Understanding the question and answering patterns through Class 11 Geography NCERT Solutions in Hindi Chapter 6 भू-आकृतिक प्रक्रियाएँ will prepare you exam-ready.
Class 11 Geography NCERT Solutions Chapter 6 in Hindi भू-आकृतिक प्रक्रियाएँ
पृष्ठ संख्या 47
प्रश्न 1.
धरातल असमतल क्यों है?
उत्तर:
धरातल पृथ्वी मंडल के अंतर्गत उत्पन्न हुए बाह्य बलों एवं पृथ्वी के अंदर उत्पन्न आंतरिक बलों से अनवरत प्रभावित होता रहता है तथा हमेशा परिवर्तनशील होता रहता है। अन्तर्जनित शक्तियाँ लगातार धरातल के भागों को ऊपर उठाती हैं या उनका निर्माण करती हैं परन्तु बहिर्जनिक प्रक्रियाएँ इसी अनुपात में धरातल में उत्पन्न भिन्नता को सम करने में असफल रहती हैं इसलिए धरातल असमतल पाया जाता है।
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प्रश्न 2.
क्या आप समझते हैं भू-आकृतिक कारकों एवं भू-आकृतिक प्रक्रियाओं में अन्तर करना आवश्यक है?
उत्तर:
एक प्रक्रिया एक बल होता है, जो धरातल के पदार्थों के साथ अनुपयुक्त होने पर प्रभावी हो जाता है। एक कारक एक गतिशील माध्यम है, जो धरातल के पदार्थों को हटाता, ले जाता तथा निक्षेपित करता है। इस प्रकार प्रवाहयुक्त जल, भूमिगत जल, हिमानी, हवा, लहरों, धाराओं आदि को भू-आकृतिक कारक कहा जा सकता है। इस प्रकार भू- आकृतिक कारक विशेषकर बहिर्जनिक एवं भू-आकृतिक प्रक्रियाएँ, दोनों ही भूतल के विन्यास में परिवर्तन लाती हैं, इसलिए दोनों एक समान हैं। अतः इनमें अन्तर करना आवश्यक नहीं है।
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प्रश्न 3.
ज्वालामुखीयता एवं ज्वालामुखी शब्दों में भेद कीजिए।
उत्तर:
जब धरातल के आन्तरिक भाग से तरल लावा एवं गैसें धरातल के ऊपर प्रवाहित होता है तो यह क्रिया ज्वालामुखीयता कहलाती है एवं जिस स्थान से यह लावा निकलता है उसे ज्वालामुखी कहते हैं।
प्रश्न 4.
आप क्यों सोचते हैं कि ढाल या प्रवणता बहिर्जनिक बलों से नियंत्रित विवर्तनिक कारकों द्वारा निर्मित होते हैं?
उत्तर:
बहिर्जनिक प्रक्रियाएँ अपनी ऊर्जा सूर्य द्वारा निर्धारित वायुमण्डलीय ऊर्जा एवं अन्तर्जनित शक्तियों से नियंत्रित विवर्तनिक कारकों से उत्पन्न प्रवणता से प्राप्त करती हैं अतः ढाल विवर्तनिक बलों से नियन्त्रित विवर्तनिक कारकों द्वारा निर्मित होते हैं।
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प्रश्न 5.
सभी बहिर्जनिक प्रक्रियाओं के पीछे एकमात्र प्रेरक बल क्या होता है?
उत्तर:
सभी बहिर्जनिक प्रक्रियाओं के पीछे एकमात्र प्रेरक बल गुरुत्वाकर्षण बल होता है।
पृष्ठ संख्या 54
प्रश्न 6.
बृहत् संचलन एवं अपरदन दोनों में पदार्थों का एक स्थान से दूसरे स्थान पर स्थानान्तरण होता है। अतः दोनों एक ही माने जा सकते हैं या नहीं? यदि नहीं, तो क्यों?
उत्तर:
बृहत् संचलन एवं अपरदन दोनों में पदार्थों का एक स्थान से दूसरे स्थान पर स्थानान्तरण होता है परन्तु बृहत् संचलन बहुत ही मन्द गति से होते हैं जबकि जलवायु के तत्त्वों द्वारा अपरदन कार्य तीव्र गति से होते हैं साथ ही अपरदित पदार्थ तीव्र गति से स्थानान्तरित होते हैं। अपरदन नवीन भू-आकृतियों को जन्म देते हैं। इसलिए दोनों को एक नहीं माना जा सकता।
प्रश्न 7.
क्या शैलों के अपक्षय के बिना पर्याप्त अपरदन सम्भव हो सकता है?
उत्तर:
नहीं, शैलों के अपक्षय के बिना पर्याप्त अपरदन सम्भव नहीं हो सकता है क्योंकि अपरदन द्वारा उच्चावच का निम्नीकरण होता है, अर्थात् भू-दृश्य विघर्षित होते हैं। इसका तात्पर्य है कि अपक्षय अपरदन में सहायक होता है। लेकिन अपक्षय अपरदन के लिये अनिवार्य दशा नहीं है।
पृष्ठ संख्या 55
प्रश्न 8.
क्या अपक्षय मिट्टी के निर्माण के लिए पूर्ण रूप से उत्तरदायी है? यदि नहीं तो क्यों?
उत्तर:
अपक्षय मिट्टी के निर्माण के लिए पूर्ण रूप से उत्तरदायी नहीं है क्योंकि मिट्टी का निर्माण मूल पदार्थ, स्थलाकृति, जलवायु, जैविक क्रियाओं तथा समय आदि कारकों के द्वारा नियंत्रित होता है।
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प्रश्न 9.
क्या मृदा निर्माण प्रक्रिया एवं मृदा निर्माण नियन्त्रक कारकों को अलग करना आवश्यक है?
उत्तर:
मृदा निर्माण प्रक्रिया एवं मृदा निर्माण नियन्त्रक कारकों को अलग करना आवश्यक है क्योंकि मृदा निर्माण प्रक्रिया के अन्तर्गत मृदा जनन अपक्षयित पदार्थों पर निर्भर करती है, जबकि मृदा निर्माण पाँच होता है
- शैले,
- स्थलाकृति,
- जलवायु,
- जैविक क्रियाएँ,
- समय।
प्रश्न 10.
मृदा निर्माण प्रक्रिया में कालावधि, स्थलाकृति एवं मूल पदार्थ निष्क्रिय नियन्त्रक कारक क्यों माने जाते हैं?
उत्तर:
मृदा निर्माण की सभी प्रक्रियाएँ लम्बे काल तक पार्श्विका विकास करते हुए कार्यरत रहती हैं और स्थलाकृतियाँ मूल पदार्थ के अनाच्छादन को सूर्य की किरणों के सम्बन्ध में प्रभावित करती हैं तथा स्थलाकृति धरातलीय एवं उप-सतही अप्रवाह की प्रक्रिया को मूल पदार्थ के सम्बन्ध में भी करती है। तीव्र ढालों पर मृदा छिछली (Thin) तथा सपाट उच्च क्षेत्रों में गहरी / मोटी (Thick)होती है। निम्न ढालों जहाँ अपरदन मन्द तथा जल का परिश्रवण (Precolation) अच्छा रहता है, मृदा निर्माण अनुकूल होता है। अतः मृदा निर्माण प्रक्रिया में कालावधि स्थलाकृति एवं मूल पदार्थ निष्क्रिय नियन्त्रक कारक माने जाते हैं।
पाठ्यपुस्तक के प्रश्न
बहुविकल्पीय प्रश्न-
1. निम्नलिखित में से कौनसी एक अनुक्रमिक प्रक्रिया है?
(क) निक्षेप
(ग) पटल विरूपण
(ख) ज्वालामुखीयता
(घ) अपरदन
उत्तर:
(घ) अपरदन
2. जल योजन प्रक्रिया निम्नलिखित पदार्थों में से किसे प्रभावित करती है?
(क) ग्रेनाइट
(ग) चीका (क्ले) मिट्टी
(ख) क्वार्ट्ज
(घ) लवण
उत्तर:
(घ) लवण
3. मलबा अवधाव को किस श्रेणी में शामिल किया जा सकता है?
(क) भू-स्खलन
(ग) मन्द प्रवाही वृहत् संचलन
(ख) तीव्र प्रवाही वृहत् संचलन
(घ) अवतलन / धसकन
उत्तर:
(क) भू-स्खलन
निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर लगभग 30 शब्दों में दीजिए-
प्रश्न 1.
अपक्षय पृथ्वी पर जैव विविधता के लिए उत्तरदायी है। कैसे?
उत्तर:
जैव मात्रा एवं जैव विविधता प्रमुखतः वनों अर्थात् वनस्पति की देन है तथा वन, अपक्षयी प्रावार की गहराई पर निर्भर करते हैं। अपक्षय द्वारा चट्टानों व खनिजों का स्थानान्तरण होता है। इससे रासायनिक प्रक्रिया द्वारा सतह में नमी व वायु प्रवेश में सहायता मिलती है। इससे मिट्टी में ह्यूमस, कार्बनिक एवं अम्लीय पदार्थों का प्रवेश भी होता है, जिससे जैव-विविधता प्रभावित होती है। इस प्रकार अपक्षय पृथ्वी पर जैव विविधता के लिए उत्तरदायी है।
प्रश्न 2.
बृहत् संचलन जो वास्तविक, तीव्र एवं गोचर/ अवगम्य (Perceptible) हैं, वे क्या हैं? सूचीबद्ध कीजिए।
उत्तर:
बृहत् संचलन के अन्तर्गत वे सभी संचलन आते हैं जिनमें शैलों का बृहत् मलबा गुरुत्वाकर्षण के सीधे प्रभाव के कारण ढाल के अनुरूप स्थानान्तरित होता है। इसके दो प्रमुख प्रकार हैं। यथा-
- मंद संचलन
- तीव्र संचलन।
प्रश्न 3.
विभिन्न गतिशील एवं शक्तिशाली बहिर्जनिक भू-आकृतिक कारक क्या हैं तथा वे क्या प्रधान कार्य सम्पन्न करते हैं?
उत्तर:
प्रवाहयुक्त जल, भूमिगत जल, हिमानी, हवा, लहरें एवं धाराएँ आदि बहिर्जनिक भू-आकृतिक कारक हैं। इनका प्रधान कार्य उभरी हुई भू-आकृतियों का विघर्षण, निम्न क्षेत्रों का भराव अथवा अभिवृद्धि कर धरातलीय विषमताओं को कम करना है।
प्रश्न 4.
क्या मृदा निर्माण में अपक्षय एक आवश्यक अनिवार्यता है?
उत्तर:
अपक्षय जलवायु, शैल, जीव सहित अनेक कारकों पर निर्भर करता है। कालान्तर में ये सभी मिलकर अपक्षयी प्रावार की मूल विशेषताओं को जन्म देते हैं और यही अपक्षयी प्रावार मृदा निर्माण का मूल स्रोत होता है। इसी कारण मृदा निर्माण में अपक्षय एक आवश्यक अनिवार्यता है।
निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर लगभग 150 शब्दों में दीजिए-
प्रश्न 1.
“हमारी पृथ्वी भू-आकृतिक प्रक्रियाओं के दो विरोधात्मक वर्गों के खेल का मैदान है।” विवेचना कीजिए।
उत्तर:
धरातल के पदार्थों पर अंतर्जनित एवं बहिर्जनिक बलों द्वारा भौतिक दबाव तथा रासायनिक क्रियाओं के कारण भूतल के विन्यास में परिवर्तन को ‘भू-आकृतिक प्रक्रियाएँ’ कहते हैं। धरातल के निर्माण में मूलत: दो बल कार्य करते हैं। बहिर्जनिक बल तथा अन्तर्जनित बल। अन्तर्जनित बल पृथ्वी के भीतर अनवरत कार्य करता रहता है तथा निरंतर धरातल के भागों को ऊपर उठाता है या उनका निर्माण करता है। पटल-विरूपण तथा ज्वालामुखीयता अंतर्जनित भू-आकृतिक प्रक्रियाएँ ही हैं।
बहिर्जनिक शक्तियाँ पृथ्वी के धरातल के ऊपर उत्पन्न होती है। यह मूलत: आंतरिक बलों के विपरीत कार्य करती हैं अर्थात् धरातल पर आंतरिक बलों से उत्पन्न विषमताओं / उच्चावचों को सम करने का कार्य करती हैं। इस प्रकार बहिर्जनिक शक्तियाँ भूमि विघर्षण बल होती हैं। अपक्षय, बृहत, क्षरण, अपरदन एवं निक्षेपण बहिर्जनिक भू-आकृतिक प्रक्रियाएँ हैं। इस प्रकार धरातल पृथ्वी मंडल के अंतर्गत उत्पन्न बाह्य बलों एवं पृथ्वी के अंदर उद्भूत आंतरिक बलों से अनवरत प्रभावित होता है तथा यह सर्वदा परिवर्तनशील है। धरातल पर भिन्नता तब तक बनी रहती है जब तक बहिर्जनिक एवं अंतर्जनित बलों के विरोधात्मक कार्य चलते रहते हैं। इस प्रकार कह सकते हैं कि ” हमारी पृथ्वी भू-आकृतिक प्रक्रियाओं के दो विरोधात्मक वर्गों के खेल का मैदान है। ”
प्रश्न 2.
“बहिर्जनिक भू-आकृतिक प्रक्रियाएँ अपनी अन्तिम ऊर्जा सूर्य की गर्मी से प्राप्त करती हैं ।” व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
धरातल पर अंतर्जनित एवं बहिर्जनिक बलों द्वारा दबाव तथा रासायनिक प्रक्रियाओं के कारण भूतल के विन्यास में परिवर्तन को ‘भू-आकृतिक प्रक्रियाएँ’ कहते हैं। अपक्षय, वृहत, क्षरण, अपरदन एवं निक्षेपण बहिर्जनिक प्रक्रियाएँ होती हैं
साधारणत:
एक प्रक्रिया एक बल होता है, जो धरातल के पदार्थों के साथ अनुपयुक्त होने पर प्रभावी हो जाता है। बहिर्जनिक प्रक्रियाएँ अपनी ऊर्जा सूर्य द्वारा निर्धारित वायुमंडलीय ऊर्जा एवं अंतर्जनित शक्तियों से नियंत्रित विवर्तनिक कारकों से उत्पन्न प्रवणता से प्राप्त करती हैं। चूंकि, धरातल पर विभिन्न प्रकार के जलवायु प्रदेश मिलते हैं, इसलिए बहिर्जनिक भू-आकृतिक प्रक्रियाएँ भी एक प्रदेश से दूसरे प्रदेश में भिन्न होती हैं। तापक्रम तथा वर्षण दो महत्त्वपूर्ण जलवायवी तत्त्व हैं, जो विभिन्न प्रक्रियाओं को निर्धारित करते हैं। मूलतः पृथ्वी के धरातल पर तापीय प्रवणता के कारण भिन्न-भिन्न जलवायु प्रदेश स्थित हैं, जो कि अक्षांशीय, मौसमी एवं जल-थल विस्तार में भिन्नता के द्वारा उत्पन्न होते हैं। वनस्पति का घनत्व, प्रकार एवं वितरण, जो मुख्यतः तापक्रम व वर्षा पर निर्भर करते हैं, बहिर्जनिक भू- आकृतिक प्रक्रियाओं पर अप्रत्यक्ष प्रभाव डालते हैं । विभिन्न जलवायु प्रदेशों में विभिन्न जलवायवी तत्त्वों,
जैसे:
ऊँचाई में अंतर, दक्षिणमुखी ढालों पर पूर्व एवं पश्चिममुखी ढालों की अपेक्षा अधिक सूर्यातप प्राप्ति आदि के कारण स्थानीय भिन्नता पायी जाती है। इसके अतिरिक्त वायु का वेग एवं दिशा, वर्षण की मात्रा एवं प्रकार, इसकी गहनता, वर्षण एवं वाष्पीकरण में सम्बन्ध, तापक्रम की दैनिक श्रेणी, हिमकरण एवं पिघलन की आवृत्ति, तुषार व्यापन की गहराई आदि में अंतर के कारण भी प्रत्येक जलवायु प्रदेश में भू-आकृतिक प्रक्रियाएँ भिन्न-भिन्न होती हैं। इस प्रकार बहिर्जनिक भू-आकृतिक प्रक्रियाओं पर जलवायु कारकों, विशेषकर तापमान का बहुत प्रभाव पड़ता है। अतः स्पष्ट है कि बहिर्जनिक भू-आकृतिक प्रक्रियाएँ अपनी अंतिम ऊर्जा सूर्य की गर्मी से प्राप्त करती हैं।
प्रश्न 3.
क्या भौतिक एवं रासायनिक अपक्षय प्रक्रियाएँ एक-दूसरे से स्वतंत्र हैं? यदि नहीं तो क्यों? सोदाहरण व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
अपक्षय के अन्तर्गत वायुमण्डलीय तत्त्वों की धरातल के पदार्थों पर की गई क्रिया शामिल होती है। अपक्षय के अन्दर ही अनेक प्रक्रियाएँ हैं जो कि अलग या सामूहिक रूप से धरातल के पदार्थों को प्रभावित करती हैं। अतः अपक्षय चट्टानों केटूट-फूट की वह प्रक्रिया है, जिसमें चट्टानें विघटन एवं वियोजन द्वारा कमजोर होकर विखंडित हो जाती भौतिक एवं रासायनिक अपक्षय प्रक्रियाएँ एक-दूसरे से स्वतंत्र होती हैं परन्तु दोनों प्रकार के अपक्षय एक-दूसरे से सम्बन्धित होते हैं। भौतिक व रासायनिक अपक्षय में भाग लेने वाले कारक एक-दूसरे से स्वतंत्र नहीं होते हैं। साधारणतः तापमान, वर्षा, दबाव आदि भौतिक कारक एवं जलयोजन, ऑक्सीकरण, कार्बोनेशन आदि रासायनिक कारक होते हैं। ये सभी कारक अंत: सम्बन्धित होते हैं तथा अपक्षय प्रक्रिया को त्वरित बना देते हैं।
उदाहरण के लिए जल किसी भी चट्टान से तब तक अभिक्रिया नहीं करता जब तक उसे ताप या दाब के कारण ऊष्मा की प्राप्ति नहीं होती। इसी प्रकार तापमान भौतिक अपक्षय में मुख्य भूमिका निभाता है। इसके कारण चट्टानों का विस्तारण एवं संकुचन होता है और चट्टानें कमजोर पड़ जाती हैं। परन्तु यह भी रासायनिक संरचना द्वारा पूर्णतया प्रभावित होता है। जब तक तापमान चट्टानों की रासायनिक संरचना के साथ अभिक्रिया नहीं करता, सक्रिय नहीं हो पाता।
रासायनिक संरचना के आधार पर ही चट्टानों में ताप ग्रहण करने की क्षमता निर्धारित होती है। इस प्रकार रासायनिक अभिक्रिया के लिए भौतिक कारक तापमान अति आवश्यक है। रासायनिक अपक्षय की प्रक्रिया सभी तापमंडलों में एक समान सक्रिय नहीं होती। उष्ण कटिबंधीय क्षेत्रों में जहाँ वर्ष भर तापमान अधिक रहता है, रासायनिक अपक्षय अधिक सक्रिय रहता है। इस प्रकार स्पष्ट है कि भौतिक एवं रासायनिक अपक्षय एक-दूसरे से स्वतंत्र नहीं हैं बल्कि ये अंतःसम्बन्धित हैं और वायुमंडलीय कारकों द्वारा नियंत्रित हैं।
प्रश्न 4.
आप किस प्रकार मृदा निर्माण की प्रक्रियाओं तथा मृदा निर्माण कारकों के बीच अन्तर ज्ञात करते हैं? जलवायु एवं जैविक क्रियाओं की मृदा निर्माण में दो महत्त्वपूर्ण कारकों के रूप में क्या भूमिका है?
उत्तर:
साधारणतः मृदा धरातल पर प्राकृतिक तत्वों का समुच्चय है, जिसमें जीवित पदार्थ तथा पौधों को पोषित करने की क्षमता होती है।
मृदा निर्माण की प्रक्रिया :
मृदा निर्माण अथवा मृदा जनन अपक्षय पर निर्भर करता है। अपक्षयी प्रावार ही मृदा निर्माण का मूल स्रोत होता है। मृदा निर्माण की प्रक्रिया में सर्वप्रथम अपक्षयित प्रावार या लाए गये पदार्थों के निक्षेप, बैक्टीरिया या अन्य निकृष्ट पौधे यथा काई एवं लाइकेन द्वारा उपनिवेशित किए जाते हैं। प्रावार एवं निक्षेप के अन्दर अनेक गौण जीव भी आश्रय प्राप्त कर लेते हैं। जीव एवं पौधों के मृत अवशेष ह्यूमस के एकत्रीकरण में सहायक होते हैं। शुरू में गौण घास एवं फर्न्स की वृद्धि हो सकती है, उसके उपरान्त पक्षियों एवं वायु के द्वारा लाए गये बीजों से वृक्ष एवं झाड़ियों में वृद्धि होने लगती है। पौधों की जड़ें नीचे तक घुस जाती हैं तथा बिल बनाने वाले जानवर कणों को ऊपर लाते हैं जिससे पदार्थों का पुंज छिद्रमय एवं स्पंज के समान हो जाता है। इस प्रकार जल धारण करने की क्षमता व वायु के प्रवेश आदि के कारण अन्त में परिपक्व, खनिज एवं जीव उत्पाद युक्त मृदा का निर्माण हो जाता है।
मृदा निर्माण के कारक :
धरातल पर विद्यमान जिन कारकों के सहयोग से मृदा का निर्माण होता है उन्हें मृदा निर्माण के कारक कहा जाता है। मृदा का निर्माण पांच मुख्य कारकों मूल पदार्थ अर्थात् शैलें, स्थलाकृति, जलवायु, जैविक क्रियाएँ तथा समय के द्वारा नियंत्रित होता है। ये कारक संयुक्त रूप से कार्यरत रहते हैं एवं एक-दूसरे के कार्य को प्रभावित करते हैं। इस प्रकार मृदा निर्माण प्रक्रियाओं से आशय उन माध्यमों या तत्त्वों से है, जो मिट्टी में पहुँचकर उसकी उत्पादन क्षमता को बढ़ाते हैं। और उसमें पोषण का गुण उत्पन्न करते हैं। इसके विपरीत मृदा निर्माण कारक, वे तत्त्व होते हैं, जो मृदा निर्माण के आवश्यक तत्त्वों का सृजन करने में सहायक होते हैं। इस प्रकार मृदा निर्माण प्रक्रिया एक कार्य है जबकि मृदा निर्माण के कारक एक साधन हैं, जिनसे मृदा निर्माण का कार्य संपन्न होता है। मृदा निर्माण के दो महत्त्वपूर्ण कारक निम्नलिखित हैं-
(1) जलवायु:
मृदा निर्माण में जलवायु एक महत्त्वपूर्ण सक्रिय कारक की भूमिका अदा करती है। मृदा के विकास में जुड़े हुए जलवायवी तत्त्वों में प्रमुख तत्त्व हैं
- प्रवणता, वर्षा एवं वाष्पीकरण की बारम्बारता व अवधि तथा आर्द्रता।
- तापमान में मौसमी एवं दैनिक अन्तर। जलवायु की भिन्नता के कारण ही भिन्न-भिन्न प्रकार की, जैसे- पीट, कैल्शियम युक्त, लैटेराइट, पॉडजॉल आदि मृदाओं का निर्माण होता है।
(2) जैविक क्रियाएँ :
वनस्पति आवरण तथा जीव जो कि मूल पदार्थों पर शुरू तथा बाद में भी विद्यमान रहते मृदा में जैव पदार्थ, नमी धारण की क्षमता तथा नाइट्रोजन आदि को जोड़ने में सहायक होते हैं। मृत पौधों के द्वारा मृदा को सूक्ष्म विभाजित जैव पदार्थ ह्यूमस की प्राप्ति होती है। कुछ जैविक अम्ल जो कि ह्यूमस बनाने की अवधि के दौरान बनते हैं वे मृदा के मूल पदार्थों के खनिजों के विनियोजन में सहायता करते हैं। चींटी, दीमक, केंचुए, कृंतक आदि जीव मृदा को बार-बार ऊपर- नीचे कर मृदा निर्माण में सहायता करते हैं।