In this post, we have given Class 12 Hindi Antra Chapter 5 Summary – Ek Kam, Satya Summary Vyakhya. This Hindi Antra Class 12 Summary is necessary for all those students who are in are studying class 12 Hindi subject.
एक कम Summary – सत्य Summary – Class 12 Hindi Antra Chapter 5 Summary
एक कम, सत्य – विष्णु खरे – कवि परिचय
प्रश्न :
विष्णु खरे के जीवन का परिचय देते हुए उनके साहित्यिक जीवन एवं रचनाओं का उल्लेख कीजिए।
उत्तर :
जीवन परिचय-विष्णु खरे का जन्म छिंदवाड़ा, मध्य प्रदेश में सन् 1940 में हुआ। क्रिश्चियन कॉलेज, इंदौर से 1963 में उन्होंने अंग्रेज़ी साहित्य में एम०ए० किया। सन् 1962-63 में दैनिक ‘इंदौर समाचार’ में उपसंपादक रहे। सन् 1963-75 तक मध्य प्रदेश तथा दिल्ली के महाविद्यालयों में अध्यापन से भी जुड़े। इसी बीच सन् 1966-67 में लघु-पत्रिका ‘व्यास’ का संपादन किया।
तत्पश्चात् सन् 1976-84 तक साहित्य अकादमी में उपसचिव (कार्यक्रम) पद पर पदासीन रहे। सन् 1985 से ‘नवभारत टाइम्स’ में प्रभारी कार्यकारी संपादक के पद पर कार्य किया। बीच में लखनऊ संस्करण तथा रविवारीय ‘नवभारत टाइम्स’ (हिंदी) और अंग्रेज़ी टाइम्स ऑफ़ इंडिया में भी संपादन कार्य से जुड़े रहे। सन् 1993 में जयपुर ‘ नवभारत टाइम्स ‘ के संपादक के रूप में भी कार्य किया। इसके बाद जवाहरलाल नेहरू स्मारक संग्रहालय तथा पुस्तकालय में दो वर्ष वरिष्ठ अध्येता रहे। अब स्वतंत्र लेखन तथा अनुवाद कार्य में रत हैं।
उन्होंने विदेशी कविताओं का हिंदी तथा हिंदी-अंग्रेज़ी अनुवाद अत्यधिक किया है। उनको फिनलेंड के राष्ट्रीय सम्मान नाइट ऑफ़ दि आर्डर ऑफ़ दि क्हाइट रोज़ से सम्मानित किया गया। इसके अतिरिक्त रघुवीर सहाय सम्मान, शिखर सम्मान, हिंदी अकादमी दिल्ली का साहित्यकार सम्मान, मैथिलीशरण गुप्त सम्मान मिल चुका है। उनकी कविताओं में भाषा के माध्यम से अभ्यस्त जड़ताओं और अमानवीय स्थितियों के विरूद्ध सशक्त नैतिक स्वर को अभिव्यक्ति दी गई है।
रचनाएँ – साहित्यकार विष्णु खरे की रचनाओं का प्रकाशन सन् 1956 से आरंभ हुआ। उनकी रचनाएँ निम्नलिखित हैंकाव्य-संग्रह – एक ग़ैर-रूमानी समय में, खुद अपनी आँख से, सबकी आवाज़ के पर्दे में, पिछला बाकी, काल और अवधि के दरमियान।
अनुवाद – मरु प्रदेश और अन्य कविताएँ (टी०एस० इलियट का अनुवाद)
आलोचना – आलोचना की पहली किताब।
काव्यगत विशेषताएँ – कवि ने पौराणिक आख्यानों का अधिक आश्रय लिया है। इन्होंने खड़ी बोली को अभिव्यक्ति का माध्यम बनाया है। भाषा बेहद सरल है। मुक्तछंद है। उन्होंने तत्सम, तद्भव तथा विदेशी शब्दों का भी प्रयोग किया है। कहीं-कहीं मुहावरों का सटीक प्रयोग है; जैसे-हाथ फैलाना, सिर झुकाना आदि। कवि ने व्यंजना शक्ति का प्रयोग किया है; जैसे’ –
1947 के बाद से
इतने लोगों को इतने तरीकों से
आत्मनिर्भर मालामाल और गतिशील होते देखा है।’
Ek Kam Class 12 Hindi Summary
इस कविता के माध्यम से कवि ने स्वांत्योत्तर भारतीय समाज में प्रचलित हो रही जीवन-शैली को रेखांकित किया है। आज़ादी हासिल करने के बाद सब कुछ वैसा ही नहीं रहा, जिसकी आज़ादी के सेनानियों ने कल्पना की थी। पूरे देश का या कहें आस्थावान, ईमानदार और संवेदनशील जनता का मोहभंग हुआ। यह कहना ज्यादा बेहतर है कि पहले हम दूसरे देश के लोगों के द्वारा छले जा रहे थे और आज़ादी के बाद अपने ही लोगों द्वारा छले जाने लगे। परिणाम यह हुआ कि आपसी विश्वास, परस्पर भाईचारा और सामूहिकता का स्थान धोखाधड़ी, आपसी खींचतान ने ले लिया और नितांत स्वार्थपरकता का माहौल बनता चला गया।
स्थिति बद से बदतर होती गई। पूरे देश का या कहें आस्थावान, ईमानदार और संवेदनशील जनता का मोहभंग हुआ और यह पतनोन्मुख यात्रा अभी भी जारी है। हालात ऐसे हैं कि जो ईमानदार है वह एक चाय या दो रोटी के लिए भी समर्थ नहीं है और दूसरों के आगे हाथ फैलाने को विवश है। इसका दूसरा पक्ष यह है कि आज आत्मनिर्भर, मालामाल और गतिशील समाज की संकल्पना में धोखेबाज़ी और निर्लज्जता आ जुड़े हैं। ऐसे समाज में ईमानदार लोगों की भूमिका नगण्य हो गई है। कवि इस माहौल में स्वयं को असमर्थ पाते हुए भी ईमानदारों के प्रति अपनी सहानुभूति स्पष्ट रूप से रखता है तथा कुछ न करने की स्थिति में होने के बावजूद स्वयं को ऐसे लोगों के जीवन-संघर्ष में बाधक नहीं बनाना चाहता। इसलिए वह कम-से-कम एक व्यवधान तो कम कर ही सकता है जो कि वह करता है, वही कविता का संदेश भी है।
Satya Class 12 Hindi Summary
इस कविता में कवि ने ‘महाभारत’ के पौराणिक संदर्भों और पात्रों के द्वारा जीवन में सत्य की महत्ता को स्पष्ट करना चाहा है। अतीत की कथा का आधार लेकर अपनी बात प्रभावशाली ढंग से कही जा सकती है, यह कविता इसका प्रमाण है। युधिष्ठिर, विदुर और खांडवप्रस्थ-इंद्रप्थस्थ के द्वारा सत्य को, सत्य की महत्ता को ऐतिहासिक परिप्रेक्य के साथ प्रस्तुत करना ही यहाँ कवि का अभीष्ट है। जिस समय और समाज में कवि जी रहा है, उसमें सत्य की पहचान और उसकी पकड़ कितनी मुश्किल होती जा रही है, यह कविता उसका प्रमाण है।
सत्य कभी दिखता है और कभी ओझल हो जाता है। आज सत्य का कोई एक स्थिर रूप, आकार या पहचान नहीं है जो उसे स्थायी बना सके। सत्य के प्रति संशय का विस्तार होने के बावजूद वह हमारी आत्मा की आंतरिक शक्ति है-यह भी इस कविता का संदेश है। उसका रूप वस्तुस्थिति, घटनाओं और पात्रों के अनुसार बदलता रहा है। जो एक व्यक्ति के लिए सत्य है वही शायद दूसरे के लिए सत्य नहीं है। बदलते हालात और मानवीय संबंधों में हो रहे निरंतर परिवर्तनों से सत्य की पहचान और उसकी पकड़ मुश्किल होते जाने के सामाजिक यथार्थ को कवि ने जिस तरह ऐतिहासिक, पौराणिक घटनाक्रम के द्वारा प्रस्तुत करने का प्रयास किया है, वह प्रशंसनीय है।
एक कम सप्रसंग व्याख्या
1. 1947 के बाद से
इतने लोगों को इतने तरीकों से
आत्मनिर्भर मालामाल और गतिशील होते देखा है
कि अब जब आगे कोई हाथ फैलाता है
पच्चीस पैसे एक चाय या दो रोटी के लिए
तो जान लेता हूँ
मेरे सामने एक ईमानदार आदमी, औरत या बच्चा खड़ा है
मानता हुआ कि हाँ में लाचार हूँ कंगाल या कोढ़ी
या मैं भला चंगा हूँ और कामचोर और
एक मामूली धोखेबाज़
शब्दार्थ :
- आत्मनिर्भर – स्वयं पर आश्रित (self-dependent)।
- मालामाल – धनवान (wealthy)।
- हाथ फैलाना – माँगना (to supplicate)।
- कंगाल – गरीब, दरिद्र (poor)।
- चंगा – स्वस्थ (healthy)।
प्रसंग – प्रस्तुत काव्यांश हमारी पाठ्यपुस्तक ‘अंतरा भाग 2′ में संकलित कविता’ एक कम’ से उद्धृत है । इसके रचयिता श्री विष्णु खरे हैं। इस कविता में कवि ने स्वातंत्योत्तर भारतीय समाज में प्रचलित हो रही जीवन-शैली को रेखांकित करते हुए बताया है कि आज ईमानदार लोगों की स्थिति खराब हो रही है।
व्याख्या – कवि बताता है कि आज़ादी के बाद लोगों के जीने के तरीकों में बदलाव आ गया है। कवि ने बहुत सारे लोगों को कई तरीकों से आत्मनिर्भर, मालामाल तथा गतिशील होते देखा है। कहने का तात्पर्य है कि आज़ादी के बाद अमीर तथा प्रभावशाली बनने के लिए छल-कपट, शोषण, लूट, बेईमानी जैसे अनेक तरीके अपनाए गए हैं। वह आगे बताता है कि उसके सामने पच्चीस पैसे, एक चाय या दो रोटी के लिए जब भी कोई व्यक्ति हाथ फैलाता है तो वह एकदम जान जाता है कि उसके सामने एक ईमानदार आदमी, औरत या बच्चा खड़ा है।
दूसरे शब्दों में, ईमानदार को जीवन-निर्वाह के लिए भीख माँगने पर विवश होना पड़ रहा है। कवि स्वयं को लाचार मानता है। वह स्वयं को कंगाल या कोढ़ी मानता है, क्योंकि वह उनकी सहायता नहीं कर सकता। वह स्वयं को कामचोर तथा मामूली धोखेबाज़ मानता है जो उन लोगों (ईमानदारों) में शामिल न हो सका, चाहे वह स्वस्थ ही क्यों न हों। कवि का मानना है कि ईमानदार और परिश्रमी लोगों को शोषकों और धोखेबाज़ों का कोपभाजन बनना पड़ता है, क्योंकि ईमानदार और श्रमजीवी उनके राह में बाधा बनते हैं।
विशेष :
- कवि ने आज़ादी के बाद के जीवन की दशा का यथार्थपरक चित्रण किया है।
- ‘हाथ फैलाना’ मुहावरे का सशक्त प्रयोग है।
- साहित्यिक खड़ी बोली है।
- मुक्तछंद है।
काव्य-सौंदर्य संबंधी प्रश्नोत्तर –
प्रश्न :
उपर्युक्त काव्यांश का काव्य-सौंदर्य स्पष्ट कीजिए।
उत्तर :
भाव-सौंदर्य :
- कवि ने समाज के कुछ लोगों द्वारा अनैतिक साधनों के सहारे उन्नति करने, गिरते मानवीय एवं नैतिक मूल्यों पर चिंता प्रकट की है।
- कवि द्वारा समाज के ईमानदार एवं श्रमजीवी वर्ग के साथ सहानुभूति रखने एवं शोषितों के प्रति व्यंग्य-भाव प्रकट हुआ है।
शिल्प-सौंदर्य :
- भाषा सरल, सहज व्यावहारिक तथा भावपूर्ण है।
- ‘पच्चीस पैसे’, ‘कंगाल या कोढ़ी’ में अनुप्रास अलंकार है।
- काव्यांश व्यंग्यात्मक शैली में है।
- ‘हाथ फैलाना’ मुहावरे का सुंदर प्रयोग है।
- काव्यांश अतुकांत एवं छंदमुक्त है।
- दृश्य बिंब साकार हो उठा है।
शब्दार्थ :
- आश्रित – किसी के सहारे (dependent)।
- निर्लच्ज – लज्जा रहित, बेशर्म (shameless)।
- निराकांक्षी – इच्छा रहित, जिसे किसी चीज़ की इच्छा न हो (a desireless person)।
- प्रतिद्वंद्वी – विपक्षी, शत्रु, विरोधी (a rival)।
- निश्चिंच – चिंतारहित, बेफ़िक्र (carefree)।
प्रसंग – प्रस्तुत काव्यांश हमारी पाठ्यपुस्तक ‘अंतरा भाग 2’ में संकलित कविता ‘एक कम’ से उद्धत है। इसके रचयिता विष्णु खरे हैं। इस कविता में कवि ने स्वातंत्रोत्तर भारतीय समाज में प्रचलित हो रही जीवन-शैली को रेखांकित किया है। आज ईमानदार लोगों की स्थिति खराब हो रही है।
व्याख्या – कवि अपने बोरे में बताता है कि वह ईमानदारों के लिए कुछ नहीं कर सकता। वह उनके संकोच, लज्जा, परेशानी या गुस्से पर आश्रित है। वह उनके सामने निर्लज्ज, नंगा तथा निराकांक्षी है, क्योंकि वह ईमानदार और गरीबों की मदद नहीं कर पा रहा है। अब कवि ने नैतिक एवं मानवीय मूल्यों से रहित लोगों के रास्ते से स्वयं को हटा लिया है। वह ऐसे लोगों से प्रतिस्पर्धा नहीं करना चाहता है। वह ऐसे लोगों का साथ देकर उनके अमानवीय एवं अनैतिक कार्यों में साझीदार नहीं बनना चाहता है। ऐसे लोग कवि को कुछ दें या न दें, किंतु ऐसे लोगों के लिए कवि बाधक नहीं बनेगा और ये लोग कवि की तरफ से निश्चित रह सकते हैं।
विशेष :
- कवि का आत्मचिंतन और ईमानदारों के प्रति सहानुभूति प्रकट हुई है।
- खड़ी बोली में सहज अभिव्यक्ति है।
- अनुप्रास अलंकार है।
- मिश्रित शब्दावली है।
काव्य-सौंबर्य संबंधी प्रश्नोत्तर
प्रश्न :
उपर्युक्त काव्यांश का काव्य-सौंदर्य स्पष्ट कीजिए।
उत्तर :
भाव-सौंदर्य :
- समाज में व्याप्त अनैतिकता एवं मूल्यों की गिरावट पर कबि के चिंतित होने का भाव प्रकट हुआ है।
- कवि की विवशता का भाव प्रकट हुआ है। वह चाहकर भी गरीब और ईमानदारों की मदद नहीं कर पाता है।
शिल्प-सौंदर्य :
- काव्यांश की भाषा सरल, सहल एवं प्रवाहमयी है।
- ‘नंगा, निर्लज्ज और निराकांक्षी’, ‘हटा लिया है हर होड़ से’, ‘कम से कम एक’ में अनुप्रास अलंकार है।
- काव्यांश अतुकांत छंदमुक्त रचना है।
- भाषा गद्य जैसी है।
सत्य सप्रसंग व्याख्या
1. जब हम सत्य को पुकारते हैं
तो वह हमसे परे हटता जाता है
जैसे गुहारते हुए युधिष्ठिर के सामने से
भागे थे विदुर और भी घने जंगलों में
सत्य शायद जानना चाहता है
कि उसके पीछे हम कितनी दूर तक भटक सकते हैं।
शब्दार्थ :
गुहारते हुए – गुहार लगाते हुए, मदद माँगते हुए (calling aloud)।
प्रसंग – प्रस्तुत काव्यांश हमारी पाठ्यपुस्तक ‘अंतरा भाग 2’ में संकलित ‘सत्य’ नामक कविता से उद्धृत है। इसके रचयिता विष्णु खरे हैं। इस कविता में कवि ने महाभारत के पौराणिक संदर्भों तथा पात्रों के द्वारा जीवन में सत्य की महत्ता को स्पष्ट किया है।
व्याख्या – कवि कहता है कि आज हम जब सत्य को पुकारते हैं तो वह हमसे पीछे हट जाता है। यह वैसी ही स्थिति है जैसी महाभारत के समय थी।पांडवों को खांडवप्रस्थ का राज्य मिलने पर अपने साथ हुए अन्याय को बताने के लिए वे विदुर को पुकार रहे थे पर विदुर सच्चाई का सामना न कर पाने के लिए घने जंगल में भागे जा रहे थे। सत्य का साथ न दे पाने के कारण विदुर का मन उन्हें कचोट रहा था। कवि कहना चाहता है कि सत्य शायद जानना चाहता है कि उसके पीछे हम कितनी दूर तक भटक सकते हैं।
विशेष :
- सत्य को महाभारत की कथा के माध्यम से बताया है।
- उदाहरण-शैली है।
- खड़ी बोली में सहज अभिव्यक्ति है।
- मिश्रित शब्दावली है।
काव्य-सौंदर्य संबंधी प्रश्नोत्तर –
प्रश्न :
उपर्युक्त काव्यांश का काव्य-सौंदर्य स्पष्ट कीजिए।
उत्तर :
भाव-साँदर्य :
- समय की महत्ता बताने के लिए पौराणिक कथा को आधार बनाया गया है।
- सच्चे लोग अन्याय का विरोध न कर पाने पर उससे मुँह छिपाते फिरते हैं।
शिल्प-सौंदर्य :
- भाषा सरल, सहज, भावानुकूल एवं प्रवाहमयी है।
- काव्यांश तुकांत रहित, छंदमुक्त रचना है।
- विदुर के पीछे गुहारते युधिष्ठिर का दृश्य बिंब साकार हो उठा है।
- ‘जैसे गुहारते हुए’ में उदाहरण या दृष्टांत अलंकार है।
2. कभी दिखता है सत्य
और कभी ओझल हो जाता है
और हम कहते रह जाते हैं कि रुको यह हम हैं
जैसे धर्मराज के बार-बार दहाई देने पर
कि ठहरिए स्वामी विदुर
यह मैं हूँ आपका सेवक कुंतीनंदन युधिष्ठिर
वे नहीं ठिठकते
शब्दार्थ :
- ओझल – गायब, विलुप्त (disappeared)।
- धर्मराज – युधिष्ठिर (yudhishthir)।
- कुंतीनंदन – कुंती पुत्र अर्थात् युधिष्ठिर (son of kunti)।
प्रसंग – प्रस्तुत काव्यांश हमारी पाठ्यपुस्तक ‘अंतरा भाग 2’ में संकलित ‘सत्य’ नामक कविता से उद्धृत है। इसके रचयिता विष्णु खरे हैं। इस कविता में कवि ने महाभारत के पौराणिक संदर्भों तथा पात्रों के द्वारा जीवन में सत्य की महत्ता को स्पष्ट किया है। इस अंश में कवि ने युधिष्ठिर द्वारा अपना परिचय देने के बाद भी विदुर का सत्य से पलायन-प्रवृत्ति का वर्णन किया है।
व्याख्या – कवि बताता है कि आज का वातावरण खराब हो गया है। आज सत्य कभी दिखाई देता है तो कभी ओझल हो जाता है। आम जनता उसे रोकने का प्रयास करती है, परंतु वह नहीं रुकता। महाभारत में युधिष्ठिर बार-बार दुहाई देते हैं तथा सत्य ज्ञान पाने के लिए स्वामी विदुर को रुकने के लिए कहते हैं। वे अपना परिचय भी देते हैं कि वह कुंती का पुत्र युधिष्ठिर है। इसके बावजूद विदुर नहीं रुकते और घने जंगलों में चले जाते हैं।
विशेष :
- सत्य की असमंजस की स्थिति को बताया गया है।
- संवाद-शैली के कारण रोचकता बढ़ी है।
- मुक्तछंद होते हुए भी प्रवाह है।
- साहित्यिक खड़ी बोली है।
काव्य-सौंदर्य संबंधी प्रश्नोत्तर –
प्रश्न :
उपर्युक्त काव्यांश का काव्य-सौंदर्य स्पष्ट कीजिए।
उत्तर :
भाव-सौंदर्य :
- विदुर की सत्य से पलायन करने की प्रवृत्ति का भाव प्रकट हुआ है।
- सत्ता की महत्ता बताने के लिए पौराणिक ग्रंथ महाभारत का प्रमाण दिया गया है।
शिल्प-सौंदर्य :
- खड़ी साहित्यिक बोली में मिश्रित शब्दावली है।
- ‘दुहाई देने’ में अनुप्रास तथा ‘बार-बार’ में पुनरुक्ति प्रकाश अलंकार है।
- दृश्य बिंब साकार हो उठा है।
- ‘दुहाई देना’ मुहावरे का सार्थक प्रयोग है।
- काव्यांश रचना अतुकांत छंदमुक्त है।
3. यदि हम किसी तरह युधिष्ठिर जैसा संकल्प पा जाते हैं
तो एक दिन पता नहीं क्या सोचकर रुक ही जाता है सत्य
लेकिन पलटकर सिर्फ खड़ा ही रहता है वह दृढ़निश्चयी
अपनी कहीं और देखती दृष्टि से हमारी आँखों में देखता हुआ
अंतिम बार देखता-सा लगता है वह हमें
और उसमें से उसी का हलका-सा प्रकाश जैसा आकार
समा जाता है हममें
शब्दार्थ :
- संकल्प – दृढ़निश्चय (resolve)।
- दृढ़निश्चयी – पक्का इरादा रखने वाला (a person with firm determination)।
प्रसंग – प्रस्तुत काव्यांश हमारी पाठ्यपुस्तक ‘अंतरा भाग 2’ में संकलित ‘सत्य’ नामक कविता से उद्धृत है। इसके रचयिता विष्णु खरे हैं। इस कविता में कवि ने महाभारत के पौराणिक संदर्भों तथा पात्रों के द्वारा जीवन में सत्य की महत्ता को स्पष्ट किया है। कवि कहना चाहता है कि सत्य के प्रति संशय का विस्तार होने के बावजूद यह हमारी आत्मा की आंतरिक शक्ति है।
व्याख्या – कवि युधिष्ठिर को महान संकल्पवाला बताता है। वह कहता है कि यदि हम किसी तरीके से युधिष्ठिर जैसा संकल्प पा जाते तो एक-न-एक दिन सत्य रुक ही जाता। यदि वह नहीं रुकता तो भी दृढ़निश्चयवाला व्यक्ति खड़ा तो रहता ही है। वह कहीं और देखता है तथा साथ ही हमारी आँखों में भी झाँकता है। ऐसा लगता है मानो वह अंतिम बार हमें देख रहा है। उसमें से सत्य की निष्ठा के कारण हल्का-सा प्रकाश निकलता है और हममें समा जाता है।
विशेष :
- सत्य की महत्ता का वर्णन है।
- खड़ी बोली में सहज अभिव्यक्ति है।
- विचार प्रधान कविता है।
- ‘युधिष्ठिर जैसा’, ‘देखता-सा’, ‘हल्का-सा प्रकाश’ में उपमा अलंकार है।
काव्य-सौंदर्य संबंधी प्रश्नोत्तर –
प्रश्न :
उपर्युक्त काव्यांश का काव्य-सौंदर्य स्पष्ट कीजिए।
उत्तर :
भाव-सौंदर्य :
- सत्यनिष्ठ व्यक्ति सत्य का साथ नहीं छोड़ता-यह भाव प्रकट हुआ है।
- सत्य की महत्ता का प्रतिपादन हुआ है।
शिल्प-सौंदर्य :
- काव्यांश की भाषा सरल, सहज, मिश्रित शब्दावलीयुक्त, प्रभावपूर्ण और भावाभिव्यक्ति में समर्थ है।
- ‘युधिष्ठिर जैसा’, ‘देखता-सा’ में उपमा अलंकार है।
- दृष्टांत या उदाहरण शैली का प्रयोग है।
- काव्यांश अतुकांत एवं मुक्तछंद रचना है।
4. जैसे शमी वृक्ष के तने से टिककर
न पहचानने में पहचानते हुए विदुर ने धर्मराज को
निर्निमेष देखा था अंतिम बार
और उनमें से उनका आलोक धीरे-धीरे आगे बढ़कर
मिल गया था युधिष्ठिर में
सिर झुकाए निराश लौटते हैं हम
कि सत्य अंत तक हमसे कुछ नहीं बोला
हाँ हमने उसके आकार से निकलता वह प्रकाश-पुंज देखा था
हम तक आता हुआ
वह हममें विलीन हुआ या हमसे होता हुआ आगे बढ़ गया
शब्दार्थ :
- शमी वृक्ष – सफेद कीकर का पेड़, एक तरह का रेगिस्तानी वृक्ष (a tree found in desert)।
- निर्निमेष – अपलक, बिना पलक झपकाए (without dropping eyelids)।
- आलोक – प्रकाश (brightness)।
- पुंज – समूह (collection)।
- विलीन – गायब, ओझल (disappeared)।
प्रसंग – प्रस्तुत काव्यांश हमारी पाठ्यपुस्तक ‘अंतरा भाग 2’ में संकलित ‘सत्य’ नामक कविता से उद्धृत है। इसके रचयिता विष्णु खरे हैं। इस कविता में कवि ने महाभारत के पौराणिक संदर्भों तथा पात्रों के द्वारा जीवन में सत्य की महत्ता को स्पष्ट किया है। कवि कहना चाहता है कि सत्य के प्रति संशय का विस्तार होने के बावजूद यह हमारी आत्मा की आंतरिक शक्ति है।
व्याख्या – कवि कहता है कि युधिष्ठिर की बार-बार पुकार सुनकर जंगल में भागते विदुर शमी वृक्ष के तने के सहारे खड़े हो गए और उन्होंने धर्मराज को बिना पलक झपकाए अंतिम बार देखा था। उन्होंने उन्हें नहीं पहचानने का नाटक किया, परंतु फिर पहचान गए। युधिष्ठि को अपलक देखने से ऐसा लग रहा था मानो विदुर के मन का सत्यालोक नेत्रों की ज्योति पर आसीन हो युधिष्ठिर में समाता जा रहा था। हम यह सोचकर निराश होते हैं कि सत्य ने अंत तक कुछ नहीं कहा, परंतु हमने उसके अंदर से प्रकाश पुंज को निकलते देखा था। वह हमारी तरफ आ रहा था। वह या तो हमारे अंदर समा गया या हमारे समीप से गुजरकर आगे चला गया।
विशेष :
- सत्य को आत्मिक शक्ति माना गया है।
- ‘सिर झुकाना’ मुहावरे का सार्थक प्रयोग है।
- मिश्रित शब्दावली है।
- साहित्यिक खड़ी बोली है।
काव्य-सौंदर्य संबंधी प्रश्नोत्तर –
प्रश्न :
उपर्युक्त काव्यांश का काव्य-सौंदर्य स्पष्ट कीजिए।
उत्तर :
भाव-सौंदर्य :
- व्यक्ति के आचार-विचार, हाव-भाव, रहन-सहन, बोलचाल के माध्यम से उसके सत्याचरण को जाना जा सकता है।
- कौरवों की पक्षधरता और विवशता के कारण विदुर सत्य से मुँह मोड़ रहे थे।
शिल्प-सौंदर्य :
- काव्यांश की भाषा मिभ्रित शब्दावलीयुक्त सहज, भावानुरूप तथा प्रवाहमयी है।
- ‘उनमें से उनका’ एवं ‘हमसे होता हुआ आगे’ में अनुप्रास अलंकार है।
- ‘धीरे-धीरे में पुनरुक्ति प्रकाश अलंकार है।
- ‘सिर झुकाना’ मुहावरे का सार्थक प्रयोग है।
- दृश्य-बिंब साकार हो उठा है।
- काव्यांश अतुकांत छंद्मुक्त रचना है।
5. हम कह नहीं सकते
न तो हममें कोई स्कुरण हुआ और न ही कोई ज्वर
किंतु शेष सारे जीवन हम सोचते रह जाते हैं
कैसे जानें कि सत्य का वह प्रतिबिंब हममें समाया या नहीं
हमारी आत्मा में जो कभी-कभी दमक उठता है
क्या वह उसी की छुअन है
जैसे
विदुर कहना चाहते तो वहीं बता सकते थे
सोचा होगा माथे के साथ अपना मुकुट नीचा किए
युधिष्ठिर ने
खांडवप्रस्थ से इंद्रप्रस्थ लौटते हुए।
शब्दार्थ :
- स्फुरण होना – अंगों में कँपकँपी या संचरण होना, खिलना (throbbing)।
- ज्वर – बुखार (fever)।
- प्रतिबिंब – परछाई (reflection)।
- दमकना – चमक उठना (to glow)।
प्रसंग – प्रस्तुत काव्यांश हमारी पाठ्यपुस्तक ‘अंतरा भाग 2’ में संकलित ‘सत्य’ नामक कविता से उद्धृत है। इसके रचयिता विष्णु खरे हैं। इस कविता में कवि ने महाभारत के पौराणिक संदर्भों तथा पात्रों के द्वारा जीवन में सत्य की महत्ता को स्पष्ट किया है। इस अंश में कवि कहना चाहता है कि सत्य को केवल आत्मज्ञान के द्वारा हो जाना-पहचाना जा सकता है।
व्याख्या – निराकार सत्य के स्वरूप को स्पष्ट करता हुआ कवि कहता है कि विदुर के कार्य से हमारे अंदर न तो कँपकँपी आई और न ज्वर हुआ। यह बात हम निश्चय से नहीं कह सकते। हम सारा जीवन यही सोचते रह गए कि यह कैसे पता चले कि सत्य का वह प्रतिबिंब हमारे अंदर समाया है या नहीं। कभी-कभी हमारी आत्मा में सत्य चमक उठता है। उससे लगता है कि कहीं वह उसी की छुअन तो नहीं है। युधिष्ठिर खांडवप्रस्थ से इंद्रप्रस्थ लौटते हुए सिर नीचा करके सोचते हुए जा रहे थे कि विदुर चाहते तो वह्ही सच बता सकते थे कि आखिर सत्य क्या था।
विशेष :
- सत्य की महिमा को बताया गया है।
- ‘कभी-कभी’ में पुनरुक्ति प्रकाश अलंकार हैं।
- खड़ी बोली में सहज अभिव्यक्ति है।
- विचार-शैली है।
काव्य-सौंदर्य संबंधी प्रश्नोत्तर –
प्रश्न :
उपर्युक्त काव्यांश का काव्य-सौंदर्य स्पष्ट कीजिए।
उत्तर :
भाव-सौंदर्य :
- सत्य आत्मा की आंतरिक शक्ति है, जिसे आत्मज्ञान दूवारा पहचाना जा सकता है।
- सत्य को पहचानना कठिन है। यह भाव इन काव्य-पंक्तियों में व्यक्त हुआ है।
शिल्प-सौंदर्य :
- काव्यांश की भाषा सरल, सहज तथा भावानुकूल है, जिसमें तत्सम शब्दों का प्रयोग हुआ है।
- ‘कभी-कभी’ में पुनरुक्ति प्रकाश अलंकार है।
- ‘दमक उठना’ मुहावरे का सार्थक प्रयोग है।
- काव्यांश अतुकांत छंदमुक्त रचना है।
- शैली विचारोत्तेजक है।
- दृष्टांत एवं अन्योक्ति अलंकार हैं।