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Sanskrit Class 8 Chapter 11 Hindi Translation सन्निमित्ते वरं त्यागः (ख-भागः) Summary
सन्निमित्ते वरं त्यागः (ख-भागः) Meaning in Hindi
Class 8 Sanskrit Chapter 11 Summary Notes सन्निमित्ते वरं त्यागः (ख-भागः)
यह पाठ हितोपदेश की एक शिक्षाप्रद कथा पर आधारित है, जिसमें यह बताया गया है कि किसी श्रेष्ठ और दीर्घकालिक लक्ष्य की प्राप्ति के लिए छोटी या तात्कालिक सुख-सुविधाओं का त्याग करना बुद्धिमानी है। कथा के पात्रों के माध्यम से यह स्पष्ट किया गया है कि राष्ट्र की रक्षा के लिए अपने प्राणों की आहुति भी दी जा सकती है। पाठ में स्वामीभक्ति, विवेक और समर्पण भाव जैसे गुणों की सराहना की गई है । यह पाठ विद्यार्थियों को त्याग, समर्पण और सही निर्णय लेने की प्रेरणा देता है ।
Class 8 Sanskrit Chapter 11 Hindi Translation सन्निमित्ते वरं त्यागः (ख-भागः)
(1) वीरवरः नाम कश्चित् राजपुरुषः राज्ञः शूद्रकस्य सेवकरूपेण नियुक्तः । तस्मै वेतनं सुवर्णशतचतुष्टयं दीयते । प्राप्तवेतनस्य अर्धं सः देवकार्ये नियोजयति । एकचतुर्थांशं दरिद्रेभ्यः वण्टयति । अवशिष्टं च एकचतुर्थांशं स्वपत्न्याः हस्ते अर्पयति । स्वखड्गम् आदाय अहर्निशं राजद्वारे रक्षकरूपेण स्थित्वा सः सेवां करोति । एकदा रात्रौ राज्ञः आदेशेन कञ्चित् करुणक्रन्दनध्वनिम् अनुसृत्य सः नगराद् बहिः गच्छति, एकां दिव्याभरणभूषितां कामपि रोदनपरां सुन्दरीं च पश्यति।
शब्दार्था: (Word Meanings) :
- अहर्निशं – दिन-रात (Day and night),
- एकदा – एक बार (Once)।
सरलार्थ-
वीरवर नामक एक राजपुरुष था, जिसे राजा शूद्रक ने अपनी सेवा में नियुक्त किया था। उसे वेतन के रूप में चार सौ सुवर्ण (400 स्वर्ण) मुद्राएँ मिलती थीं। प्राप्त वेतन से वह आधा भाग (200 सुवर्ण) देवताओं के कार्य में लगाता था। एक चौथाई भाग (100 सुवर्ण) गरीबों में बाँट देता था और शेष एक चौथाई भाग ( 100 सुवर्ण) अपनी पत्नी के हाथ में देता था। वह अपनी तलवार लेकर दिन-रात राजमहल के द्वार पर सेवक के रूप में खड़ा रहता और सेवा करता था। एक बार रात में राजा के आदेश पर किसी करुण क्रंदन आवाज़ के पीछे वह नगर से बाहर चला गया। वहाँ उसने एक दिव्य आभूषणों से सजी हुई और रो रही एक सुंदर स्त्री को देखा ।
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(2) तस्याः रोदनस्य कारणं पृष्ट्वा जानाति यत् सा राज्ञः शूद्रकस्य राजलक्ष्मीः अस्ति इति । तस्याः वचनात् शूद्रकस्य आयुः केवलं दिनत्रयम् एवं अस्ति इति ज्ञात्वा तस्य दीर्घायुषः उपायं पृच्छति । ततः राज्ञलक्ष्मीः अतीव दुःसाध्यम् उपायं सूचयति । तस्याः अनुसारं यदि वीरवरः स्वस्य सर्वप्रियं वस्तु देव्यै सर्वमङ्गलायै उपहाररूपेण समर्पयति, तर्हि तस्य राजा चिरं वर्षशतं जीविष्यति, राजलक्ष्मीरपि तेन सह सुखं स्थास्यति इति । एवं कठिनम् उपायं संसूच्य राजलक्ष्मी: वीरवरं किंकर्तव्यमूढं कृत्वा अदृश्या भवति । गुप्ततया वीरवरम् अनुसरन् राजापि तयोः संवादं शृणोति ।
शब्दार्थाः (Word Meanings) :
- स्थास्यति – यह रहेगा (It will stay),
- संसूच्यं – सूचित करके (Informed) ।
सरलार्थ-
उसके रोने का कारण पूछने पर वीरवर को पता चला कि वह स्वयं राजा शूद्रक की राजलक्ष्मी ( राज्य की समृद्धि की देवी) हैं। उसके वचनानुसार राजा शूद्रक की आयु केवल तीन दिन की ही शेष है। यह सुनकर वीरवर उससे राजा की दीर्घायु (लंबी उम्र) का उपाय पूछता है। तब राजलक्ष्मी एक अत्यंत कठिन उपाय बताती हैं कि यदि तुम अपनी सबसे प्रिय वस्तु को देवी सर्वमंगला को उपहार रूप में समर्पित कर दोगे, तो राजा सौ वर्षों तक जीवित रहेंगे और मैं भी उनके साथ सुखपूर्वक रह सकती हूँ। यह कठिन उपाय बताकर राजलक्ष्मी वीरवर को असमंजस में डालकर अदृश्य हो जाती हैं। गुप्त रूप से वीरवर का पीछा कर रहा राजा भी उनके इस संवाद को सुन लेता है।

(1) अथ राजपुत्रो वीरवरो स्वावासं गत्वा निद्रालसा पत्नीं पुत्रं दुहितरञ्च प्राबोधयत् अखिलराजलक्ष्मीसंवादं च अवर्णयत्।
शक्तिधरः – (तच्छ्रुत्वा सानन्दम्) हे पितः ! जानाम्यहं भवतः सर्वप्रियं वस्तु । तद् अहमेव भवतः प्रियतमः इति सर्वविदितः। धन्योऽहं स्वामिजीवितरक्षार्थं यदि विनियुक्तः । तत् कोऽधुना विलम्बस्तात ? एवंविधे कर्मणि राष्ट्रस्य राज्ञश्च हिताय मम सर्वस्वविनियोगः परमश्लाघ्यः।
यतः- धनानि जीवितञ्चैव परार्थे प्राज्ञ उत्सृजेत् ।
सन्निमित्ते वरं त्यागो विनाशे नियते सति ॥ १ ॥
वेदरता – यद्येवम् अस्मत्कुलोचितं नाचरितव्यं तर्हि गृहीतस्वामिवर्तनस्य कथं निस्तारो भवेत् ?
शब्दार्थाः : (Word Meanings) :
- स्वावासं – अपने (Own),
- निद्रालसा – नींद के कारण अलसाए हुए को (To the languishing due to sleepless),
- दुहितरं-बेटी को (Daughter),
- अवर्णयत्-वर्णन किया (Described),
- विनियुक्त :- नियुक्त (Appointment),
- परमश्लाघ्यः-अत्यन्त प्रशंसनीय (Most appreciable)।
सरलार्थ-
इसके बाद राजपुरुष, वीरवर अपने घर जाकर अपनी पत्नी, पुत्र और पुत्री जो सभी नींद में अलसाए हुए थे उनको जगाया और उन्हें राजलक्ष्मी के साथ हुआ पूरा संवाद विस्तार से बताया।
शक्तिधरः – (यह सुनकर आनंदपूर्वक) हे पिताजी ! मैं जानता हूँ आपकी सबसे प्रिय वस्तु । वह मैं ही हूँ- आपका प्रियतम पुत्र और यह सबको ज्ञात है। मैं धन्य हूँ आपके स्वामी (राजा) के जीवन की रक्षा के लिए यदि मुझे समर्पित किया जा रहा है, अब किस बात की देरी है, पिताजी ? ऐसे कार्य में जो राष्ट्र और राजा दोनों के हित के लिए हो, मेरा सम्पूर्ण बलिदान अत्यंत सराहनीय है।
क्योंकि- “धन और जीवन दोनों को बुद्धिमान मनुष्य परोपकार के लिए त्याग सकता है।
जब विनाश निश्चित हो, तो त्याग करना ही श्रेयस्कर होता है। ”
वेदरता (पुत्री) – यदि ऐसा है और हमारे कुल की मर्यादा का पालन नहीं किया गया, तो फिर हमने जो स्वामी से वेतन लिया है, उससे कैसे मुक्त होंगे ?
(3) वीरवती – धन्याहं यस्या ईदृशो जनको भ्रांता च । तत् कथं विलम्ब्यते ? एष एव गृहीतस्वामिवर्तनस्य निस्तारस्य उपायः । (ततस्ते सर्वे सर्वमङ्गलाया आयतनं गता: )
वीरवर: – (देवीपूजां विधाय) भगवति ! प्रसीद, विजयतां महाराजः शूद्रकः, गृह्यतामेष मद्दत्त उपहारः ।
वीरवर: – (स्वगतम्) कृतो मया गृहीतस्वामिवर्तनस्य निस्तारो स्वपुत्रसमर्पणेन । अधुना पुत्रवियुक्तस्य में जीवनं निष्फलम् ।
(ततः सः आत्मानमपि देव्यै समर्पितवान् । ततस्तस्य पत्न्या दुहित्रा च तदेवाचरितम् । राजा शूद्रकोऽपि तेषां सर्वेषां सर्वमेतद् आचरितम् तददृश्य एवालोकयत् । )
शब्दार्था: (Word Meanings) :
- विलम्ब्यते – देरी हो रही है (It is delayed),
- निस्तार:- मुक्ति / ऋण चुकाना (Liberation/ Repayment),
- आयतनम् – आँगन (Courtyard ),
- गृह्यतामेष – इसे स्वीकार करो (Accept it),
- आचरितम् – आचरण किया (Practiced ) ।
सरलार्थ-
वीरवती (पत्नी) – मैं धन्य हूँ, जिसके ऐसे पिता और भाई हैं। फिर इसमें देर किस बात की ? यही तो उस लिए गए वेतन से मुक्त होने का सर्वोत्तम उपाय है।
(इसके बाद वे सभी देवी सर्वमंगला के मंदिर गए ।)
वीरवर – (देवी की पूजा करके) हे देवी! कृपा कीजिए, महाराज शूद्रक की विजय हो । लीजिये यह मेरी ओर से समर्पित उपहार स्वीकार कीजिए।
वीरवर – (मन ही मन ) मेरे द्वारा स्वामी से लिया गया ऋण मैंने अपने पुत्र को समर्पित करके चुकाया । अब पुत्रवियोग के बाद मेरा जीवन व्यर्थ हो गया।
(इसके बाद वीरवर ने स्वयं को भी देवी को समर्पित कर दिया। फिर उसकी पत्नी और पुत्री ने भी वही किया। राजा शूद्रक ने उनके सभी आचरणों को अदृश्य रूप में देखा।

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(4) ततोऽसौ व्यचिन्तयत्—
जायन्ते च म्रियन्ते च मादृशाः क्षुद्रजन्तवः ।
अनेन सदृशो लोके न भूतो न भविष्यति ॥ २ ॥
तदेतत्परित्यक्तेन मम राज्येनापि किं प्रयोजनम् ।
(देवीं प्रति प्रकटयन्) हे मातः! सर्वमङ्गले! गृहाण मे सर्वस्वम् । नेष्टं मे राज्यं न च जीवितं वा ।
देवी – (ततः प्रत्यक्षीभूतया भगवत्या सर्वमङ्गलया राज्ञः करं धृत्वा ) वत्स ! प्रसन्ना भवामि त्वयि, अलं साहसेन । नेदानीं राज्यभङ्गस्ते भविष्यति ।
शब्दार्थाः (Word Meanings) :
- प्रयोजनम् – उद्देश्य (Purpose),
- राज्यभङ्गः – राज्य का नाश (Downfall of the kingdom)।
सरलार्थ-
फिर राजा ने विचार किया-
” मेरे जैसे तुच्छ प्राणी तो जन्म लेते हैं और मरते हैं,
लेकिन इस वीरवर के समान मनुष्य इस लोक में न पहले कभी हुआ है, न आगे भविष्य में होगा । ”
जिस राज्य को ऐसे आदर्श सेवक ने त्याग दिया, उस राज्य का मेरे लिए क्या प्रयोजन है।
(देवी की ओर मुख करके कहा) हे माता ! सर्वमंगला! मेरा सब कुछ स्वीकार कर लीजिए। मुझे राज्य और जीवन नहीं चाहिए ।
देवी – (प्रत्यक्ष होकर राजा का हाथ पकड़कर बोलीं ) पुत्र ! प्रसन्न हूँ मैं तुमसे । और साहस की आवश्यकता नहीं। अब तुम्हारे राज्य का विनाश नहीं होगा ।
(5) राजा – (साष्टाङ्गं प्रणिपत्य ) भगवति । न मे प्रयोजनं राज्येन जीवितेन वा । यदि मयि कृपा भगवत्या जाता, तदा ममायुः शेषेणापि प्रत्यावर्तेत राजपुत्रो वीरवरः सह पुत्रेण पत्न्या दुहित्रा च । अन्यथा मया यथाप्राप्ता गतिर्गन्तव्या जगदम्ब !
देवी – वत्स! अनेन ते सत्त्वोत्कर्षेण भृत्यवात्सल्येन च परं प्रीतास्मि । तद् गच्छ, विजयी भव । अयमपि सपरिवारो जयतु राजपुत्र आदर्शचरितो वीरवरः ।
शब्दार्था: (Word Meanings) :
- सत्त्वोत्कर्षेण – सत्त्वगुण की उत्कृष्टता से (By excellence of purity),
- वात्सल्येन – स्नेह से / ममता से (With affection )।
सरलार्थ –
राजा – (साष्टांग प्रणाम करके) हे भगवती ! मेरे राज्य और जीवन का कोई उद्देश्य नहीं है। यदि मुझ पर आप भगवती कृपा करें, तो मेरी शेष जीवन और मेरे प्रिय राजपुत्र वीरवर को उसकी पत्नी, पुत्र और पुत्री सहित सभी वापस मिल जायेगा। यदि ऐसा न हुआ तो मुझे वैसी ही दशा में जाना होगा, हे जगदम्बा !
देवी – पुत्र! तुम्हारे इस महान साहस और सेवक के प्रति प्रेम से मैं अत्यंत प्रसन्न हूँ। अब जाओ, विजयी हो। यह आदर्श राजपुत्र वीरवर भी अपने परिवार सहित विजयी और सुखी रहे ।
(6) ततो देवी गताऽदर्शनम्। ततो वीरवरः सपरिवारो सानन्दं स्वगृहं गतः । नृपतिरपि सर्वेषामदृश्य एव स्वप्रासादं प्राविशत् । अन्येद्युः वीरवरोऽपि पुनः द्वारि सेवानिरतोऽभवत् ।
राजा – (तं वीक्ष्य) का वार्ता राजपुत्र!
वीरवरः – देव! सा रोदनपरा नारी मद्दर्शनाददृश्यतां गता । न हि कापि वार्ताऽन्या स्वामिन्!
ततः परमां प्रीतिं गतो महीपतिस्तस्मै प्रायच्छत् समग्रकर्णाटप्रदेशं राजपुत्राय वीरवराय ।
शब्दार्थाः (Word Meanings) :
- स्वगृहं – अपने घर (Own house),
- प्रासादम् – राजभवन (Palace)।
सरलार्थ-
इसके बाद देवी अदृश्य हो गईं। फिर वीरवर अपने पूरे परिवार सहित आनंदपूर्वक अपने घर लौट गया।
राजा भी सबसे छुपकर अपने महल में लौट गया। अगले दिन, वीरवर भी राजमहल के द्वार पर सेवा में तत्पर हो गया ।
राजा – (उसे देखकर) क्या समाचार है, राजपुत्र?
वीरवर – देव! वह रोती हुई स्त्री मेरे देखने के बाद अदृश्य हो गई। और कोई विशेष बात नहीं हुई, स्वामी ।
यह सुनकर राजा अत्यंत प्रसन्न हुआ और उसने राजपुत्र वीरवर को समस्त कर्णाट प्रदेश (एक बड़ा भूभाग ) उपहार स्वरूप प्रदान किया।

अत्र इदम् अवधेयम्
(यहाँ यह ध्यान दिया जाना चाहिए )
वाच्यं त्रिविधम्।
1. कर्तृवाच्यम्
2. कर्मवाच्यम्
3. भाववाच्यम्।
अर्थात् वाच्य तीन प्रकार के होते हैं-
1. कर्तृवाच्यम्
2. कर्मवाच्यम्
3. भाववाच्यम्।
1. कर्तृवाच्यम्
कर्तृवाच्ये वाक्ये कर्तृपदस्य प्रथमाविभक्तिः भवति क्रियापदं कर्तृपदानुसारि च भवति । अर्थात् क्रियापदस्य पुरुषवचनं च कर्तृपदस्य अनुसारेण भवति । वाक्ये कर्मपदम् अस्ति चेत् तस्य द्वितीयाविभक्तिः भवति ।
अर्थात् कर्तृवाच्य वाक्य में कर्ता पद की प्रथमा विभक्ति होती है और क्रियापद कर्ता के अनुसार होता है। यानी क्रिया पद का पुरुष एवं वचन कर्ता पद के अनुसार होता है। कर्म पद ( कर्त्ता द्वारा किया गया अभीष्ट कार्य) में द्वितीया विभक्ति लगती है;
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यथा-बालकः ग्रामं गच्छति ।
(बालक गाँव जाता है |)
इस वाक्य में ‘बालक’ कर्त्ता है (प्रथमा विभक्ति एकवचन) और गच्छति क्रिया हैं ( कर्त्ता के अनुसार ) तथा ग्रामं कर्म है ( द्वितीया विभक्ति एकवचन) ।
2. कर्मवाच्यम
कर्मवाच्ये कर्तृपदस्य तृतीया विभक्तिः, कर्मपदस्य प्रथमाविभक्तिः तथा च क्रियापदं कर्मपदानुसारि भवति । अर्थात् कर्मवाच्य में कर्ता पद तृतीया विभक्ति में कर्म पद प्रथमा विभक्ति में और क्रिया, कर्म के पद के अनुसार होती है;
यथा – बालकेन ग्रामः गम्यन्ते । ( बालक के द्वारा गाँव जाया गया।.)
इस वाक्य में ग्रामः कर्म है (प्रथमा विभक्ति एकवचन), ‘बालकेन’ कर्त्ता है (तृतीया विभक्ति एकवचन) और गम्यते क्रिया (कर्म के अनुसार) है।
3. भाववाच्यम्
अकर्तृवाच्यवाक्ये यदि कर्मपदस्य अभावः भवति तरर्हि भाववाच्यस्य प्रयोगः भवति ।
यदि किसी अकर्तृवाच्य वाक्य जिसमें कर्ता मुख्य नहीं है उसमें कर्म पद नहीं होता, तब वहाँ भाववाच्य का प्रयोग किया जाता है;
यथा – बालकेन हस्यते ।
इस वाक्य में ‘बालकेन’ कर्त्ता है (तृतीया विभक्ति एकवचन) और हस्यते क्रिया (कर्म के अनुसार) है। कर्म नहीं होता हैं।
Class 8 Sanskrit Chapter 11 सावित्री बाई फुले Summary Notes
सावित्री बाई फुले Summary
सावित्री बाई फुले ने आजीवन शोषितों व पिछड़ों के उत्थान के लिए संघर्ष किया। उनका नारा था- शिक्षा हमारा अधिकार है।’ फुले के समाज में कई समुदाय अत्यधिक लम्बे समय तक इस अधिकार से वञ्चित रहे हैं। उन्हें शिक्षा का, समानता का अधिकार दिलाने के लिए फुले ने अपना जीवन समर्पित कर दिया।

वञ्चित समुदाय में स्त्रियों की दशा तो और भी दयनीय थी। उनकी शिक्षा के लिए सावित्री फुले को अनेक कठिनाइयों का सामना करना पड़ा। वह अन्त तक स्त्रियों के अधिकारों के लिए लड़ती रही। सावित्री फुले स्त्रियों की शिक्षा पर बल देती रहीं।
सावित्री फुले महाराष्ट्र की पहली महिला शिक्षिका थीं। वह गरीब कन्याओं को शिक्षा देती थीं। इनका जन्म सन् 1831 ई० में हुआ। इसकी माता का नाम लक्ष्मीबाई तथा पिता का नाम खंडोजी था। सावित्री का विवाह ज्योतिबा फुले के साथ हुआ।

सावित्री फुले ने सामाजिक कुरीतियों का प्रबल विरोध किया। उन्होंने मनुष्यों की समानता और स्वतन्त्रता के पक्ष का समर्थन किया। सावित्री फुले ने ‘पूना सेवासदन’ जैसी अनेक संस्थाओं की स्थापना की। सन् 1897 ई० में सावित्री फुले का देहान्त हो गया।
सावित्री बाई फुले Word Meanings Translation in Hindi
मूलपाठः, अन्वयः, शब्दार्थः सरलार्थश्च
(क) उपरि निर्मितं चित्रं पश्यत। इदं चित्रं कस्याश्चित् पाठशालायाः वर्तते। इयं सामान्या पाठशाला नास्ति। इयमस्ति महाराष्टस्य प्रथमा कन्यापाठशाला। एका शिक्षिका गहात पस्तकानि आदाय मार्गे कश्चित् तस्याः उपरि धूलिं कश्चित् च प्रस्तरखण्डान् क्षिपति। परं सा स्वदृढनिश्चयात् न विचलति। स्वविद्यालये कन्याभिः सविनोदम् आलपन्ती सा अध्यापने संलग्ना भवति। तस्याः स्वकीयम् अध्ययनमपि सहैव प्रचलति। केयं महिला? अपि यूयमिमां महिलां जानीथ? इयमेव महाराष्ट्रस्य प्रथमा महिला शिक्षिका सावित्री बाई फुले नामधेया।
शब्दार्थ-
उपरि-ऊपर।
पश्यत-देखो।
इदम्-यह (नपुं.)।
कस्याश्चित्-किसी।
नास्ति-नहीं है।
प्रथमा-प्रथम (स्त्री.)
निर्मितम्-बने हुए।
गृहात्-घर से।
एका-एक (स्त्री.)।
मार्गे-रास्ते में।
आदाय-लेकर।
प्रस्तरखण्डान्-पत्थर के टुकड़ों को।
कश्चित्-कोई।
परम्-परन्तु।
क्षिपति-फेंकता है।
सविनोदम्-मजाक के साथ।
विचलति-विचलित होती है।
सहैव-साथ ही।
आलपन्ती-बात करती हुई।
जानीथ-जानते हो।
केयं-कौन है यह।
संलग्ना-लगी हुई।
नामधेया-नामक।
स्वकीयम्-अपना।
स्वदृढनिश्चयात्-अपने मजबूत संकल्प से।
प्रचलति-चलता है।
सरलार्थ-
ऊपर बने हुए चित्र को देखो। यह चित्र किसी पाठशाला का है। यह सामान्य विद्यालय नहीं है। यह महाराष्ट्र की पहली कन्या पाठशाला है। एक अध्यापिका घर से पुस्तकें लेकर चलती है। मार्ग में कोई उसके ऊपर धूल और कोई पत्थर के टुकड़े फेंकता है। परन्तु वह अपने दृढ़ निश्चय से विचलित नहीं होती है। अपने विद्यालय में लड़कियों से हँसी मजाक के साथ बात करती हुई वह पढ़ाने में लगी होती है। उसका अपना अध्ययन भी साथ ही चलता है। कौन है यह महिला? क्या तुम सब इस महिला को जानते हो? यह ही महाराष्ट्र की पहली महिला शिक्षिका सावित्री बाई फुले है।
(ख) जनवरी मासस्य तृतीये दिवसे 1831 तमे ख्रिस्ताब्दे महाराष्ट्रस्य नायगांव-नाग्नि स्थाने सावित्री अजायत। तस्याः माता लक्ष्मीबाई पिता च खंडोजी इति अभिहितौ। नववर्षदेशीया सा ज्योतिबा-फुले महोदयेन परिणीता। सोऽपि तदानीं त्रयोदशवर्षकल्पः एव आसीत्। यतोहि सः स्त्रीशिक्षायाः प्रबल: समर्थकः आसीत् अतः सावित्र्याः मनसि स्थिता अध्ययनाभिलाषा उत्साहं प्राप्तवती। इतः परं सा साग्रहम् आङ्ग्लभाषाया अपि अध्ययनं कृतवती।
शब्दार्थ-
तृतीये दिवसे-तीसरे दिवस (तारीख) में।
नववर्षदेशीया-नौ साल वाली।
नाम्नि-नामक।
ख्रिस्ताब्दे-ईस्वीय वर्ष में।
अजायत-उत्पन्न हुई।
तदानीम्-तब।
अभिहितौ-कहे गए हैं।
यतोहि-क्योंकि।
परिणीता-ब्याही गई (Married)।
अध्ययनाभिलाषा-पढ़ने की इच्छा।
त्रयोदश०-तेरह (Thirteen)।
इतः परम्- इससे भी बढ़कर।
मनसि-मन में।
आंग्ल०-अंग्रेजी भाषा का। उत्सम्-बल।
साग्रहम्-आग्रह के साथ।
सरलार्थ-
3 जनवरी, सन् 1831 में महाराष्ट्र के नायगांव नामक स्थान पर सावित्री का जन्म हुआ। उसकी माता लक्ष्मीबाई तथा पिता खंडोजी नामक हुए हैं। नौ वर्ष की अवस्था में वह ज्योतिबा फुले महोदय के साथ ब्याही गई। उस समय वह भी तेरह वर्ष का ही था। क्योंकि वह स्त्री शिक्षा का प्रबल समर्थक था अतः सावित्री के मन में स्थित पढ़ने की इच्छा को बल प्राप्त हुआ। इससे बढ़कर उसने आग्रहपूर्वक अंग्रेजी भाषा का भी अध्ययन किया।
(ग) 1848 तमे ख्रिस्ताब्दे पुणेनगरे सावित्री ज्योतिबामहोदयेन सह कन्यानां कृते प्रदेशस्य प्रथम विद्यालयम् आरभत। तदानीं सा केवलं सप्तदशवर्षीया आसीत्। 1851 तमे ख्रिस्ताब्दे अस्पृश्यत्वात् तिरस्कृतस्य समुदायस्य बालिकानां कृते पृथक्तया तया अपरः विद्यालयः प्रारब्धः।
शब्दार्थ-
कन्यानां कृते-लड़कियों के लिए।
आरभत-प्रारम्भ किया।
पृथक्तया-अलग से (Separate)
सप्तदश०-सत्रह वर्ष की (Seventeen)
तदानीम्-तब।
तिरस्कृतस्य-तिरस्कृत का (Hated)
अस्पृश्यत्वात्-छुआछूत के कारण
प्रारब्धः-आरम्भ किया (Started) (Untouchability)।
अपरः-दूसरा (Other)
सरलार्थ-
1848 ईस्वी सन् में पुणे नगर में सावित्री ने ज्योतिबा महोदय के साथ कन्याओं के लिए प्रदेश के प्रथम विद्यालय को आरम्भ किया। तब वह केवल सत्रह वर्ष की थी। ईस्वी सन् 1851 में छुआछूत के कारण अपमानित समुदाय की बालिकाओं के लिए पृथक् उसके द्वारा दूसरा विद्यालय प्रारम्भ किया गया।
(घ)सामाजिककुरीतीनां सावित्री मुखरं विरोधम् अकरोत्। विधवानां शिरोमुण्डनस्य निराकरणाय सा साक्षात् नापितैः मिलिता। फलतः केचन नापिताः अस्यां रूढी सहभागिताम् अत्यजन्। एकदा सावित्र्या मार्गे दृष्टं यत् कृपं निकषा शीर्णवस्त्रावृताः तथाकथिताः निम्नजातीयाः काश्चित् नार्यः जलं पातुं याचन्ते स्म। उच्चवर्गीयाः उपहासंकर्वन्तः कपात जलोदधरणं अवारयन् । सावित्री एतत् अपमानं सोढं नाशक्नोत् । सा ताः स्त्रियः निजगृहं नीतवती। तडागं दर्शयित्वा अकथयत् च यत् यथेष्टं जलं नयत। सार्वजनिकोऽयं तडागः। अस्मात् जलग्रहणे नास्ति जातिबन्धनम्। तया मनुष्याणां समानतायाः स्वतन्त्रतायाश्च पक्षः सर्वदा सर्वथा समर्थितः।
शब्दार्थ-
मुखरम्-प्रबलता से (Severe)।
अकरोत्-किया।
निराकरणाय-दूर करने के लिए।
नापितैः-नाई लोगों से (Barbers)
केचन-कुछ।
रूढौ-रिवाज में (Custom)
अत्यजन्-छोड़ दिया (Left)
एकदा-एक बार
यत्-कि।
निकषा-पास (Near)
शीर्णवस्त्रावृताः-फटे पुराने वस्त्रों से ढकी हुई।
निम्नजातीया:-नीच जाति वाली।
नार्यः-नारियाँ (Women)
पातुम्-पीने के लिए।
उपहासम्-मजाक (Fun)
जलोद्धरणम्-जल को निकालना।
अवारयन्-मना करते हैं।
सोढुम्-सहने के लिए।
नाशक्नोत्-नहीं सकी।
नीतवती-ले गई।
दर्शयित्वा-दिखाकर।
यथेष्टम्-इच्छा के अनुसार।
जातिबन्धनम्-जाति का बन्धन (Casteism)।
तया-उसने। सर्वदा-सदा।
सर्वथा-पूर्ण रूप से (Fully)।
समर्थितः-समर्थन किया (Supported)।
सरलार्थ-
सावित्री ने सामाजिक कुरीतियों (समाज में फैले बुरे रिवाजों, परंपराओं) का प्रबल विरोध किया। विधवाओं के शिर को मूंडने की प्रथा को दूर करने के लिए वह साक्षात् नाई लोगों से मिली। (इसके) फलस्वरूप कुछ नाइयों ने इस रिवाज़ में सहभागिता का त्याग कर दिया। एक बार सावित्री ने मार्ग में देखा कि कुएँ के पास फटे पुराने वस्त्रों में ढकी हुई तथाकथित नीच जाति की कुछ स्त्रियाँ जल पीने के लिए याचना कर रही थीं। उच्च वर्ग वाले उनका मज़ाक उड़ाते हुए कुएँ से जल निकालने के लिए मना कर रहे थे।
सावित्री इस अपमान को सहन न कर सकी। वह उन स्त्रियों को अपने घर ले गई और तालाब को दिखाकर उसने कहा कि (तुम) इच्छा के अनुसार जल ले जाओ। यह तालाब सार्वजनिक है। इससे जल लेने में जाति का बन्धन नहीं है। उसने मनुष्यों की समानता और स्वतन्त्रता के पक्ष का सदा तथा पूर्ण रूप से समर्थन किया।
(ङ) ‘महिला सेवामण्डल”शिशुहत्या प्रतिबन्धक गृह’ इत्यादीनां संस्थानां स्थापनायां फुलेदम्पत्योः अवदानम् महत्वपूर्णम्। सत्यशोधकमण्डलस्य गतिविधिषु अपि सावित्री अतीव सक्रिया आसीत्। अस्य मण्डलस्य उद्देश्यम् आसीत् उत्पीडितानां समुदायानां स्वाधिकारान् प्रति जागरणम् इति।
शब्दार्थ –
अवदानम्-योगदान (Contribution)।
संस्थानाम्-संस्थाओं के।
गतिविधिषु-गतिविधियों में।
उत्पीडितानाम्-सताए गए।
प्रतिबन्धक-रोकने वाला।
स्थापनायां-स्थापना में।
उद्देश्यम्-लक्ष्य।
अतीव-अत्यधिक।
जागरणम्-जागरण (जगाना)।
सरलार्थ-
‘महिला सेवामण्डल’ व ‘शिशुहत्या प्रतिबन्ध गृह’ इत्यादि संस्थाओं की स्थापना में फुले दम्पति (पति-पत्नी) का योगदान महत्त्वपूर्ण है। सत्य शोधक-मण्डल की गतिविधियों में भी सावित्री अत्यधिक सक्रिय थी। इस मण्डल का उद्देश्य था सताए गए समुदायों का अपने अधिकारों के प्रति जागरण।
(च) सावित्री अनेकाः संस्थाः प्रशासनकौशलेन सञ्चालितवती। दुर्भिक्षकाले प्लेग-काले च सा पीडितजनानाम् अश्रान्तम् अविरतं च सेवाम् अकरोत्। सहायता-सामग्री-व्यवस्थायै सर्वथा प्रयासम् अकरोत। महारोगप्रसारकाले सेवारता सा स्वयम असाध्यरोगेण ग्रस्ता 1897 तमे खिस्ताब्दे निधनं गता। साहित्यरचनया अपि सावित्री महीयते। तस्याः काव्यसङ्कलनद्वयं वर्तते ‘काव्यफुले’ ‘सुबोधरत्नाकर’ चेति। भारतदेशे महिलोत्थानस्य गहनावबोधाय सावित्रीमहोदयायाः जीवनचरितम् अवश्यम् अध्येतव्यम्।
शब्दार्थ-
सञ्चालितवती-सञ्चालन किया (चलाया)।
दुर्भिक्ष०-अकाल समय में।
अश्रान्तम्-बिना थके।
अविरतम्-निरन्तर।
प्रयासम्-प्रयत्न।
प्रसार०-फैलना।
निधनम्-मृत्यु को।
महीयते-बढ़-चढ़कर है।
गहन०-गहराई से।
अवबोधाय-समझने के लिए।
अध्येतव्यम्-पढ़ना चाहिए।
प्रशासनकौशलेन-शासन (निर्देशन)
प्लेग-काले-प्लेग (चूहों के द्वारा फैलने की कुशलता से। वाला रोग) के समय में।
उत्थानस्य-उन्नति का।
सरलार्थ-
सावित्री ने अनेक संस्थाओं को प्रशासन कौशल के द्वारा चलाया। अकाल के समय तथा प्लेग (रोग) के समय उसने पीड़ित लोगों की बिना थके निरन्तर सेवा की। सहायता-सामग्री की व्यवस्था के लिए उसने पूर्णरूपेण प्रयत्न किया। महारोग के प्रसार के समय सेवा में लगी हुई वह स्वयं असाध्य रोग से ग्रस्त होकर सन् 1897 में मृत्यु को प्राप्त हो गई। . साहित्य रचना के द्वारा भी सावित्री महान् है। उसके दो काव्यसंकलन हैं-‘काव्य फुले’ तथा ‘सुबोधरत्नाकर’। भारतदेश में महिलाओं की उन्नति को गहराई से समझने के लिए सावित्री महोदया के जीवन चरित का अवश्य अध्ययन करना चाहिए।