Understanding the question and answering patterns through Class 12 Geography Question Answer in Hindi Chapter 9 भारत के संदर्भ में नियोजन और सततपोषणीय विकास will prepare you exam-ready.
Class 12 Geography Chapter 9 in Hindi Question Answer भारत के संदर्भ में नियोजन और सततपोषणीय विकास
अन्य महत्त्वपूर्ण प्रश्न
वस्तुनिष्ठ प्रश्न
प्रश्न 1.
नीति आयोग से पूर्व नियोजन का कार्य किस संस्था द्वारा किया जाता था ?
(क) योजना आयोग
(ग) कृषि विकास
(ख) वन मंत्रालय
(घ) पर्यावरण विभाग
उत्तर:
(क) योजना आयोग
प्रश्न 2.
योजना आयोग का स्थान नीति आयोग ने कब लिया ?
(क) जनवरी 1, 2013
(ख) जनवरी 1, 2014
(ग) जनवरी 1, 2015
(घ) जनवरी 1, 2016
उत्तर:
(ग) जनवरी 1, 2015
प्रश्न 3.
भारत में योजनाबद्ध आर्थिक विकास की प्रक्रिया का प्रारंभ कब से माना जाता है?
(क) 1 अप्रैल, 1951
(ख) 1 अप्रैल, 1952
(ग) 1 अप्रैल, 1955
(घ) 1 अप्रैल, 1956
उत्तर:
(क) 1 अप्रैल, 1951
प्रश्न 4.
देश के 15 जिलों में ‘पर्वतीय क्षेत्र विकास कार्यक्रम’ किस पंचवर्षीय योजना में प्रारंभ किया गया था ?
(क) आठवीं पंचवर्षीय योजना
(ख) पांचवीं पंचवर्षीय योजना
(ग) तीसरी पंचवर्षीय योजना.
(घ) द्वितीय पंचवर्षीय योजना
उत्तर:
(ख) पांचवीं पंचवर्षीय योजना
प्रश्न 5.
किस पंचवर्षीय योजना में भारत में ‘समाजवादी समाज’ की स्थापना का प्रतिरूप प्रस्तुत किया गया था ?
(क) द्वितीय पंचवर्षीय योजना
(ख) चतुर्थ पंचवर्षीय योजना
(ग) सातवीं पंचवर्षीय योजना
(घ) दसवीं पंचवर्षीय योजना
उत्तर:
(क) द्वितीय पंचवर्षीय योजना
प्रश्न 6.
‘सामुदायिक विकास कार्यक्रम’ किस पंचवर्षीय योजना में शुरू किया गया ?
(क) दसवीं पंचवर्षीय योजना
(ख) सातवीं पंचवर्षीय योजना
(ग) तीसरी पंचवर्षीय योजना’
(घ) प्रथम पंचवर्षीय योजना
उत्तर:
(घ) प्रथम पंचवर्षीय योजना
प्रश्न 7.
किस पंचवर्षीय योजना में ‘गहन कृषि विकास कार्यक्रम’ प्रारंभ किया गया ?
(क) प्रथम पंचवर्षीय योजना
(ख) तीसरी पंचवर्षीय योजना
(ग) पांचवीं पंचवर्षीय योजना
(घ) आठवीं पंचवर्षीय योजना
उत्तर:
(ख) तीसरी पंचवर्षीय योजना
प्रश्न 8.
‘सूखा संभावी क्षेत्र विकास कार्यक्रम’ किस पंचवर्षीय योजना में प्रारंभ किया गया था ?
(क) द्वितीय पंचवर्षीय योजना
(ख) चौथी पंचवर्षीय योजना
(ग) सातवीं पंचवर्षीय योजना
(घ) नौवीं पंचवर्षीय योजना
उत्तर:
(ख) चौथी पंचवर्षीय योजना
अतिलघूत्तरात्मक प्रश्न
प्रश्न 1.
नियोजन के उपगमनों के नाम लिखिए।
उत्तर:
सामान्यतः नियोजन के दो उपगमन होते हैं –
- खंडीय नियोजन
- प्रादेशिक नियोजन
प्रश्न 2.
नियोजन किसे कहते हैं?
उत्तर;
आर्थिक और सामाजिक क्रियाओं के क्रम / अनुक्रम को विकसित करने की प्रक्रिया को नियोजन कहते हैं।
प्रश्न 3.
भारत में जनजातीय विकास कार्यक्रम किन क्षेत्रों में शुरू किए गए?
उत्तर:
भारत के जिन क्षेत्रों की कुल जनसंख्या में 50% या इससे अधिक संख्या में जनजातीय लोग रहते हैं, वहाँ जनजातीय विकास कार्यक्रम शुरू किए गए।
प्रश्न 4.
SFDA का क्या अर्थ है?
उत्तर:
लघु कृषक विकास संस्था।
प्रश्न 5.
इंदिरा गांधी नहर किन-किन राज्यों से गुजरती है?
उत्तर:
राजस्थान, पंजाब और हरियाणा।
प्रश्न 6.
सूखा संभावी क्षेत्रों में विकास के कोई दो उद्देश्य बताइये ।
उत्तर:
रोजगार उपलब्ध कराना और सूखे के प्रभाव को कम करना ।
प्रश्न 7.
भरमौर क्षेत्र में स्थित दो पर्वत श्रेणियों के नाम बताओ।
उत्तर:
पीर पंजाल तथा धौलाधार श्रेणी ।
प्रश्न 8.
भारत में आर्थिक नीति के अन्तर्गत उदारीकरण के अनेक उपायों की घोषणा किस पंचवर्षीय योजना में की गई थी?
उत्तर:
आठवीं पंचवर्षीय योजना ( 1992-1997) में।
प्रश्न 9.
प्रथम पंचवर्षीय योजना (1951-56) का मुख्य उद्देश्य क्या था?
उत्तर:
विभाजन के पश्चात् अर्थव्यवस्था में उत्पन्न हुए असंतुलन को दूर कर समग्र विकास करना।
प्रश्न 10.
योजना आयोग का स्थान किस संस्थान ने लिया है?
उत्तर:
1 जनवरी, 2015 को योजना आयोग का स्थान नीति आयोग ने ले लिया।
प्रश्न 11.
इंदिरा गांधी नहर परियोजना कब प्रारंभ हुई थी?
उत्तर:
इंदिरा गांधी नहर परियोजना 31 मार्च, 1958 को प्रारंभ हुई थी।
प्रश्न 12.
‘ जनजातीय उप योजना’ कब प्रारंभ की गयी थी?
उत्तर:
1974 में पांचवीं पंचवर्षीय योजना के अंतर्गत ‘जनजातीय उप-योजना’ प्रारंभ हुई थी।
प्रश्न 13.
आर्थिक विकास के लिए आवश्यक कारक कौन-कौन से हैं?
उत्तर:
किसी भी क्षेत्र के आर्थिक विकास के लिए उस क्षेत्र में विद्यमान संसाधनों के साथ-साथ तकनीक और निवेश की आवश्यकता होती है।
प्रश्न 14.
लक्ष्य क्षेत्र कार्यक्रम के कोई तीन उदाहरण बताइये।
उत्तर:
कमान नियंत्रित क्षेत्र विकास कार्यक्रम, सूखाग्रस्त क्षेत्र विकास कार्यक्रम और पर्वतीय क्षेत्र विकास कार्यक्रम, लक्ष्य क्षेत्र कार्यक्रम के मुख्य उदाहरण हैं।
प्रश्न 15
लक्ष्य समूह कार्यक्रम के कोई दो उदाहरण लिखिए।
उत्तर:
- लघु कृषक विकास संस्था (SFDA)
- सीमांत किसान विकास संस्था (MFDA) ।
प्रश्न 16.
भरमौर जनजातीय क्षेत्र कहाँ स्थित है?
उत्तर:
भरमौर जनजातीय क्षेत्र हिमाचल प्रदेश में स्थित है। इस क्षेत्र में हिमाचल प्रदेश के चंबा जिले की दो तहसीलें भरमौर और होली शामिल हैं।
प्रश्न 17.
गद्दी जनजाति का मुख्य व्यवसाय क्या है?
उत्तर:
गद्दी जनजाति के जीवन निर्वाह का मुख्य आधार कृषि और इससे संबद्ध क्रियाएँ, जैसे–भेड़ और बकरी पालन हैं।
प्रश्न 18.
विकास से क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
साधारणतया विकास से अभिप्राय समाज विशेष की स्थिति और उसके द्वारा अनुभव किए गए परिवर्तन की प्रक्रिया से है।
प्रश्न 19.
इंदिरा गांधी नहर कमान क्षेत्र से क्या तात्पर्य है ?
उत्तर:
वह क्षेत्र जिसमें सिंचाई व अन्य कार्यों के लिए जल की आपूर्ति इंदिरा गांधी नहर द्वारा की जा रही है, इंदिरा गांधी नहर कमान क्षेत्र कहलाता है 1
प्रश्न 20.
आई. टी. डी. पी. से क्या तात्पर्य है ?
उत्तर:
आई. टी. डी. पी. से तात्पर्य ‘समन्वित जनजातीय विकास परियोजना’ से है, जिसे 1974 में पांचवीं पंचवर्षीय योजना में प्रारंभ किया गया था।
प्रश्न 21.
इन्दिरा गाँधी नहर की कुल नियोजित लम्बाई कितनी है?
उत्तर:
9060 किलोमीटर।
प्रश्न 22.
इन्दिरा गाँधी नहर कितने क्षेत्र में सिंचाई सुविधा उपलब्ध करवाएगी?
उत्तर:
यह 19.63 लाख हैक्टेयर कृषि योग्य कमान क्षेत्र में सिंचाई उपलब्ध करवाएगी।
प्रश्न 23
इन्दिरा गाँधी नहर कहाँ से निकलती है?
उत्तर:
यह नहर पंजाब के हरीके बाँध से निकलती है।
लघुत्तरात्मक प्रश्न
प्रश्न 1.
‘रोलिंग प्लान’ से क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
रोलिंग प्लान योजना अवकाश को ही ‘रोलिंग प्लान’ कहा जाता है। यह पंचवर्षीय योजनाओं के मध्य की. वह अवधि है, जिसमें वार्षिक योजनाएँ लागू रहीं। देश में अभी तक छः वार्षिक योजनाएँ क्रियान्वित हो चुकी हैं, जो 34: 1966-67, 1967-68, 1968-69, 1979-80, 1990-91 और 1991-92 में बनी थीं।
प्रश्न 2.
पर्यावरण पर औद्योगिक विकास के अनापेक्षित प्रभावों को बताने वाली किन्हीं दो पुस्तकों के नाम लिखिए।
उत्तर:
पर्यावरण पर औद्योगिक विकास के अनापेक्षित प्रभावों के संदर्भ में प्रकाशित पुस्तकें हैं-
- 1968 में प्रकाशित एहरलिच की ‘द पापुलेशन बम’ नामक पुस्तक।
- 1972 में प्रकाशित मीडोस और अन्य विद्वानों द्वारा लिखी ‘द लिमिट टू ग्रोथ’ नामक पुस्तक।
प्रश्न 3.
पहाड़ी क्षेत्रों के विकास के लिए बनाये गये कार्यक्रमों का मुख्य उद्देश्य क्या है?
उत्तर:
पहाड़ी क्षेत्रों के विकास के लिए बनाई गई सभी योजनाएँ इन क्षेत्रों के स्थलाकृतिक, पारिस्थितिकीय, सामाजिक और आर्थिक दशाओं को ध्यान में रखकर बनाई गई हैं। यह योजनायें अथवा कार्यक्रम पहाड़ी क्षेत्रों में बागवानी का विकास, रोपण कृषि, पशुपालन, मुर्गीपालन, वानिकी, चरागाह विकास, लघु और ग्रामीण उद्योगों का विकास करने के लिए स्थानीय संसाधनों को उपयोग में लाने के उद्देश्य से बनाए गये हैं।
प्रश्न 4.
भारत में योजनाबद्ध आर्थिक विकास की प्रक्रिया का प्रारंभ कब हुआ? अब तक कितनी पंचवर्षीय योजनाएँ कार्यान्वित हो चुकी हैं?
उत्तर:
भारत में योजनाबद्ध आर्थिक विकास की प्रक्रिया का प्रारंभ 1 अप्रैल, 1951 को पंचवर्षीय योजनाओं के प्रारंभ से हुआ था। 1951 से लेकर 2017 तक बारह पंचवर्षीय योजनाएँ और छ: वार्षिक योजनाएँ सफलतापूर्वक क्रियान्वित की जा चुकी हैं।
प्रश्न 5.
भारत के पर्वतीय क्षेत्रों के विकास हेतु कोई चार सुझाव दीजिए ।
अथवा
भारत के पर्वतीय क्षेत्रों के विकास हेतु कोई चार सुझाव दीजिए। पर्वतीय क्षेत्र विकास कार्यक्रम के अन्तर्गत राष्ट्रीय समिति द्वारा पहाड़ी क्षेत्रों के विकास के लिए कौन-कौनसे सुझाव दिए गए हैं?
उत्तर:
पिछड़े क्षेत्रों के विकास के लिए बनी राष्ट्रीय समिति ने पहाड़ी क्षेत्रों में विकास के लिए निम्नलिखित सुझाव दिए हैं –
- प्रभावशाली व्यक्तियों के साथ अन्य लोग भी लाभान्वित हों,
- स्थानीय संसाधनों और प्रतिभाओं का विकास होना चाहिए,
- जीविका – निर्वाह अर्थव्यवस्था को निवेश-उन्मुखी अर्थव्यवस्था बनाना होगा,
- अन्त: प्रादेशिक व्यापार में पिछड़े क्षेत्रों के शोषण को रोकना होगा,.
- पिछड़े क्षेत्रों की बाजार व्यवस्था में सुधार : करके श्रमिकों को लाभ पहुँचाना होगा,
- पारिस्थितिकीय संतुलन को बनाए रखना।
प्रश्न 6.
WECD से आप क्या समझते हैं?
उत्तर:
WECD का पूरा नाम ‘विश्व पर्यावरण और विकास आयोग’ है। इसकी स्थापना संयुक्त राष्ट्र संघ द्वारा पर्यावरण मुद्दों पर विश्व समुदाय की बढ़ती चिंता को ध्यान में रखकर की गई थी। इस आयोग की प्रमुख नार्वे की प्रधानमंत्री ‘गरो हरलेम व्रंटलैंड’ थी। इस आयोग ने 1987 में अपनी रिपोर्ट ‘अवर कॉमन फ्यूचर प्रस्तुत की थी, जिसे ‘ब्रटलैंड रिपोर्ट’ भी कहा जाता है।
प्रश्न 7.
इन्दिरा गाँधी नहर कमान क्षेत्र में सतत पोषणीय विकास को बढ़ावा देने हेतु कोई चार उपाय सुझाइए।
उत्तर:
इन्दिरा गाँधी नहर कमान क्षेत्र में सतत पोषणीय विकास को बढ़ावा देने हेतु उपाय निम्न हैं –
- जल प्रबन्धन नीति का कठोरता से कार्यान्वयन होना चाहिए।
- कम पानी वाली फसलों की बुवाई को बढ़ावा देना चाहिए।
- बहते हुए जल क्षति रोकने के उचित उपाय किए जाने चाहिए।
- वनीकरण, वृक्षों की रक्षण मेखला का निर्माण व चारागाह विकास किया जाये।
- जलाक्रान्ता एवं लवण से प्रभावित भूमि का पुनरुद्धार किया जाना चाहिए आदि।
प्रश्न 8.
नियोजन से क्या अभिप्राय है तथा यह किस प्रकार से एक क्रमिक प्रक्रिया है?
उत्तर:
नियोजन सामान्यतः भविष्य की समस्याओं के समाधान के लिए कार्यक्रम की रूपरेखा तैयार करना तथा उद्देश्यों को प्राप्त करने हेतु गतिविधियों को क्रियान्वित करने की एक प्रक्रिया है। किसी भी क्षेत्र के नियोजन के लिए चुनी गई समस्याएँ मुख्यतया आर्थिक और सामाजिक होती हैं। नियोजन के प्रकार और स्तर के अनुसार नियोजन की अवधि में भी अन्तर होता है, लेकिन सभी प्रकार के नियोजन में एक क्रमिक प्रक्रिया होती है, जिसकी कुछ अवस्थाओं के रूप में संकल्पना की जाती है। इस कारण नियोजन को एक क्रमिक प्रक्रिया कहा गया है।
प्रश्न 9.
पर्वतीय क्षेत्र विकास कार्यक्रम किन क्षेत्रों में आरंभ किए गए हैं?
उत्तर:
पर्वतीय क्षेत्र विकास कार्यक्रम को पांचवीं पंचवर्षीय योजना में (1974 1978) प्रारंभ किया गया था। इस कार्यक्रम के अंतर्गत उत्तराखंड, मिकिर पहाड़ी और असम की उत्तरी कछार की पहाड़ियाँ, पश्चिम बंगाल का दार्जिलिंग जिला और तमिलनाडु के नीलगिरी आदि को सम्मिलित कर कुल 15 जिले हैं। 1981 में ‘पिछड़े क्षेत्रों के विकास की राष्ट्रीय समिति’ ने उन सभी पर्वतीय क्षेत्रों को पिछड़े पर्वतीय क्षेत्रों में शामिल करने की सिफारिश की थी, जिनमें जनजातीय उप-योजना क्रियान्वित नहीं है और जिन पर्वतीय क्षेत्रों की ऊँचाई 600 मीटर से अधिक है।
प्रश्न 10.
तीसरी पंचवर्षीय योजना के उद्देश्यों के पूरे न होने के कोई चार उत्तरदायी कारण बताइये।
उत्तर:
भारत में तीसरी पंचवर्षीय योजना की समय अवधि 1961 से 1966 तक थी। इस योजना के प्रमुख उद्देश्य खाद्यान्नों में आत्मनिर्भरता, औद्योगिक कच्चे माल की पूर्ति के लिये कृषि उत्पादन में वृद्धि करना, आधारभूत उद्योगों का विकास करना, रोजगार के अवसरों में वृद्धि करना आदि थे। परन्तु इस योजना के उद्देश्य पूरे नहीं हो सके, जिसके लिए निम्न कारण उत्तरदायी रहे –
- मानसूनी वर्षा में विलम्ब
- 1965 का भयंकर सूखा
- 1962 में चीन के साथ युद्ध और
- 1965 में पाकिस्तान के साथ युद्ध।
प्रश्न 11.
भारत में मुख्य सूखा संभावी क्षेत्र कौनसे हैं?
उत्तर:
योजना आयोग ने 1967 में देश में 67 जिलों (पूर्ण या आंशिक) की पहचान सूखा संभावी जिलों के रूप में की। 1972 में सिंचाई आयोग ने 30 प्रतिशत सिंचित क्षेत्र का मापदंड लेकर सूखा संभावी क्षेत्रों का परिसीमन किया। भारत में सूखा संभावी क्षेत्र मुख्यतः राजस्थान, गुजरात, पश्चिमी मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र के मराठवाड़ा क्षेत्र, आंध्रप्रदेश के रायलसीमा और तेलंगाना पठार, कर्नाटक पठार और तमिलनाडु की उच्च भूमि एवं आंतरिक भाग के शुष्क और अर्धशुष्क भागों में विस्तृत हैं।
प्रश्न 12.
सूखा संभावी क्षेत्र विकास के प्रमुख कार्यक्रम कौन-कौनसे हैं? लिखिए।
उत्तर:
इस कार्यक्रम की शुरुआत चौथी पंचवर्षीय योजना में हुई थी। इसका उद्देश्य सूखा संभावी क्षेत्रों में लोगों को रोजगार उपलब्ध करवाना और सूखे के प्रभाव को कम करने के लिए उत्पादन के साधनों को विकसित करना था। प्रारंभ में इस कार्यक्रम में अधिक श्रमिकों की आवश्यकता वाले सिविल निर्माण कार्यों पर बल दिया गया था। परन्तु पांचवीं पंचवर्षीय योजना में इसके कार्यक्षेत्र को और विस्तृत किया गया और इसमें सिंचाई परियोजनाओं, भूमि विकास कार्यक्रमों, वनीकरण, चरागाह विकास और आधारभूत ग्रामीण अवसंरचना, जैसे विद्युत, सड़कों, बाजार, ऋण सुविधाओं और सेवाओं को सम्मिलित किया गया।
प्रश्न 13.
नियोजन के उपागमनों के विषय में लिखिए।
उत्तर:
आर्थिक और सामाजिक क्रियाओं के क्रम या अनुक्रम को विकसित करने की प्रक्रिया को नियोजन कहते हैं। सामान्यतः नियोजन के दो उपागमन होते हैं खंडीय नियोजन और प्रादेशिक नियोजन।
1. खंडीय (Sectoral) नियोजन अर्थव्यवस्था के विभिन्न सेक्टरों, जैसे-कृषि, सिंचाई, विनिर्माण उद्योग, ऊर्जा निर्माण, परिवहन, संचार, सामाजिक अवसंरचना और सेवाओं के विकास के लिए कार्यक्रम बनाना और उनको लागू करना ही, खंडीय नियोजन कहलाता है।
2. प्रादेशिक (Regional) नियोजन भारत में सभी क्षेत्रों में एक समान आर्थिक विकास नहीं हुआ है। कुछ क्षेत्र बहुत अधिक विकसित हैं, तो कुछ पिछड़े हुए हैं। विकास का यह असमान प्रतिरूप इस तथ्य पर बल देता है कि नियोजन में एक स्थानिक परिप्रेक्ष्य अपनाएँ तथा विकास में प्रादेशिक असंतुलन कम करने के लिए योजनाएँ बनायी जायें। इस प्रकार का नियोजन, प्रादेशिक नियोजन कहलाता है।
प्रश्न 14.
‘लक्ष्य क्षेत्र’ और ‘लक्ष्य समूह’ नियोजन से क्या अभिप्राय है? इन क्षेत्रों में कौन से कार्यक्रम सम्मिलित हैं?
उत्तर:
किसी भी क्षेत्र के आर्थिक विकास के लिए उस क्षेत्र के संसाधनों के साथ-साथ तकनीक और निवेश की आवश्यकता होती है; परन्तु विगत डेढ़ दशक (15 वर्ष) के नियोजन अनुभवों से स्पष्ट है कि आर्थिक विकास में क्षेत्रीय असंतुलन बढ़ रहा है। अतः क्षेत्रीय एवं सामाजिक विषमताओं की प्रबलता को कम करने के उद्देश्य से योजना आयोग ने ‘लक्ष्य क्षेत्र’ और ‘लक्ष्य समूह’ योजना उपागम प्रस्तुत किये। ‘लक्ष्य क्षेत्र’ के अन्तर्गत कमान नियंत्रित क्षेत्र विकास कार्यक्रम, सूखाग्रस्त क्षेत्र विकास कार्यक्रम, पर्वतीय क्षेत्र विकास कार्यक्रम शामिल हैं, जबकि लघु कृषक विकास संस्था (SFDA), सीमांत किसान विकास संस्था (MFDA) आदि कार्यक्रम ‘लक्ष्य समूह’ कार्यक्रम में सम्मिलित किए गये हैं।
प्रश्न 15.
भरमौर जनजातीय विकास परियोजना के मुख्य उद्देश्य बताइये।
उत्तर:
भरमौर जनजातीय क्षेत्र में विकास की प्रक्रिया 1975 में शुरू हुई, जब गद्दी लोगों को अनुसूचित जनजातियों में शामिल किया गया। पांचवीं पंचवर्षीय योजना, जो 1974 से 1978 तक क्रियान्वित थी, में भरमौर क्षेत्र में समन्वित जनजातीय विकास परियोजना (आई.टी.डी.पी.) प्रारम्भ की गई।
इस क्षेत्र विकास योजना के उद्देश्य थे –
- गद्दियों के जीवन स्तर में सुधार करना।
- भरमौर तथा हिमाचल प्रदेश के अन्य भागों के बीच में विकास के स्तर में अंतर को कम करना।
- परिवहन एवं संचार, कृषि और इससे संबन्धित क्रियाओं तथा सामाजिक व सामुदायिक सेवाओं के विकास को सर्वाधिक प्राथमिकता देना।
निबन्धात्मक प्रश्न
प्रश्न 1.
भरमौर क्षेत्र के भौतिक पर्यावरण का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
भरमौर क्षेत्र का भौतिक पर्यावरण –
(1) स्थिति तथा क्षेत्रफल – भरमौर क्षेत्र 32° 11′ उत्तर से 32°41′ उत्तर अक्षांशों तथा 76°22′ पूर्व से 76°53′ पूर्व देशान्तर के बीच स्थित है। यह प्रदेश हिमाचल प्रदेश में लगभग 1,818 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में फैला हुआ है।
(2) धरातल भरमौर क्षेत्र का अधिकांश भाग समुद्र तल से 1500 मीटर से 3700 मीटर की औसत ऊँचाई के मध्य स्थित है। यह क्षेत्र चारों तरफ से ऊँचे पर्वतों से घिरा हुआ है। इस क्षेत्र के उत्तर में पीरपंजाल पर्वत श्रेणी और दक्षिण में धौलाधार पर्वत श्रेणी पाई जाती है। पूर्व में धौलाधार श्रेणी का विस्तार रोहतांग दर्रे के पास पीरपंजाल श्रेणी से मिलता है।
(3) नदियाँ – इस क्षेत्र में रावी और इसकी सहायक नदियाँ बुढ़ील और टुंडेन बहती हैं। यह नदियाँ इस क्षेत्र में महाखड्डों का निर्माण करती हैं। यह नदियाँ इस पहाड़ी प्रदेश को चार भूखण्डों- होली, खणी, कुगती और दुण्डाह में विभाजित करती हैं।
(4) जलवायु – गद्दी जनजातीय समुदाय के निवास- स्थल वाले इस क्षेत्र में जलवायु सामान्यतः कठोर है। इस क्षेत्र में शरद् ऋतु में जमा देने वाली कड़ाके की सर्दी और बर्फ पड़ती है तथा जनवरी में यहाँ औसत मासिक तापमान 4° सेल्सियस और जुलाई में 26° सेल्सियस रहता है।
प्रश्न 2.
भरमौर क्षेत्र में समन्वित जनजातीय विकास कार्यक्रम के प्रभावों को विस्तार से समझाइये।
उत्तर:
भरमौर क्षेत्र में समन्वित जनजातीय विकास कार्यक्रम –
(1) भरमौर जनजातीय क्षेत्र का सामाजिक जीवन- भरमौर जनजातीय क्षेत्र हिमाचल प्रदेश के लगभग 1,818 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में विस्तृत है। इस क्षेत्र में हिमाचल प्रदेश के चंबा जिले की दो तहसीलें – भरमौर और होली शामिल हैं। यह क्षेत्र 21 नवंबर, 1975 से अधिसूचित जनजातीय क्षेत्र है। इस क्षेत्र में ऋतु प्रवास करने वाली गद्दी जनजातीय समुदाय का आवास है। भरमौर जनजातीय क्षेत्र में जलवायु कठोर है, आधारभूत संसाधनों की कमी है और पर्यावरण भंगुर है।
इन कारकों ने इस क्षेत्र की अर्थव्यवस्था और समाज को प्रभावित किया है। 2011 की जनगणना के अनुसार भरमौर उपमण्डल की जनसंख्या 39,113 थी और जनसंख्या घनत्व 21 व्यक्ति प्रति वर्ग किलोमीटर था। यह क्षेत्र हिमाचल प्रदेश के आर्थिक और सामाजिक रूप से सबसे पिछड़े क्षेत्रों में से एक है। इस क्षेत्र के मुख्य निवासी गद्दी जनजाति का आर्थिक आधार मुख्यतः कृषि और भेड़ एवं बकरी पालन है।
(2) विकास कार्यक्रम भरमौर जनजातीय क्षेत्र में विकास की प्रक्रिया 1970 के दशक में शुरू हुई, जब गद्दी लोगों को अनुसूचित जनजातियों में शामिल किया गया। 1974 में पांचवीं पंचवर्षीय योजना के अंतर्गत जनजातीय उप-योजना प्रारंभ की गई और भरमौर को हिमाचल प्रदेश में पांच में से एक समन्वित जनजातीय विकास परियोजना (आई.टी.डी.पी.) का दर्जा मिला। इस विकास परियोजना का मुख्य उद्देश्य गद्दियों के जीवन स्तर में सुधार करना और भरमौर तथा हिमाचल प्रदेश के अन्य भागों के बीच में विकास के स्तर में अन्तर को कम करना है। इस योजना के अन्तर्गत परिवहन व संचार, कृषि और इससे सम्बन्धित क्रियाओं तथा सामाजिक व सामुदायिक सेवाओं के विकास को सर्वाधिक प्राथमिकता दी गई।
(3) विकास कार्यक्रम का योगदान- भरमौर क्षेत्र में जनजातीय समन्वित विकास उपयोजना का सबसे महत्त्वपूर्ण योगदान विद्यालयों, जनस्वास्थ्य सुविधाओं, पेयजल, सड़क, संचार और विद्युत आदि के रूप में अवसंरचना विकास है। इस क्षेत्र में सर्वाधिक अवसंरचना विकास होली और खणी क्षेत्रों में रावी नदी के साथ बसे गांवों में हुआ है। परन्तु तुंदाह और कुगती क्षेत्रों के दूरदराज के गांव अभी भी इस विकास की परिधि से बाहर हैं।
(4) विकास कार्यक्रम से प्राप्त लाभ इस क्षेत्र में जनजातीय समन्वित विकास उपयोजना लागू होने से हुए सामाजिक लाभों में साक्षरता दर में तेजी से वृद्धि, लिंग अनुपात में सुधार और बाल विवाह में कमी शामिल हैं। इस क्षेत्र में स्वी और पुरुष साक्षरता दर में अंतर अर्थात् साक्षरता में लिंग असमानता में भी कमी आई है। गद्दी जनजाति की परम्परागत अर्थव्यवस्था जीवन निर्वाह कृषि व पशुचारण पर आधारित थी, जिसमें खाद्यान्न एवं पशुओं के उत्पादन पर अधिक बल दिया जाता था परन्तु जनजातीय उपयोजना के परिणामतः इस क्षेत्र में दालों और अन्य नकदी फसलों की खेती में बढ़ोतरी हुई है। यद्यपि इस क्षेत्र में वर्तमान में भी कृषि परम्परागत तकनीकों से की जाती है, परन्तु अर्थव्यवस्था में पशुचारण का महत्त्व घटा है।
प्रश्न 3.
सतत पोषणीय विकास पर एक लेख लिखिए।
उत्तर:]
सतत पोषणीय विकास साधारणतया ‘विकास’ शब्द से अभिप्राय समाज विशेष की स्थिति और उसके द्वारा अनुभव किए गए परिवर्तन की प्रक्रिया से होता है मानव इतिहास के लंबे अंतराल में समाज और उसके जैव-भौतिक पर्यावरण की निरंतर अंतःक्रियाएँ समाज की स्थिति का निर्धारण करती हैं। मानव और पर्यावरण के मध्य अंतःक्रिया की प्रक्रियाएँ विशेषतः इस बात पर निर्भर करती हैं कि समाज में किस प्रकार की प्रौद्योगिकी विकसित की गई है और किस प्रकार की संस्थाओं का पोषण किया जा रहा है।
प्रौद्योगिकी और संस्थायें मानव- पर्यावरण के मध्य होने वाली अंतःक्रिया को गति प्रदान करते हैं। इस अंतःक्रिया से उत्पन्न हुए संवेग ने प्रौद्योगिकी के स्तर को ऊंचा उठाने के साथ अनेक संस्थाओं का निर्माण एवं रूपांतरण भी किया है अतः विकास एक बहुआयामी संकल्पना है और किसी भी क्षेत्र की अर्थव्यवस्था, समाज तथा पर्यावरण में सकारात्मक व अनुत्क्रमणीय परिवर्तन का द्योतक भी है।
सामान्यतः 1960 के दशक के अंत में पश्चिमी दुनिया में पर्यावरण संबंधी मुद्दों पर बढ़ती जागरूकता की सामान्य वृद्धि के कारण सतत पोषणीय विकास की अवधारणा विकसित हुई। इससे पर्यावरण पर औद्योगिक विकास के अनापेक्षित प्रभावों के विषय में लोगों की चिंता प्रकट होती थी। 1968 में प्रकाशित एहरलिच की पुस्तक ‘द पापुलेशन बम’ और 1972 में मीडोस और अन्य द्वारा लिखी हुई पुस्तक ‘द लिमिट टू ग्रोथ’ के प्रकाशन ने इस विषय पर लोगों और विशेषकर पर्यावरणविदों की चिंता को और भी बढ़ा दिया। इस घटनाक्रम के परिप्रेक्ष्य में विकास के एक नए मॉडल की शुरुआत हुई, जिसे सतत पोषणीय विकास कहा जाता है।
पर्यावरण मुद्दों पर विश्व समुदाय की बढ़ती चिंता को ध्यान में रखकर संयुक्त राष्ट्र संघ ने ‘विश्व पर्यावरण और विकास आयोग’ (WECD) की स्थापना की जिसकी प्रमुख नावें की प्रधानमंत्री गरी हरलेम व्रंटलैंड थी। इस आयोग ने अपनी रिपोर्ट ‘अवर कॉमन फ्यूचर 1987 में प्रस्तुत की। बंटलैंड द्वारा प्रस्तुत किए जाने के कारण यह रिपोर्ट ‘ब्रेटलैंड रिपोर्ट’ भी कहलाती है।
इस रिपोर्ट में ‘विश्व पर्यावरण और विकास आयोग ने सतत पोषणीय विकास की वृहद् स्तर पर एक सीधी व सरल परिभाषा प्रस्तुत की। इस रिपोर्ट के अनुसार सतत पोषणीय विकास का अर्थ ‘एक ऐसे विकास से है, जिसमें भविष्य में आने वाली पीढ़ियों की आवश्यकता पूर्ति को प्रभावित किए बिना वर्तमान पीढ़ी द्वारा अपनी आवश्यकता की पूर्ति करना है।’
प्रश्न 4.
इंदिरा गांधी नहर कमान क्षेत्र का विकास कितने चरणों में हुआ है? इस क्षेत्र के पर्यावरण पर पड़े प्रभावों की व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
इंदिरा गांधी नहर परियोजना, जिसे पहले राजस्थान नहर परियोजना के नाम से जाना जाता था, का प्रारंभ 31 मार्च, 1958 को हुआ था। इंदिरा गांधी नहर पंजाब राज्य में सतलज और व्यास नदियों के संगम पर स्थित ‘हरिके बैराज’ से निकाली गई है। यह परियोजना राजस्थान की एक महत्त्वपूर्ण सिंचाई परियोजना है तथा विश्व की सबसे बड़ी सिंचाई परियोजना है। यह नहर पाकिस्तान सीमा के समानांतर 40 किलोमीटर की औसत दूरी पर राजस्थान के थार मरुस्थल में बहती है।
अत: इंदिरा गांधी नहर परियोजना का मुख्य उद्देश्य राजस्थान के उत्तर- पश्चिमी क्षेत्र में मरुस्थलीय भूमि पर सिंचाई द्वारा कृषि करना है। सामान्यतः इस नहर तंत्र की कुल नियोजित लंबाई 9060 किलोमीटर है और यह 19.63 लाख हेक्टेयर कृषि योग्य कमान क्षेत्र में सिंचाई सुविधा प्रदान करेगी। कुल कमान क्षेत्र में से 70 प्रतिशत क्षेत्र प्रवाह नहर तंत्रों और शेष क्षेत्र लिफ्ट तंत्र द्वारा किया जाएगा। इंदिरा गांधी नहर का निर्माण कार्य दो चरणों में पूरा किया गया है, जो हैं।
चरण I इस चरण के कमान क्षेत्र का भूतल थोड़ा ऊबड़-खाबड़ है। यह कमान क्षेत्र गंगानगर, हनुमानगढ़ और बीकानेर जिले के उत्तरी भाग में 5.53 लाख हेक्टेयर कृषि योग्य भूमि पर विस्तृत है। इस चरण के कमान क्षेत्र में सिंचाई की शुरुआत 1960 के दशक में आरंभ हुई थी।
चरण II इस चरण का कमान क्षेत्र बीकानेर, जैसलमेर, बाड़मेर, जोधपुर, नागौर और चूरू जिलों में 14.10 लाख हेक्टेयर कृषि योग्य भूमि पर फैला हुआ है इस कमान क्षेत्र में स्थानांतरित बालू टिब्बों वाला मरुस्थल भी शामिल है। इस चरण के कमान क्षेत्र में 1980 के दशक के मध्य में सिंचाई आरंभ हुई।
प्रश्न 5.
इंदिरा गाँधी नहर परियोजना के पर्यावरण पर पड़ने वाले प्रभावों की व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
-इंदिरा गाँधी नहर परियोजना के प्रभाव इंदिरा गांधी नहर सिंचाई के प्रसार ने इस शुष्क क्षेत्र की पारिस्थितिकी, अर्थव्यवस्था और समाज को पूर्ण रूप से रूपान्तरित कर दिया है। इससे इस क्षेत्र की पर्यावरणीय परिस्थितियों पर सकारात्मक और नकारात्मक दोनों प्रकार के प्रभाव पड़े हैं।
इस परियोजना के निम्न प्रभाव उल्लेखनीय हैं –
- लंबी अवधि तक मृदा नमी उपलब्ध होने और कमान क्षेत्र विकास के तहत शुरू किए वनीकरण और चरागाह विकास कार्यक्रमों से यहाँ भूमि हरी-भरी हो गयी है, जिससे वायु अपरदन और नहरी तंत्र में बालू निक्षेप की प्रक्रियाएँ धीमी पड़ गई हैं।
- सघन सिंचाई और जल के अत्यधिक प्रयोग से जल भराव और मृदा लवणता की दोहरी पर्यावरणीय समस्याएँ भी उत्पन्न हुयी हैं।
- नहरों द्वारा सिंचित क्षेत्र के विस्तार से बोये गये क्षेत्र में विस्तार हुआ है, जिससे फसलों की सघनता में वृद्धि हुई है।
- यहाँ चना, बाजरा, ग्वार जैसी पारंपरिक फसलों के स्थान पर गेहूं, कपास, मूँगफली और चावल की फसलें उत्पादित की जाने लगी हैं।
- सघन सिंचाई के परिणामस्वरूप कृषि के साथ- साथ पशुधन उत्पादकता में भी अत्यधिक वृद्धि हुई है।
प्रश्न 6.
भारत में संचालित ‘पर्वतीय क्षेत्र विकास कार्यक्रम’ के विषय में लिखिए।
उत्तर:
पर्वतीय क्षेत्र विकास कार्यक्रम पर्वतीय क्षेत्र विकास कार्यक्रमों को पांचवीं पंचवर्षीय योजना में प्रारंभ किया गया था। इसके अंतर्गत उत्तराखंड, मिकिर पहाड़ी, असम की कछार की पहाड़ियाँ, पश्चिम बंगाल का दार्जिलिंग जिला और तमिलनाडु के नीलगिरी आदि को मिलाकर कुल 15 जिले शामिल हैं। 1981 में पिछड़े क्षेत्रों पर राष्ट्रीय समिति ने उन सभी पर्वतीय क्षेत्रों को पिछड़े पर्वतीय क्षेत्रों में शामिल करने की सिफारिश की थी, जिनकी ऊँचाई 600 मीटर से अधिक है और जिनमें जनजातीय विकास उप-योजना लागू नहीं है।
पर्वतीय क्षेत्र विकास कार्यक्रम के अन्तर्गत राष्ट्रीय समिति द्वारा पहाड़ी क्षेत्रों के विकास के लिए निम्नलिखित छ: सुझाव दिए गए –
- सभी लोग लाभान्वित हों, केवल प्रभावशाली व्यक्ति ही नहीं।
- स्थानीय संसाधनों और प्रतिभाओं का विकास किया जाए।
- जीविका निर्वाह अर्थव्यवस्था को निवेश-उन्मुखी बनाना।
- अंत:प्रादेशिक व्यापार में पिछड़े क्षेत्रों का शोषण न हो।
- पिछड़े क्षेत्रों की बाजार व्यवस्था में सुधार करके श्रमिकों को लाभ पहुँचाना।
- पारिस्थितिकीय सन्तुलन को बनाए रखना।
पहाड़ी क्षेत्र के विकास की विस्तृत योजनाएँ इनके स्थलाकृतिक, पारिस्थितिकीय, सामाजिक तथा आर्थिक दशाओं को ध्यान में रखकर बनायी गईं। ये कार्यक्रम पहाड़ी क्षेत्रों में बागवानी का विकास, रोपण कृषि, पशुपालन, मुर्गीपालन, वानिकी, लघु तथा ग्रामीण उद्योगों का विकास करने के लिए स्थानीय संसाधनों को उपयोग में लाने के उद्देश्य से बनाए गए।
प्रश्न 7.
विकास की संकल्पना के विषय में लिखिए। विकास की संकल्पना
उत्तर:
साधारणतया ‘विकास’ शब्द से अभिप्राय समाज विशेष की स्थिति और उसके द्वारा अनुभव किए गए परिवर्तन की प्रक्रिया से होता है। विकास एक बहु आयामी संकल्पना है। और अर्थव्यवस्था, समाज तथा पर्यावरण में सकारात्मक व अनुत्क्रमणीय परिवर्तन का द्योतक है। विकास की संकल्पना गतिक भी है और इस संकल्पना का प्रदुर्भाव 20वीं शताब्दी के उत्तरार्ध में हुआ है। विकास की संकल्पना में क्रमिक रूप से निम्न तथ्य महत्त्वपूर्ण रहे –
1. द्वितीय विश्व युद्ध के उपरांत विकास की संकल्पना आर्थिक वृद्धि की पर्याय थी, जिसे सकल राष्ट्रीय उत्पाद, प्रति व्यक्ति आय और प्रति व्यक्ति उपभोग में समय के साथ बढ़ोतरी के रूप में मापा जाता है। परन्तु अधिक आर्थिक वृद्धि वाले देशों में भी असमान वितरण के कारण गरीबी का स्तर बहुत तेजी से बढ़ा।
2. अतः 1970 के दशक में ‘पुनर्वितरण के साथ वृद्धि’ तथा ‘वृद्धि और समानता’ जैसे वाक्यांशों को भी विकास की संकल्पना में सम्मिलित कर लिया गया तथा यह माना गया कि विकास की संकल्पना को मात्र आर्थिक पक्ष तक ही सीमित नहीं रखा जा सकता।
3. 1980 के दशक तक विकास एक बहु आयामी संकल्पना के रूप में उभरा, जिसमें समाज के सभी लोगों के लिए वृहद् स्तर पर सामाजिक एवं भौतिक कल्याण को भी सम्मिलित किया गया।
4. वर्तमान में सतत पोषणीय विकास पर बल दिया जाता है। ‘विश्व पर्यावरण और विकास आयोग’ के अनुसार, ‘एक ऐसा विकास जिसमें भविष्य में आने वाली पीढ़ियों की आवश्यकता पूर्ति को प्रभावित किये बिना वर्तमान पीढ़ी द्वारा अपनी आवश्यकता की पूर्ति करना” सतत् पोषणीय विकास है।