Well-organized Class 11 Geography Notes in Hindi and Class 11 Geography Chapter 2 Notes in Hindi पृथ्वी की आंतरिक संरचना can aid in exam preparation and quick revision.
Geography Class 11 Chapter 3 Notes in Hindi पृथ्वी की आंतरिक संरचना
पृथ्वी के आन्तरिक भाग की जानकारी अप्रत्यक्ष प्रमाणों के आधार पर प्राप्त की जा सकती है। पृथ्वी के धरातल का विन्यास मुख्य रूप से भू-गर्भ में होने वाली प्रक्रियाओं का परिणाम है। बहिर्जात व अन्तर्जात प्रक्रियाओं के द्वारा लगातार भू-दृश्य का आकार परिवर्तित होता रहता है। मानव जीवन मुख्य रूप से अपनी क्षेत्रीय भू-आकृति से प्रभावित होता है।
→ भूगर्भ की जानकारी के साधन:
पृथ्वी की त्रिज्या 6370 किलोमीटर है। पृथ्वी की आन्तरिक संरचना के विषय में अधिकतर जानकारी परोक्ष रूप से प्राप्त अनुमानों पर कुछ प्रत्यक्ष प्रेक्षणों और पदार्थ के विश्लेषण पर आधारित है। प्रत्यक्ष स्रोत- इसके अन्तर्गत वैज्ञानिकों की गहरे समुद्र में प्रवेधन परियोजना एवं समन्वित महासागरीय प्रवेधन परियोजना शामिल हैं। वर्तमान में सबसे गहरा प्रवेधन आर्कटिक महासागर में कोला क्षेत्र में 12 किमी. की गहराई तक किया गया है। ज्वालामुखी उद्गार प्रत्यक्ष जानकारी का एक अन्य स्रोत है।
→ अप्रत्यक्ष स्रोत:
पदार्थ के गुण धर्म के विश्लेषण से पृथ्वी के आन्तरिक भाग की अप्रत्यक्ष जानकारी प्राप्त होती। अप्रत्यक्ष स्रोतों में गहराई के साथ बढ़ते तापमान, घनत्व, दबाव, उल्काएँ, गुरुत्वाकर्षण, चुंबकीय क्षेत्र व भूकम्प सम्बन्धी क्रियाओं को शामिल किया जाता है।
→ भूकम्प:
साधारण भाषा में भूकम्प का अर्थ है:
पृथ्वी का कम्पन। यह एक प्राकृतिक घटना है। ऊर्जा के निकलने के कारण तरंगें उत्पन्न होती हैं जो कि सभी दिशाओं में फैलकर भूकम्प लाती हैं। वह स्थान जहाँ से ऊर्जा निकलती है भूकम्प का उद्गम केन्द्र कहलाता है। भूतल का वह बिन्दु जो कि उद्गम केन्द्र के समीपतमं होता है अधिकेन्द्र। कहलाता है। अधिकेन्द्र पर ही सबसे पहले तरंगों को महसूस किया जाता है।
→ भूकम्पीय तरंगें:
भूकम्पमापी यन्त्र सतह पर पहुँचने वाली भूकम्प तरंगों को अभिलेखित करता है। भूकम्पीय तरंगों का अभिलेखीय वक्र तीन अलग बनावट वाली तरंगों को प्रदर्शित करता है। बुनियादी रूप से भूकम्पीय तरंगें दो प्रकार की होती हैं, यथा भूगर्भिक तरंगें एवं धरातलीय तरंगें। भूगर्भिक तरंगें उद्गम केन्द्र से ऊर्जा के मुक्त होने के दौरान उत्पन्न होती हैं और पृथ्वी के अन्दरूनी भाग से होकर सभी दिशाओं में आगे बढ़ती हैं। इसी कारण इनको भूगर्भिक तरंगें कहा जाता है। भूगर्भिक तरंगों एवं धरातलीय शैलों के म ध्य अन्योन्य क्रिया के कारण नई तरंगें उत्पन्न होती हैं जिनको धरातलीय तरंगें कहा जाता है।भूगर्भिक तरंगें दो कार की होती हैं, यथा
- प्राथमिक तरंगें एवं
- द्वितीयक तरंगें।
→ भूकम्पीय तरंगों का संचरण:
प्राथमिक तरंगों से कम्पन की दिशा तरंगों की दिशा के समानान्तर ही होती है। यह संचरण गति की दिशा में ही पदार्थ पर दबाव डालती है। द्वितीयक तरंगें ऊर्ध्वाधर तल में तरंगों की दिशा के समकोण पर कम्पन पैदा करती हैं। अतः ये जिस पदार्थ से गुजरती हैं उसमें उभार व गर्त बनाती हैं। धरातलीय तरंगें सबसे अधिक विनाशकारी मानी जाती हैं।
→ भूकम्पीय छाया क्षेत्र:
ऐसे क्षेत्र जहाँ कि कोई भूकंपीय तरंगें भूकंपमापी यंत्र पर अभिलेखित नहीं होतीं, भूकंपीय छाया क्षेत्र कहलाते हैं। एक भूकम्प का छाया क्षेत्र दूसरे भूकम्प के छाया क्षेत्र से सर्वथा भिन्न होता है। भूकम्प के प्रकार हैं।
- विवर्तनिक भूकम्प : भ्रंश तल के किनारे चट्टानों के सरक जाने के कारण विवर्तनिक भूकम्प उत्पन्न होते
- ज्वालामुखीजन्य भूकम्प : इस प्रकार के भूकम्प अधिकतर सक्रिय ज्वालामुखी क्षेत्रों में ही उत्पन्न होते हैं।
- नियात भूकम्प : अधिक खनन के कारण इन क्षेत्रों में हल्के झटके महसूस किए जाते हैं। इन्हें नियात भूकम्प कहा जाता है।
- विस्फोट भूकम्प : परमाणु व रासायानिक विस्फोट से उत्पन्न भूकम्प विस्फोट भूकम्प के नाम से जाने जाते हैं।
- बाँधजनित भूकम्प : बड़े बाँध वाले क्षेत्रों में आने वाले भूकम्प बाँधजनित भूकम्प कहलाते हैं।
→ भूकम्पों की माप:
भूकम्पीय घटनाओं का मापन भूकम्पीय तीव्रता के आधार पर अथवा आघात की तीव्रता के आधार पर किया जाता है। भूकम्पीय तीव्रता की मापनी रिएक्टर स्केल के नाम से जानी जाती है। भूकम्प के आघात की तीव्रता अथवा गहनता को इटली के भूकम्प वैज्ञानिक मरकैली के नाम पर जाना जाता है।
→ भूकम्प के प्रभाव :
भूकम्पीय आपदा होने वाले प्रकोप, भूमि का हिलना, धरातलीय विसंगति, भूस्खलन अथवा पंक स्खलन, मृदा द्रवण, धरातल का एक तरफ झुकना, हिमस्खलन, धरातलीय विस्थापन, बाँध व तटबन्ध के टूटने से बाढ़, आग लगना, इमारतों का टूटना व ढाँचों का ध्वस्त होना, वस्तुओं का गिरना व सुनामी आदि हैं।
→ भूकम्प की आवृत्ति :
भूकम्प एक प्राकृतिक आपदा है। तीव्र भूकम्प के झटकों से जन व धन की अधिक हानि होती है। प्राय: रिएक्टर स्केल पर 8 से अधिक तीव्रता वाले भूकम्प के आने की सम्भावना बहुत ही कम होती है, जबकि हल्के भूकम्प लगभग प्रति मिनट पृथ्वी के किसी न किसी भाग में महसूस किए जाते हैं।
→ पृथ्वी की संरचना : पृथ्वी की संरचना के तीन भाग हैं। यथा-
- भूपर्पटी: यह ठोस पृथ्वी का सबसे बाहरी भाग है। इस भाग में जल्दी टूट जाने की प्रवृत्ति पाई जाती है। भू-पर्पटी की मोटाई महाद्वीपों व महासागरों के नीचे अलग-अलग है। महासागरों के नीचे इसकी औसत मोटाई 5 किलोमीटर है जबकि महाद्वीपों के नीचे यह 30 किलोमीटर तक है।
- मैण्टल: भूगर्भ से पर्पटी के नीचे का भाग मैण्टल कहलाता है। यह मोहो असांतत्य से आरम्भ होकर 2900 किलोमीटर की गहराई तक पाया जाता है। मैण्टल का ऊपरी भाग दुर्बलता मण्डल कहलाता है। इसका घनत्व 3. 4 ग्राम प्रति घन सेण्टीमीटर है।
- क्रोड : क्रोड व मैण्टल की सीमा 2900 किलोमीटर की गहराई पर है। बाह्य क्रोड तरल अवस्था में है जबकि आन्तरिक क्रोड ठोस अवस्था में है। मैण्टल व क्रोड़ की सीमा पर चट्टानों का घनत्व लगभग 5 ग्राम प्रति घन सेण्टीमीटर तथा केन्द्र में 6300 किलोमीटर की गहराई तक घनत्व लगभग 13 ग्राम प्रति घन सेण्टीमीटर तक पाया जाता है।
→ ज्वालामुखी व ज्वालामुखी निर्मित स्थल रूप:
अर्थ: ज्वालामुखी वह स्थान है जहाँ से निकलकर गैसें, राख और तरल चट्टानी पदार्थ व लावा पृथ्वी के धरातल तक पहुँचता है। यदि यह पदार्थ कुछ समय पहले ही बाहर आया हो या अभी निकल रहा हो तो वह ज्वालामुखी सक्रिय ज्वालामुखी कहलाता है। जब तक तरल पदार्थ मैण्टल के ऊपरी भाग में रहता है तो यह मैग्मा कहलाता है, जब यह भू-पटल के ऊपर या धरातल पर पहुँचता है तो लावा कहलाता है। ज्वालामुखी के प्रकार:
- शील्ड ज्वालामुखी
- मिश्रित ज्वालामुखी
- ज्वालामुखी कुण्ड
- बेसाल्ट प्रवाह क्षेत्र
- मध्य महासागरीय कटक ज्वालामुखी
→ ज्वालामुखी स्थलाकृतियाँ : अन्तर्वेधी आकृतियाँ
ज्वालामुखी उद्गार से जो लावा निकलता है उसके ठण्डा होने से आग्नेय शैल बनती है। जब लावा भूपटल के भीतर ही ठण्डा हो जाता है तो अनेक आकृतियाँ बनती हैं। ये आकृतियाँ अन्तर्वेधी आकृतियाँ कहलाती हैं।
- बैथोलिथ:
यदि मैग्मा का बड़ा पिण्ड भू-पर्पटी में अधिक गहराई पर ठण्डा हो जाए तो वह एक गुम्बद के आकार में विकसित हो जाता है जिसे बैथोलिथ कहा जाता है। बैथोलिथ मैग्मा भण्डारों के जमे हुए भाग हैं। - लैकोलिथ:
ये गुम्बदनुमा विशाल अन्तर्वेधी चट्टानें हैं जिनका तल समतल व एक पाइप रूपी वाहक नली से नीचे से जुड़ा होता है। इनकी आकृति धरातल पर पाए जाने वाले मिश्रित ज्वालामुखी के गुम्बद के समान होती है। - लैपोलिथ, फैकोलिथ व सिल:
ऊपर उठते हुए लावा का कुछ भाग क्षैतिज दिशा में पाए जाने वाले कमजोर धरातल में चला जाता है। यहाँ यह अलग-अलग आकृतियों में जम जाता है। यदि यह तश्तरी की आकृति में। जम जाए तो लैपोलिथ कहलाता है। अनेक बार अन्तर्वेधी आग्नेय चट्टानों की मोड़दार अवस्था में अपनति के ऊपर व अभिनति के तल में लावा का जमाव पाया जाता है। ये चट्टानें एक निश्चित वाहकं नली से मैग्मा भण्डारों से जुड़ी होती हैं जिसे फैकोलिथ कहते हैं। अन्तर्वेधी आग्नेय चट्टानों का क्षैतिज तल में एक चादर के रूप में ठण्डा होना सिल या शीट कहलाता है। - डाइक:
जब लावा का प्रवाह दरारों में धरातल के लगभग समकोण होता है और यदि यह इसी अवस्था में ठण्डा हो जाए तो एक दीवार के समान संरचना बनाता है। इसी संरचना को डाइक के नाम से जाना जाता है।
→ भौगोलिक शब्दावली-
- स्थल मण्डल : पृथ्वी के धरातल से 200 किमी. तक की गहराई वाला भाग।
- भू-वैज्ञानिक : शैलों की प्रकृति और उनकी रचना का अध्ययन करने वाले विद्वान।
- सीस्मोग्राफ : एक सूक्ष्मग्राही यन्त्र जो कि भूकम्प तरंगों का आलेख करता है।
- P तरंगें : गैस, तरल व ठोस तीनों प्रकार के पदार्थों से होकर गुजरने वाली तरंगें।
- S तरंगें : केवल ठोस पदार्थों के माध्यम से ही गुजरने वाली तरंगें।
- भूपृष्ठ : पृथ्वी की सबसे ऊपरी परत जो कि हल्के पदार्थों से निर्मित होती है।
- दुर्बलता मण्डल : मैण्टल का ऊपरी भाग।
- ज्वलखण्डाश्मि : लावा के जमे हुए टुकड़ों का मलबा।
- श्यान : गाढ़ा या चिपचिपा लावा।
- विध्वंस गर्त : लावा के गिरने के फलस्वरूप बनने वाले गड्ढे।