In this post, we have given Class 11 Hindi Antral Chapter 2 Summary – Hussain Ki Kahani Apni Jubani Summary Vyakhya. This Hindi Antral Class 11 Summary is necessary for all those students who are in are studying class 11 Hindi subject.
हुसैन की कहानी अपनी ज़बानी Summary – Class 11 Hindi Antral Chapter 2 Summary
हुसैन की कहानी अपनी ज़बानी – मकबूल फिदा हुसैन – कवि परिचय
लेखक-परिचय :
प्रश्न :
मकबूल फ़िदा हुसैन का संक्षिप्त जीवन-परिचय दीजिए।
उत्तर :
मकबूल फ़िदा हुसैन आधुनिक भारतीय चित्रकला के प्रमुख स्तंभ हैं। इनका जन्म शोलापुर (महाराष्ट्र) में सन 1915 में हुआ था। प्रोग्रेसिव आर्टिस्ट ग्रुप के प्रणेता हुसैन ने सिनेमा होर्डिंग के पेंटर के रूप में काम शुरू किया। ये कई फ़िल्मों के निर्माण से जुड़े रहे। हमेशा चर्चा और विवादों में बने रहने वाले हुसैन ने ललित कला अकादमी की प्रथम राष्ट्रीय प्रदर्शनी में प्रथम पुरस्कार पाया। हुसैन को सन 1966 में पद्मश्री और सन 1973 में पद्मभूषण मिला। इन्होंने सन 1967 में ‘थ्रू द् आइज़ ऑंफ़ ए पेंटर’ नामक वृत्तचित्र बनाया, जो कि बर्लिन में पुरस्कृत हुआ। चर्चित चित्रकार हुसैन ने कई शृंखलाओं में चित्र बनाए। हुसैन ने युवा कलाकारों के लिए कला का एक नया और विशाल बाज़ार खड़ा किया।
पाठ का सार :
इस जीवनी में मकबूल फ़िदा हुसैन के प्रारंभिक जीवन के विषय में बताया गया है। हुसैन को बचपन से ही चित्रकारी का शौक था, जो उनकी हर हरकत में झलकता था। इसके साथ ही हुसैन के परिवार की खराब आर्थिक दशा का वर्णन भी किया गया है।
बड़ौदा का बोर्डिंग स्कूल :
मकबूल अब लड़का नहीं रहा, क्योंकि उसके दादा चल बसे। लड़के के अब्बा ने सोचा, क्यों न उसे बड़ौदा के बोर्डिंग स्कूल में दाखिल करा दिया जाए, वरना दिन भर अपने दादा के कमरे में गुमसुम-सा बंद रहेगा।
अब्या ने फ़ौरन मकबूल को चाचा के हवाले किया और हुक्म दिया- “इसे बड़ौदा छोड़ आओ, वहाँ लड़कों के साथ इसका दिल लग जाएगा। पढ़ाई के साथ मज़हबी तालीम, रोज़ा, नमाज़, अच्छे आचरण के चालीस सबक, पाकीज़गी के बारह तरीके सीख जाएगा।”
महाराजा सियाजीराव गायकवाड़ का साफ-सुथरा शहर है-बड़ौदा। शहर में दाखिल होने पर ‘हिज़ हाइनेस’ की पाँच धातुओं से बनी मूर्ति, शानदार घोड़े पर सवार, ‘दौलते बरतानिया’ के मेडेल लटकाए, सीना ताने दूर से ही दिखाई देती है।
दारुलतुलबा (छात्रावास) मदरसा हुसामिया, सिंह बाई माता रोड, गैडी गेट। तालाब किनारे सुलेमानी जमात का बोर्डिंग स्कूल है। गुजरात के मशहूर ‘अरके तिहाल’ की ख्याति वाले, जी॰एम० हकीम अब्यास तैयबजी की देख-रेख में यह स्कूल चल रहा था, जो नेशनल कांग्रेस और गांधी जी के अनुयायी थे, इसीलिए छात्रों के मुँड़े सिरों पर गांधी टोपी और बदन पर खादी का कुरता-पायजामा हुआ करता था।
मकबूल को इसी बोर्डिंग के अहाते में छोड़ा जाता है। यहाँ उसकी दोस्ती छह लड़कों से होती है, जो एक-दूसरे के करीब हो जाते हैं। दो साल की नज़दीकी तमाम उम्र कभी दिल की दूरी में बदल नहीं पाई।
इन पाँच दोस्तों में मोहम्मद् इब्राहीम गोहर अली – डभोई का अत्तर, छोटे कद और ठहरी हुई नज़रों वाला था। अंबर और मुश्क के अत्तर में डूबे गुणों का भंडार था।
दूसरा दोस्त, डॉक्टर मनव्वरी का लड़का अरशद – हमेशा हँसता चेहरा। गाने और खाने का शौकीन। भरा लेकिन कसा पहलवानी जिस्म।
तीसरा दोस्त, हामिद कंबर हुसैन – शौक, कुश्ती और दंड-बैठक, खुशमिज़ाज गप्पी, बात में बात मिलाने में उस्ताद। चौथा दोस्त, अब्बासजी अहमद – गठा जिस्म, खुला रंग, कुछ-कुछ जापानी खिंची-सी आँखें, स्वभाव से बिज़नेसमैन, हँसने का अंदाज़ दिलकश।
पाँचवाँ दोस्त, अब्वास अली फ़िदा – बहुत नरम लहजा, चहरे पर ऊँचा माथा, वक्त का पाबंद, खामोश तबियत, हाथों से किताब शायद ही कभी छूटी हो।
मदरसे का सालाना जलसा, मुगलवाड़े के मशहूर फ़ोटोग्राफ़र लुकमानी ट्राइपॉड पर रखे कैमरे पर काला कपड़ा ढँके जैसे उसके अंदर घुसे जा रहे हों। सिर्फ़ खास मेहमानों और उत्पादों का ‘ग्रुप फ़ोटोग्राफ़’ खींचा जा रहा है। दूर लड़कों की भीड़ में खड़ा मकबूल मौके की तलाश में है। जैसे ही लुकमानी ने फ़ोकस जमाया और कहा ‘रेडी’ मकबूल दौड़कर ग्रुप के कोने में खड़ा हो गया। मकबूल ने खेल-कूद में हिस्सा लिया, हाई जंप में पहला ईनाम, दौड़ में फिसड्डी। जब ड्राइंग मास्टर मोहम्मद अतहर ने ब्लैकबोर्ड पर सफ़ेद चॉंक से एक बहुत बड़ी चिड़िया बनाई और लड़कों से स्लेट पर बनाने को कहा तो। मकबूल की स्लेट पर हू-ब-हू वही चिड़िया बैैकोर्ड से उड़कर आ बैठी। दो अक्तूबर, स्कूल गांधी जो की सालगिरह मना रहा है। क्लास शुरू होने से पहले मकबूल गांधी जी का पोट्टेट ब्लैकबोई पर बना चुका है। अब्यास तैयबजी देखकर बहुत खुश हुए।
रानीपुर बाज़ार :
रानीपुर बाज़ार में चाचा मुराद अली को उनके बड़े भाई फिदा ने एक जनरल स्टोर की दुकान खुलवा दी। फिदा साहब ‘मालवा टेक्सटाइल’ में टाइमकीपर थे, मगर बिज़नेस में दिलचस्पी रखते थे। मकबूल को छूट्टी के दिन दुकान पर बैठने ज़रूर भेजा जाता, ताकि शुरू से बिजनेस के गुण सीख ले।
छोटे भाई मुराद अली से पहलवानी छुड़वाकर दुकानें लगवाई। जनरल स्टोर न चला, तो कपड़े की दुकान, वह भी नहीं चली, तो तोपखाना रोड पर आलीशान रेस्तराँ। मकबूल उन दुकानों पर बैठा. मगर उसका सारा ध्यान ड्रॉइंग और पेंटिंग में। मुराद चाचा के होटल में घूमती हुई चाय की प्यालियों की गिनती और पहाड़े उसे ज़बानी याद रहते। गल्ले का हिसाब-किताब सही। शाम को हिसाब में दस रुपये लिखे, तो किताब में बीस स्केच किए।
जनरल स्टोर के सामने से अकसर घूँघट ताने गुज़रने वाली एक मेहतरानी का स्केच, गेहूँ की बोरी उठाए मज़दूर की पेंचवाली पगड़ी का स्केच, पठान की दाढ़ी और माथे पर सिज़दे के निशान, बुरका पहने औरत और बकरी का बच्चा। अकसर मेहतरानी कपड़े धोने के साबुन की टिकिया लेने आया करती। चाचा को देखकर घूँघट के पट खुल जाते और अकसर मकबूल की नाक पकड़कर खिलखिला उठती। मकबूल ने उसके कई स्केच बनाए।
एक दिन दुकान के सामने से फ़िल्मी इशितहार का ताँगा गुजरा (साइलेंट फ़िल्मों के जमाने में शहर में चल रही फ़िल्म का इशितहार ताँगे में ब्रास बैंड के साथ शहर के गली-कूचों से गुज़्तरता। फ़िल्मी इश्तिरार रंगीन पतंग के कागज़ पर हीरो-हीरोइन की तसवीरों के साथ छपे, बाँटे जाते।) कोल्हापुर के शांताराम की फ़िल्म ‘सिहगढ़’ का पोस्टर, रंगीन पतंग के कागज़ पर छपा, मराठा योद्धा, हाथ में रिंची तलवार और ढाल। मकबूल का जी चाहा कि उसकी ऑयल पेंटिंग बनाई जाए। मगर इस पोस्टर ने मकबूल को इस कदर भड़काया कि वह गया सीधा अलीहुसैन रंग वाले की दुकान पर और अपनी स्कूल की दो किताबें, शायद भूगोल और इतिहास, बेंचकर ऑयल कलर की ट्यूबें खरीद डालीं और पहली ऑयल पेंटिग चाचा की दुकान पर बैठकर बनाई। चाचा ने बड़े भाई तक शिकायत पहुँचाई। अब्बा ने पेंटिंग देखी और बेटे को गले लगा लिया।
एक और घटना, जब मकबूल इंदौर सर्राफ़ा बाज़ार के करीब ताँबे-पीतल की दुकानों की गली में लैंडस्केप बना रहा था, वहाँ बेंद्रे साहब भी ऑनस्पॉट पेंटिंग करते मिले। मकबूल को बेंद्रे साहब की टेकनीक बहुत पसंद आई। ‘टिंटेड पेपर’ पर ‘गोआश वॉटर कलर’। इस इत्तफ़ाकी मुलाकात के बाद् मकबूल अकसर बेंद्रे के साथ ‘लैंडस्केप’ पेंट करने जाया करता। सन 1933 में बेंद्रे ने कैनवस पर एक बड़ी पेंटिग घर में पेंट करना शुरू की।
‘वैगबांड’ था इस पेटिंग का नाम। अपने छोटे भाई को एक नौजवान पठान के कपड़े पहनाकर मॉडल बनाया। सिर पर हरा रूमाल बाँधा, कंधे पर कंबल, हाथ में डंडा। ‘सूरा’ और ‘डेगा’ यानी फ्रेंच इंप्रेशन की झलक। रॉयल अकाद्मी का रूखा रियलिज्म, उस पर एक्सप्रेशानिस्ट ब्रश स्ट्रोक का ढाँचा। इस पेंटंग पर बेंद्रे को बंबई आर्ट सोसाइटी ने चाँदी का मेडल दिया।
हिंदुस्तानी मोंडर्न आर्ट का यह शायद् पहला क्रांतिकारी कद्म था, हालाँंक इस कदम में ‘जोशो-अज़्म’ की सुखी कम और जवानी तथा जवानी का गुलाबीपन ज़्यादा था। राजा रविवर्मा के पश्चिमी सैकेंड हैंड रियलिज़्म के बाद एक हल्की-सी हलचल गगनेंद्रनाथ टैगोर के क्यूबिस्टिक तजुर्बे से शुरू हुई। मकबूल ने बेंद्रे को एक दिन अपने अब्बा से मिलाया। बेंद्रे ने मकबूल के काम पर बात की। दूसरे दिन अब्वा ने बंबई से ‘विनसर न्यूटन’ ऑयल ट्यूब और कैनवस मँगवाने का ऑर्डर भेज दिया।
उस ज़माने के इंदौर जैसे कपड़ा मिल माहौल में, काज़ी और मौलवियों के पड़ोस में एक बाप कैसे अपने बेटे को आर्ट की लाइन इख्तियार करने के लिए राज़ी हो गया, जबकि यह आर्ट का शगल राजाओं-महाराजाओं और अमीरों की अय्याश दीवारों का सिर्फ़ लटकन बना रहा। महलों से उतरकर कारखानों की दीवारों तक पहुँचने के लिए कला को आधी सदी की ज़रूरत थी। मकबूल के अब्बा की रोशनखयाली न जाने कैसे पचास साल की दूरी नज़रअंदाज़ कर गई।
शब्दार्थ :
पृष्ठ 23-चल बसना-मर जाना (to die)। बोर्डिंग स्कूल-आवासीय विद्यालय (hostel)। गुमसुम-खामोश रहने वाला (one who speaks very less)।
पृष्ठ 24-हवाले करना-सौप देना (to entrust something)। मज़हबी तालीम-धार्मिक शिक्षा (religious education)। सबक-पाठ, शिक्षा (lesson)। पाकीज़गी-पवित्रता, शुद्धता (holiness)। हिज़़् हाइनेस-सम्राट, जहाँपनाह (protector of world)। मेडल-पदक (medal)।
पृष्ठ 25-जमात-श्रेणी, दर्ज़ा (class)। अनुयायी-अनुसरण करने वाला (one who follows)। बावर्ची-खाना बनाने वाला (cook)। सालन-दाल, सब्जी आदि (dal, vegetable, etc.)
पृष्ठ 26 -हीले-बहाने, टालमटोल (pretension)। अत्तर-इत्र (scent)। पहलवानी जिस्म-पहलवानों जैसा शरीर (body like stout person)। उस्ताद-गुरु, निपुण व्यक्ति (teacher, master)। जिस्म-शरीर (body)। वक्त का पाबंद-समय पर आने-जाने वाला, समयनिष्ठ (punctual)। इज़ाज़त-अनुमति (permission)। हाई जंप-ऊँची कूद (high jump)।
पृष्ठ 27-हूबहू-ज्यों-की-त्यों (as it is)। पोर्ट्टेट-हाथ से बनी तसवीर, रेखाचित्र (portrait)।
पृष्ठ 28-इलम-ज्ञान (knowledge)। बाकायदा-नियम के अनुसार (according to rule)। कमाल-निपुणता (perfection)। हुनर-गुण (quality)।
पृष्ठ 29-कैद तामशक्कत-सश्रम कारावास (prison with hard work)।
पृष्ठ 30-मेहतरानी-सफ़ाई करने वाली (female sweeper)। सिज़दा-माथा टेकना (to salute someone)। इश्तिहार-विज्ञापन (advertisement)। साइलेंट फ़िल्में-मूक फ़िल्में, जिनमें संवाद नहीं सुनाई देते थे (silent movies)।
पृष्ठ 32-कदर-तरह (like this)। सर्राफ़ा बाज़ार-आभूषण बिकने की जगह (place where jewellery are sold)। पृष्ठ 33-इतफ़ाकी-संयोग से, अचानक (incidental)। रियलिज्म-यथार्थवाद (realism)।
पृष्ठ 34-सुर्खी-चमक, लालिमा (redness)। तजुर्बा-अनुभव (experience)। हर दिल-सभी के (of all)। अज़ीज़-प्रिय (dear)।
पृष्ठ 35-काज़ी-न्याय करने वाला (judge)। मौलवी-मुसलमानों के धर्मगुरु (a learned Mohammedan)। इखित्तयार करना-अपनाना (to possess)। शगल-शौक (fondness)। अय्याश-विलासिता-पसंद (a voluptuary person)। रोशन खयाली-विचारों की स्वतंत्रता (freedom of thoughts)। नज़र अंदाज़-अनदेखा करना (to neglect)। मशवरा-सलाह (suggestion)। रिवायती-पारंपरिक (traditional)। बंदिश-बंधन (act of binding)।