CBSE Class 6 Hindi रचना निबंध-लेखन
निबंघ-लेखन हिंदी गद्य की महत्वपूर्ण विधा है। निबंध की भाषा स्पष्ट, सजीव तथा सरस होती है। निबंध में लेखक के विचारों की अभिव्यक्ति होती है। अतः निबंध पढ़कर लेखक के व्यक्तित्य को जानने में सहायता मिलती है। निबंध कई प्रकार के हो सकते हैं; जैसे -वर्णनात्मक, विचारात्मक तथा भावात्मक। किसी भी निबंध के तीन अंग होते हैं-
भूमिका-यह ऐसी होनी चाहिए जो निबंध के प्रति पाठक की उत्सुकता को बढ़ाए।
विषय सामग्री-यह निबंध का प्राण है। इसकी भाषा विषय से संबंधित तथा विस्तृत होती है।
उपसंहार-निबंध का अंत रोचक ढंग से होना चाहिए जो पाठक पर स्थायी प्रभाय ङाल सके।
आगे कुछ छात्रोपयोगी निबंध दिए जा रहे हैं।
1. अनुशासन
अनुशासन है देश की जान
अनुशासन जाति का प्राण।
अनुशासन में रहने से ही,
देश का होता है कल्याण।।
अनुशासन का शाब्दिक अर्थ है-शासन के अनुसार कार्य करना। अनुशासन का हमारे जीवन में महत्यपूर्ण स्थान है। जिस प्रकार भोजन हमारे शरीर को शक्ति प्रदान करता है, उसी प्रकार अनुशासन हमारी जीवन रूपी, नैया चलाने में सहायक होता है। जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में अनुशासन का होना जुरूरी है। घर, स्कूल, कॉलेज, समाज तथा सेना सभी जगहों में अनुशासन होना चाहिए। जिस घर में अनुशासन न हो वह घर शांतिपूर्वक नहीं चलाया जा सकता। इसी तरह स्कूल तथा कॉलेजों में भी अनुशासन अनिवार्य है। प्रत्येक कार्यालय में छोटे से लेकर बड़े अधिकारी तक को भी अनुशासन में रहना पड़ता है। सेना में तो अनुशासन का और भी महत्व है। अनुशासन में रहकर काम करना सभ्यता का प्रतीक है। अनुशासन में केवल मानव जाति ही कार्य नहीं करती, बल्कि पशु-पक्षी भी अनुशासन के अनुसार कार्य करते हैं। महात्मा गांधी ने अनुशासन में रहकर ही विश्य में प्रसिद्धि प्राप्त की। खेल के मैदान में भी खिलाड़ी अनुशासन का पालन करते हैं।
अनुशासन अच्छी चीज़ है। यह हमारे चरित्र का निर्माण करती है तथा एकता एवं सहयोग की भावना का विकास करती है। इसलिए घह आवश्यक है कि लड़कों को बचपन से ही अनुशासन सिखाया जाए। उसकी उपेक्षा करने वाला व्यक्ति जीवन में सफल नहीं हो पाता। अतः जीवन में सफलता का रहस्य अनुशासन है। हमें सदैव अनुशासन में रहकर कार्य करना चाहिए। तभी हम अपने घर, परिवार, समाज, जाति तथा राष्ट्र को उन्नति कें पथ पर ले जा सकते हैं।
2. समय का सदुपयोग
समय अमूल्य धन है। समय को खोना जीवन को खोना है। बीता हुआ समय कभी वापस नहीं आता। जीवन के बीते दिन हम वापस नहीं पा सकते, इसलिए यह जुरूरी है कि समय के प्रत्येक क्षण का सदुपयोग किया जाए। इस प्रकार जीवन के हर पल का हम लाभ और आनंद ले सकेंगे। सम्य का दुरुपयोग मनुष्य के लिए घातक, उन्नति में बाधक तथा पश्चात्ताप का कारण बनता है। समय का दुरुपयोग करने वाला व्यक्ति कभी सफल नहीं हो सकता है। इसलिए समय के महत्व को समझना और इसका सदुपयोग करना अत्यंत आवश्यक है। जीवन में सफलता प्राप्त करने के लिए समय का सदुपयोग करना बुहुत जूरूरी है। महान व्यक्तियों की सफलता का रहस्य समय का सदुपयोग ही है।
विद्यार्थी के लिए समय का सदुपयोग तो और भी आयश्यक है। यिद्यार्थी जीवन समस्त जीवन का आधार होता है। समय को नष्ट करने याला अपना पूरा भविष्य ही बिगाड़ लेता है। बाद में पछताने पर भी कोई लाभ नहीं होता है। जो व्यक्ति अपने जीवन के ग्रत्येक क्षण का सदुपयोग करता है, वही भाग्यवान है। ऐसा व्यक्ति ही जीवन में सदा प्रसन्न, संतुष्ट और संपन्न रहता है। वैयक्तिक जीवन हो या सामाजिक, समय का सदुपयोग ही सफलता का एकमात्र रास्ता है। एक मिनट की मुस्तैदी से विजय का सेहरा सिर बँधता है और एक मिनट की चूक से पराजय की कालिख लगती है। गया धन, गया जन, गया स्वास्थ्य फिर लौट सकता है, लेकिन गया हुआ समय किसी भी प्रकार नहीं लौट सकता, इसलिए समय का महत्व समझकर जो मनुष्य आचरण करते हैं, वही समाज के अगुआ, पूज्य और पथ-प्रदर्शक बनते हैं।
3. आदर्श विद्यार्थी
विद्यार्थी अर्थात विद्या का अर्थीं; विद्या अर्जन जिसका एकमात्र कार्य हो। आदर्श विद्यार्थीं वह है जो पूरी ईमानदारी तथा परिश्रम से विद्या-अध्ययन के कार्य में लगा रहता है। विद्यार्जन में चाहे कितने भी कष्ट उठाने पड़ें, आदर्श विद्यार्थी पीछे नहीं हटता। कहा भी गया है कि सुख चाहने वाले को विद्या का त्याग कर देना चाहिए तथा विद्या चाहने याले को सुख का त्याग कर देना चाहिए। अध्ययन एक तपस्या है, इसलिए विद्यार्थी का जीवन फूलों की सेज नहीं होता। उसे कठिनाइयों में तपकर अपना जीवन सैंबारना होता है। हमारे देश में विद्यार्यीं के लिए व्रह्मचर्य का पालन अनिवार्य माना गया है, क्योंकि सुख-भोग एवं मौज़-मस्ती में ल्लिप्त रहने वाला कभी भी एक आदर्श विद्यार्थी नहीं बन सकता। आदर्श विद्यार्थी के लिए आवश्यक है कि अपने मन-मस्तिष्क तथा अपनी इच्छाओं पर नियंत्रण रखे और केवल अध्ययन के लिए प्रयासरत रहे।
आदर्श विद्यार्थी के पाँच गुण बताए गए हैं। काकचेष्टा अर्थात कौए की तरह सदैव प्रयत्लशील रहना, बकोध्यानम् अर्थांत बगुले की तरह ध्यान लगाए रहना, श्वाननिंद्रा अर्थात कुते की तरह बहुत कम सोना, अल्पाहारी अर्थात कम भोजन करने वाला और गृहत्यागी अर्थात घर और घर के सदस्यों के प्रति आसक्ति न रखना। उपर्युक्त पाँच लक्षणों से युक्त व्यक्ति ही आदर्श विद्यार्थी हो सकता है। आदर्श विद्यार्यी के लिए पुस्तक ही मित्र है और अध्यापक देवता। आदर्श विद्य यार्थी परिश्रमी होता है तथा शिष्टाचार का पालन भी उसके लिए अनिवार्य है। सत्यवादी होना तदा माता-पिता एवं गुरुजनों का आदर करना भी आदर्श विद्यार्थी के गुणों में समाहित है। आदर्श विद्यार्थी होना यद्यपि कठिन है, परंतु प्रयल करने पर असंभव नहीं। आदर्श विद्यार्थी कुल एवं राष्ट्र के लिए अनमोल है।
4. एकता में बल
एक होने के भाव को एकता कहा जाता है। एकता शक्ति का प्रतीक है। कहा गया है कि अकेला चना भाड़ नहीं फोड़ता। जब हाय की पाँचों अँगुलियाँ मिलकर एक मुट्ठी बना लेती हैं तो वे काफ़ी ताकतवर हो जाती हैं, वैसे अलग-अलग इन पाँचों अँगुलियों का कोई अस्तित्व नहीं है। एकता में अपार शक्ति होती है। इसी शक्ति के अभाव के कारण हमारा देश गुलाम हुआ और अंग्रेज़ों ने फूट डालो और शासन करो की नीति अपनाकर हमारे देश पर कई सी वर्षों तक शासन किया। इसी शक्ति के कारण हमारा देश आज़ाद हुआ। एकता शक्ति, सौंदर्य एवं संप्रभुता का प्रतीक है। एकता में रहकर ही हम अपने देश की उन्नति कर सकते हैं तथा देश की आज़ादी को कायम रख सकते हैं।
हम एक होकर कठिन से कठिन कार्यों को भी आसान बना देते हैं। एकता के महल्य को स्पष्ट करते हुए आचार्य विनोबा भावे ने लिखा है-“सबको ह्यय की पाँच अँगलियों की तरह रहना चाहिए। हाथ की पाँचों अँगलियाँ समान घोड़े ही हैं? कोई छोटी है तो कोई बड़ी। अगर हाय से कोई चीज़ को उठाना होता है तब पाँचों अँगुलियाँ इकट्ठी होकर उठाती हैं। ये पाँच होते हुए भी हज़ारों का काम कर लेती हैं क्योंकि इनमें एकता है घर, परिवार, समाज में सुख-शांति, समृद्धि बनाए रखने के लिए एकता में रहना अति आयश्यक है। हम अगर भाषा, संप्रदाय, जाति, धर्म इत्यादि के नाम पर लडेंगे तो देश विभाजित होगा। अतः आवश्यक है कि हम समग्र संसार में एकता का शंख फूँकें और ‘बसुधैव कुटुम्बकम्’ की भावना में बैंध जाएँ।
5. स्त्री-शिक्षा
स्त्री-शिक्षा के महत्त को स्थापित करते हुए महान कवि मिधिलीशरण गुप्त ने कहा है-
“विद्दाया हमारी भी न तब तक काम में कुछ आएगी,
अर्थागिनियों को भी सुशिक्षा दी न जब तक जाएगी।
सर्वांग के बदले हुई यदि व्याधि पक्षाघात की,
तो भी न क्या दुर्बल तथा व्याकुल रहेगा बात की
समाज का रथ स्त्री तथा पुरुष दोनों के समान सहयोग से गतिमान रहता है। अतः इस प्रक्रिया को सुचारू रूप से चलाने के लिए आवश्यक है कि शिक्षा से’ स्त्री-पुरुष दोनों का मन-मस्तिष्क समान रूप से आलोकित हो। किसी भी समाज में पुरुष की शिक्षा-दीक्षा तथा श्रम का उद्देशे्य मुख्य रूप से धन-अर्जन करना तथा परिवार की ज़रूरतें पूरी करना ही रहा है, परंतु स्तियों के कार्य असीम हैं; जैसे-घर की देखभाल, भोजन की व्यवस्था, परिवार के सदस्यों की देख-रेख, बच्च्चों का लालन-पालन, उनकी शिक्षा का ध्यान रखना आदि। यद्यपि आज के समय में पुरुषों में काफ़ी बदलाव आया है और वे स्तियों को सहबयोग देने लगे हैं, लेकिन जिम्मेदारियाँ अभी भी औरतों के कंधों पर ही हैं।
ऐसी स्तिति में अपने सभी उत्तरदायित्व उचित रूप से निभाने के लिए आवश्यक है कि स्त्रियाँ शिक्षित हों। उनकी शिक्षा इसलिए भी बहुत ज़रूरी है क्योंकि उनके हाथों में बच्चों की आत्मा की डोर होती है। बच्चे देश के भावी कर्णधार हैं। इसमें कोई शक नहीं है कि यदि उन्हें एक शिक्षित माता का सान्निथ्य मिलेगा तो ये भविष्य में देश के अधिक बेहतर नागरिक सिद्ध होंगे। इस प्रकार स्त्री-शिक्षा समाज में शांतिपूर्ण बदलाव लाने का एकमात्र ज़रिया है। शिक्षित स्त्रियाँ देश के विकास में महत्वपूर्ण योगदान दे सकती हैं। यह फैसला स्त्रियों का होना चाहिए कि वे योगदान घर में रहकर देना चाहती हैं या कार्यालयों में पुरुषों के साथ कंधे से कंधा मिलाकर। किसी भी स्थान पर स्त्री की शिक्षा सीधे देश के विकास की गति को तीव्र करने वाली ही सिद्ध होती है। शिक्षित माता, शिक्षित बहन, शिक्षित पत्नी, शिक्षित बेटी या शिक्षित स्त्री सहकर्मी-ये सभी हमारे जीयन को सरल एवं सुंदर बनाने की क्षमता रखती हैं।
6. माँ
जननी जन्मभूमिश्च स्वर्गादपि गरीबसी।।
माँ और मातृभूमि स्वर्ग से भी बद़कर तथा गरिमामयी हैं। माँ के सान्निध्य के सामने स्वर्ग का आकर्षण भी तुच्छ है। माँ ईश्चर का प्रतिरूप होती है। वह सभी देवी-देवताओं से भी श्रेष्ठ है। डॉ० विश्वनाथ प्रसाद ने लिखा है-
सब देव, देवियाँ एक ओर।
ऐ माँ मेरी, तू एक ओर।
‘माँ’ शब्द में ही स्नेह, ममता एवं अपनत्व का भाव भरा है। वह ममता की मूरत होती है। बच्चों के लिए तो वही जीवन होती है। वह जन्मदायिनी है, जीवनदायिनी है। जितनी वेदना सहकर वह संतान को जन्म देती है तया जितने कष्ट से उसका पालन-पोषण करती है, उसकी अभिव्यक्ति शब्दों में नहीं की जा सकती। माँ के क्षण से उसकी संतान कभी उॠण नहीं हो सकती, क्योंकि माँ जो कुछ भी करती है, उसे लौटाया नहीं जा सकता। माँ की महिमा इसलिए और भी बढ़ जाती है, क्योंकि उसके सारे कर्म निःस्वार्य होते हैं। उसकी भावनाएँ निश्छल होती हैं। उसके हृदय में वात्सल्य का अगाध सागर लहराता रहता है। वह सदा ईश्वर से अपनी संतान के लिए मंगल कामना करती रहती है।
संतान की खुशी और सुख में ही माँ की खुरी तथा सुख निहित है। औलाद का ज़रा-सा दुख माँ को असीम दुख से भर देता है। अपने बच्चे के चेहरे पर उदासी या चिंता की लकीरें देखकर ही उसका आराम हराम हो जाता है। अंपनी संतान के लिए सारे जतन करके भी बदले में यह अपने लिए कुछ भी पाने की आशा नहीं करती। उसकी बस एक ही अभिलाषा होती है कि उसकी संतान सुखी रहे। यहाँ तक कि संतान से कष्ट पाकर भी वह उसका अमंगल नहीं मनाती। माँ का हदय अल्यंत दुखी होकर भी संतान की ही फिक्र में डूबा रहता है। माँ की छाया संतान को यथासंभव हर अमंगल से बचा कर रखती है। इसी कारण से कहा गया है-‘श्वर स्वयं हर जगह उपस्थित नहीं हो सकते थे, इसलिए उन्होंने माँ को बनाया ।’
7. महात्मा गांधी
महात्मा गांधी हमारे देश के राष्ट्रपिता हैं। उनका जन्म 2 अक्तूबर, 1869 को पोरबंदर में एक कुलीन वैश्य परिवार में हुआ था। उनका पूरा नाम मोहनदास करमचंद गांधी था। उनके पिता का नाम करमचंद था। उनकी वंशगत उपाधि गांधी थी। गुजरात तथा दक्षिण के प्रदेशों में अपने नाम कें आगे पिता का नाम लगाने का प्रचलन है; इसलिए उनका पूरा नाम मोहनदास करमघंद गांधी पड़ा, किंतु सारा संसार उन्हें गांधी जी के नाम से जानता है। उनकी माता का नाम पुतलीबाई था। वे एक धार्मिक महिला थीं। घर के धार्मिक बातावरण का गांधी जी पर गहरा प्रभाव पड़ा। मैट्रिक पास करने के बाद वे पढ़ने के लिए विलायत गए। विदेश जाते समय उन्होंने माता के सामने प्रण किया कि में विदेश जाकर मांस और मदिरा का सेवन नहीं करूंगा। बचपन से ही वे सच्चे और ईमानदार व्यक्ति थे।
बैरिस्ट्री पास करने के बाद वे भारत लौटे और मुंबई हाईकोर्ट में वकालत शुरू की। अपने मुवक्किल के एक मुकदमे के सिलसिले में उन्हें दक्षिण अफ्रीका जाना पड़ा। वहाँ पर भारतीयों की दुर्दशा देखकर उनके हृदय को ठेस लगी। वहाँ उन्हें कदम-कदम पर अपमान का सामना करना पड़ा। भारत लौटने के बाद ये यहाँ की राजनीति में कूद पड़े। उन्होंने असहयोग आंदोलन चलाया, जिससे भारतीय जनता को प्रेरणा मिली। 1942 में उन्होंने ‘भारत छोड़ो’ आंदोलन
चलाया। उन्होंने देश की जनता के लिए अपना सर्वस्ब बलिदान कर दिया। अंत में उन्हीं के प्रयासों से 15 अगस्त, 1947 को हमारा देश आज़ाद हुआ। देश की आज़ादी के लिए उन्होंने समय-समय पर अंग्रेजों के खिलाफ़ लड़ाइयाँ लड़ीं। महात्मा गांधी भारत के ही नही, पूरी दुनिया के महान पुरषों में से एक थे। वे सत्य और अहिंसा के पुजारी थे। पूरा राष्ट्र उन्हें बापू के नाम से बुलाता है।
30 जनवरी, 1948 को प्रार्थना सभा में जाते समय नाथूराम गोडसे ने गोली मारकर उनकी हत्या कर दी। उनके मरने से सारा देश शोक में डूव गया। वे आज भी हमारे बीच अमर हैं।
8. डॉ० राजेंद्र प्रसाद
डॉ० राजेंद्र प्रसाद हमारे देश के प्रथम राष्ट्रपति थे। उनका जन्म 3 दिसंबर, 1884 ई० को सारण जिले (वर्तमान में छपरा) के जीरादेई नामक छोटे-से गाँय में हुआ था। उनकी प्रारंभिक शिक्षा उर्दू-फुारसी के माध्यम से हुई। 1902 ई० में उन्होंने प्रवेश (इंट्रेंस) परीक्षा दी और कलकत्ता विश्वविद्यालय में सर्यप्रथम आए। इसके बाद उन्होंने एफ०ए०, बी०ए०, एम०ए० तथा एम०एल०बी० की उपाधियोँ प्राप्त कीं। उन्होंने अपनी सारी शिक्षा कलकत्ता में पाई और सभी परीक्षाओं में सम्मानपूर्वक सफल हुए। यदि किसी भारतीय नेता के विद्युयार्थी जीवन में उसकी उत्तर पुस्तिका का पंरीक्षण करके यह कहा गया हो कि परीक्षार्थी परीक्षक से अधिक योग्य है तो वे हैं, आदर्श एवं कुशाग्र-वुद्धि राजेंद्र बाबू।
राजेंद्र बाबू अपने विद्यार्थी जीवन से ही राजनीति में भाग लेने लगे थे। 1906 ई० में उन्होंने कलक्ता में बिहारी छात्रों को संगठित करने के लिए ‘बिह्नर क्लब’ स्थापित किया। कांग्रेस के लखनक अधिवेशन में महात्मा गांधी की दृष्टि उन पर पड़ी। 1917 ई० में जब महात्मा गांधी चंपारन के नील आंदोलन के सिलसिले में बिहार आए तब उन्होंने गांधी जी को भरपूर सहयोग दिया। लोग उन्हें ‘बिह्हार का गांधी’ कहकर पुकारने लगे।
डों० राजेंद्र प्रसाद हृदय से देशभक्त थे। उन्होंने 1921 ई० में अपने व्यवसाय को छोड़कर अपना सारा जीवन देश की सेवा में समर्पित कर दिया। उनके जीवन का एक बड़ा भाग जेल में ही बीता। वे कई बार इंडियन कांग्रेस के सभापति हुए। 1947 ई० में जब देश आज़ाद हुआ तब वे भारत संघ के राष्ट्रपति चुने गए। राष्ट्रपति होने के बाद भी राजेंद्र बाबू जनता के काफी निकट रहे। उन्होंने राष्ट्रपति भवन का दूवार सबके लिए उन्मुक्त कर दिया था। 1962 में उन्होंने अवकाश ग्रहण किया। उस समय उनकी आयु 78 वर्ष की हो चुकी थी। उनका स्वास्थ्य भी गिरने लगा था। अतः वे पटना के सदाकत आश्रम में आकर रहने लगे। यहीं पर अपना शेष जीवन बिताने का निश्चय किया। किंतु ये बहुत दिनों तक हमारे बीच नहीं रह पाए। 28 फरवरी, 1963 ई० को पटना के सदाकत आश्रम में ही उन्होंने अंतिम साँस ली।
डॉ० राजेंद्र प्रसाद सरलता के प्रतीक थे। उन्होंने अपने जीवन में कई पुस्तकें भी लिखीं। हमें उनके व्यक्तित्य से प्रेरणा ग्रहण करनी चाहिए।
9. रक्षाबंधन
रक्षाबंधन भारत में मनाया जाने वाला एक पवित्र ल्योहार है। बैसे तो यह हिंदुओं का त्योहार है परंतु इसकी सादगी, पवित्रता तथा मूल भावना से आकर्षित हो सभी थर्म और संप्रदाय के लोग इसे मनाने लगे हैं। रक्षाबंधन भाई और बहन का त्योहार है। अपने-आप में अनूठु यह पर्व पूरे विश्व में केवल भारतीय ही मनाते हैं। यह पर्व भारत की सभ्यता, संस्कृति तथा मूल्यों एवं आदर्शों से हमारे जुड़ाव को प्रदर्शित करता है। रक्षाबंधन भाई-बहन के पवित्र प्रेम का प्रतीक है। इस दिन भाई-बहन नहा-धोकर साफ़ कपड़े पहनते हैं और परिवार के अन्य सदस्यों के साथ मिलकर पूजा-अर्चना करते हैं। परिवार के बड़े-बुजुर्ग ईंश्वर से घर की खुशहाली को बनाए रखने की प्रार्थना करते हैं। उसके बाद बहनें अपने भाइयों की आरती करती हैं, उन्हें तिलक लगाती हैं तथा उनकी कलाई पर राखी बाँधती हैं। बदले में भाई बहन को कुछ उपहार देते हैं। वास्तव में रक्षा सूत्र बाँधकर बहनें भाई के स्वास्थ्य तथा सुरक्षा की प्रार्थना तथा उनके दीर्घायु होने की मंगल कामना करती हैं और भाई भी बहनों के मान-सम्मान एवं खुशी की रक्षा करने की प्रतिज्ञा लेते हैं।
भारत में तो न जाने कितने ऐसे उदाहरण भरे पड़े हैं जब भाइयों और बहनों ने एक-दूसरे की खुशी तथा मान के लिए अपने सुख का ख्याल नहीं किया। भाई-बहन का प्रेम है ही इतना पवित्र कि उसे किसी प्रकार के छल, प्रदर्शन या दिखावे की आवश्यकता नहीं है। यही कारण है कि रक्षाबंधन अत्यंत सादगी से मनाया जाने वाला त्योहार है। किसी प्रकार का कोलाहल इस त्योहार में नहीं पाया जाता है, अपितु वातावरण में एक सुगंध-सी छाई रहती है। रास्ते पर चलने वाले हर भाई की कलाई पर बँधी राखी देख मन पवित्र भावनाओं से भर जाता है।
रिक्तों की यह भीनी-सी महक हमारे जीवन को सुवासित करती है। भाई-वहन के प्रेम की डोर जहाँ पूरे परिवार को जोड़े रखने में सहायक है, वहीं रक्षाबंधन पारिवारिक और सामाजिक भाईचारे को सुदृढ़ करता है। यह पर्व हमारे देश में कब से मनाया जा रहा है, इसकी तो कोई निश्चित तिथि हमें ज्ञात नहीं हैं परंतु कहा जाता है कि चित्लौड़ की रानी कर्णावती ने अपने राज्य तथा अपने सम्मान की रक्षा के लिए दिल्ली के बादशाह हुमायूँ को राखी भेजकर सहायता माँगी थी और वे उनकी रक्षा के लिए चल पड़े थे। इस कथा से यह पता चलता है कि रक्षाबंधन का प्रचलन तब भी रहा होगा और राखी की महत्ता भी।
रक्षाबंधन से पहले विभिन्न दुकानें राखियों से सज़ जाती हैं, राखी के कार्ड भी बिकने लगते हैं तथा बहनों को दिए जाने वाले लुभावने उपहार भाइयों को दुकानों की तरफ़ खींचकर ले आते हैं। हमारे देश में मुँहबोले भाई तथा मुँहबोली बहनें भी कम नहीं हैं। जिनके अपने भाई या बहन नहीं होते वे किसी और को बहन या भाई बनाकर रक्षाबंधन का त्योहार मनाते हैं। इस प्रकार राखी के ये पायन धागे नए रिश्तों को भी जन्म देते हैं और दो निर्मल हुययों को जीवन-पर्यंत कभी न टूटने वाले अटूट बंधन में बाँध देते हैं।
10. होली
होली हिंदुओं का मुख्य त्योहार है। यह चैत महीने के प्रथम दिन मनाया जाता है। वस्तुतः होली ऋतुराज वसंत की आगमन तिथि फाल्गुन पूर्णिमा पर आनंद और उल्लास का महोस्सय है। यह त्योहार ‘खाओ-पीओ और मौज़ मनाओ’ का संदेश लेकर आता है। इस त्योहार में बच्चे, बूढ़े, जवान सभी समान रूप से भाग लेते हैं। यह त्योहार अधर्म के ऊपर धर्म, बुराई के ऊपर अच्छाई, दानवत्व के ऊपर देक्त्व की विजय का प्रतीक है। यह रंगों का त्योहार है। इस दिन सभी लोग एक-दूसरे को रंग और गुताल लगाते हैं तथा नए कपड़े पहनते हैं। लोग तरह-तरह के पकयान खाते हैं और दूसरों को खिलाते हैं।
होली के एक दिन पहले होलिका जलाई जाती है। यह त्योहार भी कई पौराणिक कथाओं से जुड़ा हुआ है। कहा जाता है कि हिरण्यकशिपु एक दानव राजा था। उसने सारी पृथ्वी पर अधिकार कर लिया था और अपने-आप को भगवान मानता था। वह चाहता था कि सारी प्रजा उसे ही भगवान माने, किंतु उसी का पुत्र प्रह्लाद हरि का भक्त था। उसने अपने पिता को भगवान मानकर पूजने से इनकार कर दिया।
पिता हिरण्यकशिपू ने प्रह्लाद को समझाया। उसे जान से मार देने की कोशिश की, किंतु हरि की कृपा से वह हर बार बच जाता। हिरण्यकशिपु की बहन होलिका थी। उसे वरदान प्राप्त था कि आग उसे कुछ क्षति नहीं पहुँचा सकती। अंत में हिरण्यकशिणु ने अपनी बहन होलिका को आदेश दिया कि वह प्रह्लाद को गोद में लेकर धधकती आग में बैठ जाए। होलिका ने वैसा ही किया। होलिका खुद जलकर राख हो गई, किंतु प्रह्लाद को कुछ नहीं हुआ। तभी से हम होलिका दहन करते हैं।
होली बैर भाव भुलाकर आपसी भाइचारे को बढ़ावा देता है। यह पारिवारिक एवं सामाजिक संबंधों को दृढृता प्रदान करने वाला पर्व है।
11. दीपावली
दीपावली हिंदुओं का मुख्य पर्व है। यह कार्तिंक महीने की अमावस्या की रात को मनाया जाता है। यह पर्व अंधकार पर प्रकाश, हार पर जीत तथा बुराई पर अच्छाई का प्रतीक है। इस दिन लक्ष्मी और गणेश की पूजा की जाती है।
दीपावली के अबसर पर सभी लोग अपने घर को साफ़ करते हैं। अमीर-गरीब सभी अपने घरों में रंग-रोगन करवाते हैं। $ल$ लोगों का विश्वास है कि दीपावली की रात धन की देवी लक्ष्मी हर घर में जाती हैं, इसलिए सभी व्यक्ति अपने-अपने घरों की सफ़ाई में लग जाते हैं।
दीपावली की रात सभी लोग अपने-अपने घरों को मिट्टी के छोटे-छोटे दीपों से सजाते हैं। छोटे-छोटे दीपों की कतारें देखने में बहुत सुंदर लगती हैं। शहरों में लोग बिजली के बल्ब से अपने घरों को सजाते हैं। रात में लोग धन की देवी लक्ष्मी की पूजा करते हैं, मिठाइयाँ बाँटते हैं, बच्चे नए-नए कपड़े पहनते हैं तथा आतिशंबाज़ी का आनंद उठते हैं।
इस पर्व के पीछे कर्ई पौराणिक कथाएँ जुड़ी हुई हैं। कहा जाता है कि जिस दिन पुरुषोत्तम राम लोकपीड़क रावण का संहार कर अयोध्या लौटे थे, उस दिन पूरे अयोध्यावासियों ने घी के दीये जलाकर उनका स्वागत किया था। तभी से प्रति वर्ष यह पर्व हर्ष और उल्लास के साथ मनाया जाता है। यह् खुशी का पर्व है जो पूरे भारतवर्ष में मनाया जाता है। यह हमारे मन में भाईचारे की भावना को दृढ़ करता है। यह त्योहार हमारे राष्ट्र की उन्नति का प्रतीक है। और-
जलेंगे सुंदर दीप, मिटेगा पाप तिमिर
धरती नाच उठेगी बाँटेगा सितारा नीलांबर।
12. ईद
ईंद मुसलमानों का सर्वाधिक महत्वपूर्ण पर्व है। जिस प्रकार होली हिंदुओं के लिए मीज़-मस्ती का त्योहार है, उसी प्रकार मुसलमानों के लिए ईंद का त्योहार है। ईद शब्द का अर्थ होता है-सामाजिक स्थिति परिवर्तन। मुसलमानों के महीने हमारे धैत बैसाख या अंग्रेज़ी की जनवरी-फरवरी से भिन्न होते हैं। वे चंद्रमा के अनुसार बनाए जाते हैं। उनके बारह महीने में एक महीने का नाम है ‘रमज़ान’ का महीना। रमज़ान का महीना बड़ा ही पवित्र माना गया है। मुसलमान पूरा एक महीना उपयास अर्थात रोज़ा रखते हैं। जब रमज़ान के महीने में तीस दिनों का उपवास पूरा कर लिया जाता है तब उसके अगले दिन चाँद देखने के बाद ईद का त्योहार मनाया जाता है। इसे ईद्उल-फ़ितर भी कहते हैं।
ईद के दिन दोपहर के पहले लोग ईदगाह में जाते हैं। इस अयसर पर वहाँ मेला भी लगता है। मस्तिदों में नमाज़ भी पढ़ने की प्रथा है। बच्चे, बूड़े और जवान सभी रंग-बिरंगे नए कपडे पहनकर उत्ताह के साथ बहाँ पहुँचते हैं और नमाज़ अदा करते हैं। वहाँ पर खुतबा अर्थात प्रवचन भी होता है। बाद में सभी लोग आपस में गले मिलते हैं।
ईंद के दिन लोग अपने मित्रों, संबंधियों एवं पड़ोसियों को दावत देते हैं। जो भी जिससे मिलता है, उसे ‘ईद-मुबारक’ कहकर मुबारकबाद देता है। सेंवई इस दिन का मुख्य पकवान होता है। घर आए मेहमानों को सेंवई से मुँह मीठा कराया जाता है तथा वस्त्रों पर इत्र लगाया जाता है। देर रात तक चहल-पहल रहती है। प्रतिवर्ष आकर ईद खुशियों की बहार लुटा जाती है। यह मुसलमानों का खुशी का पर्य है।
मुबारक इंद का दिन और खुशी की सारी तमहीदें,
तुम रहो सलामत, और मनाओ सैकड़ों इदें।
13. स्वतंत्रता दिवस
स्वतंत्रता दिवस भारत की आज़ादी का दिन है। 15 अगस्त, 1947 को हमारा देश भारत लगभग 200 वर्षों की गुलामी से आज़ाद हुआ था। तभी से प्रत्येक वर्ष 15 अगस्त को हम स्वतंत्रता दिवस मनाते हैं। एक राष्ट्रीय त्योहार के रूप में पूरे देश में आज़ादी का यह जश्न मनाया जाता है।
अंग्रेज़ों ने हमारे देश पर लंबे समय तक शासन किया था। उनकी नीतियों ने भारत के विकास को अवरुदूध कर रखा था। उनके अत्याचारों से भारत की गरीब जनता त्रस्त थी। इस खोई हुई स्वतंत्रता को पाने के लिए न जाने कितने भारतीय नीजवानों को अपना सर्वस्व लुटाना पड़ा। वीर भगत सिंह, चंद्रशेखर आज़ाद, खुदीराम बोस, सुभाषचंद्र बोस जैसे बीर बाँकुरों की शहादत पर, गोखले-तिलक-गांधी की तपस्या पर तथा वीर सुभाय एवं सावरकर के दुर्दांत साहस पर 15 अगस्त, 1947 को स्वतंत्रता का सूरज दमका था और अंग्रेज़ अपने देश वापस लौटने पर मजबूर हुए थे।
15 अगस्त के दिन देश भर में राष्ट्रीय अवकाश रहता है। स्कूल-कॉलेजों तथा विभिन्न कार्यालयों में तिरंगा झंडा फहराया जाता है और राष्ट्रगान गाया जाता है। विभिन्न स्थानों पर सांस्कृतिक कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं तथा स्वतंत्रता के महत्व को समझाने वाले भाषण दिए जाते हैं। इस दिन स्वतंत्रता सेनानियों के त्याग और बलिदान को भी याद किया जाता है तथा उन्हें श्रद्धांजलि देकर उनके प्रति कृतशता व्यक्त की जरती है। दिल्ली के लाल किले पर इस दिन प्रथानमंत्री झंडा फहराते हैं। झंडे को सलामी दी जाती है, परेड का आयोजन होता है तथा झाँकियाँ निकाली जाती हैं। लाल किले की प्राचीर से प्रधानमंत्री राष्ट्र को संबोधित करते हुए देश की समस्याओं, उन्नति तथा लक्ष्य पर प्रकाश डालते हैं। वे नागरिकों का आहृवान करते हैं कि वें देश की प्रगति में अपना योगदान दें। स्वतंत्रता दिवस भारत की आज़ादी का पावन पर्व है। हमें इस दिन की महत्ता को समझना चाहिए तथा देश की एक्ता और अखंडता की रक्षा का प्रण लेना चाहिए।
14. गणतंत्र दिवस
26 जनवरी, 1950 जिसे हम गणतंत्र दिवस के नाम से जानते हैं, भारतीय इतिहास का सर्वोज्ञ्चल पृष्ठ है। इसी दिन शताब्दियों की दासता की श्रृंबला पूरी तरह टूटी थी। 26 जनवरी के दिन ही हमारा देश संपूर्ण प्रभुत्व संपन्न गणतंत्र घोषित हुआ था। इसी दिन हमारा अपना संविधान लागू हुआ या। 15 अगुस्त, 1947 को हमें औपनिवेशक स्वराज तो मिला था, किंतु सही मायनों में पूर्ण स्वतंत्रता 26 जनवरी, 1950 को ही मिली। भारत एक धर्मनिरपेक्ष
लोककल्याणकारी राज्य उद्घोषित हुआ। प्रत्येक भारतवासी को समान अवसर प्रदान किया गया तथा धर्म, जाति या लिंग के आधार पर किसी भी प्रकार के भेदभाव को समाप्त कर दिया गया।
अतः 26 जनवरी हमारा सबसे महलपपूर्ण राष्ट्रीय पर्व है। यह किसी जाति, वर्ग, वर्ण या संप्रदाय का पर्व नहीं है। यह वह पर्व है, जिसमें अखिल भारत की अंतरात्मा का सितार आनंदमयी रागिनी में बज उठता है। 26 जनवरी का यह उत्सब स्कूल, कॉलेजों, कार्यालयों में झंडा फहरराकर तथा मिठाइयाँ बाँटकर मनाया जाता है। परेड का आयोजन होता है, राष्ट्रगीत गाए जाते हैं, सांस्कृतिक कार्यक्कम आयोजित किए जाते हैं तथा देश की प्रगति और इसके लक्ष्य पर आधारित भाषण दिए जाते हैं।
26 जनबरी गणतंत्र दियस है। गणतंत्र का अर्थ है प्रजातंत्र अर्थात एक ऐसा शासन जो अब्राहम लिंकन के शब्दों में ‘जनता के लिए, जनता के दूवारा तथा जनता का शासन हो।’ महात्मा गांधी ने गणतंत्र का अर्थ बताया है, जिसमें निम्न से निम्न और उच्च से उच्च व्यक्ति को आगे बढ़ने का अवसर मिलता है। हम सभी भारतवासियों को ईमानदारी से यह विचार करना चाहिए कि महात्मा गांधी के विचारों के अनुरूप हमारा गणतंत्र खरा उतर रहा है या नहीं। हमारा प्रजातंत्र केवल शाब्दिक नहीं, वास्तविक है। जब तक हम अपने देश के दारिद्रिय, अशिक्षा, अनैतिकता तथा आत्महीनता को दूर नहीं कर सकेंगे, तब तक जनतंत्र को सही मायनों में प्राप्त नहीं कर सकेंगे।
15. हमारा देश भारत
सारे जहाँ से अच्छा हिंदोस्ताँ हमारा।
हम बुलबुले हैं इसके यह गुलिस्ताँ हमारा।
स्वर्ग से सुंदर भारत के पावन नाम से तन, मन तथा प्राणों में नवचेतना उत्पन्न होकर उल्लास का सागर उमड़ पड़ता है। यही एक ऐसा देश है, जिसकी गौरव गाथा केवल धरा ही नहीं अपितु आकाश के देवता भी गाते हैं।
सर्यप्रथम इसका नाम आर्यावर्त था। आगे चलकर इसका नाम भारतवर्ष हो गया। भारत की राजधानी नई दिल्ली है। यह यमुना नदी के किनारे स्थित है। इस देश में 29 राज्य तथा सात केंद्रशासित क्षेत्र हैं। हमारा देश भारत पहले अंग्रजों के शासन में था। बाद में 15 अगस्त, 1947 को यह आज़ाद हुआ। यह एक विशाल देश है। जनसंख्या की दृष्टि से विश्व में इसका पहला स्थान है। यह विश्व का सबसे बड़ा प्रजातंत्रात्मक गणराज्य है। आज़ादी के बाद यह निरंतर विकास की ओर अग्रसर है।
भारत केवल आध्यात्मिक दृष्टि से नहीं बल्किक भौतिक दृष्टि से भी संसार का अग्रणी देश रहा है। विज्ञान, गणित, नक्षत्र विज्ञान, चिकित्ता तथा अर्थशास्त्र के क्षेत्र में भारत के योगदान को ज़हं भुलाया जा सकता। यहाँ राम, कृष्ण, महात्मा बुद्ध, महावीर, गुरुनानक जैसे महान पुरुषों ने अवतार लिया था। इस भूमि पर गंगा, यमुना, व्रह्मपुत्र जैसी नदियाँ बहती हैं। हमारे देश की प्राकृतिक एवं भौगोलिक बनावट भी बहुत सुंदर है। पृथ्वी का स्वर्ग कश्मीर जिसके लहराते केसर के फूलों के बगीचे और आगरा का ताजमहल विश्वभर में विख्यात हैं। ये इसकी शोभा में चार-चाँद लगा रहे हैं। हमारे देश में सभी धर्मों के लोग मिल-जुलकर प्रेम से रहते हैं। यह एक शांतिप्रिय देश है। यह महान है। हमें अपने देश पर गर्व है। हमें इसकी रक्षा के लिए अपना सर्वस्व समर्पित कर देना चाहिए।
16. राष्ट्रभाषा हिंदी
हिंदी हमारी भाषा है। यह ऐसी भाषा है, जिसमें अधिकांश भारतयासी अपने विचार एक-दूसरे तक पहुँचाते हैं। यह भारत की मुख्य जनसंपर्क भाषा है तथा लगभग पूरे भारत में बोली और समझी जाती है। यही हमारी राष्ट्रभाषा है, जिसे देश के सारे कार्यालयों, विद्यातालयों तथा संस्थानों में अभिव्यक्ति के माध्यम के रूप में प्रयोग किया जाता है। अतः हिंदी पर ही हमारे देश की प्रगति निर्भर है।
स्वतंत्रता-प्राप्ति के बाद हिंदी राजभाषा बनी, पर सरकारी कार्य अंग्रेज़ी में ही चलाए जाते रहे। यह भी सच है कि दक्षिण के शंकराचार्य, रामेनुजांचार्य, रामानंद और वल्लभाचार्य जैसे धर्माचार्यों ने सदा हिंदी का समर्थन किया क्योंकि इसका संबंध देश की अन्य भाषाओं से रहा है। हिंदी के कई क्षेत्रीय रूप भारत के विभिन्न भागों में प्रचलित हैं। हिंदी का जन्म संस्कृत से हुआ है। संस्कृत देवभाषा या आर्यभाषा कही जाती है। यह संसार की प्राचीनतम भाषाओं में से एक है। हिंदी इसी संस्कृत की संतान है तथा हमारे देश के ज्ञान-विज्ञान एवं संस्कृति की संवाहिका बनने में पूर्ण रूप से सक्षम है।
हिंदी हिंदुस्तान की भाषा है। हिंदुस्तान की गंगा-यमुनी संस्कृति की छाप हिंदी पर भी दिखाई देती है। हमारे देश में जितनी सरलता से नए बिचार, सभ्यताएँ एवं संस्कृतियाँ रच-बसकर यहीं की हो गई हैं, वैसे ही हिंदी में भी विदेशी भाषाओं के शब्द घुल-मिलकर इसके अभिन्न अंग बन गए हैं। हिंदी भारत की आत्मा है। इस देश में हिंदी की महत्ता का पता इसी बात से लगाया जा सकता है कि किसी भी विचार या उत्पाद को भारत के जन-मानस तक पहुँचाने के लिए हिंदी का ही सहारा लेना पड़ता है। अतः हिंदी के बिना हिंदुस्तान की तरक्की की कल्पना ही व्यर्थ है।
17. टेलीविज़न
जो कुछ सुनो उसे यदि देखो,
इससे लाभ अधिक ही होता।
इसीलिए तो रेडियो-सेट को,
टेलीविजन का रूप दिया।
वर्तमान युग भौतिकवादी युग है। इस युग में हर व्यक्ति हर प्रकार के सुख प्राप्त करना चाहता है। इस सुख को पाने के लिए वह निरंतर प्रयास करता रहता है। इसी प्रयास का परिणाम है-टेलीकिज़न। टेलीकिज़न विज्ञान का वह आविष्कार है, जिसके माध्यम से दूरस्थ घटनाओं, समाचारों तथा अन्य कार्यक्रमों को देखा और सुना जाता है। टेलीविजुन के माध्यम से हमारा भरपूर मनोरंजन होता है। फीचर फ़ित्मों के अतिरिक्त टेली फ़िलमें, धाराबाहिक, चित्रहार, चित्रगीत, संगीत, नाटक, कवि-सम्मेलन, खेल-जगत इत्यादि प्रोग्रामों को हम घर बेठे देखते हैं। देखने में यह चमत्कार ही प्रतीत होता है। इसका आविष्कार ब्रिटेन के वैज्ञानिक जॉन०एल ${ }^d$ बेयर्ड ने किया था। आज कोई ऐसा देश नहीं है, जहाँ इसका प्रसारण नहीं किया जाता हो।
टेलीकिज़न के प्रसारण से सिर्फ़ हमारा मनोरंजन ही नहीं होता, अपितु बहुत लाभ भी हैं। यह हमारी शिक्षा का भी माध्यम है। टेलीविजुन के माध्यम से स्कूली बच्चों के पाठों का नियमित प्रसारण किया जाता है, किसानों के लिए कृधि दर्शन, अनपदों के लिए साक्षरता के कार्यक्रम आदि प्रसारित होते हैं। देश-विदेश के ताज़ा समाचार घर बैठे ही हमें मिल जाते हैं।
टेलीविज़न के प्रसारण से जहाँ एक तरफ़ लाभ है तो दूसरी तरफ़ हानि भी है। इसके प्रसारण ने हमारे सामाजिक दायरे को समेटकर रख दिया है। आज की पीढ़ी टेलीविज़न से अधिक जुड़ गई है। युवा पीढ़ी पर भी इसका बुरा प्रभाय पड़ा है। टेलीविजुन पर प्रसारित अधिकांश कार्यक्कमों ने हमारी युवा पीढ़ी को भ्रमित कर दिया है। इसके प्रभाव से बचा भी जा सकता है। टेलीविज़न पर प्रसारित कार्यक्रमों के स्तर में सुधार लाना होगा तभी हम इसके दुष्प्रभावों से बच सकते हैं।
18. वन महोत्सव
भारत एक विशाल और कृषि-्र्रथान देश है। यहाँ एक सौ करोड़ से अधिक लोगों के उपयोग की सारी वस्तुएँ, खनिज़ पदार्थों को छुोड़कर वृक्षों से ही प्राप्त होतीं हैं। यही कारण है कि हमारे शास्त्रों में वृक्षों को काटना पाप माना गया है। वृक्ष मनुष्य का बहुत उपकार करते हैं। वृक्षों से छ्यया, पशुओं का भोजन, पक्षियों को रहने के लिए शरण तथा मनुष्यों को फल, फूल, रस, गोंद, तेल, औषधि, लकड़ी तथा ईंधन इत्यादि प्राप्त होते हैं।
वृक्षारोपण से अनगिनत लाभ हैं। वृक्ष वर्षा कराने में सहायक हैं। अधिकांशतः वर्षा के आधार पर ही हमारी भूमि की सिंचाई होती है। वृक्ष भूमि के कटाव को रोकते हैं। अनेक वृक्षों के महत्य को देखकर उनकी पूजा करने का भी प्रचलन है। बड़ (बरगद), पीपल, आँवला, नीम, केलां और तुलसी इत्यादि की पूजा आज भी की जाती है।
जनसंख्या वृद्धि के कारण वृक्षों को निरंतर काटा जा रहा है। वृक्षों की कमी को पूरा करने के लिए सन 1952 में श्री के०एम० मुंश्री ने वन-महोत्सव आरंभ क्रिया और सरकार ने वन-महोत्सव मनाने का निश्चय किया। सरकार प्रतिवर्ष वन-महोत्सय मनाती है। वन हमारी राष्ट्रीय संपत्ति है। देश के प्रत्येक नागरिक का कर्तब्य है कि नए वृक्ष लगाए और पुराने वृक्षों की रक्षा करे। इससे प्राकृतिक सींदर्य में दृदृधि होगी और जीवनोपयोगी वस्तुएँ निरंतर मिलती रहेंगी। राष्ट्र की इस अमूल्य संपत्ति की रक्षा करना हमारा परम कर्तव्य है। तभी तो हमारे पूर्जों ने कहा है कि वृक्ष ही जल है और जल ही जीवन है। ये वृक्ष हमारी कतुओं का संतुलन बनाए रखने में सहायक होते हैं। अतः प्रत्येक व्यक्ति का यह परम कर्तव्य है कि वन की सुरक्षा का ध्यान रखे।
19. वर्षा ऋतु
भारत में छह ऋतुएँ समय-समय पर अपना सौदर्य बिखेर जाती हैं। ये ऋतुएँ हैं-गरीं, वर्षा, शरत, हेमंत, शिशिर तथा वसंत ऋतु। इन छह ऋतुओं में वर्षा ऋतु का अपना अलग महत्व है। इस ऋतु में काफ़ी वर्षा होती है। अप्रैल से जून तक काफ़ी गर्मी पड़ती है। सूरज के तेज़ से धरती अंगार बनी होती है। ग्रीष्म कतु की तपन से बर्षा का आगमन बड़ा सुखद लगता है। इस ऋतु में चारों ओर हरियाली नज़र आती है। नदी-नाले पानी से भर जाते हैं। कहीं मेठक की टर्र-टर्र की आयाज़ तो कहीं झींगुर की झंकार सुनाई पड़ती है। आकाश में काले-काले बादलों को देखकर पक्षिराज मयूर विभोर होकर नृत्य करने लगते हैं। इस ऋतु में इंद्रधनुष की शोभा बहुत निराली होती है।
वर्षा कतु कृषक की जीवन आशा है, क्योंकि इसी पर खेती निर्भर करती है। इसी से भिन्न-भिन्न प्रकार के अनाज़, फल, सब्जियाँ प्राप्त होती हैं। वर्षा के पानी से सभी प्रकार की गंदगी बह जाती है। यातावरण स्खच्छ तथा निर्मल हो जाता है। इस ऋतु में हम लोग कई त्योहार भी मनाते हैं; जैसे-रक्षाबंधन, जन्माष्टमी, तीज़, सावन-पूर्णिमा तथा स्वतंत्रता दिवस। यर्षा ऋतु का उल्लास ग्रामीण युवतियों के झूला-झूलने तथा गीत गाने में झलकता है। यह ऋतु हमें जीवन के सौंदर्य तथा कर्म की प्रेरणा देती है।
वर्षा ऋतु से जहाँ अनेक लाभ हैं, वहाँ हानियाँ भी कम नहीं हैं। पानी के जमाव के कारण मच्छर उत्पन्न हो जाते हैं, जिससे डेंगू और मलेरिया जैसे घातक रोग फैल जाते हैं। चारों ओर कीचड़ के कारण कहीं भी आना-जाना कठिन हो जाता है। बाढ़ के कारण अनेक गाँव नष्ट हो जाते हैं। कितने ही मकान गिर जाते हैं। ईधन तथा पशुओं के चारे का अभाव हो जाता है। कीड़े-मकोड़े ज़मीन के ऊपर आ जाते हैं। इतनी सारी हानियाँ होने के बावजूद भी वर्षा कतु जीवनदायिनी है जो जीयन के लिए एक वरदान है।
20. भारतीय किसान
भारत एक कृषि-प्रधान देश है। किसान राष्ट्र की रीद्र है। भारतीय किसान सर्दी, गर्मी तथा वर्षा में एक साधक की भाँति खेतों के काम में लगा रहता है। खेत ही उसके लिए मंदिर, मस्जिद या गुरुद्यारा है। एक भारतीय किसान की दीनावस्था अक्यनीय है। वह गरीबी, अशिक्षा, पिछड़ापन आदि का शिकार बना हुआ है। इसके साथ ही वह भूमिहीन भी है।
पहले के किसान धनी ज़मींदारों के खेत जोतते थे। उसके बदले में जुर्मींदार किसानों से ज्यादा मालगुज़ारी वसूल करते थे। किसानों के पास सिंचाई का उचित प्रबंध नहीं था। उन्हें उपज़ के लिए वर्षा पर निर्भर रहना पड़ता था। किसानों को साल में ठह महीने बेकार रहना पड़ता था। बेकार समय के लिए उनके पास कोई काम नहीं था।
किंतु जब से हमारा देश आज़ाद हुआ है तब से सरकार ने किसानों की दशा सुधारने के लिए बहुत प्रयास किया है। सबसे पहले जुर्मीदारी प्रथा उठा दी गई। बाढ़ रोकने के लिए एवं नहरों के द्वारा पानी लाने के लिए बड़ी-बड़ी योजनाएँ आरंभ की गईं हैं। गाँब-गाँव में कृषि की जानकारी के लिए कृषि पदाधिकारी भेजे जा रहे हैं। कृषि के लिए उत्तम बीज तथा खाद की व्यवस्था की जा रही है। आज वैज्ञानिक ढंग से खेती की जा रही है। इन सभी उपायों के कारण भारतीय किसान का भाग्य सुधर रहा है।
कृषक भारतीय जीवन के मेरुदंड हैं। भारतीय किसानों के भविष्य में ही भारत का भविष्य खिपा है और उनके कारण ही देशवासियों की छुधा शांत होती है। कृषक मानव जाति की विभूति हैं, जो अनाज़ के दाने उपजाते हैं, जिनके कारण फसलें लहराती हैं। वे मानवता के महान सेवक हैं और उनका महत्व किसी भी राजनीतिज्ञ से कम नहीं। डों० रामकुमार वर्मा ने ठीक ही कहा था-हे ग्राम देवता नमस्कार!’
21. नए विद्यालय में पहला दिन
मनुष्य का स्वभाव ऐसा है कि वह हर नई वस्तु के प्रति जिज्ञासु रहता है। मेरे मन में भी अपने नए विद्यालय के प्रति जिज्ञासा बनी हुई थी, जहाँ मुझे छठी कक्षा में प्रवेश लेना था। नगर निगम के विद्यालय से पाँचरीं की परीक्षा देने के बाद से ही मन में अनेक शंकाएँ एवं जिज्ञासाएँ पैदा हो गई थीं। इस विद्यालय में पाँचर्वीं तक की ही पढ़ाई होती है। छठी में प्रवेश लेने के लिए दिल्ली प्रशासन के स्कूल में जाना था। मन में जिज्ञासा तथा उत्सुकता लिए में पिता जी के साय नए विद्यालय में गया। वहाँ का वातावरण देखकर मैं दंग रह गया। विद्यालय में लगभग साठ कमरे तथा खेल का एक बड़ा-सा मैदान था। वहाँ प्रधानाचार्य का सुसज्जित ऑफिस, कार्यालय, पुस्तकालय, प्रयोगशाला, लैब, खेल-कक्ष तथा विशाल हॉल था। विद्यातालय परिसर में हरे-भरे पेड़, गमलों में लगे पौधे, फूलों की क्यारियाँ विद्यालय की सुंदरता में चार चाँद लगा रही थीं।
छठी कक्षा के ‘ए’ सेक्शन में मुझे प्रवेश मिला। कक्षाध्यापक अत्यंत मुदुभाषी तथा नग्र स्वभाव बाले थे। हाज़िरी के बाद उन्होंने अंग्रेज़ी का पाठ अत्यंत रोचक ढंग से पढ़ाया। इसके बाद गणित के अध्यापक ने भिन्नात्मक संख्याओं को जोड़ना-घटाना सिखाया। इसी प्रकार तीसरे और चौथे घंटे में अन्य विषय पढ़ाए गए। इसके बाद मध्यावकाश हो गया। इस अवधि में मैंने जुल्दी से टिफ़िन खत्म किया और नए मित्रों के साथ बाहर खेलने चला गया। खेल में बड़ा आनंद आया। पाँचवाँ, ठठा और सातयाँ पीरियड अलग-अलग विषय का था। आठवाँ पीरियड खेल का था। खेल अध्यापक हमें मैदान में ले गए और वॉलीबॉल खेलना सिखाया। अंत में हम सभी प्रार्थना स्थल पर एकत्र हुए। हमारी हाज़िरी ली गई और छुट्टी कर दी गई। इस तरह नए विद्यालालय में मेरा पहला दिन नए अनुभव देने वाला तथा आनंददायी रहा। पहले ही दिन जहाँ मेंने ज्ञान की बातें सीखीं, वहीं मेरे नए मित्र भी बन गए। नए विद्यालय को लेकर मेरी जिज्ञासा एवं आशंकाएँ शांत हो गई थीं। पहले ही दिन से यह विद्यालय अपना-सा लगने लगा था।
22. मेरी हरी-भरी दिल्ली
मैं जिस भू-भाग पर रहता हैं, उसका नाम दिल्ली है। इसे ‘भारत का हृदय’ भी कहा जाता है। हमारे देश की राजधानी भी यहीं है। यह राजसत्ता का केंद्र रही है। स्वतंत्र भारत में दिल्ली का सीददर्य भी बढ़ा है। अब तो इसका हर स्थान दर्शनीय है।
दिल्ली का सौददर्य बढ़ाने में ऊँची-ऊँची इमारतों का योगदान है तो इसके हरे-भरे यृक्षों का योगदान भी कम नहीं है। दुर्भाग्य से कभी विकास के नाम पर, कभी अवैध कॉलोनियाँ बसाने के नाम पर तो कभी सइकों को चौड़ा करने के लिए या मेट्रो रेल विस्तार के लिए इन हरे-भरे वृक्षों को काटा जाता रहा है, जिससे इसकी हरियाली में कमी आई है। जिन खेतों में हरी-भरी फसलें पैदा होती थीं, आज उनमें कॉलोनियों बसाकर कंक्रीट के जंगल खड़े किए जा रहे हैं। दिल्ली के सौंदर्य को बनाए रखने के लिए व्यापक स्तर पर वृक्षारोपण की आवश्यक्ता है। इस संबंध में जन-जागरूकता अभियान चलाना चाहिए। मैं चाहता हैँ कि इसकी शुरुआत विद्यालालय स्तर से की जाए। प्रत्येक विद्यार्थी दो या तीन पीधे लगाए और उनकी देखभाल करे तो उसके आस-पास हरियाली हो जाएगी।
खाली पड़ी जगहों में मैं पेड़ लगाकर वहाँ की हरियाली बढ़ाने में योगदान दूँगा। में अपने आस-पास तथा पार्क में लगाए गए पौधों को क्षति नहीं पहुँचाऊँगा तथा दूसरों को भी ऐसा करने के लिए कहूँगा। मैं उद्यान विभाग के कर्मचारियों से अनुरोध करँगगा कि इस वर्षा ऋतु में अधिकाधिक स्थानों पर बन-महोत्सव मनाएँ, खाली जगहों पर वृक्षारोपण करें तथा लोगों को भी ऐसा करने के लिए प्रेरित करें। दिल्ली के माननीय मुख्यमंत्री जी ने लोगों से आग्रह किया है कि वे दिल्ली को हरा-भरा बनाने के लिए इस वर्षा ऋतु में बहुत सारे पौधे लगाएँ। दिल्ली को हरा-भरा बनाने क़ी विशा में यह प्रयास सराहनीय है। हमें भी अघिकाधिक पीधे लगाकर एवं उनकी देखभाल कर दिल्ली को हरी-भरी बनाना चाहिए, जिससे इसके सौंदर्य में चार चाँद लग सकें।