Students can find the 11th Class Hindi Book Antra Questions and Answers Chapter 14 संध्या के बाद to practice the questions mentioned in the exercise section of the book.
NCERT Solutions for Class 11 Hindi Antra Chapter 14 संध्या के बाद
Class 11 Hindi Chapter 14 Question Answer Antra संध्या के बाद
प्रश्न 1.
संध्या के समय प्रकृति में क्या-क्या परिवर्तन होते हैं? कविता के आधार पर लिखिए।
उत्तर :
संध्या के समय प्रकृति में निम्नलिखित परिवर्तन होते हैं :
- इस समय सूर्य की लालिमा पेड़ों के शिखर पर होती है।
- ताँबे के रंग जैसा पीपल का पत्ता सुनहरे झरने-सा झरता लगता है।
- सूर्य-रूपी खंभा धरती में धँसता प्रतीत होता है।
- क्षितिज पर सूर्य ओझल होने लगता है।
- गंगा-जल चितकबरा-सा लगता है।
प्रश्न 2.
पंत जी ने नदी के तट का जो वर्णन किया है, उसे अपने शब्दों में लिखिए।
उत्तर :
नदी के तट पर शाम के समय मंदिरों में आरती शुरू हो जाती है। शंख तथा घंटे बजने से नदी के जल की लहरों में कंपन-सा होने लगता है। नदी-किनारे बूढ़ी विधवा स्त्रियाँ बगुलों के समान जप-तप में मग्न दिखाई देती हैं। उनके दिल में दुख है और उनका हृदय रोता रहता है। वे श्वेत वस्त्र पहने हुए हैं। मंदिरों के कलश पर सूर्य की स्वर्णिम लालिमा पड़कर उनकी चमक बढ़ा देती है, जिसे देखकर ऐसा लगता है, जैसे मंदिर का कलश दीप-शिखा बनकर स्वयं आरती उतार रहा हो।
प्रश्न 3.
बस्ती के छोटे-से गाँव के अवसाद को किन-किन उपकरणों द्वारा अभिव्यक्त किया गया है?
उत्तर :
बस्ती के छोटे-से गाँव के अवसाद को निम्नलिखित उपकरणों द्वारा अभिव्यक्त किया गया है :
- घरों में टिन की ढिबरी जलाई जाती है, जो धुआँ अधिक तथा रोशनी कम पैदा करती है।
- दीपक की लौ के संग ग्रामीणों के हृदय का कातर क्रंदन, मूक निराशा काँपती रहती है।
- गाँव का छोटा दुकानदार ग्राहकों की प्रतीक्षा में बैठा है। उसकी दुकान सिमटकर छोटी-से और छोटी होती जा रही है। अर्थात उसमें परचून का सामान घटता जा रहा है।
प्रश्न 4.
लाला के मन में उठने वाली दुविधा को अपने शब्दों में लिखिए।
उत्तर :
लाला का कारोबार छोटा है। वह अपनी आर्थिक दशा से दुखी है। वह दिन-रात काम करता है, परंतु इसके बावजूद वह एक अच्छा घर नहीं बना पाता। उसका निर्वाह मुश्किल से होता है। वह शहरी बनियों की तरह अमीर नहीं बन पाता। उसके मन में व्यवस्था-परिवर्तन जैसे प्रश्न भी उठने शुरू हो जाते हैं। वह श्रम और गुण के आधार पर धन का बँटवारा चाहता है, ताकि समाज के गरीब वर्ग को भी मूलभूत सुविधाएँ मिल सकें।
प्रश्न 5.
सामाजिक समानता की छवि की कल्पना किस तरह अभिव्यक्त हुई है?
उत्तर :
कवि ने लाला के विचारों के माध्यम से सामाजिक समानता की छवि की कल्पना को अभिव्यक्त किया है। यह कल्पना इस प्रकार है :
- संपूर्ण आय का समान वितरण होना चाहिए।
- कर्म के आधार पर आय-व्यय का वितरण होना चाहिए।
- सभी लोगों को मिलकर निर्माण-कार्य करना चाहिए।
- लोग शोषण से मुक्त होने चाहिए।
- धन पर समाज का अधिकार होना चाहिए।
- सभी को सुंदर आवास, वस्त्र एवं भोजन मिलना चाहिए।
- जन का श्रम जन में बँट जाना चाहिए।
प्रश्न 6.
‘कर्म और गुण के समान …….. हो वितरण’ पंक्ति के माध्यम से कवि कैसे समाज की ओर संकेत कर रहा है?
उत्तर :
इस पंक्ति में कवि ने समतामूलक समाज की ओर संकेत किया है। कवि ऐसे समाज की कल्पना करता है, जिसमें आय तथा व्यय का समान वितरण हो। व्यक्ति को उसकी योग्यता के अनुसार धन मिले। सभी सामूहिक रूप से समाज का निर्माण करें। वस्तुतः इन पक्तियों में कवि ने अपना समाजवादी दृष्टिकोण व्यक्त किया है।
प्रश्न 7.
निम्नलिखित पंक्तियों का काव्य-सौंदर्य स्पष्ट कीजिए :
तट पर बगुलों-सी वृद्धाएँ
विधवाएँ जप ध्यान में मगन,
मंथर धारा में बहता
जिनका अदृश्य, गति अंतर-रोदन!
उत्तर :
काव्य-सौंदर्य :
भाव-सौंदर्य-इन पंक्तियों में कवि ने तट पर पाए जाने वाले बगुलों से वृद्धाओं की तुलना की है। वे श्वेत वस्त्र धारण किए जप तथा ध्यान में मग्न हैं। वे दुखी हैं। उन्हें देखकर ऐसा लगता है, मानो गंगा की मंदधारा में उनका दुख बह रहा है।
शिल्प-सौंदर्य-
- ‘तट पर बगुलों-सी वृद्धाएँ’ में उपमा अलंकार है।
- ‘ध्यान में मगन’ में अनुप्रास अलंकार है।
- दृश्य-बिंब साकार हो उठा है।
- भाषा तत्सम शब्दों से युक्त खड़ी बोली है।
- काव्यांश छंद्मुक्त रचना है।
प्रश्न 8.
आशय स्पष्ट कीजिए :
(क) ताम्रपर्ण पीपल से, शतमुख/झरते चचल स्वर्णिम निईर!
(ख) दीप शिखा-सा ज्वलित कलश/नभ में उठकर करता नीराजन!
(ग) सोन खगों की पांति/आर्द्र ध्वनि से नीरव नभ करती मुखरित!
(घ) मन से कढ़ अवसाद श्रांति/आँखों के आगे बुनती जाला!
(ङ) क्षीण ज्योति ने चुपके ज्यों/गोपन मन को दे दी हो भाषा!
(च) बिना आय की क्लांति बन रही/उसके जीवन की परिभाषा!
(छ) व्यक्ति नहीं, जग की परिपाटी/दोषी जन के वुख क्लेश की!
उत्तर :
(क) इस पंक्ति के माध्यम से कवि ने संध्याकालीन दृश्य का वर्णन किया है। पीपल के पत्ते सायं के समय ताँबे के रंग के लगते हैं। उनके बीच से निकलती सुनहरी किरणें ऐसी लगती हैं, मानो सैकड़ों मुख वाले झरने सुनहरी धाराओं में बह रहे हों।
(ख) शाम के समय मंदिरों के शिखर पर लगे कलश सूर्य की रोशनी में दीपक के समान जगमगाते हैं। वे ऐसे लगते हैं, मानो दीपक की लौ आकाश में उठकर आरती कर रही हो।
(ग) शाम के समय सोन पक्षियों की पंक्ति उड़ती है। ये अपनी आवाज़ से शांत आकाश को मुखरित कर देते हैं।
(घ) कवि ग्रामीणों के मन के अवसाद को व्यक्त करता है। उनका दुख आँखों में उतर आता है और आँखों के आगे जाला-सा बन जाता है अथात रोशनी भुँधली पड़ जाती है।
(ङ) संध्या के समान ढिबरी का प्रकाश मंद होता है। ऐसा प्रतीत होता है, जैसे यह मन की बात को भाषा दे रहा है। इस धुँधले प्रकाश के माध्यम से मन का दुख भी व्यक्त होता प्रतीत होता है।
(च) गाँव का छोटा दुकानदार अथक प्रयासों के बावजूद अमीर नहीं बन पाता। उसके जीवन में दुख है। यह दुख ही उसके जीवन की परिभाषा बन गयों है।
(छ) इन पंक्तियों में समाज में व्याप्त दुख के कारण को व्यक्त किया गया है। कवि बताता है कि लोगों के दुख का कारण लोग नहीं, बल्कि दोषपूर्ण सामाजिक व्यवस्था है। यहाँ धन के असमान वितरण के कारण लोग दुखी रहते हैं।
योग्यता-विस्तार –
प्रश्न 1.
ग्राम्य जीवन से संबंधित कविताओं का संकलन कीजिए।
उत्तर :
ग्राम्य जीवन से संबंधित कविता :
फैली खेतों में दूर तलक
मखमल की कोमल हरियाली.
लिपटीं जिससे रवि की किरणें
चाँदी की-सी उजली जाली!
तिनकों के हरे-हरे तन पर
हिल हरित रुधिर है रहा झलक,
श्यामल भूतल पर झुका हुआ
नभ का चिर निर्मल नील फलक
रोमांचित-सी लगती वसुधा
आई जौ गेहूँ में बाली,
अरहर सनई की सोने की
किंकिणियाँ हैं शोभाशाली!
उड़ती भीनी तैलाक्त गंध
फूली सरसों पीली-पीली,
लो, हरित धरा से झाँक रही
नीलम की कलि तीसी नीली!
रंग-रंग के फूलों में रिलमिल
हैस रहीं सखियाँ मटर खड़ी,
मखमली पेटियों-सी लटकीं
छीमियाँ छिपाए बीज लड़ी।
फिरती हैं रंग-रंग की तितली
रंग-रंग के फूलों पर सुंदर,
फूले फिरते हैं फूल स्वयं
उड़-उड़ वृंतों से वृंतों पर!
अब रजत स्वर्ण मंजरियों से
लद गई आम्र तरु की डाली,
झर रहे ढाक, पीपल के दल,
हो उठी कोकिला मतवाली!
महके कहहल मुकुलित जामुन
जंगल में झरबेरी झूली,
फूले आडू, नींबू, दाड़िम,
आलू, गोभी, बैंगन, मूली!
पीले मीठे अमरूदों में
अब लाल-लाल चित्तियाँ पड़ीं,
पक गए सुनहले मधुर बेर
अँवली से तरु की डाल जड़ी!
लहलह पालक महमह धनिया
लौकी औ, सेम फलीं फैलीं,
मखमली टमाटर हुए लाल’
मिरचों की बड़ी हरी थैली!
बालू के साँपों से अंकित
गंगा की सतरंगी रेती,
सुंदर लगती सरपत छाई
तट पर खरबूजों की खेती!
अँगुली की कंघी से बगुले
कलँगी सँवारते हैं कोई,
तिरते जल में सुरखाब, पुलिन पर
मगँरौठी रहती सोई!
हैंसमुख हरियाली हिम-आतप
सुख से अलसाए से सोए,
भीगी अँधियाली में निशि की
तारक स्वप्नों में-से खोए।
मरकत डिब्बे-सा खुला ग्राम –
जिस पर नीलम नभ आच्छादन,
निरुपम हिमांत में स्निर्ध शांत
निज शोभा से हरता जन-मन!
– सुमित्रानंदन पंत
– अन्य कविताओं का संकलन विद्यार्थी स्वयं करें।
प्रश्न 2.
पाठ में दी गई कविता में निम्नलिखित उपमान किसके लिए आए हैं, लिखिए :
(क) ज्योति स्तंभ-सा – ……………
(ख) केंचुल-सा – ……………
(ग) दीप शिखा-सा – ……………
(घ) बगुलों-सी – ……………
(ङ) स्वर्ण चूर्ण-सी – ……………
(च) सनन् तीर-सा – ……………
उत्तर :
(क) सूरज के लिए।
(ख) चितकबरा गंगा-जल
(ख) चितकबरा गंगा-जल
(ग) कलश के लिए
(घ) वृद्धाओं के लिए
(ङ) गोरज के लिए
(च) पक्षियों के लिए।
Class 11 Hindi NCERT Book Solutions Antra Chapter 14 संध्या के बाद
कथ्य पर आधारित प्रश्नोत्तर –
प्रश्न 1.
गंगा-जल चितकबरा क्यों लगता है?
उत्तर :
सायंकाल सूर्य क्षितिज पर अस्त होता है। इसके कारण रोशनी धीरे-धीरे कम होती जाती है। सूरज की कम होती रोशनी और आकाश में सफ़ेद बादलों का प्रतिबिंब गंगा-जल में धब्बे जैसा दिखाई देता है, जिससे गंगाजल साँप की केंचुल जैसे रंग का दिखाई देने लगता है। इससे इसका स्वाभाविक रंग नहीं दिखाई देता है, बल्कि वह च्तिकबरा दिखाई देने लगता है।
प्रश्न 2.
खेत, बाग, गृह, तरु, तट, लहरी आदि विषाद में क्यों डूबे हुए हैं?
उत्तर :
कवि ने बताया है कि खेत, बाग, गृह, तरु, तट, लहरी आदि विषाद में इसलिए डूबे हुए हैं, क्योंकि शाम के समय सूर्य डूब जाता है और रोशनी समाप्त हो जाती है। रोशनी से ही उत्साह का संचार होता है। धीरे-धीरे सब रात के अंधकार में खो जाते हैं, जिन्हें देखकर ऐसा लगता है, मानो सभी विषाद में डूब गए हों।
प्रश्न 3.
लाला के मन में क्या विचार चल रहा था?
उत्तर :
लाला के मन में यह विचार चल रहा था कि वह दिनभर झूठ बोलकर कौड़ी-कौड़ी के लिए मरता है। इससे ही उसके परिवार का मुश्किल से गुज़ारा होता है। इसके बावजूद उसका घर भी कच्चा है। उसके परिवार वाले मैले-कुचैले रहते हैं। सर्दी में वह अब भी ठिठुर रहा है। दोषपूर्ण सामाजिक व्यवस्था में धन का उचित बँटवारा न होना ही इसका कारण है। धन का बँटवारा लोगों के कर्म और गुण के आधार पर होना चाहिए।
प्रश्न 4.
‘संध्या के बाद’ कविता में संध्या के समय सौ मुखों वाला किसे कहा गया है और क्यों?
उत्तर :
संध्या के समय पीपल के पत्तों का रंग ताँबे के रंग जैसा हो गया था। उसके सैकड़ों पत्तों से सरसराहट की आवाज़ इस प्रकार आती थी, मानो पीपल के वृक्ष के सौ मुख हों। इन पत्तों की तुलना सुनहरे झरनों से की गई है, जो अनेक धाराओं में बहते हैं।
प्रश्न 5.
वृद्धाओं को कवि ने बगुलों-सा क्यों कहा है?
उत्तर :
कवि ने वृद्धाओं की तुलना बगुलों से की है। वृद्धाएँ बगुलों के समान श्वेत वस्त्र धारण करती हैं। जिस प्रकार बगुले एक टाँग पर खड़े होकर शांत भाव से मछली की बाट देखते हैं, उसी प्रकार वृद्धाएँ भक्ति करती हैं, परंतु उनका मन दुखी है। उनका यह दुख गंगा की मंद धारा में धीरे-धीरे बहता रहता है।
प्रश्न 6.
सोन पक्षियों की पंक्ति कवि को कैसी लगती है?
उत्तर :
शाम के समय आकाश में सोन पक्षियों की पंक्ति अपनी आर्द्र ध्वनि से आकाश को गुंजित करती हुई जाती है। यह अपने चमकीले पंखों से आकाश को चित्रित-सी करती जाती है। उसकी आवाज़ से लगता है, जैसे आकाश मुखरित हो उठा है।
प्रश्न 7.
‘पीला जल रजत जलय से बिबित’ से कवि का क्या आशय है?
उत्तर :
शाम के समय आकाश में सूर्य की रोशनी मंद हो जाती है। यह रोशनी गंगा के जल को पीलापन प्रदान करती है। आकाश में चाँदी की तरह चमकते सफ़ेद बादल छाए हुए हैं। उनका प्रतिबिंब पीले जल में अधिक सुंदर दिखाई पड़ता है।
प्रश्न 8.
सिकता, सलिल, समीर किसके स्नेह-सूत्र में बँधे हुए हैं?
उत्तर :
सिकता, सलिल, समीर-सभी प्रकृति के स्नेह-सूत्र में बँधे हुए हैं। प्रकृति ने विभिन्न उपादानों को स्वयं सँवारा है।
प्रश्न 9.
निम्नलिखित पंक्तियों का आशय स्पष्ट कीजिए-
(क) धुआँ अधिक देती है आगे बुनती जाला!
(ख) कँप-कँप उठते दे दी हो भाषा!
(ग) घुसे घरौंदों सबमें सामूहिक जीवन?
उत्तर :
(क) इन पंक्तियों में कवि ने बस्ती के लोगों की दयनीय दशा का वर्णन किया है। शाम के समय मज़दूर वर्ग टिन की ढिबरी जलाते हैं, जो धुआँ अधिक देती है, परंतु रोशनी कम करती है। ऐसा लगता है, जैसे यह क्षीण रोशनी मज़दूर वर्ग के मन में छाए हुए दुखों की कथा को आँखों के आगे जाले-सी बुनती है।
(ख) इन पंक्तियों में कवि ने बस्ती का वर्णन किया है। कवि कहता है कि बत्ती और ढिबरी की काँपती रोशनी के साथ मानव-हुदय का कातर रुदन सुनाई पड़ता है। मन में निराशा छाई हुई है। क्षीण ज्योति ने मन को मानो मूक भाषा दे दी है।
(ग) इन पंक्तियों में कवि ने अपने समाजवादी दृष्टिकोण की अभिव्यक्ति की है। कवि कहता है कि लोग मिट्टी के घरों में घुसकर अपनी-अपनी सोच रहे हैं। चितन कर रहे हैं कि ऐसा कुछ नहीं हो सकता कि जो सब व्यक्तियों में जीने की भावना जगा दे। सभी सामूहिक रूप से काम करें। धन का समान बँटवारा हो, ताकि सभी की मूलभूत आवश्यकताएँ पूरी हो जाएँ।
प्रश्न 10.
शाम होते ही कौन-कौन घर की ओर लौट पड़ते हैं?
उत्तर :
शाम होते ही निम्नलिखित प्राणी घर की ओर लौट पड़ते हैं :
शाम होते ही पक्षी चमकते पंखों से तेज़ आवाज़ करते हुए घर की ओर लौटते हैं, मानो तीर हों।
गायें घरों की ओर लौटती हैं, जिससे पथ पर स्वर्णिम धूल उड़ने लगती है।
सारा दिन परिश्रम करने के बाद थके-हारे किसान घर की ओर लौटते हैं।
गाँव के बाज़ारों में अपना सामान बेचकर व्यापारी घर की ओर लौटते हैं।
प्रश्न 11.
संध्या के दृश्य में किस-किसने अपने स्वर भर दिए?
उत्तर :
संध्या के समय नदी-तट पर स्थिति मंदिरों में शंख व घंटे बजने शुरू हो जाते हैं। पक्षियों की चहचहाहट के स्वर तीर के समान आकाश में गूँज जाते हैं। ऐसा लगता है, जैसे आकाश मुखरित हो उठा है। इस प्रकार संध्या के दृश्य में शंख, मंदिर के घंटे तथा पक्षियों ने अपने स्वर भर दिए हैं।