By going through these Sanskrit Class 7 Notes and NCERT Class 7 Sanskrit Chapter 3 Hindi Translation Summary Explanation Notes मित्राय नमः students can clarify the meanings of complex texts.
Sanskrit Class 7 Chapter 3 Hindi Translation मित्राय नमः Summary
मित्राय नमः Meaning in Hindi
Class 7 Sanskrit Chapter 3 Summary Notes मित्राय नमः
प्रस्तुत पाठ में ‘सूर्य नमस्कार’ योगासन सब योगासनों में सर्वश्रेष्ठ है। भारत ने ही ‘योग’ को विश्व स्तर पर प्रसारित कर योग गुरु के रूप में अपना स्थान बनाया है। वास्तव में हमारे पूर्वज ऋषि-मुनियों ने तन व मन को पूर्णतः स्वस्थ व दुरूस्त रखने के लिए हमारे प्राचीन साहित्य में योगासनों का विस्तृत वर्णन कर जगत का कल्याण करने वाले योगासनों का सम्पूर्ण मानव जगत को अपूर्व उपहार दिया। प्रस्तुत पाठ में सूर्य नमस्कार के विषय में बताते हुए उनसे प्राप्त शारीरिक, मानसिक व आध्यात्मिक बल के विषय में बताया है। ‘सूर्य नमस्कार’ योगासन बारह योगासनों का समूह है, जिसे नित्यप्रति प्रात: करके ‘स्वस्थं मन, स्वस्थ तन’ प्राप्त करते हैं।
Class 7 Sanskrit Chapter 3 Hindi Translation मित्राय नमः
(क) – अहो! योगिते त्वं प्रातः किं करोषि?
– अहं प्रतिदिनं प्रातः पित्रा सह उद्यानं गच्छामि।
– उद्याने किं करोषि भो:?
– अहं तु भ्रमणं करोमि। किन्तु बहवः जनाः तत्र व्यायामं योगासनानि च कुर्वन्ति।
– अहो योगासनानि! वयम् अपि ज्ञातुम् इच्छामः।
– तर्हि वयं सर्वे योगशिक्षिकायाः समीपं गच्छामः।
(सर्वे उत्साहेन योगशिक्षिकायाः समीपं गच्छन्ति) (पृष्ठ 29)
शब्दार्था:
कक्षायां – कक्षा में। वार्तालापं – बातचीत। पित्रा सह – पिता के साथ। उद्यानं – बाग। भ्रमणं – भ्रमण / घूमना। बहवः जनाः – बहुत लोग। ज्ञातुम् – जानना। तर्हि – तो। गच्छाम – जाएँ।
सरलार्थ-
– हे! योगिता! तुम सुबह क्या करती हो?
– मैं प्रतिदिन सुबह पिताजी के साथ बाग जाती हूँ।
– बाग में क्या करती हो?
– मैं तो भ्रमण करती हूँ। किन्तु बहुत लोग वहाँ व्यायाम और योगासन करते हैं।
– वाह योगासन! हम भी जानना चाहते हैं।
– तो हम सभी, योगशिक्षिका के पास जाएँ।
(सभी उत्साह से योगशिक्षिका के पास जाते हैं।)
(ख) छात्राः – नमो नमः आचायें!
आचार्या – शुभं भवतु। उपविशन्तु सर्वे।
छात्रा: – आचायें! किम् अद्य भवान् अस्मान् योगासनं शिक्षयति?
आचार्या – निश्चयेन वदन्तु किम् आसनं शिक्षितुम् इच्छन्ति?
योगिता – आचार्ये! अद्य सूर्यनमस्कारं शिक्षयतु।
आचार्या – समीचीनम्। सूर्यनमस्कार: द्वादशानाम् आसनानां समाहारः अस्ति। प्रत्येकस्मात् सूर्यनमस्कारात् पूर्वम् एकः मन्त्रः भवति। तेषु प्रथमः मन्त्रः अस्ति – ‘ॐ मित्राय नमः’ इति। (पृष्ठ 30)
शब्दार्था:
उपविशन्तु – बैठ जाओ। अस्मान् – हमें। शिक्षयति – सिखाते हैं। निश्चयेन – निश्चय से। वदन्तु – बताओ। द्वादशानाम् आसनानाम् – बारह आसनों का। समाहारः – समूह। तेषु – उनमें। मित्राय नमः – सूर्य को नमस्कार हो।
सरलार्थ-
सब छात्र – आचार्या ! नमस्कार हो।
आचार्या – कल्याण हो। सभी बैठ जाओ।
सब छात्र – आचार्या! क्या आज आप हमें योगासन सिखाती हैं?
आचार्या – निश्चय से बोलो, क्या आसन सीखना चाहते हो?
योगिता – आचार्या! आज सूर्य नमस्कार सिखाइए।
आचार्या – उचित है। सूर्य नमस्कार बारह आसनों का समूह है। प्रत्येक सूर्य नमस्कार से पहले एक मन्त्र होता है। उनमें पहला मन्त्र है- ‘ॐ मित्राय नमः’ इति (ओम्, सूर्य का नमस्कार)।
(ग) छात्रा: – आम् महोदये! वयं स्मरामः …….।
आचार्या – अत्युत्तमम्! मिलित्वा वदन्तु।
छात्राः – ॐ मित्राय नमः। ॐ रवये नमः। ॐ सूर्याय नमः। ॐ भानवे नमः। ॐ खगाय नमः। ॐ पूष्णे नमः। ॐ हिरण्यगर्भाय नमः। ॐ मरीचये नमः। ॐ आदित्याय नमः। ॐ सवित्रे नमः। ॐ अर्काय नमः। ॐ भास्कराय नमः। (सर्वान्ते) ॐ सवितृसूर्यनारायणाय नमः।
आचार्या – अत्युत्तमम्। इदानीम् एकेन श्लोकेन सूर्यनमस्कारस्य बहूनि प्रयोजनानि वदामि। भवन्तः शृण्वन्तु अनुवदन्तु च।
आदित्यस्य नमस्कारान् ये कुर्वन्ति दिने दिने।
आयुः प्रज्ञा बलं वीर्यं तेजस्तेषां च जायते। (पृष्ठ 30-31)
शब्दार्था:
आम् – हाँ। स्मरामः – याद करते हैं। अत्युत्तमम् – (अति + उत्तमम्) अति उत्तम। मिलित्वा – मिलकर। वदन्तु – बोलो। रवये / सूर्याय / भानवे/ खगाय / पूष्णे / हिरण्यगर्भाय / मरीचये / आदित्याय / सवित्रे/ अर्का / भास्कराय – सूर्य को (ये सभी सूर्य के पर्याय हैं)। इदानीम् – अब। शृणवन्तु – सुनो। अनुवदन्तु – पीछे बोलो। प्रज्ञा – बुद्धि। तेजस्तेषां – (तेजः + तेषां) उनका तेज।
अन्वयः ये दिने दिने आदित्यस्य नमस्कारान् कुर्वन्ति। तेषाम् आयुः, प्रज्ञा, बलं वीर्यं तेजः च जायते।
सरलार्थ-
सब छात्र – हाँ महोदया ! हम याद करते हैं………।
आचार्या – बहुत अच्छा! मिलकर बोलो।
सब छात्र – ओम् सूर्य को नमस्कार ॐ रवि (सूर्य) को नमस्कार। ॐ सूर्य को नमस्कार। ॐ भानु (सूर्य) को नमस्कार। ॐ खग (सूर्य) को नमस्कार। ॐ पूषा (सूर्य) को नमस्कार। ॐ हिरण्यगर्भ (सूर्य) को नमस्कार। ॐ मरीचि (सूर्य) को नमस्कार। ॐ आदित्य (सूर्य) को नमस्कार। ॐ सविता (सूर्य) को नमस्कार। ॐ अर्क (सूर्य) को नमस्कार। ॐ भास्कर (सूर्य) को नमस्कार। (सबसे अन्त में) ॐ सविता (सूर्य) नारायण को नमस्कार।
आचार्या – बहुत उत्तम। अब एक श्लोक से सूर्य नमस्कार के अनेक प्रयोजन बताती हूँ। आप सब सुनो और पीछे बोलो। जो प्रतिदिन सूर्य को नमस्कार करते हैं। उनकी आयु, बुद्धि, बल, वीर्य और तेज बढ़ता है।
(घ) एवं योगासनेषु सूर्यनमस्कारः एकः श्रेष्ठः आसनक्रमः अस्ति। सूर्यनमस्कारेण शारीरिक, मानसिकम्, आध्यात्मिकं च बलं वर्धते। अतः वयं प्रतिदिनं सूर्यनमस्कारं करवाम। ‘स्वस्थं शरीरं स्वस्थं मनः’ च प्राप्नवाम अस्तु, पुनः अग्रिमकक्षायाम् अन्येषाम् आसनानां विषये ज्ञास्यामः।
छात्रा: – धन्यवादाः आचायें! (पृष्ठ 31)
शब्दार्था:
एवं – इस प्रकार। योगासनेषु – योगासनों में। वर्धते – बढ़ता है। करवाम – करें। प्राप्जवाम – प्राप्त करें। अग्रिमकक्षायाम् – अगली कक्षा में। ज्ञास्यामः – जानेंगे।
सरलार्थ-
इस प्रकार योगासनों में सूर्य नमस्कार एक श्रेष्ठ आसनक्रम है। सूर्य नमस्कार से शारीरिक, मानसिक और आध्यात्मिक बल बढ़ता है। इसलिए हम प्रतिदिन सूर्य नमस्कार करें। ‘स्वस्थ शरीर और स्वस्थ मन’ प्राप्त करें। अच्छा, फिर अगली कक्षा में अन्य आसनों के विषय में जानेंगे।
सब छात्र – धन्यवाद आचार्या!
स्वावलम्बनम् पाठ का परिचय
प्रस्तुत पाठ में दो मित्रों की कथा के द्वारा वर्णन किया गया है कि स्वावलम्बी मनुष्य सदा सुखी रहता है। पराधीन व्यक्ति दुःखी होता है। सबको अपना कार्य स्वयं करना चाहिए। पाठ में संख्यावाची शब्दों से भी अवगत करवाया गया है।
स्वावलम्बनम् Summary
कृष्णमूर्ति तथा श्रीकण्ठ दो मित्र थे। श्रीकण्ठ का पिता समृद्ध था। उसके घर में सब प्रकार के सुख साधन थे। उसके विशाल भवन में चालीस खम्बे थे। अठारह कमरों में पचास खिड़कियाँ थीं। कृष्णमूर्ति के माता-पिता साधारण कृषक थे। उनका घर आडम्बर शून्य तथा अत्यधिक साधारण था। एक बार श्रीकण्ठ उसके घर आया। उसके घर में नौकर को न देखकर श्रीकण्ठ ने कहा–’तुम्हारे घर में एक भी नौकर नहीं है। मेरे यहाँ तो अनेक नौकर हैं।’
स्वावलम्बी कृष्णमूर्ति कहने लगा-‘मेरे आठ नौकर हैं। यथा-दो पैर, दो हाथ, दो आँख तथा दो कान। ये प्रतिपल मेरे अधीन रहते हैं। परन्तु तुम्हारे नौकर दिन-रात कार्य नहीं कर सकते।’ अतः तुम नौकरों के अधीन हो। अपना कार्य स्वयं करने से सुख ही प्राप्त होता है। यह सुनकर श्रीकण्ठ अत्यधिक प्रसन्न हुआ और कहने लगा’आज से मैं भी अपना कार्य स्वयं करूँगा।’
स्वावलम्बनम् Word Meanings Translation in Hindi
(क) कृष्णमूर्तिः श्रीकण्ठश्च मित्रे आस्ताम्। श्रीकण्ठस्य पिता समृद्धः आसीत्।अतः तस्य भवने सर्वविधानि सुख-साधनानि आसन्। तस्मिन् विशाले भवने चत्वारिंशत् स्तम्भाः आसन्। तस्य अष्टादश-प्रकोष्ठे षु पञ्चाशत् गवाक्षाः, चतुश्चत्वारिंशत् द्वाराणि षट्त्रिंशत् विद्युत्-व्यजनानि च आसन्। तत्र दश सेवकाः निरन्तरं कार्यं कुर्वन्ति स्म। परं कृष्णमूर्तेः माता पिता च निर्धनौ कृषकदम्पती। तस्य गृहम् आडम्बरविहीनं साधारणञ्च आसीत्।
शब्दार्थाः (Word Meanings) :
समृद्धः-धनवान् (rich), चत्वारिंशत्-चालीस (forty), स्तम्भाः खम्भे (pillars), अष्टादश-अठारह (eighteen), प्रकोष्ठेषु-कमरों में (in rooms), पञ्चाशत्-पचास (fifty), गवाक्षाः-खिड़कियाँ (windows), चतुश्चत्वारिंशत्-चवालीस (forty four), द्वाराणि-दरवाज़े (doors), षट्त्रिंशत्-छत्तीस (thirty six), गृहम्-घर (home), कृषकदम्पती-किसान पति-पत्नी (peasant couple), आडम्बरविहीनं-दिखावा रहित (without pomp and show.)
सरलार्थ :
कृष्णमूर्ति और श्रीकण्ठ दो मित्र थे। श्रीकण्ठ के पिता धनवान् थे। इसलिए उसके घर में सब प्रकार के सुख-साधन थे। उस बड़े घर में चालीस खम्भे थे। उसके अठारह कमरों में पचास खिड़कियाँ और चवालीस दरवाज़े और छत्तीस पंखे थे। वहाँ दस नौकर हमेशा (लगातार) काम करते रहते थे परन्तु कृष्णमूर्ति के माता और पिता किसान पति-पत्नी थे। उसका घर आडम्बर (दिखावा) रहित और साधारण था।
English Translation :
Krishnamurthy and Shrikantha were two friends. Shrikantha’s father was rich. Therefore, there were all types of comforts and luxuries in his house. There were forty pillars in that house. There were fifty windows and forty four doors and thirty-six electric fans in eighteen rooms. Ten servants used to work continuously there, but Krishnamurthy’s parents were a peasant couple. His house was without pomp and show and (very) ordinary.
(ख) एकदा श्रीकण्ठः तेन सह प्रात: नववादने तस्य गृहम् अगच्छत्। तत्र कृष्णमूर्तिः तस्य
माता पिता च स्वशक्त्या श्रीकण्ठस्य आतिथ्यम् अकुर्वन्। एतत् दृष्ट्वा श्रीकण्ठः
अकथयत्-
“मित्र! अहं भवतां सत्कारेण सन्तुष्टोऽस्मि। केवलम् इदमेव मम दुःखं यत् तव गृहे एकोऽपि भृत्यः नास्ति। मम सत्काराय भवतां बहु कष्टं जातम्। मम गृहे तु बहवः कर्मकराः सन्ति।”
शब्दार्थाः (Word Meanings) :
आतिथ्यम्-अतिथि-सत्कार (hospitality), कर्मकरा:-काम करने वाले (workers), सन्तुष्टः-सन्तोष करनेवाला (satisfied), भवताम्-आपके (with you), बहवः-बहुत से (many), भृत्यः-नौकर (servant).
सरलार्थ :
एक बार श्रीकण्ठ उसके साथ सवेरे नौ बजे उसके घर गया। वहीं कृष्णमूर्ति और उसके माता पिता जी ने अपने सामर्थ्य से श्रीकण्ठ का अतिथि-सत्कार किया। यह देखकर श्रीकण्ठ ने कहा- “मित्र ! मैं तुम्हारे सत्कार से सन्तुष्ट हूँ। केवल यह बात मुझे दुःखी कर रही है कि तुम्हारे घर में एक भी सेवक नहीं है। जिससे मेरे सत्कार के लिए आप सबने बहुत कष्ट सहा है। मेरे घर में तो बहुत से सेवक हैं।”
English Translation :
Once Shrikantha went to Krishnamurthy’s home with him at nine in the morning. There Krishnamurthy and his parents provided him hospitality the best of their capability. On seeing this Shrikantha said, “Friend! I am satisfied with your hospitality. The only thing that makes me unhappy is that there is not a single servant in your home because of which you are taking the trouble for my hospitality. There are many servants in my home.”
(ग) तदा कृष्णमूर्तिः अवदत्-“मित्र! ममापि अष्टौ कर्मकराः सन्ति। ते च द्वौ पादौ, द्वौ हस्तौ, द्वे नेत्रे, द्वे श्रोत्रे इति। एते प्रतिक्षणं मम सहायकाः। किन्तु तव भृत्याः सदैव सर्वत्र च उपस्थिताः भवितुं न शक्नुवन्ति। त्वं तु स्वकार्याय भृत्याधीनः। यदा यदा ते अनुपस्थिताः, तदा तदा त्वं कष्टम् अनुभवसि। स्वावलम्बने तु सर्वदा सुखमेव, न कदापि कष्टं भवति।”
शब्दार्थाः ( Word Meanings):
स्वावलम्बने-आत्मनिर्भरता में (in self-reliant), प्रतिक्षणं-हरपल (every moment), अनुपस्थिताः-उपस्थित नहीं हैं (ब०व०) (absent), अधीन:-निर्भर (dependant), स्वकार्याय-अपने काम के लिए (for your work), अनुभवसि-अनुभव करते हो (feel).
सरलार्थ :
तब कृष्णमूर्ति बोला- “मित्र! मेरे भी आठ नौकर हैं। और वे दो पैर, दो हाथ, दो आँखें और दो कान हैं। ये हर पल मेरे सहायक हैं। परन्तु तुम्हारे नौकर सदा सब जगह उपस्थित नहीं हो सकते। तुम तो अपने कार्य के लिए अपने सेवकों के अधीन हो। जब-जब वे अनुपस्थित होते हैं, तब-तब तुम कष्ट का अनुभव करते हो। स्वावलम्बन में तो हमेशा सुख ही है, कभी कष्ट नहीं होता है।”
English Translation:
Then Krishnamurthy spoke, “Friend! I have eight servants. These are two feet, two hands, two eyes and two ears. Every moment these are my helpers. But your servants are not capable of being present everywhere all the time. You are dependent on you servants for your work. Whenever they are not present you feel distressed. There is always comfort in self-reliance and there is no problem at all.
(घ) श्रीकण्ठः अवदत्-“मित्र! तव वचनानि श्रुत्वा मम मनसि महती प्रसन्नता जाता। अधुना अहमपि स्वकार्याणि स्वयमेव कर्तुम् इच्छामि।” भवतु, सार्धद्वादशवादनमिदम्। साम्प्रतं गृह चलामि।
शब्दार्थाः (Word Meanings) :
अवदत्-कहा, बोला (said)
मनसि-मन (हृदय) में (in heart)
अधुना-अब (Now)
स्वयमेव-अपने आप ही (also myself only)
भवतु-ठीक है (ok)
सार्धद्वादशवादनम्-साढ़े बारह बजे (half past twelve)
साम्प्रतं-अब
इस समय (Now).
सरलार्थ :
श्रीकण्ठ बोला-“मित्र! तुम्हारे वचनों को सुनकर मेरे मन में बहुत प्रसन्नता हुई। अब मैं भी अपना काम स्वयं ही करूँगा।” ठीक है। अब साढ़े बारह बजे हैं। मैं अब घर चलता हूँ।
English Translation : Shrikantha said, “Friend! hearing your words, I am pleased in my heart. Now, I will also do my work myself.” All right. It is half past twelve. I shall now go home.