Understanding the question and answering patterns through Class 11 Geography Question Answer in Hindi Chapter 14 महासागरीय जल संचलन
Class 11 Geography Chapter 14 in Hindi Question Answer महासागरीय जल संचलन
अन्य महत्त्वपूर्ण प्रश्न
बहुचयनात्मक प्रश्न
1. समुद्री जल का दोलन कहलाता है-
(अ) तरंग
(ब) धारा
(स) ज्वार
(द) उपर्युक्त में से कोई नहीं
उत्तर:
(अ) तरंग
2. एक निश्चित दिशा में समुद्री जल का नियमित संचरण कहलाता है
(अ) धारा
(ब) ज्वार
(स) तरंग
(द) उपर्युक्त में से कोई नहीं
उत्तर:
(अ) धारा
3. एक तरंग के उच्चतम एवं निम्नतम बिन्दु को कहते हैं-
(अ ) तरंग आयाम
(ब) तरंग शिखर व गर्त
(स) तरंग की ऊँचाई
(द) तरंग गति
उत्तर:
(ब) तरंग शिखर व गर्त
4. ऐसे ज्वार-भाटा जिनकी ऊँचाई में भिन्नता होती है, कहलाते हैं-
(अ) दैनिक ज्वार
(ब) मिश्रित ज्वार
(स) अर्द्ध दैनिक ज्वार
(द) निम्न ज्वार
उत्तर:
(ब) मिश्रित ज्वार
5. दो लगातार शिखरों या गर्तों के बीच की क्षैतिज दूरी को क्या कहा जाता है?
(अ) तरंग शिखर
(ब) तरंग गर्त
(स) तरंग दैर्ध्य
(द) तरंग गति
उत्तर:
(स) तरंग दैर्ध्य
6. वृहद् ज्वार महीने में कितनी बार आता है?
(अ) दो बार
(ब) गुरुत्वाकर्षण
(स) कोरिओलिस बल
(द) उपरोक्त सभी
उत्तर:
(अ) दो बार
7. धाराओं को प्रभावित करने वाला प्राथमिक बल है-
(अ) वायु
(ब) तीन बार
(स) चार बार
(द) पाँच बार
उत्तर:
(द) पाँच बार
8. निम्न में से कौनसा आवृत्ति पर आधारित ज्वार-भाटा नहीं है —
(अ) अर्द्ध दैनिक ज्वार
(स) मिश्रित ज्वार
(ब) दैनिक ज्वार
(द) वृहत् ज्वार
उत्तर:
(द) वृहत् ज्वार
9. वायु एवं वायुमंडलीय दाब में परिवर्तन के कारण सागरीय जल की गति को कहते हैं—
(अ) लहर
(ब) सीन
(स) प्रवाह
(द) महोर्मि
उत्तर:
(द) महोर्मि
10. जब दो नॉट या उससे कम वाली समीर सागरीय शांत जल पर बहती है, तो क्या बनता है?
(अ) ज्वारीय लहरें
(ब) छोटी-छोटी उर्मिकाएँ
(स) लहर
(द) धारा
उत्तर:
(ब) छोटी-छोटी उर्मिकाएँ
रिक्त स्थान वाले प्रश्न
नीचे दिए गए प्रश्नों में रिक्त स्थानों की पूर्ति करें
1. _____ज्वार महिने में दो बार पूर्णिमा एवं अमावस्या को आता है। (वृहद् / निम्न)
2. जब चन्द्रमा एवं सूर्य एक दूसरे के समकोण पर होता है तो _____ ज्वार आता है। (वृहद् / निम्न)
3. _____एक निश्चित बिन्दु से गुजरने वाले दो लगातार तरंग शिखरों या गर्तों के बीच का समयान्तर है। (तरंग आवृत्ति / तरंग गति )
4. एक सेकेण्ड के समयान्तर में दिए गए बिन्दु से गुजरने वाली तरंगों की संख्या को _____ कहते हैं। (तरंग काल / तरंगदैर्घ्य)
5. विश्व का सबसे ऊँचा ज्वार भाटा _____ के नवास्कोशिया में स्थित फंडी की खाड़ी में आता है। (जापान / कनाडा)
उत्तर:
1. वृहद् ज्वार महिने में दो बार पूर्णिमा एवं अमावस्या को आता है।
2. जब चन्द्रमा एवं सूर्य एक दूसरे के समकोण पर होता है तो निम्न ज्वार आता है।
3. तरंगकाल एक निश्चित बिन्दु से गुजरने वाले दो लगातार तरंग शिखरों या गर्तों के बीच का समयान्तर है।
4. एक सेकेण्ड के समयान्तर में दिए गए बिन्दु से गुजरने वाली तरंगों की संख्या को तरंग आवृत्ति कहते हैं।
5. विश्व का सबसे ऊँचा ज्वार भाटा कनाडा के नवास्कोशिया में स्थित फंडी की खाड़ी में आता है।
सत्य/असत्य वाले प्रश्न
नीचे दिए गए कथनों में से सत्य / असत्य कथन छाँटिए-
1. एक तरंग के उच्चतम एवं निम्नतम बिन्दुओं को क्रमशः शिखर एवं गर्त कहा जाता है।
2. तरंग आयाम तरंग की ऊँचाई का दो गुना होता है।
3. जहाँ महाद्वीपीय मग्नतट अपेक्षाकृत विस्तृत हैं, वहाँ ज्वारीय उभार अधिक ऊँचाई वाले होते हैं।
4. दैनिक ज्वार में प्रतिदिन दो उच्च एवं दो निम्न ज्वार आते हैं।
5. ऐसे ज्वार भाटा जिसकी ऊँचाई में भिन्नता होती है, उसे मिश्रित ज्वार भाटा कहते हैं।
6. उच्च ज्वार की ऊँचाई में भिन्नता पृथ्वी के सापेक्ष सूर्य एवं चन्द्रमा की स्थिति पर निर्भर करती है।
उत्तर:
1. एक तरंग के उच्चतम एवं निम्नतम बिन्दुओं को क्रमशः शिखर एवं गर्त कहा जाता है। (सत्य)
2. तरंग आयाम तरंग की ऊँचाई का दो गुना होता है। (असत्य)
3. जहाँ महाद्वीपीय मग्नतट अपेक्षाकृत विस्तृत हैं, वहाँ ज्वारीय उभार अधिक ऊँचाई वाले होते हैं। (सत्य)
4. दैनिक ज्वार में प्रतिदिन दो उच्च एवं दो निम्न ज्वार आते हैं। (असत्य)
5. ऐसे ज्वार भाटा जिसकी ऊँचाई में भिन्नता होती है, उसे मिश्रित ज्वार भाटा कहते हैं। (सत्य)
6. उच्च ज्वार की ऊँचाई में भिन्नता पृथ्वी के सापेक्ष सूर्य एवं चन्द्रमा की स्थिति पर निर्भर करती है। (सत्य)
मिलान करने वाले प्रश्न-
निम्न को सुमेलित कीजिए-
1. चन्द्रमा पृथ्वी का सबसे नजदीक होना | (अ) उपसौर |
2. चन्द्रमा पृथ्वी का सबसे नजदीक होना | (ब) अपसौर |
3. पृथ्वी सूर्य का सबसे नजदीक होना | (स) ठण्डी धारा |
4. पृथ्वी सूर्य का सबसे दूर होना | (द) उपभू |
5. गल्फ स्ट्रीम की धारा | (य) अपभू |
6. लैब्रोडोर की धारा | (र) गर्म धारा |
उत्तर:
1. चन्द्रमा पृथ्वी का सबसे नजदीक होना | (द) उपभू |
2. चन्द्रमा पृथ्वी का सबसे नजदीक होना | (य) अपभू |
3. पृथ्वी सूर्य का सबसे नजदीक होना | (अ) उपसौर |
4. पृथ्वी सूर्य का सबसे दूर होना | (ब) अपसौर |
5. गल्फ स्ट्रीम की धारा | (र) गर्म धारा |
6. लैब्रोडोर की धारा | (स) ठण्डी धारा |
अतिलघूत्तरात्मक प्रश्न
प्रश्न 1.
वृहत् ज्वार कब आते हैं?
उत्तर:
अमावस्या व पूर्णिमा को।
प्रश्न 2.
महासागरीय धाराएँ एवं लहरें, महासागरीय जल की किस गति से सम्बन्धित हैं?
उत्तर:
क्षैतिज गति से।
प्रश्न 3.
ज्वार-भाटा महासागरीय जल की किस गति से सम्बन्धित है?
उत्तर:
ऊर्ध्वाधर गति से।
प्रश्न 4.
तरंग ऊँचाई से क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
एक तरंग के गर्त के अधःस्थल से शिखर के ऊपरी भाग तक की ऊर्ध्वाधर दूरी तरंग की ऊँचाई कहलाती है।
प्रश्न 5.
आवृत्ति के आधार पर ज्वार-भाटा के प्रकार बताइए।
उत्तर:
- दैनिक ज्वार
- अर्द्ध- दैनिक ज्वार
- मिश्रित ज्वार।
प्रश्न 6.
तरंग गति को किसमें मापा जाता है?
उत्तर:
नॉट में है।
प्रश्न 7.
भारत में ज्वार-भाटा से विद्युत शक्ति उत्पन्न करने का संयंत्र कहाँ स्थापित किया जा रहा है?
उत्तर:
भारत में 3 मेगावाट शक्ति का विद्युत संयंत्र पश्चिम बंगाल में सुंदरवन के दुर्गादुवानी में लगाया जा रहा है।
प्रश्न 8.
किन्हीं चार ऐसे देशों का नाम लिखिए जहाँ जवार-भाटा के इस्तेमाल से विद्युत शक्ति उत्पन्न की जा रही है।
उत्तर:
कनाडा, फ्रांस, रूस और चीन।
प्रश्न 9.
तरंग के उच्चतम बिन्दु का पता किस प्रकार लगाया जाता है?
उत्तर:
तरंग के उच्चतम बिन्दु का पता वायु की तीव्रता के द्वारा लगाया जाता है।
प्रश्न 10.
तरंग शिखर एवं गर्त किसे कहते हैं?
उत्तर:
एक तरंग के उच्चतम एवं निम्नतम बिन्दुओं को क्रमशः शिखर एवं गर्त कहा जाता है।
प्रश्न 11.
तरंग काल से क्या आशय है?
उत्तर:
एक निश्चित बिन्दु से गुजरने वाले दो लगातार तरंग शिखरों या गर्तों के बीच का समयान्तराल तरंग काल कहलाता है।
प्रश्न 12.
तरंग आयाम एवं तरंगदैर्घ्य में अन्तर बताइये।
उत्तर:
तरंग की ऊँचाई का आधा तरंग का आयाम होता है जबकि लगातार दो शिखरों या गर्तों के बीच की क्षैतिज दूरी तरंगदैर्घ्य कहलाती है।
प्रश्न 13.
तरंग आवृत्ति किसे कहते हैं?
उत्तर:
एक सेकण्ड के समयान्तराल में दिए गए बिन्दु से गुजरने वाली तरंगों की संख्या तरंग आवृत्ति कहलाती है।
प्रश्न 14.
महोर्मि क्या है?
उत्तर:
जलवायु सम्बन्धी प्रभावों यथा वायु एवं वायुमण्डलीय दाब में परिवर्तन के कारण जल गति को महोर्मि कहा जाता है।
प्रश्न 15.
मिश्रित ज्वार कहाँ उत्पन्न होते हैं?
उत्तर:
ये ज्वार-भाटा सामान्य रूप से उत्तरी अमरीका के पश्चिमी तट एवं प्रशान्त महासागर के अनेक द्वीप समूहों पर उत्पन्न होते हैं।
प्रश्न 16.
वृहत् ज्वार से क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
पृथ्वी, सूर्य एवं चन्द्रमा जब एक सीधी रेखा में होते हैं तब ज्वारीय उभार अधिकतम होता है। इसको वृहत् ज्वार कहा जाता है।
प्रश्न 17.
कौन-कौन से प्राथमिक बल धाराओं को प्रभावित करते हैं?
उत्तर:
- सौर ऊर्जा से जल का गर्म होना
- वायु
- गुरुत्वाकर्षण बल
- कोरिऑलिस बल।
लघूत्तरात्मक प्रश्न
प्रश्न 1.
महासागरीय धाराओं एवं तरंगों की तुलना कीजिए। महासागरीय धारायें एवं तरंगें
उत्तर:
महासागरीय धारायें
1. महासागरीय धारायें एक निश्चित दिशा में बहुत बड़ी मात्रा में जल का लगातार बहाव हैं।
2. धाराओं में जल एक स्थान से दूसरे स्थान पर पहुँचता हैं।
तरंगें
तरंगें जल की क्षैतिज गति है।
तरंगों में जल गति नहीं करता है लेकिन तरंग के आगे बढ़ने का क्रम जारी रहता है।
प्रश्न 2.
उपभू एवं अपभू की स्थिति में ज्वार-भाटा पर क्या प्रभाव पड़ता है?
अथवा
‘उपभू’ और ‘अपभू’ क्या है?
उत्तर:
उपभू : महीने में एक बार जब चंद्रमा पृथ्वी के सबसे करीब होता है, वह उपभू स्थिति कहलाती है। इस स्थिति में असामान्य रूप से उच्च एवं निम्न ज्वार आते हैं। इस समय ज्वारीय क्रम सामान्य से अधिक होता अपभू-दो सप्ताह के बाद जब चंद्रमा, पृथ्वी से अधिकतम दूरी पर होता है, तो वह स्थिति ‘अपभू’ हलाती है। इस स्थिति में चंद्रमा का गुरुत्वाकर्षण बल सीमित होता है तथा ज्वार-भाटा के क्रम परिणामस्वरूप अपनी औसत ऊँचाई से कम होते हैं।
.प्रश्न 3.
उपसौर एवं अपसौर की स्थिति में ज्वार-भाटा पर पड़ने वाले प्रभावों को बताइये।
उत्तर:
3 जनवरी को जब पृथ्वी सूर्य के निकटतम होती है तो यह स्थिति उपसौर कहलाती है। प्रत्येक वर्ष 3 जनवरी के आस-पास उच्च एवं निम्न ज्वारों के क्रम भी असामान्य रूप से अधिक न्यून होते हैं। 4 जुलाई को जब पृथ्वी, सूर्य से सबसे दूर होती है, तब वह अपसौर की स्थिति होती है। प्रत्येक वर्ष 4 जुलाई के आस-पास ज्वार के क्रम औसत की अपेक्षा बहुत कम होते हैं।
प्रश्न 4.
विश्व के सबसे ऊँचे ज्वार-भाटा के विषय में लिखिए।
उत्तर:
विश्व का सबसे ऊँचा ज्वार-भाटा कनाडा के नवास्कोशिया में स्थित ‘फंडी की खाड़ी’ में आता है। यहाँ ज्वारीय उभार की ऊँचाई 15-16 मीटर के मध्य होती है क्योंकि वहाँ पर प्रतिदिन दो उच्च ज्वार एवं दो निम्न ज्वार प्रतिदिन आते हैं। इसी कारण एक दिन (24 घंटे) में प्रति छः घंटे में एक ज्वार अवश्य आता है। अनुमानतः एक घंटे में लगभग 2.4 मीटर ऊँचा ज्वारीय उभार आता है। इसका आशय है कि एक मिनट में ज्वार 4 सेमी. अधिक ऊपर की ओर उठता है।
प्रश्न 5.
गहराई के आधार पर महासागरीय धाराओं को वर्गीकृत कीजिए।
उत्तर:
गहराई के आधार पर सागरीय धाराओं के निम्न प्रकार हैं:
- ऊपरी या सतही जलधारा :
महासागरीय जल का 10% भाग सतही जलधारा है। ये धाराएँ महासागरों में 400 मी. की गहराई तक उपस्थित हैं - गहरी जलधारा :
इनके रूप में महासागरीय जल का 90% भाग है। ये धाराएँ महासागरों में घनत्व व गुरुत्व की भिन्नता के कारण बनती हैं। उच्च अक्षांशीय क्षेत्रों में, जहाँ तापमान कम होने से घनत्व अधिक होता है, वहाँ गहरी जलधाराएँ बहती हैं, क्योंकि यहाँ अधिक घनत्व के कारण पानी नीचे की तरफ बैठता है।
प्रश्न 6.
सूर्य, चन्द्रमा एवं पृथ्वी की स्थिति पर आधारित ज्वार-भाटा के प्रकार बताइये।
उत्तर:
ज्वार की ऊँचाई में भिन्नता पृथ्वी की सापेक्ष सूर्य एवं चन्द्रमा की स्थिति पर निर्भर करती है। इस आधार पर ज्वार-भाटा दो प्रकार का होता है-
- वृहत् ज्वार :
पृथ्वी, सूर्य एवं चन्द्रमा जब एक सीधी रेखा में होते हैं तब ज्वारीय उभार अधिकतम होता है। इस स्थिति को वृहत् ज्वार कहा जाता है। इस प्रकार की स्थिति महीने में दो बार पूर्णिमा के दिन एवं अमावस्या के दिन उत्पन्न होती हैं। - निम्न ज्वार :
सामान्य रूप से वृहत् ज्वार एवं निम्न ज्वार के बीच सात दिन का अन्तर होता है। इस समय चन्द्रमा एवं सूर्य एक-दूसरे के समकोण पर होते हैं तथा सूर्य एवं चन्द्रमा के गुरुत्व बल एक-दूसरे के विरुद्ध कार्य करते हैं।
प्रश्न 7.
तापमान के आधार पर धाराओं के प्रकार बताइये।
उत्तर:
तापमान के आधार पर धाराओं के निम्न प्रकार हैं-
(1) ठण्डी जलधारायें :
यह जलधारायें ठण्डा जल, गर्म क्षेत्रों में लाती हैं। ये महाद्वीपों के पश्चिमी तटों पर दोनों गोलाद्धों में निम्न व मध्य अक्षांशीय क्षेत्रों में उत्पन्न होती हैं। ये जल रायें उत्तरी गोलार्द्ध में उच्च अक्षांशीय क्षेत्रों में महाद्वीपों के पूर्वी तट पर बहती हैं।
(2) गर्म जलधारायें :
गर्म जलधारायें गर्म जल को ठण्डे जल क्षेत्रों में पहुँचाती हैं और प्राय: महाद्वीपों के पूर्वी तटों पर बहती हैं। उत्तरी गोलार्द्ध में ये जलधारायें उच्च अक्षांशीय क्षेत्रों में महाद्वीपों के पश्चिमी तट पर बहती हैं।
निबन्धात्मक प्रश्न
प्रश्न 1.
महासागरीय धाराओं के प्रभाव एवं महासागरीय बेसिनों में जलधाराओं की उत्पत्ति का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
(i) महासागरीय धाराओं के प्रभाव :
महासागरीय धारायें मानवीय क्रियाओं को प्रत्यक्ष व अप्रत्यक्ष रूप से प्रभावित करती हैं। उष्ण एवं उपोष्ण कटिबंधीय क्षेत्रों में महाद्वीपों के पश्चिमी तटों पर ठण्डी जलधारायें प्रवाहित होती हैं (विषुवतीय क्षेत्रों को छोड़कर)। उनके औसत तापमान अपेक्षाकृत कम होते हैं व साथ ही दैनिक व वार्षिक तापान्तर भी कम होता है। यद्यपि ये क्षेत्र प्रायः शुष्क हैं फिर भी यहाँ कोहरा छा जाता है। मध्य एवं उच्च ‘अक्षांशों में महाद्वीपों के पश्चिमी तटों पर गर्म जलधारायें बहती हैं जिसके कारण वहाँ एक अलग प्रकार की जलवायु पायी जाती है।
इन क्षेत्रों में ग्रीष्म ऋतु अपेक्षाकृत कम गर्म और शीत ऋतु अपेक्षाकृत मृदु होती है। यहाँ वार्षिक तापान्तर भी कम होता है। उष्ण व उपोष्ण कटिबंधीय क्षेत्रों में गर्म जलधारायें महाद्वीपों के पूर्वी तटों के समानान्तर बहती हैं। इसी कारण यहाँ जलवायु गर्म व आर्द्र होती है। ये क्षेत्र उपोष्ण कटिबंध के प्रति चक्रवातीय क्षेत्रों के पश्चिमी किनारों पर स्थित हैं, जहाँ गर्म व ठण्डी जलधारायें मिलती हैं वहाँ ऑक्सीजन की आपूर्ति प्लैंकटन बढ़ाने में सहायक होती हैं जो कि मछलियों का प्रमुख भोज्य पदार्थ है। संसार के प्रमुख मत्स्य क्षेत्र ठण्डी व गर्म जलधाराओं के मिलन – स्थल पर पाये जाते हैं।
(ii) महासागरीय बेसिनों में जलधाराओं की उत्पत्ति :
सौर ऊर्जा से गर्म होकर जल फैलता है। यही कारण है कि विषुवत वृत्त के पास महासागरीय जल का स्तर मध्य अक्षांशों की अपेक्षा 8 सेण्टीमीटर अधिक ऊँचा होता है। इसके कारण बहुत कम प्रवणता उत्पन्न होती है तथा जल का बहाव ढाल से नीचे की तरफ होता है। महासागर की सतह पर प्रवाहित होने वाली वायु जल को गतिमान करती है। इस क्रम में वायु एवं पानी की सतह के मध्य उत्पन्न होने वाला घर्षण बल जल की गति को प्रभावित करता है।
गुरुत्वाकर्षण के कारण जल नीचे बैठता है और यह एकत्रित जल दाब प्रवणता में अन्तर लाता है। कोरिआलिस बल के कारण उत्तरी गोलार्द्ध में जल की गति के दाहिनी तरफ तथा दक्षिणी गोलार्द्ध में बायीं तरफ प्रवाहित होता है तथा उनके चारों तरफ के बहाव को वलय या गाइरे कहा जाता है। इसके कारण सभी महासागरीय बेसिनों में वृहत् वृत्ताकार धारायें उत्पन्न होती हैं।
प्रश्न 2.
तरंगें क्या हैं? ये कैसे उत्पन्न होती हैं? तरंगों की प्रमुख विशेषताएँ बताइये।
उत्तर:
तरंगें-वायु के सतत प्रवाह व अन्य शक्तियों के कारण महासागरीय जल में गति उत्पन्न होती है। इस गति के कारण कभी जल आगे बढ़ता है तो कभी पीछे लौटता है। सागरीय जल के आगे बढ़ने तथा पीछे लौटने में सागरीय जल के कण अपने ही स्थान पर वृत्ताकार रूप से संचलन करते हैं। इस प्रकार सागरीय जल के क्रमिक रूप से होने वाला उठाव या गिराव ही तरंग कहलाता है।
तरंगों की उत्पत्ति : वायु जल को ऊर्जा प्रदान करती है, जिसके परिणामस्वरूप तरंगें उत्पन्न होती हैं। वायु के कारण तरंगें महासागर में गति करती हैं तथा ऊर्जा तट रेखा पर निर्मुक्त हो जाती है। जैसे ही एक तरंग महासागरीय तट पर पहुँचती है इसकी गति कम हो जाती है। ऐसा गत्यात्मक जल के मध्य आपस में घर्षण होने के कारण होता है तथा जब जल की गहराई तरंग के तरंगदैर्घ्य के आधे से कम होती है तब तरंग टूट जाती है। बड़ी तरंगें खुले महासागरों में पायी जाती हैं। तरंग जैसे ही आगे की तरफ बढ़ती है बड़ी होती जाती है तथा वायु से ऊर्जा को अवशोषित करती जाती है। अधिकतर तरंगें वायु के जल की विपरीत दिशा में गति से उत्पन्न होती हैं।
जब दो नॉट या उससे कम वाली समीर शान्त जल पर प्रवाहित होती है तब छोटी-छोटी उर्मिकाएँ (Ripples) बनती हैं। वायु की गति बढ़ने के साथ ही उर्मिकाओं का आकार तब तक बढ़ता जाता है, जब तक इनके टूटने से सफेद बुलबुले नहीं बन जाते। तट के पास पहुँचने तथा सफेद बुलबुलों में सर्फ के समान घुलने से पूर्व तरंगें हजारों किलोमीटर की यात्रा करती हैं। एक तरंग का आकार एवं आकृति उसकी उत्पत्ति को दर्शाता है। युवा तरंगें अपेक्षाकृत कम ढाल वाली होती हैं तथा संभवतः स्थानीय वायु के कारण बनी होती हैं। कम एवं नियमित गति वाली तरंगों की उत्पत्ति दूरस्थ स्थानों पर होती है। तरंग के उच्चतम बिन्दु की जानकारी वायु की तीव्रता के द्वारा प्राप्त होती है।
तरंगों में गति वायु के द्वारा जल को प्रवाहित करने के कारण होती है जबकि गुरुत्वाकर्षण बल तरंगों के शिखरों को नीचे की तरफ खींचता है। गिरता हुआ जल पहले वाले गर्त को ऊपर की तरफ धकेलता है तथा तरंग नवीन स्थिति में गति करती है। तरंगों के नीचे जल की गति वृत्ताकार होती है। तरंगों की विशेषताएँ : तरंगों की प्रमुख विशेषताएँ निम्नलिखित होती हैं-
- तरंग शिखर व गर्त : तरंग के उच्चतम एवं निम्नतम बिन्दुओं को क्रमशः शिखर एवं गर्त कहा जाता है।
- तरंग की ऊँचाई : तरंग के गर्त के अधःस्थल से शिखर के ऊपरी भाग तक की ऊर्ध्वाधर दूरी तरंग की ऊँचाई कहलाती है।
- तरंग आयाम : तरंग की ऊँचाई का आधा तरंग आयाम होता है।
- तरंग काल : एक निश्चित बिन्दु से गुजरने वाले दो लगातार तरंग शिखर या गर्तों के बीच का समयान्तराल तरंग काल कहलाता है
- तरंगदैर्घ्य : दो लगातार शिखरों या गर्तों के बीच की क्षैतिज दूरी तरंगदैर्ध्य कहलाती है।
- तरंग गति : जल के माध्यम से तरंग के गति करने की दर को तरंग गति कहते हैं तथा इसे नॉट में मापा जाता है।
- तरंग आवृत्ति : एक सेकण्ड के समयान्तराल में दिए गए बिन्दु से गुजरने वाली तरंगों की संख्या तरंग आवृत्ति कहलाती है।
प्रश्न 3.
ज्वार-भाटा एवं महोर्मि में अन्तर स्पष्ट करते हुए ज्वार-भाटा की उत्पत्ति के कारण बताइये।
अथवा
ज्वार-भाटा क्या है? ज्वार-भाटा उत्पन्न होने के कारणों का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
ज्वार-भाटा :
चन्द्रमा एवं सूर्य के आकर्षण के कारण दिन में एक बार या दो बार समुद्रतल के नियतकालिक उठने या गिरने को ज्वार-भाटा कहा जाता है। महोर्मि- जबकि जलवायु सम्बन्धी प्रभावों, यथा- वायु एवं वायुमण्डलीय दाब में परिवर्तन के कारण जल की गति को महोर्मि कहा जाता है।
ज्वार-भाटा की उत्पत्ति के कारण:
चन्द्रमा के गुरुत्वाकर्षण के कारण तथा कुछ सीमा तक सूर्य के गुरुत्वाकर्षण द्वारा ज्वार-भाटाओं की उत्पत्ति होती है। दूसरा कारक, अपकेन्द्रीय बल है जो कि गुरुत्वाकर्षण को सन्तुलित करता है। गुरुत्वाकर्षण बल तथा अपकेन्द्रीय बल दोनों मिलकर पृथ्वी पर ज्वार-भाटाओं को उत्पन्न करने के लिए उत्तरदायी हैं। चन्द्रमा की तरफ वाले पृथ्वी के भाग पर एक ज्वार-भाटा उत्पन्न होता है जबकि विपरीत भाग पर चन्द्रमा का गुरुत्वीय आकर्षण बल उसकी दूरी के कारण कम होता है तब अपकेन्द्रीय बल दूसरी तरफ ज्वार उत्पन्न करता है।
ज्वार उत्पन्न करने वाले बल यथा चन्द्रमा का गुरुत्वीय आकर्षण तथा अपकेन्द्र बल, के बीच का अन्तर है। पृथ्वी के धरातल पर चन्द्रमा के निकट वाले भागों में अपकेन्द्रीयकरण बल की तुलना में गुरुत्वाकर्षण बल अधिक होता है और इसी कारण यह बल चन्द्रमा की तरफ ज्वारीय उभार का कारण है। चन्द्रमा का गुरुत्वाकर्षण पृथ्वी के दूसरी तरफ कम होता है क्योंकि यह भाग चन्द्रमा से अधिकतम दूरी पर है तथा यहाँ अपकेन्द्रीय बल प्रभावशाली होता है। अतः यह चन्द्रमा से दूर उभार उत्पन्न करता है। पृथ्वी के धरातल पर क्षैतिज ज्वार उत्पन्न करने वाले बल ऊर्ध्वाधर बलों से अधिक महत्त्वपूर्ण हैं जिनसे ज्वारीय उभार उत्पन्न होते हैं।
महासागरीय व सागरीय भागों में जहाँ महाद्वीपीय मग्न तट अपेक्षाकृत विस्तृत हैं वहाँ ज्वारीय उभार अधिक ऊँचाई वाले होते हैं। जब ये ज्वारीय उभार मध्य महासागरीय द्वीपों से टकराते हैं तो इनकी ऊँचाई में अन्तर आ जाता है। तटों के पास ज्वार नद व खाड़ियों की आकृतियाँ भी ज्वार-भाटाओं की तीव्रता को प्रभावित करती हैं। शंक्वाकार खाड़ी ज्वार के परिमाण को आश्चर्यजनक ढंग से परिवर्तित कर देती है। जब ज्वार-भाटा द्वीपों के बीच से या खाड़ियों तथा ज्वारनद मुखों से गुजरता है तो उन्हें ज्वारीय धारा कहते हैं।
प्रश्न 4.
ज्वार-भाटा के प्रमुख प्रकारों का वर्णन कीजिए। ज्वार-भाटा के महत्त्व की विवेचना कीजिए। ज्वार-भाटा के प्रकार
उत्तर:
ज्वार की आवृत्ति, दिशा एवं गति में स्थानीय व सामयिक भिन्नता पाई जाती है। ज्वार भाटाओं को उनकी बारम्बारता या उनकी ऊँचाई के आधार पर निम्नलिखित प्रकारों के अन्तर्गत वर्गीकृत किया गया है-
- आवृत्ति पर आधारित ज्वार-भाटा : आवृत्ति के आधार पर ज्वार-भाटा निम्नलिखित तीन प्रकार का होता।
- अर्द्ध दैनिक ज्वार :
यह सबसे सामान्य ज्वारीय प्रक्रिया है जिसके अन्तर्गत प्रतिदिन दो उच्च एवं दो निम्न ज्वार आते हैं। दो लगातार उच्च एवं निम्न ज्वार की ऊँचाई लगभग एकसमान होती है। - दैनिक ज्वार :
दैनिक ज्वार में प्रतिदिन केवल एक उच्च एवं एक निम्न ज्वार होता है। इसमें उच्च एवं निम्न ज्वारों की ऊँचाई समान होती है। - मिश्रित ज्वार :
इस प्रकार के ज्वार भाटा जिनकी ऊँचाई में भिन्नता होती है, मिश्रित ज्वार-भाटा कहलाते हैं। ये ज्वार भाटा सामान्य रूप से उत्तरी अमरीका के पश्चिमी तट एवं प्रशान्त महासागर के अनेक द्वीप समूहों में उत्पन्न होते हैं।
- अर्द्ध दैनिक ज्वार :
- सूर्य, चन्द्रमा एवं पृथ्वी की स्थिति पर आधारित ज्वार-भाटा : उच्च ज्वार की ऊँचाई में भिन्नता पृथ्वी के सापेक्ष सूर्य एवं चन्द्रमा की स्थिति पर निर्भर करती है। इस वर्ग के अन्तर्गत निम्नलिखित प्रकार के ज्वार आते हैं।
- वृहत् ज्वार :
पृथ्वी, सूर्य एवं चन्द्रमा जब एक सीधी रेखा में होते हैं तब ज्वारीय उभार अधिकतम होता है। इसे वृहत् ज्वार कहते हैं। इस प्रकार की स्थिति महीने में दो बार, यथा पूर्णिमा एवं अमावस्या के दिन उत्पन्न होती है। - निम्न ज्वार :
सामान्य रूप से वृहत् ज्वार एवं निम्न ज्वार के मध्य सात दिन का अन्तर होता है। इस समय चन्द्रमा एवं सूर्य एक-दूसरे के समकोण पर होते हैं तथा सूर्य एवं चन्द्रमा के गुरुत्व बल एक-दूसरे के विरुद्ध कार्य करते हैं। चन्द्रमा का आकर्षण दोगुने से अधिक होते हुए भी यह बल सूर्य के गुरुत्वाकर्षण के समक्ष धूमिल हो जाता है।
- वृहत् ज्वार :
ज्वार-भाटा का महत्त्व : ज्वार-भाटा का मानव के लिए महत्त्व निम्न क्षेत्रों में है-
- यह नौसंचालकों व मछुआरों को उनके कार्य सम्बन्धी योजनाओं में मदद करता है।
- ज्वार-भाटा के कारण नदियों के मुहानों व बंदरगाहों के समीप जमे तलछट और कूड़ा-करकट साफ रहते हैं। इससे नदियों के मुहाने, समुद्र-तट व बंदरगाह स्वच्छ, गहरे व व्यापार योग्य बने रहते हैं।
- वर्तमान समय में तकनीकी विकास के साथ ज्वारीय लहरों से जल विद्युत उत्पादन किया जाने लगा है। कनाडा, फ्रांस, रूस व चीन इसमें अग्रणी देश हैं। भारत में भी 3 मेगावाट शक्ति का एक विद्युत संयंत्र प. बंगाल में सुंदरवन के दुर्गादुवानी में स्थापित किया जा रहा है।
प्रश्न 5.
प्रशांत, अटलांटिक और हिंद महासागर में बहने वाली धाराओं को विश्व के मानचित्र में दर्शाइए।
उत्तर: