Understanding the question and answering patterns through NCERT Class 11 Geography Question Answer in Hindi Chapter 7 प्राकृतिक संकट तथा आपदाएँ will prepare you exam-ready.
Class 11 Geography Chapter 7 in Hindi Question Answer प्राकृतिक संकट तथा आपदाएँ
अन्य महत्त्वपूर्ण प्रश्न
बहुविकल्पीय प्रश्न
1. भूकंप किस तरह की प्राकृतिक आपदा है?
(अ) जलीय
(ब) भौमिक
(स) वायुमंडलीय
(द) जैविक
उत्तर:
(ब) भौमिक
2. बाढ़ किस प्रकार की प्राकृतिक आपदा है?
(अ) जैविक
(ब) भौमिक
(स) जलीय
(द) वायुमंडलीय
उत्तर:
(स) जलीय
3. वायुमंडलीय प्राकृतिक आपदा का उदाहरण है-
(अ) सूखा
(ब) टॉरनेडो
(स) तड़ित
(द) उपरोक्त सभी
उत्तर:
(द) उपरोक्त सभी
4. बर्ड फ्लू किस प्रकार की प्राकृतिक आपदा है?
(अं) जैविक
(ब) जलीय
(स) भौमिक
(द) वायुमंडलीय
उत्तर:
(अं) जैविक
5. मई 1994 में ‘प्राकृतिक आपदा-यूनीकरण’ पर विश्व कांफ्रेंस कहाँ आयोजित हुई?
(अ) दिल्ली
(ब) यॉकोहामा
(स) ब्राजील
(द) रोम
उत्तर:
(ब) यॉकोहामा
6. अत्यधिक सूखा प्रभावित क्षेत्र है-
(अ) गुजरात का कच्छ
(ब) राजस्थान में बाड़मेर
(स) राजस्थान में जैसलमेर
(द) उपरोक्त सभी
उत्तर:
(द) उपरोक्त सभी
7. निम्न में कौनसी पेयजल सम्बन्धी बीमारी है-
(अ) आंत्रशोथ
(ब) हैजा
(स) हेपेटाइटिस
(द) उपरोक्त सभी
उत्तर:
(द) उपरोक्त सभी
8. आपदा प्रबन्ध अधिनियम किस वर्ष में लागू हुआ?
(अ) 2001
(ब) 2005
(स) 2009
(द) 2016
उत्तर:
(ब) 2005
9. मृदा अपरदन किस प्रकार की आपदा है?
(अ) भौमिक
(ब) जलीय
(स) जैविक
(द) वायुमंडलीय
उत्तर:
(अ) भौमिक
10. भारत में सबसे अधिक बाढ़ प्रभावित राज्य हैं-
(अ) पंजाब – उत्तर प्रदेश – बिहार
(ब) असम- पश्चिमी बंगाल – बिहार
(स) असम-उड़ीसा – मेघालय
(द) बिहार-झारखण्ड – मध्य प्रदेश
उत्तर:
(ब) असम- पश्चिमी बंगाल – बिहार
11. भारत में निम्न में से जिस क्षेत्र में भूकम्प अधिक आते हैं, वह क्षेत्र है-
(अ) अरावली
(ब) हिमालय
(स) मध्य भारत
(द) तटीय भारत
उत्तर:
(ब) हिमालय
12. सबसे अधिक अपूर्व सूचनीय और विध्वंसक प्राकृतिक आपदा है
(अ) भूकम्प
(ब) भूस्खलन
(स) सूखा
(द) बाढ़
उत्तर:
(अ) भूकम्प
13. भारत में अति अधिक क्षति जोखिम का हिस्सा है-
(अ) पश्चिमी हिमालय प्रदेश
(ब) हरियाणा का पूर्वी भाग
(स) उत्तरी पंजाब
(द) उत्तरी बिहार
उत्तर:
(अ) पश्चिमी हिमालय प्रदेश
14. भूकम्प और ज्वालामुखी से महासागरीय धरातल और महासागरीय जल में अचानक विस्थापन के फलस्वरूप उत्पन्न होती है—
(अ) दरारें
(ब) भूस्खलन
(स) सुनामी
(द) जलतरंगें
उत्तर:
(स) सुनामी
15. उष्ण कटिबंधीय चक्रवात पाए जाते हैं-
(अ) 30° उत्तर तथा 30° दक्षिण अक्षांशों के बीच
(ब) 60° उत्तर तथा 60° दक्षिण अक्षांशों के बीच
(स) 10° उत्तर तथा 10° दक्षिण अक्षांशों के बीच
(द) 20° उत्तर तथा 20° दक्षिण अक्षांशों के बीच
उत्तर:
(अ) 30° उत्तर तथा 30° दक्षिण अक्षांशों के बीच
रिक्त स्थान वाले प्रश्न
नीचे दिए गए प्रश्नों में रिक्त स्थानों की पूर्ति कीजिए-
1. भूकम्प एवं ज्वालामुखी _____ प्राकृतिक आपदाओं में शामिल है। (वायुमंडलीय /भौमिक)
2. तड़ित एवं टॉरनेडो _____ प्रकार की प्राकृतिक आपदाएँ हैं। (वायुमंडलीय /भौमिक )
3. असम, पश्चिमी बंगाल एवं बिहार सबसे अधिक_____ प्रभावी क्षेत्र हैं। (भूकम्प / बाढ़)
4. _____ सबसे अधिक अपूर्व सूचनीय एवं विध्वंसक प्राकृतिक आपदा हैं। (सूखा / भूकम्प )
5. आपदा प्रबन्ध अधिनियम वर्ष _____ में लागू किया गया। (2002/2005)
उत्तर:
1. भूकम्प एवं ज्वालामुखी भौमिक प्राकृतिक आपदाओं में शामिल है।
2. तड़ित एवं टॉरनेडो वायुमंडलीय प्रकार की प्राकृतिक आपदाएँ हैं।
3. असम, पश्चिमी बंगाल एवं बिहार सबसे अधिक बाढ़ प्रभावी क्षेत्र हैं।
4. भूकम्प सबसे अधिक अपूर्व सूचनीय एवं विध्वंसक प्राकृतिक आपदा हैं।
5. आपदा प्रबन्ध अधिनियम वर्ष 2005 में लागू किया गया।
सत्य / असत्य वाले प्रश्न-
नीचे दिए गए कथनों में से सत्य / असत्य कथन छाँटिए
1. मृदा अपरदन भौमिक प्रकार की प्राकृतिक आपदा है
2. आंत्रशोथ, हैजा, हेपेटाइटिस आदि वायु प्रदूषण से होने वाली बीमारियाँ हैं।
3. महोर्मि एक जलीय प्रकार की आपदा है।
4. उष्ण कटिबंधीय चक्रवात कम दबाव वाले उग्र मौसम तंत्र हैं और 30° उत्तर तथा 30°दक्षिण अक्षांशों के बीच पाए जाते हैं।
5. तमिलनाडु राज्य में सर्दी के महिनों में बाढ़ आती है।
उत्तर:
1. मृदा अपरदन भौमिक प्रकार की प्राकृतिक आपदा है (सत्य)
2. आंत्रशोथ, हैजा, हेपेटाइटिस आदि वायु प्रदूषण से होने वाली बीमारियाँ हैं। (असत्य)
3. महोर्मि एक जलीय प्रकार की आपदा है। (सत्य)
4. उष्ण कटिबंधीय चक्रवात कम दबाव वाले उग्र मौसम तंत्र हैं और 30° उत्तर तथा 30°दक्षिण अक्षांशों के बीच पाए जाते हैं। (सत्य)
5. तमिलनाडु राज्य में सर्दी के महिनों में बाढ़ आती है। (सत्य)
मिलान करने वाले प्रश्न
निम्न को सुमेलित कीजिए
1. तड़ितझंझा | (अ) भौमिक आपदा |
2. अवतलन | (ब) जलीय आपदा |
3. सुनामी | (स) जलीय रोग |
4. बर्डफ्लू | (द) वायुमंडलीय आपदा |
5. हैजा | (य) जैविक आपदा |
उत्तर:
1. तड़ितझंझा | (द) वायुमंडलीय आपदा |
2. अवतलन | (अ) भौमिक आपदा |
3. सुनामी | (ब) जलीय आपदा |
4. बर्डफ्लू | (य) जैविक आपदा |
5. हैजा | (स) जलीय रोग |
अतिलघूत्तरात्मक प्रश्न
प्रश्न 1.
आपदा क्या है?
उत्तर:
आपदा प्रायः एक अनपेक्षित घटना होती है जो कि ऐसी ताकतों के द्वारा घटित होती है जो कि मानव के नियंत्रण में नहीं हैं तथा इससे बड़े पैमाने पर जान-माल का नुकसान होता है।
प्रश्न 2.
मानवीय क्रियाकलापों से सम्बन्धित दो आपदाओं के नाम लिखिए।
उत्तर:
- भोपाल गैस त्रासदी
- चेरनोबिल नाभिकीय आपदा।
प्रश्न 3.
मानव की परोक्ष गतिविधियों को बताइये जो कि आपदाओं को बढ़ावा देती हैं।
उत्तर:
वनों को काटने की वजह से भूस्खलन और बाढ़, भंगुर जमीन पर निर्माण कार्य आदि गतिविधियों से आपदाओं को बढ़ावा मिलता है।
प्रश्न 4.
वर्तमान समय में आपदाओं की सुभेद्यता में वृद्धि क्यों हो गई है?
उत्तर:
मानव के अपने तकनीकी विकास के बल पर आपदा के खतरे वाले क्षेत्रों में पर्यावरण से अधिक छेड़छाड़ करने से आपदाओं की सुभेद्यता में वृद्धि हो गई है।
प्रश्न 5.
सन् 1994 में जापान के याकोहामा नगर में आपदा प्रबन्धन विश्व कांफ्रेंस को क्या नाम दिया गया?
उत्तर:
याकोहामा रणनीति तथा अधिक सुरक्षित संसार के लिए कार्य योजना।
प्रश्न 6.
प्रमुख जलीय आपदाओं के नाम बताइये।
उत्तर:
बाढ़, ज्वार-भाटा, महासागरीय तूफान, महोर्मि तथा सुनामी प्रमुख जलीय आपदाएँ हैं।
प्रश्न 7.
प्रमुख भौमिकी आपदाओं के नाम बताइये।
उत्तर:
भूकम्प, ज्वालामुखी, भूस्खलन, हिमघात, अवतलन तथा मृदा अपरदन प्रमुख भौमिकीय आपदाएँ हैं।
प्रश्न 8.
भारत में प्रतिवर्ष किस प्राकृतिक आपदा के द्वारा सबसे अधिक हानि होती है?
उत्तर:
भारत में प्रतिवर्ष बाढ़ों के द्वारा सबसे अधिक हानि होती है।
प्रश्न 9.
हिमालय क्षेत्र में भूकम्प आने का प्रमुख कारण क्या है?
उत्तर:
इण्डियन प्लेट का उत्तर व उत्तर पूर्व में खिसककर यूरेशियन प्लेट से टकराना हिमालय क्षेत्र में भूकम्प आने का प्रमुख कारण है।
प्रश्न 10.
भारत में अत्यधिक सूखा प्रभावित क्षेत्रों के नाम बताइये।
उत्तर:
भारत में पश्चिमी राजस्थान का मरुस्थलीय भाग तथा गुजरात का कच्छ क्षेत्र अत्यधिक सूखा प्रभावित क्षेत्र हैं।
प्रश्न 11.
राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन संस्थान ने भारत को भूकम्प के आधार पर कौनसे 5 भूकम्पीय क्षेत्रों में विभाजित किया है?
उत्तर:
- अति अधिक क्षति जोखिम क्षेत्र,
- अधिक क्षति जोखिम क्षेत्र,
- मध्यम क्षति जोखिम क्षेत्र,
- निम्न क्षति जोखिम क्षेत्र,
- अति निम्न क्षति जोखिम क्षेत्र।
प्रश्न 12.
भारत में भूकम्प के अति अधिक क्षति जोखिम के क्षेत्र बताइये।
उत्तर:
पूर्वी राज्य, दरभंगा से उत्तर में स्थित क्षेत्र तथा अरेरिया, उत्तराखण्ड, पश्चिमी हिमाचल प्रदेश, कश्मीर घाटी तथा कच्छ आदि।
प्रश्न 13.
समुद्र में सुनामी का जलपोत पर विशेष प्रभाव क्यों नहीं पड़ता है? बताइये।
उत्तर:
तटीय क्षेत्रों में सुनामी तरंगें अधिक प्रभावी होती हैं और व्यापक नुकसान पहुँचाती हैं। इसी कारण समुद्र में जलपोत पर सुनामी का कोई विशेष प्रभाव नहीं पड़ता है।
प्रश्न 14.
सुनामी से क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
महासागरीय तली में भूकम्प या ज्वालामुखी फटने से महासागरीय जल में उर्ध्वाधर ऊँची तरंगें उत्पन्न होने को सुनामी या भूकम्पीय लहर कहा जाता है।
प्रश्न 15.
उष्ण कटिबंधीय चक्रवातों को ऊर्जा कहाँ से प्राप्त होती है?
उत्तर:
समुद्र की सतह से प्राप्त जल वाष्प की संघनन प्रक्रिया में छोड़ी गई गुप्त ऊष्मा से उष्ण कटिबंधीय चक्रवातों को ऊर्जा की प्राप्ति होती है।
प्रश्न 16.
भूस्खलन से क्या आशय है?
उत्तर:
किसी ढालू भू-भाग पर मिट्टी तथा चट्टानों के ऊपर से नीचे की तरफ खिसकने लुढ़कने या गिरने की प्रक्रिया को भूस्खलन कहा जाता है।
प्रश्न 17.
भूस्खलन के धरातल पर क्या प्रभाव होते हैं?
उत्तर:
आवागमन मार्गों का टूटना, नदियों के मार्ग में अवरोध आना तथा नंदी मार्गों का बदलना भूस्खलन के प्रमुख परिणाम होते हैं।
प्रश्न 18.
उष्ण कटिबंधीय चक्रवात क्या हैं? ये किन अक्षांशों के मध्य पाए जाते हैं?
उत्तर:
उष्ण कटिबंधीय चक्रवात कम दबाव वाले उग्र मौसम तंत्र हैं और 30° उत्तर तथा 30° दक्षिण अक्षांशों के बीच पाए जाते हैं।
प्रश्न 19.
‘तूफान की आँख’ से क्या अभिप्राय है? बताइये।
उत्तर:
चक्रवात का केन्द्र गर्म वायु तथा निम्न वायुदाब और मेघरहित क्रोड होता है। इसे ‘तूफान की आँख ‘ के नाम से जाना जाता है।
प्रश्न 20.
बाढ़ से क्या अभिप्राय है? बताइये।
जब नदी जल वाहिकाओं में इनकी क्षमता से अधिक जल बहाव होता है और जल मैदान के निचले हिस्सों में भर जाता है, इसे बाढ़ कहते हैं।
प्रश्न 21.
सूखा से क्या आशय है?
उत्तर:
जब लम्बे समय तक कम वर्षा, अत्यधिक वाष्पीकरण और जलाशयों तथा भूमिगत जल के अत्यधिक उपयोग से भूतल पर जल की कमी हो जाती है, उसे सूखा कहा जाता है।
लघूत्तरात्मक प्रश्न
प्रश्न 1.
आपदाओं के असर को कम करने तथा इनका प्रबन्ध करने के लिए उठाएं जाने वाले कदमों को बताइये।
उत्तर:
भारत में आपदा प्रबंधन अधिनियम 2005, भारतीय राष्ट्रीय आपदा प्रबन्धन संस्थान की स्थापना, सन् 1993 में रियो डि जेनेरो, ब्राजील में भू शिखर सम्मेलन, मई 1994 में याकोहामा, जापान में आपदा प्रबन्धन पर विश्व संगोष्ठी आदि विभिन्न स्तरों पर आपदाओं के असर को कम करने तथा इनका प्रबन्ध करने के लिए उठाए जाने वाले ठोस कदम हैं।
प्रश्न 2.
प्राकृतिक संकट से क्या आशय है? इसकी प्राकृतिक आपदाओं से तुलना कीजिये।
उत्तर:
प्राकृतिक पर्यावरण में हालात के वे तत्व जिनसे धन-जन या दोनों को नुकसान पहुँचने की सम्भावना होती है, प्राकृतिक संकट कहलाते हैं। ये बहुत तीव्र या पर्यावरण विशेष के स्थायी पक्ष भी हो सकते हैं यथा महासागरीय धाराएँ, हिमालय में तीव्र ढाल तथा अस्थिर संरचनात्मक आकृतियाँ आदि।
तुलना:
प्राकृतिक संकट की तुलना में प्राकृतिक आपदाएँ अपेक्षाकृत तीव्र गति से घटित होती हैं तथा विस्तृत पैमाने पर जन-धन की हानि तथा सामाजिक तंत्र एवं जीवन को छिन्न-भिन्न कर देती हैं तथा उन पर लोगों का बहुत कम या कुछ भी नियन्त्रण नहीं होता है।
प्रश्न 3.
भारत में भूकम्प से प्रभावित प्रमुख राज्यों के नाम बताइये।
उत्तर:
भारत में भूकम्प से प्रभावित प्रमुख राज्यों में जम्मू-कश्मीर, हिमाचल प्रदेश, उत्तराखण्ड, पश्चिमी बंगाल का दार्जिलिंग उपमण्डल, गुजरात का कच्छ क्षेत्र तथा उत्तरपूर्वी भारत के सात राज्य तथा असम, सिक्किम, नागालैण्ड, अरुणाचल प्रदेश, मेघालय, मणिपुर तथा त्रिपुरा आदि हैं।
प्रश्न 4.
बाढ़ की उत्पत्ति और क्षेत्रीय फैलाव में मानव की भूमिका बताइये।
उत्तर:
बाढ़ की उत्पत्ति और क्षेत्रीय फैलाव में मानव महत्वपूर्ण भूमिका अदा करता है। मानवीय क्रियाकलापों, अंधाधुंध वन कटाव, अवैज्ञानिक कृषि पद्धतियाँ, प्राकृतिक अपवाह तंत्रों का अवरुद्ध होना तथा बाढ़कृत मैदानों पर मानव बसाव के कारण बाढ़ की तीव्रता, परिमाण और विध्वंसता बढ़ जाती है।
प्रश्न 5.
भारत में बाढ़ प्रभावित क्षेत्र व बाढ़ नियंत्रण के उपाय बताइये।
उत्तर:
बाढ़ प्रभावित क्षेत्र : असम, पश्चिमी बंगाल और बिहार राज्य भारत में सबसे अधिक बाढ़ प्रभावित क्षेत्रों में से हैं। इसके अलावा उत्तर भारत की अधिकतर नदियाँ पंजाब और उत्तर प्रदेश में बाढ़ लाती हैं। राजस्थान, गुजरात, हरियाणा तथा पंजाब आकस्मिक बाढ़ से प्रभावित क्षेत्र हैं।
बाढ़ नियन्त्रण के उपाय:
बाढ़ प्रभावित क्षेत्रों में तटबंध बनाना, नदियों पर बाँध बनाना, वनीकरण और बाढ़ लाने वाली नदियों के ऊपरी जल ग्रहण क्षेत्र में निर्माण कार्य पर प्रतिबंध लगाना, नदी वाहिकाओं पर बसे लोगों को अन्यत्र सुरक्षित स्थानों पर बसाना आदि बाढ़ नियंत्रण के प्रमुख उपाय हैं।
प्रश्न 6.
पारिस्थितिक सूखा किसे कहते हैं? भारत में अत्यधिक सूखा प्रभावित क्षेत्र बताइये।
उत्तर:
जब प्राकृतिक पारिस्थितिक तंत्र में जल की कमी से उत्पादकता में कमी हो जाती है और परिणामस्वरूप पारिस्थितिक तंत्र में तनाव आ जाता है तथा यह क्षतिग्रस्त हो जाता है तो इसे पारिस्थितिक सूखा के नाम से जाना जाता है।
अत्यधिक सूखा प्रभावित क्षेत्र:
भारत में राजस्थान के अधिकतर भाग विशेष रूप से अरावली के पश्चिम में स्थित मरुस्थली और गुजरात का कच्छ क्षेत्र अत्यधिक सूखा प्रभावित क्षेत्र है। इसमें राजस्थान के जैसलमेर तथा बाड़मेर जिले भी शामिल हैं।
प्रश्न 7.
भारत में अधिक व मध्यम सूखा प्रभावित क्षेत्र बताइये।
उत्तर:
- अधिक सूखा प्रभावित क्षेत्र:
भारत में राजस्थान के पूर्वी भाग, मध्य प्रदेश के अधिकांश भाग महाराष्ट्र के पूर्वी भाग, आंध्र प्रदेश के आन्तरिक भाग, कर्नाटक का पठार, तमिलनाडु के उत्तरी भाग; झारखण्ड का दक्षिणी भाग तथा उड़ीसा का आन्तरिक भाग अधिक सूखा प्रभावित क्षेत्र हैं। - मध्यम सूखा प्रभावित क्षेत्र:
भारत में राजस्थान के उत्तरी भाग, हरियाणा, उत्तर प्रदेश के दक्षिणी जिले, कोंकण को छोड़कर महाराष्ट्र, झारखण्ड, तमिलनाडु में कोयम्बटूर पठार और आन्तरिक कर्नाटक मध्यम सूखा प्रभावित क्षेत्र हैं।
प्रश्न 8.
त्रिकाल किसे कहते हैं? बताइये
उत्तर:
जब फसलें नष्ट होने से अन्न की कमी हो जाती है तो उसे अकाल कहा जाता है, चारा कम होने की स्थिति को तृण अकाल कहा जाता है, जल आपूर्ति की कमी जल अकाल कहलाती है। तीनों परिस्थितियों के मिलने के फलस्वरूप उत्पन्न स्थिति को त्रिकाल कहते हैं।
प्रश्न 9.
आपदा से पहले व आपदा के समय आपदा निवारण और प्रबन्धन के लिए क्या उपाय किए जाने चाहिए?
उत्तर:
- आपदा से पहले आपदा निवारण व प्रबन्धन के उपाय:
आपदा के सम्बन्ध में आँकड़े और सूचना एकत्रित करना, आपदा सम्भावी क्षेत्रों का मानचित्र तैयार करना और लोगों को इसके बारे में जानकारी देना। इसके अलावा सम्भावी क्षेत्रों में आपदा योजना बनाना, तैयारियाँ रखना और बचाव के उपाय करना। - आपदा के समय आपदा निवारण व प्रबन्धन के उपाय:
आपदा के समय युद्ध स्तर पर बचाव व राहत कार्य; यथा आपदाग्रस्त क्षेत्रों से लोगों को निकालना, आश्रय स्थल निर्माण, राहत कैम्प, जल, भोजन व दवाई आपूर्ति आदि उपाय किए जाने चाहिए।
प्रश्न 10.
तूफान महोर्मि से क्या अभिप्राय है? तूफान महोर्मि के प्रभाव बतलाइये।
उत्तर:
तूफान महोर्मि का अर्थ:
तटीय क्षेत्रों में प्रायः उष्ण कटिबंधीय चक्रवात 180 किलोमीटर प्रति घण्टा की गति से टकराते हैं। इससे तूफानी क्षेत्र में समुद्र तल भी असाधारण रूप से उपर उठ जाता है, महोर्मि के नाम से जाना जाता है।
प्रभाव:
तूफान महोर्मि में अत्यधिक वायुदाब प्रवणता और अत्यधिक तीव्र सतही पवनें उफान को उठाने वाले बल हैं। इससे समुद्री जल तटीय क्षेत्र में घुस जाता है जिसके फलस्वरूप बस्तियाँ तथा खेत पानी में डूब जाते हैं तथा फसलों एवं अनेक प्रकार के मानवकृत ढाँचों का विनाश होता है।
प्रश्न 11.
स्पष्ट कीजिए परिवर्तन प्रकृति का नियम है।
उत्तर:
परिवर्तन प्रकृति का नियम है। यह एक लगातार चलने वाली प्रक्रिया है जो कि विभिन्न तत्वों चाहे वह बड़ा हो या छोटा, पदार्थ हो या अपदार्थ, लगातार चलती रहती है तथा मानव के प्राकृतिक और सामाजिक- सांस्कृतिक पर्यावरण को प्रभावित करती है। यह प्रक्रिया प्रत्येक जगह व्याप्त है लेकिन इसके परिमाण, सघनता और पैमाने में अन्तर होता है। ये परिवर्तन धीमी गति से भी आ सकते हैं, यथा स्थलाकृतियों और जीवों में होने वाले परिवर्तन। ये परिवर्तन तीव्र गति से भी आ सकते हैं; यथा ज्वालामुखी विस्फोट, सुनामी, भूकम्प और तूफान आदि। इसी प्रकार इनका प्रभाव छोटे क्षेत्र तक सीमित हो सकता है; यथा आँधी, करकापात तथा टॉरनेडो तथा इतना व्यापक हो सकता है; यथा— भूमण्डलीय तापन तथा ओजोन परत का ह्रास आदि।
प्रश्न 12.
आपदाओं की उत्पत्ति किस प्रकार होती है? बताइये
उत्तर:
लम्बे समय तक भौगोलिक साहित्य में आपदाओं को प्राकृतिक बलों का परिणाम माना जाता रहा है लेकिन प्राकृतिक बल ही आपदाओं के एकमात्र कारक नहीं हैं। कुछ मानवीय गतिविधियाँ सीधे रूप से आपदाओं की उत्पत्ति के लिए उत्तरदायी हैं; यथा— भोपाल गैस त्रासदी, चेरनोबिल नाभिकीय आपदा, युद्ध, क्लोरोफ्लोरो कार्बन गैसों को वायुमण्डल में छोड़ना, ग्रीन हाउस गैसें, ध्वनि, वायु, जल तथा मिट्टी सम्बन्धी पर्यावरण प्रदूषण आदि आपदाएँ इसके उदाहरण हैं। कुछ मानवीय गतिविधियाँ परोक्ष रूप से भी आपदाओं को बढ़ावा देती हैं। वनों को काटने के कारण से होने वाला भूस्खलन और बाढ़, भंगुर जमीन पर निर्माण कार्य और अवैज्ञानिक भूमि उपयोग आदि जिनके कारण आपदा परोक्ष रूप से प्रभावित होती है।
प्रश्न 13.
प्राकृतिक संकट तथा प्राकृतिक आपदा में अन्तर कीजिए।
उत्तर:
- प्राकृतिक संकट :
प्राकृतिक पर्यावरण में हालात के वे तत्व जिनसे जन-धन या दोनों को नुकसान पहुँचने की सम्भाव्यता होती है, प्राकृतिक संकट कहलाते हैं। प्राकृतिक संकट बहुत तीव्र या पर्यावरण विशेष के स्थायी पक्ष भी हो सकते हैं; यथा – महासागरीय धाराएँ, हिमालय में तीव्र ढाल आदि। - प्राकृतिक आपदाएँ:
प्राकृतिक आपदा प्राय: एक अनपेक्षित घटना होती है जो कि ऐसी ताकतों के द्वारा घटि होती है जो कि मानव के नियंत्रण में नहीं हैं। यह थोड़े समय में और बिना चेतावनी के घटित होती है जिसकी वजह से मानव जीवन के क्रियाकलाप अवरुद्ध होते हैं तथा व्यापक स्तर पर धन-जन की हानि होती है।
प्रश्न 14.
जापान के याकोहामा शहर में विश्व बैठक में प्राकृतिक आपदा न्यूनीकरण के लिए पारित किए गए प्रस्तावों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
जापान के याकोहामा शहर में विश्व बैठक में प्राकृतिक आपदा न्यूनीकरण के लिए पारित किये गये प्रस्ताव निम्नलिखित हैं-
- यह दर्ज होगा कि प्रत्येक देश की प्रमुख जिम्मेदारी है कि वह प्राकृतिक आपदा से अपने नागरिकों की रक्षा करे।
- यह विकासशील देशों विशेष रूप से सबसे कम विकसित एवं चारों तरफ से भू-वृहद् देशों तथा छोटे द्वीपीय विकासशील देशों विशेष रूप से ध्यान देना।
- जहाँ भी यह सही समझा जायेगा वहाँ आपदा से बचाव, निवारण एवं तैयारी के लिए राष्ट्रीय स्तर पर कानून बनाकर क्षमता एवं सामर्थ्य का विकास करेगा तथा इस कार्य में स्वैच्छिक संगठनों तथा स्थानीय समुदायों को संगठित किया जाना चाहिए।
- यह उप क्षेत्रीय, क्षेत्रीय तथा अन्तर्राष्ट्रीय सहयोग के द्वारा उन कार्यों को बढ़ावा तथा मजबूती देगा जिनसे प्राकृतिक तथा दूसरी आपदाओं को रोका अथवा कम किया जा सके या उसका निवारण किया जा सके।
प्रश्न 15.
भारत में भूकम्प के सामाजिक पर्यावरणीय परिणाम बताइये।
उत्तर:
भूकम्प के साथ भय जुड़ा हुआ है क्योंकि इससे बड़े पैमाने पर और बहुत तीव्रता के साथ भूतल पर विनाश होता है। अधिक जनसंख्या घनत्व वाले क्षेत्रों में भूकम्प का अत्यधिक प्रतिकूल प्रभाव होता है। भूकम्प न केवल बस्तियों, बुनियादी ढाँचे, परिवहन व संचार व्यवस्था, उद्योग तथा अन्य विकासशील क्रियाओं को ध्वस्त करता है अपितु लोगों के पीढ़ियों से संचित पदार्थ और सामाजिक- सांस्कृतिक विरासत को भी नष्ट कर देता है यह लोगों को बेघर बना देता है। इससे विकासशील देशों की कमजोर अर्थव्यवस्था पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है।
प्रश्न 16.
भूकम्प न्यूनीकरण के उपाय बताइये।
भूकम्प न्यूनीकरण के लिए निम्नलिखित उपाय किए जाने चाहिए-
उत्तर:
- भूकम्प नियंत्रण केन्द्रों की स्थापना करना जिससे भूकम्प सम्भावित क्षेत्रों में लोगों को सूचना पहुँचाई जा सके। जी.पी.एस. की सहायता से प्लेट हलचल का पता लगाया जा सकता है।
- देश में भूकम्प प्रभावित क्षेत्रों का सुभेद्यता मानचित्र तैयार करना और सम्भावित जोखिम की सूचना लोगों तक पहुँचाना तथा उन्हें इसके प्रभाव को कम करने के बारे में शिक्षित करना।
- भूकम्प प्रभावित क्षेत्रों में घरों के प्रकार और भवन मानचित्र / डिजाइन में सुधार लाना । ऐसे क्षेत्रों में ऊँची इमारतें, बड़े औद्योगिक संस्थान और शहरीकरण को बढ़ावा देना।
- अन्ततः भूकम्प प्रभावित क्षेत्रों में भूकम्प प्रतिरोधी इमारतें बनाना और तीव्रता वाले क्षेत्रों में हल्की निर्माण सामग्री का उपयोग करना।
प्रश्न 17.
भारत में चक्रवातों का क्षेत्रीय और समयानुसार वितरण बताइये।
उत्तर:
भारत की आकृति प्रायद्वीपीय है और इसके पूर्व में बंगाल की खाड़ी तथा पश्चिम में अरब सागर है। अत: भारत में आने वाले चक्रवात इन्हीं दो जलीय क्षेत्रों में पैदा होते हैं। मानसूनी मौसम के दौरान चक्रवात 10° से 15° उत्तरी अक्षांशों के बीच पैदा होते हैं। बंगाल की खाड़ी में चक्रवात अधिकतर अक्टूबर और नवम्बर में उत्पन्न होते हैं। यहाँ ये चक्रवात 16° से 21° उत्तर तथा 92° पूर्वी देशान्तर से पश्चिम में पैदा होते हैं लेकिन जुलाई के महीने में ये सुन्दरबन डेल्टा के करीब 18° उत्तर और 90° पूर्वी देशान्तर से पश्चिम में उत्पन्न होते हैं।
प्रश्न 18.
उष्ण कटिबंधीय चक्रवात की उत्पत्ति के लिए आवश्यक प्रारम्भिक परिस्थितियों को बताइये।
उत्तर:
उष्ण कटिबंधीय चक्रवात की उत्पत्ति के लिए निम्नलिखित प्रारम्भिक परिस्थितियों का होना आवश्यक।
- लगातर और पर्याप्त मात्रा में उष्ण व आर्द्र वायु की सतत उपलब्धता जिससे बहुत बड़ी मात्रा में गुप्त ऊष्मा निर्मुक्त हो।
- तीव्र कोरिआलिस बल जो कि केन्द्र के निम्न वायुदाब को भरने न दे। यथा भूमध्य रेखा के आसपास 0° से 5° कोरिआलिस बल कम होता है और फलस्वरूप यहाँ उष्ण कटिबंधीय चक्रवात उत्पन्न नहीं होते हैं।
- क्षोभमण्डल में अस्थिरता पैदा होना जिससे स्थानीय स्तर पर निम्न वायुदाब क्षेत्र बन जाते हैं । इन्हीं के चारों तरफ चक्रवात भी विकसित हो सकते हैं।
- मजबूत ऊर्ध्वाधर वायु फान की अनुपस्थिति जो कि नम और गुप्त ऊष्मा युक्त वायु के ऊर्ध्वाधर बहाव को अवरुद्ध करे।
प्रश्न 19.
सुनामी की क्रियाविधि तथा इसके क्षेत्र बताइये।
उत्तर:
सुनामी की क्रियाविधि:
महासागर में जल तरंग की गति जल की गहराई पर निर्भर करती है। इसकी गति उथले समुद्र में ज्यादा और गहरे समुद्र में कम होती है। फलस्वरूप महासागरों के आन्तरिक भाग इससे कम प्रभावित होते हैं। तटीय क्षेत्रों में ये तरंगें अधिक प्रभावी होती हैं और व्यापक नुकसान पहुँचाती हैं। इसी कारण समुद्र में जलपोत पर सुनामी का कोई विशेष प्रभाव नहीं पड़ता है। समुद्र के आन्तरिक गहरे भाग में तो सुनामी महसूस भी नहीं होती है।
क्षेत्र : सुनामी मुख्य रूप से प्रशान्त महासागरीय तट जिसमें अलास्का, जापान, फिलीपाइन, दक्षिणी-पूर्वी एशिया के दूसरे द्वीप, इण्डोनेशिया, मलेशिया तथा हिन्द महासागर में म्यांमार, श्रीलंका और भारत के तटीय भागों में आती है।
प्रश्न 20.
भारत में बाढ़ प्रभावित क्षेत्र व इसके प्रभाव बताइये।
उत्तर:
भारत में बाढ़ प्रभावित क्षेत्र – भारत में असम, पश्चिमी बंगाल, बिहार, पूर्वी उत्तर प्रदेश अर्थात् मैदानी क्षेत्र और उड़ीसा, आंध्र प्रदेश, तमिलनाडु, गुजरात के तटीय क्षेत्र, पंजाब, राजस्थान, उत्तर गुजरात और हरियाणा बाढ़ प्रभावित राज्य हैं।
प्रभाव:
भारत के बाढ़ प्रभावित क्षेत्रों में बार-बार बाढ़ आने और कृषि भूमि तथा मानव बस्तियों के डूब से देश की आर्थिक व्यवस्था तथा समाज पर गहरा प्रभाव पड़ता है। बाढ़ न केवल फसलों को बर्बाद करती है अपितु आधारभूत ढाँचा, यथा सड़कें, रेल पटरी, पुल और मानव बस्तियों को भी नुकसान पहुँचाती है। बाढ़ग्रस्त क्षेत्रों में अनेक तरह की बीमारियाँ; यथा – हैजा, आंत्रशोथ, हेपेटाइटिस और दूसरी दूषित जलजनित बीमारियाँ फैल जाती हैं।
प्रश्न 21.
सूखे की तीव्रता के आधार पर भारत को सूखाग्रस्त क्षेत्रों में विभाजित कीजिए।
उत्तर:
सूखे की तीव्रता के आधार पर भारत को निम्नलिखित सूखाग्रस्त क्षेत्रों में विभाजित किया गया है-
- अत्यधिक सूखा प्रभावित क्षेत्र:
भारत में राजस्थान में अधिकतर भाग, विशेष रूप से अरावली के पश्चिम में स्थित मरुस्थली और गुजरात का कच्छ क्षेत्र सूखा प्रभावित हैं। इसमें राजस्थान के जैसलमेर और बाड़मेर जिले भी शामिल हैं। यहाँ 90 मिलीमीटर से कम औसत वार्षिक वर्षा होती है। - अधिक सूखा प्रभावित क्षेत्र :
राजस्थान के पूर्वी भाग, मध्य प्रदेश के अधिकांश भाग, महाराष्ट्र के पूर्वी भाग, आंध्र प्रदेश के आन्तरिक भाग, कर्नाटक का पठार, तमिलनाडु के उत्तरी भाग, झारखण्ड का दक्षिणी भाग तथा ओडिशा का आन्तरिक भाग शामिल हैं। - मध्यम सूखा प्रभावित क्षेत्र :
राजस्थान के उत्तरी भाग, हरियाणा, उत्तर प्रदेश के दक्षिणी जिले, गुजरात का शेष भाग, कोंकण के अलावा महाराष्ट्र, झारखण्ड, तमिलनाडु में कोयम्बटूर पठार और आन्तरिक कर्नाटक मध्यम सूखा प्रभावित क्षेत्र हैं।
प्रश्न 22.
आपदा निवारण और प्रबन्धन की अवस्थाएँ बताइये।
उत्तर:
आपदा निवारण और प्रबन्धन की निम्नलिखित तीन अवस्थाएँ हैं-
- आपदा से पहले:
आपदा के बारे में आँकड़े और सूचना एकत्रित करना, आपदा सम्भावी क्षेत्रों का मानचित्र तैयार करना और लोगों को इसके बारे में जानकारी देना। इसके अलावा सम्भावी क्षेत्रों में आपदा योजना बनाना, तैयारियाँ रखना और बचाव का उपाय करना आदि आपदा से पहले किए जाने वाले कार्य हैं। - आपदा के समय:
आपदा के समय युद्ध स्तर पर बचाव व राहत कार्य, यथा- आपदाग्रस्त क्षेत्रों से लोगों को निकालना, आश्रय स्थल निर्माण, राहत कैम्प, जल, भोजन व दवाई आपूर्ति आदि कार्य किए जाने चाहिए। - आपदा के पश्चात् :
प्रभावित लोगों का बचाव और पुनर्वास करना तथा भविष्य में आपदाओं से निपटने के लिए क्षमता – निर्माण पर ध्यान केन्द्रित करना आदि आपदा के पश्चात् किए जाने वाले कार्य हैं।
प्रश्न 23:
आपदा प्रबन्धन अधिनियम, 2005 को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
आपदा प्रबन्धन अधिनियम, 2005:
आपदा प्रबन्धन अधिनियम, 2005 में आपदा को किसी क्षेत्र में घटित एक महाविपत्ति, दुर्घटना, संकट या गम्भीर घटना के रूप में परिभाषित किया गया है जो कि प्राकृतिक या मानवकृत कारणों, दुर्घटना या लापरवाही का परिणाम हो और जिससे बड़े स्तर पर जान-माल की क्षति या मानसिक पीड़ा, पर्यावरण की हानि एवं विनाश हो, जिसकी प्रकृति या परिमाण प्रभावित क्षेत्र में रहने वाले मानव समुदाय की सहन क्षमता से परे हो।
प्रश्न 24.
भारत में सूखे के प्रकार बताइये।
उत्तर:
भारत में सूखे के प्रमुख प्रकार निम्नलिखित हैं-
- मौसम विज्ञान सम्बन्धी सूखा:
यह एक ऐसी स्थिति है जिसमें लम्बे समय तक अपर्याप्त वर्षा होती है और इसका सामयिक और स्थानिक वितरण भी असन्तुलित हो जाता है। - कृषि सूखा:
इसे भूमि – आर्द्रता सूखा भी कहा जाता है। मिट्टी में आर्द्रता की कमी के कारण फसलें मुरझा जाती हैं। जिन क्षेत्रों में 30 प्रतिशत से अधिक कुल बोये गये क्षेत्र में सिंचाई होती है, उनको सूखा प्रभावित क्षेत्र नहीं माना जाता है। - जलविज्ञान सम्बन्धी सूखा:
यह स्थिति उस समय उत्पन्न होती है जब विभिन्न जल संग्रहण, जलाशय, जलभूत और झीलों इत्यादि का स्तर वृष्टि द्वारा की जाने वाली जलापूर्ति के बाद भी नीचे गिर जाता है। - पारिस्थितिक सूखा:
जब प्राकृतिक पारिस्थितिक तंत्र में जल की कमी से उत्पादकता में कमी हो जाती है और परिणामस्वरूप पारिस्थितिक तंत्र में तनाव आ जाता है तथा यह क्षतिग्रस्त हो जाता है तो इसे पारिस्थितिक सूखा कहते हैं।
निबन्धात्मक प्रश्न
प्रश्न 1.
विध्वंसक प्राकृतिक आपदा भूकम्प का विस्तार से वर्णन कीजिए।
उत्तर:
भूकम्प
विध्वंसक प्राकृतिक आपदा भूकम्प का विवेचन निम्नलिखित बिन्दुओं के अन्तर्गत किया गया है-
(1) भूकम्प की उत्पत्ति:
भूकम्प सबसे अधिक अपूर्व सूचनीय और विध्वंसक प्राकृतिक आपदा है। भूकम्पों की उत्पत्ति विवर्तनिकी से सम्बन्धित है। ये विध्वंसक हैं और विस्तृत क्षेत्र को प्रभावित करते हैं। भूकम्प पृथ्वी की ऊपरी सतह में विवर्तनिक गतिविधियों से निकली ऊर्जा से पैदा होते हैं। इसकी तुलना में ज्वालामुखी विस्फोट, चट्टान गिरने, भूस्खलन, जमीन के अवतलन अर्थात् धँसने, बाँध व जलाशयों के बैठने आदि से आने वाला भूकम्प कम क्षेत्र को प्रभावित करता है और नुकसान भी कम पहुँचाता है।
(2) इण्डियन प्लेट का खिसकाव और भारत में भूकम्प:
इण्यियन प्लेट प्रतिवर्ष उत्तर व उत्तर-पूर्व दिशा में एक सेन्टीमीटर खिसक रही है किन्तु उत्तर में स्थित यूरेशियन प्लेट इसके लिए अवरोध पैदा करती है। इसके फलस्वरूप इन प्लेटों के किनारे लॉक हो जाते हैं और अनेक स्थानों पर लगातार ऊर्जा संग्रह से तनाव बढ़ता रहता है और दोनों प्लेटों के बीच लॉक टूट जाता है और एकाएक ऊर्जा मोचन से हिमालय के चाप के साथ भारतीय क्षेत्र में भूकम्प आ जाता है।
(3) प्रभावित क्षेत्र:
भारत में भूकम्प से प्रभावित राज्यों में जम्मू-कश्मीर, हिमाचल प्रदेश, उत्तराखण्ड, सिक्किम, पश्चिमी बंगाल का दार्जिलिंग उपमण्डल तथा उत्तर-पूर्व के सात राज्य; यथा- असम, सिक्किम, अरुणाचल प्रदेश, त्रिपुरा, मेघालय, मणिपुर व नागालैण्ड शामिल हैं। इन क्षेत्रों के अलावा मध्य-पश्चिमी क्षेत्र विशेषकर गुजरात में सन् 1819, 1956 तथा 2001 एवं महाराष्ट्र में सन् 1967 एवं 1993 में कुछ प्रचण्ड भूकम्प आए हैं।
कुछ समय पूर्व भूवैज्ञानिकों ने एक नवीन सिद्धान्त प्रतिपादित किया है जिसके अनुसार लातूर और ओसमाबाद (महाराष्ट्र) के निकट भीमा अर्थात् कृष्णा नदी के साथ-साथ एक भ्रंश रेखा विकसित हुई है। इसके साथ ऊर्जा संग्रह होता है तथा इसकी विमुक्ति भूकम्प का कारण बनती है। इस सिद्धान्त के अनुसार सम्भवतः इण्डियन प्लेट टूट रही है।
(4) भूकम्पीय क्षेत्र :
राष्ट्रीय भू-भौतिकी प्रयोगशाला, भारतीय भूगर्भीय सर्वेक्षण, मौसम विज्ञान विभाग, भारत सरकार और इनके साथ कुछ समय पूर्व बने राष्ट्रीय आपदा प्रबन्धन संस्थान ने भारत में आए 1200 भूकम्पों का गहन विश्लेषण करके भारत को निम्नलिखित पाँच भूकम्पीय क्षेत्रों में विभाजित किया है-
- अति अधिक क्षति जोखिम क्षेत्र
- अधिक क्षति जोखिम क्षेत्र
- मध्यम क्षति जोखिम क्षेत्र
- निम्न क्षति जोखिम क्षेत्र
- अति निम्न क्षति जोखिम क्षेत्र।
(5) भूकम्प के सामाजिक-पर्यावरणीय परिणाम:
भूकम्प के साथ भय जुड़ा हुआ है क्योंकि इससे व्यापक स्तर पर और बहुत ही तीव्र गति के साथ भूतल पर विनाश होता है। अधिक जनसंख्या घनत्व वाले क्षेत्रों में तो यह आपदा कहर ढाती है। ये न केवल बस्तियों, बुनियादी ढाँचे, परिवहन व संचार व्यवस्था, उद्योग और अन्य विकासशील क्रियाओं को ध्वस्त करता है अपितु लोगों के पीढ़ियों से संचित पदार्थ और सामाजिक-सांस्कृतिक विरासत को भी नष्ट कर देता है। यह लोगों को बेघर कर देता है एवं इससे विकासशील देशों की कमजोर अर्थव्यवस्था पर गहरी चोट पहुँचती है।
(6) भूकम्प के प्रभाव:
देश के जिन भागों में भूकम्प आते हैं, उनमें सम्मिलित विनाशकारी प्रभाव पा जाते हैं। इस क्रिया के फलस्वरूप धरातल में दरारें पड़ जाती हैं, समुद्रों में जल की गतिशीलता बढ़ जाती है, बस्तियाँ ध्वस्त हो जाती हैं, पहाड़ी क्षेत्रों में भूस्खलन होता है, सागरीय जल में सुनामी लहरें उत्पन्न हो जाती हैं। इसके अलावा भूकम्प के कुछ गम्भीर और दूरगामी पर्यावरणीय परिणाम हो सकते हैं। पृथ्वी की पर्पटी पर धरातलीय भूकम्पीय तरंगें दरारें डाल देती हैं जिसमें से पानी और दूसरा ज्वलनशील पदार्थ बाहर निकल आता है और आस-पड़ोस को डुबो देता है। भूकम्प के कारण भूस्खलन भी होता है जो कि नदी वाहिकाओं को अवरुद्ध कर जलाशयों में परिवर्तित कर देता है। अनेक बार नदियाँ अपना रास्ता बदल लेती हैं जिससे प्रभावित क्षेत्र में बाढ़ तथा दूसरी आपदाएँ आती हैं।
(7) भूकम्प न्यूनीकरण:
भूकम्प अन्य दूसरी आपदाओं की तुलना में अधिक विध्वंसकारी होते हैं। इससे परिवहन और संचार व्यवस्था नष्ट हो जाती है जिससे लोगों तक राहत पहुँचाना कठिन होता है। भूकम्प को रोका नहीं जा सकता है। अतः इसके लिए केवल मात्र विकल्प यह है कि इस आपदा से निपटने की तैयारी रखी जाये और इससे होने वाले नुकसान को कम किया जाये। इसके लिए निम्नलिखित उपाय अपनाने चाहिए-
- भूकम्प नियंत्रण केन्द्रों की स्थापना करना जिससे भूकम्प सम्भावित क्षेत्रों में लोगों को सूचना पहुँचाई जा सके। जी.पी.एस. की सहायता से प्लेट हलचल का पता लगाया जा सकता है।
- देश में भूकम्प सम्भावित क्षेत्रों का सुभेद्यता मानचित्र तैयार करना तथा सम्भावित जोखिम की सूचना लोगों तक पहुँचाना तथा उनको इसके प्रभाव को कम करने के बारे में शिक्षित करना।
- भूकम्प प्रभावित क्षेत्रों में घरों के प्रकार और भवन डिजाइन में सुधार लाना । ऐसे क्षेत्रों में ऊँची इमारतें, बड़े औद्योगिक संस्थान और शहरीकरण को बढ़ावा न देना।
- अन्ततः भूकम्प प्रभावित क्षेत्रों में भूकम्प प्रतिरोधी इमारतें बनाना और सुभेद्य क्षेत्रों में हल्की निर्माण सामग्री का इस्तेमाल करना।
प्रश्न 2.
उष्ण कटिबंधीय चक्रवात की उत्पत्ति, संरचना, क्षेत्रीय वितरण तथा परिणाम का विस्तार से वर्णन कीजिए।
उत्तर:
उष्णकटिबंधीय चक्रवात
उष्ण कटिबंधीय चक्रवात कम दबाव वाले उग्र मौसम तंत्र हैं और 30° उत्तर 30° दक्षिण अक्षांशों के बीच पाए जाते हैं। इस प्रकार का चक्रवात 500 से 1000 किलोमीटर क्षेत्र में फैला होता है और इसकी ऊर्ध्वाधर ऊँचाई 12 से 14 किलोमीटर हो सकती है। उष्ण कटिबंधीय चक्रवात या प्रभंजन एक ऊष्मा इंजन के समान होते हैं जिसे ऊर्जा प्राप्ति, समुद्र सतह से प्राप्त जल वाष्प की संघनन प्रक्रिया में छोड़ी गई गुप्त ऊष्मा से होती है।
उष्ण कटिबंधीय चक्रवात की उत्पत्ति:
उष्ण कटिबंधीय चक्रवात की उत्पत्ति के बारे में वैज्ञानिकों में मतभेद हैं। इनकी उत्पत्ति के लिए निम्नलिखित प्रारम्भिक परिस्थितियों का होना आवश्यक है-
- लगातार और पर्याप्त मात्रा में उष्ण व आर्द्र वायु की सतत उपलब्धता जिससे बहुत बड़ी मात्रा में गुप्त ऊष्मा निर्मुक्त हो।
- तीव्र कोरिऑलिस बल जो कि केन्द्र के निम्न वायुदाब को भरने न दे। भूमध्य रेखा के आसपास 0° से 5° कोरिऑलिस बल कम होता है और परिणामस्वरूप यहाँ ये चक्रवात उत्पन्न नहीं होते हैं।
- क्षोभमण्डल में अस्थिरता जिससे स्थानीय स्तर पर निम्न वायुदाब क्षेत्र बन जाते हैं। इन्हीं के चारों तरफ चक्रवात भी विकसित हो सकते हैं।
- मजबूत ऊर्ध्वाधर वायु फान की अनुपस्थिति जो नम और गुप्त ऊष्मा युक्त वायु के ऊर्ध्वाधर बहाव को अवरुद्ध करे।
उष्ण कटिबंधीय चक्रवात की संरचना:
उष्ण कटिबंधीय चक्रवात में वायुदाब प्रवणता बहुत अधिक होती है। चक्रवात का केन्द्र गर्म वायु तथा निम्न वायुदाब और मेघरहित क्रोड होता है। इसे तूफान की आँख कहा जाता है। सामान्यतः समदाब रेखाएँ एक-दूसरे के नजदीक होती हैं जो कि उच्च वायुदाब प्रवणता का प्रतीक हैं। व प्रवणता 14 से 17 मिलीबार / 100 किलोमीटर के आस-पास होता है। अनेक बार यह 60 मिलीबार / 100 किलोमीटर तक हो सकता है। केन्द्र से पवन पट्टी का विस्तार 10 से 150 किलोमीटर तक होता है।
भारत में चक्रवातों का क्षेत्रीय और समयानुसार विवरण- भारत प्रायद्वीपीय आकृति वाला देश है और इसके पूर्व में बंगाल की खाड़ी तथा पश्चिम में अरब सागर है। अतः यहाँ आने वाले चक्रवात इन्हीं दो जलीय क्षेत्रों में पैदा होते हैं। मानसूनी ऋतु के दौरान चक्रवात 10° से 15° उत्तरी अक्षांशों के मध्य पैदा होते हैं। बंगाल की खाड़ी में चक्रवात अधिकांशतः अक्टूबर व नवम्बर में बनते हैं। यहाँ ये चक्रवात 16° से 21° उत्तर तथा 92° पूर्वी देशान्तर से पश्चिम में पैदा होते हैं लेकिन जुलाई में ये सुन्दरबन डेल्टा के करीब 18° उत्तर और 90° पूर्वी देशान्तर से पश्चिम में उत्पन्न होते हैं।
उष्ण कटिबंधीय चक्रवातों के परिणाम:
उष्ण कटिबंधीय चक्रवातों की ऊर्जा का स्रोत उष्ण आर्द्र वायु से प्राप्त होने वाली गुप्त ऊष्मा है। अतः समुद्र से दूरी बढ़ने पर चक्रवात का बल कमजोर हो जाता है। भारत में चक्रवात जैसे-जैसे बंगाल की खाड़ी और अरब सागर से दूर हो जाता है, उसका बल कमजोर हो जाता है। तटीय क्षेत्रों में प्राय: उष्ण कटिबंधीय चक्रवात 180 किलोमीटर प्रति घण्टा की गति से टकराते हैं। इससे तूफानी क्षेत्र में समुद्रतल भी असाधारण रूप से ऊपर उठ जाता है जिसे तूफान महोर्मि के नाम से जाना जाता है। इससे तटीय क्षेत्र में बस्तियाँ, खेत पानी में डूब जाते हैं तथा फसलों और अनेक प्रकार के मानवकृत ढाँचों का विनाश होता है।
प्रश्न 3.
बाढ़ की उत्पत्ति, परिणाम एवं नियंत्रण के उपायों का विवेचन कीजिए।
उत्तर:
प्राकृतिक आपदा बाढ़ का विवेचन निम्नलिखित बिन्दुओं के अन्तर्गत किया गया है-
(1) बाढ़ के कारण:
वर्षा ऋतु में नदी का जल उफान के समय जल वाहिकाओं को तोड़ता हुआ मानव बस्तियों और आसपास की जमीन पर फैल जाता है तो बाढ़ की स्थिति पैदा हो जाती है। दूसरी प्राकृतिक आपदाओं की तुलना में बाढ़ आने के कारण जाने-पहचाने हैं। बाढ़ आमतौर पर अचानक नहीं आती है और कुछ विशेष क्षेत्रों और ऋतु में ही आती है। बाढ़ उस समय आती है जब नदी जल वाहिकाओं में इनकी क्षमता से अधिक जल बहाव होता है और जल बाढ़ के रूप में मैदान के निचले हिस्सों में भर जाता है। अनेक बार तो झीलें और आन्तरिक जल क्षेत्रों में भी क्षमता से अधिक जल भर जाता है। बाढ़ आने के और भी अनेक कारण हो सकते हैं, यथा- तटीय क्षेत्रों में तूफानी महोर्मि, लम्बे समय तक होने वाली तेज बारिश, हिम का पिघलना, जमीन की अन्त: स्पन्दन दर में कमी आना और अधिक मृदा अपरदन के कारण नदी जल में जलोढ़ की मात्रा में वृद्धि होना।
(2) क्षेत्र :
यद्यपि बाढ़ विश्व में विस्तृत क्षेत्र में आती है लेकिन दक्षिण, दक्षिण-पूर्व और पूर्व एशिया के देशों में विशेष रूप से चीन, भारत और बांग्लादेश में इसकी बारम्बारता और होने वाले नुकसान अधिक हैं।
(3) मानव की भूमिका:
अन्य प्राकृतिक आपदाओं की तुलना में बाढ़ की उत्पत्ति और इसके क्षेत्रीय फैलाव में मानव एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। मानवीय क्रियाकलापों, अंधाधुंध वन कटाव, अवैज्ञानिक कृषि पद्धतियाँ, प्राकृतिक अपवाह तंत्रों का अवरुद्ध होना तथा नदी तल और बाढ़कृत मैदानों पर मानव बसाव के कारण बाढ़ की तीव्रता, परिणाम और विध्वंसकता बढ़ जाती है
(4) भारत में बाढ़ प्रभावित क्षेत्र:
भारत के विभिन्न राज्यों में बार- बार आने वाली बाढ़ के कारण जान- माल का भारी नुकसान होता है। राष्ट्रीय बाढ़ आयोग ने देश में 4 करोड़ हैक्टेयर भूमि को बाढ़ प्रभावित क्षेत्र घोषित किया है। असम, पश्चिमी बंगाल और बिहार राज्य सबसे अधिक बाढ़ प्रभावित क्षेत्रों में से हैं। इसके अलावा उत्तर भारत की अधिकांश नदियाँ विशेष रूप से पंजाब और उत्तर प्रदेश में बाढ़ लाती हैं। राजस्थान, गुजरात, हरियाणा, पंजाब, आकस्मिक बाढ़ से विगत कुछ दशकों में जलमग्न होते रहे हैं। इसका कारण मानसून वर्षा की तीव्रता तथा मानव क्रियाकलापों के द्वारा प्राकृतिक अपवाह तंत्र का अवरुद्ध होना है। अनेक बार तमिलनाडु में बाढ़ नवम्बर से जनवरी माह के मध्य लौटते हुए मानसून के द्वारा होती है।
- भारत में असम, पश्चिमी बंगाल, बिहार, पूर्वी उत्तर प्रदेश, ओडिशा, आंध्र प्रदेश, तमिलनाडु, गुजरात के तटीय क्षेत्र तथा पंजाब, राजस्थान, उत्तर गुजरात और हरियाणा में बार-बार बाढ़ आने और कृषि भूमि तथा मानव- बस्तियों के डूबने से देश की आर्थिक व्यवस्था तथा समाज पर गहरा प्रभाव पड़ता है।
- भारत में बाढ़ न केवल फसलों को बर्बाद करती है अपितु आधारभूत ढाँचा, यथा- सड़कें, रेल पटरी, पुल और मानव बस्तियों को भी नुकसान पहुँचाती है। बाढ़ग्रस्त क्षेत्रों में अनेक प्रकार की बीमारियाँ, यथा- हैजा, आन्त्रशोथ, हेपेटाइटिस और अन्य दूषित जल से उत्पन्न होने वाली बीमारियाँ फैल जाती हैं।
- बाढ़ से कुछ लाभ भी प्राप्त होते हैं। प्रतिवर्ष बाढ़ खेतों में उपजाऊ मिट्टी लाकर जमा करती है जो कि फसलों के लिए बहुत लाभदायक है। ब्रह्मपुत्र नदी में स्थित असम में मजौली सबसे बड़ा नदीय द्वीप है जो कि प्रतिवर्ष बाढ़ से ग्रसित होता है। यहाँ चावल की फसल बहुत अच्छी होती है। लेकिन ये लाभ भीषण नुकसान के सामने गौण मात्र हैं।
बाढ़ नियंत्रण के उपाय: भारत में बाढ़ नियंत्रण के लिए निम्नलिखित उपायों को अपनाया जाना चाहिए
- बाढ़ग्रस्त क्षेत्रों में तटबंध बनाना।
- नदियों पर बाँध बनाना।
- वनीकरण और आमतौर पर बाढ़ लाने वाली नदियों के ऊपरी जलग्रहण क्षेत्र में निर्माण कार्य पर प्रतिबंध।
- नदी वाहिकाओं पर बसे लोगों को कहीं और बसाना तथा बाढ़ के मैदानों में जनसंख्या के जमाव पर नियंत्रण रखना।