Understanding the question and answering patterns through NCERT Class 11 Geography Question Answer in Hindi Chapter 6 मृदा will prepare you exam-ready.
Class 11 Geography Chapter 6 in Hindi Question Answer मृदा
अन्य महत्त्वपूर्ण प्रश्न
बहुविकल्पीय प्रश्न
1. भारत में मृदा सर्वेक्षण विभाग की स्थापना किस वर्ष की गई?
(अ) 1951
(ब) 1956
(स) 1966
(द) 1976
उत्तर:
(ब) 1956
2. आई. सी. ए. आर. के मृदा वर्गीकरण के अनुसार सर्वाधिक किस प्रकार की मृदा पायी जाती है?
(अ) इंसेप्टीसोल्स
(ब) एंटीसोल्स
(स) एल्फीसोल्स
(द) वर्टीसोल्स
उत्तर:
(अ) इंसेप्टीसोल्स
3. काली मृदा में किस तत्त्व की अधिकता पायी जाती है?
(अ) चूना
(ब) मैग्नीशिया
(स) ऐलुमिना
(द) उपरोक्त सभी
उत्तर:
(द) उपरोक्त सभी
4. लाल एवं पीली मृदा में किस तत्त्व की कमी पायी जाती है?
(अ) नाइट्रोजन
(ब) फॉस्फोरस
(स) ह्यूमस
(द) उपरोक्त सभी
उत्तर:
(द) उपरोक्त सभी
5. तमिलनाडु, आन्ध्रप्रदेश व केरल में काजू फसल की खेती के लिए उपयुक्त मृदा है-
(अ) लाल लैटेराइट मृदा
(ब) शुष्क मृदा
(स) काली मृदा
(द) पीली मृदा
उत्तर:
(अ) लाल लैटेराइट मृदा
6. लवण मृदा में किस तत्त्व की अधिकता पायी जाती है?
(अ) सोडियम
(ब) पोटैशियम
(स) मैग्नीशियम
(द) उपरोक्त सभी
उत्तर:
(द) उपरोक्त सभी
7. निम्न में किस स्थान पर पीटमय मृदा पायी जाती है?
(अ) उत्तराखण्ड के दक्षिण भाग
(ब) तमिलनाडु
(स) पश्चिमी बंगाल के तटीय क्षेत्र
(द) उपरोक्त सभी
उत्तर:
(द) उपरोक्त सभी
8. निम्न में से किस संस्तर की रचना ढीली जनक सामग्री से होती है-
(अ) ‘क’ संस्तर
(ब) ‘ग’ संस्तर
(स) ‘ख’ संस्तर
(द) उपर्युक्त में से कोई नहीं
उत्तर:
(ब) ‘ग’ संस्तर
9. सन् 1956 में स्थापित भारत के मृदा सर्वेक्षण विभाग ने जिस नदी घाटी को अपने सर्वेक्षण के लिए चुना, वह है-
(अ) नर्मदा नदी घाटी
(ब) कावेरी नदी घाटी
(स) दामोदर नदी घाटी
(द) गंगा नदी घाटी
उत्तर:
(स) दामोदर नदी घाटी
10. भारत में मृदाओं का वर्गीकरण निम्न में से किस देश के कृषि विभाग के मृदा वर्गीकरण पद्धति पर आधारित है-
(अ) संयुक्त राज्य अमेरिका के कृषि विभाग
(ब) कनाडा के कृषि विभाग
(द) आस्ट्रेलिया के कृषि विभाग
(स) जर्मनी के कृषि विभाग
उत्तर:
(अ) संयुक्त राज्य अमेरिका के कृषि विभाग
11. खादर और बांगर नामक दो मृदाएँ जिस मृदा वर्ग से सम्बन्धित हैं, वे हैं-
(अ) जलोढ़ मृदाएँ
(स) लाल और पीली मृदाएँ
(ब) काली मृदाएँ
(द) शुष्क मृदाएँ
उत्तर:
(अ) जलोढ़ मृदाएँ
12. निम्न में से कौनसी विशेषता जलोढ़ मृदाओं से सम्बन्धित नहीं है-
(अ) देश के कुल क्षेत्रफल के लगभग 40 प्रतिशत भाग को ढके होना
(ब) नदियों और सरिताओं के वाहित तथा निक्षेपण से निर्मित होना
(स) रंग हल्के धूसर से राख धूसर होना
(द) नमी का धीमे तरीके से अवशोषण होना सम्बन्धित नहीं है
उत्तर:
(द) नमी का धीमे तरीके से अवशोषण होना सम्बन्धित नहीं है
13. निम्न में से कौनसी विशेषता काली मृदाओं से
(अ) मृणमय, गहरी और अपारगम्य होना
(ब) गीले होने पर फूल कर चिपचिपी हो जाना
(स) सूखने पर सिकुड़ जाना
(द) उच्च तापमान और भारी वर्षा के क्षेत्रों में विकसित होना
उत्तर:
(द) उच्च तापमान और भारी वर्षा के क्षेत्रों में विकसित होना
रिक्त स्थान वाले प्रश्न-
नीचे दिए गए प्रश्नों में रिक्त स्थानों की पूर्ति कीजिए-
1. जलोढ़ मृदाएँ देश के कुल क्षेत्रफल के लगभग ____ प्रतिशत भाग को ढके हुए है। (30/40)
2. ____ प्रतिवर्ष बाढ़ों के द्वारा निक्षेपित होने वाला नया जलोढ़क है। (खादर / बांगर)
3. काली मृदाएँ ____ के अधिकतर भाग में पायी जाती हैं। (उत्तरी मैदान / दक्कन के पठार)
4. मृदा के आवरण का विनाश ____ कहलाता है। (मृदा अवकर्षण/मृदा अपरदन)
5. भारत के मृदा सर्वेक्षण विभाग की स्थापना वर्ष ____ में हुई। (1952/1956)
6. आई.सी.ए.आर. के मृदा वर्गीकरण के अनुसार भारत में सर्वाधिक ____ मृदा पायी जाती है। (इंसेप्टीसोल्स / एंटीसोल्स)
उत्तर:
1. जलोढ़ मृदाएँ देश के कुल क्षेत्रफल के लगभग 40 प्रतिशत भाग को ढके हुए है।
2. खादर प्रतिवर्ष बाढ़ों के द्वारा निक्षेपित होने वाला नया जलोढ़क है।
3. काली मृदाएँ दक्कन का पठार के अधिकतर भाग में पायी जाती हैं।
4. मृदा के आवरण का विनाश मृदा अपरदन कहलाता है।
5. भारत के मृदा सर्वेक्षण विभाग की स्थापना वर्ष 1956 में हुई।
6. आई.सी.ए.आर. के मृदा वर्गीकरण के अनुसार भारत में सर्वाधिक इंसेप्टीसोल्स मृदा पायी जाती है।
सत्य/असत्य वाले प्रश्न
नीचे दिए गए कथनों में से सत्य / असत्य कथन छाँटिए-
1. भारत में सर्वाधिक एल्फीसोल्स प्रकार की मृदा पायी जाती है।
2. मृदा शैल, मलबा और जैव सामग्री का सम्मिश्रण होता है।
3. बांगर पुराना जलोढ़क होता है जिसका जमाव बाढ़कृत मैदानों से दूर होता है।
4. काली मृदा को ‘रेगर’ तथा कपास वाली काली मिट्टी भी कहा जाता है।
5. लैटेराइट मृदा में लौह आक्साइड और पोटाश की कमी पायी जाती है।
6. शुष्क मृदा में नाइट्रोजन पर्याप्त मात्रा में पाया जाता है।
उत्तर:
1. भारत में सर्वाधिक एल्फीसोल्स प्रकार की मृदा पायी जाती है। (असत्य)
2. मृदा शैल, मलबा और जैव सामग्री का सम्मिश्रण होता है। (सत्य)
3. बांगर पुराना जलोढ़क होता है जिसका जमाव बाढ़कृत मैदानों से दूर होता है। (सत्य)
4. काली मृदा को ‘रेगर’ तथा कपास वाली काली मिट्टी भी कहा जाता है। (सत्य)
5. लैटेराइट मृदा में लौह आक्साइड और पोटाश की कमी पायी जाती है। (असत्य)
6. शुष्क मृदा में नाइट्रोजन पर्याप्त मात्रा में पाया जाता है। (असत्य)
मिलान करने वाले प्रश्न-
निम्न को सुमेलित कीजिए-
1. इंसेप्टीसोल्स | (अ) 4.28% |
2. एंटीसोल्स | (ब) 8.52% |
3. एल्फीसोल्स | (स) 13.55% |
4. वर्टीसोल्स | (द) 28.08% |
5. एरीडीसोल्स | (य) 39.74% |
उत्तर:
1. इंसेप्टीसोल्स | (य) 39.74% |
2. एंटीसोल्स | (द) 28.08% |
3. एल्फीसोल्स | (स) 13.55% |
4. वर्टीसोल्स | (ब) 8.52% |
5. एरीडीसोल्स | (अ) 4.28% |
अतिलघूत्तरात्मक प्रश्न-
प्रश्न 1.
मृदा शैल क्या है?
उत्तर:
मृदा शैल मलबा और जैव सामग्री का सम्मिश्रण होती है जो कि पृथ्वी की सतह पर विकसित होते
प्रश्न 2.
संस्तर किसे कहते हैं ?
उत्तर:
भूमि पर गड्ढा खोदने पर मृदा की तीन परतें दिखलाई देती हैं जिनको संस्तर के नाम से जाना जाता है।
प्रश्न 3.
मृदा का ‘क’ संस्तर क्या है?
उत्तर:
मृदा का ‘क’ संस्तर सबसे ऊपरी खण्ड होता है जहाँ पौधों की वृद्धि के लिए अनिवार्य जैव पदार्थों का खनिज पदार्थ, पोषक तत्वों तथा जल से संयोग होता है।
प्रश्न 4.
मृदा के प्रमुख घटकों के नाम बताइये।
उत्तर:
खनिज कण, जीवांश, जल तथा वायु मृदा के प्रमुख घटक हैं।
प्रश्न 5.
मृदा निर्माण को प्रभावित करने वाले प्रमुख कारक बताइये।
उत्तर:
उच्चावच, जनक सामग्री, जलवायु, वनस्पति तथा अन्य जीव रूप एवं समय मृदा निर्माण को प्रभावित करने वाले प्रमुख कारक हैं।
प्रश्न 6.
जलोढ़ मृदाओं का रंग कैसा होता है?
उत्तर:
जलोढ़ मृदाओं का रंग हल्के धूसर से राख धूसर जैसा होता है।
प्रश्न 7.
प्राचीनकाल में मृदा को कौनसे दो मुख्य वर्गों में विभाजित किया जाता था?
उत्तर:
प्राचीनकाल में मृदा को निम्नलिखित दो मुख्य वर्गों में विभाजित किया जाता था-
- उर्वर अर्थात् उपजाऊ मृदा तथा
- ऊसर अर्थात् अनुर्वर मृदा।
प्रश्न 8.
लैटेराइट मृदा किन क्षेत्रों में विकसित होती है?
उत्तर:
लैटेराइट मृदा उच्च तापमान तथा भारी वर्षा वाले क्षेत्रों में विकसित होती है।
प्रश्न 9.
लैटेराइट मृदा में कौन-कौनसे तत्वों की कमी होती है?
उत्तर:
लैटेराइट मृदा में जैव पदार्थ, नाइट्रोजन, फास्फोरस तथा कैल्शियम तत्वों की कमी होती है।
प्रश्न 10.
काजू की खेती के लिए कौनसी मृदा उपयुक्त होती है?
उत्तर:
लैटेराइट मृदा।
प्रश्न 11.
भारत में शुष्क मृदाएँ प्रमुख रूप से कहाँ पाई जाती हैं?
उत्तर:
भारत में शुष्क मृदाएँ प्रमुख रूप से पश्चिमी राजस्थान में पाई जाती हैं।
प्रश्न 12.
मृदा अपरदन से क्या आशय है?
उत्तर:
मृदा का आवरण विनाश मृदा अपरदन कहलाता है।
प्रश्न 13.
भारत में लैटेराइट मृदाएँ कहाँ पाई जाती हैं?
उत्तर:
भारत में लैटेराइट मृदाएँ प्रमुख रूप से कर्नाटक, केरल, तमिलनाडु, मध्य प्रदेश, ओडिशा राज्यों व असम के पहाड़ी क्षेत्रों में पाई जाती हैं।
प्रश्न 14.
लवण मृदाओं में कौन-कौनसे लवण पर्याप्त मात्रा में पाए जाते हैं?
उत्तर:
लवण मृदाओं में सोडियम, पोटैशियम तथा मैग्नीशियम आदि पर्याप्त मात्रा में पाए जाते हैं।
प्रश्न 15.
जलोढ़ मृदाएँ कहाँ पाई जाती हैं? ये देश के कुल क्षेत्रफल के कितने भाग पर विस्तृत हैं?
उत्तर:
जलोढ़ मृदाएँ उत्तरी मैदान और नदी घाटियों के विस्तृत भागों में पाई जाती हैं। ये मृदाएँ देश के कुल क्षेत्रफल के लगभग 40 प्रतिशत भाग पर विस्तृत हैं।
प्रश्न 16.
भारत में जलोढ़ मृदाओं के क्षेत्र बताइए।
उत्तर:
भारत में जलोढ़ मृदाएँ राजस्थान के एक संकीर्ण गलियारे से होती हुई गुजरात के मैदान तक फैली हुई हैं।
प्रश्न 17.
काली मृदाओं में मिलने वाले रासायनिक तत्व बताइये।
उत्तर:
रासायनिक दृष्टि से काली मृदाओं में चूने, लौह, मैग्नीशिया और ऐलुमिना के तत्व अधिक मात्रा में पाए जाते हैं।
प्रश्न 18.
भारत में लाल और पीली मृदाएँ कहाँ पाई जाती हैं?
उत्तर:
पीली और लाल मृदाएँ ओडिशा तथा छत्तीसगढ़ के कुछ भागों तथा मध्य गंगा के मैदान के दक्षिणी भागों में पाई जाती हैं।
प्रश्न 19.
लैटेराइट का अर्थ बताइये। लैटेराइट मृदाएँ किन क्षेत्रों में विकसित होती हैं?
उत्तर:
लैटेराइट लैटिन शब्द ‘लेटर’ से बना है जिसका शाब्दिक अर्थ ईंट होता है। लैटेराइट मृदाएँ उच्च तापमान और भारी वर्षा के क्षेत्रों में विकसित होती हैं।
प्रश्न 20.
शुष्क मृदाओं में नमी और ह्यूमस की मात्रा कम क्यों होती है?
उत्तर:
शुष्क जलवायु, उच्च तापमान और तीव्र गति से होने वाले वाष्पीकरण के फलस्वरूप शुष्क मृदाओं में नमी और ह्यूमस कम होती है।
प्रश्न 21.
भारत में पीटमय मृदाएँ कहाँ पाई जाती हैं?
उत्तर:
भारत में पीटमय मृदाएँ अधिकांश बिहार के उत्तरी भाग, उत्तराखण्ड के दक्षिणी भाग, पश्चिमी बंगाल के तटीय क्षेत्रों, ओडिशा और तमिलनाडु में पाई जाती हैं।
प्रश्न 22.
भारत में लवण मृदाओं के प्रमुख क्षेत्र बताइये।
उत्तर:
भारत में पश्चिमी गुजरात, पश्चिमी बंगाल के सुन्दरबन क्षेत्र तथा पूर्वी तट के डेल्टाई भाग लवण मृदाओं के प्रमुख क्षेत्र हैं।
प्रश्न 23.
मृदा अपरदन के दो शक्तिशाली कारकों के नाम दीजिये।
उत्तर:
- पवन
- जल।
प्रश्न 24.
मृदा अपरदन के दो रूप बताइये।
उत्तर:
- परत अपरदन
- अवनालिका अपरदन।
प्रश्न 25.
बीहड़ से क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
नदी द्रोणियों तथा पहाड़ी ढालों पर अत्यधिक अवनालिका अपरदन से कृषि भूमि जब छोटे-छोटे टुकड़ों में विभाजित हो जाती है, उसे बीहड़ कहते हैं।
प्रश्न 26.
पश्चिमी राजस्थान में बालू के टीलों के स्थिरीकरण के क्षेत्र में कौनसा संस्थान कार्यरत है?
उत्तर:
केन्द्रीय शुष्क भूमि अनुसंधान संस्थान अथवा काजरी (जोधपुर)।
लघूत्तरात्मक प्रश्न
प्रश्न 1.
मृदा अपरदन के लिए उत्तरदायी मानवीय गतिविधियों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
मृदा अपरदन के लिए मानवीय गतिविधियाँ काफी सीमा तक उत्तरदायी हैं। जनसंख्या बढ़ने के साथ भूमि की माँग भी बढ़ने लगी है। मानव बस्तियों, कृषि, पशुचारण तथा अन्य आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए वन तथा अन्य प्राकृतिक वनस्पति को साफ कर दिया जाता है।
प्रश्न 2.
मृदा संरक्षण से क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
मृदा संरक्षण एक विधि है जिसमें मिट्टी की उर्वरता बनाए रखी जाती है, मिट्टी के अपरदन और क्षय को रोका जाता है तथा मिट्टी की निम्नीकृत दशाओं को सुधारा जाता है।
प्रश्न 3.
मृदा के अपरदन को कम करने के उपाय बताइये।
उत्तर:
समोच्च रेखा के अनुसार मेड़बन्दी, समोच्च रेखीय सीढ़ीदार खेत बनाना, नियमित वानिकी, नियंत्रित चराई, आवरण फसलें उगाना, मिश्रित खेती तथा फसलों का हेर-फेर से बोना आदि प्रमुख उपाय हैं जिनसे मृदा के अपरदन को कम किया जा सकता है।
प्रश्न 4.
16वीं शताब्दी में मृदा का वर्गीकरण किन आधारों पर किया जाता था?
उत्तर:
16वीं शताब्दी में मृदा का वर्गीकरण उनकी सहज विशेषताओं तथा बाह्य लक्षण यथा गठन, रंग, भूमि का ढाल और मिट्टी में नमी की मात्रा के आधार पर किया जाता था। गठन के आधार पर मिट्टियों के प्रमुख प्रकार बलुई, मृणमय, पांशु तथा दुमट आदि थे जबकि रंग के आधार पर मिट्टियाँ लाल, पीली व काली आदि थीं।
प्रश्न 5.
मृदा अपरदन से क्या आशय है?
उत्तर:
जल तथा वायु जैसे प्राकृतिक कारकों तथा मानवीय व जन्तुओं के हस्तक्षेप से मिट्टी की ऊपरी परत का हट जाना मृदा अपरदन कहलाता है। वायु द्वारा मृदा अपरदन शुष्क तथा अर्द्ध शुष्क प्रदेशों में अधिक होता है जबकि भारी वर्षा व खड़े ढालों वाले प्रदेशों में प्रवाहित जल द्वारा किया गया अपरदन सबसे अधिक होता है।
प्रश्न 6.
भारत में काली मृदा कौनसे क्षेत्र में पाई जाती है?
उत्तर:
भारत में काली मृदा दक्कन के पठार के अधिकतर भाग में पाई जाती है। इसमें महाराष्ट्र के कुछ क्षेत्र, गुजरात, आंध्रप्रदेश तथा तमिलनाडु के कुछ भाग शामिल हैं। गोदावरी और कृष्णा नदियों के ऊपरी भागों और दक्कन के पठार के उत्तरी-पश्चिमी भाग में गहरी काली मृदा पाई जाती है।
प्रश्न 7.
मृदा एक मूल्यवान संसाधन है। स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
मृदा भू-पर्पटी की सबसे महत्त्वपूर्ण परत है। यह एक मूल्यवान संसाधन है। मानव का अधिकतर भोजन और वस्त्र मिट्टी में उगने वाली भूमि आधारित फसलों से प्राप्त होता है। मानव की दैनिक आवश्यकताओं की पूर्ति मिट्टी से की जाती है। इसका निर्माण हजारों वर्षों में होता है। अपक्षय के विभिन्न कारक जनक सामग्री का कार्य करके मृदा की एक पतली परत का निर्माण करते हैं। मृदा निर्माण को प्रभावित करने वाले प्रमुख कारक उच्चावच, जनक सामग्री, जलवायु, वनस्पति तथा अन्य जीव रूप एवं समय हैं। इसके अलावा मानवीय क्रियाएँ भी पर्याप्त सीमा तक इसे प्रभावित करती हैं।
प्रश्न 8.
मृदा परिच्छेदिका से क्या अभिप्राय है? स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
मृदा परिच्छेदिका:
भूमि पर गड्ढा खोदने पर ज्ञात होता है कि वहाँ तीन परतें दिखलाई देती हैं जिनको संस्तर कहा जाता है। ये निम्न प्रकार हैं-
- ‘क’ संस्तर : मृदा का सबसे ऊपरी भाग ‘क’ संस्तर होता है जहाँ पौधों की वृद्धि के लिए आवश्यक जैव पदार्थों का खनिज पदार्थ, पोषक तत्वों तथा जल से संयोग होता है।
- ‘ख’ संस्तर : ‘क’ संस्तर तथा ‘ग’ संस्तर के मध्य संक्रमण क्षेत्र ‘ख’ संस्तर होता है जिसे नीचे व ऊपर दोनों से खनिज पदार्थ प्राप्त होते हैं। इसमें कुछ जैव पदार्थ होते हैं फिर भी खनिज पदार्थों का अपक्षय स्पष्ट रूप से दिखलाई देता है।
- ‘ग’ संस्तर : ‘ग’ संस्तर की रचना ढीली जनक सामग्री से होती है। यह परत मृदा निर्माण की प्रक्रिया में प्रथम अवस्था होती है और अन्ततः ऊपर की दो परतें इसी से निर्मित होती हैं। परतों की इस व्यवस्था को मृदा परिच्छेदिका के नाम से जाना जाता है।
प्रश्न 9.
मृदा अपरदन के प्रमुख कारणों का उल्लेख कीजिये।
उत्तर:
मृदा अपरदन के प्रमुख कारण निम्नलिखित हैं:
- भारी एवं तीव्र वर्षा से धरातल की ऊपरी परत शीघ्रता से अपरदित हो जाती है।
- भूमि का तीव्र ढाल मृदा अपरदन की गति को तीव्र करता है।
- वनोन्मूलन के कारण वनस्पति विहीन क्षेत्रों में मृदा की अपरदनात्मक शक्तियाँ तीव्र गति से सक्रिय हो जाती हैं।
- अनियंत्रित पशुचारण मृदा अपरदन का प्रमुख कारण है।
- अनियंत्रित व अनियमित जुताई तथा स्थानान्तरणशील कृषि मृदा अपरदन को बढ़ावा देते हैं।
प्रश्न 10.
स्वतंत्रता प्राप्ति के उपरान्त भारत में मृदा वर्गीकरण के लिए किए प्रयासों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
भारत में स्वतंत्रता प्राप्ति के उपरान्त अनेक संस्थानों के द्वारा मृदा के वैज्ञानिक सर्वेक्षण किए गए। सन् 1956 में स्थापित भारत के मृदा सर्वेक्षण विभाग ने दामोदर घाटी जैसे चुने हुए क्षेत्रों में मृदाओं के व्यापक अध्ययन किये। भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद के तत्वावधान में राष्ट्रीय मृदा सर्वेक्षण एवं भूमि नियोजन ब्यूरो ने भारत की मृदाओं पर अनेक प्रकार से अध्ययन किए। मृदा के अध्ययन तथा अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर इसे तुलनात्मक बनाने के प्रयासों के अन्तर्गत भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद ने भारतीय मृदाओं को उनकी प्रकृति और उनके गुणों के आधार पर वर्गीकृत किया है। यह वर्गीकरण संयुक्त राज्य अमेरिका के कृषि विभाग की मृदा वर्गीकरण पद्धति पर आधारित है।
प्रश्न 11.
अवनालिका अपरदन को रोकने के लिए अपनाये जाने वाले प्रयासों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
अवनालिका अपरदन को रोकने के लिए अंगुल्याकार अवनालिकाओं को सीढ़ीदार खेत बनाकर समाप्त किया जा सकता है। बड़ी अवनालिकाओं में जल की अपरदनात्मक तीव्रता को कम करने के लिए रोक बाँधों की एक श्रृंखला बनानी चाहिए। अवनालिकाओं के शीर्ष की तरफ फैलाव को नियंत्रित करने पर विशेष जोर दिया जाना चाहिए। यह कार्य अवनालिकाओं को बन्द करके, सीढ़ीदार खेत बनाकर अथवा आवरण वनस्पति का रोपण करके किया जा सकता है।
प्रश्न 12.
स्पष्ट कीजिए कि मृदा संरक्षण का सर्वोत्तम उपाय भूमि उपयोग की समुचित योजनाएँ ही हैं।
उत्तर:
भारत सरकार के द्वारा स्थापित केन्द्रीय मृदा संरक्षण बोर्ड ने देश के विभिन्न भागों में मृदा संरक्षण के लिए अनेक योजनाएँ बनाई हैं। ये योजनाएँ जलवायु की दशाओं, भूमि संरूपण तथा लोगों के सामाजिक व्यवहार पर आधारित हैं। ये योजनाएँ भी एक-दूसरे से तालमेल बनाए बिना ही चलाई गई हैं। भूमि का उसकी क्षमता के अनुसार ही वर्गीकरण होना चाहिए। भूमि उपयोग के मानचित्र बनाए जाने चाहिए और भूमि का सर्वथा सही उपयोग किया जाना चाहिए। मृदा संरक्षण का निर्णायक दायित्व उन लोगों पर है जो कि उसका उपयोग करते हैं और उससे लाभ उठाते हैं। अतः स्पष्ट है कि मृदा संरक्षण का सर्वोत्तम उपाय भूमि उपयोग की समुचित योजनाएँ ही हैं।
प्रश्न 13.
भारत में मृदा लवणता की समस्या का वर्णन कीजिये।
उत्तर:
मृदा लवणता:
भारत में सिंचित क्षेत्रों में कृषि योग्य भूमि का एक बड़ा भाग अधिक सिंचाई के प्रभाव से लवणीय होता जा रहा है। मृदा के निचले संस्तरों में जमा हुआ नमक या लवण होता है। शुष्क जलवायु वाली दशाओं में अत्यधिक सिंचाई केशिका क्रिया में वृद्धि करती है। इसके फलस्वरूप नमक ऊपर की तरफ आकर मृदा की सबसे ऊपरी परत में जमा हो जाता है जिससे मिट्टी की उर्वरता नष्ट होने लगती है। पंजाब, हरियाणा तथा राजस्थान के श्रीगंगानगर व हनुमानगढ़ जिले मृदा लवणता की समस्या से ग्रसित क्षेत्र हैं।
प्रश्न 14.
मृदा संरक्षण के तीन प्रमुख उपाय बताइये।
उत्तर:
मृदा संरक्षण के तीन प्रमुख उपाय निम्नलिखित हैं-
- 15 से 25 प्रतिशत ढाल प्रवणता वाली भूमि का उपयोग सीढ़ीनुमा खेत बनाकर किया जाना चाहिए।
- स्थानान्तरित कृषि तथा अनियंत्रित पशुचारण वाले क्षेत्रों में इन क्रियाकलापों पर प्रतिबन्ध लगाना चाहिए।
- समोच्च रेखा के अनुसार मेड़बन्दी, नियमित वानिकी, आवरण फसलें उगाना, मिश्रित खेती तथा शस्यावर्तन आदि मृदा संरक्षण के प्रमुख उपाय हैं।
प्रश्न 15.
भारत के सिंचित क्षेत्रों में सिंचाई के फलस्वरूप उत्पन्न समस्या का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
भारत के सिंचित क्षेत्रों में कृषि योग्य भूमि का काफी बड़ा भाग अत्यधिक सिंचाई के प्रभाव से लवणीय होता जा रहा है। मृदा के निचले संस्तरों में जमा हुआ नमक धरातल के ऊपर आकर उर्वरता को नष्ट कर देता है। रासायनिक उर्वरक भी मृदा के लिए हानिकारक हैं। जब तक मृदा को पर्याप्त ह्यूमस नहीं मिलता, रसायन इसे कठोर बना देते हैं तथा लम्बी अवधि में इसकी उर्वरता कम हो जाती है। यह समस्या नदी घाटी परियोजनाओं के उन सभी समादेशी क्षेत्रों यथा कमाण्ड एरिया में अधिक है जो कि हरित क्रान्ति के प्रारम्भिक लाभ से लाभान्वित थे। एक अनुमान के अनुसार भारत की कुल भूमि का लगभग आधा भाग किसी न किसी मात्रा में अवकर्षण से प्रभावित है।
प्रश्न 16.
वन मृदाओं का निर्माण किस प्रकार होता है? बताइये।
उत्तर:
वन मृदाएँ वन मृदाएँ पर्याप्त वर्षा वाले वन क्षेत्रों में ही निर्मित होती हैं। इन मृदाओं का निर्माण पर्वतीय पर्यावरण में होता है। इस पर्यावरण में परिवर्तन के अनुसार मृदाओं का गठन और संरचना परिवर्तित होती रहती है। घाटियों में ये दुमटी और पांशु होती हैं तथा ऊपरी ढालों पर ये मोटे कणों वाली होती हैं। हिमालय के बर्फ के ढके क्षेत्रों में इन मृदाओं का अनाच्छादन होता रहता है और ये अम्लीय और कम ह्यूमस वाली होती हैं निचली घाटियों में मिलने वाली मृदाएँ उपजाऊ होती हैं।
प्रश्न 17.
पीटमय मृदाएँ क्या होती हैं? इनके क्षेत्र बताइए।
उत्तर:
पीटमय मृदाएँ :
पीटमय मृदाएँ भारी वर्षा और उच्च आर्द्रता से युक्त उन क्षेत्रों में पायी जाती हैं जहाँ वनस्पति की वृद्धिं अच्छी प्रकार से होती है। अतः इन क्षेत्रों में मृत जैव पदार्थ बड़ी मात्रा में एकत्रित हो जाते हैं जो कि मृदा को ह्यूमस और पर्याप्त मात्रा में जैव तत्व प्रदान करते हैं। इन मृदाओं में जैव पदार्थों की मात्रा 40 से 50 प्रतिशत तक होती है। ये मृदाएँ सामान्य रूप से गाढ़े और काले रंग की होती हैं। अनेक स्थानों पर ये क्षारीय भी हैं। क्षेत्र – भारत में पीटमय मृदाएँ अधिकांश बिहार के उत्तरी भाग, उत्तराखण्ड के दक्षिणी भाग, पश्चिमी बंगाल के तटीय क्षेत्रों, ओडिशा और तमिलनाडु में पायी जाती हैं।
प्रश्न 18.
काली मिट्टी कपास की खेती के लिए उपयुक्त क्यों होती है? बताइये।
उत्तर:
काली मिट्टी कपास की खेती के लिए निम्नलिखित कारणों से उपयुक्त होती है-
- काली मिट्टी को कपास की मिट्टी या ‘रेगर’ मिट्टी कहा जाता है क्योंकि इसमें कपास की खेती विस्तृत पैमाने पर की जाती है।
- क़पास के पौधों की वृद्धि के लिए लोहा, चूना, मैग्नेशियम तथा उपजाऊ जीवांशों वाली मिट्टी की आवश्यकता होती है। काली मिट्टी उक्त आवश्यकताओं को पूरा करती है।
- कपास के पौधों को हल्की नमी की आवश्यकता होती है लेकिन पौधों की जड़ों में पानी नहीं रुकना चाहिए अन्यथा वे सड़ जाते हैं। काली मिट्टी में ये सभी विशेषताएँ पाई जाती हैं।
- काली मिट्टी में पोटाश और चूनायुक्त कार्बोनेट की अधिकता होती है। अतः इसमें कपास के पौधे शीघ्र ही विकसित हो जाते हैं।
प्रश्न 19.
शुष्क मृदाओं का संक्षेप में वर्णन कीजिए।
उत्तर:
शुष्क मृदाएँ:
शुष्क मृदाएँ संरचनात्मक रूप से बलुई और प्रकृति से लवणीय होती हैं। कुछ क्षेत्रों की मृदाओं में नमक की मात्रा इतनी अधिक होती है कि इनके पानी को वाष्पीकृत करके नमक प्राप्त किया जाता है। शुष्क जलवायु, उच्च तापमान और तीव्र गति से वाष्पीकरण के कारण इन मृदाओं में नमी और ह्यूमस कम होते हैं। नीचे की तरफ चूने की मात्रा के बढ़ते जाने के कारण निचले संस्तरों में कंकड़ों की परतें पाई जाती हैं। इसी कारण सिंचाई किए जाने पर इन मृदाओं में पौधों की लगातार वृद्धि के लिए नमी सदा उपलब्ध रहती है। ये मृदाएँ अनुपजाऊ होती हैं क्योंकि इनमें ह्यूमस और जैव पदार्थ कम मात्रा में पाए जाते हैं।
प्रश्न 20.
लाल और पीली मृदाओं का संक्षेप में वर्णन कीजिये।
उत्तर:
लाल और पीली मृदायें:
भारत में लाल मृदा का विकास दक्कन के पठार के पूर्वी तथा दक्षिणी भाग में कम वर्षा वाले उन क्षेत्रों में हुआ है जहाँ रवेदार आग्नेय चट्टानें पाई जाती हैं। पश्चिमी घाट के गिरिपद क्षेत्र की एक लम्बी पट्टी में लाल दुमटी मृदा पाई जाती है। पीली और लाल मृदाएँ उड़ीसा तथा छत्तीसगढ़ के कुछ भागों और मध्य गंगा के मैदान के दक्षिणी भागों में पाई जाती हैं। इस मृदा का लाल रंग रवेदार तथा कायान्तरित चट्टानों में लोहे के व्यापक विसरण के कारण होता है। जलयोजित होने के कारण यह पीली दिखाई पड़ती है।
निबन्धात्मक प्रश्न
प्रश्न 1.
उत्पत्ति, रंग, संयोजन तथा अवस्थिति के आधार पर भारत की मिट्टियों का वर्गीकरण प्रस्तुत कीजिये।
अथवा
भारत की मिट्टियों को वर्गीकृत कर उनका विस्तार से वर्णन कीजिए।
उत्तर:
भारत की मिट्टियों का वर्गीकरण
उत्पत्ति, रंग, संयोजन तथा अवस्थिति के आधार पर भारत की मिट्टियों को निम्नलिखित प्रकारों में वर्गीकृत किया गया है–
1. जलोढ़ मृदाएँ:
विस्तार:
भारत में जलोढ़ मृदाएँ उत्तरी मैदान और नदी घाटियों के विस्तृत भागों में पाई जाती हैं। ये मृदाएँ देश के कुल क्षेत्रफल के लगभग 40 प्रतिशत भाग को घेरे हुए हैं। ये निक्षेपण मृदाएँ हैं जिनको नदियों और सरिताओं ने वाहित तथा निक्षेपित किया है। राजस्थान के एक संकीर्ण गलियारे से होती हुई ये मृदाएँ गुजरात के मैदान में विस्तृत हैं। प्रायद्वीपीय प्रदेश में ये पूर्वी तट की नदियों के डेल्टाओं और नदियों की घाटियों में पाई जाती हैं।
संरचना:
जलोढ़ मृदाएँ गठन में बलुई दुमट से चिकनी मिट्टी की प्रकृति की पाई जाती हैं। सामान्य रूप से इनमें पोटाश की मात्रा अधिक और फॉस्फोरस की मात्रा कम होती है। गंगा के ऊपरी तथा मध्यवर्ती मैदान में ‘खादर’ और ‘बांगर’ नाम की दो भिन्न प्रकार की मृदाएँ विकसित हुई हैं। खादर प्रतिवर्ष बाढ़ों के द्वारा निक्षेपित होने वाला नया जलोढ़क है जो कि महीन गाद होने के कारण मृदा के उपजाऊपन में वृद्धि कर देता है। बांगर पुराना जलोढ़क होता है जिसका जमाव बाढ़कृत मैदानों से दूर होता है। जलोढ़ मृदाओं पर गहन कृषि की जाती है।
2. काली मृदाएँ:
विस्तार:
काली मृदाएँ दक्कन के पठार के अधिकतर भाग पर पाई जाती हैं। इसमें महाराष्ट्र के कुछ भाग, गुजरात, आंध्र प्रदेश तथा तमिलनाडु के कुछ भाग शामिल हैं। इन मृदाओं को रेगर तथा कपास वाली काली मिट्टी के नाम से जाना जाता है।
संरचना एवं विशेषताएँ:
रासायनिक दृष्टि से काली मृदाओं में चूने, लौह, मैग्नीशिया तथा ऐलुमिना के तत्व. काफी मात्रा में पाए जाते हैं। इनमें पोटाश की मात्रा भी पाई जाती है। मुख्य रूप से काली मृदाएँ मृणमय, गहरी और अपारगम्य होती हैं। ये मृदाएँ गीली होने पर फूल जाती हैं और चिपचिपी हो जाती हैं। सूखने पर ये सिकुड़ जाती हैं। इस प्रकार शुष्क ऋतु में इन मृदाओं में चौड़ी दरारें पड़ जाती हैं।
3. लाल और पीली मृदाएँ:
विस्तार:
पीली और लाल मृदाएँ ओडिशा तथा छत्तीसगढ़ के कुछ भागों तथा मध्य गंगा के मैदान के दक्षिणी भागों में पाई जाती हैं।
संरचना:
लाल मृदा का लाल रंग रवेदार तथा कायान्तरित चट्टानों में लोहे के व्यापक विसरण के कारण होता है। जलयोजित होने के कारण यह पीली दिखलाई देती है। महीन कणों वाली लाल और पीली मृदाएँ सामान्य रूप से उपजाऊ होती हैं।
4. लैटेराइट मृदाएँ:
विस्तार:
लैटेराइट लैटिन भाषा के शब्द लेटर से बना है जिसका शाब्दिक अर्थ ईंट होता है। लैटेराइट मृदाएँ. उच्च तापमान और भारी वर्षा के क्षेत्रों में विकसित होती हैं। लैटेराइट मृदाएँ सामान्य रूप से कर्नाटक, केरल, तमिलनाडु, मध्य प्रदेश तथा ओडिशा और असम के पहाड़ी क्षेत्रों में पाई जाती हैं।
संरचना:
लैटेराइट मृदाओं में जैव पदार्थ, नाइट्रोजन, फॉस्फेट और कैल्सियम की कमी होती है तथा लौह- ऑक्साइड और पोटाश की अधिकता होती है। इसके फलस्वरूप लैटेराइट मृदाएँ कृषि के लिए अनुपयोगी हैं। तमिलनाडु,
आंध्र प्रदेश और केरल के काजू जैसे वृक्षों वाली फसलों की खेती के लिए लाल लैटेराइट मृदाएँ अधिक उपयुक्त हैं।
5. शुष्क मृदाएँ:
विस्तार:
शुष्क मृदाएँ विशिष्ट शुष्क स्थलाकृति वाले पश्चिमी राजस्थान में पाई जाती हैं। ये अनुपजाऊ मृदाएँ हैं क्योंकि इनमें ह्यूमस और जैव पदार्थ कम मात्रा में पाए जाते हैं।
संरचना:
शुष्क मृदाओं का रंग लाल से लेकर किशमिशी तक होता है। ये सामान्य रूप से संरचना से बलुई और प्रकृति से लवणीय होती हैं। कुछ क्षेत्रों की मृदाओं में नमक की मात्रा इतनी अधिक होती है कि इनके जल को वाष्पीकृत करके नमक प्राप्त किया जाता है। शुष्क जलवायु, उच्च तापमान और तीव्र गति से वाष्पीकरण के कारण इन मृदाओं में नमी और ह्यूमस कम होते हैं। इनमें नाइट्रोजन अपर्याप्त और फॉस्फेट सामान्य मात्रा में होती है।
6. लवण मृदाएँ:
विस्तार:
लवण मृदाएँ शुष्क, अर्द्ध शुष्क तथा जलाक्रान्त क्षेत्रों और अनूपों में पाई जाती हैं। लवण मृदाओं का अधिकतर प्रसार पश्चिमी गुजरात, पूर्वी तट के डेल्टाओं और पश्चिमी बंगाल के सुन्दरवन क्षेत्रों में है। अत्यधिक सिंचाई वाले गहन कृषि के क्षेत्रों में विशेष रूप से हरित क्रान्ति वाले क्षेत्रों में उपजाऊ जलोढ़ मृदाएँ भी लवणीय होती जा रही हैं। शुष्क जलवायु वाले क्षेत्रों में अत्यधिक सिंचाई केशिका क्रिया को बढ़ावा देती है।
संरचना :
लवण मृदाओं को ऊसर मृदाएँ भी कहते हैं। इन मृदाओं में सोडियम, पोटेशियम तथा मैग्नीशियम का अनुपात अधिक होता है। अतः ये अनुपजाऊ होती हैं। मुख्य रूप से शुष्क जलवायु और खराब अपवाह के कारण इनमें लवणों की मात्रा बढ़ती जाती है।
7. पीटमय मृदाएँ:
विस्तार: पीटमय मृदाएँ भारत में बिहार के उत्तरी भाग, उत्तराखण्ड के दक्षिणी भाग, पश्चिमी बंगाल के तटीय क्षेत्रों, ओडिशा तथा तमिलनाडु में पाई जाती हैं।
संरचना : पीटमय मृदाएँ भारी वर्षा और उच्च आर्द्रता से युक्त उन क्षेत्रों में पाई जाती हैं जहाँ वनस्पति की वृद्धि अच्छी प्रकार से होती है। अतः इन क्षेत्रों में मृत जैव पदार्थ बड़ी मात्रा में एकत्रित हो जाते हैं जो कि मृदा को ह्यूमस और पर्याप्त मात्रा में जैव तत्व प्रदान करते हैं।
8. वन मृदाएँ:
विस्तार:
वन मृदाएँ पर्याप्त वर्षा वाले वन क्षेत्रों में ही निर्मित होती हैं। इन मृदाओं का निर्माण पर्वतीय पर्यावरण में होता है।
संरचना:
पर्यावरण में परिवर्तन के अनुसार मृदाओं का गठन और संरचना भी परिवर्तित होती रहती है। घाटियों में ये दुमटी और पांशु होती हैं तथा ऊपरी ढालों पर ये मोटे कणों वाली होती हैं। हिमालय के बर्फ से ढके क्षेत्रों में इन मृदाओं का अनाच्छादन होता रहता है और ये अम्लीय तथा कम ह्यूमस वाली होती हैं। निचली घाटियों में पाई जाने वाली मृदाएँ उपजाऊ होती हैं।
प्रश्न 2.
मृदा अपरदन से क्या अभिप्राय है? मृदा अपरदन के प्रमुख कारणों का उल्लेख कीजिए।
अथवा
मृदा अपरदन किसे कहते हैं? मृदा अपरदन के दो रूपों को बताते हुए मृदा अपरदन के लिए उत्तरदायी कारकों को बताइये।
उत्तर:
मृदा अपरदन: मृदा के आवरण का विनाश मृदा अपरदन के नाम से जाना जाता है। प्रवाहित जल और पवनों की अपरदनात्मक प्रक्रियाएँ तथा मृदा निर्माणकारी प्रक्रियाएँ साथ-साथ घटित होती हैं। सामान्य रूप से इन दोनों प्रक्रियाओं में एक सन्तुलन बना रहता है। धरातल से सूक्ष्म कणों के हटने की दर वही होती है जो कि मिट्टी की परत में कणों के जुड़ने की होती है। अनेक बार प्राकृतिक अथवा मानवीय कारकों से यह सन्तुलन बिगड़ जाता है जिससे मृदा अपरदन की दर बढ़ जाती है।
मृदा अपरदन के कारण: मृदा अपरदन के लिए उत्तरदायी प्रमुख कारण निम्नलिखित हैं-
(1) मानवीय गतिविधियाँ:
मृदा अपरदन के लिए मानवीय गतिविधियाँ काफी सीमा तक उत्तरदायी हैं। जनसंख्या बढ़ने के साथ भूमि की माँग में वृद्धि होने लगती है। मानव बस्तियों, कृषि, पशुचारण तथा अन्य आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए वन तथा अन्य प्राकृतिक वनस्पति को साफ कर दिया जाता है।
(2) पवन एवं जल:
मृदा को हटाने और उसका परिवहन करने के गुण के कारण पवन और जल मृदा अपरदन के दो शक्तिशाली कारक हैं। पवन द्वारा अपरदन शुष्क और अर्द्ध शुष्क प्रदेशों में महत्त्वपूर्ण होता है। भारी वर्षा और खड़े ढालों वाले प्रदेशों में प्रवाहित जल के द्वारा किया गया अपरदन अधिक महत्त्वपूर्ण होता है। जल ‘अपरदन अपेक्षाकृत अधिक गम्भीर है और यह भारत के विस्तृत क्षेत्रों में हो रहा है। जल द्वारा मृदा अपरदन निम्नलिखित दो रूपों में होता है-
- परत अपरदन :
परत अपरदन समतल भूमियों पर मूसलाधार वर्षा के बाद होता है तथा इसमें मृदा का हटना आसानी से दिखलाई भी नहीं देता है किन्तु यह अधिक हानिकारक है क्योंकि इससे मिट्टी की सूक्ष्म और अधिक उपजाऊ ऊपरी परत हट जाती है। - अवनालिका अपरदन :
अवनालिका अपरदन सामान्यतः तीव्र ढालों पर होता है। वर्षा से गहरी हुई अवनालिकाएँ कृषि भूमियों को छोटे-छोटे टुकड़ों में खण्डित कर देती है जिससे वे कृषि के लिए अनुपयुक्त हो जाती हैं। जिस प्रदेश में अवनालिकाएँ अथवा बीहड़ अधिक संख्या में होते हैं, उसे उत्खात भूमि स्थलाकृति कहा जाता है। चम्बल नदी की द्रोणी में बीहड़ बहुत विस्तृत है। इसके अलावा ये तमिलनाडु और पश्चिमी बंगाल में भी पाए जाते हैं। देश की लगभग 8000 हैक्टेयर भूमि प्रतिवर्ष बीहड़ में परिवर्तित हो जाती है।
(3) वनोन्मूलन:
वनोन्मूलन मृदा अपरदन के प्रमुख कारणों में से एक है। पौधों की जड़ें मृदा को बाँधे रखकर अपरदन को रोकती हैं। पत्तियाँ और टहनियाँ गिराकर वे मृदा में ह्यूमस की मात्रा में वृद्धि करते हैं । वास्तव में सम्पूर्ण भारत में वनों का विनाश हुआ है लेकिन मृदा अपरदन पर उनका प्रभाव देश के पठारी भागों में अधिक हुआ है।
(4) अत्यधिक सिंचाई:
भारत के सिंचित क्षेत्रों में कृषि योग्य भूमि का काफी बड़ा भाग अत्यधिक सिंचाई के प्रभाव से लवणीय होता जा रहा है। मृदा के निचले संस्तरों में जमा हुआ नमक धरातल के ऊपर आकर उर्वरता को नष्ट कर देता है। रासायनिक उर्वरक भी मृदा के लिए हानिकारक है। जब तक मृदा को पर्याप्त ह्यूमस नहीं मिलता रसायन इसे कठोर बना देते हैं तथा लम्बी अवधि में इसकी उर्वरता कम हो जाती है। यह समस्या नदी घाटी परियोजनाओं के उन सभी समादेशी क्षेत्रों में अधिक है जो कि हरित क्रान्ति के शुरुआती लाभ के भोगी थे एक अनुमान के अनुसार भारत की कुल भूमि का लगभग 50 प्रतिशत भाग किसी न किसी मात्रा में अवकर्षण से प्रभावित है।