In this post, we have given Class 11 Hindi Antra Chapter 8 Summary – Uski Maa Summary Vyakhya. This Hindi Antra Class 11 Summary is necessary for all those students who are in are studying class 11 Hindi subject.
उसकी माँ Summary – Class 11 Hindi Antra Chapter 8 Summary
उसकी माँ – पांडेय बेचन शर्मा ‘उग्र’ – कवि परिचय
लेखक-परिचय
प्रश्न-पांडेय बेचन शर्मा ‘उग्र’ के जीवन का संक्षिप्त परिचय देते हुए उनकी साहित्यिक विशेषताएँ बताइए तथा उनकी रचनाओं का नामोल्लेख कीजिए।
उत्तर-जीवन-परिचय-पांडेय बेचन शर्मा ‘उग्र’ का जन्म सन 1900 में उत्तर प्रदेश के मिर्ज़ापुर जिले के चुनार नामक ग्राम में हुआ था। परिवार में आर्थिक अभावों के कारण इन्हें व्यवस्थित शिक्षा पाने का सुयोग नहीं मिला। मगर अपनी नैसर्गिक प्रतिभा और साधना से इन्होंने अपने समय के अग्रगण्य गद्य-शिल्पी के रूप में अपनी पहचान बनाई। अपने तेवर और शैली के कारण उग्र जी अपने समय के चर्चित लेखक रहे। अपने कवि मित्र निराला की तरह इन्हें भी पुरातनपर्थियों के कठोर विरोध का सामना करना पड़ा। इनकी मृत्यु सन 1967 में हुई।
रचनाएँ – पांडेय बेचन शर्मा ‘उग्र’ की कृतियाँ निम्नलिखित हैं :
- कहानी-संग्रह-पंजाब की महारानी, रेशमी, पोली इमारत, चित्र-विचित्र, कंचन-सी काया, काल कोठरी, ऐसी होली खेलो लाल, कला का पुरस्कार आदि।
- उपन्यास-चंद हसीनों के खतूत, बुधुआ की बेटी, दिल्ली का दलाल, मनुष्यानंद आदि।
- आत्मकथा-अपनी ख़बर।
- नाटक-महात्मा ईसा।
- काव्यखंड-ध्रुवधारण।
- संपादन-आज, विश्वमित्र, स्वदेश, वीणा, स्वराज्य, विक्रम। ‘मतवाला-मंडल’ के प्रमुख सदस्य के रूप में इनकी विशेष पहचान है।
साहित्यिक विशेषताएँ – पांडेय बेचन शर्म ‘उग्र’ प्रेमचंदयुगीन साहित्यकार हैं, इसलिए उस समय की प्रमुख प्रवृत्ति-समाज-सुधार इनकी कहानियों में मौजूद है। इसके अलावा देश की दुखस्था का ज़िम्मेदार शासन-तंत्र को मानना तथा इस प्रकार के शासन-तंत्र को उखाड़ फेंकना, यथार्थ से बेपरवाह रहना या स्वाधीनता आंदोलन की झलक भी इनकी कहानियों में मिलती है। उग्र जी की कहानियों की भाषा सरल, अलंकृत और व्यावहारिक है, जिसमें उर्दू के व्यावहारिक शब्द भी अनायास ही आ जाते हैं। भावों को मूर्तित करने में इनकी भाषा अत्यधिक सजीव और सशक्त कही जा सकती है, जो पाठक के मर्मस्थल पर सीधा प्रहार करती है। भावों के अनुरूप इनकी शैली की व्यंग्यपरकता देखते ही बनती है।
पाठ-परिचय :
‘उसकी माँ’ कहानी देश की दुरवस्था से चितित युवा पीढ़ी के विद्रोह को नए रूप में प्रस्तुत करती है। यह युवा पीढ़ी देश की दुरवस्था का जि़्मेदार शासन-तंत्र को मानती है तथा इस शासन-तंत्र को उखाड़ फेंकना चाहती है। दुष्ट, व्यक्ति-नाशक राष्ट्र के सर्वनाश में अपना योगदान ही इस पीढ़ी का सपना है। यथार्थ के तूफ़ानों से बेपरवाह यह पीढ़ी जानती है कि नष्ट हो जाना, तो यहाँ का नियम है। जो सँवारा गया है, वह बिगड़ेगा ही। हमें दुर्बलता के डर से अपना काम नहीं रोकना चाहिए। कर्म के समय हमारी भुजाएँ दुर्बल नहीं, भगवान की सहस्र भुजाओं की सखियाँ हैं।
नई पीढ़ी का यह विद्रोही स्वर जहाँ राजसत्ता के विद्रोह की मशाल लिए खड़ा है, वहीं पूर्ववर्ती पीढ़ी का बुद्धिजीवी समाज अपनी सुविधा के लिए राजसत्ता के तलवे चाटने को तैयार है। इन दोनों के बीच खड़ी है एक माँ, जो चाहती है, अपना लाल (बेटा) और उसकी खुशहाली। समाज के दो सिरों के बीच खड़ी ममतामयी माँ लाख कोशिशों के बावजूद व्यवस्था की चक्की से अपने बेटे को बचा नहीं पाती। पूरी कथा में व्याप्त तत्कालीन जनमानस तथा माँ की ममता का सजीव चित्रण पाठक को उद्वेलित करता है।
पाठ का सार :
‘उसकी माँ’ नामक यह कहानी ‘लाल’ नामक देशभक्त, उसके कुछ साथियों, उसकी विधवा माँ एवं लेखक से ज़ड़ी कहानी है। दोपहर को थोड़ी देर आराम करने के बाद लेखक अपने पढ़ने-लिखने के कमरे में आ गया। वह किसी महान साहित्यकार की रचना पढ़ना चाहता था। उसके सामने गेटे, रूसो, मेज़िनी, नीत्से, शेक्सपीयर, टॉलस्टाय, ह्यूगो, मोपासाँ आदि की कृतियाँ थीं। इतने महान नामों को देख वह निर्णय नहीं कर पा रहा था कि किसे पढ़े। तभी मोटर का हॉर्न सुनाई दिया। उसने खिड़की से देखा कि सुरमई रंग की ‘फ़िएट’ आई है। इतने में नौकर द्वारा दिए गए कार्ड से पता चला कि पुलिस सुपरिंटेंडेंट आए हैं। लेखक ने उन्हें बैठाया। उन्होंने एक फ़ोटो अपनी ज़ेब से निकालकर लेखक को दिया और उसके बारे में कुछ जानकारी चाही। लेखक ने वह फ़ोटो पहचान ली।
लेखक ने सुपरिंटेंडेंट को बताया कि उसका नाम ‘लाल’ है। वह मेरे बँगले के ठीक सामने दो मंज़िले कच्चे मकान में रहता है। उसकी बूढ़ी माँ भी उसके साथ रहती है। उसका नाम जानकी है। सात-आठ वर्ष पूर्व उसके पिता का देहांत हो चुका है। मरने के पूर्व तक उसके पिता लेखक की ज़मींदारी के मुख्य मैनेजर रहे, जो कुछ रुपये मेरे पास जमा कर गए थे, उससे उनका खर्च चल रहा है। उसका लड़का (लाल) अब कॉलेज में पढ़ रहा है। उसकी माँ को आशा है कि वह साल-दो साल में कमाने लायक हो जाएगा। लेखक ने सुपरिंटेंडेंट से पूछा कि वे इतनी जानकारी क्यों ले रहे हैं, तो उन्होंने सरकार का आज्ञाकारी सेवक होने की बात कहकर पीछा छुड़ाया, पर जाते-जाते लेखक से कह गए कि वह लाल से दूरी बनाकर रखे।
एक दिन लेखक ने लाल की माँ को बुलवाया और लाल की गतिविधियों के बारे में पूछा। उसकी माँ ने कहा कि वह तो लाल को कोई बुरा काम करते नहीं देखती है। तब लेखक ने कहा कि बिना किए ही सरकार किसी के पीछे नहीं पड़ती है। यह सरकार बड़ी धर्मात्मा, विवेकी और न्यायी है। तुम्हारा लाल ज़रूर कुछ करता होगा, तभी वह वहाँ आ गया। उसने लेखक को नमस्कार किया और माँ को घर चलने के लिए कहा, क्योंकि उसके चार दोस्त आए थे। उन्हें जलपान कराना था। जानकी घर जाने को तत्पर हुई, पर लाल को बता गई कि देख तेरे चाचा क्या शिकायत कर रहे हैं। लाल के पूछने पर लेखक ने बताया कि तुम बुरे होते जा रहे हो, जो सरकार के विरुद्ध षड्यंत्रकारियों के साथी बन बैठे हो। यह सोचकर कि यह खबर लेखक को कैसे मिली, उसकी माँ के चेहरे का रंग उड़ गया। लाल ने लेखक को बताया कि उसने कोई षड्यंत्र नहीं किया है। हाँ, देश की दशा देखकर यह पशु-हृय परतंत्रता पर उबल अवश्य जाता है। लाल ने स्वयं को कट्टर राजविद्रोही और लेखक को कट्टर राजभक्त बताते हुए कहा कि आप अपना पद नहीं छोड़ सकते और मैं अपनी प्यारी कल्पनाओं के लिए तथा अपने सपने को साकार करने के लिए्ए अपना सिद्धांत नहीं छोड़ सकता। इतने में जानकी देवी को उसके साथियों का ध्यान आया, जो घर आए थे। वह घर जाने लगी, किंतु जाते-जाते लेखक से कहा कि वह लाल को समझा दे। लाल ने लेखक को अपनी कल्पना के बारे में बताया कि ऐसे दुष्ट, व्यक्ति-नाशक राष्ट् के सर्वनाश में मेरा भी हाथ हो, इसके लिए वह षड्यंत्र, विद्रोह और हत्या करने को भी तैयार है। लेखक समझ नहीं पाया कि कौन-सी किताब पढ़कर उसका दिमाग खराब हो रहा है।
एक दिन लाल की माँ जानकी और लेखक की पत्नी बैठी बातें कर रही थीं कि कहीं से लेखक आ गया। उसने जानकी से लाल के साथियों के बारे में पूछा, तो उसने बताया कि वे सब लाल की तरह ही हैं। सब लापरवाह, हँसने, गाने और हल्ला मचाने वाले हैं। वे सब मुझे ‘माँ’ कहते हैं। वे सब-के-सब मुझमें ‘भारत माँ’ का रूप देखते हैं। वे देशभक्ति की बाते करते रहते हैं।
लेखक ज़मींदारी के काम से चार-पाँच दिन के लिए बाहर गया था। लौटने पर पता चला कि लाल के घर छापा पड़ा था। बारह घंटे तलाशी हुई। उसके बारह-पंद्रह साथियों को गिरफ़्तार कर लिया गया। सबके घरों से भयानक चीज़ें निकली हैं। लाल के घर पर दो पिस्तौल, बहुत-से कारतूस और पत्र मिले हैं। उन पर हत्या, षड्यंत्र, सरकारी राज्य पलटने की चेष्टा आदि अपराध लगाए गए हैं। जब लेखक की पत्नी ने जानकी को बुलवाया, तो उसने आने से मना करते हुए कहा कि वह हवालात में पहुँचे अपने बच्चों के लिए खाना बना रही है, क्योंकि उत्साही बच्चों की दुश्मन यह सरकार उन्हें भूखों मार डालना चाहती है। उसके जीते जी ऐसा नहीं हो सकता।
इसके बाद एक साल तक मुकदमा चला। सी०आई०डी० और उनके सरकारी वकील ने उन पर बड़े-बड़े दोषारोपण किए थे, जिनमें डाके डालने, सरकारी अधिकारियों से शस्त्र एकत्र करने जैसे आरोप प्रमाणित किए गए थे। उधर उन लड़कों को सहारा देने के लिए कोई न था। उन्हें कोई वकील भी नहीं मिल पा रहा था। बस लाल की माँ लोटा, थाली, जेवर आदि बेचकर उनको भोजन पहुँचाती थी। वह वकीलों के घर जाकर फ़रियाद करती थी। वह सूखकर काँटा हो रही थी। उसे अंत तक विश्वास था कि उसके बच्चे निर्दोष हैं। वे अंत में छूटकर आएँगे और ‘माँ’ कहकर पुकारेंगे, परंतु उसकी आशा उस दिन टूट गई, जब ऊँची अदालत ने लाल को और उसके तीन अन्य साथियों को फाँसी तथा दस को सात वर्ष की सज़ा सुनाई। जानकी अदालत के बाहर झुकी खड़ी थी। बेड़ियों में जकड़े बच्चे उसे देखकर मुस्कराए और उन लोगों ने मृत्यु के बाद आज़ादी से मिलने का वायदा किया। बुढ़िया यह सब सुनती रही।
इधर लाल और उसके साथियों के पकड़े जाने के बाद कोई बुढ़िया की ओर देखता भी न था। एक बार लेखक ने मेज़िनी की पुस्तक के पहले पन्ने पर पेंसिल से लाल के हस्ताक्षर देखे, तो वह इरेज़र से उसे मिटाने में जुट गया। उसी समय लेखक की पत्नी के साथ लाल की माँ एक पत्र लिए आई। लेखक ने देखा उस पर जेल की मुहर लगी थी। यह पत्र सज़ा सुनाने के बाद जेल से उसे भेजा गया था। यह उसकी आखिरी चिट्ठी थी। लेखक ने कलेजा रूखा करके पत्र को पढ़ा और लिफ़ाफ़े में भर कर बुढ़िया को दे दिया। वह भावहीन-सी लाठी टेकती घर लौट गई।
उस रात एक बजे तक लेखक को नींद नहीं आई। उसकी आँखों के सामने अपने सुखों की, ज्रमींदारी की, धनिक जीवन की और उस पुलिस अधिकारी की निर्दय, नीरस आँखों की तस्वीर घूम रही थी, तभी उसने महसूस किया कि शायद् लाल की माँ कराह रही है। उन्होंने लाल की माँ का हाल जानने के लिए नौकर को भेजा। नौकर ने आकर बताया कि लाल की माँ के घर पर ताला पड़ा है। वह दरवाज़े पर पाँव पसारे, हाथ में चिट्ठी लिए, मुँह खोले, मरी बैठी है।
शब्दार्थ :
पृष्ठ 93-कृति-रचना (performance, written book)। सुरमई-सुरमे के रंग का, हल्की सफ़ेदी लिए हुए नीला या काला (light blue)। बेवक्त- असमय (untimely)। आगमन-आना (arrival)।
पृष्ठ 94–स्मरण-याद (remembrance)। पुश्त–पीढ़ी (generation)। फ़रमाबरदार -आज्ञाकारी सेवक (obedient servant)। पृष्ठ 95-पाजीपन-दुष्टता, शरारत (mischief)। चेहरे का रंग उड़ना-घबरा जाना (to be perplexed)।
पृष्ठ 96-उबल उठना-क्रोधित होना (to be angry)। दुरवस्था-बुरी हालत (bad condition)। राजभक्त-सरकारी तंत्र के प्रशंसक (loyalist)। राजविद्रोही-सरकारी तंत्र के प्रति विद्रोह करने वाला (rebellious)। हवाई किले उठाना-बड़ी-बड़ी बातें करना (to make castles in the air)।
पृष्ठ 97-वय-उम्र (age)। पंजा लेना-मुकाबला करना (to take challenge)। चर्र-मर्ई हो उठना-टूट-फूट जाना (to break in pieces)। मुग्ध होना-प्रसन्न होना (to be happy)।
पृष्ठ 98-छाती फूल उठना-गर्व होना (to be arrogant)। उजला-स्वच्छ, सफ़ेद (white)।
पृष्ठ 99-उत्तेजित-भड़का हुआ (excited)। हिये-हुदय (heart)। नीति-मर्यक-नीति को नष्ट करने वाला (law against ethics)। मिज्ञाज-स्वभाव (nature)।
पृष्ठ 100–विस्तृत-विस्तारपूर्वक (detailed)। चेष्टा-कोशिश (effort)। नकारना-मना करना (to refuse)। हवालात-जेल (jail)। पृष्ठ 101-बातूनी-बेकार की बातें करने वाला (talkative)। निस्तेज-चमक रहित (faded)। दूध का दूध पानी का पानी करना-सही फैसला करना (right judgment)। कमर टूटना-आशा समाप्त हो जाना (to be hopeless)।
पृष्ठ 102-ब्यालू-रात का भोजन (dinner)।
पृष्ठ 103-ऊजड़-उजड़ा हुआ (destroyed)। सिवान-गाँव की सीमावर्ती भूमि (border of village)। गरदन चापना-मारने के लिए गरदन दबाना (to strangle neck)। बाल अरुण-प्रातःकाल का सूरज (rising sun)। दिवाकर-सूर्य (sun)। विकलता-व्याकुलता (restlessness)।
पृष्ठ 104-स्तब्ध-सुन्न, जड़ (stunned)। हरारत-हल्का ज्वर (feverishness)। धनिक-अमीर, संपन्न (rich)। पेंसिल खचित-पेंसिल से खींचा हुआ (lined with pencil)। आराध्य-आराधना के योग्य, पूज्य (worshipable)। व्यथित-दुखी (sad)। पृष्ठ 105 -क्षितिज-वह स्थान, जहाँ पृथ्वी और आकाश मिलते प्रतीत होते हैं (horizon)। छोर-किनारा (end)।
उसकी माँ सप्रसंग व्याख्या
1. दोपहर को ज़रा आराम करके उठा था। अपने पढ़ने-लिखने के कमरे में खड़ा-खड़ा बड़ी-बड़ी अलमारियों में सजे पुस्तकालय की ओर निहार रहा था। किसी महान लेखक की कोई कृति उनमें से निकालकर देखने की बात सोच रहा था। मगर, पुस्तकालय के एक सिरे से लेकर दूसरे तक मुझे महान-ही-महान नज़र आए। कहीं गेटे, कहीं रूसो, कहीं मेज़िनी, कहीं नीत्रे, कहीं शेक्सपीयर, कहीं टॉलस्टाय, कहीं ह्यूगो, कहीं मोपासाँ, कहीं डिकेंस, स्पेंसर, मैकाले, मिल्टन, मोलियर ….. उफ़! इधर-से-उधर तक एक-से-एक महान ही तो थे! आखिर मैं किसके साथ चंद मिनट मनबहलाव करूँ, यह निश्चय ही न हो सका, महानों के नाम ही पढ़ते-पढ़ते परेशान-सा हो गया।
प्रसंग – प्रस्तुत गद्यांश हमारी पाठ्यपुस्तक अंतरा, भाग-1 में संकलित पाठ ‘उसकी माँ’ से उद्धृत है। इसके लेखक पांडेय बेचन शर्मा ‘उग्र’ हैं। इस कहानी में लेखक ने देश की दुरवस्था से चिंतित युवा पीढ़ी के विद्रोह को नए रूप में प्रस्तुत किया है। इस अंश में लेखक दोपहर बाद अपना समय काटने एवं मनोविनोद करने के लिए अपने कमरे में सजी पुस्तकों में से कोई पुस्तक लेना चाहता है।
व्याख्या – लेखक दोपहर के समय थोड़ा विश्राम करके उठा था। वह अपने लिखने-पढ़ने के कमरे में गया तथा बड़ी-बड़ी अलमारियों में सजे पुस्तकालय को निहारने लगा। वह किसी बड़े लेखक की रचना पढ़ना चाह रहा था। उसके पुस्तकालय में अनेक महान लेखकों की रचनाएँ थीं। उसे पुस्तकालय के एक सिरे से लेकर दूसरे सिरे तक महान-ही-महान नज़र आए। वहाँ गेटे, रूसो, मेज़िनी, नीत्शे, शेक्सपीयर, टॉलस्टाय, मोपासाँ, डिकेंस, स्पेंसर, मैकाले, मिल्टन आदि महान रचनाकार थे। बे सब विदेशी थे। इधर-से-उधर तक एक-से-एक रचनाकार थे। लेखक सोच रहा था कि आखिर किसकी रचना से अपना मनबहलाव करे। वह असमंजस की स्थिति में था। महानों के नाम पढ़ते-पढ़ते वह परेशान हो गया।
विशेष :
- इस गद्यांश में लेखक ने सभी विदेशी रचनाकारों के विषय में बताकर अपनी विदेशी सोच का परिचय दिया है।
- लेखक का पुस्तकों के प्रति लगाव प्रकट हो रहा है।
- भाषा प्रवाहमयी है।
- खड़ी बोली में सहज अभिव्यक्ति हुई है।
2. “यह तो मैं आपको नहीं बता सकता, मगर इतना आप समझ लें, यह सरकारी काम है। इसलिए आज मैंने आपको इतनी तकलीफ़ दी है।
“अजी, इसमें तकलीफ़ की क्या बात है! हम तो सात पुश्त से सरकार के फ़रमाबरदार हैं। और कुछ आज्ञा …..” “एक बात और ……” पुलिस-पति ने गंभीरतापूर्वक धीरे से कहा, “मैं मित्रता से आपसे निवेदन करता हूँ, आप इस परिवार से ज़ा सावधान और दूर रहें। फिलहाल इससे अधिक मुझे कुछ कहना नहीं।”
प्रसंग – प्रस्तुत गद्यांश हमारी पाठ्यपुस्तक अंतरा, भाग-1 में संकलित पाठ ‘उसकी माँ’ से उद्धृत है। इसके लेखक पांडेय बेचन शर्मा ‘उग्र’ हैं। इस कहानी में लेखक ने देश की दुरवस्था से चितित युवा पीढ़ी के विद्रोह को नए रूप में प्रस्तुत किया है। इस गद्यांश में लेखक बताता है कि लाल एवं उसके साथी देशभक्त युवा हैं, जो परतंत्रता हटाने के लिए कुछ भी करने को तैयार हैं। सरकारी नौकर एस॰पी० उनके बारे में जानकारी एकत्र करने के लिए लेखक के पास आया है। इसी मुलाकात का वर्णन यहाँ किया गया है।
व्याख्या – एस०पी० लेखक के घर सरकारी काम से आया था। लेखक के पूछने पर उसने अपनी पूछताछ का कारण नहीं बताया। वह कहता है कि सरकारी आदेश के कारण मुझे आपको तकलीफ़ देनी पड़ी। लेखक चापलूसी करते हुए कहता है कि इसमें तकलीफ़ की कोई बात नहीं है। वे तो सात पीढ़ियों से सरकार के वफ़ादार हैं। इस पर एस०पी० ने उन्हें गंभीरतापूर्वक धीरे से कहा कि मैं आपका मित्र हूँ। इस कारण मैं आपसे निवेदन करता हूँ कि आप लाल के परिवार से दूर रहें तथा सावधानी रखें।
विशेष :
- इस गद्यांश में लेखक की अपनी सरकारी निष्ठा और उसकी एस॰पी॰ से बातचीत का वर्णन है।
- पुलिस की संदेहवृत्ति को बताया गया है।
- संवाद शैली का सुंदर प्रयोग है।
- मिश्रित शब्दावली है, जिसमें उर्दू शब्दों का सहज प्रयोग है।
- साहित्यिक खड़ी बोली में सहज अभिव्यक्ति है।
3. “तुम्हारी ही बात सही, तुम षड्यंत्र में नहीं, विद्रोह में नहीं, पर यह बक-बक क्यों? इससे फ़ायदा? तुम्हारी इस बक-बक से न तो देश की दुर्दशा दूर होगी और न उसकी पराधीनता। तुम्हारा काम पढ़ना है, पढ़ो। इसके बाद कर्म करना होगा, परिवार और देश की मर्यादा बचानी होगी। तुम पहले अपने घर का उद्धार तो कर लो, तब सरकार के सुधार का विचार करना।”
प्रसंग – प्रस्तुत गद्यांश हमारी पाठ्यपुस्तक अंतरा, भाग-1 में संकलित पाठ ‘उसकी माँ’ से उद्धृत है। इसके लेखक पांडेय बेचन शर्मा ‘उग्र’ हैं। इस कहानी में लेखक ने देश की दुरवस्था से चितित युवा पीढ़ी के विद्रोह को नए रूप में प्रस्तुत किया है।
इस गद्यांश से स्पष्ट होता है कि राजभक्त लेखक और राष्ट्भक्त लाल के विचार विपरीत हैं। लाल के विचारों को जानकर लेखक उसे राज के विरुद्ध क्रांतिकारी विचार न रखने की सलाह देता है।
व्याख्या – लेखक लाल से पूछताछ करता है। वह उससे कहता है-तुम्हारी बात को हम सही मानते हैं कि तुम पड्यंत्र या विद्रोह में शामिल नहीं हो। इसके बावजूद जो तुम्हारे क्रांतिकारी विचार हैं, उनसे क्या फ़ायदा होना है। वैचारिक बातों से देश की दुर्दशा दूर नहीं होगी। इससे देश की गुलामी भी खत्म नहीं होगी। सबसे पहले तुम्हें अपने कर्तव्य निभाने हैं। तुम्हारा काम पढ़ना है और पढ़कर काम करना। लेखक लाल पर कटाक्ष करता है कि पहले तुम अपने घर का उद्धार कर लो, तब सरकार के सुधार का विचार करना।
विशेष :
- इस गद्यांश से लेखक के व्यक्तिवादी दृष्टिकोण एवं विदेशी सरकार के प्रति पक्षधरता का परिचय मिलता है।
- लेखक राष्ट्रभक्तों का मनोबल तोड़ने के लिए उनकी कमियों की याद दिलाता है।
- खड़ी बोली में सहज अभिव्यक्ति है।
- भाषा में प्रवाहमयता एवं मिले-जुले शब्दों का प्रयोग है।
4 “इस पराधीनता के विवाद में, चाचा जी, मैं और आप दो भिन्न सिरों पर हैं। आप कट्टर राजभक्त हैं, मैं कट्टर राजविद्रोही। आप पहली बात को उचित समझते हैं-कुछ कारणों से, मैं दूसरी को-दूसरे कारणों से। आप अपना पद छोड़ नहीं सकते-अपनी प्यारी कल्पनाओं के लिए, मैं अपना भी नहीं छोड़ सकता।”
प्रसंग – प्रस्तुत गद्यांश हमारी पाठ्यपुस्तक अंतरा, भाग-1 में संकलित पाठ ‘उसकी माँ’ से उद्धृत है। इसके लेखक पांडेय बेचन शर्मा ‘उग्र’ हैं। इस कहानी में लेखक ने देश की दुरस्था से चिंतित युवा पीढ़ी के विद्रोह को नए रूप में प्रस्तुत किया है। इस गद्यांश में क्रांतिकारी विचार त्यागने हेतु प्रेरित करने के प्रतिक्रिया-स्वरूप लाल लेखक के सामने अपना पक्ष प्रस्तुत कर रहा है।
व्याख्या – लाल कहता है कि गुलामी के बारे में आपकी और मेरी सोच में अंतर है। आप और मैं दो भिन्न सिरों पर हैं। आप कट्रर राजभक्त हैं। आपको वैचारिक बात में राजद्रोह नजजर आता है। मैं कट्टर राजद्रोही हूँ। राजभक्त होने के कारण आप अंग्रेज़ी शासन को ठीक मानते हैं, क्योंकि उससे आपको सुविधाएँ मिलती हैं। मैं राजद्रोही होने के कारण दूसरी बात को ठीक मानता हूँ। आप अपने लाभ, ऐश्वर्य के लिए अपना पद छोड़ नहीं सकते, जबकि मैं देश के विकास के लिए विदेशी शासन को नष्ट करना चाहता हूँ।
विशेष :
- इस गद्यांश में लेखक और लाल के माध्यम से ज़मींदारों और क्रांतिकारियों के वैचारिक मतभेद को दर्शाया गया है।
- तर्कपूर्ण शैली है।
- खड़ी बोली में सहज अभिव्यक्ति है।
- संवाद संक्षिप्त व सारग्राही है।
- मिश्रित शब्दावली है।
5. “लोग ज्ञान न पा सकें, इसलिए इस सरकार ने हमारे पढ़ने-लिखने के साधनों को अज्ञान से भर रखा है। लोग वीर और स्वाधीन न हो सकें, इसलिए अपमानजनक और मनुष्यताहीन नीति-मर्दक कानून गढ़े हैं। गरीबों को चूसकर, सेना के नाम पर पले हुए पशुओं को शराब से, कबाब से, मोटा-ताज़ा रखती है, यह सरकार। धीरे-धीरे जोंक की तरह हमारे धर्म, प्राण और धन चूसती चली जा रही है, यह शासन-प्रणाली!”
प्रसंग – प्रस्तुत गद्यांश हमारी पाठ्यपुस्तक अंतरा, भाग-1 में संकलित पाठ ‘उसकी माँ’ से उद्धृत है। इसके लेखक ‘पांडेय बेचन शर्मा ‘उग्र’ हैं। इस कहानी में लेखक ने देश की दुरवस्था से चिंतित युवा पीढ़ी के विद्रोह को नए रूप में प्रस्तुत किया है। लाल की माँ लेखक को अंग्रेज़ सरकार की अन्यायपूर्ण नीतयों के बारे में बता रही है।
व्याख्या – यहाँ लाल की माँ सरकार के संबंध में उसके साथियों के विचारों को बता रही है। लाल का एक साथी बातें करता है कि अंग्रेज़ी सरकार ने स्कूल-कॉलेज़ों को काबू कर रखा है। उसने ज्ञान पाने के साधनों को अज्ञान से भर रखा है। इसके पीछे सरकार का लक्ष्य लोगों को शिक्षित होने से रोकना है। लोगों में वीरता तथा स्वाधीनता का भाव उदय होने से रोकने के लिए ऐसे कानून बनाए गए हैं, जो मानवता के नाम पर कलंक हैं। सरकार गरीब जनता का शोषण करती है तथा उस धन से सेना को तैयार रखती है। यह शासन-प्रणाली जोंक की तरह धीरे-धीरे देश के धर्म, धन व प्राणों को चूसती जा रही है।
विशेष :
- इस गद्यांश में अंग्रेज़ सरकार के चरित्र का आईना प्रस्तुत किया गया है।
- अंग्रेज़ों की जन-विरोधी नीतियों का उल्लेख है।
- भाषा साहित्यिक खड़ी बोली है, जिसमें तत्सम शब्दों का अधिक प्रयोग है।
- भाषण शैली है।