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NCERT Class 7th Hindi Chapter 8 बिरजू महाराज से साक्षात्कार Question Answer
बिरजू महाराज से साक्षात्कार Class 7 Question Answer
कक्षा 7 हिंदी पाठ 8 प्रश्न उत्तर – Class 7 Hindi बिरजू महाराज से साक्षात्कार Question Answer
पाठ से प्रश्न – अभ्यास
(पृष्ठ 104-107)
आइए, अब हम बिरजू महाराज से पूछे गए प्रश्नों और उनसे मिले उत्तरों को थोड़ा और निकटता से समझ लेते हैं।
मेरी समझ से
(क) नीचे दिए गए प्रश्नों का सबसे सही उत्तर कौन-सा है? उनके सामने तारा (*) बनाइए। कुछ प्रश्नों के एक से अधिक उत्तर भी हो सकते हैं।
(1) बिरजू महाराज ने गंडा बाँधने की परंपरा में परिवर्तन क्यों किया होगा ?
- वे गुरु के प्रति शिष्य के निष्ठा भाव को परखना चाहते थे।
- वे नृत्य शिक्षण के लिए इस परंपरा को महत्वपूर्ण नहीं मानते थे।
- वे नृत्य के प्रति शिष्य के लगन व समर्पण भाव को जाँचना चाहते थे।
- वे शिष्य की भेंट देने की सामर्थ्य को परखना चाहते थे।
उत्तर :
वे गुरु के प्रति शिष्य के निष्ठा भाव को परखना चाहते थे।
(2) “जीवन में उतार-चढ़ाव तो होता ही है । ” बिरजू महाराज के जीवन में किस तरह के उतार-चढ़ाव आए ?
- पिता के देहांत के बाद आर्थिक अभावों का सामना करना पड़ा।
- कोई भी संस्था नृत्य प्रस्तुतियों के लिए आमंत्रित नहीं करती थी ।
- किसी समय विशेष में घर में सुख-समृद्धि थी।
- नृत्य के औपचारिक प्रशिक्षण के अवसर बहुत ही सीमित हो गए थे।
उत्तर :
- पिता के देहांत के बाद आर्थिक अभावों का सामना करना पड़ा।
- किसी समय विशेष में घर में सुख-समृद्धि थी।
(3) बिरजू महाराज के अनुसार बच्चों को लय के साथ खेलने की अनुशंसा क्यों की जानी चाहिए?
- संगीत, नृत्य, नाटक और सभी कलाएँ बच्चों में मानवीय मूल्यों का विकास नहीं करती हैं।
- कला संबंधी विषयों से जुड़ाव बच्चों के बौद्धिक विकास के लिए बहुत महत्वपूर्ण है।
- कला भी एक खेल है, जिसमें बहुत कुछ सीखने को मिलता है।
- वर्तमान समय में कला भी एक सफल माध्यम नहीं है।
उत्तर :
- कला संबंधी विषयों से जुड़ाव बच्चों के बौद्धिक विकास के लिए बहुत महत्वपूर्ण है
- कला भी एक खेल है, जिसमें बहुत कुछ सीखने को मिलता है।
(ख) अब अपने मित्रों के साथ चर्चा कीजिए और कारण बताइए कि आपने ये उत्तर ही क्यों चुनें?
उत्तर :
मित्रों से चर्चा के पश्चात् यह उत्तर निकलता है कि पूछे गए प्रश्नों के जो उत्तर हमने दिए हैं वे बिरजू महाराज द्वारा कहे गए वो कथन हैं जो उन्हें नृत्य और कला के संबंध में कहे गए थे और प्रस्तुत विचार कला की दृष्टि से बिल्कुल उचित है। कला से सचमुच हमें बहुत कुछ सीखने को मिलता है। इसलिए हमने उपरोक्त उत्तर चुने हैं।
मिलकर करें मिलान
पाठ में से चुनकर कुछ शब्द एवं शब्द समूह नीचे दिए गए हैं। अपने समूह में इन पर चर्चा कीजिए और इन्हें इनके सही संदर्भों या अवधारणाओं से मिलाइए। इसके लिए आप शब्दकोश, इंटरनेट या अपने शिक्षकों की सहायता ले सकते हैं।
शब्द | संदर्भ या अवधारणा |
1. कर्नाटक संगीत शैली | 1. भारत की प्राचीन गायन- वादन, गीत-नृत्य, अभिनय परंपरा का अभिन्न अंग है। इसमें शब्दों की अपेक्षा सुरों का महत्व होता है। इसमें नियमों की प्रधानता होती है। |
2. घराना | 2. भारतीय शास्त्रीय संगीत की एक शैली, जो मुख्य रूप से दक्षिण भारत के राज्यों में प्रचलित है। इसमें स्वर शैली की प्रधानता होती है। जल तरंगम, वीणा, मृदंग, मंडोलिन वाद्ययंत्रों से संगत दी जाती है। |
3. शास्त्रीय संगीत | 3. हिंदू धर्म के 16 संस्कारों में एक है, यह कान में सोने या चाँदी का तार पहनाने से संबंधित है। |
4. हिंदुस्तानी संगीत शैली | 4. हिंदुस्तानी संगीत में कलाकारों का एक समुदाय या कुटुंब, जो संगीत नृत्य की विशिष्ट शैली साझा करते हैं। संगीत या नृत्य की परंपरा, जिसमें सिद्धांत और शैली पीढ़ी-दर-पीढ़ी प्रशिक्षण के द्वारा आगे बढ़ती है। |
5. कनछेदन | 5. किसी क्षेत्र विशेष में लोक द्वारा किए जाने वाले पारंपरिक नृत्य। लोक नृत्य, क्षेत्र विशेष की संस्कृति एवं रीति-रिवाजों को दर्शाते हैं। ये विशेष रूप से फसल कटाई, उत्सवों आदि के अवसर पर किए जाते हैं। |
6. लोक नृत्य | 6. भारतीय शास्त्रीय संगीत की एक शैली, जो मुख्य रूप से उत्तर भारत के राज्यों में प्रचलित है। तबला, सारंगी, सितार, संतूर वाद्ययंत्रों से संगत दी जाती है ।। इसके प्रमुख रागों की संख्या छह है। |
उत्तर :
शब्द | संदर्भ या अवधारणा |
1. कर्नाटक संगीत शैली | 2. भारतीय शास्त्रीय संगीत की एक शैली, जो मुख्य रूप से दक्षिण भारत के राज्यों में प्रचलित है। इसमें स्वर शैली की प्रधानता होती है। जल तरंगम, वीणा, मृदंग, मंडोलिन वाद्ययंत्रों से संगत दी जाती है। |
2. घराना | 4. हिंदुस्तानी संगीत में कलाकारों का एक समुदाय या कुटुंब, जो संगीत नृत्य की विशिष्ट शैली साझा करते हैं। संगीत या नृत्य की परंपरा, जिसमें सिद्धांत और शैली पीढ़ी-दर-पीढ़ी प्रशिक्षण के द्वारा आगे बढ़ती है। |
3. शास्त्रीय संगीत | 1. भारत की प्राचीन गायन- वादन, गीत-नृत्य, अभिनय परंपरा का अभिन्न अंग है। इसमें शब्दों की अपेक्षा सुरों का महत्व होता है। इसमें नियमों की प्रधानता होती है। |
4. हिंदुस्तानी संगीत शैली | 6. भारतीय शास्त्रीय संगीत की एक शैली, जो मुख्य रूप से उत्तर भारत के राज्यों में प्रचलित है। तबला, सारंगी, सितार, संतूर वाद्ययंत्रों से संगत दी जाती है ।। इसके प्रमुख रागों की संख्या छह है। |
5. कनछेदन | 3. हिंदू धर्म के 16 संस्कारों में एक है, यह कान में सोने या चाँदी का तार पहनाने से संबंधित है। |
6. लोक नृत्य | 5. किसी क्षेत्र विशेष में लोक द्वारा किए जाने वाले पारंपरिक नृत्य। लोक नृत्य, क्षेत्र विशेष की संस्कृति एवं रीति-रिवाजों को दर्शाते हैं। ये विशेष रूप से फसल कटाई, उत्सवों आदि के अवसर पर किए जाते हैं। |
शीर्षक
हिंदू धर्म के 16 संस्कारों में एक है, यह कान में सोने या चाँदी का तार पहनने से संबंधित है। किसी क्षेत्र विशेष में लोक द्वारा किए जाने वाले पारंपरिक नृत्य । लोक नृत्य क्षेत्र विशेष की संस्कृति एवं रीति-रिवाजों को दर्शाते हैं। ये विशेषरूप से फसल कटाई, उत्सवों आदि के अवसर पर किए जाते हैं।
(क) इस पाठ का शीर्षक ‘बिरजू महाराज से साक्षात्कार’ है। यदि आप इस साक्षात्कार को कोई अन्य नाम देना चाहते हैं तो क्या नाम देंगे? आपने यह नाम क्यों सोचा? लिखिए।
उत्तर :
हम इस पाठ को ‘कला के प्रेरणा स्रोत: बिरजू महाराज’ नाम देना चाहेंगे। हमने यह नाम इसलिए सोचा कि ‘बिरजू महाराज’ ना केवल कथक सम्राट थे बल्कि उनका जीवन उन हजारों लाखों लोगों के लिए प्रेरणा स्रोत है जो अपने जीवन में कला को अपनाते हैं। बिरजू महाराज के जीवन में सुख-दुख के अनेक उतार-चढ़ाव आए परंतु फिर भी उन्होंने कला के प्रति अपने प्रेम को पूर्ण परिश्रम से निभाया और कथक के सम्राट बने । अभावों में भी उनकी माता ने उन्हें कथक का अभ्यास जारी रखने के लिए प्रेरित किया। इसके साथ ही बिरजू महाराज ने बच्चों को लय के साथ खेलने के लिए प्रेरित किया और अपनी स्वयं की बेटियों को भी कथक सिखाकर आत्मनिर्भर बनाया । इसीलिए हमने प्रस्तुत शीर्षक को उपयुक्त समझा।
पंक्तियों पर चर्चा
साक्षात्कार में से चुनकर कुछ वाक्य नीचे दिए गए हैं। इन्हें ध्यान से पढ़िए और इन पर विचार कीजिए। आपको इनका क्या अर्थ समझ में आया? अपने विचार लिखिए।
” तुम नौकरी में बँट जाओगे । तुम्हारे अंदर का नर्तक पूरी तरह पनप नहीं पाएगा।’
“ लय हम नर्तकों के लिए देवता है ।
“ नृत्य में शरीर, ध्यान और तपस्या का साधन होता है।”
‘कथक में गर्दन को हल्के से हिलाया जाता है, चिराग की लौ के समान। ”
उत्तर :
- प्रस्तुत पंक्ति का अर्थ यह है कि जब हम अपना एक लक्ष्य निर्धारित कर लेते हैं तब हमें पूर्ण निष्ठा और समर्पण के साथ उसी पर अपना ध्यान केन्द्रित करना चाहिए। ऐसे में यदि हम दो नावों में सवार होने का प्रयास करेंगे अर्थात लक्ष्य पूर्ति के साथ-साथ दूसरे कार्यों के पीछे भागेंगे तो हम अपने लक्ष्य से भटक जाएँगे, क्योंकि हम दो स्थानों पर बँट जाएँगे। जैसा कि जब बिरजू महाराज ने नौकरी की तो उनके चाचा ने उन्हें समझाया कि ऐसा करने से तुम्हारा ध्यान नौकरी और नृत्य दोनों भागों में बँट जाएगा और ‘नर्तक’ बनने के तुम अपने लक्ष्य को पूरा नहीं कर पाओगे । ‘बिरजू महाराज’ ने लय को नर्तकों के लिए देवता माना है। वे कहते हैं जब हम लय के साथ नृत्य करते हैं तो वह अदृश्य शक्ति ईश्वर हमारे अंदर समा जाती है। वही लय हमारे अंदर संतुलन बनाए रखती है। वे कहते हैं लय एक तरह का आवरण है जो नृत्य को सुंदरता प्रदान करती है। इसी के माध्यम से नृत्य हमारे अंगों में प्रवेश करता है।
- प्रस्तुत पंक्ति का अर्थ है कि जब हम नृत्य करते हैं तो कला में डूबकर कलाकार साधक बन जाता है और तपस्वी की भाँति अपनी कला को सिद्ध करता है ऐसी परिस्थिति में उसकी कला एक तपस्या बन जाती है और उसका पूरा ध्यान कला के भावों पर केन्द्रित होकर कला को जीवित कर देता है।
- कथक में भावों और भंगिमाओं पर विशेष बल दिया जाता है जरा-सी भी भंगिमा इधर से उधर हुई तो अर्थ बदल जाता है जैसे यदि दृश्य में दिखाया जा रहा है कि नायक, नायिका का घूँघट उठा रहा है तो उस प्रदर्शन में गरदन को हल्के से हिलाकर धीरे-से उँगलियों को हिलाया जाता है ठीक वैसे ही जैसे धीरे-धीरे लौ हिलती है।
सोच-विचार के लिए
प्रश्न 1.
साक्षात्कार को एक बार पुनः पढ़िए और निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर लिखिए-
(क) बिरजू महाराज नृत्य का औपचारिक प्रशिक्षण आरंभ होने से पहले ही कथक कैसे सीख गए थे?
उत्तर :
बिरजू महाराज नृत्य का औपचारिक प्रशिक्षण आरंभ होने से पहले ही कथक इसलिए सीख गए थे क्योंकि उनके घर में कथक का माहौल था। उनके पिता अच्छन महाराज बहुत अच्छा कथक करते थे और वे ही इनके गुरु थे इसके साथ ही शंभू महाराज और लच्छू महाराज भी बहुत अच्छा कथक करते थे। इन सबको देख-देखकर ही बिरजू महाराज भी कथक सीख गए और नवाब के दरबार में नाचने भी लगे ।
(ख) नृत्य सीखने के लिए संगीत की समझ होना क्यों अनिवार्य है?
उत्तर :
नृत्य सीखने के लिए संगीत की समझ होना अनिवार्य है क्योंकि अगर नर्तक को सुर-ताल की समझ होगी तो वह जान पाएगा कि लहरा ठीक नहीं है नृत्य में संगीत से सुंदरता के साथ – साथ संतुलन भी आता है ।
(ग) नृत्य के अतिरिक्त बिरजू महाराज को और किन-किन कार्यों में रुचि थी ?
उत्तर :
नृत्य के अतिरिक्त बिरजू महाराज को चित्रकला में भी रुचि थी। वे प्रायः रात को 12 बजे के बाद चित्र बनाने बैठते और तब तक बनाते जब तक नींद से आँखें भारी ना हो जाती। उन्होंने दो वर्षों में 70 चित्र बनाए। इसके साथ ही बिरजू महाराज की मशीनी कल-पुर्जों में भी बहुत रुचि थी, वो मशीनों को खोलकर देखते। उनके ब्रीफकेस में पेचकस और अन्य छोटे औजार हमेशा रहते। वे कहते कि अगर वो नर्तक ना होते तो इंजीनियर बन जाते ।
(घ) बिरजू महाराज ने बच्चों की शिक्षा और रुचियों के बारे में अभिभावकों से क्या कहा है?
उत्तर :
बिरजू महाराज ने बच्चों की शिक्षा और रुचियों के बारे में अभिभावकों से कहा है कि “आजकल के माँ – बाप से मेरी विनती है कि यदि बच्चे की रुचि है तो उसे लय के साथ खेलने दें। क्योंकि इस खेल से भी बहुत कुछ सीखने को मिलता है। इससे जीवन में संतुलन और समय का सदुपयोग बच्चे सीखते हैं और जिससे उनका बौद्धिक विकास होता है । ”
प्रश्न 2.
पाठ में से उन प्रसंगों की पहचानकर उन पर चर्चा कीजिए, जिनसे पता चलता है कि-
(क) बिरजू महाराज बहुमुखी प्रतिभा के धनी थे ।
उत्तर :
बिरजू महाराज बहुमुखी प्रतिभा के धनी थे। उन्हें गाना-बजाना, नृत्य और सुर-ताल का पूर्ण ज्ञान था । वे बहुत अच्छे चित्रकार भी थे। इसके साथ ही मशीनी कल-पुर्जों में तो उनकी इतनी रुचि थी कि वे स्वयं कहते थे – ” यदि में नर्तक ना होता तो इंजीनियर होता । ”
(ख) बिरजू महाराज को नृत्य की ऊँचाइयों तक पहुँचाने में उनकी माँ का बहुत योगदान रहा।
उत्तर :
यह बात पूरी तरह से सत्य है कि बिरजू महाराज को नृत्य की ऊँचाइयों तक पहुँचाने में उनकी माँ का विशेष योगदान रहा, क्योंकि जब वे अपने पिता के देहांत के बाद आर्थिक संकटों का सामना कर रहे थे तब उनकी माँ ने अपनी ज़री की साड़ियों को जला डाला और उसमें से निकले सोने-चाँदी के तार बेचकर बच्चों का पेट भरा और ऐसी परिस्थितियों में भी उन्होंने बिरजू महाराज से कहा – ” खाने को भले ही चना मिले या कुछ भी न मिले पर अभ्यास जरूर करो।’
(ग) बिरजू महाराज महिलाओं के लिए समानता के पक्षधर थे।
उत्तर :
बिरजू महाराज महिलाओं के लिए समानता के पक्षधर थे। उन्होंने बताया कि उनकी बहनों को कथक नहीं सिखाया गया, पर उन्होंने अपनी बेटियों को खूब कथक सिखाया। वे कहते थे कि लड़कियों के पास कोई-न-कोई हुनर या शिक्षा अवश्य होनी चाहिए जिससे कि वे आत्मनिर्भर बन सकें।
शब्दों की बात
(क) पाठ में आए हुए कुछ शब्द नीचे दिए गए हैं, इन्हें ध्यान से पढ़िए-
आपने इन शब्दों पर ध्यान दिया होगा कि मूल शब्द के आगे या पीछे कोई शब्दांश जोड़कर नया शब्द बना है । इससे शब्द के अर्थ में परिवर्तन आ गया है। शब्द के आगे जुड़ने वाले शब्दांश उपसर्ग कहलाते हैं, जैसे कि-
अदृश्य – अ + दृश्य
आवरण – आ + वरण
प्रशिक्षण – प्र + शिक्षण
यहाँ पर ‘अ’, ‘आ’, ‘प्र’ उपसर्ग हैं।
शब्द के पीछे जुड़ने वाले शब्दांश प्रत्यय कहलाते हैं और मूल शब्द के अर्थ में नवीनता, परिवर्तन या विशेष प्रभाव उत्पन्न करते हैं, जैसे कि-
सीमित सीमा + इत
सुंदरता – सुंदर + ता
भारतीय – भारत + इय
सामूहिक – समूह + इक
यहाँ पर ‘इत’, ‘ता’, ‘ईय’, और ‘इक’ प्रत्यय हैं।
(ख) नीचे दो तबले हैं, एक में कुछ शब्दांश (उपसर्ग व प्रत्यय) हैं, दूसरे तबले में मूल शब्द हैं। इनकी सहायता से नए शब्द बनाइए-
उत्तर :
- मार्मिक
- आगमन
- राष्ट्रीय
- अखंड/खंडित
- श्रमिक
- सुसंस्कृति
- सुकर्म
- आसाधारण
(ग) इस पाठ में से उपसर्ग व प्रत्यय की सहायता से बने कुछ और शब्द छाँटकर उनसे वाक्य बनाइए ।
उत्तर :
पाठ में आए अन्य उपसर्ग व प्रत्यय से बने अन्य शब्द व वाक्य
1. आर्थिक – अर्थ + इक (प्रत्यय)
वाक्य-मेहनत से आर्थिक स्थिति मजबूत होती है।
2. अभ्यास- अभि + आस (उपसर्ग)
वाक्य- अभ्यास करने से हम किसी भी कार्य को पूरा कर सकते हैं और सीख सकते हैं।
3. प्रदान- प्र + दान (उपसर्ग)
वाक्य- अध्यापक हमें शिक्षा प्रदान करते हैं।
4. प्रवेश – प्र + वेश (उपसर्ग )
वाक्य- हमने फूल लेकर मंदिर में प्रवेश किया।
5. अनुभव – अनु + भव (उपसर्ग )
वाक्य-बड़े लोग अपने अनुभव से बच्चों को सिखाते हैं।
6. अतिरिक्त – अति + रिक्त (उपसर्ग )
वाक्य-अच्छे अंकों के लिए हमें स्कूल के अतिरिक्त भी पढ़ाई करनी चाहिए।
7. दैनिक – दिन + ईक (प्रत्यय)
वाक्य-हमें अपने दैनिक कार्य समय पर पूरे करने चाहिए।
8. कोमलता – कोमल + ता (प्रत्यय)
वाक्य- माता-पिता अपने बच्चों को कोमलता से पालते हैं।
9. अनुशासन – अनु + शासन (उपसर्ग)
वाक्य – विद्यार्थियों को अनुशासन का पालन करना चाहिए।
10. बौद्धिक-बुद्धि + इक (प्रत्यय)
वाक्य- ज्ञान की बातों से बच्चों का बौद्धिक विकास होता है।
11. सहयोगी – सह + योगी (उपसर्ग)
वाक्य :- हमें एक-दूसरे का सहयोगी बनना चाहिए।
शब्दों का प्रभाव
पाठ में आए नीचे दिए गए वाक्य पढ़िए-
प्रश्न 1.
” कुछ कथिक डर गए किंतु उन कथिकों की कला में इतना दम था कि डाकू सब कुछ भूलकर उन कथिकों के कथक में मग्न हो गए।” इस वाक्य में रेखांकित शब्द ‘इतना’ हटाकर वाक्य पढ़िए और पहचानिए कि क्या परिवर्तन आया है?
पाठ में आए हुए वाक्यों में से ऐसे ही कुछ और शब्द ढूँढ़कर उन्हें रेखांकित कीजिए जिनके प्रयोग से वाक्य में विशेष प्रभाव उत्पन्न होता है ?
उत्तर :
‘इतना’ शब्द से साबित होता है कि कला में वह दम था जो डाकुओं को मुग्ध कर स्वयं को विचार शून्य हो जाने की क्षमता थी ।
‘इतना’ शब्द हटाने से – कथिकों की कला में कोई दम-खम न होना साबित करता है।
अन्य वाक्य
1. जिन डिब्बों में कभी तीन-चार लाख की कीमत के हार हुआ करते थे वे अब खाली पड़े थे। ‘जिन’ शब्द डिब्बों की विशेषता बता रहा है। ‘जिन’ शब्द हटाने पर ‘हार की कीमत’ पर बल है।
2. लखनऊ घराने के बाद जयपुर घराने और फिर बनारस घराने का विकास हुआ।
‘फिर’ शब्द के प्रयोग से पता चलता है कि लखनऊ घराने के बाद जयपुर घराने और उसके बाद बनारस घराने का विकास हुआ।
‘फिर’ हटाने से पता चलता है कि लखनऊ घराने के बाद जयपुर और बनारस घराने का विकास हुआ।
पाठ से आगे प्रश्न- अभ्यास
(पृष्ठ 108-113)
कला का संसार
(क) बिरजू महाराज – ” कथक की पुरानी परंपरा को तो कायम रखा है। हाँ, उसके प्रस्तुतीकरण में बदलाव किए हैं।” इस कथन को ध्यान में रखते हुए लिखिए कि कथक की प्रस्तुतियों में किस प्रकार के परिवर्तन आए हैं?
उत्तर :
बिरजू महाराज ने कथक की पुरानी परंपरा को कायम रखते हुए उसके प्रस्तुतीकरण में कुछ बदलाव किए। उन्होंने अपने पिता और चाचा के निराले ढंग से खड़े होने की भाव-भंगिमाओं को कथक में शामिल किया। इसी प्रकार उन तीनों की शिक्षा को इकट्ठा करके नया रूप तैयार किया। कथक में पहले श्रृंगार के लिए चंदन लेप और होंठ रंगने के लिए पान होता था । परंतु अब पूरा शृंगार होता है। पहले फर्श पर सफेद चादर बिछाकर कथक होता था परंतु अब मंच पर कथक का आयोजन होता है।
(ख) लोकनृत्य और शास्त्रीय नृत्य में क्या अंतर है? लिखिए।
(इस प्रश्न के उत्तर के लिए आप अपने सहपाठियों, अभिभावकों, शिक्षकों, पुस्तकालय या इंटरनेट की सहायता भी ले सकते हैं।)
उत्तर :
लोकनृत्य और शास्त्रीय नृत्य में अंतर – शास्त्रीय नृत्य, संगीत नाटक अकादमी द्वारा मान्यता प्राप्त एक संरचित और शास्त्रीय परंपरा से विकसित नृत्य रूप है, जबकि लोक नृत्य स्थानीय परंपराओं और उत्सवों के साथ जुड़ा होता है।
(ग) “बैरगिया नाला जुलुम जोर,
नौ कथिक नचावें तीन चोर ।
जब तबला बोले धीन – धीन,
तब एक-एक पर तीन-तीन । ”
इस पाठ में हरिया गाँव में गाए जाने वाले उपर्युक्त पद का उल्लेख है। आप अपने क्षेत्र में गाए जाने वाले किसी लोकगीत को कक्षा में प्रस्तुत कीजिए ।
उत्तर :
पहाड़ी हिमाचली लोकगीत
शिव के मन माहि बसे काशी
शिव के मन माहि बसे काशी
आधी काशी में बाभन बनिया
है आधी काशी में बाभन बनिया
आधी काशी में सन्यासी
शिव के मन माहि बसे काशी
साक्षात्कार की रचना
प्रस्तुत पाठ की विधा ‘साक्षात्कार’ है। सामान्यतः इसे बातचीत या भेंटवार्ता का पर्याय मान लिया जाता है, लेकिन यह भेंटवार्ता से इस संदर्भ में भिन्न है कि इसका एक निश्चित उद्देश्य और ढाँचा होता है। यह साक्षात्कार किसी नौकरी या पाठ्यक्रम में प्रवेश लेने के लिए होने वाले साक्षात्कार से बिल्कुल भिन्न है। प्रस्तुत साक्षात्कार एक प्रकार से व्यक्तिपरक साक्षात्कार है। इसका उद्देश्य साक्षात्कारदाता के निजी जीवन, उनके कामकाज, उपलब्धियों, रुचि – अरुचि, विचारों आदि को पाठकों के सामने लाना है। किसी भी प्रकार के साक्षात्कार के लिए पर्याप्त तैयारी, संवेदनशीलता और धैर्य की आवश्यकता होती है। साक्षात्कार की सफलता इस बात पर निर्भर करती है कि साक्षात्कारदाता के संदर्भ में कितना शोध किया गया है और प्रश्न किस प्रकार के बनाए गए हैं।
प्रस्तुत ‘साक्षात्कार’ के आधार पर बताइए –
(क) साक्षात्कार से पहले क्या-क्या तैयारियाँ की गई होंगी?
उत्तर :
‘साक्षात्कार’ से पूर्व, प्रश्न पूछने वाले व्यक्ति ने ना केवल अपने प्रश्नों की प्रश्नावली तैयार की होगी अपितु स्वयं भी उस व्यक्ति के बारे में संक्षिप्त जानकारी एकत्रित की होगी, जिसका साक्षात्कार उसे लेना होगा। ऐसा करने से पूछने वाले के मन में कोई शंका नहीं रहती ।
(ख) आप इस साक्षात्कार में और क्या-क्या प्रश्न जोड़ना चाहेंगे?
उत्तर :
हाँ, इस साक्षात्कार में हम कुछ प्रश्न जोड़ सकते हैं, जैसे-
बिरजू महाराज के कितने भाई बहन थे ?
बिरजू महाराज का जन्म कब और कहाँ हुआ? बिरजू महाराज कहाँ तक पढ़े थे?
जब उनके पिता का देहांत हुआ तब वे कितने वर्ष के थे?
(ग) यह साक्षात्कार एक सुप्रसिद्ध कलाकार का है। यदि आपको किसी सब्जी विक्रेता, रिक्शा चालक, घरेलू सहायक या सहायिका का साक्षात्कार लेना हो तो आपके प्रश्न किस प्रकार के होंगे?
उत्तर :
रिक्शा चालक-
- प्रश्न- भैया आपने अभी अंग्रेजी में एक पंक्ति बोली, क्या आप पढ़े लिखे हैं?
रिक्शा चालक – हाँ मैंने कॉलेज से द्वितीय वर्ष बी.ए. पास किया है। - प्रश्न- अच्छा! तो आप पढ़े-लिखे होकर रिक्शा क्यों चला रहे हैं?
रिक्शा चालक – मजबूरी है। - प्रश्न- भैया आप कृपया अपने बारे में विस्तार से बताएँ ।
रिक्शा चालक – मेरा नाम मोहन है मैं पास ही की बस्ती में रहता हूँ। मेरे पिता मजदूरी करते हैं। घर में एक छोटी बहन और भाई है। माँ घर पर ही दोनों भाई-बहन को संभालती हैं। - प्रश्न – तो क्या माँ आपका ध्यान नहीं रखती थी?
रिक्शा चालक – नहीं, नहीं, ऐसी बात नहीं, माँ तो मुझे भी बहुत प्यार करती है। घर में पैसे बचत करके मेरी पढ़ाई की फीस भरती थीं। मैंने बी. ए. का द्वितीय वर्ष बड़ी कठिनाई से पूरा किया, मेरे अच्छे अंक आए परंतु अब घर में बहुत तंगी हो गई। पिता को ज्यादा काम नहीं मिल रहा था। छोटे बहन-भाइयों की पढ़ाई भी थी, इसलिए मैंने रिक्शा चलाना शुरु किया, क्योंकि मुझे कोई नौकरी नहीं मिली, परंतु कोई बात नहीं, एक दिन जरूर मिलेगी तब तक मैं हिम्मत रखूँगा।
सृजन
आपके विद्यालय में कथक नृत्य का आयोजन होने जा रहा है।
(क) आप दर्शकों को कथक नृत्यकला के बारे में क्या- क्या बताएँगे? लिखिए।
उत्तर :
- हम दर्शकों को कथक नृत्य के बारे में निम्नलिखित बातें बताएँगे – कथक, उत्तर भारत का एक शास्त्रीय नृत्य है। यह कहानी कहने का एक साधन है। कथक शब्द का मतलब है कथा को नृत्य रूप में प्रस्तुत करना ।
- यह नृत्य अपने पैरों की हरकतों, लयबद्ध सटीकता और कहानी कहने के लिए जाना जाता है। कथक की शैली भावप्रधान और चमत्कारप्रधान होती है।
- कथक के प्रमुख राजघराने – जयपुर, लखनऊ, बनारस और रायगढ़ में रहे हैं।
- कथक का विकास 15वीं और 16वीं शताब्दी में हुआ।
- कथक नृत्य में पैरों की गति पर ध्यान दिया जाता है। कथक नृत्य की उत्पत्ति प्राचीन भारत में यात्रा करने वाले कवियों से मानी जाती है।
- कथक गुरु-शिष्य परंपरा पर आधारित है।
(ख) इस कार्यक्रम की सूचना देने के लिए एक विज्ञापन तैयार कीजिए ।
उत्तर :
विज्ञापन
(ग) यदि इस नृत्य कार्यक्रम में कोई दृष्टिबाधित दर्शक है और वह नृत्य का आनंद लेना चाहे तो इसके लिए विद्यालय की ओर से क्या व्यवस्था की जानी चाहिए?
उत्तर :
दृष्टिबाधित नृत्यकला का आनंद ले सके इसके लिए विद्यालय की ओर से निम्नलिखित व्यवस्था की जानी चाहिए-
- नृत्य प्रदर्शन में नर्तकों की गति और नृत्य की कहानी को आवाज द्वारा वर्णित करने की व्यवस्था की जाए। अर्थात् नृत्य की प्रत्येक भाव-भंगिमा का विवरण आवाज द्वारा दिया जाए।
- प्रदर्शन से पहले, दृष्टिबाधित लोगों को मंच और नर्तकों के कपड़ों को छूने की अनुमति दें।
- अलग-अलग संगीत और ध्वनियों का उपयोग करे, तो नृत्य और कथा को दर्शाएँ ।
आज की पहेली
‘अगर नर्तक को सुर-ताल की समझ है तो वह जान पाएगा कि यह लहरा ठीक नहीं है, इसके माध्यम से नृत्य अंगों में प्रवेश नहीं करेगा।” संगीत में लय को प्रदर्शित करने के लिए ताल का सहारा लिया जाता है। किसी भी गीत की पंक्तियों में लगने वाले समय को मात्राओं द्वारा ठीक उसी प्रकार मापा जाता है, जैसे दैनिक जीवन में व्यतीत हो रहे समय को हम सेकेंड के द्वारा मापते हैं। ताल कई मात्रा समूहों का संयुक्त रूप होता है। संगीत के समय को मापने की सबसे छोटी इकाई मात्रा है और ताल कई मात्राओं का
संयुक्त रूप है। जिस तरह घंटे में मिनट और मिनट में सेकेंड होते हैं, उसी तरह ताल में मात्रा होती है। आज हम आपके लिए ताल से जुड़ी एक अनोखी पहेली लाए हैं।
एक विद्यार्थी ने अपनी डायरी में अपने विद्यालय के किसी एक दिन का उल्लेख किया है। उस उल्लेख में संगीत की कुछ तालों के नाम आए हैं। आप उन तालों के नाम ढूँढ़िए-
अब नीचे दी गई शब्द पहेली में से संगीत की उन तालों के नाम ढूँढ़कर लिखिए-
उत्तर :
- दीपचंदी
- झूमरा
- दादरा
- रूपक
- तिलवाड़ा
- लक्ष्मी
- कहरवा
- तीन ताल
झरोखे से
नृत्य की छटाएँ
बिरजू महाराज ने भारत के विभिन्न राज्यों के शास्त्रीय नृत्यों का उल्लेख किया है। आइए, इनके बारे में अपनी समझ बढ़ाते हैं—
भरतनाट्यम – यह नृत्य विधा का सर्वाधिक प्राचीन रूप है। इसका नाम ‘भरतमुनि’ तथा ‘नाट्यम’ शब्द से मिलकर बना है। कुछ विद्वान ‘भरत’ शब्द को राग ताल, भाव से भी जोड़ते . हैं। इस नृत्य विद्या की उत्पत्ति का संबंध तमिलनाडु में मंदिर नर्तकों की एकल नृत्य प्रस्तुति ‘सादिर’ से है।
कथकली – दक्षिण भारत के एक राज्य के मंदिरों में रामायण तथा महाभारत की कहानियाँ प्रस्तुत करने वाली दो लोक नाट्य परंपराएँ, रामानाट्टम तथा कृष्णानाट्टम कथकली के उद्भव का स्रोत हैं। यह संगीत, नृत्य और नाटक का अद्भुत संयोजन है। सुप्रसिद्ध मलयाली कवि वी. एन. मेनन के द्वारा राजा मुकुंद के संरक्षण में इसका प्रचार-प्रसार हुआ । यह नृत्य पुरुष मंडली द्वारा किया जाता है। इसकी विषयवस्तु महाकाव्यों और पुराणों में वर्णित कहानियाँ होती हैं। पूरे नृत्य नाटक का अनमोल आभूषण हैं भाव-भंगिमाएँ । आँखों और भौहों का लय संचालन बहुत महत्वपूर्ण है।
कथक – ब्रजभूमि की रासलीला से उत्पन्न, कथक एक परंपरागत नृत्य विद्या है। कथक का नाम ‘कथिक’ से लिया गया है, जिसे कथावाचक भी कहते हैं। ये कथिक महाकाव्यों के पदों व छंदों को संगीत तथा भाव-भंगिमाओं के साथ प्रस्तुत करते थे। कथक की महत्वपूर्ण विशेषता विभिन्न घरानों का विकास है। जुगलबंदी कथक प्रस्तुति का मुख्य आकर्षण है, जिसमें तबलावादक तथा नर्तक के बीच प्रतिस्पर्धात्मक खेल होता है।
कुचिपुड़ी- आंध्र प्रदेश का कुचिपुड़ी नृत्य भारतीय शास्त्रीय नृत्य की एक पारंपरिक शैली है। कुचिपुड़ी नृत्य प्रस्तुति प्रार्थना से आरंभ होती है, तत्पश्चात् नृत्य-अभिनय को प्रस्तुत किया जाता है। नृत्य प्रस्तुति के साथ कर्नाटक संगीत की संगत दी जाती है। कुचिपुड़ी नृत्य का समापन तरंगम प्रस्तुति के पश्चात् होता है।
मणिपुरी नृत्य – पौराणिक आख्यानों के अनुसार मणिपुरी नृत्य का स्रोत भारत के एक उत्तर-पूर्वी राज्य मणिपुर की घाटियों में स्थानीय गंधर्वों के साथ शिव और पार्वती का दैवीय नृत्य है। इस राज्य के प्रमुख त्योहार ‘ लाई हरोबा’ में इस नृत्य को करने का प्रचलन है। सामान्यतः यह नृत्य स्त्रियों द्वारा किया जाता है। इसमें चेहरे की अभिव्यक्ति के स्थान पर हाथ के हाव-भाव व पैरों की गति महत्वपूर्ण होती है।
ओडिसी नृत्य – नाट्यशास्त्र में उल्लिखित ‘सोदा नृत्य’ से ओडिसी नृत्य रूप को नाम मिला है। कुछ भाव – मुद्राएँ भरतनाट्यम् से मिलती-जुलती हैं। इस नृत्य रूप का मुख्य आकर्षण है। त्रिभंग मुद्रा अर्थात शरीर का तीन मोड़ वाला रूप। नृत्य के दौरान शरीर का निचला हिस्सा काफी सीमा तक स्थिर रहता है और धड़ लय-ताल के साथ गति करता है।
मोहिनीअट्टम – भारत के आठ शास्त्रीय नृत्यों में से एक मोहिनीअट्टम का उद्भव केरल राज्य में हुआ। मोहिनीअट्टम की विशेषता घुमावदार कोमल भाव वाले आंगिक अभिनय हैं। इस नृत्य के अंतर्गत अभिनय पर बल दिया जाता है। इस नृत्य शैली में मुख की अभिव्यक्ति और हस्त-मुद्राओं को सर्वाधिक महत्व दिया जाता है। नर्तकियाँ पारंपरिक पोशाक पहनती हैं जिसे ‘मुंडू’ कहा जाता है। पारंपरिक रूप से मोहिनीअट्टम केवल स्त्रियों द्वारा ही किया जाता है, जबकि कथकली केवल पुरुषों द्वारा किया जाता है।
उत्तर :
प्रमुख भारतीय लोक नृत्य और उनकी विशेषताएँ
भारत में कई तरह के लोक नृत्य हैं जो अलग-अलग राज्यों और क्षेत्रों में प्रचलित हैं। ये नृत्य स्थानीय संस्कृति, रीति-रिवाजों और परंपराओं का
प्रतिनिधित्व करते हैं। कुछ प्रमुख लोक नृत्य इस प्रकार हैं-
- भांगड़ा (पंजाब)
- घूमर (राजस्थान)
- बिहू (असम)
- गरबा (गुजरात)
- डांडिया (गुजरात)
- बिस्सू (केरल)
- ओडिशा नृत्य (ओडिशा)
- कथक (उत्तर प्रदेश)
- भरतनाट्यम (तमिलनाडु)
- छपेली (हिमाचल प्रदेश )
- नागा (मणिपुर)
- झूमर (हरियाणा)
- भांगड़ा (पंजाब) – यह एक ऊर्जावान और मनोरंजक नृत्य है जो फसलों के दौरान किया जाता है।
- घूमर (राजस्थान) – यह एक सुंदर और रंगीन नृत्य है जो महिलाओं द्वारा किया जाता है।
- बिहू (असम) – यह एक महत्वपूर्ण नृत्य है जो असम के बिहू त्योहार के दौरान किया जाता है।
- गरबा (गुजरात) – ये नवरात्रि के त्योहार के दौरान किए जाने वाले लोकप्रिय नृत्य हैं।
- झूमर (असम) – यह एक लोकप्रिय लोकनृत्य है जो चाय बगान के श्रमिकों द्वारा किया जाता है।
- बिस्सू (केरल) – यह नृत्य धनुष के आकार के बाँस के टुकड़ों का उपयोग करके किया जाता है।
- ओडिशा नृत्य (उड़िसा) – यह एक शास्त्रीय नृत्य है जो पूर्वी भारत में लोकप्रिय है।
- कथक (उत्तर प्रदेश) – यह शास्त्रीय नृत्य है इसमें नृत्य के माध्यम से कथा कही जाती है, महाभारत और रामायणकाल में भी इसका वर्णन है। यह उत्तर भारत में लोकप्रिय है।
- भरतनाट्यम (तमिलनाडु) – यह एक शास्त्रीय नृत्य है जो दक्षिण भारत में लोकप्रिय है।
- छपेली (हिमाचल प्रदेश ) – यह हिमाचल प्रदेश के ग्रामीण क्षेत्रों में प्रचलित है। यह नृत्य आमतौर पर धार्मिक अनुष्ठानों, त्योहारों और अन्य खुशी के अवसरों पर किया जाता है।
- नागा ( मणिपुर ) – इसे नागा समुदाय के लोग करते हैं। पहाड़ी क्षेत्र में रहने वाले मणिपुरी लड़के-लड़कियाँ वार्षिक कटाई और बीज – बुबाई के दौरान यह नृत्य करते हैं।
- झूमर ( हरियाणा ) – यह पारंपरिक नृत्य खासतौर पर शादीशुदा युवतियों द्वारा किया जाता है। यह नृत्य ढोलक और थाली जैसे वाद्ययंत्रों की थाप पर किया जाता है।
- रौफ ( जम्मू कश्मीर ) – यह महिलाओं द्वारा वसंत ऋतु के आगमन पर किया जाता है।
- मटकी ( मध्यप्रदेश ) – यह मालवा क्षेत्र में किया जाता है। यह महिलाओं द्वारा शादी-विवाह के शुभ-अवसरों पर किया जाता है। इसे घट – नृत्य भी कहा जाता है।
- यक्षगान ( कर्नाटक ) – यह कर्नाटक का लोकप्रिय नृत्य है यह यक्ष का गीत है।
- कोली नृत्य ( महाराष्ट्र ) – यह महाराष्ट्र राज्य का सबसे प्रसिद्ध लोक-नृत्य है। यह समुद्र की लहरों की लय को दर्शाता है। यह गोवा का भी प्रसिद्ध नृत्य है।
साझी समझ
अभी अपने शास्त्रीय नृत्यों को निकटता से जाना समझा। पाँच-पाँच विद्यार्थियों के समूह में भारत के लोक नृत्यों की सूची बनाइए और उनकी विशिष्टताओं का पता लगाइए ।
नीचे दिए गए भारत के मानचित्र में राज्यानुसार शास्त्रीय एवं लोक नृत्य दर्शाइए ।
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