Understanding the question and answering patterns through Class 11 Geography Question Answer in Hindi Chapter 7 भू-आकृतियाँ तथा उनका विकास will prepare you exam-ready.
Class 11 Geography Chapter 7 in Hindi Question Answer भू-आकृतिक प्रक्रियाएँ भू-आकृतियाँ तथा उनका विकास
अन्य महत्त्वपूर्ण प्रश्न
बहुचयनात्मक प्रश्न-
1. हिमानी द्वारा अपने अग्र भाग में जमा किए गये अवसाद को कहा जाता है-
(अ) ड्रमलिन
(ब) तलछट
(स) मोरेन / हिमोढ़
(द) छत्रक।
उत्तर:
(स) मोरेन / हिमोढ़
2. ‘यू’ आकार की घाटी का निर्माण जिस भू-आकृतिक कारक का परिणाम है, वह है-
(अ) प्रवाहित जल
(ब) भौम जल
(स) हिमनद
(द) पवनें ।
उत्तर:
(स) हिमनद
3. प्रवाहित जल के द्वारा अपरदन के फलस्वरूप निर्मित होने वाली स्थलाकृति है
(अ) अवनमित कुण्ड
(ब) डेल्टा
(स) जलोढ़ पंख
(द) प्राकृतिक तटबन्ध।
उत्तर:
(अ) अवनमित कुण्ड
4. भौम जल के द्वारा निक्षेपण के फलस्वरूप निर्मित होने वाली स्थलाकृति है-
(अ) घोल रन्ध्र
(ब) लैपीज
(स) कुण्ड
(द) स्तम्भ
उत्तर:
(द) स्तम्भ
5. ‘वी’ आकार की घाटी का निर्माण जिस भू-आकृतिक कारक का परिणाम है, वह है-
(अ) पवन
(ब) हिमनद
(स) प्रवाहित जल
(द) भौम जल।
उत्तर:
(स) प्रवाहित जल
6. पर्वतों के पाद पर मलबे रहित एवं मलबे सहित मंद ढाल वाले चट्टानी तट कहलाते हैं-
(अ) पेडीमेण्ट
(ब) स्टैक
(स) एस्कर
(द) हिमोढ़।
उत्तर:
(अ) पेडीमेण्ट
7. निम्न में से कौनसी स्थलाकृति गार्ज का ही दूसरा
(अ) जलगर्तिका
(ब) अवनमित कुण्ड
(स) नदी वेदिकाएँ
(द) कैनियन।
उत्तर:
(द) कैनियन।
8. प्रवाहित जल अपरदित स्थलरूप है-
(अ) घाटियाँ
(ब) जलगर्तिका
(स) नदी वेदिकाएँ
(द) उपरोक्त सभी
उत्तर:
(द) उपरोक्त सभी
9. प्रवाहित जल निक्षेपित स्थलरूप है-
(अ) जलोढ़ पंख
(ब) डेल्टा
(स) नदी विसर्प
(द) उपरोक्त सभी
उत्तर:
(द) उपरोक्त सभी
10. भौम जल अपरदित स्थल रूप नहीं है-
(अ) कुंड
(ब) सर्क
(स) घोल रंध्र
(द) लैपीज
उत्तर:
(ब) सर्क
11. स्टैलेक्टाइट, स्टैलेग्माईट एवं स्तंभ किससे निर्मित होते हैं?
(अ) प्रवाहित जल द्वारा
(ब) पवन द्वारा
(स) भौम जलद्वारा
(द) हिमनद द्वारा
उत्तर:
(स) भौम जलद्वारा
12. हिमनद अपरदित स्थलरूप है-
(अ) सर्क
(ब) हॉर्न
(स) सिरेटेड कटक
(द) उपरोक्त सभी
(स) ड्रमलिन
उत्तर:
(द) उपरोक्त सभी
13. हिमनद निक्षेपित स्थलरूप है-
(अ) हिमोढ़
(ब) एस्कर
(स) ड्रमलिन
(द) उपरोक्त सभी
उत्तर:
(द) उपरोक्त सभी
14. प्याला स्थलरूप किसके द्वारा निर्मित है?
(अ) प्रवाहित जल द्वारा
(स) हिमनद द्वारा
(ब) पवनों द्वारा
(द) भौम जल द्वारा
उत्तर:
(ब) पवनों द्वारा
15. पवन अपरदनात्मक स्थलरूप है-
(अ) पेडीमेंट
(ब) प्याला
(स) छत्रक
(द) उपरोक्त सभी
उत्तर:
(द) उपरोक्त सभी
रिक्त स्थान वाले प्रश्न
नीचे दिए गए प्रश्नों में रिक्त स्थानों की पूर्ति करें-
1. नव चंद्राकार टिब्बे जिनकी भुजाएँ पवनों की दिशा में निकली होते हैं- _____ कहलाते हैं। (बरखान/ प्याला)
2. पर्वतों के पाद पर मलबे रहित अथवा मलबे सहित मंद ढाल वाले चट्टानी तल _____ कहलाते हैं। (पीडमेंट / प्याला)
3. पहाड़ी क्षेत्रों में नदी तल में अपरदित छोटे चट्टानी टुकड़े छोटे गर्तों में फँसकर वृत्ताकार रूप में घूमते हैं जिन्हें _____ कहते हैं। (गॉर्ज/जलगर्तिका)
4. _____ प्रारम्भिक बाढ़ मैदानों या पुरानी नदी घाटियों के तलों के चिन्ह हैं। (कैनियन/नदी वेदिकाएँ)
5. जब नदी उच्च स्थलों से बहती हुई गिरिपद व मंद ढाल के मैदानों में प्रवेश करती है तो _____ “का निर्माण होता है।। (जलोढ़ पंख / डेल्टा )
6. सर्क के शीर्ष पर अपरदन होने से _____ निर्मित होते हैं। (हिमोढ़ / हॉर्न)
उत्तर:
1. नव चंद्राकार टिब्बे जिनकी भुजाएँ पवनों की दिशा में निकली होते हैं- बरखान कहलाते हैं।
2. पर्वतों के पाद पर मलबे रहित अथवा मलबे सहित मंद ढाल वाले चट्टानी तल पेडीमेंट कहलाते हैं।
3. पहाड़ी क्षेत्रों में नदी तल में अपरदित छोटे चट्टानी टुकड़े छोटे गर्तों में फँसकर वृत्ताकार रूप में घूमते हैं जिन्हें जलगर्तिका कहते हैं।
4. नदी वेदिकाएँ प्रारम्भिक बाढ़ मैदानों या पुरानी नदी घाटियों के तलों के चिन्ह हैं।
5. जब नदी उच्च स्थलों से बहती हुई गिरिपद व मंद ढाल के मैदानों में प्रवेश करती है तो जलोढ़ पंख “का निर्माण होता है।।
6. सर्क के शीर्ष पर अपरदन होने से हॉर्न निर्मित होते हैं।
सत्य / असत्य वाले प्रश्न-
नीचे दिए गए कथनों में से सत्य / असत्य कथन छाँटिए-
1. हिमोढ़, हिमनद टिल या गोल्श्मी मृत्तिका के जमाव की लम्बी कटकें हैं
2. आप्ल्स पर्वत पर सबसे ऊँची चोटी मैटर हॉर्न तथा हिमालय पर्वत की सबसे ऊँची चोटी एवरेस्ट वास्तव में हॉर्न है।
3. अपतटीय रोधिका जो रेत के अधिक निक्षेपण से ऊपर दिखाई पड़ती है उसे रोध रोधिका कहते हैं
4. हिमानीकृत घाटियाँ गर्त की भाँति होती है जो आकार में अंग्रेजी के अक्षर V जैसी होती है।
5. डेल्टा व जलोढ़ पंख भौम जल के निक्षेपित स्थलरूप हैं।
6. स्टैलेक्टाइट, स्टैलेग्माइट एवं स्तंभ भौम जल में निक्षेपित स्थलरूप है।
उत्तर:
1. हिमोढ़, हिमनद टिल या गोल्श्मी मृत्तिका के जमाव की लम्बी कटकें हैं (सत्य)
2. आप्ल्स पर्वत पर सबसे ऊँची चोटी मैटर हॉर्न तथा हिमालय पर्वत की सबसे ऊँची चोटी एवरेस्ट वास्तव में हॉर्न है। (सत्य)
3. अपतटीय रोधिका जो रेत के अधिक निक्षेपण से ऊपर दिखाई पड़ती है उसे रोध रोधिका कहते हैं (सत्य)
4. हिमानीकृत घाटियाँ गर्त की भाँति होती है जो आकार में अंग्रेजी के अक्षर V जैसी होती है। (असत्य)
5. डेल्टा व जलोढ़ पंख भौम जल के निक्षेपित स्थलरूप हैं। (असत्य)
6. स्टैलेक्टाइट, स्टैलेग्माइट एवं स्तंभ भौम जल में निक्षेपित स्थलरूप है। (सत्य)
मिलान करने वाले प्रश्न-
निम्न को सुमेलित कीजिए-
(1) प्रवाहित जल अपरदित स्थलरूप | (अ) बरखान |
(2) प्रवाहित जल निक्षेपित स्थलरूप | (ब) गॉज |
(3) हिमनद अपरदित स्थलरूप | (स) डेल्टा |
(4) हिमनद निक्षेपित स्थलरूप | (द) सर्क |
(5) पवन अपरदित स्थलरूप | (य) हिमोढ़ |
(6) पवन निक्षेपित स्थलरूप | (र) प्याला |
उत्तर:
(1) प्रवाहित जल अपरदित स्थलरूप | (ब) गॉज |
(2) प्रवाहित जल निक्षेपित स्थलरूप | (स) डेल्टा |
(3) हिमनद अपरदित स्थलरूप | (द) सर्क |
(4) हिमनद निक्षेपित स्थलरूप | (य) हिमोढ़ |
(5) पवन अपरदित स्थलरूप | (र) प्याला |
(6) पवन निक्षेपित स्थलरूप | (अ) बरखान |
अतिलघूत्तरात्मक प्रश्न-
प्रश्न 1.
भूमिगत जल का प्रभावकारी कार्य किन प्रदेशों में सम्पन्न होता है?
उत्तर:
चूना-पत्थर वाले कार्स्ट प्रदेशों में।
प्रश्न 2.
घाटी रंध्र (Valley Sinks)की रचना किसके द्वारा होती है?
उत्तर:
भूमिगत जल के अपरदन द्वारा।
प्रश्न 3.
टार्न ( सर्क) झील का निर्माण किसके द्वारा होता है?
उत्तर:
हिमनद के अपरदन से।
प्रश्न 4.
अलकनंदा नदी का उद्गम क्षेत्र लिखिए।
उत्तर:
अलकापुरी हिमनद।
प्रश्न 5.
ड्रमलिन का हिमनद सम्मुख भाग क्या कहलाता है?
उत्तर:
स्टॉस (Stoss।
प्रश्न 6.
भू-आकृतिक कारकों के नाम लिखिए।
उत्तर:
- प्रवाहित जल
- भौमजल
- हिमनद
- पवनें
- तरंग व धाराएँ।
प्रश्न 7.
नदी अपरदन द्वारा निर्मित किन्हीं तीन स्थलाकृतियों के नाम लिखिए।
उत्तर:
- V-आकार की घाटी
- गॉर्ज
- जलगर्तिका।
प्रश्न 8.
प्रारंभिक बाढ़ मैदान या पुरानी नदी घाटियों के तल चिह्न किसे कहा गया है?
उत्तर:
नदी वेदिकाओं को।
प्रश्न 9.
डोलाइन क्या है?
उत्तर:
ध्वस्त घोल रंध्र।
प्रश्न 10.
भौम जल द्वारा चूना चट्टानों के क्षेत्र में निर्मित स्थल रूप क्या कहलाते हैं?
उत्तर:
कार्स्ट स्थलाकृति।
प्रश्न 11.
भू-आकृतियाँ रूपान्तरित कैसे होती हैं?
उत्तर:
जलवायु सम्बन्धी परिवर्तन तथा वायु – राशियों के ऊर्ध्वाधर अथवा क्षैतिज संचलन के कारण।
प्रश्न 12.
स्थलरूपों का अनुक्रमिक विकास किस प्रकार होता है?
उत्तर:
समस्त भू-आकृतिक कारक लम्बी अवधि तक कार्य करते हुए क्रमबद्ध परिवर्तन लाते हैं जिसके परिणामस्वरूप स्थलरूपों का अनुक्रमिक विकास होता है।
प्रश्न 13.
भू-आकृतिक कारक कितने प्रकार के स्थलरूपों का निर्माण करते हैं?
उत्तर:
भू-आकृतिक कारक अपरदन एवं निक्षेपण में सक्षम होते हैं। अतः इनके द्वारा अपरदित और निक्षेपित दो प्रकार के स्थलरूपों का निर्माण होता है।
प्रश्न 14.
प्रवाहित जल के दो प्रमुख तत्त्व कौनसे हैं?
उत्तर:
- धरातल पर परत के रूप में फैला हुआ प्रवाह
- रैखिक प्रवाह जो कि घाटियों में नदियों व सरिताओं के रूप में होता है।
प्रश्न 15.
पेनीप्लेन क्या हैं?
उत्तर:
स्थलगत प्रवाह के द्वारा नदी अपरदन के फलस्वरूप निर्मित मैदान समप्राय मैदान या पेनीप्लेन कहलाते हैं।
प्रश्न 16.
जलगर्तिका किसे कहते हैं?
उत्तर:
पहाड़ी क्षेत्रों में नदी तल में अपरदित छोटे चट्टानी टुकड़े छोटे गर्तों में फँसकर वृत्ताकार रूप में घूमते हैं जिनको जल – गर्तिका के नाम से जाना जाता है।
प्रश्न 17.
अवनमित कुण्ड किसे कहते हैं?
उत्तर:
जलप्रपातों के तल में बने विशाल व गहरे कुण्ड अवनमित कुण्ड कहलाते हैं।
प्रश्न 18.
युग्म वेदिकाएँ किसे कहते हैं?
उत्तर:
नदी वेदिकाएँ जब नदी के दोनों तरफ समान ऊँचाई वाली होती हैं तो इनके इस स्वरूप को युग्म – वेदिकाएँ कहते हैं।
प्रश्न 19.
भौम जल निक्षेपित किन्हीं तीन स्थलरूपों के नाम लिखिए।
उत्तर:
- स्टैलेक्टाइट
- स्टैलेग्माइट
- कंदरा स्तंभ।
प्रश्न 20.
हॉर्न का निर्माण किस प्रकार होता है?
उत्तर:
सर्क के शीर्ष अपरदन से हॉर्न निर्मित होते हैं।
प्रश्न 21.
फियोर्ड किसे कहते हैं?
उत्तर:
बहुत गहरी हिमनद गर्तें, जिनमें समुद्री जल भर जाता है तथा जो समुद्री तटरेखा पर होती हैं, उन्हें फियोर्ड कहते हैं।
प्रश्न 22.
स्पिट (Spit) किसे कहते हैं?
उत्तर:
ऐसी रोधिकाएँ, जिनका एक भाग खाड़ी के शीर्ष स्थल से जुड़ा होता है, स्पिट कहलाती हैं।
प्रश्न 23.
विसर्प किसे कहते हैं?
उत्तर:
बाढ़ व डेल्टाई मैदानों पर नदियों के अनिश्चित प्रवाह से लूप जैसे चैनल प्रारूप विकसित हो जाते हैं, जो विसर्प कहलाते हैं।
प्रश्न 24.
गोखुर झील का निर्माण किस प्रकार होता है?
उत्तर:
विसर्प गहरे छल्ले के आकार में विकसित होकर भीतरी भागों पर अपरदन के कारण कट जाते हैं, परिणामस्वरूप गोखुर झील का निर्माण होता है।
प्रश्न 25.
विलयन रन्ध्र किसे कहते हैं?
उत्तर:
चूना पत्थर की चट्टानों के तल पर घुलन क्रिया द्वारा निर्मित छोटे व मध्यम आकार के घोल गर्त विलय होने पर विलयन रन्ध्र कहलाते हैं।
प्रश्न 26.
अरेत या तीक्ष्ण कटक किसे कहते हैं?
उत्तर:
सर्क के दोनों तरफ की दीवारें जब लगातार अपरदन से कंधी या आरी के रूप में परिवर्तित हो जाती हैं तो उसे अरेत या तीक्ष्ण कटक कहते हैं।
प्रश्न 27.
अन्तस्थ हिमोढ़ किसे कहते हैं?
उत्तर:
हिमनद के अन्तिम भाग में मलबे के जमाव के फलस्वरूप निर्मित लम्बी कटकें अन्तस्थ हिमोढ़ कहलाती
प्रश्न 28.
अपतट रोधिका किसे कहते हैं?
उत्तर:
समुद्री तट पर तट के समानान्तर पाई जाने वाली रेत और शिंगिल की कटक को अपतट रोधिका के नाम से जाना जाता है।
प्रश्न 29.
पेडीमेण्ट क्या होते हैं?
उत्तर:
मरुस्थलों में पर्वतों के पाद पर मलबे रहित अथवा मलबे सहित मंद ढाल वाले चट्टानी तल पेडीमेण्ट कहलाते हैं।
प्रश्न 30.
प्लाया झीलें क्या होती हैं?
उत्तर:
मरुस्थलों में पर्याप्त जल उपलब्ध होने पर समतल मैदान उथले जलक्षेत्र में बदल जाते हैं। यह उथली जल की झीलें ही प्लाया कहलाती हैं।
प्रश्न 31.
अपवाहन गर्त किसे कहते हैं?
उत्तर:
पवनों के एक ही दिशा में स्थायी प्रवाह से चट्टानों के अपक्षय जनित पदार्थ या असंगठित मिट्टी के अपवाहन से निर्मित उथले गर्त अपवाहन गर्त कहलाते हैं।
प्रश्न 32.
बरखान किसे कहते हैं?
उत्तर:
उष्ण-शुष्क मरुस्थलों में नवचन्द्राकार बालू के टिब्बे जिनकी भुजाएँ पवनों की दिशा में निकली हुई होती हैं, बरखान कहलाते हैं।
प्रश्न 33.
सीप का चित्र बनाइये।
उत्तर:
प्रश्न 34.
ड्रमलिन स्थलाकृति किस कारक द्वारा निर्मित होती है?
उत्तर:
ड्रमलिन स्थलाकृति हिमनद के निक्षेप कार्य द्वारा निर्मित होती है।
प्रश्न 35.
इंसेलबर्ग किन क्षेत्रों में बनते हैं।
उत्तर:
इंसेलबर्ग मरुस्थलीय क्षेत्रों में बनते हैं
प्रश्न 36.
भूमिगत जल द्वारा निर्मित दो अपरदनात्मक स्थलाकृतियों के नाम लिखिए।
उत्तर:
- घोल – रंध्र
- कंदराएं।
लघूत्तरात्मक प्रश्न
प्रश्न 1.
धरातल पर स्थल- रूपों का विकास किस प्रकार होता है?
उत्तर:
धरातल पर अनेक भू-आकृतिक कारकों के द्वारा किये गये अपरदन एवं निक्षेपण से धरातलीय स्वरूप प्रभावित होते हैं। प्रवाहित जल, भूमिगत जल, हिमनद, पवनें व तरंगें प्रबल अपरदनकारी व निक्षेपणकारी कारक हैं जिनके साथ अपक्षय व वृहत् क्षरण भी सहायक होकर भूतल को आकार देते हैं तथा परिवर्तित करते रहते हैं। ये भू- आकृतिक कारक लम्बे समय तक कार्य करते हुए क्रम्बद्ध परिवर्तन लाते हैं जिसके परिणामस्वरूप धरातल पर स्थलरूपों का विकास होता है।
प्रश्न 2.
बाढ़ के मैदानों की रचना किस प्रकार होती है? स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
बाढ़ के मैदानों की रचना : बाढ़ के मैदान नदी निक्षेपण के मुख्य स्थलरूप हैं। जब नदी तीव्र ढाल से मन्द ढाल में प्रवेश करती है तो बड़े आकार के पदार्थ पहले ही जमा हो जाते हैं। इसी प्रकार बारीक पदार्थ यथा रेत, चीका मिट्टी और गाद अपेक्षाकृत मंद ढालों पर बहने वाली कम वेग वाली जलधाराओं में मिलते हैं और जब बाढ़ आने पर पानी तटों पर फैलता है तो ये उस तल पर जमा हो जाते हैं। नदी निक्षेप से बने इस प्रकार के तल सक्रिय बाढ़ के मैदान कहलाते हैं। तलों से ऊँचाई पर बने तटों को असक्रिय बाढ़ के मैदान कहते हैं।
प्रश्न 3.
मोनाडनोक ( Monadanox) क्या हैं?
उत्तर:
स्थलगत प्रवाह (Overland flow) द्वारा अपरदन के परिणामस्वरूप अपवाह बेसिन के मध्य विभाजक जब पूर्णतः समतल हो जाते हैं, तब अंत में एक धीमे उच्चावच का निर्माण होता है, जिसमें यत्र-तत्र अवरोधी चट्टानों के अवशेष दिखाई देते हैं। चट्टानों के ये अवशेष ही ‘मोनाडनोक’ कहलाते हैं।
प्रश्न 4.
नदी अपरदन के द्वारा घाटियों का निर्माण किस प्रकार होता है?
उत्तर:
घाटियों का प्रारंभ तंग व छोटी-छोटी क्षुद्र सरिताओं से होता है। ये क्षुद्र सरिताएँ धीरे-धीरे लम्बी व विस्तृत अवनलिकाओं में विकसित हो जाती हैं। ये अवनलिकाएँ धीरे-धीरे और गहरी होती जाती हैं तथा चौड़ी व लंबी होकर घाटियों का रूप धारण कर लेती हैं।
प्रश्न 5.
नदी अपरदन द्वारा निर्मित स्थलरूपों के नाम लिखिए।
उत्तर:
नदी अपरदन द्वारा निम्न स्थलरूपों का निर्माण होता है
- घाटियाँ-
- V आकार की घाटी
- गॉर्ज
- कैनियन
- जलगर्तिका
- अवनमित कुण्ड
- अध: कर्तित विसर्प या गम्भीरीभूत विसर्प
- नदी वेदिकाएँ आदि।
प्रश्न 6.
नदी वेदिकाएँ क्या है?
उत्तर:
नदी वेदिकाएँ प्रारम्भिक बाढ़ मैदानों या पुरानी नदी घाटियों के तलों के चिह्न हैं। ये जलोढ़ रहित मूलाधार चट्टानों के धरातल या नदियों के तल है जो निक्षेपित जलोढ़ वेदिकाओं के रूप में पाए जाते हैं। नदी वेदिकाएँ मुख्यतः अपरदित स्थलरूप है क्योंकि ये नदी निक्षेपित बाद मैदानों के लंबवत् अपरदन से निर्मित होते हैं।
प्रश्न 7.
‘यू’ व ‘वी’ आकार की घाटियों में अन्तर स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
- ‘यू’ आकार की घाटियाँ हिमनद घाटियाँ होती हैं जबकि ‘वी’ आकार की घाटियाँ नदी घाटियाँ होती हैं।
- ‘यू’ आकार की घाटियाँ गर्त के समान होती हैं जिनके तल चौड़े व किनारे चिकने तथा तीव्र ढाल वाले होते हैं जबकि ‘वी’ आकार की घाटियाँ गहरी, संकरी तथा खड़े किनारों वाली होती हैं।
प्रश्न 8.
जलोढ़ पंख तथा जलवितरिकाओं को समझाइए।
उत्तर:
जलोढ़ पंख : साधारणतः पर्वतीय क्षेत्रों में बहने वाली नदियाँ भारी व स्थूल आकार के नद्य – भार को वहन करती हैं। जब ये बहती हुई गिरिपद व मंद ढाल के मैदानों में प्रवेश करती हैं तब ये भार वहन करने में असमर्थ होती हैं तो यह भार पंख के रूप में निक्षेपित हो जाता है, जिसे जलोढ़ पंख कहते हैं।
जल वितरिकाएँ : जलोढ़ पंखों में बहने वाली नदियाँ प्रायः अपने वास्तविक प्रवाह – मार्ग से बहुत दूर तक नहीं बहतीं बल्कि अपना मार्ग बदल लेती हैं और कई शाखाओं में बंट जाती हैं, जिन्हें जलवितरिकाएँ कहते हैं।
प्रश्न 9.
नदी विसर्प के निर्माण के कारणों को लिखिए।
उत्तर:
नदी विसर्प के निर्मित होने के प्रमुख कारण अग्र हैं-
- मंद ढाल के कारण नदी द्वारा क्षैतिज या पार्श्विक कटाव करने की प्रवृत्ति का होना।
- नदी के दोनों तटों पर अनियमित व असंगठित जमाव,
- प्रवाहित जल का कोरिऑलिस प्रभाव से विक्षेपण।
प्रश्न 10.
कार्स्ट स्थलाकृति क्या है? बताइये
जिससे जल के दबाव का नदी पाश्र्व पर बढ़ना।
उत्तर:
किसी भी चूना पत्थर या डोलोमाइट चट्टानों के क्षेत्र में भौम जल द्वारा घुलन प्रक्रिया और उसके निक्षेपण प्रक्रिया से बने स्थलरूप कार्स्ट स्थलाकृति कहलाते हैं। यह नाम एड्रियारिक सागर के साथ बाल्कन कार्स्ट क्षेत्र में उपस्थित चूना पत्थर चट्टानों पर विकसित स्थलाकृतियों के आधार पर किया गया है। कार्स्ट स्थलाकृतियाँ अपरदनात्मक तथा निक्षेपणात्मक दोनों प्रकार के कार्यों द्वारा बनती हैं।
प्रश्न 11.
घोल रंध्र (Sink holes) के विषय में लिखिए।
उत्तर:
घोल रंध्र एक प्रकार के छिद्र होते हैं, जो ऊपर से वृत्ताकार व नीचे कीप की आकृति के होते हैं। इनका क्षेत्रीय विस्तार कुछ वर्ग मीटर से हैक्टेयर तक तथा गहराई आधा मीटर से 30 मीटर या उससे अधिक होती है। यह कार्स्ट क्षेत्रों में बहुतायत से पाए जाते हैं। अधिकांश घोल रंध्र ऊपर से अपरदित पदार्थों के जमने से ढक जाते हैं और उथले जल कुंड जैसे दिखते हैं।
प्रश्न 12.
महाद्वीपीय हिमनद व पर्वतीय हिमनद में अंतर लिखिए।
उत्तर:
वृहत् समतल क्षेत्र पर हिम परत के रूप में फैले हिमनद महाद्वीपीय हिमनद या गिरिपद हिमनद कहलाते हैं, जबकि वे हिमनद, जो पर्वतीय ढालों में बहते हैं, पर्वतीय हिमनद या घाटी हिमनद कहलाते हैं।
प्रश्न 13.
एस्कर किस प्रकार बनते हैं? स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
एस्कर का निर्माण :
ग्रीष्म ऋतु में हिमनद के पिघलने से जल हिमतल के ऊपर से प्रवाहित होता है अथवा इसके किनारों से रिसता है अथवा बर्फ के छिद्रों से नीचे प्रवाहित होता है। यह जल हिमनद के नीचे एकत्रित होकर बर्फ के नीचे नदी की धारा के रूप में प्रवाहित होता है। इस प्रकार की नदियाँ नदी घाटी के ऊपर बर्फ के किनारों वाले तल में प्रवाहित होती हैं। यह जलधारा अपने साथ बड़े गोलाश्म, चट्टानी टुकड़े और छोटा चट्टानी मलबा बहाकर लाती है जो कि हिमनद के नीचे बर्फ की घाटी में जमा हो जाते हैं। ये बर्फ पिघलने के उपरान्त एक वक्राकार कटक के रूप में पाए जाते हैं जिनको एस्कर कहा जाता है।
प्रश्न 14.
ड्रमलिन क्या हैं? इनकी निर्माण प्रक्रिया बताइए।
उत्तर:
हिमनद मृत्तिका के अण्डाकार समतल कटकनुमा स्थलरूप जिसमें रेत व बजरी के ढेर होते हैं, ड्रमलिन कहलाते हैं। ड्रमलिन के लम्बे भाग हिमनद के प्रवाह की दिशा के समानान्तर होते हैं। ये एक किलोमीटर लम्बे व 30 मीटर तक ऊँचे होते हैं। ड्रमलिन का हिमनद सम्मुख भाग स्टॉस कहलाता है जो कि पृच्छ भागों की तुलना में तीखा तीव्र ढाल लिए होता है। ड्रमलिन का निर्माण हिमनद दरारों में भारी चट्टानी मलबे के भरने व उसके बर्फ के नीचे रहने से होता है। इसका अग्रभाग या स्टॉस भाग प्रवाहित हिमखण्ड के कारण तीव्र हो जाता है। ड्रमलिन हिमनद की प्रवाह दिशा को बताते हैं।
प्रश्न 15.
इंसेलबर्ग क्या हैं?
उत्तर:
इंसेलबर्ग-मरुस्थलीय क्षेत्रों में शैलों के अपक्षय तथा अपरदन के कारण कोमल शैल आसानी से कट जाती परन्तु कठोर शैल के अवशेष भाग ऊँचे-ऊँचे टीलों के रूप में बच जाते हैं। इस तरह के टीले ही ‘इंसेलबर्ग’ कहलाते। इस प्रकार इंसेलबर्ग पर्वतों के अवशिष्ट रूप होते हैं।
प्रश्न 16.
समुद्र तट पर बनी रोधिकाएँ, पुलिन, मैंग्रोव आदि हमारे लिए किस प्रकार उपयोगी हैं?
उत्तर:
समुद्र के अपतट पर बनी रोधिकाएँ तूफान व सुनामी लहरों के आक्रमण के समय सबसे पहले हमारा बचाव करती हैं क्योंकि ये रोधिकाएँ इन लहरों की प्रबलता को कम कर देती हैं। इसके बाद रोध, पुलिन, पुलिन स्तूप तथा मैंग्रोव वनस्पति हैं, जो इन लहरों की प्रबलता को झेलते हैं। अतः तटों के किनारे की इन भू-आकृतियों से छेड़छाड़ नहीं करनी चाहिए क्योंकि छेड़छाड़ करने से ये तटीय स्थलाकृतियाँ अपरदित हो जाएँगी। परिणामस्वरूप मानव व मानव बस्तियों को तूफान व सुनामी लहरों के सीधे व प्रथम प्रहार झेलने पड़ेंगे।
प्रश्न 17.
हवा का अपरदन कार्य किन-किन रूपों में संपन्न होता है? लिखिए।
उत्तर:
हवा का अपरदन कार्य निम्न तीन रूपों में सम्पन्न होता है।
- अपवाहन : इसमें हवा अपने साथ असंख्य असंगठित व ढीले कणों को उड़ा ले जाती है।
- सन्निघर्षण : इसमें हवा में उपस्थित असंगठित पदार्थ आपस में रगड़ खाकर व घिस कर छोटे होते रहते हैं।
- अपघर्षण : इसके द्वारा हवा में विद्यमान रेत व धूल के कण मार्ग में आने वाली चट्टानों को रेगमाल के समान रगड़ने का कार्य करते हैं।
प्रश्न 18.
स्टैलैक्टाइट एवं स्टैलैग्माइट का नामांकित चित्र बनाइये।
उत्तर:
प्रश्न 19.
बरखान को रेखाचित्र की सहायता से समझाइये।
उत्तर:
बरखान, मरुस्थल में पवनों के निक्षेपण कार्य से निर्मित स्थलरूप है। नव चण्द्राकार टिब्बे जिनकी भुजाएँ पवनों की दिशा में निकली होती हैं, बरखान कहलाते हैं।
निबन्धात्मक प्रश्न-
प्रश्न 1.
प्रवाहित जल से निर्मित अवस्थाओं के स्थलरूप सम्बन्धी विशेषताओं का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
प्रवाहित जल की अवस्थाएँ
प्रवाहित जल से निर्मित अवस्था की स्थलरूप सम्बन्धी विशेषताओं का विवेचन अग्र प्रकार से किया गया है-
1. युवावस्था:
इस अवस्था में नदियों की संख्या बहुत कम होती है। ये नदियाँ उथली V (वी) आकार की घाटी का निर्माण करती हैं, जिनमें बाढ़ के मैदानों की अनुपस्थिति या संकरे बाढ़ के मैदान मुख्य नदी के साथ-साथ पाए जाते हैं। जल विभाजक अत्यधिक चौड़े व समतल होते हैं, जिनमें दलदल व झीलें होती हैं। इन ऊँचे समतल भागों पर नदी विसर्प विकसित हो जाते हैं। ये विसर्प अन्ततः ऊँचे धरातलों में गभीरभूत हो जाते हैं अर्थात् विसर्प की तली में निम्न कटाव होता है और ये गहराई में बढ़ते हैं। जिन भागों में अनावरित कठोर चट्टानें पायी जाती हैं वहाँ जल-प्रपात व क्षिप्रिकाएँ निर्मित हो जाती हैं।
2. प्रौढ़ावस्था:
इस अवस्था में नदियों में सहायक नदियाँ आकर मिलती हैं तथा नदियों में जल की मात्रा भी अधिक होती है। नदी घाटियाँ गहरी एवं ‘वी’ (V) आकार की होती हैं। मुख्य नदी के व्यापक और विस्तृत होने से विस्तृत बाढ़ के मैदान पाए जाते हैं जिसमें घाटी के भीतर ही नदी विसर्प बनाती हुई प्रवाहित होती है। युवावस्था में निर्मित समतल, विस्तृत एवं अन्तर – नदीय दलदली क्षेत्र लुप्त हो जाते हैं और नदी विभाजक स्पष्ट होते हैं। इस अवस्था में जल-प्रपात व क्षिप्रिकाएँ लुप्त हो जाती हैं
3. वृद्धावस्था:
प्रवाहित जल की इस अवस्था में सहायक नदियों की संख्या कम होती है और ढाल मन्द होता है। नदियाँ स्वतन्त्र रूप से विस्तृत बाढ़ के मैदानों में प्रवाहित होती हुई नदी विसर्प, प्राकृतिक तटबन्ध, गोखुर झील आदि का निर्माण करती हैं। विभाजक विस्तृत तथा समतल होते हैं जिनमें झील व दलदल पाए जाते हैं। अधिकांश भू दृश्य समुद्रतल के बराबर या थोड़े ऊँचे होते हैं।
प्रश्न 2.
प्रवाहित जल के अपरदित स्थल – स्वरूपों का वर्णन कीजिए।
अथवा
नदी द्वारा अपरदित स्थलरूपों का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
प्रवाहित जल के अपरदित स्थल : स्वरूप प्रवाहित जल के अपरदन के द्वारा निम्नलिखित स्थल स्वरूपों का निर्माण होता है।
1. घाटियाँ:
घाटियों की शुरुआत तंग व छोटी-छोटी क्षुद्र साओं से होती है। ये क्षुद्र सरिताएँ धीरे-धीरे लम्बी व विस्तृत अवनालिकाओं में विकसित हो जाती हैं। धीरे-धीरे ये अवनालिकाएँ और गहरी होती जाती हैं जो कि चौड़ी व लम्बी होकर घाटियों का रूप धारण कर लेती हैं। लम्बाई, चौड़ाई एवं आकृति के आधार पर ये घाटियाँ V आकार की घाटी, गॉर्ज, कैनियन आदि स्वरूपों में वर्गीकृत की जा सकती हैं।
गॉर्ज एक गहरी संकड़ी घाटी होती है जिसके दोनों पार्श्व तीव्र ढाल वाले होते हैं। एक कैनियन के किनारे भी खड़े ढाल वाले होते हैं तथा यह गॉर्ज के समान ही गहरी होती है गॉर्ज की चौड़ाई इसके तल व ऊपरी भाग में लगभग एकसमान होती है। इसके विपरीत कैनियन का तल की अपेक्षा ऊपरी भाग अधिक चौड़ा होता है। कैनियन गॉर्ज का ही दूसरा रूप है। चट्टानों के प्रकार और संरचना पर घाटी का प्रकार निर्भर होता है। यथा कैनियन का निर्माण प्रायः अवसादी चट्टानों के क्षैतिज स्तरण में पाए जाने से होता है तथा गॉर्ज का निर्माण कठोर चट्टान में होता है।
2. जलगर्तिका तथा अवनमित कुण्ड:
पहाड़ी क्षेत्रों में नदी जल में मिले हुए कंकड़, पत्थर अपने अपरदन कार्यों द्वारा नदी तल में छोटे-छोटे गर्तों का निर्माण करते हैं, जिन्हें जलगर्तिका कहा जाता है। कालांतर में इन जलगर्तों के आपस में मिल जाने से नदी घाटी गहरी हो जाती है। जल प्रपात के तल में भी एक गहरी व बड़ी जल- गर्तिका का निर्माण होता है जो कि जल के ऊँचाई से गिरने व उनमें शिलाखण्डों के वृत्ताकार रूप में घूमने से निर्मित होती हैं। जल-प्रपातों के तल में निर्मित इस प्रकार के विशाल व गहरे कुण्ड अवनमित कुण्ड कहलाते हैं।
3. अधःकर्तित विसर्प या गभीरीभूत विसर्प:
क्षैतिज अपरदन अधिक होने के कारण मंद ढालों पर प्रवाहित होती हुई नदियाँ वक्रित होकर बहती हैं या नदी विसर्प निर्मित करती हैं। नदी का ढाल मन्द होने के कारण नदी विसर्प बाढ़ के मैदानों व डेल्टा मैदानों में पाए जाते हैं। कठोर चट्टानों में भी गहरे कटे हुए और विस्तृत विसर्प पाए जाते हैं। इन विसर्पों को अधःकर्तित विसर्प या गभीरीभूत विसर्प कहते हैं।
4. नदी वेदिकाएँ:
प्रारम्भिक बाढ़ के मैदानों या प्राचीन नदी घाटियों के तलों के चिह्न नदी वेदिकाएँ कहलाते हैं। ये जलोढ़ रहित मूलाधार चट्टानों के धरातल या नदियों के तल हैं जो कि निक्षेपित जलोढ़ – वेदिकाओं के रूप में पाए जाते हैं। नदी वेदिकाएँ मुख्य रूप से अपरदित स्थल रूप हैं क्योंकि ये नदी निक्षेपित बाढ़ के मैदानों के लम्बवत् अपरदन के परिणामस्वरूप बनते हैं। नदी वेदिकाएँ नदी के दोनों तरफ समान ऊँचाई वाली होती हैं तो इनके स्वरूप को ‘युग्म – वेदिकाएँ’ कहते हैं। जब नदी के केवल एक तट या पार्श्व पर वेदिकाएँ पायी जाती हैं तथा दूसरी तरफ इनकी अनुपस्थिति या दूसरे किनारे पर इनकी ऊँचाई पहले पार्श्व से बिल्कुल अलग होती है तो इस प्रकार की वेदिकाओं को अयुग्मित वेदिकाएँ कहते हैं। अयुग्मित वेदिकाएँ उन क्षेत्रों के धीमे भू-उत्थान की प्रतीक हैं।
प्रश्न 3.
प्रवाहित जल के निक्षेपित स्थलरूपों का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
प्रवाहित जल के निक्षेपित स्थलरूप:
नदी का वेग कम होने पर उसके भार वहन करने की क्षमता भी कम हो जाती है। परिणामस्वरूप नदी की तलहटी तथा किनारों पर – भार का निक्षेप जमाव होने लगता है। इन अवसादों के जमाव में नदी पहले मोटे पदार्थों तथा बाद में महीन पदार्थों का जमाव करती है। प्रवाहित जल के निक्षेपण की क्रिया के फलस्वरूप निम्नलिखित स्थलरूप निर्मित होते हैं-
1. जलोढ़ पंख :
जब नदी उच्च स्थलों से प्रवाहित होती हुई गिरिपद व मन्द ढाल के मैदानों में प्रवेश करती है तो जलोढ़ पंख का निर्माण होता है। आर्द्र प्रदेशों में जलोढ़ पंख प्रायः निम्न शंकु की आकृति तथा शीर्ष से पाद तक मंद ढाल वाले होते हैं। शुष्क व अर्द्ध-शुष्क जलवायवीय प्रदेशों में ये तीव्र ढाल वाले व उच्च शंकु बनाते हैं।
2. डेल्टा :
नदी अपने साथ बहाकर लाए पदार्थों को समुद्र के किनारे पर बिखेर देती है । यह भार जब समुद्र में दूर तक नहीं ले जाया जाता है तो यह तट के साथ ही शंकु के रूप में एक-साथ फैल जाता है।
जलोढ़ पंखों के विपरीत डेल्टा का जमाव व्यवस्थित होता है और इनका जलोढ़ स्तरित होता है। यथा मोटे पदार्थ तट के पास व बारीक कण यथा चीका मिट्टी, गाद आदि सागर में दूर तक जमा हो जाते हैं। जैसे-जैसे डेल्टा के आकार में वृद्धि होती जाती है नदी वितरिकाओं की लम्बाई भी बढ़ती जाती है और डेल्टा सागर के अन्दर तक बढ़ता है।
3. बाढ़ के मैदान, प्राकृतिक तटबन्ध तथा विसर्पी रोधिका:
जब नदी तीव्र ढाल से मन्द ढाल में प्रवेश करती है तो बड़े आकार के पदार्थ पहले ही जमा हो जाते हैं। इसी प्रकार बारीक पदार्थ यथा रेत, चीका मिट्टी और गाद आदि अपेक्षाकृत मंद ढालों पर प्रवाहित होने वाली कम वेग वाली जलधाराओं में मिलते हैं। बाढ़ आने के समय पानी तटों पर फैलता है तो ये उस तल पर जमा हो जाते हैं। नदी निक्षेप से बने इस प्रकार के तल सक्रिय बाढ़ के मैदान कहलाते हैं। तलों से ऊँचाई पर बने तटों को असक्रिय बाढ़ के मैदान कहते हैं। वे बाढ़ के मैदान जो कि डेल्टाओं में बनते हैं, डेल्टा मैदान कहलाते हैं।
प्राकृतिक तटबन्ध बड़ी नदियों के किनारे पर पाए जाते हैं। ये तटबन्ध नदियों के पावों में स्थूल पदार्थों के रैखिक, निम्न व समानान्तर कटक के रूप में पाए जाते हैं जो कि अनेक स्थानों पर कटे हुए होते हैं। बाढ़ के समय जब पानी तटों पर फैलता है तो पानी का वेग कम होने के कारण बड़े आकार का मलबा नदी के पार्श्व तटों पर लम्बे कटकों के रूप में जमा हो जाता है।
विसर्पी रोधिकाएँ या नदी रोधिकाएँ बड़ी नदी विसर्पों के उत्तल ढालों पर पायी जाती हैं। ये रोधिकाएँ प्रवाहित जल द्वारा लाए गए तलछटों के नदी किनारों पर निक्षेपण के कारण बनती हैं। इनकी चौड़ाई व परिच्छेदिका लगभग एक-समान होती है और इनके अवसाद मिश्रित आकार के होते हैं। नदी में इनका क्रम प्रवाह की मात्रा तथा तलछट की आपूर्ति पर निर्भर करता है। नदी अवरोधिकाएँ उसके उत्तल तट पर बनती हैं अतः नदी के अवतल तट पर अपरदन अधिक होता है।
4. नदी विसर्प :
बाढ़ व डेल्टाई मैदानों में विकसित लूप जैसे चैनल प्रारूप विसर्प कहलाते हैं। विसर्प एक स्थलरूप न होकर एक प्रकार का चैनल प्रारूप है। जब चैनल की ढाल प्रवणता अत्यधिक मन्द हो जाती है तो नदी में जल का प्रवाह धीमा हो जाता है तथा पार्श्वो का कटाव अधिक होता है। नदी के तटों पर होने वाली थोड़ी-सी अनियमितताओं के फलस्वरूप नदी मोड़ों के रूप में परिवर्तित हो जाती है। ये मोड़ नदी के अन्दरूनी भाग में जलोढ़ के जमाव के कारण गहरे हो जाते हैं और बाहरी किनारा अपरदित होता रहता है।
प्रायः बड़ी नदियों के विसर्प में उत्तल किनारों पर सक्रिय निक्षेपण होते हैं और अवतल किनारों पर अधोमुखी कटाव होते हैं। अवतल किनारे अधिक अपरदन से तीव्र कगार के रूप में परिवर्तित हो जाते हैं। उत्तल किनारों का ढाल मंद होता है और ये स्कन्ध ढाल कहलाते हैं। विसर्पों के गहरे छल्ले के आकार में विकसित हो जाने पर ये आन्तरिक भागों में अपरदन के कारण कट जाते हैं। इसके फलस्वरूप गोखुर झील का निर्माण होता है।
प्रश्न 4.
भौम जल के द्वारा निर्मित होने वाली अपरदित स्थलाकृतियों का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
भौम जल के द्वारा निर्मित अपरदित स्थलाकृतियाँ भौम जल के द्वारा निर्मित होने वाली अपरदित स्थलाकृतियाँ निम्न हैं-
1. विलयन रन्ध्र व घोल रन्ध्र:
चूना – पत्थर की चट्टानों के तल पर घुलन क्रिया के द्वारा निर्मित छोटे व मध्यम आकार वाले छोटे घोल गर्त विलय होने पर विलयन रन्ध्र कहलाते हैं। कार्स्ट क्षेत्रों में घोल रन्ध्र बहुतायत में मिलते हैं। घोल रन्ध्र एक प्रकार के छिद्र होते हैं जो कि ऊपर से वृत्ताकार व नीचे कीप की आकृति के होते हैं। यदि इन घोल रन्ध्रों के नीचे निर्मित कन्दराओं की छत ध्वस्त हो जाए तो ये बड़े छिद्र ‘ध्वस्त या निपात रन्ध्र’ कहलाते हैं। अधिकतर घोल रन्ध्र ऊपर से अपरदित पदार्थों के जमने से ढक जाते हैं और उथले जलकुण्ड के समान दिखते हैं। ध्वस्त घोल रंध्र ‘डोलाइन’ भी कहलाते हैं।
2. घाटी रन्ध्र या युवाला :
सामान्यतः धरातलीय प्रवाहित जल घोल रन्ध्रों एवं विलयन रन्ध्रों से गुजरता हुआ अन्तभौमि नदी के रूप में विलीन हो जाता है एवं पुनः कुछ दूरी के उपरान्त किसी कन्दरा से भूमिगत नदी के रूप में निकल आता है। जब घोल रन्ध्र व डोलाइन इन कन्दराओं की छत के गिरने से या पदार्थों के स्खलन के द्वारा आपस में मिल बन जाती हैं जिनको घाटी रन्ध्र या युवाला कहते हैं
3. लैपीज :
धीरे – धीरे चूनायुक्त चट्टानों के अधिकांश भाग जब गर्तों व खाइयों में समाहित हो जाते हैं तब सम्पूर्ण क्षेत्र में अत्यधिक, अनियमित, पतले व नुकीले कटक आदि रह जाते हैं, जो लैपीज कहलाते हैं।
4. कन्दराएँ : ऐसे प्रदेश जहाँ चट्टानों के एकांतर संस्तर हों और इनके बीच में यदि चूना पत्थर व डोलोमाइट चट्टानें हों या सघन चूना पत्थर की चट्टानों के संस्तर हों तो वहाँ प्रमुख रूप से कन्दराओं का निर्माण होता है। जल – दरारों व संधियों से रिसकर शैल संस्तरण के साथ क्षैतिज अवस्था में प्रवाहित होता है। इसी तल संस्तरण के सहारे चूना चट्टानें घुलती हैं और लम्बे एवं तंग विस्तृत रिक्त स्थान बनते हैं जिनको कन्दरा कहते हैं। प्रायः कन्दराओं का एक खुला मुख होता है जिससे कन्दरा सरिताएँ बाहर निकलती हैं। दोनों खुले सिरे वाली कंदरायें ‘सुरंग’ कहलाती हैं।
प्रश्न 5.
भौम जल द्वारा निर्मित निक्षेपणात्मक स्थलरूपों का वर्णन करो।
उत्तर:
भौम जल के द्वारा निर्मित होने वाली निक्षेपणात्मक स्थलाकृतियाँ निम्न हैं-
1. स्टैलेक्टाइट व स्टैलेग्माइट :
भूमिगत जल द्वारा घुलित चूना पत्थर के कन्दराओं की छत से धरातल पर टपकने से ‘स्टैलेक्टाइट’ का निर्माण होता है। स्टैलेक्टाइट विभिन्न मोटाइयों के लटकते हुए हिमस्तम्भ के समान होते हैं। प्रायः ये आधार या कन्दरा की छत के पास मोटे होते हैं और अन्त के छोर पर पतले होते जाते हैं। ये अनेक आकारों में दिखलाई देते हैं। स्टैलेग्माइट कन्दराओं के फर्श से ऊपर की ओर बढ़ते हैं। स्टैलेग्माइट कन्दराओं की छत पर टपकने वाले चूना मिश्रित जल से बनते हैं या स्टैलेक्टाइट के ठीक नीचे पतले पाइप की आकृति में निर्मित होते हैं।
2. स्तम्भ :
स्टैलैग्माइट एक स्तम्भ के आकार में चपटी तश्तरीनुमा या समतल अथवा क्रेटरनुमा गड्ढे के आकार में विकसित हो जाते हैं। विभिन्न मोटाई वाले स्टैलैग्माइट तथा स्टैलैक्टाइट के मिलने के फलस्वरूप स्तम्भ और कन्दरा स्तम्भ का निर्माण होता है।
प्रश्न 6.
हिमनद द्वारा निर्मित अपरदित स्थलाकृतियों का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
हिमनद द्वारा निर्मित अपरदित स्थलाकृतियाँ हिमनद के अपरदनात्मक कार्यों के फलस्वरूप निम्नलिखित स्थलाकृतियाँ निर्मित होती हैं-
1. सर्क:
अधिकतर सर्क हिमनदं घाटियों के शीर्ष पर पाए जाते हैं। इन क्षेत्रों में हिम, पर्वतीय क्षेत्रों से नीचे की तरफ आते हुए सर्क को काटती है। सर्क गहरे, लम्बे व चौड़े गर्त होते हैं जिनकी दीवार तीव्र ढाल वाली सीधी या अवतल होती है। हिमनद के पिघलने पर जल से भरी झील भी प्रायः इन गर्तों में दिखलाई देतीं है। यह सर्क झील या टार्न झील कहलाती है। आपस में मिले हुए दो या दो से अधिक सर्क सीढ़ीनुमा क्रम में दिखलाई देते हैं।
2. हार्न या गिरिशृंग:
सर्क के शीर्ष पर अपरदन होने से हार्न बनते हैं। जब तीन या अधिक विकर्णित हिमनद अपने शीर्षों की ओर लगातार अपरदन करते हैं, तो उनके तल आपस में मिल जाते हैं, जिससे एक तीव्र किनारों वाली नुकीली चोटी निर्मित होती है जिसे हार्न कहते हैं।
3. अरेत या तीक्ष्ण कटक:
लगातार अपरदन होने से सर्क के दोनों तरफ की दीवारें तंग हो जाती हैं और इसका आकार कंघी या आरी के समान कटकों के रूप में हो जाता है जिसे ‘अरेत या तीक्ष्ण कटक’ कहते हैं। इनका ऊपरी भाग नुकीला
तथा बाह्य आकार टेढ़ा-मेढ़ा होता है। इन कटकों पर चढ़ना प्रायः असम्भव होता है।
4. हिमनद घाटी या गर्त :
हिमानीकृत घाटियाँ गर्त के समान होती हैं जो कि आकार में अंग्रेजी के अक्षर ‘यू’ के समान होती हैं। इनके तल चौड़े व किनारे चिकने तथा तीव्र ढाल वाले होते हैं। घाटी में मलबा बिखरा हुआ अथवा दलदली रूप में दिखलाई देता है। चट्टानी धरातल पर झील भी उभरी होती है अथवा ये झीलें घाटी में उपस्थित हिमोढ़ मलबे से निर्मित होती हैं
5. लटकती घाटी : मुख्य हिमनदी में मिलने वाली सहायक हिमनदी जिस घाटी में होकर बहती है, वह घाटी हिम के पिघल जाने पर मुख्य हिमनदी की घाटी में लटकती हुई प्रतीत होती हैं । इसे ही ‘लटकती घाटी’ कहते हैं।
6. फियोर्ड : बहुत गहरी हिमनद गर्तें, जिनमें समुद्री जल भर जाता है तथा जो समुद्री तट रेखा पर होती हैं, उन्हें फियोर्ड कहते हैं।
प्रश्न 7.
हिमनद निक्षेपण से निर्मित स्थलाकृतियों का वर्णन करो।
उत्तर:
हिमनद के निक्षेपण द्वारा निर्मित स्थलाकृतियाँ
हिमनद के निक्षेपणात्मक कार्यों के फलस्वरूप निम्नलिखित स्थलाकृतियों का निर्माण होता है-
1. हिमोढ़ : हिमनद टिल या गोलाश्मी मृत्तिका के जमाव की लम्बी कटकें हिमोढ़ कहलाती हैं। हिमोढ़ निम्न प्रकार के होते हैं—
- पार्श्विक हिमोढ़ (Lateral Moraines): हिमनद के किनारों या पार्श्वो पर एक पंक्तिबद्ध रूप में जमा होने वाले पदार्थों को पार्श्विक हिमोढ़ कहते हैं।
- अंतस्थ हिमोढ़ (Terminal Moraines): जब हिमनद पिघलने लगते हैं, तो उनके अग्रवर्ती भाग में हिमोढ़ अर्द्ध-चंद्राकाररूप में जमा होने लगते हैं, जिन्हें अंतस्थ हिमोढ़ कहते हैं।
- मध्यस्थ हिमोढ़ (Medial Moraines): जब दो हिमानियाँ मिलती हैं, तो उन हिमानियों के पार्श्व, जो परस्पर मिल जाते हैं, उन किनारों पर जमा होने वाला हिमोढ़ ‘मध्यस्थ हिमोढ़’ कहलाता है।
- तलस्थ (Ground) हिमोढ़ – घाटी हिमनद के तेजी से पिघलने पर घाटी तल पर हिमनद, टिल ( Till) को एक परत के रूप में अव्यवस्थित रूप से छोड़ देते हैं। ऐसे अव्यवस्थित व भिन्न मोटाई के निक्षेप तलीय या तलस्थ हिमोढ़ कहलाते हैं।
2. एस्कर :
ग्रीष्म ऋतु में हिमनद के पिघलने से प्राप्त जलधाराएँ अपने साथ बड़े गोलाश्म, चट्टानी टुकड़े और छोटा चट्टानी मलबा बहाकर लाती हैं, जिनके निक्षेप से लंबे, संकरे तथा तीव्र ढाल वाली सर्पिलाकार आकृति का निर्माण होता है। यह आकृति ही एस्कर या मृदा कटक कहलाती है।
3. हिमानी धौत मैदान :
हिमानी गिरिपद के मैदानों अथवा महाद्वीपीय हिमनदों से दूर हिमानी के जलोढ़ निक्षेपों, यथा— बजरी, रेत, चीका मिट्टी एवं मृत्तिका से हिमानी धौत मैदान (Outwash plains) निर्मित होते हैं।
4. ड्रमलिन :
हिमनद मृत्तिका के अण्डाकार समतल कटकनुमा स्थलरूप जिसमें रेत व बजरी के ढेर होते हैं, ड्रमलिन कहलाते हैं। इनकी लम्बाई 1 किलोमीटर तथा ऊँचाई 30 मीटर तक होती है। ड्रमलिन का हिमनद सम्मुख भाग ‘स्टॉस’ कहलाता है। यह पृच्छ भागों की तुलना में तीखे तीव्र ढाल वाला होता है। ड्रमलिन का निर्माण हिमनद दरारों में भारी चट्टानी मलबे के भरने व उसके बर्फ के नीचे रहने से होता है। इसका अग्र भाग या स्टॉस भाग प्रवाहित हिमखण्ड के कारण तीव्र हो जाता है। ड्रमलिन हिमनद प्रवाह की दिशा को बताते हैं।
प्रश्न 8.
तरंग व धाराओं के अपरदन से निर्मित स्थलाकृतियों का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
तरंग व धाराओं के द्वारा निर्मित अपरदित स्थलरूप : तरंग व धाराओं के अपरदन्यत्मक कार्यों के फलस्वरूप निम्नलिखित स्थलाकृतियाँ निर्मित होती हैं-
1. भृगु (Cliff):
ऊँचे तटवर्ती क्षेत्रों में सागरीय अपरदन के कारण ढाल तीव्र हो जाता है। इस खड़े ढाल पर सागरीय तरंगें अपने प्रहार द्वारा निचले भाग में धीरे-धीरे खाँचे या दाँतों का निर्माण कर देती हैं। खाँचों का विस्तार तट की तरफ अधिक होने से ऊपर का भाग लटकता हुआ दिखलाई देता है और अन्त में आधारहीन होकर गिरता रहता है तथा तट की तरफ खिसकता जाता है। इस प्रकार तटों पर खड़े ढालों का निर्माण होता है जिनको तटीय भृगु कहा जाता है।
2. वेदिकाएँ :
भृगु की तलहटी पर एक मंद ढाल वाला या समतल प्लेटफार्म होता है। जब ये प्लेटफार्म तरंग की औसत ऊँचाई से अधिक ऊँचाई पर मिलते हैं तब ये तरंग घर्षित वेदिकाएँ कहलाते हैं।
3. कन्दराएँ:
भृगु की कठोर चट्टानों के विरुद्ध जब तरंगें टकराती हैं तो भृगु के आधार पर रिक्त स्थान बनाती हैं और इसे गहराई तक खोखला करती जाती हैं। इसके फलस्वरूप समुद्री कन्दराएँ निर्मित होती हैं। इन कन्दराओं की छत ध्वस्त होने से समुद्री भृगु स्थल की तरफ हटते हैं।
4. समुद्री स्टैक : भृगु या क्लिफ के निवर्तन से चट्टानों के कुछ अवशेष तटों पर अलग-थलग छूट जाते हैं। इस प्रकार की अलग-थलग प्रतिरोधी चट्टानें जो कि कभी भृगु के भाग थे, समुद्री स्टैक कहलाती हैं। अन्य स्थलरूपों के समान समुद्री स्टैक भी अस्थायी स्थलाकृतियाँ हैं जो कि तरंग अपरदन के द्वारा समुद्री पहाड़ियों व भृगु के समान धीरे- धीरे तंग समुद्री मैदानों में परिवर्तित हो जाती हैं।
प्रश्न 9.
तरंग व धाराओं के निक्षेपण से निर्मित स्थलाकृतियों का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
तरंग व धाराओं के द्वारा निर्मित निक्षेपणात्मक स्थलरूप तरंग व धाराओं के निक्षेपणात्मक कार्यों के फलस्वरूप निम्नलिखित स्थलाकृतियाँ निर्मित होती हैं-
1. पुलिन (Beaches):
पुलिन की रचना सागर तथा स्थल दोनों से ही प्राप्त पदार्थों से होती है। अधिकांश पदार्थ नदी द्वारा भू-स्खलन, भृगु के अपक्षय द्वारा स्थलजात तथा कुछ मात्रा में सागर से भी प्राप्त होता है। अपरदित पदार्थ धीरे-धीरे तट के निकट जमा हो जाता है जिसके फलस्वरूप तट का यह भाग उथला होता जाता है। जलमग्न तट का यही उथला भाग पुलिन कहलाता है। इस प्रकार पुलिन का निर्माण सागरीय तट के किनारे मलबे के निक्षेपण से होता है पुलिन अस्थाई स्थलाकृतियाँ हैं। अधिकतर पुलिन रेत के आकार के छोटे कणों से बने होते हैं। शिंगिल पुलिन में अत्यधिक छोटी गुटिकाएँ तथा गोलाश्म होते हैं।
2. टिब्बे (Dunes):
पुलिन के ठीक पीछे पुलिन तल से उठाई गई रेत के जमाव से निर्मित होने वाली स्थलाकृति टिब्बे कहलाती है। तटरेखा के समानान्तर लम्बाई में कटकों के रूप में निर्मित रेत के टिब्बे निम्न तलछटी तटों पर प्राय: देखे जाते हैं।
3. रोधिका (Bars):
समुद्री अपतट पर तट के समान्तर पाई जाने वाली रेत और शिंगिल की कटक को अपतट रोधिका कहा जाता है।
4. रोध-रोधिका (Barrier bar):
ऐसी अपतटीय रोधिका, जो रेत के अधिक निक्षेपण से जल के ऊपर दिखाई देती है, रोध-रोधिका कहलाती है।
5. स्पिट (Spit):
अपतटीय रोध व रोधिकाएँ प्रायः या तो खाड़ी के प्रदेश पर या नदियों के मुहानों के सम्मुख बनती हैं। जब इन रोधिकाओं का एक सिरा खाड़ी से शीर्ष स्थल से जुड़ जाता है तो इन्हें स्पिट कहते हैं। शीर्ष स्थल से एक सिरा जुड़ने पर भी स्पिट का विकास होता है।
6. लैगून (Lagoon):
रोधिकाएँ, रोध व स्पिट धीरे – धीरे खाड़ी के मुख पर बढ़ते रहते हैं जिससे खाड़ी का समुद्र में खुलने वाला द्वार तंग हो जाता है जिससे कालान्तर में खाड़ी एक लैगून में परिवर्तित हो जाती है। लैगून भी धीरे-धीरे स्थल से लाए गये तलछटों से या पुलिन से वायु द्वारा लाए गये तलछट से एक चौड़े व विस्तृत तटीय मैदान में विकसित हो जाते हैं।
प्रश्न 10.
पवनों के द्वारा निर्मित अपरदनात्मक स्थलाकृतियों का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
पवनों के द्वारा निर्मित अपरदनात्मक स्थलाकृतियाँ : पवनों के अपरदनात्मक कार्यों के परिणामस्वरूप निम्नलिखित स्थलाकृतियाँ निर्मित होती हैं-
1. पेडीमेण्ट:
पर्वतों के पाद पर मलबे रहित अथवा मलबे सहित मन्द ढाल वाले चट्टानी तल पेडीमेण्ट कहलाते हैं। पेडीमेण्ट का निर्माण पर्वतीय अग्रभाग के अपरदन मुख्यतः सरिता के क्षैतिज अपरदन व चादर बाढ़ दोनों के संयुक्त अपरदन से होता है।
2. इन्सेलबर्ग :
मरुस्थलीय भागों में अपरदन भू-संहति के तीव्र ढाल वाले कोर के साथ-साथ या विवर्तनिकी द्वारा नियन्त्रित कटावों के तीव्र मंद ढाल वाले पार्श्व पर शुरू होता है। जब एक बार तीव्र मंद ढाल के
साथ पेडीमेण्ट का निर्माण हो जाता है, जिसके पीछे एक भृगु या मुक्त पार्श्व होता है तो कटाव के कारण मंद ढाल तथा मुक्त पार्श्व पीछे हटने लगता है। अपरदन की इस पद्धति को पृष्ठक्षरण के द्वारा की गई ढाल की ‘समानान्तर निवर्तन क्रिया’ कहते हैं। अतः समानान्तर ढाल निवर्तन के द्वारा पर्वतों के अग्रभाग को अपरदित करते हुए पेडीमेण्ट आगे बढ़ते हैं तथा पर्वत घिसते हुए पीछे हटते हैं और धीरे-धीरे पर्वतों का अपरदन हो जाता है। परिणामस्वरूप पर्वतों के अवशिष्ट भाग ऊँचे-ऊँचे टीलों के समान दिखाई देते हैं, जिन्हें ‘इन्सेलबर्ग’ कहा जाता है।
3. पेडीप्लेन /पदस्थली :
जब मरुस्थलीय भागों में एक उच्च धरातल, आकृति विहीन मैदान में परिवर्तित हो जाता है, तो उसे पेडीप्लेन या पदस्थली कहते हैं
4. प्लाया-:
पर्वतों व पहाड़ियों से घिरे बेसिनों में अपवाह मुख्यतः बेसिन के मध्य में होता है तथा बेसिन के किनारों से लगातार लाए हुए अवसाद जमाव के कारण बेसिन के मध्य में लगभग समतल मैदान की रचना हो जाती है। पर्याप्त जल उपलब्ध होने पर यह मैदान ही उथले जलक्षेत्र में बदल जाता है। इस प्रकार की उथली जल झीलें ही प्लाया कहलाती हैं।
5. कल्लर भूमि / क्षारीय क्षेत्र :
प्लाया में वाष्पीकरण के कारण जल अल्प समय के लिए ही रहता है, जिससे प्लाया में लवणों के समृद्ध जमाव पाए जाते हैं। लवणों से भरे हुए प्लाया मैदान कल्लर भूमि या क्षारीय क्षेत्र कहलाते हैं।
6. अपवाहन गर्त तथा गुहा :
पवनों के एक ही दिशा में स्थायी प्रवाह से चट्टानों के अपक्षय जनित पदार्थ असंगठित मिट्टी का अपवाहन होता है। परिणामस्वरूप उथले गर्त बनते हैं, जो ‘अपवाहन गर्त’ कहलाते हैं। अपवाहन प्रक्रिया से चट्टानी धरातल पर छोटे गड्ढे या गुहिकाएँ भी बनती हैं। तीव्र वेग पवनों के साथ उड़ने वाले धूल-कण अपघर्षण से चट्टानी तल पर उथले गर्त बनाते हैं जिन्हें ‘वात गर्त’ कहा जाता है। जब ये वात गर्त गहरे और विस्तृत हो जाते हैं तो गुहा के नाम से जाने जाते हैं।
7. छत्रक, टेबल तथा पीठिका शैल :
मरुस्थलीय भागों में अधिकांश चट्टानें पवन अपवाहन व अपघर्षण के द्वारा शीघ्रता से कट जाती हैं और कुछ प्रतिरोधी चट्टानों के घिसे हुए अवशेष जिनके आधार पतले व ऊपरी भाग विस्तृत और गोल, टोपी के आकार के होते हैं, छत्रक (mushroom rock) के आकार में पाए जाते हैं। कभी-कभी प्रतिरोधी चट्टानों का ऊपरी हिस्सा मेज के समान विस्तृत होता है और अवशेष भेड़ की पीठ के समान होता है, इसे पीठिका या मेष शिला कहा है।
प्रश्न 11.
पवनों के निक्षेपण द्वारा निर्मित स्थलाकृतियों का वर्णन कीजिए। पवनों के द्वारा निर्मित निक्षेपणात्मक स्थलाकृतियाँ
उत्तर:
पवन एक छटाई करने वाला कारक है अर्थात् पवन के द्वारा बारीक रेत का परिवहन अधिक ऊँचाई व अधिक दूरी तक होता है। पवनों के वेग के अनुरूप मोटे आकार के कण धरातल के साथ घर्षण करते हुए चलते हैं और आपस में टकराने से अन्य कणों को ढीला कर देते हैं जिसे साल्टेशन कहते हैं। रेत की आपूर्ति व स्थायी पवन दिशा के आधार पर शुष्क प्रदेशों में पवनों के द्वारा अग्रलिखित स्थलरूपों का विकास होता है-
(1) बालू टिब्बे :
पवन द्वारा रेत या बालू के निक्षेप से निर्मित टिब्बे या स्तूप ‘बालुका स्तूप या बालू टिब्बे’ कहलाते हैं। ये उष्ण मरुस्थल वन के निर्माण के लिए उपयुक्त स्थान हैं। इनके निर्माण के लिए अवरोध का होना भी अतिआवश्यक है। बालू-टिब्बे विभिन्न प्रकार के होते हैं, यथा
- बरखान: नव चन्द्राकार बालू के टिब्बे जिनकी भुजाएँ पवनों की दिशा में निकली होती हैं, बरखान कहलाते हैं।
- परवलयिक बालुका: वि-टिब्बे जब वायु की प्रवाहित दिशा के विपरीत बालू/रेत का जमाव होता है, तो उसे परवलयिक बालुका टिब्बे कहते हैं। जहाँ रेतीले क्षेत्र में आंशिक रूप से वनस्पति भी पाई जाती है वहाँ परवलयिक बालुका टिब्बों का निर्माण होता है।
- सीफ : सीफ बरखान के समान ही होते हैं। सीफ बालू के टिब्बों में केवल एक ही भुजा होती है। ऐसा पवनों की दिशा में बदलाव के कारण होता है।
- अनुदैर्घ्य टिब्बे : जब रेत की आपूर्ति कम तथा पवनों की दिशा स्थायी रहती है तो अनुदैर्घ्य टिब्बे निर्मित होते हैं। ये अत्यधिक लम्बाई व कम ऊँचाई के लम्बायमान कटक होते हैं।
- अनुप्रस्थ टिब्बे : अनुप्रस्थ टिब्बे प्रचलित पवनों की दिशा के समकोण पर बनते हैं। इनकी लम्बाई अधिक व ऊँचाई कम होती है।
(2) उर्मिकाएँ:
मरुस्थलीय भागों में जब पवन प्रवाह की गति कुछ धीमी रहती है तो बारीक रेत लहरनुमा आकृतियों का विकास करती है जिन्हें उर्मिकाएँ कहते हैं।