Understanding the question and answering patterns through Class 12 Geography Question Answer in Hindi Chapter 5 प्राथमिक क्रियाएँ will prepare you exam-ready.
Class 12 Geography Chapter 5 in Hindi Question Answer प्राथमिक क्रियाएँ
अन्य महत्त्वपूर्ण प्रश्न
वस्तुनिष्ठ प्रश्न
प्रश्न 1.
सिनकोना नामक वृक्ष की छाल से प्राप्त होती है –
(अ) रबड़
(ब) कुनैन
(स) बलाटा
(द) गोंद।
उत्तर:
(ब) कुनैन
प्रश्न 2.
निम्न में से कौनसा क्षेत्र वाणिज्य पशुधन पालन से सम्बन्धित नहीं है-
(अ) एशिया में टुण्डरा प्रदेश
(ब) न्यूजीलैण्ड
(स) आस्ट्रेलिया
(द) अर्जेण्टाइना।
उत्तर:
(अ) एशिया में टुण्डरा प्रदेश
प्रश्न 3.
भारत के उत्तरी-पूर्वी राज्यों में स्थानान्तरित कृषि को कहा जाता है-
(अ) मिल्पा
(ब) लादांग
(स) दहन
(द) झुमिंग।
उत्तर:
(द) झुमिंग।
प्रश्न 4.
निम्न में से जिसे ‘फेजेंडा’ कहा जाता है, वह है-
(अ) मलेशिया में रबड़ के बागान
(ब) परिचिमी द्वीप-समूह में केले के बागान
(स) ब्राजील में कॉफी के बागान
(द) फिलीपीन्स में गन्ने के बागान।
उत्तर:
(स) ब्राजील में कॉफी के बागान
प्रश्न 5.
अंगूर की कृषि जिस कृषि की विशेषता है, वह है-
(अ) मिश्रित कृषि
(ब) भूमध्य सागरीय कृषि
(स) रोपण कृषि
(द) विस्तृत वाणिज्य अनाज कृषि।
उत्तर:
(ब) भूमध्य सागरीय कृषि
प्रश्न 6.
‘कोलखहोज’ जिस प्रकार की कृषि को नाम दिया गया, वह है-
(अ) सहकारी कृषि
(ब) उद्यान कृषि
(स) सामूहिक कृषि
(द) जीवन निर्वाह कृषि।
उत्तर:
(स) सामूहिक कृषि
प्रश्न 7.
निम्न में से कौनसा देश पुष्प उत्पादन में विशिष्ट्रिकरण रखता है-
(अ) चीन
(ब) अमेरिका
(स) भारत
(द) नीदरलैण्ड।
उत्तर:
(द) नीदरलैण्ड।
प्रश्न 8.
स्थानान्तरणशील कृषि को ‘लादांग’ के नाम से जिस देश में जाना जाता है, वह है-
(अ) मैक्सिको
(ब) भारत
(स) चीन
(द) इण्डोनेशिया।
उत्तर:
(द) इण्डोनेशिया।
अतिलघूत्तरात्मक प्रश्न
प्रश्न 1.
भोजन संग्रहण विश्व के किन दो क्षेत्रों में किया जाता है?
उत्तर:
(1) उच्च अक्षांश के क्षेत्र-उत्तरी कनाडा, उत्तरी यूरेशिया एवं दक्षिणी चिली।
(2) निम्न अक्षांश के क्षेत्र-अमेजन बेसिन, उण्णकटिबंधीय अफ्रीका, आस्ट्रेलिया एवं दक्षिपी पूर्वी एशिया का आंतरिक प्रदेश।
प्रश्न 2.
आर्थिक क्रिया से क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
मनुष्य के वे समस्त क्रियाकलाप जिनसे आय प्राप्त होती है, आर्धिक क्रिया कहलाते हैं।
प्रश्न 3.
आर्थिक क्रियाओं के प्रमुख वर्ग बताइए।
उत्तर:
- प्राधमिक
- द्वितीयक
- तृतीयक
- चतुर्थक।
प्रश्न 4.
प्रमुख प्राथमिक क्रियाओं के नाम बताइए।
उत्तर:
आखेट, भोजन संग्नह, पशुचारण, मछली पकड़ना, वनों से लकड़ी काटना, कृषि व खनन कार्य प्रमुख प्राथमिक क्रियाएँ हैं।
प्रश्न 5.
लाल कॉलर श्रमिक से क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
प्राथमिक क्रियाकलाप करने वाले ऐसे लोग, जिनका कार्य क्षेत्र उनके घर से बाहर होता है, लाल कॉलर श्रमिक कहलाते हैं।
प्रश्न 6.
प्राथमिक क्रियाएँ पर्यावरण पर क्यों निर्भर होती हैं?
उत्तर:
क्योंकि ये पृथ्वी के संसाथनों, यथा-भूमि, जल, वनस्पति, भवन निर्माण सामय्री एवं खनिजों के उपयोग से सम्बन्धित होती हैं।
प्रश्न 7.
आदिमकालीन मानव के जीवन निर्वाह के दो कार्य बताइए।
उत्तर:
- पशुओं का आखेट करना
- निकटवर्ती जंगलों से खाने योग्य जंगली पौधे एवं कन्दमूल आदि को एकत्रित करना।
प्रश्न 8.
मानव की प्राचीनतम ज्ञात आर्थिक क्रियाएँ बताइए।
उत्तर:
भोजन संग्रह एवं आखेट।
प्रश्न 9.
भारत में शिकार पर प्रतिबन्थ किस कारण से लगाया गया हैं?
उत्तर:
जंगली जीवों के संरक्षण के लिए।
प्रश्न 10.
चुविंगगम को चूसने के बाद शेष बचे भाग को क्या कहते हैं?
उत्तर:
चिकिल।
प्रश्न 11.
चुविंगगम का चिकल किस वृक्ष से बनाया जाता है?
उत्तर:
चुविंगगम का चिकल जेपोटा वृक्ष के दूध से बनाया जाता है।
प्रश्न 12.
उस वृक्ष का नाम बताइये जिसकी छाल से कुनैन बनाई जाती है?
उत्तर:
सिनकोना।
प्रश्न 13.
उष्ण कटिबन्धीय अफ्रीका में कौन-कौनसे पशु पाले जाते हैं?
उत्तर:
उष्ग कटिबन्धीय अफ्रीका में प्रमुख रूप से गाय-बैल पाले जाते हैं।
प्रश्न 14.
सहारा एवं एशिया के मरुस्थलों में पाले जाने वाले पशुओं के नाम बताइये।
उत्तर:
सहारा एवं एशिया के मरूस्थलों में भेड़, बकारी एवं ऊँट पाले जाते हैं।
प्रश्न 15.
तिब्बत एवं एण्डीज के पर्वतीय भागों तथा आर्कटिक और उप-उत्तरी ध्रुवीय क्षेत्रों में कौन-कौनसे पशु पाले जाते हैं?
उत्तर:
तिब्बत एवं एण्डीज के पर्वतीय भागों में यॉक व लामा एवं आर्कटिक और उप-उत्तरी ध्रुवीय क्षेत्रों में ऐेंण्डियर पाला जाता है।
प्रश्न 16.
भारत में हिमालय के पर्वतीय क्षेत्रों में कौनसे जाति समूह ऋतु प्रवास करते हैं?
उत्तर:
भारत में हिमालय के पर्वतीय क्षेत्रों में गुज्जर, बकरवाल, गद्दी एवं भूटिया लोगों के समूह क्तु प्रवास करते हैं।
प्रश्न 17.
वर्तमान में चलवासी पशुचारकों की संख्या घटने के दो कारण बताइये।
उत्तर:
- राजनीतिक सीमाओं का अधिरोपण
- अनेक देशों के द्वारा नवीन बस्तियों की योजना बनाना।
प्रश्न 18.
वाणिज्य पशुधन पालन किस संस्कृति से प्रभावित है? इसमें फार्म किस प्रकार के होते हैं?
उत्तर:
वाणिज्य पशुधन पालन पश्चिमी संस्कृति से प्रभावित है। इसमें फार्म स्थायी होते हैं।
प्रश्न 19.
विश्व में वाणिज्य पशुधन पालन कौन-कौनसे देशों में किया जाता है?
उत्तर:
विश्व में वाणिज्य पशुधन पालन न्यूजीलैण्ड, आस्ट्रेलिया, अर्जेन्टाइना, यूरुग्वे एवं संयुक्त राज्य अमेरिका में किया जाता है।
प्रश्न 20.
विश्व में विभिन्न कृषि प्रणालियाँ क्यों पाई जाती हैं?
उत्तर:
विश्व में पायी जाने वाली विभिन्न भौतिक, सामाजिक एवं आर्थिक दशाओं के कारण विभिन्न कृषि प्रणालियाँ पाई जाती हैं।
प्रश्न 21.
विश्व में आदिकालीन निर्वाह कृषि के क्षेत्र बताइये।
उत्तर:
विश्व में आदिकालीन निर्वाह कृषि अफ्रीका, दक्षिणी एवं मध्य अमेरिका के उष्ण कटिबन्धीय क्षेत्र तथा दक्षिणी-पूर्वी एशिया में की जाती है।
प्रश्न 22.
स्थानान्तरणशील कृषि को कर्तन एवं दहन कृषि क्यों कहा जाता है?
उत्तर:
क्योंकि उष्म कटिबन्धीय क्षेत्रों में वनस्पति को जला दिया जाता है एवं जली हुई वनस्पति की राख की परत उर्वरक का कार्य करती है।
प्रश्न 23.
कोलखहोज क्या है?
उत्तर:
रूस में की जाने वाली सामूहिक कृषि को कोलखहोज कहा जाता है।
प्रश्न 24.
ट्यूलिप नामक पुष्प की खेती में कौनसा देश विशिष्ट स्थान रखता है?
उत्तर:
नीदरलैण्ड।
प्रश्न 25.
वाणिज्य डेयरी कृषि के प्रमुख क्षेत्र बताइये।
उत्तर:
उत्तरी-पश्चिमी यूरोप का क्षेत्र, कनाडा, न्यूजीलैण्ड, दक्षिणी-पूर्वी आस्ट्रेलिया एवं तस्मानिया वाणिज्य डेयरी कृषि के प्रमुख क्षेत्र हैं।
प्रश्न 26.
विकसित अर्थव्यवस्था वाले देश उत्पादन के खनन, प्रसंस्करण एवं शोधन कार्य से पीछे क्यों हट रहे हैं?
उत्तर:
क्योंकि इन देशों में मानवीय श्रम महाँगा है, इसलिए इन देशों को खनन कार्य में अधिक श्रम लागत व्यय करनी होती है।
प्रश्न 27.
विकासशील देश खनन कार्य को महत्च क्यों दे रहे हैं?
उत्तर:
के बल पर अपने देशवासियों के ऊँचे रहन-सहन के स्तर को बनाये रखने के लिए खनन कार्य को महत्त्व दे रहे हैं।
प्रश्न 28.
सहकारी आन्दोलन कौन-कौनसे देशों में सफलतापूर्वक चला?
उत्तर:
सहकारी आन्दोलन पश्चिमी यूरोप के डेनमार्क, नीदरलैण्ड, बेल्जियम, स्वीडन एवं इटली में सफलतापूर्वक चला।
प्रश्न 29.
खनन की विधियों के प्रकार बताइये।
उत्तर:
उपस्थिति की अवस्था एवं अयस्क की प्रकृति के आधार पर खनन की दो विधियाँ हैं, यथा-(i) धरातलीय खनन, (ii) भूमिगत खनन।
प्रश्न 30.
आदिकालीन निर्वाह कृषि को विश्व के विभिन्न भागों में किन नामों से जाना जाता है?
उत्तर:
भारत के उत्तरी-पूर्वी भागों में झूमिंग, मध्य अमेरिका व मैक्सिको में मिल्पा तथा मलेशिया व इण्डोनेशिया में लादांग।
प्रश्न 31.
चावल प्रधान गहन निर्वाह कृषि की प्रमुख विशेषता क्या है?
उत्तर:
इसमें भूमि का गहन उपयोग होता है तथा मशीनों की तुलना में मानवीय श्रम का महत्त्व अधिक होता है।
प्रश्न 32.
विस्तृत वाणिज्य अनाज कृषि किन-किन क्षेत्रों में की जाती है? नाम लिखिए।
उत्तर;
विस्तृत वाणिज्य अनाज कृषि मुख्यतः यूरेशिया के स्टेपीज, उत्तरी अमेरिका के प्रेयरीज, अर्जेन्टाइना के पम्पाज, दक्षिणी अफ्रीका के वेल्ड्स, आस्ट्रेलिया के डाठंस एवं न्यूजीलैण्ड के केंटरबरी के मैदान में की जाती है।
लघूत्तरात्मक प्रश्न
प्रश्न 1.
संयुक्त राज्य अमेरिका के उत्तरी-पूर्वी भाग में अधिक मुद्रा प्राप्त करने के लिए किस प्रकार की कृषि सर्वाधिक उपयुक्त है? इस कृषि की कोई दो विशेषताएँ लिखिए।
उत्तर;
इस भाग में बाजार के लिए सब्जी खेती एवं उद्यान कृषि प्रकार सर्वाधिक उपयुक्त है। क्योंकि इसकी विशेषताएँ निम्न हैं-
- इस कृषि में अधिक मुद्रा मिलने वाली फसलें जैसे-सक्जियाँ, फल एवं पुष्प लगाए जाते हैं।
- इस कृषि में खेतों का आकार छोटा होता है।
- खेत यातायात साधनों द्वारा नगरीय केन्द्रों से जुड़े होते हैं।
- इस कृषि में गहन श्रम और अधिक पूँजी की आवश्यकता होती है। इसलिए कृषि का यह प्रकार इस भाग के लिए सर्वाधिक उपयुक है।
प्रश्न 2.
आर्थिक क्रिया से क्या अभिप्राय है? इसके विभिन्न वर्ग बतलाते हुए प्राथमिक क्रियाएँ बताइये।
उत्तर:
आर्थिक क्रिया-मानव के वे समस्त क्रियाकलाप जिनसे आय प्राप्त होती है, आर्थिक क्रिया कहलाते हैं।
प्रमुख वर्ग – आर्थिक क्रियाओं के मुख्य वर्ग चार हैं, यथा –
- प्राथमिक
- द्वितीयक
- तृतीयक
- चतुर्थक।
प्राथमिक क्रियाएँ-यह क्रियाएँ प्रत्यक्ष रूप से पर्यावरण पर निर्भर होती हैं, क्योंकि ये पृथ्वी के संसाधनों, जैसे –
भूमि, जल, वनस्पति, भवन निर्माण सामग्री एवं खनिजों के उपयोग के विषय में बतलाती हैं। इस प्रकार इसके अन्तर्गत आखेट, भोजन संग्रह, पशुचारण, मछ्ही पकड़ना, वनों से लकड़ी काटना, कृषि एवं खनन कार्य सम्मिलित किए जाते हैं।
प्रश्न 3.
आधुनिक समय में भोजन संग्रह का कार्य किस प्रकार व्यापारीकृत हो गया है? बताइये।
उत्तर:
उच्च अक्षांशीय तथा निम्न अक्षांशीय क्षेत्रों के कुछ भागों में अधिक पूँजी तथा उच्च तकनीक के माध्यम से भोजन संग्रह व्यवसाय का व्यापारीकरण कर दिया गया है। इसके अन्तर्गत स्थानीय लोगों की सहायता से कीमती वृक्षों की पतियां, छाल एवं औषधीय पौधों का संग्रह कराया जाता है, जिन्हें संशोधित कर अन्तराष्ट्रीय बाजारों में विक्रय कर दिया जाता है।
संग्रहित वनोत्पादों का उपयोग स्थानीय लोग विभिन्न उपयोगी उत्पाद् प्राप्त करने में करते हैं, जैसे-छाल का उपयोग कुनैन, चमड़ा तैयार करने एवं कार्क बनाने, पत्तियों का उपयोग पेय पदार्थ, दवाइयाँ एवं कान्तिबर्द्धक वस्तुएँ बनाने के लिए, रेशे को कपड़ा बनाने, दृढ़फल को भोजन व तेल के लिए एवं पेड़ के तने का उपयोग रबड़, बलाटा, गोंद व राल बनाने के लिए किया जाता है।
प्रश्न 4.
विश्व स्तर पर भोजन संग्रहण का अधिक महत्त्व नहीं होने के कारण बताइये।
उत्तर:
वर्तमान समय में विश्व स्तर पर भोजन संग्रहण का अधिक महत्व नहीं हैं क्योंकि इन क्रियाओं के द्वारा प्राप्त उत्पाद विश्व बाजार में प्रतिस्पर्द्धा करने में असमर्थ हैं। इसके साथ ही अनेक प्रकार की अच्छी किस्म एवं कम दाम वाले कृत्रिम उत्पादों ने उष्ण कटिबन्धीय वन के भोजन संग्रहण करने वाले समूहों के उत्पादों का स्थान ले लिया है।
प्रश्न 5.
विश्व के उन प्रदेशों के नाम लिखिए जहाँ वर्तमान समय में भोजन एकत्रीकरण की प्रथा प्रचलित है।
उत्तर:
विश्व के निम्नलिखित प्रदेशों में भोजन एकत्रीकरण का कार्य किया जाता है –
(i) उच्च अक्षांश के क्षेत्र-इसके अन्तर्गत उत्तरी कनाडा, उत्तरी यूरेशिया एवं दक्षिणी चिली आते हैं।
(ii) निम्न अक्षांश के क्षेत्र-इसके अन्तर्गत अमेजन बेसिन, कांगो बेसिन, उष्णकटिबंधीय अफ्रीका, आस्ट्रेलिया एवं दक्षिणी-पूर्वी एशिया के आन्तरिक भागों तथा न्यूगिनी को सम्मिलित किया जाता है।
प्रश्न 6.
‘आदिमकालीन समाज जंगली पशुओं पर निर्भर था’ उदाहरण सहित व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
मानव सभ्यता के आरम्भिक युग में आदिमकालीन मानव अपने समीप के वातावरण पर निर्भर होने के कारण जंगली पशुओं पर निर्भर था। अतिशीत एवं अत्यधिक गर्म प्रदेशों में रहने वाले लोग आखेट द्वारा जीवन-यापन करते थे। तकनीकी विकास के कारण यद्यपि मत्स्य-ग्रहण आधुनिकीकरण से युक्त हो गया है फिर भी तटवर्ती क्षेत्रों के निवासी अब भी मछली पकड़ने का कार्य करते हैं। प्राचीन काल के आखेटक पत्थर या लकड़ी से बने औजार एवं तीर इत्यादि का प्रयोग करते थे जिससे मारे जाने वाले पशुओं की संख्या सीमित रहती थी। विश्व के विभिन्न भागों में आदिमकालीन समाज द्वारा आखेट का कार्य कर जंगली पशुओं से भोजन, खाल, हड्डियां आदि प्राप्त की जाती थीं।
प्रश्न 7.
पशुचारण व्यवसाय का विकास किस प्रकार हुआ? इसके प्रमुख प्रकार बताइये।
उत्तर:
पशुचारण व्यवसाय का विकास-आखेट पर निर्भर रहने वाले मानव समूह ने जब यह महसूस किया कि केवल आखेट से जीवन का भरण-पोषण करना असम्भव है, तब मनुष्य ने पशुचारण अर्थात् पशुपालन व्यवसाय को प्रारम्भ किया। विभिन्न जलवायविक दशाओं में रहने वाले लोगों ने उन क्षेत्रों में पाए जाने वाले पशुओं का चयन करके उनको पालतू बनाया।
प्रकार-भौगोलिक कारकों एवं तकनीकी विकास के आधार पर वर्तमान समय में पशुचारण व्यवसाय के दो प्रकार हैं –
(i) चलवासी पशुचारण
(ii) वाणिज्य पशुधन पालन।
प्रश्न 8.
ऋतु प्रवास से क्या अभिप्राय है? स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
पशुचारक वर्ग के लोग नवीन चरागाहों की खोज में समतल भागों एवं पर्वतीय क्षेत्रों में लम्बी दूरियाँ तय.करते हैं। यह ग्रीष्म काल में मैदानी भागों से पर्वतीय क्षेत्र के चरागाहों की तरफ तथा शीत ऋतु में पर्वतीय भागों से मैदानी क्षेत्र के चरागाहों की तरफ प्रवास करते हैं। पशुचारकों द्वारा किया जाने वाला इस प्रकार का प्रवास ऋतु प्रवास कहलाता है।
प्रश्न 9.
विश्व के विभिन्न भागों में किए जाने वाले ऋतु प्रवास का उल्लेख उदाहरण सहित दीजिए।
उत्तर:
ऋतु प्रवास के अन्तर्गत भारत में हिमालय के पर्वतीय क्षेत्रों में गुज्जर, बकरवाल, गद्दी व भूटिया लोगों के समूह ग्रीष्म ऋतु में मैदानी क्षेत्रों से पर्वतीय क्षेत्रों में चले जाते हैं एवं शीत ऋतु में पर्वतीय क्षेत्रों से मैदानी क्षेत्र में आ जाते हैं। इसी प्रकार टुण्ड़ा प्रदेश में ग्रीष्म ऋतु में दक्षिण से उत्तर की तरफ तथा शीत ऋतु में उत्तर से दक्षिण की तरफ चलवासी पशुचारकों का अपने पशुओं के साथ प्रवास होता है।
प्रश्न 10.
स्पष्ट कीजिए कि वाणिज्य पशुधन पालन एक विशिष्ट गतिविधि है।
उत्तर:
चलवासी पशुचारण की अपेक्षा वाणिज्य पशुधन पालन अधिक व्यवस्थित एवं पूँजी प्रधान है। यह एक विशिष्ट गतिविधि है जिसमें केवल एक ही प्रकार के पशुओं को पाला जाता है। प्रमुख पशुओं में भेड़, बकरी, गाय-बैल एवं घोड़े हैं। इनसे प्राप्त मांस, खालें व ऊन को वैज्ञानिक ढंग से संसाधित एवं डिब्बाबन्द कर विश्व के बाजारों में निर्यात किया जाता है। पशु फार्म में पशुधन पालन वैज्ञानिक आधार पर व्यवस्थित किया जाता है। इसमें मुख्य ध्यान पशुओं के प्रजनन, जनांकिक सुधार, बीमारियों पर नियन्न्नण एवं उनके स्वास्थ्य पर दिया जाता है। विश्व में न्यूजीलैंड, आस्ट्रेलिया, अर्जेटाइना, युरुग्वे एवं संयुक्त राज्य अमेरिका में वाणिज्य पशुधन पालन किया जाता है।
प्रश्न 11.
चावल प्रधान गहन निर्वाह कृषि का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
चावल प्रधान गहन निर्वाह कृष्षि-चावल प्रधान गहन निर्वाह कृषि में चावल प्रमुख फसल होती है। अधिक जनसंख्या घनत्व के कारण खेतों का आकार छोटा होता है एवं कृषि कार्य में किसान का पूरा परिवार लगा रहता है। भूमि का गहन उपयोग किया जाता है एवं यन्त्रों की अपेक्षा मानव श्रम का अधिक महत्त्व है। भूमि की उत्पादकता एवं उपजाऊपन को बनाये रखने के लिए पशुओं के गोबर की खाद एवं हरी खाद का उपयोग किया जाता है। इस प्रकार की कृषि में प्रति इकाई उत्पादन अधिक होता है किन्तु प्रति कृषक उत्पाद्न कम होता है।
प्रश्न 12.
चावल रहित गहन निर्वाह कृषि का वर्णन कीजिए।
उत्तर;
चावल रहित गहन निर्वाह कृषि – मानसूनी एशिया के अनेक भागों में उच्चावच, जलवायु, मृदा तथा अन्य भौगोलिक कारकों की भिन्नता के कारण धान की फसल उगाना प्रायः असम्भव है। इसी कारण उत्तरी चीन, मंचूरिया, उत्तरी कोरिया एवं उत्तरी जापान में गेहूँ, सोयाबीन, जौ एवं सोरपम बोया जाता है। भारत में सिन्धु-गंगा के मैदान के पश्चिमी भाग में गेहूँ एवं दक्षिणी-पश्चिमी शुष्क प्रदेश में ज्वार-बाजरा प्रमुख रूप से उगाया जाता है। इसमें भूमि की उर्वरता बनाए रखने के लिए पशुओं के गोबर की खाद एवं हरी खाद का उपयोग किया जाता है। इस कृषि में सिंचाई भी की जाती है।
प्रश्न 13.
रोपण कृषि की प्रमुख विशेषताएँ क्या हैं?
उत्तर:
रोपण कृषि की प्रमुख विशेषताएँ निम्नलिखित हैं-
- रोपण कृषि में कृषि क्षेत्र का आकार बहुत विस्तृत होता है।
- रोपण कृषि में अधिक पूँजी निवेश, उच्च प्रबन्ध एवं तकनीकी आधार एवं वैज्ञानिक विधियों का प्रयोग किया जाता है।
- रोपण कृषि एक फसली कृषि है जिसमें किसी एक फसल के उत्पादन पर ही संकेन्द्रण किया जाता है।
- रोपण कृषि के क्षेत्रों में सस्ते श्रमिक आसानीपूर्वक मिल जाते हैं।
- रोपण कृषि के क्षेत्रों में यातायात विकसित होता है जिसके द्वारा बागान तथा बाजार सुचारु रूप से जुड़े रहते हैं।
- यह एक वृहद् स्तरीय लाभोन्मुख उत्पादन प्रणाली है।
प्रश्न 14.
रोपण कृषि के विकास का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
रोपण कृषि का विकास-यूरोपीय लोगों ने विश्व के अनेक भागों का औपनिवेशीकरण किया तथा रोपण कृषि की शुरुआत की। यूरोपीय उपनिवेशों ने अपने अधीन उष्ण कटिबंधीय क्षेत्रों में रोपण कृषि के अन्तर्गत चाय, कॉफी, कोको, रबड़, कपास, गन्ना, केले एवं अनन्नास की कृषि की। फ्रांसवासियों ने पश्चिमी अफ्रीका में कॉफी एवं कोकोआ की पौध लगाई।
ब्रिटेनवासियों ने भारत एवं श्रीलंका में चाय के बागान, मलेशिया में रबड़ के बाग एवं पश्चिमी द्वीप-समूह में गन्ना एवं केले के बागान विकसित किये। स्पेन एवं अमेरिकावासियों ने फिलीपाइन्स में नारियल व गन्ने के बागान लगाये। इण्डोनेशिया में एक समय गन्ने की कृषि हालैण्डवासियों अर्थात् डच लोगों के एकाधिकार में थी। वर्तमान समय में भी ब्राजील में कॉफी के कुछ बागान अर्थात् फेजेण्डा यूरोपवासियों के नियन्त्रण में हैं।
प्रश्न 15.
विस्तृत वाणिज्य अनाज कृषि की प्रमुख विशेषताएँ बताइये।
उत्तर:
विस्तृत वाणिज्य अनाज कृषि की प्रमुख विशेषताएँ निम्नलिखित हैं-
(i) विस्तृत वाणिज्य अनाज कृषि मध्य अक्षांशों के आन्तरिक अर्द्ध-शुष्क प्रदेशों में की जाती है।
(ii) विस्तृत वाणिज्य अनाज कृषि की मुख्य फसल गेहूँ है। यद्यपि इसके साथ-साथ अन्य फसलें, यथामक्का, जौ, राई व जई भी बोई जाती हैं।
(iii) इस प्रकार की कृषि में खेतों का आकार बहुत बड़ा होता है एवं खेत जोतने से फसल काटने तक सभी कार्य यन्त्रों की सहायता से सम्पन्न किए जाते हैं।
(iv) विस्तृत वाणिज्य अनाज कृषि में प्रति एकड़ उत्पादन कम होता है किन्तु प्रति व्यक्ति उत्पादन अधिक होता है।
प्रश्न 16.
मिश्रित कृषि की प्रमुख विशेषताएँ बताइये।
उत्तर:
मिश्रित कृषि की प्रमुख विशेषताएँ निम्नलिखित हैं-
- इस प्रकार की कृषि विश्व के अत्यधिक विकसित भागों में की जाती है।
- इस कृषि में खेतों का आकार मध्यम होता है।
- इस प्रकार की कृषि पद्धति में बोई जाने वाली प्रमुख फसलें गेहूँ, जौ, राई, जई, मक्का, चारे की फसल एवं कन्द-मूल हैं।
- चारे की फसलें मिश्रित कृषि के प्रमुख घटक हैं।
- इस प्रकार की कृषि में फसल उत्पादन एवं पशुपालन दोनों को समान महत्त्व दिया जाता है।
- मिश्रित कृषि में फसलों के साथ पशुओं, यथामवेशी, भेड़, सूअर एवं कुक्कुट आय के मुख्य स्रोत होते हैं।
- इस प्रकार की कृषि में शस्यावर्तन एवं अन्तःफसली कृषि मिट्टी की उर्वरता को बनाए रखने में महत्त्वपूर्ण भूमिका अदा करते हैं।
प्रश्न 17.
डेयरी कृषि की प्रमुख विशेषताएँ बताइये।
उत्तर:
डेयरी कृषि की प्रमुख विशेषताएँ निम्नलिखित हैं-
(i) डेयरी कृषि अर्थात् व्यवसाय दुधारू पशुओं के पालन-पोषण का सर्वाधिक उन्नत एवं दक्ष प्रकार है।
(ii) इस प्रकार की कृषि में पूँजी की भी अधिक आवश्यकता होती है। पशुओं के लिए छप्पर, घास संचित करने के भण्डार एवं दुग्ध उत्पादन में अधिक यन्त्रों के प्रयोग के लिए पूँजी अधिक चाहिए।
(iii) इसमें पशुओं के स्वास्थ्य, प्रजनन एवं पशु चिकित्सा पर भी अधिक ध्यान दिया जाता है।
(iv) डेयरी कृषि में गहन श्रम की आवश्यकता होती है। पशुओं को चराने, दूध निकालने आदि कार्यों के लिए वर्ष-भर श्रम की आवश्यकता होती है क्योंकि फसलों के समान इनमें कोई अन्तराल नहीं होता, जिसमें श्रम की आवश्यकता न हो।
(v) डेयरी कृषि का कार्य नगरीय एवं औद्योगिक केन्द्रों के समीप किया जाता है क्योंकि ये क्षेत्र ताजा दूध एवं अन्य डेयरी उत्पाद के अच्छे बाजार होते हैं।
प्रश्न 18.
भूमध्य सागरीय कृषि की विशेषता बतलाते हुए इसके क्षेत्र बताइए।
उत्तर:
भूमध्य सागरीय कृषि की विशेषता – भूमध्य सागरीय कृषि की विशेषता अंगूर की कृषि है। इस प्रकार की कृषि करने वाले अनेक देशों में अच्छी किस्म के अंगूरों से उच्च गुणवत्ता वाली शराब का उत्पादन किया जाता है। निम्न श्रेणी के अंगूरों को सुखाकर मुनक्का व किशमिश बनाई जाती है। अंजीर व जैतून भी यहाँ उत्पादित किया जाता है।
शीतकाल में जब यूरोप एवं संयुक्त राज्य अमेरिका में फलों एवं सब्जियों की माँग होती है तब इसी क्षेत्र से पूर्ति की जाती है। क्षेत्र-भूमध्य सागरीय कृषि अति विशिष्ट प्रकार की कृषि है। इसका विस्तार भूमध्य सागर के निकटवर्ती क्षेत्र में है जो कि दक्षिणी यूरोप से उत्तरी अफ्रीका में ट्यूनीशिया से एटलांटिक तट तक, दक्षिणी कैलीफोर्निया, मध्यवर्ती चिली, दक्षिणी अफ्रीका का दक्षिणी-पश्चिमी भाग एवं आस्ट्रेलिया के दर्किण व दक्षिण-पश्चिम भाग में है। खट्टे फलों की आपूर्ति में यह क्षेत्र महत्त्वपूर्ण स्थान रखता है।
प्रश्न 19.
ट्रक कृषि से क्या अभिप्राय है? स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
ट्रक कृष् – िगरीय केन्द्रों के चारों ओर लोगों की दैनिक माँगों को पूरा करने के लिए सब्जियों का उगाना ट्रक कृषि/फॉर्मिंग कहलाता है। यह कृषि बाजार और फार्म के बीच एक ट्रक द्वारा एक रात में तय की गई दूरी द्वारा नियंत्रित होती है। इसमें कृषक शाम को सब्जी तोड़कर सुबह ताजा सब्जी शहर में उपलब्य करवाते हैं।
प्रश्न 20.
कारखाना कृषि से क्या अभिप्राय है? स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
कारखाना कृषि – पश्चिमी यूरोप एवं उत्तरी अमेरिका के औद्योगिक क्षेत्रों में उद्यान कृषि के अलावा कारखाना कृषि भी की जाती है। इसमें पशुधन पाला जाता है, जिनमें विशेष रूप से गाय-बैल व कुक्कर होते हैं। इनको बड़े-बड़े बाड़ों में कारखानों में तैयार किये गये भोजन पर रखा जाता है एवं उनकी बीमारियों का भी ध्यान रखा जाता है। इसमें भवन निर्माण, यन्त्र खरीदने, प्रकाश एवं ताप की व्यवस्था करने एवं पशु चिकित्सा के लिए बहुत अधिक धन की आवश्यकता होती है। अच्छी नस्ल का चुनाव और प्रजनन की वैज्ञानिक विधियाँ कुक्कर एवं पशुपालन के महत्त्वपूर्ण लक्षण हैं।
प्रश्न 21.
सहकारी कृषि किसे कहा जाता है? यह किन देशों में की जाती है?
उत्तर:
सहकारी कृषि – जब किसानों का एक समूह अपनी कृषि से अधिक लाभ कमाने के लिए स्वेच्छा से एक सहकारी संस्था बनाकर कृषि कार्य सम्पन्न करता है तो उसे सहकारी कृषि कहा जाता है। इसमें व्यक्तिगत फार्म अक्षुण्ण रहते हुए सहकारी रूप में कृषि की जाती है। प्रमुख देश-सहकारी आन्दोलन की शुरुआत एक शताब्दी पूर्व में हुई थी। यह आन्दोलन पश्चिमी यूरोप के डेनमार्क, नीदरलैण्ड, बेल्जियम, स्वीडन एवं इटली में सफलतापूर्वक चलाया गया। इसे सबसे अधिक सफलता डेनमार्क में प्राप्त हुई जहाँ प्रत्येक किसान इसका सदस्य है।
प्रश्न 22.
कोलखहोज से क्या आशय है? स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
सामूहिक कृषि को सोवियत संघ में ‘कोलखहोज’ कहा जाता है। इस प्रकार की कृषि का आधारभूत सिद्धान्त यह होता है कि इसमें उत्पादन के साधनों का स्वामित्व सम्पूर्ण समाज एवं सामूहिक श्रम पर आधारित होता है। कृषि का यह प्रकार पूर्व सोवियत संघ में प्रारम्भ हुआ था जहाँ कृषि की दशा सुधारने एवं उत्पादन में वृद्धि एवं आत्मनिर्भरता प्राप्त करने के लिए सामूहिक कृषि प्रारम्भ की गई थी।
प्रश्न 23.
चलवासी पशुचारण से क्या अभिप्राय है? इससे मूल आवश्यकताओं की पूर्ति कैसे की जाती है?
उत्तर:
चलवासी पशुचारण एक प्राचीन जीवन निर्वाह व्यवसाय रहा है। इसमें पशुचारक अपने भोजन, वस्त्र, शरण, औजार एवं यातायात के लिए पशुओं पर निर्भर रहते थे। वे अपने पालतू पशुओं के साथ पानी एवं चरागाहों की उपलब्धता एवं गुणवत्ता के अनुसार एक स्थान से दूसरे स्थान तक घूमते-फिरते थे। इन पशुओं से मानव को कपड़े, शरण, औजार तथा यातायात की मूल आवश्यकताएँ प्राप्त होती थीं।
प्रश्न 24.
वाणिज्य पशुधन पालन से क्या अभिप्राय है? इसकी विशेषताएँ बताइये।
उत्तर:
वाणिज्य पशुधन पालन एक बड़े पैमाने पर अधिक व्यवस्थित पशुपालन व्यवसाय है। इसमें भेड़, बकरी, गाय, बैल व घोड़े पाले जाते हैं, जिनसे मनुष्य को मांस, खालें व ऊन की प्राप्ति होती है। विशेषताएँ-वाणिज्य पशुधन पालन की प्रमुख विशेषताएँ निम्नलिखित हैं –
- यह एक पूँजी प्रधान व्यवसाय है जो कि वैज्ञानिक तरीके से व्यवस्थित रूप में किया जाता है।
- पशुपालन विशाल क्षेत्र पर रेंचों पर किया जाता है।
- इसमें मुख्य ध्यान पशुओं के प्रजनन, जनांकिकीय सुधार, बीमारियों पर नियन्त्रण तथा स्वास्थ्य पर बल दिया जाता है।
- वाणिज्य पशुधन पालन व्यवसाय के अन्तर्गत उत्पादित वस्तुओं को वैज्ञानिक ढंग से संसाधित एवं डिब्याबंद कर विश्व बाजारों में निर्यांत कर दिया जाता है।
प्रश्न 25.
झूमिंग से क्या अभिप्राय है? स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
भारत के उत्तरी-पूर्वी राज्यों में की जाने वाली स्थानान्तरणशील कृषि पद्धति को झुमिंग के नाम से जाना जाता है। भारत के असम, मेघालय, मणिपुर, त्रिपुरा, नागालैण्ड में आदिमकालीन जीवन निर्वाह कृषि की जाती है। इसमें वृक्षों तथा वन क्षेत्रों को काट कर, जलाकर कृषि के लिए एक टुकड़ा साफ किया जाता है। कुछ वर्षो के पश्चात् जब खेतों की उर्वरता कम हो जाती है तो नये टुकड़े पर कृषि शुरू की जाती है। इसमें खेतों का हेर-फेर किया जाता है।
प्रश्न 26.
डेयरी फार्मिंग का विकास नगरीयकरण के कारण सम्भव हुआ है। व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
डेयरी उद्योग को इसकी माँग क्षेत्रों के समीप स्थापित किया जाता है। यह उद्योग अधिकतर नगरों, औद्योगिक तथा व्यापारिक क्षेत्रों के निकट लगाया जाता है क्योंकि ये क्षेत्र ताजा दूध व अन्य डेयरी उत्पादों के अच्छे बाजार होते हैं। वर्तमान समय में विकसित यातायात के साधन, प्रशीतकों का उपयोग, पास्तेरीकरण की सुविधा के कारण विभिन्न डेयरी उत्पादों को अधिक समय तक रखा जा सकता है। अत: डेयरी उत्पादों की अधिक माँग के कारण ही यूरोप के औद्योगिक क्षेत्रों के निकट तथा महानगरों के निकट डेयरी फार्मिंग का विकास हुआ है।
प्रश्न 27.
खनन कार्य को प्रभावित करने वाले कारक बताइये।
उत्तर:
खनन कार्य को प्रभावित करने वाले कारक निम्नलिखित हैं-
(i) भौतिक कारक-जिनमें खनिज निक्षेपों के आकार, श्रेणी व उपस्थिति की अवस्था को शामिल किया जाता है।
(ii) आर्थिक कारक-जिनमें खनिज की माँग, विद्यमान तकनीकी ज्ञान एवं उसका उपयोग, अवसंरचना के विकास के लिए उपलब्ध पूँजी एवं यातायात व श्रम पर होने वाला व्यय शामिल किया जाता है।
प्रश्न 28.
भूमिगत खनन विधि को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
भूमिगत खनन-जब अयस्क धरातल के नीचे गहराई में होता है तब भूमिगत अथवा कूपकी खनन विधि का प्रयोग किया जाता है। इस विधि में लम्बवत् कूपक गहराई तक स्थित होते हैं, जहाँ से भूमिगत गैलरियाँ खनिजों तक पहुँचने के लिए फैली होती हैं। इन मार्गों से होकर खनिजों का निष्कर्षण एवं परिवहन धरातल तक किया जाता है।
खदान में कार्य करने वाले श्रमिकों तथा निकाले जाने वाले खनिजों के सुरक्षित और प्रभावी आवागमन के लिए इसमें विशेष प्रकार की लिफ्ट बेधक (बरमा), माल ढोने की गाड़ियाँ तथा वायु संचार प्रणाली की आवश्यकता होती है। खनन की यह विधि अत्यन्त जोखिम भरी है क्योंकि जहरीली गैसें, आग एवं बाढ़ के कारण अनेक बार दुर्घटनाएँ होने का भय रहता है।
प्रश्न 29.
विकसित एवं विकासशील देशों में वर्तमान समय में किए जा रहे खनन कार्य के विषय में लिखिए।
उत्तर:
वर्तमान समय में विकसित अर्थव्यवस्था वाले देश उत्पादन की खनन, प्रसंस्करण एवं शोधन कार्य से पीछे हट रहे हैं क्योंकि इसमें श्रमिक लागत अधिक आने लगी है। जबकि विकासशील देश अपनी विशाल श्रम-शक्ति के बल पर अपने देशवासियों के ऊँचे रहन-सहन को बनाये रखने के लिए खनन कार्य को महत्व दे रहे हैं। अफ्रीका महाद्वीप के अनेक देशों, दक्षिणी अमेरिका के कुछ देशों एवं एशिया महाद्वीप में आय के साधनों का पचास प्रतिशत तक खनन कार्य से प्राप्त होता है।
प्रश्न 30.
आदिमकालीन निर्वाह कृषि से क्या अभिप्राय है? लिखिए।
उत्तर:
आदिमकालीन निर्वा है कृषि अथवा स्थानान्तरणशील कृषि, कृषि का एक पुराना तरीका है। यह उष्ण कटिबन्धीय प्रदेशों में रहने वाले लोगों का मुख्य व्यवसाय है। इस प्रकार की कृषि के अन्तर्गत वनों को काट कर तथा झाड़ियों को जलाकर भूमि को साफ कर लिया जाता है। वर्षा ऋतु के उपरान्त उसमें फसलें बोई जाती हैं। जब दो-तीन फसलों के पश्चात् भूमि अनुपजाऊ हो जाती है तो उस क्षेत्र को छोड़कर दूसरी भूमि में कृषि की जाती है।
चूँकि इस कृषि में वनस्पति को जला दिया जाता है एवं जली हुई राख की परत उर्वरक का कार्य करती है, इसलिए इसे ‘कर्तन एवं दहन कृषि’ भी कहते हैं। इसमें बोए गए खेत छोटे-छोटे होते हैं एवं खेती भी पुराने औजार जैसे-लकड़ी, कुदाली एवं फावड़े द्वारा की जाती है। यह कृषि मुख्यतः अफ्रीका, दक्षिणी एवं मध्य अमेरिका के उष्णकटटिंधीय भागों एवं दक्षिणी-पूर्वी एशिया में की जाती है।
प्रश्न 31.
खाद्यान्न की बड़े पैमाने पर की जाने वाली यान्त्रिक कृषि में प्रति हैक्टेयर उत्पादन कम होता है किन्तु प्रति व्यक्ति उत्पादन ऊँचा होता है। क्यों?
अथवा
विस्तृत वाणिज्य अनाज कृषि में प्रति एकड़ उत्पादन कम परन्तु प्रति व्यक्ति उत्पादन अधिक क्यों होता है?
उत्तर:
खाद्यान्न की बड़े पैमाने पर की जाने वाली यांत्रिक कृषि अथवा विस्तृत वाणिज्य अनाज कृषि में प्रति एकड़ उत्पादन कम होता है, क्योंकि यह कृषि मुख्यतः कम उपजाऊ वाले अर्ध-शुष्क प्रदेशों में की जाती है। परन्तु इस कृषि का अधिकांश कार्य मशीनों द्वारा किया जाता है, जिससे इस कृषि में कम व्यक्तियों की भागीदारी रहती है। अतः कृषि में कम व्यक्तियों की भागीदारी रहने के कारण ही इस कृषि में प्रति व्यक्ति उत्पादन अधिक होता है।
प्रश्न 32.
चलवासी पशुचारण की प्रमुख विशेषताएँ लिखिए।
उत्तर:
चलवासी पशुचारण की प्रमुख विशेषताएँ-
(i) यह एक प्राचीन जीवन-निर्वाह व्यवसाय है, जिसमें पशुचारक अपने भोजन, वस्त्र, शरण, औज़ार तथा आवागमन के लिए पालित पशुओं पर पूर्णतया निर्भर रहता है।
(ii) पशुचारक अपने परिवार तथा पालित पशुओं के साथ एक स्थान से दूसरे स्थान को पानी व चरागाहों की तलाश में स्थानान्तरित होता रहता है।
(iii) प्रत्येक पशुचारक समुदाय के अपने-अपने निश्चित चरागाह होते हैं।
(iv) उष्ण मरुस्थलीय प्रदेशों में किए जाने वाले चलवासी पशुचारण में भेड़, बकरी तथा ऊँट प्रमुख रूप से पाले जाने वाले पशु हैं, जबकि तिब्बत व एंडीज पर्वत श्रेणियों पर यॉक एवं लामा नामक पशुओं को पाला जाता है।
निबन्धात्मक प्रश्न
प्रश्न 1.
कृषि का अर्थ समझाइए तथा गहन निर्वाह कृषि व विस्तृत वाणिज्य अनाज कृषि की तुलना निम्न शीर्षकों के अन्तर्गत कीजिए-
(i) क्षेत्र
(ii) विधि/प्रक्रिया
(iii) उपजें।
उत्तर:
प्राथमिक व्यवसाय का प्रमुख कार्य कृषि जिसके अन्तर्गत फसलोत्पादन का कार्य किया जाता है। अर्थात् बोना, सिंचाई करना, काटना और अन्नोत्पादन करना कृषि कहलाता है। विश्व में पाये जाने वाली विभिन्न भौतिक, सामाजिक एवं आर्थिक दशाएँ कृषि कार्य को प्रभावित करती हैं। कृषि की कई प्रणालियाँ पायी जाती हैं।
गहन निर्वाह कृषि और विस्तृत वाणिज्य अनाज कृषि की तुलना –
गहन निर्वाह कृषि | विस्तृत वाणिज्य अनाज कृषि | |
(i) क्षेत्र | यह कृषि मानसून एशिया के घने बसे देशों जैसे-भारत, बांग्लादेश, नेपाल, भूटान-चीन, श्रीलंका, पाकिस्तान, जापान आदि देशों में की जाती हैं। | यह कृषि कम जनसंख्या वाले ऐसे देशों में की जाती है जहाँ कृषि योग्य भूमि अत्यधिक है। जैसे-कनाडा, संयुक्त राज्य अमेरिका, ब्राजील, रूस, मैक्सिको, न्यूजीलैण्ड, आस्ट्रिया आदि देशों में। |
(ii)विधि/प्रक्रिया | गहन निर्वाह कृषि के दो प्रकार हैं-
(i) चावल प्रधान (ii) गेहूँ प्रधान चावल प्रधान गहन निर्वाह कृषि में चावल मुख्य फसल होती है जबकि गेहूँ प्रधान गहन निर्वाह कृषि में गेहूँ की फसल मुख्य जिसमें प्रति एकड़ उत्पादन कम किन्तु फसल होती है। अधिक जनसंख्या घनत्व होने के कारण खेतों का आकार छोटा होता है और किसान का सम्पूर्ण परिवार कृषि कार्यों में संलग्न रहता है अर्थात् भूमि का गहन उपयोग होता है। इसलिए अधिकाधिक यन्त्रों की बजाय मानव श्रम का अधिक महत्त्व होता है। उपजाऊपन बनाये रखने के लिए खेतों में पशुओं के गोबर की खाद डाली जाती है। इस कृषि में प्रति इकाई उत्पादन अधिक किन्तु प्रति किसान कम होता है। |
यह कृषि समतल भूमि पर बड़े-बड़े खेतों में खेत जोतने से लेकर फसल काटने तक सभी कार्य यन्त्रों की सहायता से किए जाते हैं। यह कृषि व्यापारिक दृष्टिकोण से की जाती है। जिसमें प्रति एकड़ उत्पादन अधिक होता है। उत्पन्न खाद्यान्नों को माँग क्षेत्रों में निर्यात किया जाता है। इस कृषि में श्रमिकों का उपयोग अत्यधिक कम तथा रासायनिक खादों, सिंचाई और शंकर बीजों का उपयोग किया जाता है। |
(iii)उपजें। फसलें | गेहूँ और चावल मुख्य उपजें हैं लेकिन ज्वार, बाजरा, सोयाबीन, जौ आदि फसलें भी उगाई जाती हैं। | इस कृषि के अन्तर्गत मुख्य फसल गेहूँ है तथा इसके अतिरिक्त जौ, मक्का, राई, जई आदि की फसलें भी उगाई जाती हैं। |
प्रश्न 2.
पशुचारण का अर्थ समझाइए तथा चलवासी पशुचारण व वाणिज्य पशुपालन की तुलना निम्न शीर्षकों के अन्तर्गत कीजिए-
(i) क्षेत्र
(ii) प्रक्रिया, व
(iii) पालतू पशु।
उत्तर:
पशुचालन-आखेट पर निर्भर रहने वाले मानव समूह ने जब यह महसूस किया कि केवल आखेट पर आश्रित रहकर पूर्णत: भरण पोषण सम्भव नहीं है। तब उन्होंने पशुपालन व्यवसाय को अपनाया। विभिन्न जलवायविक दशाओं में रहने वाले लोगों ने उन क्षेत्रों में पाये जाने वाले पशुओं का चयन करके पालतू बनाया अतः विभिन्न प्रकार के पशुओं को जब मानव अपने भरण पोषण के लिए पालता है तो उसे पशुपालन अथवा पशुचारण व्यवसाय के नाम से जाना जाता है।
चलवासी पशुचारण और वाणिज्यिक पशुपालन में तुलना –
चलवासी पशुचारण | वाणिज्यिक पशुपालन | |
1. क्षेत्र | विश्व में चलवासी पशुचारण के तीन क्षेत्र प्रमुख हैं- (i) उत्तरी अफ्रीका के एटलाण्टिक तट से अरब प्रायद्वीप होता हुआ मंगोलिया तथा मध्य चीन तक फैला हुआ है।(ii) यूरोप और एशिया महाद्वीप के टुण्ड्रा प्रदेश में।(iii) दक्षिणी गोलार्द्ध में दक्षिणी-पश्चिमी अफ्रीका एवं मैडागास्कर आदि। |
विश्व में वाणिज्यिक पशुपालन मुख्यतः निम्न भागों में पाया जाता है- (i) न्यूजीलैण्ड, आस्ट्रेलिया, अर्जेन्टाइना, ब्राजील, युरुग्वे, संयुक्त राज्य अमेरिका एवं कनाडा के शीत उष्ण घास के मैदान है।(ii) दक्षिणी अफ्रीका के वेल्डस मैदानों में वाणिज्य पशुपालन किया जाता है। |
2. प्रक्रिया | चलवासी पशुचारण के अन्तर्गत पशुचारक नवीन चारागाहों की खोज में समतल भागों एवं पर्वतीय क्षेत्रों में लम्बी दूरियाँ तय करते हैं। ये ग्रीष्मकाल में मैदानों से पर्वतीय क्षेत्रों तथा शीतकाल में पर्वतीय क्षेत्रों से मैदानी भागों की ओर प्रवास करते हैं जिसे ऋतु प्रवास भी कहा जाता है। | यह व्यवस्थित पूँजी प्रधान व्यवसाय है। इसमें पशु चारागाह फार्म स्थायी होते हैं। विशाल क्षेत्र पर फैले हुए होते हैं। चारागाह को छोटी-छोटी इकाइयों में वभक्त कर दिया जाता है। पशुओं की संख्या चारागाह की क्षमता के अनुसार रखी जाती है। लेकिन इसमें एक ही प्रकार के पशु वैज्ञानिक ढंग तथा उच्च तकनीकी से पाले जाते हैं। |
3. पालतू पशु | इसमें भिन्न-भिन्न प्रकार के पशु पाले जाते हैं। जैसे-उष्णकटि बन्धीय भागों में-गाय, बैल पाले जाते हैं। मरुस्थलीय भागों में-भेड़, बकरी, ऊँट पाले जाते हैं। पर्वतीय भागों में-यॉक, लामा। ध्रुवीय व उपध्रुवीय क्षेत्रों में-रेण्डयर पाले जाते हैं। | इसमें एक ही प्रकार के पशु पाले जाते हैं। भेड़, बकरी, गाय-बैल तथा घोड़े मुख्यतः पाले जाते हैं। इन पशुओं से से प्राप्त मांस, खाल एवं ऊन को वैज्ञानिक ढंग से संसाधित एंव डिब्बा बन्द कर विश्व के बाजारों में निर्यात कर दिया जाता है। |
प्रश्न 3.
सहकारी कृषि तथा सामूहिक कृषि में अन्तर स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
सहकारी कृषि –
1. जब किसानों का एक समूह अपनी कृषि से अधिक लाभ कमाने के लिए स्वेच्छा से सहकारी संस्था बनाकर कृषि कार्य करे तो उसे सहकारी कृषि कहते
हैं। इसमें व्यक्तिगत फार्म अक्षुण्ण रहते हुए सहकारी रूप में कृषि की जाती है।
2. सहकारी संस्था किसानों की सभी रूप से सहायता करती है। यह सहायता कृषि कार्य में आने वाली सभी वस्तुओं की खरीद करने, कृषि उ त्पाद को उचित मूल्य पर बेचने एवं सस्ती दरों पर प्रसंस्कृत साधनों को जुटाने के लिए होती है।
3. सहकारी आन्दोलन एक शताब्दी पूर्व शुरू हुआ था। यह पश्चिमी यूरोप के डेनमार्क, नीदरलैण्ड, बेल्जियम, स्वीडन तथा इटली में सफलतापूर्वक संचालित किया गया। डेनमार्क में यह आन्दोलन सर्वाधिक सफल रहा, जहाँ व्यावहारिक रूप से प्रत्येक किसान इस आन्दोलन का सदस्य है।
सामूहिक कृषि –
सामूहिक कृषि का आधारभूत सिद्धान्त यह है कि इसमें उत्पांदन के साधनों का स्वामित्व सम्पूर्ण समाज एवं सामूहिक श्रम पर आधारित होता है। कृषि का यह प्रकार पूर्व सोवियत संघ में प्रारम्भ हुआ था जहाँ कृषि की दशा सुधारने एवं उत्पादन में वृद्धि व आत्मनिर्भरता प्राप्ति के लिए सामूहिक कृषि शुरू की गई।
इस प्रकार की कृषि में सभी किसान अपने संसाधन यथा भूमि, पशुधन एवं श्रम आदि को मिलाकर कृषि कार्य करते थे। ये अपनी दैनिक आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए भूमि का छोटा-सा भाग अपने अधिकार में भी रखते थे। सरकार उत्पादन का वार्षिक लक्ष्य्य निर्धारित करती थी तथा उत्पादन को सरकार ही निर्धारित मूल्य पर खरीदती थी। लक्ष्य से अधिक उत्पन्न होने वाला भाग सभी सदस्यों को वितरित कर दिया जाता था या बेच दिया जाता था।
इस प्रकार की कृषि में उत्पादन एवं भाड़े पर ली गई मशीनों पर किसानों को कर चुकाना पड़ता था। सभी सद्स्यों को उनके द्वारा किये गये कार्य की प्रकृति के आधार पर भुगतान किया जाता था। असाधारण कार्य करने वाले सदस्य नकद या माल के रूप में पुरस्कृत किया जाता था। पूर्व सोवियत संघ की समाजवादी सरकार ने इसे प्रारम्भ किया जिसे अन्य समाजवादी देशों ने भी अपनाया। सोवियत संघ के विघटन के उपरान्त इस प्रकार की कृषि में संशोधन किया गया है।
प्रश्न 4.
आखेट एवं भोजन संग्रहण आदिमकालीन मानव की प्राचीनतम आर्थिक क्रियाएँ हैं। स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
भोजन संग्रहण तथा आखेट मानव की प्राचीनतम ज्ञात आर्थिक क्रियाएँ हैं। मानव सभ्यता के आरम्भिक युग में आदिमकालीन मानव अपने जीवन निर्वाह के लिए अपने निकटवर्ती वातावरण पर निर्भर रहता था। उसका जीवन निर्वाह दो कार्यों द्वारा होता था, यथा –
(i) पशुओं का आखेट करना।
(ii) अपने निकटवर्ती जंगलों से खाने योग्य जंगली पौधे एवं कन्दमूल आदि को एकत्रित करना।
विशेषताएँ–आखेट एवं भोजन संग्रहण व्यवसाय की प्रमुख विशेषताएँ निम्नलिखित हैं –
- भोजन संग्रहण एवं आखेट मानव की प्राचीनतम ज्ञात आर्थिक क्रियाएँ हैं।
- विश्व के विभिन्न भागों में यह कार्य विभिन्न स्तरों एवं विभिन्न रूपों में किया जाता है।
- यह कार्य कठोर जलवायविक दशाओं में किया जाता है।
- इस आर्थिक क्रिया को अधिकतर आदिमकालीन समाज के लोग करते हैं। ये लोग अपने भोजन, वस्त्र एवं आवास की आवश्यकता को पूरा करने के लिए पशुओं एवं वनस्पति का संग्रह करते हैं।
- इस आर्थिक क्रिया के लिए कम पूँजी, निम्नस्तरीय तकनीकी ज्ञान एवं अधिक मानवीय श्रम की आवश्यकता होती है।
- इस प्रकार की आर्थिक क्रिया में भोजन अधिशेष भी नहीं रहता है एवं प्रति व्यक्ति उत्पादकता भी कम होती है।
प्रमुख क्षेत्र – भोजन संग्रहण एवं आखेट व्यवसाय विश्व के निम्नलिखित दो भागों में किया जाता है –
- उच्च अक्षांश के क्षेत्र-जिसमें उत्तरी कनाडा, उत्तरी यूरेशिया एवं दक्षिणी चिली आते हैं।
- निम्न अक्षांश के क्षेत्र-जिसमें अमेजन बेसिन, उष्ण कटिबन्धीय अफ्रीका, आस्ट्रेलिया एवं दक्षिण-पूर्वी एशिया का आन्तरिक प्रदेश आता है।
उत्पाद्-आधुनिक समय में भोजन संग्रहण के कार्य का कुछ भागों में व्यापारीकरण भी हो गया है, यथा –
(i) भोजन संग्रहण के कार्य में संलग्न व्यक्ति कीमती पौधों की पत्तियाँ, छाल एवं औषधीय पौधों को सामान्य रूप से संशोधित करके बाजार में बेचने का कार्य भी करते हैं।
(ii) ये लोग पौधे के विभिन्न भागों का उपयोग करते हैं, यथा-पेड़ों की छाल का उपयोग कुनैन, चमड़ा तैयार करने एवं कार्क बनाने के लिए किया जाता है।
(iii) पत्तियों का उपयोग पेय पदार्थ, दवाइयाँ एवं कान्तिवर्द्धक वस्तुएँ बनाने के लिए, रेशे का कपड़ा बनाने तथा दृढ़ फल को भोजन एवं तेल बनाने के उपयोग में लिया जाता है।
(iv) पेड़ के तने का उपयोग रबड़, बलाटा, गोंद व राल बनाने के लिए किया जाता है।
प्रश्न 5.
पशुचारण से क्या अभिप्राय है? इसके प्रकार बताइये एवं चलवासी पशुचारण का विस्तार से वर्णन कीजिए।
उत्तर:
पशुचारण-आखेट पर आश्रित रहने वाले मानव समूह ने जब यह महसूस किया कि केवल आखेट से जीवन का भरण-पोषण नहीं किया जा सकता है तब उन्होंने पशुपालन व्यवसाय को अपनाया। विभिन्न जलवायविक दशाओं में रहने वाले लोगों ने उन क्षेत्रों में पाए जाने वाले पशुओं का चयन करके पालतू बनाया। अतः विभिन्न प्रकार के पशुओं को जब मानव अपने भरणपोषण क्रे लिए पालता है तो उसे पशुचारण अथवा पशुपालन व्यवसाय के नाम से जाना जाता है।
पशुचारण के प्रकार-भौगोलिक कारकों एवं तकनीकी की विकास के आधार पर वर्तमान समय में पशुचारण व्यवसाय को दो मुख्य प्रकारों में बाँटा गया है –
(i) चलवासी पशुचारण
(ii) वाणिज्य पशुधन पालन।
चलवासी पशुचारण – चलवासी पशुचारण व्यवसाय का विवेचन निम्नलिखित बिन्दुओं के अन्तर्गत किया गया है-
1. प्राचीन जीवन-निर्वाह व्यवसाय होना-चलवासी पशुचारण मानव का प्राचीन जीवन-निर्वाह व्यवसाय रहा है जिसमें पशुचारक अपने भोजन, वस्त, आवास, औजार एवं यातायात के लिए पशुओं पर निर्भर था।
चलवासी पशुचारण व्यवसाय का विवेचन निम्नलिखित बिन्दुओं के अन्तर्गत किया गया है –
1. प्राचीन जीवन-निर्वाह व्यवसाय होना – चलवासी पशुचारण मानव का प्राचीन जीवन-निर्वाह व्यवसाय रहा है जिसमें पशुचारक अपने भोजन, वस्त, आवास, औजार एवं यातायात के लिए पशुओं पर निर्भर था।
2. पानी व चरागाह की उपलब्धता के अनुसार स्थानान्तरित होना – चलवासी पशुचारक अपने पालतू पशुओं के साथ पानी व चरागाह की उपलब्धता एवं गुणवत्ता के अनुसार एक स्थान से दूसरे स्थान पर स्थानान्तरित होते रहते हैं। इन पशुचारक वर्गों के अपने-अपने निश्चित चरागाह क्षेत्र होते हैं।
3. क्षेत्रों के अनुरूप पशुओं का पालन किया जाना हैं।
विश्व के भिन्न-भिन्न क्षेत्रों में अनेक प्रकार के पशु पाले जाते हैं, यथा –
(i) उष्णकटिबन्धीय अफ्रीका में गाय-बैल को पाला जाता है।
(ii) सहारा एवं एशिया मरुस्थलीय भागों में भेड़, बकरी एवं ऊँट पाले जाते हैं।
(iii) तिब्बत एवं एण्डीज के पर्वतीय भागों में यॉक व लामा को पाला जाता है।
(iv) आर्कटिक एवं उप-उत्तरी ध्रुवीय क्षेत्रों में मुख्यतः रेण्डियर पाले जाते हैं।
4. चलवासी पशुचारण के क्षेत्र-विश्व में चलवासी पशुचारण के निम्नलिखित तीन प्रमुख क्षेत्र हैं –
(i) चलवासी पशुचारण का प्रमुख क्षेत्र उत्तरी अफ्रीका के एटलाण्टिक तट से अरव प्रायद्वीप होता हुआ मंगोलिया एवं मध्य चीन तक फैला हुआ है।
(ii) चलवासी पशुचारण का द्वितीय क्षेत्र यूरोप तथा एशिया महाद्वीप के टुण्ड्रा प्रदेश में है।
(iii) चलवासी पशुचारण का तीसरा क्षेत्र दक्षिणी गोलार्द्ध में दक्षिणी-पश्चिमी अफ्रीका एवं मेडागास्कर द्वीप पर है।
ऋतु प्रवास करना – चलवासी पशुचारण के अन्तर्गत पशुचारक नवीन चरागाहों की खोज में समतल भागों एवं पर्वतीय क्षेत्रों में लम्बी दूरियाँ तय करते हैं। ये ग्रीष्मकाल में मैदानी भाग से पर्वतीय चरागाह की तरफ एवं शीतकाल में पर्वतीय भाग से मैदानी भागों की तरफ प्रवास करते हैं। इनकी इस गतिविधि को ऋतु प्रवास कहा जाता है। वर्तमान समय में स्थिति – वर्तमान समय में चलवासी पशुचारकों की संख्या कम हो रही है एवं इनके द्वारा उपयोग में लाए गए क्षेत्र में भी कमी हो रही है।
इसके दो प्रमुख कारण हैं, यथा-
(i) राजनीतिक सीमाओं का अधिरोपण किया जाना।
(ii) अनेक देशों के द्वारा नवीन बस्तियों के निर्माण की योजना बनाना।
प्रश्न 6.
वाणिज्य पशुधन पालन की प्रमुख विशेषताओं का उल्लेख करते हुए इसके प्रमुख क्षेत्रों का वर्णन कीजिये।
उत्तर:
वाणिज्य पशुधन पालन की प्रमुख विशेषताएँ
- वाणिज्य पशुधन पालन एक व्यवस्थित एवं पूँजी प्रधान व्यवसाय है, जो मुख्यतः पश्चिमी संस्कृति से प्रभावित है।
- इसमें पशु चरागाह फार्म स्थायी होते हैं एवं विशाल क्षेत्र पर फैले होते हैं। इस सम्पूर्ण क्षेत्र को छोटीछोटी इकाइयों में विभाजित कर दिया जाता है।
- पशुओं की चराई को नियंत्रित करने के लिए, इन विशाल चरागह क्षेत्रों को बाड़ लगाकर एक-दूसरे से अलग कर दिया जाता है।
- जब चराई के कारण एक छोटे क्षेत्र की घास समाप्त हो जाती है, तब पशुओं को दूसरे छोटे क्षेत्र में ले जाया जाता है।
- इस व्यवसाय में पशुओं की संख्या भी चरागाह की वहन क्षमता के अनुसार रखी जाती है।
- इसमें केवल एक ही प्रकार के पशु पाले जाते हैं। यहाँ भेड़, बकरी, गाय-बैल तथा घोड़े प्रमुख पालित पशु हैं। इन पशुओं से प्राप्त मांस, खालें एवं ऊन को वैज्ञानिक ढंग से संसाधित एवं डिब्बाबन्द कर विश्व के बाजारों में नियात कर दिया जाता है।
- पशु फार्म में पशुओं का पालन वैज्ञानिक ढंग व उच्च तकनीक के माध्यम से किया जाता है।
- इस व्यवसाय में मुख्य ध्यान पशुओं के प्रजनन, जननिक सुधार, बीमारियों पर नियंत्रण एवं उनके स्वास्थ्य पर दिया जाता है।
प्रमुख क्षेत्र – विश्व में मुख्यतः न्यूजीलैण्ड, आस्ट्रेलिया, अर्जेन्यइना, ब्राजील, युरुत्वे, संयुक्त राज्य अमेरिका एवं कनाडा के शीत-उष्ण घास के मैदान (प्रेयरी के मैदान) में तथा दक्षिणी अफ्रीका के वेल्ड्स मैदानों में वाणिज्य पशुधन पालन किया जाता है।
प्रश्न 7.
निर्वाह कृषि को वर्गीकृत कर इसकी विशेषताएँ एवं विश्व के प्रमुख क्षेत्रों का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
निर्वाह कृषि-इस प्रकार की कृषि में कृषि क्षेत्र में रहने वाले स्थानीय उत्पादों का सम्पूर्ण अथवा लगभग का उपयोग किया जाता है। इसे दो भागों में विभाजित किया जा सकता है, यथा-
(1) आदिकालीन निर्वाह कृषि
(2) गहन निर्वाह कृषि।
(1) आदिकालीन निर्वाह कृषि-विशेषताएँ –
- आदिकालीन निर्वाह कृषि में वनस्पति को काटकर तथा जलाकर कृषि के लिए भूमि प्राप्त की जाती है। इसमें जली हुई राख की परत उर्वरक का कार्य करती है। इसीलिए इस कृषि को ‘कर्तन एवं दहन कृषि’ भी कहा जाता है।
- इस कृषि में बोए गये खेतों का आकार बहुत छोटा होता है।
- यह खेती पुराने औजारों, जैसे – लकड़ी, कुदाली एवं फावड़े द्वारा की जाती है।
- इस कृषि पद्धति में कुछ समय पश्चात् (लगभग 3 से 5 वर्ष बाद) जब मिट्टी का उपजाऊपन समाप्त हो जाता है, तब कृषक नये क्षेत्र में वनों को जलाकर कृषि के लिए नई भूमि तैयार करते हैं।
- कुछ वर्षों बाद कृषक पुनः पहले वाले कृषि क्षेत्र पर उर्वरकता में वृद्धि हो जाने के कारण वापस कृषि कार्य करने आ जाते हैं।
विश्व के प्रमुख क्षेत्र-इसके प्रमुख क्षेत्र अफ्रीका, दक्षिणी एवं मध्य अमेरिका का उष्णकटिबंधीय भाग एवं दक्षिण-पूर्वी एशिया है।
(2) गहन निर्वाह कृषि-इस प्रकार की कृषि मानसून एशिया के घने बसे देशों में की जाती है।
विशेषताएँ –
(i) गहन निर्वाह कृषि के दो प्रकार हैं –
(a) चावल प्रधान गहन निर्वाह कृषि
(b) चावल रहित गहन निर्वाह कृषि।
(ii) अधिक जनसंख्या घनत्व के कारण खेतों का आकार छोटा होता है एवं कृषि कार्य में कृषक का संपूर्ण परिवार लगा रहता है।
(iii) भूमि का गहन उपयोग होता है एवं यंत्रों की अपेक्षा मानव श्रम का अधिक महत्त्व है।
(iv) उर्वरता बनाए रखने के लिए पशुओं के गोबर की खाद एवं हरी खाद का उपयोग किया जाता है।
(v) इस कृषि में प्रति इकाई उत्पादन अधिक होता है, परन्तु प्रति कृषक उत्पादन कम है।
(vi) चावल रहित गहन निर्वाह कृषि में सिंचाई की आवश्यकता होती है। विश्व के प्रमुख क्षेत्र-इसके प्रमुख क्षेत्र मानसून एशिया के घने बसे देश हैं। इनमें भारत, मंचूरिया, जापान, म्यांमार, श्रीलंका, उत्तरी कोरिया, दक्षिणी कोरिया, उत्तरी चीन आदि मुख्य हैं।
प्रश्न 8.
आदिमकालीन निर्वाह कृषि की विशेषताओं एवं क्षेत्रों का विवरण दीजिए।
उत्तर:
आदिमकालीन निर्वाह कृषि-आदिमकालीन निर्वाह कृषि अथवा स्थानान्तरणशील कृषि कार्य वर्तमान में विश्व के उष्णकटिबंधीय क्षेत्रों में किया जाता है, जहाँ आदिम जाति के लोग यह कृषि करते हैं। क्षेत्र-इसके प्रमुख क्षेत्र अफ्रीका, दक्षिणी एवं मध्य अमेरिका का उष्णकटिबंधीय भाग एवं दक्षिण-पूर्वी एशिया हैं।
आदिमकालीन निर्वाह कृषि की प्रमुख विशेषताएँ –
- आदिमकालीन निर्वाह कृषि में वनस्पति को काटकर तथा जलाकर कृषि के लिए भूमि प्राप्त की जाती है। इसमें जली हुई राख की परत उर्वरक का कार्य करती है। इसीलिए इस कृषि को ‘कर्तन एवं दहन कृषि’ भी कहा जाता है।
- इस कृषि में बोए गये खेतों का आकार बहुत छोटा होता है।
- यह खेती पुराने औजारों, जैसे-लकड़ी, कुदाली एवं फावड़े द्वारा की जाती है।
- इस कृषि पद्धति में कुछ समय पश्चात् (लगभग 3 से 5 वर्ष बाद) जब मिट्टी का उपजाऊपन समाप्त हो जाता है, तब कृषक नये क्षेत्र में वनों को जलाकर कृषि के लिए नई भूमि तैयार करते हैं।
- कुछ वर्षों बाद कृषक पुन: पहले वाले कृषि क्षेत्र पर उर्वरकता में वृद्धि हो जाने के कारण वापस कृषि कार्य करने आ जाते हैं। इस प्रकार झूम का एक चक्र (आग लगाकर कृषि भूमि तैयार करना) चलता रहता है।
- उष्ण कटिबंधीय क्षेत्रों में इसे अलग-अलग नामों से जाना जाता है, जैसे— भारत के उत्तरी-पूर्वी राज्यों में इसे झूमिंग, मध्य अमेरिका एवं मैक्सिको में मिल्पा तथा मलेशिया व इंडोनेशिया में लादांग कहा जाता है।
प्रश्न 9.
गहन निर्वाह कृषि का विस्तार से वर्णन कीजिए।
उत्तर:
गहन निर्वाह कृष् – गहन निर्वाह प्रकार की कृषि मानसून एशिया के घने बसे देशों में की जाती है। गहन निर्वाह कृषि को निम्नलिखित दो प्रकारों में वर्गीकृत किया गया है-
(i) चावल प्रधान गहन निर्वाह कृषि-चावल प्रधान गहन निर्वाह कृषि में चावल प्रमुख फसल होती है। अधिक जनसंख्या घनत्व के कारण खेतों का आकार छोटा होता है एवं कृषि कार्य में किसान का सम्पूर्ण परिवार लगा रहता है। इसमें भूमि का गहन उपयोग होता है एवं यन्त्रों की अपेक्षा मानव श्रम का अधिक महत्त्व है। उपजाऊपन को बनाए रखने के लिए इस प्रकार की कृषि में पशुओं के गोबर की खाद एवं हरी खाद का उपयोग किया जाता है। इस प्रकार की कृषि में प्रति इकाई उत्पादन अधिक होता है किन्तु प्रति किसान उत्पादन कम है।
(ii) चावल रहित गहन निर्वाह कृषि-मानसून एशिया के अनेक भागों में उच्चावच, जलवायु, मृदा तथा अन्य भौगोलिक कारकों की भिन्नता के कारण चावल की फसल आना प्रायः सम्भव नहीं है। इसीलिए उत्तरी चीन, मंचूरिया, उत्तरी कोरिया एवं उत्तरी जापान में गेहूँ, सोयाबीन, जौ एवं सोरपम बोया जाता है। भारत में सिन्धु-गंगा के मैदान के पश्चिमी भाग में गेहूँ एवं दक्षिणी व पश्चिमी शुष्क प्रदेश में ज्वार-बाजरा प्रमुख रूप से उगाया जाता है। चावल रहित गहन निर्वाह कृषि की अधिकतर विशेषताएँ चावल प्रधान कृषि के समान ही हैं। इसमें केवल मात्र अन्तर यह है कि इसमें सिंचाई की जाती है।
प्रश्न 10.
रोपण कृषि के विकास, विशेषताओं एवं क्षेत्र का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
रोपण कृषि का विकास-यूरोपीय लोगों ने विश्व के अनेक भागों का औपनिवेशीकरण किया तथा कृषि के कुछ अन्य रूपों जैसे—रीपण कृषि की शुरुआत की। रोपण कृषि वृहद् स्तरीय लाभोन्मुख उत्पादन प्रणाली है। यूरोपीय उपनिवेशों ने अपने अधीन उष्ण कटिबन्धीय क्षेत्रों में चाय, कॉफी, कोको, रबड़, कपास, गन्ना, केला एवं अनन्नास की पौध लगाई। यह एक विशेष प्रकार की व्यापारिक कृषि है। इसमें किसी एक नकदी फसल की बड़े पैमाने पर कृषि की जाती है।
यह कृषि बड़े-बड़े आकार कें खेतों या बागानों पर की जाती है। इसी कारण इसे ‘बागाती कृषि’ भी कहा जाता है। फ्रांसवासियों ने पश्चिमी अफ्रीका में कॉफी एवं कोकोआ की पोध लगाई थी। ब्रिटेनवासियों ने भारत एवं श्रीलंका में चाय के बागान, मलेशिया में रबड़ के बागान एवं पश्चिमी द्वीप समूह में गन्ने एवं केले के बागान विकसित किए। स्पेन एवं अमेरिकावासियों ने फिलीपाइंस में नारियल एवं गन्ने के बागान लगाए। वर्तमान में अधिकांश बागानों का स्वामित्व देशों की सरकार अथवा नागरिकों के नियंत्रण में है।
विशेषताएँ-रोपण कृषि की प्रमुख विशेषताएँ निम्नलिखित हैं –
- रोपण कृषि बड़े-बड़े आकार के फार्मों पर की जाती है।
- रोपण कृषि में केवल एक फसल की कृषि पर जोर दिया जाता है। इसका अधिकतर भाग निर्यात किया जाता है।
- इस प्रकार की कृषि में वैज्ञानिक विधियों, मशीनों, उर्वरक एवं अधिक पूँजी का प्रयोग किया जाता है जिससे प्रति हैक्टेयर उत्पादन बढ़ाया जा सके तथा उत्तम कोटि का अधिक मात्रा में उत्पादन प्राप्त किया जा सके।
- इन बागानों पर बड़ी संख्या में कुशल श्रमिक काम करते हैं। ये श्रमिक स्थानीय होते हैं। कुछ प्रदेशों में दास श्रमिक या नीग्रो लोग भी काम करते हैं। श्रीलंका में चाय के बागान तथा मलेशिया में रबड़ के बागानों पर भारत के तमिल लोग कार्य करते हैं।
- रोपण कृषि के अन्तर्गत बागानों पर अधिकतर पूँजी, प्रबन्ध व संगठन यूरोपियन लोगों के हाथ में है।
- रोपण कृषि के प्रमुख क्षेत्र समुद्र के किनारे स्थित हैं जहाँ सड़कों, रेलों, नदियों तथा बन्दरगाहों से यातायात की सुविधाएँ प्राप्त हैं।
- रोपण कृषि के बागान विरल जनसंख्या वाले क्षेत्रों में अधिक भूमि प्राप्त होने के कारण लगाए जाते हैं।
- रोपण कृषि में वार्षिक फसलों की तुलना में चिरस्थायी वृक्षों या झागी वाली फसलों की कृषि की जाती है।.
प्रश्न 11.
विस्तृत वाणिज्य अनाज कृषि की विशेषताओं व क्षेत्रों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
विस्तृत वाणिज्य अनाज कृषि विश्व में कम जनसंख्या वाले प्रदेशों में कृषि योग्य भूमि अधिक होने के कारण बड़े-बड़े फार्मों पर की जाने वाली कृषि को विस्तृत वाणिज्य कृषि के नाम से जाना जाता है। कृषि यन्त्रों के अधिक प्रयोग के कारण इसे यान्त्रिक कृषि भी कहा जाता है। इस प्रकार की कृषि के अन्तर्गत एक ही फसल के उत्पादन पर जोर दिया जाता है। यह एक आधुनिक कृषि प्रणाली है जिसका विकास औद्योगिक क्षेत्रों में खाद्यान्नों की माँग बढ़ने के कारण हुआ है।
प्रमुख फसलें-विश्व में मध्य अक्षांशों के आन्तरिक अर्द्ध-शुष्क प्रदेशों में विस्तृत वाणिज्य अनाज की कृषि की जाती है। इसकी मुख्य फसल गेहूँ है। यद्यापि अन्य फसलें यथा-मक्का, जौ, राई एवं जई भी बोई जाती हैं। प्रमुख क्षेत्र व प्रदेश-विस्तृत वाणिज्य अनाज कृषि मुख्यतः यूरेशिया के स्टेपीज, उत्तरी अमेरिका के प्रेयरीज, अर्जेण्यइना के पम्पाज, दक्षिणी अफ्रीका के वेल्ड्स, आस्ट्रेलिया के डाकन्स तथा न्यूजीलैण्ड के केण्टरबरी के मैदान में की जाती है।
विस्तृत वाणिज्य अनाज कृषि की विशेषताएँविस्तृत वाणिज्य अनाज कृषि की प्रमुख विशेषताएँ निम्नलिखित हैं –
- विस्तृत वाणिज्य अनाज कृषि समतल भूमि वाले क्षेत्रों पर की जाती है। इस प्रकार की कृषि में खेतों का आकार बहुत बड़ा होता है।
- इस प्रकार की कृषि में खेत जोतने से फसल काटने तक सभी कार्य यन्त्रों की सहायता से सम्पन्न किये जाते हैं।
- विस्तृत वाणिज्य अनाज कृषि में प्रति एकड़ उत्पादन कम होता है किन्तु प्रति व्यक्ति उत्पादन अधिक होता है।
- यह कृषि व्यापारिक दृष्टिकोण से की जाती है जिससे खाद्यान्नों को माँग क्षेत्र में निर्यात किया जा सके।
- इस प्रकार की कृषि में श्रमिकों का उपयोग कम होता है।
- इस कृषि में कम वर्षा के कारण जलापूर्ति करने के लिए सिंचाई के साधनों का प्रयोग किया जाता है।
- इस प्रकार की कृषि में रासायनिक खाद का अधिक प्रयोग किया जाता है जिससे कुल उत्पादन में अधिक वृद्धि हो सके।
प्रश्न 12.
मिश्रित कृषि का वर्णन करते हुए मिश्रित कृषि के प्रमुख क्षेत्रों को बतलाइये।
उत्तर:
मिश्रित कृषि जब फसलों की कृषि के साथ-साथ पशु-पालन आदि सहायक धन्धे भी अपनाए जाते हैं तो उसे मिश्रित कृषि के नाम से जाना जाता है। इस प्रकार की कृषि में मुख्यतः दो प्रकार की फसलें उत्पन्न की जाती हैं। यथा-खाद्यान्न एवं चारे की फसलें। प्रमुख फसलें-इसमें बोई जाने वाली प्रमुख फसलें गेहूँ, जौ, राई, जई, मक्का, चारे की फसल एवं कंदमूल हैं। खाद्यान्न एवं चारे की फसलें मिश्रित कृषि के मुख्य घटक हैं। फसल उत्पादन एवं पशुपालन दोनों का इसमें समान महत्त्व है।
मिश्रित कृषि की विशेषताएँ-मिश्रित कृषि की प्रमुख विशेषताएँ निम्नलिखित हैं –
- मिश्रित कृषि में खेतों का आकार मध्यम होता है।
- इस प्रकार की कृषि में फसल उत्पादन एवं पशुपालन दोनों को समान महत्त्व दिया जाता है।
- इस प्रकार की कृषि में फसलों के साथ पशु, यथा-मवेशी, भेड़, सूअर एवं कुक्कुट आय के प्रमुख स्रोत होते हैं।
- इस प्रकार की कृषि में शस्यावर्तन एवं अन्तःफसली कृषि मृदा की उर्वरता को बनाये रखने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।
- मिश्रित कृषि में खाद्यान्नों को चारे की फसलों के साथ हेर-फेर के साथ उगाया जाता है।
- मिश्रित कृषि में विकसित कृषि यन्त्र, इमारतों, रासायनिक एवं वनस्पति खाद् के गहन उपयोग आदि पर अधिक व्यय किया जाता है।
- इस प्रकार की कृषि में किसानों की कुशलता एवं योग्यता मुख्य विशेषताएँ हैं।
विश्व में मिश्रित कृषि के मुख्य क्षेत्र-मिश्रित कृषि विश्व के अत्यधिक विकसित भागों में की जाती है। इस प्रकार की कृषि मुख्य रूप से उत्तरी-पश्चिमी यूरोप, उत्तरी अमेरिका के पूर्वी भाग, यूरेशिया के कुछ भाग एवं दक्षिणी महाद्वीपों के सम शीतोष्ण अक्षांश वाले क्षेत्रों में की जाती है।
प्रश्न 13.
डेयरी कृषि की प्रमुख विशेषताओं का वर्णन क्रीजिए तथा विश्व में डेयरी कृषि के प्रमुख क्षेत्रों को लिखिए।
उत्तर:
डेयरी कृष्-दूध तथा दूध से बने पदार्थ, यथा-मक्खन, पनीर, जमाया हुआ दूध, पाऊडर दूध, मांस, अण्डे आदि के लिए दुधारू पशुओं व अन्य पशुओं के पालने के व्यवसाय को डेयरी कृषि के नाम से जाना जाता है।
विशेषताएँ-डेयरी कृषि की प्रमुख विशेषताएँ अग्रलिखित हैं –
- डेयरी कृषि दुधारू पशुओं के पालन-पोषण का सर्वाधिक उन्नत एवं दक्ष प्रकार है।
- इस प्रकार की कृषि में पशुओं के लिए छप्पर, घास संचित करने के भण्डार एवं दुग्ध उत्पादन में अधिक यंत्रों के प्रयोग के लिए अधिक पूँजी की आवश्यकता होती है।
- डेयरी कृषि में पशुओं के स्वास्थ्य, प्रजनन, पशु चिकित्सा पर भी अधिक ध्यान दिया जाता है।
- इस प्रकार की कृषि में गहन श्रम की आवश्यकता होती है। पशुओं को चराने, दूध निकालने आदि सभी कार्यों को करने के लिए वर्षभर श्रम की आवश्यकता होती है क्योंकि फसलों की तरह इनमें कोई अन्तराल नहीं होता जिसमें श्रम की आवश्यकता न हो।
- डेयरी कृषि का कार्य नगरीय एवं औद्योगिक केन्द्रों के समीप किया जाता है क्योंकि ये क्षेत्र ताजा दूध व अन्य डेयरी उत्पाद के अच्छे बाजार होते हैं।
- इस प्रकार की कृषि में वर्तमान समय में विकसित यातायात के साधन, प्रशीतकों के उपयोग, पास्तेरीकरण की सुविधा के कारण विभिन्न डेयरी उत्पादों को अधिक समय तक रखा जा सकता है।
विश्व में डेयरी कृषि के प्रमुख क्षेत्र-विश्व में वाणिज्य स्तर पर डेयरी कृषि के तीन प्रमुख क्षेत्र हैं-
- सबसे बड़ा क्षेत्र उत्तरी-पश्चिमी यूरोप का क्षेत्र।
- कनाडा का दक्षिणी-पूर्वी भाग।
- न्यूजीलैण्ड, दक्षिणी-पूर्वी आस्ट्रेलिया एवं तस्मानिया क्षेत्र।
प्रश्न 14.
भूमध्यसागरीय कृषि की विशेषताओं एवं प्रमुख क्षेत्रों पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
उत्तर:
भूमध्यसागरीय कृषि की विशेषताएँभूमध्यंसागरीय कृषि की प्रमुख विशेषताएँ निम्नलिखित हैं-
(i) भूमध्यसागरीय कृषि अति विशिष्ट प्रकार की कृषि है।
(ii) अंगूर की कृषि भूमध्यसागरीय कृषि की मुख्य विशेषता है। यहाँ पर विस्तृत बागानों में अंगूर की खेती की जाती है जिनमें बड़ी मात्रा में अंगूर का उत्पादन होता है। इस क्षेत्र के अनेक देशों में अच्छे किस्म के अंगूरों से उच्च गुणवत्ता वाली शराब का उत्पादन किया जाता है।
(iii) भूमध्यसागरीय कृषि में निम्न श्रेणी के अंगूरों को सुखाकर मुनक्का एवं किशमिश बनाई जाती है।
(iv) इस प्रकार की कृषि वाले क्षेत्रों में अंजीर एवं जैतून का भी उत्पादन किया जाता है।
शीतकाल में जब संयुक्त राज्य अमेरिका में फलों एवं सब्जियों की माँग होती है तब इसी क्षेत्र से आपूर्ति की जाती है। क्षेत्र-भूमध्य सागरीय कृषि का विस्तार भूमध्य सागर के समीपवर्ती क्षेत्र जो कि दक्षिणी यूरोप से उत्तरी अफ्रीका में ट्यूनीशिया से एटलाण्टिक तट तक फैला है। दक्षिणी कैलीफोर्निया, मध्यवर्ती चिली, दक्षिणी अफ्रीका का दक्षिणीपश्चिमी भाग एवं आस्ट्रेलिया के दक्षिण व दक्षिण-पश्चिम भाग में भूमध्य सागरीय कृषि की जाती है। खट्टे फलों की आपूर्ति करने में यह क्षेत्र महत्त्वपूर्ण है।
प्रश्न 15.
बाजार के लिए सब्जी खेती एवं उद्यान कृषि की विशेषताएँ व प्रमुख क्षेत्रों का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
बाजार के लिए सब्जी खेती एवं उद्यान कृषि विशेषताएँ-बाजार के लिए सब्जी खेती एवं उद्यान कृषि की प्रमुख विशेषताएँ निम्नलिखित हैं –
- बाजार के लिए सब्जी खेती एवं उद्यान कृषि में अधिक मुद्रा मिलने वाली फसलें, यथा-सब्जियाँ, फल व पुष्प लगाए जाते हैं जिनकी माँग नगरीय क्षेत्रों में अधिक होती है।
- इस प्रकार की कृषि में खेतों का आकार छोटा होता है। खेत अच्छे यातायात के साधनों के द्वारा नगरीय क्षेत्रों से जुड़े होते हैं जहाँ ऊँची आय वाले उपभोक्ता रहते हैं।
- इस प्रकार की कृषि में गहन श्रम एवं अधिक पूँजी की आवश्यकता होती है।
- बाजार के लिए सब्जी खेती एवं उद्यान कृषि में सिंचाई, उर्वरक, अच्छी किस्म के बीज, कीटनाशी, हरित गृह एवं शीत क्षेत्रों में कृत्रिम ताप का भी उपयोग किया जाता है।
- जिन प्रदेशों में किसान केवल सब्जियाँ पैदा करता है वहाँ इसको ट्रक कृषि के नाम से जाना जाता है। ट्रक फार्म एवं बाजार के मध्य दूरी को एक ट्रक रात-भर में तय करता है। इसी आधार पर इसका नाम ट्रक कृषि रखा गया है।
- इस प्रकार की कृषि के अन्तर्गत नीदरलैण्ड पुष्प उत्पादन में विशिष्टीकरण रखता है। इसमें बागवानी फसल विशेष रूप से एक प्रकार के फूल ट्यूलिप को समस्त यूरोप के प्रमुख शहरों में भेजा जाता है।
- पश्चिमी यूरोप एवं उत्तरी अमेरिका के औद्योगिक क्षेत्रों में उद्यान कृषि के अलावा कारखाना कृषि भी की जाती है। इसमें पशुधन पाला जाता है जिनमें विशेष रूप से गाय-बैल तथा कुक्कुट पाले जाते हैं।
- कारखाना कृषि में पालित पशुओं को बाड़े पर कारखानों में तैयार किए गये भोजन पर रखा जाता है तथा उनकी बीमारियों का भी ध्यान रखा जाता है। इस प्रकार की कृषि में भवन निर्माण, यन्त्र खरीदने, प्रकाश एवं ताप की व्यवस्था करने एवं पशु चिकित्सा के लिए अधिक धन की आवश्यकता होती है। अच्छी नस्ल का चुनाव, प्रजनन की वैज्ञानिक विधियाँ, कुक्कर एवं पशुपालन इस प्रकार की कृषि के मुख्य लक्षण हैं।
विश्व में बाजार के लिए सब्जी खेती एवं उद्यान कृषि के प्रमुख क्षेत्र-बाजार के लिए सब्जी खेती एवं उद्यान कृषि विश्व के निम्नलिखित क्षेत्रों में विकसित अवस्था में मिलती है –
(i) उत्तरी-पश्चिमी यूरोप।
(ii) संयुक्त राज्य अमेरिका के उत्तरी-पूर्वी भाग।
(iii) भूमध्यसागरीय जलवायु वाले क्षेत्र।
प्रश्न 16.
खनन के विकास को बताते हुए खनन कार्य को प्रभावित करने वाले कारक एवं खनन की विधियों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
खनन का विकास-मानव विकास के इतिहास में खनिजों की खोज की अनेक अवस्थाओं को देखा जा सकता है। यथा-ताम्र युग, कांस्य युग एवं लौह युग। प्राचीन काल में खनिजों का उपयोग औजार बनाने, बर्तन बनाने एवं हथियार बनाने तक ही सीमित था। इसका वास्तविक विकास औद्योगिक क्रान्ति के पश्चात् ही सम्भव हो पाया एवं इसका महत्त्व लगातार बढ़ता जा रहा है।
खनन कार्य को प्रभावित करने वाले कारक-खनन कार्य की लाभप्रदता मुख्यतः निम्नलिखित कारकों पर निर्भर करती है-
(1) भौतिक कारक-जिनमें खनिज निक्षेपों के आकार, श्रेणी एवं उपस्थिति की अवस्था को शामिल किया जाता है।
(2) आर्थिक कारक-जिनमें खानिज की माँग, विद्यमान तकनीकी ज्ञान एवं उसका उपयोग, अवसंरचना के विकास के लिए उपलब्ध पूँजी एवं यातायात व श्रम पर होने वाला व्यय आता है।
खनन की विधियाँ-उपस्थिति की अवस्था एवं अयस्क की प्रकृति के आधार पर खनन की निम्नलिखित दो प्रमुख विधियाँ हैं-
(1) धरातलीय खनन-धरांतलीय खनन को ‘विवृत खनन’ के नाम से भी जाना जाता है। यह खनिजों के खनन का सबसे सस्ता तरीका है क्योंकि इस विधि में सुरक्षात्मक पूर्व में किये गये उपायों एवं उपकरणों पर अतिरिक्त खर्च अपेक्षाकृत निम्नतम होता है तथा उत्पादन शीष्र व अधिक होता है।
(2) भूमिगत खनन-जब अयस्क धरातल के नीचे गहराई में होता है तब भूमिगत अथवा कूपकी खनन विधि का प्रयोग किया जाता है। इस विधि में लम्बवत् कूपक गहराई पर स्थित होते हैं जहाँ से भूमिगत गैलरियाँ खानिजों तक पहुँचने के लिए फैली हुई होती हैं। इन मार्गों से होकर खनिजों का निष्कर्षण एवं परिवहन धरातल तक किया जाता है। खदान में कार्य करने वाले श्रमिकों तथा निकाले जाने वाले खनिजों के सुरक्षित और प्रभावी आवागमन के लिए इसमें विशेष प्रकार की लिफ्ट वेधक, माल ढोने की गाड़ियाँ तथा वायु संचार प्रणाली की आवश्यकता होती है। खनन का यह तरीका जोखिम भरा होता है क्योंकि जहरीली गैसें, आग एवं बाढ़ के कारण अनेक बार दुर्घटनाएँ होने का डर रहता है।
प्रश्न 17.
सामूहिक कृषि पर एक संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
उत्तर:
सामूहिक कृषि पूर्व सोवियत संघ में ‘कोलखहोज’ के नाम से प्रारम्भ हुई सामूहिक कृषि का आधारभूत सिद्धान्त यह है कि इसमें उत्पादन के साधनों का स्वामित्व सम्मूर्ण समाज एवं सामूहिक श्रम पर आधारित होता है। इस कृषि में सभी कृषक अपने संसाधन जैसे-भूमि, पशुधन एवं श्रम को मिलाकर कृषि कार्य करते थे।
कृषक अपनी दैनिक आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए भूमि का छोटा-सा भाग अपने अधिकार में भी रखते थे। सरकार कृषि उत्पादन का वार्षिक लक्ष्य निर्धारित करती थी एवं उत्पादन को सरकार ही निर्धारित मूल्य पर खरीदती थी। लक्ष्य से अधिक उत्पन्न होने वाला भाग सभी सदस्यों को वितरित कर दिया जाता था या बाजार में बेच दिया जाता था।
उत्पादन एवं भाड़े पर ली गई मशीनों पर कृषकों को कर चुकाना पड़ता था। सभी सदस्यों को उनके द्वारा किए गए कार्य की प्रकृति के आधार पर भुगतान किया जाता था। असाधारण कार्य करने वाले सद्स्य को नकद या माल के रूप में पुरस्कृत किया जाता था। यद्यपि पूर्व सोवियत संघ की समाजवादी सरकार ने कृषि की दशा सुधारने एवं उत्पादन में वृद्धि व आत्मनिर्भरता प्राप्त करने के लिए इस कृषि को प्रारम्भ किया था, जिसे बाद में अन्य समाजवादी देशों ने भी अपनाया। सोवियत संघ के विघटन के बाद इस प्रकार की कृषि वर्तमान में संशोधित रूप में की जा रही है।