Students can find the 12th Class Hindi Book Antra Questions and Answers Chapter 18 जहाँ कोई वापसी नहीं to practice the questions mentioned in the exercise section of the book.
NCERT Solutions for Class 12 Hindi Antra Chapter 18 जहाँ कोई वापसी नहीं
Class 12 Hindi Chapter 18 Question Answer Antra जहाँ कोई वापसी नहीं
प्रश्न 1.
अमझर से आप क्या समझते हैं? अमझर गाँव में सूनापन क्यों है?
उत्तर :
अमझर से अभिप्राय है-आम के पेड़ों से घिरा गाँव, जहाँ आम झरते हैं। यहाँ पिछले दो-तीन वर्षों से सूनापन है। इसका कारण सरकारी घोषणा है। सरकार ने घोषणा की थी कि यहाँ अमरौली प्रोजेक्ट बनाया जा रहा है। इस प्रोजेक्ट के अंतर्गत नवागाँव के अनेक गाँव आएँगे, जिन्हें उजाड़कर अन्यत्र विस्थापित किया जाएगा। इसके बाद से यहाँ के पेड़ सूखने लगे। वे भी लोगों की तरह मूक सत्याग्रह कर रहे हैं।
प्रश्न 2.
आधुनिक भारत के ‘नए शरणार्थी’ किन्हें कहा गया है?
उत्तर :
आधुनिक भारत के नए शरणार्थी वे लोग हैं जो विशेष प्रोजेक्टों के तहत अपने मूल या पैतृक निवास-स्थानों से उजाड़ दिए गए हैं। सिंगरौली ऐसा ही गाँव है, जहाँ से लोगों को उजाड़ दिया गया। औद्योगीकरण की तेज़ आँधी ने इन्हें अपने घर-ज़मीन से सदा के लिए उखाड़ दिया। ये लोग अब जहाँ विस्थापित किए जाएँगे, वहाँ इनकी स्थिति शरणार्थियों जैसी होगी।
प्रश्न 3.
प्रकृति के कारण विस्थापन और औद्योगीकरण के कारण विस्थापन में क्या अंतर है?
उत्तर :
प्रकृति के क्रोध के कारण बाढ़. भूकंप आदि आते हैं। इस कारण से लोगों को अपना घर-बार छोड़ना पड़ता है। संकट के समाप्त होने पर वे सभी अपने पुराने स्थानों पर वापस आ जाते हैं, परंतु औद्योगीकरण के कारण लोगों का विस्थापन स्थायी होता है। विकास और प्रगति के नाम पर इन लोगों के परिवेश तथा आश्रयस्थल सदा के लिए नष्ट हो जाते हैं। ऐसे में वे उस स्थान पर पुन: कभी भी बसने नहीं आ सकते हैं।
प्रश्न 4.
यूरोप और भारत की पर्यावरण संबंधी चिताएँ किस प्रकार भिन्न हैं?
उत्तर :
भारत और यूरोप में पर्यावरण का प्रश्न अलग-अलग नजरिए से देखा जाता है। यूरोप में पर्यावरण का प्रश्न मानव तथा प्रकृति के बीच संतुलन बनाए रखने का है। वहाँ भौतिकवाद प्रमुख है। भारत में यही प्रश्न मनुष्य और उसकी संस्कृति के बीच पुराना संबंध बनाए रखने का होता है। यहाँ प्रकृति को मानव संस्कारों से जोड़ा जाता है।
प्रश्न 5.
लेखक के अनुसार स्वातंत्र्योत्तर भारत की सबसे बड़ी ‘ट्रेड़ी’ क्या है?
उत्तर :
लेखक के अनुसार आज़ादी के बाद हमारे शासकों ने यूरोप के विकास के तरीकों को चुना। उन्होंने पश्चिम के मॉडलों को ज्यों-का-त्यों अपनाया। उन्होंने कभी प्रकृति-मनुष्य तथा संस्कृति के बीच संतुलन को नहीं देखा। वे सिर्फ पश्चिम की योजनाओं की नकल करते थे। उन्होंने भारतीय स्वरूप तथा जरूरतों के मुताबिक विकास का स्वरूप निधारित नहीं किया। यही स्वातंत्र्योत्तर भारत की सबसे बड़ी ट्रेजेडी है।
प्रश्न 6.
औद्योगीकरण ने पर्यावरण का संकट पैदा कर दिया है, क्यों और कैसे?
उत्तर :
औद्योगीकरण के कारण प्राकृतिक वनस्पति को नष्ट किया जाता है। वनों की बड़े पैमाने पर कटाई होती है। गाँवों को उजाड़ दिया जाता है। उपजाऊ क्षेत्रों पर सड़कों तथा भवनों का जाल बिछ जाता है। आबादी बढ़ जाती है। उद्योगों के चलने से वातावरण को प्रदूषित करने वाली गैसें उत्पन्न होती हैं तथा जहरीला कचरा भी निष्कासित होता है। पेड़ों की अंधाधुंध कटाई होने तथा मानव द्वारा प्रदूषण फैलाने से प्राकृतिक संतुलन बिगड़ने लगता है।
प्रश्न 7.
निम्नलिखित पंक्तियों का आशय स्पष्ट कीजिए-
(क) आदमी उजड़ेंगे तो पेड़ जीवित रहकर क्या करेंगे?
(ख) प्रकृति और इतिहास के बीच यह गहरा अंतर है।
उत्तर :
(क) इस पंक्ति में लेखक ने अमझर गाँव की दशा का वर्णन किया है। प्रोजेक्ट शुरू होने की सरकारी घोषणा के बाद वहाँ आम के पेड़ सूखने लगे। इससे यह पता चलता है कि प्रकृति और मानव के बीच गहरा रिश्ता है। एक के उजड़ने पर दूसरा भी उजड़ने लगता है। ऐसा लगता है कि प्रकृति मूक सत्याग्रह कर रही है।
(ख) लेखक कहता है कि प्राकृतिक आपदाओं से व्यक्ति अस्थायी तौर पर विस्थापित होता है, परंतु औद्योगीकरण से इस इलाके के प्राकृतिक परिवेश की केवल कहानी रह जाती है। प्रगति की इस अंधी दौड़ से आश्रय स्थल सदा के लिए नष्ट हो जाते हैं। कल तक का बसा-बसाया मानव शरणार्थी बनकर रह जाता है।
प्रश्न 8.
निम्नलिखित पर टिप्पणी लिखिए –
(क) आधुनिक शरणार्थी
(ख) औद्योगीकरण की अनिवार्यता
(ग) प्रकृति, मनुष्य और संस्कृति के बीच आपसी संबंध
उत्तर :
(क) लेखक बताता है कि औद्योगीकरण के कारण जिस क्षेत्र के लोगों का विस्थापन होता है, वे आधुनिक शरणार्थी हैं। इनके घर तथा ज़मीन सदा के लिए उनसे छीन लिए गए हैं। नई जगह में उनकी स्थिति शरणार्थियों जैसी होती है।
(ख) आज का युग विकास का युग है। किसी भी देश का विकास उद्योगों से ही हो सकता है। यह आज के समय की ज़रूरत है। यदि कोई देश इसकी उपेक्षा करता है तो वह सभ्यता एवं विकास की दौड़ में पिछड़ जाता है। वहाँ के लोगों का जीवन-स्तर ऊँचा नहीं उठ पाता।
(ग) लेखक बताता है कि प्रकृति, मनुष्य और संस्कृति के बीच गहरा संबंध होता है। प्रकृति और मनुष्य एक नई संस्कृति को जन्म देते हैं। हर संस्कृति के विकास में वहाँ की जलवायु का बहुत बड़ा योगदान है। संस्कृति के विकास से ही किसी क्षेत्र का पर्यावरण ठीक रह सकता है।
प्रश्न 9.
निम्नलिखित पंक्तियों का भाव-सौंदर्य लिखिए –
(क) कभी-कभी किसी इलाके की संपदा ही उसका अभिशाप बन जाती है।
(ख) अतीत का समूचा मिथक संसार पोथियों में नहीं, इन रिश्तों की अदृश्य लिपि में मौजूद रहता था।
उत्तर :
(क) लेखक बताता है कि जिस क्षेत्र में खनिज संसाधन या वन-संपदा होती है, वहाँ विकास की योजनाएँ बनाई जाती हैं ताकि उन संसाधनों से नई चीजें बनाई जा सकें। यही संपन्नता ही उस क्षेत्र के लिए अभिशाप बन जाती है। सिगरौली में यही हुआ। यहाँ कोयले की उपलब्धता को देखते हुए पावर प्लांट लगाए गए, जिससे इस क्षेत्र की वन-संपदा को भारी नुकसान हुआ।
(ख) इस पंक्ति में लेखक ने संस्कृति के महत्व को प्रतिपादित किया है। वह कहता है कि अतीत के सभी तथ्य किताबों में नहीं लिखे जा सकते। मानव की हर अनुभूति, संस्कार आदि को पुस्तकों में संकलित नहीं किया जा सकता। यह केवल रिश्तों की अदृश्य लिपि में विद्यमान रहता है। लोगों के आपसी संबंध, उनका व्यवहार हमें संस्कृति के प्राचीन रूप को दिखाता है।
भाषा-शिल्प –
प्रश्न 1.
पाठ के संदर्भ में निम्नलिखित अभिव्यक्तियों का अर्थ स्पष्ट कीजिएमूक सत्याग्रह, पवित्र खुलापन, स्वच्छ मांसलता, औद्योगीकरण का चक्का, नाज्रुक संतुलन।
उत्तर :
- मूक सत्याग्रह-बिना बोले विरोध जताना।
- पवित्र खुलापन-स्वच्छ वातावरण।
- स्वच्छ मांसलता-वास्तविक रूप।
- औद्योगीकरण का चक्का-उद्योगों का विकास।
- नाजुक संतुलन-कोमल बंधन।
प्रश्न 2.
इन मुहावरों पर ध्यान दीजिएमटियामेट होना, आफ़त टलना, न फटकना।
उत्तर :
- मटियामेट होना-परमाणु हमले में हिरोशिमा मटियामेट हो गया।
- आफ़त टलना-अब यहाँ नई सड़क न बनने से इन हरे-भरे पेड़ों के सिर से आफ़त टल गई है।
- न फटकना-पिता के डर से नशेड़ी पुत्र घर के पास नहीं फटका।
प्रश्न 3.
‘किंतु यह भ्रम है’ ‘डूब जाती हैं।’ इस गद्यांश को भूतकाल की क्रिया के साथ अपने शब्दों में लिखिए।
उत्तर :
किंतु यह अ्रम था “यह बाढ़ नहीं, पानी में ड्रूे धान के खेत थे। थोड़ी-सी हिम्मत बटोरकर गाँव के भीतर गए तो उन्हें वे औरतें दिखाई दी जो एक पोक्ति में झुकी हुई, धान के पौधे छप-छप पानी में रोप रही थी। उनकी सुंदर, सुडौल, धूप में चमचमाती काली टाँगें और सिरों पर चटाई के किश्तीनुमा हैट फ़िल्मों में देखे वियतनामी या चीनी औरतों की याद दिलाते थे। ये औरते ज़ा-सी आहट पाकर एक-साथ सिर उठाकर चौंकी हुई निगाहों से हमें देखती थी। वे हमें देखकर डरती न थीं। वे आश्चर्य से देखकर मुस्करातीं तथा फिर सिर झुकाकर अपने काम में डूब जाती थीं।
योग्यता विस्तार –
प्रश्न 1.
विस्थापन की समस्या से आप कहाँ तक परिचित हैं। किसी विस्थापन संबंधी परियोजना पर रिपोर्ट लिखिए।
उत्तर :
विद्यार्थी स्वयं करें।
प्रश्न 2.
लेखक ने दुर्घटनाग्रस्त मज़दूरों को अस्पताल पहुँचाने में मदद की है। आपकी दृष्टि में दुर्घटना-राहत और बचाव के लिए क्या-क्या करना चाहिए?
उत्तर :
मेरी दृष्टि में दुर्घटना-राहत और बचाव-कार्य के लिए निम्नलिखित कार्य किए जाने चाहिए-
- दुर्घटना में फैसे लोगों को अत्यंत सावधानी और जल्दी में निकालना चाहिए।
- अन्य लोगों की मदद से दुर्घटनाग्रस्त लोगों को प्राथमिक उपचार देना चाहिए।
- ऐसे लोगों को शीघ्रातिशीघ्र अस्पताल पहुँचाना चाहिए।
- घायलों की संख्या और भयकरता देखते हुए तुरंत पुलिस और अग्निशमन विभाग को फोन करना चाहिए।
- दुर्घटना के संबंध में अफ़वाह नहीं फैलाना चाहिए और लोगों को ऐसा करने से रोकना चाहिए।
- यथासंभव मदद; जैसे-खून देने, उनकी देखभाल करने आदि के लिए तैयार रहना चाहिए।
प्रश्न 3.
अपने क्षेत्र की पर्यावरण संबंधी समस्याओं और उनके समाधान हेतु संभावित उपायों पर एक रिपोर्ट तैयार कीजिए।
उत्तर :
हमारे क्षेत्र में विकास के नाम पर सड़कें बनाई जा रही हैं, फ्लैट बनाए जा रहे हैं तथा रिहायशी क्षेत्र के बगल में ही औद्योगिक क्षेत्र घोषित किया गया है, जिसमें छोटी-छोटी फैक्टरियाँ बनाने का काम शुरू हो गया है। इससे निम्नलिखित समस्याएँ सिर उठाने लगी हैं –
- वृक्षों की अंधाधुंध कटाई की जा रही है।
- वायु प्रदूषण, जल प्रदूषण और ध्वनि प्रदूषण बढ़ गया है।
- लोगों की दिनचर्या प्रभावित हुई है।
- पशु-पक्षियों की संख्या घटने लगी है, क्योंकि वे असमय काल-कबलित हो रहे हैं।
इन समस्याओं के समाधान हेतु कुछ उपाय निम्नलिखित हैं –
- आसपास की बची ज़मीन में अधिकाधिक पेड़ लगाकर उनकी देखभाल करनी चाहिए।
- पेड़ों को नष्ट होने से बचाना चाहिए।
- बढ़ते प्रदूषण को रोकने में यथासंभव मदद करनी चाहिए।
- जैविक खादों का प्रयोग करना चाहिए।
- कीटनाशकों का प्रयोग कम-से-कम करना चाहिए।
- अपने आसपास सफाई पर ध्यान देना चाहिए।
Class 12 Hindi NCERT Book Solutions Antra Chapter 18 जहाँ कोई वापसी नहीं
लघूत्तरात्मक प्रश्न-I
प्रश्न 1.
लेखक नवागाँव कब गया? वहाँ की दशा कैसी थी?
उत्तर :
लेखक नवागाँव सन् 1983 में गया। उस समय धान की रोपाई का महीना चल रहा था। जुलाई के बाद बारिश के कारण खेतों में पानी जमा हो गया था। इस क्षेत्र में लगभग पचास हज़ार से अधिक जनसंख्या रहती थी। इसमें लगभग 18 छोटे-छोटे गाँव बसे थे। यहाँ प्राकृतिक तथा खनिज संपदा भरपूर मात्रा में थी। छोटे किंतु साफ़-सुथरे गाँव मन को मोह लेते थे।
प्रश्न 2.
सिंगरौली में लेखक को क्या अनूठा अनुभव हुआ?
उत्तर :
लेखक ने सन् 1983 में सिंगरौली का दौरा किया। यहाँ पर अमरौली प्रोजेक्ट की सरकारी घोषणा के बाद आम के पेड़ सूखने लगे। लेखक ने टिहरी गढ़वाल में पेड़ों को बचाने के लिए आदमी के संघर्ष की कहानियाँ सुनी थीं, किंतु मनुष्य के विस्थापन के विरोध में पेड़ों के मूक सत्यग्रह का विचित्र अनुभव सिंगरौली में हुआ। विस्थापन की सरकारी घोषणा को सुनकर आम के हरे-भरे पेड़ों ने फल देना बंद कर दिया था।
प्रश्न 3.
विस्थापन से पहले अमझर गाँव का जीवन कैसा था?
उत्तर :
विस्थापन से पहले अमझर में प्राकृतिक वातावरण दर्शनीय था। वहाँ पेड़ों के घने झुरमुट थे। खप्पर लगे मिट्टी के साफ-सुथरे झोपड़े थे। यहाँ चारों तरफ पानी था। दूर से ऐसा लगता था मानो अंतहीन सरोवर है, जिसमें पेड़, झोंपड़े, आदमी आदि तिरते नज़र आते थे, परंतु यह बाढ़ नहीं थी। ये पानी में डूबे धान के खेत थे। यहाँ का प्राकृतिक दृश्य तथा जनजीवन मनोरम था।
प्रश्न 4.
सिंगरौली के उजड़ने से लेखक को दुख क्यों है?
उत्तर :
सिंगरौली की भूमि बेहद उपजाऊ है। यहाँ जंगल समृद्ध है। जंगलों के सहारे हज़ारों बनवासी अपना निर्वाह कर रहे हैं। यहाँ कत्था, महुआ, बाँस व शीशम के पेड़ों की बहुलता है। यदि सिंगरौली की भूमि ऊसर या बंजर होती और लोगों को वहाँ से अन्यत्र विस्थापित किया जाता तो लेखक दुखी न होता। हरी-भरी उपजाऊ धरती को उजड़ता देख लेखक को दुख है।
प्रश्न 5.
सिंगरौली की ऐतिहासिकता के बारे में आप क्या जानते हैं?
उत्तर :
सिंगरौली में सन् 1926 से पूर्व खैरवार जाति के आदिवासी राजा शासन किया करते थे, किंतु बाद में इसका आधा हिस्सा, जिसमें उत्तर प्रदेश तथा मध्य प्रदेश के खंड शामिल थे, रीवाँ राज्य के भीतर शामिल कर लिया गया। बीस वर्ष पहले तक समूचा क्षेत्र विंध्याचल और कैमूर के पहाड़ों और जंगलों से घिरा हुआ था, जहाँ अधिकांशत: कत्था, महुआ, बाँस और शीशम के पेड़ उगते थे। एक पुरानी दंतकथा के अनुसार सिंगरौली का नाम ‘सृंगावली’ पर्वतमाला से निकला है, जो पूर्व-पश्चिम में फैली है।
लघूत्तरात्मक प्रश्न-II
प्रश्न 1.
‘जहाँ कोई वापसी नहीं’-पाठ का कथ्य बताइए।
उत्तर :
‘जहाँ कोई वापसी नहीं -यात्रा-वृत्तांत ‘धुंध में उठती धुन’ संग्रह से लिया गया है। उसमें लेखक ने पर्यावरण-संबंधी सरोकारों का ही नहीं, विकास के नाम पर पर्यावरण-विनाश से उपजी विस्थापन संबंधी मनुष्य की यातना को भी रेखांकित किया है। औद्योगिक विकास के दौर में आज प्राकृतिक सौंदर्य किस तरह नष्ट होता जा रहा है, इसका मार्मिक चित्रण इस पाट में किया गया है। यह पाठ विस्थापितों की अनेक समस्याओं का हृदयस्पर्शी चित्र प्रस्तुत करता है। इस सत्य को भी उद्घाटित करता है कि आधुनिक औद्योगीकरण की आँधी में सिर्फ मनुष्य ही नहीं उखड़ता, बल्कि उसका परिवेश, संस्कृति और आवास-स्थल भी हमेशा के लिए नष्ट हो जाते हैं।
प्रश्न 2.
सिंगरौली को काला पानी क्यों कहा जाता था?
उत्तर :
सिंगरौली एक पहाड़ी क्षेत्र है जो प्राकृतिक संपदा से भरपूर है। यहाँ चारों तरफ घने जंगल थे। इन जंगलों के कारण वहाँ यातायात के साधन विकसित नहीं थे। यातायात के साधनों के अभाव तथा घने जंगल के खतरों के कारण यहाँ लोग न अंदर जाते थे और न बाहर आने का जोखिम उठाते थे। इन परिस्थितियों में सिंगरौली देश के अन्य भागों से कटकर अकेलेपन का शिकार हो रहा था। इसी कारण सिंगरौली को ‘काला पानी’ कहा जाता था।
प्रश्न 3.
‘कभी-कभी किसी इलाके की संपदा ही उसका अभिशाप बन जाती है’। स्पष्ट करें।
उत्तर :
कोई भी प्रदेश आज के लोलुप युग में अपने अलगाव में सुरक्षित नहीं रह सकता। कभी-कभी उस इलाके की संपदा ही उसका अभिशाप बन जाती है। दिल्ली के सत्ताधारियों और उद्योगपतियों की आँखों से सिंगरौली की अपार खनिज संपदा छिपी नहीं रही। सिगरौली, जो अब तक अपने सौंदर्य के कारण ‘बैकुंठ’ और अपने अकेलेपन के कारण ‘काला पानी’ माना जाता था, अब प्रगति के मानचित्र पर राष्ट्रीय गौरव के साथ प्रतिष्ठित हुआ।
कोयले की खदानों और उन पर आधारित ताप विद्युत गुहों की एक पूरी श्रृंखला ने पूरे प्रदेश को अपने में घेर लिया। जहाँ बाहर का आदमी फटकता न था, वहाँ केंद्रीय और राज्य सरकारों के अफ़सरों, इंजीनियरों और विशेषजों की कतार लग गई; जिस तरह ज़मीन पर पड़े शिकार को देखकर आकाश में गिद्धों और चीलों का झुंड मँडराने लगता है, वैसे ही सिंगरौली की घाटी और जंगलों पर ठेकेदारों, वन-अधिकारियों और सरकारी कारिंदों का आक्रमण शुरू हुआ।
प्रश्न 4.
औद्योगीकरण के बारे में लेखक का क्या विचार है?
उत्तर :
लेखक का विचार है कि आज़ादी के बाद औद्योगीकरण का जो चक्र चलाया गया, उसे रोका जा सकता था। भारत में विकास का वह विकल्प चुना जा सकता था, जिसमें मानव सुख की कसौटी ज़रूरतों के अनुरूप होती। हमें पश्चिम के विकल्प को अपनाने की जरूरत नहीं थी। इसके अलावा अंधाधुंध विकास और पर्यावरणीय सुरक्षा के बीच ऐसा संतुलन बनाना चाहिए, जिससे प्राकृतिक संतुलन बना रहे, अन्यथा अनेक पर्याावरणीय समस्याएँ पैदा होंगी जो मनुष्य के लिए हितकर नहीं होंगी।
प्रश्न 5.
अंग्रेज़ भारत को सांस्कृतिक कॉलोनी बनाने में असफल क्यों रहे?
उत्तर :
विदेशों में सांस्कृतिक विरासत संग्रहालयों में जमा होती है। भारत में यह रिश्तों में जीवित रहती है। ये रिश्ते आदमी को उसके परिवेश से जोड़ते हैं। अतीत का समूचा मिथक इन रिश्तों की अदृश्य लिपि में मौजूद रहता है। इसी कारण अंग्रेज़ों की सांस्कृतिक उपनिवेश बनाने की पुरज़ोर कोशिश भी असफल रही।
प्रश्न 6.
‘जहाँ कोई वापसी नहीं’ पाठ का उद्देश्य स्पष्ट कीजिए।
उत्तर :
‘जहाँ कोई वापसी नहीं’ पाठ का उद्देश्य है-विकास के नाम पर प्राकृतिक संपदा एवं सौंदर्य को नष्ट करने के प्रति जागरूकता उत्पन्न करना। औद्योगीकरण किसी भी देश के विकास एवं अर्थव्यवस्था के सुदृढ़ीकरण हेतु अत्यंत आवश्यक है, परंतु इसकी आड़ में प्राकृतिक सौंदर्य को जो क्षति पहुँचाई जा रही है, उसके घातक परिणामों की ओर ध्यान आकर्षित कराना इस पाठ का उद्देश्य है। इसके अलावा औद्योगीकरण का स्वरूप अपनाते समय स्थानीय परिस्थितियों की अनदेखी करना, हज़ारों गाँवों के उजड़ने से विस्थापितों की पीड़ा, उनके परिवेश, संस्कृति और आवास-स्थल नष्ट होने की पीड़ा के प्रति मानवीय संवेदना पैदा करना पाठ के उद्देश्य में निहित है।
प्रश्न 7.
‘जहाँ कोई वापसी नहीं पाठ में लेखक ने सरकारी व्यवस्था से जुड़े लोगों की अदूरदर्शिता पर किस प्रकार व्यंग्य किया है?
उत्तर :
‘जहाँ कोई वापसी नहीं’ पाठ में एक पंक्ति है-एक भरे-पूरे ग्रामीण अंचल को कितनी नासमझी और निर्ममता से उजाड़ा जाता है, के माध्यम से लेखक ने सरकारी व्यवस्था से जुड़े लोगों की अदूरदर्शिता पर व्यंग्य किया है। वे पश्चिमी देशों के विकास के मॉडल को भारतीय परिस्थितियों में भी जबरदस्ती थोपते हैं। वे सत्तापक्ष तथा कुछ पूँजीपतियों के स्वार्थ के लिए हरे-भरे वनों, गाँवों तथा उनमें रहने वालों को उजाड़ देते हैं, जिससे इन्हें शरणार्थियों जैसा जीवन जीने पर विवश होना पड़ता है। ये लोग ग्रामीण संस्कृति और प्राकृतिक संपदा को नष्ट-श्रष्ट कर देते हैं।