Understanding the question and answering patterns through Class 11 Geography NCERT Solutions in Hindi Chapter 4 महासागरों और महाद्वीपों का वितरण will prepare you exam-ready.
Class 11 Geography NCERT Solutions Chapter 4 in Hindi महासागरों और महाद्वीपों का वितरण
पृष्ठ संख्या 38
प्रश्न 1.
प्लेट प्रवाह की दर कैसे निर्धारित होती है?
उत्तर:
सामान्य व उत्क्रमण चुम्बकीय क्षेत्र की पट्टियां जो कि मध्य- महासागरीय कटक के समानान्तर फैली हुई हैं, प्लेट प्रवाह की दर की जानकारी देने का प्रमुख माध्यम हैं। प्लेटों की प्रवाह दर का मापन मैग्नेटिक स्ट्रेटिग्राफी मापक के द्वारा किया जाता है । सामान्य रूप से प्लेटों की प्रवाह दर 2 से 5 सेण्टीमीटर प्रतिवर्ष होती है । यथा– आर्कटिक कटक की प्रवाह दर सबसे कम है जो कि 2.5 सेण्टीमीटर प्रति वर्ष से भी कम है जबकि ईस्टर द्वीप के निकट पूर्वी प्रशान्त महासागरीय उभार, जो कि चिली से 3400 किलोमीटर पश्चिम की तरफ दक्षिण प्रशान्त महासागर में है, की प्रवाह दर सर्वाधिक है। इसकी प्रवाह दर 5 सेण्टीमीटर प्रति वर्ष से भी अधिक है।
पाठ्यपुस्तक के प्रश्न
1. निम्न में से किसने सर्वप्रथम यूरोप, अफ्रीका व अमेरिका के साथ स्थित होने की संभावना व्यक्त की?
(क) अल्फ्रेड वेगनर
(ख) अब्राहम आरटेलियस
(ग) एनटोनियो पेलेग्रिनी
(घ) एडमण्ड हैस
उत्तर:
(ख) अब्राहम आरटेलियस
2. पोलर फ्लीइंग बल (Polar Fleeing Force) निम्नलिखित में से किससे सम्बन्धित है
(क) पृथ्वी का परिक्रमण
(ग) गुरुत्वाकर्षण
(ख) पृथ्वी का घूर्णन
(घ) ज्वारीय बल
उत्तर:
(ख) पृथ्वी का घूर्णन
3. इनमें से कौनसी लघु ( Minor) प्लेट नहीं है-
(क) नजका
(ख) फिलिपीन
(ग) अरब
(घ) अण्टार्कटिक
उत्तर:
(घ) अण्टार्कटिक
4. सागरीय अधः स्तल विस्तार सिद्धान्त की व्याख्या करते हुए हेस ने निम्न में से किस अवधारणा पर विचार नहीं किया?
(क) मध्य – महासागरीय कटकों के साथ ज्वालामुखी क्रियाएँ
(ख) महासागरीय नितल की चट्टानों में सामान्य व उत्क्रमण चुम्बकत्व क्षेत्र की पट्टियों का होना
(ग) विभिन्न महाद्वीपों में जीवाश्मों का वितरण
(घ) महासागरीय तल की चट्टानों की आयु
उत्तर:
(ग) विभिन्न महाद्वीपों में जीवाश्मों का वितरण
5. हिमालय पर्वतों के साथ भारतीय प्लेट की सीमा किस प्रकार की प्लेट सीमा है?
(क) महासागरीय – महाद्वीपीय अभिसरण
(ख) अपसारी सीमा
(घ) महाद्वीपीय – महाद्वीपीय अभिसरण
(ग) रूपान्तर सीमा
उत्तर:
(घ) महाद्वीपीय – महाद्वीपीय अभिसरण
निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर लगभग 30 शब्दों में दीजिए-
प्रश्न 1.
महाद्वीपों के प्रवाह के लिए वेगनर ने किन बलों का उल्लेख किया?
उत्तर:
महाद्वीपों के प्रवाह के लिए वेगनर ने दो बलों
- पोलर या ध्रुवीय फ्लीइंग बल (पृथ्वी के घूर्णन से सम्बन्धित) तथा
- सूर्य व चंद्रमा के आकर्षण से सम्बन्धित ज्वारीय बलों का उल्लेख किया।
प्रश्न 2.
मैण्टल में संवहन धाराओं के आरंभ होने और बने रहने के क्या कारण हैं?
उत्तर:
मैण्टल में संवहन धाराएँ रेडियो:
एक्टिव तत्वों से उत्पन्न तापमान की भिन्नता के फलस्वरूप उत्पन्न होती हैं। पूरे मैण्टल भाग में रेडियो ऐक्टिव पदार्थ की उपस्थिति एवं इस प्रकार की धाराओं का तंत्र विद्यमान होने के कारण ये इस भाग में बनी रहती हैं।
प्रश्न 3.
प्लेट की रूपान्तर सीमा, अभिसरण सीमा और अपसारी सीमा में मुख्य अन्तर क्या है?
उत्तर:
प्लेट की ‘रूपांतर सीमा’ पर दो प्लेटें एक-दूसरे के साथ-साथ क्षैतिज दिशा में सरक जाती हैं। इससे रूपांतर भ्रंश का निर्माण होता है। जब एक प्लेट दूसरी प्लेट के नीचे धंसती है और भूपर्पटी नष्ट होती है, तो वह ‘अभिसरण सीमा’ होती है। इसके विपरीत जब दो प्लेटें विपरीत दिशा में अलग होती हैं और नई भूपर्पटी का निर्माण होता है तो वह ‘अपसारी सीमा’ कहलाती है।
प्रश्न 4.
दक्कन ट्रैप के निर्माण के दौरान भारतीय स्थलखण्ड की स्थिति क्या थी?
उत्तर:
आज से लगभग 14 करोड़ वर्ष पूर्व भारतीय उपमहाद्वीप सुदूर दक्षिण में 50° दक्षिणी अक्षांश पर स्थित था। भारतीय उपमहाद्वीप व यूरेशियन प्लेट के मध्य टेथिस सागर था। भारतीय प्लेट का एशियाई प्लेट की तरफ प्रवाह हुआ, जिससे दक्कन ट्रेप का निर्माण हुआ। यह प्रक्रिया लंबे समय तक जारी रही। उस समय भी भारतीय उपमहाद्वीप भूमध्य रेखा के समीप स्थित था।
निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर लगभग 150 शब्दों में दीजिए-
प्रश्न 1.
महाद्वीपीय विस्थापन सिद्धान्त के पक्ष में दिए गए प्रमाणों का वर्णन करें।
उत्तर:
जर्मन मौसमविद अल्फ्रेड वेगनर ने 1912 में महाद्वीप व महासागरों के वितरण से सम्बन्धित ‘महाद्वीपीय विस्थापन सिद्धांत’ प्रस्तुत किया था। इनके अनुसार प्राचीन काल में सभी महाद्वीप ‘पैंजिया’ के रूप में जुड़े थे, जिसके चारों तरफ एक विशाल महासागर ‘पैंथालासा’ था। लगभग 20 करोड़ वर्ष पूर्व पैंजिया का विखंडन हुआ और प्रवाह द्वारा महाद्वीप व महासागरों की वर्तमान स्थिति प्राप्त हुई।
महाद्वीपीय विस्थापन सिद्धान्त के पक्ष में प्रमाण: महाद्वीपीय विस्थापन सिद्धान्त के पक्ष में दिए गए प्रमाण निम्नलिखित हैं-
(1 ) महाद्वीपों में साम्य:
वेगनर के अनुसार दक्षिणी अमेरिका और अफ्रीका के आमने-सामने की तटरेखाओं में समानता मिलती है। इन्हें आपस में जोड़ा जा सकता है।
(2) महासागरों के पार चट्टानों की आयु में समानता:
आधुनिक काल में महासागरों के पार महाद्वीपों की चट्टानों के निर्माण के समय को रेडियोमीट्रिक काल निर्धारण विधि की सहायता से आसानीपूर्वक जाना जा सकता है। दक्षिणी अमेरिका और अफ्रीका की तट रेखा के पास पाए जाने वाले प्रारम्भिक समुद्री निक्षेप जुरेसिक काल के हैं। इससे स्पष्ट होता है कि इस समय से पूर्व वहाँ महासागर विद्यमान नहीं था।
(3) टिलाइट:
टिलाइट अवसादी चट्टानें हैं जिनका निर्माण हिमानी निक्षेपण के फलस्वरूप होता है। गोंडवाना श्रेणी के आधार तल में घने टिलाइट हैं जो कि विस्तृत व लम्बे समय तक हिम आवरण या हिमाच्छादन को स्पष्ट करते हैं। इसी क्रम के प्रतिरूप भारत के अलावा अफ्रीका, फॉकलैण्ड द्वीप, मैडागास्कर, अण्टार्कटिक और आस्ट्रेलिया में मिलते हैं। गोंडवाना श्रेणी के तलछटों की यह समानता स्पष्ट करती है कि इन स्थलखण्डों के इतिहास में भी समानता रही है।
(4) प्लेसर निक्षेप:
घाना तट पर सोने के विस्तृत निक्षेपों की उपस्थिति व उद्गम चट्टानों की अनुपस्थिति एक आश्चर्यजनक तथ्य है। सोनायुक्त शिराएँ ब्राजील में पाई जाती हैं। अतः स्पष्ट है कि घाना में मिलने वाले सोने के जमाव ब्राजील के पठार से उस समय निकले होंगे जबकि ये दोनों महाद्वीप आपस में एक-दूसरे से जुड़े हुए थे।
(5) जीवाश्मों का वितरण:
स्थलखंडों के विपरीत किनारों पर पाये जाने वाले जीवावशेष व वनस्पति अवशेषों में समानता मिलती है। लैमूर नामक जीव भारत, मैडागास्कर व अफ्रीका में पाए जाते हैं। इस आधार पर कुछ वैज्ञानिकों ने इन तीनों स्थलखण्डों को आपस में जोड़कर एक सतत स्थलखण्ड ‘लेमूरिया’ की उपस्थिति को स्वीकार किया। इसी प्रकार मेसोसारस नामक छोटे रेंगने वाले जीव केवल उथले खारे पानी में ही रह सकते थे। इनकी अस्थियाँ केवल दक्षिणी अफ्रीका के दक्षिणी के प्रान्त और ब्राजील में इरावर शैल समूह में ही मिलती हैं। इससे स्पष्ट है कि कभी ये दोनों भाग एक-दूसरे से जुड़े हुए थे। वर्तमान समय में दोनों स्थान एक-दूसरे से 4800 किलोमीटर की दूरी पर स्थित हैं तथा इनके मध्य एक महासागर विद्यमान है।
प्रश्न 2.
महाद्वीपीय विस्थापन सिद्धान्त व प्लेट विवर्तनिक सिद्धान्त में मूलभूत अन्तर बताइये।
उत्तर:
महाद्वीपीय विस्थापन सिद्धान्त व प्लेट विवर्तनिक सिद्धान्त में अन्तर
महाद्वीपीय विस्थापन सिद्धान्त | प्लेट विवर्तनिकी सिद्धान्त |
1. महाद्वीपीय विस्थापन सिद्धान्त सन् 1912 में जर्मन मौसमविद् अल्फ्रेड वेगनर द्वारा प्रतिपादित किया गया। | 1. प्लेट विवर्तनिकी सिद्धान्त सन् 1967 में मैकेन्जी, पारकर और मोरगन द्वारा प्रतिपादित किया गया। |
2. यह सिद्धान्त महाद्वीप एवं महासागरों की उत्पत्ति व वितरण से सम्बन्धित था। | 2. प्लेट विवर्तनिकी सिद्धान्त का संबंध विभिन्न भूगर्भिक घटनाओं से है। यह सिद्धांत महाद्वीप व महासागरों की उत्पत्ति के साथ-साथ पर्वत निर्माण, भूकंप व ज्वालामुखी की उत्पत्ति आदि की भी व्याख्या करता है। |
3. महाद्वीपीय विस्थापन सिद्धान्त के अनुसार वर्तमान समय के सभी महाद्वीप एक अकेले भूखण्ड पैंजिया के भाग हैं। पैंजिया में विखंडन हुआ। इसका उत्तरी भाग लारेंशिया तथा दक्षिणी भाग गोंडवाना लैण्ड कहलाया। | 3. इसके अनुसार पृथ्वी का स्थलमंडल सात मुख्य और कुछ छोटी प्लेटों में विभक्त है। नवीन वलित पर्वत- मालाएँ, खाइयाँ और भ्रंश इन मुख्य प्लेटों की सीमा बनाते हैं। |
4. इसके अनुसार महाद्वीपों का प्रवाह ध्रुवीय फ्लीइंग बल तथा ज्वारीय बलों के आधार पर हुआ। | 4. इस सिद्धांत के अनुसार सभी प्लेटें पूरे इतिहासकाल से गतिमान हैं। ये प्लेटें दुर्बलतामंडल पर एक दृढ़ इकाई के रूप में क्षैतिज अवस्था में चलायमान हैं। इनकी गति का प्रमुख कारण मैंटल में उत्पन्न होने वाली संवहन धाराएँ हैं। |
5. इस सिद्धांत के अनुसार स्थलखंड सियाल के बने हैं और ये अधिक घनत्व वाली सीमा परत पर तैर रहे हैं। | 5. इसके अनुसार एक विवर्तनिक प्लेट, जो महाद्वीपीय व महासागरीय स्थलखंडों से मिलकर बनी है, एक दृढ़ इकाई के रूप में सदैव क्षैतिज अवस्था में गतिशील है। |
6. इसके अनुसार आरम्भिक काल में केवल एक ही स्थलखंड ,जिसके चारों तरफ एक महासागर पैंथालासा पैंजिया था, स्थित थ | 6. इसके अनुसार महाद्वीप व महासागर अनियमित एवं भिन्न-भिन्न आकार वाली प्लेटों पर स्थित हैं और ये प्लेटें गतिशील हैं। इस कारण अधिकतर भाग के आधार पर ये प्लेटें महासागरीय व महाद्वीपीय प्लेट कहलाती हैं। |
प्रश्न 3.
महाद्वीपीय प्रवाह सिद्धान्त के उपरान्त की प्रमुख खोज क्या है जिससे वैज्ञानिकों ने महासागर व महाद्वीपीय वितरण के अध्ययन में पुनः रुचि ली?
उत्तर:
महाद्वीप एवं महासागरों के वितरण से सम्बन्धित वेगनर का ‘महाद्वीपीय विस्थापन सिद्धांत’ एक महत्त्वपूर्ण सिद्धांत है परन्तु समकालीन वैज्ञानिकों ने पर्याप्त साक्ष्यों के अभाव में इस सिद्धांत को नकार दिया था। कालांतर में इस सिद्धांत के बाद हुए अध्ययनों ने महत्त्वपूर्ण जानकारी प्रस्तुत की। चट्टानों के पुराचम्बकीय अध्ययन और महासागरीय तल के मानचित्रण के द्वारा विशेष रूप से निम्न तथ्य उजागर हुए
(1) कटकों के साथ-साथ ज्वालामुखी क्रिया होना:
यह देखा गया है कि मध्य महासागरीय कटकों के साथ-साथ ज्वालामुखी उद्गार होना एक सामान्य क्रिया है। ज्वालामुखी उद्गार के साथ इस क्षेत्र में बड़ी मात्रा में लावा बाहर निकलता है।
(2) चट्टानों के निर्माण का समय, संरचना, संघटन और चुम्बकीय गुणों में समानता मिलना:
महासागरीय कटक के मध्य भाग के दोनों तरफ समान दूरी पर पाई जाने वाली चट्टानों के निर्माण के समय, संरचना, संघटन और चुम्बकीय गुणों में समानता पायी जाती है। महासागरीय कटकों के पास की चट्टानों में सामान्य चुम्बकत्व ध्रुवण पायी जाती हैं तथा ये नवीनतम चट्टानें हैं। कटकों के शीर्ष से दूर चट्टानों की आयु भी अधिक है।
(3) महासागरीय पर्पटी की चट्टानें नवीन होना:
महासागरीय पर्पटी की चट्टानें महाद्वीपीय पर्पटी की चट्टानों की तुलना में अधिक नवीन हैं। महासागरीय पर्पटी की चट्टानें कहीं भी 20 करोड़ वर्ष से अधिक पुरानी नहीं हैं।
(4) कटकों के क्षेत्र में भूकम्प उद्गम केन्द्र कम गहराई पर मिलना:
गहरी खाइयों में भूकम्प के उद्गम केन्द्र अधिक गहराई पर पाए जाते हैं जबकि मध्य – महासागरीय कटकों के क्षेत्र में भूकम्प उद्गम केन्द्र कम गहराई पर है।
(5) महासागरीय अधः स्तल का विस्तार:
सन् 1961 में हेस नामक विद्वान ने उक्त तथ्यों एवं मध्य महासागरीय कटकों के दोनों तरफ की चट्टानों के चुम्बकीय गुणों के विश्लेषण के आधार पर ‘सागरीय अधः स्तल विस्तार’ परिकल्पना प्रस्तुत की । हेस के मतानुसार महासागरीय कटकों के शीर्ष पर लगातार ज्वालामुखी उद्भेदन से महासागरीय पर्पटी में विभेदन हुआ और नवीन लावा इस दरार को भर कर महासागरीय पर्पटी को दोनों तरफ धकेल रहा है। इस प्रकार महासागरीय अधःस्तल का विस्तार हो रहा है।
महासागरीय पर्पटी का अपेक्षाकृत नवीनतम होना और इसके साथ ही एक महासागर में विस्तार से दूसरे महासागर के न सिकुड़ने को हेस ने महासागरीय पर्पटी के क्षेपण के द्वारा स्पष्ट किया। हेस के अनुसार यदि ज्वालामुखी पर्पटी से नवीन पर्पटी का निर्माण होता है तो दूसरी तरफ महासागरीय गर्तों में इसका विनाश भी होता है।
इस सागरीय तल विस्तार अवधारणा के पश्चात् ही विद्वानों की महाद्वीपों व महासागरों के वितरण के अध्ययन में पुनः रुचि पैदा हुई।