Understanding the question and answering patterns through Class 11 Geography NCERT Solutions in Hindi Chapter 7 भू-आकृतियाँ तथा उनका विकास will prepare you exam-ready.
Class 11 Geography NCERT Solutions Chapter 7 in Hindi भू-आकृतियाँ तथा उनका विकास
पृष्ठ संख्या 58
प्रश्न 1.
अगर पृथ्वी के छोटे से मध्यम आकार के स्थलखण्ड को भू- आकृति कहते हैं तो भूदृश्य क्या है?
उत्तर:
पृथ्वी पर विस्तृत अनेक सम्बन्धित भू-आकृतियाँ आपस में मिलकर भूदृश्य का निर्माण करती हैं जो कि भूतल के विस्तृत भाग हैं। प्रत्येक भू-आकृति की अपनी भौतिक आकृति, आकार व पदार्थ होते हैं जो कि कुछ भू- प्रक्रियाओं एवं उनके कारकों के द्वारा निर्मित हैं।
प्रश्न 2.
भू-आकृतियों के विकास के दो महत्वपूर्ण पहलू क्या हैं?
उत्तर:
जलवायु सम्बन्धी परिवर्तन तथा वायुराशियों के ऊर्ध्वाधर अथवा क्षैतिज संचलन भू-आकृतियों के विकास के दो महत्वपूर्ण पहलू हैं।
पृष्ठ संख्या-59
प्रश्न 3.
क्या ऊँचे स्थलरूपों के उच्चावच का सम्पूर्ण निम्नीकरण संभव है?
उत्तर:
प्रवाहित जल के द्वारा ऊँचे स्थलरूपों के उच्चावच का सम्पूर्ण निम्नीकरण संभव नहीं है क्योंकि अपरदन की अन्तिम अवस्था में यत्र-तत्र अवरोधी चट्टानों के अवशेष दिखलाई पड़ते हैं जो ‘मोनाडनोक’ कहलाते हैं।
पृष्ठ संख्या-62
प्रश्न 4.
प्राकृतिक तटबंध विसर्प अवरोधिकाओं से कैसे भिन्न हैं?
उत्तर:
प्राकृतिक तटबंध बड़ी नदियों के किनारे पर पाए जाते हैं। ये नदियों के पावों में स्थूल पदार्थों के रैखिक, निम्न व समानान्तर कटक के रूप में पाए जाते हैं जो कि अनेक स्थानों पर कटे हुए होते हैं जबकि विसर्प अवरोधिकाएँ बड़ी नदी विसर्पों के उत्तल ढालों पर पाई जाती हैं जो कि प्रवाहित जल के द्वारा लाए गए तलछटों के नदी के किनारों पर निक्षेपण के कारण बनती हैं। इनकी चौड़ाई व परिच्छेदिका लगभग एक समान होती है और इनके अवसाद मिश्रित आकार के होते हैं।
पृष्ठ संख्या-68
प्रश्न 5.
नदी घाटियों और हिमनद घाटियों में आधारभूत अन्तर क्या है?
उत्तर:
नदी घटियों का प्रारम्भ तंग व छोटी-छोटी क्षुद्र सरिताओं से होता है जो कि आकार में अंग्रेजी के अक्षर V के समान होती हैं जबकि हिमनद घाटियाँ गर्त के समान होती हैं जिनके तल चौड़े व किनारे चिकने तथा ढाल तीव्र होते हैं। ये आकार में अंग्रेजी के अक्षर U के समान होती हैं।
पृष्ठ संख्या-69
प्रश्न 6.
नदी के जलोढ़ मैदान व हिमानी धौत मैदानों में अन्तर स्पष्ट करें।
उत्तर:
जब नदी उच्च स्थलों से बहती हुई गिरिपद व मन्द ढाल के मैदानों में प्रवेश करती है तो नदी के जलोढ़ मैदान का निर्माण होता है। पर्वतीय क्षेत्रों में बहने वाली नदियाँ भारी व स्थूल आकार के नदी – भार को वहन करती हैं। मंद ढालों पर नदियाँ यह भार वहन करने में असमर्थ रहती हैं तो यह शंकु के आकार में निक्षेपित हो जाता है जिसे जलोढ़ पंख कहते हैं। इसके विपरीत हिमानी गिरिपद के मैदानों में अथवा महाद्वीपीय हिमनदों से दूर हिमानी – जलोढ़ निक्षेपों से हिमानी धौत मैदान निर्मित होते हैं।
पृष्ठ संख्या – 70
प्रश्न 7.
गोलाश्मी मृत्तिका व जलोढ़ में क्या अन्तर है?
उत्तर:
गोलाश्मी मृत्तिका हिमानी द्वारा ढोये जाने वाले पदार्थ हैं जबकि जलोढ़ नदी जल में बहने वाले पदार्थों को कहते हैं।
पृष्ठ संख्या – 71
प्रश्न 8.
उच्च चट्टानी व निम्न अवसादी तटों की प्रक्रियाओं व स्थलाकृतियों के सन्दर्भ में विभिन्न अन्तर क्या है?
उत्तर:
उच्च चट्टानी तटों के सहारे तरंगें अवनमित होकर धरातल पर अत्यधिक बल के साथ प्रहार करती हैं जिससे पहाड़ी पार्श्व भृगु का आकार ले लेते हैं। तरंग घर्षित चबूतरे, पुलिन, रोधिका, लैगून इससे सम्बन्धित स्थलाकृतियाँ हैं जबकि निम्न अवसादी तटों के सहारे नदियाँ तटीय मैदान एवं डेल्टा बनाकर अपनी लम्बाई बढ़ा लेती हैं। जब मन्द ढाल वाले अवसादी तटों पर तरंगें अवनमित होती हैं तो तल के अवसाद भी दोलित होते हैं और इनके परिवहन से अवरोधिकाएँ, लैगून, स्पिट व डेल्टा निर्मित होते हैं।
पाठ्यपुस्तक के प्रश्न
बहुविकल्पीय प्रश्न –
1. स्थलरूप विकास की किस अवस्था में अधोमुख कटाव प्रमुख होता है?
(क) तरुणावस्था
(ख) प्रथम प्रौढ़ावस्था
(ग) अन्तिम प्रौढ़ावस्था
(घ) वृद्धावस्था
उत्तर:
(क) तरुणावस्था
2. एक गहरी घाटी जिसकी विशेषता सीढ़ीनुमा खड़े ढाल होते हैं, किस नाम से जानी जाती है?
(क) U आकार घाटी
(ख) अंधी घाटी
(ग) गॉर्ज
(घ) कैनियन
उत्तर:
(ग) गॉर्ज
3. निम्न में से किन प्रदेशों में रासायनिक अपक्षय प्रक्रिया यांत्रिक अपक्षय प्रक्रिया की अपेक्षा अधिक शक्तिशाली होती है।
(क) आर्द्र प्रदेश
(ख) शुष्क प्रदेश
(ग) चूना – पत्थर प्रदेश
(घ) हिमनद प्रदेश
उत्तर:
(क) आर्द्र प्रदेश
4. निम्न में से कौनसा वक्तव्य लेपीज (Lapies) शब्द को परिभाषित करता है-
(क) छोटे से मध्य आकार के उथले गर्त।
(ख) ऐसे स्थलरूप जिनके ऊपरी मुख वृत्ताकार व नीचे से कीप के आकार के होते हैं।
(ग) ऐसे स्थलरूप जो धरातल से जल के टपकने से बनते हैं।
(घ) अनियमित धरातल जिनके तीखे कटक व खांच हों।
उत्तर:
(घ) अनियमित धरातल जिनके तीखे कटक व खांच हों।
5. गहरे, लम्बे व विस्तृत गर्त या बेसिन जिनके शीर्ष दीवार खड़े ढाल वाले व किनारे खड़े व अवतल होते हैं, उन्हें क्या कहते हैं-
(क) सर्क
(ग) घाटी हिमनद
(ख) पार्श्विक हिमोढ़
(घ) एस्कर
उत्तर:
(क) सर्क
निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर लगभग 30 शब्दों में दीजिए-
प्रश्न 1.
चट्टानों में अध:कर्तित विसर्प और मैदानी भागों में जलोढ़ के सामान्य विसर्प क्या बताते हैं?
उत्तर:
चूंकि मैदानी भागों में मंद ढाल होने से नदी के क्षैतिज अपरदन के फलस्वरूप सामान्य विसर्प तथा तीव्र ढाल वाले चट्टानी भागों में लम्बवत् अपरदन के फलस्वरूप अधःकर्तित विसर्प निर्मित होते हैं। अतः इन दोनों स्थलरूपों में उच्चावच की भिन्नता के कारण नदियों द्वारा अपरदन की प्रकृति में अन्तर पाया जाता है।
प्रश्न 2.
घाटी रन्ध्र अथवा युवाला का विकास कैसे होता है?
उत्तर:
जब घोल रन्ध्र व डोलाइन भूमिगत जल द्वारा निर्मित कन्दराओं की छत के गिरने से या पदार्थों के स्खलन के द्वारा आपस में मिल जाते हैं तो लम्बी, तंग तथा विस्तृत खाइयाँ बन जाती हैं जिन्हें घाटी रन्ध्र या युवाला के नाम से जाना जाता है।
प्रश्न 3.
चूनायुक्त चट्टानी प्रदेशों में धरातलीय जल प्रवाह की अपेक्षा भौम जल प्रवाह अधिक पाया जाता है क्यों?
उत्तर:
चूनायुक्त चट्टानी प्रदेशों में चट्टानें पारगम्य, कम सघन, अत्यधिक जोड़ों व संधियों वाली होती हैं जिससे यह जलप्रवाह को अपने ऊपर नहीं रोक पातीं। यही कारण है कि चूनायुक्त चट्टानों में घोल प्रक्रिया के कारण धरातलीय जल प्रवाह की अपेक्षा भौम जल प्रवाह अधिक पाया जाता है।
प्रश्न 4.
हिमनद घाटियों में कई रैखिक निक्षेपण स्थलरूप मिलते हैं। इनकी अवस्थिति व नाम बताएँ।
उत्तर:
- अन्तस्थ हिमोढ़ : ये हिमनद के अन्तिम भाग में मिलते हैं।
- पाश्विक हिमोढ़ : ये हिमनद घाटी की दीवार के समानान्तर निर्मित होते हैं।
- मध्यस्थ हिमोढ़ : ये घाटी के मध्य भाग में पार्श्विक हिमोढ़ के साथ-साथ मिलते हैं।
- तलस्थ हिमोढ़-ये घाटी हिमनद के तेजी से पिघलने पर निर्मित अव्यवस्थित व भिन्न मोटाई के निक्षेप हैं।
प्रश्न 5.
मरुस्थली क्षेत्रों में पवन कैसे अपना कार्य करती है? क्या मरुस्थलों में यही एक कारक अपरदित स्थलरूपों का निर्माण करता है?
उत्तर:
मरुस्थलीय क्षेत्रों में पवन अपना कार्य अपवाहन एवं घर्षण द्वारा करती है। मरुस्थलों में पवन के अतिरिक्त वृहत् क्षरण एवं प्रवाहित जल की चादर से भी अपरदित स्थलरूपों का निर्माण होता है।
निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर लगभग 150 शब्दों में दीजिए-
प्रश्न 1.
आर्द्र एवं शुष्क जलवायु प्रदेशों में प्रवाहित जल ही सबसे महत्वपूर्ण भू-आकृतिक कारक है। विस्तार से वर्णन करें।
उत्तर:
प्रवाहित जल आर्द्र प्रदेशों में अधिक सक्रिय होता है, साथ ही शुष्क जलवायु वाले क्षेत्रों में भी इसकी सक्रियता महत्वपूर्ण होती है। आर्द्र प्रदेशों में अत्यधिक वर्षा होने के कारण प्रवाहित जल सबसे महत्वपूर्ण भू-आकृतिक कारक है। यह धरातल के निम्नीकरण के लिए उत्तरदायी है। प्रवाहित जल दो रूपों में कार्य करता है।
- धरातल पर परत के रूप में फैला हुआ प्रवाह
- रेखिक प्रवाह, जो घाटियों में नदियों व सरिताओं के रूप में प्रवाहित होता है।
आई प्रदेशों में प्रवाहित जल:
प्रवाहित जल के द्वारा निर्मित अधिकतर अपरदित स्थल रूप ढाल प्रवणता के अनुरूप प्रवाहित होती हुई नदियों की आक्रामक युवावस्था से सम्बन्धित हैं। इस अवस्था में नदियाँ पृष्ठ अपरदन करती हैं, जिससे V-आकार की घाटी, गॉर्ज, कैनियन, जलप्रपात तथा रैपिड्स आदि स्थलरूपों का निर्माण होता है। कालान्तर में तीव्र ढाल लगातार अपरदन के कारण मन्द ढाल में परिवर्तित हो जाते हैं और फलस्वरूप नदियों का वेग कम हो जाता है, जिससे निक्षेपण की प्रक्रिया शुरू हो जाती है।
इस समय नदियाँ पार्श्व अपरदन द्वारा घाटी को चौड़ा करती हैं। तीव्र ढाल से बढ़ती हुई सरिताएँ भी कुछ निक्षेपित भू-आकृतियाँ बनाती हैं लेकिन ये नदियों के मध्यम तथा धीमे ढाल पर बने आकारों की तुलना में बहुत कम होते हैं। प्रवाहित जल का ढाल जितना मंद होगा उतना ही अधिक निक्षेपण होता है। प्रवाहित जल अन्ततः प्रवाह में कमी से कई शाखाओं में बँटकर समतल मैदान और डेल्टाओं का निर्माण करता है। इस प्रकार स्पष्ट है कि आर्द्र जलवायु प्रदेशों में प्रवाहित जल ही सबसे महत्त्वपूर्ण भू-आकृतिक कारक है; जो अपरदन, परिवहन तथा निक्षेपण द्वारा अनेक भू-आकृतिक स्थलरूपों का निर्माण करता है।
शुष्क प्रदेशों में प्रवाहित जल:
शुष्क / उष्ण मरुस्थलों में भी पवन के बाद दूसरा प्रभावशाली नाच्छादनकर्त्ता कारक प्रवाहित जल है। यद्यपि मरुस्थलों में वर्षा बहुत कम होती है, लेकिन यह अल्प समय में मूसलाधार वर्षा (Torrential) के रूप में होती है। वास्तव में मरुस्थलों में अधिकतर स्थलाकृतियों का निर्माण प्रवाहित जल की चादर बाढ़ (Sheet flood) से होता है।
मरुस्थलीय चट्टानें अत्यधिक वनस्पति विहीन होने से तथा दैनिक तापांतर के कारण यांत्रिक व रासायनिक अपक्षय से अधिक प्रभावित होती हैं। अतः इनका शीघ्र क्षय होता है और वेग प्रवाह इस अपक्षय जनित मलबे को आसानी से बहा ले जाते हैं। यहाँ भी वृहत् अपरदन मुख्यतः परत बाढ़ या वृष्टि धोवन से ही संपन्न होता है। मरुस्थलों में नदियाँ चौड़ी, अनियमित तथा वर्षा के बाद अल्प समय तक ही प्रवाहित होती हैं।
प्रश्न 2.
चूना चट्टानें आर्द्र व शुष्क जलवायु में भिन्न व्यवहार करती हैं, क्यों? चूना प्रदेशों में प्रमुख व मुख्य भू-आकृतिक प्रक्रिया कौनसी है और इसके क्या परिणाम हैं?
उत्तर:
चूना चट्टानें आर्द्र व शुष्क जलवायु में भिन्न कार्य करती हैं। चूना चट्टानों वाले आर्द्र जलवायु प्रदेशों में धरातलीय जल का अन्तःस्रवण आसानी से हो जाता है क्योंकि यहाँ चट्टानें पारगम्य, कम सघन, अत्यधिक जोड़ों संधियों व दरारों वाली होती हैं। लम्बवत् गहराई पर जाने के बाद जल धरातल के नीचे की संधियों, छिद्रों व संस्तरण तल से होकर क्षैतिज अवस्था में प्रवाहित होना शुरू करता है। जल का यह क्षैतिज व ऊर्ध्वाधर प्रवाह ही चट्टानों के अपरदन कां कारण है। चूना पत्थर या डोलोमाइट में कैल्सियम कार्बोनेट की प्रधानता होती है जो जल के सम्पर्क में आकर आसानी से घुल जाता है।
शुष्क जलवायु प्रदेशों में चूना चट्टानें बहुत कठोर होती हैं। इन पर पवन द्वारा अपरदन कार्य का प्रभाव बहुत कम पड़ता है तथा इन क्षेत्रों में वर्षा जल का भी अभाव होता है, जिस कारण यहाँ कार्स्ट स्थलाकृतियों का निर्माण नहीं हो पाता है। इस प्रकार चूना चट्टानें आर्द्र व शुष्क जलवायु में भिन्न व्यवहार करती हैं।
चूना प्रदेशों में धरातलीय व भौम जल, रासायनिक प्रक्रिया द्वारा (घोलीकरण व अवक्षेपण) अनेक स्थल रूपों को विकसित करते हैं। घोलीकरण व अवक्षेपण की प्रक्रियाएँ या तो चूना पत्थर व डोलोमाइट चट्टानों में अलग से या अन्य चट्टानों के साथ अंतरासंस्तरित पायी जाती हैं। किसी भी चूना पत्थर या डोलोमाइट चट्टानों के क्षेत्र में भौम जल द्वारा घुलनक्रिया और उसके निक्षेपण प्रक्रिया से बने ऐसे स्थलरूपों को ‘कार्स्ट स्थलाकृति’ कहते हैं। भूमिगत जल इन चट्टानों से मिलकर रासायनिक क्रिया करता है और ये चट्टानें घुलकर वियोजित होने लगती हैं। इनके अपरदन से भिन्न-भिन्न आकृतियाँ यथा कुण्ड, घोलरन्ध्र, लैपीज और चूना पत्थर चबूतरे, डोलाइन, कन्दराएँ आदि का तथा निक्षेपण से स्टैलेक्टाइट, स्टैलेग्माइट और स्तंभ आदि स्थलाकृतियों का निर्माण होता है।
प्रश्न 3.
हिमनद ऊँचे पर्वतीय क्षेत्रों को निम्न पहाड़ियों व मैदानों में कैसे परिवर्तित करते हैं या किस प्रक्रिया से यह कार्य सम्पन्न होता है? बताएँ।
उत्तर:
हिमनद की प्रक्रिया:
पृथ्वी पर परत के रूप में हिम प्रवाह या पर्वतीय ढालों से घाटियों में रैखिक प्रवाह के रूप में बहते हिम को हिमनद कहते हैं। वे हिमनद जो कि वृहत् समतल क्षेत्र पर हिम परत के रूप में फैले हुए हों वे महाद्वीपीय या गिरिपद हिमनद कहलाते हैं तथा पर्वतीय या घाटी हिमनद वे हिमनद हैं जो कि पर्वतीय ढालों में प्रवाहित होते हैं। प्रवाहित जल के विपरीत हिमनद का प्रवाह बहुत धीमा होता है। हिमनद प्रतिदिन कुछ सेण्टीमीटर या इससे कम से लेकर कुछ मीटर तक प्रवाहित हो सकते हैं। हिमनद हिम के भार और गुरुत्वाकर्षण बल के कारण ढाल के अनुरूप अत्यन्त मन्द गति से प्रवाहित होते हैं। हिमनदों से प्रबल अपरदन होता है जिसका कारण इसके अपने भार से उत्पन्न घर्षण है।
हिमनद द्वारा घर्षित चट्टानी पदार्थ यथा बड़े गोलाश्म व शैलखण्ड इसके तल में ही इसके साथ घसीटे जाते हैं या घाटी के किनारों पर अपघर्षण व घर्षण के द्वारा अत्यधिक अपरदन करते हैं। हिमनद अपक्षय रहित चट्टानों का भी प्रभावशाली रूप से अपरदन करते हैं जिसके परिणामस्वरूप ऊँचे पर्वत छोटी पहाड़ियों व मैदानों में परिवर्तित हो जाते हैं। हिमनद के लगातार संचलित होने से हिमनद मलबा हट जाता है तथा विभाजक नीचे हो जाता है। कालान्तर में ढाल इतने निम्न हो जाते हैं कि हिमनद संचलन की शक्ति खत्म हो जाती है तथा निम्न पहाड़ियों व अन्य निक्षेपित स्वरूपों वाला एक हिमानी धौत रह जाता है।
- अपरदित स्थल रूप : हिमनद के अपरदन से सर्क, हार्न या गिरिशृंग तथा सिरेटेड कटक, गर्त आदि स्थलाकृतियाँ निर्मित होती हैं।
- निक्षेपित स्थल रूप : हिमनद के निक्षेपण से हिमोढ़, एस्कर, ड्रमलिन एवं हिमानी धौत मैदान आदि स्थलाकृतियाँ निर्मित होती हैं।