मातृभूमि Class 6 Summary Notes in Hindi Chapter 1
प्रस्तुत कविता में कवि ने भारत की प्राकृतिक सुंदरता का वर्णन किया है। हमारे देश का पहरेदार हिमालय वन-संपदा एवं जीवनदायिनी पवित्र नदियों का अद्भुत स्रोत है। इससे निकलने वाली नदियाँ पूरे वर्ष जल से भरी रहती हैं। अनेक झरने यहाँ की सुंदरता में वृद्धि करते हैं। अनेक पशु-पक्षी इस पर अपना जीवन-यापन करते हैं। मलय पवन अपनी सुगंध से इसे महकाती है । यहाँ श्रीराम, सीता, श्रीकृष्ण, गौतम बुद्ध जैसे महापुरुषों ने जन्म लेकर हमें धर्म, कर्म, कर्तव्य, क्षमा आदि का ज्ञान दिया । इन महापुरुषों के जीवन से न केवल भारतवर्ष को ज्ञान-विज्ञान, धर्म, कर्म, नीति, वीरता के गुण प्राप्त हुए हैं अपितु इनका जीवन पूरे विश्व का मार्गदर्शन कर रहा है। मेरे लिए यह मातृभूमि स्वर्ग से भी बढ़कर है।
सप्रसंग व्याख्या
1. ऊँचा खड़ा हिमालय
आकाश चूमता है,
नीचे चरण तले झुक,
नित सिंधु झूमता है।
गंगा यमुन त्रिवेणी
नदियाँ लहर रही हैं,
जगमग छटा निराली,
पग-पग छहर रही हैं।
(पृष्ठ संख्या-1)
शब्दार्थ – चूमता – छूना। चरण-पाँव । तले-नीचे। सिंधु -समुद्र । यमुन – यमुना नदी । त्रिवेणी – गंगा, यमुना और सरस्वती तीनों नदियाँ जहाँ एक स्थान पर मिलती हैं, उसे संगम कहते हैं, यह प्रयागराज में है। लहर – पानी का वेग, बहाव। छटा – शोभा । पग-पग – हर कदम । छहर-छिटकना, बिखरना, फैलना।
प्रसंग – प्रस्तुत काव्य-पंक्तियाँ हमारी पाठ्यपुस्तक ‘मल्हार’ में संकलित कविता ‘मातृभूमि’ से ली गई हैं। इसके रचयिता सोहनलाल द्विवेदी जी हैं। ये हिंदी के प्रसिद्ध कवियों में से हैं। इनकी लेखनी का प्रिय विषय देशभक्ति रहा है। भारत के गौरव का ग़ान करना उन्हें बहुत प्रिय था। इन पंक्तियों के माध्यम से भारत भूमि की महानता एवं सुंदरता का वर्णन किया गया है।
व्याख्या- हमारे भारतवर्ष की उत्तर दिशा में स्थित हिमालय पर्वत पहरेदार की तरह खड़ा है। यह हमारे देश को मध्य एशिया की ठंडी और शुष्क हवाओं से बचाता है। यह उत्तरी भारत में वर्षा का कारण बनता है। आकाश को चूमती इसकी ऊँचाई और इसकी लंबाई बंगाल की खाड़ी और अरब सागर से आने वाले ग्रीष्मकालीन मानसून को प्रभावी ढंग से रोक देती है और यह बर्फ़ या बारिश के रूप में वर्षण का कारण बनता है । भारतमाता के चरणों में सागर प्रतिदिन हर पल लहराता रहता है।
गंगा-यमुना जैसी पवित्र नदियों का उद्गम स्थल है। ये नदियाँ हमारे देश को पूरे वर्ष पीने और सिंचाई का पानी उपलब्ध करती हैं। ये नदियाँ लहरा-लहरा कर बहते हुए भारत भूमि को हरा-भरा बनाती हैं। त्रिवेणी संगम पर नदियों के मिलने से जो लहर उठती है, वह अति सुंदर लगती है। इससे हमारे देश की छटा और सुंदरता और भी बढ़ जाती है। हर कदम पर यहाँ की सुंदरता मन को मोह लेती है।
2. वह पुण्य- भूमि मेरी
वह स्वर्ण – भूमि मेरी ।
वह जन्मभूमि मेरी,
वह मातृभूमि मेरी ।
झरने अनेक झरते
जिसकी पहाड़ियों में,
चिड़ियाँ चहक रही हैं
हो मस्त झाड़ियों में।
(पृष्ठ संख्या 1)
शब्दार्थ- पुण्य भूमि – पवित्र भूमि । स्वर्ण – भूमि – भरपूर फसल के रूप में सोना उगलने वाली भूमि ।
प्रसंग – पूर्ववत ।
व्याख्या-हमारे भारतवर्ष में गंगा, यमुना और सरस्वती जैसी पवित्र नदियों का अनोखा संगम है। इसी कारण कवि को और हम सभी को अपनी जन्मभूमि यानी मातृभूमि पर गर्व है । यह पुण्यभूमि हमारे लिए स्वर्ग से भी बढ़कर पवित्र है। भारत को यहाँ की अतुल धन-संपदा के कारण सोने की चिड़िया कहा जाता था । हमारी भूमि उपजाऊ है। यह माता की तरह हमारी देखभाल करती है। यहाँ अनेक महान व्यक्तियों ने जन्म लिया है। मैं बहुत सौभाग्यशाली हूँ जो मुझे यहाँ जन्म मिला । यहाँ की पर्वत शृंखलाओं से निकल कर बहने वाले झरने यहाँ की सुंदरता को चार चाँद लगाने के साथ-साथ अनेक प्रकार की वनस्पतियों को भी जीवन देते हैं। इन पहाड़ों की हरी-भरी झाड़ियों में चिड़ियाँ एवं अनेक पक्षी अपनी मधुर आवाज़ से वातावरण को और अधिक मन मोहक बना रहे हैं।
3. अमराइयाँ घनी हैं
कोयल पुकारती है,
बहती मलय पवन है,
तन-मन सँवारती है।
वह धर्मभूमि मेरी
वह कर्मभूमि मेरी।
वह जन्मभूमि मेरी
वह मातृभूमि मेरी ।
(पृष्ठ संख्या-2)
शब्दार्थ – अमराई – आम का बाग । मलय पवन – मलय पर्वत की ओर से आने वाली हवा, जिसमें चंदन जैसी खुशबू होती है। प्रसंग – पूर्ववत । इन पंक्तियों में कोयल की मधुर आवाज़, मलय पवन की सुगंध तथा भारतभूमि की महानता का वर्णन किया गया है।
व्याख्या-हमारे भारतवर्ष में आम के बहुत बड़े-बड़े बाग हैं। जब आम के वृक्षों पर बौर आता है तो उसकी सुगंध से मदमस्त होकर कोयल कूकती है। वह अपनी मीठी आवाज़ से सभी को आनंदमग्न कर देती है। भारत के दक्षिण से चंदन के पौधों वाले मलय पर्वत से बहकर आने वाली सुगंधित हवा हमारे तन – मन में नया जोश और स्फूर्ति भर देती है।
यह हमारी धर्मभूमि है। हमारे देश में अनेक धर्मों के लोग मिल-जुलकर रहते हैं। हम धर्मपरायण हैं। हमने मानव के रूप में जन्म लिया है। सभी प्राणियों में मानव सर्वश्रेष्ठ प्राणी है। इसलिए यह हमारी कर्मभूमि है। हमें अपने अच्छे कार्यों से संसार को प्रगति, न्याय, धर्म, दया और प्रेम के मार्ग पर लेकर चलना है। मानव जीवन कर्म प्रधान होता है। हमारा देश कर्म प्रधान है। मैंने इस पवित्र भूमि में जन्म लिया है। इसलिए यह मेरी जन्मभूमि है और एक माँ के समान यह भूमि हमें पालती है । अन्न-धन आदि देती है इसलिए यह हमारी मातृभूमि भी है । भारतभूमि में हमें धर्मनिष्ठ रहने और धर्म के मार्ग पर चलने की प्रेरणा मिलती है ।
4. जन्मे जहाँ थे रघुपति
जन्मी जहाँ थी सीता,
श्रीकृष्ण ने सुनाई,
वंशी पुनीत गीता ।
गौतम ने जन्म लेकर,
जिसका सुयश बढ़ाया,
जग को दया सिखाई
जग को दिया दिखाया।
वह युद्ध – भूमि मेरी,
वह बुद्ध-भूमि मेरी
वह मातृभूमि मेरी
वह जन्मभूमि मेरी । (पृष्ठ संख्या-2)
शब्दार्थ – रघुपति – भगवान राम । पुनीत – पवित्र, उत्तम ।
प्रसंग – पूर्ववत । इन पक्तियों में भारत में जन्मे विभिन्न महापुरुषों के माध्यम से भारत का गौरव गान किया गया है। हमारे इन महापुरुषों ने अपने कर्म, ज्ञान, कर्तव्य आदि के द्वारा पूरे विश्व को प्रकाशित किया है। हम भारतीय वीरता, दया, देश-प्रेम की भावना से ओत-प्रोत हैं।
व्याख्या – भारतवर्ष में प्रभु श्रीराम ने जन्म लिया। वे मर्यादा पुरुषोत्तम थे। पिता के वचनों को पूरा करने के लिए चौदह वर्ष वन में व्यतीत किए। उनके राम-राज्य की सभी सराहना करते हैं। माता सीता ने राजकुमारी होकर भी पतिव्रत धर्म निभाने के लिए वनवास भोगा । भगवान श्रीकृष्ण ने बचपन में ही अनेक राक्षसों का वध करके जनता को उनके अत्याचार से मुक्ति दिलाई। महाभारत के युद्ध में अपने बंधुओं को सामने देखकर अर्जुन ने युद्ध करने से मना कर दिया था। उन्हें क्षत्रिय धर्म का ज्ञान देते हुए श्रीकृष्ण ने कर्तव्य का बोध कराया। यही ज्ञान गीता में संकलित है। श्रीकृष्ण ने कर्तव्य व प्रेम की वंशी बजाकर विश्व का उद्धार किया। गौतम बुद्ध ने भी भारत का यश बढ़ाया। विश्व को दया और अहिंसा का पाठ पढ़ाकर उन्होंने भारत और विश्व को ज्ञान का संदेश दिया अर्थात ज्ञान का दीपक दिखाया। भारत ने युद्ध. में कभी पहल नहीं की, किंतु यदि किसी ने आक्रमण किया तो उसे मुँहतोड़ जवाब दिया है। इसलिए यदि कोई धर्म, न्याय या सत्य के विपरीत काम होगा तो यह भूमि युद्धभूमि है। भगवान बुदध के अहिंसा, सत्य, न्याय के विचारों का अनुसरण करने के कारण यह बुद्धभूमि भी है। माता के समान यह भूमि हमारा ध्यान रखती है। इसलिए यह मेरी मातृभूमि, जन्मभूमि है।