Understanding the question and answering patterns through Class 11 Geography Question Answer in Hindi Chapter 10 वायुमंडलीय परिसंचरण तथा मौसम प्रणालियाँ will prepare you exam-ready.
Class 11 Geography Chapter 10 in Hindi Question Answer वायुमंडलीय परिसंचरण तथा मौसम प्रणालियाँ
अन्य महत्त्वपूर्ण प्रश्न
बहुचयनात्मक प्रश्न
1. वायुदाब को मापने की इकाई है-
(अ) कैलोरी
(ब) सेन्टीग्रेड
(स) मिलीबार
(द) सेल्शियस ।
उत्तर:
(स) मिलीबार
2. धरातल पर घर्षण का प्रभाव कितनी ऊँचाई तक होता है?
(अ) 1 से 3 किलोमीटर की ऊँचाई तक
(ब) 3 से 5 किलोमीटर की ऊँचाई तक
(स) 2 से 4 किलोमीटर की ऊँचाई तक
(द) 1 से 5 किलोमीटर की ऊँचाई तक
उत्तर:
(अ) 1 से 3 किलोमीटर की ऊँचाई तक
3. समुद्रतल पर औसत वायुमण्डलीय दाब की मात्रा है-
(अ) 898.76 मिलीबार
(ब) 265.00 मिलीबार
(स) 1013.25 मिलीबार
(द) 540.48 मिलीबार।
उत्तर:
(स) 1013.25 मिलीबार
4. दूरी के सन्दर्भ में दाब परिवर्तन की दर कहलाती है-
(अ) घर्षण बल
(ब) दाब प्रवणता
(स) गुरुत्वाकर्षण बल
(द) अभिसरण।
उत्तर:
(ब) दाब प्रवणता
5. कोरिऑलिस बल के प्रभाव से पवनें उत्तरी गोलार्द्ध में अपनी मूल दिशा से किस दिशा में विक्षेपित हो जाती हैं-
(अ) ऊपर की तरफ
(ब) पश्चिम की तरफ
(स) दाहिनी तरफ
(द) बायीं तरफ।
उत्तर:
(स) दाहिनी तरफ
6. जब दो भिन्न प्रकार की वायुराशियाँ मिलती हैं तो उनके मध्य सीमाक्षेत्र को कहते हैं-
(अ) वाताग्र
(ब) बहिरुष्ण कटिबन्धीय चक्रवात
(स) टोरनेडो
(द) उष्ण कटिबन्धीय चक्रवात।
उत्तर:
(अ) वाताग्र
7. उष्ण कटिबन्धीय चक्रवात को अटलाण्टिक महासागर में जिस नाम से जाना जाता है, वह है-
(अ) चक्रवात
(ब) टाइफून
(स) हरीकेन
(द) विली – विलीज।
उत्तर:
(स) हरीकेन
8. पवनों की दिशा एवं वेग को प्रभावित करने वाला कारक है—
(अ) दाब प्रवणता बल
(ब) घर्षण बल
(स) कोरिऑलिस बल
(द) उपरोक्त सभी
उत्तर:
(द) उपरोक्त सभी
9. कोरिऑलिस बल के प्रभाव से पवनें दक्षिणी गोलार्द्ध में अपनी मूल दिशा से किस दिशा में विक्षेपित हो जाती है।
(अ) ऊपर की तरफ
(स) बायीं तरफ
(ब) पश्चिम की तरफ
(द) दाहिनी तरफ
उत्तर:
(स) बायीं तरफ
10. दक्षिणी गोलार्द्ध में निम्न वायुदाब के चारों तरफ पवनों की दिशा क्या होगी?
(अ) घड़ी की सुइयों के
(ब) घड़ी की सुइयों के
(स) समदाब रेखाओं के
(द) समदाब रेखाओं के समानान्तर
उत्तर:
(अ) घड़ी की सुइयों के
रिक्त स्थान वाले प्रश्न
नीचे दिए गए प्रश्नों में रिक्त स्थानों की पूर्ति करें-
1. समुद्र तल पर औसत वायुमण्डलीय दाब _____ मिलीबार होता है। (1013.2/1023.2)
2. वायुमण्डल के निचले भाग में वायुदाब ऊँचाई के साथ तीव्रता से घटता है, यह ह्रास दर प्रत्येक की _____ ऊँचाई पर। मिलीबार होता है। (8मीटर/10 मीटर)
3. 30° उत्तरी व 30° दक्षिणी अक्षांशों के साथ _____ दाब क्षेत्र पाए जाते हैं। (उच्च / निम्न)
4. कोरिऑलिस बल के कारण पवनें उत्तरी गोलार्द्ध में अपनी मूल दिशा के _____ तरफ विक्षेपित हो जाती है। (दाहिनी / बांयी)
5. _____ घटना का मध्यप्रशांत महासागर और आस्ट्रेलिया के वायुदाब परिवर्तन से गहरा सम्बन्ध है। ( एल निनो // ला निनो )
उत्तर:
1. समुद्र तल पर औसत वायुमण्डलीय दाब 1013.2 मिलीबार होता है।
2. वायुमण्डल के निचले भाग में वायुदाब ऊँचाई के साथ तीव्रता से घटता है, यह ह्रास दर प्रत्येक की 10 मीटर ऊँचाई पर। मिलीबार होता है।
3. 30° उत्तरी व 30° दक्षिणी अक्षांशों के साथ उच्च दाब क्षेत्र पाए जाते हैं।
4. कोरिऑलिस बल के कारण पवनें उत्तरी गोलार्द्ध में अपनी मूल दिशा के दाहिनी तरफ विक्षेपित हो जाती है।
5. एल निनो घटना का मध्यप्रशांत महासागर और आस्ट्रेलिया के वायुदाब परिवर्तन से गहरा सम्बन्ध है।
सत्य / असत्य वाले प्रश्न
नीचे दिए गए कथनों में से सत्य / असत्य कथन छाँटिए
1. दो भिन्न प्रकार की वायु राशियों के मध्य सीमा क्षेत्र को वाताग्र कहते हैं।
2. समुद्रतल से एक समान वायुदाब वाले स्थानों को मिलाने वाली रेखाएँ समदाब रेखाएँ कहलाती हैं।
3. शीतोष्ण कटिबंधीय चक्रवात पूर्व से पश्चिम दिशा में चलते हैं।
4. गुरुत्वाकर्षण बल के कारण धरातल के निकट वायु विरल होती है और इसी कारण वायुदाब कम होता है।
5. किन्हीं दो स्थानों के बीच वायुदाब के अन्तर को दाब प्रवणता कहते हैं।
उत्तर:
1. दो भिन्न प्रकार की वायु राशियों के मध्य सीमा क्षेत्र को वाताग्र कहते हैं। (सत्य)
2. समुद्रतल से एक समान वायुदाब वाले स्थानों को मिलाने वाली रेखाएँ समदाब रेखाएँ कहलाती हैं। (सत्य)
3. शीतोष्ण कटिबंधीय चक्रवात पूर्व से पश्चिम दिशा में चलते हैं। (सत्य)
4. गुरुत्वाकर्षण बल के कारण धरातल के निकट वायु विरल होती है और इसी कारण वायुदाब कम होता है। (सत्य)
5. किन्हीं दो स्थानों के बीच वायुदाब के अन्तर को दाब प्रवणता कहते हैं। (सत्य)
मिलान करने वाले प्रश्न
निम्न को सुमेलित कीजिए
(1) अटलांटिक महासागर के चक्रवात | (अ) एल निनो |
(2) दक्षिण चीन सागर के चक्रवात | (ब) मिलीबार |
(3) पश्चिमी आस्ट्रेलिया के चक्रवात | (स) हरीकेन |
(4) पेरु तट पर गर्मधाराओं की उपस्थिति | (द) टाइफून |
(5) वायुदाब मापने की इकाई | (य) विली – विलीज |
उत्तर:
(1) अटलांटिक महासागर के चक्रवात | (स) हरीकेन |
(2) दक्षिण चीन सागर के चक्रवात | (द) टाइफून |
(3) पश्चिमी आस्ट्रेलिया के चक्रवात | (य) विली – विलीज |
(4) पेरु तट पर गर्मधाराओं की उपस्थिति | (अ) एल निनो |
(5) वायुदाब मापने की इकाई | (ब) मिलीबार |
अतिलघूत्तरात्मक प्रश्न
प्रश्न 1.
पवनों द्वारा तापमान व आर्द्रता के पुनर्वितरण का क्या परिणाम होता है?
उत्तर:
सम्पूर्ण पृथ्वी का तापमान स्थिर रहता है।
प्रश्न 2.
वायुदाब को मापने के लिए किस यंत्र का प्रयोग किया जाता है?
उत्तर:
पारदं वायुदाबमापी (Mercury Barometer) अथवा निर्द्रव बैरोमीटर का।
प्रश्न 3.
पवनों की गतिशीलता का प्रमुख कारण क्या है?
उत्तर:
वायुदाब में अन्तर का होना।
प्रश्न 4.
निम्न वायुदाब प्रणाली किस प्रकार के मौसम की सूचक होती है?
उत्तर:
चक्रवाती मौसम की।
प्रश्न 5.
शीतोष्ण कटिबंधीय चक्रवातों एवं उष्ण कटिबंधीय चक्रवातों के चलने की दिशा लिखिए।
उत्तर:
शीतोष्ण कटिबंधीय चक्रवात पश्चिम से पूर्व। उष्ण कटिबंधीय चक्रवात – पूर्व से पश्चिम।
प्रश्न 6.
कोरिऑलिस बल किसे कहते हैं?
उत्तर:
पृथ्वी के घूर्णन द्वारा लगने वाला बल कोरिऑलिस बल कहलाता है।
प्रश्न 7.
अधोध्रुवीय निम्न दाब पट्टियाँ किन अक्षांशों पर पायी जाती हैं?
उत्तर:
60° उत्तरी व 60° दक्षिणी अक्षांशों पर।
प्रश्न 8.
उपोष्ण उच्च वायुदाब क्षेत्र किसे कहते हैं?
उत्तर:
30° उत्तरी व 30° दक्षिणी अक्षांशों के साथ उच्च दाब क्षेत्र पाए जाते हैं, जिन्हें उपोष्ण उच्च वायुदाब के क्षेत्र कहा जाता है।
प्रश्न 9.
वायुमण्डलीय दाब किसे कहते हैं?
उत्तर:
माध्य समुद्रतल से वायुमण्डल की अन्तिम सीमा तक एक इकाई क्षेत्रफल के वायु-स्तम्भ के भार को वायुमण्डलीय दाब कहते हैं।
प्रश्न 10.
धरातल के निकट वायु- दाब अधिक क्यों होता है?
उत्तर-गुरुत्वाकर्षण बल के कारण धरातल के निकट वायु सघन होती है और इसी के कारण वायु – दाब अधिक होता है।
प्रश्न 11.
समदाब रेखाएँ क्या होती हैं?
उत्तर:
वे रेखाएँ जो कि समुद्रतल से एकसमान वायुदाब वाले स्थानों को मिलाती हैं, समदाब रेखाएँ कहलाती हैं।
प्रश्न 12.
पृथ्वी के धरातल पर क्षैतिज पवनें किन प्रभावों का परिणाम हैं?
उत्तर:
धरातल पर क्षैतिज पवनें दाब प्रवणता, घर्षण बल तथा कोरिऑलिस बल के संयुक्त प्रभावों का परिणाम हैं।
प्रश्न 13.
दाब – प्रवणता क्या है?
उत्तर:
किन्हीं दो स्थानों के बीच वायुदाब के अन्तर को दाब – प्रवणता कहते हैं।
प्रश्न 14.
पवन से क्या अभिप्राय है? इनके प्रवाहित होने की दिशा बताइए।
उत्तर:
क्षैतिज रूप से गतिशील वायु पवन कहलाती है। ये उच्च दाब से कम दाब की तरफ प्रवाहित होती हैं।
प्रश्न 15.
चक्रवाती एवं प्रतिचक्रवाती परिसंचरण में अन्तर बताइए।
उत्तर:
निम्न दाब क्षेत्र के चारों तरफ पवनों का परिक्रमण चक्रवाती परिसंचरण जबकि उच्च वायु- दाब क्षेत्र के चारों तरफ ऐसा होना प्रतिचक्रवाती परिसंचरण कहलाता है।
प्रश्न 16.
कोष्ठ किसे कहते हैं?
उत्तर:
पृथ्वी की सतह से ऊपर की दिशा में होने वाले परिसंचरण और इसके विपरीत दिशा में होने वाले परिसंचरण को कोष्ठ कहते हैं।
प्रश्न 17.
वायु – राशि से क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
वायु का वह वृहत् भाग, जिसमें तापमान व आर्द्रता संबंधी क्षैतिज भिन्नताएँ बहुत कम होती हैं, कहलाता है।
प्रश्न 18.
वाताग्र कहां निर्मित होते हैं?
उत्तर:
वाताग्र मध्य अक्षांशों में ही निर्मित होते हैं।
प्रश्न 19.
वाताग्र की विशेषता लिखिए।
उत्तर:
तीव्र वायुदाब व तापमान प्रवणता।
प्रश्न 20.
शीतोष्ण कटिबंधीय चक्रवात कौनसी वाताग्र के साथ बनते हैं?
उत्तर:
यह ध्रुवीय वाताग्र के साथ-साथ बनते हैं।
प्रश्न 21.
वाताग्र एवं वाताग्र-जनन में अन्तर बताइए।
उत्तर:
जब दो भिन्न प्रकार की वायु : राशियाँ मिलती हैं तो उनके मध्य सीमा क्षेत्र को वाताग्र कहते हैं जबकि वाताग्रों के बनने की प्रक्रिया वाताग्र जनन कहलाती है।
प्रश्न 22.
वाताग्र कितने प्रकार के होते हैं? उनके नाम बताइए।
उत्तर:
वाताग्र चार प्रकार के होते हैं
- शीत वाताग्र
- उष्ण वाताग्र
- अचर वाताग्र
- अधिविष्ट वाताग्र।
प्रश्न 23.
शीतोष्ण कटिबन्धीय चक्रवात किसे कहा जाता है?
उत्तर:
वे चक्रवातीय वायु प्रणालियाँ, जो कि उष्ण कटिबन्ध से दूर मध्य व उच्च अक्षांशों में विकसित होती हैं, उन्हें शीतोष्ण कटिबन्धीय चक्रवात कहते हैं।
प्रश्न 24.
उष्ण कटिबन्धीय चक्रवात की प्रमुख विशेषता बताइए।
उत्तर:
एक विकसित उष्ण कटिबन्धीय चक्रवात की विशेषता इसके केन्द्र के चारों तरफ प्रबल सर्पिल पवनों का परिसंचरण है जिसे इसकी आँख कहा जाता है।
प्रश्न 25.
तड़ित झंझा कब उत्पन्न होते हैं?
उत्तर:
तड़ित संज्ञा उष्ण आर्द्र दिनों में प्रबल संवहन के कारण उत्पन्न होते हैं।
प्रश्न 26.
उष्ण कटिबंधीय चक्रवातों का व्यास अरब सागर व हिन्द महासागर पर कितना होता है?
उत्तर:
600 से 1200 किमी. के बीच।
प्रश्न 27.
समुद्र पर टोरनेडो को क्या कहते हैं?
उत्तर:
समुद्र पर टोरनेडो को जल स्तंभ (Water spouts) कहते हैं।
लघूत्तरात्मक प्रश्न
प्रश्न 1.
ऊर्ध्वाधर पवनें अधिक शक्तिशाली क्यों नहीं होती हैं?
उत्तर:
वायुमण्डल के निचले भाग में वायुदाब ऊँचाई के साथ तीव्र गति से कम होता जाता है। यह ह्रास दर प्रति 10 मीटर की ऊँचाई पर 1 मिलीबार होती है। वायुदाब हमेशा एक ही दर से कम नहीं होता। ऊर्ध्वाधर दाब – प्रवणता क्षैतिज दाब-प्रवणता की अपेक्षा अधिक होती है लेकिन इसके विपरीत दिशा में कार्यरत गुरुत्वाकर्षण बल से यह सन्तुलित हो जाती है। अतः ऊर्ध्वाधर पवनें अधिक शक्तिशाली नहीं होती हैं।
प्रश्न 2.
वायु – दाब की पट्टियों के स्थानान्तरण का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
धरातल पर मूलतः वायुदाब की चार पट्टियाँ पायी जाती हैं – विषुवत रेखीय निम्न वायुदाब पट्टी, उपोष्ण कटिबंधीय उच्च वायुदाब पट्टी, उपध्रुवीय निम्न वायुदाब पट्टी तथा ध्रुवीय उच्च दाब पट्टी। ये वायु – दाब पट्टियाँ अस्थायी होती हैं और सूर्य की किरणों के विस्थापन के साथ विस्थापित होती रहती हैं। उत्तरी गोलार्द्ध में शीत ऋतु में ये पट्टियाँ दक्षिण की तरफ तथा ग्रीष्म ऋतु में उत्तर दिशा की तरफ स्थानान्तरित हो जाती हैं।
प्रश्न 3.
वायु – राशियाँ कितने प्रकार की होती हैं? लिखिए।
उत्तर:
वायुराशियाँ निम्नलिखित पाँच प्रकार की होती हैं
- उष्णकटिबन्धीय महासागरीय वायु – राशि (mT),
- उष्ण कटिबन्धीय महाद्वीपीय वायु – राशि (CT),
- ध्रुवीय महासागरीय वायु – राशि (mP),
- ध्रुवीय महाद्वीपीय वायु- राशि, (cP),
- महाद्वीपीय आर्कटिक उष्ण कटिबन्धीय वायु – राशि (cA)
प्रश्न 4.
वायुराशियों के उद्गम क्षेत्र लिखिए।
उत्तर:
वायुराशियों के उद्गम क्षेत्र : वायु – राशियों के निम्नलिखित 5 प्रमुख उद्गम क्षेत्र हैं
- उष्ण व उपोष्ण कटिबन्धीय महासागर,
- उपोष्ण कटिबन्धीय उष्ण मरुस्थल,
- उच्च अक्षांशीय अपेक्षाकृत ठण्डे महासागर,
- उच्च अक्षांशीय अति शीत बर्फ से आच्छादित महाद्वीप क्षेत्र,
- स्थायी रूप से बर्फ से आच्छादित महाद्वीपीय अण्टार्कटिक तथा आर्कटिक क्षेत्र।
प्रश्न 5.
पर्वत व घाटी समीर का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
घाटी समीर:
दिन के समय पर्वतीय प्रदेशों में ढाल गर्म हो जाते हैं, जिससे इनके संपर्क में आने वाली वायु गर्म होकर ऊपर उठती है। परिणामस्वरूप उत्पन्न रिक्त स्थान को भरने के लिए वायु घाटी से प्रवाहित होती है। घाटी से प्रवाहित होने वाली इन पवनों को घाटी समीर कहा जाता है।
पर्वत समीर : रात्रि के समय पर्वतीय ढाल जल्दी ठण्डे हो जाते हैं और सघन वायु घाटी में नीचे उतरने लगती है। इसके फलस्वरूप होने वाले पवन प्रवाह को पर्वत समीर कहा जाता है।
प्रश्न 6.
क्या कारण है कि विषुवत् वृत्त के निकट उष्ण कटिबंधीय चक्रवात नहीं बनते ?
उत्तर:
कोरिऑलिस बल दाब प्रवणता के समकोण पर कार्य करता है। दाब प्रवणता बल समदाब रेखाओं के समकोण पर होता है। जितनी दाब प्रवणता अधिक होगी, पवनों का वेग उतना ही अधिक होगा और पवनों की दिशा उतनी ही अधिक विक्षेपित होगी। इन दो बलों के परस्पर समकोण पर होने के कारण निम्न दाब क्षेत्रों में पवनें इसी के आस-पास बहती हैं। विषुवत् वृत्त पर कोरिऑलिस बल शून्य होता है और पवनें समदाब रेखाओं के समकोण पर बहती हैं। अत: निम्न दाब क्षेत्र और अधिक गहन होने की बजाय पूरित हो जाता है। यही कारण है कि विषुवत् वृत्त के निकट उष्ण कटिबंधीय चक्रवात नहीं बनते।
प्रश्न 7.
चक्रवात तथा प्रतिचक्रवात में पवनों की दिशा के प्रारूप को समझाइये।
उत्तर:
चक्रवात तथा प्रतिचक्रवात में पवनों की दिशा का प्रारूप
दाब पद्धति
|
केन्द्र में दाब की दिशा
|
पवन दिशा का प्रारूप | |
उत्तरी गोलार्द्ध | दक्षिण गोलार्द्ध | ||
चक्रवात | निम्न | घड़ी की सुई की दिशा के विपरीत | घड़ी की सुई की दिशा के अनुरूप |
प्रतिचक्रवात | उच्च | घड़ी की सुई की दिशा के अनुरूप | घड़ी की सुई की दिशा के विपरीत |
प्रश्न 8.
भूमंडलीय पवनों के प्रारूप को निर्धारित करने वाले कारक लिखिए।
उत्तर:
भूमंडलीय पवनों का प्रारूप मुख्यतः निम्न बातों / कारकों पर निर्भर करता है-
- वायुमंडलीय ताप में अक्षांशीय भिन्नता।
- वायुदाब पट्टियों की उपस्थिति।
- वायुदाब पट्टियों का सौर किरणों के साथ विस्थापन।
- धरातल पर महाद्वीप व महासागरों का वितरण।
- पृथ्वी की घूर्णन गति।
प्रश्न 9.
पछुआ पवनों के विषय में लिखिए।
उत्तर:
पछुआ पवन:
दोनों गोलार्द्ध में उपोष्ण कटिबंधीय उच्च वायुदाब क्षेत्र से उपध्रुवीय निम्न वायुदाब क्षेत्रों की ओर चलने वाली पवनें, पछुआ पवन कहलाती हैं। उत्तरी गोलार्द्ध में इनकी दिशा दक्षिण-पश्चिम से उत्तर-पूर्व तथा दक्षिणी गोलार्द्ध में उत्तर-पश्चिम से दक्षिण – पूर्व की ओर होती है। इन पवनों की ध्रुवीय सीमा में परिवर्तन होता रहता है। जहाँ ये पवनें ध्रुवीय पवनों से मिलती हैं, वहाँ शीतोष्ण वाताग्र की उत्पत्ति होती है। ये पवनें अत्यन्त तीव्र गति से चलती हैं और इनसे महाद्वीपों के पश्चिमी भागों में तीव्र वर्षा होती है।
प्रश्न 10.
उष्ण कटिबंधीय चक्रवात के विभिन्न नामों का उल्लेख करो।
उत्तर:
उष्ण कटिबंधीय चक्रवात आक्रामक तूफान होते हैं। इनकी उत्पत्ति उष्ण कटिबंधीय क्षेत्रों के महासागरों पर होती है और ये तटीय क्षेत्रों की तरफ गतिमान होते हैं। यह चक्रवात आक्रामक पवनों के कारण विस्तृत विनाश, अत्यधिक वर्षा और तूफान लाते हैं। अपनी भयावहता के कारण यह भिन्न-भिन्न नामों से जाने जाते हैं। हिन्द महासागर में ये ‘चक्रवात’, अटलांटिक महासागर में ‘हरीकेन’ के नाम से, पश्चिम प्रशान्त और दक्षिण चीन सागर में ‘टाइफून’ और पश्चिमी आस्ट्रेलिया में ‘विली – विलीज’ कहलाते हैं।
प्रश्न 11.
उष्ण कटिबंधीय चक्रवातों की उत्पत्ति व विकास की अनुकूल स्थितियाँ लिखिए।
अथवा
उष्ण कटिबन्धीय चक्रवात की उत्पत्ति के लिए कौनसी परिस्थितियाँ उत्तरदायी हैं?
उत्तर:
उष्ण कटिबंधीय चक्रवातों की उत्पत्ति व विकास की अनुकूल स्थितियाँ निम्न प्रकार से हैं-
- वृहत् समुद्री सतह, जहाँ तापमान 27° से. से अधिक हो।
- कोरिऑलिस बल का अधिक होना।
- ऊर्ध्वाधर पवनों की गति में अंतर कम होना।
- कमजोर निम्न दाब क्षेत्र या निम्न स्तर का चक्रवातीय परिसंचरण का होना।
- समुद्री तल तंत्र पर ऊपरी अपसरण।
निबन्धात्मक प्रश्न
प्रश्न 1.
उष्ण कटिबन्धीय एवं शीतोष्ण कटिबन्धीय चक्रवात में अन्तर बताते हुए तड़ित झंझा व टोरनेडो के विषय में लिखिए।
उत्तर:
उष्ण कटिबन्धीय एवं शीतोष्ण कटिबन्धीय चक्रवात में अन्तर
शीतोष्ण कटिबन्धीय चक्रवात | उष्ण कटिबन्धीय चक्रवात |
1. शीतोष्ण कटिबन्धीय चक्रवातों में स्पष्ट वाताग्र प्रणालियाँ होती हैं। | उष्ण कटिबन्धीय चक्रवातों में वाताग्र प्रणालियों का अभाव होता है। |
2. शीतोष्ण कटिबन्धीय चक्रवात विस्तृत क्षेत्र पर फैले होते हैं तथा इनकी उत्पत्ति जल व स्थल दोनों पर होती है। | उष्ण कटिबन्धीय चक्रवात केवल समुद्रो में उत्पन्न होते हैं और स्थलीय भागों में पहुँचने परनष्ट हो जाते हैं। |
3. शीतोष्ण कटिबन्धीय चक्रवात विस्तृत क्षेत्र को प्रभावित करते हैं। | उष्ण कटिबन्धीय चक्रवात कम क्षेत्र को प्रभावित करते हैं। |
4. शीतोष्ण कटिबन्धीय चक्रवात पश्चिम से पूर्व दिशा में उष्ण कटिबन्धीय चक्रवात पूर्व से पश्चिम दिशा में चलते चलते हैं। | उष्ण कटिबन्धीय चक्रवात पूर्व से पश्चिम दिशा में चलते हैं। |
5. शीतोष्ण कटिबन्धीय चक्रवातों में पवनों का वेग कम होता है तथा ये कम विनाशकारी होते हैं। | उष्ण कटिबन्धीय चक्रवातों में पवनो का वेग अपेक्षाकृत तीव्र होता है और ये अधिक विनाशकारी होते हैं। |
तड़ितझंझा व टोरनेडो:
तड़ित झंझा व टोरनेडो विध्वंसक स्थानीय तूफान होते हैं। इनका प्रभाव अल्प समय के लिए होता है तथा अपेक्षाकृत कम क्षेत्रफल तक सीमित रहते हैं, लेकिन आक्रामक होते हैं। उष्ण आर्द्र दिनों में प्रबल संवहन के कारण तड़ित झंझा उत्पन्न होते हैं। ये पूर्ण विकसित कपासी मेघ हैं जो कि गरज व बिजली उत्पन्न करते हैं। जब ये अधिक ऊँचाई पर चले जाते हैं जहाँ तापमान 0° सेल्शियस से कम रहता है तो इससे ओले बनते हैं तथा ओलावृष्टि होती है। आर्द्रता कम होने पर ये तड़ित झंझा धूल भरी आँधियाँ लाते हैं। इनकी विशेषता उष्ण वायु का प्रबल ऊर्ध्व प्रवाह है जिसके कारण बादलों का आकार बढ़ता है और ये अधिक ऊँचाई तक पहुँचते हैं। इसके कारण वर्षण होता है।
इसके उपरान्त नीचे की तरफ वात प्रवाह पृथ्वी पर ठण्डी वायु व वर्षा लाते हैं। ये व्यापक रूप से भयंकर विनाशकारी होते हैं। इस परिघटना को टोरनेडो कहते हैं। टोरनेडो सामान्य रूप से मध्य अक्षांशों में उत्पन्न होते हैं। समुद्र पर टोरनेडो को ‘जल-स्तम्भ’ कहते हैं। ये आक्रामक तूफान वायुमंडलीय ऊर्जा वितरण में भिन्नता या अस्थिर वायु के व्यवस्थित होने की अभिव्यक्ति है। इन तूफानों से स्थितिज व ताप ऊर्जा, गतिज ऊर्जा में परिवर्तित हो जाती है और अशांत वायुमंडलीय दशाएँ पुनः स्थिर स्थिति में लौट आती हैं।
प्रश्न 2.
शीतोष्ण कटिबन्धीय का अर्थ बताते हुए इसकी उत्पत्ति बताइए।
अथवा
बहिरुष्ण कटिबंधीय चक्रवात ध्रुवीय वाताग्र के साथ-साथ कैसे बनते हैं? विस्तार से बतलाइये।
उत्तर:
शीतोष्ण अथवा बहिरुष्ण कटिबन्धीय चक्रवात:
वे चक्रवातीय वायु प्रणालियाँ, जो कि उष्ण कटिबन्ध से दूर, मध्य व उच्च अक्षांशों में विकसित होती हैं, बहिरुष्ण या शीतोष्ण कटिबन्धीय चक्रवात कहलाती हैं।
शीतोष्ण अथवा बहिरुष्णीय कटिबन्धीय चक्रवात की उत्पत्ति:
शीतोष्ण कटिबन्धीय चक्रवात ध्रुवीय वाताग्र के साथ – साथ बनते हैं। मध्य तथा उच्च अक्षांशों में जिस क्षेत्र से ये गुजरते हैं वहां मौसम सम्बन्धी अवस्थाओं में अचानक तीव्र गति से परिवर्तन लाते हैं।
शुरू में वाताग्र अचर होता है। उत्तरी गोलार्द्ध में वाताग्र के दक्षिण में कोष्ठ व उत्तर दिशा से ठण्डी हवा प्रवाहित होती है। जब वाताग्र के साथ वायु-दाब कम हो जाता है तब कोष्ठ वायु उत्तर दिशा की तरफ तथा ठण्डी वायु दक्षिण दिशा में घड़ी की सुइयों के विपरीत चक्रवातीय परिसंचरण करती हैं। इस चक्रवातीय प्रवाह शीतोष्ण कटबन्धीय चक्रवात विकसित होता है जिसमें एक उष्ण वाताग्र तथा एक शीत वाताग्र होता है। इस चक्रवात में कोष्ण वायु क्षेत्र या कोष्ण खण्ड ठण्डे अग्रभाग व पिछले शीत खण्ड के बीच पाया जाता है।
कोष्ण वायु आक्रामक रूप से ठण्डी वायु के ऊपर चढ़ती है और उष्ण वाताग्र के प्रथम भाग में स्तरी मेघ दिखलाई देते हैं और वर्षा होती है। पीछे से आने वाला शीत वाताग्र उष्ण वायु को ऊपर धकेलता है, जिसके फलस्वरूप शीत वाताग्र के साथ कपासी मेघ बनते हैं। शीत वाताग्र उष्ण वाताग्र की अपेक्षा तीव्र गति से चलते हैं और अन्त में उष्ण वाताग्रों को पूरी तरह से ढक लेते हैं। यह कोष्ण वायु ऊपर उठती है तथा इसका धरातल से कोई सम्पर्क नहीं रहता तथा अधिविष्ट वाताग्र बनता है। अन्त में चक्रवात धीरे-धीरे क्षीण हो जाता है।
प्रश्न 3.
निम्नलिखित के विषय में संक्षिप्त में लिखिए-
(क) मौसमी पवनें
(ख) स्थानीय पवनें
(ग) घाटी समीर व पर्वत समीर।
उत्तर:
(क) मौसमी पवनें:
वे पवनें, जो मौसम के अनुसार अपनी दिशा बदल लेती हैं, मौसमी पवनें कहलाती हैं। मानसूनी हवाएँ मौसमी पवनें होती हैं। पवनों के प्रवाह के प्रारूप में विभिन्न मौसमों में बदलाव आता है। यह बदलाव अत्यधिक तापमान, पवन व वायुदाब पट्टियों के विस्थापन आदि के कारण होता है। ऐसे विस्थापन का सबसे अधिक स्पष्ट प्रभाव विशेषकर दक्षिण – पूर्वी एशिया में मानसून पवनों के बदलाव में देखा जा सकता है। ये हवाएँ 6 माह उत्तर-पश्चिम से दक्षिण – पूर्व की ओर तथा 6 माह दक्षिण – पूर्व से उत्तर – र- पश्चिम की ओर चलती हैं।
(ख) स्थानीय पवनें:
वे पवनें, जो वर्षभर एक निश्चित दिशा एवं क्षेत्र में प्रवाहित होती हैं, उन्हें स्थानीय पवनें कहा जाता है। भूतल के गर्म व ठंडे होने से भिन्नता तथा दैनिक व वार्षिक चक्रों के विकास से बहुत सी स्थानीय व क्षेत्रीय पवनें प्रवाहित होती हैं। व्यापारिक हवाएँ, पछुआ पवनें और ध्रुवीय पवनें मुख्यतः स्थानीय पवन होती हैं।
(ग) घाटी समीर:
दिन के समय पर्वतीय प्रदेशों में ढाल गर्म हो जाते हैं, जिससे इनके सम्पर्क में आने वाली वायु गर्म होकर ऊपर उठती है। परिणामस्वरूप उत्पन्न रिक्त स्थान को भरने के लिए वायु घाटी में प्रवाहित हाती है। घाटी से प्रवाहित होने वाली इन पवनों को घाटी समीर कहा जाता ह।
पर्वत समीर:
रात्रि के समय पर्वतीय ढाल जल्दी ठण्डे हो जाते हैं और सघन वायु घाटी में नीचे उतरने लगती है। इसके परिणामस्वरूप होने वाले पवन प्रवाह को पर्वत समीर कहते हैं।
प्रश्न 4.
समुद्र समीर व स्थल समीर को रेखाचित्र बनाकर समझाइये।
उत्तर:
स्थल व समुद्र समीर:
ऊष्मा के अवशोषण तथा स्थानांतरण में स्थल व समुद्र में भिन्नता पायी जाती है। दिन के समय स्थल भाग समुद्र की अपेक्षा अधिक गर्म हो जाते हैं। अतः स्थल पर हवाएँ ऊपर उठती हैं और निम्न दाब क्षेत्र बनता है, जबकि समुद्र अपेक्षाकृत ठंडे रहते हैं और उन पर उच्च वायुदाब बना रहता है। इससे समुद्र से स्थल की ओर दाब प्रवणता उत्पन्न होती है और पवनें समुद्र से स्थल की ओर समुद्र समीर के रूप में प्रवाहित होती हैं।
रात्रि में इसके एकदम विपरीत प्रक्रिया होती है। स्थल, समुद्र की अपेक्षा जल्दी ठंडा होता है। दाब प्रवणता स्थल समुद्र की ओर होने पर स्थल समीर प्रवाहित होती है।
प्रश्न 5.
समदाब रेखाएँ किसे कहते हैं? विभिन्न वायुदाब परिस्थितियों में समदाब रेखाओं की आकृति का सचित्र उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
समदाब रेखाएँ:
मानचित्र पर वायुदाब का वितरण समदाब रेखाओं द्वारा प्रदर्शित किया जाता है। सामान्यतः समदाब रेखाएँ वे रेखाएँ होती हैं, जो समुद्रतल से एकसमान वायुदाब वाले स्थानों को मिलाती हैं। आगे दिया गया चित्र विभिन्न वायुदाब परिस्थितियों में समदाब रेखाओं की आकृति को दर्शाता है।
चित्र को देखने से स्पष्ट होता है कि विभिन्न वायुदाब परिस्थितियों में समदाब रेखाएँ भिन्न-भिन्न होती हैं। समदाब रेखाओं का प्रदर्शन सामान्यतः दो रूपों में किया जा सकता है— निम्न दाब अथवा चक्रवातीय स्थिति तथा उच्च दाब प्रणाली अथवा प्रति- चक्रवातीय स्थिति। निम्न दाब प्रणाली एक या अधिक समदाब रेखाओं से घिरी होती है, जिसके केन्द्र में निम्न वायुदाब होता है। इसके विपरीत उच्च दाब प्रणाली में एक या अधिक समदाब रेखाएँ होती हैं, परन्तु इसके केन्द्र में उच्चतम वायुदाब होता है।
प्रश्न 6.
वायुमंडल के सामान्य परिसंचरण का महासागरों पर क्या प्रभाव पड़ता है? समझाइये।
उत्तर:
वायुमंडल के सामान्य परिसंचरण का महासागरों पर प्रभाव:
सामान्यतः वायुमंडलीय पवनों के प्रवाह प्रारूप को ही वायुमंडलीय परिसंचरण कहा जाता है। हेडले कोष्ठ, फैरल कोष्ठ तथा ध्रुवीय कोष्ठ मिलकर वायुमंडलीय परिसंचरण के प्रारूप को निर्धारित करते हैं। तापीय ऊर्जा का निम्न अक्षांशों से उच्च अक्षांशों में स्थानांतरण सामान्य परिसंचरण को बनाये रखता है। वायुमंडल का सामान्य परिसंचरण महासागरों को भी प्रभावित करता है। वायुमंडल में वृहत् पैमाने पर चलने वाली पवनें धीमी तथा अधिक गति की महासागरीय धाराओं को प्रवाहित करती हैं। महासागर वायु को ऊर्जा व जलवाष्प प्रदान करते हैं। वायुमंडल के सामान्य परिसंचरण के संदर्भ में प्रशांत महासागर का गर्म या ठंडा होना अत्यधिक महत्त्वपूर्ण है। मध्य प्रशांत महासागर की गर्म जल धाराएँ दक्षिणी अमेरिका के तट की ओर प्रवाहित होती हैं और पीरू की ठंडी जल धाराओं का स्थान ले लेती हैं। पीरू के तट पर इन गर्म धाराओं की उपस्थिति ‘एल-निनो’ कहलाता है।
एल-निनो घटना का मध्य प्रशांत महासागर और आस्ट्रेलिया के वायुदाब परिवर्तन से गहरा सम्बन्ध है। प्रशांत महासागर पर वायुदाब में यह परिवर्तन दक्षिणी दोलन कहलाता है। इन दोनों (दोलन या बदलाव तथा एल-निनो) की संयुक्त घटना को ‘ई एन एस ओ’ (ENSO) कहा जाता है। जिन वर्षों में (ENSO)शक्तिशाली होता है, उन वर्षों में विश्व में वृहत् मौसम संबंधी भिन्नताएँ देखी जाती हैं। दक्षिण अमेरिका के पश्चिमी शुष्क तट पर भारी वर्षा होती है, आस्ट्रेलिया और कभी-कभी भारत अकालग्रस्त होते हैं तथा चीन में बाढ़ आती है। इन घटनाओं के ध्यानपूर्वक आकलन से संसार के अन्य भागों की मौसम सम्बन्धी भविष्यवाणी के रूप में इनका प्रयोग किया जाता है।
प्रश्न 7.
वाताग्र किसे कहते हैं? वाताग्र के विभिन्न प्रकारों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
वाताग्र:
जब दो भिन्न प्रकार की वायुराशियाँ मिलती हैं, तो उनके मध्य सीमा क्षेत्र को वाताग्र कहते हैं। वाताग्रों के बनने की प्रक्रिया ‘वाताग्र – जनन’ (Frontogenesis) कहलाती है। वाताग्र मध्य अक्षांशों में ही बनते हैं और तीव्र वायुदाब व तापमान प्रवणता इनकी विशेषता होती है। ये तापमान में अचानक परिवर्तन लाते हैं तथा इसी कारण वायु ऊपर उठती है, बादल बनते हैं और वर्षा होती है।
वाताग्र के प्रकार : वाताग्र मुख्यतः निम्नलिखित चार प्रकार के होते हैं-
- शीत वाताग्र : जब शीतल व भारी वायु आक्रामक रूप में उष्ण वायुराशियों को ऊपर धकेलती है तो इस संपर्क क्षेत्र को शीत वाताग्र कहते हैं।
- उष्ण वाताग्र : यदि गर्म वायुराशियाँ आक्रामक रूप में ठंडी वायुराशियों को ऊपर धकेलती हैं, तो इस संपर्क क्षेत्र को उष्ण वाताग्र कहते हैं।
- अचर वाताग्र : जब वाताग्र स्थिर हो जायें तो इन्हें अचर वाताग्र कहा जाता है। ऐसे वाताग्र में कोई भी वायु ऊपर नहीं उठती है।
- अधिविष्ट वाताग्र : जब एक वायुराशि पूर्णतः धरातल के ऊपर उठ जाए तो ऐसे वाताग्र को अधिविष्ट वाताग्र कहते हैं।
प्रश्न 8.
उष्ण कटिबंधीय चक्रवात से क्या अभिप्राय है? एक विकसित उष्ण कटिबंधीय चक्रवात की संरचना को चित्र द्वारा समझाइये।
उत्तर:
उष्ण कटिबंधीय चक्रवात:
कर्क तथा मकर रेखाओं के बीच उष्ण कटिबंधीय क्षेत्रों में उत्पन्न होने वाले चक्रवातों को उष्या कटिबंधीय चक्रवात कहते हैं। इनकी उत्पत्ति महासागरों पर होती है तथा स्थलीय भागों में पहुँचने पर यह नष्ट हो जाते हैं। इनमें पवनों का वेग अपेक्षाकृत तीव्र होता है और ये विनाशकारी होते हैं। यह पूर्व से पश्चिम को चलते हैं। हिंद महासागर में ये ‘चक्रवात’, अटलांटिक महासागर में ‘हरिकेन’, पश्चिम प्रशांत और दक्षिण चीन सागर में ‘टाइफून’ तथा पश्चिमी आस्ट्रेलिया में ‘विली – विलीज’ कहलाते हैं। इनका व्यास बंगाल की खाड़ी, अरब सागर व हिंद महासागर पर 600 से 1200 किमी. के बीच होता है। यह 300 से 500 किमी. प्रति दिन की दर से आगे बढ़ते हैं।
एक विकसित उष्णकटिबंधीय चक्रवात की विशेषता इसके केन्द्र के चारों तरफ प्रबल सर्पिल पवनों का परिसंचरण है जिसे इसकी आँख कहा जाता है। इस परिसंचरण प्रणाली का व्यास 150 से 250 किलोमीटर तक होता है। इसका केन्द्र (अक्षु) क्षेत्र शान्त होता है जहाँ पवनों का अवतलन होता है। अक्षु के चारों तरफ अक्षुभित्ति होती है जहाँ वायु का प्रबल व वृत्ताकार रूप में आरोहण होता है, यह आरोहण क्षोभ सीमा की ऊँचाई तक पहुँचता है। इस क्षेत्र में पवनों का वेग अधिकतम होता है जो 250 किलोमीटर प्रति घण्टा तक होता है। इन चक्रवातों से मूसलाधार वर्षा होती है।