ़ गए, पर अकेला हामिद लोहे की वस्तुओं के पास रुक गया। उसे ध्यान आया कि उसकी दादी के पास चिमटा नहीं है। रोटियाँ बनाते समय उनकी अँगुलियाँ जल जाती हैं। उनको चिमटा दे देने पर वे खुश होंगी और उनकी अंगुलियाँ भी नहीं जलेंगी। खिलौनों का क्या, घर तक पहुँचते-पहुँचते दूट जाएँगे, पर चिमटा देखते ही अम्मा खुश हो जाएँगी और दुआएँ देंगी। चिमटा खरीदने पर सब-के-सब हँसेंगे, पर हँसते रहें। उसने दुकानदार से मोलभाव करके छह पैसे का चिमटा तीन पैसे में खरीद लिया और साथियों से आ मिला। बच्चे अपने-अपने खिलौनों की प्रशंसा कर रहे थे. पर हामिद ने चिमटे की प्रशंसा में जो कुछ कहा उससे दूसरे बच्चे भी चिमटे को खिलौनों से बेहतर मानने को विवश हो उठे। वे अब मेले से दूर घर की ओर आ रहे थे। सब अपने-अपने पैसे खर्च कर चुके थे, इसलिए अब चिमटा भी नहीं खरीद सकते थे। बातों-बातों में वे यह भी मान चुके थे कि उनके मिट्टी के खिलौनों से हामिद् का चिमटा ज़्यादा अच्छा है। उसका चिमटा रुस्तमे-हिंद है और सभी खिलौनों का बादशाह!
ग्यारह बजे तक बच्चे वापस आ चुके थे। मोहसिन की बहिन ने उससे भिश्ती छीन ली और खुशी से उछली, जिससे भिश्ती गिरकर सुरलोक सिधारा। नूरे मियाँ के वकील हवा से या पंखे की चोट से नीचे आ गिरे और उनके कई टुकड़े हो गए। महमूद का सिपाही, महमूद के पैर से ठोकर लगने से गिरकर अपनी टाँग तुड़वा बैठा, उसकी यह टाँग ऑपरेशन से भी नहीं जुड़ सकती। इससे उसकी दूसरी टाँग तोड़कर उसे एक जगह पर बैठा दिया गया।
इधर हामिद की आवाज़ सुते ही अमीना दौड़कर आई। वह हामिद को गोद में उठाकर प्यार करने लगी, पर उसके हाथ में चिमटा देखकर चौंक पड़ी और चिमटे के बारे में पूछने लगी। हामिद ने बताया कि इस चिमटे को उसने तीन पैसे में खरीदा है, तो अमीना ने सिर पीट लिया और कहा, “तुझे सारे मेले में और कोई चीज़ न मिली, जो यह लोहे का चिमटा उठा लाया?” हामिद ने अपराधी भाव से ज़वाब दिया, “तुम्हारी उँगलियाँ तवे से जल जाती थीं, इसलिए मैंने इसे लिया।” यह सुनते ही अमीना का क्रोध स्नेह में बदल गया। वह सोचती रही कि मेले में भी हामिद को उसका ही ध्यान बना रहा। वह दामन फैलाकर हामिद को दुआएँ देती जा रही थी और उसकी आँखों से आँसू गिरते जा रहे थे।
शब्दार्थ :
पृष्ठ 5-रौनक-सुंदरता भरी चमक (shining with beauty)। प्रयोजन-मतलब (aim)। बला से-कुछ परवाह न होना (carelessly)। बदहवास-घबराकर (getting worried)। आँखें बदल लेना-नाराज़ हो जाना (to get angry)। ईद मुहर्रम हो जाना-खुशियाँ शोक में बदल जाना (to change happiness in sorrow)।
पृष्ठ 6-हैज़े की भेंट होना-हैज़े से मर जाना (die of cholera)। राई का पहाड़ बना लेना-बहुत बढ़ा-चढ़ाकर कहना (to say some more about qualities)। नियामतें-दुर्लभ वस्तुएँ (rare things)। दलबल-फौज़ (army), समूह (group)। चितवन-दुष्टि, किसी को देखने का ढंग (sight)। विध्वंस-विनाश (destruction)। दिल कचोटना-डर महसूस करना (to feel fear)।
पृष्ठ 7-गवालन-दूध बेचने वाली (milk-maid)। सिर पर सवार होना-पूरी तरह से अड़ जाना (to be rigid)। बिसात-सामर्थ्य, औकात (capacity)। आँखें नहीं लगना-अच्छा न लगना (to not feel good)। खैरियत–कुशलता (wellness)। सलामत-सुरक्षित (safe)। पर लगना-शक्ति आ जाना (to get strength of wings)। उल्लू बनाना-मूर्ख बनाना (to make fool)।
पृष्ठ 8 -तीन कौड़ी का-बेकार की वस्तु होना (useless thing)। मेमें-विदेशी औरतें (foreign ladies)। मनों-चालीस किलो से अधिक (more than forty kilogram)। जिन्नात-जिन्न, भूत-प्रेत (ghosts)। यकीन-विश्वास (faith)। फेर-चक्कर, समस्या (problem)।
पृष्ठ 9-मंतर – मंत्र, रहस्य (mantras, secrecy)। बछवा-गाय का नर बच्चा (calf)। जहान-संसार (world)। कवायद-परेड, ड्रिल (drill)। प्रतिवाद-विरोध (disagree)। हज़रत-श्रीमान (sir)। नादानी-भोलापन (innocence)। हराम का माल-अनैतिक ढंग से कमाया हुआ धन (wealth earned by unfair means)।
पृष्ठ 10-लेई पूँजी-धन-दौलत (money, property)। विपन्नता-गरीबी (poverty)। मगन होकर-खुश होकर (happily)। चेतते-सावधान होते (to be careful)। जाजिम-ज़मीन पर बिछाने के लिए तिरपाल जैसा मोटा, लंबा-चौड़ा कपड़ा (a thick cloth like canvass)। वजू करना-नमाज़ से पहले हाथ-मुँह धोना (to clean hand and mouth before namaj)। सिज़दा-नमाज़ पढ़ते समय घुटने टेककर और सिर झुकाकर किया जाने वाला प्रणाम (to bow down before Allah/God)। प्रदीप्त होना-प्रकाशित होना. प्रकाशमय हो जाना (to be lightened)। अनंतता-जिसका अंत न हो (endlessness)। आत्मानंद-आत्मा का आनंद (joyness of soul)। भातृत्व-भाई-चारा (brotherhood)। पिरोना-गूँथना (to join)।
पृष्ठ 11-कोष-खज़ाना (treasure)। गुजरिया-ग्वालिन (milkmaid)। भिश्ती-पानी वाला (man who brings water)। मशक-चमड़े से बना पानी का थैला (a leather-bag containing water)। पोथा–मोटी पुस्तक (a weighted book)। साँझ–संध्या (evening)।
पृष्ठ 12–फ़ैर-गोली दाग देना (to shoot)। त्यागी-त्याग करने वाले (one who gives up anything)। पृथक-अलग (separate)। क्रूर विनोद-कड़वा मज़ाक (bitter fun)। नेमत-ईश्वर द्वारा प्रदत्त दुर्लभ वस्तु (a rare thing given by God)।
पृष्ठ 13-गिलट-सोने-चाँदी का पानी चढ़ी वस्तुएँ (to coat with nickle)। फ़ुरसत-खाली समय (time for rest)। सबील-धर्मार्थ प्याऊ (place where water is distributed to thirsty travellers)। मिज़ाज़–प्रकृति, स्वभाव (nature)।
पृष्ठ 14-सलूक-व्यवहार (behaviour)। लाद लाए हैं-ढोकर लाए हैं (carried)। दिल बैठ जाना-उत्साह समाप्त हो जाना (to be zealless)। संगी-साथी (companion)। आलोचना-निंदा, बुराई (criticism)। पसलियाँ-सीने की वक्राकार हड्डियाँ (bones of chest)।
पृष्ठ 15-बाल बाँका न कर पाना-कोई नुकसान न पहुँचा पाना (unable to harm)। उपेक्षा-निरादर भाव (negligence)। विधर्मी-धर्म बदलने वाला (one who has changed his religion)। आघात-चोट (strike hard)। अजेय-जिसे जीता न जा सके (unconquerable)। रुस्तमे-हिंद-हिंदुस्तान का सबसे बड़ा पहलवान (greatest warrior of India)।
पृष्ठ 16-कुमुक-सैनिक सहायता (army assistance)। प्रबल-सशक्त, मज़बूत (strong)। बावर्चीखाना-रसोईघर (kitchen)। पट्ठा-नवजवान (young man)। सूरमा–वीर (brave)। धेलचा-आधे पैसे की कीमत वाला (coin of half paisa)।
पृष्ठ 17-कनकौआ-बड़ी पतंग (a big kite)। मैदान मार लेना-जीत हासिल कर लेना (to get victory)। रंग जमाना-प्रभाव जमाना (to impressed)। संधि-सुलह (to settle any matter)। दिलासा-तसल्ली (relief)। सिक्का बैठना-प्रभाव जमना (to be impressed)। दुआ-आशीर्वाद (blessings)।
पृष्ठ 18 -साझी-भागीदार (partner)। प्रसाद-कृपा (kindness)। सुरलोक सिधारना-मृत्यु को प्राप्त करना (to die)। खस-सूखी घास (dry hey)। मातम-शोक (grief)। अस्थि-हड्डी (bone)। घूर-कूड़ा-करकट फेंकने की जगह (a place where garbage is thrown)।
पृष्ठ 19-विकार-दोष (fault)। आनन-फानन में-जल्दबाजी में (in a hury)। गूलर-एक बड़ा-सा वृक्ष (a heavy tree like Banyan)। शल्यक्रिया-चीड़-फाड़ की क्रिया (surgery)। बाट-वजन तौलने की वस्तुएँ (measuring instrument, i.e., weight)। प्रगल्भ-वाक्पटु (one who have a good communication skill)। कसक-रुक-रुककर होने वाली पीड़ा (pain)। मूक-मौन, चुप (silent)।
पृष्ठ 20 -ज़ब्त-संतोष (satisfaction)। गद्गद होना-प्रसन्न होना (to be happy)। दामन-आँचल (a part of saree)।
ईदगाह सप्रसंग व्याख्या
1. रमज़ान के पूरे तीस रोज़ों के बाद ईद आई है। कितना मनोहर, कितना सुहावना प्रभात है। वृक्षों पर कुछ अजीब हरियाली है, खेतों में कुछ अजीब रौनक है, आसमान पर कुछ अजीब लालिमा है। आज का सूर्य देखो, कितना प्यारा, कितना शीतल है; मानो संसार को ईद की बधाई दे रहा है। गाँव में कितनी हलचल है। ईवगाह जाने की तैयारियाँ हो रही हैं।
प्रसंग – प्रस्तुत गद्यांश हमारी पाठ्यपुस्तक अंतरा, भाग-1 में संकलित ‘ईदगाह’ से उद्धृत है। इसके लेखक प्रसिद्ध कथाकार मुंशी प्रेमचंद हैं। इस गद्यांश में लेखक ने ईद के अवसर पर सर्वत्र छाई खुशी का वर्णन किया है।
व्याख्या – रमज़ान महीने के रोज़े बीतने पर ईद के दिन मनुष्य तथा प्रकृति के अंग-अंग से छलकती खुशियों का वर्णन करते हुए लेखक कहता है कि ईद का त्योहार रमज़ान माह में पूरे तीस रोज़ों के बाद आता है। इस समय प्रकृति में सुंदरता छा जाती है। प्रभात अत्यंत मनोहर तथा सुहावना जान पड़ता है। पेड़ों पर अलग प्रकार की हरियाली है। खेतों में अजीब रौनक है। आसमान की लालिमा भी और दिनों से अलग है। आज सूर्य भी अन्य दिनों से हटकर है। यह प्यारा तथा शीतल है। ऐसा लगता है, मानो संसार को ईद की बधाई दे रहा है। गाँव में इस अवसर पर हलचल है। हर जगह ईंदगाह जाने की तैयारियाँ हो रही हैं।
विशेष :
- ईद के अवसर पर मनोहारी प्राकृतिक वातावरण का आलंकारिक चित्रण किया गया है।
- भाषा खड़ी बोली से युक्त है।
- मिश्रित शब्दावली का सुंदर प्रयोग हुआ है।
- भाषा सरल, सहज तथा प्रवाहमयी है।
2. रोज़े बड़े-बूढ़ों के लिए होंगे। इनके लिए तो ईंद है। रोज़ ईद का नाम रटते थे, आज वह आ गई। अब जल्दी पड़ी है कि लोग ईंदगाह क्यों नहीं चलते। इन्हें गृहस्थी की चिताओं से क्या प्रयोजन! सेवैयों के लिए दूध और शक्कर घर में है या नहीं, इनकी बला से, ये तो सेवैयाँ खाएँगे। वह क्या जानें कि अब्बाजान क्यों बदहवास चौधरी कायमअली के घर दौड़े जा रहे हैं। उन्हें क्या खबर कि चौधरी आज आँखें बदल लें, तो यह सारी ईद मुहर्रम हो जाए।
प्रसंग – प्रस्तुत गद्यांश हमारी पाठ्यपुस्तक अंतरा, भाग-1 में संकलित ‘ईदगाह’ कहानी से उद्धृत है। इसके लेखक प्रसिद्ध कथाकार मुंशी प्रेमचंद हैं। इस कहानी में लेखक ने ग्रामीण मुस्लिम समाज की व्यथा का वर्णन किया है। इस अंश में लड़कों की सोच तथा ग्रामीणों की कर्ज़-भरी ज़िदगी और चौधरी कायमअली की उदारता का वर्णन है।
व्याख्या – रोज़े और नमाज़ को खुद से अलग रखने वाले लड़कों की मानसिकता का वर्णन करता हुआ लेखक कहता है कि लड़के ईद पर प्रसन्न हैं। वे रोज़े नहीं रखते। उनका विचार है कि रोज़े तो बुजुर्गों के लिए हैं। उनके लिए ईद खुशी का त्योहार है। वे हर रोज़ इसका नाम रटते थे। आज त्योहार आ गया है। अब उन्हें ईदगाह जाने की जल्दी है। लड़कों को गृहस्थी की चिताओं से मतलब नहीं है। घर में चाहे दूध और शक्कर हो या न हो, उन्हें तो सेवैयाँ चाहिए। वे इस बात का अर्थ भी नहीं जानते कि उनके पिता चौधरी कायमअली के घर बदहवास क्यों दौड़े जाते हैं। घर की आर्थिक दशा कैसी है. लड़कों को इस बात से भी कोई सरोकार नहीं कि यदि चौधरी की आँखें आज बदल जाएँ, तो यह सारी ईंद मुहरम हो जाएगी अर्थात ईंद की सारी खुशी मातम में बदल जाएगी।
विशेष :
- लड़कों के अल्हड़पन तथा बाल-मनोविज्ञान का अत्यंत सुंदर चित्रण है।
- मुहावरों के सार्थक एवं सुंदर प्रयोग से भाषा सजीव हो उठी है।
- मिश्रित शब्दावली है।
- खड़ी बोली से युक्त भाषा सरल, सहज और प्रवाहमयी है।
3. अभागिन अमीना अपनी कोठरी में बैठी रो रही है। आज ईद का दिन और उसके घर में दाना नहीं! आज आबिद होता, तो क्या इसी तरह ईद आती और चली जाती! इस अंधकार और निराशा में वह डूबी जा रही है। किसने बुलाया था, इस निगोड़ी ईद को? इस घर में उसका काम नहीं; लेकिन हामिद! उसे किसी के मरने-जीने से क्या मतलब? उसके अंदर प्रकाश है, बाहर आशा। विपत्ति अपना सारा दलबल लेकर आए, हामिद की आनंद-भरी चितवन उसका विध्वंस कर देगी।
प्रसंग – प्रस्तुत गद्यांश हमारी पाठ्यपुस्तक अंतरा, भाग-1 में संकलित ‘ईंदगाह’ से उद्धृत है। इसके लेखक प्रसिद्ध कथाकार मुंशी प्रेमचंद हैं। इस कहानी में लेखक ने ग्रामीण मुस्लिम समाज की व्यथा का वर्णन किया है। इस अंश में गरीब एबं वृद्धा अमीना की गरीबी का अत्यंत स्वाभाविक चित्रण है। इस दशा में उसे ईद खुशियों की जगह दुख लाने वाली प्रतीत हो रही है।
व्याख्या – अमीना की दीन-हीन दशा एवं उसकी विवशता के बारे में लेखक बताता है कि अमीना स्वयं को अभागिन मानती है। वह अपनी कोठरी में बैठी रो रही है, क्योंकि ईद के दिन उसके घर में अन्न का दाना भी नहीं है। ईंद खुशियों का त्योहार है, परंतु वह हामिद के लिए कुछ ला पाने में असमर्थ है। वह सोचती है कि आज अगर उसका बेटा आबिद होता, तो ईंद इस तरह खाली न जाती। वह भी कई तरह की चीज़ें बनाती। वह अंधकार और निराशा में डूबी जा रही थी। वह सोचती है कि ईद आती ही क्यों है? उसे बुलाता कौन है? जब उसके पास ईद की खुशी मनाने का कोई साधन ही नहीं है, तब वह ईंद के आने की प्रतीक्षा ही भला क्यों करती? उसके लिए तो यह ईद निगोड़ी (अभागी) है। उसके घर में ईद को आना ही नहीं चाहिए था, पर जब वह हामिद के बारे में सोचती है, तब उसे लगता है कि इस बेचारे को इन अभावों से क्या लेना-देना। वह तो ईद को लेकर उत्साहित है। मुसीबत यदि पूरी ताकत से भी आए, तब भी वह हामिद के आनंद और उत्साह को कम नहीं कर सकती। यहाँ अमीना और हामिद की मन:स्थितियों में बहुत अंतर है।
विशेष :
- इस गद्यांश में अमीना की खराब आर्थिक स्थिति एवं उसकी मन:स्थिति का यथार्थपरक वर्णन है।
- मुहावरों के सटीक प्रयोग से भाषा सजीव हो उठी है।
- मिश्रित शब्दावली का सुंदर प्रयोग हुआ है।
- सूक्तिपरक शैली में भाषा सरल, सहज, प्रवाहमयी तथा भावाभिव्यक्ति में सक्षम है।
- खड़ी बोली में सशक्त अभिव्यक्ति है।
4. कई बार यही क्रिया होती है, जैसे बिजली की लाखों बत्तियाँ एक साथ प्रदीप्त हों और एक साथ बुझ जाएँ और यही क्रम चलता रहे। कितना अपूर्व दृश्य था, जिसकी सामूहिक क्रियाएँ, विस्तार और अनंतता हृदय को श्रद्धा, गर्व और आत्मानंद से भर देती थीं, मानो भ्रातृत्व का एक सूत्र इन समस्त आत्माओं को एक लड़ी में पिरोए हुए है।
प्रसंग – प्रस्तुत गद्यांश हमारी पाठ्यपुस्तक अंतरा, भाग-1 में संकलित ‘ईदगाह’ से उद्धृत है। इसके लेखक प्रसिद्ध कथाकार मुंशी प्रेमचंद हैं।
इस अंश में लेखक ने ईदगाह पर नमाज़ पढ़ने के दृश्य का सजीव चित्रण किया है।
व्याख्या – ईंदगाह पर हज़ारों लोगों को नमाज़ पढ़ने के क्रम में एक साथ उठते-बैठते, सिर झुकाते हुए देखकर लेखक कहता है कि नमाज़ पढ़ते वक्त लाखों-लाख लोगों के सिर एक साथ खुदा के आगे झुकते हैं। फिर वे एक साथ खड़े होते हैं। एक साथ झुकने तथा खड़े होने की क्रिया कई बार की जाती है। ऐसा लगता है मानो बिजली की लाखों बत्तियाँ एक साथ जल जाती हैं और एक साथ बुझ जाती हैं। यह क्रम चलता रहता है। यह दृश्य बड़ा अनोखा होता है। इस प्रकार की सामूहिक क्रियाएँ, इनका विस्तार तथा अंतहीनता हुदय को श्रद्धा, गर्व और आंतरिक आनंद से भर देती हैं। इस विलक्षण दृश्य को देखकर ऐसा लगता है कि इनमें भाईचारे की प्रबल भावना है। एकता के सूत्र ने इन सभी लोगों की आत्माओं को एक-दूसरे के साथ अभिन्न रूप से जोड़ रखा है। ये लोग एक लड़ी में पिरोए मोती के समान प्रतीत होते हैं।
विशेष :
- इस अंश में ईदगाह में नमाज़ अदा करने के दृश्य का मनोहारी चित्रण किया गया है।
- लेखक के दार्शनिक भावों की अभिव्यक्ति हुई है।
- उदाहरणों का बड़ा सार्थक प्रयोग है।
- खड़ी बोली से युक्त भाषा सरल, सहज है, जिसमें भावों की सफल अभिव्यक्ति है।
- मिश्रित शब्दावली है, जिसमें तत्सम शब्दों की प्रचुरता है।
5. हामिद खिलौनों की निंदा करता है-मिद्टी ही के तो हैं, गिरें तो चकनाचूर हो जाएँ; लेकिन ललचाई हुई आँखों से खिलौनों को देख रहा है। और चाहता है कि ज़रा देर के लिए उन्हें हाथ में ले सकता। उसके हाथ अनायास ही लपकते हैं; लेकिन लड़के इतने त्यागी नहीं होते हैं, विशेषकर जब अभी नया शौक है।
प्रसंग – प्रस्तुत गद्यांश हमारी पाठ्यपुस्तक अंतरा, भाग-1 में संकलित ‘ईदगाह’ से उद्धृत है। इसके लेखक प्रसिद्ध कथाकार मुंशी प्रेमचंद हैं।
इस अंश में लेखक ने हामिद के माध्यम से बालसुलभ इच्छाओं, चेष्टाओं और बाल-मनोविज्ञान का सुंदर वर्णन किया है।
व्याख्या-हामिद के पास कुल तीन पैसे हैं, जिन्हें वह खिलौने और मिठाइयों पर नहीं खर्च कर पाता। उसके साथी रंग-बिरंगे, सुंदर और सजीव-से खिलौने खरीदते हैं। ऐसे में हामिद खिलौनों की निंदा करता है। वह कहता है कि वे मिट्टी के ही तो हैं। ज़मीन पर गिरते ही चकनाचूर हो जाएँगे, परंतु उसमें बालसुलभ इच्छाएँ भी हैं। वह उन खिलौनों को ललचाई नज़रों से देखता है। वह चाहता है कि कुछ देर के लिए खिलौनों को अपने हाथ में लेकर देखे। उसकी आर्थिक दशा यह सब नहीं करने देती। उसके हाथ अपने-आप ही खिलौनों की तरफ बढ़ते हैं। उसके साथी इतने त्यागी नहीं हैं कि अपने खिलौने हामिद को दे दें, क्योंकि उन्होंने उन खिलौने को अभी-अभी खरीदा है। खिलौनों का शौक सभी के लिए नया है।
विशेष :
- कहानी के इस अंश में हामिद् की मनःस्थिति तथा बालसुलभ जिज्ञासा का वर्णन है।
- मुहावरों के प्रयोग से भाषा में सजीवता आ गई है।
- मिश्रित शब्दावली का बड़ा सुंदर प्रयोग हुआ है।
- साहित्यिक खड़ी बोली से युक्त भाषा सरल, सहज तथा प्रवाहमयी है।
6. विजेता को हारने वालों से जो सत्कार मिलना स्वाभाविक है, वह हामिद को भी मिला। औरों ने तीन-तीन, चार-चार आने पैसे खर्च किए, पर कोई काम की चीज़ न ले सके। हामिद ने तीन पैसे में रंग जमा लिया। सच ही तो है, खिलौनों का क्या भरोसा? टूट-फूट जाएँगे। हामिद का चिमटा तो बना रहेगा बरसों!
प्रसंग – प्रस्तुत गद्यांश हमारी पाठ्यपुस्तक अंतरा, भाग-1 में संकलित ‘ईदगाह’ से उद्धृत है। इसके लेखक प्रसिद्ध कथाकार मुंशी प्रेमचंद हैं। कहानी के इस अंश में, हामिद द्वारा तीन पैसे में ही चिमटा खरीदने तथा दूसरे बच्चों द्वारा हामिद से कई गुना अधिक पैसे खर्च करने पर भी टिकाऊ और उपयोगी वस्तु न खरीद पाने का वर्णन है।
व्याख्या – बच्चों ने ईदगाह के मेले में खिलौने खरीदे और हामिद ने चिमटा खरीदा। मेले से लौटते समय बच्चों में अपनी-अपनी चीज़ों की श्रेष्ठता को लेकर बहस होती है। अंत में, हामिद का चिमटा जीतता है। अब हामिद को सम्मान मिलना स्वाभाविक है। विजेता को हारने वालों से सत्कार मिलता है। हामिद ने जो चीज़ ली, वह उपयोगी थी। दूसरे बच्चों ने तीन-तीन, चार-चार आने में जो चीज़ें लीं, वे उपयोगी नहीं थीं। हामिद् ने तीन पैसे में अपना प्रभाव बना लिया था। सच ही है कि खिलौनों का कोई भरोसा नहीं है। वे टूट-फूट जाएँगे। हामिद का चिमटा सदा बना रहेगा।
विशेष :
- इस अंश में बच्चों द्वारा अपने-अपने खिलौने की विशेषता बताते हुए उनकी तुलना करने का स्वाभाविक वर्णन है।
- मुहावरों के सार्थक प्रयोग से भाषा आकर्षक बन गई है।
- खड़ी बोली में भावों की सफल अभिव्यक्ति हुई है।
- मिश्रित शब्दावली का सुंदर प्रयोग हुआ है।
7. बुढ़िया का क्रोध तुरंत स्नेह में बदल गया, और स्नेह भी वह नहीं, जो प्रगल्भ होता है और अपनी सारी कसक शब्दों में बिखेर देता है। यह मूक स्नेह था, खूब ठोस, रस और स्वाद से भरा हुआ। बच्चे में कितना त्याग, कितना सद्भाव और कितना विवेक है! दूसरों को खिलौने लेते और मिठाई खाते देखकर इसका मन कितना ललचाया होगा? इतना ज़ब्त इससे हुआ कैसे? वहाँ भी इसे अपनी बुढ़िया दादी की याद बनी रही।
प्रसंग – प्रस्तुत गद्यांश हमारी पाठ्यपुस्तक अंतरा, भाग-1 में संकलित ‘ईदगाह’ से उद्धृत है। इसके लेखक प्रसिद्ध कथाकार मुंशी प्रेमचंद हैं।
प्रस्तुत गद्यांश में हामिद द्वारा ईदगाह के मेले में बिना कुछ खाए-पिए, बिना खिलौने लिए अपने पैसों से चिमटा खरीद लेने पर उसकी दादी अमीना की प्रतिक्रिया का वर्णन किया गया है।
व्याख्या – हामिद को मेले में भी अपनी दादी का ध्यान रहता है। रोटी बनाते समय तवे से उनका हाथ न जले, इसके लिए वह मेले में खिलौने की जगह चिमटा खरीद लेता है। घर लौटने पर अमीना चिमटे को देखकर पहले क्रोधित हुई. परंतु हामिद के ज़वाब सुनकर वह भावुक हो उठी। उसका क्रोध गायब हो गया और वह इतनी भाव-विभोर हो गई कि उसे शब्दों की कमी होने लगी। वह उस स्नेह का प्रदर्शन आँसुओं के रूप में करने लगी। उसका स्नेह-भाव ठोस था। वह रस तथा स्वाद से भरा था। वह सोच रही थी कि इस बच्चे में त्याग की कितनी अद्भुत भावना है। यह दूसरों का भला सोचता है। इसमें अच्छे-बुरे की पहचान है। दूसरे, इसका मन भी खिलौने तथा मिठाई देखकर ललचाया होगा। यह इन भावनाओं को किस प्रकार ज़ब्त करने में सफल हुआ होगा। सबसे बड़ी और महत्वपूर्ण बात यह है कि इसे मेले के अनेक प्रकार के आकर्षणों के बीच भी अपनी दादी की याद बनी रही।
विशेष :
- प्रस्तुत गद्यांश में अमीना की मनःस्थिति का वर्णन है। हामिद का अपनी दादी के प्रति प्रेम का वर्णन है।
- खड़ी बोली में भावों की सुंदर अभिव्यक्ति हुई है।
- मिश्रित शब्दावली में तत्सम शब्दों की बहुलता है।
- भाषा सरल, सहज तथा प्रवाहमयी है।