Well-organized Class 11 Geography Notes in Hindi and Class 11 Geography Chapter 15 Notes in Hindi पृथ्वी पर जीवन can aid in exam preparation and quick revision.
Geography Class 11 Chapter 15 Notes in Hindi पृथ्वी पर जीवन
पृथ्वी पर रहने वाले सभी जीवधारी जो कि मिलकर जैवमण्डल बनाते हैं। ये पर्यावरण के दूसरे मण्डलों के साथ पारस्परिक क्रिया करते हैं। जैवमण्डल में पृथ्वी पर पाए जाने वाले सभी जीवित घटक शामिल हैं। जैवमण्डल सभी पौधों, जन्तुओं, प्राणियों और उनके चारों तरफ के पर्यावरण के आपसी सम्बन्धों से बना है। जैव- मण्डल और इसके घटक पर्यावरण के बहुत महत्त्वपूर्ण तत्व हैं जो कि भूमि, जल व मिट्टी के साथ पारस्परिक क्रिया करते हैं। ये वायुमण्डल के तत्वों, यथा- तापमान, वर्षा, आर्द्रता व सूर्य के प्रकाश से भी प्रभावित होते हैं।
→ पारिस्थितिकी
पारिस्थितिकी प्रमुख रूप से जीवधारियों के जन्म, विकास, वितरण, प्रवृत्ति व उनके प्रतिकूल अवस्थाओं में भी जीवित रहने से सम्बन्धित है। किसी क्षेत्र विशेष में किसी विशेष समूह के जीवधारियों का भूमि, जल अथवा वायु से ऐसा अन्तर्सम्बन्ध जिसमें ऊर्जा प्रवाह व पोषण श्रृंखलाएँ स्पष्ट रूप से समायोजित हों उसे पारिस्थितिकी तंत्र कहा जाता है। विभिन्न प्रकार के पर्यावरण व विभिन्न परिस्थितियों में भिन्न प्रकार के पारिस्थितिकी तंत्र पाए जाते हैं जहाँ अलग- अलग प्रकार के पौधे व जीव-जन्तु विकास – क्रम द्वारा उस पर्यावरण के अभ्यस्त हो जाते हैं, उसे पारिस्थितिक अनुकूलन कहते हैं।
→ पारितंत्र के प्रकार:
पारितंत्र मुख्य रूप से दो प्रकार का होता है, यथा— स्थलीय व जलीय पारितंत्र। स्थलीय पारितंत्र को पुनः बायोम में विभक्त किया जा सकता है। बायोम पौधों व प्राणियों का एक समुदाय है जो कि एक बड़े भौगोलिक क्षेत्र में पाया जाता है। जलीय पारितंत्र को समुद्री पारितंत्र व ताजे जल के पारितंत्र में विभाजित किया जा सकता है।
→ पारितंत्र की कार्य-प्रणाली व संरचना:
पारितंत्र की संरचना में वहाँ उपलब्ध पौधों व जन्तुओं की प्रजातियों का वर्णन शामिल है। यह उनके इतिहास, वितरण व उनकी संख्या को भी वर्णित करता है। संरचना की दृष्टि से सभी पारितंत्र में जैविक व अजैविक कारक होते हैं। अजैविक या भौतिक कारकों में तापमान, वर्षा, सूर्य का प्रकाश, आर्द्रता, मृदा की स्थिति व अकार्बनिक तत्व शामिल हैं। जैविक कारकों में उत्पादक, उपभोक्ता तथा अपघटक शामिल हैं। उत्पादकों में सभी हरे पौधे शामिल हैं जो कि प्रकाश-संश्लेषण प्रक्रिया द्वारा अपना भोजन बनाते हैं। प्राथमिक उपभोक्ता उत्पादक पर निर्भर हैं जबकि प्राथमिक उपभोक्ता द्वितीयक उपभोक्ताओं के भोजन बनते हैं। द्वितीयक उपभोक्ता पुनः तृतीयक उपभोक्ताओं के द्वारा खाये जाते हैं। अपघटक प्रत्येक स्तर पर मृतकों पर निर्भर होते हैं।
पारितंत्र के जीवाणु एक खाद्य शृंखला से आपस में जुड़े हुए होते हैं। यथा पौधों पर जीवित रहने वाला एक कीड़ा एक मेंढक का भोजन है, मेंढक साँप का भोजन है और साँप बाज का भोजन है। यह खाद्य-क्रम और इस क्रम से एक स्तर से दूसरे स्तर पर ऊर्जा के रूपान्तरण को ‘ऊर्जा प्रवाह’ कहते हैं। खाद्य श्रृंखलाएँ आस-पास में एक-दूसरे से जुड़ी हुई हैं। प्रजातियों के इस प्रकार जुड़े होने को खाद्य जाल कहते हैं। सामान्य रूप से दो प्रकार की खाद्य श्रृंखलाएँ पाई जाती हैं, यथा चराई खाद्य श्रृंखला और अपरद खाद्य श्रृंखला। खाद्य श्रृंखला में तीन से पाँच स्तर होते हैं और हर स्तर पर ऊर्जा कम होती जाती है।
→ बायोम के प्रकार: संसार के पाँच प्रमुख बायोम होते हैं जिनमें वन बायोम, मरुस्थलीय बायोम, घास भूमि बायोम, जलीय बायोम और उच्च प्रदेशीय बायोम उल्लेखनीय हैं।
→ जैव भू- रासायनिक चक्र:
सूर्य ऊर्जा का मूल स्रोत है जिस पर सम्पूर्ण जीवन निर्भर है। यही ऊर्जा जैव- मण्डल में प्रकाश-संश्लेषण – क्रिया द्वारा जीवन प्रक्रिया आरंभ करती है जो कि हरे पौधों के लिए भोजन व ऊर्जा का मुख्य आधार है। पृथ्वी पर जीवन विविध प्रकार के जीवित जीवों के रूप में पाया जाता है। ये जीवधारी विविध प्रकार के पारिस्थितिकीय अन्तर्सम्बन्धों पर जीवित हैं। जीवधारी बहुलता व विविधता में ही जिन्दा रह सकते है। रासायनिक तत्वों का संतुलन पौधे व प्राणी ऊतकों से होने वाले चक्रीय प्रवाह के द्वारा बना रहता है। यह चक्र जीवों द्वारा रासायनिक तत्वों के अवशोषण से शुरू होता है और उनके वायु, जल व मिट्टी में विघटन से पुनः शुरू होता है। ये चक्र मुख्य रूप से सौर ताप से संचालित होते हैं। जैवमण्डल में जीवधारी व पर्यावरण के बीच ये रासायनिक तत्वों के चक्रीय प्रवाह जैव भू- रासायनिक चक्र कहलाते हैं।
→ जल चक्र :
सभी जीवधारी वायुमण्डल व स्थलमण्डल में जल का एक चक्र बनाए रखते हैं जो कि तरल, गैस व ठोस अवस्था में है। इसे जलीय चक्र कहा जाता है।
→ कार्बन चक्र :
सभी जीवधारियों में कार्बन पाया जाता है। यह सभी कार्बनिक यौगिक का मूल तत्व है। जैवमण्डल में असंख्य कार्बन यौगिक के रूप में जीवों में विद्यमान हैं। कार्बन चक्र कार्बन डाइऑक्साइड का परिवर्तित रूप है। यह परिवर्तन पौधों में प्रकाश-संश्लेषण की प्रक्रिया के द्वारा कार्बन डाइऑक्साइड के यौगिकीकरण के द्वारा आरंभ होता है। इस प्रक्रिया से कार्बोहाइड्रेट्स व ग्लूकोज बनता है जो कि कार्बनिक यौगिक, यथा— स्टार्च, सेल्यूलोस, सुक्रोज के रूप में पौधों में संचित हो जाता है।
→ ऑक्सीजन चक्र:
प्रकाश: संश्लेषण की क्रिया का प्रमुख सहपरिणाम ऑक्सीजन है। ऑक्सीजन चक्र बहुत ही जटिल प्रक्रिया है। बहुत से रासायनिक तत्वों और सम्मिश्रणों में ऑक्सीजन पाई जाती है। यह नाइट्रोजन के साथ मिलकर नाइट्रेट बनाती है तथा बहुत से अन्य खनिजों व तत्वों से मिलकर अनेक प्रकार के ऑक्साइड बनाती है।
→ नाइट्रोजन चक्र:
वायुमण्डल की संरचना का प्रमुख घटक नाइट्रोजन, वायुमण्डलीय गैसों का 78 प्रतिशत भाग है। विभिन्न कार्बनिक यौगिक जैसे एमीनो एसिड, न्यूक्लिक एसिड, विटामिन आदि में यह एक महत्त्वपूर्ण घटक है। सामान्यत: नाइट्रोजन का लगभग 90 प्रतिशत भाग जैविक है। वायुमण्डल में बिजली चमकने व अन्तरिक्ष विकिरण द्वारा नाइट्रोजन का यौगिकीकरण होता है । कुछ जीवाणु नाइट्राइट को नाइट्रेट में परिवर्तित करने में सक्षम होते हैं व पुनः हरे पौधों द्वारा नाइट्रोजन यौगिकीकरण हो जाता है। कुछ अन्य प्रकार के जीवाणु इन नाइट्रेट को पुन: स्वतंत्र नाइट्रोजन में परिवर्तित करने में सक्षम होते हैं और इस प्रक्रिया को डी- नाइट्रीकरण कहा जाता है।
→ अन्य खनिज चक्र:
जैवमण्डल में मुख्य भू- रासायनिक तत्वों, कार्बन, ऑक्सीजन, नाइट्रोजन और हाइड्रोजन के अलावा पौधों व प्राणी जीवन के लिए अत्यधिक महत्त्व वाले बहुत से अन्य खनिज पाए जाते हैं। जीवधारियों के लिए आवश्यक ये खनिज पदार्थ प्राथमिक तौर पर अकार्बनिक रूप में पाए जाते हैं। प्रायः ये घुलनशील लवणों के रूप में मिट्टी, झील अथवा नदियों व समुद्री जल में पाए जाते हैं। जब घुलनशील लवण जल चक्र में शामिल हो जाते हैं तब ये अपक्षय की प्रक्रिया के द्वारा पृथ्वी की पर्पटी पर और फिर बाद में समुद्र तक पहुँच जाते हैं। सभी जीवधारी अपने पर्यावरण में घुलनशील अवस्था में उपस्थित खनिज लवणों से ही अपनी खनिजों की आवश्यकता को पूरा करते हैं।
→ पारिस्थितिक सन्तुलन:
किसी परितंत्र या आवास में जीवों के समुदाय में परस्पर गतिक साम्यता की अवस्था ही पारिस्थितिक सन्तुलन है। यह तभी संभव है जब जीवधारियों की विविधता अपेक्षाकृत स्थायी रहे। क्रमशः परिवर्तन भी हो लेकिन ऐसा प्राकृतिक अनुक्रमण के द्वारा ही होता है। पौधों के पारिस्थितिक संतुलन में बदलाव के अनेक कारण हैं। यथा वनों की प्रारंभिक प्रजातियों में कोई व्यवधान जैसे स्थानान्तरी कृषि में वनों को साफ करने से प्रजातियों के वितरण में बदलाव आता है। यह परिवर्तन प्रतिस्पर्धा के कारण है जहाँ द्वितीय वन प्रजातियों यथा घास, बाँस और चीड़ आदि के वृक्ष प्रारंभिक प्रजातियों के स्थान पर उगते हैं और प्राकृतिक वनों की संरचना को बदल देते हैं। यही अनुक्रमण कहलाता है।
→ भौगोलिक शब्दावली
- जैवमण्डल : जहाँ सभी प्रकार का जीवन पाया जाता है।
- पारिस्थितिक तंत्र : किसी क्षेत्र का जैव एवं अजैव तत्वों से बना तंत्र।
- ऊर्जा प्रवाह : खाद्य श्रृंखला की प्रक्रिया में ऊर्जा का रूपान्तरण।
- जैव भू-रासायनिक चक्र : जैवमण्डल में जीवधारी व पर्यावरण के बीच रासायनिक तत्वों का चक्रीय प्रवाह।
- पारिस्थितिक सन्तुलन : पारितंत्र में जीवों के समुदाय में परस्पर गतिक साम्यता की अवस्था।