Understanding the question and answering patterns through Geography Practical Book Class 11 Solutions Chapter 5 स्थलाकृतिक मानचित्र will prepare you exam-ready.
Class 11 Geography NCERT Solutions Chapter 5 in Hindi स्थलाकृतिक मानचित्र
पाठ्यपुस्तक के प्रश्न
प्रश्न 1.
निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर लगभग 30 शब्दों में दें-
(क) स्थलाकृतिक मानचित्र क्या होते हैं?
उत्तर:
स्थलाकृतिक मानचित्र, जिसे सामान्य उपयोग वाले मानचित्रों के नाम से भी जाना जाता है, को आपेक्षिक वृहद् मापनी पर बनाया जाता है। इन मानचित्रों में महत्त्वपूर्ण प्राकृतिक एवं सांस्कृतिक लक्षणों, जैसे—उच्चावच, वनस्पति, जलाशय, कृषिगत भूमि, बस्तियों एवं परिवहन तन्त्र आदि को प्रदर्शित किया जाता है।
(ख) भारत की स्थलाकृतिक मानचित्र बनाने वाली संस्था का नाम बताइए तथा इसके मानचित्रों में प्रयुक्त मापनियों के विषय में बताइए।
उत्तर:
भारत के स्थलाकृतिक मानचित्र भारतीय सर्वेक्षण विभाग द्वारा तैयार किये जाते हैं। भारत का स्थलाकृतिक मानचित्र 1: 10,00,000, 1 : 2,50,000, 1 : 1,25,000, 1: 50,000 तथा 1 : 25,000 की मापनी पर तैयार किया जाता है, जिसमें अक्षांशीय एवं देशान्तरीय, मान क्रमशः 4° × 4°, 1° × 1°, 30′ × 30, 15′ × 15′ तथा 5′ × 7’30’ होते हैं।
(ग) भारतीय सर्वेक्षण विभाग हमारे देश के मानचित्रण में किन मापनियों का उपयोग करता है?
उत्तर:
भारतीय सर्वेक्षण विभाग के द्वारा मानचित्र वृहद् एवं लघु दोनों मापनियों पर तैयार किए जाते हैं। स्थलाकृतिक पत्रक वृहद् मापनी पर तैयार किए जाते हैं।
(घ) समोच्च रेखाएँ क्या हैं?
उत्तर:
समोच्च रेखा माध्य समुद्र तल से समान ऊँचाई वाले बिन्दुओं को मिलाने वाली काल्पनिक रेखाएँ होती हैं।
(ङ) समोच्च रेखाओं के अन्तराल क्या दर्शाते हैं?
उत्तर:
समोच्च रेखा अन्तराल किसी स्थान की ढाल की प्रकृति को दर्शाता है। अन्तराल कम तीव्र ढाल को तथा अधिक अन्तराल धीमा ढाल को दर्शाता है।
(च) रूढ़ चिह्न क्या है?
उत्तर:
स्थलाकृतिक मानचित्रों में विभिन्न प्राकृतिक एवं सांस्कृतिक लक्षणों को अलग-अलग प्रतीकों के माध्यम से दर्शाया जाता है। ये प्रतीक चिह्न रूढ़ चिह्न कहलाते हैं।
प्रश्न 2.
संक्षिप्त टिप्पणियाँ लिखिए-
(क) समोच्च रेखाएँ
(ख) स्थलाकृतिक शीट में उपान्त सूचनाएँ
(ग) भारतीय सर्वेक्षण विभाग।
उत्तर:
(क) समोच्च रेखाएँ :
समोच्च रेखा माध्य समुद्र तल से समान ऊँचाई वाले बिन्दुओं को मिलाने वाली काल्पनिक रेखा होती है। वह मानचित्र, जो भू-आकृति को समोच्च रेखाओं द्वारा दर्शाता है, समोच्च रेखा मानचित्र कहलाता है। उच्चावच लक्षणों को समोच्च रेखा के द्वारा दर्शाना अत्यधिक उपयोगी एवं लोकप्रिय विधि है। मानचित्र पर समोच्च रेखाएँ एक क्षेत्र की स्थलाकृति को समझने की सबसे उपयोगी विधि है।
पहले स्थलाकृतिक मानचित्रों में समोच्च रेखाओं को खींचने के लिए धरातलीय सर्वेक्षण तथा तल-मापन विधि का उपयोग किया जाता था। लेकिन अब फोटोग्राफी के आविष्कार तथा वायव फोटोग्राफी से सर्वेक्षण तथा तल मापन एवं मानचित्रीकरण की पुरानी पद्धतियों का प्रयोग छोड़ दिया गया है। फलस्वरूप, स्थलाकृतिक मानचित्र बनाने के लिए इन फोटोग्राफ का उपयोग होता है।
(ख) उपान्त सूचनाएँ:
मानचित्र की सीमाओं पर लिखी गई सूचनाओं को उपान्त सूचनाएँ कहते हैं। इसमें स्थलाकृतिक शीट संख्या, इसकी स्थिति, डिग्री एवं मिनट में इसका विस्तार, मापनी एवं सम्मिलित जिले, आदि की सूचनाएँ होती हैं।
(ग) भारतीय सर्वेक्षण विभाग:
भारतीय सर्वेक्षण विभाग की स्थापना 1767 में ब्रिटिश शासकों द्वारा की गई। भारत के स्थलाकृतिक पत्रकों का निर्माण भारतीय सर्वेक्षण विभाग द्वारा किया जाता है। पूर्व में भारतीय सर्वेक्षण विभाग द्वारा दक्षिणी-पश्चिमी एवं दक्षिणी-पूर्वी एशिया का स्थलाकृतिक मानचित्रण किया गया था परन्तु 1947 में पाकिस्तान तथा इससे पूर्व श्रीलंका, म्यांमार में सर्वेक्षण विभागों की स्थापना हो जाने से यह केवल भारत, नेपाल, भूटान के मानचित्र बनाता है। वर्तमान समय में यह विभाग सेना के नियन्त्रण में मिनिस्ट्री ऑफ साइंटीफिक रिसर्च एण्ड कल्चरल अफेयर्स, गवर्नमेन्ट ऑफ इण्डिया के अधीन कार्य करता है। इसका प्रधान कार्यालय देहरादून में तथा क्षेत्रीय कार्यालय कलकत्ता, बंगलौर और माउण्ट आबू में स्थित हैं।
प्रश्न 3.
स्थलाकृतिक मानचित्र निर्वचन का क्या अर्थ है तथा इसकी विधि क्या है, इसकी विवेचना कीजिए।
उत्तर:
स्थलाकृतिक मानचित्र में विभिन्न लक्षणों को रूढ़ चिह्नों के माध्यम से दर्शाया जाता है। मानचित्र निर्वचन में हम उन कारकों का अध्ययन शामिल करते हैं, जो मानचित्र में दिखाए गए अनेक लक्षणों के बीच सम्बन्धों को समझने में सहायता करता है। उदाहरण के लिए, स्थलाकृतिक मानचित्रों पर प्राकृतिक वनस्पतियों के वितरण तथा कृषि के अन्तर्गत क्षेत्रों को भू-आकृतियों एवं अपवाह तन्त्र की पृष्ठभूमि में ठीक से समझ सकते हैं। इसी प्रकार बस्तियों के वितरण को परिवहन के साधनों एवं स्थलाकृतियों के द्वारा पहचाना जा सकता है।
निम्नलिखित चरण मानचित्रों की व्याख्या में सहायता प्रदान करेंगे-
- स्थलाकृतिक मानचित्र में स्थलाकृतिक शीट सूचक संख्या के अनुसार भारत में इसकी अवस्थिति ज्ञात की जा सकती है। इससे वृहत् एवं मध्यम स्तर वाले भू-आकृतिक विभागों की भी सामान्य विशेषताओं की जानकारी मिलती है। मानचित्र के मापनी तथा समोच्च अन्तरालों को देखिए, जो आपको एक क्षेत्र की सामान्य स्थलाकृति एवं उसके विस्तार को बताता है।
- ट्रेसिंग कागज पर निम्नलिखित लक्षणों को उतारिए :
- मुख्य स्थलाकृतियाँ : समोच्च रेखाओं एवं भौगोलिक लक्षणों द्वारा दिखाए गए।
- अपवाह एवं जलीय लक्षण : मुख्य नदी एवं उसकी महत्त्वपूर्ण सहायक नदियाँ।
- भूमि उपयोग; जैसे : वन, कृषिगत भूमि, बेकार भूमि, पशु विहार, पार्क, विद्यालय इत्यादि।
- बस्तियाँ एवं परिवहन प्रतिरूप।
- प्रत्येक लक्षण के वितरण प्रतिरूप का वर्णन सबसे महत्त्वपूर्ण पक्षों की ओर ध्यान आकर्षित करते हुए अलग-अलग कीजिए।
- एक समय में मानचित्रों के एक जोड़े को अध्यारोपित करके, यदि किन्हीं दो प्रारूपों के बीच कोई सम्बन्ध है, तो उसे लिखिए। उदाहरण के लिए, अगर एक समोच्च मानचित्र भूमि उपयोग से मिल जाता है, तो ढाल के डिग्री एवं उपयोग में आने वाली भूमि के बीच सम्बन्ध को बताएगा। एक ही क्षेत्र के हवाई चित्रों तथा उपग्रही प्रतिबिम्बों की तुलना उस क्षेत्र के स्थलाकृतिक मानचित्र के द्वारा की जा सकती है।
प्रश्न 4.
यदि आप स्थलाकृतिक शीट के सांस्कृतिक लक्षणों की व्याख्या कर रहे हैं, तो आप किस प्रकार की सूचनाएँ लेना पसन्द करेंगे तथा इन सूचनाओं को कैसे प्राप्त करेंगे? उपयुक्त उदाहरण की सहायता से विवेचना करें।
उत्तर:
सांस्कृतिक लक्षणों के अन्तर्गत मानव बस्तियाँ, परिवहन मार्ग, संचार, सिंचाई के साधन आदि शामिल किये जाते हैं। अगर हम स्थलाकृतिक मानचित्र के सांस्कृतिक लक्षणों की व्याख्या कर रहे हैं तो उपरोक्त लक्षणों को शामिल करेंगे एवं इनकी व्याख्या करेंगे। बस्तियाँ, भवन, रेलमार्ग एवं सड़क मार्ग रूढ़ चिह्नों, प्रतीकों एवं रंगों के द्वारा स्थलाकृतिक शीट पर दिखाए जाने वाले महत्त्वपूर्ण सांस्कृतिक लक्षण हैं। इन लक्षणों की अवस्थिति एवं उनका वितरण प्रारूप मानचित्र पर दर्शाए गए क्षेत्र को समझने में सहायता प्रदान करते हैं।
बस्तियों का वितरण:
इसके वितरण को मानचित्र पर इनकी स्थिति, अवस्थिति, प्रारूप, संरक्षण तथा घनत्व द्वारा देख सकते हैं। बस्ती मानचित्र एवं समोच्च मानचित्रों की परस्पर तुलना के द्वारा बस्तियों के विभिन्न प्रकारों की प्रकृति एवं कारण को समझा जा सकता है।
मानचित्र पर चार प्रकार की ग्रामीण बस्तियों को पहचाना जा सकता है-
(क) संहत
(ग) रैखिक
(ख) प्रकीर्ण
(घ) वृत्ताकार
इसी तरह नगर केन्द्रों की भी पहचान की जा सकती है-
(क) चतुष्पथ नगर
(ख) नोडीय बिन्दु
(ग) बाजार केन्द्र
(घ) पहाड़ी नगर
(ङ) तटीय विश्राम स्थल केन्द्र
(च) पत्तन
(छ) उपनगरीय गाँव अथवा अनुषंगी नगरों के साथ विनिर्माण केन्द्र
(ज) राजधानी नगर
(झ) धार्मिक केन्द्र
बस्तियों के चुनाव को निर्धारित करने वाले अनेक कारक होते हैं, जैसे-
(क) जल के स्रोत
(ख) भोजन की सुविधाएँ
(ग) उच्चावच की प्रकृति
(घ) व्यवसाय की प्रकृति एवं प्रकार
(ङ) रक्षा।
मानव बस्तियों के स्थल का परीक्षण समोच्च रेखा एवं अपवाह तन्त्र मानचित्र के सन्दर्भ में बहुत निकटता से करना चाहिए। बस्तियों का घनत्व खाद्य पदार्थों की पूर्ति से प्रत्यक्ष रूप से सम्बन्धित होता है। कभी-कभी ग्रामीण बस्तियों का संरेखण होता है, यानी ये नदी घाटी, सड़क, तटबन्ध, तटरेखा के साथ वितरित होती हैं। इन्हें रैखिक प्रारूप कहते हैं।
नगरीय बस्तियों में, एक चतुष्पथ नगर पंखे की आकृति का स्वरूप ग्रहण करता है, जिसमें मकान सड़कों के किनारे व्यवस्थित होते हैं तथा मुख्य बाजार एवं नगर के केन्द्र में चौराहे होते हैं। एक नोडीय नगर में सड़कें केन्द्र से सभी दिशाओं में जाती हैं।
यातायात एवं संचार का प्रतिरूप:
उपयोग में लाए जाने वाले यातायात के साधनों तथा परिवहन जाल के घनत्व का उच्चावच, जनसंख्या आकार तथा संसाधन विकास के प्रारूपों से घनिष्ठ सम्बन्ध होता है। ये रूढ़ि चिह्नों एवं प्रतीकों के द्वारा दर्शाए जाते हैं। मानचित्र पर दिखाए गए परिवहन तथा संचार के साधन हमें उस क्षेत्र के बारे में महत्त्वपूर्ण जानकारी प्रदान करते हैं।
प्रश्न 5.
निम्नलिखित लक्षणों के लिए रूढ़ चिह्नों एवं संकेतों को बनाइए-
(क) अन्तर्राष्ट्रीय सीमा रेखाएँ
(ख) तल चिह्न
(ग) गाँव
(घ) पक्की सड़क
(ङ) पुल सहित पगडंडी
(च) पूजा करने के स्थान
(छ) रेल लाइन।
उत्तर:
अन्य महत्त्वपूर्ण प्रश्न
1. अन्तर्राष्ट्रीय मानचित्र शृंखला की मापनी होती है-
(अ) 1: 10,00,000 अथवा 1 : 2,50,000
(ब) 1: 1,00,000
(स) 1 : 20,00,000 अथवा 1 : 3,00,000
(द) 1: 3,00,000 अथवा 1 : 25,000
उत्तर:
(अ) 1: 10,00,000 अथवा 1 : 2,50,000
2. समोच्च रेखा दूर-दूर होने पर ढाल होता है-
(अ) तीव्र
(ब) समान
(स) मंद
(द) असमान
उत्तर:
(स) मंद
3. निम्न में से किस मापनी पर भारतीय स्थलाकृतिक
(अ) 1: 10,000,000
(स) 1 : 2,50,000
(ब) 1 : 25,000
(द) 1 : 2,500
उत्तर:
(द) 1 : 2,500
4. निम्न में से उपान्त सूचना नहीं है-
(अ) बस्ती
(ब) मापनी
(स) शीट संख्या
(द) विस्तार
उत्तर:
(अ) बस्ती
5. निम्न में से ढाल का प्रकार है—
(अ) मंद ढाल
(ब) उत्तल ढाल
(स) अवतल ढाल
(द) उपरोक्त सभी
उत्तर:
(द) उपरोक्त सभी
6. जब उच्चावच स्थलाकृति का निचला भाग मंद ढाल वाला एक ऊपरी भाग खड़े ढाल वाला है तो उसे कहेंगे–
(अ) खड़ी ढाल
(ब) अवतल ढाल
(स) उत्तर ढाल
(द) मंद ढाल
उत्तर:
(ब) अवतल ढाल
7. मानचित्र पर ग्रामीण बस्ती का प्रकार है-
(अ) संहत
(ब) प्रकीर्ण
(स) रैखिक
(द) उपरोक्त सभी
उत्तर:
(द) उपरोक्त सभी
8. बस्तियों के चुनाव को निर्धारित करने वाला कारक है-
(अ) भोजन की सुविधा
(ब) जल स्रोत
(स) उच्चावच की प्रकृति
(द) उपरोक्त सभी
उत्तर:
(द) उपरोक्त सभी
अतिलघूत्तरात्मक प्रश्न:
प्रश्न 1.
भारत के स्थलाकृतिक पत्रक किन दो श्रृंखलाओं में तैयार किए जाते हैं?
उत्तर:
(1) भारत एवं पड़ोसी देशों की श्रृंखला।
(2) विश्व के अन्तर्राष्ट्रीय मानचित्रों की शृंखला।
प्रश्न 2.
अनुप्रस्थ परिच्छेद किसे कहते हैं?
उत्तर:
किसी सरल रेखा पर ऊर्ध्वाधर कही हुई भूमि का पार्श्व चित्र अनुप्रस्थ परिच्छेद कहलाता है। इसे परिच्छेदिका भी कहते हैं।
प्रश्न 3.
समोच्च रेखीय अन्तराल क्या है?
उत्तर:
दो उत्तरोत्तर समोच्च रेखाओं के बीच के अन्तर को समोच्च रेखीय अन्तराल कहते हैं। इसे ऊर्ध्वाधर अन्तराल भी कहते हैं। यह प्रायः अंग्रेजी के अक्षरों द्वारा लिखा जाता है। किसी भी मानचित्र पर प्रायः इसका मान स्थिर होता है।
प्रश्न 4.
हैश्यूर क्या है?
उत्तर:
हैश्यूर – मानचित्र पर समोच्च रेखाओं को लम्बवत् काटती हुई महत्तम ढाल की दिशा में खींची गई छोटी सरल रेखाएँ हैं। ये भूमि के ढाल में अन्तरों का बोध भी कराती हैं।
प्रश्न 5.
उच्चावच मानचित्र किसे कहते हैं?
उत्तर:
भूपृष्ठ समतल नहीं है तथा इसमें विभिन्न पर्वत, पहाड़ियाँ, पठार तथा मैदान हैं। भूपृष्ठ के उत्थान एवं अवनमन भौतिक लक्षणों या उच्चावच के रूप में जाने जाते हैं। इन लक्षणों को दर्शाने वाले मानचित्र को उच्चावच मानचित्र कहते हैं।
प्रश्न 6.
समोच्च रेखा निर्माण की पुरानी एवं नई पद्धति कौनसी है?
उत्तर:
समोच्च रेखा निर्माण की पुरानी पद्धति में धरातलीय सर्वेक्षण तथा तल मापन विधियाँ थीं। वर्तमान में समोच्च रेखा निर्माण के लिए वायव फोटोग्राफ सर्वेक्षण का प्रयोग किया जाता है।
लघूत्तरात्मक प्रश्न
प्रश्न 1.
समोच्च रेखाओं के प्रमुख लक्षण बताइए।
उत्तर:
समोच्च रेखाओं के कुछ मूल लक्षण:
- समोच्च रेखाएँ समान ऊँचाइयों वाले स्थान को दर्शाती हैं।
- समोच्च रेखाएँ एवं उनकी आकृतियाँ स्थलाकृति के ढाल एवं ऊँचाई को दर्शाती हैं।
- पास-पास खींची, अधिक घनी समोच्च रेखाएँ तीव्र ढाल को तथा दूर-दूर खींची हुई, कम घनी समोच्च रेखाएँ मंद ढाल को प्रदर्शित करती हैं।
- दो या दो से अधिक समोच्च रेखाओं के एक-दूसरे से मिलने से ऊर्ध्वाधर वाली आकृतियाँ, जैसे भृगु अथवा जलप्रपात प्रदर्शित होते हैं।
- विभिन्न ऊँचाई वाली दो समोच्च रेखाएँ सामान्यतः एक-दूसरे को नहीं काटती हैं।
प्रश्न 2.
समोच्च रेखाओं से अनुप्रस्थ परिच्छेदिका निर्माण के चरण बताइए।
उत्तर:
अनुप्रस्थ परिच्छेद बनाने के चरण : विभिन्न उच्चावच स्थलाकृतियों का उनके समोच्च रेखाओं से निम्नलिखित चरणों में अनुप्रस्थ परिच्छेद खींचा जा सकता है।
- मानचित्र पर समोच्च रेखाओं को काटती हुई एक सीधी रेखा खींचें एवं उसे AB से व्यक्त करें।
- सफेद कागज या ग्राफ पेपर की एक पट्टी लें तथा इसके किनारों को AB लाइन के साथ लगाकर रखें।
- जहाँ-जहाँ AB रेखा को समोच्च रेखाएँ काटती हैं, उनकी स्थिति पर निशान लगाएँ।
- एक उपयुक्त ऊर्ध्वाधर मापनी का चुनाव करें, जैसे 1⁄2 सेन्टीमीटर = 100 मीटर और एक-दूसरे के समान्तर क्षैतिज रेखाएँ खींचें, जो कि लम्बाई में AB के बराबर हों। इस प्रकार की रेखाओं की संख्या समोच्च रेखाओं की संख्या के बराबर या उससे अधिक होनी चाहिए।
- समोच्च मानों के अनुसार अनुप्रस्थ परिच्छेदिका के ऊर्ध्वाधर को मानों से चिह्नित करें। संख्यात्मक मान का प्रारम्भ समोच्च रेखा में दर्शाए गए सबसे कम मान से किया जा सकता है।
- अब चिह्नित पेपर के किनारे को अनुप्रस्थ परिच्छेद की तल रेखा पर इस प्रकार रखें कि पेपर का AB मानचित्र के AB से मिला रहे तथा समोच्च बिंदुओं को चिह्नित करे।
- AB रेखाओं से समोच्च रेखाओं को काटते हुए लम्ब रेखा खींचें।
- परिच्छेद के आधार पर स्थित सभी रेखाओं पर चिह्नित बिन्दुओं को मिला दें।
प्रश्न 3.
उच्चावच निरूपण के लिए कौन-कौनसी विधियाँ काम में ली जाती हैं? इनमें से सर्वाधिक उपयुक्त विधि कौनसी है?
उत्तर:
मानचित्रों पर उच्चावच लक्षण प्रदर्शित करने के लिए अनेक विधियों का उपयोग होता है। ये विधियाँ हैं- हैश्यूर, पहाड़ी छायांकन, स्तर आभा, बेंच मार्क, स्थानिक ऊँचाई तथा समोच्च रेखाएँ। परन्तु सभी स्थलाकृतिक मानचित्रों पर किसी क्षेत्र के उच्चावच को दिखाने के लिए समोच्च रेखा पर स्थानिक ऊँचाइयों का सर्वाधिक उपयोग किया जाता है।
प्रश्न 4.
शंक्वाकार पहाड़ी एवं पठार के पार्श्व चित्र बनाइए।
उत्तर:
शंक्वाकार पहाड़ी : यह आसपास की भूमि से लगभग समान रूप से उठी होती है। एक शंक्वाकार, समान ढाल वाली पहाड़ी के लिए समोच्च रेखाएँ संकेंद्री एवं नियमित अन्तराल पर होंगी।
पठार : एक विस्तृत चपटा उठा हुआ भूभाग, जिसकी ढाल अपेक्षाकृत पार्श्वों पर खड़ी होती है तथा जो आसपास. के मैदान या समुद्र से ऊँची उठी होती है, पठार कहलाती है। पठारों को दर्शाने वाली समोच्च रेखाएँ सामान्यतः किनारों पर पास-पास तथा भीतर की ओर दूर-दूर होती हैं।
प्रश्न 5.
भृगु क्या है? इसकी अनुप्रस्थ परिच्छेदिका समझाइए। मानचित्र में इनकी पहचान कैसे की जाएगी?
उत्तर:
भृगु-यह अत्यधिक तीव्र ढाल या खड़े पार्श्वो वाली भू-आकृति है। मानचित्र पर भृगु की पहचान पास- पास बनी समोच्च रेखाओं से की जाती है, जो आपस में जुड़ी हुई प्रतीत होती हैं।
प्रश्न 6.
जल प्रपात क्या है? जल प्रपात का समोच्च रेखाचित्र बताइए।
उत्तर:
किसी नदी तल पर काफी ऊँचाई से पानी का अचानक ऊर्ध्वाधर गिरना जलप्रपात कहलाता है। कभी-कभी जलप्रपात सोपानी धारा के रूप में गिरता है, जिसे रैपिड कहा जाता है। मानचित्र पर नदी को पार करती हुई समोच्च रेखाओं के परस्पर मिल जाने से जलप्रपात को पहचाना जा सकता है तथा रैपिड को अपेक्षाकृत दूर स्थित समोच्च रेखाओं के द्वारा।
निबन्धात्मक प्रश्न
प्रश्न 1.
ढाल कितने प्रकार के होते हैं? विभिन्न प्रकार के ढालों के समोच्च रेखाचित्र बनाइए।
उत्तर:
ढाल के 5 प्रकार होते हैं मंद ढाल, खड़ी ढाल, अवतल ढाल, उत्तल ढाल, तरंगित ढाल।
- मंद ढाल : जब किसी स्थलाकृति के ढाल की डिग्री या कोण बहुत कम होता है, तब ढाल मंद होता है। इस प्रकार की ढालों की समोच्च रेखाओं के बीच की दूरी बहुत अधिक होती है।
- खड़ी ढाल : जब किसी स्थलाकृति के ढाल का कोण अधिक होता है, तो इनकी समोच्च रेखाओं के बीच की आपसी दूरी बहुत कम होती है तथा ये खड़ी ढाल को इंगित करते हैं।
1. अवतल ढाल:
जब उच्चावच स्थलाकृति का निचला भाग मंद ढाल वाला एवं ऊपरी भाग खड़े ढाल वाला हो, तो उसे अवतल ढाल कहा जाता है। इस प्रकार के ढाल में समोच्च रेखाएँ निचले भाग में दूर-दूर तथा ऊपरी भाग में पास-पास होती हैं।
2. उत्तल ढाल :
अवतल ढाल के विपरीत, उत्तल ढाल का ऊपरी भाग मंद एवं निचला भाग खड़ा होता हैं। इसके परिणामस्वरूप ऊपरी भाग में समोच्च रेखाएँ दूर-दूर तथा निचले भाग में पास-पास होती हैं।
प्रश्न 2.
स्थलाकृतिक मानचित्रों की व्याख्या किन-किन शीर्षकों के अन्तर्गत की जाती है?
उत्तर:
सामान्यतः जिन शीर्षकों के अंतर्गत स्थलाकृतिक मानचित्रों की व्याख्या की जाती है, वे हैं-
- उपान्त सूचनाएँ,
- उच्चावच एवं अपवाह,
- भूमि उपयोग,
- यातायात तथा संचार के साधन,
- मानव बस्तियाँ,
- व्यवसाय।
(1) उपान्त सूचनाएँ : मानचित्र की सीमाओं पर लिखी सूचनाओं को उपान्त सूचनाएँ कहते हैं। इसके अन्तर्गत स्थलाकृतिक शीट संख्या, इसकी स्थिति, डिग्री एवं मिनट में इसका विस्तार, मापनी एवं सम्मिलित जिले आदि की सूचनाएँ होती हैं।
(2) उच्चावच : इसमें किसी क्षेत्र के सामान्य स्थलाकृति का अध्ययन मैदानों, पठारों, पहाड़ियों या पर्वतों को शिखरों, टीलों एवं ढाल की दिशा के साथ किया जाता है। इन आकृतियों को निम्नलिखित वर्गों के अन्तर्गत पढ़ा जाता है
- पहाड़ी : अवतल, उत्तल, सीधा या मंद ढाल तथा आकार के साथ।
- पठार : यह चौड़ा, सँकरा, चपटा, तरंगित अथवा कटा-फटा है या नहीं।
- मैदान : इसके प्रकार यानि जलोढ़, हिमानी, कार्स्ट, तटीय, कच्छ इत्यादि।
- पर्वत : सामान्य ऊँचाई, शिखर, दर्रे इत्यादि।
अपवाह : महत्त्वपूर्ण नदियाँ एवं उनकी सहायक नदियाँ तथा उनके द्वारा बनाए गए घाटियों के प्रकार एवं विस्तार उनके द्वारा बनाए गए अपवाह तन्त्र, जैसे- द्रुमाकृतिक, अरीय, वलय, जालीनुमा एवं आन्तरिक इत्यादि की व्याख्या की जाती है।
(3) भूमि उपयोग : इसमें विभिन्न प्रकारों से भूमि उपयोगों का विश्लेषण किया जा सकता है, जैसे-
- प्राकृतिक वनस्पति एवं वन (कौनसा क्षेत्र वनाच्छादित है, वह वन घना है या विरल तथा वन के वर्ग, जैसे– यह संरक्षित वर्गीकृत या अवर्गीकृत है)।
- कृषिगत, फलोद्यान, बंजर भूमि, औद्योगिक इत्यादि।
- सुविधाएँ एवं सेवाएँ, जैसे विद्यालय, महाविद्यालय, चिकित्सालय, पार्क, हवाई अड्डे, विद्युत उपकेन्द्र इत्यादि।
(4) यातायात तथा संचार के साधन : यातायात के साधनों के अन्तर्गत राष्ट्रीय तथा राज्य महामार्ग, जिला सड़कें, रथ्या, ऊँटों के रास्ते, पगडंडी, रेलवे, जल मार्ग, मुख्य संचार साधन, डाकघर इत्यादि।
(5) मानव बस्तियाँ : निम्नलिखित शीर्षकों में मानव बस्तियों का अध्ययन किया जाता है
- ग्रामीण बस्तियाँ : ग्रामीण बस्तियों के प्रकार, जैसे- संहत, प्रकीर्ण, रैखिक इत्यादि।
- नगरीय बस्तियाँ : नगरीय बस्तियों के प्रकार एवं उनके कार्य, जैसे— राजधानी नगर, प्रशासनिक नगर, धार्मिक नगर, पत्तन नगर, पर्वत नगर इत्यादि।
(6) व्यवसाय : किसी क्षेत्र के लोगों के सामान्य व्यवसाय को वहाँ के भूमि उपयोग तथा बस्तियों के प्रकार के द्वारा पहचाना जा सकता है। उदाहरण के लिए, ग्रामीण क्षेत्रों में अधिसंख्य लोगों का मुख्य व्यवसाय खेती होता है, आदिवासी क्षेत्रों में लकड़ी काटना एवं प्रारम्भिक खेती की अधिकता होती है तथा तटीय क्षेत्रों में मछली पकड़ने का कार्य किया जाता है। इसी प्रकार शहरों एवं नगरों में सेवाएँ तथा व्यापार लोगों का मुख्य पेशा है।
प्रश्न 3.
विभिन्न प्रकार की घाटियों के समोच्चरेखी चित्र बनाइए।
उत्तर:
घाटी – यह दो पहाड़ियों या कटकों के बीच भूमि का निम्न क्षेत्र है, जो एक नदी या हिमानी के पार्श्व अपरदन के परिणामस्वरूप बनती है। ये निम्न प्रकार की होती हैं-
(1) V आकार की घाटी:
यह V अक्षर की तरह दिखाई देती है। आकार की घाटी पर्वतीय क्षेत्रों में पायी जाती है। V आकार की घाटी का निचला भाग भीतरी समोच्च रेखाओं के द्वारा दिखाया जाता है, जो पास-पास स्थित होते हैं तथा जिनके समोच्च का मान कम होता है। बाहर की ओर स्थित समोच्च रेखाओं का मान एकसमान रूप से बढ़ता है।
(2) U आकार की घाटी :
ऊँचाई पर स्थित हिमानियों के पार्श्व अपरदन के कारण इस प्रकार की घाटी का निर्माण होता है। इसका निचला तल चौड़ा एवं चपटा तथा किनारे खड़े होते हैं, V अक्षर के समान प्रतीत होता है। U आकार की घाटी के सबसे निचले हिस्से को सबसे भीतर स्थित समोच्च रेखाओं के द्वारा दर्शाया जाता है तथा इसके दोनों किनारों के बीच का अन्तर अधिक होता है। बाहर की ओर स्थित दूसरी समोच्च रेखाओं के लिए एकसमान अन्तराल के साथ समोच्च रेखाओं का मान बढ़ता जाता है।
(3) महाखड्ड (गार्ज) :
उच्च भागों में, जहाँ नदियों के द्वारा पार्श्व अपरदन की अपेक्षा ऊर्ध्वाधर अपरदन की क्रिया तीव्र होती है, वहाँ तंग घाटी का निर्माण होता है। ये गहरी तथा संकरी नदी घाटियाँ होती हैं, जिनके दोनों किनारों का ढाल बहुत तीव्र होता है। तंग घाटी को पास-पास स्थित समोच्च रेखाओं के द्वारा दर्शाया जाता है, जिसमें भीतरी समोच्च रेखाओं के बीच का अन्तर बहुत कम होता है, जो इसके दोनों किनारे को दिखाता है।