Well-organized Geography Class 12 Notes in Hindi and Class 12 Geography Chapter 7 Notes in Hindi खनिज तथा ऊर्जा संसाधन can aid in exam preparation and quick revision.
Geography Class 12 Chapter 7 Notes in Hindi खनिज तथा ऊर्जा संसाधन
किसी भी देश के खनिज संसाधन औद्योगिक विकास के लिए आवश्यक आधार प्रदान करते हैं। भारत अपनी विविधतापूर्ण भूगर्भिक संरचना के कारण विविध प्रकार के खनिज संसाधनों से संपन्न है।
→ खनिज संसाधनों के प्रकार:
रासायनिक एवं भौतिक गुणधर्मों के आधार पर खनिज धात्विक और अधात्विक प्रकार के होते हैं। लौह अयस्क, ताँबा एवं सोना जैसे खनिज, जिनसे धातु उपलब्ध होते हैं, धात्विक खनिज कहलाते हैं। धात्विक खनिज लौह अंश की उपस्थिति के आधार पर लौह एवं अलौह धात्विक प्रकार के होते हैं। अधात्विक खनिज कार्बन की उपस्थिति के आधार पर कार्बनिक अधात्विक खनिज जैसे जीवाश्म ईंधन, कोयला, पेट्रोलियम आदि तथा अकार्बनिक अधात्विक खनिज जैसे अभ्रक, चूना पत्थर, ग्रेफाइट आदि प्रकार के होते हैं।
→ भारत में खनिजों का वितरण:
देश में अधिकांश धात्विक खनिज प्रायद्वीपीय पठारी क्षेत्र की प्राचीन क्रिस्टलीय शैलों में पाए जाते हैं। अधात्विक खनिज कोयले के लगभग 97 प्रतिशत निक्षेप दामोदर, सोन, महानदी | और गोदावरी नदी घाटियों में एवं अरब सागर के अपतटीय क्षेत्र में पेट्रोलियम के भंडार पाए जाते हैं। भारत के खनिज मुख्यतः तीन विस्तृत पट्टियों में सांद्रित हैं। ये पट्टियाँ हैं—
- उत्तर-पूर्वी पठारी प्रदेश,
- दक्षिण-पश्चिमी पठारी प्रदेश,
- उत्तर-पश्चिमी प्रदेश।
उपरोक्त तीनों के अतिरिक्त हिमालय पट्टी एक अन्य पट्टी है। हिमालय के पूर्वी व पश्चिमी भागों में सामान्यतः ताँबा, सीसा जस्ता, कोबाल्ट तथा रंग-रत्नों के निक्षेप पाए जाते हैं। इसके अतिरिक्त असम घाटी और मुम्बई अपतटीय क्षेत्र ( मुंबई हाई) में खनिज तेल संसाधनों के निक्षेप पाए जाते हैं।
→ लौह खनिज:
लौह अयस्क, मँगनीज तथा क्रोमाइट जैसे खनिज जिनमें लौह अंश विद्यमान होता है, लौह खनिज कहलाते हैं।
1. लौह अयस्क – भारत में एशिया के विशालतम लौह अयस्क भंडार विद्यमान हैं। सामान्यतः देश में उत्तम गुणवत्ता वाले हेमेटाइट और मैग्नेटाइट प्रकार के लौह-अयस्क के भण्डार पाए जाते हैं। लौह अयस्क की खदानें देश के उत्तर-पूर्वी पठार प्रदेश में कोयला क्षेत्रों के निकट स्थित हैं। लौह अयस्क के कुल आरक्षित भंडार का लगभग 95 प्रतिशत ओडिशा, झारखंड, छत्तीसगढ़, कर्नाटक, गोआ, आंध्र प्रदेश तथा तमिलनाडु राज्यों में पाया जाता है।
2. मैंगनीज – मुख्यतया धारवाड़ क्रम की चट्टानों से सम्बन्धित इस खनिज का उपयोग लौह-मिश्र धातु, विनिर्माण के साथ लौह अयस्क के प्रगलन के लिए भी किया जाता है। देश में ओडिशा, कर्नाटक, महाराष्ट्र और मध्य प्रदेश मैंगनीज के प्रमुख उत्पादक राज्य हैं। इनके अलावा तेलंगाना, गोआ तथा झारखंड मैंगनीज के गौण उत्पादक राज्य हैं।
→ अलौह:
खनिज – जिन खनिजों में लौह अंश अनुपस्थित होता है, वे अलौह खनिज के अन्तर्गत आते हैं। देश में बॉक्साइट के अतिरिक्त अन्य सभी अलौह खनिज कम मात्रा में ही विद्यमान हैं।
- बॉक्साइट – यह मुख्यतः टर्शियरी निक्षेपों में पाया जाता है। यह विस्तृत रूप से प्रायद्वीपीय भारत के पठारी क्षेत्रों के साथ-साथ देश के तटीय भागों में भी पाया जाता है। बॉक्साइट का उत्पादन मुख्यतया ओडिशा, झारखंड, गुजरात, छत्तीसगढ़, मध्यप्रदेश और महाराष्ट्र में किया जाता है। इनके अतिरिक्त इसका गौण रूप में उत्पादन कर्नाटक, तमिलनाडु और गोआ में भी होता है।
- तांबा – इसके निक्षेप मुख्यतः झारखंड के सिंहभूमि जिले में मध्य प्रदेश के बालाघाट में तथा राजस्थान के झुंझुनूं एवं अलवर जिलों में पाए जाते हैं।
→ अधात्विक खनिज:
देश में उत्पादित अधात्विक खनिजों में अभ्रक महत्वपूर्ण है। इसके अतिरिक्त स्थानीय उपयोग के लिए उत्पन्न किए जाने वाले खनिज मुख्यतः चूना पत्थर, डोलोमाइट तथा फॉस्फेट हैं।
अभ्रक:
इसका उपयोग मुख्यतः विद्युत एवं इलेक्ट्रोनिक्स उद्योगों में किया जाता है। अभ्रक को पतली चादरों में विघटित किया जा सकता है, जो काफी सख्त होती हैं। अभ्रक मुख्य रूप से झारखण्ड, आन्ध्रप्रदेश, तेलंगाना व राजस्थान में तथा गौण रूप में तमिलनाडु, पश्चिम बंगाल, मध्यप्रदेश, कर्नाटक व महाराष्ट्र में पाए जाते हैं।
→ ऊर्जा संसाधन:
कोयला, पेट्रोलियम, प्राकृतिक गैस ऊर्जा के परम्परागत स्रोत हैं, जो सामान्यतः ऊर्जा के समाप्य संसाधन हैं-
1. कोयला- यह एक महत्वपूर्ण खनिज है, जो मुख्य रूप से गोंडवाना और टर्शियरी भूगर्भिक कालों की चट्टानों में पाया जाता है। देश में विद्यमान कोयला निक्षेपों का लगभग 80 प्रतिशत भाग बिटुमिनस प्रकार का तथा गैर कोककारी श्रेणी का है। भारत में गोंडवाना कोयले के प्रमुख क्षेत्र दामोदर, गोदावरी, महानदी और सोन नदी घाटियों में अर्थात् पश्चिमी बंगाल, झारखंड, उड़ीसा, छत्तीसगढ़, मध्यप्रदेश, महाराष्ट्र और आंध्र प्रदेश में स्थित हैं, जबकि | टर्शियरी कोयला असम, अरुणाचल प्रदेश, मेघालय तथा नागालैण्ड में पाया जाता है।
2. पेट्रोलियम – यह अपरिष्कृत और अनेक अशुद्धियों के साथ टर्शियरी काल की अवसादी शैलों में पाया जाता है। इसके अनेक सह उत्पादों का प्रयोग उर्वरक, कृत्रिम रबर, दवाइयाँ, वैसलीन, मोम, साबुन आदि बनाने में किया जाता है। देश में मुख्यतया असम, गुजरात, मुम्बई हाई कृष्णा-गोदावरी तथा कावेरी नदी बेसिनों में तेल के निक्षेप पाये जाते हैं।
3. प्राकृतिक गैस – प्राकृतिक गैस के परिवहन एवं विपणन हेतु देश में 1984 में सार्वजनिक क्षेत्र में ‘गैस ऑथोरिटी ऑफ इंडिया लिमिटेड’ की स्थापना की गई थी। इसे मुख्यत: तेल क्षेत्रों में तेल के साथ प्राप्त किया जाता है। परन्तु इसके पृथक् भंडार तमिलनाडु के पूर्वी तट, उड़ीसा, त्रिपुरा, राजस्थान, गुजरात, आंध्र प्रदेश और महाराष्ट्र के अपतटीय कुओं में पाए जाते हैं।’
→ अपरम्परागत ऊर्जा स्रोत:
इसके अन्तर्गत सौर, पवन, जल, भूतापीय ऊर्जा तथा जैवभार (बायोमास ) जैसे ऊर्जा के नवीकरण योग्य स्रोतों को सम्मिलित करते हैं-
- नाभिकीय ऊर्जा – यह ऊर्जा मुख्यत: यूरेनियम और थोरियम खनिजों से प्राप्त की जाती है। भौगोलिक दृष्टि से यूरेनियम मुख्य रूप से झारखण्ड के सिंहभूमि तांबा पट्टी में एवं थोरियम केरल तट की बालू में मोनाजाइट एवं इल्मेनाइट से प्राप्त किया जाता है। देश में परमाणु ऊर्जा आयोग की स्थापना 1948 में एवं प्रथम परमाणु ऊर्जा संस्थान 1954 में ट्राम्बे (महाराष्ट्र) में स्थापित किया गया था।
- सौर ऊर्जा – इसका प्रयोग सामान्यतः हीटर, फसल शुष्ककों (Crop dryer), कुकर आदि उपकरणों में अधिक किया जाता है। सौर ऊर्जा उत्पादन की अधिक संभावनाएँ मुख्यतः देश के पश्चिमी राज्य गुजरात व राजस्थान में हैं।
- पवन ऊर्जा – यह पूर्णरूप से प्रदूषण मुक्त और ऊर्जा का असमाप्य स्रोत है। मुख्यतः पवन की गतिज ऊर्जा को टरबाइन के माध्यम से विद्युत ऊर्जा में बदलने से प्राप्त ऊर्जा, पवन ऊर्जा कहलाती है। देश में पवन ऊर्जा की सबसे अनुकूल दशाएँ राजस्थान, गुजरात, महाराष्ट्र और कर्नाटक में हैं।
- ज्वारीय तथा तरंग ऊर्जा-ज्वारीय तरंगें और महासागरीय धाराएँ ऊर्जा के व्यापक भण्डार गृह हैं। यद्यपि भारत में तटों के समीप ज्वारीय ऊर्जा विकसित करने की व्यापक संभावनाएँ हैं परन्तु अभी तक इनका उपयोग नहीं किया गया है।
- भूतापीय ऊर्जा-पृथ्वी के गर्भ से निकलते तप्त मैग्मा, गर्म झरनों एवं गीजर कूपों से निकलते गर्म पानी के साथ अत्यधिक मात्रा में ऊष्मा भी निकलती है, जिससे ताप ऊर्जा उत्पन्न की जा सकती है। देश में भूतापीय ऊर्जा संयंत्र हिमाचल प्रदेश के मनीकरण में अधिकृत किया गया है।
- जैव ऊर्जा – जैविक उत्पादों जैसे कृषि अवशेष, नगरपालिका, औद्योगिक तथा अन्य अपशिष्ट से प्राप्त ऊर्जा जैव ऊर्जा, कहलाती है। इस ऊर्जा को विद्युत ऊर्जा, ताप ऊर्जा और खाना पकाने के लिए गैस में परिवर्तित किया जा सकता है।
→ खनिज संसाधनों का संरक्षण:
वर्तमान एवं भावी पीढ़ियों के उपयोग के लिए संसाधनों का संरक्षण अत्यन्त आवश्यक है। देश में विद्यमान समाप्य खनिज संसाधनों के परम्परागत तरीकों से उपयोग के परिणामस्वरूप वृहत् स्तर | पर अपशिष्टों के साथ पर्यावरणीय समस्याएँ भी उत्पन्न होती हैं। अतः ऊर्जा के असमाप्य गैर परम्परागत स्रोत जैसे सौर, पवन, तरंग व भूतापीय ऊर्जा का विकास नितान्त आवश्यक है, जिससे वर्तमान आरक्षित भंडारों का लम्बे समय तक प्रयोग किया जा सके।
→ भौगोलिक शब्दावली:
- आग्नेय शैल – प्राथमिक शैल, जिसका निर्माण पृथ्वी के तप्त व तरल मैगमा के शीतल होने से हुआ है।
- कायांतरित शैल – दाब तथा ताप के कारण आग्नेय एवं अवसादी शैलों के परिवर्तन से निर्मित शैल।
- अपतटीय क्षेत्र – सागरीय तट से दूर स्थित क्षेत्र।
- अवसादी शैल – चट्टान चूर्ण तथा जीव व वनस्पति के अवशेषों के समूहन से निर्मित परतदार शैल।
- पुलिन / बीच – सागरीय तट के सहारे सागरीय जल द्वारा मलबे के निक्षेप से बना स्थलरूप।