Understanding the question and answering patterns through NCERT Class 11 Geography Question Answer in Hindi Chapter 2 संरचना तथा भू-आकृति विज्ञान will prepare you exam-ready.
Class 11 Geography Chapter 2 in Hindi Question Answer संरचना तथा भू-आकृति विज्ञान
अन्य महत्त्वपूर्ण प्रश्न
बहुविकल्पीय प्रश्न
1. निम्न में से कौनसी नदी रिफ्ट घाटी में प्रवाहित नहीं होती है—
(अ) नर्मदा
(ब) तापी
(स) चम्बल
(द) महानदी
उत्तर:
(स) चम्बल
2. निम्न में से कौनसी अवशिष्ट पर्वत श्रेणी नहीं है-
(अ) कराकोरम
(ब) नल्लामाला
(स) जावादी
(द) वेलीकोण्डा
उत्तर:
(अ) कराकोरम
3. सिंधु – गंगा – ब्रह्मपुत्र मैदान में जलोढ़ की औसत गहराई है —
(अ) 1200 से 2200 मीटर
(ब) 1000 से 2000 मीटर
(सं) 400 से 800 मीटर
(द) 500 से 1000 मीटर
उत्तर:
(ब) 1000 से 2000 मीटर
4. डल झील निम्न में से कहाँ पर स्थित है-
(अ) उत्तरी-पश्चिमी हिमालय
(ब) उत्तराखण्ड हिमालय
(स) अरुणाचल हिमालय
(द) सिक्किम हिमालय
उत्तर:
(अ) उत्तरी-पश्चिमी हिमालय
5. बानिहाल दर्रा जिस पर्वत श्रेणी में स्थित है, वह है-
(अ) वृहत् हिमालय
(ब) पीर पंजाल श्रेणी
(स) जास्कर श्रेणी
(द) लद्दाख श्रेणी
उत्तर:
(ब) पीर पंजाल श्रेणी
6. निम्नलिखित में से कौनसा धार्मिक स्थान उत्तरी-पश्चिमी हिमालय में स्थित नहीं है—
(अ) बद्रीनाथ
(ब) अमरनाथ गुफा
(स) चरार-ए-शरीफ
(द) वैष्णो देवी
उत्तर:
(अ) बद्रीनाथ
7. श्रीनगर जिस नदी पर स्थित है, वह है-
(अ) तिस्ता
(ब) चिनाब
(स) झेलम
(द) सिंधु
उत्तर:
(स) झेलम
8. कश्मीर या उत्तरी-पश्चिमी हिमालय में स्थित तीर्थस्थल है-
(अ) वैष्णो देवी
(ब) अमरनाथ गुफा
(स) चरार-ए-शरीफ
(द) उपरोक्त सभी
उत्तर:
(द) उपरोक्त सभी
9. निम्न में कौनसी नदी सिन्धु की सहायक नदी नहीं है?
(अ) रावी
(ब) घाघरा
(स) व्यास
(द) सतलुज
उत्तर:
(ब) घाघरा
10. अरुणाचल हिमालय में बसी जनजाति है-
(अ) मोनपा
(ब) अबोर
(स) मिशमी
(द) उपरोक्त सभी
उत्तर:
(द) उपरोक्त सभी
11. निम्न में चम्बल की सहायक नदी है-
(अ) बनास
(ब) लूनी
(स) रावी
(द) घाघरा
उत्तर:
(अ) बनास
12. ‘नेहरू ट्राफी वलामकाली’ (नौका दौड़) का आयोजन किस राज्य में किया जाता है?
(अ) राजस्थान
(ब) मिजोरम
(स) केरल
(द) कर्नाटक
उत्तर:
(स) केरल
13. बैरन आइलैण्ड नामक देश का एकमात्र जीवंत ज्वालामुखी स्थित है-
(अ) अंडमान द्वीप समूह पर
(ब) निकोबार द्वीप समूह पर
(स) लक्षद्वीप पर
(द) मिनिकॉय द्वीप पर
उत्तर:
(ब) निकोबार द्वीप समूह पर
14. नदी की प्रौढ़ावस्था में बनने वाली स्थलाकृति है—
(अ) बालू रोधिका
(ब) विसर्प
(स) गोखरू झील
(द) उपरोक्त सभी
उत्तर:
(द) उपरोक्त सभी
15. अरुणाचल हिमालय की नदी है-
(अ) कामेंग
(स) दिहांग
(ब) सुबनसरी
(द) उपयुक्त सभी
उत्तर:
(द) उपयुक्त सभी
रिक्त स्थान वाले प्रश्न
नीचे दिए गए प्रश्नों में रिक्त स्थानों की पूर्ति कीजिए-
1. सेलम व चेनाब नदियाँ _____ नदी की सहायक नदियाँ हैं। (गंगा/सिंधु)
2. श्रीनगर में _____ झील एक रोचक प्राकृतिक स्थल हैं। (डल/चिल्का)
3. मणिपुर घाटी के मध्य एक झील स्थित है जिसे _____ झील कहा जाता है। (लोकताक/वूलर)
4. प्रायद्वीपीय पठार की सबसे ऊँची चोटी _____ है। (डोडाबेटा / अनाईमुडी)
5. _____ के द्वीपों में लक्षद्वीप और मिनिकॉय शामिल हैं। ( बंगाल की खाड़ी/अरब सागर )
6. बैरन आइलैण्ड नामक भारत का एकमात्र जीवंत ज्वालामुखी है जो _____ द्वीपसमूह में स्थित है। (अंडमान/निकोबार)
उत्तर:
1. सेलम व चेनाब नदियाँ सिन्धु नदी की सहायक नदियाँ हैं।
2. श्रीनगर में ड. झील एक रोचक प्राकृतिक स्थल हैं।
3. मणिपुर घाटी के मध्य एक झील स्थित है जिसे लोकताक झील कहा जाता है।
4. प्रायद्वीपीय पठार की सबसे ऊँची चोटी अनाईमुडी है।
5. अरब सागर के द्वीपों में लक्षद्वीप और मिनिकॉय शामिल हैं।
6. बैरन आइलैण्ड नामक भारत का एकमात्र जीवंत ज्वालामुखी है जो निकोबार द्वीपसमूह में स्थित है।
सत्य / असत्य वाले प्रश्न
नीचे दिए गए कथनों में से सत्य / असत्य कथन छाँटिए-
1. कश्मीर हिमालय करेवा के लिए प्रसिद्ध है जहाँ जाफरान की खेती की जाती है।
2. श्रीनगर चेनाब नदी के किनारे स्थित है।
3. यमुना एवं घाघरा गंगा की सहायक नदियाँ हैं।
4. बराक मणिपुर और मिजोरम की एक मुख्य नदी है।
5. प्रायद्वीपीय पठार की दूसरी सबसे ऊँची चोटी डोडाबेटा नीलगिरी पहाड़ियों में स्थित है।
6. कांडला एक कृत्रिम बन्दरगाह है।
उत्तर:
1. कश्मीर हिमालय करेवा के लिए प्रसिद्ध है जहाँ जाफरान की खेती की जाती है। (सत्य)
2. श्रीनगर चेनाब नदी के किनारे स्थित है। (असत्य)
3. यमुना एवं घाघरा गंगा की सहायक नदियाँ हैं। (सत्य)
4. बराक मणिपुर और मिजोरम की एक मुख्य नदी है। (सत्य)
5. प्रायद्वीपीय पठार की दूसरी सबसे ऊँची चोटी डोडाबेटा नीलगिरी पहाड़ियों में स्थित है। (सत्य)
6. कांडला एक कृत्रिम बन्दरगाह है। (असत्य)
मिलान करने वाले प्रश्न-
निम्न को सुमेलित कीजिए-
1. लवण जल झीलें | (अ) काली |
2. सिन्धु की सहायक नदियाँ | (ब) पाँगाँग सो तथा सोमुरीरी |
3. घाघरा की सहायक नदी | (स) महानदी तथा गोदावरी |
4. दक्कन के पठार की नदियाँ | (द) लोकताक |
5. मणिपुर घाटी स्थित झील | (य) व्यास तथा सतलुल |
उत्तर:
1. लवण जल झीलें | (अ) काली |
2. सिन्धु की सहायक नदियाँ | (ब) पाँगाँग सो तथा सोमुरीरी |
3. घाघरा की सहायक नदी | (स) महानदी तथा गोदावरी |
4. दक्कन के पठार की नदियाँ | (द) लोकताक |
5. मणिपुर घाटी स्थित झील | (य) व्यास तथा सतलुल |
अतिलघूत्तरात्मक प्रश्न
प्रश्न 1.
वर्तमान अनुमान के अनुसार पृथ्वी की आयु कितनी है?
उत्तर:
लगभग 460 करोड़ वर्ष।
प्रश्न 2.
उस प्लेट का नाम बताइये जो कि इण्डियन प्लेट का हिस्सा थी।
उत्तर:
आस्ट्रेलियन प्लेट
प्रश्न 3.
हिमालय के किस भाग में जाफरान की कृषि की जाती है?
उत्तर:
कश्मीर हिमालय क्षेत्र में जाफरान की कृषि की जाती है। यहाँ मिलने वाले करेवा इसके लिए प्रसिद्ध।
प्रश्न 4.
कश्मीर हिमालय क्षेत्र में अवस्थित प्रसिद्ध तीर्थ स्थलों के नाम बताइये।
उत्तर:
वैष्णो देवी, अमरनाथ गुफा तथा चरार-ए-शरीफ यहाँ के प्रमुख तीर्थ स्थल हैं।
प्रश्न 5.
दून से क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
हिमालय पर्वतीय क्षेत्रों में अनुदैर्घ्य विस्तार में मिलने वाली समतल संरचनात्मक घाटियों को दून कहा जाता है जैसे देहरादून।
प्रश्न 6.
बृहद् हिमालय की घाटियों में स्थित चरागाहों के रूप में प्रयुक्त घास के मैदानों को किस नाम से जाना जाता है?
उत्तर:
इन घास के मैदानों को बुग्याल कहा जाता है।
प्रश्न 7.
दार्जिलिंग तथा सिक्किम हिमालय कौनसी फसल की कृषि के लिए प्रसिद्ध हैं?
उत्तर:
चाय के बागानों के लिए।
प्रश्न 8.
दार्जिलिंग तथा सिक्किम हिमालय शेष हिमालय से किस प्रकार भिन्न हैं? बताइये।
उत्तर:
दार्जिलिंग तथा सिक्किम हिमालय क्षेत्र में दुआर स्थलाकृतियाँ पाई जाती हैं जो कि शेष हिमालय में कहीं नहीं पाई जाती हैं।
प्रश्न 9.
भूवैज्ञानिक संरचना एवं शैल समूह की भिन्नता के आधार पर भारत के भूवैज्ञानिक खण्डों के नाम बताइए।
उत्तर:
- प्रायद्वीपीय खण्ड
- हिमालय और अन्य अतिरिक्त प्रायद्वीपीय पर्वतमालाएँ
- सिंधु – गंगा – ब्रह्मपुत्र मैदान।
प्रश्न 10.
प्रायद्वीपीय खण्ड की प्रमुख अवशिष्ट पहाड़ियों के नाम बताइए।
उत्तर:
प्रायद्वीपीय खण्ड में मुख्य रूप से अरावली, नल्लामाला, जावादी, वेलीकोण्डा, पालकोण्डा, महेन्द्रगिरी आदि अवशिष्ट पहाड़ियाँ शामिल हैं।
प्रश्न 11.
प्रायद्वीप की रचना कौन – कौनसी शैलों से हुई है?
उत्तर:
प्रायद्वीप की रचना मुख्य रूप से प्राचीन नाइस एवं ग्रेनाइट चट्टानों से हुई है।
प्रश्न 12.
गंगा – सिंधु – ब्रह्मपुत्र मैदान का निर्माण कितने वर्ष पूर्व हुआ?
उत्तर:
गंगा – सिंधु-ब्रह्मपुत्र के मैदान का निर्माण लगभग 6.4 करोड़ वर्ष पूर्व हुआ था।
प्रश्न 13.
किसी स्थान की भूआकृति किन प्रक्रियाओं का परिणाम है?
उत्तर:
किसी स्थान की भूआकृति उसकी संरचना, प्रक्रिया और विकास की अवस्था का परिणाम है।
प्रश्न 14.
भारत के प्रमुख भूआकृतिक खण्डों के नाम बताइए।
उत्तर:
- उत्तर तथा उत्तरी-पूर्वी पर्वतमाला,
- उत्तरी भारत का मैदान,
- प्रायद्वीपीय पठार,
- भारतीय मरुस्थल,
- तटीय मैदान तथा
- द्वीप समूह।
प्रश्न 15.
वृहत् हिमालय शृंखला की लम्बाई-चौड़ाई बताइए।
उत्तर:
वृहत् हिमालय शृंखला की पूर्व – पश्चिम में लम्बाई लगभग 2,500 किलोमीटर तथा उत्तर से दक्षिण तक चौड़ाई 160 से 400 किलोमीटर है।
प्रश्न 16.
हिमालय के उपखण्डों के नाम बताइए।
उत्तर:
- कश्मीर या उत्तरी-पश्चिमी हिमालय
- हिमाचल और उत्तराखण्ड हिमालय
- दार्जिलिंग और सिक्किम हिमालय
- अरुणाचल हिमालय
- पूर्वी पहाड़ियाँ और पर्वत।
प्रश्न 17.
कश्मीर हिमालय की प्रमुख पर्वत श्रेणियों के नाम बताइए।
उत्तर:
कश्मीर हिमालय में अनेक पर्वत श्रेणियाँ हैं; उनमें कराकोरम, लद्दाख, जास्कर और पीरपंजाल प्रमुख पर्वत श्रेणियाँ हैं।
प्रश्न 18.
कश्मीर घाटी और डल झील कहाँ अवस्थित है?
उत्तर:
वृहत् हिमालय और पीरपंजाल के मध्य विश्व प्रसिद्ध कश्मीर घाटी और डल झील अवस्थित है।
प्रश्न 19.
कश्मीर हिमालय के प्रमुख दर्रों के नाम बताइए।
उत्तर:
कश्मीर हिमालय के अन्तर्गत वृहत् हिमालय में जोजीला, जास्कर श्रेणी में फोटुला, पीरपंजाल में बानिहाल तथा लद्दाख श्रेणी में खर्दुगला जैसे महत्त्वपूर्ण दरें स्थित हैं।
प्रश्न 20.
कश्मीर हिमालय में स्थित अलवण जल तथा लवण जल की झीलों के नाम बताइए।
उत्तर:
कश्मीर हिमालय में अलवण जल की झीलें यथा डल और वूलर तथा लवण जल की झीलें यथा- पांगांग सो और सोमुरीरी स्थित हैं।
प्रश्न 21.
हिमाचल और उत्तराखण्ड हिमालय खण्ड में स्थित महत्त्वपूर्ण पर्वत नगरों के नाम बताइए।
उत्तर:
धर्मशाला, मसूरी, कासौली, अल्मोड़ा, लैंसडाउन तथा रानीखेत हिमाचल और उत्तराखण्ड हिमालय खण्ड में स्थित महत्त्वपूर्ण पर्वत नगर हैं।
प्रश्न 22.
हिमाचल और उत्तराखण्ड हिमालय में स्थित प्रमुख धार्मिक स्थलों के नाम बताइए।
उत्तर:
गंगोत्री, यमुनोत्री, केदारनाथ, बद्रीनाथ और हेमकुण्ड साहिब हिमाचल और उत्तराखण्ड हिमालय में स्थित प्रमुख धार्मिक स्थल हैं।
प्रश्न 23.
अरुणाचल हिमालय में जल विद्युत् उत्पादन की क्षमता अधिक क्यों पाई जाती है?
उत्तर:
क्योंकि इस क्षेत्र में अनेक बारहमासी नदियाँ हैं तथा ये बहुत से जल-प्रपात बनाती हैं।
प्रश्न 24.
मेघालय के पठार के प्रमुख विभाग बताइए।
उत्तर:
- गारो पहाड़ियाँ,
- खासी पहाड़ियाँ,
- जयन्तिया पहाड़ियाँ।
प्रश्न 25.
मालाबार तट की विशेष स्थलाकृति क्या है व इसका उपयोग बताइए।
उत्तर:
मालाबार तट की विशेष स्थलाकृति ‘ कयाल’ है, जिसे मछली पकड़ने और अन्तःस्थलीय नौकायन के लिए उपयोग में लिया जाता है।
प्रश्न 26.
भारत के जीवन्त ज्वालामुखी का नाम बताइये। यह कहाँ स्थित है?
उत्तर:
भारत का एकमात्र जीवन्त ज्वालामुखी बैरन आइलैण्ड है जो कि निकोबार द्वीप समूह में स्थित है।
प्रश्न 27.
केरल में प्रतिवर्ष नेहरू ट्राफी वलामकाली (नौका दौड़) का आयोजन कहाँ किया जाता है?
उत्तर:
में प्रतिवर्ष नेहरू ट्राफी वलामकाली (नौका दौड़) का आयोजन पुन्नामदा कयाल में किया जाता है।
प्रश्न 28.
पूर्वी तटीय मैदान में पत्तन और पोताश्रय कम क्यों हैं? बताइये।
उत्तर:
उभरा तट होने के कारण पूर्वी तटीय मैदान में पत्तन और पोताश्रय कम हैं।
प्रश्न 29.
मणिपुर घाटी के मध्य स्थित झील का नाम बताइये।
उत्तर:
लोकताक झील।
प्रश्न 30.
प्रायद्वीपीय पठार की सबसे ऊँची चोटी कौनसी है? यह कितनी ऊँची है?
उत्तर:
अनाईमुडी। यह 2695 मीटर ऊँची है।
प्रश्न 31.
खादर किसे कहते हैं?
उत्तर:
उत्तरी भारत के मैदान में तराई से दक्षिण में नये जलोढ़ से बना मैदान ‘ खादर’ कहलाता है।
प्रश्न 32.
बांगर क्या है?
उत्तर:
उत्तरी भारत के मैदान में तराई से दक्षिण में पुराने जलोढ़ से बने मैदान को ‘बांगर’ कहते हैं।
प्रश्न 33.
भारत में पूर्वी घाट व पश्चिमी घाट का मिलन बिन्दु किन पहाड़ियों में है?
उत्तर:
नीलगिरी पहाड़ियों में।
प्रश्न 34.
चम्बल की सहायक नदी का नाम बताइए।
उत्तर:
बनास।
प्रश्न 35.
झूम कृषि को अन्य किस नाम से जाना जाता है?
उत्तर:
झूम कृषि को स्थानान्तरी कृषि या स्लैश या बर्न कृषि भी कहा जाता है।
लघूत्तरात्मक प्रश्न
प्रश्न 1.
भारतीय उपमहाद्वीप की वर्तमान भू-संरचना व इसके भू-आकृतिक प्रक्रम किस प्रकार अस्तित्व में आए हैं? बताइए।
उत्तर:
भारतीय उपमहाद्वीप की वर्तमान भू-वैज्ञानिक संरचना व इसके क्रियाशील भू-आकृतिक प्रक्रम मुख्य रूप से अन्तर्जनित व बहिर्जनित बलों व प्लेट के क्षैतिज संचरण की अन्तःक्रिया के परिणामस्वरूप अस्तित्व में आए
हैं।
प्रश्न 2.
हिमालय और अन्य अतिरिक्त प्रायद्वीपीय पर्वतमालाओं की भू-वैज्ञानिक संरचना किस प्रकार की है तथा यह किनसे प्रभावित है?
उत्तर:
कठोर एवं स्थिर प्रायद्वीपीय खण्ड के विपरीत हिमालय और अतिरिक्त प्रायद्वीपीय पर्वतमालाओं की भू-वैज्ञानिक संरचना तरुण, दुर्बल और लचीली है। वर्तमान समय में भी ये पर्वत बहिर्जनित तथा अन्तर्जनित बलों की अन्तःक्रियाओं से प्रभावित हैं। इसके फलस्वरूप इनमें वलन, भ्रंश और क्षेप बनते हैं।
प्रश्न 3.
प्रायद्वीपीय खण्ड का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
प्रायद्वीपीय खण्ड की उत्तरी सीमा कटी-फटी है जो कि कच्छ के रन से शुरू होकर अरावली पहाड़ियों के पश्चिम से गुजरती हुई दिल्ली तक और फिर यमुना व गंगा नदी के समानान्तर राजमहल की पहाड़ियों व गंगा के डेल्टा तक जाती है। उत्तर-पूर्व में कार्बी ऐंगलांग व मेघालय का पठार तथा पश्चिम में राजस्थान भी इसी खण्ड के विस्तार हैं। पश्चिमी बंगाल में मालदा भ्रंश उत्तरी-पूर्वी भाग में स्थित मेघालय कार्बी ऐंगलांग पठार को छोटा के पठार से अलग करता है। राजस्थान में यह प्रायद्वीपीय खण्ड मरुस्थल एवं मरुस्थल के समान स्थलाकृतियों से ढका हुआ है।
प्रश्न 4.
दार्जिलिंग और सिक्किम हिमालय में चाय के बागान क्यों पाए जाते हैं?
उत्तर:
चाय के पौधों के विकास के लिए आवश्यक प्राकृतिक दशाओं यथा – मध्यम ढाल, गहरी व जीवाश्मयुक्त मिट्टी, सम्पूर्ण वर्ष वर्षा होना तथा मन्द शीत ऋतु के कारण यहाँ चाय के बागान पाए जाते हैं। शेष हिमालय से यह क्षेत्र अलग है क्योंकि यहाँ दुआर स्थलाकृतियाँ पाई जाती हैं जिनका उपयोग चाय के बागान लगाने के लिए किया जाता है।
प्रश्न 5.
भारतीय मरुस्थल शुष्क और वनस्पति रहित क्षेत्र क्यों है? वर्णन कीजिए।
उत्तर:
विशाल भारतीय मरुस्थल अरावली पहाड़ियों से उत्तर-पूर्व में स्थित है। यह एक ऊबड़-खाबड़ धरातल वाला क्षेत्र है जिस पर अनेक अनुदैर्ध्य रेतीले टीले और बरखान पाए जाते हैं। यहाँ पर वार्षिक वर्षा 150 मिलीमीटर से कम होती है जिसके फलस्वरूप यह एक शुष्क और वनस्पति रहित क्षेत्र है। इन्हीं स्थलाकृतिक गुणों के कारण इसे मरुस्थली के नाम से जाना जाता है।
प्रश्न 6.
भाभर क्षेत्र से क्या आशय है? स्पष्ट कीजिये।
उत्तर:
भाभर क्षेत्र:
शिवालिक गिरिपाद के समानान्तर फैली हुई 8 से 10 किलोमीटर चौड़ाई वाली पट्टी को भाभर के नाम से जाना जाता है। इसके परिणामस्वरूप हिमालय पर्वत श्रेणियों से बाहर निकलती नदियाँ यहाँ पर भारी जल भार यथा बड़े शैल और गोलाश्म जमा कर देती हैं और कभी – कभी स्वयं इसी में लुप्त हो जाती हैं।
प्रश्न 7.
तराई क्षेत्र से क्या आशय है? स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
तराई क्षेत्र:
उत्तरी भारत के मैदानी भाग में भांभर क्षेत्र के दक्षिण में तराई क्षेत्र है जिसकी चौड़ाई 10 से 20 किलोमीटर है। भांभर क्षेत्र में लुप्त हुई नदियाँ इस प्रदेश में धरातल पर निकल कर प्रकट होती हैं, क्योंकि इनकी निश्चित वांहिकाएँ नहीं होती हैं। इन नदियों का कोई निश्चित प्रवाह क्षेत्र न होने के कारण यहाँ एक अनूप या दलदली क्षेत्र बन जाता है जिसे तराई क्षेत्र के नाम से जाना जाता है । यह क्षेत्र प्राकृतिक वनस्पति से ढका रहता है और विभिन्न प्रकार के वन्य प्राणियों का घर है।
प्रश्न 8.
प्रायद्वीपीय पठार पर धरातलीय विविधताएँ क्यों पाई जाती हैं? स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
प्रायद्वीपीय पठार के अनेक भू-भाग भू-उत्थान व निमज्जन, भ्रंश तथा विभंग निर्माण प्रक्रिया के अनेक पुनरावर्ती दौर से गुजरे हैं। अपनी पुनरावर्ती भूकम्पीय क्रियाओं की क्षेत्रीय विभिन्नता के कारण ही प्रायद्वीपीय पठार पर धरातलीय विविधताएँ पाई जाती हैं। इस भू-भाग की मुख्य प्राकृतिक स्थलाकृतियों में रॉक, ब्लॉक पर्वत, भ्रंश घाटियाँ, पर्वत स्कन्ध, नग्न चट्टान संरचना, टेकरी पहाड़ी श्रृंखलाएँ तथा क्वार्टजाइट भित्तियाँ शामिल हैं। ये प्राकृतिक जल संग्रह के स्थल हैं।
प्रश्न 9.
हिमालय और अन्य अतिरिक्त – प्रायद्वीपीय पर्वतमालाओं की संरचना का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
भारतीय उपमहाद्वीप के कठोर एवं स्थिर प्रायद्वीपीय खण्ड के विपरीत हिमालय और अतिरिक्त- प्रायद्वीपीय पर्वतमालाओं की भूवैज्ञानिक संरचना तरुण, दुर्बल और लचीली है। ये पर्वत वर्तमान समय में भी बहिर्जनिक तथा अन्तर्जनित बलों की अन्तः क्रियाओं से प्रभावित हैं। इसके परिणामस्वरूप इनमें वलन, भ्रंश और क्षेप बनते हैं। इन पर्वतों की उत्पत्ति विवर्तनिक हलचलों से जुड़ी हुई है। तीव्र गति से बहने वाली नदियों से अपरदित ये पर्वत अभी भी युवा अवस्था में हैं। गार्ज, ‘वी’ (V) आकार की घाटियाँ, क्षिप्रिकाएँ व जल प्रपात आदि इसके प्रमाण हैं।
प्रश्न 10.
अरब सागर के द्वीपों की संरचना का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
अरब सागर के द्वीप :
अरब सागर के द्वीपों में लक्षद्वीप और मिनीकॉय शामिल हैं। ये द्वीप 8° उत्तर से 12° उत्तर और 71° पूर्व से 74° पूर्व के मध्य फैले हुए हैं। ये केरल तट से 280 किलोमीटर से 480 किलोमीटर की दूरी पर स्थित हैं। सम्पूर्ण द्वीप समूह प्रवाल निक्षेप से बना हुआ है। यहाँ पर 36 द्वीप हैं जिनमें 11 द्वीपों पर मानव आवास हैं। मिनीकॉय सबसे बड़ा द्वीप है जो कि 453 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में विस्तृत है। पूरा द्वीप समूह 11° चैनल के द्वारा दो भागों में विभक्त किया गया है। उत्तर में अमीनी द्वीप तथा दक्षिण में कनानोरे द्वीप स्थित है। इस द्वीप समूह पर तूफान निर्मित पुलिन पाए जाते हैं जिस पर अबद्ध गुटिकाएँ, शिंगिल, गोलाश्मिकाएँ तथा गोलाश्म पूर्वी समुद्र तट पर पाए जाते हैं।
प्रश्न 11.
बंगाल की खाड़ी के द्वीप समूह का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
बंगाल की खाड़ी के द्वीप :
बंगाल की खाड़ी के द्वीप समूह में लगभग 572 द्वीप हैं। ये द्वीप 6° उत्तर से 14° उत्तर और 92° पूर्व से 94° पूर्व में स्थित हैं। यहाँ के दो प्रमुख द्वीप समूह रीची द्वीप समूह और लबरीन्थ द्वीप समूह हैं। बंगाल की खाड़ी के द्वीपों को दो श्रेणियों यथा उत्तर में अण्डमान तथा दक्षिण में निकोबार द्वीप समूह हैं। बैरन आइलैण्ड भारत का एकमात्र जीवित ज्वालामुखी भी निकोबार द्वीप समूह में स्थित है। यह द्वीप असंगठित कंकर, पत्थरों और गोलाश्मों से बना हुआ है। पश्चिमी तट के साथ कुछ प्रवाल निक्षेप तथा खूबसूरत पुलिन पाए जाते हैं।
प्रश्न 12.
भाभर और तराई में अन्तर स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
भामर और तराई में अन्तर
भाभर | तराई |
(1) यह शिवालिक गिरिपाद के समानान्तर सिन्धु नदी से तीस्ता नदी तक विस्तृत है। | (1) यह भाभर प्रदेश के दक्षिण में उसके साथ-साथ फैला हुआ है। |
(2) इसकी चौड़ाई 8 से 10 किमी. है। | (2) इसकी चौड़ाई 10 से 20 किमी. है। |
(3) यहाँ पारगम्य चट्टानों के कारण अधिकांश नदियाँ भूमिगत होकर अदृश्य हो जाती हैं। | (3) भाभर प्रदेश की भूमिगत नदियाँ तराई में धरातल पर प्रकट हो जाती हैं। |
(4) यहाँ भारी पत्थर, कंकड़ व बजरी का जमाव मिलता है। | (4) यह अपेक्षाकृत बारीक कणों वाले जलोढ़ से निर्मित है तथा वनों से ढका हुआ प्रदेश है। |
(5) यह भूमि कृषि के लिए उपयुक्त नहीं है। | (5) यहाँ बहुत से तराई क्षेत्रों के वनों को साफ करके कृषि के योग्य बनाया गया है। |
प्रश्न 13.
खादर और बाँगर में अन्तर बतलाइये।
उत्तर:
खादर और बाँगर में अन्तर
खादर | बाँगर |
(1) यह नवीन जलोढ़ मिट्टी का बना हुआ निम्न प्रदेश है। | (1) यह पुरानी जलोढ़ मिट्टी का बना हुआ ऊँचा भाग है। |
(2) खादर क्षेत्र में प्रतिवर्ष बाढ़ आती है। | (2) बाँगर क्षेत्र में बाढ़ का जल नहीं पहुँच पाता है। |
(3) यह प्रदेश उपजाऊ मिट्टी से बना हुआ है। | (3) यह प्रदेश चूनायुक्त कंकड़ों से बना हुआ है। |
प्रश्न 14.
दार्जिलिंग एवं सिक्किम हिमालय क्षेत्र में चाय के बागान क्यों पाये जाते हैं?
उत्तर:
दार्जिलिंग एवं सिक्किम हिमालय क्षेत्र में चाय के पौधों के विकास के लिए आवश्यक अनुकूल प्राकृतिक दशाएँ पाई जाती हैं; जैसे – मध्यम ढाल, गहरी व जीवाश्म युक्त मिट्टी, वर्ष भर वर्षा होना तथा मंद शीत ऋतु। इसी कारण यहाँ चाय के बागान पाए जाते हैं।
प्रश्न 15.
पश्चिमी तटीय मैदान की संरचना एवं इस पर स्थित प्राकृतिक बन्दरगाहों के नाम बताइये।
उत्तर:
पश्चिमी तटीय मैदान :
पश्चिमी तटीय मैदान जलमग्न तटीय मैदानों का उत्कृष्ट उदाहरण है। ऐसा माना जाता है कि पौराणिक शहर द्वारका जो कि वर्तमान में पानी में डूबा हुआ है, वह किसी समय पश्चिमी तट पर मुख्य भूमि पर स्थित था। जलमग्न होने के कारण पश्चिमी तटीय मैदान एक संकीर्ण पट्टी मात्र है और पत्तनों एवं बन्दरगाहों के विकास के लिए प्राकृतिक परिस्थितियाँ प्रदान करता है। यहाँ पर स्थित प्राकृतिक बन्दरगाहों में कांडला, मडगांव, जे.एल.एन. नावहा शेवा, मर्मागाओ, मैंगलौर व कोचीन हैं।
प्रश्न 16.
पश्चिमी तटीय मैदान के प्रमुख उप-विभाग बताइयें।
उत्तर:
उत्तर में गुजरात तट से लेकर दक्षिण में केरल तट तक विस्तृत पश्चिमी तटीय मैदान को निम्नलिखित भागों में विभाजित किया जा सकता है; यथा
- गुजरात का कच्छ और काठियावाड़ तट
- महाराष्ट्र का कोंकण तट व गोवा तट
- कर्नाटक तथा केरल के क्रमशः मालाबार तट।
पश्चिमी तटीय मैदान मध्य में संकीर्ण है लेकिन उत्तर और दक्षिण में चौड़े हो जाते हैं । इस तटीय मैदान में प्रवाहित होने वाली नदियाँ डेल्टा नहीं बनाती हैं। मालाबार तट की विशेष स्थलाकृति ‘कयाल’ है जिसे मछली पकड़ने तथा अन्तःस्थलीय नौकायन के लिए उपयोग में लाया जाता है। यह पर्यटकों के लिए विशेष आकर्षण का केन्द्र है।
प्रश्न 17.
भारतीय मरुस्थल की संरचना का संक्षेप में उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
भारतीय मरुस्थल अरावली पहाड़ियों से उत्तर-पूर्व में स्थित यह एक ऊबड़-खाबड़ धरातल वाला भू- भाग है जिस पर अनेक अनुदैर्घ्य रेतीले टीले और बरखान पाए जाते हैं। इस भूभाग में वार्षिक वर्षा 150 मिलीमीटर से कम होती है। इसके फलस्वरूप यह एक शुष्क और वनस्पतिरहित क्षेत्र है। ऐसा माना जाता है कि मेसोजोइक काल में यह क्षेत्र समुद्र का भाग था। इसकी पुष्टि आकल में स्थित काष्ठ जीवाश्म पार्क में उपलब्ध प्रमाणों तथा जैसलमेर के निकट ब्रह्मसर के आसपास के समुद्री निक्षेपों से होती है। इस भूभाग की प्रमुख स्थलाकृतियाँ स्थानान्तरी रेतीले टीले, छत्रक चट्टानें और मरुद्यान हैं।
प्रश्न 18.
प्रायद्वीपीय पठार के उप-विभाग उत्तर-पूर्व के पठार का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
उत्तर-पूर्व का पठार- प्रायद्वीपीय पठार का ही एक विस्तारित भाग उत्तर-पूर्व का पठार है। ऐसा माना जाता है कि हिमालय की उत्पत्ति के समय इण्डियन प्लेट के उत्तर-पूर्व दिशा में खिसकने के कारण राजमहल पहाड़ियों और मेघालय के पठार के बीच भ्रंश घाटी बनने से यह अलग हो गया था। बाद में नदी द्वारा जमा किए जलोढ़ द्वारा इसे पाट दिया गया। वर्तमान में मेघालय और कार्बी ऐगलोंग पठार इसी कारण से मुख्य प्रायद्वीपीय पठार से अलग हैं। असम की कार्बी ऐंगलोंग पहाड़ियाँ भी इसी का विस्तार हैं। मेघालय के पठार में कोयला, लोहा, सिलीमेनाइट, चूने के पत्थर तथा यूरेनियम आदि खनिजों के भण्डार हैं।
प्रश्न 19.
दक्कन के पठार का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
दक्कन का पठार:
दक्कन के पठार के पश्चिम में पश्चिमी घाट, पूर्व में पूर्वी घाट और उत्तर में सतपुड़ा, मैकाल और महादेव पहाड़ियाँ हैं। पश्चिमी घाट की ऊँचाई 1500 मीटर है, जो कि उत्तर से दक्षिण दिशा में बढ़ती जाती है। प्रायद्वीपीय पठार की सबसे ऊँची चोटी अनाईमुडी है, जिसकी ऊँचाई 2695 मीटर है। यह पश्चिमी घाट की अनामलाई पहाड़ियों में स्थित है। दूसरी ऊँची चोटी डोडाबेटा है जो कि नीलगिरि की पहाड़ियों में है। अधिकांश प्रायद्वीपीय नदियों की उत्पत्ति पश्चिमी घाट से होती है। पूर्वी घाट महानदी, गोदावरी, कृष्णा और कावेरी नदियों के द्वारा अपरदित है। यहाँ की मुख्य श्रेणियाँ जावादी पहाड़ियाँ, पालकोण्डा श्रेणी, नल्लामाला पहाड़ियाँ और महेन्द्रगिरि पहाड़ियाँ हैं।
प्रश्न 20.
प्रायद्वीपीय पठार के उप-विभाग मध्य उच्च भूभाग का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
मध्य उच्च भूभाग :
प्रायद्वीपीय पठार के मध्य उच्च भूभाग की पश्चिम में अरावली पर्वत सीमा बनाते हैं। इसके दक्षिण में सतपुड़ा पर्वत उच्छिष्ट पठार की श्रेणियों से निर्मित है जिसकी समुद्र तल से ऊँचाई 600 से 900 मीटर है। ये दक्कन के पठार की उत्तरी सीमा का निर्धारण करते हैं। प्रायद्वीपीय पठार के इस भाग का विस्तार जैसलमेर तक है जहाँ यह अनुदैर्घ्य रेत के टिब्बों और चापाकार रेतीले टिब्बों से ढके हैं । यहाँ कायान्तरित चट्टानें यथा संगमरमर, स्लेट और नाइस पाई जाती हैं। समुद्र तल से मध्य उच्च भूभाग की ऊँचाई 700 से 1,000 मीटर के मध्य है और उत्तर तथा उत्तर-पूर्व दिशा में इसकी ऊँचाई कम होती चली जाती है। मध्य उच्च भूभाग का पूर्वी विस्तार राजमहल की पहाड़ियों तक है जिसके दक्षिण में स्थित छोटा नागपुर का पठार खनिज पदार्थों का विपुल भण्डार है।
प्रश्न 21.
कश्मीर या उत्तरी-पश्चिमी हिमालय का संक्षिप्त विवरण दीजिए।
उत्तर:
कश्मीर या उत्तरी-पश्चिमी हिमालय:
कराकोरम, लद्दाख, जास्कर और पीरपंजाल कश्मीर हिमालय की प्रमुख पर्वत श्रेणियाँ हैं। इसका उत्तरी-पूर्वी भाग वृहत् हिमालय और कराकोरम श्रेणियों के मध्य स्थित है, जो कि ठण्डा मरुस्थल है। वृहत् हिमालय और पीरपंजाल के बीच विश्व प्रसिद्ध कश्मीर घाटी और डल झील स्थित है। दक्षिणी एशिया की महत्त्वपूर्ण हिमानी नदियाँ बलटोरो और सियाचीन इसी प्रदेश में हैं। कश्मीर हिमालय करेवा के लिए भी प्रसिद्ध है जहाँ जाफरान की खेती की जाती है। यहाँ वृहत् हिमालय में जोजीला, पीरपंजाल में बानिहाल, जास्कर श्रेणी में फोटुला और लद्दाख श्रेणी में खर्दुगला जैसे महत्त्वपूर्ण दरें स्थित हैं।
प्रश्न 22.
हिमाचल और उत्तराखण्ड हिमालय का संक्षिप्त विवरण दीजिए।
उत्तर:
हिमाचल और उत्तराखण्ड हिमालय:
पश्चिम में रावी नदी और पूर्व में काली नदी के मध्य स्थित यह भाग दो मुख्य नदी तंत्रों यथा सिंधु और गंगा द्वारा अपवाहित है। इस प्रदेश के अन्दर प्रवाहित होने वाली नदियाँ रावी, व्यास, सतलज, यमुना और घाघरा हैं। हिमालय की तीनों मुख्य पर्वत शृंखलाएँ यथा वृहत् हिमालय, लघु हिमालय, शिवालिक श्रेणी इस प्रदेश में स्थित हैं। धर्मशाला, मसूरी, कासौली, अल्मोडा, लैंसडाउन और रानीखेत आदि पर्वतीय नगर इसी भाग में स्थित हैं। वृहत् हिमालय की घाटियों में खानाबदोश भोटिया प्रजाति के लोग रहते हैं। प्रसिद्ध फूलों की घाटी, गंगोत्री, यमुनोत्री, केदारनाथ, बद्रीनाथ और हेमकुण्ड साहिब आदि पर्वतीय तीर्थ-स्थान भी इसी क्षेत्र में स्थित हैं।
प्रश्न 23.
दार्जिलिंग और सिक्किम हिमालय का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
दार्जिलिंग और सिक्किम हिमालय:
दार्जिलिंग और सिक्किम हिमालय एक छोटा लेकिन हिमालय का बहुत महत्त्वपूर्ण भाग है। यहाँ तीव्र गति से प्रवाहित होने वाली तिस्ता नदी और कंचनजुंगा जैसी ऊँची चोटियाँ और गहरी घाटियाँ पाई जाती हैं। इन पर्वतों के ऊँचे शिखरों पर लेपचा जनजाति और दक्षिणी भाग में मिश्रित जनसंख्या जिसमें नेपाली, बंगाली और मध्य भारत की जनजातियाँ पाई जाती हैं। इस क्षेत्र की प्राकृतिक दशाओं यथा मध्यम ढाल, गहरी व जीवाश्मयुक्त मिट्टी, सम्पूर्ण वर्षभर वर्षा होना और मन्द ठण्डी ऋतु का फायदा उठाकर अंग्रेजों ने यहाँ चाय के बागान स्थापित किए।
प्रश्न 24.
अरुणाचल हिमालय का संक्षेप में वर्णन कीजिए।
उत्तर:
अरुणाचल हिमालय:
अरुणाचल हिमालय पर्वतीय क्षेत्र भूटान हिमालय से लेकर पूर्व में डिफू दर्रे तक विस्तृत है। दक्षिण – पूर्व से उत्तर-पूर्व की तरफ विस्तृत इस पर्वत श्रेणी की मुख्य चोटियों में कांगतु और नामचा बरुआ शामिल हैं। कामेंग, सुबरसरी, दिहांग, दिबांग और लोहित इस प्रदेश की प्रमुख नदियाँ हैं। वर्षभर प्रवाहित होने के कारण ये नदियाँ जल-प्रपात बनाती हैं जिससे जल विद्युत् की क्षमता अधिक है। इस क्षेत्र में मोनपा, डफ्फला, अबोर, मिशमी, निशी और नागा आदि जनजातियाँ निवास करती हैं। यह क्षेत्र जैव विविधता की दृष्टि से धनी है। ऊबड़-खाबड़ स्थलाकृति के कारण यहाँ परिवहन की सुविधा नाममात्र है।
निबन्धात्मक प्रश्न
प्रश्न 1.
भूवैज्ञानिक संरचना और शैल समूह की भिन्नता के आधार पर भारत को भूवैज्ञानिक खण्डों में विभाजित कीजिए।
उत्तर:
भारत के भूवैज्ञानिक खण्ड
भारतीय उपमहाद्वीप की वर्तमान भूवैज्ञानिक संरचना व इसके क्रियाशील भूआकृतिक प्रक्रम मुख्य रूप से अन्तर्जनित व बहिर्जनिक बलों व प्लेट के क्षैतिज संचरण की अन्तःक्रिया के परिणामस्वरूप अस्तित्व में आए हैं। भूवैज्ञानिक संरचना व शैल समूह की भिन्नता के आधार पर भौतिक लक्षणों पर आधारित निम्नलिखित तीन भूवैज्ञानिक खण्डों के अन्तर्गत विभाजित किया गया है-
(1) प्रायद्वीपीय खण्ड:
स्थिति एवं विस्तार:
प्रायद्वीपीय खण्ड की उत्तरी सीमा कटी-फटी है, जो कि कच्छ के रन से शुरू होकर अरावली की पहाड़ियों के पश्चिम से गुजरती हुई दिल्ली तक और फिर यमुना व गंगा नदी के समानान्तर राजमहल की पहाड़ियों व गंगा के डेल्टा तक जाती है। इसके अलावा उत्तर- – पूर्व में कार्बी ऐंगलांग व मेघालय का पठार तथा पश्चिम में राजस्थान का मरुस्थल भी इसी खण्ड का विस्तार है। पश्चिमी बंगाल में मालदा भ्रंश उत्तरी-पूर्वी भाग में स्थित मेघालय व कार्बी ऐंगलांग पठार को छोटा नागपुर पठार से अलग करता है। राजस्थान में यह प्रायद्वीपीय खण्ड मरुस्थल व मरुस्थल के समान स्थलाकृतियों से आवृत है।
संरचना:
प्रायद्वीपीय खण्ड मुख्य रूप से नाइस व ग्रेनाइट से बना हुआ है। कैम्ब्रियन कल्प से यह भूखण्ड एक कठोर खण्ड के रूप में खड़ा हुआ है। अपवाद स्वरूप इसका पश्चिमी तट समुद्र में डूबा होने और कुछ हिस्से विवर्तनिक क्रियाओं से परिवर्तित होने के उपरान्त भी इस भूखण्ड के वास्तविक आधार तल पर प्रभाव नहीं पड़ता है। इण्डो-आस्ट्रेलियन प्लेट का भाग होने के कारण यह ऊर्ध्वाधर हलचलों व खण्ड भ्रंश से प्रभावित है। नर्मदा, तापी और महानदी की रिफ्ट घाटियाँ और सतपुड़ा ब्लॉक पर्वत इसके उदाहरण हैं। प्रायद्वीप में मुख्य रूप से अवशिष्ट पहाड़ियाँ शामिल हैं। इनमें अरावली, नल्लामाला, जावादी, वेलीकोण्डा, पालकोण्डा श्रेणी और महेन्द्रगिरि पहाड़ियाँ आदि प्रमुख हैं। इस क्षेत्र की नदी घाटियाँ उथली होती हैं एवं उनकी प्रवणता कम होती है। पूर्व की तरफ प्रवाहित होने वाली अधिकतर नदियाँ बंगाल की खाड़ी में गिरने से पूर्व डेल्टा का निर्माण करती हैं। महानदी, गोदावरी और कृष्णा नदी के द्वारा निर्मित डेल्टा इसके उदाहरण हैं
(2) हिमालय और अन्य अतिरिक्त – प्रायद्वीपीय पर्वतमालाएँ:
भारत के भूवैज्ञानिक खण्डों के अन्तर्गत कठोर एवं स्थिर प्रायद्वीपीय खण्ड के विपरीत हिमालय और अतिरिक्त – प्रायद्वीपीय पर्वतमालाओं की भूवैज्ञानिक संरचना तरुण, दुर्बल और लचीली है। ये पर्वत वर्तमान समय में भी बहिर्जनिक तथा अन्तर्जनित बलों की अन्तःक्रियाओं से प्रभावित हैं। इसके फलस्वरूप इनमें वलन, भ्रंश और क्षेप निर्मित होते हैं। इन पर्वतों की उत्पत्ति विवर्तनिक हलचलों से जुड़ी है। तीव्र गति से प्रवाहित होने वाली नदियों से अपरदित ये पर्वत अभी भी युवा अवस्था में हैं। गार्ज, ‘वी’ (V) आकार की घाटियाँ, क्षिप्रिकाएँ व जलप्रपात आदि इसके प्रमाण हैं।
(3) सिंधु – गंगा – ब्रह्मपुत्र का मैदान:
भारत का तृतीय भूवैज्ञानिक खण्ड सिंधु गंगा और ब्रह्मपुत्र नदियों का मैदान है। मुख्य रूप से यह एक भू-अभिनति गर्त है जिसका निर्माण मुख्य रूप से हिमालय पर्वत श्रृंखला के निर्माण की प्रक्रिया के तृतीय चरण में लगभग 6.4 करोड़ वर्ष पूर्व हुआ था। उसी समय से इसे हिमालय और प्रायद्वीप से निकलने वाली नदियाँ अपने साथ बहाकर लाए हुए अवसादों से पाट रही हैं। इन मैदानों में जलोढ़ की औसत गहराई 1,000 से 2,000 मीटर तक पाई जाती है।
निष्कर्ष:
इस प्रकार उपर्युक्त विवेचन के आधार पर स्पष्ट होता है कि भारत के विभिन्न क्षेत्रों की भूवैज्ञानिक संरचना में महत्त्वपूर्ण अन्तर पाया जाता है। इसके फलस्वरूप दूसरे पक्ष यथा धरातल और भूआकृति पर भी व्यापक प्रभाव पड़ता है। भारतीय उपमहाद्वीप में भूवैज्ञानिक और भूआकृतिक प्रक्रियाओं का देश की भूआकृति एवं उच्चावच पर भी महत्त्वपूर्ण प्रभाव पड़ता है।
प्रश्न 2.
भूआकृति का अर्थ स्पष्ट करते हुए भारत को प्रमुख भूआकृतिक खण्डों में विभाजित कर उनका संक्षेप में विवरण दीजिए।
उत्तर:
भूआकृति का अर्थ:
किसी स्थान की भूआकृति उसकी संरचना, प्रक्रिया और विकास की अवस्था का परिणाम है। भारत में धरातलीय विभिन्नताएँ बहुत महत्त्वपूर्ण हैं। इसके उत्तर में एक बड़े क्षेत्र में ऊबड़-खाबड़ स्थलाकृति है। इसमें हिमालय पर्वत शृंखलाएँ हैं जिनमें अनेक चोटियाँ, सुन्दर घाटियाँ व महाखण्ड हैं। दक्षिण भारत एक स्थिर लेकिन कटा-फटा पठार है, जहाँ अपरदित चट्टान खण्ड और कगारों की बहुतायत है। उत्तर भारत का विशाल मैदान है।
भारत के प्रमुख भूआकृतिक खण्ड
मुख्य रूप से भारत को निम्नलिखित भूआकृतिक खण्डों के अन्तर्गत विभाजित किया गया है:
(1) उत्तर तथा उत्तरी-पूर्वी पर्वतमाला:
उत्तर तथा उत्तरी-पूर्वी पर्वतमाला में हिमालय पर्वत और उत्तरी-पूर्वी पहाड़ियाँ शामिल हैं। वृहत् हिमालय, पार हिमालय शृंखलाएँ, मध्य हिमालय और शिवालिक आदि हिमालय में समानान्तर पर्वत शृंखलाएँ हैं। भारत के उत्तरी-पश्चिमी भाग में हिमालय की ये श्रेणियाँ उत्तर-पश्चिम दिशा से दक्षिण-पूर्व दिशा की तरफ विस्तृत हैं। दार्जिलिंग और सिक्किम क्षेत्रों में ये श्रेणियाँ पूर्व-पश्चिम दिशा में फैली हुई हैं जबकि अरुणाचल प्रदेश में ये दक्षिण-पश्चिम से उत्तर-पश्चिम की तरफ घूम जाती हैं।
केन्द्रीय अक्षीय श्रेणी वृहत् हिमालय की पूर्व – पश्चिम में लम्बाई लगभग 2,500 किलोमीटर तथा उत्तर से दक्षिण में चौड़ाई 160 से 400 किलोमीटर है। हिमालय एक प्राकृतिक अवरोधक ही नहीं है, अपितु जलवायु और सांस्कृतिक विभाजक भी है। हिमालय पर्वतमाला में भी अनेक क्षेत्रीय विभिन्नताएँ पाई जाती हैं। उच्चावच, पर्वत श्रेणियों के संरेखण और अन्य भूआकृतियों के आधार पर हिमालय को निम्नलिखित उपखण्डों में विभाजित किया जा सकता है
- कश्मीर या उत्तरी-पश्चिमी हिमालय।
- हिमाचल और उत्तराखण्ड हिमालय।
- दार्जिलिंग और सिक्किम हिमालय।
- अरुणाचल हिमालय।
- पूर्वी पहाड़ियाँ और पर्वत।
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(2) उत्तरी भारत का मैदान:
उत्तरी भारत का मैदान सिन्धु, गंगा और ब्रह्मपुत्र नदियों द्वारा बहाकर लाए गए जलोढ़ निक्षेप से बना है। यह मैदान पूर्व से पश्चिम में 3,200 किलोमीटर लम्बा है। इसकी औसत चौड़ाई 150 से 300 किलोमीटर तथा जलोढ़ की अधिकतम गहराई 1,000 से 2,000 मीटर है। उत्तर से दक्षिण दिशा में इन मैदानों को तीन भागों यथा- भाभर, तराई और जलोढ़ मैदान के अन्तर्गत विभक्त किया जा सकता है
- भाभर :
शिवालिक गिरिपाद के समानान्तर 8 से 10 किलोमीटर की चौड़ाई की पतली पट्टी भाभर के नाम से जानी जाती है। इसके परिणामस्वरूप हिमालय पर्वत श्रेणियों से बाहर निकलती नदियाँ यहाँ पर भारी जल – भार यथा बड़े शैल और गोलाश्म जमा कर देती हैं तथा कभी-कभी स्वयं इसी में लुप्त हो जाती हैं। - तराई :
भाभर के दक्षिण में तराई क्षेत्र है, जिसकी चौड़ाई 10 से 20 किलोमीटर है। भाभर क्षेत्र में लुप्त नदियाँ इस प्रदेश में धरातल पर निकलकर प्रकट होती हैं क्योंकि इनकी निश्चित वाहिकाएँ नहीं होतीं। यह क्षेत्र अनूप झील बन जाता है, जिसे तराई कहते हैं। यह क्षेत्र प्राकृतिक वनस्पति से ढका रहता है तथा विभिन्न प्रकार के वन्य जीवों का आश्रय स्थल है। - बांगर एवं खादर :
तराई से दक्षिण में मैदान है, जो कि पुराने एवं नवीन जलोढ़ से बना होने के कारण बांगर और खादर के नाम से जाना जाता है। उत्तरी भारत के मैदान में जलोढ़ मिट्टी की उपलब्धता होने के कारण यह उपजाऊ है। यहाँ अनेक प्रकार की फसलें यथा गेहूँ, चावल, गन्ना और जूट उत्पादित की जाती हैं। अतः यहाँ अधिक जनसंख्या का जमाव पाया जाता है।
(3) प्रायद्वीपीय पठार :
नदियों के मैदान से 150 मीटर ऊँचाई से ऊपर उठता हुआ प्रायद्वीपीय पठार तिकोने आकार वाला कटा-फटा भूखण्ड है जो कि 600 से 900 मीटर तक ऊँचा है। उत्तर-पश्चिम में दिल्ली कटक, पूर्व में राजमहल की पहाड़ियाँ, पश्चिम में गिर पहाड़ियाँ और दक्षिण में इलायची पहाड़ियाँ प्रायद्वीपीय पठार की सीमाएँ निर्धारित करती हैं। उत्तर-पूर्व में शिलांग तथा कार्बी – ऐंगलांग पठार भी इसी भूखण्ड का विस्तार है। प्रायद्वीपीय भारत अनेक पठारों से मिलकर बना है; यथा हजारीबाग पठार, पालाय पठार, रांची पठार, मालवा पठार, कोयम्बटूर पठार और कर्नाटक पठार। यह भारत के प्राचीनतम और स्थिर भू-भागों में से एक है।
सामान्य तौर पर प्रायद्वीप की ऊँचाई पश्चिम से पूर्व की तरफ कम होती चली जाती है जिसका प्रमाण यहाँ की नदियों के बहाव की दिशा से भी मिलता है। इस क्षेत्र की मुख्य प्राकृतिक स्थलाकृतियों में टॉर, ब्लॉक पर्वत, भ्रंश घाटियाँ, पर्वत स्कंध, नग्न चट्टान संरचना, टेकरी पहाड़ी श्रृंखलाएँ और क्वार्टजाइट भित्तियाँ शामिल हैं जो कि प्राकृतिक जल संग्रह के स्थल हैं। इस पठार के पश्चिमी और उत्तर-पश्चिमी भाग में मुख्य रूप से काली मिट्टी पाई जाती है। अपनी पुनरावर्ती भूकम्पीय क्रियाओं की क्षेत्रीय विभिन्नता के कारण ही प्रायद्वीपीय पठार पर धरातलीय विविधताएँ पाई जाती हैं। मुख्य उच्चावच लक्षणों के अनुसार प्रायद्वीपीय पठार को तीन भागों में विभाजित किया गया है। यथा-
- दक्कन का पठार
- मध्य उच्च भूभाग
- उत्तर-पूर्वी पठार।
(4) भारतीय मरुस्थल :
विशाल भारतीय मरुस्थल अरावली पहाड़ियों से उत्तर पूर्व में स्थित है। यह एक ऊबड़- खाबड़ धरातलीय क्षेत्र है जिस पर अनेक अनुदैर्घ्य रेतीले टीले और बरखान पाए जाते हैं। यहाँ पर वार्षिक वर्षा 150 मिलीमीटर से कम होती है जिसके फलस्वरूप यह एक शुष्क और वनस्पति रहित क्षेत्र है। इन्हीं स्थलाकृतिक लक्षणों के कारण इसे मरुस्थली के नाम से जाना जाता है। एक अनुमान के अनुसार यह क्षेत्र समुद्र का हिस्सा था। इसकी पुष्टि आकल में स्थित काष्ठ जीवाश्म पार्क में उपलब्ध प्रमाणों तथा जैसलमेर के निकट ब्रह्मसर के आसपास के समुद्री निक्षेपों से होती है। इस प्रदेश में प्रवाहित होने वाली नदियाँ अल्पकालिक हैं। यह अन्तःस्थलीय अपवाह का क्षेत्र है, जहाँ नदियाँ झील या प्लाया में मिल जाती हैं।
(5) तटीय मैदान :
भारत की तटरेखा बहुत लम्बी है। स्थिति और सक्रिय भूआकृतिक प्रक्रियाओं के आधार पर तटीय मैदानों को दो भागों में विभाजित किया जा सकता है। यथा
- पश्चिमी तटीय मैदान :
पश्चिमी तटीय मैदान जलमग्न तटीय मैदानों के उदाहरण हैं। ऐसा माना जाता है कि पौराणिक शहर द्वारका जो कि किसी समय पश्चिमी तट पर मुख्य भूमि पर स्थित था जो कि अब पानी में डूबा हुआ है। जलमग्न होने के कारण पश्चिमी तटीय मैदान एक संकीर्ण पट्टी मात्र है और पत्तनों एवं बन्दरगाहों के विकास के लिए प्राकृतिक परिस्थितियाँ प्रदान करता है। - पूर्वी तटीय मैदान :
पूर्वी तटीय मैदान चौड़ा है और उभरे हुए तट का उदाहरण है। पूर्व की तरफ प्रवाहित होने वाली और बंगाल की खाड़ी में गिरने वाली नदियाँ यहाँ लम्बे-चौड़े डेल्टा बनाती हैं। इनमें महानदी, गोदावरी, कृष्णा और कावेरी का डेल्टा शामिल हैं। उभरा तट होने के कारण यहाँ पत्तन और पोताश्रय कम हैं।
(6) द्वीप समूह : भारत में दो प्रमुख द्वीप समूह हैं। एक बंगाल की खाड़ी में तथा दूसरा अरब सागर में स्थित है। बंगाल की खाड़ी के द्वीप समूह में लगभग 572 द्वीप हैं, जबकि अरब सागर के द्वीप समूह में 36 द्वीप हैं और इनमें 11 पर मानव आवास हैं। अरब सागर का पूरा द्वीप समूह प्रवाल निक्षेप से बना है।
प्रश्न 3.
भारत के प्रमुख भौतिक विभाग बताते हुए किसी एक का विस्तार से वर्णन कीजिए।
अथवा
भारत को कितने प्राकृतिक प्रदेशों में बाँटा गया है? उनके नाम लिखो तथा किसी एक प्राकृतिक प्रदेश का सचित्र वर्णन करो।
अथवा
भारत के भूआकृतिक प्रदेश उत्तर तथा उत्तरी-पूर्वी पर्वतमाला का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
भारत के प्रमुख भौतिक / प्राकृतिक विभाग : भारत को निम्न प्रमुख भौतिक विभागों में बाँटा गया है-
- उत्तरी तथा उत्तरी-पूर्वी पर्वतमाला
- उत्तरी भारत का मैदान
- प्रायद्वीपीय पठार
- भारतीय मरुस्थल
- तटीय मैदान
- द्वीप समूह।
इनमें से उत्तरी तथा उत्तरी-पूर्वी पर्वतमाला प्रदेश का वर्णन निम्न प्रकार है-
उत्तरी तथा उत्तरी-पूर्वी पर्वतमाला प्रदेश
उत्तर तथा उत्तरी-पूर्वी पर्वतमाला में हिमालय पर्वत और उत्तर-पूर्वी पहाड़ियाँ शामिल हैं। हिमालय में अनेक समानान्तर पर्वत श्रृंखलाएँ हैं। इसमें वृहत् हिमालय, पार हिमालय शृंखलाएँ, मध्य हिमालय और शिवालिक प्रमुख श्रेणियाँ हैं। भारत के उत्तरी-पश्चिमी भाग में हिमालय की ये श्रेणियाँ उत्तर-पश्चिम दिशा से दक्षिण-पूर्व दिशा की तरफ फैली हुई हैं। दार्जिलिंग और सिक्किम क्षेत्रों में ये श्रेणियाँ पूर्व-पश्चिम दिशा में विस्तृत हैं, जबकि अरुणाचल प्रदेश में ये दक्षिण-पश्चिम से उत्तर-पश्चिम की तरफ घूम जाती हैं। मिजोरम, नागालैण्ड और मणिपुर में ये पहाड़ियाँ उत्तर-दक्षिण दिशा में फैली हैं। केन्द्रीय अक्षीय श्रेणी वृहत् हिमालय की पूर्व – पश्चिम में लम्बाई लगभग 2,500 किलोमीटर तथा उत्तर से दक्षिण तक चौड़ाई 160 से 400 किलोमीटर है। हिमालय भारतीय उपमहाद्वीप तथा मध्य एवं पूर्वी एशिया के देशों के मध्य एक मजबूत लम्बी दीवार के रूप में खड़ा है। हिमालय एक प्राकृतिक अवरोधक ही नहीं, अपितु जलवायु, अपवाह और सांस्कृतिक विभाजक भी है।
हिमालय के उप-विभाग:
हिमालय पर्वत श्रृंखला में अनेक क्षेत्रीय विभिन्नताएँ पाई जाती हैं। उच्चावच, पर्वत श्रेणियों के संरेखण और अन्य दूसरी भूआकृतियों के आधार पर हिमालय को निम्नलिखित उप-विभागों के अन्तर्गत विभाजित किया गया है
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(1) कश्मीर या उत्तरी-पश्चिमी हिमालय :
कश्मीर हिमालय में अनेक पर्वत श्रेणियाँ यथा कराकोरम, लद्दाख, जास्कर और पीरपंजाल पाई जाती हैं। वृहत् हिमालय और कराकोरम श्रेणियों के बीच स्थित कश्मीर हिमालय का उत्तरी-पूर्वी भाग एक ठण्डा मरुस्थल है। वृहत् हिमालय और पीरपंजाल के मध्य विश्व प्रसिद्ध कश्मीर घाटी और डल झील स्थित है। दक्षिणी एशिया की महत्त्वपूर्ण हिम नदियाँ बलटोरो और सियाचीन इसी प्रदेश में हैं। कश्मीर हिमालय करेवा के लिए भी प्रसिद्ध हैं जहाँ जाफरान की खेती की जाती है। वृहत् हिमालय में जोजीला, पीरपंजाल में बानिहाल, जास्कर श्रेणी में फोटुला और लद्दाख श्रेणी में खर्दुगला जैसे महत्त्वपूर्ण दरें स्थित हैं। इस क्षेत्र में अलवण जल की डल और वूलर झीलें तथा लवण जल की पांगांग सो और सोमुरीरी आदि महत्त्वपूर्ण झीलें स्थित हैं। सिंधु तथा इसकी सहायक नदियाँ झेलम और चिनाब इसी क्षेत्र में प्रवाहित होती हैं।
कश्मीर और उत्तर-पश्चिमी हिमालय को विलक्षण सौन्दर्य और खूबसूरत दृश्य – स्थलों के लिए जाना जाता है। हिमालय की यही रोमांचक दृश्यावली पर्यटकों के लिए आकर्षण का केन्द्र है। इस प्रदेश में वैष्णोदेवी, अमरनाथ गुफा तथा चरार-ए-शरीफ आदि पवित्र धार्मिक स्थान स्थित हैं जहाँ प्रतिवर्ष हजारों-लाखों की संख्या में तीर्थयात्री आते हैं। जम्मू और कश्मीर की राजधानी श्रीनगर झेलम नदी के किनारे स्थित है। श्रीनगर में डल झील एक रोचक प्राकृतिक स्थल है। कश्मीर घाटी में झेलम नदी युवा अवस्था में प्रवाहित होती है फिर भी नदीय स्थल रूप के विकास में प्रौढ़ावस्था में निर्मित होने वाली विशिष्ट आकृति यथा-1 – विसर्पों का निर्माण करती है। प्रदेश के दक्षिणी भाग में अनुदैर्घ्य घाटियाँ पाई जाती हैं, जिनको दून के नाम से जाना जाता है। इनमें जम्मू-दून और पठानकोट-दून प्रमुख हैं।
(2) हिमाचल और उत्तराखण्ड हिमालय:
हिमालय पर्वत श्रृंखला का यह भाग पश्चिम में रावी नदी और पूर्व में घाघरा की सहायक काली नदी के बीच स्थित है। यह भारत के दो मुख्य नदी तंत्रों यथा सिंधु और गंगा द्वारा अपवाहित है। इस प्रदेश में सिंधु की सहायक नदियाँ रावी, व्यास और सतलुज तथा गंगा की सहायक नदियाँ यमुना और घाघरा प्रवाहित होती हैं। हिमाचल हिमालय का सुदूर उत्तरी भाग लद्दाख के ठण्डे मरुस्थल का विस्तार है, जो कि लाहौल एवं स्पति जिले के स्पिति उपमण्डल में है। हिमालय की तीनों मुख्य श्रृंखलाएँ वृहत् हिमालय, लघु हिमालय और उत्तर – दक्षिण दिशा में विस्तृत शिवालिक श्रेणी इस प्रदेश में स्थित हैं।
प्रमुख नगर:
लघु हिमालय में 1,000 से 2,000 मीटर की ऊँचाई वाले पर्वत तत्कालीन ब्रिटिश साम्राज्य के प्रशासकों के लिए आकर्षण का मुख्य केन्द्र रहे। धर्मशाला, मसूरी, कासौली, अल्मोडा, लैंसडाउन और रानीखेत इसी प्रदेश में स्थित हैं।
स्थलाकृतियाँ :
इस क्षेत्र की दो महत्त्वपूर्ण स्थलाकृतियाँ शिवालिक और दून हैं। इस प्रदेश में स्थित कुछ महत्त्वपूर्ण दून चण्डीगढ़ – कालका दून, नालागढ़ दून, देहरादून, हरीके दून तथा कोटा दून शामिल हैं। इनमें देहरादून सबसे बड़ी घाटी है, जिसकी लम्बाई 35 से 45 किलोमीटर और चौड़ाई 22 से 25 किलोमीटर है। वृहत् हिमालय की घाटियों में भोटिया प्रजाति के लोग रहते हैं। ये खानाबदोश लोग हैं, जो कि ग्रीष्म ऋतु में बुग्याल अर्थात् ऊँचाई पर स्थित घास के मैदान में चले जाते हैं तथा शीत ऋतु में घाटियों में वापस लौट आते हैं। प्रसिद्ध फूलों की घाटी भी इसी पर्वतीय क्षेत्र में स्थित है। गंगोत्री, यमुनोत्री, केदारनाथ, बद्रीनाथ और हेमकुण्ड साहिब आदि प्रसिद्ध धार्मिक स्थान इसी क्षेत्र में स्थित हैं। इस क्षेत्र में पाँच प्रसिद्ध नदी संगम स्थित हैं, जिन्हें प्रयाग के नाम से जाना जाता है।
(3) दार्जिलिंग और सिक्किम हिमालय :
हिमालय पर्वतमाला के इस प्रदेश के पश्चिम में नेपाल हिमालय और पूर्व में भूटान हिमालय है। यह छोटा लेकिन हिमालय का बहुत महत्त्वपूर्ण भाग है। यहाँ तीव्रगामी तिस्ता नदी प्रवाहित होती है तथा कंचनजुंगा जैसी ऊँची चोटियाँ और गहरी घाटियाँ पाई जाती हैं। इन पर्वतों के ऊँचे शिखरों पर लेपचा जनजाति तथा दक्षिणी भाग में नेपाली, बंगाली व मध्य भारत की जनजातियाँ मिश्रित रूप में पायी जाती। इस प्रदेश की प्राकृतिक दशाओं यथा मध्यम ढाल, गहरी व जीवाश्मयुक्त मिट्टी, सम्पूर्ण वर्ष भर वर्षा होना तथा मन्द शीत ऋतु के फलस्वरूप चाय के बागान पाए जाते हैं। बाकी हिमालय से यह क्षेत्र अलग है; क्योंकि यहाँ दुआर स्थलाकृतियाँ पाई जाती हैं, जिनका उपयोग चाय के बागान लगाने के लिए किया गया है। सिक्किम और दार्जिलिंग हिमालय अपने रमणीय सौन्दर्य, वनस्पतिजात, प्राणीजात और आर्किड के लिए विख्यात हैं।
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(4) अरुणाचल हिमालय :
अरुणाचल हिमालय क्षेत्र भूटान हिमालय से लेकर पूर्व में डिफू दरें तक विस्तृत है। इस पर्वत श्रेणी की दिशा दक्षिण – पूर्व से उत्तर-पूर्व है। कांगतु और नामचा बरुआ इस क्षेत्र की मुख्य चोटियाँ हैं। ये पर्वत श्रेणियाँ उत्तर से दक्षिण दिशा में तीव्र गति से प्रवाहित होती हुई व गहरे गार्ज बनाने वाली नदियों के द्वारा विच्छेदित होती हैं। नामचा बरुआ को पार करने के उपरान्त ब्रह्मपुत्र नदी एक गहरी गार्ज बनाती है। कामेंग, सुबनसरी, दिहांग, दिबांग और लोहित इस क्षेत्र की प्रमुख नदियाँ हैं। ये वर्षभर प्रवाहित होने वाली नदियाँ हैं, जो कि अनेक जल प्रपात बनाती हैं। इसी के फलस्वरूप यहाँ जल विद्युत् उत्पादन क्षमता अधिक है।
प्रमुख जनजातियाँ:
अरुणाचल हिमालय की मुख्य विशेषता यह है कि यहाँ अनेक जनजातियाँ निवास करती हैं। इस क्षेत्र में पश्चिम से पूर्व की तरफ मोनपा, डफ्फला, अबोर, मिशमी, निशी और नागा जनजातियाँ निवास करती हैं। इनमें से अधिकांश जनजातियाँ झूम कृषि करती हैं जिसे स्थानान्तरी या स्लैश अथवा बर्न कृषि के नाम से जाना जाता है। यह क्षेत्र जैव विविधता में धनी है जिसका संरक्षण देशज समुदायों ने किया है। ऊबड़-खाबड़ धरातल के कारण इस क्षेत्र में विभिन्न घाटियों के मध्य परिवहन का जुड़ाव कम पाया जाता है । इसी कारण अरुणाचल – असम सीमा पर स्थित दुआर क्षेत्र से होकर ही यहाँ कारोबार किया जा सकता है।
(5) पूर्वी पहाड़ियाँ और पर्वत:
हिमालय पर्वत शृंखला के इस भाग में पहाड़ियों की दिशा उत्तर से दक्षिण है। इन पहाड़ियों को विभिन्न स्थानीय नामों से सम्बोधित किया जाता है। उत्तर में पटकोई बूम, नागा पहाड़ियाँ, मणिपुर पहाड़ियाँ और दक्षिण में मिजो या लुसाई पहाड़ियों के नाम से जाना जाता है। निम्न ऊँचाई वाली पहाड़ियों का क्षेत्र होने के कारण यहाँ अनेक जनजातियाँ झूम या स्थानान्तरणशील कृषि करती हैं। इस क्षेत्र में अधिकांश पहाड़ियाँ छोटे-बड़े नदी-नालों के द्वारा अलग होती हैं। मणिपुर और मिजोरम की मुख्य नदी बराक है। मणिपुर घाटी के बीच में एक झील स्थित है जिसे ‘लोकताक’ झील के नाम से जाना जाता है। यह झील चारों तरफ से पहाड़ियों से घिरी हुई है। मिजोरम मृदुल और असंगठित
चट्टानों से बना है, जिसे मोलेसिस बेसिन के नाम से जाना जाता है। नागालैण्ड में प्रवाहित होने वाली अधिकांश नदियाँ ब्रह्मपुत्र नदी की सहायक नदियाँ हैं। मणिपुर के पूर्वी भाग में प्रवाहित होने वाली नदियाँ चिर्दावन नदी की सहायक नदियाँ हैं, जो कि म्यांमार में प्रवाहित होने वाली इरावदी नदी की सहायक नदी है।
प्रश्न 4.
भारत में भूआकृतिक प्रदेश प्रायद्वीपीय पठार का वर्णन कीजिए।
अथवा
भारत में प्रायद्वीपीय पठार प्रदेश पर लेख लिखिए।
उत्तर:
प्रायद्वीपीय पठार प्रदेश
स्थिति एवं विस्तार:
नदियों के मैदान से 150 मीटर की ऊँचाई से ऊपर उठता हुआ प्रायद्वीपीय पठार तिकोने आकार वाला कटा-फटा भूखण्ड है, जिसकी ऊँचाई 600 से 900 मीटर है। प्रायद्वीपीय पठार की सीमाओं का निर्धारण उत्तर-पश्चिम में दिल्ली कटक, पूर्व में राजमहल की पहाड़ियाँ, पश्चिम में गिर पहाड़ियाँ और दक्षिण में इलायची (कार्डामम) पहाड़ियाँ करती हैं। उत्तर पूर्व में शिलांग तथा कार्बी – ऐंगलांग पठार भी इसी भूखण्ड का विस्तार है। प्रायद्वीपीय भारत हजारीबाग पठार, पालायु पठार, रांची पठार, मालवा पठार, कोयम्बटूर पठार और कर्नाटक पठार से मिलकर बना है। यह भारत के प्राचीनतम और स्थिर भूभागों में से एक है। सामान्य रूप से प्रायद्वीप की ऊँचाई पश्चिम से पूर्व की तरफ कम होती जाती है, जिसका प्रमाण इस प्रदेश की नदियों के बहाव की दिशा से मिलता है।
प्रमुख स्थलाकृतियाँ:
प्रायद्वीपीय पठार की मुख्य स्थलाकृतियों में टॉर, ब्लॉक पर्वत, भ्रंश घाटियाँ, पर्वत स्कंध, नग्न चट्टान संरचना, टेकरी पहाड़ी शृंखलाएँ और क्वार्टजाइट भित्तियाँ शामिल हैं, जो कि प्राकृतिक जल संग्रह के स्थल हैं। इस पठार के पश्चिमी तथा उत्तर-पश्चिमी भाग में मुख्य रूप से काली मिट्टी पाई जाती है।
धरातलीय विभिन्नताएँ मिलना :
प्रायद्वीपीय पठार के अनेक भाग भूउत्थान व निमज्जन भ्रंश तथा विभंग निर्माण प्रक्रिया के अनेक पुनरावर्ती दौर से गुजरे हैं। अपनी पुनरावर्ती भूकम्पीय क्रियाओं की क्षेत्रीय विभिन्नता के कारण ही प्रायद्वीपीय पठार पर धरातलीय विविधताएँ पाई जाती हैं। इस पठार के उत्तरी-पश्चिमी भाग में नदी खड्ड और महा खड्ड इसके धरातल को जटिल बनाते हैं। चम्बल, भिंड और मुरैना इसके उदाहरण हैं।
प्रायद्वीपीय पठार के विभाग :
प्रमुख उच्चावचीय लक्षणों के आधार पर प्रायद्वीपीय पठार को निम्नलिखित तीन विभागों के अन्तर्गत विभाजित किया गया है-
(1) दक्कन का पठार:
दक्कन के पठार के पश्चिम में पश्चिमी घाट, पूर्व में पूर्वी घाट और उत्तर में सतपुड़ा, मैकाल और महादेव की पहाड़ियाँ हैं। पश्चिमी घाट को अनेक स्थानीय नामों यथा – महाराष्ट्र में सह्याद्रि, कर्नाटक और तमिलनाडु में नीलगिरी, केरल में अनामलाई और इलायची की पहाड़ियों के नाम से जाना जाता है। पश्चिमी घाट ऊँचे और अविरत हैं। इनकी औसत ऊँचाई लगभग 1500 मीटर है, जो कि उत्तर से दक्षिण की तरफ बढ़ती चली जाती है। प्रायद्वीपीय पठार की सबसे ऊँची चोटी अनाईमुडी है, जिसकी ऊँचाई 2,695 मीटर है एवं यह पश्चिमी घाट की अनामलाई पहाड़ियों में स्थित है। इस क्षेत्र की दूसरी सबसे ऊँची चोटी डोडाबेटा है, जो कि नीलगिरी की पहाड़ियों में स्थित है। इस क्षेत्र की अधिकतर नदियों की उत्पत्ति पश्चिमी घाट से होती है। यहाँ की कुछ मुख्य श्रेणियाँ जावादी पहाड़ियाँ, पालकोण्डा श्रेणी, नल्लामाला पहाड़ियाँ और महेन्द्रगिरी पहाड़ियाँ हैं। पूर्वी और पश्चिमी घाट नीलगिरी की पहाड़ियों में आपस में मिलते हैं।
(2) मध्य उच्च भूभाग:
प्रायद्वीपीय पठार के मध्य उच्च भूभाग के पश्चिम में अरावली पर्वत इसकी सीमा बनाते हैं। इसके दक्षिण में सतपुड़ा पर्वत उच्छिष्ट पठार की श्रेणियों से निर्मित हैं, जिनकी समुद्र तल से ऊँचाई 600 से 900 मीटर है। ये दक्कन के पठार की उत्तरी सीमा का निर्धारण करते हैं। ये अवशिष्ट पर्वतों के उत्कृष्ट उदाहरण हैं, जो कि काफी हद तक अपरदित हैं तथा इनकी श्रृंखला टूटी हुई है। प्रायद्वीपीय पठार के इस भाग का विस्तार जैसलमेर तक है जहाँ यह अनुदैर्ध्य रेत के टिब्बों और बरखान से ढके हुए हैं। भूगर्भीय इतिहास में यह क्षेत्र कायान्तरित प्रक्रियाओं से गुजर चुका है। यहाँ संगमरमर, स्लेट और नाइस आदि कायान्तरित चट्टानें पाई जाती हैं। समुद्र तल से मध्य उच्च भूभाग की ऊँचाई 700 से 1000 मीटर के मध्य है जो कि उत्तर तथा उत्तर-1 – पूर्व दिशा में कम होती चली जाती है। यमुना नदी की अधिकांश सहायक नदियाँ विंध्याचल और कैमूर श्रेणियों से निकलती हैं। चम्बल नदी की एकमात्र मुख्य सहायक नदी बनास है, जो कि पश्चिम में अरावली से निकलती है। मध्य उच्च भूभाग का पूर्वी विस्तार राजमहल की पहाड़ियों तक है
जिसके दक्षिण में स्थित छोटा नागपुर का पठार खनिज पदार्थों का विपुल भण्डार है।
(3) उत्तर-पूर्व पठार:
उत्तर:
पूर्व का पठार वास्तविक रूप से प्रायद्वीपीय पठार का ही एक विस्तारित भाग है। एक अनुमान के अनुसार हिमालय की उत्पत्ति के समय इण्डियन प्लेट के उत्तर-पूर्व दिशा में खिसकने के कारण, राजमहल की पहाड़ियों और मेघालय के पठार के बीच भ्रंश घाटी बनने से यह अलग हो गया था। उसके उपरान्त यह नदी द्वारा जमा किए गए जलोढ़ द्वारा भर दिया गया। वर्तमान में मेघालय और कार्बी ऐंगलांग इसी कारण से मुख्य प्रायद्वीपीय पठार से अलग- थलग हैं। इस क्षेत्र में रहने वाली जनजातियों के नाम के आधार पर मेघालय के पठार को तीन भागों यथा- गारो पहाड़ियाँ, खासी पहाड़ियाँ तथा जयन्तिया पहाड़ियाँ के अन्तर्गत विभाजित कर दिया गया है। असम की कार्बी ऐंगलांग पहाड़ियाँ भी इसी पठार का विस्तार हैं। छोटा नागपुर के पठार के समान मेघालय के पठार में भी कोयला, लोहा, सिलीमेनाइट, चूना पत्थर और यूरेनियम जैसे खनिजों के विपुल भण्डार हैं। यहाँ अधिकांश वर्षा दक्षिणी-पश्चिमी मानसून के द्वारा होती है।
प्रश्न 5.
भारत के भूआकृतिक प्रदेश विशाल मरुस्थल एवं तटीय मैदान का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
भारतीय विशाल मरुस्थल- स्थिति एवं स्थलाकृतिक गुण:
विशाल भारतीय मरुस्थल अरावली पहाड़ियों के उत्तर-पूर्व में स्थित है। यह एक ऊबड़-खाबड़ धरातल वाला क्षेत्र है जहाँ सैकड़ों की संख्या में अनुदैर्घ्य रेतीले टीले और बरखान पाए जाते हैं। इस प्रदेश में वार्षिक वर्षा 150 मिलीमीटर से कम होती है जिसके फलस्वरूप यह एक शुष्क और वनस्पति-रहित क्षेत्र है। इन्हीं स्थलाकृतिक गुणों के कारण इसे मरुस्थली के नाम से जाना जाता है। एक अनुमान के अनुसार माना जाता है कि यह क्षेत्र मेसोजोइक काल में समुद्र का भाग था। इसकी पुष्टि आकल में स्थित काष्ठ जीवाश्म पार्क में उपलब्ध प्रमाणों तथा जैसलमेर के निकट ब्रह्मसर के आसपास के समुद्री निक्षेपों से होती है।
धरातलीय संरचना:
काष्ठ जीवाश्म की आयु लगभग 18 करोड़ वर्ष मानी गई है। यद्यपि इस क्षेत्र की भूगर्भिक चट्टान संरचना प्रायद्वीपीय पठार का विस्तार है फिर भी अत्यन्त शुष्क दशाओं के कारण इसकी धरातलीय आकृतियाँ भौतिक अपक्षय और पवन क्रिया के द्वारा निर्मित हैं। इस क्षेत्र की प्रमुख स्थलाकृतियाँ स्थानान्तरी रेतीले टीले, छत्रक चट्टानें और मरु उद्यान हैं। ढाल के आधार पर मरुस्थल को दो भागों में विभाजित किया जा सकता है; यथा— सिंध की तरफ ढाल वाला उत्तरी भाग और कच्छ के रन की तरफ वाला दक्षिणी भाग।
इस प्रदेश में प्रवाहित होने वाली अधिकांश नदियाँ अल्पकालिक हैं। मरुस्थल के दक्षिणी भाग में प्रवाहित होने वाली लूनी नदी अति महत्त्वपूर्ण है। अल्प मात्रा में वर्षा होना तथा अधिक मात्रा में वाष्पीकरण के कारण इस प्रदेश में प्राय: जल की कमी रहती है। कुछ नदियाँ तो थोड़ी दूरी तय करने के उपरान्त ही मरुस्थल में लुप्त हो जाती हैं। यह अन्तःस्थलीय अपवाह का क्षेत्र है जहाँ नदियाँ झील या प्लाया में मिल जाती हैं। इन प्लाया झीलों का जल खारा होता है जिससे नमक बनाया जाता है।
तटीय मैदान प्रदेश:
भारत की तटरेखा बहुत लम्बी है। स्थिति और सक्रिय भूआकृतिक प्रक्रियाओं के आधार पर तटीय मैदानों को निम्नलिखित दो भागों में विभाजित किया गया है
(1) पश्चिमी तटीय मैदान:
पश्चिमी तटीय मैदान जलमग्न तटीय मैदानों का उदाहरण है। यह माना जाता है कि वर्तमान समय में पानी में डूबा हुआ पौराणिक शहर द्वारका किसी समय पश्चिमी तट पर मुख्य भूमि पर स्थित था। जलमग्न होने के कारण पश्चिमी तटीय मैदान एक संकीर्ण पट्टीमात्र है तथा पत्तनों एवं बन्दरगाहों के विकास के लिए प्राकृतिक परिस्थितियाँ प्रदान करता है। यहाँ पर स्थित प्राकृतिक बन्दरगाहों में कांडला, मडगाँव, जे. एल. एन. नावहाशेवा, मार्मागोआ, मैंगलोर तथा कोचीन शामिल हैं। उत्तर में गुजरात तट से दक्षिण में केरल तट तक फैले पश्चिमी तटीय मैदान को गुजरात का कच्छ और काठियावाड़ तट, महाराष्ट्र का कोंकण तट और गोवा तट, कर्नाटक तथा केरल का मालाबार तट के अन्तर्गत विभाजित किया गया है।
पश्चिमी तटीय मैदान मध्य में संकीर्ण है जो कि उत्तर और दक्षिण में चौड़े हो जाते हैं। इस तटीय मैदान में प्रवाहित होने वाली नदियाँ डेल्टा नहीं बनाती हैं। मछली पकड़ने तथा अन्तःस्थलीय नौकायन के लिए मालाबार तट की विशेष स्थलाकृति ‘ कयाल’ का प्रयोग किया जाता है। यह पर्यटकों के लिए आकर्षण का विशेष केन्द्र है। केरल में प्रतिवर्ष प्रसिद्ध नेहरू ट्राफी वलामकाली अर्थात् नौका दौड़ का आयोजन पुन्नामदा कयाल में किया जाता है।
(2) पूर्वी तटीय मैदान:
पश्चिमी तटीय मैदान की तुलना में पूर्वी तटीय मैदान चौड़ा है और उभरे हुए तट का उदाहरण है। यहाँ पूर्व की तरफ प्रवाहित होने वाली और बंगाल की खाड़ी में गिरने वाली नदियाँ लम्बे-चौड़े डेल्टा बनाती हैं। इसमें महानदी, गोदावरी, कृष्णा और कावेरी का डेल्टा शामिल है। उभरा तट होने के कारण यहाँ पत्तन और पोताश्रय कम हैं। इस क्षेत्र में महाद्वीपीय शेल्फ की चौड़ाई 500 किलोमीटर है जिसके कारण यहाँ पत्तनों और पोताश्रयों का विकास होना मुश्किल है।