Understanding the question and answering patterns through Class 11 Geography Question Answer in Hindi Chapter 6 भू-आकृतिक प्रक्रियाएँ will prepare you exam-ready.
Class 11 Geography Chapter 6 in Hindi Question Answer भू-आकृतिक प्रक्रियाएँ
अन्य महत्त्वपूर्ण प्रश्न
बहुचयनात्मक प्रश्न-
1. धरातल पर अपरदन के माध्यम से उच्चावच के मध्य अन्तर के कम होने को कहा जाता है-
(अ) अधिवृद्धि
(ब) तल्लोचन
(स) तल सन्तुलन
(द) गर्तों का भराव
उत्तर:
(स) तल सन्तुलन
2. निम्न में से कौनसी अन्तर्जनित भू-आकृतिक प्रक्रिया है-
(अ) पटल विरूपण
(ब) अपरदन
(स) निक्षेपण
(द) अपक्षय
उत्तर:
(अ) पटल विरूपण
3. निम्न में से कौनसी बहिर्जनिक भू-आकृतिक प्रक्रिया नहीं है –
(अ) बृहत् क्षरण
(ब) अपरदन
(स) अपक्षय
(द) ज्वालामुखीयता
उत्तर:
(द) ज्वालामुखीयता
4. निम्न में से कौनसी रासायनिक अपक्षय की प्रक्रिया है—
(अ) कार्बोनेशन
(ब) विस्तारण
(स) हिमकरण
(द) लवण अपक्षय
उत्तर:
(अ) कार्बोनेशन
5. निम्न में से कौनसी भौतिक अपक्षय की प्रक्रिया है-
(अ) तापमान में परिवर्तन
(ब) ऑक्सीकरण
(स) जल योजन
(द) विलयन
उत्तर:
(अ) तापमान में परिवर्तन
6. भूमिगत गुफाओं का निर्माण किस प्रक्रिया के फलस्वरूप होता है-
(अ) जल योजन
(ब) कार्बोनेशन
(स) पिघलन
(द) तुषार वेजिंग
उत्तर:
(ब) कार्बोनेशन
7. निर्माण का प्रमुख कारक है-
(अ) जलवायु
(ब) स्थलाकृति
(स) जैविक क्रियाएँ
(द) उपरोक्त सभी
उत्तर:
(द) उपरोक्त सभी
8. अनाच्छादन में सम्मिलित है-
(अ) अपक्षय
(ब) संचलन
(स) अपरदन
(द) उपरोक्त सभी
उत्तर:
(द) उपरोक्त सभी
9. अपरदन का कारक है-
(अ) हिमानी
(ब) वायु
(स) भूमिगत जल
(द) उपरोक्त सभी
उत्तर:
(द) उपरोक्त सभी
10. पेडालॉजी में किसका अध्ययन किया जाता है?
(अ) पेड़ पौधों का
(ब) मृदा का
(स) जीव जन्तुओं का
(द) चट्टानों का
उत्तर:
(अ) पेड़ पौधों का
रिक्त स्थान वाले प्रश्न
नीचे दिए गए प्रश्नों में रिक्त स्थानों की पूर्ति करें-
1. प्रति इकाई क्षेत्र में अनुप्रयुक्त बल को ____ कहते हैं। (बल/प्रतिबल)
2. पटल विरुपण एवं ज्वालामुखीयता ____ भू आकृतिक प्रक्रियाएँ हैं। (अन्तर्जनित/बहिर्जनिक )
3. अपक्षय, वृहत् क्षरण, संचलन, अपरदन एवं विक्षेपण ____ भू-आकृतिक प्रक्रियाएँ हैं। (अन्तर्जनित/बहिर्जनिक)
4. ____ के अन्तर्गत वे सभी संचलन आते हैं जिनमें शैलों का वृहत् मलबा गुरुत्वाकर्षण के सीधे प्रभाव के कारण ढाल के अनुरूप स्थानान्तरित होता है। (वृहत् संचलन / मंद संचलन)
5. सभी बहिर्जनिक प्रक्रियाओं के पीछे एकमात्र प्रेरक बल ____ बल होता है। (गुरुत्वाकर्षण/प्रतिकर्षण)
उत्तर:
1. प्रति इकाई क्षेत्र में अनुप्रयुक्त बल को प्रतिबल कहते हैं।
2. पटल विरुपण एवं ज्वालामुखीयता अन्तर्जनित भू आकृतिक प्रक्रियाएँ हैं।
3. अपक्षय, वृहत् क्षरण, संचलन, अपरदन एवं विक्षेपण बहिर्जनिक भू-आकृतिक प्रक्रियाएँ हैं।
4. वृहत् संचलन के अन्तर्गत वे सभी संचलन आते हैं जिनमें शैलों का वृहत् मलबा गुरुत्वाकर्षण के सीधे प्रभाव के कारण ढाल के अनुरूप स्थानान्तरित होता है।
5. सभी बहिर्जनिक प्रक्रियाओं के पीछे एकमात्र प्रेरक बल गुरुत्वाकर्षण बल होता है।
सत्य / असत्य वाले प्रश्न-
नीचे दिए गए कथनों में से सत्य / असत्य कथन छाँटिए-
1. मृदा निर्माण मुख्यत: पांच मूल कारकों शैलें, स्थलाकृति, जलवायु, जैविक क्रियाएँ एवं समय है।
2. प्रवाहयुक्त जल, भूमिगत जल, हिमानी, हवा, लहरें एवं धाराएँ आदि बहिर्जनिक भू-आकृतिक कारक है।
3. धरातल पर अंतर्जनित एवं बहिर्जनिक बलों द्वारा दबाव तथा रासायनिक प्रक्रियाओं के कारण भूतल के विन्यास में परिवर्तन को भू आकृतिक प्रक्रियाएँ कहते हैं।
4. पेडालॉजी के अन्तर्गत जलीय चट्टानों का अध्ययन किया जाता है।
5. धरातल पर अपरदन के माध्यम से उच्चावच के मध्य अन्तर के कम होने को तल सन्तुलन कहा जाता है।
उत्तर:
1. मृदा निर्माण मुख्यत: पांच मूल कारकों शैलें, स्थलाकृति, जलवायु, जैविक क्रियाएँ एवं समय है। (सत्य)
2. प्रवाहयुक्त जल, भूमिगत जल, हिमानी, हवा, लहरें एवं धाराएँ आदि बहिर्जनिक भू-आकृतिक कारक है। (सत्य)
3. धरातल पर अंतर्जनित एवं बहिर्जनिक बलों द्वारा दबाव तथा रासायनिक प्रक्रियाओं के कारण भूतल के विन्यास में परिवर्तन को भू आकृतिक प्रक्रियाएँ कहते हैं। (सत्य)
4. पेडालॉजी के अन्तर्गत जलीय चट्टानों का अध्ययन किया जाता है। (असत्य)
5. धरातल पर अपरदन के माध्यम से उच्चावच के मध्य अन्तर के कम होने को तल सन्तुलन कहा जाता है। (सत्य)
मिलान करने वाले प्रश्न
निम्न को सुमेलित कीजिए-
(1) पटल विरुपण | (अ) बहिर्जनिक प्रक्रिया |
(2) अपक्षय | (ब) अंतर्जनित प्रक्रिया |
(3) जलयोजन | (स) भूस्लखन |
(4) पेडालॉजी | (द) रासायनिक अपक्षय प्रक्रिया |
(5) मलबा अवधाव | (य) मृदा विज्ञान |
(ब) अंतर्जनित प्रक्रिया |
उत्तर:
(1) पटल विरुपण | (स) भूस्लखन |
(2) अपक्षय | (अ) बहिर्जनिक प्रक्रिया |
(3) जलयोजन | (द) रासायनिक अपक्षय प्रक्रिया |
(4) पेडालॉजी | (य) मृदा विज्ञान |
(5) मलबा अवधाव | (ब) अंतर्जनित प्रक्रिया |
अतिलघूत्तरात्मक प्रश्न-
प्रश्न 1.
कैल्शियम सल्फेट जल मिलने के बाद किसमें परिवर्तित हो जाता है?
उत्तर:
जिप्सम में।
प्रश्न 2.
भू-पर्पटी का निर्माण करने वाले प्रमुख बल कौन-कौन से हैं?
उत्तर:
अन्तर्जनित बल तथा बहिर्जनिक बल।
प्रश्न 3.
जलवायु के दो महत्त्वपूर्ण तत्त्व कौन-कौन से हैं?
उत्तर:
- तापमान
- वर्षण।
प्रश्न 4.
प्रतिबल किसे कहते हैं?
उत्तर:
प्रति इकाई क्षेत्र में अनुप्रयुक्त बल को प्रतिबल कहते हैं।
प्रश्न 5.
बहिर्जनिक भू-आकृतिक प्रक्रियाओं के नाम लिखिए।
उत्तर:
अपक्षय, अपरदन, बृहत् क्षरण और निक्षेपणं।
प्रश्न 6.
अपक्षय प्रक्रियाओं के प्रकार लिखिए।
उत्तर:
- रासायनिक अपक्षय
- जैविक अपक्षय
- भौतिक या यांत्रिक अपक्षय।
प्रश्न 7.
शैलों का अपक्षय एवं निक्षेपण राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था के लिए महत्त्वपूर्ण क्यों है?
उत्तर:
क्योंकि मूल्यवान खनिजों जैसे लोहा, मैंगनीज, तांबा के अयस्कों के समृद्धिकरण एवं संकेंद्रण में यह सहायक होता है।
प्रश्न 8.
मलबा स्खलन किसे कहते हैं?
उत्तर:
पृथ्वी के पश्च आवर्तन ( Rotation) के बिना मलबा का तीव्र लोटन या स्खलन ‘मलबा स्खलन’ कहलाता
प्रश्न 9.
पेडालॉजी क्या है?
उत्तर:
पेडालॉजी मृदा विज्ञान है।
प्रश्न 10.
पृथ्वी की बाह्य सतह में अन्तर के लिए उत्तरदायी कारक क्या है?
उत्तर:
पृथ्वी के भीतर सक्रिय आन्तरिक बलों में पाया जाने वाला अन्तर ही पृथ्वी की बाह्य सतह में अन्तर के लिए उत्तरदायी कारक है।
प्रश्न 11.
बहिर्जनिक बलों की क्रियाओं का परिणाम क्या होता है?
उत्तर:
उभरी हुई भू-आकृतियों का विघर्षण तथा बेसिन एवं निम्न क्षेत्रों अर्थात् गर्तों का भराव बहिर्जनिक बलों की क्रियाओं का परिणाम होता है।
प्रश्न 12.
तल सन्तुलन किसे कहते हैं?
उत्तर:
धरातल पर अपरदन के माध्यम से उच्चावच के मध्य अन्तर के कम होने को तल सन्तुलन कहा जाता।
प्रश्न 13.
अन्तर्जनित बल तथा बहिर्जनिक प्रक्रियाओं में अन्तर बताइये।
उत्तर:
सामान्य रूप से भू-आकृति निर्माण करने वाले बल अन्तर्जनित बल होते हैं जबकि बहिर्जनिक प्रक्रियाएँ मुख्य रूप से भूमि विघर्षण बल होती हैं।
प्रश्न 14.
भू-आकृतिक कारक किसे कहते हैं?
उत्तर:
प्रकृति के बहिर्जनिक तत्व जल, हिम, वायु जो कि धरातल के पदार्थों का अधिग्रहण व परिवहन करने में सक्षम हैं, भू-आकृतिक कारक कहलाते हैं।
प्रश्न 15.
पृथ्वी के अन्दर की ऊर्जा किस प्रकार उत्पन्न होती है?
उत्तर:
पृथ्वी के अन्दर की ऊर्जा अधिकांशतः रेडियो धर्मी क्रियाओं, घूर्णन एवं ज्वारीय घर्षण तथा पृथ्वी की उत्पत्ति से जुड़ी ऊष्मा के द्वारा उत्पन्न होती है
प्रश्न 16.
अन्तर्जनित बलों के कार्य समान क्यों नहीं होते हैं?
उत्तर:
भूतापीय प्रवणता एवं अन्दर के ऊष्मा प्रवाह, भूपर्पटी की मोटाई एवं दृढ़ता में अन्तर के कारण अन्तर्जनित बलों के कार्य समान नहीं होते हैं।
प्रश्न 17.
शैलों का कायान्तरण किस प्रकार होता है?
उत्तर:
भूकम्प एवं प्लेट विवर्तनिक प्रक्रियाओं के कारण दबाव, आयतन तथा तापक्रम में परिवर्तन होता है जिसके फलस्वरूप शैलों का कायान्तरण होता है।
प्रश्न 18.
ज्वालामुखीयता से क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
पिघली हुई शैलों या लावा के भूतल की तरफ संचलन तथा अनेक आन्तरिक एवं बाह्य ज्वालामुखी स्वरूपों का निर्माण ज्वालामुखीयता कहलाता है।
प्रश्न 19.
अनाच्छादन का अर्थ बताइये तथा इसमें कौन-कौनसी क्रियाएँ शामिल की जाती हैं?
उत्तर:
अनाच्छादन का अर्थ निरावृत करना या आवरण हटाना है। इसके अन्तर्गत अपक्षय, बृहत् क्षरण, संचलन, अपरदन, परिवहन आदि क्रियाएँ शामिल हैं।
प्रश्न 20.
अपक्षय से आप क्या समझते हैं?
उत्तर:
मौसम एवं जलवायु के कार्यों के माध्यम से शैलों के यांत्रिक विखण्डन एवं रासायनिक वियोजन अर्थात् अपघटन को अपक्षय कहते हैं।
प्रश्न 21.
घोल किसे कहते हैं?
उत्तर:
जब कोई वस्तु, जल या अम्ल में घुल जाती है तो घुलित तत्वों के जल या अम्ल को घोल कहते हैं।
प्रश्न 22.
कार्बोनेशन किसे कहते हैं? इससे कौन – कौनसे खनिज अलग किए जाते हैं?
उत्तर:
कार्बोनेट एवं बाईकार्बोनेट की खनिजों से प्रतिक्रिया का प्रतिफल कार्बोनेशन कहलाता है। यह फेल्सपर तथा कार्बोनेट खनिज को अलग करने में सहायक प्रक्रिया है।
प्रश्न 23.
न्यूनीकरण क्रिया से क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
ऑक्सीजन के अभाव में ऑक्सीकृत खनिजों पर होने वाली रासायनिक अपक्षय प्रक्रिया न्यूनीकरण कहलाती
प्रश्न 24.
टॉर किसे कहते हैं?
उत्तर:
ग्रेनाइट शैलों में तापमान में परिवर्तन एवं विस्तारण से चिकनी सतह के छोटे से लेकर बड़े गोलाश्मों का निर्माण होता है जिसे टॉर कहा जाता है।
प्रश्न 25.
मृदा प्रवाह से क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
सन्तृप्त चिकनी मिट्टी या गादी धरातल पदार्थों का निम्न अंशों वाली वेदिकाओं या पहाड़ी ढालों के सहारे निम्नान्मुख संचलन मृदा प्रवाह कहलाता है।
प्रश्न 26.
शैल पतन किसे कहते हैं?
उत्तर;
किसी तीव्र ढाल के सहारे शैल खण्डों का ढाल से दूरी रखते हुए स्वतंत्र रूप से गिरना शैल पतन कहलाता है।
प्रश्न 27.
अपरदन का अर्थ बताइये।
उत्तर:
अपरदन एक गतिशील प्रक्रिया है, जो भूपटल से चट्टानी मलबे को अलग करके उन्हें अपने साथ परिवहन द्वारा दूर-दूर तक ले जाती है
प्रश्न 28.
मृदा निर्माण के प्रमुख उत्तरदायी कारक कौनसे हैं?
उत्तर:
मृदा निर्माण के प्रमुख उत्तरदायी कारक हैं
- जलवायु
- मूल पदार्थ (शैलें)
- स्थलाकृति
- जैविक क्रियाएँ
- कालावधि।
प्रश्न 29.
मृदा के विकास में संलग्न जलवायवी तत्वों को लिखिए।
उत्तर:
- प्रवणता, वर्षा एवं वाष्पीकरण की बारम्बारता व अवधि तथा आर्द्रता
- तापमान में मौसमी एवं दैनिक भिन्नता
प्रश्न 30.
बृहत् संचलन के प्रमुख प्रकार बतलाइये।
उत्तर:
- मंद संचलन
- तीव्र संचलन।
लघूत्तरात्मक प्रश्न
प्रश्न 1.
नाइट्रोजन निर्धारण से क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
बैक्टीरिया एवं मृदा के जीव हवा से गैसीय नाइट्रोजन प्राप्त करके उसे रासायनिक रूप में परिवर्तित कर देते हैं जिसका पौधों द्वारा उपयोग किया जा सकता है। इस प्रक्रिया को नाइट्रोजन निर्धारण कहा जाता है!
प्रश्न 2.
विवर्तनिक द्वारा नियंत्रित मूल भूपर्पटी की सतह असमतल क्यों होती है?
उत्तर:
र-भूतापीय प्रवणता, पृथ्वी के आन्तरिक भाग में रेडियोधर्मी क्रियाओं, घूर्णन एवं ज्वारीय घर्षण तथा पृथ्वी की उत्पत्ति से जुड़ी ऊष्मा द्वारा उत्पन्न ऊर्जा के प्रवाह, भूपर्पटी की मोटाई एवं दृढ़ता में अन्तर के कारण अन्तर्जनित बलों के कार्य समान नहीं होते हैं। इसी कारण विवर्तनिक द्वारा नियंत्रित मूल भूपर्पटी की सतह असमतल होती है।
प्रश्न 3.
पटल विरूपण की क्रिया के द्वारा शैलों का कायान्तरण किस प्रकार प्रेरित होता है?
उत्तर:
वे सभी प्रक्रियाएँ जो कि भूपर्पटी को संचालित उत्थापित तथा निर्मित करती हैं, पटल विरूपण के अन्तर्गत शामिल की जाती हैं। पटल विरूपण में सम्मिलित पर्वतनी, महाद्वीप रचना, भूकम्प एवं प्लेट विवर्तनिकी प्रक्रियाओं से भूपर्पटी में भ्रंश तथा विभंग हो जाते हैं। इन सभी प्रक्रियाओं के कारण दबाव, आयतन तथा तापमान में परिवर्तन होता है जिसके फलस्वरूप शैलों का कायान्तरण प्रेरित होता है।
प्रश्न 4.
प्रतिबल को समझाइये।
उत्तर:
प्रतिबल:
प्रति इकाई क्षेत्र पर अनुप्रयुक्त बल को प्रतिबल कहते हैं। ठोस पदार्थ में प्रतिबल धक्का एवं खिंचाव से पैदा होता है। इससे विकृति उत्पन्न होती है। धरातल के पदार्थों के सहारे सक्रिय बल अपरूपण प्रतिबल होते हैं। यही प्रतिबल शैलों एवं धरातल के पदार्थों को तोड़ता है। अपरूपण प्रतिबल का परिणाम कोणीय विस्थापन या विसर्पण होता है। धरातल के पदार्थ गुरुत्वाकर्षण प्रतिबल के अलावा आणविक प्रतिबलों से भी प्रभावित होते हैं जो कि तापमान में परिवर्तन, क्रिस्टलन एवं पिघलन के द्वारा उत्पन्न होते हैं। इस प्रकार धरातल के पदार्थों में प्रतिबल का विकास अपक्षय, बृहत् क्षरण, संचलन, अपरदन एवं निक्षेपण का मूल कारण है।
प्रश्न 5.
अपक्षय का अर्थ व अपक्षय प्रक्रियाओं के तीन प्रमुख प्रकार बताइये।
उत्तर:
अपक्षय:
मौसम एवं जलवायु के कार्यों के माध्यम से चट्टानों के यांत्रिक विखण्डन एवं रासायनिक अपघटन को अपक्षय कहते हैं।
अपक्षय प्रक्रियाओं के प्रकार:
- रासायनिक अपक्षय प्रक्रियाएँ : घोल / विलयन, कार्बोनेशन, जलयोजन, ऑक्सीकरण एवं न्यूनीकरण।
- भौतिक अपक्षय प्रक्रियाएँ : भारविहीनीकरण एवं विस्तारण; तापक्रम में परिवर्तन एवं विस्तारण; हिमकरण, पिघलन एवं तुषार अपक्षय; लवण अपक्षय।
- जैविक अपक्षय : वनस्पति, जीव-जन्तु एवं मानव द्वारा अपक्षय।
प्रश्न 6.
प्रवाह चित्र द्वारा समझाइये कि प्रत्येक अनाच्छादित प्रक्रियाओं के लिए एक विशिष्ट प्रेरक बल या ऊर्जा होती है।
उत्तर:
प्रश्न 7.
अपक्षय के महत्त्व का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
अपक्षय का महत्त्व:
- अपक्षय प्रक्रियाएँ शैलों को छोटे-छोटे टुकड़ों में तोड़कर मृदा निर्माण के लिए मार्ग प्रशस्त करते हैं।
- यह अपरदन एवं बृहद् संचलन के लिए भी उत्तरदायी होते हैं।
- जैव मात्रा एवं जैव विविधता मुख्यतः वनों की देन है तथा वन, अपक्षयी प्रावार की गहराई पर निर्भर करता अपक्षय बृहत् क्षरण, अपरदन, उच्चावच के लघुकरण में सहायक होता है।
- शैलों का अपक्षय एवं निक्षेपण राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था के लिए महत्त्वपूर्ण है क्योंकि मूल्यवान खनिजों यथा लोहा, मैंगनीज, तांबा आदि के समृद्धिकरण एवं संकेन्द्रण में यह सहायक होता है।
- अपक्षय मृदा निर्माण की एक महत्त्वपूर्ण प्रक्रिया है।
प्रश्न 8.
पटल विरूपण के अंतर्गत सम्मिलित प्रक्रियाएँ लिखिए।
उत्तर:
पटल विरूपण के अंतर्गत निम्न प्रक्रियाएँ सम्मिलित हैं:
- वलन प्रक्रिया द्वारा पर्वत निर्माण व भू-पर्पटी की लंबी एवं संकीर्ण पट्टियों को प्रभावित करने वाली पर्वतनी प्रक्रियाएँ।
- धरातल के बड़े भाग के उत्थापन या विकृति में संलग्न महाद्वीप रचना सम्बन्धी प्रक्रियाएँ।
- अपेक्षाकृत छोटे स्थानीय संचलन के कारण उत्पन्न भूकंप।
- पर्पटी प्लेट के क्षैतिज संचलन में प्लेट विवर्तनिकी की भूमिका।
प्रश्न 9.
समृद्धिकरण से क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
समृद्धिकरण : जब शैलों का अपक्षय होता है, तो कुछ पदार्थ भूमिगत जल द्वारा रासायनिक तथा भौतिक निक्षालन के माध्यम से स्थानांतरित हो जाते हैं तथा शेष बहुमूल्य पदार्थों का संकेन्द्रण हो जाता है। इस प्रकार के अपक्षय के हुए बिना बहुमूल्य पदार्थों का संकेन्द्रण अपर्याप्त होगा तथा आर्थिक दृष्टि से उनका दोहन प्रक्रमण तथा शोधन के लिए व्यवहार्य नहीं होगा। इसी को ‘समृद्धिकरण’ कहते हैं।
प्रश्न 10.
हिमालय में मलबा अवधाव एवं भूस्खलन के अधिक होने के क्या कारण हैं? लिखिए।
उत्तर:
हिमालय में प्राय: मलबा अवधाव एवं भूस्खलन की घटनाएँ होती रहती हैं। इसके निम्न कारण हैं-
- हिमालय, विवर्तनिकी दृष्टि से अभी भी सक्रिय है।
- यह अधिकांशतः परतदार शैलों एवं असंगठित एवं अर्द्ध-संघटित पदार्थों से बना हुआ है।
- इसका ढाल अंपेक्षाकृत तीव्र है, जिस कारण यहाँ मलबा अवधाव एवं भूस्खलन अधिक व तीव्रगति से होता
प्रश्न 11.
दक्षिण भारत में नीलगिरि एवं पश्चिमी घाट पर मलबा अवधाव व भूस्खलन की घटनाएँ कम होती हैं। क्यों?
उत्तर:
दक्षिण प्रायद्वीपीय पठारी भाग अपेक्षाकृत विवर्तनिकी दृष्टि से अधिक स्थायी है। यह बहुत कठोर शैलों से निर्मित है। इस भाग में मलबा अवधाव व भूस्खलन की घटनाएँ कम होने के कारण अग्र हैं-
- तमिलनाडु, कर्नाटक एवं केरल की सीमा पर स्थित नीलगिरि एवं पश्चिमी घाट विवर्तनिकी दृष्टि से स्थायी हैं।
- पश्चिमी घाट एवं नीलगिरि में ढाल खड़े, भृगु एवं कगार के साथ तीव्रतर हैं।
- इन भागों में तापक्रम में परिवर्तन एवं ताप परिसर के कारण यांत्रिक अपक्षय सुस्पष्ट होता हैं।
प्रश्न 12.
कौनसे अनुप्रयुक्त बल भौतिक अपक्षय प्रक्रियाओं को प्रभावित करते हैं? लिखिए।
उत्तर:
भौतिक या यांत्रिक अपक्षय-प्रक्रियाएँ कुछ अनुप्रयुक्त बलों पर निर्भर करती हैं। ये अनुप्रयुक्त बल निम्नलिखित हो सकते हैं- बल।
- गुरुत्वाकर्षण बल, जैसे- अत्यधिक ऊपर भार दबाव एवं अपरूपण प्रतिबल।
- तापमान में परिवर्तन, क्रिस्टल रवों में वृद्धि एवं पशुओं के क्रियाकलापों के कारण उत्पन्न विस्तारण (Expansion) शुष्कन एवं आर्द्रन चक्रों से नियंत्रित जल का दबाव।
- इनमें से अनेक बल धरातल एवं विभिन्न धरातल पदार्थों के अन्दर अनुप्रयुक्त होते हैं जिसका परिणाम शैलों का विभंग होता है।
प्रश्न 13.
जैविक अपक्षय प्रक्रियाएँ क्या हैं? वर्णन कीजिए।
उत्तर:
मृदा में जैव पदार्थ, नमी धारण करने की क्षमता तथा नाइट्रोजन आदि की उपस्थिति वनस्पति एवं जीवों के माध्यम से होती है। जीवावशेष तथा वनस्पतियाँ मृदा में ह्यूमस एकत्रित करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं। बैक्टीरिया तथा मृदा के जीव हवा से गैसीय नाइट्रोजन प्राप्त कर उसे रासायनिक रूप से परिवर्तित कर देते हैं; जिसका उपयोग पौधों द्वारा किया जाता है। राइजोबियम पौधों में रहकर नाइट्रोजन की मात्रा को निर्धारित करते हैं। चींटी, दीमक, केंचुआ आदि अपने यांत्रिक कार्य द्वारा मृदा निर्माण में अपनी महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।
प्रश्न 14.
मृदा किसे कहते हैं? मृदा निर्माण के प्रमुख कारक लिखिए।
उत्तर:
मृदा धरातल पर प्राकृतिक तत्त्वों का समुच्चय है, जिसमें जीवित पदार्थ तथा पौधों की पोषित करने की क्षमता होती है। मृदा निर्माण के प्रमुख कारक निम्न हैं-
- मूल पदार्थ (शैल)
- जलवायु
- स्थलाकृति
- जैविक क्रियाएँ
- कालावधि।
मृदा निर्माण करने वाले ये तत्त्व संयुक्त रूप से कार्य करते हैं। ये एक-दूसरे के कार्यों को प्रभावित करते हैं।
प्रश्न 15.
भू-आकृतियों का अध्ययन क्यों आवश्यक है? उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
मनुष्य अपना जीवन निर्वाह धरातल पर करता है तथा इसका व्यापक एवं सघन उपयोग करता है। मनुष्य ने पृथ्वी के संसाधनों का सबसे अधिक दोहन किया है। मनुष्य द्वारा संसाधनों के अत्यधिक उपयोग, दुरुपयोग के कारण इनकी संभाव्यता में बहुत तीव्र गति से ह्रास हो रहा है। अतएव मानव उपयोग जनित प्रभाव को कम करने तथा धरातल की प्राकृतिक संभाव्यता को बचाये रखने के लिए आवश्यक है कि उन प्रक्रियाओं को समझा जाये, जिन्होंने धरातल पर विभिन्न उच्चावचन प्रदेशों का निर्माण किया तथा उन पदार्थों की प्रकृति जिनसे यह निर्मित है, का गहन अध्ययन किया जाये। इनका अध्ययन करके ही भविष्य में भू-आकृतियों के दुरुपयोग को रोका जा सकता है।
प्रश्न 16.
मृदा एवं मृदा के तत्त्व पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
उत्तर:
मृदा एवं मृदा के तत्त्व : मृदा धरातल पर प्राकृतिक तत्वों का समुच्चय है जिसमें जीवित पदार्थ तथा पौधों को पोषित करने की क्षमता होती है। मृदा गत्यात्मक माध्यम है जिसमें अनेक रासायनिक, भौतिक एवं जैविक क्रियाएँ लगातार चलती रहती हैं। मृदा अपक्षय अपकर्ष का परिणाम है तथा वृद्धि का माध्यम भी है। यह एक विकासोन्मुखी एवं परिवर्तनशील तत्व है। इसकी अनेक विशेषताएँ मौसम के साथ परिवर्तित होती रहती हैं। यह वैकल्पिक रूप से ठण्डी या शुष्क एवं आर्द्र हो सकती है। अधिक ठण्डी या अधिक शुष्क मृदा में जैविक क्रिया मन्द या बन्द हो जाती है। यदि इसमें पत्तियाँ गिरती हैं या घासें सूख जाती हैं तो जैव पदार्थ बढ़ जाते हैं। मृदा जलवायु की दशाओं, भू-आकृतियों एवं वनस्पतियों के साथ अनुकूलित होती रहती है।
निबन्धात्मक प्रश्न-
प्रश्न 1.
भू-आकृतिक प्रक्रियाएँ क्या हैं? इनके प्रकार बताइये तथा अन्तर्जनित प्रक्रियाओं का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
भू-आकृतिक प्रक्रियाएँ : धरातल के पदार्थों पर अन्तर्जनित एवं बहिर्जनिक बलों द्वारा भौतिक दबाव तथा रासायनिक क्रियाओं के कारण भूतल के विन्यास में परिवर्तन को भू-आकृतिक प्रक्रियाएँ कहा जाता है।
भू-आकृतिक प्रक्रियाओं के प्रकार-भू-आकृतिक प्रक्रियाएँ निम्नलिखित दो प्रकार की होती हैं-
- अन्तर्जनित भू-आकृतिक प्रक्रियाएँ : पटल विरूपण तथा ज्वालामुखीयता अन्तर्जनित भूआकृतिक प्रक्रियाएँ
- बहिर्जनिक भू-आकृतिक प्रक्रियाएँ : अपक्षय, वृहत् क्षरण, अपरदन एवं निक्षेपण बहिर्जनिक भू-आकृतिक प्रक्रियाएँ हैं।
अन्तर्जनित भू-आकृतिक प्रक्रियाएँ:
पृथ्वी के आन्तरिक भाग में उत्पन्न होने वाली ऊर्जा भू-आकृतिक प्रक्रियाओं के लिए प्रमुख बल स्रोत होती है। पृथ्वी के आन्तरिक भाग की ऊर्जा अधिकतर रेडियोधर्मी क्रियाओं, घूर्णन एवं ज्वारीय घर्षण तथा पृथ्वी की उत्पत्ति से जुड़ी ऊष्मा के द्वारा उत्पन्न होती है। भूतापीय प्रवणता एवं अन्दर से निकले ऊष्मा प्रवाह से प्राप्त ऊर्जा पटल विरूपण एवं ज्वालामुखी क्रिया को प्रेरित करती है। भूतापीय प्रवणता एवं अन्दर के ऊष्मा प्रवाह, भूपर्पटी की मोटाई एवं दृढ़ता में अन्तर के कारण अन्तर्जनित बलों के कार्य समान नहीं होते हैं। अतः विवर्तनिक द्वारा नियंत्रित मूल भूपर्पटी की सतह असमतल होती है। प्रमुख अन्तर्जनित प्रक्रियाएँ हैं।
1. पटल विरूपण : वे सभी प्रक्रियाएँ जो कि भूपर्पटी को संचलित, उत्थापित तथा निर्मित करती हैं उन्हें पटल विरूपण के अन्तर्गत शामिल किया जाता है। इनमें निम्नलिखित प्रक्रियाएँ शामिल हैं-
- वलन द्वारा पर्वत निर्माण तथा भूपर्पटी की लम्बी एवं संकीर्ण पट्टियों को प्रभावित करने वाली पर्वतनी प्रक्रियाएँ।
- धरातल के बड़े भाग के उत्थापन या विकृति में संलग्न महाद्वीप रचना सम्बन्धी प्रक्रियाएँ।
- अपेक्षाकृत छोटे स्थानीय संचलन के कारण उत्पन्न होने वाले भूकम्प।
- पर्पटी प्लेट के क्षैतिज संचलन करने में प्लेट विवर्तनिकी की भूमिका।
प्लेट विवर्तनिकी अथवा पर्वतनी प्रक्रिया में भूपर्पटी वलन के रूप में तीक्ष्णता से विकृत हो जाती है। महाद्वीप रचना के कारण साधारण विकृति हो सकती है। पर्वतनी, महाद्वीप रचना, भूकम्प एवं प्लेट विवर्तनिक की प्रक्रियाओं से भूपर्पटी में भ्रंश तथा विभंग हो सकता है। इन सभी प्रक्रियाओं के कारण दबाव, आयतन तथा तापमान में परिवर्तन होता है जिसके फलस्वरूप शैलों का कायान्तरण प्रेरित होता है।
2. ज्वालामुखीयता : ज्वालामुखीयता के अन्तर्गत पिघली हुई शैलों या लावा का भूतल की ओर संचलन एवं अनेक आन्तरिक तथा बाह्य ज्वालामुखी स्वरूपों का निर्माण होता है।
प्रश्न 2.
अपक्षय व अपरदन में अन्तर स्पष्ट करते हुए अपक्षय के प्रकारों का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
अपक्षय एवं अपरदन में अन्तर:
अपक्षय एवं अपरदन दोनों अलग-अलग क्रियाएँ हैं। इनमें अन्तर निम्न प्रकार जाना जा सकता है-
अन्तर का आधार | अपक्षय (Weathering) | अपरदन (Erosion) |
1. अर्थ | पृथ्वी की सतह पर प्राकृतिक साधनों द्वारा शैलों के अपने ही स्थान पर यान्त्रिक विधि द्वारा टूटने या रासायनिक अपघटन की प्रक्रिया अपक्षय कहलाती है। | प्रवाही जल (नदी), हिम, पवन, लहरें आदि गतिशील साधन धरातल के ऊपर सक्रिय परतों का होते हुए ऊपरी घर्षण व काट-छांट करते हैं तथा उस पदार्थ का परिवहन भी करते हैं, यह क्रिया अपरदन कहलाती है। |
2. शक्तियों की | अपक्षय स्थैतिक प्रक्रम (Static Process) के द्वारा होता है। | अपरदन गतिशील प्रक्रम (Mobile Process) के द्वारा होता है। |
3. सहायक | अपक्षय प्रारम्भिक प्रक्रम है। यह अपरदन को आसान बनाता है। | अपक्षयित वस्तुओं पर अपरदनकारी शक्तियाँ तीव्रता से कार्य करती हैं। |
4. कारक | (1) भौतिक कारक: (i)सूर्यातप, (ii)जल, (iii)तूषार, (iv)वायु ,(v)दाब। | (1) हिमानियाँ (2) भूमिगत जल (3) नदियाँ (4) समुद्री लहरें तथा धाराएँ (5) पवन आदि। |
(2) रासायनिक कारक : (i)ऑक्सीजन(ii) कार्बन डाइ ऑक्साइड (iii)हाइ- ड्रोजन। | ||
(3) जैविक कारक :(i)वनस्पति (ii)जीव-जन्तु (iii)मानव। |
अपक्षय मुख्यतः तीन प्रकार का होता है-
(1) भौतिक या यांत्रिक अपक्षय
(2) रासायनिक अपक्षय
(3) जैविक
(1) भौतिक या यांत्रिक अपक्षय :
सूर्यातप, तुषार तथा वायु द्वारा चट्टानों में विघटन होने की क्रिया को यांत्रिक अपक्षय कहा जाता है। यांत्रिक अपक्षय में यद्यपि ताप का परिवर्तन सबसे अधिक प्रभावशाली कारक है फिर भी इसके अन्तर्गत दाब मुक्ति, जल का जमना व पिघलना तथा गुरुत्व का भी सहयोग रहता है। यांत्रिक अपक्षय के प्रमुख रूप हैं।
- भारविहीनीकरण एवं विस्तारण
- तापक्रम में परिवर्तन एवं विस्तारण
- हिमकरण, पिघलन एवं तुषार वेजिंग
- लवण अपक्षय।
(2) रासायनिक अपक्षय :
वायुमण्डल के निचले स्तर की सभी गैसें यथा कार्बन डाइऑक्साइड (CO<sub>2</sub>), ऑक्सीजन (O<sub>2</sub>) जलवाष्प (Water Vapour), नाइट्रोजन आदि वर्षा के जल से क्रिया करके रासायनिक अपक्षय को बढ़ावा देती हैं। रासायनिक अपक्षय अधिकतर ऊष्ण एवं आर्द्र प्रदेशों में होता है। अनेक बार भौतिक अपक्षय की तुलना में रासायनिक अपक्षय अधिक होता है लेकिन यह जलवायु तथा चट्टानों की प्रकृति पर निर्भर करता है। रासायनिक अपक्षय धरातल के ऊपर तथा उससे नीचे दोनों जगह होता है। आर्द्र प्रदेशों में तथा चूना- प्रधान चट्टानों में रासायनिक अपक्षय अधिक होता है। रासायनिक अपक्षय निम्नलिखित क्रिया विधियों के अनुसार होता है-
- घोल/विलयन,
- कार्बोनेशन
- जलयोजना
- ऑक्सीकरण एवं न्यूनीकरण।
(3) जैविक अपक्षय :
जीवजन्तु, वनस्पति एवं मानव भी अपक्षय के साधन हैं। जीवजन्तु तो विनाश का कार्य करते हैं परन्तु वनस्पति मिट्टी को बाँधने तथा चट्टानों को तोड़ने का कार्य करती है। मनुष्य भी आर्थिक क्रियाएँ करता हुआ धरती पर तोड़-फोड़ के कार्य किया करता है, जैसे- नहरें, कुएँ, बाँध आदि का निर्माण करना। जैविक कारकों के द्वारा अपक्षय निम्नलिखित प्रकार से सम्पन्न होता है
- जीव जन्तुओं द्वारा अपक्षय
- वनस्पति द्वारा अपक्षय
- मानवकृत अपक्षय
- जैव रासायनिक अपक्षय।
प्रश्न 3.
बृहत् संचलन से क्या अभिप्राय है? इसकी सक्रियता के कारक बताइये।
उत्तर:
बृहत् संचलन-वे सभी संचलन जिनमें शैलों का बृहत् मलबा गुरुत्वाकर्षण के सीधे प्रभाव के कारण ढाल के अनुरूप स्थानान्तरित होता है, बृहत् संचलन के अन्तर्गत शामिल किए जाते हैं।
बृहत् संचलन की गति :
बृहत् संचलन की गति धीमी से तीव्र हो सकती है जिसके फलस्वरूप पदार्थों के छिछले से गहरे स्तंभ प्रभावित होते हैं जिनके अन्तर्गत विसर्पण, बहाव, स्खलन एवं पतन शामिल होते हैं। गुरुत्वाकर्षण बल आधार शैलों एवं अपक्षय से पैदा सभी पदार्थों पर अपना प्रभाव डालता है। बृहत् संचलन अपक्षयित ढालों पर अनपक्षयित पदार्थों की अपेक्षा बहुत अधिक सक्रिय रहता है। बृहत् संचलन में गुरुत्वाकर्षण शक्ति सहायक होती है। इसमें अपरदन कारकों का सीधा सम्बन्ध नहीं होता।
ढाल पर स्थित पदार्थ बाधक बलों के प्रति अपना प्रतिरोध प्रस्तुत करते हैं एवं तभी असफल होते हैं जब बल पदार्थों के अपरूपण प्रतिरोध से महानतर होते हैं। असम्बद्ध कमजोर पदार्थ छिछले संस्तर वाली शैलें, भ्रंश, तीव्रता से झुके हुए संस्तर, खड़े भृगु या तीव्र ढाल, पर्याप्त वर्षा, मूसलाधार वर्षा तथा वनस्पति का अभाव बृहत् संचलन में सहायक होते हैं। बृहत् संचलन की सक्रियता के कारक – बृहत् संचलन की सक्रियता के प्रमुख कारण निम्नलिखित हैं-
- प्राकृतिक एवं कृत्रिम साधनों के द्वारा ऊपर के पदार्थों के टिकने का आधार हटाना।
- ढालों की प्रवणता एवं ऊँचाई में वृद्धि होना।
- पदार्थों के प्राकृतिक एवं कृत्रिम भराव के कारण उत्पन्न अति भार।
- अत्यधिक वर्षा, सन्तृप्ति एवं ढाल के पदार्थों के स्नेहन द्वारा उत्पन्न अति भार।
- मूल ढाल की सतह पर से पदार्थ या भार का हटना।
- भूकम्प आना।
- विस्फोट या मशीनों द्वारा कम्पन उत्पन्न होना।
- झीलों, जलाशयों एवं नदियों से भारी मात्रा में जल निष्कासन एवं फलस्वरूप ढालों एवं नदी तटों के नीचे से जल का मन्द गति से बढ़ना।
- अत्यधिक प्राकृतिक रिसाव।
- प्राकृतिक वनस्पति का अंधाधुंध विनाश होना।
प्रश्न 4.
भूस्खलन का विस्तार से वर्णन कीजिए।
उत्तर:
भूस्खलन : भूस्खलन अपेक्षाकृत तीव्र एवं अवगम्य संचलन है। इसके अन्तर्गत स्खलित होने वाले पदार्थ अपेक्षाकृत शुष्क होते हैं। असंलग्न वृहत् का आकार एवं आकृति शैल में अनिरन्तरता की प्रकृति, क्षरण के अंश तथा ढाल की ज्यामिति पर निर्भर करते हैं। पदार्थों के संचलन के प्रकार के आधार पर अनेक प्रकार के स्खलन होते हैं। यथा-
- अवसर्पण :
जिस ढाल पर संचलन होता है उसके सन्दर्भ में पश्च- आवर्तन के साथ शैल मलबा की एक या अनेक इकाइयों के फिसलन को अवसर्पण कहते हैं। - मलबा स्खलन :
पृथ्वी के पश्च- आवर्तन के बिना मलबा का तीव्र लोटन या स्खलन मलबा स्खलन कहलाता है। मलबा स्खलन में खड़े या प्रलम्बी फलक से मिट्टी मलबा का प्रायः स्वतंत्र पतन होता है। - शैल स्खलन :
संस्तर जोड़ या भ्रंश के नीचे अलग शैल वृहत के स्खलन को शैल स्खलन कहते हैं। तीव्र ढालों पर शैल स्खलन बहुत तीव्र एवं विनाशकारी होता है। - शैल पतन :
तीव्र नति संस्तरण तल जैसे अनिरन्तरताओं के सहारे स्खलन एक समतलीय पात के रूप में घटित होता है। किसी तीव्र ढाल के सहारे शैलखण्डों का ढाल से दूरी रखते हुए स्वतंत्र रूप से गिरना शैल पतन कहलाता है। शैल पतन शैलों के फलक के उथले संस्तर से होता है।
प्रश्न 5.
अपरदन एवं निक्षेपण का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
(1) अपरदन:
शैलों के मलबे की अवाप्ति एवं उनके परिवहन को अपरदन के अन्तर्गत शामिल किया जाता है। शैलें जब अपक्षय एवं अन्य क्रियाओं के कारण छोटे-छोटे टुकड़ों में टूटती हैं तो अपरदन के भू-आकृतिक कारक यथा प्रवाहित जल, भौम जल, हिमानी, वायु, लहरें एवं धाराएँ उनको एक स्थान से हटाकर दूसरे स्थान को ले जाती हैं जो कि इन कारकों के गत्यात्मक स्वरूप पर निर्भर करते हैं। भू-आकृतिक कारकों द्वारा परिवहन किये जाने वाले चट्टानी मलबे के द्वारा अपघर्षण भी अपरदन में पर्याप्त योगदान देता है।
अपरदन के द्वारा उच्चावच का निम्नीकरण होता है अर्थात् भू-दृश्य विघर्षित होते हैं। अपरदन एवं परिवहन जैसी अनाच्छादन प्रक्रियाएँ गतिज ऊर्जा द्वारा नियंत्रित होती हैं। गतिज ऊर्जा पदार्थ की मात्रा व उसके वेग पर निर्भर करती है। अपरदन के कारक धरातल के पदार्थों का अपरदन एवं परिवहन वायु, प्रवाहशील जल, हिमानी, लहरों एवं धाराओं तथा भूमिगत जल के द्वारा होता है। इनमें से प्रथम तीन कारक जलवायवीय दशाओं के द्वारा नियंत्रित होते हैं । यह कारक पदार्थों की क्रमशः तीन अवस्थाओं यथा गैसीय, तरल एवं ठोस का प्रतिनिधित्व करते हैं।
(2) निक्षेपण :
अपरदन का परिणाम निक्षेपण होता है। ढाल में कमी के कारण जब अपरदन के कारकों के वेग में कमी आ जाती है तो परिणामतः अवसादों का निक्षेपण अर्थात् जमाव शुरू हो जाता है। अतः निक्षेपण वस्तुतः किसी कारक का कार्य नहीं होता है। पहले बड़े व भारी तथा बाद में छोटे पदार्थ निक्षेपित होते हैं। निक्षेपण से निम्न भूभाग भर जाते हैं। वहीं अपरदन के कारक, यथा- प्रवाहयुक्त जल, हिमानी, वायु, लहरें, धाराएँ एवं भूमिगत जल आदि निक्षेपण के कारक के रूप में भी कार्य करने लग जाते हैं।
प्रश्न 6.
मृदा निर्माण के कारकों का विवेचन कीजिए।
उत्तर:
मृदा निर्माण के कारक
मृदा निर्माण के कारक संयुक्त रूप से कार्यरत रहते हैं एवं एक-दूसरे के कार्य को प्रभावित करते हैं। मृदा निर्माण निम्न पांच मूल कारकों के द्वारा नियंत्रित होता है।
(1) जलवायु :
जलवायु मृदा निर्माण का एक महत्त्वपूर्ण सक्रिय कारक है। मृदा के विकास में संलग्न जलवायवीय तत्त्वों में ये प्रमुख हैं-
- वणता, वर्षा एवं वाष्पीकरण की बारम्बारता, अवधि व आर्द्रता।
- तापमान में मौसमी एवं दैनिक अन्तर।
(2) मूल पदार्थ अथवा शैल:
मूल शैल मृदा निर्माण में एक निष्क्रिय नियंत्रक कारक है। मूल शैल उसी स्थान पर अपक्षयित शैल मलबा या लाये गये निक्षेप हो सकती है। मृदा निर्माण गठन, संरचना तथा शैल निक्षेप के खनिज एवं रासायनिक संयोजन पर निर्भर करता है। शैल में अपक्षय की प्रकृति एवं उसकी दर तथा आवरण की गहराई एवं मोटाई प्रमुख तत्व होते हैं। समान आधार शैल पर मृदाओं में अन्तर हो सकता है तथा असमान आधार पर समान मृदाएँ मिल सकती हैं। लेकिन जब मृदाएँ बहुत नवीन तथा अपरिपक्व होती हैं तो मृदाओं एवं मूल शैलों के प्रकार में घनिष्ठ सम्बन्ध होता है।
(3) स्थलाकृति अर्थात् उच्चावच:
स्थलाकृति भी मृदा निर्माण में निष्क्रिय कारक है। स्थलाकृति मूल पदार्थ के आच्छादन अथवा अनावृत होने को सूर्य की किरणों के सम्बन्ध में प्रभावित करती है तथा स्थलाकृति धरातलीय एवं उप सतही अप्रवाह की प्रक्रिया को मूल पदार्थ के सम्बन्ध में भी प्रभावित करती है। तीव्र ढालों पर मृदा छिछली तथा सपाट उच्च क्षेत्रों में गहरी व मोटी होती है। निम्न ढालों जहाँ अपरदन मंद तथा जल का परिश्रवण अच्छा रहता है मृदा निर्माण बहुत अनुकूल होता है। समतल क्षेत्रों में चीका मिट्टी का विकास होता है जिसमें जैव पदार्थ पर्याप्त मात्रा में मिलते हैं। इसी प्रकार सूर्योन्मुखी एवं विमुख ढालों पर भी मिट्टी में भिन्नता मिलती है।
(4) जैविक क्रियाएँ:
वनस्पति आवरण एवं जीव मृदा में जैव पदार्थ, नमी धारण की क्षमता तथा नाइट्रोजन आदि जोड़ने में सहायक होते हैं। मृत पौधे मृदा को सूक्ष्म विभाजित जैव पदार्थ ह्यमस प्रदान करते हैं। बैक्टीरियल वृद्धि धीमी होने के कारण ठण्डी जलवायु में ह्यूमस एकत्रित हो जाता है। बैक्टीरिया एवं मृदा के जीव हवा से गैसीय नाइट्रोजन प्राप्त करके उसे रासायनिक रूप में परिवर्तित कर देते हैं जिसका पौधों के द्वारा उपयोग किया जाता है। चींटी, दीमक, केंचुए, कृतंक आदि कीटों का अभियांत्रिकी कार्य मृदा निर्माण में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
(5) कालावधि :
कालावधि मृदा निर्माण का महत्त्वपूर्ण कारक है। मृदा की परिपक्वता एवं उसकी पारिवका का विकास कालावधि पर निर्भर करता है। एक मृदा तभी परिपक्व होती है जब मृदा निर्माण की सभी प्रक्रियाएँ लम्बे समय तक पारिवका का विकास करते हुए कार्यरत रहती हैं। कुछ समय पूर्व निक्षेपित जलोढ़ मिट्टी या हिमानी टिल से विकसित मिट्टियाँ युवा मानी जाती हैं तथा उनमें संस्तर का अभाव होता है अथवा कम विकसित संस्तर मिलता है।