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Class 11 Geography NCERT Solutions Chapter 3 in Hindi पृथ्वी की आंतरिक संरचना
पृष्ठ संख्या 22
प्रश्न 1.
पृथ्वी में कम्पन क्यों होता है?
उत्तर:
जब भिंचाव अर्थात् सम्पीडन या तनाव के कारण अथवा भूगर्भ में एकत्रित गतिशील शैलों व जल-वाष्प की क्रिया एवं मेग्मा के पृथ्वी की सतह की तरफ क्रियाशील रहने या अन्य कारणों से चट्टानों में संचलन होने से अव्यवस्था पैदा होने लगती है और पृथ्वी की सतह के निकट चट्टानों में तोड़-फोड़ होने लगती है तब पृथ्वी में कम्पन पैदा होता है। इसी से भूकम्प आता है।
पाठ्यपुस्तक के प्रश्न
1. निम्नलिखित में से कौन भूगर्भ की जानकारी का प्रत्यक्ष साधन है?
(क) भूकम्पीय तरंगें
(ख) गुरुत्वाकर्षण बलं
(ग) ज्वालामुखी
(घ) पृथ्वी का चुम्बकत्वं।
उत्तर:
(ग) ज्वालामुखी
2. दक्कन ट्रैप की शैल समूह किस प्रकार के ज्वालामुखी उद्गार का परिणाम है-
(क) शील्ड
(ख) मिश्र
(ग) प्रवाह
(घ) कुण्ड।
उत्तर:
(ग) प्रवाह
3. निम्नलिखित में से कौनसा स्थल मण्डल को वर्णित करता है?
(क) ऊपरी व निचले मैंटल
(ख) भूपटल व क्रोड
(ग) भूपटल व ऊपरी मैंटल
(घ) मैंटल व क्रोड।
उत्तर:
(ग) भूपटल व ऊपरी मैंटल
4. निम्न में से कौनसी भूकम्प तरंगें चट्टानों में संकुचन व फैलाव लाती हैं-
(क) P तरंगें
(ख) S तरंगें
(ग) धरातलीय तरंगें
(घ) उपर्युक्त में से कोई नहीं।
उत्तर:
(क) P तरंगें
निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर लगभग 30 शब्दों में दीजिए-
प्रश्न 1.
भूगर्भीय तरंगें क्या हैं?
उत्तर:
भूगर्भीय तरंगें उद्गम केन्द्र से ऊर्जा के मुक्त होने के दौरान पैदा होती हैं और पृथ्वी के अन्दरूनी भाग से होकर सभी दिशाओं में आगे बढ़ती हैं। इसी कारण इन्हें भूगर्भीय तरंगें कहा जाता है।
प्रश्न 2.
भूगर्भ की जानकारी के लिए प्रत्यक्ष साधनों के नाम बताइए।
उत्तर:
भूगर्भ की जानकारी के लिए प्रत्यक्ष साधन निम्न हैं, यथा-
- धरातलीय ठोस चट्टानें,
- भूगर्भिक क्षेत्रों में प्रवेधन (Drilling) द्वारा प्राप्त चट्टानें,
- ज्वालामुखी उद्गार।
प्रश्न 3.
भूकम्पीय तरंगें छाया क्षेत्र कैसे बनाती हैं?
उत्तर:
भूकम्पलेखी यंत्र पर कुछ क्षेत्र ऐसे होते हैं। जहाँ कोई भी भूकंपीय तरंग अभिलेखित नहीं होती, ऐसे क्षेत्र भूकंपीय छाया क्षेत्र कहलाते हैं। भूकंपीय P तरंगें भूकंप अधिकेन्द्र से 105° से 145° के बीच के क्षेत्र में छाया क्षेत्र बनाती है जबकि 5 तरंगें 105° के बाद वाले पूरे क्षेत्र में छाया क्षेत्र बनाती है।
प्रश्न 4.
भूकम्पीय गतिविधियों के अतिरिक्त भूगर्भ की जानकारी सम्बन्धी अप्रत्यक्ष साधनों का संक्षेप में वर्णन
उत्तर:
जिन साधनों से अप्रत्यक्ष रूप से पृथ्वी की आंतरिक संरचना की जानकारी प्राप्त होती है, उन्हें अप्रत्यक्ष साधन कहा जाता है। इसके अन्तर्गत सामान्यतया तापमान, दबाव, घनत्व, उल्काएँ, खनन क्रिया, गुरुत्वाकर्षण, चुम्बकीय क्षेत्र व भूकम्प सम्बन्धी क्रियाओं को सम्मिलित किया जाता है।
निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर लगभग 150 शब्दों में दीजिए-
प्रश्न 1.
भूकम्पीय तरंगों के संचरण का उन चट्टानों पर प्रभाव बताएँ जिनसे होकर यह तरंगें गुजरती हैं।
उत्तर:
भूकंपीय तरंगों का संचरण – भूकंपमापी यंत्र (सीसमोग्राफ) के द्वारा सतह पर पहुँचने वाली भूकंपीय तरंगों को अभिलेखित किया जाता है। भिन्न-भिन्न प्रकार की भूकंपीय तरंगों के संचरित होने की प्रणाली भिन्न-भिन्न होती हैं। जैसे ही ये तरंगें संचरित होती हैं, वैसे ही शैलों में कंपन पैदा होता है। ये मार्ग में आने वाली चट्टानों को उनकी प्रकृति के अनुसार प्रभावित करती हैं। सामान्यतः ये चट्टानों को निम्न प्रकार से प्रभावित करती हैं-
- प्राथमिक (P) तरंगों का प्रभाव:
ये तीव्र गति से चलने वाली तरंगें हैं, जो ध्वनि तरंगों जैसी होती हैं। ये धरातल पर सबसे पहले पहुँचती हैं। ये गैस, तरल व ठोस – तीनों से गुजर सकती हैं। इनकी दिशा तरंगों की दिशा के समानांतर होती है। ये तरंगें संचरण गति की दिशा में ही पदार्थ पर दबाव डालती हैं। परिणामस्वरूप पदार्थ के घनत्व में अन्तर आ जाता है और शैलों में संकुचन व फैलाव की प्रक्रिया पैदा होती है। - द्वितीयक (S) तरंगों का प्रभाव :
ये तरंगें केवल ठोस पदार्थों से ही गुजरती हैं। ये तरंगें धरातल पर कुछ समय अंतराल के बाद पहुँचती हैं। ये तरंगें ऊर्ध्वाधर तल में, तरंगों की दिशा के समकोण पर कंपन पैदा करती हैं। अतः ये जिस पदार्थ से गुजरती हैं, उसमें उभार एवं गर्त बनाती हैं। - धरातलीय तरंगों का प्रभाव:
ये तरंगें भूकंपलेखी पर सबसे अंत में अभिलेखित होती हैं। ये सबसे अधिक विनाशकारी होती हैं। इन तरंगों से शैलें विस्थापित हो जाती हैं और इमारतें गिर जाती हैं।
प्रश्न 2.
अन्तर्वेधी आकृतियों से आप क्या समझते हैं? विभिन्न अन्तर्वेधी आकृतियों का संक्षेप में वर्णन करें।
उत्तर:
अन्तर्वेधी आकृतियाँ:
ज्वालामुखी उद्गार के समय निकलने वाला लावा जब भूपटल / धरातल के नीचे ही चट्टानों के भीतर जमा होकर ठंडा हो जाता है, तब कई आकृतियाँ बनती हैं। ये आकृतियाँ ही ‘ अन्तर्वेधी आकृतियाँ’ कहलाती हैं। अन्तर्वेधी आकृतियों के प्रकार – अन्तर्वेधी आकृतियाँ निम्नलिखित प्रकार की हो सकती हैं-
- बैथोलिथ:
जब मैग्मा का विशाल पिण्ड भूपर्पटी में अधिक गहराई में ठंडा होकर जम जाता है, तब इस प्रकार की आकृति का निर्माण होता है। यह आकृति सामान्यतः गुम्बदाकार होती है। अनाच्छादन की प्रक्रियाओं के द्वारा ऊपरी पदार्थ के हट जाने पर ही ये धरातल पर प्रकट होती है। ये विशाल क्षेत्र में फैली होती है और कभी-कभी इनकी गहराई कई किलोमीटर तक होती है। ये ग्रेनाइट चट्टानों से बनी संरचना होती हैं। - लैकोलिथ:
ये गुम्बदनुमा विशाल अन्तर्वेधी चट्टानें हैं जिनका तल समतल व एक पाइपरूपी वाहक नली से नीचे से जुड़ा होता है। इनकी आकृति धरातल पर पाए जाने वाले मिश्रित ज्वालामुखी के गुम्बद के समान होती है। अन्तर केवल इतना होता है कि लैकोलिथ गहराई में पाए जाते हैं। कर्नाटक के पठार पर ग्रेनाइट चट्टानों से निर्मित ऐसी अनेक संरचनायें मिलती हैं। - लैपोलिथ:
ज्वालामुखी उद्गार के समय ऊपर उठता हुआ लावा, जब क्षैतिज दिशा में पाए जाने वाली चट्टानों की परतों में तश्तरी की आकृति में जम जाता है, तो उसे लैपोलिथ कहा जाता है। - फैकोलिथ:
जब लावा का जमाव धरातल के नीचे चट्टानों की मोड़दार अवस्था में अपनति व अभिनति के रूप में पाया जाता है, तब उसे फैकोलिथ कहा जाता है। - सिल:
अन्तर्वेधी आग्नेय चट्टानों का क्षैतिज तल में एक चादर के रूप में ठण्डा होकर जम जाना सिल या शीट कहलाता है। जमाव की मोटाई के आधार इसके दो भाग होते हैं कम मोटाई वाला जमाव शीट व घनी मोटाई वाला जमाव सिल कहलाता है। - डाइक:
जब लावा का जमाव धरातल के लगभग समकोण पर एक दीवार के समान होता है, तब उस संरचना को डाइक कहते हैं। यह आकृति पश्चिमी महाराष्ट्र क्षेत्र की अंतर्वेधी आग्नेय चट्टानों में बहुतायत से पायी जाती है।