Students can find the 12th Class Hindi Book Antral Questions and Answers CBSE Class 12 Hindi Elective रचना विभिन्न माध्यमों के लिए लेखन to develop Hindi language and skills among the students.
CBSE Class 12 Hindi Elective Rachana विभिन्न माध्यमों के लिए लेखन
इस पाठ में हम पढ़ेंगे और जानेंगे
प्रमुख जनसंचार माध्यम (प्रिंट, टी०वी०, रेडियो और इंटरनेट )
जनसंचार के विभिन्न माध्यमों की खूबियाँ और खामियाँ
प्रिंट माध्यम
मुद्रित माध्यम में लेखन के लिए ध्यान रखने योग्य बातें
रेडियो
रेडियो समाचार की संरचना
रेडियो के लिए समाचार लेखन-बुनियादी बातें
टेलीविज़न
टी०वी० खबरों के विभिन्न चरण
रेडियो और टेलीविज़न समाचार की भाषा और शैली
इंटरनेट
इंटरनेट पत्रकारिता
इंटरनेट पत्रकारिता का इतिहास
भारत में इंटरनेट पत्रकारिता
हिंदी नेट संसार
जनसंचार लेखन के लिए अलग-अलग तरीके क्यों?
विभिन्न जनसंचार माध्यमों के लिए लेखन के अलग-अलग तरीके हैं। अखबार और पत्र-पत्रिकाओं में लिखने की अलग शैली है, जबकि रेडियो और टेलीविज़न के लिए लिखना एक अलग कला है। चूँकि माध्यम अलग-अलग हैं, इसलिए उनकी ज़रूरतें भी अलग हैं। के अलग-अलग तरीकों को समझना बहुत ज़रूरी है। इन माध्यमों के लेखन के लिए बोलने, लिखने के अतिरिक्त पाठकों – श्रोताओं और दर्शकों की ज़रूरत को भी ध्यान में रखा जाना चाहिए।
प्रमुख जनसंचार माध्यम
इंटरनेट
प्रिंट
रेडियो
टी०वी०
प्रमुख जनसंचार माध्यम (प्रिंट, रेडियो, टी०वी० और इंटरनेट)
हम और आप नियमित रूप से अखबार पढ़ते हैं। इसके अलावा मनोरंजन या समाचार जानने के लिए टी०वी० भी देखते हैं और रेडियो भी सुनते हैं। संभव है कि हम कभी-कभार इंटरनेट पर भी समाचार पढ़ते सुनते या देखते हों।
क्या आपने कभी गौर किया है कि जनसंचार के इन सभी प्रमुख माध्यमों में समाचारों के लेखन और प्रस्तुति में क्या अंतर है ?
इस अंतर को जानने के लिए किसी शाम या रात को टी०वी० और रेडियो पर सिर्फ़ समाचार सुनिए और मौका मिले तो इंटरनेट पर जाकर उन्हीं समाचारों को फिर से पढ़िए। अगले दिन सुबह अखबार ध्यान से पढ़िए।
इन सभी माध्यमों में पढ़े, सुने या देखे गए समाचारों की लेखन शैली, भाषा और प्रस्तुति में आपको क्या फ़र्क नज़र आया? उनमें कोई विशेष अंतर है भी या नहीं?
निश्चय ही, इन सभी माध्यमों में समाचारों की लेखन शैली, भाषा और प्रस्तुति में आपको कई अंतर देखने को मिले होंगे। सबसे सहज और आसानी से नज़र आने वाला अंतर तो यही दिखाई देता है कि –
रेडियो सुनने के लिए है।
अखबार पढ़ने के लिए है।
टी०वी० देखने के लिए है।
इंटरनेट पर पढ़ने, सुनने और देखने, तीनों की ही सुविधा है। जाहिर है कि अखबार छपे हुए शब्दों का माध्यम है, जबकि रेडियो बोले हुए शब्दों का।
हम सभी को जनसंचार के विभिन्न माध्यमों के बीच फ़र्क को समझने के लिए सभी माध्यमों के लेखन की बारीकियों को समझना ज़रूरी है। हर माध्यम की अपनी कुछ खूबियाँ हैं तो कुछ खामियाँ भी। खबर लिखने के समय हमें इनका पूरा ध्यान रखना पड़ता है और इन माध्यमों की ज़रूरत को समझना पड़ता है।
जनसंचार के विभिन्न माध्यमों की खूबियाँ और खामियाँ
हम सभी जनसंचार के विभिन्न माध्यमों से सुपरिचित हैं, क्योंकि हम इनका प्रयोग करते हैं। अब अगर यह प्रश्न किया जाए कि आपको कौन – सा माध्यम सर्वाधिक पसंद है तो हमारा – आपका उत्तर अलग-अलग हो सकता है। संभवत: आपको टेलीविज़न अधिक पसंद हो और आपके दोस्त को रेडियो और किसी अन्य को समाचार पत्र। इसी प्रकार आप अपने फुरसत के क्षण पत्र-पत्रिका पढ़कर बिताते हों, पर आपका मित्र इंटरनेट पर चैटिंग करके।
जनसंचार के माध्यमों के बारे में अलग-अलग पसंद होने के कारण हैं- सबसे पहला कारण है, अपनी-अपनी पसंद, रुचि और दूसरा कारण है, उनकी ज़रूरत और पहुँच की अनुकूलता। इसके अलावा हर माध्यम की अपनी विशेषताएँ और कमियाँ हैं, जिनके कारण किसी व्यक्ति को एक साधन बहुत पसंद आता है तो दूसरा बिलकुल ही कम।
संचार माध्यमों के प्रति बनी किसी की पसंद या नापसंद से यह धारणा नहीं बना लेनी चाहिए कि जनसंचार का कोई एक माध्यम सबसे अच्छा या बेहतर है या कोई एक दूसरे से कमतर है। सबकी अपनी कुछ खूबियाँ और खामियाँ हैं। जैसे इंद्रधनुष की छटा अलग-अलग रंगों के एक साथ आने से बनती है, वैसे ही जनसंचार के विभिन्न माध्यमों की असली शक्ति उनके परस्पर पूरक होने में है। जनसंचार के विभिन्न माध्यमों के बीच फ़र्क चाहे जितना हो, लेकिन वे आपस में प्रतिद्वंद्वी नहीं, बल्कि एक-दूसरे के पूरक और सहयोगी हैं।
इन्हें भी जानें
- समाचार-पत्र में समाचार पढ़ने और अपनी इच्छानुसार उस पर रुककर सोचने से पाठक को अलग संतुष्टि मिलती है, जबकि दूरदर्शन पर समाचार देखते हुए ऐसा नहीं कर पाते।
- दूरदर्शन पर समाचार देखते हुए समाचारों, उनके चित्रों और प्रस्तोता के हाव-भाव का संगम होने के कारण सजीवता आ जाती है। इसमें दर्शक की रुचि बढ जाती है।
- रेडियो पर समाचार सुनते हुए हम उन्मुक्त होते हैं, जिससे आराम करते हुए या कोई काम करते हुए भी इसे सुना जा सकता है।
- इंटरनेट अंतरक्रियात्मकता और सूचनाओं के विशाल भंडार का अद्भुत माध्यम है, जहाँ पहुँचने के लिए बस एक बटन दबाने भर की ज़रूरत है। इनके विषयों का चयन हमारे/आपके ऊपर निर्भर करता है।
- प्रत्येक माध्यम अलग-अलग जरूरतें पूरी करता है। इन सभी का हमारे दैनिक जीवन में उपयोग है, इसलिए इनका दिनोंदिन विकास और विस्तार होता जा रहा है।
जनसंचार के विभिन्न माध्यमों की विशेषताओं और कमियों से संबंधित जानकारी
1. प्रिंट माध्यम
प्रिंट यानी मुद्रित माध्यम जनसंचार के आधुनिक माध्यमों में सबसे पुराना है। असल में आधुनिक युग की शुरुआत ही मुद्रण यानी छपाई के आविष्कार से हुई। हालाँकि मुद्रण की शुरुआत चीन से हुई, लेकिन आज हम जिस छापेखाने को देखते हैं, इसके आविष्कार का श्रेय जर्मनी के गुटेनबर्ग को जाता है। छापाखाना यानी प्रेस के आविष्कार ने दुनिया की तसवीर बदल दी। यूरोप में पुनर्जागरण ‘रेनेसाँ’ की शुरुआत में छापेखाने की अहं भूमिका थी। भारत में पहला छापाखाना सन् 1556 में गोवा में खुला। इसे मिशनरियों ने धर्म प्रचार की पुस्तकें छापने के लिए खोला था। तब से अब तक मुद्रण तकनीक में काफ़ी बदलाव आया है और मुद्रित माध्यमों का व्यापक विस्तार हुआ है। मुद्रित माध्यमों के अंतर्गत समाचार-पत्र, विभिन्न पत्र-पत्रिकाएँ, पुस्तकें आदि आती हैं, जिनका हमारे जीवन में बहुत महत्व है। वर्तमान में इनके बिना हमारा जीवन आधा-अधूरा हो जाएगा।
प्रिंट (मुद्रित) माध्यमों की विशेषताएँ –
- प्रिंट माध्यमों में शब्दों के छपे होने के कारण स्थायित्व होता है।
- इन्हें अपनी क्षमता और योग्यतानुसार पढ़ा जा सकता है।
- इन्हें प्रथम पृष्ठ, मध्य पृष्ठ या अंतिम पृष्ठ कहीं से भी पढ़ा जा सकता है।
- इन्हें बार-बार पढ़ा-समझा जा सकता है।
- इन्हें लंबे समय तक सुरक्षित रखा जा सकता है। भविष्य में इनका प्रयोग संदर्भ की भाँति किया जा सकता है।
- प्रिंट माध्यम लिखित भाषा का विस्तार है। इसमें लिखित भाषा की सभी विशेषताएँ शामिल हैं।
- लिखित और मौखिक भाषा में सबसे बड़ा अंतर यह है कि लिखित भाषा अनुशासन की माँग करती है। बोलने में एक स्वत:स्फूर्तता होती है, लेकिन लिखने में आपको भाषा, व्याकरण, वर्तनी और शब्दों के उपयुक्त इस्तेमाल का ध्यान रखना पड़ता है, यही नहीं, अगर लिखे हुए को काफ़ी लोगों तक पहुँचना है, तो आपको एक प्रचलित भाषा में लिखना पड़ता है, ताकि उसे अधिक-से-अधिक लोग समझ पाएँ।
- इनमें गूढ़ एवं गंभीर बातें भी लिखी जा सकती हैं, क्योंकि पाठक के पास इन्हें पढ़ने, सोचने समझने का समय तथा योग्यता होती है। प्रिंट माध्यम का पाठक साक्षर एवं विशेष योग्यता वाला होता है।
प्रिंट माध्यमों की कमजोरियाँ या कमियाँ
- निरक्षरों के लिए मुद्रित माध्यम किसी काम के नहीं हैं।
- मुद्रित माध्यमों के लिए लेखन करने वालों को अपने पाठकों के भाषा – ज्ञान के साथ-साथ उनके शैक्षिक ज्ञान और योग्यता का विशेष ध्यान रखना पड़ता है।
- वे रेडियो, टी०वी० या इंटरनेट की तरह तुरंत घटी घटनाओं को संचालित नहीं कर सकते।
- ये एक निश्चित अवधि पर प्रकाशित होते हैं, जैसे- अखबार 24 घंटे में एक बार, साप्ताहिक पत्रिका सप्ताह में एक बार, मासिक पत्रिका माह में एक बार आदि।
- अखबार या पत्रिका में समाचारों या रिपोर्ट को प्रकाशन के लिए स्वीकार करने की एक निश्चित समय-सीमा होती है, जिसे डेडलाइन कहते हैं।
इन्हें भी जानें
- मुद्रित माध्यमों में लेखक को जगह (स्पेस) का पूरा ध्यान रखना चाहिए। इसके अंतर्गत शब्द-सीमा का विशेष ध्यान रखा जाता है।
- छपाई से पूर्व आलेख की गलतियों को दूर कर दिया जाए, क्योंकि प्रकाशित सामग्री की अशुद्धि वहीं ठहर-सी जाती है।
- भाषा, वर्तनी, शैली और व्याकरण पर विशेष ध्यान देना चाहिए।
- प्रवाहमयता बनाए रखने के लिए तारतम्यता आवश्यक है।
प्रिंट माध्यम के कुछ उदाहरण
आईपीएल बिना बेहतर होता क्रिकेट : बॉथम
इंग्लैंड के महान हरफनमौला इयान बॉथम ने इंडियन प्रीमियर लीग बंद करने की माँग करते हुए कहा है कि यह टी-20 लीग क्रिकेट के दीर्घकालीन हित को देखते हुए काफी प्रभावशाली है और इस टूर्नामेंट के बिना खेल बेहतर होगा। उन्होंने कहा, मैं आईपीएल को लेकर चिंतित हूँ। मेरा मानना है कि यह टूर्नामेंट होना ही नहीं चाहिए क्योंकि इससे विश्व क्रिकेट की प्राथमिकताएँ बदल रही हैं। खिलाड़ी इसके गुलाम बनते जा रहे हैं। प्रशासक इसके आगे झुकते हैं। उन्होंने कहा, आईपीएल साल में दो महीने तक दुनिया के सर्वश्रेष्ठ खिलाड़ियों को खरीद लेता है और बोर्ड को एक रुपया भी नहीं मिलता, जिसने इन खिलाड़ियों का खेल में पदार्पण कराया।
बॉथम ने कहा, आईपीएल खेल के दीर्घकालीन हित को देखते हुए काफी प्रभावशाली है। इंग्लैंड के पूर्व कप्तान बॉथम ने खेल में भ्रष्टाचार को लेकर आईपीएल के असर पर भी चिंता जताई है। उन्होंने कहा, भ्रष्टाचार अपने आप में बड़ी समस्या है, लेकिन आईपीएल ने सट्टेबाजी और फ़िक्सिंग का सुनहरा मौका देकर इसे और बढ़ा दिया है। (5 सितंबर 2014, हिंदुस्तान)
टेस्ट क्रिकेट में सिर्फ़ स्टॉपर बन गए हैं धोनी : मार्टिन क्रो
टेस्ट क्रिकेट में महेंद्र सिंह धोनी की विकेटकीपिंग की आलोचना करते हुए न्यूजीलैंड के पूर्व कप्तान मार्टिन क्रो ने कहा है कि भारतीय कप्तान थकान और लगातार खेलने के कारण सिर्फ़ स्टॉपर बन गए हैं।
क्रो ने क्रिकइन्फ़ो पर अपने कॉलम में लिखा, धोनी की विकेटकीपिंग के स्तर में गिरावट के बारे में काफी कुछ कहा और लिखा जा चुका है। अति व्यस्त कार्यक्रम के कारण वे सिर्फ़ स्टॉपर बनकर रह गए हैं।
उन्होंने कहा, भारत और इंग्लैंड के बीच ताजा टेस्ट सीरीज़ में हमने दोनों टीमों का पासा
बार-बार पलटते देखा और उसमें विकेटकीपरों की भूमिका अहं हो गई थी। स्टंप के पीछे ऊर्जा के अभाव का असर गेंदबाजी और फ़ील्डिंग पर पड़ता है और भारत ने इसका खमियाजा भुगता।
क्रो ने कहा कि धोनी को टेस्ट में ब्रेक दिया जाना चाहिए क्योंकि वह सबसे ज्यादा क्रिकेट खेल रहे हैं। उन्होंने कहा, अब उस पर इसका असर पड़ रहा है और थके हुए दिमाग और ढलते शरीर के साथ भारत टेस्ट क्रिकेट में फ़ील्ड पर लंबे समय नहीं टिक सकता। (5 सितंबर 2014, हिंदुस्तान)
शुक्रवार दोपहर दो बजे से शाम पाँच बजे के बीच होगा सीधा प्रसारण, स्कूलों में सभी तैयारी पूरी
15 लाख छात्र पीएम का संदेश सुनेंगे
पाँच सितंबर को शिक्षक दिवस के मौके पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के भाषण के लिए दिल्ली के निजी व सरकारी स्कूलों में तैयारी पूरी हो चुकी है। गुरुवार को तैयारियों का जायजा लेने के लिए हर जिले के शिक्षा उपनिदेशक स्कूलों में पहुँचे। अधिकारियों ने तैयारियों पर सहमति जताई, जहाँ सेट टॉप बॉक्स का अभाव है वहाँ इंटरनेट के जरिये लाइव टेलीकास्ट दिखाया जाएगा। करीब 15 लाख बच्चे प्रधानमंत्री को देखेंगे और सुनेंगे।
पीएम नरेंद्र मोदी का भाषण सुनने के लिए स्कूल में टी०वी० की व्यवस्था करते छात्र
शिक्षा निदेशालय के एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया कि निजी व सरकारी स्कूलों में औचक निरीक्षण किया गया। स्कूल तैयार दिखे। कई सरकारी स्कूलों में सेट टॉप बॉक्स नहीं हैं। अधिकतर ने किराए पर ले लिए हैं। जहाँ किराए पर लेने की व्यवस्था नहीं हो पाई वे इंटरनेट के जरिए भाषण का कार्यक्रम छात्रों को दिखाएँगे। डी०पी०एस० आर०के०पुरम के प्रिंसिपल डी०आर० सैनी ने बताया कि उन्होंने सीधे प्रसारण के लिए तमाम इंतज़ाम कर लिए हैं। प्रोजेक्टर के जरिए भाषण सुनाया जाएगा। एम०एम० पब्लिक स्कूल की प्रिंसिपल रुमा पाठक ने बताया कि निदेशालय के निर्देशों के अनुरूप व्यवस्था की गई है। छात्रों को शिक्षक दिवस के महत्व और भाषण में किन बातों को नोट करना है, इस बारे में कहा गया है। बहरहाल, दोपहर दो बजे से शाम पाँच बजे का समय अधिकतर स्कूलों ने तय किया है। इस दौरान स्कूलों को बच्चों के शामिल होने की वीडियो बनानी होगी। वीडियो को शिक्षा निदेशक के कार्यालय में जमा कराना होगा।
निगम स्कूलों में भी विशेष व्यवस्था
प्रधानमंत्री की लाइव क्लास का सीधा प्रसारण दक्षिणी दिल्ली के सवा दो लाख बच्चे देखेंगे। वहीं पूर्वी व उत्तरी दिल्ली के भी तीन लाख से ज़्यादा बच्चे लाइव क्लास का सीधा प्रसारण देखेंगे। दिल्ली के तीनों निगमों की ओर से अपने स्कूलों में सीधा प्रसारण दिखाने की व्यवस्था कर ली गई है।
शिक्षक दिवस के मौके पर प्रधानमंत्री के साथ स्कूली बच्चों का सीधा संवाद आयोजित किया गया है। दिल्ली के तीनों निगमों ने इसके लिए खास तैयारियाँ की हैं। दक्षिणी दिल्ली नगर निगम की शिक्षा समिति के अध्यक्ष आशीष सूद ने बताया कि निगम के 432 स्कूलों के 2.25 लाख बच्चे प्रधानमंत्री के संदेश को सुन सकेंगे। निगम के पाँच हज़ार शिक्षक भी उनके संदेश से रूबरू होंगे। कार्यक्रम के सीधे प्रसारण के लिए विद्यालयों में टी०वी०, स्क्रीन, प्रोजेक्टर, केबल कनेक्शन आदि की व्यवस्था कर ली गई है। (5 सितंबर 2014, हिंदुस्तान)
2. रेडियो
रेडियो श्रव्य माध्यम है। इसमें सब कुछ ध्वनि, स्वर और शब्दों का खेल है। इन सब कारणों से रेडियो को श्रोताओं से संचालित माध्यम माना जाता है। अखबार के पाठकों को यह सुविधा उपलब्ध रहती है कि वे अपनी पसंद और इच्छा से कभी भी और कहीं से भी पढ़ सकते हैं। अगर किसी समाचार / लेखन या फ़ीचर को पढ़ते हुए कोई बात समझ में नहीं आई तो पाठक उसे फिर से पढ़ सकता है या शब्दकोश में उसका अर्थ देख सकता है या किसी से पूछ सकता है, लेकिन रेडियो के श्रोता को यह सुविधा उपलब्ध नहीं होती। वह अखबार की तरह रेडियो समाचार बुलेटिन को कभी भी और कहीं से भी नहीं सुन सकता। उसे बुलेटिन के प्रसारण समय का इंतज़ार करना होगा और फिर शुरू से लेकर अंत तक बारी-बारी से एक के बाद दूसरा समाचार सुनना होगा। यदि वह किसी गूढ़ शब्द या वाक्यांश के आने पर शब्दकोश में अर्थ ढूँढ़ने लगेगा तो बुलेटिन आगे निकल जाएगा।
इस प्रकार स्पष्ट है कि –
- रेडियो में अखबार की तरह पीछे लौटकर सुनने की सुविधा नहीं है।
- अगर रेडियो बुलेटिन में कुछ भी भ्रामक या अरुचिकर है, तो संभव है कि श्रोता तुरंत स्टेशन बंद कर दे।
- रेडियो मूलतः एकरेखीय (लीनियर) माध्यम है और रेडियो समाचार (बुलेटिन) का स्वरूप, ढाँचा और शैली इस आधार
पर ही तय होती है। - रेडियो की तरह टेलीविज़न भी एकरेखीय माध्यम है, लेकिन वहाँ शब्दों और ध्वनियों की तुलना में दृश्यों / तस्वीरों का महत्व सर्वाधिक होता है।
- टी०वी० में शब्द दृश्यों के अनुसार और उनके सहयोगी के रूप में चलते हैं। इसके विपरीत, रेडियो में शब्द और आवाज़ ही सब कुछ है।
रेडियो समाचार की संरचना
रेडियो के लिए समाचार – लेखन अखबारों से कई मामलों में भिन्न है। चूँकि दोनों माध्यमों की प्रकृति अलग-अलग है, इसलिए समाचार – लेखन करते हुए उसका ध्यान ज़रूर रखा जाना चाहिए। रेडियो समाचार की संरचना अखबारों या टी०वी० की तरह उलटा पिरामिड (इंवर्टेड पिरामिड ) शैली पर आधारित होती है। चाहे आप किसी भी माध्यम के लिए समाचार लिख रहे हों, समाचार लेखन की सबसे प्रचलित, प्रभावी और लोकप्रिय शैली उलटा पिरामिड शैली ही है। सभी तरह के जनसंचार माध्यमों में सबसे अधिक यानी 90 प्रतिशत खबरें (स्टोरीज़) इसी शैली में लिखी जाती हैं।
उलटा पिरामिड शैली
इस शैली में समाचार के सबसे महत्वपूर्ण तथ्य को सबसे पहले लिखा जाता है और उसके बाद घटते हुए महत्वक्रम में अन्य तथ्यों या सूचनाओं को लिखा या बताया जाता है।
इस शैली में किसी घटना / विचार / समस्या का ब्योरा कालानुक्रम की बजाय सबसे महत्वपूर्ण तथ्य या सूचना से शुरू होता है। इस शैली में, कहानी की तरह क्लाइमेक्स अंत में नहीं बल्कि खबर के बिलकुल शुरू में आ जाता है। उलटा पिरामिड शैली में कोई निष्कर्ष नहीं होता।
उलटा पिरामिड शैली के तहत समाचार को तीन हिस्सों में विभाजित किया जा सकता है- इंट्रो, बॉडी और समापन | समाचार के इंट्रो या लीड को हिंदी में ‘मुखड़ा’ भी कहते हैं। इसमें खबर के मूल तत्व को शुरू की दो या तीन पंक्तियों में बताया जाता है। यह खबर का सबसे अहं हिस्सा होता है।
बॉडी में समाचार के विस्तृत ब्योरे को घटते हुए महत्वक्रम में लिखा जाता है।
समापन में प्रासंगिक तथ्य और सूचनाएँ दी जा सकती हैं, अगर ज़रूरी हो तो समय और जगह की कमी को देखते हुए आखिरी कुछ लाइनों या पैराग्राफ़ को काटकर हटाया भी जा सकता है और उस स्थिति में खबर वहीं समाप्त हो जाती है।
रेडियो समाचार के इंट्रो के उदाहरण –
उत्तर प्रदेश के उन्नाव जिले में एक बस दुर्घटना में आज बीस लोगों की मौत हो गई। मृतकों में पाँच महिलाएँ और तीन बच्चे शामिल हैं।
महाराष्ट्र में बाढ़ का संकट गहराता जा रहा है। राज्य में बाढ़ से मरने वालों की संख्या बढ़कर चार सौ पैंसठ हो गई है।
रेडियो के लिए समाचार लेखन की बुनियादी बातें
रेडियो के लिए समाचार कॉपी तैयार करते हुए कुछ बुनियादी बातों का ध्यान रखना बहुत ज़रूरी है।
(क) साफ़-सुथरी और टाइप्ड कॉपी – रेडियो समाचार कानों के लिए यानी सुनने के लिए होते हैं, इसलिए उनके लेखन में इसका ध्यान रखना ज़रूरी हो जाता है। रेडियो समाचार कॉपी ऐसे तैयार की जानी चाहिए कि उसे पढ़ने में वाचक / वाचिका को कोई दिक्कत न हो। अगर समाचार कॉपी टाइप्ड और साफ़-सुथरी नहीं है तो उसे पढ़ने के दौरान वाचक / वाचिका के अटकने या गलत पढ़ने का खतरा रहता है और इससे श्रोताओं का ध्यान बँटता है या वे भ्रमित हो जाते हैं। इसके लिए –
- समाचार कॉपी को कंप्यूटर पर ट्रिपल स्पेस में टाइप किया जाना चाहिए।
- एक लाइन में अधिकतम 12-13 शब्द होने चाहिए।
- पंक्ति के आखिर में कोई शब्द विभाजित नहीं होना चाहिए।
- पृष्ठ के आखिर में कोई लाइन अधूरी नहीं होनी चाहिए।
- समाचार कॉपी में जटिल और उच्चारण में कठिन शब्द, संक्षिप्ताक्षर (एब्रीवियेशंस), अंक आदि नहीं लिखने चाहिए, जिन्हें पढ़ने में ज़बान लड़खड़ाने लगे।
अंकों को लिखने का सही तरीका
रेडियो के लिए समाचार लेखन में विशेष सावधानी बरतनी चाहिए; जैसे –
- एक से दस तक के अंकों को शब्दों में और 11 से 999 तक अंकों में लिखा जाना चाहिए। लेकिन 2837550 लिखने की बजाय ‘अट्ठाइस लाख सैंतीस हज़ार पाँच सौ पचास’ लिखा जाना चाहिए।
- अखबारों में % और $ जैसे संकेत – चिह्नों से काम चल जाता है, लेकिन रेडियो में यह पूरी तरह वर्जित है। अत: इन्हें ‘प्रतिशत’ और ‘डॉलर’ लिखा जाना चाहिए।
- जहाँ भी संभव और उपयुक्त हो, दशमलव को उसके नज़दीकी पूर्णांक में लिखना बेहतर होता है।
- इसी तरह 2837550 रुपये को रेडियो में लगभग ‘अट्ठाइस लाख रुपये’ लिखना श्रोताओं को समझाने के लिहाज़ से बेहतर है।
- खेलों के स्कोर को उसी तरह लिखना चाहिए। सचिन तेंदुलकर ने अगर 98 रन बनाए हैं तो उसे ‘लगभग सौ रन’ नहीं लिख सकते।
- मुद्रा-स्फीति के आँकड़े नजदीकी पूर्णांक में नहीं बल्कि दशमलव में ही लिखे जाने चाहिए।
- रेडियो समाचार कभी भी संख्या से नहीं शुरू होना चाहिए। इसी तरह तिथियों को उसी तरह लिखना चाहिए, जैसे हम बोलचाल में इस्तेमाल करते हैं- 15 अगस्त दो हज़ार चौदह न कि अगस्त 15, 2014।
(ख) डेडलाइन, संदर्भ और संक्षिप्ताक्षर का प्रयोग – रेडियो में अखबारों की तरह डेडलाइन अलग से नहीं, बल्कि समाचार से ही गुँथी होती है। रेडियो पर चौबीसों घंटे समाचार चलते रहते हैं। इसलिए समाचार में आज, आज सुबह, आज दोपहर, आज शाम, आज तड़के आदि का इस्तेमाल किया जाता है। इसी तरह बैठक कल होगी या …… कल हुई बैठक में का प्रयोग किया जाता है।
संक्षिप्ताक्षरों के इस्तेमाल में सावधानी
संक्षिप्ताक्षरों के प्रयोग से बचा जाए और अगर ज़रूरी हो तो समाचार के शुरू में पहले उसे पूरा दिया जाए, फिर संक्षिप्ताक्षर का प्रयोग किया जाए; जैसे- डब्ल्यूटीओ, यूनिसेफ़, सार्क, आईसीआईसीआई बैंक का इस्तेमाल सीधे भी किया जा सकता है।
3. टेलीविज़न
टेलीविज़न देखने और सुनने का माध्यम है और इसके लिए समाचार या आलेख (स्क्रिप्ट) लिखते समय इस बात पर खास ध्यान रखने की ज़रूरत पड़ती है कि आपके शब्द परदे पर दिखने वाले दृश्य के अनकूल हों। टेलीविज़न – लेखन प्रिंट और रेडियो दोनों ही माध्यमों से काफ़ी अलग है। इसमें कम-से-कम शब्दों में ज़्यादा-से-ज़्यादा खबर बताने की कला का इस्तेमाल होता है।
टी०वी० के लिए खबर लिखने की बुनियादी शर्त दृश्य के साथ लेखन है। दृश्य यानी कैमरे से लिए गए शॉट्स, जिनके आधार
पर खबर बुनी जानी है। अखबार की खबर का इंट्रो और टेलीविज़न के समाचार – लेखन में अंतर
दिल्ली की किसी इमारत में आग लगने की खबर लिखनी है। अखबार में आमतौर पर इस खबर का इंट्रो कुछ इस तरह का बन सकता है-
दिल्ली के मालवीय नगर की एक दुकान में आज शाम आग लगने से दो लोग घायल हो गए और लाखों रुपये की संपत्ति जलकर राख हो गई। यह आग शॉर्ट सर्किट की वजह से लगी।
लेकिन टेलीविज़न में इस खबर की शुरुआत कुछ अलग होगी। दरअसल टेलीविज़न पर खबर दो तरह से पेश की जाती है। इसका शुरुआती हिस्सा, जिसमें मुख्य खबर होती है, बगैर दृश्य के न्यूज़ रीडर या एंकर पढ़ता है। दूसरा हिस्सा वह होता है, जहाँ से परदे पर एंकर की जगह खबर से संबंधित दृश्य दिखाए जाते हैं। अगर आग लगने के दृश्य हमारे पास हैं तो प्रारंभिक सूचना के बाद हम इसे इस तरह लिख सकते हैं –
आग की ये लपटें सबसे पहले शाम चार बजे दिखीं, फिर तेजी से फैल गईं …….।
टी०वी० खबरों के विभिन्न चरण
किसी भी टी०वी० चैनल पर खबर देने का मूल आधार वही होता है जो प्रिंट या रेडियो पत्रकारिता के क्षेत्र में प्रचलित है, यानी सबसे पहले सूचना देना। टी०वी० में भी ये सूचनाएँ कई चरणों से होकर दर्शकों के पास पहुँचती हैं। ये चरण हैं-
- फ़्लैश या ब्रेकिंग न्यूज़
- ड्राई एंकर
- फ़ोन-इन
- एंकर-विजुअल
- एंकर-बाइट
- लाइव
- एंकर-पैकेज
अब हम इनके बारे में समझते हैं –
1. फ़्लैश या ब्रेकिंग न्यूज़ – सबसे पहले कोई बड़ी खबर फ़्लैश या ब्रेकिंग न्यूज़ के रूप में तत्काल दर्शकों तक पहुँचाई जाती है। इसमें कम-से-कम शब्दों में महज़ सूचना दी जाती है।
2. ड्राइ एंकर – इसमें एंकर खबर के बारे में दर्शकों को सीधे-सीधे बताता है कि कहाँ, क्या, कब और कैसे हुआ। जब तक खबर के दृश्य नहीं आते तब तक एंकर दर्शकों को रिपोर्टर से मिली जानकारियों के आधार पर सूचनाएँ पहुँचाता है।
3. फ़ोन-इन – इसके बाद खबर का विस्तार होता है और एंकर रिपोर्टर से फ़ोन पर बात करके सूचनाएँ दर्शकों तक पहुँचाता है। इसमें रिपोर्टर घटना वाली जगह पर मौजूद होता है और वहाँ से उसे जितनी ज़्यादा से ज्यादा जानकारियाँ मिलती हैं. वह दर्शकों को बताता है।
4. एंकर – विजुअल – जब घटना के दृश्य या विजुअल मिल जाते हैं, तब उन दृश्यों के आधार पर खबर लिखी जाती है, जो एंकर पढ़ता है। इस खबर की शुरुआत भी प्रारंभिक सूचना से होती है और बाद में कुछ वाक्यों पर प्राप्त दृश्य दिखाए जाते हैं।
5. एंकर – बाइट- बाइट यानी कथन। टेलीविज़न पत्रकारिता में बाइट का काफ़ी महत्व है। टेलीविज़न में किसी भी खबर को पुष्ट करने के लिए इससे संबंधित बाइट दिखाई जाती है। किसी घटना की सूचना देने और उसके दृश्य दिखाने के साथ ही इस घटना के बारे में प्रत्यक्षदर्शियों या संबंधित व्यक्तियों का कथन दिखा और सुनाकर खबर को प्रामाणिकता प्रदान की जाती है।
6. लाइव – लाइव यानी किसी खबर का घटनास्थल से सीधा प्रसारण। सभी टी०वी० चैनल कोशिश करते हैं कि किसी बड़ी घटना के दृश्य तत्काल दर्शकों तक सीधे पहुँचाए जा सकें। इसके लिए मौके पर मौजूद रिपोर्टर और कैमरामैन ओ०बी० वैन के ज़रिए घटना के बारे में सीधे दर्शकों को दिखाते और बताते हैं।
7. एंकर – पैकेज – एंकर- पैकेज किसी भी खबर को संपूर्णता के साथ पेश करने का एक जरिया है। इसमें संबंधित घटना के दृश्य, इससे जुड़े लोगों की बाइट, ग्राफ़िक के ज़रिए जरूरी सूचनाएँ आदि होती हैं।
टेलीविज़न लेखन इन तमाम रूपों को ध्यान में रखकर किया जाता है। जहाँ जैसी ज़रूरत होती है, वहाँ वैसे वाक्यों का इस्तेमाल होता है। शब्द का काम दृश्य को आगे ले जाना है ताकि वह दूसरे दृश्यों से जुड़ सके, उसमें निहित अर्थ को सामने लाना है, ताकि खबर के सारे आशय खुल सकें।
अक्सर टी०वी० पर खबर लिखने की एक प्रचलित शैली दिखाई पड़ती है। पहला वाक्य दृश्य के वर्णन से शुरू होता है; जैसे – दिल्ली विश्वविद्यालय में प्रवेश के लिए उमड़ी ये भीड़। या फिर – तालाब में छलांग लगाते बच्चे… इन्हीं खबरों को एक कल्पनाशील रिपोर्टर अपने शब्दों से ज़्यादा बड़े मायने दे सकता है; जैसे –
दिल्ली विश्वविद्यालय में ये छात्र-छात्राएँ आज ही दाखिला लेने के लिए उत्सुक दिखाई दे रहे हैं।
ध्वनियाँ
टी०वी० सिर्फ़ दृश्य और शब्द नहीं होता, बीच में होती हैं – ध्वनियाँ टी०वी० में दृश्य और शब्द यानी विजुअल और वॉयस ओवर (वीओ) – के साथ दो तरह की ध्वनियाँ और होती हैं। एक तो वे कथन या बाइट जो खबर बनाने के लिए इस्तेमाल किए जाते हैं और दूसरी वे प्राकृतिक ध्वनियाँ जो दृश्य के साथ-साथ चली आती हैं- यानी चिड़ियों का चहचहाना या फिर गाड़ियों के गुज़रने की ध्वनियाँ या फिर किसी कारखाने में किसी मशीन के चलने की ध्वनि।
टी०वी० के लिए खबर लिखते हुए इन दोनों तरह की ध्वनियों का ध्यान रखना ज़रूरी होता है।
नेट या नेट साउंड
टी०वी० में सिर्फ़ बाइट या वॉयस ओवर ही नहीं होते और भी ध्वनियाँ होती हैं। उन ध्वनियों से भी खबर बनती है या उसका मिजाज़ बनता है। इसलिए किसी खबर का वॉयस ओवर लिखते हुए, उसमें शॉट्स के मुताबिक ध्वनियों के लिए गुंजाइश छोड़ देनी चाहिए। टी०वी० में ऐसी ध्वनियों को नेट या नेट साउंड यानी प्राकृतिक ध्वनियाँ कहते हैं- यानी वे ध्वनियाँ जो शूट करते समय खुद-ब-खुद चली आती हैं।
रेडियो और टेलीविज़न समाचार की भाषा और शैली
दरअसल, किसी भी तरह के लेखन का कोई फ़ॉर्मूला नहीं हो सकता – रेडियो और टी०वी० पत्रकारिता का भी नहीं। रेडियो और टी०वी० आम आदमी के माध्यम हैं। भारत में उसके श्रोताओं और दर्शकों में पढ़े-लिखे लोगों से निरक्षर तक और मध्यम वर्ग से लेकर किसान-मजदूर तक सभी हैं। इन सभी लोगों की सूचना की ज़रूरतें पूरी करना ही रेडियो और टी०वी० का उद्देश्य है। जाहिर है कि लोगों तक पहुँचने का माध्यम भाषा है और इसलिए भाषा ऐसी होनी चाहिए कि वह सभी की समझ में आसानी से आ सके, लेकिन साथ ही भाषा के स्तर और उसकी गरिमा के साथ कोई समझौता भी न करना पड़े। रेडियो और टेलीविज़न के समाचारों के लेखन में ध्यान रखने योग्य बातें
- वाक्य छोटे सीधे और स्पष्ट लिखे जाएँ।
- कोई खबर लिखने से पहले उसकी प्रमुख बातों को ठीक से समझने की कोशिश करें।
- भाषा की सरलता और संप्रेषणीयता जाँचने का एक बेहतर तरीका यह है कि समाचार लिखने के बाद उसे बोल-बोलकर पढ़ लेना चाहिए।
सावधानियाँ
रेडियो और टी०वी० समाचार में भाषा तथा शैली के स्तर के संबंध में काफ़ी सावधानी बरतनी पड़ती है; जैसे-
- 1. निम्नलिखित उपर्युक्त अधोहस्ताक्षरित और क्रमांक आदि शब्दों का प्रयोग इन माध्यमों में बिलकुल मना है।
- ‘द्वारा’ शब्द के इस्तेमाल से भी बचने की कोशिश की जाती है क्योंकि इसका प्रयोग कई बार बहुत भ्रामक अर्थ देने लगता है। उदाहरण के लिए इस वाक्य पर ध्यान दीजिए – ‘ट्रैफ़िक पुलिस द्वारा रेड लाइट पर न रुकने के कारण दो वाहनों को पकड़ लिया गया।’ के स्थान पर ‘ट्रैफ़िक पुलिस ने रेड लाइट पर न रुकने के कारण दो वाहनों को पकड़ लिया।’ ज़्यादा स्पष्ट है।
- तथा, एवं, अथवा, व, किंतु, परंतु, यथा आदि शब्दों के प्रयोग से बचना चाहिए और उनकी जगह और, या, लेकिन आदि शब्दों का इस्तेमाल करना चाहिए।
- साफ़-सुथरी और सरल भाषा लिखने के लिए गैर-ज़रूरी विशेषणों, सामासिक और तत्सम शब्दों, अतिरंजित उपमाओं आदि से बचना चाहिए।
- मुहावरों के इस्तेमाल से भाषा आकर्षक और प्रभावी बनती है, इसलिए उनका प्रयोग होना चाहिए।
- यथासंभव प्रचलित शब्दों का प्रयोग करना चाहिए।
- वाक्यों में तारतम्यता बनाने का प्रयास करना चाहिए।
4. इंटरनेट
नई पीढ़ी के लिए अब इंटरनेट पत्रकारिता एक आदत-सी बनती जा रही है। जो लोग इंटरनेट के अभ्यस्त हैं या जिन्हें चौबीसों घंटे इंटरनेट की सुविधा उपलब्ध है, उन्हें अब कागज़ पर छपे हुए अखबार उतने ताज़े और मनभावन नहीं लगते। उन्हें हर घंटे – दो- घंटे में खुद को अपडेट करने की लत लगती जा रही है।
इंटरनेट क्या है ?
इंटरनेट सिर्फ़ एक टूल यानी औज़ार है, जिसे वह सूचना, मनोरंजन, ज्ञान और व्यक्तिगत तथा सार्वजनिक संवादों के आदान-प्रदान के लिए इस्तेमाल कर सकता है। लेकिन इंटरनेट जहाँ सूचनाओं के आदान-प्रदान का बेहतरीन औज़ार है, वहीं यह अश्लीलता, दुष्प्रचार और गंदगी फैलाने का भी ज़रिया है।
इंटरनेट पत्रकारिता के रूप
इंटरनेट पत्रकारिता के भी दो रूप हैं। पहला तो इंटरनेट का एक माध्यम या औज़ार के तौर पर इस्तेमाल, यानी खबरों के संप्रेषण के लिए इंटरनेट का उपयोग। दूसरा, रिपोर्टर अपनी खबर को एक जगह से दूसरी जगह तक ई-मेल के ज़रिए भेजने और समाचारों के संकलन, खबरों के सत्यापन तथा पुष्टिकरण में भी इसका इस्तेमाल करता है। रिसर्च या शोध का काम तो इंटरनेट ने बेहद आसान कर दिया है।
इंटरनेट पत्रकारिता
इंटरनेट पर अखबारों का प्रकाशन या खबरों का आदान-प्रदान ही वास्तव में इंटरनेट पत्रकारिता है। इंटरनेट पर यदि हम किसी भी रूप में खबरों, लेखों, चर्चा-परिचर्चाओं, बहसों, फ़ीचर, झलकियों, डायरियों के ज़रिए अपने समय की धड़कनों को महसूस करने और दर्ज करने का काम करते हैं तो वही इंटरनेट पत्रकारिता है। आज तमाम प्रमुख अखबार पूरे के पूरे इंटरनेट पर उपलब्ध हैं। कई प्रकाशन समूहों ने और कई निजी कंपनियों ने खुद को इंटरनेट पत्रकारिता से जोड़ लिया है। चूँकि यह एक अलग माध्यम है, इसलिए इस पर पत्रकारिता का तरीका भी थोड़ा-सा अलग है।
इंटरनेट पत्रकारिता का इतिहास
विश्व-स्तर पर इस समय इंटरनेट पत्रकारिता का तीसरा दौर चल रहा है। पहला दौर था 1982 से 1992 तक, जबकि दूसरा दौर चला 1993 से 2001 तक। तीसरे दौर की इंटरनेट पत्रकारिता 2002 से अब तक की है। पहले चरण में इंटरनेट खुद प्रयोग के धरातल पर था, तब एओएल यानी अमेरिका ऑनलाइन जैसी कुछ चर्चित कंपनियाँ सामने आईं। लेकिन कुल मिलाकर यह प्रयोगों का दौर था।
सच्चे अर्थों में इंटरनेट पत्रकारिता की शुरुआत 1993 से 2001 के बीच हुई। इस दौर में तकनीक के स्तर पर भी इंटरनेट का ज़बरदस्त विकास हुआ। नई वेब भाषा एचटीएमएल (हाइपर टेक्स्ट मार्डअप लैंग्वेज) आई, इंटरनेट ई-मेल आया, इंटरनेट एक्सप्लोरर और नेटस्केप नाम के ब्राउजर (वह औज़ार, जिसके जरीय विश्वव्यापी जाल में गोते लगाए जा सकते हैं) आए। इन्होंने इंटरनेट को और भी सुविधा – संपन्न और तेज़ रफ़्तार बना दिया। इस दौर में लगभग सभी बड़े अखबार और टेलीविज़न समूह विश्व – जाल में आए।
‘न्यूयार्क टाइम्स’, ‘वाशिंगटन पोस्ट’, ‘सीएनएन’, ‘बीबीसी’ सहित तमाम बड़े घरानों ने अपने प्रकाशनों, प्रसारणों के इंटरनेट संस्करण निकाले। दुनियाभर में इस बीच इंटरनेट का काफ़ी विस्तार हुआ। अब तक लोगों ने इसकी प्रासंगिकता के बारे में समझ लिया था। वे समझ चुके थे कि सूचनाओं के आदान-प्रदान के माध्यम के रूप में इंटरनेट सर्वोत्तम है। इन कारणों से कहा जा रहा है कि इंटरनेट पत्रकारिता का 2002 से शुरू तीसरा दौर सच्चे अर्थों में टिकाऊ हो सकता है।
भारत में इंटरनेट पत्रकारिता
भारत में इंटरनेट पत्रकारिता का अभी दूसरा दौर चल रहा है। भारत के लिए पहला दौर 1993 से शुरू माना जा सकता है, जबकि दूसरा दौर सन् 2003 से शुरू हुआ है। आज पत्रकारिता की दृष्टि से ‘टाइम्स ऑफ़ इंडिया’, ‘हिंदुस्तान टाइम्स’, ‘इंडियन एक्सप्रेस’, ‘हिंदू’, ‘ट्रिब्यून’, ‘स्टेट्समैन’, ‘पॉयनियर’, ‘एनडी टीवी’, ‘आईबीएन’, ‘जी न्यूज़’, ‘आजतक’ और ‘आउटलुक’ की साइटें ही बेहतर हैं। ‘इंडिया टुडे’ जैसी कुछ साइटें भुगतान के बाद ही देखी जा सकती हैं।
जो साइटें नियमित अपडेट होती हैं, उनमें ‘हिंदू’, ‘टाइम्स ऑफ़ इंडिया’, ‘आउटलुक’, ‘इंडियन एक्सप्रेस’, ‘एनडी टीवी’, ‘आजतक’ और ‘जी न्यूज़’ प्रमुख हैं।
इन्हें भी जानें
1. भारत में सच्चे अर्थों में यदि कोई वेब पत्रकारिता कर रहा है तो वह ‘रेडिफ डॉटकॉम’, ‘इंडिया इंफोलाइन’ व ‘सीफी’ जैसी कुछ ही साइटें हैं।
2. रेडिफ को भारत की पहली साइट कहा जा सकता है, जो कुछ गंभीरता के साथ इंटरनेट पत्रकारिता कर रही है। 3. वेब साइट पर विशुद्ध पत्रकारिता शुरू करने का श्रेय ‘तहलका डॉटकॉम’ को जाता है।
5. हिंदी नेट संसार
हिंदी में नेट पत्रकारिता ‘वेब दुनिया’ के साथ शुरू हुई। इंदौर के ‘नयी दुनिया समूह’ से शुरू हुआ, यह पोर्टल हिंदी का संपूर्ण पोर्टल है। इसके साथ ही हिंदी के अखबारों ने भी विश्वजाल (इंटरनेट) में अपनी उपस्थिति दर्ज करानी शुरू की। ‘जागरण’, ‘अमर उजाला’, ‘नयी दुनिया’, ‘हिंदुस्तान’, ‘भास्कर’, ‘राजस्थान पत्रिका’, ‘नवभारत टाइम्स’, ‘प्रभात खबर’ व ‘राष्ट्रीय सहारा’ के वेब संस्करण शुरू हुए।
‘प्रभासाक्षी’ नाम से शुरू हुआ अखबार, प्रिंट रूप में न होकर सिर्फ़ इंटरनेट पर ही उपलब्ध है। आज पत्रकारिता के लिहाज़ से हिंदी की सर्वश्रेष्ठ साइट बीबीसी की है। यही एक साइट है, जो इंटरनेट के मानदंडों के हिसाब से चल रही है। हिंदी वेबजगत् का एक अच्छा पहलू यह भी है कि इसमें कई साहित्यिक पत्रिकाएँ चल रही हैं। अनुभूति, अभिव्यक्ति, हिंदी नेस्ट, सराय आदि अच्छा काम कर रहे हैं। यही नहीं, सरकार के अनेक मंत्रालय, विभाग, सार्वजनिक उपक्रम और बैंकों ने भी अपने हिंदी अनुभाग शुरू किए हैं। अंततः ये सब मिलकर हिंदी की ऑनलाइन पत्रकारिता का मार्ग प्रशस्त करेंगे।
निष्कर्ष
कुल मिलाकर हिंदी की वेब पत्रकारिता अभी अपने शैशव काल में ही है। सबसे बड़ी समस्या हिंदी के फ़ौंट की है। अभी भी हमारे पास कोई एक ‘की-बोर्ड’ नहीं है। डायनमिक फ़ौंट की अनुपलब्धता के कारण हिंदी की ज़्यादातर साइटें खुलती ही नहीं हैं। अब माइक्रोसॉफ्ट और वेब दुनिया ने यूनिकोड फ़ौंट बनाए हैं। हिंदी जगत् हिंदी के बेलगाम फ़ौंट पर नियंत्रण और ‘की-बोर्ड’ का मानकीकरण करके ही इससे छुटकारा पा सकेगा।
पाठ्यपुस्तक से हल प्रश्न –
प्रश्न 1.
नीचे दिए गए प्रश्नों के उत्तर के लिए चार – चार विकल्प दिए गए हैं। सटीक विकल्प पर (✓) का निशान लगाइए :
(क) इंटरनेट पत्रकारिता आजकल बहुत लोकप्रिय है क्योंकि –
(i) इससे दृश्य एवं प्रिंट दोनों माध्यमों का लाभ मिलता है। [ ]
(ii) इससे खबरें बहुत तीव्र गति से पहुँचाई जाती हैं। [ ]
(iii) इससे खबरों की पुष्टि तत्काल होती है। [ ]
(iv) इससे न केवल खबरों का संप्रेषण, पुष्टि, सत्यापन होता है बल्कि खबरों के बैकग्राउंडर तैयार करने में तत्काल सहायता मिलती है। [ ]
उत्तर :
(iv) इससे न केवल खबरों का संप्रेषण, पुष्टि, सत्यापन होता है बल्कि खबरों के बैकग्राउंडर तैयार करने में तत्काल सहायता मिलती है।
(ख) टी०वी० पर प्रसारित खबरों में सबसे महत्वपूर्ण है –
(i) विजुअल [ ]
(ii) नेट [ ]
(iii) बाइट [ ]
(iv) उपर्युक्त सभी [ ]
उत्तर :
(iv) उपर्युक्त सभी।
(ग) रेडियो समाचार की भाषा ऐसी हो-
(i) जिसमें आम बोलचाल के शब्दों का प्रयोग हो
(ii) जो समाचारवाचक आसानी से पढ़ सके
(iii) जिसमें आम बोलचाल की भाषा के साथ-साथ सटीक मुहावरों का इस्तेमाल हो
(iv) जिसमें सामासिक और तत्सम शब्दों की बहुलता हो।
उत्तर :
(iii) जिसमें आम बोलचाल की भाषा के साथ-साथ सटीक मुहावरों का इस्तेमाल हो।
प्रश्न 2.
विभिन्न जनसंचार माध्यमों-प्रिंट, रेडियो, टेलीविज़न, इंटरनेट से जुड़ी पाँच-पाँच खूबियों और खामियों को
लिखते हुए एक तालिका तैयार करें।
उत्तर :
प्रश्न 3.
इंटरनेट पत्रकारिता सूचनाओं को तत्काल उपलब्ध कराता है, परंतु इसके साथ ही उसके कुछ दुष्परिणाम भी हैं। उदाहरण सहित स्पष्ट कीजिए।
उत्तर :
इंटरनेट सूचनाओं के आदान-प्रदान का सर्वोत्तम साधन अवश्य है, पर यह समाज में अत्यंत तेज़ गति से अश्लीलता परोस रहा है। यह दुष्प्रचार और गंदगी फैलाने का साधन बनता जा रहा है। इंटरनेट के प्रति युवाओं का बढ़ता आकर्षण समाज को बहुत कुछ सोचने पर विवश कर रहा है। यह ज्ञान और मनोरंजन का जितना अच्छा स्रोत है, उतना ही भ्रामक जानकारियों और अश्लील सामग्री का स्त्रोत भी है।
प्रश्न 4.
श्रोताओं या पाठकों को बाँधकर रखने की दृष्टि से प्रिंट माध्यम, रेडियो और टी०वी० में से सबसे सशक्त माध्यम कौन हैं? पक्ष-विपक्ष में तर्क दें।
उत्तर :
यूँ तो संचार के सभी माध्यमों का अपना-अपना महत्व है। सभी की अपनी-अपनी विशेषताएँ और सीमाएँ हैं, परंतु जब उनमें से किसी एक को चुनने की बात आती है तो मुझे लगता है कि श्रोताओं या पाठकों को बाँधकर रखने की दृष्टि से टी०वी० या दूरदर्शन सबसे सशक्त माध्यम है।
टी०वी० या दूरदर्शन के पक्ष में –
- दूरदर्शन के समाचारों को सुनकर शिक्षित और अशिक्षित दोनों ही लाभ उठा सकते हैं।
- समाचारों को प्रस्तुत करने का ढंग दर्शकों को बाँधे रखता है।
- समाचारों के साथ चित्रों का तालमेल इसे प्रामाणिक और तथ्यपरक बना देता है।
- समाचारों को विभिन्न रूपों में सुना जा सकता है।
- इसकी सशक्तता का प्रमाण इसके प्रयोगकर्ताओं की निरंतर बढ़ती संख्या है।
टी०वी० या दूरदर्शन के विपक्ष में –
- इसके द्वारा समाचार आदि का प्रसारण काफी खर्चीला है। साथ ही टी०वी० सेट की महँगी कीमत के कारण निर्धन इसका उचित लाभ नहीं उठा सकता।
- इसके द्वारा एक ही समाचार को बार- बार तथा बढ़ा-चढ़ाकर दिखाया जाता है, जिससे समय की बर्बादी होती है।
- समाचार सुनने – देखने के साथ-साथ उसके बारे में चिंतन-मनन, विश्लेषण आदि न कर पाने का अभाव।
- भारतीय सभ्यता-संस्कृति पर गलत प्रभाव।
प्रश्न 5.
नीचे दिए गए चित्रों को ध्यान से देखें और इनके आधार पर टी०वी० के लिए तीन अर्थपूर्ण संक्षिप्त स्क्रिप्ट लिखें।
उत्तर :
1. कितना सुंदर प्राकृतिक दृश्य है यह! पर्वत श्रृंखला सुदूर तक फैली हुई है। पर्वत के चरणों में फैली झील मनोरम है। झील में नाव चलाते व्यक्ति को देखा जा सकता है, जो नौकायन का आनंद उठा रहा है। कुछ लोगों ने झील को प्रदूषित करने का काम भी किया है। तैरते कप, कागज़ तथा विभिन्न वस्तुएँ इसका प्रमाण हैं। झील का स्वच्छ जल दर्पण का काम कर रहा है।
2. यह जल की बर्बादी का एक नमूना है। किसी की थोड़ी-सी गलती के कारण कीमती जल बह रहा है। एक ओर तो पानी की बूँद-बूँद के लिए लोग तरस रहे हैं और दूसरी ओर इसका अपव्यय। लोग इसे बहता देखकर अनदेखा करके चले जाते हैं। लोग पानी की कमी के लिए सरकार को जिम्मेदार ठहराते हैं, पर अपने कर्तव्यों का निर्वाह नहीं करते। हमें, आपको और सभी को पानी की ऐसी बरबादी रोकने के लिए कदम उठाना चाहिए।
3. देखिए!, स्कूल से वापस आते इन दो बच्चों और उनकी पीठ पर लदे दोनों बस्तों को। इन बस्तों का वज़न शायद बच्चों के वज़न से प्रतियोगिता कर रहा है, जिसमें बस्ते का वज़न भारी पड़ रहा है। बच्चों की कमर टेढ़ी करते ये बस्ते उनकी सेहत के लिए ठीक नहीं। बच्चों के सर्वांगीण विकास के लिए आयोजित सेमीनारों, बैठकों में लिए गए निर्णयों को ये बस्ते ठेंगा दिखा रहे हैं। पाठ्यक्रम निर्धारकों और शिक्षाशास्त्रियों को इस दिशा में एक बार पुनः सोच-विचार करने की आवश्यकता है।
अन्य हल प्रश्न –
बहुविकल्पीय प्रश्न –
प्रश्न 1.
रेडियो किस प्रकार का माध्यम है?
(i) दृश्य माध्यम है
(iii) श्रव्य माध्यम है
(ii) दृश्य-श्रव्य माध्यम है
(iv) उपर्युक्त तीनों गलत हैं
उत्तर :
(i) दृश्य माध्यम है
प्रश्न 2.
जनसंचार माध्यम के पसंद-नापसंद का कारण है-
(i) अपनी-अपनी पसंद
(ii) जरूरत और उसकी पहुँच की अनुकूलता
(iii) माध्यमों की विशेषताएँ और कमियाँ
(iv) उपर्युक्त सभी सही हैं
उत्तर :
(iv) उपर्युक्त सभी सही हैं
प्रश्न 3.
सूचनाओं के विशाल भंडार का अद्भुत माध्यम है –
(i) टेलीविजन
(ii) अखबार
(iii) इंटरनेट
(iv) रेडिया
उत्तर :
(iii) इंटरनेट
प्रश्न 4.
जनसंचार का सबसे पुराना माध्यम कौन सा है ?
(i) इंटरनेट
(ii) प्रिंट
(iii) टेलीविजन
(iv) रेडिया
उत्तर :
(iii) टेलीविजन
प्रश्न 5.
भारत का पहला छापाखाना कब स्थापित किया गया ?
(i) सन् 1956 में
(ii) सन् 1957 में
(iii) सन् 1955 में
(iv) सन् 1953 में
उत्तर :
(i) सन् 1956 में
प्रश्न 6.
प्रिंट माध्यम की सबसे बड़ी विशेषता है –
(i) इसे बार-बार पढ़ा जा सकता है
(ii) निरक्षरों के लिए भी उपयोगी है
(iii) यह किसी भी घटना को तुरंत प्रसारित कर सकता है
(iv) उपर्युक्त सभी
उत्तर :
(i) इसे बार-बार पढ़ा जा सकता है
प्रश्न 7.
रेडियो मूलतः
(i) दृश्य माध्यम है
(ii) एकरेखीय माध्यम है
(iii) द्विरेखीय माध्यम है
(iv) उपर्युक्त सभी सही हैं
उत्तर :
(ii) एकरेखीय माध्यम है
प्रश्न 8.
ब्रेकिंग न्यूज से आप क्या समझते हैं?
(i) इसमें विस्तार से सूचना दी जाती है
(ii) इसमें संक्षिप्त रूप से सूचना दी जाती है
(iii) रिपोर्टर घटना वाली जगह पर मौजूद है
(iv) उपर्युक्त सभी सही हैं शुरुआत कब हुई ?
उत्तर :
(ii) इसमें संक्षिप्त रूप से सूचना दी जाती है
प्रश्न 9.
भारत में इंटरनेट पत्रकारिता के पहले दौर की
(i) सन् 2003 ई०
(ii) सन् 1993 ई०
(iii) सन् 2001 ई०
(iv) सन् 1994 ई०
उत्तर :
(ii) सन् 1993 ई०
प्रश्न 10.
किसे भारत की पहली साइट कहा जाता है ?
(i) इंडिया इंफोलाइन
(ii) सीफी
(iii) तहलका डॉटकॉम
(iv) रेडिफ़
उत्तर :
(iv) रेडिफ़
लघूत्तरात्मक प्रश्न – I
प्रश्न 1.
पढ़ने, देखने और सुनने की तीनों सुविधाएँ किस जनसंचार माध्यम में है ?
उत्तर :
पढ़ने, देखने और सुनने की तीनों सुविधाएँ इंटरनेट में है।
प्रश्न 2.
सबसे ज्यादा उन्मुक्त होकर किस जनसंचार माध्यम का प्रयोग किया जाता है ?
उत्तर :
सबसे ज़्यादा उन्मुक्त होकर रेडियो का प्रयोग किया जाता है।
प्रश्न 3.
अखबार और टेलीविज़न पर समाचार प्राप्त करने में क्या अंतर है?
उत्तर :
अखबार में अपनी इच्छानुसार क्रम की बाध्यता के बिना समाचार पढ़ा जा सकता है, जबकि टेलीविज़न के समाचारों
में चित्रों के मेल के कारण सजीवता अधिक रहती है।
प्रश्न 4.
जनसंचार के प्रमुख माध्यम कौन-कौन से हैं?
उत्तर :
प्रमुख माध्यम – समाचार पत्र, पत्रिकाएँ, रेडियो, दूरदर्शन तथा इंटरनेट।
प्रश्न 5.
जनसंचार का सबसे पुराना माध्यम क्या है?
उत्तर :
प्रिंट माध्यम जनसंचार का सबसे पुराना माध्यम है।
प्रश्न 6.
छपाई की शुरुआत कहाँ हुई?
उत्तर :
छपाई की शुरुआत चीन में हुई।
प्रश्न 7.
भारत में पहला छापाखाना कब और कहाँ खुला ?
उत्तर :
भारत में पहला छापाखाना सन् 1556 में गोवा में खुला
प्रश्न 8.
मुद्रण के आविष्कार का श्रेय किसे दिया जाता है?
उत्तर :
मुद्रण के आविष्कार का श्रेय जर्मनी के गुटेनबर्ग को दिया जाता है।
प्रश्न 9.
मुद्रित माध्यमों की सबसे बड़ी शक्ति क्या है ?
उत्तर :
मुद्रित माध्यमों की सबसे बड़ी शक्ति छपे हुए शब्दों में स्थायित्व है
प्रश्न 10.
लिखित और मौखिक भाषा में मुख्य अंतर क्या है?
उत्तर :
लिखित भाषा में व्याकरण, वर्तनी और शब्दों के उपयुक्त इस्तेमाल का ध्यान रखना होता है तथा लिखित भाषा में
अनुशासन की आवश्यकता होती है, जबकि मौखिक भाषा में स्वतः स्फूर्तता होती है।
प्रश्न 11.
जनसंचार माध्यम रेडियो की क्या विशेषता है?
उत्तर :
जनसंचार माध्यम रेडियो एक श्रव्य माध्यम है। इसमें ध्वनि, स्वर और शब्दों का खेल होता है।
प्रश्न 12.
रेडियो में अखबार जैसी कौन-सी सुविधा नहीं है ?
उत्तर :
रेडियो में अखबार की तरह पीछे लौटकर सुनने की सुविधा नहीं है।
प्रश्न 13.
सबसे अधिक खबरें किस शैली में लिखी जाती हैं?
उत्तर :
सबसे अधिक खबरें उलटा पिरामिड (इंवर्टेड पिरामिड) शैली में लिखी जाती हैं।
प्रश्न 14.
‘ब्रेकिंग न्यूज़’ किसे कहते हैं?
उत्तर :
सबसे बड़ी या सबसे मुख्य समाचार को ब्रेकिंग न्यूज़ कहते हैं। इसे दर्शकों तक तत्काल और कम-से-कम शब्दों में पहुँचाया जाता है।
प्रश्न 15.
‘फ़ोन इन’ से आप क्या समझते हैं?
उत्तर :
एंकर रिपोर्टर से फ़ोन पर बात करके सूचनाएँ दर्शकों तक पहुँचाता है। रिपोर्टर घटना वाली जगह से ज़्यादा-से-ज़्यादा जानकारियाँ एंकर तक पहुँचाता है और एंकर दर्शकों को बताता है।
प्रश्न 16.
कौन – सा अखबार प्रिंट रूप में न होकर सिर्फ़ इंटरनेट पर उपलब्ध है?
उत्तर :
‘प्रभासाक्षी’ नामक अखबार प्रिंट रूप में न होकर सिर्फ़ इंटरनेट पर उपलब्ध है।
प्रश्न 17.
वेब साइट पर विशुद्ध पत्रकारिता शुरू करने का श्रेय किसे दिया जाता है?
उत्तर :
वेब साइट पर विशुद्ध पत्रकारिता शुरु करने का श्रेय ‘तहलका डॉटकॉम’ को दिया जाता है।
प्रश्न 18.
इंटरनेट पत्रकारिता की लोकप्रियता के दो कारण लिखिए।
उत्तर :
इंटरनेट पत्रकारिता की लोकप्रियता के कारण हैं-
(i) इसकी पहुँच दुनिया के कोने-कोने तक है तथा इसकी रफ़्तार बहुत तेज है।
(ii) इसके माध्यम से दुनिया के किसी भी कोने से छपने वाले अखबार या पत्रिका को पढ़ा जा सकता है।
प्रश्न 19.
जनसंचार के दो प्रमुख कार्यों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर :
जनसंचार के दो प्रमुख कार्य हैं-
(i) आम लोगों को उसके परिवेश की तमाम हलचलों की जानकारी देना।
(ii) आम लोगों की समस्याओं आदि से सरकार, प्रशासन आदि को अवगत कराना।
प्रश्न 20.
इंटरनेट माध्यम के दो लाभ समझाइए |
उत्तर :
इंटरनेट माध्यम के दो लाभ-
(i) इंटरनेट पर देश-विदेश की खबरों को आसानी और शीघ्रता से पढ़ा जा सकता है और अखबार की पुरानी फाइलें
ढूँढ़ी जा सकती हैं।
(ii) इंटरनेट के माध्यम से दुनिया के किसी कोने में आयोजित चर्चा-परिचर्चा में भाग लिया जा सकता है।
लघुत्तरात्मक प्रश्न – II
प्रश्न 1.
प्रिंट माध्यम के साधनों का उल्लेख करते हुए उसकी विशेषताओं पर प्रकाश डालिए।
उत्तर :
प्रिंट माध्यम के साधन अखबार, विभिन्न प्रकार की पत्र-पत्रिकाएँ आदि हैं। ये हमारे दैनिक जीवन में विशेष महत्व रखते हैं। प्रिंट माध्यम की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि इनके छपे शब्दों में स्थायित्व होता है। हम उसे अपनी सुविधानुसार बार-बार, रुक-रुककर या धीरे अथवा तेज़ी से पढ़ सकते हैं। इसके अलावा हम उसे पढ़ने की शुरुआत कहीं से भी कर सकते हैं। हम चाहे प्रथम पृष्ठ पहले पढ़ें या अंतिम, यह हमारी इच्छा एवं विवेक पर निर्भर करता है। इसके अलावा, इनका संग्रह करके इन्हें भविष्य में कभी भी पढ़ने के अलावा संदर्भ की तरह प्रयोग कर सकते हैं।
इनकी दूसरी बड़ी विशेषता यह है कि प्रिंट माध्यम लिखित भाषा का विस्तारित रूप होता है। इनमें लिखित भाषा की सभी विशेषताएँ शामिल होती हैं। इनके लेखन में भाषा, व्याकरण, वर्तनी और शब्दों के यथोचित इस्तेमाल का ध्यान रखना होता है। प्रिंट माध्यम की तीसरी विशेषता यह है कि यह चिंतन, विचार और विश्लेषण का माध्यम है। इस माध्यम से गंभीर और गूढ़ बातें लिखी जा सकती हैं, क्योंकि पाठक के पास न सिर्फ़ उसे पढ़ने, सोचने और समझने का समय होता है, बल्कि उसकी योग्यता भी होती है। इस माध्यम का पाठक विशेष योग्यताधारी या शिक्षित व्यक्ति होता है।
प्रश्न 2.
प्रिंट मीडिया की खामियों (कमियों) का उल्लेख कीजिए।
उत्तर :
प्रिंट मीडिया संचार के माध्यमों का एक लोकप्रिय साधन है, पर इसकी कुछ खामियाँ (कमियाँ) भी हैं। प्रिंट मीडिया अशिक्षित व्यक्तियों के लिए किसी काम का नहीं है, क्योंकि उनके लिए तो काला अक्षर भैंस बराबर होता है। इस माध्यम के लेखकों के लिए यह अति आवश्यक है कि वे अपने पाठकों के बौद्धिक स्तर और रुचि का ध्यान अवश्य रखें। इसके अलावा उन्हें अपने पाठकों की आवश्यकताओं का ध्यान रखना पड़ता है। प्रिंट मीडिया जिन समाचारों को हमारे सामने लाता है, वह कई घंटे पहले घटे होते हैं।
इनके प्रकाशन की एक निश्चित अवधि होती है। एक बार इनके छप जाने के 24 घंटे बाद ही हमें कोई समाचार मिल सकेगा। इनमें छपने वाले समाचारों या खबरों के लिए एक डेडलाइन होती है। इसके अलावा इसमें स्पेस (स्थान) का विशेष ध्यान रखना पड़ता है क्योंकि लेखक को एक निर्धारित स्थान के लिए तय शब्द-सीमा में ही लेखन करना होता है। इस माध्यम के लेखकों से हुई गलतियाँ और अशुद्धियाँ, छपाई से पूर्व ही दूर करना बहुत आवश्यक समझा जाता है, क्योंकि एक बार गलत छपाई हो जाने पर उसका निवारण अगले अंक में ही किया जा सकता है।
प्रश्न 3.
रेडियो के लिए समाचार – लेखन की संरचना पर प्रकाश डालिए।
उत्तर :
रेडियो के लिए समाचार – लेखन अखबारों के समाचार – लेखन से कई प्रकार से अलग है। चूँकि दोनों माध्यमों की प्रकृति भिन्न-भिन्न है, इसलिए इस प्रकार के लेखन में इनका महत्व रखा जाता है। रेडियो समाचार की संरचना अखबारों या टी०वी० की तरह उलटा पिरामिड (इंवर्टेड पिरामिड) शैली पर आधारित होती है। हर प्रकार के समाचार-लेखन के लिए यह सबसे अधिक प्रचलित और प्रभावी शैली है, जिसमें 90% से अधिक खबरें लिखी जाती हैं। इस शैली में समाचार के सबसे महत्वपूर्ण अंश को सबसे पहले लिखा जाता है। उसके बाद घटते महत्वक्रम में अन्य तथ्यों या सूचनाओं को लिखा जाता है। इसमें किसी घटना, विचार या समस्या का विवरण कालक्रम की बजाय महत्वपूर्ण तथ्य या सूचना से शुरू होता है। इस शैली में निष्कर्ष अंत में नहीं, बल्कि खबर के शुरू में आ जाता है।
इस शैली में समाचारों को इंट्रो, बॉडी और समापन – तीन हिस्सों में विभाजित किया जाता है। समाचार का इंट्रो, लीड या मुखड़ा भी कहलाता है, जिसके अंतर्गत ख़बर के मूल तत्व को दो-तीन पंक्तियों में बताया जाता है। यह सबसे महत्वपूर्ण अंश है। इसके अगले अंश अर्थात् बॉडी में समाचारों को विस्तृत विवरण के साथ घटते हुए महत्वक्रम में लिखा जाता है। इसके समापन में प्रासंगिक तथ्य और सूचनाएँ दी जा सकती हैं। यदि आवश्यक हुआ तो समय और जगह की कमी को देखते हुए, आखिरी पैराग्राफ या कुछ पंक्तियों को काटकर हटाया भी जा सकता है।
प्रश्न 4.
रेडियो के लिए समाचार लेखन की बुनियादी बातें कौन-कौन-सी हैं ?
अथवा
रेडियो के लिए समाचार – लेखन में क्या-क्या सावधानियाँ अपेक्षित हैं? विस्तारपूर्वक चर्चा कीजिए।
अथवा
रेडियो के लिए समाचार – कॉपी तैयार करते समय किन-किन बुनियादी बातों का ध्यान रखना चाहिए? संक्षेप में प्रकाश डालिए।
उत्तर :
रेडियो श्रव्य माध्यम है। इसमें सब कुछ ध्वनि, स्वर और शब्दों का खेल है। इन कारणों से इसे श्रोताओं से संचालित माध्यम माना जाता है। रेडियो के लिए समाचार लिखते हुए निम्नलिखित बातों का ध्यान रखना चाहिए:
1. साफ़-सुथरी और टाइप्ड कॉपी – रेडियो पर जिन समाचारों को हमारे द्वारा सुना जाता है, उन्हें सुनने से पूर्व समाचार वाचक या वाचिका द्वारा पढ़ा जाता है, इसलिए समाचार – कॉपी इस तरह तैयार की जानी चाहिए कि उसे पढ़ने में वाचक या वाचिका को कोई परेशानी न हो। समाचार – कॉपी साफ़-सुथरी और सही ढंग से टाइप्ड न होने पर उसे गलत या अटककर पढ़े जाने का खतरा रहता है। इससे श्रोताओं का ध्यान भटकता है और वे भ्रमित होते हैं। इसमें एक से दस तक के अंकों को शब्दों में और 11 से 999 तक अंकों में तथा इससे बड़ी संख्याओं को अंकों में लिखा जाना चाहिए। इसके अलावा, तिथियों को भी आम बोलचाल की भाषा में लिखा जाना चाहिए।
2. डेडलाइन और संदर्भ का प्रयोग – रेडियो में अखबारों की तरह डेडलाइन अलग से नहीं, बल्कि समाचार से ही गुँथी होती है। रेडियो पर चौबीसों घंटे समाचार चलते रहते हैं, इसलिए समाचार में आज, आज सुबह, आज दोपहर, आज शाम, आज तड़के का प्रयोग किया जाता है। इसी तरह बैठक कल होगी या कल बैठक में का प्रयोग किया जाता है।
3. संक्षिप्ताक्षरों का प्रयोग – रेडियो समाचार के लेखन में संक्षिप्ताक्षरों के प्रयोग से बचना चाहिए। यदि ऐसा करना आवश्यक हो तो समाचारों के आरंभ में उसे पूरा लिखा जाना चाहिए, फिर संक्षिप्ताक्षरों का प्रयोग किया जाना चाहिए। इनके प्रयोग में यह देखना चाहिए कि उनकी लोकप्रियता कितनी है। जैसे- डब्ल्यूटीओ, यूनिसेफ, सार्क, आईसीआईसीआई बैंक जैसे शब्दों का प्रयोग सीधे भी किया जा सकता है।
प्रश्न 5.
टेलीविज़न की खबरों के मुख्य चरण कौन-कौन से हैं? उनका वर्णन कीजिए।
अथवा
टेलीविज़न जनसंचार का सबसे लोकप्रिय और सशक्त माध्यम है। टेलीविज़न पर कोई सूचना कितने सोपानों को पार करके दर्शकों तक पहुँचती है? स्पष्ट कीजिए।
उत्तर :
टेलीविज़न के किसी भी चैनल पर खबर देने का मूल आधार होता है – सबसे पहले सूचना देना। टेलीविज़न में ये सूचनाएँ
कई चरणों में होकर दर्शकों के पास पहुँचती हैं। दर्शकों तक सूचनाएँ पहुँचने के ये क्रम हैं-
- फ़्लैश या ब्रेकिंग न्यूज़
- ड्राइ एंकर
- फ़ोन इन
- एंकर विजुअल
- एंकर बाइट
- लाइव
- एंकर पैकेज
1. फ़्लैश या ब्रेकिंग न्यूज़ – सबसे पहले कोई बड़ी खबर फ़्लैश या ब्रेकिंग न्यूज़ के रूप में तत्काल दर्शकों तक
पहुँचाई जाती है। इसमें कम-से-कम शब्दों में महज़ सूचना दी जाती है।
2. ड्राइ एंकर – इसमें एंकर खबर के बारे में दर्शकों को सीधे-सीधे बताता है कि कहाँ, क्या, कब और कैसे हुआ। जब तक खबर के दृश्य नहीं आते, एंकर दर्शकों को रिपोर्टर से मिली जानकारियों के आधार पर सूचनाएँ पहुँचाता है।
3. फोन – इन – इसके बाद खबर का विस्तार होता है और एंकर रिपोर्टर से फ़ोन पर बात करके सूचनाएँ दर्शकों तक पहुँचाता है। इसमें रिपोर्टर घटना वाली जगह पर मौजूद होता है और वहाँ से उसे जितनी ज्यादा-से-ज्यादा जानकारियाँ मिलती हैं, वह दर्शकों को बताता है।
4. एंकर – विजुअल – जब घटना के दृश्य या विजुअल मिल जाते हैं, तब उन दृश्यों के आधार पर खबर लिखी जाती है, जो एंकर पढ़ता है। इस खबर की शुरुआत भी प्रारंभिक सूचना से होती है और बाद में कुछ वाक्यों पर प्राप्त दृश्य दिखाए जाते हैं।
5. एंकर – बाइट – बाइट यानी कथन। टेलीविज़न पत्रकारिता में बाइट का काफ़ी महत्व है। टेलीविज़न में किसी खबर को पुष्ट करने के लिए इससे संबंधित बाइट दिखाई जाती है। किसी घटना की सूचना देने और उसके दृश्य के साथ ही इस घटना के बारे में प्रत्यक्षदर्शियों या संबंधित व्यक्तियों का कथन दिखा और सुनाकर खबर को प्रामाणिकता प्रदान की जाती है।
6. लाइव – लाइव यानी किसी खबर का घटनास्थल से सीधा प्रसारण। सभी टी०वी० चैनल कोशिश करते हैं कि किसी बड़ी घटना के दृश्य तत्काल दर्शकों तक सीधे पहुँचाए जा सकें। इसके लिए मौके पर मौजूद रिपोर्टर और कैमरामैन ओ०बी० वैन के ज़रिए घटना के बारे में सीधे दर्शकों को दिखाते और बताते हैं।
7. एंकर – पैकेज – पैकेज किसी भी खबर को संपूर्णता के साथ पेश करने का एक ज़रिया है। इसमें संबंधित घटना के
दृश्य, इससे जुड़े लोगों की बाइट, ग्राफ़िक के ज़रिए ज़रूरी सूचनाएँ आदि होती हैं।
प्रश्न 6.
रेडियो और टेलीविज़न समाचारों की भाषा-शैली की विशेषताएँ स्पष्ट कीजिए।
अथवा
रेडियो और टेलीविज़न समाचारों की भाषा-शैली की विशेषताओं पर सोदाहरण प्रकाश डालिए।
उत्तर :
किसी भी तरह के लेखन का कोई फ़ार्मूला नहीं हो सकता। इसी तरह रेडियो और टी०वी० पत्रकारिता का भी नहीं। रेडियो और टी०वी० आम आदमी के माध्यम हैं। भारत में उसके श्रोताओं और दर्शकों में पढ़े-लिखे लोगों से निरक्षर तक और मध्यम वर्ग से लेकर किसान मजदूर सभी हैं। भाषा लोगों तक पहुँचने का माध्यम है, अतः भाषा ऐसी होनी चाहिए कि वह सभी की समझ में आसानी से आ जाए तथा भाषा की गरिमा भी बनी रहे, और उसके स्तर से समझौता भी न करना पड़े। रेडियो और टी०वी० के समाचार – लेखन में आपसी बोलचाल की भाषा का प्रयोग करना चाहिए। भाषा सरल हो, जिसमें वाक्य छोटे सीधे और स्पष्ट लिखे जाएँ।
रेडियो और टी०वी० के समाचार लेखन में प्रयुक्त भाषा की सरलता और संप्रेषणीयता जाँचने के लिए समाचार – लेखन के बाद ज़ोर-ज़ोर से बोलकर उसे पढ़ना चाहिए। इससे भाषा की प्रवाहमयता का ज्ञान हो जाएगा। इससे समाचारवाचक को आने वाली कठिनाइयों का पता भी चल जाएगा। दोनों माध्यमों के समाचार – लेखन में भाषा और शैली के स्तर पर काफी सावधानी बरतनी होती है। इनके लिए समाचार लेखन में निम्नलिखित, उपर्युक्त, अधोहस्ताक्षरित क्रमांक जैसे शब्दों से बचा जाता है। इनके प्रयोग से अर्थ में भ्रम उत्पन्न हो जाता है। इसके अलावा हमें तथा, एवं, अथवा, व, किंतु, परंतु, यथा आदि शब्दों से भी बचना चाहिए तथा उनकी जगह या, और, लेकिन आदि शब्दों का प्रयोग करना चाहिए। भाषा की सौंदर्य वृद्धि के लिए मुहावरों का प्रयोग करना चाहिए। मुहावरों के अनावश्यक प्रयोग से भाषा का स्वाभाविक प्रवाह बाधित होता है। इसमें यथासंभव प्रचलित शब्दों का प्रयोग करते हुए वाक्यों में तारतम्यता बनाए रखने का सदैव प्रयास करना चाहिए।
प्रश्न 7.
इंटरनेट क्या है? पत्रकारिता के क्षेत्र में इंटरनेट के योगदान का उल्लेख कीजिए।
उत्तर :
इंटरनेट एक टूल अर्थात् औज़ार मात्र है, जिसका प्रयोग सूचना, मनोरंजन, ज्ञान और व्यक्तिगत तथा सार्वजनिक संवादों के आदान-प्रदान के लिए किया जाता है। इंटरनेट एक ओर जहाँ सूचनाओं का आदान-प्रदान करता है, वहीं यह अश्लीलता फैलाने का साधन भी है।
पत्रकारिता के लिए इंटरनेट का प्रयोग दो रूपों में किया जाता है। पहला, इसे एक माध्यम या औज़ार के तौर पर प्रयोग किया जाता है, अर्थात् समाचारों के संप्रेषण हेतु इंटरनेट का उपयोग और दूसरा, रिपोर्टर अपनी एक खबर को एक जगह से दूसरी जगह तक ई-मेल के ज़रिए भेजने और समाचारों के संकलन, खबरों के सत्यापन और पुष्टिकरण में भी इसका इस्तेमाल करता है। टेलीविज़न या अन्य समाचार – माध्यमों में खबरों के बैकग्राउंडर तैयार करने में या किसी खबर की पृष्ठभूमि तत्काल जानने के लिए जहाँ पहले ढेर सारी अखबारी कतरनों की फ़ाइलें खंगालनी पड़ती थीं, वहीं अब यह काम चंद मिनटों में हो जाता है। इंटरनेट की मदद से आज एक सेकंड में 56 किलोबाइट अर्थात् लगभग 70 हज़ार शब्द भेजे जा सकते हैं।
प्रश्न 8.
भारत में इंटरनेट पत्रकारिता की स्थिति पर प्रकाश डालिए।
उत्तर :
भारत में इंटरनेट पत्रकारिता का अभी दूसरा दौर चल रहा है। भारत के लिए पहला दौर 1993 से शुरू माना जा सकता है, जबकि दूसरा दौर सन् 2003 से शुरू हुआ है। आज पत्रकारिता की दृष्टि से ‘टाइम्स ऑफ़ इंडिया’, ‘हिंदुस्तान टाइम्स’, ‘इंडियन एक्सप्रेस’, ‘हिंदू’, ‘ट्रिब्यून’, ‘स्टेट्समैन’, ‘पायनियर’, ‘एनडी टी०वी०’, ‘आईबीएन’, ‘जी न्यूज़’, ‘आजतक’ और आउटलुक’ की साइटें ही बेहतर हैं। ‘इंडिया टुडे’ जैसी कुछ साइटें भुगतान के बाद ही देखी जा सकती हैं। जो साइटें नियमित अपडेट होती हैं, उनमें ‘हिंदू’, ‘टाइम्स ऑफ़ इंडिया’, ‘आउटलुक’, ‘इंडियन एक्सप्रेस’, ‘एनडी टी०वी०’, ‘आजतक’ और ‘जी न्यूज़’ प्रमुख हैं।
भारत में सच्चे अर्थों में यदि कोई वेब पत्रकारिता कर रहा है तो वह ‘रेडिफ़ डॉटकॉम’, ‘इंडियाइंफोलाइन’ व ‘सीफी’ जैसी कुछ ही साइटें हैं। रेडिफ़ को भारत की पहली साइट कहा जा सकता है जो कुछ गंभीरता के साथ इंटरनेट पत्रकारिता कर रही है। वेबसाइट पर विशुद्ध पत्रकारिता शुरू करने का श्रेय ‘तहलका डॉटकॉम’ को जाता है।
प्रश्न 9.
हिंदी नेट संसार का संक्षिप्त परिचय दीजिए।
उत्तर :
हिंदी में नेट पत्रकारिता की शुरुआत ‘वेब दुनिया’ से हुई। इंदौर के ‘नयी दुनिया समूह’ से शुरू हुआ यह पोर्टल हिंदी का संपूर्ण पोर्टल है। इसके साथ ही हिंदी के अखबरों ने भी इंटरनेट में अपनी उपस्थिति दर्ज करानी शुरू की है। ‘जागरण’, ‘अमर उजाला’, ‘नयी दुनिया’, ‘हिंदुस्तान’, ‘भास्कर’, ‘राजस्थान पत्रिका’, ‘नवभारत टाइम्स’, ‘प्रभात खबर’ एवं ‘राष्ट्रीय सहारा ‘ के वेब संस्करण शुरू हुए हैं। ‘प्रभासाक्षी’ नाम से शुरू हुआ अखबार प्रिंट में न होकर सिर्फ़ इंटरनेट पर उपलब्ध है। आज पत्रकारिता की दृष्टि से हिंदी की सर्वश्रेष्ठ वेबसाइट बीबीसी की है। यही एक साइट है जो इंटरनेट के मानदंडों के अनुरूप चल रही है।
हिंदी वेबजगत् का एक अच्छा पहलू यह भी है कि इसमें कई साहित्यिक पत्रिकाएँ चल रही हैं। अनुभूति, अभिव्यक्ति, हिंदी नेस्ट, सराय आदि अच्छा काम कर रहे हैं। सरकार के अनेक मंत्रालय विभाग, सार्वजनिक उपक्रम और बैंकों ने भी अपने हिंदी अनुभाग शुरू किए हैं। ये सब मिलकर हिंदी की ऑनलाइन पत्रकारिता के लिए अत्यंत उपयोगी सिद्ध होंगे।
प्रश्न 10.
संचार माध्यमों में दूरदर्शन की भूमिका पर प्रकाश डालते हुए, बताइए कि दूरदर्शन समाचारवाचक में
कौन-कौन से गुण होने चाहिए?
अथवा
दूरदर्शन पर समाचार वाचक से आप क्या – क्या अपेक्षाएँ रखते हैं, उनका सोदाहरण उल्लेख कीजिए।
उत्तर :
दूरदर्शन संचार माध्यमों का दृश्य एवं श्रव्य माध्यम है। इसे सर्वाधिक प्रभावशाली एवं सशक्त माध्यम कहा जाए तो कोई अतिशयोक्ति न होगी। मध्यम और निम्न वर्ग के लोगों पर इसकी विशेष पकड़ एवं प्रभाव है। यह ऐसा माध्यम है, जिससे साक्षर और निरक्षर दोनों ही समान रूप से लाभान्वित होते हैं। यह शिक्षा, ज्ञान, सूचना और मनोरंजन जैसी हमारी सभी आवश्यकताओं की पूर्ति करता है। इस पर समय-समय पर सचित्र समाचार दिखाए जाते हैं।
दूरदर्शन समाचारवाचक के गुण
- समाचारवाचक का सबसे महत्वपूर्ण गुण है – उसकी भाषा, जिसमें भाषिक शुद्धता, उच्चारण शुद्धता, मधुरता, सहजता आदि गुण हों।
- उसके बोलने में हकलाहट या तुतलाहट न हो।
- वह आम बोलचाल के शब्दों का प्रयोग करता हो।
- उसमें धाराप्रवाह बोलने की दक्षता हो।
- उसे छोटे-छोटे वाक्यों का प्रयोग करना चाहिए तथा एक ही वाक्य में कई बात कहने के लोभ से बचना चाहिए।
- उसके द्वारा प्रयुक्त वाक्यों में तारतम्यता होनी चाहिए।
- समाचार की घटनाओं के अनुरूप चेहरे पर हावभाव लाने में कुशल होना चाहिए।
- समाचारवाचक में कम-से-कम शब्दों में अधिक-से-अधिक कहने की वाक्पटुता होनी चाहिए।
प्रश्न 11.
हमारे दैनिक जीवन में मुद्रित माध्यमों का महत्व स्पष्ट करते हुए उनकी विशेषताओं का उल्लेख कीजिए।
उत्तर :
दैनिक जीवन में मुद्रित माध्यमों का महत्व – प्रिंट यानी मुद्रित माध्यम जनसंचार के आधुनिक माध्यमों में सबसे पुराना है। असल में आधुनिक युग की शुरुआत ही मुद्रण यानी छपाई के आविष्कार से हुई। हालाँकि मुद्रण की शुरुआत चीन से हुई, लेकिन आज हम जिस छापेखाने को देखते हैं, इसके आविष्कार का श्रेय जर्मनी के गुटेनबर्ग को जाता है। छापाखाना यानी प्रेस के आविष्कार ने दुनिया की तसवीर बदल दी। यूरोप में पुनर्जागरण ‘रेनेसाँ’ की शुरुआत में छापेखाने की अहं भूमिका थी। भारत में पहला छापाखाना सन् 1556 में गोवा में खुला। इसे मिशनरियों ने धर्म प्रचार की पुस्तकें छापने के लिए खोला था। तब से अब तक मुद्रण तकनीक में काफ़ी बदलाव आया है और मुद्रित माध्यमों का व्यापक विस्तार हुआ है। मुद्रित माध्यमों के अंतर्गत समाचार पत्र, विभिन्न पत्र-पत्रिकाएँ, पुस्तकें आदि आती हैं, जिनका हमारे जीवन में बहुत महत्व है। वर्तमान में इनके बिना जीवन आधा-अधूरा हो जाएगा।
मुद्रित माध्यमों की विशेषताएँ – इनकी विशेषताएँ निम्नलिखित हैं :
- मुद्रित अर्थात् छपे शब्दों में स्थायित्व होता है।
- इन्हें अपनी इच्छानुसार धीरे-धीरे या तीव्र गति से पढ़ा जा सकता है।
- इन्हें दुबारा या बार- बार, जितनी बार मन करे पढ़ा जा सकता है।
- इन्हें कहीं से या किसी पृष्ठ से पढ़ा जा सकता है। इनमें क्रम की बाध्यता नहीं होती।
- इनसे लिखित भाषा को विस्तार मिलता है।
- इनसे अपना भाषागत सुधार (व्याकरण, शब्द, वाक्य – विन्यास आदि) किया जा सकता है।
- इनका संग्रह करके भविष्य में कभी भी पढ़ा जा सकता है और संदर्भ के रूप में इनका प्रयोग किया जा सकता है।
- इनमें किसी कठिन शब्द, वाक्यांश या वाक्य का अर्थ समझ में न आने पर उनका निराकरण करते हुए आगे पढ़ा जा सकता है।
प्रश्न 12.
भारत में इंटरनेट पत्रकारिता के विकास पर टिप्पणी लिखिए।
उत्तर :
इंटरनेट पत्रकारिता को ऑनलाइन पत्रकारिता, साइबर पत्रकारिता या वेब पत्रकारिता जैसे विविध नामों से जाना जाता है। नई पीढ़ी के लिए इंटरनेट पत्रकारिता अब एक आदत-सी बनती जा रही है। इंटरनेट के अभ्यस्त लोगों के लिए कागज पर छपे अखबार उतने ताज़े और मनभावन नहीं लगते। वे इंटरनेट के माध्यम से हर घंटे – दो-घंटे में अपडेट होना चाहते हैं।
इंटरनेट के स्वरूप और विकास के आधार पर इसके काल को इस प्रकार विभाजित किया जा सकता है –
- प्रथम चरण – इंटरनेट पत्रकारिता का पहला चरण 1982 से 1992 तक था।
- दूसरा चरण – इसका दूसरा चरण 1993 से 2001 तक रहा।
- तृतीय चरण – पत्रकारिता का तीसरा चरण 2002 से अब तक का है।
भारत में इंटरनेट पत्रकारिता का अभी दूसरा दौर चल रहा है। भारत में इस पत्रकारिता का पहला चरण 1993 से शुरू हुआ माना जा सकता है, जबकि दूसरा दौर 2003 से शुरू हुआ है। वर्तमान में पत्रकारिता की दृष्टि से ‘टाइम्स ऑफ़ इंडिया’, ‘हिंदुस्तान टाइम्स’, ‘इंडियन एक्सप्रेस’, ‘हिंदू’, ‘ट्रिब्यून’, ‘स्टेट्समैन’, ‘पॉयनियर’, ‘एनडीटी०वी०’, ‘आईबीएन’, ‘जी न्यूज़’, ‘आज तक’ और ‘आउटलुक’ साइटें बेहतर हैं। ‘इंडिया टुडे’ जैसी कुछ साइटें भुगतान के बाद ही देखी जा सकती हैं।
भारत में ‘रेडिफ़ डॉटकॉम’, ‘इंडिया इंफोलाइन’ एवं ‘सीफी’ जैसी कुछ साइटें सच्चे अर्थों में पत्रकारिता का कार्य कर रही हैं। ‘रेडिफ़ डॉटकॉम’ भारत की पहली ऐसी साइट है, जो गंभीरता के साथ पत्रकारिता कर रही है। वेबसाइट पर विशुद्ध पत्रकारिता शुरू करने का श्रेय ‘तहलका डॉटकॉम’ को जाता है। इनके अलावा अनुभूति, अभिव्यक्ति, हिंदी नेस्ट, सराय आदि साहित्यिक पत्रिकाएँ भी हिंदी वेबजगत् में अच्छा काम कर रही हैं।
भारत में हिंदी वेब पत्रकारिता अभी भी अपनी शैशवावस्था में ही है। उसकी सबसे बड़ी समस्या हिंदी के फ़ौंट की है। अभी यहाँ कोई एक ‘की-बोर्ड’ नहीं है। डायनामिक फ़ौंट के अभाव में हिंदी की साइटें नहीं खुलती हैं। हिंदी के बेलगाम फ़ौंट संसार पर नियंत्रण और ‘की-बोर्ड’ का मानकीकरण करने से इन समस्याओं से छुटकारा पाया जा सकता है।
प्रश्न 13.
मुद्रित माध्यम से आप क्या समझते हैं? इसकी विशेषताएँ स्पष्ट करते हुए बताइए कि वह इलेक्ट्रॉनिक माध्यम
की अपेक्षा कम लोकप्रिय क्यों है?
उत्तर :
मुद्रित माध्यम की गणना जनसंचार के पुराने साधनों में की जाती है। इसकी शुरुआत छपाई शुरू होने के साथ हुई। छापेखाने के आविष्कार से दुनिया की तस्वीर बदल गई। भारत में पहला छापाखाना सन् 1556 ई० में गोवा में खुला, जिसका प्रयोग ईसाई मिशनरियों ने धर्म प्रचार की पुस्तकें छापने के लिए किया। तब से अब तक मुद्रित माध्यम की दुनिया बदल गई है। इस माध्यम के अंतर्गत समाचार-पत्र, पत्र-पत्रिकाएँ, पुस्तकें शामिल हैं, जिनका मानव-जीवन में बहुत महत्व है।
मुद्रित माध्यम की विशेषताएँ –
- ये छपे होने के कारण अपनी सुविधा से पढ़े जा सकते हैं।
- इन्हें पढ़ते समय रुककर सोचा जा सकता है, विचार-विमर्श किया जा सकता है।
- छपे शब्दों में स्थायित्व होता है।
- इन्हें भविष्य में पढ़ने के लिए सुरक्षित रखा जा सकता है।
- इन्हें पढ़ने के लिए व्यक्ति का साक्षर होना आवश्यक है।
- यह लिखित भाषा का विस्तारित रूप है।