Understanding the question and answering patterns through NCERT Solutions Class 11 Geography in Hindi Chapter 3 अपवाह तंत्र will prepare you exam-ready.
Class 11 Geography NCERT Solutions Chapter 3 in Hindi अपवाह तंत्र
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प्रश्न 1.
उन राज्यों के नाम लिखिए जो यमुना नदी द्वारा अपवाहित हैं।
उत्तर:
उत्तराखण्ड, दिल्ली, उत्तर प्रदेश व मध्य प्रदेश राज्य यमुना नदी के द्वारा अपवाहित हैं।
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प्रश्न 2.
उस नदी का नाम ज्ञात करें जिस पर गरसोप्पा ( जोग) प्रपात है।
उत्तर:
महाराष्ट्र और कर्नाटक की सीमा पर शरावती नदी पर जोग प्रपात है।
पाठ्यपुस्तक के प्रश्न
1. नीचे दिए गए चार विकल्पों में से सही उत्तर को चुनिए-
(i)निम्नलिखित में से कौनसी नदी ‘बंगाल का शोक’ के नाम से जानी जाती थी?
(क) गंडक
(ग) सोन
(ख) कोसी
(घ) दामोदर
उत्तर:
(घ) दामोदर
(ii) निम्नलिखित में से किस नदी की द्रोणी भारत में सबसे बड़ी है?
(क) सिंधु
(ग) गंगा
(ख) ब्रह्मपुत्र
(घ) कृष्णा
उत्तर:
(ग) गंगा
(iii) निम्नलिखित में से कौनसी नदी पंचनद में शामिल नहीं है?
(क) रावी
(ख) सिंधु
(ग) चेनाब
(घ) झेलम
उत्तर:
(ख) सिंधु
(iv) निम्नलिखित में से कौनसी नदी भ्रंश घाटी में बहती है?
(क) सोन
(ख) यमुना
(ग) नर्मदा
(घ) लूनी
उत्तर:
(ग) नर्मदा
(v)निम्नलिखित में से कौनसा अलकनन्दा व भागीरथी का संगम स्थल है?
(क) विष्णु प्रयाग
(ख) रुद्र प्रयाग
(ग) कर्ण प्रयाग
(घ) देव प्रयाग
उत्तर:
(घ) देव प्रयाग
प्रश्न 2.
निम्न में अन्तर स्पष्ट करें:
प्रश्न (i)
नदी द्रोणी और जल संभर।
उत्तर:
नदी द्रोणी: बड़ी नदियों के जल ग्रहण क्षेत्र को नदी द्रोणी कहते हैं। नदी द्रोणी के जलग्रहण क्षेत्र का आकार बड़ा होता है।
जल संभर: छोटी नदियों व नालों के द्वारा अपवाहित क्षेत्र को जल संभर कहा जाता है। जल संभर के जलग्रहण क्षेत्र का आकार छोटा होता है।
प्रश्न (ii)
वृक्षाकार और जालीनुमा अपवाह प्रारूप।
उत्तर:
वृक्षाकार अपवाह प्रारूप / प्रतिरूप :
नदी अपवाह का वह प्रतिरूप, जो कि पेड़ की शाखाओं के अनुरूप होता है, वृक्षाकार प्रतिरूप कहा जाता है। यथा- उत्तरी मैदान की नदियाँ।
जालीनुमा अपवाह प्रतिरूप :
जब मुख्य नदियाँ एक-दूसरे के समानान्तर प्रवाहित होती हों तथा सहायक नदियाँ उनसे समकोण पर मिलती हों तो ऐसे प्रतिरूप को जालीनुमा अपवाह प्रतिरूप कहते हैं।
प्रश्न (iii)
अपकेन्द्रीय और अभिकेन्द्रीय अपवाह प्रारूप।
उत्तर:
अपकेन्द्रीय अपवाह प्रारूप :
जब नदियाँ किसी पर्वतीय क्षेत्र से निकलकर उस उच्च भूभाग की सभी दिशाओं में प्रवाहित होती हैं तो इसे अपकेन्द्रीय अपवाह प्रतिरूप के नाम से जाना जाता है।
अभिकेन्द्रीय अपवाह प्रारूप :
जब सभी दिशाओं से नदियाँ बहकर किसी झील या गर्त में मिल जाती हैं तो इसे अभिकेन्द्रीय अपवाह प्रारूप के नाम से जाना जाता है।
प्रश्न (iv)
डेल्टा और ज्वारनदमुख।
उत्तर – डेल्टा:
नदी की वृद्धावस्था में नदी अपने साथ बहाकर लाये अवसादों को ढोने में असमर्थ रहती है तथा वह विभिन्न शाखाओं में विभाजित होकर इन अवसादों को जमा करने लगती है। सागरीय मुहाने पर नदी द्वारा मिट्टी तथा बालू के महीन अवसादों को जब त्रिभुजाकार रूप में जमा कर दिया जाता है तो इस प्रकार की स्थलाकृति को डेल्टा कहा जाता है।
ज्वारनदमुख:
कुछ नदियाँ अपने साथ बहाकर लाए हुए अवसाद को सागरीय मुहाने पर जमा नहीं करतीं अपितु वे इसे समुद्र में अन्दर तक ले जाती हैं। नदी के इस प्रकार बने मुहाने को ज्वारनदमुख के नाम से जाना जाता है।
निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर लगभग 30 शब्दों में दें-
प्रश्न 1.
भारत में नदियों को आपस में जोड़ने के सामाजिक-आर्थिक लाभ क्या हैं?
उत्तर:
भारत में बड़ी नदियों के अतिरिक्त जल को कम जल वाली नदियों से जोड़ दिया जाए तो फसलों की सिंचाई की जलापूर्ति हो सकती है। इससे अन्नोत्पादन अधिक हो जायेगा तथा जलशक्ति का उत्पादन भी बढ़
जाएगा। इसके साथ देश के विभिन्न भागों में आने वाली बाढ़ों तथा भीषण सूखे के प्रभावों को काफी सीमा तक कम किया जा सकता है।
प्रश्न 2.
प्रायद्वीपीय नदी के तीन लक्षण लिखें।
उत्तर:
- प्रायद्वीपीय नदियों की घाटियाँ चौड़ी तथा उथली होती हैं तथा इनका जलग्रहण क्षेत्र काफी छोटा होता है
- प्रायद्वीपीय नदियों के उद्गम स्रोत कम ऊँचाई के हिमरहित पहाड़ी क्षेत्र होने के कारण इन नदियों का जलस्रोत केवल वर्षा है। इसी कारण शुष्क ऋतु में ये सूख जाती हैं।
- प्रायद्वीपीय नदियाँ एक सुनिश्चित मार्ग पर चलती हैं तथा विसर्प नहीं बनाती हैं
निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर 125 शब्दों से अधिक में न दें- हैं?
प्रश्न 1.
उत्तर भारतीय नदियों की महत्त्वपूर्ण विशेषताएँ क्या हैं? ये प्रायद्वीपीय नदियों से किस प्रकार भिन्न
उत्तर:
भारतीय नदियों की महत्त्वपूर्ण विशेषताएँ :
उत्तर भारतीय नदियों के उद्गम स्रोत हिमानियों से होने के कारण यह सतत् वाहिनी होती हैं। ये नदियाँ नाव्य तथा सिंचाई के लिए उपयोगी हैं। भू-वैज्ञानिक दशाओं और भू- भाग के भुरभुरे होने के कारण ये नदियाँ मैदानी भागों में मोड़ बनाकर बहती हैं तथा प्रायः अपने प्रवाह मार्गों को बदलती रहती हैं, पर्वतीय भागों में ये नदियाँ V आकृति की गहरी घाटियाँ तथा ऊँचे जलप्रपात निर्मित करती हैं, जबकि अपने मुहानों पर विशाल डेल्टाई भागों का निर्माण करती हैं। उत्तर भारत की नदियों एवं प्रायद्वीपीय नदियों में अन्तर
अन्तर का आधार | उत्तर भारत की नदियाँ | प्रायद्वीपीय नदियाँ |
1. जल प्रवाह | उत्तर भारत की नदियों में वर्ष भर जल की उपलब्धता रहती है। ये बर्फ के पिघले जल और वर्षा के जल पर निर्भर रहती हैं। | प्रायद्वीपीय भारत की नदियाँ ऋतुनिष्ठ होती हैं अर्थात् ये केवल वर्षा के जल पर निर्भर रहती हैं। |
2. जल ग्रहण क्षेत्र | इन नदियों की छोटी द्रोणियाँ होती हैं। | इन नदियों की विशाल द्रोणियाँ होती हैं। |
3. अपरदन | तीव्र अपरदन के कारण हिमालय में गहरी घाटियाँ और महाखड्ड पाए जाते हैं। | कम अपरदन के कारण इन नदियों की उथली आधार तल प्राप्त घाटियाँ होती हैं। |
4. मार्ग का स्वरूप | इन नदियों का विशाल मैदानों में मोड़दार मार्ग होता है तथा मार्ग परिवर्तन के लिए प्रसिद्ध हैं। | इन नदियों का सीधा और रेखीय मार्ग होता है। |
5. अन्य | इन नदियों में ‘वी’ आकार की घाटियाँ, ऊँचे जल प्रपात और विशाल डेल्टा पाए जाते हैं। | इन नदियों में उथली घाटियाँ, छोटे जल प्रपात, डेल्टा और ज्वारनदमुख पाए जाते हैं। |
प्रश्न 2.
मान लीजिए आप हिमालय के गिरिपद के साथ-साथ हरिद्वार से सिलीगुड़ी तक यात्रा कर रहे हैं । इस मार्ग में आने वाली मुख्य नदियों के नाम बताएँ । इनमें से किसी एक नदी की विशेषताओं का भी वर्णन करें।
उत्तर:
हरिद्वार गंगा नदी के दक्षिणी किनारे पर स्थित प्रमुख धार्मिक नगर है जबकि सिलीगुड़ी पश्चिमी बंगाल प्रान्त का नगर है। हिमालय के गिरिपद के साथ हरिद्वार से सिलीगुड़ी तक यात्रा करने पर अनेक नदियाँ पार करनी होती हैं। इनमें सर्वप्रथम गंगा नदी को पार करना पड़ेगा। गंगा नदी के उत्तर से आने वाली सभी नदियों को सिलीगुड़ी तक जाने के लिए पार करना पड़ेगा। इनमें रामगंगा, गोमती, घाघरा, गंडक, कोसी तथा महानन्दा आदि प्रमुख नदियाँ हैं।
कोसी नदी: कोसी नदी की प्रमुख विशेषताएँ निम्नलिखित हैं-
- कोसी नदी का उद्गम तिब्बत के पठार से होता है।
- यह नदी मध्य हिमालय को पार करके नेपाल में प्रवेश करती है।
- इस नदी में पश्चिम दिशा से सोन कोसी तथा पूर्व दिशा से तमुर कोसी नदियाँ आकर मिलती हैं।
- कोसी नदी मार्ग परिवर्तन के लिए विख्यात है इसी कारण इसे बिहार का शोक कहते हैं।
- कोसी नदी की कुल लम्बाई 730 किलोमीटर है।
- कोसी एक पूर्ववर्ती नदी है। यह अरुण नदी से मिलकर सप्तकोसी बनाती है।