Students can find the 11th Class Hindi Book Antra Questions and Answers Chapter 17 नींद उचट जाती है to practice the questions mentioned in the exercise section of the book.
NCERT Solutions for Class 11 Hindi Antra Chapter 17 बादल को घिरते देखा है
Class 11 Hindi Chapter 17 Question Answer Antra बादल को घिरते देखा है
प्रश्न 1.
इस कविता में बादलों के सौंदर्य-चित्रण के अतिरिक्त और किन दृश्यों का चित्रण किया गया है?
उत्तर :
कवि ने इस कविता में बादलों के सौंदर्य-चित्रण के साथ-साथ मानसरोवर झील में हंसों के आनंदपूर्वक क्रीड़ा करने, तीखे-मीठे स्वाद वाले कमलनाल खोजने, बसंत ऋतु में चकवा-चकवी पक्षी की प्रणय-कलह, कस्तूरी मृग का उन्मत्त होकर कस्तूरी खोजने तथा किन्नरों के विलासितापूर्ण जीवन का सजीव चित्रण किया है।
प्रश्न 2.
प्रणय-कलह से कवि का क्या तात्पर्य है?
उत्तर :
प्रणय-कलह से कवि का तात्पर्य है-प्रेम से संबंधित झगड़ा। इसमें प्रेमी और प्रेमिका दोनों अपने-अपने वियोग को लेकर एक-दूसरे को सुनाते हैं तथा एक-दूसरे को दोषी ठहराते हैं। इस क्रिया से वे अपनी प्रेमानुभूति को व्यक्त करते हैं। इससे उनके प्रेम संबंधों में प्रगाढ़ता आती है।
प्रश्न 3.
कस्तूरी मृग के अपने पर ही चिढ़ने के क्या कारण हैं?
उत्तर :
कस्तूरी मृग की नाभि के अंदर कस्तूरी होती है। कस्तूरी से जो खुशबू उठती है, उसे ढूँढ़ने के लिए वह इधर-इधर घूमता है। उसे यह ज्ञान नहीं होता कि यह खुशबू उसके अंदर से ही आ रही है। अत: वह उस खुशबू से उन्मत्त होकर जंगल में यहाँ-वहाँ घूमता फिरता है, किंतु कस्तूरी को खोज नहीं पाता। कस्तूरी न मिल पाने के कारण ही वह स्वयं पर चिढ़ने लगता है।
प्रश्न 4.
बादलों का वर्णन करते हुए कवि को कालिदास की याद क्यों आती है?
उत्तर :
कवि ने हिमालय पर्वत पर बादल को देखा। उसे अचानक ध्यान आया कि कालिदास ने ‘मेघदूत’ काव्य की रचना की थी. जिसमें मेघ का प्रभावशाली वर्णन है। वह मेघ जिसके माध्यम से विरह-व्यथित यक्ष ने अपनी प्रेमिका के पास संदेश भेजा था, उसे कहीं नहीं दिखाई दिया। उसका अनुमान था कि शायद वह कहीं बरस गया होगा। फिर उसने माना कि यह केवल कवि कालिदास की कल्पना थी।
प्रश्न 5.
कवि ने ‘महामेघ को झंझानिल से गरज-गरज भिड़ते देखा है’, क्यों कहा है?
उत्तर :
कवि ने हिमालय के पर्वतीय प्रदेश का भ्रमण एवं वहाँ के मनोहारी प्राकृतिक सौंदर्य की अनुभूति की है। कवि सर्दीं की ऋतु में कैलाश शिखर पर मेघखंडों के तुफ़ानों से टकराने का वर्णन करता है। यहाँ पर सघन मेघमालाएँ तेज़ हवाओं से टकराती हैं, जिसके कारण भयंकर गर्जना होती है। ऐसा लगता है, मानो दोनों द्वंद्व युद्ध कर रहे हों। इसीलिए कवि ने कहा है- महामेघ को झंझानिल से गरज-गरज भिड़ते देखा है।
प्रश्न 6.
‘बादल को घिरते देखा है’-पंक्ति को बार-बार दोहराए जाने से कविता में क्या सौंदर्य आया है? अपने शब्दों में लिखिए।
उत्तर :
कवि ने इस कविता में बादल के कोमल तथा कठोर रूप का वर्णन किया है। वह बार-बार ‘बादल को घिरते देखा है’ पंक्ति दोहराता है। हिमालय की ऊँचाइयों पर बादल का रूप निरंतर बदलता रहता है। उनके हटने या आने से ही दृश्यचित्रों में परिवर्तन आता है। वे ही प्रकृति में परिवर्तन के सूत्रधार हैं। इस पंक्ति के दोहराए जाने से कविता में अर्थगांभीर्य आया है।
प्रश्न 7.
निम्नलिखित पंक्तियों का भाव स्पष्ट कीजिए :
(क) निशा काल से चिर-अभिशापित
बेबस उस चकवा-चकई का
बंद हुआ क्रंदन, फिर उनमें
उस महान सरवर के तीरे
शैवालों की हरी दरी पर
प्रणय-कलह छिड़ते देखा है।
(ख) अलख नाभि से उठनेवाले
निज के ही उन्मादक परिमल
के पीछे धावित हो-होकर
तरल तरुण कस्तूरी मृग को
अपने पर चिढ़ते देखा है।
उत्तर :
(क) ‘सप्रसंग व्याख्या’ के अंतर्गत काव्यांश-2 देखिए।
(ख) ‘सप्रसंग व्याख्या’ के अंतर्गत काव्यांश-3 देखिए।
प्रश्न 8.
संदर्भ सहित व्याख्या कीजिए :
(क) छोटे-छोटे मोती जैसे ……….. कमलों पर गिरते देखा है।
(ख) समतल देशों से आ-आकर ………. हंसों को तिरते देखा है।
(ग) ऋतु वसंत का सुप्रभात था ……….. अगल-बगल स्वर्णिम शिखर थे।
(घ) ढूँढ़ा बहुत परंतु लगा क्या ……….. जाने दो, वह कवि-कल्पित था।
उत्तर :
(क) ‘सप्रसंग व्याख्या’ के अंतर्गत काव्यांश-1 देखिए।
(ख) ‘सप्रसंग व्याख्या’ के अंतर्गत काव्यांश-1 देखिए।
(ग) ‘सप्रसंग व्याख्या’ के अंतर्गत काव्यांश-2 देखिए।
(घ) ‘सप्रसंग व्याख्या’ के अंतर्गत काव्यांश-3 देखिए।
योग्यता-विस्तार –
प्रश्न 1.
अन्य कवियों की ऋतु संबंधी कविताओं का संग्रह कीजिए।
उत्तर :
अन्य कवियों की त्रतु संबंधी कविताएँ :
वर्षा ॠतुः
कूकै लगी कोइलैं कदंबन पै बैठि फेरि,
धोए-धोए पात हिलि-हिलि सरसै लगे।
बोलै लगे दादुर, मयूर लगे नाचे फेरि,
देखि के संयोगी जन हिय हरषै लगे।।
हरी भई भूमि, सीरी पवन चलन लागी,
लखि ‘हरिचंद’ फेर प्राण तरसै लगे।
फेरि झूमि-झूमि वर्षा की ऋतु आई फेरि,
बादर निगोरे झुकि-झुकि बरसै लगे।।
ग्रीष्म ऋतु :
– भारतेंदु हरिशचंद्य
जेठ के दारुण आतप से, तप के जगती तल जावै जला,
नभमंडल छाया मरुस्थल-सा, दल बाँध के अंधड़ आवै चला।
जलहीन जलाशय व्याकुल है, पशु-पक्षी प्रचंड है भानुकला,
किसी कानन कुंज के धाम में प्यार, करें विसिराम चलौ तो भला।।
-श्रीधर पाठक
बसंत ऋतु :
आए महंत बसंत!
मखमल के झूल पड़े हाथी-सा टीला,
बैठे किशुक छत्र लगा बाँध पाग पीला,
चँवर सदृश डोल रहे सरसों के सर अनंत।
आए महंत बसंत!
श्रद्धानत तरुओं की अंजलि से झरे पात.
कोंपल के मुँदे नयन थर-थर-थर पुलक गात,
अगरु-धूम लिए, झूम रहे सुमन दिग्ग्दिंत।
आए महतंत बसंत!
खड़-खड़ करताल बजा नाच रही विसुध हवा
डाल-डाल अलि-पिक के गायन का बँधा समॉँ,
तरु-तरु की ध्वजा उठी, जय-जय का है न अंत।
आए महंत बसंत!
-सर्वेश्वर दयाल सक्सेना
शरद् ऋतु :
काली घटा का घमंड घटा, नभमंडल तारक वृंद खिले,
उजियाली निशा, छविशाली दिशा, अति सोहै धरातल फूले-फले।
निखरे सुथरे वन पंथ खुले, तरु पल्लव चंद्रकला से धुले,
वन शारदी चंद्रिका-चादर ओढ़े, लसै समलकृत कैसे भले।
-श्रीधर पाठक
प्रश्न 2.
कालिदास के ‘मेघदूत’ का संक्षिप्त परिचय प्राप्त कीजिए।
उत्तर :
‘मेघदूत’ संस्कृत भाषा के सुप्रसिद्ध कवि एवं नाटककार कालिदास द्वारा रचित काव्य है। इसमें मेघ को दूत बनाकर संदेश भेजने का वर्णन है। इसकी संक्षिप्त कथा इस प्रकार है :
अलकापुरी में कुबेर के दरबार में एक यक्ष रहता था। वह राजदरबार में अपना उत्तरदायित्व कुशलता से निभाता था। उसका विवाह एक सुंदर यक्षिणी से हो गया। यक्ष अपनी नवविवाहिता पत्नी के प्यार में डूबा रहता था। अब उसे राजदरबार के काम-काज का तनिक भी ध्यान न रहता था। वह काम में प्रमाद करने लगा। इससे नाराज़ कुबेर ने उसे श्राप दे दिया कि वह एक साल तक अपनी नव-विवाहिता पत्नी से दूर रहेगा। शापित यक्ष रामगिरि पर्वत पर अकेले रहने लगा। इधर वर्षा ऋतु आ गई। आसमान में काले-काले मेघ घिर आए।
ऐसे सुहावने मौसम में यक्ष की विरह-व्यथा कई गुनी बढ़ गई। यक्ष ने अपनी पत्नी को संदेश भेजना चाहा, पर समस्या यह थी कि किसके द्वारा संदेश भेजे। उसने अपनी विरह-व्यथा सुनाते हुए मेघ के माध्यम से अपनी पत्नी के पास संदेश भेजा तथा बेतवा नदी पार करते हुए उज्जयिनी की ओर जाने के लिए कहा। इधर जब कुबेर को यक्ष की ऐसी विरह-व्यथा का पता चला, तो उन्होंने यक्ष को शाप-मुक्त कर दिया।
प्रश्न 3.
बादल से संबंधित अन्य कवियों की कविताएँ याद करके अपनी कक्षा में सुनाइए।
उत्तर :
बादल से संबंधित कविता :
बादल गरजो!
घेर घेर घोर गगन, धारा धर ओ!
ललित ललित, काले घुँघराले,
बाल कल्पना के-से पाले,
विद्युत छावि उर में, कवि नवजीवन वाले!
वज्र छिपा, नूतन कविता
फिर भर दो-
बादल गरजो!
विकल विकल, उन्मन थे उन्मन
विश्व के निदाघ के सकल जन,
आए अज्ञात दिशा से अनंत के घन!
तप्त धरा, जल से फिर
शीतल कर दो-
बादल गरजो!
– सूर्यकांत त्रिपाठी ‘निराला’
प्रश्न 4.
एन०सी०ई०आर०टी० ने कई साहित्यकारों व कवियों पर फ़िल्में तैयार की हैं। नागार्जुन पर भी फ़िल्म बनी है। उसे देखिए और चर्चा कीजिए।
उत्तर :
विद्यार्थी स्वयं करें।
Class 11 Hindi NCERT Book Solutions Antra Chapter 17 बादल को घिरते देखा है
कथ्य पर आधारित प्रश्नोत्तर –
प्रश्न 1.
‘बादल को घिरते देखा है’ कविता का कथ्य स्पष्ट कीजिए।
उत्तर :
इस कविता में कवि नागार्जुन ने विभिन्न ऋतुओं में हिमालय के मनोरम प्राकृतिक सौंदर्य को वण्य-विषय बनाया है। उन्होंने घिरते बादलों, वर्षा, ओस के कणों के स्वर्णिम कमलों पर गिरने तथा मैदानी क्षेत्रों की उमस या गर्मी से व्याकुल हंसों का यहाँ आकर जल-क्रीड़ा करने एवं कमलनाल खोजते हुए हंसों का सजीव चित्रण किया है। इसके अलावा, चकवा-चकवी के रात में न मिल पाने के बाद प्रातः तालाब की हरी घास पर प्रणय-क्रीड़ा करना, हिमालय की गोद में हिरणों का भटकना और खुद पर कुढ़ना, कैलाश पर्वत पर बादलों का तूफ़ान से टकराना तथा किन्नर नर-नारियों का भोग-विलास में निश्चित होकर डूबना आदि का सुंदर एवं सजीव वर्णन ही इसका कथ्य है।
प्रश्न 2.
‘रजत रचित ……. पूरित’ पंक्ति में कवि क्या कहना चाहता है?
उत्तर :
इस पंक्ति में कवि कहता है कि किन्नर प्रकृति प्रेमी होते हैं। ये कृत्रिमता से दूर रहकर जीवन व्यतीत करते हैं। इनके खान-पान में पादप पदार्थों का अधिक प्रयोग होता है। ये अपना शृंगार प्राकृतिक वस्तुओं से करते हैं। ये शराब एवं विलासिता के शौकीन होते हैं।
प्रश्न 3.
‘निशाकाल से चिर अभिशापित’ का अर्थ बताइए। यह किनके लिए कहा गया है?
उत्तर :
इसका अर्थ है-युगों से शाप से प्रभावित। यह चकवा-चकई पक्षियों के लिए कहा गया है। लोक किंवदंती है कि सृष्टि के आरंभ से ही चकवे को अपनी चकई से रात में अलग रहने का शाप मिला हुआ है, क्योंकि चकवा चाँद से अधिक प्रेम करता है और रात भर उसे देखता रहता है। रात में एक दूजे के मिलने से दूर रहने से ये प्रात: मिलते हैं।
प्रश्न 4.
कवि ने बसंत की सुबह के बारे में क्या बताया है?
उत्तर :
कवि ने बसंत ऋतु का रोचक वर्णन किया है। उसने बताया है कि हिमालय पर्वत पर सुबह-सुबह मंद गति में हवा बहती है। सुबह के सूर्य की कोमल किरणें पर्वत-शिखरों पर पड़ती हैं तथा वे सोने-सी चमकती हैं। ऐसे में निशाकाल से चिर अभिशापित पक्षी युगल चकवा-चकई तालाब के किनारे प्रणय-कलह में व्यस्त होते हैं।
प्रश्न 5.
‘बादल को घिरते देखा है’ कविता में कवि ने पावस और शरद काल में बादलों के जिन विशिष्ट रूपों का वर्णन किया है, उन्हें अपने शब्दों में लिखिए।
उत्तर :
इस कविता में कवि ने पावस तथा शरद काल में बादल के विशिष्ट रूपों का वर्णन किया है। पावस ऋतु में बादल हिमालय के शिखरों पर घिरते हैं तथा उनके छोटे-छोटे कण मानसरोवर झील के सुनहरी आभा वाले कमलों पर गिरते हैं। शरद काल में आकाश को छूने वाले कैलाश पर्वत पर मेघ आपस में भिड़ते हैं तथा भयंकर गरजना पैदा करते हैं। इन बादलों को भिड़ते हुए कवि ने देखा है।
प्रश्न 6.
‘बादल को घिरते देखा है’ कविता में चित्रित प्रकृति एवं जनजीवन का चित्रण अपने शब्दों में लिखिए।
उत्तर :
कवि ने इस कविता में हिमालय पर्वत पर वर्षा, बसंत तथा शरद ऋतु का वर्णन किया है। वह बताता है कि यहाँ सैकड़ों झरने तथा नदियाँ बहती हैं। यहाँ देवदार के वृक्षों के वन हैं, जिनसे खुशबू आती रहती है। यहाँ सफ़ेद् भोजपत्रों से कुटियाँ बनाई गई हैं। यहाँ फूलों से सजी किन्नर स्त्रियाँ हैं। वे नीलकमल की मालाएँ पहने हुए हैं। किन्नर-किन्नरियाँ रत्नजड़ित पात्रों में अंगूर की शराब डाले हुए हैं तथा हिरण की छाल पर पालथी मारकर उन्मादी रूप में दिखाई दे रहे हैं। उनकी कोमल एवं सुंदर अँगुलियाँ बाँसुरी के छिद्रों पर फिर रही हैं। बे आनंद में मग्न दिखाई दे रहे हैं।