Well-organized Class 11 Geography Notes in Hindi and Class 11 Geography Chapter 1 Notes in Hindi भू-आकृतिक प्रक्रियाएँ can aid in exam preparation and quick revision.
Geography Class 11 Chapter 1 Notes in Hindi भू-आकृतिक प्रक्रियाएँ
→ बहिर्जनिक एवं अन्तर्जनित बल :
धरातल पृथ्वी मण्डल के अन्तर्गत उत्पन्न हुए बाह्य बलों एवं पृथ्वी के अन्दर उद्भूत आन्तरिक बलों से अनवरत प्रभावित होता है तथा यह हमेशा परिवर्तनशील है। बाह्य बलों को बहिर्जनिक बल तथा आन्तरिक बलों को अन्तर्जनित बल कहते हैं। उभरी हुई भू-आकृतियों का विघर्षण तथा बेसिन, निम्न क्षेत्रों व गर्तों का भराव बहिर्जनिक बलों की क्रियाओं का परिणाम होता है। अन्तर्जनित शक्तियाँ लगातार धरातल के भागों को ऊपर उठाती हैं या उनका निर्माण करती हैं।
→ भू-आकृतिक प्रक्रियाएँ :
धरातल के पदार्थों पर अन्तर्जनित एवं बहिर्जनिक बलों के द्वारा भौतिक दबाव तथा रासायनिक क्रियाओं के कारण भूतल के विन्यास में परिवर्तन को भू-आकृतिक प्रक्रियाओं के नाम से जाना जाता है।
- अन्तर्जनित प्रक्रियाएँ : पटल विरूपण एवं ज्वालामुखीयता अन्तर्जनित भू-आकृतिक प्रक्रियाएँ हैं।
- बहिर्जनिक प्रक्रियाएँ : अपक्षय, वृहत् क्षरण, संचलन, अपरदन एवं निक्षेपण बहिर्जनिक भू-आकृतिक प्रक्रियाएँ हैं।
→ भू-आकृतिक कारक :
प्रकृति के किसी भी बहिर्जनिक तत्त्व, यथा- जल, हिम, वायु आदि जो कि धरातल के पदार्थों का अधिग्रहण तथा परिवहन करने में सक्षम है, उसे भू-आकृतिक कारक कहा जाता है। प्रवाह युक्त जल, भूमिगत जल, हिमानी, हवा, लहरें, धाराएँ आदि भू-आकृतिक कारक हैं।
→ पटल विरूपण :
वे सभी प्रक्रियाएँ जो कि भूपर्पटी को संचालित, उत्थापित तथा निर्मित करती हैं पटल विरूपण के अन्तर्गत शामिल की जाती हैं। इन सभी प्रक्रियाओं के कारण दबाव, आयतन तथा तापमान में परिवर्तन होता है जिसके फलस्वरूप शैलों का कायान्तरण होता है।
→ ज्वालामुखीयता :
ज्वालामुखीयता के अन्तर्गत पिघली हुई शैलों या लावा का भूतल की तरफ संचलन तथा अनेक आन्तरिक तथा बाह्य ज्वालामुखी स्वरूपों का निर्माण शामिल होता है।
→ बहिर्जनिक प्रक्रियाएँ :
बहिर्जनिक प्रक्रियाएँ अपनी ऊर्जा सूर्य द्वारा निर्धारित वायुमण्डलीय ऊर्जा एवं अन्तर्जनित शक्तियों से नियंत्रित विवर्तनिक कारकों से उत्पन्न प्रवणता से प्राप्त करती हैं। गुरुत्वाकर्षण बल ढाल युक्त सतह वाले धरातल पर कार्यरत रहता है तथा ढाल की दिशा में पदार्थ को संचलित करता है। प्रति इकाई क्षेत्र पर अनुप्रयुक्त बल को प्रतिबल कहते हैं। ठोस पदार्थ में प्रतिबल धक्का एवं खिंचाव से उत्पन्न होता है। यही प्रतिबल शैलों एवं धरातल के पदार्थों को तोड़ता है। धरातल के पदार्थ गुरुत्वाकर्षण प्रतिबल के अलावा आणविक प्रतिबलों से भी प्रभावित होते हैं जो कि तापमान में परिवर्तन, क्रिस्टलन तथा पिघलन के द्वारा उत्पन्न होते हैं।
रासायनिक प्रक्रियाएँ सामान्यतः कणों के बीच के बंधन को ढीला करती हैं तथा विलेय पदार्थों को घुला देती हैं। इस प्रकार धरातल के पदार्थों के पिण्ड में प्रतिबल का विकास अपक्षय, वृहत् क्षरण, संचलन, अपरदन एवं निक्षेपण का मूल कारण है। सभी बहिर्जनिक भू-आकृतिक प्रक्रियाओं को अनाच्छादन के अन्तर्गत रखा जा सकता है। अनाच्छादन का अर्थ निरावृत्त या आवरण हटाना है। यदि जलवायवी कारक समान हों तो बहिर्जनिक भू-आकृतिक प्रक्रियाओं के कार्यों की गहनता शैलों के प्रकार एवं संरचना पर निर्भर करती है।
→ अपक्षय:
अपक्षय के अन्तर्गत वायुमंडलीय तत्त्वों की धरातल के पदार्थों पर की गई क्रिया सम्मिलित होती है। अपक्षय के अन्दर ही अनेक प्रक्रियाएँ हैं जो पृथक या प्रायः सामूहिक रूप से धरातल के पदार्थों को प्रभावित करती है। अपक्षय प्रक्रिया के तीन प्रमुख प्रकार हैं-
- रासायनिक
- भौतिक या यांत्रिक
- जैविक।
→ रासायनिक अपक्षय प्रक्रियाएँ : अपक्षय प्रक्रियाओं का एक समूह जैसे कि विलयन, कार्बोनेटीकरण, जल योजन, ऑक्सीकरण तथा न्यूनीकरण शैलों के अपघटन, विलयन अथवा न्यूनीकरण का कार्य करते हैं जो कि रासायनिक क्रिया द्वारा सूक्ष्म अवस्था में परिवर्तित हो जाती हैं। ऑक्सीजन, धरातलीय जल, मृदा, जल एवं अन्य अम्लों की प्रक्रिया द्वारा चट्टानों का न्यूनीकरण होता है।
→ भौतिक अपक्षय प्रक्रियाएँ : भौतिक या यांत्रिक अपक्षय प्रक्रियाएँ कुछ अनुप्रयुक्त बलों पर निर्भर करती हैं जो कि इस प्रकार हैं। यथा-
- गुरुत्वाकर्षण बल, यथा : अत्यधिक ऊपर भार दबाव एवं अपरूपण प्रतिबल।
- तापमान में परिवर्तन, क्रिस्टल, रवों में वृद्धि एवं पशुओं के क्रियाकलापों के कारण उत्पन्न विस्तारण बल।
- शुष्कन एवं आर्द्र चक्रों से नियंत्रित जल का दबाव। भौतिक अपक्षय प्रक्रियाओं में अधिकांश तापीय विस्तारण एवं दबाव के निर्मुक्त होने के कारण होता है।
→ जैविक कार्य एवं अपक्षय:
जैविक अपक्षय जीवों की वृद्धि या संचलन से उत्पन्न अपक्षय – वातावरण एवं भौतिक परिवर्तन से खनिजों एवं आयन के स्थानान्तरण की दिशा में एक योगदान है। केंचुओं, दीमकों, चूहों, कृंतकों आदि जीवों के द्वारा बिल खोदने से नवीन सतहों का निर्माण होता है। मानव भी वनस्पतियों को अस्त-व्यस्त कर खेत जोतकर एवं मिट्टी में कृषि करके धरातलीय पदार्थों में वायु, जल एवं खनिजों के मिश्रण तथा उनमें नवीन सम्पर्क स्थापित करने में सहायक होता है।
→ अपक्षय के विशेष प्रभाव :
शैल या आधार शैल के ऊपर से मोटे तौर पर घुमावदार चादर के रूप में उत्खण्डित या पत्रकन होता है जिसके परिणामस्वरूप चिकनी एवं गोल सतह का निर्माण होता है। अपशल्कन अभारितकरण एवं तापमान के परिवर्तन द्वारा प्रेरित फैलाव एवं संकुचन के कारण भी होता है।
→ अपक्षय का महत्त्व:
अपक्षय प्रक्रियाएँ शैलों को छोटे-छोटे टुकड़ों में तोड़ने तथा न केवल आवरण प्रस्तर एवं मृदा निर्माण के लिए मार्ग प्रशस्त करते हैं अपितु अपरदन एवं वृहद् संचलन के लिए भी उत्तरदायी होते हैं । यदि शैलों का अपक्षय न हो तो अपरदन का कोई महत्त्व नहीं होता। अपक्षय वृहत् क्षरण, अपरदन, उच्चावच के लघुकरण में सहायक होता है एवं स्थलाकृतियाँ अपरदन का परिणाम हैं। शैलों का अपक्षय एवं निक्षेपण राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था के लिए अति महत्त्वपूर्ण है। अपक्षय मृदा निर्माण की एक महत्त्वपूर्ण प्रक्रिया है।
→ बृहत् संचलन:
बृहत् संचलन के अन्तर्गत वे सभी संचलन आते हैं जिनमें शैलों का बृहत् मलबा गुरुत्वाकर्षण के सीधे प्रभाव के कारण ढाल के अनुरूप स्थानान्तरित होता है। बृहत् संचलन की गति मन्द से तीव्र हो सकती है जिसके फलस्वरूप पदार्थों के छिछले से गहरे स्तंभ प्रभावित होते हैं जिनके अन्तर्गत विसर्पण, बहाव, स्खलन एवं पतन शामिल होते हैं। बृहत् संचलन में गुरुत्वाकर्षण शक्ति सहायक होती है तथा कोई भी भू-आकृतिक कारक यथा प्रवाहित जल, हिमानी, वायु, लहरें एवं धाराएँ बृहत् संचलन की प्रक्रिया में सीधे रूप से शामिल नहीं होते हैं। असम्बद्ध कमजोर पदार्थ, छिछले संस्तर वाली शैलें, भ्रंश, तीव्रता से झुके हुए संस्तर, खड़े भृगु या तीव्र ढाल, पर्याप्त वर्षा, मूसलाधार वर्षा तथा वनस्पति का अभाव बृहत् संचलन में सहायक होते हैं। बृहत् संचलन की सक्रियता के अनेक कारक होते हैं। संचलन के निम्न तीन रूप होते हैं-
- अनुप्रस्थ विस्थापन
- प्रवाह एवं
- स्खलन
→ भूस्खलन :
भू-स्खलन अपेक्षाकृत तीव्र एवं अवगम्य संचलन है। इसमें स्खलित होने वाले पदार्थ अपेक्षाकृत शुष्क होते हैं। असंलग्न बृहत् का आकार एवं आकृति शैल में अनिरन्तरता की प्रकृति, क्षरण का अंश तथा ढाल की ज्यामिति पर निर्भर करते हैं। पृथ्वी के पिण्ड के पश्च- आवर्तन के बिना मलबा का तीव्र लोटन या स्खलन मलबा स्खलन कहलाता है। मलबा स्खलन में खड़े या प्रलम्बी फलक से मिट्टी मलबा का प्रायः स्वतंत्र पतन होता है। किसी तीव्र ढाल के सहारे शैल खण्डों का ढाल से दूरी रखते हुए स्वतंत्र रूप से गिरना शैल पतन कहलाता है।
→ अपरदन एवं निक्षेपण :
अपरदन के अन्तर्गत शैलों के मलबे की अवाप्ति एवं उनके परिवहन को शामिल किया जाता है। भू-आकृतिक कारकों के द्वारा परिवहन किया जाने वाले चट्टानी मलबे द्वारा अपघर्षण भी अपरदन में पर्याप्त। योगदान देता है। अपरदन के द्वारा उच्चावच का निम्नीकरण होता है अर्थात् भूदृश्य विघर्षित होते हैं। इसका तात्पर्य है कि अपक्षय अपरदन में सहायक होता है। धरातल के पदार्थों का अपरदन एवं परिवहन वायु, प्रवाहशील जल, हिमानी, लहरों, धाराओं तथा भूमिगत जल के द्वारा होता है।
निक्षेपण अपरदन का परिणाम होता है। ढाल में कमी के कारण जब अपरदन के कारकों के वेग में कमी आ जाती है तो परिणामतः अवसादों का निक्षेपण शुरू हो जाता है। निक्षेपण से निम्न भूभाग भर जाते हैं। अपरदन के कारक यथा प्रवाह युक्त जल हिमानी, वायु, लहरें, धाराएँ एवं भूमिगत जल निक्षेपण के काल के रूप में भी कार्य करने लग जाते हैं।
→ मृदा निर्माण :
मृदा एक गत्यात्मक माध्यम है जिसमें बहुत सी रासायनिक, भौतिक एवं जैविक क्रियाएँ लगातार चलती रहती हैं। यह एक परिवर्तनशील एवं विकासोन्मुख तत्त्व है। इसकी बहुत सी विशेषताएँ मौसम के साथ परिवर्तित होती रहती हैं। यह वैकल्पिक रूप से ठण्डी और गर्म या शुष्क एवं आर्द्र हो सकती है। मृदा जलवायु की दशाओं, भू-आकृतियों एवं वनस्पतियों के साथ अनुकूलित होती रहती है और यादे उक्त नियंत्रक दशाओं में परिवर्तन हो जाए तो आन्तरिक रूप से भी परिवर्तित हो सकती है।
→ मृदा निर्माण की प्रक्रियाएँ :
मृदा निर्माण या मृदा जनन अपक्षय पर निर्भर करती है। यह अपक्षयी प्रावार ही मृदा निर्माण का मूल निवेश होता है। सर्वप्रथम अपक्षयित प्रावार या लाए गए पदार्थों के निक्षेप, बैक्टीरिया या अन्य निकृष्ट पौधे जैसे काई एवं लाइकेन द्वारा उपनिदेशित किए जाते हैं। जीव एवं पौधों के मृत अवशेष ह्यूमस के एकत्रीकरण में सहायक होते हैं। जल धारण करने की क्षमता, वायु के प्रवेश आदि के कारण अन्ततः परिपक्व, खनिज एवं जीव उत्पाद युक्त मृदा का निर्माण होता है।
→ मृदा निर्माण के कारण : मृदा निर्माण पांच मूल कारकों के द्वारा ही नियन्त्रित होता है। जो निम्न प्रकार है-
- मूल पदार्थ/शैल
- स्थलाकृति / उच्चावच
- जलवायु
- जैविक क्रियाएँ
- समय
→ भौगोलिक शब्दावली
- बहिर्जनिक : बाह्य बल बहिर्जनिक कहलाते हैं।
- अन्तर्जनित : आन्तरिक बल अन्तर्जनित कहलाते हैं।
- तल सन्तुलन : अपरदन के द्वारा उच्चावच के मध्य अन्तर का कम होना।
- प्रतिबल : प्रति इकाई क्षेत्र पर अनुप्रयुक्त बल।
- अनाच्छादन : निरावृत करना अथवा आवरण हटाना।
- ऑक्सीकरण : ऑक्साइड या हाइड्रोऑक्साइड के निर्माण हेतु खनिज एवं ऑक्सीजन का संयोग।
- अपशल्कन गुम्बद : बड़ी, चिकनी गोलाकार गुम्बद।
- पेडालॉजी : मृदा विज्ञान।