Understanding the question and answering patterns through Geography Practical Book Class 12 Solutions in Hindi Chapter 2 आंकड़ों का प्रक्रमण will prepare you exam-ready.
Class 12 Geography Practical Chapter 2 Question Answer in Hindi आंकड़ों का प्रक्रमण
पाठ्यपुस्तक के प्रश्न
प्रश्न 1.
निम्नांकित चार विकल्पों में से सही विकल्प चुनिए –
(i) केंद्रीय प्रवृत्ति का जो माप चरम मूल्यों से प्रभावित नहीं होता है, वह है-
(क) माध्य
(ग) बहुलक
(ख) माध्य तथा बहुलक
(घ) माध्यिका
उत्तर:
(ग) बहुलक
(ii) केंद्रीय प्रवृत्ति का वह माप जो किसी वितरण के
उभरे भाग से हमेशा संपाती होगा, वह है-
(क) माध्यिका
(ग) माध्य
(ख) माध्य तथा बहुलक
(घ) बहुलक
उत्तर:
(ग) माध्य
(iii) ऋणात्मक सहसंबंध वाले प्रकीर्ण अंकन में अंकित
मानों के वितरण की दिशा होगी-
(क) ऊपर बाएँ से नीचे दाएँ
(ख) नीचे बाएँ से ऊपर दाएँ
(ग) बाएँ से दाएँ
(घ) ऊपर दाएँ से नीचे बाएँ
उत्तर:
(क) ऊपर बाएँ से नीचे दाएँ
प्रश्न 2.
निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर लगभग 30 शब्दों में दीजिए –
प्रश्न (i) माध्य को परिभाषित कीजिए ।
उत्तर:
माध्य- माध्य वह मान अथवा राशि होती है, जो दी हुई सभी राशियों अथवा प्राप्तांकों के योगफल को उन राशियों की संख्या से भाग देने पर प्राप्त होती है।
प्रश्न (ii) बहुलक के उपयोग के क्या लाभ हैं?
उत्तर:
बहुलक के उपयोग के निम्नलिखित लाभ हैं –
(1) बहुलक के प्रयोग से गणना सरल हो जाती है।
(2) बहुलक का निर्धारण सामान्यतया निरीक्षण से ही किया जा सकता है।
(3) बहुलक की गणना आवृत्तियों के आधार पर की जाती है, इस कारण इसे समझना सरल है।
(4) इस पर श्रेणी के चरम मूल्यों का कोई प्रभाव नहीं पड़ता है।
प्रश्न (iii) अपकिरण किसे कहते हैं?
उत्तर:
अपकिरण – किसी श्रेणी में एक केन्द्रीय मूल्य या प्रतिनिधि मान के दोनों ओर पाये जाने वाले चर मूल्यों के केन्द्रीय मान से अन्तर या प्रसार की सीमा ही अपकिरण कहलाती है। अतः अपकिरण किसी श्रेणी के विभिन्न व्यक्तिगत मूल्यों का श्रेणी के माध्य से औसत अन्तर या विचलन होता है।
प्रश्न (iv) सहसम्बन्ध को परिभाषित कीजिए।
उत्तर:
सहसम्बंध – जब कोई दो चर मूल्य परस्पर एक दिशा में या विपरीत दिशा में घटने-बढ़ने की प्रवृत्ति रखते हैं, तो ऐसी स्थिति में उनके मध्य एक विशेष प्रकार का सम्बन्ध पाया जाता है। इस सम्बन्ध को ही सह-सम्बन्ध कहते हैं। अतः दो या दो से अधिक चरों के मध्य साहचर्य की प्रकृति एवं गहनता को सह- सम्बन्ध कहते हैं।
प्रश्न (v) पूर्ण सहसम्बन्ध किसे कहते हैं?
उत्तर:
पूर्ण सहसम्बन्ध – जब दोनों चरों का मान 1 होता है, तो उसे पूर्ण सहसम्बन्ध कहते हैं। इसमें सभी बिन्दु एक सरल रेखा पर स्थित होते हैं। जब सरल रेखा प्रकीर्ण आरेख के निचले बाएँ किनारे से ऊपरी दाएँ किनारे की तरफ जाती है, तो ‘पूर्ण धनात्मक सहसम्बन्ध’ (+1) कहलाता है। इसके विपरीत जब सरल रेखा प्रकीर्ण आरेख के ऊपरी बाएँ भाग से निचले दाएँ भाग की ओर जाती है, तो ‘पूर्ण ऋणात्मक सहसम्बन्ध’ (-1) कहलाता है।
प्रश्न (vi) सहसम्बन्ध की अधिकतम सीमाएँ क्या हैं?
उत्तर:
सहसम्बन्ध की अधिकतम सीमा 1 होती है। इसका विस्तार1 से शून्य की ओर होते हुए +1 तक होता है। इसका मान कभी भी 1 से अधिक नहीं हो सकता है।
प्रश्न 3.
निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर लगभग 125 शब्दों में दीजिए-
प्रश्न (i) आरेखों की सहायता से सामान्य तथा विषम वितरणों में माध्य, माध्यिका तथा बहुलक की सापेक्षिक स्थितियों की व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
माध्य, माध्यिका तथा बहुलक की तुलना- केंद्रीय प्रवृत्ति के तीनों मापों- माध्य, माध्यिका और बहुलक की तुलना सामान्य वितरण वक्र के द्वारा आसानी से की जा सकती है। सामान्य वक्र आवृत्तियों का ऐसा वितरण होता है, जिसका रेखाचित्र ‘घण्टाकार वक्र (बैल आकृति वक्र) ‘ कहलाता है। बौद्धिकता, व्यक्तित्व, समंक तथा विद्यार्थियों की उपलब्धि के समंक जैसी अनेक मानवीय विशेषताओं का सामान्य वितरण होता है। सामान्य वितरण वक्र सममित होता है। अतः इसमें अधिकांश प्रेक्षण श्रेणी के मध्य मान पर अथवा आस-पास एकत्रित होते हैं। जैसे-जैसे दूरस्थ मानों की ओर जाते हैं, वैसे-वैसे पर्यवेक्षित चरों की संख्या सममित रूप से घटती जाती है।
इस वक्र में आंकड़ों की परिवर्तनशीलता कम या अधिक हो सकती है। चूंकि सामान्य वितरण सममित होता है, इस कारण सामान्य वितरण वक्र में माध्य, माध्यिका और बहुलक का एक ही मान होता है, जैसा कि अग्रांकित दिए गए चित्र में दिखाया गया है। सामान्य वितरण वक्र उपर्युक्त चित्र में केन्द्रीय प्रवृत्ति के तीनों मापों के लिए एक समान मान 100 है। सामान्य वितरण वक्र में अधिकतर इकाइयां वितरण के मध्य में अथवा माध्य के निकट होती हैं। यदि आंकड़ों में कुछ विकृति या तिरछापन होता है, तो माध्य, माध्यिका और बहुलक समान नहीं रहते हैं तथा इनमें धनात्मक या ऋणात्मक विषमता दृष्टिगोचर होती है, जैसा कि नीचे दिये गये चित्रों में दिखाया गया है।
प्रश्न (ii) माध्य, माध्यिका तथा बहुलक की उपयोगिता पर टिप्पणी कीजिए। (संकेत: उनके गुण तथा दोषों से)
उत्तर:
(क) माध्य – यह वह मान होता है, जो दी गई सभी राशियों अथवा चरों के योगफल को उन राशियों की संख्या से भाग देने पर प्राप्त होता है। इस कारण इसे औसत मान भी कहते हैं।
माध्य के गुण एवं दोष निम्न प्रकार से हैं – गुण- माध्य में निम्न गुण पाए जाते हैं –
(1) इसकी गणना विधि बहुत सरल है।
(2) यह सदैव निश्चयात्मक होता है अर्थात् इसके परिकलन में किसी प्रकार के अनुमान का प्रयोग नहीं होता।
(3) यह श्रेणी के सभी मूल्यों पर आधारित होता है। इस कारण इसमें सभी चरों का महत्व समान होता है।
(4) यह सभी मूल्यों / चरों का प्रतिनिधि मूल्य होता है।
(5) इसमें चरों को आरोही अथवा अवरोही क्रम में व्यवस्थित करना आवश्यक नहीं होता है।
माध्य के दोष: माध्य में यद्यपि अनेक गुण हैं, फिर भी इसमें कुछ दोष पाए जाते हैं, जिनके कारण इसकी उपयोगिता कुछ कम हो जाती है, जैसे-
- इसका मान पूर्णांकों अथवा दशमलव दोनों रूपों में प्राप्त हो सकता है।
- यह केवल निरपेक्ष मूल्यों का औसत निकालने में उपयोगी है। अनुपात व प्रतिशत आदि के अध्ययन में यह सर्वथा अनुपयुक्त होता है।
- माध्य का मान श्रेणी के चरों का प्रतिनिधित्व नहीं करता हैं। यह अध्ययन के अन्तर्गत मदों के बाहर का होता है।
- चूंकि माध्य सभी चरों के मूल्यों पर आधारित होता है, इस कारण बहुत बड़ी या बहुत छोटी संख्या भी माध्य पर प्रभाव डालती है।
(ख) माध्यिका – जब किसी समंक श्रेणी को आरोही या अवरोही क्रम में व्यवस्थित करने के पश्चात् जो मूल्य श्रेणी के मध्य में स्थित होता है, वह माध्यिका कहलाता है।
माध्यिका के गुण- माध्यिका में मुख्यतया निम्न गुण होते हैं –
- इसको समझना व गणना करना बहुत सरल है।
- इसमें मध्य का पद चुना जाता है। इसलिए इसकी गणना में चरम मूल्यों का कोई प्रभाव नहीं पड़ता है।
- इसका निर्धारण रेखाचित्र, बिन्दु रेखा या ग्राफ के द्वारा भी किया जा सकता है।
- इसको गुणात्मक तथ्यों, जैसे-ईमानदारी, बुद्धिमानी, स्वास्थ्य आदि के अध्ययन में काम में लिया जाता
- इसका मूल्य सदैव निश्चित होता है।
- यह मान वास्तविक मूल्यों से स्वतन्त्र होता है।
माध्यिका के दोष – माध्यिका में अनेक गुणों के साथ- साथ कुछ दोष भी पाए जाते हैं, जैसे –
- इसकी गणना के लिए समंकों को मूल्यों के आधार पर आरोही अथवा अवरोही क्रम में व्यवस्थित करना आवश्यक होता है। इसके अभाव में इसको ज्ञात करना असंभव है।
- माध्यिका श्रेणी के सभी मूल्यों पर आधारित नहीं होती है। यह केवल अनुमानित तथा स्थिति सम्बन्धी माध्य है।
- यह एक उपयुक्त माध्य नहीं है, क्योंकि यह चरम मूल्यों से प्रभावित नहीं होती है
- सम संख्याओं की दशा में यह दो संख्याओं के मध्य एक अनुमानित संख्या होती है।
- अधिक आंकड़े होने पर माध्यिका को ज्ञात करना कठिन होता है।
(ग) बहुलक – आंकड़ों का वह मूल्य जो श्रृंखला में सबसे अधिक बार आता है, बहुलक कहलाता है। बहुलक के गुण- बहुलक के निम्नलिखित गुण हैं –
- इसका निर्धारण साधारणतया निरीक्षण से ही किया जा सकता है।
- इस पर श्रृंखला के चरम मूल्यों का प्रभाव नहीं पड़ता है।
- इसके निर्धारण के लिए सभी अंकों का होना अनिवार्य नहीं होता है।
- इसको रेखाचित्र द्वारा भी प्रदर्शित किया जा सकता है।
- इसकी व्यावहारिक उपयोगिता अधिक है। किसी वस्तु की अधिक मात्रा के कारण उसका उत्पादन अधिक होता है।
बहुलक के दोष- बहुलक में अनेक लाभ होते हुए भी इसमें कुछ दोष हैं, जो निम्नलिखित प्रकार से हैं –
- दो से अधिक समंकों की आवृत्ति समान होने पर बहुलक एक अनिश्चित व अस्पष्ट माध्य होते हैं।
- यह सभी मदों पर आधारित नहीं होता है।
- इसको ज्ञात करने में चरम मूल्यों को कोई महत्त्व नहीं दिया जाता है।
- वर्ग- अन्तराल बदलने पर बहुलक भी बदल जाता
- श्रृंखला में अधिक संख्याएं न होने पर बहुलक एक महत्वपूर्ण माप नहीं होता है।
प्रश्न (iii) एक काल्पनिक उदाहरण की सहायता से मानक विचलन के गणना की प्रक्रिया समझाइए।
उत्तर:
मानक विचलन- प्रकीर्णन / अपकिरण के माप के रूप में मानक विचलन (SD) सबसे अधिक प्रचलित माप है। मानक विचलन किसी श्रेणी के समान्तर माध्य से ज्ञात किए गए उसके विभिन्न पद मूल्यों के विचलनों के वर्गों के माध्य के वर्गमूल को कहते हैं। वस्तुत: मानक / प्रमाप विचलन एक श्रेणी के पदों के बिखराव की माप होता है, जिसे केवल समान्तर माध्य द्वारा ही ज्ञात किया जा सकता है। यह प्रकीर्णन का सर्वाधिक स्थिर माप होता है, जिसका अन्य सांख्यिकीय गणनाओं में उपयोग किया जाता है। मानक विचलन को ग्रीक अक्षर σ (सिग्मा) द्वारा प्रदर्शित किया जाता है।
अवर्गीकृत आँकड़ों के लिए मानक विचलन की गणना-मानक विचलन विधि का सर्वप्रथम प्रयोग कार्ल पियर्सन द्वारा किया गया था। इसकी गणना निम्न सूत्र के आधार पर की जाती है –
σ = \(\sqrt{\frac{\Sigma x^2}{N}}\)
उदाहरण – निम्नांकित अवर्गीकृत मूल्यों के लिए मानक विचलन की गणना कीजिए –
01, 03, 05, 07, 09
हल:
∵ N = 5
∴ \(\bar{X}=\frac{\Sigma x}{N}=\frac{25}{5}=5\)
अत: मानक विचलन (S.D.) होगा –
σ = \(\sqrt{\frac{\Sigma x^2}{N}}\)
σ = \(\sqrt{\frac{40}{5}}\)
σ = \(\sqrt{8}\)
σ = 2.828
अतः σ = 2.83
यहाँ σ = मानक विचलन
∑X2 = माध्य से विचलनों के वर्गों का योग
N = पदों की संख्या
उपर्युक्त परिकलन / हल में निम्न प्रकार से चरण प्रयुक्त हुए हैं –
(1) सर्वप्रथम सभी मूल्यों को X के अंतर्गत रखा गया है।
(2) कुल मूल्यों को जोड़कर उसमें कुल मदों की संख्या (N) का भाग देकर माध्य (X) निकाला गया है।
(3) प्रत्येक मूल्य का विचलन मान (x) वास्तविक मूल्य से माध्य को घटाकर (XX) प्राप्त किया गया। इसकी शुद्धता की जांच विचलनों के योग से की जा सकती है, जो कि सदैव शून्य होता है।
(4) इसके बाद प्रत्येक विचलन (x) का वर्ग करके उसका योग किया गया।
(5) इसके पश्चात् 2x2 (सभी वर्ग विचलनों का योग) को पदों की संख्या (N) से विभाजित किया गया है।
(6) विभाजन से प्राप्त मूल्य का वर्गमूल निकालने पर मानक विचलन प्राप्त हो जाता है।
प्रश्न (iv) प्रकीर्णन का कौनसा माप सबसे अधिक अस्थिर है तथा क्यों?
उत्तर:
प्रकीर्णन से तात्पर्य केन्द्रीय प्रवृत्ति के माप से इकाइयों के बिखराव से लगाया जाता है। यह माप औसत मूल्य से किसी इकाई अथवा संख्यात्मक मान की विषमता या बिखराव की प्रवृत्ति का मापन करता है। प्रकीर्णन के मापन की कई विधियाँ हैं, जैसे- चतुर्थक विचलन, माध्य विचलन, मानक विचलन, विस्तार, विचरण गुणांक, लारेंज वक्र आदि। लेकिन प्रकीर्णन के माप के रूप में सर्वाधिक अस्थिर माप विस्तार है।
विस्तार – किसी श्रेणी में अधिकतम व न्यूनतम मूल्यों का अन्तर विस्तार (Range) कहलाता है। यह किसी श्रेणी में सबसे छोटे माप और सबसे बड़े माप की दूरी को प्रदर्शित करता है। इस तरह विस्तार केवल दो चरम मूल्यों (अधिकतम एवं न्यूनतम मूल्य) पर ही आधारित होता है। इन मूल्यों में परिवर्तन आने पर विस्तार मूल्य पर परिवर्तित हो जाता है। इसे निम्नलिखित उदाहरण द्वारा आसानी से समझा जा सकता है.
उदाहरण – निम्नांकित दैनिक मजदूरी के वितरण के लिए विस्तार की गणना कीजिए –
रुपए – 35, 42, 45, 48, 50, 52, 55, 58, 60, 100 विस्तार की गणना – विस्तार (R) की गणना निम्नलिखित सूत्र की सहायता से की जाती है –
R = L – S
अत: R = L – S
= अधिकतम – न्यूनतम मान
= 100 – 35
∴ R = 65
यहाँ R = विस्तार
L = अधिकतम मान का प्रतीक
S = न्यूनतम मान का प्रतीक
अब यदि उपर्युक्त विवरण में से दसवां मूल्य, जो श्रेणी का सर्वाधिक मूल्य है, को हटा दें तो R का मान 25 (60- 35) प्राप्त होगा। इस प्रकार श्रेणी में से केवल एक मूल्य को हटा देने पर R का मान घटकर एक-तिहाई ही रह गया है। इससे स्पष्ट है कि प्रकीर्णन के माप के रूप में R का मान पूर्णतः दो चरम मूल्यों पर आधारित होता है, जो अत्यधिक अस्थिर है। इस कारण विस्तार (R) प्रकीर्णन के माप का सबसे अधिक अस्थिर माप है।
प्रश्न (v) सहसम्बन्ध की गहनता पर एक विस्तृत टिप्पणी लिखिए।
उत्तर:
(1) सहसम्बन्ध की गहनता – जब दो चर मध्यों में ऐसा सम्बन्ध होता है कि एक में कमी या वृद्धि होने पर दूसरे में भी उसी दिशा में या विपरीत दिशा में क्रमश: कमी या वृद्धि होती है, तो ये दोनों चर मूल्य सहसम्बन्धित कहलाते हैं अर्थात् दो सम्बन्ध समंक श्रेणियों में साथ-साथ परिवर्तन होने की प्रवृत्ति को ही सहसम्बन्ध कहा जाता है। समंक श्रेणी के दोनों चरों में साहचर्य अथवा अनुरूपता की गहनता की मात्रा गणितीय दृष्टि से अधिकतम 1 (एक) तक होती है।
इसका अधिकतम विस्तार1 से शून्य की ओर होते हुए +1 तक होता है। इसका मान किसी भी परिस्थिति में एक से अधिक नहीं होता है। जब दोनों चरों के मध्य सहसम्बन्ध पूरा 1 होता है, चाहे वह धनात्मक हो या ऋणात्मक हो, तब वह पूर्ण सहसम्बन्ध कहलाता है। यह पूर्ण सहसम्बन्ध दोनों चरों के मध्य गहनतम सहसम्बन्ध को प्रदर्शित करता है। इन गहनतम सहसम्बन्धों के दो विपरीत सिरों के ठीक मध्य में शून्य (0) सहसम्बन्ध पाया जाता है। यहाँ पर चरों के मध्य सहसम्बन्ध का पूर्णतः अभाव होता है। इस प्रकार चरों के मध्य सहसम्बन्ध के विस्तार को उसकी दिशा के साथ अग्र प्रकार प्रदर्शित किया जा सकता है –
(2) सहसम्बन्ध के प्रकार – इस प्रकार सहसम्बन्ध को उसकी दिशा एवं गहनता के विस्तार के आधार पर निम्न प्रकारों में विभक्त किया जा सकता है –
(i) पूर्ण धनात्मक सहसम्बन्ध – जब समंक श्रेणी में चर परस्पर एक ही दिशा में विचरण करते हैं अर्थात् एक चर में वृद्धि या कमी होने पर दूसरे उसे चर में भी वृद्धि या कमी होती है, तो धनात्मक सहसम्बन्ध कहते हैं। जब यह चर एक सरल रेखा में ही निचले बाएं भाग से ऊपरी दाएं भाग की ओर स्थित होते हैं, तब यह सहसम्बन्ध पूर्ण धनात्मक सहसम्बन्ध कहलाता है। इसका मान +1 होता है। पूर्ण धनात्मक सहसम्बन्ध को आरेख में दर्शाये अनुसार प्रदर्शित करते हैं।
(ii) पूर्ण ऋणात्मक सहसम्बन्ध – जब दो समंक चरों में से एक में वृद्धि होने पर दूसरे चर में कमी हो अथवा एक चर में कमी होने पर दूसरे चर में वृद्धि हो तो दोनों चरों के मध्य विपरीत गमन पाया जाता है, जिस कारण इसे ऋणात्मक सहसम्बन्ध कहते हैं। जब इस प्रकार का सहसम्बन्ध एक सरल रेखा में ऊपरी बाएं भाग से निचली दाएं भाग की ओर विस्तारित होता है, तब यह पूर्ण ऋणात्मक सहसम्बन्ध कहलाता है। इसका मान -1 होता है। इसे आरेख में दर्शाये अनुसार प्रदर्शित किया जाता है।
(iii) शून्य सहसम्बन्ध – जब दोनों चरों के मध्य परिवर्तन का कोई प्रभाव नहीं होता है, तो उसे शून्य सहसम्बन्ध या सहसम्बन्ध का अभाव कहा जाता है। उदाहरणस्वरूप आरेख में x-चर में परिवर्तन का y चर द्वारा कोई प्रत्युत्तर नहीं दिए जाने के कारण उत्पन्न शून्य सहसम्बन्ध को प्रकीर्ण अंकन – A द्वारा दर्शाया गया है। इसी प्रकार प्रकीर्ण अंकन B में भी y चर में परिवर्तन पर y- x- चर द्वारा कोई प्रत्युत्तर नहीं दिए जाने के कारण उत्पन्न शून्य सहसम्बन्ध को दर्शाया गया है।
(iv) अन्य सहसम्बन्ध – पूर्ण सहसम्बन्धों (धनात्मक एवं ऋणात्मक सहसम्बन्ध ) तथा शून्य सहसम्बन्ध के मध्य में साहचर्य की सामान्य परिस्थितियाँ पाई जाती हैं, जिन्हें कमजोर, मध्यम और गहन सहसम्बन्ध के रूप में प्रदर्शित किया जाता है। इन तीनों परिस्थितियों को निम्नानुसार प्रदर्शित किया जाता है –
उपर्युक्त चित्रों में X चर तथा Y चरों के मध्य अंकित बिन्दुओं के बिखराव अथवा प्रकीर्णन के स्वरूप को दर्शाया गया है। इससे स्पष्ट है कि चरों के मध्य बिखराव अथवा प्रकीर्णन जितना अधिक पाया जाता है उन चरों के मध्य सहसम्बन्ध उतना ही कमजोर होता है। इसके विपरीत युग्म चरों के मध्य प्रकीर्णन जितना कम पाया जायेगा, उनके मध्य सहसम्बन्ध की गहनता उतनी ही अधिक होगी।
इस प्रकार स्पष्ट है कि चरों के मध्य सहसम्बन्ध अथवा साहचर्य की गहनता इन चरों के मध्य अंकित बिन्दुओं के बिखराव अथवा प्रकीर्णन के स्वरूप पर निर्भर करती है।
प्रश्न (vi) कोटि-सहसम्बन्ध की गणना के विभिन्न चरण कौनसे हैं ?
उत्तर:
कोटि सहसम्बन्ध की गणना के चरण- कोटियों के आधार पर सहसम्बन्ध की गणना विधि का प्रतिपादन स्पीयरमैन के द्वारा किया गया था। इस कारण इसे प्रचलित रूप में ‘स्पीयरमैन का कोटि आकार सहसम्बन्ध विधि’ भी कहा जाता है। कोटि सहसम्बन्ध को अक्षर से लिखते हैं, जिसका उच्चारण रो (Rho) होता है। कोटि सहसम्बन्ध की गणना साधारणतया निम्नांकित चरणों में की जाती है –
(1) सहसम्बन्ध की गणना दो चरों के मध्य की जाती है। अतः सर्वप्रथम दिए गए x तथा y चरों के आंकड़ों को तालिका में क्रमश: प्रथम व द्वितीय स्तंभों में लिखा जाता है।
(2) इसके बाद दोनों चरों के आंकड़ों की अलग-अलग कोटियां निर्धारित की जाती हैं।
(3) X – चर की कोटियों को तृतीय स्तंभ में लिखा जाता है, जिसका शीर्षक XR (X – चर की कोटियां ) होता है। X – चर के आंकड़ों में उच्चतम मान को कोटि दूसरे सर्वोच्च मान को कोटि-2 तथा इसी प्रकार अन्य कोटियों का निर्धारण घटते मान के साथ किया जाता है।
(4) इसी प्रकार Y – चर के आंकड़ों की कोटियों का निर्धारण घटते क्रम में करके, उन्हें चतुर्थ स्तंभ में लिखा जाता है, जिसका शीर्षक YR (Y-चर की कोटियाँ) होता है।
(5) XR तथा YR स्तंभों में अंतिम कोटि श्रेणी में दी गई कुल इकाइयों की संख्या के बराबर होती है।
(6) इसके बाद दोनों चरों की कोटियों में अंतर ज्ञात किया जाता है, जिसे D से प्रदर्शित करते हैं। D को तालिका के पांचवें स्तंभ में लिखा जाता है।
(7) इसके पश्चात् D का वर्ग (D) ज्ञात किया जाता है, जिसे छठे स्तंभ में लिखा जाता है।
(8) इसके बाद निम्नलिखित सूत्र की सहायता से चरों के मध्य कोटि सहसम्बन्ध की गणना कर ली जाती है –
ρ = 1 – \(\frac{6 \Sigma D^2}{N\left(N^2-1\right)}\)
जिसमें,
ρ = कोटि सहसम्बन्ध
∑D 2 = दोनों कोटियों के अन्तर के वर्ग का योग
N = X व Y चरों की कुल संख्या
क्रियाकलाप –
प्रश्न 1.
भौगोलिक विश्लेषण के लिए प्रयुक्त कोई काल्पनिक उदाहरण लीजिए तथा अवर्गीकृत आंकड़ों की गणना करने की प्रत्यक्ष व अप्रत्यक्ष विधियों को समझाइए।
उत्तर:
भौगोलिक विश्लेषण से सम्बन्धित उदाहरण- निम्नलिखित सारणी में जयपुर के मासिक तापमान के आंकड़े दिए गए हैं। इससे जयपुर का औसत तापमान ज्ञात कीजिए-
माह | जनवरी | फरवरी | मार्च | अप्रैल | मई | जून |
तापमान | 14 | 16 | 22 | 28 | 33 | 34 |
माह | जुलाई | अगस्त | सितंबर | अक्टूबर | नवंबर | दिसंबर |
तापमान | 31 | 30 | 29 | 26 | 20 | 15 |
अवर्गीकृत आंकड़ों से माध्य की गणना –
(1) प्रत्यक्ष विधि द्वारा अवर्गीकृत आंकड़ों से प्रत्यक्ष विधि द्वारा माध्य की गणना करने के लिए सारणी में दिए सभी मूल्यों को जोड़कर, उसमें पदों की कुल संख्याओं का भाग देते हैं। इससे जो मूल्य प्राप्त होता है, वह समान्तर माध्य कहलाता है। इसमें माध्य की गणना निम्नांकित सूत्र के उपयोग द्वारा की जाती है –
\(\bar{X}=\frac{\Sigma X}{N}\)
इसमें \(\overline{\mathrm{X}}\) = माध्य
X = मदों का मूल्य
∑x = सभी मदों के मूल्यों का योग
N = श्रेणी के पदों / मदों की संख्या
हल:
∴ \(\bar{X}=\frac{\sum x}{N}\)
∴ \(\bar{X}=\frac{298}{12}\)
\(\overline{\mathrm{X}}\) = 24.83
अतः माध्य = 24.83
इस प्रकार प्रत्यक्ष विधि से जयपुर का औसत तापमान 24.83 डिग्री सेल्सियस होगा।
(2) अप्रत्यक्ष विधि द्वारा माध्य की गणना अवर्गीकृत आंकड़ों से अप्रत्यक्ष विधि द्वारा माध्य की गणना करने के लिए सबसे पहले सारणी / श्रेणी में दिए गए सभी पदों में से किसी एक पद के मूल्य को कल्पित माध्य मान लिया जाता है। इसके बाद कल्पित माध्य के मूल्य में से सभी पदों के मूल्यों का अन्तर (विचलन) ज्ञात कर लेते हैं। पद मूल्य में से कल्पित माध्य के मूल्य को घटाने से विचलन ज्ञात हो जाता है। इसके बाद इन्हें जोड़ लेते हैं, जिसे Σdx से प्रदर्शित किया जाता है।
अप्रत्यक्ष विधि से माध्य की गणना निम्नांकित सूत्र के द्वारा की जाती है –
\(\overline{\mathrm{X}}\) = \(A+\frac{\Sigma d x}{N}\)
यहाँ
\(\overline{\mathrm{X}}\) = माध्य
A = कल्पित माध्य
N = श्रेणी में पदों की कुल संख्या
d = कल्पित माध्य से पद मूल्यों का विचलन
हल:
अतः माध्य होगा –
\(\overline{\mathrm{X}}\) = \(A+\frac{\Sigma d x}{N}\)
\(\overline{\mathrm{X}}\) = \(30+\left(\frac{-62}{12}\right)\)
\(\overline{\mathrm{X}}\) = 30 + (- 5.17)
\(\overline{\mathrm{X}}\) = 30 – 5.17
\(\overline{\mathrm{X}}\) = 24.83
यहाँ A = 30
Σdx = – 62
N = 12
अतः अप्रत्यक्ष विधि से जयपुर का औसत तापमान 24.83 डिग्री सेल्सियस होगा।
प्रश्न 2.
विभिन्न प्रकार के पूर्ण सहसम्बन्ध दर्शाने के लिए प्रकीर्ण आरेख बनाइए।
उत्तर:
प्रकीर्ण आरेख प्रकीर्ण आरेख में विभिन्न इकाइयों की उनके x तथा y मूल्यों के अनुसार ग्राफ पेपर पर बिन्दुओं द्वारा स्थिति प्रदर्शित की जाती है। साधारणतया प्रकीर्ण आरेख की रचना करने के लिए ग्राफ पेपर अथवा सादे कागज पर खींचे गये x – अक्ष पर x मूल्यों के मान तथा कोटि अक्ष पर y मूल्यों के मान समान अन्तर पर लिखते हैं। इसके पश्चात् प्रत्येक इकाई की स्थिति उसके x तथा y मूल्यों के अनुसार एक बिन्दु द्वारा अंकित करते हैं।
इस प्रकार श्रेणी में जितनी इकाइयां दी होती हैं, प्रकीर्ण आरेख में उतने ही बिन्दु अंकित हो जाते हैं। चूंकि इस प्रकार निर्मित रेखाचित्र x तथा y मानों का बिखराव अथवा प्रकीर्णन दर्शाते हैं, इसलिए इन रेखाचित्रों को प्रकीर्ण आरेख अथवा प्रकीर्ण अंकन कहा जाता है। प्रकीर्ण आरेख के द्वारा पूर्ण सहसम्बन्ध का प्रदर्शन प्रकीर्ण आरेख में बिन्दुओं की स्थिति देखकर x तथा y मूल्यों के सहसम्बन्ध की मात्रा व प्रकृति के बारे में अनुमान लगाया जा सकता है।
साधारणतया प्रकीर्ण आरेख के द्वारा निम्नलिखित प्रकार के सहसम्बन्धों को दर्शाया जा सकता है –
(i) पूर्ण धनात्मक सहसम्बन्ध
(ii) पूर्ण ऋणात्मक सहसम्बन्ध
(iii) शून्य सहसम्बन्ध
(iv) कमजोर, मध्यम तथा गहन सहसम्बन्ध।
(नोट- इनका वर्णन पाठ्यपुस्तक के प्रश्न 3 के (v) में देखें)
वस्तुनिष्ठ प्रश्न-
1. किसी पद् या संख्या की अधिकतम पुनरावृत्ति क्या कहलाती है?
(क) माध्य
(ख) बहुलक
(ग) विस्तार
(घ) अपकिरण
उत्तर:
(ख) बहुलक
2. ‘स्थितिक औसत माप’ निम्नांकित में से कौनसा है?
(क) बहुलक
(ख) माध्य विचलन
(ग) सहसम्बन्ध
(घ) माध्यिका
उत्तर:
(घ) माध्यिका
3. केंद्रीय मान से विभिन्न मूल्यों के बिखराव अथवा विषमता की मात्रा किसे कहा जाता है?
(क) विक्षेपण
(ख) प्रकीर्णन
(ग) अपकिरण
(घ) उपर्युक्त सभी
उत्तर:
(घ) उपर्युक्त सभी
4. निम्नांकित में से कौनसा कथन सही है?
(i) मानक विचलन अपकिरण का सर्वाधिक स्थिर माप है।
(ii) मानक विचलन को ρ से दर्शाया जाता है।
(iii) प्रसरण का वर्गमूल ही मानक विचलन होता है।
(iv) प्रमाप विचलन प्रकीर्णन के माप की एक विधि है।
(v) मानक विचलन को वर्गमूल माध्य वर्ग विचलन भी कहा जाता है।
(क) (i), (ii), (iii), (iv)
(ख) (i), (iii), (iv)
(ग) (i), (iii), (v)
(घ) (i), (iii), (iv), (v)
उत्तर:
(घ) (i), (iii), (iv), (v)
5. सहसम्बन्ध की गणना से सम्बन्धित कोटि-आकार विधि का प्रतिपादन किसके द्वारा किया गया था?
(क) मन
(ख) कॉर्ल पियर्सन
(ग) चार्ल्स एडवर्ड स्पीयरमैन
(घ) प्रो. किंग
उत्तर:
(ग) चार्ल्स एडवर्ड स्पीयरमैन
6. निम्नलिखित में से कौनसा माप वास्तविक मूल्यों से स्वतंत्र होता है?
(क) बहुलक
(ख) माध्यिका
(ग) माध्य व बहुलक
(घ) माध्यिका एवं बहुलक
उत्तर:
(घ) माध्यिका एवं बहुलक
अतिलघूत्तरात्मक प्रश्न
प्रश्न 1.
माध्यिका को परिभाषित कीजिए।
उत्तर:
जब किसी श्रेणी के पदों के विस्तार को आरोही अथवा अवरोही क्रम में रखा जाता है, तब केन्द्र का पद् माध्यिका कहलाता है।
प्रश्न 2.
त्रि-बहुलक श्रेणी से क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
जब किसी समंक श्रेणी में तीन मानों की पुनरावृत्ति समान तथा सबसे अधिक बार होती है, तो वह श्रेणी त्रि-बहुलक श्रेणी कहलाती है।
प्रश्न 3.
विस्तार को परिभाषित कीजिए।
उत्तर:
किसी समंक श्रेणी में अधिकतम व न्यूनतम मूल्यों का अंतर विस्तार (R) कहलाता है।
प्रश्न 4.
प्रकीर्णन को उपयोग में लेने के कोई दो उद्देश्य बताइए।
उत्तर:
(i) इससे वितरण या श्रेणी के संघटन की प्रकृति का ज्ञान होता है।
(ii) इसकी सहायता से वितरण की तुलना स्थिरता अथवा समरूपता के आधार पर हो जाती है।
प्रश्न 5.
माध्य विचलन से क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
एक शृंखला के किसी भी सांख्यिकीय माध्य (माध्य, माध्यिका या बहुलक) से निकाले गए विभिन्न मूल्यों के विचलनों का समान्तर माध्य, उसका माध्य विचलन होता है।
प्रश्न 6.
चतुर्थंक किसे कहते हैं?
उत्तर:
जब किसी शृंखला को चार समान भागों में विभाजित कर दिया जाता है, तो प्राप्त प्रत्येक भाग की आखिरी इकाई चतुर्थंक कहलाती है।
प्रश्न 7.
अवर्गीकृत आंकड़ों के लिए माध्यिका ज्ञात करने का सूत्र लिखें।
उत्तर:
माध्यिका \(M=\left(\frac{N+1}{2}\right)\) वाले पद का मान।
प्रश्न 8.
वर्ग अन्तराल/विस्तार किसे कहते हैं?
उत्तर:
आंकड़ों को वर्गीकृत करते समय किसी वर्ग की उच्च सीमा एवं निम्न सीमा के मध्य का अन्तर वर्गअन्तराल/विस्तार कहलाता है। जैसे-20-30 वर्ग में 10 वर्ग अंतराल है।
प्रश्न 9.
लॉरेंज वक्र से क्या तात्पर्य है?
उत्तर:
किसी समंग श्रेणी के अपकिरण को आलेखी विधि के द्वारा प्रदर्शित करने के लिए बनाया गया, एक विशेष प्रकार का संचयी प्रतिशत वक्र लॉरेंज वक्र कहलाता है।
प्रश्न 10.
प्रसरण से क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
मानक विचलन का वर्ग ही प्रसरण कहलाता है। इसका उपयोग अग्रिम सांख्यिकीय गणनाओं में किया
प्रश्न 11.
बहुलक को परिभाषित कीजिए।
उत्तर:
किसी श्रेणी में जिस मान की सबसे अधिक पुनरावृत्ति होती है, वह मान बहुलक कहलाता है। इसे Z अथवा M0 द्वारा प्रदर्शित किया जाता है।
प्रश्न 12.
धनात्मक एवं ऋणात्मक सहसम्बन्ध में मुख्य अन्तर क्या है?
उत्तर:
धनात्मक सहसम्बन्ध में दो चरों के मध्य परिवर्तन एक ही दिशा में होता है, जबकि ऋणात्मक सहसम्बन्ध में परिवर्तन विपरीत दिशाओं में होता है।
लघूत्तरात्मक प्रश्न
प्रश्न 1.
वर्गीकृत आँकड़ों से अप्रत्यक्ष विधि द्वारा माध्य ज्ञात करने का सुत्र लिखिए।
उत्तर:
वर्गीकृत आकड़ों से अप्रत्यक्ष विधि द्वारा माध्य की गणना अग्र सूत्र द्वारा की जाती है-
\(\overline{\mathrm{X}}=\mathrm{A} \pm \frac{\Sigma \mathrm{fd}}{\mathrm{N}}\)
यहाँ \(\overline{\mathrm{X}}\) = माध्य
A = कल्पित माध्य वाले वर्ग का मध्य बिन्दु 1 = आवृत्ति
d = कल्पित माध्य वाले वर्ग (A) से विचलन
N = कुल पदों की संख्या अर्थात् ∑f
प्रश्न 2.
निम्नांकित को स्पष्ट कीजिए –
(i) वर्ग सीमा
(ii) वर्ग विस्तार
(iii) मध्य मूल्य।
उत्तर:
(i) वर्ग सीमा – वस्तुतः प्रत्येक वर्ग दो संख्याओं से बनता है। यह संख्याएं ही वर्ग की सीमाएं कहलाती हैं। इसमें पहली संख्या निम्न सीमा व दूसरी संख्या उच्च सीमा कहलाती है। जैसे-यदि वर्ग 30-40 है, तो 30 निम्न सीमा तथा 40 उच्च सीमा होगी।
(ii) वर्ग विस्तार – किसी वर्ग की उच्च सीमा एवं निम्न सीमा का अन्तर ही वर्ग विस्तार कहलाता है। इसे से प्रदर्शित किया जाता है।
अत: i = L2 – L1
यहाँ L2 = उच्च सीमा
L1 = निम्न सीमा
(iii) मध्य मूल्य – वर्ग सीमाओं का मध्य स्थान मध्य मूल्य कहलाता है। इसे निम्न सूत्र से ज्ञात किया जाता है –
मध्य मूल्य = \(\frac{L_1+L_2}{2}\) यहाँ L1 = निम्न सीमा
L1 = उच्च सीमा
प्रश्न 3.
निम्नांकित अवर्गीकृत आँकड़ों से माध्य ज्ञात कीजिए –
312, 208, 104, 72, 68, 40, 24, 22, 18, 16
उत्तर:
चूंकि समान्तर माध्य \(\bar{X}=\frac{\Sigma x}{N}\)
यहाँ ∑x = पदों के मूल्यों का योग
N= पदों की संख्या
अतः \(\overline{\mathrm{X}}\) = \(\frac{312+208+104+72+68+40+24+22+18+16}{10}\)
\(\overline{\mathrm{X}}\) = \(\frac{884}{10}\)
समान्तर माध्य \(\overline{\mathrm{X}}\) = 88.4
प्रश्न 4.
निम्नांकित ऊँचाइयों का उपयोग करते हुए हिमालय की पर्वतीय चोटियों की माध्यिका ऊँचाई की गणना कीजिए-
8,126 मी., 8,611 मी. 7,817 मी., 8,172 मी., 8,076 मी., 8,848 मी., 8,598 मी.।
उत्तर:
अवर्गीकृत आंकड़ों के लिए माध्यिका की गणना – साधारणतया माध्यिका श्रृंखला में ऐसा मान होता है, जिसके दोनों ओर बराबर संख्या में पदीय मान होता है। इसकी गणना सामान्यतः निम्न चरणों में की जाती है –
(i) सर्वप्रथम अवर्गीकृत आंकड़ों को आरोही या अवरोही क्रम में व्यवस्थित करते हैं।
(ii) इसके बाद व्यवस्थित श्रेणी में मध्यवर्ती पद के मान की स्थिति ज्ञात करके माध्यिका प्राप्त करते हैं।
अतः प्रश्नानुसार आंकड़ों का आरोही क्रम में व्यवस्थापन निम्न प्रकार से होगा –
7,817; 8,076; 8,126; 8,172; 8,598; 8,611;8,848
∵ माध्यिका M = \(\frac {N+ 1}{2}\) वाले पद का मान
यहाँ पद संख्या 7 है।
∴ M = \(\frac {N+ 1}{2}\)
M = \(\frac {8}{2}\) = 4
अतः माध्यिका चौथे पद पर स्थित मान होगा, जो 8,172 मी. है।
अर्थात् M = 8,172 मी.
प्रश्न 5.
निम्नांकित दस विद्यार्थियों के भूगोल की परीक्षा में प्राप्तांकों के लिए बहुलक की गणना कीजिए-
61, 10, 88, 37, 61, 72, 55, 61, 46, 22
उत्तर:
अवर्गीकृत आंकड़ों के लिए बहुलक की गणना – वस्तुत: किसी श्रेणी में जिस मान की सर्वाधिक पुनरावृत्ति होती है, वह मान उस श्रेणी का बहुलक कहलाता है। इसकी गणना के लिए सबसे पहले अवर्गीकृत मापों को आरोही या अवरोही क्रम में व्यवस्थित कर लेते हैं। इससे सर्वाधिक पुनरावृत्ति वाले मान की पहचान आसानी से हो जाती है। अतः दिए गए आंकड़ों का आरोही क्रम में व्यवस्थापन निम्न प्रकार से होगा –
10, 22, 37, 46, 55, 61, 61, 61, 72, 88
इस प्रकार स्पष्ट है कि दिए गए आंकड़ों में सर्वाधिक बार आने वाला मान 61 है। अतः उपर्युक्त श्रेणी का बहुलक 61 होगा।
अर्थात् Z अथवा M0 = 61
Z/M0 = बहुलक
प्रश्न 6.
सामान्य वितरण वक्र की आकृति घंटाकार वक्र जैसी क्यों होती है?
उत्तर:
सामान्य वितरण वक्र-साधारणतया सामान्य वितरण वक्र की सहायता से केंद्रीय प्रवृत्ति के तीनों मापों (माध्य, माध्यिका और बहुलक) की तुलना आसानी से की जा सकती है। इस वक्र में माध्य, माध्यिका और बहुलक का मान समान होता है। इसमें अधिकत्तम आवृत्ति का मान वितरण के मध्य में होता है तथा इस मध्य बिन्दु से आधी इकाइयाँ ऊपर तथा आधी नीचे स्थित होती हैं।
इस प्रकार अधिकतर इकाइयाँ वितरण के मध्य में अथवा माध्य के निकट स्थित होती हैं। इस प्रकार यह वितरण वक्र सममित होता है। अतः सममित होने के कारण आवृत्तियों के वितरण को प्रदर्शित करने वाले इस वक्र की आकृति घंटाकार वक्र जैसी होती है।
प्रश्न 7.
केंद्रीय प्रवृत्ति के माप से क्या अभिप्राय है? इसके विभिन्न माप कौन-कौन से हैं?
उत्तर:
केंद्रीय प्रवृत्ति का माप-आंकड़ों अथवा समंक श्रेणियों के वितरण में एक ऐसा मध्य बिन्दु होता है, जिसके आस-पास अधिकांश समंकों के केन्द्रित होने की प्रवृत्ति होती है । वितरण के इस केंद्रीय बिन्दु को ज्ञात करने वाली सांख्यिकीय विधियों को ही केंद्रीय प्रवृत्ति के माप कहा जाता है। केंद्रीय प्रवृत्ति रखने वाली यह संख्या सभी आंकड़ों के समूह की प्रतिनिधि संख्या होती है।
अतः केंद्रीय प्रवृत्ति का माप एक ऐसा संक्षिप्त तथा सरल माप है, जो समंक श्रेणी के प्रमुख अभिलक्षणों पर प्रकाश डालता है। इस कारण केंद्रीय प्रवृत्ति के माप सांख्यिकीय औसत के नाम से भी जाने जाते हैं। केंद्रीय प्रवृत्ति के यद्यपि कई माप हैं, परन्तु इनमें माध्य, माध्यिका और बहुलक सबसे अधिक महत्वपूर्ण माप हैं।
प्रश्न 8.
निम्नांकित दैनिक मजदूरी के वितरण के लिए विस्तार की गणना कीजिए –
रुपए 28, 36, 40, 42, 45, 48, 50, 52, 55, 58, 60, 100
उत्तर:
विस्तार की गणना – विस्तार (R) की गणना अग्र सूत्र की सहायता से की जाती है –
R = L – S
R = 100 – 28
R = 72
यहाँ R = विस्तार
L = अधिकतम मान
S = न्यूनतम मान
प्रश्न 9.
विचरण गुणांक की उपयोगिता बताते हुए इसको ज्ञात करने का सूत्र बताइए।
उत्तर:
विचरण गुणांक का उपयोग जब आंकड़े माप की अलग-अलग इकाइयों में भिन्न-भिन्न स्थानों अथवा अवधियों के होते हैं तथा इनकी परस्पर तुलना करनी होती है, तब विचरण गुणांक का उपयोग किया जाता है। अतः मानक विचलन के गुणांक का उपयोग विभिन्न श्रेणियों के प्रमाप / मानक विचलन का तुलनात्मक अध्ययन एवं विवेचन के लिए किया जाता है। वस्तुतः मानक विचलन के माध्यम को माध्य प्रतिशत के रूप में व्यक्त करना विचरण गुणांक कहलाता है। विचरण गुणांक का निर्धारण अग्र सूत्र के उपयोग द्वारा होता है –
अर्थात् CV = \(\frac{\sigma}{\bar{X}} \times 100}\)
प्रश्न 10.
कोटि सहसम्बन्ध की गणना किस सूत्र द्वारा की जाती है? लिखिए।
उत्तर:
कोटियों के आधार पर सर्वप्रथम स्पीयरमैन ने सहसम्बन्ध की गणना करने के लिए कोटि सहसम्बन्ध विधि का प्रयोग किया। इसे निम्न सूत्र द्वारा प्राप्त किया जाता है –
ρ = 1 – \(\frac{6 \Sigma D^2}{N\left(N^2-1\right)}\)
यहाँ ρ = कोटि सहसम्बन्ध (Rho – रो)
∑D2 = दोनों कोटियों x वy के अन्तर के वर्ग का योग
N = X – Y युग्मों की संख्या
प्रश्न 11.
सहसम्बन्ध की दिशा से क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
सहसम्बन्ध की दिशा- जब कोई दो चर मूल्य परस्पर एक दिशा में या विपरीत दिशा में घटने-बढ़ने की प्रवृत्ति रखते हैं, तो ऐसी स्थिति में उनके मध्य एक विशेष प्रकार का सम्बन्ध पाया जाता है। यह सम्बन्ध ही सह- सम्बन्ध कहलाता है। साधारणतः सहसम्बन्ध दो प्रकार का होता है-
धनात्मक एवं ऋणात्मक सहसम्बन्ध।
(i) धनात्मक सहसम्बन्ध – जब दो समंक चर परस्पर एक ही दिशा में विचरण करते हैं अर्थात् एक चर में वृद्धि या कमी होने पर दूसरे चर में भी वृद्धि या कमी हो तो उसे धनात्मक सहसम्बन्ध कहते हैं। इसे के चिह्न से दर्शाया जाता है।
(ii) ऋणात्मक सहसम्बन्ध-जब एक चर में वृद्धि होने पर दूसरे में कमी हो अथवा एक चर में कमी होने पर दूसरे में वृद्धि हो तो दोनों चरों के परस्पर विपरीत गमन के कारण यह ऋणात्मक सहसम्बन्ध कहलाता है। इसे के चिह्न से प्रदर्शित करते हैं। इस प्रकार सहसम्बन्ध की दो दिशाएं होती हैं- धनात्मक एवं ऋणात्मक।
प्रश्न 12.
आँकड़ों के विश्लेषण के लिए कौन- कौनसी सांख्यिकीय विधियों का उपयोग किया जाता है?
उत्तर:
आँकड़ों के विश्लेषण के लिए केन्द्रीय प्रवृत्ति के माप, प्रकीर्णन के माप तथा सम्बन्ध के माप आदि सांख्यिकीय विधियों का उपयोग किया जाता है। केन्द्रीय प्रवृत्ति के माप, जैसे- माध्य, माध्यिका तथा बहुलक पर्यवेक्षणों के समूह का आदर्श प्रतिनिधिकारी मूल्य प्रस्तुत करते हैं। प्रकीर्णन के माप आँकड़ों की आंतरिक विषमताओं को दर्शाते हैं। यह विस्तार, मानक विचलन, माध्य विचलन, प्रसरण, विचरण गुणांक एवं लॉरेंज वक्र आदि होते हैं। सम्बन्ध के माप दो या दो से अधिक घटनाओं, जैसे वर्षा तथा बाढ़ की घटना साहचर्य की गहनता को प्रस्तुत करते हैं।
प्रश्न 13.
मानक विचलन किसे कहते हैं? यह माध्य विचलन से किस प्रकार भिन्न है?
उत्तर:
मानक विचलन (S.D.) से आशय मानक विचलन किसी श्रृंखला के समान्तर माध्य से ज्ञात किए गए उसके विभिन्न पद-मूल्यों के विचलनों के वर्गों के माध्य के वर्गमूल को कहा जाता है। यह एक आदर्श और वैज्ञानिक अपकिरण माप होता है। माध्य विचलन से भिन्नता – यद्यपि मानक विचलन एवं माध्य विचलन दोनों ही प्रकीर्णन मापन की विधियां हैं, फिर भी इनमें कुछ मूलभूत अंतर पाए जाते हैं, जैसे –
(1) मानक विचलन विभिन्न पद-मूल्यों के विचलनों के वर्गों के माध्य का वर्गमूल होता है, जबकि माध्य विचलन विभिन्न पद-मूल्यों के विचलनों का समान्तर माध्य होता है।
(2) मानक विचलन के आकलन में मूल्य के विचलन सदैव समान्तर माध्य से ही ज्ञात किए जाते हैं, जबकि माध्य विचलन के आकलन में मूल्य के विचलन समांतर माध्य माध्यिका या बहुलक में से किसी से भी ज्ञात किए जा सकते हैं।
निबन्धात्मक प्रश्न
प्रश्न 1.
निम्नांकित तालिका में दिए गए आंकड़ों के प्रयोग से फैक्ट्री में काम करने वाले श्रमिकों की अप्रत्यक्ष विधि के माध्यम से माध्य मजदूरी दर की गणना कीजिए –
तालिका: फैक्ट्री श्रमिकों की मजदूरी दर
उत्तर:
समान्तर माध्य ज्ञात करने की अप्रत्यक्ष विधि-वर्गीकृत आंकड़ों का इस विधि से निम्नांकित क्रम में गणना करकै समान्तर माध्य निकाला जाता है-
(i) सर्वप्रथम प्रथम एवं द्वितीय स्तंभ में क्रमश: वर्ग और आवृत्ति प्रदर्शित करते हैं।
(ii) इसके पश्चात् श्रेणी के प्रत्येक वर्गान्तर का मध्य मूल (X) ज्ञात करते हैं, जिसे तृतीय स्तंभ में दर्शाते हैं।
(iii) फिर मध्य मूल्यों (X) में से किसी एक मूल्य को कल्पित माध्य (A) मान लिया जाता है।
(iv) इसके बाद विचलन (d) ज्ञात करने के लिए मध्य मूल्य (X) में से कल्पित माध्य (A) को घटाया जाता है। इसे चौथे स्तंभ में दर्शाते हैं ।
(v) इसके बाद विचलन मूल्य (d) में वर्ग अंतराल (i) का भाग देकर उस पद का पद विचलन (dx) ज्ञात करते हैं, इसे पाँचवें स्तम्भ में लिखा जाता है।
(vi) फिर प्रत्येक पद विचलन (dix) को सम्बन्धित आवृत्ति (1) से गुणा करके fd’x का मान ज्ञात करते हैं। इसको छठे स्तम्भ में दर्शाया जाता है। इस प्रकार ज्ञात fd’x मूल्यों का योग Lid’ x से दर्शाते हैं।
(vii) N का मान ज्ञात करने के लिए समस्त आवृत्तियों का योग कर लिया जाता है और अन्त में प्राप्त सभी मानों को सूत्र में लगाकर समान्तर माध्य ज्ञात कर लेते हैं।
गणना – अप्रत्यक्ष विधि से समांतर माध्य का परिकलन करने की प्रक्रिया –
∵ \(\overline{\mathrm{X}}=\mathrm{A} \pm \frac{\sum \mathrm{fd}^{\prime} \mathrm{x}}{\mathrm{N}} \times \mathrm{i}\)
जिसमें A = कल्पित माध्य
f = आवृत्ति
∑f या N = आवृत्तियों का योग
i = वर्ग अन्तराल, जो उदाहरण में 20 हैं।
∑fd’x = विचलित मूल्यों और आवृत्तियों के हैं।
गुणनफल का योग
∴ \(\overline{\mathrm{X}}\) = 100 + \(\frac {13}{99}\) x 20
= 100 + \(\frac {260}{99}\)
= 100 + 2.6
\(\overline{\mathrm{X}}\) = 102.6
अतः श्रमिकों की माध्य मजदूरी दर 102.6 रुपए/ दिन हैं।
प्रश्न 2.
एक काल्पनिक उदाहरण की सहायता से प्रत्यक्ष विधि का उपयोग करते हुए वर्गीकृत आंकड़ों से समांतर माध्य की गणना कीजिए।
उत्तर:
वर्गीकृत आंकड़ों से समांतर माध्य की गणना- जब आवृत्ति वितरण के रूप में आंकड़े वर्गीकृत होते हैं, तब उनमें एकाकी मूल्य अपनी पहचान को खो देते हैं। तब इन सभी मूल्यों का प्रतिनिधित्व वर्ग अंतराल के मध्य बिंदुओं द्वारा किया जाता है, जहां वे स्थिर होते हैं। प्रत्यक्ष विधि से वर्गीकृत आंकड़ों के लिए माध्य की गणना निम्नांकित प्रक्रिया तथा सूत्र द्वारा की जाती है –
(i) सर्वप्रथम सतत श्रेणियों या वर्गान्तरों का मध्यमान अथवा मध्य बिन्दु ज्ञात करते हैं। इसे तालिका के तीसरे स्तंभ में ‘x’ से दर्शाते हैं।
(ii) इसके पश्चात् प्राप्त मध्य मूल्यों का उनकी सम्बन्धित आवृत्तियों (f) से गुणा किया जाता है, जिसे चौथे स्तंभ में दर्शाते हैं।
(iii) इसके बाद सभी मध्य मूल्य (x) और आवृत्तियों (f) के गुणनफलों (fx) का कुल योग (∑fx) ज्ञात करते हैं।
(iv) तत्पश्चात् इस गुणनफल के कुल योग (∑fx) में 1. आवृत्तियों के कुल योग (∑f या N) का भाग देते हैं।
(v) प्राप्त भागफल समांतर माध्य होता है।
सूत्र – समांतर माध्य की गणना निम्नांकित सूत्र द्वारा की जाती है –
\(\overline{\mathrm{X}}\) = \(\overline{\mathrm{X}}\) जिसमें, \(\overline{\mathrm{X}}\) = समान्तर माध्य
N= पदों / आवृत्तियों की संख्या
∑fx = आवृत्ति और सम्बन्धित मध्य मूल्यों के गुणनफल का योग
उदाहरण – निम्न वर्गीकृत समंकों में एक फैक्ट्री में काम करने वाले श्रमिकों की मजदूरी और श्रमिकों की संख्या दी गई है। श्रमिकों की माध्य मजदूरी दर की गणना कीजिए।
उत्तर:
चूंकि \(\overline{\mathrm{X}}\) = \(\frac{\Sigma \mathrm{fx}}{\mathrm{N}}\)
\(\overline{\mathrm{X}}\) = \(\frac{10,160}{99}\) = 102.6
यहाँ,
\(\overline{\mathrm{X}}\) = समान्तर माध्य
∑fx = आवृत्ति एवं मध्य बिन्दु के गुणनफल का योग
N = आवृत्तियों या मदों का योग अतः 99 श्रमिकों की माध्य मजदूरी दर 102.6 रु. प्रतिदिन होगी।
प्रश्न 3.
माध्यिका को परिभाषित करते हुए निम्न वितरण के लिए माध्यिका की गणना कीजिए-
उत्तर:
माध्यिका से आशय किसी श्रृंखला के पदों को आरोही अथवा अवरोही क्रम में व्यवस्थित करने के पश्चात् जो पद श्रेणी के मध्य में स्थित होता है, वह श्रृंखला का माध्यिका बिन्दु कहलाता है। अतः माध्यिका एक ऐसा बिन्दु है, जिसके दोनों ओर बराबर संख्या में पदीय मान होते हैं। यह एक स्थितिक औसत है। इसे ‘M’ के द्वारा प्रदर्शित किया जाता है।
माध्यिका की गणना –
अत: M = \(\frac {N}{2}\) वाले पद का मान
= \(\frac {50}{2}\)
= 25
चूंकि 25वें पद की संचयी आवृत्ति 37 है, जिसका वर्ग 80 – 90 है। यही वर्ग माध्यिका वर्गान्तर है, जिसे माध्यिका वर्ग कहते हैं।
अतः माध्यिका M = l + \(\frac {i}{f}\)(m – c)
जिसमें M= वर्गीकृत आंकड़ों के लिए माध्यिका
i = वर्ग अन्तराल (जो प्रश्न में 10 है।)
l = माध्यिका वर्ग (80-90 ) की निम्न सीमा
f = माध्यिका वर्ग (80-90) की आवृत्ति (जो यहां 16 है।)
m = \(\frac {N}{2}\) से निकाला गया पद
c = माध्यिका वर्ग से पहले वाले वर्ग की संचयी आवृत्ति (जो उदाहरण में 21 है।)
इस प्रकार M = 80 + \(\frac {10}{16}\) (25 – 21)
= 80 + \(\frac {5}{8}\) x 4
= 80 + \(\frac {5}{2}\)
= 80 + 2.5
M = 82.5
अतः माध्यिका 82.5 है।
प्रश्न 4.
बहुलक को परिभाषित करते हुए इसके विभिन्न स्वरूपों की व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
(1) बहुलक से आशय-किसी श्रृंखला में जिस मान की सर्वाधिक पुनरावृत्ति होती है, वह मान उस श्रृंखला का बहुलक कहलाता है। अतः बहुलक वह मूल्य या पद है, जो किसी श्रृंखला में सबसे अधिक बार आता है। बहुलक को साधारणतया Z अथवा M0 से प्रदर्शित किया जाता है।
(2) बहुलक के स्वरूप कभी-कभी किसी श्रेणी में एक से अधिक बहुलक भी हो सकते हैं। वस्तुतः आवृत्तियों की पुनरावृत्ति के आधार पर बहुलक श्रेणी निम्न प्रकार की होती है-
(i) एक बहुलक श्रेणी- जब दिए गए आंकड़ों में एक ही पद की पुनरावृत्ति होती है, तो वह श्रेणी एक बहुलक श्रेणी कहलाती है। उदाहरणस्वरूप-भूगोल के 10 विद्यार्थियों की परीक्षा के प्राप्तांक निम्न प्रकार से हैं –
61, 10, 88, 37, 61, 72, 55, 61, 46, 42
चूंकि उपर्युक्त प्राप्तांकों में मात्र 61 अंक की पुनरावृत्ति तीन बार हुई है, अतः इस श्रेणी का बहुलक मान 61 होगा।
(ii) द्वि-बहुलक श्रेणी-जब दिए गए आंकड़ों में दो मानों के वितरण की समान पुनरावृत्ति होती है, तब आंकड़ों के इस समूह के स्वरूप वाली श्रेणी द्वि-बहुलक श्रेणी कहलाती है, जैसे किसी परीक्षा में 12 विद्यार्थियों के प्राप्तांक निम्न प्रकार से हैं –
12, 14, 14, 14, 18, 20, 21, 21, 21, 28, 30, 34
उपर्युक्त प्राप्तांकों में मात्र 14 और 21 अंकों की तीन बार समान रूप से पुनरावृत्ति हुई है। इसलिए इस श्रेणी का स्वरूप द्वि-बहुलक प्रकार का है।
(iii) त्रि- बहुलक श्रेणी-जब दिए गए आंकड़ों में किन्हीं तीन मानों की पुनरावृत्ति समान तथा सबसे अधिक बार होती है, तो उस श्रेणी को त्रि-बहुलक श्रेणी कहते हैं।
उदाहरणस्वरूप –
10 विद्यार्थियों की आयु निम्न प्रकार से है-
12, 17, 17, 13, 16, 19, 11, 16, 10, 11
उपर्युक्त श्रेणी में मात्र 11, 16 और 17 आयु वर्ग की पुनरावृत्ति सर्वाधिक और समान रूप से हुई है। इस आधार पर यह श्रेणी त्रि- बहुलक श्रेणी है।
(iv) बहु-बहुलक श्रेणी-जब दिए गए आंकड़ों में कई मानों की समान रूप से पुनरावृत्ति होती है, तब वह श्रेणी बहु बहुलक श्रेणी होती है, जैसे –
गणित विषय में 12 विद्यार्थियों के प्राप्तांक निम्न प्रकार से हैं –
8, 12, 10, 8, 4, 10, 6, 12, 16, 16, 7, 9
उपर्युक्त प्राप्तांकों में सर्वाधिक बार पुनरावृत्ति 8, 10, 12 और 16 अंकों की है। चूंकि इस श्रेणी में कई मानों की समान रूप से पुनरावृत्ति हुई है, अत: यह श्रेणी बहु-बहुलक श्रेणी है।
(v) बहुलक रहित श्रेणी-उ -जब किसी श्रेणी में एक बार भी किसी भी मान की पुनरावृत्ति नहीं होती है, तब वह श्रेणी बहुलक रहित श्रेणी कहलाती है।
जैसे – हिन्दी विषय के 10 विद्यार्थियों के प्राप्तांक निम्न प्रकार से हैं –
20, 32, 37, 42, 57, 65, 74, 76, 79, 80
चूंकि उपर्युक्त श्रेणी में एक भी अंक की पुनरावृत्ति नहीं हुई है, इस कारण यह श्रेणी बहुलक रहित श्रेणी का स्वरूप है।
प्रश्न 5.
प्रकीर्णन से क्या अभिप्राय है? इसके मापन की विधियों के बारे में बताइए।
उत्तर:
प्रकीर्णन से आशय प्रकीर्णन किसी श्रेणी में केन्द्रीय मान से विभिन्न मूल्यों के बिखराव अथवा विषमता की मात्रा है। यह माप औसत मूल्य से किसी इकाई की विषमता की प्रवृत्ति का मापन करता है। इसको सामान्यतः अपकिरण विक्षेपण या विचलन भी कहा जाता है। साधारणतया प्रकीर्णन निम्नांकित दो आधारभूत उद्देश्यों की पूर्ति करता है –
(i) प्रकीर्णन से वितरण या श्रेणी के संघटन की प्रकृति का ज्ञान होता है।
(ii) इसकी सहायता से दिए हुए वितरण की तुलना स्थिरता अथवा समरूपता के आधार पर हो जाती है।
प्रकीर्णन के मापन की विधियाँ – प्रकीर्णन के मापन की कई विधियाँ हैं, जैसे- विस्तार, चतुर्थक विचलन, माध्य विचलन, मानक विचलन, विचरण गुणांक तथा लॉरेंज वक्र आदि । परन्तु इसमें विस्तार, मानक विचलन तथा विसरण गुणांक सर्वाधिक प्रचलित माप हैं।
(1) विस्तार – विस्तार प्रकीर्णन के मापन की सरलतम विधि है। साधारणतः किसी श्रृंखला में अधिकतम व न्यूनतम मूल्यों का अन्तर विस्तार (R) कहलाता है। इस प्रकार यह किसी श्रेणी में सबसे छोटे से लेकर सबसे बड़े माप की दूरी है। विस्तार की गणना निम्न प्रकार से की जाती सर्वप्रथम श्रेणी के अधिकतम मूल्य और न्यूनतम मूल्य को ज्ञात कर लिया जाता है। वर्गीकृत श्रेणी में अधिकतम वर्ग की ऊपरी सीमा को अधिकतम मूल्य और न्यूनतम वर्ग की निचली सीमा का न्यूनतम मूल्य माना जाता है। इसके पश्चात् इसकी गणना निम्न सूत्र के द्वारा कर ली जाती है –
R = L – S
यहाँ R = विस्तार
L = अधिकतम मान का प्रतीक
S = न्यूनतम मान का प्रतीक
(2) मानक विचलन – प्रकीर्णन के मापन में मानक विचलन (S.D.) सबसे अधिक प्रचलित माप है। यह प्रकीर्णन का सर्वाधिक स्थिर मापं होता है । साधारणतः मानक विचलन किसी श्रेणी के समान्तर माध्य से ज्ञात किए गए उसके विभिन्न पद-मूल्यों के विचलनों के वर्गों के माध्य के वर्गमूल को कहते हैं। प्रकीर्णन मापन की इस विधि का सर्वप्रथम प्रयोग कार्ल पियर्सन ने किया था। इसे ग्रीक अक्षर σ (सिग्मा ) द्वारा प्रदर्शित किया जाता है। इसके आकलन में मूल्य के विचलन सदैव समान्तर माध्य से ही ज्ञात किए जाते हैं। मानक विचलन का आकलन निम्न सूत्र के द्वारा किया जाता है –
σ = \(\sqrt{\frac{\Sigma \mathrm{x}^2}{\mathrm{~N}}}\)
यहाँ σ = मानक विचलन
∑x2 = विचलनों के वर्गों का योग
N = पदों की संख्या
(3) विचरण गुणांक (CV) – यदि आँकड़े माप की अलग-अलग इकाइयों में भिन्न-भिन्न स्थानों अथवा अवधियों के हों तथा उनकी परस्पर तुलना करनी हो तो विसरण गुणांक बहुत उपयोगी सिद्ध होता है। मानक विचलन के माध्यम को माध्य प्रतिशत के रूप में व्यक्त करना विचरण गुणांक कहलाता है। इसका आकलन निम्न सूत्र के द्वारा किया जाता है –
अर्थात् Cv = \(\frac{\sigma}{\overline{\bar{X}}} \times 100\)
प्रश्न 6.
निम्नांकित आंकड़ों के लिए स्पीयरमैन के कोटि सहसम्बन्ध की गणना कीजिए-
उत्तर:
स्पीयरमैन के कोटि सहसम्बन्ध की गणना-
उत्तर:
गणना –
चूँकि ρ = 1 – \(\frac{6 \Sigma D^2}{N\left(N^2-1\right)}\)
ρ = 1 – \(1-\frac{6 \times 8}{10\left(10^2-1\right)}\)
= \(1-\frac{48}{10(100-1)}\)
= \(1-\frac{48}{10(99)}\)
= 1 – 0.05
ρ = 0.95
यहाँ,
ρ = कोटि सहसम्बन्ध
∑D2 = X तथा Y चरों की कोटियों के अन्तर के वर्ग का योग
N = चरों की संख्या
अतः X एवं Y चरों के मध्य कोटि सहसम्बन्ध (ρ) 0.95 हैं।
प्रश्न 7.
निम्नांकित वर्गीकृत समंकों के लिए मानक विचलन की गणना कीजिए-
उत्तर:
वर्गीकृत समंकों के लिए मानक विचलन की गणना –
यहाँ
σ मानक विचलन
i = वर्ग अन्तराल (जो यहाँ 10 है।)
N = आवृत्तियों का योग अर्थात्
x’ = कल्पित माध्य से पद विचलन
f = आवृत्ति
मानक विचलन का सूत्र – σ = i x \(\sqrt{\frac{\Sigma \mathrm{fx}^{\prime 2}}{\mathrm{~N}}-\left(\frac{\Sigma \mathrm{fx}^{\prime}}{\mathrm{N}}\right)^2}\)
∴ σ = \(10 \times \sqrt{\frac{28}{20}-\left(\frac{4}{20}\right)^2}\)
= \(10 \times \sqrt{1.4-(0.2)^2}\)
= \(10 \times \sqrt{1.4-0.04}\)
= \(10 \times \sqrt{1.36}\)
∴ σ = 11.66 or 11.7
इस प्रकार मानक विचलन 11.7 होगा।
उपर्युक्त गणनाओं के पदों का सारांश निम्नानुसार है –
(1) प्रथम स्तम्भ में दिए गए वर्गों को अंकित किया गया हैं।
(2) द्वितीय स्तम्भ में आवृत्तियाँ लिखी गई हैं।
(3) तृतीय स्तम्भ में कल्पित माध्य से पद विचलन दिए गए हैं। उपर्युक्त उदाहरण में वर्ग 130-140 में कल्पित माध्य माना गया है। अतः इस मध्यान्तर वर्ग के सम्मुख कल्पित माध्य से पद विचलन शून्य दिया गया है।
(4) इसके उपरान्त मध्यान्तर वर्ग की तुलना में 120- 130 वाला वर्ग एक पद कम (1) तथा 110-120 वाला वर्ग दो पद (- 2) कम होंगे। इसी प्रकार 130-140 वाले वर्ग की तुलना में 140-150 वाला वर्ग एक पद अधिक (+ 1) तथा 150-160 वाला वर्ग दो पद अधिक ( + 2 ) होगा।
(5) चतुर्थ स्तम्भ में f (आवृत्ति) और x’ (पद विचलन) को गुणा करके लिखा गया है।
(6) पाँचवें स्तम्भ में x’ और fx’ को गुणा करके fx 2 का मान लिखा गया है।
(7) इसके बाद सभी स्तम्भों के मानों का योग कर लिया गया है।
(8) प्राप्त मानों को मानक विचलन को ज्ञात करने के सूत्र में उपयुक्त स्थानों पर रखकर हल करने से मानक विचलन 11.7 प्राप्त हुआ है।