Well-organized Class 11 Geography Notes in Hindi and Class 11 Geography Chapter 9 Notes in Hindi सौर विकिरण, ऊष्मा संतुलन एवं तापमान can aid in exam preparation and quick revision.
Geography Class 11 Chapter 9 Notes in Hindi सौर विकिरण, ऊष्मा संतुलन एवं तापमान
→ सौर विकिरण:
पृथ्वी के पृष्ठ पर प्राप्त होने वाली ऊर्जा का अधिकतम अंश लघु तरंगदैर्घ्य के रूप में आता है। को प्राप्त होने वाली ऊर्जा को ‘आगमी सौर विकिरण’ या छोटे रूप में ‘सूर्यातप’ कहते हैं। सूर्य की किरणें वायुमण्डल के ऊपरी भाग पर तिरछी पड़ती हैं जिसके कारण पृथ्वी सौर ऊर्जा के बहुत कम अंश को ही प्राप्त कर पाती है। सूर्य के चारों तरफ परिक्रमण के दौरान पृथ्वी 4 जुलाई को सूर्य से सबसे दूर अर्थात् 15 करोड़ 20 लाख किलोमीटर दूर होती है। इस स्थिति को ‘अपसौर’ कहा जाता है तथा 3 जनवरी को पृथ्वी सूर्य से सबसे निकट अर्थात् 14 करोड़ 70 लाख किलोमीटर दूर होती है। इस स्थिति को ‘उप-सौर’ कहा जाता है।
→ पृथ्वी की सतह पर सूर्यातप में भिन्नता : सूर्यातप की तीव्रता की मात्रा में प्रतिदिन, हर मौसम और प्रति वर्ष परिवर्तन होता रहता है। सूर्यातप में होने वाली विभिन्नता के निम्न कारक हैं-
- पृथ्वी का अपने अक्ष पर घूमना।
- सूर्य की किरणों का नति कोण।
- दिन की अवधि।
- वायुमण्डल की पारदर्शिता।
- स्थल विन्यास।
→ सौर विकिरण का वायुमण्डल से होकर गुजरना:
लघु तरंगदैर्घ्य वाले सौर विकिरण के लिए वायुमण्डल अधिकांशतः पारदर्शी होता है। पृथ्वी की सतह पर पहुँचने से पहले सूर्य की किरणों को क्षोभमण्डल में मौजूद जल – वाष्प, ओजोन तथा अन्य किरणें अवशोषित कर लेती हैं। क्षोभमण्डल में छोटे निलम्बित कण दिखने वाले स्पेक्ट्रम को अन्तरिक्ष एवं पृथ्वी की सतह की तरफ विकीर्ण कर देते हैं। यही प्रक्रिया आकाश में रंग के लिए उत्तरदायी होती है। सूर्यातप का पृथ्वी की
→ सतह पर स्थानिक वितरण:
धरातल पर सबसे अधिक सूर्यातप उपोष्ण कटिबन्धीय मरुस्थलों में प्राप्त होता है। उष्णकटिबन्ध की अपेक्षा विषुवत वृत्त पर कम सूर्यातप प्राप्त होता है। सामान्यतः एक ही अक्षांश पर स्थित महाद्वीपीय भाग पर अधिक और महासागरीय भाग पर कम मात्रा में सूर्यातप प्राप्त होता है।
→ वायुमण्डल का तापन एवं शीतलन:
प्रवेशी सौर विकिरण से गर्म होने के उपरान्त पृथ्वी सतह के निकट स्थित वायुमण्डलीय परतों में दीर्घ तरंगों के रूप में ताप का संचरण करती है। पृथ्वी के सम्पर्क में आने वाली वायु धीरे-धीरे गर्म होती है। निचली परतों के सम्पर्क में आने वाली वायुमण्डल की ऊपरी परतें भी गर्म हो जाती हैं। इस प्रक्रिया को चालन कहा जाता है
→ संवहन:
पृथ्वी के सम्पर्क में आई वायु गर्म होकर धाराओं के रूप में लम्बवत् उठती है और वायुमण्डल में ताप का संचरण करती है। वायुमण्डल के लम्बवत् तापन की यह प्रक्रिया संवहन कहलाती है।
→ अभिवहन:
वायु के क्षैतिज संचलन से होने वाला ताप का स्थानान्तरण अभिवहन कहलाता है। लम्ववत् संचलन की अपेक्षा वायु का क्षैतिज संचलन सापेक्षिक रूप से अधिक महत्त्वपूर्ण होता है।
→ पार्थिव विकिरण:
पृथ्वी द्वारा प्राप्त प्रवेशी सौर विकिरण, जो कि लघु तरंगों के रूप में होता है, पृथ्वी की सतह को गर्म करता है। पृथ्वी स्वयं गर्म होने के उपरान्त एक विकिरण पिण्ड बन जाती है और वायुमण्डल में दीर्घ तरंगों के रूप में ऊर्जा का विकिरण करने लगती है। यह ऊर्जा वायुमण्डल को नीचे से गर्म करती है। इस प्रक्रिया को पार्थिव विकिरण कहा जाता है।
→ पृथ्वी का ऊष्मा बजट:
पृथ्वी ऊष्मा का न तो संचय करती है न ही हास। यह अपने तापमान को स्थिर रखती है। वायुमण्डल से गुजरते हुए ऊर्जा का कुछ अंश परावर्तित, प्रकीर्णित एवं अवशोषित हो जाता है। 100 इकाई में से 35 इकाइयाँ पृथ्वी के धरातल पर पहुँचने से पहले ही अन्तरिक्ष में परावर्तित हो जाती हैं। 27 इकाइयाँ बादलों के ऊपरी छोर से तथा 2 इकाइयाँ पृथ्वी के हिमाच्छादित क्षेत्रों द्वारा परावर्तित होकर लौट जाती हैं। सौर विकिरण की इस परावर्तित मात्रा को पृथ्वी का एल्बिडो कहते हैं। प्रथम 35 इकाइयों के अलावा शेष 65 इकाइयाँ अवशोषित होती हैं।
→ पृथ्वी की सतह पर कुल ऊष्मा बजट में भिन्नता:
पृथ्वी की सतह पर प्राप्त सौर विकिरण की मात्रा में भिन्नता पायी जाती है। पृथ्वी के कुछ भागों में विकिरण सन्तुलन में अधिशेष पाया जाता है लेकिन कुछ भागों में ऋणात्मक सन्तुलन होता है।
→ तापमान:
तापमान किसी पदार्थ या स्थान के गर्म या ठण्डा होने का डिग्री में माप है। वायुमण्डल एवं भू-पृष्ठ के साथ सूर्यातप की अन्योन्य क्रिया द्वारा जनित ऊष्मा को तापमान के रूप में मापा जाता है।
→ तापमान के वितरण को नियन्त्रित करने वाले कारक : किसी भी स्थान पर वायु का तापमान निम्नलिखित कारकों के द्वारा प्रभावित होता है-
- उस स्थान की अक्षांश रेखा
- समुद्रतल से उस स्थान की उत्तुंगता
- समुद्र से उसकी दूरी
- वायु संहति का परिसंचरण
- कोष्ण तथा ठण्डी महासागरीय धाराओं की उपस्थिति
- स्थानीय कारक।
→ तापमान का वितरण:
मानचित्रों पर तापमान वितरण सामान्यतः समताप रेखाओं की सहायता से दर्शाया जाता है। वह रेखा जो कि समान तापमान वाले स्थानों को जोड़ती है, समताप रेखा कहलाती है। जनवरी में समताप रेखाएं महासागर के उत्तर और महाद्वीपों पर दक्षिण की तरफ विचलित हो जाती हैं, इसे उत्तरी अटलाण्टिक महासागर पर देखा जा सकता है। जुलाई में समताप रेखाएँ प्राय: अक्षांशों के समानान्तर चलती हैं।
→ तापमान का व्युत्क्रमण:
सामान्यत: तापमान ऊँचाई के साथ क्रमशः घटता जाता है जिसे सामान्य ह्रास दर कहते हैं। लेकिन अनेक बार स्थिति बदल जाती है और सामान्य दर उलट जाती है। इसे तापमान का व्युत्क्रमण कहते हैं। सर्दियों की मेघविहीन लम्बी रात तथा शान्त वायु व्युत्क्रमण के लिए आदर्श दशाएँ हैं। पहाड़ी और पर्वतीय क्षेत्रों में वायु अपवाह के कारण व्युत्क्रमण की उत्पत्ति होती है।
→ भौगोलिक शब्दावली
- आगमी सौर विकिरण : पृथ्वी को प्राप्त होने वाली ऊर्जा।
- सूर्यातप : पृथ्वी द्वारा प्राप्त सौर विकिरण।
- अपसौर : पृथ्वी की सूर्य से अधिकतम दूरी की स्थिति।
- उपसौर : पृथ्वी की सूर्य से निकटतम दूरी की स्थिति।
- चालन : सम्पर्क द्वारा गरम पदार्थ से अपेक्षाकृत ठण्डे पदार्थ की ओर ऊष्मा के स्थानान्तरण की प्रक्रिया।
- संवहन : वायुमण्डल के लम्बवत् तापन की प्रक्रिया।
- पार्थिव विकिरण : वायुमण्डल को नीचे से गर्म करने की प्रक्रिया।
- एल्बिडो : सौर विकिरण की परावर्तित मात्रा।
- तापमान : किसी स्थान या पदार्थ के गर्म अथवा ठण्डा होने का डिग्री माप।
- समताप रेखा : समान तापमान वाले स्थानों को जोड़ने वाली रेखा।