Students can find the 11th Class Hindi Book Antral Questions and Answers Chapter 2 हुसैन की कहानी अपनी ज़बानी to practice the questions mentioned in the exercise section of the book.
NCERT Solutions for Class 11 Hindi Antral Chapter 2 हुसैन की कहानी अपनी ज़बानी
Class 11 Hindi Chapter 2 Question Answer Antral हुसैन की कहानी अपनी ज़बानी
प्रश्न 1.
लेखक ने अपने पाँच मित्रों के जो शब्द-चित्र प्रस्तुत किए हैं, उनसे उनके अलग-अलग व्यक्तित्व की झलक मिलती है। फिर भी वे घनिष्ठ मित्र हैं। कैसे?
उत्तर :
लेखक ने अपने पाँच मित्रों के विषय में बताया-
मोहम्मद इब्राहीम गोहर अली छोटे कद का था तथा उसकी ठहरी हुई नज़रें थीं। वह इतरों का शौकीन था। अरशद का चेहरा हँसमुख था। वह गाने तथा खाने का शौकीन था। उसका जिस्म पहलवान जैसा था। हामिद कंबर हुसैन खुशमिज़ाज, गप्पी तथा कुश्ती का शौकीन था। अब्बासजी अहमद का जिस्म गठा हुआ तथा रंग खुला था। उसकी आँखें जापानी जैसी थीं। वह स्वभाव से बिज़नेसमैन था। अब्बास अली फ़िदा बहुत नरम लहज़े का था। वह समय का पाबंद था। उसकी प्रकृति खामोश थी। वह हर वक्त किताबें पढ़ता रहता था। ये सभी अलग-अलग व्यक्तित्व के परिचायक थे, फिर भी घनिष्ठ मित्र थे। इसका कारण यह था कि ये दिल से जुड़े थे। इनमें अहं भाव नहीं था। ये एक-दूसरे के मन में समाए हुए थे।
प्रश्न 2.
आप इस बात को कैसे कह सकते हैं कि लेखक का अपने दादा से विशेष लगाव रहा?
उत्तर :
लेखक का अपने दादा से विशेष लगाव था। दादा से विशेष लगाव का पता इस बात से चलता है कि दादा के देहावसान के बाद वह उन्हीं के कमरे में बंद रहता था। वह दादा के बिस्तर पर सोता था तथा उन्हीं की भूरी अचकन ओढ़ता था। उनकी मृत्यु से वह इतना दुखी हुआ था कि घर में किसी से बातचीत भी नहीं करता था। इस प्रकार हम कह सकते हैं कि लेखक का अपने दादा से विशेष लगाव था।
प्रश्न 3.
‘लेखक जन्मजात कलाकार है।’-इस आत्मकथा में सबसे पहले यह कहाँ उद्घाटित होता है?
उत्तर :
लेखक जन्मजात कलाकार है। मदरसे में जब ड्राइंग मास्टर ने ब्लैकबोर्ड पर सफ़ेद चॉक से एक बहुत बड़ी चिड़िया बनाकर लड़कों से स्लेट पर बनाने को कहा, तो मकबूल ने स्लेट पर हूबहू वही चिड़िया बना दी। उसे दस में से दस नंबर मिले। इससे पता चलता है कि वह जन्मजात कलाकार है।
प्रश्न 4.
दुकान पर बैठे-बैठे भी मकबूल के भीतर का कलाकार उसके किन कार्यकलापों से अभिव्यक्त होता है?
उत्तर :
मकबूल को बिजनेस के गुण सिखाने के लिए दुकान पर बैठाया गया। वहाँ भी उसका सारा ध्यान ड्रॉइंग तथा पेंटिंग पर था। वह अपनी दुकान के सामने से गुज़रने वालों के स्केच बनाता था। उसने घूँघट ताने मेहतरानी का, गेहूँ की बोरी उठाए मज़दूर की पेंचवाली पगड़ी का, पठान की दाढ़ी और माथे पर सिज़दे के निशान, बुरका पहने औरत और बकरी के बच्चे के स्केच बनाए। वह शाम तक बीस स्केच बना लेता था। इनसे पता चलता है कि मकबूल के भीतर का कलाकार दुकान पर भी अपनी अभिव्यक्ति करता था।
प्रश्न 5.
प्रचार-प्रसार के पुराने तरीकों और वर्तमान तरीकों में क्या फ़र्क आया है? पाठ के आधार पर बताएँ।
उत्तर :
प्रचार-प्रसार के लिए पहले फ़िल्म का इश्तिहार ताँगे में ब्रास बैंड के साथ शहर के गली-कूचों से गुज़रता था। फ़िल्मी इश्तिहार पतंग के रंगीन कागज़ पर हीरो-हीरोइन की तसवीरों के साथ छापे और बाँटे जाते थे। आज प्रचार-प्रसार के नए तरीके आए हैं। आज टी॰वी॰, रेडियो, वीडियो फ़िल्में, अखबार, होर्डिग्स आदि के जरिए प्रचार होता है। विज्ञापन के लिए अलग एजेंसियाँ तक बन गई हैं।
प्रश्न 6.
कला के प्रति लोगों का नज़रिया पहले कैसा था? उसमें अब क्या बदलाव आया है?
उत्तर :
आर्ट को पहले के लोग अच्छा नहीं समझते थे। उनका दृष्टिकोण संकुचित था। वे अपने बच्चों को अन्य काम-धंधों में लगाना चाहते थे। इसका कारण यह था कि पहले कला सिर्फ़ अमीरों तथा राजाओं-महाराजाओं का शौक था। आम आदमी का इससे सरोकार नहीं था। अब इस सोच में बदलाव आ गया है। आज आर्ट को कैरियर के रूप में भी अपनाया जाने लगा है। आज कला आम जनता तक पहुँच चुकी है। इसके लिए विभिन्न संस्थाएँ बन चुकी हैं, जो कलाकारों को प्रत्साहन देती हैं। सरकार भी कलाकारों की मद् करती है।
प्रश्न 7.
इस पाठ में मकबूल के पिता के व्यक्तित्व की कौन-कौन सी बाते उभरकर आई हैं?
उत्तर :
इस लेख में मकबूल के पिता के व्यक्तित्व की निम्नलिखित विशेषताएँ उभरकर सामने आती हैं :
(क) आदर्श पिता – मकबूल के पिता संतान के प्रति अपनी जि़्मेदारी समझते थे। जब उन्होंने देखा कि मकबूल दादा के देहांत से दुखी है, तो उन्होंने उसे तुरंत बड़ौदा छोड़ आने को कहा, ताकि वह अलग परिवेश में जाकर दादा जी के देहांत के दुख से उबरने के साथ-साथ अच्छी शिक्षा ग्रहण कर सके। उन्होंने मकबूल को बिज़नेस के गुण सिखाने के लिए दुकान पर भी बैठाया।
(ख) भविष्यद्रष्टा – मकबूल के पिता भविष्यद्रष्टा थे। उनके ज़माने में कला को कैरियर के रूप में नहीं अपनाया जाता था, क्योंकि कला राजाओं तथा सामंतों की दया पर आश्रित थी। फिर भी उन्होंने पचास साल आगे का भविष्य देखा और मकबूल को पेंटिंग के क्षेत्र में जाने दिया।
(ग) उदार हूदय – मकबूल के पिता उदार हृदय थे। वे संतान की छोटी-छोटी गलतियों को माफ़ कर देते थे। एक बार मकबूल ने ऑयल पेंटिंग बनाने के लिए अपनी किताबें भी बेच दीं तथा पेंटिंग बनाई। अब्बा ने पेंटिंग देखकर उसे गले से लगा लिया। इसी तरह बेंद्रे से मिलने के बाद उन्होंने मकबूल के लिए बंबई से ‘विनसर न्यूटन’ ऑयल ट्यूब और कैनवस मँगवाने का ऑर्डर दिया।
Class 11 Hindi NCERT Book Solutions Antral Chapter 2 हुसैन की कहानी अपनी ज़बानी
विषयवस्तु पर आधारित प्रश्नोत्तर –
प्रश्न 1.
बड़ौदा शहर तथा वहाँ के मदरसे के विषय में लेखक ने क्या बताया है?
उत्तर :
लेखक बताता है कि बड़ौदा. महाराजा सियाजीराव गायकवाड़ का साफ़-सुथरा शहर है। शहर के प्रवेश द्वार पर ‘ हिज़ हाइनेस’ की पाँच धातुओं से बनी शानदार मूर्ति दिखाई देती है। यहाँ का प्रसिद्ध मदरसा गैडी गेट पर सिंह बाई माता रोड पर था। वह गुजरात के मशहूर व्यक्ति जी०एम० हकीम अब्बास तैयबजी की देखरेख में चल रहा था। तैयबजी गांधीवादी थे, अतः वहाँ के छात्रों के सिर मुँड़े हुए थे तथा सिर पर गांधी टोपी पहनना ज़रूरी था। इस मदरसे में मौलवी अकबर उर्दू साहित्य के विशेषज्ञ थे। गुजराती भाषा पढ़ाने का कार्य केशवलाल करते थे। मेजर अब्दुल्ला पठान स्काउट मास्टर थे। गुलज़मा खान बैंड मास्टर थे।
प्रश्न 2.
गांधी जयंती पर मकबूल ने क्या किया? मौलवी अकबर ने उन्हें कौन-सा भाषण याद करवाया?
उत्तर :
गांधी जयंती पर स्कूल में क्लास शुरू होने से पहले मकबूल ने गांधी जी का पोट्रेट ब्लैकबोर्ड पर बना दिया। अब्बास तैयबजी यह देखकर खुश हो गए। मदरसे के जलसे पर मौलवी अकबर ने उसे ‘इलम’ (ज्ञान) पर दस मिनट का भाषण याद कराया। इसमें एक शेर भी था –
‘कस्बे कमाल कुन कि अज़ीज़त जहाँ शवी।
कस बेकमाल नियारज़द अज़ीज़े मन।’
अर्थात जिसने हुनर में कमाल हासिल किया, वह सारी दुनिया का चहेता बना। जिसके पास कोई हुनर का कमाल नहीं, वह कभी दिलों को जीत नहीं सकता।
प्रश्न 3.
बेंद्रे साहब कौन थे? उन्होंने पेंटिंग के क्षेत्र में क्या किया?
उत्तर :
बेंद्रे साहब इंदौर सर्राफ़ा बाज़ार में ऑनस्पॉट पेंटिंग करते थे। 1933 ई० में उन्होंने कैनवस पर ‘वैगबांड’ पेंटिंग बनानी शुरू की। उन्होंने अपने छोटे भाई को एक नौजवान पठान के कपड़े पहनाकर मॉडल बनाया। उन्होंने ‘सूरा’ और ‘डेगा’ यानी फ्रेंच इंर्रेशन की झलक अपनी पेंटिंग में दिखाई तथा रॉयल अकादमी का रूखा रियलिज्म भी। इस पेंटिंग पर उन्हें बंबई आर्ट सोसाइटी ने चाँदी का मेडेल दिया। वह हिंदुस्तानी मॉडर्न आर्ट का पहला क्रांतिकारी कदम था।
प्रश्न 4.
मकबूल को दुकान पर क्यों भेजा जाता था और वह वहाँ क्या करता था?
उत्तर :
मकबूल को दुकान पर इसलिए भेजा जाता था, ताकि वह बिजनेस के गुण सीख ले। मकबूल जनरल स्टोर, कपड़े की दुकान तथा रेस्तराँ आदि में बैठा, परंतु उसका ध्यान ड्रॉइंग और पेंटिंग में ही रहा। उसे चीज़ों की कीमतें याद न थीं और न ही उसे कपड़ों की पहनाई का पता था। उसे सिर्फ़ होटल में घूमती हुई चाय की प्यालियों की गिनती और पहाड़े ज़बानी याद रहते थे। वह गल्ले का हिसाब-किताब सही रखता था। शाम को हिसाब में दस रुपये लिखता, तो किताब में बीस स्केच बनाता।
प्रश्न 5.
फ़िल्मी इश्तिहार को देखकर मकबूल ने क्या किया?
उत्तर :
एक दिन दुकान के सामने से फ़िल्मी इश्तिहार का ताँगा गुज़रा। उस पर ‘सिंहगढ़’ फ़िल्म का दृश्य था। उसमें मराठा योद्धा हाथ में खिंची तलवार और ढाल लिए हुए छपा था। मकबूल का जी चाहा कि उसकी ऑयल पेंटिंग बनाई जाए। उसने आज तक ऑयल कलर इस्तेमाल नहीं किया था। पोस्टर ने मकबूल की चाहत इस कदर बढ़ाई कि वह अली हुसैन रंग वाले की दुकान पर गया और स्कूल की अपनी दो किताबें बेचकर ऑयल कलर की ट्यूबें खरीद डालीं। उसने पहली पेंटिंग चाचा की दुकान पर बैठकर बनाई।
प्रश्न 6.
लेखक के अनुसार, अब क्या सोचकर ताज्जुब होता है?
उत्तर :
लेखक मकबूल फ़िदा हुसैन बताता है कि उसके बचपन के जमाने में इंदौर का माहौल परंपरागत था। उस समय पेंटिंग का शौक सिर्फ़ राजाओं-महाराजाओं और अमीरों को था। उसका परिवार गाज़ी और मौलवियों के पड़ोस में रहता था, जो आर्ट के खिलाफ़ थे। उस समय उसके पिता ने मकबूल को पेंटिंग की लाइन लेने की मंजूरी दी, यह वास्तव में हैरानी की बात थी। वे बड़े दूरदर्शी थे।
प्रश्न 7.
मकबूल कक्षा में हों या दुकान पर उनका ध्यान ड्रॉइंग और पेंटिंग में रहता था-सप्रमाण स्पष्ट कीजिए।
उत्तर :
मकबूल की ड्रॉइंग और पेंटिंग में गहरी रुचि थी। वे कक्षा में होते या होटल अथवा रेस्तराँ में, उनका ध्यान ड्रॉइंग और पेंटिंग में ही लगा रहता था। इसकी पुष्टि इन प्रमाणों से हो जाती है :
(i) मकबूल के ड्रॉइंग मास्टर ने ब्लैकबोर्ड पर सफ़ेद चॉक से एक बहुत बड़ी चिड़िया बनाई और लड़कों से अपनी-अपनी स्लेट पर वैसा ही बनाने को कहा। मकबूल ने अपनी स्लेट पर उसी जैसी हूबहू चिड़िया बना दी और पूरे अंक प्राप्त किए।
(ii) मकबूल को छुट्टी के दिन दुकान पर बैठने के लिए ज़रूर भेजा जाता था, ताकि वह शुरू से ही बिजनेस के कुछ गुण सीख सके। मकबूल को अपने चाच के होटल में घूमती हुई चाय की प्यालियों की गिनती याद रहती। वह शाम तक हिसाब की कॉपी में दस रुपये लिखता, तो बीस स्केच भी किए रहता।
(iii) मकबूल ने जब ताँगे पर लगा फ़िल्म का विज्ञापन देखा, तो उस पोस्टर के चित्र उन्हें इतने अच्छे लगे कि उन्होंने अपनी कुछ पुस्तकें बेंचकर ऑयल कलर की ट्यूब खरीदी और ऑयल पेंटिंग बनाई।
विषयवस्तु पर आधारित निबंधात्मक प्रश्नोत्तर –
प्रश्न 1.
मकबूल को बोर्डिंग स्कूल में दाखिल कराने का फैसला क्यों किया गया? वहाँ का वातावरण कैसा था?
उत्तर :
मकबूल अपने दादा से घनिष्ठ लगाव रखता था। उनके मरने के बाद् वह अलग-सा पड़ गया। वह अपने मन से उनके प्रति लगाव कम न कर सका। वह दिनभर अपने दादा के कमरे में बंद रहता। उन्हीं के बिस्तर पर अपनी भूरी अचकन ओढ़े यूँ सोया रहता था, मानो अपने दादा जी की बगल में ही सोया हो। वह अपने दादा जी के बिना गुम-सुम-सा रहने लगा। वह घर में किसी से बातचीत भी नहीं करता था। मकबूल की यह दशा देख उसके पिता (अब्बा) ने उसे बड़ौदा स्थित बोर्डिंग स्कूल में छोड़ने का फैसला किया। उनके पिता का मानना था कि बोर्डिंग स्कूल में अन्य लड़कों के साथ इसका मन लग जाएगा तथा वह पढ़ाई के साथ मज़हबी तालीम, रोज़ा, नमाज़ तथा अच्छे वातावरण के चालीस सबक सीख जाएगा।
बड़ौदा में सुलेमानी जमात का यह बोर्डिंग स्कूल तालाब के किनारे था। इसका छात्रावास सिंह बाई माता रोड, गैडी गेट पर स्थित था। गुजरात के मशहूर ‘अरके तिहाल’ की ख्याति वाले जी.एम.हकीम अब्बास तैयबजी की देख-रेख में, जो नेशनल कांग्रेस और गांधी जी के अनुयायी थे, के कारण छात्रों को मुँड़े सिरों पर गांधी टोपी और बदन पर खादी का कुरता पायजामा पहनना पड़ता था।
प्रश्न 2.
बोर्डिंग स्कूल में मकबूल की मित्रता किन-किनके साथ हुई? वे ज्यादा समय साथ क्यों नहीं रह सके? इन दोस्तों का संक्षिप्त परिचय भी दीजिए।
उत्तर :
मकबूल को सुलेमानी जमात के बोर्डिंग स्कूल में भरती किया गया। यहाँ उसकी मित्रता पाँच अन्य लड़कों से हुई। इससे वे एक-दूसरे के करीब आ गए। दो साल की यह नज़दीकी पूरी उम्र कभी दिल की दूरी में नहीं बदल पाई। इसके बाद वे अधिक दिनों तक साथ-साथ न रह पाए, क्योंकि उनमें से एक डभोई का इत्र का व्यापारी बना तो दूसरा सियाजी रेडियो की आवाज़। इनमें से एक कराची का नागरिक बना तो दूसरा मोती की तलाश में कुवैत पहुँचा। उन्हीं में एक मुंबई पहुँचकर मस्जिद का मेंबर बना।
इन्हीं दोस्तों में से एक मकबूल कलाकार बनकर दुनिया की लंबाई-चौड़ाई में चक्कर मारने लगा। इन दोस्तों में मोहम्मद इब्राहीम गोहर अली छोटे कद और ठहरी आँखों वाला था; इत्र का व्यापारी था। डॉक्टर मनब्वरी का लड़का अरशद पहलवानों की कठ-काठी का व्यक्ति था जो खाने एवं गाने का शौकीन था। हामिद कंबर हुसैन कुश्ती और दंड-बैठक के शौकीन होने के अलावा खुश-मिज़ाज, गप्पी और बात मिलाने में उस्ताद था। अब्बास जी अहमद गठे जिस्म वाला स्वभाव से बिजनेसमैन था। पाँचवाँ मित्र अब्दास अली फ़िदा नर्म लिहजे वाला, समय का पाबंद और पढ़ाकू व्यक्ति था।
प्रश्न 3.
मकबूल का स्कूली-जीवन भी अपने-आप में विशिष्ट था। उनके स्कूली-जीवन की घटनाओं के आलोक में स्पष्ट कीजिए।
उत्तर :
मकबूल के भीतर कलाकार के जन्मजात गुण थे। इसके अलावा उनकी कंठस्थ करने की क्षमता भी बहुत अच्छी थी। इन गुणों के कारण उनका स्कूली-जीवन विशिष्ट बन गया था। मकबूल ने स्कूल स्तर से ही अपनी प्रतिभा की छाप छोड़नी शुरू कर दी थी। उन्होंने खेल-कूद में हिस्सा लिया, हाई जंप में पहला इनाम, दौड़ में फिसड्डी। जब ड्रॉइंग मास्टर मोहम्मद अतहर ने ब्लैकबोर्ड पर सफ़ेद चॉक से एक बहुत बड़ी चिड़िया बनाई और लड़कों से कहा-” अपनी-अपनी स्लेट पर उसकी नकल करो”, तो मकबूल की स्लेट पर हूबहू वही चिड़िया ब्लैकबोई से उड़कर आ बैठी। दस में से दस नंबर!
दो अक्तूबर, स्कूल गांधी जी की सालगिरह मना रहा था। क्लास शुरू होने से पहले मकबूल गांधी जी का पोर्ट्रेट ब्लैकबोर्ड पर बना चुका था। अब्वास तैयबजी देखकर बहुत खुश हुए। मदरसे के जलसे पर मौलवी अकबर ने मकबूल को ‘इलम’ (ज्ञान) पर दस मिनट का भाषण याद् कराया, बाकायदा अभिनय के साथ, उसमें एक फ़ारसी का शेर था –
‘कस्वे कमाल कुन कि अज़ीज़त जहाँ शवी।
कस बेकमाल नियारज़द् अज़ीज़े मन।’
जिसने हुनर में कमाल हासिल किया, वह सारी दुनिया का चहेता, जिसके पास कोई हुनर का कमाल नहीं, वह कभी दिलों को जीत नहीं सकता। सचमुच मकबूल के इस हुनर का कमाल सारी दुनिया में फैलता गया।
प्रश्न 4.
‘किसी के थोपे हुए विषय की अपेक्षा व्यक्ति अपनी रुचि का विषय आसानी से सीख जाता है।’ ‘हुसैन की कहानी अपनी ज़ानी पाठ के आधार पर स्पष्ट कीजिए।
उत्तर :
मकबूल के चाचा मुरादअली को उनके बड़े भाई फिदा ने एक जनरल स्टोर की दुकान खुलवा दी। फिदा साहब तो करीमभाई की ‘मालवा टैक्सटाइल’ में टाइमकीपर थे, पर बिजनेस में बड़ी दिलचस्पी रखते थे। इस दुकान को खुलवाने का उद्देश्य था- वहाँ मकबूल को छुट्टी के दिन ज़रूर भेजना ताकि वह बिजनेस के गुण सीख सके।
मुरादअली से पहलवानी छुड़वाकर यह दुकान लगवाई गई थी, पर जब जनरल स्टोर न चला तो कपड़े की दुकान खुलवाई गई। इसके भी न चलने पर तोपखाना रोड पर आलीशान रेस्त्राँ खुलवाकर मकबूल को वहाँ भेजा जाने लगा। परंतु मकबूल का सारा ध्यान वस्तुओं की कीमत में लगने के बजाय ड्राइंग और पेंटिंग में लगा रहता था। उसे होटल की चाय की प्यालियाँ और उनका हिसाब-किताब जबानी याद रहता था। इस कारण शाम तक हिसाब में दस रुपये लिखे जाते थे तो किताब में बीस स्केच भी बने रहते थे। इन स्केचों में जनरल स्टोर के सामने से अकसर घूँघट ताने गुज़रने वाली एक मेहतरानी का स्केच, गेहूँ की बोरी उठाए मज़दूर की पेंचवाली पगड़ी का स्केच, पठान की दाढ़ी और माथे पर सिज़दे के निशान, बुरका पहने औरत और बकरी का बच्चा आदि मुख्य थे।
वहाँ अकसर मेहतरानी कपड़े धोने के साबुन की टिकिया लेने आया करती थी। चाचा को देखकर उसके घूँघट के पट खुल जाते और अकसर मकबूल की नाक पकड़कर खिलखिला उठती। मकबूल ने उसके कई स्केच बनाए। एक स्केच उसके हाथ लग गया, जिसे उसने फ़ौरन अपनी चोली में डाल लिया। तब मकबूल ने पेपरमिंट की गोली हाथ में थमाई और स्केच निकलवाया। इससे स्पष्ट है कि मकबूल की भाँति ही व्यक्ति अपनी रुचि का विषय आसानी से सीख जाता है।
प्रश्न 5.
मकबूल अपने स्कूल की दो किताबें बेचने पर क्यों विवश हो गए? इस पर उनके पिता की क्या प्रतिक्रिया हुई?
उत्तर. :
एक दिन मकबूल रेस्त्रराँ वाली अपनी दुकान पर बेठे थे कि सामने से फ़ल्मी इश्तिहार का ताँगा गुज़रा। उन दिनों साइलेंट फिल्मों के ज़माने में शहर में चल रही फिल्म का इश्तिहार ताँगे में ब्रास बैंड के साथ शहर के गली-कूचों से गुजरता था। तब फ़िल्मी इश्तिहार रंगीन पतंग के कागज़ पर हीरो-हीरोइन की तसवीरों के साथ छपे, बाँटे जाते थे। कोल्हापुर के शांताराम की फिल्म ‘सिंहगढ़’ का पोस्टर, रंगीन पतंग के कागज़ पर छपा, मराठा योद्धा, हाथ में खिची तलवार और ढाल। मकबूल का जी चाहा कि उसकी ऑयल पेंटिंग बनाई जाए।
आज तक ऑयल कलर इस्तेमाल ही नहीं किया था। वही रंगीन चॉंक या वॉंटर कलर। अब्बा तो बेटे को बिज़नेसमैन बनाने के सपने देख रहे थे, रंग-रोगन क्यों दिलाते! मगर इस पोस्टर ने मकबूल को इस कदर भड़काया कि वह गया सीधा अलीहुसैन रंगवाले की दुकान पर और स्कूल की अपनी दो किताबें, शायद भूगोल और इतिहास, बेचकर ऑयल कलर की ट्यूबें खरीद डालीं और पहली ऑयल पेंटिंग चाचा की दुकान पर बैठकर बनाई। चाचा बहुत नाराज़, बड़े भाई तक शिकायत पहुँचाई। अब्बा ने पेंटिंग देखी और बेटे को गले लगा लिया।
प्रश्न 6.
बेंद्रे साहब की मुलाकात मकबूल के जीवन के लिए मील का पत्थर सिद्ध हुई। ‘हुसैन की कहानी अपनी ज़बानी’ पाठ के आधार पर स्पष्ट कीजिए।
उत्तर :
एक बार जब मकबूल इंदौर सर्राफ़ा बाज़ार के करीब ताँबे-पीतल की दुकानों की गली में लैंडस्केप बना रहा था, वहाँ ब्रेंद्रे साहब भी ऑनस्पॉट पेंटिंग करते मिले। मकबूल को उनकी टेकनीक बहुत पसंद आई।
उनसे मुलाकात के बाद मकबूल अकसर उनके साथ ‘लैंडस्केप’ पेंट करने जाया करता।
1933 में बेंद्रे ने कैनवस पर एक बड़ी पेंटिंग घर में पेंट करना शुरू की, ‘वैगबांड’ था इस पेंटिंग का नाम। अपने छोटे भाई को एक नौजवान पठान के कपड़े पहनाकर मॉडल बनाया। सिर पर हरा रूमाल बाँधा, कंधे पर कंबल, हाथ में डंडा। ‘सूरा’ और ‘डेगा’ यानी फ्रेंच इंप्रेशन की झलक। रॉयल अकादमी का रूखा रियलिज़्म, उस पर एक्सप्रेशनिस्ट ब्रश स्ट्रोक का ढाँचा।
इस पेंटिंग पर बेंद्रे को बंबई आर्ट सोसाइटी ने चाँदी का मेडेल दिया। हिंदुस्तानी माडर्न आर्ट का यह शायद पहला क्रांतिकारी कदम था, हालाँकि इस कदम में ‘जोशो-अज़्म’ की सुर्खी कम और जवानी का गुलाबीपन ज़्यादा था। राजा रविवर्मा के पश्चिमी सैकेंड हैंड रियलिज़्म के बाद एक हलकी-सी हलचल गगनेंद्रनाथ टैगोर के क्यूबिस्टिक तजुर्बें से शुरू हुई। बात आगे बढ़ी नहीं। बेंद्रे का गुलाबीपन भी कुछ ही अर्स तक तरोताज़ा रहा। बड़ौदा पहुँचकर वे ‘फैकल्टी ऑफ़ फ़ाइन आर्ट’ के हर दिल अज़ीज़ डीन बन गए।
मकबूल की पेंटिंग की शुरुआत और इंदौर जैसी जगह, सिवाए बेंद्रे के कोई नहीं। वह उनके पास जाता रहा और एक दिन उन्हें अपने घर ले आया। अब्बा से मिलाया। बेंद्रे ने मकबूल के काम पर बात की। दूसरे दिन अब्बा ने बंबई से ‘विनसर न्यूटन’ ऑयल ट्यूब और कैनवस मँगवाने का आर्डर भेज दिया जो मकबूल के जीवन के लिए मील का पत्थर साबित हुआ।