In this post, we have given Class 12 Hindi Antra Chapter 17 Summary – Sher Pehchan Char Hath Sajha Summary Vyakhya. This Hindi Antra Class 12 Summary is necessary for all those students who are in are studying class 12 Hindi subject.
शेर, पहचान, चार हाथ, साझा Summary – Class 12 Hindi Antra Chapter 17 Summary
शेर, पहचान, चार हाथ, साझा – भीष्म साहनी – कवि परिचय
प्रश्न :
असगर वज़ाहत का संक्षिप्त जीवन – परिचय देते हुए उनकी रचनाओं और भाषा – शैली पर प्रकाश डालिए।
उत्तर :
जीवन परिचय – असगर वज़ाहत का जन्म फतेहपुर, उत्तर प्रदेश में सन् 1946 में हुआ। उनकी प्रारंभिक शिक्षा फतेहपुर में हुई तथा विश्वविद्यालय स्तर की पढ़ाई उन्होंने अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय से की। सन् 1955 – 56 से ही असगर वज़ाहत ने लेखन – कार्य प्रारंभ कर दिया था। प्रारंभ में उन्होंने विभिन्न पत्र – पत्रिकाओं में लेखन – कार्य किया, बाद में वे दिल्ली के जामिया मिल्लिया विश्वविद्यालय में अध्यापन कार्य करने लगे।
रचनाएँ – वज़ाहत ने कहानी, उपन्यास, नाटक तथा लघु कथाएँ तो लिखी ही हैं। उन्होंने फ़िल्मों और धारावाहिकों के लिए पटकथा – लेखन का काम भी किया है। उनकी प्रमुख रचनाएँ हैं –
कहानी – संग्रह – दिल्ली पहुँचना है, स्विमिंग पूल, आधी बानी तथा सब कहाँ कुछ।
नाटक – फिरंगी लौट आए, इन्ना की आवाज़, वीरगति, समिधा, जिन लाहौर नई देख्या तथा अकी।
नुक्कड़ नाटक – सबसे सस्ता गोश्त।
उपन्यास – रात में जागने वाले, पहर दोपहर, सात आसमान तथा कैसी आग लगाई।
भाषा – शिल्प – असगर वज़ाहत की भाषा में गांभीर्य, सबल भावाभिव्यक्ति एवं व्यंग्यात्मकता है। मुहावरों तथा तद्भव शब्दों के प्रयोग से उसमें सहजता एवं सादगी आ गई है। इन्होंने ‘गज़ल की कहानी’ वृत्तचित्र का निर्देशन किया है तथा ‘बूँद – बूँद’ धारावाहिक का लेखन भी किया है। इनकी रचनाओं में सरल, सहज तथा बोधगम्य भाषा का प्रयोग है, जिसमें तत्सम, तद्भव, देशज और विदेशी विशेषकर अंग्रेज़ी भाषा के शब्दों का प्रयोग किया गया है। लेखन में चित्रात्मक, वर्णनात्मक एवं व्यंग्यात्मक शैलियों का प्रयोग इसे प्रभात्री बना देता है।
Sher Pehchan Char Hath Sajha Class 12 Hindi Summary
(क) शेर – इस लघुकथा में प्रतीकात्मकता एवं व्यंग्यात्मकता है। शेर को व्यवस्था का प्रतीक बताया गया है, जिसके पेट में अनेक सुख-सुविधाएँ हैं और प्रत्येक जानवर किसी विशेष सुख-सुविधा की प्राप्ति के लिए स्वयमेव शेर के मुँह की ओर अग्रसित होता जा रहा है।
लेखक शहर या आदमियों विशेषत: कसाई से बचने के लिए शहर छोड़ जंगल की ओर भाग गया। जंगल में उसने बरगद के वृक्ष के नीचे बैठे शेर को देखा, जिसका मुँह खुला था। शेर से बचने के लिए वह एक झाड़ी के पीछे इस प्रकार छिपकर बैठा कि शेर की गतिविधि देख सके। उसने देखा कि जंगल के जानवर, स्वेच्छा से पंक्तिबद्ध होकर शेर के खुले मुँह की ओर चलते जा रहे हैं और शेर के पेट में समाते जा रहे हैं। लेखक ने जानवरों से इसका कारण जानना चाहा तो सबने अलग-अलग कारण बताए। गधे ने बताया कि शेर के मुँह में हरी घास का विशाल मैदान है।
वहाँ वह आराम से रहेगा और उसे खाने को खूब घास मिलेगी। लोमड़ी ने कहा कि शेर के मुँह में रोज़गार का दफ़्तर है। वह नौकरी पाने के लिए वहाँ आवेदन करेगी। उल्लू को शेर के मुँह में स्वर्ग दिखाई दे रहा था। वह निर्वाण पाने के लिए उसके पेट के अंदर जा रहा था। लेखक ने देखा कि कुत्ते भी समूह बनाए शेर के मुँह में समाते जा रहे हैं। कुछ दिन बाद लेखक ने सुना कि शेर अहिंसावादी और सहअस्तित्ववाद का समर्थक है और वह जानवरों का शिकार नहीं करता है। एक दिन वह स्वयं भी शेर के पास गया।
उसने देखा शेर तो आँखें बंद किए बैठा है और उसका स्टॉफ काम का निबटारा किए जा रहा है। लेखक के पूछने पर शेर के स्टॉफ ने बताया कि जिन सुख-सुविधाओं को पाने के लिए जानवर शेर के पेट में जा रहे हैं, वहाँ वे सुविधाएँ हैं। लेखक ने जब उनका प्रमाण माँगा तो स्टॉफ ने प्रमाण से अधिक महत्वपूर्ण विश्वास को बताया। साथ ही यह भी कहा कि बाहर जो रोज़गार दफ्त्तर है वह झूठ है। लेखक को दोनों दफ्तरों (शेर के मुँह में स्थित और बाहर स्थित रोज़गार दफ्तर) का अंतर पता था, इसलिए वह शेर के मुँह में नहीं गया।
(ख) पहचान – इसमें राजा को बहरी, गूँगी और अंधी प्रजा पसंद् आती है जो बिना कुछ बोले, बिना कुछ सुने और बिना कुछ देखे उसकी आज्ञा का पालन करती रहे। कहानीकार ने इस यथार्थ की पहचान कराई है। भूमंडलीकरण और उदारीकरण के दौर में इन्हें प्रगति और उत्पादन से जोड़कर संगत और ज़रूरी भी ठहराया जा रहा है।
किसी राजा ने आदेश दिया कि उसके राज्य में सब लोग आँखें बंद् रखेंगे ताकि उन्हें शांति मिलती रहे। राजा की आज्ञा अनिवार्य मानकर लोगों ने वैसा ही किया। आँखें बंदकर काम करने से काम अधिक तथा पहले से बेहतर होने लगा। इसके बाद राजा ने कान बंद् करके रखने का आदेश दिया, जिससे फिर उत्पाद्न बेहतर और अधिक हो गया। बोलने को उत्पादन में बाधा मान राजा ने अगला आदेश होंठ सिलवाने के लिए दिया। इसी तरह के और भी आदेश उन्हें मिलते रहे, जिसे लोग मानते रहे। राज्य अपनी गति से प्रगति कर रहा था, पर जब कुछ लोगों ने अपनी आँखें खोल अपने राज्य की प्रगति देखना चाहा तो उन्हें राजा के अलावा कुछ भी नज़र न आया। यहाँ तक कि वे स्वयं को भी न देख सके।
(ग) चार हाथ – यह लघुकथा पूँजीवादी व्यवस्था में मज़दूरों के शोषण को उजागर करती है। पूँजीपति भाँति-भाँति के उपाय कर मजदूरों को पंगु बनाने का प्रयास करते हैं। वे उनके अहम् और अस्तित्व को छिन्न-भिन्न करने के नए-नए तरीके ढूँढते हैं और अंततः उनकी अस्मिता ही समाप्त कर देते हैं।
अपने व्यवसाय को बढ़ाने में जुटे एक मिल मालिक के दिमाग में एक विचित्र खयाल आया कि सारा संसार एक मिल हो जाए और संसार के सभी लोग उस मिल के मज़दूर। वह स्वयं उस मिल का मालिक और उसमें उत्पाद् होगा-आदमी, जिसके लिए उसे कोई मज़दूरी नहीं देनी पड़ेगी। एक दिन उसने सोचा कि यदि आदमी के चार हाथ हो जाएँ तो काम और मुनाफ़ा दोनों ही बढ़ जाएगा।
पर यह काम कौन करेगा, यह समस्या सामने थी। इसका हल उसे नज़र आया वैज्ञानिकों में। उसने वैज्ञानिकों को नौकर रखा। कई साल तक शोध करने के बाद वैज्ञानिकों ने बताया कि आदमी के चार हाथ होना असंभव है। यह सुनते ही क्रोधित मिल मालिक ने उन्हें नौकरी से निकाल दिया और स्वयं ही इस काम में जुट गया। उसने चार हाथ बनाने के लिए मज़दूरों के शरीर में कटे हाथ, लकड़ी के हाथ और अंत में लोहे के हाथ लगवाने चाहे पर इससे तो मज़दूर ही मर गए। अंत में उसने मज़दूरी आधी कर दी और मज़दूरों की संख्या ही दुगनी कर दी।
(घ) साझा – इसमें उद्योगों पर कब्जा जमाने के बाद पूँजीपतियों की नज़र किसानों और उत्पाद पर जमी है। गाँव का प्रभुत्वशाली वर्ग भी इसमें शामिल है। वह किसान को साझा खेती करने का झाँसा देता है और उसकी सारी फसल हड़प लेता है। किसान को खेती करने का पूरा ज्ञान था, परंतु डरा दिए जाने के कारण वह अकेले खेती करने का साहस नहीं जुटा पा रहा था। किसान पहले ही शेर, चीता और मगरमच्छ के साथ खेती करके देख चुका था। इस बार हाथी ने उससे साझे में खेती करने की बात कही। किसान ने प्रस्ताव को अस्वीकृत कर दिया, तब हाथी ने उसे प्रलोभन देते हुए कहा कि साझा खेती करने से जंगल के छोटे-छोटे जानवर उसे नुकसान नहीं पहुँचा सकेंगे और खेती सुरक्षित रहेगी। किसान के किसी तरह ‘हाँ’ करते ही हाथी ने किसान का साझीदार होने की घोषणा जंगल में करा दी और नुकसान करने वाले को चेतावनी भी दे दी।
किसान के अथक परिश्रम से गन्ने की फसल तैयार हो गई तो वह गन्नों का बँटवारा करने के लिए किसान को बुला लाया और आधी-आधी फसल बाँटने की बात कही, जिसे सुनकर हाथी नाराज़ हो गया। हाथी ने किसान से अपने-पराए की बात छोड़ मिल-जुलकर गन्ने खाने की सलाह दी। हाथी ने एक गन्ना तोड़ उसका एक सिरा स्वयं पकड़कर दूसरा किसान को पकड़ा दिया। गन्ना खाते समय किसान भी हाथी के मुँह की ओर खिचकर आने लगा और उसने गन्ना छोड़ दिया। इस प्रकार साझे की खेती का सारा फायदा हाथी ने उठाया।
शेर –
- सींग निकलना – व्यवस्था के अलग रहना, पुरानी लीक से हटकर काम करना (opposite of tradition)।
- ओट – आड़ में (shade)।
- गटकना – निगलना (to swallow)।
- दरख्यास्त – आवेदन – पत्र (application)।
- निर्वाण – जन्म और मरण के कष्टों से मुक्ति, मोक्ष (liberated from existence)।
- दुम दबाए – डरे हुए (feared)।
- सह – अस्तित्ववाद – मिल – जुलकर साथ रहने की भावना (co – existence)।
- समर्थक – साथ देने वाला, पक्षधर (supporter)।
- प्रमाण – सबूत (proof)।
- मिध्या – झूठ (untrue)।
- उल्लू बनाना – मूर्ख बनाना (to make fool)।
पहचान –
- अनिवार्य – ज़रूरी (compulsory)।
- बाधक – बाधा खड़ी करने वाला (obstructing)।
चार हाथ –
- अजीबो – गरीब – विचित्र (strangeful)।
- तनख्वाह – वेतन (salary)। शोध – खोज (research)।
साझा –
- बारीकी – छोटी – छोटी जानकारी (excellence)।
- पट्टी पढ़ाना – बेवकूफ़ बनाना (to make fool)।
- डुग्गी पीटना – घोषणा करा देना (to make announce)।
- पराए – दूसरे (others)।
शेर, पहचान, चार हाथ, साझा सप्रसंग व्याख्या
1. मैं तो शहर से या आदमियों से डरकर जंगल इसलिए भागा था कि मेरे सिर पर सींग निकल रहे थे और डर था कि किसी-न-किसी दिन कसाई की नज़र मुझ पर ज़रूर पड़ जाएगी। जंगल में मेरा यहला ही दिन था, जब मैंने बरगद के पेड़ के नीचे एक शेर को बैठे हुए देखा। शेर का मुँह खुला हुआ था। शेर का खुला मुँह देखकर मेरा जो हाल होना था वही हुआ, यानी मैं डर के मारे एक झाड़ी के पीछे छिप गया। प्रसंग-प्रस्तुत गद्यांश हमारी पाठ्यपुस्तक ‘अंतरा भाग 2 ‘में संकलित पाठ ‘लघु कथाएँ’ से उद्धृत है। इस पाठ के लेखक असगर वज़ाहत हैं। यह अंश ‘शेर’ नामक लघुकथा से उद्धृत है। लेखक ने इसके माध्यम से मानव शोषण के विभिन्न रूपों को प्रस्तुत किया है।
इस अंश में व्यवस्था एवं सरकारी तंत्र की असलियत और आम आदमी की स्थिति के बारे में बताया गया है।
व्याख्या – लेखक के सिर पर सींग निकल रहे थे अर्थात् वह सत्ता की खामियों से वाकिफ़ हो गया था। उसे डर था कि किसी-न-किसी दिन कसाई की नज़र उस पर पड़ जाएगी अर्थात् सरकारी तंत्र उसे नष्ट कर देंगे। इसलिए वह शहर से डरकर जंगल की तरफ भाग लिया। जंगल में उसका पहला दिन था। वहाँ उसने बरगद के पेड़ के नीचे एक शेर को बैठे देखा। शेर का मुँह खुला हुआ था। शेर का मुँह खुला देखकर लेखक बेहद घबरा गया। वह डर के मारे एक झाड़ी के पीछे छिप गया। उसने देखा कि यहाँ भी लगभग वही स्थित है। जंगल के जानवरों का सफाया करने के लिए ही शेर मुँह खोले बैठा है।
विशेष :
- सत्ता एवं सरकारी तंत्र द्वारा जन साधारण को मूर्ख बनाकर उनका शोषण करने की प्रवृत्ति पर व्यंग्य है।
- प्रतीकों का सुंदर प्रयोग है।
- मिश्रित शब्दावलीयुक्त भाषा प्रवाहमयी है।
- सींग निकलना, कसाई की नज़र पड़ना मुहावरों का प्रभावशाली इस्तेमाल है।
- व्यंजना शब्द-शक्ति है।
- व्यग्यात्मक शैली का प्रयोग हुआ है।
2. कुछ दिनों के बाद मैंने सुना कि शेर अहिंसा और सह-अस्तित्वाद का बड़ा ज़बरदस्त समर्थक है, इसलिए जंगली जानवरों का शिकार नहीं करता। मैं सोचने लगा, शायद शेर के पेट में वे सारी चीज़ें हैं, जिनके लिए लोग वहाँ जाते हैं और में भी एक दिन शेर के यास गया। शेर आँखें बंद किए पड़ा था और उसका स्टाफ़ आफ़िस का काम निपटा रहा था।
प्रसंग-प्रस्तुत गद्यांश हमारी पाठ्यपुस्तक ‘अंतरा भाग 2’ में संकलित पाठ ‘लघु कथाएँ’ से उद्धृत है। इस पाठ के लेखक असगर वज़ाहत हैं। यह अंश ‘शेर’ शीर्षक से लिया गया है। लेखक ने इसके माध्यम से मानव शोषण के विभिन्न रूपों को प्रस्तुत किया है।
लेखक ने सत्ता-व्यवस्था एवं सरकारी तंत्र की कलई खोलकर पाठक को सच्चाई से अवगत कराया है।
व्याख्या – लेखक सत्ता पर ज़बरदस्त व्यंग्य करते हुए कहता है कि सत्ता जनता का शोषण अपनी ताकत व विशेषाधिकारों के बल पर करती है। लेखक बताया है कि कुछ दिनों के बाद उसने सुना कि शेर ने हिंसा छोड़ दी। वह अहिंसा तथा सह-अस्तित्ववाद का ज़बरदस्त समर्थक है। अब उसने जंगली जानवरों का शिकार छोड़ दिया है। दूसरे शब्दों में, वह प्रत्यक्ष तौर पर जनता का शोषण नहीं करता। इस सूचना पर लेखक सोचने लगा कि शायद शेर के पेट में वे सभी सुविधाएँ हैं, जिनके आकर्षण में आम जनता वहाँ जाती है। लेखक ने भी एक दिन शेर के पास जाने की हिम्मत की। उस समय शेर आँखें बंद किए आराम कर रहा था। उसके सहायक कर्मचारी कामकाज निपटा रहे थे।
विशेष :
- जनता की हितैषी होने का ढोंग रचने वाली सत्ता की कलई खोल दी गई है। यह व्यंग्य का ज़बरदस्त उदाहरण है।
- शेर ‘सत्ता’ का तथा लेखक ‘आम जनता’ का प्रतीक है।
- मिश्रित शब्दावलीयुक्त प्रवाहमयी भाषा का प्रयोग है, जिसमें सरलता, प्रतीकात्मकता, सहजता, बोधगम्यता है।
- प्रतीकात्मक शैली एवं व्यंग्यात्मक शैली में गद्य रचना है।
- व्यंजना शब्द-शक्ति है।
3. राजा ने हुक्म दिया कि उसके राज में सब लोग अपनी आँखें बंद रखेंगे ताकि उन्हें शानिति मिलती रहे। लोगों ने ऐसा ही किया, क्योंकि राजा की आज्ञा मानना जनता के लिए अनिवार्य है। जनता आँखें बंद किए-किए सारा काम करती थी और आश्चर्य की बात यह कि काम पहले की तुलना में बहुत अधिक और अच्छा हो रहा था। फिर हुक्म निकला कि लोग अपने-अपने कानों में पिघला हुआ सीसा डलवा लें, क्योंकि सुनना जीवित रहने के लिए बिलकुल जरूरी नहीं है। लोगों ने ऐसा ही किया और उत्पादन आश्चर्यजनक तरीके से बढ़ गया।
प्रसंग – प्रस्तुत गद्यांश हमारी पाठ्यपुस्तक ‘अंतरा भाग 2’ में संकलित पाठ ‘लघु कथाएँ’ से उद्धृत है। इस पाठ के लेखक असगर वज़ाहत हैं। यह अंश ‘पहचान’ शीर्षक से लिया गया है। लेखक ने इसके माध्यम से मानव-शोषण के विभिन्न रूपों को प्रस्तुत किया है। इस अंश में एक लोभी राजा द्वारा बेहतर और अधिक उत्पादन की चाह में लोगों को अजीबो-गरीब आदेश देने तथा लोगों द्वारा चुपचाप मानते चले जाने का वर्णन है।
व्यख्या – लेखक बताता है कि गूँगी, बहरी और अंधी प्रजा को पसंद करने वाले राजा ने आदेश निकाला कि उसके राज्य में सभी लोग अपनी आँखें बंद रखेंगे। इस कार्य से उन्हें शांति मिलेगी। राजा की आज्ञा मानना जनता के लिए ज़रूरी था, इसलिए सारी जनता ने अपनी आँखें बंद् कर ली। वे आँखें बंद करके सारे काम करते थे। इसके परिणाम भी आश्चर्यजनक रहे। अब काम पहले की तुलना में बहुत अधिक तथा सही तरीके से हो रहा था। इस आदेश की सफलता के बाद राजा ने दूसरा आदेश निकाला कि लोग अपने कानों में पिघला सीसा डलवा लें। इसका कारण यह है कि ज़िदा रहने के लिए सुनने की ज़रूरत नहीं है। लोगों ने राजाज्ञा का पालन किया। इस प्रकार उत्पादन में बेहद बढ़ोतरी हुई।
विशेष :
- राजा के निरंकुश शासन का प्रतीकात्मक वर्णन तथा लोगों की गुलाम-प्रवृत्ति पर व्यंग्य किया गया है।
- मिश्रित शब्दावलीयुक्त खड़ी बोली में सशक्त अभिव्यक्ति है।
- वर्णनात्मक शैली में व्यंग्य प्रधान रचना है।
- भाषा में प्रवाह एवं बोधगम्यता है।
4. एक मिल मालिक के दिमाग में अज़ीब-अज़ीब ख्याल आया करते थे; जैसे सारा संसार मिल हो जाएगा, सारे लोग मज़दूर और वह उनका मालिक या मिल में और चीज़ों की तरह आदमी भी बनने लगेंगे, तब मज़ूरी भी नहीं देनी पड़ेगी, वगैरा-वगैरा। एक दिन उसके दिमाग में खयाल आया कि अगर मज़दूरों के चार हाथ हो तो काम कितनी तेज़ी से हो और मुनाफ़ा कितना ज़्यादा। लेकिन यह काम करेगा कौन? उसने सोचा, वैज्ञानिक करेंगे, ये हैं किस मर्ज़ की दवा?
प्रसंग – प्रस्तुत ग्यद्यांश हमारी पाठ्यपुस्तक ‘अंतरा भाग 2’ में संकलित पाठ ‘लघु कथाएँ’ से उद्धृत है। इस पाठ के लेखक असगर वज़ाहत हैं। यह गद्यांश ‘चार हाथ’ लघुकथा से लिया गया है। लेखक ने इसके माध्यम से मानव-शोषण के विभिन्न रूपों को प्रस्तुत किया है।
इस अंश में पूँजीपतियों द्वारा मज़दूरों के शोषण तथा उनके जीवन से खिलवाड़ का वर्णन किया गया है।
व्याख्या – लेखक मज़दूरों के शोषण तथा मिल मालिकों के बारे में बताया है कि एक मिल मालिक के दिमाग में अजीब ख्याल आते थे। एक बार उसने सोचा कि यदि यह सारा संसार कारखाना बन जाए, सारे लोग मज़दूर हो जाएँ और वह उनका मालिक बन जाए। उसे यह भी ख्याल आता था कि मिल में जैसे और वस्तुएँ बनती हैं, वैसे ही मानव भी बनने लगें तो उसे मज़दूरी आदि भी नहीं देनी पड़ेगी। दूसरे शब्दों में, मालिक शोषण के नए-नए तरीके सोचता है। एक दिन उसे ख्याल आया कि मज़दूरों के अगर चार हाथ हो जाएँ तो उत्पादन में तेज़ी से बढ़ोतरी होगी। उसका लाभ बेहद ज़्यादा हो जाएगा। इस काम को पूर्ण कौन करेगा, फिर उसका ध्यान वैज्ञानिकों की तरफ गया। वे ऐसे कामों के लिए ही होते हैं।
विशेष :
- मिल मालिकों की मानसिकता, शोषण-प्रवृत्ति तथा वैज्ञानिकों का उनके इशारों पर नाचने की मानसिकता का भाव प्रकट हुआ है।
- भाषा प्रवाहमयी उर्दू मिश्रित खड़ी बोली है।
- भाषा में मुहावरे के प्रयोग से सरलता एवं रोचकता में वृद्धि हुई है।
- वर्णनात्मक शैली का प्रयोग है, जिसमें काल्पनिकता का पुट है।
5. हालाँक उसे खेती की हर बारीकी के बारे में मालूम था। लेकिन फिर भी डरा दिए जाने के कारण वह अकेला खेती करने का साहस न जुटा पाता था। इससे पहले वह शेर, चीते और मगरमच्छ के साथ साझे की खेती कर चुका था, अब उससे हाथी ने कहा कि अब वह उसके साथ साझे की खेती करे। किसान ने उसको बताया कि साझे में उसका कभी गुजारा नहीं होता और अकेले वह खेती कर नहीं सकता। इसलिए वह खेती करेगा ही नहीं। हाथी ने उसे बहुत देर तक पट्टी पढ़ाई।
प्रसंग – प्रस्तुत गद्यांश हमारी पाठ्यपुस्तक ‘अंतरा भाग 2’ में संकलित पाठ ‘लघु कथाएँ’ से उद्धृत है। इस पाठ के लेखक असगर वज़ाहत हैं। यह अंश ‘साझा’ शीर्षक से लिया गया है। लेखक ने इसके माध्यम से मानव-शोषण के विभिन्न रूपों को प्रस्तुत किया है।
इस अंश में किसानों को डराने-धमकाने तथा साहूकारों और पूँजीपतियों द्वारा किए जा रहे शोषण का वर्णन है।
व्याख्या – लेखक शोषित तथा शोषक वर्ग के बारे में कहता है कि किसान शोषित प्राणी है। उसे खेती की हर बारीकी का पता है, वह खेती के सभी तरीके जानता है, लेकिन उसे डरा दिया जाता है। उसको फसलें नष्ट करने तथा छीनने की धमकी दी जाती है। इस डर से वह अकेला खेती करने का साहस नहीं जुटा पाता। यहाँ शेर, चीते तथा मगरमच्छ प्रतीक
रूप में शोषक वर्ग हैं। किसान इन सबके साथ साझे की खेती कर चुका था, परंतु उसे हमेशा नुकसान रहा। इस बार हाथी ने उसे अपने साथ खेती करने की सलाह दी। किसान ने उसे बताया कि साझे की खेती से उसका गुज़ारा नहीं होता। उसमें इतनी सामर्थ्य नहीं कि वह अकेले खेती कर सके। इसलिए उसने खेती करने का विचार छोड़ दिया है। हाथी उसे काफी देर तक फुसलाता रहा।
विशेष :
- ‘हाथी’ प्रभुत्वशाली वर्ग तथा ‘किसान’ शोषित वर्ग का पर्याय है। इस वर्ग द्वारा किसानों का इतना शोषण किया गया कि छोटे-मोटे किसानों ने खेती छोड़ने का मन बना लिया। यह भाव प्रकट है।
- भाषा प्रवाहमयी खड़ी बोली है, जिसमें भावों की सफल अभिव्यक्ति है।
- ‘बारीकी पता होना’ ‘साहस न जुटा पाना’, ‘साझे की खेती होना’, ‘गुज़ारा न होना’ तथा ‘पट्टी पढ़ाना’ मुहावरों का सुंदर प्रयोग है।
- प्रतीकात्मक शब्दों का सफल प्रयोग है।
- व्यंग्यात्मक शैली का प्रयोग है।