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NCERT Class 12 Geography Chapter 4 Solutions in Hindi मानव विकास
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प्रश्न 1.
क्या वृद्धि और विकास का एक ही अर्थ है? क्या दोनों एक-दूसरे के साथ चलते हैं?
उत्तर:
वृद्धि तथा विकास का एक ही अर्थ नहीं होता है। वृद्धि मात्रात्मक तथा मूल्यनिरपेक्ष होती है। यह धनात्मक या ऋणात्मक हो सकती है अर्थात् परिवर्तन धनात्मक अथवा ऋणात्मक हो सकता है। इसके विपरीत विकास गुणात्मक परिवर्तन है, जो मूल्य सापेक्ष होता है। विकास सामान्यतः उस समय होता है, जब गुणवत्ता में सकारात्मक परिवर्तन होता है।
पाठ्यपुस्तक के प्रश्न
प्रश्न 1.
नीचे दिए गए चार विकल्पों में से सही उत्तर चुनिए-
(i) निम्नलिखित में से कौनसा विकास का सर्वोत्तम वर्णन करता है?
(अ) आकार में वृद्धि
(ब) गुण में धनात्मक परिवर्तन
(स) आकार में स्थिरता
(द) गुण में साधारण परिवर्तन।
उत्तर:
(ब) गुण में धनात्मक परिवर्तन
(ii) मानव विकास की अवधारणा निम्नलिखित में से किस विद्वान की देन है?
(अ) प्रो. अमर्त्य सेन
(ब) डॉ. महबूब-उल-हक
(स) एलन सी. सेम्पुल
(द) रैटजेल।
उत्तर:
(ब) डॉ. महबूब-उल-हक
प्रश्न 2.
निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर लगभग 30 शब्दों में दीजिए-
(i) मानव विकास के तीन मूलभूत क्षेत्र कौनसे हैं?
उत्तर:
(1) संसाधनों तक पहुँच
(2) स्वास्थ्य एवं
(3) शिक्षा मानव विकास के तीन मूलभूत क्षेत्र हैं।
(ii) मानव विकास के चार प्रमुख घटकों के नाम लिखिए।
उत्तर:
मानव विकास के चार प्रमुख घटक हैं –
(1) समता
(2) सतत पोषणीयता
(3) उत्पादकता और
(4) सशक्तीकरण।
(iii) मानव विकास सूचकांक के आधार पर देशों का वर्गीकरण किस प्रकार किया जाता है?
उत्तर:
मानव विकास सूचकांक के आधार पर देशों को निम्न चार समहों में विभाजित किया जाता है-
मानव विकास स्तर | सूचकांक का स्कोर | देशों की संख्या |
अति उच्च | 0.800 से ऊपर | 59 |
उच्च | 0.701 से 0.799 के बीच | 53 |
मध्यम | 0.550 से 0.700 के बीच | 39 |
निम्न | 0.549 से नीचे | 38 |
प्रश्न 3.
निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर 150 शब्दों से अधिक में न दीजिए।
(i) मानव विकास शब्द से आपका क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
मानव विकास-मानव विकास से तात्पर्य लोगों के विकल्पों को विकसित करंने व परिवर्द्धित करने की प्रक्रिया से है। अर्थात् मानव के आर्थिक, सामाजिक, सांस्कृतिक और राजनैतिक विकास के विकल्पों को परिवर्द्धित करने की प्रक्रिया ही मानव विकास का लक्ष्य है। मानव विकास की अवधारणा का प्रतिपादन-मानव विकास की अवधारणा का प्रतिपादन डॉ. महबूब-उल-हक के द्वारा किया गया था।
डॉ. हक ने मानव विकास का वर्णन एक ऐसे विकास के रूप में किया जो कि लोगों के विकल्पों में वृद्धि करता है तथा उनके जीवन में सुधार लाता है। इस अवधारणा में सभी प्रकार के विकास का केन्द्र बिन्दु मनुष्य है। ये विकल्प स्थिर न होकर परिवर्तनशील हैं। विकास का मूल उद्देश्य इस प्रकार की दशाओं को उत्पन्न करना है जिनमें लोग सार्थक जीवन व्यतीत कर सकते हैं।
इस सन्दर्भ में मानव विकास के निम्न तीन सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण पक्ष हैं –
(1) दीर्घ एवं स्वस्थ जीवन
(2) साक्षर होना
(3) आवश्यक संसाधनों की उपलब्धता।
मानव विकास के केन्द्र – बिन्दु-संसाधनों तक पहुँच, स्वास्थ्य एवं शिक्षा मानव विकास के केन्द्र-बिन्दु हैं। इन पक्षों में से प्रत्येक के मापन के लिए उपयुक्त सूचकों का विकास किया गया है। प्रायः लोगों में अपने आधारभूत विकल्पों को तय करने की क्षमता और स्वतन्त्रता नहीं होती। यह ज्ञान प्राप्त करने की अक्षमता उनकी भौतिक निर्धनता, सामाजिक भेदभाव, संस्थाओं की अक्षमता और अन्य कारणों की वजह से हो सकता है। इससे दीर्घ एवं स्वस्थ जीवन जीने, शिक्षा प्राप्ति के योग्य होने और एक शिष्ट जीवन जीने के साधनों को प्राप्त करने में बाधा आती है।
विकल्पों में वृद्धि करना – लोगों के विकल्पों में वृद्धि करने के लिए स्वास्थ्य, शिक्षा और संसाधनों तक पहुँच में उनकी क्षमताओं का निर्माण करना महत्त्वपूर्ण है। यदि किसी क्षेत्र के लोगों की क्षमताएँ सीमित हैं, तो उनके विकल्प भी सीमित हो जायेंगे, जिससे मानव विकास का स्तर निम्न बना रहेगा।
(ii) मानव विकास अवधारणा के अन्तर्गत समता और सतत पोषणीयता से आप क्या समझते हैं?
उत्तर:
मानव विकास के स्तम्भ-जिस प्रकार किसी इमारत को स्तम्भों का सहारा होता है उसी प्रकार मानव विकास का विचार भी समता, सतत पोषणीयता, उत्पादकता तथा सशक्तीकरण की संकल्पनाओं पर आश्रित है। समता का आशय-समता का आशय प्रत्येक व्यक्ति को उपलब्ध अवसरों के लिए समान पहुँच की व्यवस्था करना है। लोगों को उपलब्ध अवसर लिंग, प्रजाति, आय और भारत के सन्द्भ में जाति के भेद्भाव के विचार के बिना समान होने चाहिए।
यद्यपि ऐसा अधिकतर तो नहीं होता फिर भी यह लगभग प्रत्येक समाज में घटित होता है। भारत जैसे विकासशील देश में महिलाओं, सामाजिकआर्थिक रूप से पिछड़े क्षेत्रों तथा दूरस्थ भागों में निवास करने वाले अधिकांश लोग विकास के इन अवसरों से प्राय: वंचित रह जाते हैं। अतः मानव विकास के लिए यह आवश्यक है कि विकास के अवसरों या संसाधनों की समान उपलब्धता समाज के हर व्यक्ति को प्राप्त हो।
सतत पोषणीयता का आशय-सतत पोषणीयता अर्थात् निर्वहन का अर्थ अवसरों की उपलब्धता में निरन्तरता से है। सतत पोषणीय मानव विकास के लिए आवश्यक है कि प्रत्येक पीढ़ी को समान अवसर मिलें।-समस्त पर्यावरणीय वित्तीय एवं मानव संसाधनों का उपयोग भविष्य को ध्यान में रखकर किया जाना चाहिए। इन संसाधनों में से किसी भी एक का दुरुपयोग भावी पीढ़ियों के लिए इन संसाधनों की उपलब्धता के अवसरों को सीमित कर देगा, जिससे मानव विकास की प्रक्रिया में अवरोध उत्पन्न हो जायेगा। अतः प्रत्येक पीढ़ी को अपनी भावी पीढ़ियों के लिए अवसरों और विकल्पों की उपलब्धता को सुनिश्चित करना चाहिए।