Well-organized Class 11 Geography Notes in Hindi and Class 11 Geography Chapter 12 Notes in Hindi विश्व की जलवायु एवं जलवायु परिवर्तन can aid in exam preparation and quick revision.
Geography Class 11 Chapter 12 Notes in Hindi विश्व की जलवायु एवं जलवायु परिवर्तन
कोपेन की जलवायु वर्गीकरण की पद्धति – वी. कोपेन द्वारा विकसित की गई जलवायु के वर्गीकरण की आनुभविक पद्धति का सबसे व्यापक उपयोग किया जाता है। कोपेन ने जलवायु के समूहों एवं प्रकारों की पहचान करने के लिए बड़े तथा छोटे अक्षरों के प्रयोग को शुरू किया। सन् 1918 में विकसित तथा समय के साथ संशोधित हुई कोपेन की यह पद्धति आज भी लोकप्रिय और प्रचलित है। कोपेन ने पाँच प्रमुख जलवायु समूह निर्धारित किये जिनमें से चार तापमान पर और एक वर्षण पर आधारित है। बड़े अक्षर A, C, D या E आर्द्र जलवायु तथा B शुष्क जलवायु को निरूपित करता है।
→ उप-प्रकार:
जलवायु समूहों को तापमान एवं वर्षा की मौसमी विशेषताओं के आधार पर अनेक उप-प्रकारों में विभाजित किया गया है जिसको छोटे अक्षरों के द्वारा अभिहित किया गया है-
→ समूह A उष्ण कटिबन्धीय जलवायु:
उष्ण कटिबन्धीय आर्द्र जलवायु कर्क रेखा और मकर रेखा के बीच पायी जाती है। यहाँ वार्षिक तापान्तर बहुत कम तथा वर्षा अधिक होती है। जलवायु के इस उष्ण कटिबन्धीय समूह को तीन प्रकारों में विभाजित किया गया है-
- उष्ण कटिबन्धीय आर्द्र जलवायु (Af):
उष्ण कटिबन्धीय आर्द्र जलवायु विषुवत वृत्त के निकट पायी जाती है। इस प्रकार की जलवायु के प्रमुख क्षेत्र दक्षिणी अमेरिका का अमेजन बेसिन, पश्चिमी विषुवतीय अफ्रीका तथा दक्षिणी-पूर्वी एशिया के द्वीप हैं। इस प्रकार की जलवायु के अन्तर्गत प्रतिदिन दोपहर के बाद गरज और बौछारों के साथ प्रचुर मात्रा में वर्षा होती है। इस जलवायु में सघन वितान तथा व्यापक जैव-विविधता वाले उष्ण कटिबन्धीय सदाबहार वन पाए जाते हैं। - उष्ण कटिबन्धीय मानसून जलवायु (Am):
उष्ण कटिबन्धीय मानसून जलवायु भारतीय उप महाद्वीप, दक्षिणी अमेरिका के उत्तर-पूर्वी भाग तथा उत्तरी आस्ट्रेलिया में पायी जाती है। इस जलवायु प्रदेश में ग्रीष्म ऋतु में व्यापक वर्षा होती है। - उष्ण कटिबन्धीय आर्द्र एवं शुष्क जलवायु (Aw):
उष्ण कटिबन्धीय आर्द्र एवं शुष्क जलवायु उष्ण कटिबन्धीय आर्द्र जलवायु प्रदेशों के उत्तर एवं दक्षिण में पायी जाती है। इस प्रकार की जलवायु दक्षिणी अमेरिका में स्थित ब्राजील के वनों के उत्तर और दक्षिण में बोलीविया तथा पैराग्वे के निकटवर्ती भागों तथा सूडान और मध्य अफ्रीका के दक्षिण में पायी जाती है।
→ शुष्क जलवायु (B)अत्यन्त न्यून वर्षा शुष्क जलवायु की विशेषता है। इस प्रकार की जलवायु पृथ्वी के बहुत बड़े भाग पर पायी जाती है जो कि विषुवत वृत्त से 15° से 60° उत्तरी व दक्षिणी अक्षांशों के बीच विस्तृत हैं। 150 से 300 के निम्न अक्षांशों में यह उपोष्ण कटिबन्धीय उच्च वायुदाब क्षेत्र में पायी जाती है। जलवायु के इस समूह को दो प्रकारों में विभाजित किया जाता है-
- उपोष्ण कटिबन्धीय स्टेपी (BSh) एवं उपोष्ण कटिबन्धीय मरुस्थल (BWh) जलवायु:
उपोष्ण कटिबन्धीय स्टेपी एवं उपोष्ण कटिबन्धीय मरुस्थल जलवायु में वर्षण और तापमान के लक्षण एकसमान होते हैं। वर्षा दोनों ही जलवायु में परिवर्तनशीलता लिए होती है। वर्षा की परिवर्तनशीलता मरुस्थल की अपेक्षा स्टेपी में जीवन को अधिक प्रभावित करती है। इससे कई बार अकाल की स्थिति उत्पन्न हो जाती हैं। यहाँ ग्रीष्म ऋतु में तापमान बहुत ऊँचा रहता है।
→ कोष्ण शीतोष्ण जलवायु (C):
कोष्ण शीतोष्ण जलवायु 30° से 50° अक्षांशों के मध्य मुख्य रूप से महाद्वीपों के पूर्वी और पश्चिमी सीमान्तों पर विस्तृत है। इस जलवायु में सामान्यतः ग्रीष्म ऋतु कोष्ण और शीत ऋतु मृदुल होती है। इस जलवायु समूह को चार प्रकारों में वर्गीकृत किया गया है।
- आर्द्र उपोष्ण कटिबन्धीय जलवायु (Cwa):
आर्द्र उपोष्ण कटिबन्धीय जलवायु कर्क एवं मकर रेखा से ध्रुवों की तरफ मुख्य रूप से भारत के उत्तरी मैदान और दक्षिणी चीन के आन्तरिक मैदानों में पायी जाती है। - भूमध्यसागरीय जलवायु (Cs):
इस प्रकार की जलवायु भूमध्य सागर के चारों तरफ तथा उपोष्ण कटिबन्ध से 30° से 40° अक्षांशों के बीच महाद्वीपों के पश्चिमी तट के साथ-साथ पाई जाती है। उष्ण व शुष्क गर्मियाँ तथा मृदु एवं वर्षायुक्त सर्दियाँ इस जलवायु की विशेषताएँ हैं। - आर्द्र उपोष्ण कटिबन्धीय जलवायु (Cfa):
इस प्रकार की जलवायु उपोष्ण कटिबन्धीय अक्षांशों में महाद्वीपों पूर्वी भागों में पायी जाती है। पूर्वी संयुक्त राज्य अमेरिका, दक्षिणी-पूर्वी चीन, दक्षिणी जापान, उत्तरी-पूर्वी अर्जेण्टाइना तटीय दक्षिणी अफ्रीका और आस्ट्रेलिया के पूर्वी तट इस प्रकार की जलवायु के क्षेत्र हैं। - समुद्री पश्चिम तटीय जलवायु (Cfb):
समुद्री पश्चिम तटीय जलवायु महाद्वीपों के पश्चिमी तटों पर भूमध्य सागरीय जलवायु से ध्रुवों की तरफ पाई जाती है। उत्तर-पश्चिमी यूरोप, उत्तरी अमेरिका का पश्चिमी तट, उत्तरी ! कैलीफोर्निया, दक्षिणी चिली, दक्षिण-पूर्वी आस्ट्रेलिया और न्यूजीलैण्ड इस प्रकार की जलवायु के प्रमुख क्षेत्र हैं। इस जलवायु प्रदेश में वार्षिक और दैनिक तापान्तर कम पाया जाता है। वर्षा वर्ष पर्यन्त लेकिन शीत ऋतु में अधिक होती
→ शीत हिम-वन जलवायु (D):
शीत हिम-वन जलवायु उत्तरी गोलार्द्ध में 40° से 70° अक्षांशों के बीच यूरोप, एशिया और उत्तर अमेरिका के विस्तृत महाद्वीपीय क्षेत्रों में पाई जाती है। शीत हिम वन जलवायु को दो प्रकारों में विभाजित किया गया है-
- आर्द्र जाड़ों से युक्त ठण्डी जलवायु (Df):
आर्द्र जाड़ों से युक्त ठण्डी जलवायु समुद्री पश्चिम तटीय जलवायु और मध्य अक्षांशीय स्टैपी जलवायु से ध्रुवों की तरफ पाई जाती है। इस जलवायु प्रदेश में ध्रुवों की तरफ सर्दियाँ उग्र होती हैं। - शुष्क जाड़ों से युक्त ठण्डी जलवायु ( Dw):
शुष्क जाड़ों से युक्त ठण्डी जलवायु मुख्य रूप से उत्तरी-पूर्वी एशिया में पायी जाती है। जाड़ों में प्रति चक्रवात का स्पष्ट विकास तथा ग्रीष्म ऋतु में उसका कमजोर पड़ना इस क्षेत्र में पवनों के प्रत्यावर्तन की मानसून जैसी दशाएँ उत्पन्न करते हैं।
→ ध्रुवीय जलवायु (E):
70° अक्षांश से परे ध्रुवों की तरफ ध्रुवीय जलवायु पाई जाती है। यह जलवायु दो प्रकार की होती है-
- टुण्ड्रा जलवायु (ET): यह जलवायु प्रदेश तुषार का प्रदेश है जिसमें अधो भूमि स्थायी रूप से जमी रहती है। ग्रीष्म ऋतु में टुण्ड्रा प्रदेशों में दिन के प्रकाश की अवधि लम्बी होती है।
- हिमटोप जलवायु (EF): हिमटोप जलवायु ग्रीनलैण्ड और अण्टार्कटिका के आन्तरिक भागों में पायी जाती है। इस क्षेत्र में वर्षा अल्प मात्रा में होती है। तुषार एवं हिम एकत्रित होती
जाती है जिनका बढ़ता हुआ दबाव हिम परतों को विकृत बना देता है।
→ उच्च भूमि जलवायु (H):
उच्च भूमि जलवायु भौम्याकृति द्वारा नियन्त्रित होती है। उच्च भूमियों में वर्षण के प्रकारों व उनकी गहनता में भी स्थानिक अन्तर पाया जाता है। पर्वतीय वातावरण में ऊँचाई के साथ जलवायु प्रदेशों के स्तरित ऊर्ध्वाधर कटिबन्ध पाए जाते हैं।
→ जलवायु परिवर्तन
भूगर्भिक अभिलेखों से हिमयुगों और अन्तर हिमयुगों में क्रमशः जलवायु परिवर्तन की प्रक्रिया दिखलाई देती है। हिमानी निर्मित झीलों में अवसादों का निक्षेपण उष्ण एवं शीत युगों के होने को उजागर करता है। वृक्षों के तनों में पाए जाने वाले वलय भी आर्द्र एवं शुष्क युगों की उपस्थिति का संकेत देते हैं।
→ अभिनव पूर्व काल में जलवायु :
सभी कालों में जलवायु परिवर्तन होते रहे हैं। विगत शताब्दी के 90 के दशक में चरम मौसमी घटनाएँ घटित हुई हैं। 1990 के दशक में शताब्दी का सबसे गर्म तापमान और विश्व में सबसे भयंकर बाढ़ों को अंकित किया है। सन् 1885 से 1940 तक विश्व के तापमान में वृद्धि की प्रवृत्ति पाई गई जबकि सन् 1940 के उपरान्त तापमान में वृद्धि की दर कम हुई है।
→ जलवायु परिवर्तन के कारण :
जलवायु परिवर्तन के कारणों को खगोलीय और पार्थिव कारणों में वर्गीकृत किया जा सकता है। खगोलीय कारणों का सम्बन्ध सौर कलंक की गतिविधियों से उत्पन्न सौर्यिक निर्गत ऊर्जा में परिवर्तन से है। सौर कलंक सूर्य पर काले धब्बे होते हैं जो कि एक चक्रीय रूप से घटते-बढ़ते रहते हैं। सूर्य के चारों तरफ पृथ्वी के कक्षीय लक्षणों में परिवर्तन के चक्रों, पृथ्वी की डगमगाहट तथा पृथ्वी के अक्षीय झुकाव में परिवर्तनों के बारे में अनुमान लगाया जाता है। जलवायु पर पड़ने वाला सबसे महत्त्वपूर्ण मानवोद्भवी कारण वायुमण्डल में ग्रीन हाउस गैसों का बढ़ता सान्द्रण है। इससे भूमण्डलीय ऊष्मन हो सकता है।
→ भूमण्डलीय ऊष्मन :
ग्रीन हाउस गैसों की उपस्थिति के कारण वायुमण्डल एक ग्रीन हाउस के समान व्यवहार करता है। वायुमंडल प्रवेशी सौर विकिरण का पोषण भी करता है लेकिन पृथ्वी की सतह से ऊपर की तरफ उत्सर्जित होने वाली अधिकतम दीर्घ तरंगों को अवशोषित कर लेता है। वे गैसें जो कि विकिरण की दीर्घ तरंगों का अवशोषण करती हैं, ग्रीन हाउस गैसें कहलाती हैं।
→ ग्रीन हाउस गैसें :
वर्तमान समय में चिन्ता का कारण बनी मुख्य ग्रीन हाउस गैसें कार्बन डाइऑक्साइड, क्लोरो- फ्लोरो कार्बन्स, मीथेन, नाइट्रस ऑक्साइड और ओजोन हैं। कुछ अन्य गैसें यथा नाइट्रिक ऑक्साइड और कार्बन मोनोक्साइड आसानी से ग्रीन हाउस गैसों से प्रतिक्रिया करती हैं और वायुमण्डल में उनके सान्द्रण को प्रभावित करती हैं वायुमण्डल में ग्रीन हाउस गैसों के उत्सर्जन को कम करने के लिए अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर प्रयास किये गये हैं। इनमें सबसे महत्त्वपूर्ण क्योटो प्रोटोकॉल है। क्योटो प्रोटोकॉल ने 35 औद्योगिक राष्ट्रों को परिबद्ध किया है कि वे सन् 1990 के उत्सर्जन स्तर में सन् 2012 तक 5 प्रतिशत की कमी लाएँ।
→ भौगोलिक शब्दावली
- जलवायु : किसी विशाल भू-भाग में मौसम की लम्बी अवधि।
- ग्रीन हाउस गैसें : विकिरण की दीर्घ तरंगों का अवशोषण करने वाली गैसें।
- हिमटोप जलवायु : ग्रीनलैण्ड और अण्टार्कटिका के आन्तरिक भागों में पाई जाने वाली जलवायु।