Understanding the question and answering patterns through Class 11 Geography Question Answer in Hindi Chapter 9 सौर विकिरण, ऊष्मा संतुलन एवं तापमान will prepare you exam-ready.
Class 11 Geography Chapter 9 in Hindi Question Answer सौर विकिरण, ऊष्मा संतुलन एवं तापमान
अन्य महत्त्वपूर्ण प्रश्न
बहुचयनात्मक प्रश्न
1. सूर्य की किरणें वायुमण्डल के ऊपरी भाग पर पड़ती हैं-
(अ) वक्राकार
(ब) सीधी
(स) आड़ी
(द) तिरछी।
उत्तर:
(द) तिरछी।
2. पृथ्वी औसत रूप से वायुमण्डल की ऊपरी सतह पर प्रति मिनट ऊर्जा प्राप्त करती है
(अ) 1.94 कैलोरी / प्रतिवर्ग सेण्टीमीटर
(स) 1.98 कैलोरी / प्रतिवर्ग सेण्टीमीटर
(ब) 2.91 कैलोरी / प्रतिवर्ग सेण्टीमीटर
(द) 2.94 कैलोरी / प्रतिवर्ग सेण्टीमीटर
उत्तर:
(अ) 1.94 कैलोरी / प्रतिवर्ग सेण्टीमीटर
3. सूर्य के चारों तरफ परिक्रमण के दौरान पृथ्वी सूर्य स अधिकतम दूरी पर होती है-
(अ) 4 जुलाई को
(ब) 5 सितम्बर को
(स) 7 जनवरी को
(द) 21 दिसम्बर को।
उत्तर:
(अ) 4 जुलाई को
4. सूर्य के चारों तरफ परिक्रमण के दौरान पृथ्वी सूर्य से निकटतम दूरी पर होती है-
(अ) 25 दिसम्बर को
(ब) 3 जनवरी को
(स) 14 जनवरी को
(द) 23 मार्च को।
उत्तर:
(ब) 3 जनवरी को
5. पृथ्वी पर सबसे अधिक सूर्यातप जिन स्थानों पर प्राप्त होता है, वह
(अ) उपोष्ण कटिबन्धीय मरुस्थल
(स) विषुवत वृत्त
(ब) महासागर
(द) ध्रुव।
उत्तर:
(अ) उपोष्ण कटिबन्धीय मरुस्थल
6. वायु के क्षैतिज संचलन से होने वाला ताप का स्थानान्तरण कहलाता है-
(अ) चालन
(ब) संवहन
(स) अभिवहन
(द) पार्थिव विकिरण।
उत्तर:
(स) अभिवहन
7. प्रति 1000 मीटर की ऊँचाई बढ़ने पर तापमान के घटने की दर है-
(अ) 9.5° सेल्शियस
(ब) 6.5° सेल्शियस
(स) 10.5° सेल्शियस
(द) 11.5° सेल्शियस।
उत्तर:
(ब) 6.5° सेल्शियस
8. सूर्यातप में होने वाली विभिन्नता का कारक है-
(अ) पृथ्वी का अपने अक्ष पर घूमना
(स) स्थल विन्यास
(ब) दिन की अवधि
(द) उपरोक्त सभी
उत्तर:
(द) उपरोक्त सभी
9. किसी स्थान पर वायु के तापमान को प्रभावित करने वाला कारक है-
(अ) अक्षांश रेखा
(ब) उत्तुंगता
(स) समुद्र से दूरी
(द) उपरोक्त सभी
उत्तर:
(द) उपरोक्त सभी
10. उत्तुंगता के बढ़ने के साथ तापमान के घटने की दर को कहा जाता है-
(अ) सामान्य ह्रास दर
(ब) सामान्य वृद्धि दर
(स) सामान्य ताप दर
(द) सामान्य दाब दर
उत्तर:
(अ) सामान्य ह्रास दर
रिक्त स्थान वाले प्रश्न
नीचे दिए गए प्रश्नों में रिक्त स्थानों की पूर्ति करें
1. उत्तुंगता के बढ़ने के साथ तापमान के घटने की दर को _____ कहते हैं। (सामान्य ह्रास दर / सामान्य ताप दर)
2. सूर्य के चारों ओर परिक्रमण के दौरान पृथ्वी _____ को सूर्य से सबसे दूर होती है। (3 जनवरी / 4 जुलाई)
3. _____ को पृथ्वी सूर्य से सबसे निकट होती है। (3 जनवरी / 4 जुलाई)
4. पृथ्वी का अक्ष सूर्य के चारों ओर परिक्रमण की समतल कक्षा से _____ का कोण बनाता है। (66 1/2°/23 1/2°)
5. वायु के क्षैतिज संचलन से होने वाले ताप का स्थानान्तरण _____ कहलाता है। (संवहन/अभिवहन)
उत्तर:
1. उत्तुंगता के बढ़ने के साथ तापमान के घटने की दर को सामान्य ह्रास दर कहते हैं।
2. सूर्य के चारों ओर परिक्रमण के दौरान पृथ्वी 4 जुलाई को सूर्य से सबसे दूर होती है।
3. 3 जनवरी को पृथ्वी सूर्य से सबसे निकट होती है।
4. पृथ्वी का अक्ष सूर्य के चारों ओर परिक्रमण की समतल कक्षा से 66 1/2° का कोण बनाता है।
5. वायु के क्षैतिज संचलन से होने वाले ताप का स्थानान्तरण अभिवहन कहलाता है।
सत्य / असत्य वाले प्रश्न-
नीचे दिए गए कथनों में से सत्य / असत्य कथन छाँटिए-
1. वायुमण्डल के लम्बवत् तापमान की प्रक्रिया संवहन कहलाती है। (सत्य)
2. अपसौर की स्थिति 4 जुलाई को एवं उपसौर की स्थिति 3 जनवरी को होती है। (सत्य)
3. सम्पर्क द्वारा ठण्डे पदार्थ से गर्म पदार्थ की ओर उष्मा का स्थानान्तरण चालन कहलाता है।
4. ऊँचाई के साथ तापमान के बढ़ने की स्थिति ‘तापमान का व्युत्क्रमण’ कहलाता है।
5. धरातल या सागर तल पर असमान तापमान वाले स्थानों को मिलाने वाली रेखाएँ समताप रेखाएँ कहलाती हैं।
उत्तर:
1. वायुमण्डल के लम्बवत् तापमान की प्रक्रिया संवहन कहलाती है। (सत्य)
2. अपसौर की स्थिति 4 जुलाई को एवं उपसौर की स्थिति 3 जनवरी को होती है। (सत्य)
3. सम्पर्क द्वारा ठण्डे पदार्थ से गर्म पदार्थ की ओर उष्मा का स्थानान्तरण चालन कहलाता है। (असत्य)
4. ऊँचाई के साथ तापमान के बढ़ने की स्थिति ‘तापमान का व्युत्क्रमण’ कहलाता है। (सत्य)
5. धरातल या सागर तल पर असमान तापमान वाले स्थानों को मिलाने वाली रेखाएँ समताप रेखाएँ कहलाती हैं। (असत्य).
मिलान करने वाले प्रश्न-
निम्न को सुमेलित कीजिए-
(1) अपसौर | (अ) एल्बिडो |
(2) उपसौर | (ब) संवहन |
(3) वायु के क्षैतिज संचलन से ताप स्थानान्तरण | (स) 4 जुलाई |
(4) वायु के लम्बवत् संचलन से ताप स्थानान्तरण | (द) 3 जनवरी |
(5) सौर विकिरण की परावर्तित मात्रा | (य) अभिवहन |
उत्तर:
(1) अपसौर | (स) 4 जुलाई |
(2) उपसौर | (द) 3 जनवरी |
(3) वायु के क्षैतिज संचलन से ताप स्थानान्तरण | (य) अभिवहन |
(4) वायु के लम्बवत् संचलन से ताप स्थानान्तरण | (ब) संवहन |
(5) सौर विकिरण की परावर्तित मात्रा | (अ) एल्बिडो |
अतिलघूत्तरात्मक प्रश्न-
प्रश्न 1.
पार्थिव विकिरण किस रूप में होता है?
उत्तर:
दीर्घ तरंगों के रूप में।
प्रश्न 2.
वायुमंडल के गर्म एवं ठंडा होने की स्थितियाँ कौन-कौन सी हैं? नाम लिखिए।
उत्तर:
चालन, संवहन, अभिवहन और पार्थिव विकिरण।
प्रश्न 3.
मानचित्र पर तापमान के क्षैतिज वितरण को दर्शाने वाली रेखाएँ क्या कहलाती हैं?
उत्तर:
समताप रेखाएँ।
प्रश्न 4.
संवहन किसे कहते हैं?
उत्तर:
वायुमंडल के लम्बवत् तापमान की प्रक्रिया संवहन कहलाती है।
प्रश्न 5.
वायु के क्षैतिज संचलन से होने वाला ताप का स्थानान्तरण क्या कहलाता है?
उत्तर:
अभिवहन ( Advection।
प्रश्न 6.
चालन क्या है?
उत्तर:
संपर्क द्वारा गरम पदार्थ से अपेक्षाकृत ठंडे पदार्थ की ओर ऊष्मा का स्थानांतरण चालन कहलाता है।
प्रश्न 7.
सूर्यातप (Insolation) किसे कहते हैं?
उत्तर:
पृथ्वी द्वारा प्राप्त सौर विकिरण की मात्रा ‘सूर्यातप’ कहलाती है।
प्रश्न 8.
अपसौर (Aphelion) और उपसौर (Perihelion) की स्थितियाँ कब होती हैं?
उत्तर:
अपसौर 4 जुलाई को एवं उपसौर की स्थिति 3 जनवरी को होती है।
प्रश्न 9.
पृथ्वी न तो अधिक समय के लिए गर्म होती है और न ही अधिक ठण्डी। कारण बताइए।
उत्तर:
क्योंकि पृथ्वी सूर्य से प्राप्त अधिकांश ऊर्जा को अन्तरिक्ष में वापस विकरित कर देती है।
प्रश्न 10.
पृथ्वी सौर ऊर्जा के बहुत कम अंश को ही क्यों प्राप्त कर पाती है?
उत्तर:
अपनी भू- आभ आकृति के कारण पृथ्वी सौर ऊर्जा के बहुत कम अंश को ही प्राप्त कर पाती है।
प्रश्न 11.
वायुमण्डल की ऊपरी सतह पर प्राप्त होने वाली ऊर्जा में प्रतिवर्ष आने वाले अन्तर का कारण बताइए।
उत्तर:
पृथ्वी तथा सूर्य के बीच की दूरी में अन्तर के कारण वायुमण्डल की ऊपरी सतह पर प्राप्त होने वाली ऊर्जा में प्रतिवर्ष परिवर्तन आ जाता है।
प्रश्न 12.
सूर्यातप में होने वाली विभिन्नता के कारक लिखिए।
उत्तर:
- पृथ्वी का अपने अक्ष पर घूमना,
- सूर्य की किरणों का नति कोण,
- दिन की अवधि,
- वायुमण्डल की पारदर्शिता तथा
- स्थल विन्यास।
प्रश्न 13.
तापमान से क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
वायुमण्डल एवं भूपृष्ठ के साथ सूर्यातप की अन्योन्य क्रिया के द्वारा जनित ऊष्मा को तापमान कहा जाता है।
प्रश्न 14.
समताप रेखाएँ क्या हैं?
उत्तर:
धरातल या सागर तल पर समान तापमान वाले स्थानों को मिलाने वाली रेखाएँ, समताप रेखाएँ कहलाती हैं।
प्रश्न 15.
तापमान के व्युत्क्रमण से क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
ऊँचाई के साथ तापमान के बढ़ने की स्थिति ‘तापमान का व्युत्क्रमण’ कहलाता है।
प्रश्न 16.
विशिष्ट ऊष्मा से क्या आशय है?
उत्तर:
एक ग्राम पदार्थ का तापमान एक अंश सेल्शियस बढ़ाने के लिए जितनी ऊर्जा की आवश्यकता होती है, विशिष्ट ऊष्मा कहलाती है।
प्रश्न 17.
प्लैंक नियम को बताइए।
उत्तर:
प्लैंक के नियम के अनुसार एक वस्तु जितनी गर्म होगी वह उतनी ही अधिक ऊर्जा का विकिरण करती है और उसकी तरंगदैर्घ्य उतनी ही लघु होती है
प्रश्न 18.
तापमान व्युत्क्रमण की आदर्श दशाएँ लिखिए।
उत्तर:
सर्दियों की मेघविहीन लंबी रातें और शांत वायु।
प्रश्न 19.
आकाश का रंग नीला क्यों दिखाई देता है?
उत्तर:
वायुमंडल में प्रकाश के प्रकीर्णन के कारण।
प्रश्न 20.
उपसौर से आप क्या समझते हैं?
उत्तर:
3 जनवरी को पृथ्वी सूर्य से सबसे निकट होती है, इस स्थिति को ‘उपसौर’ कहा जाता है।
प्रश्न 21.
अपसौर क्या है?
उत्तर:
सूर्य के चारों ओर परिक्रमण के दौरान पृथ्वी 4 जुलाई को सूर्य से सबसे दूर होती है, इस स्थिति को ‘अपसौर’ कहते हैं।
लघूत्तरात्मक प्रश्न-
प्रश्न 1.
पवनों द्वारा ताप का स्थानान्तरण एक स्थान से दूसरे स्थान पर किस प्रकार संभव हो पाता है?
उत्तर:
धरातल के विभिन्न भागों में प्राप्त होने वाली ताप की मात्रा समान नहीं होती है। तापमान की विभिन्नता के कारण विभिन्न स्थानों पर वायुमंडल के दबाव में भिन्नता पायी जाती है। वायुदाब की भिन्नता के कारण ही पवनों द्वारा ताप का स्थानान्तरण एक स्थान से दूसरे स्थान पर संभव हो पाता है।
प्रश्न 2.
सर्दियों में सुबह के समय घने कुहरे की रचना किस प्रकार होती है?
उत्तर:
भूपृष्ठ पर दिन में प्राप्त ऊष्मा रात को विकिरित कर दी जाती है, जिससे सुबह तक भूपृष्ठ अपने ऊपर की हवा से अधिक ठंडा हो जाता है। भूपृष्ठीय व्युत्क्रमण वायुमंडल के निचले स्तर में स्थिरता को बढ़ावा देता है। धुआं तथा धूलकण व्युत्क्रमण स्तर से नीचे एकत्र होकर चारों ओर फैल जाते हैं, जिनसे वायुमंडल का निम्न स्तर भर जाता है। इससे सर्दियों में सुबह के समय घने कुहरे की रचना होती है।
प्रश्न 3.
वायु अपवाह किसे कहते हैं? समझाइये।
उत्तर:
पहाड़ियों तथा पर्वतों पर रात में ठंडी हुई हवा गुरुत्वाकर्षण बल के प्रभाव में भारी और ठण्डी होने के कारण लगभग जल के समान कार्य करती है और ढाल के साथ नीचे उतरती है। यह घाटी की तली में गर्म हवा के नीचे एकत्रित हो जाती है। इसे ‘वायु अपवाह’ कहते हैं यह पाले से पौधों की रक्षा करती है। पहाड़ी और पर्वतीय क्षेत्रों में वायु अपवाह के कारण व्युत्क्रमण की उत्पत्ति होती है।
प्रश्न 4.
पृथ्वी के एल्बिडो से क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
पृथ्वी के धरातल पर पहुँचने से पहले ही सौर ताप की 100 इकाइयों में 35 इकाइयाँ अंतरिक्ष में परावर्तित हो जाती हैं। इनमें से 27 इकाइयाँ बादलों के ऊपरी छोर से तथा 2 इकाइयाँ पृथ्वी के हिमाच्छादित क्षेत्रों द्वारा परावर्तित होकर लौट जाती हैं। सौर विकिरण की यह परावर्तित मात्रा ही ‘पृथ्वी का एल्बिडो’ कहलाता है ।
प्रश्न 5.
अपसौर तथा उपसौर को समझाइये।
उत्तर:
अपसौर (Aphelion ): सूर्य के चारों ओर परिक्रमण के दौरान पृथ्वी 4 जुलाई को सूर्य से सबसे दूर अर्थात् 15 करोड़, 20 लाख किमी. दूर होती है। पृथ्वी की यह स्थिति ही अपसौर कहलाती है।
उपसौर (Perihelion): सूर्य के चारों ओर परिक्रमण के दौरान पृथ्वी 3 जनवरी को सूर्य के सबसे निकट होती है। पृथ्वी की यह स्थिति उपसौर कहलाती है।
प्रश्न 6.
सूर्यातप की भिन्नता पृथ्वी की सतह पर होने वाले प्रतिदिन के मौसम परिवर्तन पर अधिक प्रभाव क्यों नहीं डाल पाती है? स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
पृथ्वी की भू-आभ आकृति के कारण पृथ्वी सौर ऊर्जा के बहुत कम अंश को ही प्राप्त कर पाती है। पृथ्वी औसत रूप से 1.94 कैलोरी प्रतिवर्ग सेण्टीमीटर प्रति मिनट ऊर्जा प्राप्त करती है। पृथ्वी एवं सूर्य के बीच में दूरी के अन्तर के कारण वायुमण्डल की ऊपरी सतह पर प्राप्त होने वाली ऊर्जा में प्रतिवर्ष थोड़ा परिवर्तन होता है। पृथ्वी की अपसौर एवं उपसौर स्थिति के कारण इसके द्वारा प्राप्त वार्षिक सूर्यातप 3 जनवरी को 4 जुलाई की अपेक्षा अधिक होता है, फिर भी सूर्यातप की भिन्नता का यह प्रभाव दूसरे अन्य कारकों यथा स्थल एवं समुद्र का वितरण तथा वायुमण्डल के परिसंचरण के द्वारा कम हो जाता है। यही कारण है कि सूर्यातप की यह भिन्नता पृथ्वी की सतह पर होने वाले प्रतिदिन के मौसमी परिवर्तन पर अधिक प्रभाव नहीं डाल पाती है।
प्रश्न 7.
स्पष्ट कीजिए कि अधिक अवशोषण, प्रकीर्णन एवं विसरण के द्वारा ऊर्जा का अधिक ह्रास होता
उत्तर:
सूर्यातप की मात्रा को प्रभावित करने वाला एक कारक किरणों का नति कोण है जो किसी स्थान के अक्षांश पर निर्भर करता है। अक्षांश जितना उच्च होता है किरणों का नति कोण उतना ही कम होता है। अतः सूर्य की किरणें तिरछी पड़ेंगी। तिरछी किरणों की तुलना में सीधी किरणें कम स्थान पर पड़ती हैं। किरणों के अधिक क्षेत्र पर पड़ने के कारण ऊर्जा वितरण बड़े क्षेत्र पर होता है तथा प्रति इकाई क्षेत्र को कम ऊर्जा प्राप्त होती है। इसके अलावा तिरछी किरणों को वायुमण्डल की अधिक गहराई से गुजरना पड़ता है। अतः अधिक अवशोषण, प्रकीर्णन एवं विसरण के द्वारा ऊर्जा का अधिक ह्रास होता है
प्रश्न 8.
उदय एवं अस्त होने के समय सूर्य का रंग लाल तथा आकाश का रंग नीला क्यों दिखलाई पड़ता है?
उत्तर:
लघु तरंगदैर्घ्य वाले सौर विकिरण के लिए वायुमण्डल अधिकांशत: पारदर्शी होता है। पृथ्वी की सतह पर पहुँचने से पहले सूर्य की किरणें वायुमण्डल से होकर गुजरती हैं। क्षोभमण्डल में उपस्थित जलवाष्प, ओजोन तथा अन्य किरणें अतिरिक्त विकिरण को अवशोषित कर लेती हैं। क्षोभमण्डल में छोटे निलम्बित कण दिखने वाले स्पेक्ट्रम को अन्तरिक्ष एवं पृथ्वी की सतह की तरफ विकीर्ण कर देते हैं। यही प्रक्रिया आकाश में रंग के लिए उत्तरदायी होती है। इसी से उदय एवं अस्त होने के समय सूर्य लाल दिखाई देता है तथा आकाश का रंग नीला दिखाई देता है। ऐसा वायुमण्डल में प्रकाश के प्रकीर्णन द्वारा संभव होता है।
प्रश्न 9.
सूर्यातप का पृथ्वी की सतह पर स्थानिक वितरण बताइए।
उत्तर:
सूर्यातप का पृथ्वी की सतह पर स्थानिक वितरण सूर्यातप की सबसे अधिक मात्रा उपोष्ण कटिबन्धीय मरुस्थलीय भागों में प्राप्त होती है क्योंकि यहाँ मेघाच्छादन बहुत कम पाया जाता है। उष्ण कटिबन्ध की तुलना में विषुव वृत्त पर कम मात्रा में सूर्यातप प्राप्त होता है। सामान्य रूप से एक ही अक्षांश पर स्थित महाद्वीपीय भाग पर अधिक और महासागरीय भाग में अपेक्षाकृत कम मात्रा में सूर्यातप प्राप्त होता है। शीत ऋतु में मध्य एवं उच्च अक्षांशों पर ग्रीष्म की तुलना में कम मात्रा में विकिरण प्राप्त होता है।
प्रश्न 10.
पृथ्वी की सतह एवं वायुमण्डल का तापमान स्थिर किस प्रकार रहता है? बताइए।
उत्तर:
पृथ्वी सौर विकिरण लघु तरंगों के रूप में प्राप्त करती है। वह पृथ्वी की सतह को गर्म करता है। पृथ्वी स्वयं गर्म होने के उपरान्त एक विकिरण पिण्ड बन जाती है और वायुमण्डल में दीर्घ तरंगों के रूप में ऊर्जा का विकिरण करने लगती है। यह ऊर्जा वायुमण्डल को नीचे से गर्म करती है। इस प्रक्रिया को पार्थिव विकिरण कहते हैं। दीर्घ तरंगदैर्घ्य विकिरण वायुमण्डलीय गैसों मुख्यत: CO2 एवं अन्य ग्रीन हाउस गैसों द्वारा अवशोषित कर लिया जाता है। इससे वायुमंडल गर्म हो जाता है। इसके उपरान्त वायुमण्डल विकीर्णन द्वारा ताप को अन्तरिक्ष में संचरित कर देता है। इस प्रकार पृथ्वी की सतह एवं वायुमण्डल का तापमान स्थिर रहता है।
प्रश्न 11.
तापमान का व्युत्क्रमण क्या है? समझाइये।
उत्तर:
सामान्य दशाओं में ऊँचाई के साथ-साथ तापमान घटता जाता है। लेकिन कई बार विशेष परिस्थिति में वायुमण्डल में कहीं-कहीं तापमान ऊँचाई के साथ-साथ गिरने की अपेक्षा बढ़ जाता है। यह स्थिति पर्वतीय घाटियों में अथवा शीत-काल में होती है। शान्त व स्थिर मौसम में घाटियों में विकिरण ऊष्मा के द्वारा घाटियों की गर्म वायु हल्की होकर ऊपर उठ जाती है। ऊपर की ठण्डी तथा भारी वायु घाटियों के रिक्त स्थान की पूर्ति हेतु नीचे उतर आती है। इस क्रिया के फलस्वरूप घाटी की तली ठण्डी तथा ऊपरी भाग गर्म रहता है। इसको विलोम ह्रास दर कहते हैं। यह क्रिया वायुमण्डल की निचली परत में ही होता है। तापक्रम की इस घटना को ताप का व्युत्क्रमण या तापीय विलोमता कहते हैं।
निबन्धात्मक प्रश्न-
प्रश्न 1.
सूर्यातप के वितरण को प्रभावित करने वाले कारकों का विस्तार से वर्णन कीजिए।
अथवा
पृथ्वी की सतह पर सूर्यातप में विभिन्नता के प्रमुख कारकों का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
सूर्यातप के वितरण को प्रभावित करने वाले कारक
अथवा
पृथ्वी की सतह पर सूर्यातप में विभिन्नता के प्रमुख कारक
भूमंडल पर सूर्यातप की तीव्रता तथा वितरण सभी स्थानों पर तथा पूरे वर्ष एक समान नहीं रहता है। सूर्यातप के वितरण को अनेक कारक प्रभावित करते हैं। इनमें से मुख्य निम्न प्रकार हैं-
(1) पृथ्वी का अपने अक्ष पर घूमना:
पृथ्वी अपने अक्ष पर घूमती हुई सूर्य के चारों ओर चक्कर लगाती है जिससे पृथ्वी का अक्ष सूर्य के चारों ओर परिक्रमण की समतल 8 कक्षा से 661/2° का कोण बनाता है। इससे विभिन्न अक्षांशों पर प्राप्त होने वाले सूर्यातप की मात्रा प्रभावित होती है।
(2) पृथ्वी पर बनने वाले कोण :
पृथ्वी गोलाकार है, साथ ही अपने कक्ष – तल पर 661/2° का कोण बनाती है। इसलिये सूर्य की किरणें भू-तल के प्रत्येक स्थान पर सीधी नहीं पड़ती हैं। केवल भूमध्य रेखा पर और इसके आस-पास 1 या 2° अक्षांश उत्तर-दक्षिण पर सूर्य किरणें बिल्कुल सीधी पड़ती हैं, जिनसे अधिक ताप की प्राप्ति होती है। इसके विपरीत ध्रुवों पर सूर्य किरणें तिरछी या अनुप्रस्थ रूप से पड़ती हैं। चूंकि अनुप्रस्थ किरणों को अधिक वायुमण्डल पार करना पड़ता है एवं अधिक क्षेत्र में फैलना पड़ता है, जिससे ताप की अधिकांश मात्रा नष्ट हो जाती है। इस कारण ध्रुवों पर सूर्यातप की कम मात्रा प्राप्त होती है।
(3) दिन की अवधि :
पृथ्वी की परिभ्रमण और परिक्रमण गतियों के कारण ही पृथ्वी पर दिन-रात एवं ऋतु परिवर्तन होता है। पृथ्वी के अपने अक्ष पर झुकाव के कारण विभिन्न अक्षांशों पर दिन और रात की लम्बाई भिन्न-भिन्न होती है केवल भूमध्य रेखा पर दिन-रात बराबर होते हैं। लेकिन भूमध्य रेखा से दूरी बढ़ने पर दिन-रात की अवधि में अन्तर दिखलाई देता है। इस प्रकार 21 मार्च और 23 सितम्बर को सूर्य भूमध्य रेखा पर सीधा चमकता है तब सम्पूर्ण विश्व में दिन-रात की अवधि बराबर होती है। इसे समरात्रि कहते हैं। 22 दिसम्बर एवं 21 जून को सूर्य क्रमश: मकर रेखा एवं कर्क रेखा पर लम्बवत् चमकता है।
तब क्रमशः दक्षिणी और उत्तरी गोलार्द्ध में दिनों की अवधि में वृद्धि होती है। जब उत्तरी गोलार्द्ध में सबसे बड़ा दिन होता है तो दक्षिणी गोलार्द्ध में सबसे छोटा दिन होता है। सूर्य के उत्तरायण होने पर भूमध्य रेखा से उत्तरी ध्रुव की ओर दिन की अवधि बढ़ती जाती है। सूर्यातप दिन की लम्बाई के अनुसार प्राप्त होता है। दिन के समय पृथ्वी सूर्यातप का अवशोषण करती है और रात्रि के समय ताप का निष्कासन होता है। अत: दिन की अवधि जितनी अधिक होगी सूर्यातप की मात्रा उतनी ही अधिक होगी। परन्तु किरणों के तिरछेपन के कारण ध्रुवों पर विषुवत् रेखा की अपेक्षा कम तापमान ही प्राप्त होता है।
(4) वायुमण्डल की पारदर्शिता :
वायुमण्डल में जितनी पारदर्शिता होगी अर्थात् शुद्धता होगी उतना ही अधिक सूर्यातप पृथ्वी पर आसानी से आ जाता है। वायुमण्डल में जितनी अधिक अशुद्धता होगी उतना ही कम सूर्यातप पृथ्वी तक पहुँच पाता है।
(5) स्थल विन्यास :
धरातल के रंग तथा स्वभाव के अनुसार सूर्यातप भिन्न-भिन्न मात्रा में प्राप्त होता है। जैसे यदि कहीं धरातल का रंग वनस्पति के कारण हरा है तो उस स्थान पर सूर्यातप की मात्रा कम होती है, यदि कहीं लाल रंग का धरातल है तो वहाँ अत्यधिक ताप की मात्रा प्राप्त होती है। इसी प्रकार धरातलीय स्वरूप जैसे पर्वत, पठार, आदि पर सूर्यातप अलग-अलग मात्रा में प्राप्त होता है। मैदानों की अपेक्षा पर्वतों के अनुकूल ढालों पर सौर्यताप की मात्रा अधिक प्राप्त होती है। इसी भाँति बर्फ की सतह, सफेद व हरे रंग की सतह कम सौर्यताप ग्रहण कर पाती है।
प्रश्न 2.
वायुमण्डल के तापन एवं शीतलन की क्रियाविधि बताइए।
उत्तर:
वायुमण्डल का तापन एवं शीतलन:
वायुमण्डल के तापन अर्थात् गर्म और शीतलन अर्थात् ठण्डे होने के प्रमुख तरीके निम्नलिखित हैं-
1. चालन:
प्रवेशी सौर विकिरण से गर्म होने के उपरान्त पृथ्वी सतह के निकट स्थित वायुमण्डलीय परतों में दीर्घ तरंगों के रूप में ताप का संचरण करती है एवं पृथ्वी के सम्पर्क में आने वाली वायु धीरे-धीरे गर्म होती है निचली परतों के सम्पर्क में आने वाली वायुमण्डल की ऊपरी परतें भी गर्म हो जाती हैं। इस प्रक्रिया को ‘चालन’ कहते हैं। असमान ताप वाले दो पिण्डों के सम्पर्क में आने पर ही चालन होता है। गर्म पिण्ड से ठण्डे पिण्ड की तरफ ऊर्जा का प्रवाह तब तक चलता है, जब तक दोनों पिण्डों का तापमान एकसमान नहीं हो जाता अथवा उनमें सम्पर्क टूट नहीं जाता। वायुमण्डल की निचली परतों को गर्म करने में चालन महत्त्वपूर्ण है
2. संवहन:
पृथ्वी के सम्पर्क में आने वाली वायु गर्म होकर धाराओं के रूप में लम्बवत् उठकर वायुमण्डल में ताप का संचरण करती है। वायुमण्डल के लम्बवत् तापन की यह प्रक्रिया संवहन कहलाती है। ऊर्जा के स्थानान्तरण का यह प्रकार केवल क्षोभमण्डल तक सीमित रहता है।
3. अभिवहन :
वायु के क्षैतिज संचलन से होने वाले ताप का स्थानान्तरण अभिवहन कहलाता है। मध्य अक्षांशों में दैनिक मौसम में आने वाली भिन्नताएँ केवल अभिवहन के कारण होती हैं। उष्णकटिबन्धीय प्रदेशों विशेष रूप से उत्तरी भाग में ग्रीष्म काल में चलने वाली स्थानीय पवन ‘लू’ इसी अभिवहन की क्रिया का ही परिणाम है।
4. पार्थिव विकिरण:
पृथ्वी द्वारा प्राप्त प्रवेशी सौर विकिरण जो कि लघु तरंगों के रूप में होता है, वह पृथ्वी की सतह को गर्म करता है। पृथ्वी स्वयं गर्म होने के उपरान्त एक विकिरण पिण्ड बन जाती है और वायुमण्डल में दीर्घ तरंगों के रूप में ऊर्जा का विकिरण करने लगती है। यह ऊर्जा वायुमण्डल को नीचे से गर्म करती है। इस प्रक्रिया को ‘पार्थिव विकिरण’ कहा जाता है। दीर्घ तरंगदैर्घ्य विकिरण वायुमण्डलीय गैसों मुख्यत: कार्बन डाइऑक्साइड एवं अन्य ग्रीन हाउस गैसों द्वारा अवशोषित कर लिया जाता है। इस प्रकार वायुमण्डल पार्थिव विकिरण के द्वारा अप्रत्यक्ष रूप से गर्म होता है। उसके उपरान्त वायुमण्डल विकीर्णन द्वारा ताप को अन्तरिक्ष में संचरित कर देता है जिससे पृथ्वी की सतह एवं वायुमण्डल का तापमान स्थिर रहता है।
प्रश्न 3.
तापमान का अर्थ बताते हुए इसके वितरण को नियन्त्रित करने वाले कारकों का वर्णन कीजिए।
अथवा
तापमान के वितरण को नियन्त्रित करने वाले कारकों की व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
तापमान का अर्थ:
वायुमण्डल एवं भू-पृष्ठ के साथ सूर्यातप की अन्योन्य क्रिया द्वारा उत्पन्न ऊष्मा को तापमान कहा जाता है। तापमान किसी पदार्थ या स्थान के गर्म या ठण्डा होने का डिग्री में माप होता है। तापमान के वितरण को नियन्त्रित करने वाले कारक धरातल पर किसी भी स्थान पर वायु का तापमान निम्नलिखित कारकों के द्वारा प्रभावित होता है
1. अक्षांश:
किसी भी स्थान का तापमान उस स्थान द्वारा प्राप्त सूर्यातप पर निर्भर करता है। चूंकि पृथ्वी की भू-आभ आकृति के कारण सूर्यातप की मात्रा में अक्षांश के अनुसार भिन्नता पायी जाती है। अत: इसी के अनुरूप तापमान में भी भिन्नता पायी जाती है। भूमध्यरेखा से ध्रुवों की ओर तापमान क्रमशः कम होता जाता है।
2. उत्तुंगता (Altitude):
वायुमण्डल पार्थिव विकिरण के द्वारा नीचे की परतों में पहले गर्म होता है। यही कारण है कि समुद्रतल के पास के स्थानों पर तापमान अधिक तथा ऊँचे भागों में स्थित स्थानों पर तापमान कम होता है। दूसरे शब्दों में तापमान सामान्य रूप से उत्तुंगता बढ़ने के साथ घटता है। उत्तुंगता के बढ़ने के साथ तापमान के घटने की दर को ‘सामान्य ह्रास दर’ कहते हैं। सामान्य ह्रास दर प्रति 1000 मीटर की ऊँचाई बढ़ने पर 6.5° सेल्शियस होती है
3. समुद्र से दूरी :
स्थल की तुलना में समुद्र धीरे-धीरे गर्म और धीरे-धीरे ठण्डा होता है। स्थल जल्दी गर्म और जल्दी ठण्डा होता है। इसी कारण समुद्र के ऊपर स्थल की तुलना में तापमान में भिन्नता कम होती है। समुद्र के निकटवर्ती क्षेत्रों पर समुद्र एवं स्थलीय समीर का सामान्य प्रभाव पड़ता है तथा तापमान सम रहता है।
4. वायु संहति तथा महासागरीय धाराएँ :
स्थलीय एवं समुद्री समीरों के समान वायु संहतियाँ भी तापमान को प्रभावित करती हैं। कोष्ण वायु संहतियों से प्रभावित होने वाले स्थानों का तापमान अधिक एवं शीत वायु संहतियों से प्रभावित स्थानों का तापमान कम होता है। इसी प्रकार ठण्डी महासागरीय धारा के प्रभाव के अन्तर्गत आने वाले समुद्री तटों की अपेक्षा गर्म महासागरीय धारा के प्रभाव में आने वाले तटों का तापमान अधिक होता है।
प्रश्न 4.
स्पष्ट कीजिए कि पृथ्वी की सतह पर कुल ऊष्मा बजट में भिन्नता पायी जाती है।
उत्तर:
पृथ्वी की सतह पर कुल ऊष्मा बजट में भिन्नता :
पृथ्वी की भू-आभ (Gcoid) आकृति के कारण, सूर्य की किरणें वायुमंडल के ऊपरी भाग पर तिरछी पड़ती हैं। इस कारण पृथ्वी की सतह पर प्राप्त विकिरण की मात्रा में भिन्नता पायी जाती है। पृथ्वी के कुछ भागों में विकिरण संतुलन में अधिशेष (Surplus) पाया जाता है, परन्तु कुछ भागों में ऋणात्मक संतुलन होता है। नीचे दिए गये चित्र में पृथ्वी वायुमंडल तंत्र के शुद्ध विकिरण में अक्षांशीय भिन्नता को दर्शाया गया है।
यह चित्र दर्शाता है कि शुद्ध विकिरण में अधिशेष 40° उत्तरी एवं दक्षिणी अक्षांशों में अधिक है, परंतु ध्रुवों के पास कमी पाई जाती है। उष्णकटिबंधीय क्षेत्रों से ताप ऊर्जा ध्रुवों की ओर पुनर्वितरण होता है। फलस्वरूप उष्णकटिबंध ताप संचयन के कारण बहुत अधिक गर्म नहीं हो पाते और न ही उच्च अक्षांश अत्यधिक कमी के कारण पूरी तरह जमे हुए हैं।
प्रश्न 5.
जुलाई के तापमान के वितरण को समझाइये
उत्तर:
जुलाई के तापमान का वितरण:
जुलाई माह के समय सूर्य की किरणें कर्क रेखा के पास लम्बवत् चमकती हैं। इस कारण उत्तरी गोलार्द्ध में इस समय सर्वाधिक तापमान पाया जाता है। मानचित्र पर तापमान के वितरण को सामान्यतः ‘समताप रेखाओं’ के द्वारा दर्शाया जाता है। समताप रेखायें, तापमान वाले स्थानों को मिलाने वाली रेखाएँ होती हैं।
जुलाई में समताप रेखायें प्रायः अक्षांशों के समानांतर चलती हैं। इस समय विषुवत्रेखीय महासागरों पर तापमान 27° से. से अधिक होता है। एशिया के उपोष्ण कटिबंधीय स्थलीय भागों में 30° उत्तरी अक्षांश के साथ-साथ तापमान 30° से. से अधिक पाया जाता है। 40° उत्तरी एवं 40° दक्षिणी अक्षांशों पर तापमान 10°से. दर्ज किया जाता है। इसके
बाद उत्तरी गोलार्द्ध में तापमान अधिक तीव्र गति से घटता जाता है, जबकि दक्षिणी गोलार्द्ध में तापमान की घटने की दर अपेक्षाकृत कम होती है क्योंकि दक्षिणी गोलार्द्ध में महासागरों का विस्तार अपेक्षाकृत अधिक पाया जाता है।