Students can find the 12th Class Hindi Book Antral Questions and Answers Chapter 4 अपना मालवा खाऊ-उजाडू सभ्यता में to practice the questions mentioned in the exercise section of the book.
NCERT Solutions for Class 12 Hindi Antral Chapter 4 अपना मालवा खाऊ-उजाडू सभ्यता में
Class 12 Hindi Chapter 4 Question Answer Antral अपना मालवा खाऊ-उजाडू सभ्यता में
प्रश्न 1.
मालवा में जब सब जगह बरसात की झड़ी लगी रहती है तब मालवा के जनजीवन पर इसका क्या असर पड़ता है?
उत्तर :
मालवा में जब सब जगह बरसात की झड़ी लगी रहती है तब मालवा के जनजीवन पर इसका व्यापक असर होता है। इस क्षेत्र के ताल-तलैया, नदी-नाले, खेत-मैदान सभी पानी से भर जाते हैं। कुछ जगहों पर बाढ़ जैसी स्थिति उत्पन्न हो जाती है। खेतों में खड़ी फसलें नष्ट हो जाती हैं। नदियों का पानी सीमा का उल्लंघन कर शहर और गाँव की सीमा में प्रवेश कर जाता है। इससे एक ओर खेतों में नष्ट होती फसल की चिता होती है तो अगली फसल गेहूँ, चना आदि अच्छी होने के प्रति आशा की एक किरण भी जाग उठती है। इस प्रकार मालवा में बरसात की झड़ी आशा और निराशा का एक मिश्रित वातावरण-सा तैयार करती है।
प्रश्न 2.
अब मालवा में वैसा पानी नहीं गिरता, जैसा गिरा करता था? उसके क्या कारण हैं?
अथवा
‘अपना मालवा’ पाठ के आधार पर पर्यावरण और उसके विनाश पर प्रकाश डाालिए।
उत्तर :
मनुष्य की लगातार बढ़ती आवश्यकताओं और विकास की ओर बढ़ते कदमों के कारण उसकी जीवन-शैली और रहन-सहन के तौर-तरीकों में बदलाव आया है। मनुष्य ने प्राकृतिक संपदा का खूब दोहन किया है, जिससे ऋतुचक्र प्रभावित हुआ है। अधिकाधिक उत्पादन लेने की चाह के कारण फसल के उगाने और उसकी कटाई के समय में परिवर्तन आया है, जिसका सीधा असर मौसम पर पड़ा है। पेड़ों की अंधाधुंध कटाई से लगातार बढ़ता तापमान असमय वर्षा का कारण बनता है। इसके अलावा पेड़ वर्षा होने में सहायक होते हैं तथा वर्ष को प्रभावित करते हैं। मालवा क्षेत्र भी मनुष्य के इस क्रियाकलाप से अछूता नहीं है, अतः अब वहाँ भी पहले जैसी वर्षा नहीं होती है।
प्रश्न 3.
हमारे आज के इंजीनियर ऐसा क्यों समझते हैं कि वे पानी का प्रबंध जानते हैं और पहले ज़माने के लोग कुछ नहीं जानते थे?
उत्तर :
हमारे आधुनिक इंजीनियरों ने पश्चिम से तकनीकी ज्ञान पाया है। वे परंपरागत ज्ञान को नहीं जानते तथा न ही वे उसे जानना चाहते हैं। उन्होंने तालाबों की महत्ता नहीं जानी। उन्होंने इनमें गाद भर जाने दिया। पानी की आपूर्ति के लिए उन्होंने भूमिगत जल निकाला। इससे पानी की आपूर्ति तो बढ़ गई, परंतु मालवा का भूमिगत जल का स्तर गिर गया। वस्तुत: आधुनिक इंजीनियर परंपरागत साधनों को बनाए रखने में कम विश्वास रखते हैं। वे तत्कालीन व्यवस्था को ठीक करने के विशेषज्ञ हैं। इस तरह की व्यवस्था से वे समझते हैं कि वे पानी का प्रबंध जानते हैं और पहले जमाने के लोग कुछ नहीं जानते थे।
प्रश्न 4.
‘मालवा में विक्रमादित्य, भोज और मुंज रिनेसां के बहुत पहले हो गए।’ पानी के रखरखाव के लिए उन्होंने क्या प्रबंध किए?
उत्तर :
मालवा प्रदेश में विक्रमादित्य, भोज और मुंज का कार्यकाल रिनेसां के पहले का है। वे दूरदर्शी और स्थानीय जरूरतों का ध्यान रखने वाले तथा प्रकृति के प्रति संतुलित दृष्टिकोण रखने वाले लोग थे। उन्होंने अपने सीमित साधनों के माध्यम से भूजल स्तर बनाए रखने और प्राकृतिक हरियाली को चिरकाल तक बनाए रखने का प्रयास किया। उन्होंने पठारों का पानी तालाब और बावड़ियों में रोकने का प्रबंध किया। इससे पठारी क्षेत्र में प्रचुर हरियाली और भूगर्भ जल जीवंत बना रहा। उन्होंने यह कार्य पश्चिमी जागृति के पूर्व ही किया था।
प्रश्न 5.
‘हमारी आज की सभ्यता इन नदियों को अपने गंदे पानी के नाले बना रही है।’ क्यों और कैसे?
उत्तर :
किसी समय मालवा में बहने वाली नदियाँ ही उस क्षेत्र को हरा-भरा रखती थीं, परंतु औद्योगीकरण के लगातार बढ़ने से उद्योग-धंधों में खूब वृद्धि हुई। नदियाँ जो सभ्यता की जननी होती थीं, उनके किनारे नगर बसाए गए, जिससे वहाँ जनसंख्या में वृद्धि हुई। इन नगरों का गंदा पानी और फैक्ट्रियों का रसायन मिश्रित पानी इन नदियों के अमृततुल्य पानी में मिलने के लिए छोड़ दिया गया। अपशिष्ट पदार्थों, प्लास्टिक की थैलियों के प्रयोग से इनका प्रवाह बाधित हुआ है। फलतः ये नदियाँ गंदे पानी का तालाब बनकर रह गई हैं। इस प्रकार हमारी वर्तमान सभ्यता ने इन्हें गंदे पानी के नालों में परिवर्तित कर दिया है।
प्रश्न 6.
लेखक को क्यों लगता है कि ‘हम जिसे विकास की औद्योगिक सभ्यता कहते हैं, वह उजाड़ की अपसभ्यता है’? आप क्या मानते हैं?
उत्तर :
लेखक बताता है कि जब विकास नहीं हुआ था, तब धरती पर जल तथा भोजन की कमी नहीं थी। सन् 1899 में मालवा में बेहद कम बारिश हुई थी, परंतु तब भी वहाँ भुखमरी जैसी दशा न थी। वहाँ की सभ्यता ने नदी, नाले, तालाब सँभालकर रखे थे। आधुनिक सभ्यता के विकास से प्रकृति के साथ छेड़छाड़ हो रही है। वनों को काटा जा रहा है। तालाबों की देखभाल नहीं हो रही। फलतः वे समाप्त हो रहे हैं। नदियाँ गंदे नालों में बदल रही हैं। इससे पर्यावरणीय असंतुलन बढ़ रहा है और जलवायु का क्रम प्रभावित एवं परिवर्तित हो रहा है।
इस परिवर्तन का असर भी हमारे सामने विभिन्न रूपों में आ रहा है, जैसे समुद्र का पानी लगातार गर्म होना, वैश्विक तापमान में वृद्धि होना, ध्रुवों पर जमी बर्फ का पिघलना, सदानीरा नदियों का पानी सूखना, वर्षा कम होना, असमय वर्षा होना, जिससे लाभ कम हानि अधिक होना, पर्यावरण का लगातार प्रदूषित होना, लद्दाख में बर्फ की जगह वर्षा होना, राजस्थान जैसे सदैव शुष्क रहने वाले कुछ मरूस्थलीय भागों में बाढ़ आना आदि। मेरा मानना है कि लेखक ने ऐसे विकास की सभ्यता को उजाड़ की अपसभ्यता नाम देकर ठीक ही किया है।
प्रश्न 7.
धरती का वातावरण गरम क्यों हो रहा है? इसमें यूरोप और अमेरिका की क्या भूमिका है? टिप्पणी कीजिए।
उत्तर :
वर्तमान युग को औद्योगीकरण का युग कहने में कोई अतिश्योक्ति नहीं है। ऐसे में उद्योगों का महत्व बढ़ गया है। संसार में बड़े-बड़े उद्योग लगाए जा रहे हैं। इन कारखानों से कार्बन डाइऑक्साइड, मीथेन आदि गैसें निकलती हैं। ये गैसें मिलकर धरती के तापमान को सामान्य तापमान से तीन डिग्री सेल्सियस तक बढ़ा रही हैं। इन गैसों से प्राकृतिक वातावरण में परिवर्तन आ रहे हैं।
धरती के गरम होने के पीछे यूरोप और अमेरिका में अति औद्योगिकीकरण होना है। इन्हीं कल-कारखानों और उद्योगों के बल पर वे निरंतर विकास की सीढ़ी चढ़ना चाहते हैं। इन उद्योगों को चलाने के लिए पर्यावरणीय मापदंडों की अवहेलना की जाती है। इनसे मिलने वाले लाभ से तो ये देश लाभान्वित होते हैं, पर उनसे निकला धुआँ, गर्म एवं प्रदूषित गैसों की मार समूचे विश्व को झेलनी पड़ती है। ऐसे में पर्यावरणीय और वातावरण को गर्म कर अपूर्ण क्षति पहुँचाने में यूरोप और अमेरिका आदि देश अधिक ज़िम्मेदार हैं।
गोग्यता-विस्तार –
प्रश्न 1.
क्या आपको भी पर्यावरण की चिंता है? अगर है तो किस प्रकार? अपने शब्दों में लिखिए।
उत्तर :
हमें पर्यावरण की चिंता है। हम निम्नलिखित बिंदुओं पर चिंता व्यक्त करते हैं –
- शहरी प्रदूषण से जल प्रदूषित होता जा रहा है।
- वाहनों की बढ़ती संख्या से ध्वनि व वायु प्रदूषण बढ़ रहा है।
- प्रकृति का संतुलन बिगड़ रहा है, जिससे जलवायु-चक्र बुरी तरह प्रभावित हो रहा है।
- औद्योगिक इकाइयों से निकलने वाली जहरीली गैसों से वायु प्रदूषित हो रहा है।
- खेतों में कीटनाशकों व खादों के प्रयोग से ज़मीन की उपजाऊ क्षमता कम होती जा रही है।
प्रश्न 2.
विकास की औद्योगिक सभ्यता उजाड़ की अपसभ्यता है। खाऊ-उजाड़ सभ्यता के संदर्भ में हो रहे पर्यावरण के विनाश पर प्रकाश डालिए।
उत्तर :
मनुष्य उपभोक्तावादी दृष्टिकोण के कारण प्रकृति का अंधाधुंध शोषण कर रहा है। वनों की कटाई से पर्यावरण असंतुलन बढ़ रहा है। वर्ष की मात्रा में कमी आ रही है। भूमि की उपज-शक्ति में भारी ह्रास हो रहा है, जिसके कारण दुनिया में अन्न-संकट बढ़ रहा है। इसके अलावा आज औद्योगिक उन्नति को विकास का पैमाना माना जाने लगा है।
इन उद्योगों की स्थापना के समय पर्यावरण को होने वाले नुकसान की चिंता नहीं की जाती है। इनके लिए जहाँ हजारों-लाखों हरे-भरे वृक्षों की बलि दी जाती है, वही लघु एवं कुटीर उद्योग सदा-सदा के लिए नष्ट हो जाते हैं। इनसे निकलने वाली जहरीली गैसें वैश्विक तापमान-वृद्धि का कारण बनती हैं। यदि पर्यावरणीय क्षति को अनदेखा कर यूँ ही अंधाधुंध औद्योगीकरण किया जाता रहेगा तो वातावरण जहरीला और रहने के अयोग्य बन जाएगा। इसे सभ्यता के बजाय अपसभ्यता कहना ही उचित होगा, जो धरती को रहने लायक भी नहीं छोड़ रही है।
प्रश्न 3.
पर्यावरण को विनाश से बचाने के लिए आप क्या कर सकते हैं? उसे कैसे बचाया जा सकता है? अपने विचार लिखिए।
उत्तर :
पर्यावरण को विनाश से बचाने के लिए हम निम्नलिखित कार्य कर सकते हैं-
- पानी की बचत कर सकते हैं तथा जल-स्रोतों को प्रदूषण से बचाने का उपाय कर सकते हैं।
- बिजली की व्यर्थ की खपत को बचा सकते हैं। जरूरत होने पर ही बिजली का उपयोग करें।
- वृक्षारोपण से पर्यावरण को बचा सकते हैं। वृक्षों को नष्ट होने से तथा उनको अंधाधुंध काटने से बचाएँ।
- वाहनों के अत्यधिक प्रयोग को कम किया जा सकता है। सार्वजनिक वाहनों का यथासंभव प्रयोग करें।
- उर्वरकों एवं रसायनों का कम-से-कम प्रयोग करें तथा जैविक खाद का अधिकाधिक प्रयोग करें, जिससे मृदा प्रदूषण रुक सकें और हमारा पर्यावरण सुरक्षित रहे।
Class 12 Hindi NCERT Book Solutions Antral Chapter 4 अपना मालवा खाऊ-उजाडू सभ्यता में
लघूत्तरात्मक प्रश्न-I
प्रश्न 1.
मालवा की यात्रा के समय लेखक ने क्या-क्या देखा?
उत्तर :
मालवा की यात्रा के समय लेखक ने निम्नलिखित बातें देखीं-
- मालवा में आसमान में बादल छाए हुए थे।
- मटमैला बरसाती पानी लबालब भरा हुआ था।
- सभी नदी-नाले बह रहे थे।
- नवरात्रि की सुबह घट स्थापना की तैयारी हो रही थी।
- छोटे स्टेशनों पर महिलाओं की भीड़ थी।
- खेतों में लहलहाती ज्वार, बाजरा, सोयाबीन की फसलें, पीले फूलों वाली फैलती बेल दिखाई दे रही थी।
प्रश्न 2.
इंदौर में दव्वा से लेखक ने क्या इच्छा प्रकट की, पर बाद में यह इच्छा मन में क्यों दबानी पड़ी?
उत्तर :
लेखक ने इंदौर उतरते ही गाड़ी में सामान रखते दव्वा से कहा कि वह सब नदियाँ, सारे तालाब, सारे ताल-तलैया और जलाशय देखना चाहता है। सब पहाड़ चढ़ने हैं। उसने मुसकुराते हुए कहा-यहीं से? बाद में पाया कि उमर भी अब सत्तर की हो जाएगी। पहाड़ चढ़े नहीं जाएँगे। नदी-नाले पार नहीं होंगे। सूखती सुनहरी घास बुलाएगी, लेकिन उस पर लेटकर रड़का नहीं जा सकेगा। मन से तो किशोर हो सकते हो। शरीर फिर वैसा फुर्तीला, लचीला और गर्वीला नहीं हो सकता। उमर जो ले गई, उसे ले जाने दो। उसका जो है रखें। अपना जो है उसे जिएँ। इस प्रकार बढ़ती उम्र और शारीरिक दुर्बलता के कारण उसे अपनी इच्छा मन में दबानी पड़ी।
प्रश्न 3.
लेखक ने ओंकारेश्वर में नर्मदा के आस-पास क्या-क्या बदलाव देखे?
उत्तर :
लेखक ने देखा नर्मदा पर ओंकारेश्वर में उस पार सामने सीमेंट-कंक्रीट का विशाल राक्षसी बाँध बनाया जा रहा है। शायद् इसीलिए वह चिढ़ती और तिनतिन-फिनफिन करती बह रही थी। मटमैली, कहीं छिछली अपने तल के पत्थर दिखाती, कहीं गहरी अथाह। वे बड़ी-बड़ी नावें वहाँ नहीं थी। शायद पूर में बहने से बचाकर कहीं रख दी गई थीं। किनारों पर टूटे पत्थर पड़े थे। ज्योतिर्लिग का तीर्थधाम वह नहीं लग रहा था। निर्माण में लगी बड़ी-बड़ी मशीनें और गुराते ट्रक थे। वहीं थोड़ी देर क्वांर की चिलचिलाती धूप मिली, लेकिन नर्मदा के बार-बार पूर आने के निशान चारों तरफ थे। बावजूद इतने बाँधों के नर्मदा में अब भी खूब पानी और गति है।
प्रश्न 4.
‘अपना मालवा’ पाठ में लेखक ने कहा है-‘ हमारी आज की सभ्यता नदियों के शुद्ध जल को गंदे पानी के नाले बना रही है।’ इस पर चितन करते हुए निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दीजिए :
(i) ऐसा क्यों हो रहा है कि हमारे देश की पवित्र नदियाँ गंदे नालों में बदल रही हैं? इसके कारणों की समीक्षा कीजिए।
(ii) एक जागरूक नवयुवक होने के नाते आप अपने स्तर पर नदियों को प्रदूषण से बचाने के लिए क्या-क्या कदम उठाना चाहेंगे?
उत्तर :
- देखें पेज नं० 401 पर प्रश्न-5 का उत्तर।
- नदियों में फैक्ट्रियों और शहरी नालों का गंदा एवं प्रदुषित पानी बिना शोधित किए न मिलने दिया जाए।
- नदियों में पूजा के अवशेष, मूर्ति-विसर्जन, चिता की राख, माला तथा सूखे-फूल आदि न फेंके जाए।
- नदियों के किनारे अंत्येष्टि क्रियाएँ जैसे लाशें जलाना आदि न किए जाएँ।
- इसके किनारे शौच-क्रिया तथा जानवरों को नहलाया न जाए।
- समय-समय पर नदियों की सफाई की व्यवस्था की जानी चाहिए।
प्रश्न 5.
‘अपने नदी, नाले, तालाब सँभाल के रखो तो दुष्काल का साल मजे में निकल जाता है। लेकिन जिसे हम विकास की औद्योगिक सभ्यता कहते हैं, वह उजाड़ की अपसभ्यता है।’
(i) नदी-नाले-तालाब को सँभाल के रखने से लेखक का क्या आशय है? यह काम पर्यावरण रक्षण से कैसे जोड़ता है?
(ii) विकास की औद्योगिक सभ्यता को उजाड़ की अपसभ्यता क्यों कहा गया है?
उत्तर :
(i) नदी-नाले और तालाब को सँभालकर रखने का आशय यह है कि हम अपने आस-पास के जल-स्रोतों, जैसे-नदी, नाले और तालाबों को नष्ट होने से बचाएँ। इनमें कूड़ा-करकट, अपशिष्ट पदार्थ, मलबा आदि डालकर इन्हें उथला होने से रोकें, ताकि इनकी जलधारण-क्षमता बनी रहे। यह अधिकाधिक वृक्ष लगाने तथा उनकी रक्षा करने से संभव होगा। इस प्रकार यह पर्यावरण-रक्षण से जोड़ता है।
(ii) विकास की औद्योगिक सभ्यता का हमारे पर्यावरण पर बहुत बुरा प्रभाव पड़ा है। औद्योगीकरण के कारण हरे-भरे पेड़ों को काटा गया है। उपजाऊ भूमि पर बनी इन औद्योगिक इकाइयों से जहरीला धुआँ, दूषित पानी और बहरा बनाने वाला शोर गूँजता है, इसलिए उसे उजाड़ की असभ्यता कहा गया है।
लघूत्तरात्मक प्रश्न-II
प्रश्न 1.
हज़ारों साल पुरानी मालवा की यह कहावत कैसे सच हुई?
मालव धरती गहन गंभीर,
डग-डग रोटी, पग-पग नीर।
उत्तर :
लेखक बताता है कि चंबल के बीहड़ों में डाकू रहते हैं। आगे बहुत बड़ा बाँध है। खूब पानी है। इस बार गांधीसागर के सब फाटक खोलने पड़े। इतना पानी भरा। गंभीर नदी, इतनी बड़ी नहीं है, लेकिन हालोद के आगे यशवंत सागर को इस बार फिर उसने इतना भर दिया कि पच्चीसों साइफन चलाने पड़े। सड़सठ साल में तीसरी बार ऐसा हुआ। पार्वती और कालीसिध ने फिर रास्ता रोका। दो दिन तक उनके पुल पर से पानी बहता रहा। इस बार मालवा के पठार की सब नदियाँ जलप्लावित हो गईं। उसके पास से बहने वाली नर्मदा में भी खूब पानी आया। बरसों बाद हज़ारों साल की कहावत सच्ची हुई-‘मालव धरती गहन गंभीर, डग-डग रोटी, पग-पग नीर’। दक्षिण से उत्तर की ओर ढलान वाले इस पठार की सभी नदियों के दर्शन हुए। खूब पानी, खूब बहाव और खूब कृपा। नदी का सदानीरा रहना जीवन के स्रोत का सदा जीवित रहना है। इस प्रकार हज़ारों साल पुरानी मालवा की यह कहावत सच हुई।
प्रश्न 2.
‘नयी दुनिया’ के रिकॉर्ड से मालवा के बारे में क्या पता चलता है?
उत्तर :
अख़बार ‘नयी दुनिया’ की लाइब्रेरी में सन् 1878 से पानी के रिकॉर्ड मौजूद हैं। 128 साल की यह जानकारी ही आँख खोलने के लिए काफी है कि इनमें एक ही साल था सन् 1899 का जब मालवा में सिर्फ $15.75$ इंच पानी गिरा था। लोक में यही छप्पन का काल है, लेकिन राजस्थान के ठेठ मारवाड़ से तब भी लोग यहीं आए थे और कहते हैं कि तब भी खाने और पीने को काफी था। इन 128 सालों में एक ही साल अतिवृष्ठि का था। सन् 1973 में 77 इंच पानी गिरा था।
तब भी यशवंत सागर, बिलावली, सिरपुर और पीपुल्या पाला टूटकर बहे नहीं थे। 28 इंच से कम बारिश हो तो वह सूखे का साल होता है, लेकिन ऐसे साल ज्यादा नहीं हैं। सन् 1956 में देश में सूखा पड़ा, लेकिन मालवा में लोग न प्यासे मरे न भूखे, क्योंकि उसके पहले के साल खूब पानी था और बाद के साल में भी। अपने नदी, नाले, तालाब सँभाल के रखो तो दुष्काल का साल मजे में निकल जाता है, लेकिन हम जिसे विकास की औद्योगिक सभ्यता कहते हैं, वह उजाड़ की अपसभ्यता है।
प्रश्न 3.
‘अमेरिका की घोषणा है कि वह अपनी खाऊ-उजाडू जीवन पद्धति पर कोई समझौता नहीं करेगा’-इस घोषणा पर अपनी टिप्पणी दीजिए।
उत्तर :
अमेरिका में बहुत अधिक उद्योग हैं। वहाँ लोग उत्पादों का प्रयोग अत्यधिक करते हैं। वहाँ कारखानों से गैसें निकलती हैं, जिससे तापमान में बढ़ोतरी हो रही है। इससे सारी धरती प्रभावित हो रही है। अमेरिका अपने को
इस बढ़ोतरी के लिए दोषी नहीं मानता। वह कहता है कि हमारी सभ्यता उपभोग पर आधारित है। वह इस जीवन प्रद्धति से कोई समझौता नहीं कर सकता।
अमेरिका का यह रूख बिल्कुल गलत है। धरती सबकी है, किसी एक के गलत कार्यो का परिणाम सबको भुगतना पड़ता है। अगर पर्यावरण में परिवर्तन आता है तो उसका असर अमेरिका पर भी होगा। वह इससे बच नहीं सकता। बेहतर यही होगा कि वह दुनिया के साथ मिलकर चले।
प्रश्न 4.
‘अपना मालवा खाऊ उजाडू सभ्यता में’ पाठ का उद्देश्य स्पष्ट कीजिए।
उत्तर :
‘अपना मालवा खाऊ उजाड़ सभ्यता में’ पाठ प्रभाष जोशी द्वारा लिखित है। इस पाठ में लेखक ने मालवा और उसके आसपास की सभ्यता और संस्कृति का हृद्यस्पर्शी चित्रण किया है। किसी समय मालवा धन-धान्य से पूर्ण हुआ करता था। वहाँ चहुँओर लहराती फसलें, जल से भरे ताल-तलैया, नदी-नाले इसकी समृद्धि की कहानी कहते प्रतीत होते थे, परंतु बढ़ते शहरीकरण और औद्योगीकरण के कुप्रभाब से मालवा में अब वर्षा कम होने लगी है। सदानीरा और कलकल बहती नदियाँ अब औद्योगिक अपशिष्ट और गंदा पानी ढोने का साधन मात्र रह गई हैं।
यहाँ का पर्यावरण अब प्रदूषण का शिकार हो रहा है। वातावरण में विषाक्त गैसे बढ़ रही हैं, जो जीवन के लिए खतरा बनने लगी हैं। यह सभ्यता, अपसभ्यता में बद्ल चुकी है। इस प्रकार इस पाठ का उद्देश्य मालवा प्रदेश की प्राचीन संस्कृति और सभ्यता के साथ नदियों और पर्यावरण में बढ़ते प्रदूषण के प्रति जन जागरूकता फैलाना है, जिससे पर्यावरण को प्रदूधित होने से बचाया जा सके।
प्रश्न 5.
‘अपना मालवा’ पाठ का कथ्य स्पष्ट कीजिए।
उत्तर :
अपना मालवा ‘पाठ में लेखक ने मालवा की मिट्टी, वर्षा, नदियों की स्थिति, उद्गम एवं विस्तार तथा वहों के जनजीवन एवं संस्कृति को चित्रित किया है। पहले के मालवा, ‘मालवा धरती गहन गंभीर, डग-डग रोटी, पग-पग नीर’ और अब के मालवा ‘नदी नाले सूख गए, पग-पग नीर वाला मालवा सूखा हो गया’ से तुलना की है। जो मालवा अपनी सुख, समृद्धि एवं संपन्नता के लिए विख्यात था वही अब खाऊ-उजाडू सभ्यता में फँसकर उलझ गया है।
यह खाऊ-उजाड़ सभ्यता यूरोप और अमेरिका की देन है, जिसके कारण विकास और औद्योगिक सभ्यता उजाड़ की अपसभ्यता बन गई है। इससे पूरी दुनिया प्रभावित हुई है, पर्यावरण बिगड़ा है। अमेरिका की खाक-उजाड़ जीवन-पद्धति ने दुनिया को इतना प्रभावित किया है कि हम अपनी जीवन-पद्धति, संस्कृति, सभ्यता और अपनी धरती को उजाड़ने में लगे हुए हैं। इस बहाने लेखक ने खाऊ-उजाड़ जीवन-पद्धति के द्वारा पर्यावरणीय विनास की पूरी तस्वीर खींची है, जिससे मालवा भी नहीं बच सका है।
प्रश्न 6.
‘अपना मालवा’ पाठ वर्तमान में कितना प्रासंगिक है? स्पष्ट कीजिए।
अथवा
‘अपना मालवा : खाऊ-उजाडू सभ्यता में’ पाठ की प्रासंगिकता स्पष्ट कीजिए।
उत्तर :
‘अपना मालवा …’ पाठ में मालवा प्रदेश की उपजाऊ मिट्टी, वहाँ होने वाली भरपूर वर्षा, सदानीरा और कल-कल कर बहती नदियों की शोभाशाली स्थिति, उनका उद्गम एवं विस्तार, वहाँ के जनजीवन एवं संस्कृति का सुंदर चित्रण करते हुए उसकी समृद्धि को दर्शाया गया है। वर्तमान में बदलते जलवायु-चक्र एवं बढ़ते प्रदूषण के कारण वहाँ नदी-नाले सूख गए हैं। औद्योगिक सभ्यता उजाड़ की अपसभ्यता बन चुकी है।
वर्तमान में इस पाठ की प्रासंगिकता और भी बढ़ जाती है, क्योंकि यह समस्या केवल मालवा की न होकर देश की सीमा लाँघकर वैशिवक बन चुकी है। पाठ में पर्यावरणीय सरोकारों को जोड़कर आम लोगों में पर्यावरण के प्रति चेतना एवं जागृति उत्पन्न करने का सफल प्रयास किया गया है। इससे लोगों में यह समझ विकसित होगी कि वे अपनी जीवन-पद्धति, संस्कृति, सभ्यता और उजड़ती धरती को बचाने का यथोचित प्रयास करें।
प्रश्न 7.
‘अपना मालवा : खाऊ-उजाड़ सभ्यता में, लेखक को मालवा में पानी की कमी, अतिवृष्टि आदि का क्या कारण दिखाई देता है? उसे क्यों लगता है कि मालवा के पर्यावरण पर भी इस आधुनिक अपसभ्यता का प्रभाव है?
उत्तर :
लेखक को मालवा में पानी की कमी, अतिवृष्टि आदि के निम्नलिखित कारण दिखाई देते हैं –
(i) भारतीय जीवन-पद्धति को भुलाना।
(ii) पश्चिम अंधाधुंध नकल।
(iii) जल संसाधन का अत्यधिक दोहन
(iv) पठार में विद्यमान पुराने कुएँ, तालाबों, बावड़ियों को भरवाना तथा पानी रोकने तथा भू-जल के पुनर्भरण के लिए नए कुएँ, तालाब, बावड़ियाँ न खुद्वाना।
(v) वायुमंडल में कार्बन डाइऑक्साइड जैसी गैसों की मात्रा का बढ़ना।
(vi) पेड़ों को अंधाधुंध काटना। लेखक के अनुसार मालवा के पर्यावरण पर भी इस आधुनिक अपसभ्यता का प्रभाव है, क्योंकि वहाँ भी कम बारिश होने पर पानी की दिक्कत होने लगी है, गरमियों में अत्यधिक गरमी पड़ने लगी है, वहाँ की नदियों में केवल चार महीने ही पानी की मात्रा अधिक होती है, जबकि अन्य महीनों में वे बस्तियों के नाले का पानी ढोती हैं, हर जगह गंदगी तथा प्रदूषण का साम्राज्य है, भूमि का जल-स्तर दिनानुदिन गिरता जा रहा है। ये आधुनिक अपसभ्यता के कुछ प्रमुख दुष्परिणाम हैं।
प्रश्न 8.
विश्व में विकास के नाम पर औद्योगीकरण को खूब बढ़ावा दिया जा रहा है, पर ऐसा विकास परोक्ष रूप में अनेक समस्याएँ भी पैदा कर रहा है। इससे आप कितना सहमत हैं? अपने पर्यावरण को बचाए रखने के लिए आप किस तरह सहयोग दे सकते हैं?
उत्तर :
मनुष्य ने ज्यों-ज्यों विकास के पथ पर कदम बढ़ाया, त्यों-त्यों उसकी आवश्यकताएँ और आकाक्षाएँ बढ़ती गई। इन आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए औद्योगीकरण का मार्ग अपनाया। इनकी स्थापना के लिए वनों की अंधाधुंध कटाई की गई। इसके अलावा इन इकाइयों से निकलने वाले धुएँ से पर्यावरण प्रदूषित हुआ। औद्योगिक इकाइयों से निकलने वाला रसायन मिला जल नदियों तथा जलस्रोतों को प्रदूषित कर रहा है, जो हमारे पर्यावरण को गंभीर क्षति पहुँचा रहे हैं। इस प्रकार ऐसा विकास परोक्ष रूप में अनेक समस्याएँ पैदा कर रहा है। पर्यावरण को असंतुलन से बचाए रखने के लिए हम अनेक रूपों में सहयोग दे सकते हैं, जैसे –
- पेड़ों की अंधाधुंध कटाई बंद करके उन्हें और कम न होने दिया जाए।
- खाली जगह में अधिकाधिक नए पेड़-पौधे लगाएँ जाएँ।
- औद्योगीकरण के समय पर्यावरण का ध्यान रखा जाए।
- कल-कारखानों की चिमनियों को ऊँचा बनाया जाए, ताकि उनका धुआँ ऊपर चला जाए।
- प्रदूषित जल को बिना शोधित किए जल-स्रोतों में न मिलने दिया जाए।
- हमें अपने आस-पास सफाई रखनी चाहिए।
- सार्वजानिक वाहनों का यथासंभव अधिकाधिक उपयोग करें।
- कीटनाशकों तथा रासायनिक उर्वरकों के प्रयोग में कमी लाएँ।
प्रश्न 9.
मालवा क्षेत्र में बहने वाली सदानीरा नदियाँ आज गंदे पानी की वाहिका बनकर रह गई हैं। उनकी इस दुर्दशा का कारण क्या है? नदियों को उनके मौलिक रूप में लाने के लिए आप क्या करना चाहेंगे?
उत्तर :
किसी समय मालवा में बहने वाली नदियाँ सदा जल से भरी रहती थीं। उन्हें पार करने के लिए हाथी की सवारी का सहारा लेना पड़ता था। इन नदियों को सदानीरा कहा जाता था। इसी क्षेत्र में चंद्रभागा पुल के नीचे पर्याप्त पानी रहता था। इंदौर क्षेत्र की खुशहाली और समृद्धि का कारण वहाँ बहने वाली नदियाँ ही थीं। बढ़ती सभ्यता, औद्योगीकरण, बढ़ती जनसंख्या और मनुष्य के स्वार्थपूर्ण कार्यों के कारण अब इन नदियों में जलस्तर इतना कम हो गया है कि वे सिर्फ़ बरसात में बहती हैं।
बाकी महीनों में ये शहरों के नालों के गंदे पानी को ढोने वाली (वाहिका) मात्र रह गई हैं। चंबल, शिप्रा, पार्वती, काली सिंध आदि नदियों की दुर्दशा एक-सी होकर रह गई है। इसके अलावा नदियों पर बाँध बनाना, औद्योगीकरण, कूड़ा-करकट आदि इन नदियों का स्वरूप बिगाड़ने में लगे हैं, तो मनुष्य की धार्मिक आस्था भी इसके लिए भरपूर ज़िम्मेदार है। अंतिम संस्कार करना, अवशिष्ट राख एवं अस्थियाँ, अधजली लकड़ियाँ एवं माला-फूल फेंकना जैसी क्रियाएँ, इन्हें नाले में बदलती जा रही हैं।
नदियों को साफ-सुथरा तथा इनके मौलिक रूप को बनाए रखने के लिए मैं निम्नलिखित प्रयास करना चाहूँगा-
- नदियों में भरपूर मात्रा में जल बना रहे, इसके लिए खूब वृक्षारोपण के लिए जनजागरूकता फैलाऊँगा।
- नदियों की साफ-सफाई के लिए लोगों से सहयोग करने का अनुरोध करुँगा।
- धार्मिक अनुष्ठानों के अपशिष्ट पदार्थ नदियों में न फेंकने का आह्वान करुँगा।
- नदियों के पास मल-मूत्र न त्यागने, जानवरों को नहलाने जैसे कार्य न करने के लिए लोगों को जागरूक करूँगा।
- औद्योगीकरण से नदियों को क्षति न पहुँचे, इसका विशेष ध्यान रखने के लिए कहूँगा।
प्रश्न 10.
आज विकास का फायदा थोड़े से देश उठा रहे हैं, पर उस विकास के दुष्प्रभाव की मार सारा विश्व झेल रहा है। विकसित देश ऐसा मानने को तैयार भी नहीं हैं। इससे आप कितना सहमत हैं? वैश्विक वातावरण में बढ़ते तापमान को रोकने के लिए कुछ उपाय सुझाइए।
उत्तर :
यह कटु सत्य है कि अमेरिका और यूरोप के कुछ देशों ने शेष दुनिया की तुलना में खूब विकास किया है। विकास के इस लक्ष्य के लिए उन्होंने औद्योगीकरण का सहारा लिया। इन देशों ने औद्योगीकरण को खूब बढ़ावा दिया, जिससे कार्बन डाइआक्साइड गैस का भरपूर उत्सर्जन हुआ। कार्बन डाइआक्साइड का असर वैश्विक वातावरण पर बढ़ा। इससे तापमान में औसतन 3 डिग्री सेल्सियस की वृद्धि देखी गई।
इससे पर्यावरण असंतुलन बढ़ा। विकसित देश इसे अपनी गलती मानने को न तैयार हैं और न इस दिशा में ठोस कदम उठाने के लिए पहल कर रहें हैं। इस दुष्प्रभाव को झेलने के लिए सारा विश्व विवश है। बढ़ते वैश्विक तापमान के कारण ही अब लद्दाख जैसे स्थानों पर बर्फबारी बंद हो गई है। इसके आवा जलवायु-परिवर्तन की समस्या भी उत्पन्न हुई है, जिससे असमय वृष्टि और अल्पवृष्टि से फसलों पर बहुत बुरा प्रभाव पड़ा है। वैश्विक तापमान में हुई वृद्धि रोकने के लिए मैं निम्नलिखित उपाय सुझाना चाहूँगा –
- व्यक्तिगत वाहनों के स्थान पर सार्वजानिक वाहनों का यथासंभव अधिकाधिक प्रयोग किया जाए, ताकि कम-से-कम धुएँ का उत्सर्जन हो और तापमान में वृद्धि रुके।
- पर्यावरण को क्षति पहुँचाने वाले उद्योगों की संख्या में कमी करना चाहिए तथा इनकी चिमनियों को बहुत ऊँचा बना देना चाहिए।
- अधिकाधिक पेड़-पौधे लगाने चाहिए।
- मनुष्य को अपनी आदतें और जीवन-शैली में बदलाव लाना चाहिए।
- हमें प्रकृति के निकट आकर उसके संरक्षण पर ध्यान देना चाहिए।
प्रश्न 11.
‘पग-पग पर नीर’ वाला मालवा नीर विहीन कैसे हो गया? पर्यावरण और मनुष्य के संबंधों पर प्रकाश डालिए।
उत्तर :
‘पग-पग पर नीर’ वाला मालवा किसी समय जल से परिपूर्ण रहता था। तब मालवा के नदी-नाले उफनते थे और ताल-तलैया, कुएँ-बावड़ी जल से आप्लावित हो जाते थे। बहते नदी-नाले, लहराती हरी-भरी फसलें यहाँ के जीवन को समृद्ध बनाती थीं, परंतु कालांतर में विकास के लिए बढ़ते औद्योगीकरण ने पर्यावरण को अपूर्ण क्षति पहुँचाई है। इसके अलावा वातावरण को गर्म करने वाली गैसों ने वैश्विक तापमान को तीन डिग्री सेल्सियस तक बढ़ा दिया है, जिसकी मार से मालवा भी नहीं बचा। इससे वहाँ धीरे-धीरे वर्षा की मात्रा कम होती गई और मालवा नीरविहीन हो गया।
पर्यावरण और मनुष्य का अत्यंत घनिष्ठ संबंध है। मनुष्य को अपना पर्यावरण साफ और संतुलित बनाए रखने का प्रयास करना चाहिए, अन्यथा पृथ्वी से जीवन लुप्त हो जाएगा।