By going through these Sanskrit Class 7 Notes and NCERT Class 7 Sanskrit Chapter 1 Hindi Translation Summary Explanation Notes वन्दे भारतमातरम् students can clarify the meanings of complex texts.
Sanskrit Class 7 Chapter 1 Hindi Translation वन्दे भारतमातरम् Summary
वन्दे भारतमातरम् Meaning in Hindi
Class 7 Sanskrit Chapter 1 Summary Notes वन्दे भारतमातरम्
प्रत्येक भारतीय बहुत गौरव व प्रेम से ‘वन्दे मातरम्’ हमारा राष्ट्रीय गीत सुनता भी है और गाता भी है। सप्तम कक्षा के प्रथम पाठ में ही इस गीत का विस्तृत विवेचन है। ‘वन्दे मातरम्’ यह राष्ट्रीय गीत बंकिमचन्द्र चट्टोपाध्याय ने 1882 में अपने प्रसिद्ध उपन्यास ‘आनन्दमठ’ में लिखा। यह गीत संस्कृत और बाङ्ग्ला दो भाषाओं में है। प्रस्तुत पाठ में भारत के प्रसिद्ध तीर्थस्थल, प्रसिद्ध नदियाँ, प्रसिद्ध पर्वत श्रेणियों एवं राष्ट्रीय ध्वज के विषय में विस्तार से बताकर विद्यार्थियों का ज्ञानवर्धन किया गया है। विद्यार्थी अवश्य ही भारत की भौगोलिक सम्पदा के विषय में जानकर गौरव अनुभव करेंगे।
Class 7 Sanskrit Chapter 1 Hindi Translation वन्दे भारतमातरम्
(क) अम्ब! वयं विभिन्नेषु कार्यक्रमेषु, आकाशवाण्यां शालायां च ‘वन्दे मातरम्’ इति गीतं बहुत्र शृणुमः। किन्तु अस्य अर्थं न जानीमः। मातः! अस्य कः अर्थः?
– ‘इदं गीतं कः लिखितवान्’ इत्यपि मम जिज्ञासा अस्ति।
– वत्सौ! महान् देशभक्तः बकिमचन्द्रः चट्टोपाध्यायः 1882 तमे वर्षे ‘आनन्दमठ’ इति नामकम् उपन्यासं लिखितवान्।
‘वन्दे मातरम्’ इति गीतं तस्मिन् एव उपन्यासे वर्तते।
‘वन्दे मातरम्’ इत्यस्य अर्थः अस्ति यत् ‘अहं मातुः वन्दनं करोमि’ इति।
– मातः! इदं गीतं कस्यां भाषायाम् अस्ति? (पृष्ठ 1)
शब्दार्थाः
वन्दे – वन्दना करता हूँ। आलिङ्ग्य – आलिंगन करके। बहुत्र – अनेक स्थानों पर। शृणुमः – सुनते हैं। आकाशवाण्यां- आकाशवाणी में (रेडियो में)। जिज्ञासा – जानने की इच्छा। लिखितवान् – लिखा। यत् – कि। मातुः – माता की। भाषायाम् – भाषा में।
सरलार्थ-
– माँ! हम विभिन्न कार्यक्रमों में आकाशवाणी (रेडियो) में पाठशालाओं में ‘वन्दे मातरम्’ गीत अनेक स्थानों पर सुनते हैं, किन्तु इसका अर्थ नहीं जानते हैं। माता! इसका क्या अर्थ है?
– ‘यह गीत किसने लिखा यह भी मेरी जानने की इच्छा है।
– बच्चो! महान देशभक्त बंकिमचन्द्रः चट्टोपाध्याय ने 1882 वें वर्ष में ‘आनन्दमठ’ नामक उपन्यास लिखा। ‘वन्दे मातरम्’ उसी उपन्यास में है। ‘वन्दे मातरम्’ इसका अर्थ है कि ‘मैं माता का वन्दन करता हूँ।’
– माता! यह गीत किस भाषा में है?
(ख) – पुत्रि ! एतत् गीतं संस्कृतं बाङ्ग्ला च इति भाषाद्वये वर्तते।
– मातः! अस्मिन् गीते वर्ण्य विषयः कः अस्ति?
– पुत्र! अस्मिन् गीते भारतमातुः स्वरूपस्य रम्यं वर्णनम् अस्ति।
– अम्ब! एतस्य गीतस्य किं वैशिष्ट्यम्?
– बालौ! स्वतन्त्रतायाः आन्दोलने सर्वे देशभक्ताः एतत् गीतं मन्त्रम् इव गायन्ति स्म। सम्प्रति अपि इदं गीतं श्रुत्वा गीत्वा च वयं सर्वे भारतीयाः प्रेरिताः भवामः।
– मातः! ‘वन्दे मातरम्’ इति गीतस्य अर्थः इतिहास: चकियान् महान् अस्ति खलु!
– अम्ब! आवाम् अस्माकं राष्ट्रध्वजस्य विषये अपि किञ्चित् ज्ञातुम् इच्छावः।
– साधु, अधुना वयं भारतमातुः त्रिवर्णध्वजस्य च विषये जानीमः। (पृष्ठ 1-3)
शब्दार्था:
भाषाद्वये – दो भाषा में। रम्यं – सुन्दर। वैशिष्ट्यम् – विशेषता। स्वतन्त्रतायाः – स्वतन्त्रता के। इव – समान। सम्प्रति – अब। श्रुत्वा – सुनकर।
गीत्वा – गाकर। कियान् – कितना। किञ्चित् – (किम् + चित्) कुछ। साधु – अच्छा।
सरलार्थ-
– पुत्री! यह गीत संस्कृत और बाङ्ग्ला दोनों भाषाओं में है।
– माता! इस गीत में वर्ण्य विषय क्या है?
– पुत्र! इस गीत में भारतमाता के स्वरूप का सुन्दर वर्णन है।
– माँ! इस गीत की क्या विशेषता है?
– बच्चो! स्वतन्त्रता के आन्दोलन में सभी देशभक्त यह गीत मन्त्र के समान गाते थे। अब भी यह गीत सुनकर और गाकर हम सभी भारतीय प्रेरित होते हैं। माता! ‘वन्दे मातरम्’ गीत का अर्थ और इतिहास निश्चय ही कितना महान है।
– माँ! हम दोनों हमारे राष्ट्रध्वज के विषय में भी कुछ जानना चाहते हैं।
– बहुत अच्छा, अब हम सब भारतमाता के तिरंगे झंडे के विषय में जानते हैं।
(ग) एषा अस्माकं वत्सला भारतमाता। अहो अस्माकं भारतमातुः माहात्म्यम्! साक्षात् पर्वतराज हिमालय: मुकुटरूपेण अस्याः मस्तके शोभते। अस्याः चरणौ प्रक्षालयति स्वयं रत्नाकरः समुद्रः। भारतभूमौ महेन्द्रः, मलयः सह्यः, रैवतकः, विन्ध्यः, अरावलिः इत्यादयः श्रेष्ठाः पर्वताः विराजन्ते। अत्रैव गङ्गा, यमुना, सरस्वती, सिन्धुः ब्रह्मपुत्रः, गण्डकी, महानदी, नर्मदा, गोदावरी, कृष्णा, कावेरी, इत्यादयः पवित्राः नद्यः प्रवहन्ति। नद्यः अपि अस्माकं मातरः इव। (पृष्ठ 3)
शब्दार्था:
वत्सला – स्नेहयुक्ता। माहात्म्यम् – महिमा। मुकुटरूपेण – मुकुट रूप से। मस्तके – माथे पर। प्रक्षालयति – धोता है। रत्नाकरः – समुद्र। प्रवहन्ति – बहती हैं।
सरलार्थ-
यह हमारी स्नेहयुक्ता भारतमाता है। अहो! हमारी भारतमाता की महिमा। साक्षात् पर्वतराज हिमालय मुकुट रूप से इसके मस्तक (माथे) पर शोभित है। इसके चरण स्वयं. रत्नाकर समुद्र धोता है। भारत भूमि में महेन्द्र, मलय, सहय, रैवतक, विन्ध्य अरावली इत्यादि श्रेष्ठ पर्वत विराजते हैं। गङ्गा, यमुना, सरस्वती, सिन्धु, ब्रह्मपुत्र, गण्डकी, महानदी, नर्मदा, गोदावरी, कृष्णा, कावेरी आदि पवित्र नदियाँ बहती हैं। नदियाँ हमारी माता के समान हैं।
(घ) अयोध्या, मथुरा, हरिद्वारम्, काशी, काञ्ची, अवन्तिका, वैशाली, द्वारिका, पुरी, गया, प्रयागः, पाटलीपुत्रं विजयनगरम् इन्द्रप्रस्थं, सोमनाथः, अमृतसरः, इत्यादीनि मङ्गलानि तीर्थक्षेत्राणि नगराणि च भारतभूमौ एव सुशोभन्ते । एतेषां तीर्थक्षेत्राणां धूलिं ललाटे स्थापयितुं विविधेभ्यः प्रदेशेभ्यः असंख्याः जनाः आगच्छन्ति।
भारतमातुः हस्ते विलसति त्रिवर्णयुतः राष्ट्रध्वजः। अहो अस्य शोभा! अस्मिन् राष्ट्रध्वजे केशरः, श्वेतः, हरित: च वर्णाः विराजन्ते। ध्वजस्य मध्ये सुन्दरं नीलवर्णं चक्रमपि शोभते। ध्वजे विराजमानाः वर्णाः चक्रं च विशिष्टं सन्देश प्रयच्छन्ति। (पृष्ठ 3-4)
शब्दार्था:
अत्रैव – (अत्र + एव) यहाँ ही। तीर्थक्षेत्राणां – तीर्थक्षेत्रों की। धूलिं – धूल को। ललाटे – माथे पर। स्थापयितुम् – लगाने के लिए। हस्ते – हाथ में। त्रिवर्णयुत – तीन रंगों से युक्त। केसर – केसरी। श्वेतः – सफेद। हरितः – हरा। प्रयच्छन्ति – देते हैं। विलसति – चमकता है।
सरलार्थ-
अयोध्या, मथुरा, हरिद्वार, काशी, काञ्ची, अवन्तिका, वैशाली, द्वारिका, पुरी, गया, पाटलीपुत्र, विजयनगर, इन्द्रप्रस्थ, सोमनाथ, अमृतसर, इत्यादि मंगल तीर्थक्षेत्र और नगर भारत भूमि में ही सुशोभित हैं। इन तीर्थक्षेत्रों की धूल को माथे पर लगाने के लिए अनेक प्रदेशों से असंख्य लोग आते हैं। भारतमाता के हाथ में तीन रंगों से युक्त राष्ट्रध्वज चमकता है। अहो इसकी शोभा । इस राष्ट्रध्वज में केसरिया, सफेद और हरा रंग शोभा देते हैं। झण्डे के बीच में सुन्दर नीले रंग वाला चक्र भी शोभा देता है। झण्डे में विराजमान रंग और चक्र विशिष्ट सन्देश देते हैं।
(ङ) त्रिवर्णध्वजस्य ऊर्ध्वभागे विराजते केशरवर्णः। एषः वर्णः त्यागपरम्परायाः शौर्यपरम्परायाः च सूचकः अस्ति। ये भारतमातुः आजीवनं सेवां कृतवन्तः देशस्य स्वतन्त्रतां प्राप्तुं सहर्ष स्वप्राणान् अर्पितवन्तः च तेषां वीराणां बलिदानं सूचयति एषः वर्णः। ‘जयतु सैनिक:’ इति वक्तुम् अस्मान् प्रेरयति ध्वजस्थितः अयं केशरवर्णः। (पृष्ठ 4)
शब्दार्थाः
ऊर्ध्वभागे – ऊपर के भाग में प्राप्तुम् प्राप्त करने के लिए। अर्पितवन्तः – अर्पित किए। वक्तुम् – बोलने के लिए। वीराणां – वीरों के। अस्मान् – हमको।
सरलार्थ-
तिरंगे झण्डे के ऊपर भाग में केसरिया रंग विराजमान है। यह रंग त्याग की परम्परा का और शौर्य की परम्परा का सूचक है। जिन्होंने भारतमाता की आजीवन सेवा की और देश की स्वतन्त्रता को प्राप्त करने के लिए खुशी से अपने प्राण अर्पित किए, उन वीरों के बलिदान को यह रंग सूचित करता है। ‘जयतु सैनिक:’ (जय जवान) बोलने के लिए झण्डे में स्थित यह केसरिया रंग हमको प्रेरित करता है।
(च) कृषकबान्धवाः अस्माकं भारतभूमिं सर्वदा स्व-स्वेदबिन्दुभिः सिञ्चन्ति। एतेषां परिश्रमेण एव भारतभूमिः हरितवर्णमयी समृद्धा सस्यश्यामला च सञ्जाता। भारतमातुः समृद्धेः एषा आभा हरितवर्णरूपेण अस्माकं राष्ट्रध्वजे विराजते। ‘जयतु कृषक:’ इति वक्तुम् अस्मान् प्रेरयति ध्वजस्थितः एषः हरितवर्णः। (पृष्ठ 5)
शब्दार्था:
कृषकबान्धवाः – किसान भाई। स्वेदविन्दुभिः – पसीने की बूँदों से। सिञ्चन्ति – सींचते हैं। परिश्रमेण – मेहनत से। सस्यश्यामला – फसलों से हरी-भरी। सञ्जाता – हो जाती है। आभा – चमक। समृद्धेः – समृद्धि की।
सरलार्थ-
किसान भाई हमारी भारतभूमि को सदा अपने पसीने की बूँदों से सींचते हैं। इनकी मेहनत से ही भारतभूमि हरे रंग से युक्त, समृद्ध और फसलों से हरी-भरी हो जाती है। भारतमाता की समृद्धि की यह चमक हरे रंग के रूप से हमारे राष्ट्रध्वज में विराजमान है। ‘जयतु कृषक:’ (जय किसान) बोलने के लिए ध्वज में स्थित यह हरा रंग हमें प्रेरित करता है।
(छ) मध्ये स्थितः श्वेतवर्णः शान्तेः सत्यस्य च द्योतकः अस्ति। अणुशास्त्रे, सङ्गणकशास्त्रे, चिकित्साशास्त्रे, अन्तरिक्षशास्त्रे, आयुधशास्त्रे इत्यादिषु विज्ञानस्य विभिन्नेषु क्षेत्रेषु भारतीयै: वैज्ञानिकै: महत् यशः प्राप्तम् अस्ति। वैज्ञानिकानां तत् धवलं यशः धवलवर्णरूपेण राष्ट्रध्वजस्य मध्ये विलसति। भारतीय विज्ञानं शान्तिं प्रगतिं सुरक्षां च परिपोषयति। ‘जयतु वैज्ञानिकः’ इति वक्तुम् अस्मान् प्रेरयति ध्वजमध्यस्थः अयं धवलवर्णः। (पृष्ठ 6)
शब्दार्थाः
मध्ये – बीच में। अणुशास्त्रे – परमाणु विज्ञान में। सङ्गणक शास्त्रे – कम्प्यूटर विज्ञान में। आयुधशास्त्रे – शस्त्र विज्ञान में। क्षेत्रेषु – क्षेत्रों में।
सरलार्थ-
बीच में स्थित सफेद रंग शान्ति का और सत्य का द्योतक (परिचायक) है। परमाणु विज्ञान में कम्प्यूटर विज्ञान में, चिकित्सा विज्ञान में अन्तरिक्ष विज्ञान में, शस्त्र विज्ञान में इत्यादि विज्ञान के विभिन्न क्षेत्रों में भारतीय वैज्ञानिकों के द्वारा महान् यश प्राप्त है। वैज्ञानिकों का वह शुभ यश धवल (सफेद) रंग के रूप से राष्ट्रध्वज के बीच में चमकता है। भारतीय विज्ञान शान्ति, प्रगति और सुरक्षा को पोषित करता है। है। ‘जयतु वैज्ञानिकः’ (जय वैज्ञानिक) बोलने के लिए ध्वज के मध्य में स्थित यह धवल रंग हमें प्रेरित करता है।
(ज) ध्वजे विराजमानस्य घननीलवर्णस्य चक्रस्य नाम धर्मचक्रम् इति। अस्मिन् चक्रे चतुर्विंशतिः अराः सन्ति। एतत् चक्रं ‘चलनीयं कर्तव्यपथे वै न विरम, सततं चल’ इति भावं बोधयति। सूर्यः विरामं विना नित्यं सञ्चरति। नदी कष्टानि सहमाना अपि ध्येयं प्रति नित्यं प्रवहति। इदं चक्रं ‘जीवने श्रान्तेः, आलस्यस्य प्रमादस्य च स्थानं न भवतु’ इति सन्देशं प्रयच्छति। वयं सर्वेऽपि धन्याः यत् अस्यां पवित्रभूम्यां जन्म प्राप्तवन्तः। वयं पवित्रायाः भारतमातुः नित्यं वन्दनं कुर्मः अस्याः गौरववर्धनार्थं च प्रयत्नं कुर्मः आगच्छन्तु मिलित्वा सर्वे गायाम:- (पृष्ठ 7)
शब्दार्था:
घननीलवर्णस्य – गहरे नीले रंग का। चतुर्विंशतिः – चौबीस। अरा: – तीलियाँ। चलनीयं – चलना चाहिए। विरम – रुको। सतत – निरन्तर। विरामं – विश्राम। सहमाना – सहती हुई। श्रान्ते: – थकान का। प्रमादस्य – असावधानता का पवित्रभूम्यां पवित्र भूमि पर। गौरववर्धनार्थम् – गौरव बढ़ाने के लिए। आगच्छन्तु – आओ।
सरलार्थ-
ध्वज में विराजमान गहरे नीले रंग वाले चक्र का नाम धर्मचक्र है। इस चक्र में चौबीस तीलियाँ हैं। यह चक्र ‘कर्तव्यपथ पर चलना चाहिए, न रुको निरन्तर चलो’ इस भाव को बताता है। सूर्य बिना विश्राम के नित्य चलता है। नदी कष्टों को सहती हुई भी लक्ष्य की ओर नित्य बहती है। यह चक्र ‘जीवन में थकान का, आलस्य का, असावधानी का स्थान न हो’ यह संदेश देता है।
हम सभी धन्य हैं कि इस पवित्र भूमि में जन्म प्राप्त किए। हम पवित्र भारतमाता का नित्य वन्दन करते हैं, और इसके गौरव को बढ़ाने के लिए प्रयत्न करते हैं। आओ सभी मिलकर गाते हैं।
वयम् बालका भारतभक्ताः
वयं बालिका भारतभक्ताः।
वयं हि सर्वे भारतभक्ताः
पृथ्वीं स्वर्गं जेतुं शक्ताः।।
शब्दार्था:
जेतुम् – जीतने के लिए। शक्ताः – समर्थ हैं।
सरलार्थ-
हम बालक भारत के भक्त हैं, हम बालिकाएँ भारत की भक्त हैं। निश्चय ही हम सभी भारत के भक्त पृथ्वी और स्वर्ग जीतने के लिए समर्थ हैं।
सुभाषितानि पाठ का परिचय
प्रस्तुत पाठ में विद्वानों के सुभाषित श्लोक हैं। श्लोकों के द्वारा शिक्षा दी गई है कि जीवन में क्या-क्या उपयोगी हैं और सफलता के लिए मनुष्य के व्यवहार और विचार कैसे होने चाहिए।
सुभाषितानि Summary
यहाँ संस्कृत के सुन्दर वचनों का संकलन है। प्रथम श्लोक में सुभाषितों का महत्त्व बताया गया है। इस संसार में जल, अन्न और सुभाषित-ये तीन ही रत्न बताए गए हैं। हीरा, पन्ना आदि पत्थर के टुकड़ों को रत्न कहना व्यर्थ है।
दूसरे श्लोक में सत्य की महिमा बताई गई है। इस संसार में पृथ्वी, सत्य पर टिकी है। सूर्य, सत्य के आश्रय से तपता है। सारा विश्व सत्य पर टिका हुआ है। . तीसरे श्लोक में कहा है कि इस पृथ्वी पर अनेक रत्न हैं। यथा-दान, तप, शौर्य, विनय इत्यादि। ये सभी रत्न परमात्मा प्रदत्त हैं।
चौथे श्लोक में सज्जन की महिमा कही है। हमें सज्जनों के साथ बैठना चाहिए। सज्जनों का साथ करना चाहिए और उनके साथ ही मित्रता करनी चाहिए। पाँचवें श्लोक में कहा है कि व्यक्ति को ज्ञान के संग्रह में, आहार तथा व्यवहार के विषय में संकोच नहीं करना चाहिए। छठे श्लोक में क्षमा का महत्त्व बताया गया है। जिस व्यक्ति के पास क्षमा रूपी हथियार है, उसका दुष्ट व्यक्ति कुछ बिगाड़ नहीं सकता है।
सुभाषितानि Word Meanings Translation in Hindi
(क) पृथिव्यां त्रीणि रत्नानि जलमन्नं सुभाषितम्।
मूढः पाषाणखण्डेषु रत्नसंज्ञा विधीयते॥1॥
शब्दार्थाः (Word Meanings) :
पृथिव्यां-धरती पर (on earth)
सुभाषितम्-सुन्दर वचन (good sayings)
मू?:-मूों के द्वारा (by the fools)
पाषाणखण्डेषु-पत्थर के टुकड़ों में (in stones)
रत्नसंज्ञा-रत्न का नाम (names of precious stones)
विधीयते-किया जाता है/दिया जाता है (is given).
सरलार्थ :
पृथ्वी पर जल, अन्न और सुवचन ये तीन ही रत्न हैं परंतु मूों के द्वारा पत्थर के टुकड़ों को रत्न का नाम दिया जाता है।
English Translation:
The three precious stones (jewels) on earth are water, food and good sayings. But the pieces of stones are called jewels by the fools.
(ख) सत्येन धार्यते पृथ्वी सत्येन तपते रविः।
सत्येन वाति वायुश्च सर्वं सत्ये प्रतिष्ठितम्॥2॥
शब्दार्थाः (Word Meanings) :
सत्येन-सत्य से (by truth)
धार्यते-धारण की जाती है (is held)
तपते-जलता है (shines/glows)
वाति-बहता है/बहती है (flows)
वायुश्च-और वायु (and air)
प्रतिष्ठितम्-स्थित है (exists).
सरलार्थ :
सत्य से पृथ्वी धारण की जाती है। सत्य से सूरज तपता है और सत्य से ही वायु प्रवाहित होती है। सब कुछ सत्य में समाहित (स्थित) है।
English Translation :
The earth is held by the truth. The sun shines by the truth. The wind blows by the truth. Everything is founded in Truth.
(ग) दाने तपसि शौर्ये च विज्ञाने विनये नये।
विस्मयो न हि कर्त्तव्यो बहुरत्ना वसुन्धरा ॥3॥
शब्दार्थाः (Word Meanings) :
तपसि-तपस्या में (in devotion)
शौर्ये-बल में (in strength)
विज्ञाने-विशेष ज्ञान में (in wisdom)
नये-नीति में (in morality)
विस्मयो-आश्चर्य (surprise)
बहुरना-अनेक रत्नों वाली (with various jewels)
कर्त्तव्यो-करना चाहिए (should do)
वसुन्धरा पृथ्वी (earth).
सरलार्थ :
दान में, तपस्या में, बल में, विशेष ज्ञान में, विनम्रता में और नीति में निश्चय ही आश्चर्य नहीं करना चाहिए। पृथ्वी बहुत रत्नों वाली है। अर्थात् पृथ्वी में बहुत से ऐसे रत्न भरे हुए हैं।
English Translation :
One must not feel surprised in charity, devotion, strength, wisdom, humility and morality. The earth is full of such jewels.
(घ) सद्भिरेव सहासीत सद्भिः कुर्वीत सङ्गतिम्।
सद्भिर्विवादं मैत्री च नासद्भिः किञ्चिदाचरेत् ॥4॥
शब्दार्थाः (Word Meanings) :
सद्भिरेव (सद्भिः +एव)-सज्जनों के साथ ही (only with good persons)
सहासीत ( सह+आसीत)-साथ बैठना चाहिए (should sit with)
कुर्वीत-करना चाहिए (should do)
सद्भिर्विवादम् (सद्भिः +विवादम्)-सज्जनों के साथ विवाद (झगड़ा) (argument/ debate with good persons)
नासद्भिः (न+असद्भिः )-असज्जन लोगों के साथ नहीं (not with evil-minded persons)
मैत्री-मित्रता (friendship).
सरलार्थ :
सज्जनों के साथ ही बैठना चाहिए। सज्जनों के साथ संगति (रहन-सहन) करनी चाहिए। सज्जनों के साथ विवाद (तर्क-वितर्क) और मित्रता करनी चाहिए।असज्जनों (दुष्टों) के साथ कुछ भी व्यवहार नहीं करना चाहिए।
English Translation :
One must sit with the good persons. One must keep the company of good people. One must engage in debate with good people and befriend them. One must not interact with bad people.
(ङ) धनधान्यप्रयोगेषु विद्यायाः संग्रहेषु च।
आहारे व्यवहारे च त्यक्तलज्जः सुखी भवेत्॥5॥
शब्दार्थाः (Word Meanings) :
धनधान्यप्रयोगेषु-धनधान्य के प्रयोग में/व्यवहार में (in the use of wealth)
संग्रहेषु-एकत्र करने (इकट्ठा करने) में (in collections)
त्यक्तलज्जः -संकोच को छोड़नेवाला (to give up hesitation)
भवेत्-हो (होता है) (to become).
सरलार्थ :
धन धान्य के प्रयोग में और विद्या के संचय में, आहार और व्यवहार में संकोच को छोड़नेवाला अर्थात् उदार प्रवृत्ति वाला व्यक्ति सुखी (होता है)।
English Translation :
One who does not hesitate i.e is generous (liberal) in the use of wealth, in gaining knowledge, in taking proper diet and in good behaviour remains happy.
(च) क्षमावशीकृतिर्लोके क्षमया किं न साध्यते।
शान्तिखड्गः करे यस्य किं करिष्यति दुर्जनः॥6॥
शब्दार्थाः (Word Meanings) :
क्षमावशीकृतिर्लोके (क्षमावशीकृति: लोके)-संसार में क्षमा (सबसे बड़ा)
वशीकरण है (forgiveness is the greatest virtue in the world by which one can win over people)
क्षमया-क्षमा से (by forgiveness)
साध्यते-साधा जाता है (is achieved, accomplished)
करे-हाथ में (in hand)
दुर्जन:-बुरे लोग (bad people).
सरलार्थ :
क्षमा संसार में (सबसे बड़ा) वशीकरण है। क्षमा से क्या (कार्य) पूर्ण नहीं होता है ? जिसके हाथ में क्षमारूपी तलवार है, उसका दुष्ट व्यक्ति क्या कर सकता है (क्या बुरा कर सकता है)?
English Translation :
Forgiveness is the greatest virtue in the world. What can not be achieved by forgiveness? What (harm) can a wicked person do to a person who has the sword of forgiveness in his hand?