Understanding the question and answering patterns through NCERT Class 11 Geography Question Answer in Hindi Chapter 5 जलवायु will prepare you exam-ready.
Class 11 Geography Chapter 5 in Hindi Question Answer जलवायु
अन्य महत्त्वपूर्ण प्रश्न
बहुविकल्पीय प्रश्न
1. पन्ना जीव मंडल निचय किस राज्य में स्थित है?
(अ) राजस्थान
(ब) महाराष्ट्र
(स) मध्यप्रदेश
(द) केरल
उत्तर:
(स) मध्यप्रदेश
2. अगस्त्यमलाई जीव मंडल निचय किस राज्य में स्थित है?
(अ) केरल
(ब) राजस्थान
(स) तमिलनाडु
(द) मेघालय
उत्तर:
(अ) केरल
3. उष्ण कटिबंधीय कांटेदार वन कितनी वर्षा वाले क्षेत्रों में पाए जाते हैं?
(अ) 200 सेमी.
(ब) 100-150 सेमी.
(स) 50 सेमी. से कम
(द) 50 सेमी. से अधिक
उत्तर:
(स) 50 सेमी. से कम
4. उष्ण कटिबंधीय कांटेदार वन किन राज्यों में पाए जाते हैं?
(अ) हरियाणा
(ब) राजस्थान
(स) गुजरात
(द) उपरोक्त सभी
उत्तर:
(द) उपरोक्त सभी
5. पूर्वी तट पर स्थित लैगून झील है-
(अ) चिलका झील
(ब) डल झील
(स) सांभर झील
(द) राजसमन्द झील
उत्तर:
(अ) चिलका झील
6. केउलादेव राष्ट्रीय पार्क कहाँ स्थित है?
(अ) जयपुर (राजस्थान )
(ब) भरतपुर (राजस्थान)
(स) उदयपुर (राजस्थान)
(द) अलवर (राजस्थान)
उत्तर:
(ब) भरतपुर (राजस्थान)
7. वन नीति के अनुसार भारत के कितने प्रतिशत भाग पर वन होने चाहिए?
(अ) 20 प्रतिशत
(ब) 33 प्रतिशत
(स) 43 प्रतिशत
(द) 50 प्रतिशत
उत्तर:
(ब) 33 प्रतिशत
8. वन्य जीव अधिनियम किस वर्ष पारित हुआ?
(अ) 1972
(ब) 1982
(स) 1992
(द) 2002
उत्तर:
(अ) 1972
9. प्रोजेक्ट टाइगर योजना किस वर्ष से चलाई जा रही है?
(अ) 1963
(ब) 1973
(स) 1976
(द) 1982
उत्तर:
(ब) 1973
10. निम्न में से किस क्षेत्र में उष्ण कटिबंधीय सदाबहार वन पाए जाते हैं?
(अ) पश्चिमी घाट के पश्चिमी ढाल
(ब) हिमालय के गिरिपद क्षेत्र
(स) ओडिशा
(द) दक्षिणी-पश्चिमी पंजाब
उत्तर:
(अ) पश्चिमी घाट के पश्चिमी ढाल
11. भारत के दक्षिणी-पूर्वी तट पर स्थित जीवमण्डल निचय है
(अ) मन्नार की खाड़ी का जीवमण्डल निचय
(ब) सुन्दरवन जीवमण्डल निचय
(द) नीलगिरी जीवमण्डल निचय
(स) नन्दा देवी जीवमण्डल निचय
उत्तर:
(अ) मन्नार की खाड़ी का जीवमण्डल निचय
12. निम्न में से कौनसी संकटापन्न प्रजाति मन्नार की खाड़ी के जीवमण्डल निचय में पाई जाती है-
(अ) समुद्री गाय
(ब) चीतल
(स) भौंकने वाले मृग
(द) काला भालू
उत्तर:
(अ) समुद्री गाय
13. सुन्दरवन जीवमण्डल निचय निम्नलिखित में से किस प्रान्त में स्थित है—
(अ) महाराष्ट्र
(ब) मध्य प्रदेश
(स) गुजरात
(द) पश्चिमी बंगाल
उत्तर:
(द) पश्चिमी बंगाल
14. चिलका राष्ट्रीय पार्क जिस राज्य में है, वह है-
(अ) उड़ीसा
(ब) गुजरात
(स) मध्य प्रदेश
(द) पश्चिमी बंगाल
उत्तर:
(अ) उड़ीसा
15. पंचमढ़ी जीवमण्डल निचय जिस प्रान्त में है, वह है
(अ) मध्य प्रदेश
(ब) महाराष्ट्र
(स) गुजरात
(द) उड़ीसा
उत्तर:
(अ) मध्य प्रदेश
रिक्त स्थान वाले प्रश्न
नीचे दिए गए प्रश्नों में रिक्त स्थानों की पूर्ति कीजिए-
1. उष्ण कटिबंधीय पर्णपाती वनों को _____ वन भी कहा जाता है। (मानसून/सदाहरित)
2. वेलांचली व अनूप वन के 70 प्रतिशत भाग पर _____ की खेती की जाती है। (चावल/गेहूँ)
3. वन नीति के अनुसार देश में _____ प्रतिशत भाग पर वन होने चाहिए। (25/33)
4. भारत में वन्य प्राणी अधिनियम _____ में पास हुआ। (1972/1976)
5. _____ जीव मंडल निचय भारत का पहला जीव मंडल निचय है। (नीलगिरी / नंदा देवी)
6. भारत में प्रोजेक्ट टाइगर योजना वर्ष _____ से चलायी जा रही है। (1973/1992)
उत्तर:
1. उष्ण कटिबंधीय पर्णपाती वनों को मानसून वन भी कहा जाता है।
2. वेलांचली व अनूप वन के 70 प्रतिशत भाग पर चावल की खेती की जाती है।
3. वन नीति के अनुसार देश में 33 प्रतिशत भाग पर वन होने चाहिए।
4. भारत में वन्य प्राणी अधिनियम 1972 में पास हुआ।
5. नीलगिरी जीव मंडल निचय भारत का पहला जीव मंडल निचय है।
6. भारत में प्रोजेक्ट टाइगर योजना वर्ष 1973 से चलायी जा रही है।
सत्य / असत्य वाले प्रश्न-
नीचे दिए गए वाक्यों में से सत्य / असत्य कथन छाँटिए-
1. उष्ण कटिबंधीय पर्णपाती वनों में वार्षिक वर्षा 70 से 200 सेंटीमीटर होती है
2. सुंदरवन जीव मंडल निचय पश्चिमी बंगाल में गंगा नदी के दलदली डेल्टा पर स्थित है।
3. नंदा देवी जीव मंडल निचय मध्य प्रदेश में स्थित है।
4. नीलगिरी जीव मंडल निचय की स्थापना 1986 में हुई थी।
5. भारत सरकार ने पूरे देश के लिए वन संरक्षण नीति 1952 में लागू की थी।
6. इंडिया स्टेट फॉरेस्ट रिपोर्ट 2011 के अनुसार वास्तविक वन आवरण 31.05 प्रतिशत है।
उत्तर:
1. उष्ण कटिबंधीय पर्णपाती वनों में वार्षिक वर्षा 70 से 200 सेंटीमीटर होती है(सत्य)
2. सुंदरवन जीव मंडल निचय पश्चिमी बंगाल में गंगा नदी के दलदली डेल्टा पर स्थित है। (सत्य)
3. नंदा देवी जीव मंडल निचय मध्य प्रदेश में स्थित है। (असत्य)
4. नीलगिरी जीव मंडल निचय की स्थापना 1986 में हुई थी। (सत्य)
5. भारत सरकार ने पूरे देश के लिए वन संरक्षण नीति 1952 में लागू की थी। (सत्य)
6. इंडिया स्टेट फॉरेस्ट रिपोर्ट 2011 के अनुसार वास्तविक वन आवरण 31.05 प्रतिशत है। (असत्य)
मिलान करने वाले प्रश्न-
निम्न को सुमेलित कीजिए-
1. नंदा देवी जीव मंडल निचय | (अ) पश्चिम बंगाल |
2. नोकरेक जीव मंडल निचय | (ब) ओडिसा |
3. मानस जीव मंडल निचय | (स) मध्यप्रदेश |
4. सुन्दरवन जीव मंडल निचय | (द) उत्तराखण्ड |
5. सिमिलीपाल जीव मंडल निचय | (य) मेघालय |
6. पंचमढी जीव मंडल निचय | (र) असम |
उत्तर:
1. नंदा देवी जीव मंडल निचय | (द) उत्तराखण्ड |
2. नोकरेक जीव मंडल निचय | (य) मेघालय |
3. मानस जीव मंडल निचय | (र) असम |
4. सुन्दरवन जीव मंडल निचय | (अ) पश्चिम बंगाल |
5. सिमिलीपाल जीव मंडल निचय | (ब) ओडिसा |
6. पंचमढी जीव मंडल निचय | (स) मध्यप्रदेश |
अतिलघूत्तरात्मक प्रश्न-
प्रश्न 1.
हिमालय पर्वतों पर उगने वाली प्राकृतिक वनस्पति का प्रकार बताइये।
उत्तर:
हिमालय पर्वतों पर शीतोष्ण कटिबंधीय वनस्पति उगती है
प्रश्न 2.
पश्चिमी घाट तथा अण्डमान और निकोबार द्वीप समूह में कौनसे प्रकार के वन पाए जाते हैं?
उत्तर:
पश्चिमी घाट तथा अण्डमान और निकोबार द्वीप समूह में उष्ण कटिबंधीय वर्षा वन पाए जाते हैं।
प्रश्न 3.
भारत में उष्ण कटिबंधीय सदाबहार वन कहाँ पाए जाते हैं?
उत्तर:
भारत में उष्ण कटिबंधीय सदाबहार वन पश्चिमी घाट के पश्चिमी ढाल, उत्तरी-पूर्वी क्षेत्र की पहाड़ियों तथा अण्डमान निकोबार द्वीप समूह में पाए जाते हैं।
प्रश्न 4.
उष्ण कटिबंधीय सदाबहार वनों की भौगोलिक दशाएँ बताइये।
उत्तर:
उष्ण कटिबंधीय सदाबहार वनों के लिए वार्षिक वर्षा 200 सेन्टीमीटर से अधिक तथा औसत वार्षिक तापमान 22° सेल्शियस से अधिक होना चाहिए।
प्रश्न 5.
उष्ण कटिबंधीय सदाबहार वनों में मिलने वाली मुख्य वृक्ष प्रजातियों के नाम बताइये।
उत्तर:
रोजवुड, महोगनी, ऐनी और एबनी उष्ण कटिबंधीय सदाबहार वनों में मिलने वाली मुख्य वृक्ष प्रजातियाँ हैं।
प्रश्न 6.
अर्द्ध- सदाबहार वन कौन – कौनसे वनों के मिश्रित रूप हैं?
उत्तर:
अर्द्ध-सदाबहार वन सदाबहार वन और अर्द्ध-पर्णपाती वनों के मिश्रित रूप हैं।
प्रश्न 7.
अर्द्ध- सदाबहार वनों की मुख्य वृक्ष प्रजातियों के नाम लिखिये।
उत्तर:
साइडर, होलक तथा कैल अर्द्ध-सदाबहार वनों की मुख्य वृक्ष प्रजातियाँ हैं।
प्रश्न 8.
भारत में आर्द्र पर्णपाती वन कहाँ पाए जाते हैं?
उत्तर:
ये वन उत्तर-पूर्वी राज्यों, हिमालय के गिरिपद, पश्चिमी घाट के पूर्वी ढालों और उड़ीसा राज्य में जाते हैं।
प्रश्न 9.
आर्द्र पर्णपाती वनों में पाए जाने वाले वृक्षों के नाम बताइए।
उत्तर:
आर्द्र पर्णपाती वनों में सागवान, साल, शीशम, हुर्रा, महुआ, आँवला, सेमल, कुसुम और चन्दन आदि प्रजातियों के वृक्ष प्रमुख रूप से पाए जाते हैं।
प्रश्न 10.
राजस्थान के पश्चिमी और दक्षिणी भागों में प्राकृतिक वनस्पति कम क्यों पाई जाती है?
उत्तर:
राजस्थान के पश्चिमी और दक्षिणी भागों में कम वर्षा और अत्यधिक पशुचारण के कारण प्राकृतिक वनस्पति बहुत कम पाई जाती है।
प्रश्न 11.
जल उपलब्धता के आधार पर उष्ण कटिबंधीय पर्णपाती वनों के प्रकार बताइये।
उत्तर:
जल उपलब्धता के आधार पर उष्ण कटिबंधीय पर्णपाती वनों को आर्द्र और शुष्क पर्णपाती वनों में विभाजित किया जाता है।
प्रश्न 12.
भारत में कौनसे वन बहुतायत में पाए जाते हैं?
उत्तर:
भारत में उष्ण कटिबंधीय पर्णपाती वन बहुतायत में पाए जाते हैं।
प्रश्न 13.
उष्ण कटिबंधीय पर्णपाती वनों को किस नाम से जाना जाता है?
उत्तर:
उष्ण कटिबंधीय पर्णपाती वनों को मानसून वन के नाम से भी जाना जाता है।
प्रश्न 14.
भारत में शुष्क पर्णपाती वन कहाँ पाए जाते हैं?
उत्तर:
भारत में शुष्क पर्णपाती वन प्रायद्वीप में अधिक वर्षा वाले भागों और उत्तर प्रदेश व बिहार के मैदानी भागों में पाए जाते हैं।
प्रश्न 15. शुष्क पर्णपाती वनों में मिलने वाले प्रमुख वृक्षों के नाम बताइये।
उत्तर:
तेन्दू, पलास, अमलतास, बेल, खैर व अक्सलवुड आदि शुष्क पर्णपाती वनों में मिलने वाले प्रमुख वृक्ष हैं।
प्रश्न 16.
भारत में उष्ण कटिबंधीय काँटेदार वन कहाँ पाए जाते हैं?
उत्तर:
भारत में दक्षिण-पश्चिमी पंजाब, हरियाणा, राजस्थान, गुजरात, मध्य प्रदेश और उत्तर प्रदेश के अर्द्ध शुष्क क्षेत्र में उष्ण कटिबंधीय काँटेदार वन पाए जाते हैं।
प्रश्न 17.
उष्ण कटिबंधीय काँटेदार वनों में पाए जाने वाले वृक्षों के नाम बताइये।
उत्तर:
उष्ण कटिबंधीय काँटेदार वनों में पाई जाने वाली मुख्य वृक्ष प्रजातियाँ बबूल, बेर, खजूर, कैर, नीम, खेजड़ी और पलास आदि हैं।
प्रश्न 18.
शोलास वन से क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
नीलगिरि, अन्नामलाई और पालनी पहाड़ियों पर पाए जाने वाले शीतोष्ण कटिबंधीय वनों को ‘शोलास’ के नाम से जाना जाता है।
प्रश्न 19.
शोलास वनों में पाए जाने वाले वृक्षों के नाम बताइये।
उत्तर:
शोलास वनों में मगनोलिया, लैरेल, सिनकोना तथा वैटल आदि आर्थिक महत्व के वृक्ष पाए जाते हैं।
प्रश्न 20.
भारत में मैंग्रोव वन कहाँ पाए जाते हैं?
उत्तर:
भारत में मैंग्रोव वन अण्डमान और निकोबार द्वीप समूह व पश्चिमी बंगाल के सुन्दर वन डेल्टा में पाए जाते हैं।
प्रश्न 21.
भारत में मैंग्रोव वन के अन्तर्गत क्षेत्र बताइये।
उत्तर:
भारत में मैंग्रोव वन 6,740 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में फैले हुए हैं जो कि विश्व के मैंग्रोव क्षेत्र का 7 प्रतिशत है।
प्रश्न 22.
राजस्व विभाग के आँकड़ों के अनुसार भारत में कितने प्रतिशत भाग पर वन हैं?
उत्तर:
राजस्व विभाग से प्राप्त आँकड़ों के अनुसार भारत में 23.28 प्रतिशत भाग पर वन हैं।
प्रश्न 23.
वन क्षेत्र व वन आवरण में अन्तर कीजिए।
उत्तर:
वन क्षेत्र राजस्व विभाग के अनुसार अधिसूचित क्षेत्र होता है जिसमें वृक्ष हो या न हो यह आवश्यक नहीं है जबकि वन आवरण प्राकृतिक वनस्पति का झुरमुट है और वास्तविक रूप में वनों से ढका है।
प्रश्न 24.
भारत में 10 प्रतिशत से कम वन क्षेत्र वाले राज्यों के नाम बताइये।
उत्तर:
राजस्थान, गुजरात, पंजाब, हरियाणा और दिल्ली इस प्रकार के राज्य हैं
प्रश्न 25.
वन आवरण की पहचान किससे की जाती है?
उत्तर:
वन आवरण की पहचान वायु फोटो चित्रों तथा उपग्रह से प्राप्त चित्रों से की जाती है।
प्रश्न 26.
कश्मीर के हस्तशिल्प उद्योग में कौन-कौनसे वृक्षों की लकड़ी प्रयुक्त की जाती है?
उत्तर:
कश्मीर के हस्तशिल्प उद्योग में चिनार और वालन वृक्षों की लकड़ी प्रयुक्त की जाती है।
प्रश्न 27.
भारत में विभिन्न प्रकार के पारिस्थितिकी तंत्र क्यों पाए जाते हैं?
उत्तर:
भारत में बड़े पैमाने पर जैव विविधता पाए जाने के कारण यहाँ विभिन्न प्रकार के पारिस्थितिक तंत्र पाए जाते हैं।
प्रश्न 28.
भारत में वन्य प्राणी अधिनियम, 1972 के दो उद्देश्य बताइये।
उत्तर:
- अधिनियम के तहत अनुसूची में सूचीबद्ध संकटापन्न प्रजातियों को सुरक्षा प्रदान करना।
- नेशनल पार्क, पशु विहार जैसे संरक्षित क्षेत्रों को कानूनी सहायता प्रदान करना।
प्रश्न 29.
भारत में नेशनल पार्क और वन्य प्राणी अभयवन की संख्या बताइये।
उत्तर:
भारत में 103 नेशनल पार्क और 535 वन्य प्राणी अभयवन हैं।
प्रश्न 30.
उस योजना का नाम बताइये जिसके तहत भारत सरकार ने वनस्पति जात एवं प्राणी जात के संरक्षण के लिए कदम उठाए हैं
उत्तर:
यूनेस्को के मानव और जीवमण्डल कार्यक्रम के तहत भारत सरकार ने वनस्पति जात और प्राणी जात के संरक्षण के लिए महत्त्वपूर्ण कदम उठाए हैं।
प्रश्न 31.
भारत में प्रोजेक्ट टाइगर योजना की शुरुआत कब हुई?
उत्तर:
भारत में सन् 1973 से प्रोजेक्ट टाइगर योजना, चलाई जा रही है।
प्रश्न 32.
नीलगिरी जीवमण्डल निचय में पाए जाने वाली वन्य जीव प्रजातियों के नाम बताइये।
उत्तर:
नीलगिरी जीवमण्डल निचय में नीलगिरी ताहर तथा शेर के समान दुम वाले बन्दर, हाथी, गौर, सांभर और चीतल पाए जाते हैं।
प्रश्न 33.
नन्दा देवी जीवमण्डल निचय में पाए जाने वाले वन्य जीवों के नाम बताइए।
उत्तर:
नन्दा देवी जीवमण्डल निचय में हिम तेन्दुआ, काला भालू, भूरा भालू, कस्तूरी मृग, हिम- मुर्गा, सुनहरा बाज और काला बाज आदि पाए जाते हैं।
प्रश्न 34.
प्राकृतिक वनस्पति कहाँ पाई जाती है?
उत्तर:
प्राकृतिक वनस्पति पर्वतीय क्षेत्र, मरुस्थल तथा डेल्टाई भागों में जहाँ मनुष्य का हस्तक्षेप नहीं होता है, उन भागों में पायी जाती है।
प्रश्न 35.
हिमालय क्षेत्र की वनस्पति को कितने प्रकारों में वर्गीकृत किया गया है? उनके नाम बताइये।
उत्तर:
- उष्ण कटिबंधीय
- उपोष्ण कटिबंधीय
- शीतोष्ण कटिबंधीय
- अल्पाइन।
प्रश्न 36.
प्रायद्वीपीय भारत में पर्वतीय वनस्पति के क्षेत्र बताइये।
उत्तर:
- पश्चिमी घाट
- विंध्याचल श्रेणी
- नीलगिरि।
प्रश्न 37.
भारत की प्राकृतिक वनस्पति में विविधता क्यों पाई जाती है?
उत्तर:
भारत में तापमान, वर्षा, मिट्टी विभिन्न स्थानों पर भिन्न प्रकार की पाई जाती है, इसलिए यहाँ प्राकृतिक वनस्पति में विविधता पाई जाती है।
लघूत्तरात्मक प्रश्न
प्रश्न 1.
प्राकृतिक वनस्पति से क्या आशय है? स्पष्ट कीजिये।
उत्तर:
प्राकृतिक वनस्पति का अर्थ :
प्राकृतिक वनस्पति से अभिप्राय उस पौधा समुदाय से है जो कि लम्बे समय तक बिना किसी बाहरी हस्तक्षेप के उगता है और इसकी विभिन्न प्रजातियाँ वहाँ पाई जाने वाली मिट्टी और जलवायु परिस्थितियों में यथासम्भव स्वयं को ढाल लेती हैं।
प्रश्न 2.
भारत में प्राकृतिक वनस्पति के विभिन्न प्रकार बताइये।
उत्तर:
प्राकृतिक वनस्पति के प्रकार : भारत में मिट्टी और जलवायु में विभिन्नता के कारण निम्नलिखित
प्रकार की प्राकृतिक वनस्पति पाई जाती है-
- हिमालय पर्वतीय क्षेत्र पर शीतोष्ण कटिबंधीय वनस्पति पैदा होती है।
- पश्चिमी घाट और अण्डमान निकोबार द्वीप समूह में उष्ण कटिबंधीय वर्षा वन पाए जाते हैं।
- डेल्टा क्षेत्रों में उष्ण कटिबंधीय वन व मैंग्रोव वनस्पति पाई जाती है।
- राजस्थान के मरुस्थलीय और अर्द्ध मरुस्थलीय क्षेत्रों में विभिन्न प्रकार की झाड़ियाँ, कैक्टस और काँटेदार वनस्पति पाई जाती है।
प्रश्न 3.
उष्ण कटिबंधीय सदाबहार वन वर्ष भर हरे-भरे क्यों दिखलाई देते हैं?
उत्तर:
उष्ण कटिबंधीय वन सघन और परतों वाले होते हैं जहाँ भूमि के नजदीक झाड़ियाँ और बेलें होती हैं तथा इनके ऊपर छोटे कद वाले पेड़ और सबसे ऊपर लम्बे पेड़ होते हैं। चूँकि इन पेड़ों के पत्ते झड़ने, फूल आने और फल लगने का समय अलग-अलग होता है, इसी कारण ये वन वर्ष भर हरे-भरे दिखलाई देते हैं।
प्रश्न 4.
वन संरक्षण के लिए उपाय सुझाइये उत्तर-वन संरक्षण के प्रमुख उपाय निम्न प्रकार हैं-
उत्तर:
- अवैध वन कटाई को सख्ती से रोकना चाहिए।
- सामाजिक वानिकी एवं वनरोपण द्वारा वन आवरण का विस्तार करना।
- लकड़ी के स्थान पर अन्य वस्तुओं के उपयोग को बढ़ावा देना।
- वन संरक्षण के लिए लोगों को जागरूक करना।
- मृदा अपरदन एवं मरुस्थलीकरण को रोकने के उपाय करने चाहिए।
प्रश्न 5.
शहरी वानिकी से क्या आशय हैं? स्पष्ट कीजिये।
उत्तर:
शहरी वानिकी:
शहरों और उनके आसपास निजी व सार्वजनिक भूमि यथा हरित पट्टी, पार्क, सड़कों के साथ जगह, औद्योगिक व व्यापारिक स्थलों पर वृक्ष लगाना और उनका प्रबन्धन करना शहरी वानिकी के नाम से जाना जाता है।
प्रश्न 6.
फार्म वानिकी से क्या अभिप्राय है? स्पष्ट कीजिये।
उत्तर:
फार्म वानिकी :
फार्म वानिकी के अन्तर्गत किसान अपने खेतों में व्यापारिक महत्व वाले या दूसरे पेड़ लगाते हैं। वन विभाग इसके लिए छोटे और मध्यम किसानों को निःशुल्क पौधे उपलब्ध करवाता है। इस योजना के अन्तर्गत अनेक प्रकार की भूमि यथा खेतों की मेड़ें, चरागाह, घास स्थल, घर के पास पड़ी खाली जमीन और पशुओं के बाड़ों में भी पेड़ लगाए जाते हैं।
प्रश्न 7.
भारत में अंग्रेजों ने वनों का व्यापारिक इस्तेमाल किस प्रकार किया? स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
अंग्रेज भारत में वनों की आर्थिक महत्ता को समझते थे और इसी कारण उन्होंने इनका बड़े पैमाने पर दोहन करना शुरू किया। इससे वनों की संरचना भी परिवर्तित होती चली गई। उन्होंने गढ़वाल और कुमाऊँ में पाए जाने वाले ओक के स्थान पर चीड़ के पेड़ उगाये जो कि रेल की पटरी बिछाने के लिए अति आवश्यक थे। चाय, कॉफी तथा रबड़ के बागान लगाने के लिए भी वनों को साफ किया गया। लकड़ी के ऊष्मा – रोधी होने के कारण अंग्रेजों ने इसका उपयोग भवन निर्माण में भी प्रचुर मात्रा में किया। इस प्रकार संरक्षण के स्थान पर अंग्रेजों ने वनों का व्यापारिक उपयोग किया।
प्रश्न 8.
भारत में वन्य प्राणियों की संख्या कम होने के मुख्य कारण बताइये।
उत्तर:
भारत में वन्य प्राणियों की संख्या कम होने के मुख्य कारण निम्नलिखित हैं-
- औद्योगिक और तकनीकी विकास के कारण वनों के दोहन की गति तीव्र हो गई।
- कृषि, मानवीय आवास, सड़कों, खदानों, जलाशयों आदि के लिए भूमि से वनों को साफ किया गया।
- स्थानीय निवासियों द्वारा चारा, ईंधन और इमारती लकड़ी प्राप्त करने के लिए वनों से पेड़ों को काटा तथा वनों पर दबाव बढ़ाया।
- पालतू पशुओं के लिए नवीन चरागाहों की खोज में मानव ने वन्य जीवों और उनके आवासों को नष्ट कर दिया।
- रजवाड़ों और सम्भ्रान्त वर्ग ने शिकार को क्रीड़ा बनाया तथा एक ही बार में सैकड़ों वन्य जीवों को अपना शिकार बनाया। व्यापारिक महत्त्व के लिए वर्तमान में भी पशुओं का वध किया जा रहा है।
- जंगलों में आग लगने से भी वन और वन्य प्राणियों की प्रजातियाँ नष्ट हुई हैं।
प्रश्न 9.
भारत में प्राकृतिक वनस्पति का वितरण किस प्रकार वर्षा के वार्षिक वितरण पर आश्रित है? स्पष्ट कीजिये।
उत्तर:
जलवायु की परिवर्तिता विशेष रूप से वर्षा की मात्रा में अन्तर होने के कारण भारत के विभिन्न भागों में विभिन्न प्रकार की प्राकृतिक वनस्पति पाई जाती है। पूर्वी एवं पश्चिमी हिमालय, पश्चिमी घाट के पूर्वी और पश्चिमी ढालों तथा भारत के उत्तरी-पश्चिमी मैदानों एवं गंगा के मध्यवर्ती व निचले मैदानों में भी वर्षा की मात्रा के परिवर्तन के साथ ही वनस्पति के स्वरूप में परिवर्तन हो जाता है। राजस्थान के अल्प वर्षा वाले मरुस्थलीय तथा अर्द्ध मरुस्थलीय भागों में खेजड़ी वृक्ष, झाड़ियाँ तथा काँटेदार वृक्ष प्रमुख रूप से पाए जाते हैं।
प्रश्न 10.
कृषि वानिकी एवं समुदाय वानिकी में अन्तर स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
कृषि वानिकी:
कृषि योग्य तथा बंजर भूमि पर पेड़ और फसलें एक साथ लगाना कृषि वानिकी कहलाता है। इसका अभिप्राय वानिकी और खेती एक साथ करना जिससे खाद्यान्न, चारा, इमारती लकड़ी और फलों का उत्पादन एक साथ किया जाना है।
समुदाय वानिकी:
समुदाय वानिकी में सार्वजनिक भूमि यथा गाँव – चरागाह, मन्दिर – भूमि, सड़कों के दोनों तरफ, नहर के किनारे, रेल की पटरी के साथ तथा विद्यालयों में पेड़ लगाना शामिल है। इसका उद्देश्य पूरे समुदाय को लाभ पहुँचाना है। इस योजना का एक प्रमुख उद्देश्य भूमि विहीन लोगों को वानिकीकरण से जोड़ना है जिससे कि उनको भूस्वामियों के समान लाभ हो सकें।
प्रश्न 11.
भारत की वन नीति के प्रमुख उद्देश्य बताइये।
उत्तर:
भारत में वन नीति के प्रमुख उद्देश्य निम्नलिखित हैं-
- देश में 33 प्रतिशत भाग पर वन लगाना जो कि वर्तमान राष्ट्रीय स्तर से 6 प्रतिशत अधिक है।
- पर्यावरण सन्तुलन बनाए रखना तथा पारिस्थितिक असन्तुलित क्षेत्रों में वन लगाना।
- देश की प्राकृतिक धरोहर, जैव विविधता तथा आनुवांशिक पूल का संरक्षण करना।
- मृदा अपरदन और मरुस्थलीकरण को रोकना तथा बाढ़ एवं सूखा नियंत्रण के उपाय करना।
- निम्नीकृत भूमि पर सामाजिक वानिकी एवं वनारोपण द्वारा वन आवरण का विस्तार करना।
- वनों की उत्पादकता में वृद्धि करके वनों पर निर्भर ग्रामीण जनजातियों को इमारती लकड़ी, ईंधन, चारा और भोजन उपलब्ध करवाना तथा लकड़ी के स्थान पर अन्य वस्तुओं का प्रयोग करना।
- पेड़ लगाने को बढ़ावा देने के लिए पेड़ों की कटाई रोकने के लिए जन-आन्दोलन चलाना जिसमें महिलाओं की भागीदारी सुनिश्चित करना जिससे वनों पर दबाव कम हो।
प्रश्न 12.
जलवायु की किन परिस्थितियों में सदाबहार वन उगते हैं? इन वनों की विशेषताएँ बताते हुए इनमें पाये जाने वाले प्रमुख वृक्षों के नाम लिखिए।
उत्तर:
सदाबहार वनों के लिए उपयुक्त जलवायवी परिस्थितियाँ- सदाबहार वन उष्ण- आर्द्र जलवायु में मिलते हैं। इन क्षेत्रों में वार्षिक वर्षा 200 सेमी. से अधिक तथा औसत वार्षिक तापमान 22° सेल्शियस से अधिक रहता है। ये वन भारत में प्रमुख रूप से पश्चिमी घाट के पश्चिमी ढालों, उत्तरी-पूर्वी पहाड़ियों तथा अण्डमान निकोबार द्वीप समूह में मिलते हैं।
विशेषताएँ:
- सदाबहार वन सघन तथा सामान्यतः तीन परतों में मिलते हैं
- धरातल के समीप झाड़ियाँ तथा बेलें होती हैं।
- इनके ऊपर छोटे कद वाले वृक्ष होते हैं।
- सबसे ऊपर लम्बे कद वाले वृक्ष होते हैं जिनकी ऊँचाई 60 मीटर से अधिक हो सकती है।
- इन वृक्षों में पत्ते झड़ने, फूल आने तथा फल लगने के समय में अन्तर मिलता है, इसलिये ये वृक्ष पूरे वर्ष हरे-भरे दिखायी देते हैं। प्रमुख वृक्ष इन वनों में मिलने वाली प्रमुख प्रजातियाँ रोजवुड, महोगनी, ऐनी तथा एबनी हैं।
प्रश्न 13.
ऊँचाई के आधार पर हिमालय क्षेत्र की वन पेटियों का उल्लेख कीजिये।
उत्तर:
ऊँचाई के आधार पर हिमालय क्षेत्र में वनों की निम्नलिखित पेटियाँ पाई जाती हैं
- उष्ण कटिबंधीय पर्णपाती वन : इस प्रकार के वन हिमालय की शिवालिक श्रेणियों में प्रमुख रूप से पाए जाते हैं। पश्चिमी हिमालय में साल नामक बहुमूल्य वृक्ष मुख्य रूप से मिलता है।
- शीतोष्ण कटिबंधीय आर्द्र सदाबहारी वन : इस प्रकार के वन हिमालय क्षेत्र में 1000 से 2000 मीटर की ऊँचाई तक मिलते हैं। ओक, चेस्टनट, देवदार यहाँ मिलने वाले प्रमुख वृक्ष हैं।
- कोंणधारी वन : हिमालय क्षेत्र में 1600 से 3300 मीटर की ऊँचाई के मध्य चीड़, सीडर, स्प्रूस, ओक, ब्लू पाइन तथा एल्डर वृक्ष प्रमुख रूप से पाए जाते हैं।
- अल्पाइन वन : हिमालय क्षेत्र में 3000 से 4000 मीटर की ऊँचाई पर अल्पाइन वन तथा चरागाह पाए जाते हैं। इनमें प्रमुख रूप से सिल्वर फर, जूनीफर, पाइन, बर्च तथा रोडोडेन्ड्रान वृक्ष पाए जाते हैं।
प्रश्न 14.
भारत में वन और जनजातीय लोगों के जीवन के अन्तर्सम्बन्ध को समझाइए।
उत्तर:
भारत में असंख्य जनजातीय लोगों के लिए वन एक आवास, रोटी-रोजी और अस्तित्व है। वन जनजातीय लोगों को भोजन, फल, खाने योग्य वनस्पति, शहद, पौष्टिक जड़ें और शिकार के लिए वन्य जीव प्रदान करते हैं। वन उन्हें गृह निर्माण की सामग्री तथा कलाकारी की वस्तुएँ प्रदान करते हैं। जनजातीय समुदायों के लिए वनों की महत्ता सर्वविदित है क्योंकि ये उनके जीवन और आर्थिक क्रियाओं के आधार हैं। भारत के 593 जिलों में 188 जनजातीय जिले हैं जिनमें भारत के कुल भौगोलिक क्षेत्र का 33.63 प्रतिशत हिस्सा है किन्तु इन जिलों में देश का 59.61 प्रतिशत वन आवरण पाया जाता है। इससे स्पष्ट होता है कि जनजातीय जिले वन सम्पदा की दृष्टि से धनी हैं। वन और जनजाति समुदायों में घनिष्ठ सम्बन्ध है तथा इनमें से एक का विकास दूसरे के बिना असम्भव है।
प्रश्न 15.
भारत में मन्नार की खाड़ी के जीवमण्डल निचय का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
मन्नार की खाड़ी का जीवमण्डल निचय- भारत के दक्षिणी-पूर्वी तट पर स्थित मन्नार की खाड़ी का जीवमण्डल निचय लगभग एक लाख पाँच हजार हैक्टेयर क्षेत्र में फैला हुआ है। समुद्रीय जैव विविधता की दृष्टि से यह क्षेत्र विश्व के सबसे धनी क्षेत्रों में से एक है। इस जीवमण्डल निचय में 21 द्वीप हैं जिन पर अनेक ज्वारनदमुख, पुलिन, तटीय पर्यावरण के जंगल, समुद्री घासें, प्रवाल द्वीप, लवणीय अनूप और मैंग्रोव पाए जाते हैं। यहाँ पर लगभग 3600 पौधों और जीवों की प्रजातियाँ पाई जाती हैं जिसमें संकटापन्न समुद्री गाय और भारतीय प्रायद्वीप क्षेत्रीय विशेष की 6 मैंग्रोव प्रजातियाँ शामिल हैं।
प्रश्न 16.
भारत की आर्द्र भूमि के प्रमुख वर्गों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
भारत की आर्द्र भूमि को निम्नलिखित आठ वर्गों के अन्तर्गत विभाजित किया गया है-
- दक्षिण में दक्कन के पठार के जलाशय और दक्षिण-पश्चिमी तटीय क्षेत्र की लैगून व अन्य आर्द्र भूमि।
- राजस्थान, गुजरात और कच्छ की खारे जल वाली भूमि।
- गुजरात, राजस्थान के पूर्व में केवलादेव राष्ट्रीय पार्क तथा मध्य प्रदेश की ताजा जल वाली झीलें व जलाशय।
- भारत के पूर्वी तट पर डेल्टाई आर्द्र भूमि व लैगून यथा चिलका झील आदि।
- गंगा के मैदान में ताजे जल वाले कच्छ क्षेत्र।
- ब्रह्मपुत्र घाटी में बाढ़ के मैदान व उत्तरी-पूर्वी भारत और हिमालय गिरिपद के कच्छ व अनूप क्षेत्र।
- कश्मीर और लद्दाख की पर्वतीय झीलें और नदियाँ।
- अण्डमान और निकोबार द्वीप समूह के द्वीप चापों के मैंग्रोव वन तथा अन्य दूसरे आर्द्र क्षेत्र।
प्रश्न 17.
भारत में वनों के संरक्षण की आवश्यकता को स्पष्ट कीजिये।
उत्तर:
पारिस्थितिकी सन्तुलन कायम रखने के लिए जहाँ एक तरफ वनों का संरक्षण करना आवश्यक है वहीं दूसरी तरफ वृक्षारोपण के द्वारा वन क्षेत्रफल में वृद्धि करना भी अतिआवश्यक है। सन्तुलित पारिस्थितिकी तंत्र तथा स्वस्थ पर्यावरण के लिए भारत में कम से कम एक-तिहाई भाग पर वन होने चाहिए। दुर्भाग्य से भारत के एक- चौथाई भाग पर भी वन नहीं हैं। इसी कारण वनों के समुचित संरक्षण के लिए एक ठोस नीति लागू करने की आवश्यकता है। वन जलवायु को समकारी बनाये रखने में महत्वपूर्ण भूमिका अदा करते हैं, वर्षा कराने में सहायक होते हैं, मृदा का संरक्षण करते हैं तथा मरुस्थलीय भूमि के विस्तार को रोकने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। इसी कारण वनों का संरक्षण अतिआवश्यक है।
प्रश्न 18.
राष्ट्रीय उद्यान तथा अभयारण्य में अन्तर बताइये।
उत्तर:
राष्ट्रीय उद्यान तथा वन्य जीव अभयारण्य दोनों वन्य जीवों की सुरक्षा के लिए स्थापित किए जाते हैं अभयारण्य में अनुमति के बिना शिकार प्रतिबंधित होता है किन्तु चराई तथा गो- पशुओं का आना-जाना नियमित होता है। दूसरी तरफ राष्ट्रीय उद्यानों में शिकार तथा पशुचारण पूरी तरह प्रतिबंधित होता है।
प्रश्न 19.
भारत में दक्षिणी पर्वतीय वनों का संक्षिप्त विवरण प्रस्तुत कीजिए।
उत्तर:
भारत में दक्षिणी पर्वतीय वन-भारत में दक्षिणी पर्वतीय वन मुख्य रूप से प्रायद्वीप के तीन भागों यथा पश्चिमी घाट, विंध्याचल और नीलगिरी की पर्वत श्रृंखलाओं में पाए जाते हैं। ये पर्वत शृंखलाएँ उष्ण कटिबंध के अन्तर्गत आती हैं तथा इनकी समुद्र तल से ऊँचाई लगभग 1500 मीटर है। इसी कारण यहाँ ऊँचाई वाले क्षेत्र में शीतोष्ण कटिबंधीय तथा निचले क्षेत्रों में उपोष्ण कटिबंधीय प्राकृतिक वनस्पति पायी जाती है। भारत में केरल, तमिलनाडु और कर्नाटक राज्यों तथा पश्चिमी घाट में विशेष रूप से इस प्रकार की वनस्पति पाई जाती है। नीलगिरी, अन्नामलाई और पालनी पहाड़ियों पर पाए जाने वाले शीतोष्ण कटिबंधीय वनों को ‘शोलास’ वनों के नाम से जाना जाता है। इन वनों में आर्थिक महत्त्व वाले मगनोलिया, लैरेल, सिनकोना और वैटल आदि वृक्ष पाए जाते हैं।
प्रश्न 20.
भारत में शुष्क पर्णपाती वनों का संक्षिप्त विवरण प्रस्तुत कीजिये।
उत्तर:
शुष्क पर्णपाती वन:
भारत में शुष्क पर्णपाती वन उन भागों में विस्तृत हैं जहाँ वर्षा 70 से 100 सेन्टीमीटर तक होती है। आर्द्र क्षेत्रों की तरफ ये वन आर्द्र पर्णपाती और शुष्क क्षेत्रों की तरफ काँटेदार वनों में मिल जाते हैं। इस प्रकार के वन प्रायद्वीप में अधिक वर्षा वाले भागों तथा उत्तर प्रदेश व बिहार के मैदानी भागों में पाए जाते हैं। अधिक वर्षा वाले प्रायद्वीपीय पठार और उत्तर भारत के मैदानों में इस प्रकार के वन पार्कनुमा भूआकृति निर्मित करते हैं. जहाँ सागवान और अन्य पेड़ों के मध्य हरी-भरी घास होती है। शुष्क ऋतु शुरू होते ही इन पेड़ों के पत्ते झड़ जाते हैं और घास के मैदान में नग्न पेड़ खड़े रह जाते हैं। इस प्रकार के वनों में मुख्य रूप से तेन्दू, पलास, अमलतास, बेल, खैर और अक्सलवुड आदि वृक्ष पाए जाते हैं।
निबन्धात्मक प्रश्न
प्रश्न 1.
प्राकृतिक वनस्पति किसे कहते हैं? भारत में वनों के विभिन्न प्रकारों का विस्तार से वर्णन कीजिए।
अथवा
भारत में मिलने वाले प्रमुख वनों का भौगोलिक विवरण प्रस्तुत कीजिए ।
उत्तर:
प्राकृतिक वनस्पति:
प्राकृतिक वनस्पति से अभिप्राय उस पौधा समुदाय से है जो कि लम्बे समय तक बिना किसी बाहरी हस्तक्षेप के उगता है और इसकी विभिन्न प्रजातियाँ वहाँ पाई जाने वाली मिट्टी और जलवायु परिस्थितियों में यथासम्भव स्वयं को ढाल लेती हैं।
भारत में वनों के प्रकार : प्रमुख वनस्पति प्रकार तथा जलवायु परिस्थिति के आधार पर भारतीय वनों के निम्न प्रकार हैं-
(1) उष्ण कटिबंधीय सदाबहार तथा अर्द्ध सदाबहार वन :
भारत में इस प्रकार के वन पश्चिमी ढाल पर उत्तर पूर्वी क्षेत्र की पहाड़ियों पर और अण्डमान और निकोबार द्वीप समूह में पाए जाते हैं! ये वन 200 सेन्टीमीटर से अधिक वर्षा व 22° सेल्शियस से अधिक तापमान वाले उष्ण और आर्द्र प्रदेशों में पाए जाते हैं। इस प्रकार के वनों के वृक्षों के पत्ते झड़ने, फूल आने और फल लगने का समय अलग-अलग है। इसी कारण ये वर्ष भर हरे-भरे दिखलाई देते हैं। इसमें पाई जाने वाली मुख्य वृक्ष प्रजातियाँ रोजवुड, महोगनी, ऐनी और एबनी हैं। अर्द्ध सदाबहार वन इन्हीं क्षेत्रों में अपेक्षाकृत कम वर्षा वाले भागों में पाए जाते हैं। इनमें मुख्य वृक्ष प्रजातियाँ साइडर, होलक और कैल हैं। कुमायूँ में पाए जाने वाले ओक के स्थान पर चीड़ के पेड़ उगाए गये जो कि रेल की पटरी बिछाने के लिए आवश्यक थे।
(2) उष्ण कटिबंधीय पर्णपाती वन:
भारत में इस प्रकार के वन बहुतायत में पाए जाते हैं। इनको मानसूनी वनों के नाम से भी जाना जाता है। ये वन उन क्षेत्रों में पाए जाते हैं जहाँ वार्षिक वर्षा 70 से 200 सेन्टीमीटर तक होती है। जल की उपलब्धता के आधार पर इन वनों को आर्द्र और शुष्क पर्णपाती वनों के अन्तर्गत विभाजित किया जाता है। यथा—
- आर्द्र पर्णपाती वन:
ये वन उन क्षेत्रों में पाए जाते हैं जहाँ वर्षा 100 से 200 सेन्टीमीटर तक होती है। ये वन उत्तर-पूर्वी राज्यों और हिमालय के गिरिपद, पश्चिमी घाट के पूर्वी ढालों और ओडिशा में उगते हैं। सागवान, साल, शीशम, महुआ, आँवला और चंदन आदि प्रजातियों के वृक्ष इन वनों में पाए जाते हैं। - शुष्क पर्णपाती वन:
शुष्क पर्णपाती वन देश के उन विस्तृत भागों में पाए जाते हैं जहाँ वर्षा 70 से 100 सेन्टीमीटर होती है। ये वन प्रायद्वीप में अधिक वर्षा वाले भागों और उत्तर प्रदेश व बिहार के मैदानी भागों में पाए जाते हैं।
(3) उष्ण कटिबंधीय काँटेदार वन:
उष्ण कटिबंधीय काँटेदार वन उन भागों में पाए जाते हैं जहाँ वर्षा 50 सेन्टीमीटर से कम होती है। ये दक्षिणी-पश्चिमी पंजाब, हरियाणा, राजस्थान, गुजरात, मध्य प्रदेश और उत्तर प्रदेश के अर्द्ध-शुष्क क्षेत्र में पाए जाते हैं। इन वनों में पाई जाने वाली मुख्य वृक्ष प्रजातियाँ बबूल, बेर, खजूर, खैर, नीम, खेजड़ी और पलास आदि हैं।
(4) पर्वतीय वन:
पर्वतीय क्षेत्रों में ऊँचाई के साथ तापमान के कम होने के साथ-साथ प्राकृतिक वनस्पति में भी परिवर्तन आता है। इन वनों को दो भागों में विभाजित किया जा सकता है-
- उत्तरी पर्वतीय वन:
ऊँचाई बढ़ने के साथ हिमालय पर्वत श्रृंखला में उष्ण कटिबंधीय वनों में टुण्ड्रा वनस्पति पाई जाती है। हिमालय के गिरिपद पर पर्णपाती वन पाए जाते हैं। इसके बाद 1,000 से 2,000 मीटर की ऊँचाई पर आर्द्र शीतोष्ण कटिबंधीय वन पाए जाते हैं। उत्तरी-पूर्वी भारत की उच्चतर पहाड़ी श्रृंखलाओं, पश्चिमी बंगाल और उत्तराखण्ड के पहाड़ी क्षेत्रों में चौड़े पत्तों वाले ओक और चेस्टनट जैसे सदाबहार वन पाए जाते हैं। हिमालय के पश्चिमी भाग में बहुमूल्य वृक्ष प्रजाति देवदार के वन पाए जाते हैं। पश्चिमी हिमालय क्षेत्र में चिनार और वालन के वृक्ष पाए जाते हैं। 3,000 से 4,000 मीटर की ऊँचाई पर सिल्वर, फर, जूनीफर, पाइन, बर्च और रोडोन्डेड्रान आदि वृक्ष पाए जाते हैं। अधिक ऊँचाई वाले भागों में टुण्ड्रा वनस्पति यथा मॉस व लाइकेन आदि पाई जाती हैं। - दक्षिणी पर्वतीय वन:
दक्षिणी पर्वतीय वन मुख्य रूप से प्रायद्वीप के तीन भागों यथा- विंध्याचल और नीलगिरी पर्वत श्रृंखलाओं पर मिलते हैं। इनकी समुद्र तल से ऊँचाई लगभग 1,500 मीटर है। केरल, तमिलनाडु और कर्नाटक राज्यों तथा पश्चिमी घाट में इस प्रकार की वनस्पति विशेष रूप से पाई जाती है। इन वनों में मगनोलिया, लैरेल, सिनकोना और वैटल आदि वृक्ष पाए जाते हैं।
(5) वेलांचली व अनूप वन:
भारत में विभिन्न प्रकार के आर्द्र व अनूप आवास पाए जाते हैं। इसके 70 प्रतिशत भाग पर चावल की खेती की जाती है। देश की आर्द्र भूमि को आठ वर्गों में रखा गया है। यथा- दक्षिण में दक्कन पठार के जलाशय और दक्षिण-पश्चिमी तटीय क्षेत्र की लैगून व अन्य आर्द्र भूमि, राजस्थान, गुजरात और कच्छ की खारे जल वाली भूमि, गुजरात – राजस्थान से पूर्व और मध्य प्रदेश की ताजा जल वाली झीलें व जलाशय, भारत के पूर्वी तट पर डेल्टाई आर्द्र भूमि व लैगून, गंगा के मैदान में ताजा जल वाले कच्छ क्षेत्र, ब्रह्मपुत्र घाटी में बाढ़ के मैदान व उत्तर-पूर्वी भारत और हिमालय गिरिपद के कच्छ व अनूप क्षेत्र, कश्मीर और लद्दाख की पर्वतीय झीलें और नदियाँ, अण्डमान और निकोबार द्वीप समूह के द्वीप चापों में मैंग्रोव वन तथा दूसरे आर्द्र क्षेत्र। भारत में मैंग्रोव वन अण्डमान और निकोबार द्वीप समूह व पश्चिमी बंगाल के सुन्दरवन डेल्टा में अत्यधिक विकसित हैं। इसके अलावा ये महानदी, गोदावरी और कृष्णा नदियों के डेल्टाई भाग में पाए जाते हैं।
प्रश्न 2.
भारतीय वनों को कितने प्राकृतिक प्रकारों में बाँटा गया है? उनके नाम लिखो तथा किसी एक को संक्षिप्त में समझाइयें।
अथवा
भारत में वनों के प्रकार बताइये तथा उष्ण कटिबंधीय पर्णपाती वनों का वर्णन कीजिए।
अथवा
भारत का मानचित्र बनाकर उसमें भारतीय वनों के प्रकार दर्शाइयें।
उत्तर:
भारत में वनों के प्रकार: प्रमुख वनस्पति के प्रकार तथा जलवायु की परिस्थितियों के आधार पर भारत के वनों को निम्नलिखित प्रकारों के अन्तर्गत विभाजित किया गया है-
- उष्ण कटिबंधीय सदाबहार व अर्द्ध सदाबहार वन
- उष्ण कटिबंधीय पर्णपाती वन
- उष्ण कटिबंधीय काँटेदार वन
- पर्वतीय वन
- वेलांचली व अनूप वन
इनमें से उष्ण कटिबंधीय पर्णपाती वनों का वर्णन निम्न प्रकार है-
- उष्ण कटिबंधीय पर्णपाती वन: भारत में उष्ण कटिबंधीय पर्णपाती वन अधिकता में पाए जाते हैं। इनको मानसूनी वनों के नाम से भी जाना जाता है। जिन क्षेत्रों में वार्षिक वर्षा 70 से 200 सेन्टीमीटर तक होती है वहाँ उष्ण कटिबंधीय पर्णपाती वन पाए जाते हैं।
- प्रकार: जल की उपलब्धता के आधार पर उष्ण कटिबंधीय पर्णपाती वनों को निम्नलिखित दो वर्गों के अन्तर्गत विभाजित किया गया है-
1. आर्द्र पर्णपाती वन:
भारत में जिन क्षेत्रों में वार्षिक वर्षा 100 से 200 सेन्टीमीटर तक होती है, वहाँ आर्द्र पर्णपाती वन पाए जाते हैं। इस प्रकार के वन उत्तर-पूर्वी राज्यों, हिमालय के गिरिपद, पश्चिमी घाट के पूर्वी ढालों और उड़ीसा में पाए जाते हैं। सागवान, हुर्रा, महुआ, आँवला, सेमल, कुसुम तथा चन्दन आदि आर्द्र पर्णपाती वनों के अन्तर्गत पाए जाने वाले प्रमुख वृक्ष हैं।
2. शुष्क पर्णपाती वन :
भारत में जिन क्षेत्रों में वार्षिक वर्षा 70 से 100 सेन्टीमीटर तक होती है, शुष्क पर्णपाती वन पाए जाते हैं। आर्द्र क्षेत्रों की तरफ इस प्रकार के वन आर्द्र पर्णपाती तथा शुष्क क्षेत्रों की तरफ काँटेदार वनों में मिल जाते हैं। इस प्रकार के वन प्रायद्वीप में अधिक वर्षा वाले भागों, उत्तर प्रदेश व बिहार राज्यों के मैदानी भागों में पाए जाते हैं। अधिक वर्षा वाले प्रायद्वीपीय पठार और उत्तर भारत के मैदानों में ये वन पार्कनुमा भूआकृति बनाते हैं जहाँ सागवान और अन्य किस्म के पेड़ों के मध्य हरी-भरी घास होती है । ग्रीष्म ऋतु शुरू होते ही इन वृक्षों के पत्ते झड़ जाते हैं तथा घास के मैदान में नग्न पेड़ रह जाते हैं। राजस्थान के पश्चिमी तथा दक्षिणी भागों में कम वर्षा और अत्यधिक पशुचारण के कारण बहुत विरल वनस्पति पाई जाती है। इस प्रकार के वनों के अन्तर्गत मुख्य रूप से तेन्दु, पलास, अमलतास, बेल, खैर और अक्सलवुड आदि के वृक्ष बहुतायत में पाए जाते हैं।
प्रश्न 3.
जीवमण्डल निचय से क्या आशय है ? भारत के चार प्रमुख जीवमण्डल निचयों का वर्णन कीजिए। इन्हें भारत के मानचित्र में भी दर्शाइए।
उत्तर:
जीवमण्डल निचय:
जीवमण्डल निचय अर्थात् आरक्षित क्षेत्र विशेष के भौमिक और तटीय पारिस्थितिक तंत्र हैं जिनको यूनेस्को के मानव और जीवमण्डल कार्यक्रम के अन्तर्गत मान्यता प्राप्त है।
भारत के चार प्रमुख जीवमण्डल निचय: भारत में 18 जीवमण्डल निचय हैं जिनमें से चार प्रमुख जीवमण्डल निचय निम्नलिखित हैं-
(1) नीलगिरी जीवमण्डल निचय:
यह भारत का सर्वप्रथम जीवमण्डल निचय है जिसकी स्थापना सन् 1986 में हुई थी। इस निचय के अन्तर्गत वायनाड वन्य जीवन सुरक्षित क्षेत्र, नगरहोल, बांदीपुर और मलुमलाई निलंबूर का सम्पूर्ण वन से ढका ढाल, ऊपरी नीलगिरी पठार, सायलेण्ट वैली और सिरुवली की पहाड़ियाँ शामिल हैं। यह जीवमण्डल निचय 5,520 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में विस्तृत है। इस जीवमण्डल निचय की स्थलाकृति ऊबड़-खाबड़ है तथा समुद्र तल से ऊँचाई 250 से 2,650 मीटर तक है। पश्चिमी घाट में पाए जाने वाले 80 प्रतिशत फूलदार पौधे इसी निचय में पाए जाते हैं।
प्राकृतिक वनस्पति व वन्य जीव:
नीलगिरी जीवमण्डल निचय में विभिन्न प्रकार के आवास और मानव क्रिया द्वारा कम प्रभावित प्राकृतिक वनस्पति व सूखी झाड़ियाँ यथा- शुष्क और आर्द्र पर्णपाती वन, अर्द्ध सदाबहार और आर्द्र सदाबहार वन, सदाबहार शोलास, घास के मैदान और दलदल शामिल हैं। यहाँ पर संकटापन्न दो प्राणी प्रजातियों यथा नीलगिरी ताहर और शेर के समान दुम वाले बन्दर की सबसे अधिक संख्या पाई जाती है। इस निचय में हाथी, बाघ, गौर, सांभर और चीतल आदि जानवर पाए जाते हैं। इस क्षेत्र में कुछ संकटापन्न और क्षेत्रीय विशेष से सम्बन्धित पौधे भी पाए जाते हैं । यहाँ ऐसी कुछ जनजातियों के आवास भी स्थित हैं जो कि पर्यावरण के साथ सामंजस्य स्थापित करने के लिए विख्यात हैं।
(2) नन्दा देवी जीवमण्डल निचय:
नन्दा देवी जीवमण्डल निचय उत्तराखण्ड में स्थित है। इसके अन्तर्गत चमोली, अल्मोड़ा, पिथौरागढ़ और बागेश्वर जिलों के भाग शामिल हैं। यहाँ पर मुख्य रूप से शीतोष्ण कटिबंधीय वन पाए जाते हैं। यहाँ पाई जाने वाली प्रजातियों में सिल्वरवुड, लैटीफोली जैसे ओरचिड और रोडोडेन्ड्रान शामिल हैं। इस जीवमण्डल निचय में अनेक प्रकार के वन्य जीव यथा- हिम तेन्दुआ, काला भालू, भूरा भालू, कस्तूरी मृग, हिम मुर्गा, सुनहरा बाज और काला बाज पाए जाते हैं। यहाँ पारिस्थितिक तंत्रों को मुख्य खतरा संकटापन्न पौध प्रजातियों को दवा के लिए एकत्रित करना, दावानल और पशुओं के व्यापारिक उद्देश्य से शिकार से है।
(3) सुन्दरबन जीवमण्डल निचय:
यह जीवमण्डल निचय पश्चिमी बंगाल में गंगा नदी के दलदली डेल्टा पर स्थित है। यह 9,630 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में फैला हुआ है। इस निचय में मैंग्रोव वन, अनूप और वनाच्छादित द्वीप पाए जाते हैं। सुन्दरबन लगभग 200 रॉयल बंगाल टाईगर का आवासीय क्षेत्र है। मैंग्रोव वनों में 170 से अधिक पक्षी प्रजातियाँ पाई जाती हैं। यहाँ स्वयं को लवणीय और ताजे जल पर्यावरण के अनुरूप ढालते हुए बाघ पानी में विचरण करते हैं तथा चीतल, भौंकने वाले मृग, जंगली सूअर का शिकार कर लेते हैं। सुन्दरबन के मैंग्रोव वनों में हेरिशिएरा फोमीज आदि बेशकीमती लकड़ी के वृक्ष भी पाए जाते हैं।
(4) मन्नार की खाड़ी का जीवमण्डल निचय :
भारत के दक्षिणी-पूर्वी तट पर स्थित मन्नार की खाड़ी का जीवमण्डल निचय लगभग 1 लाख 5 हजार हैक्टेयर क्षेत्र में फैला हुआ है। समुद्रीय जैव विविधता की दृष्टि से यह क्षेत्र विश्व के सबसे धनी क्षेत्रों में से एक है। इस जीवमण्डल निचय में 21 द्वीप हैं जिनमें अनेक ज्वारनदमुख, पुलिन, तटीय पर्यावरण के जंगल, समुद्री घासें प्रवाल द्वीप, लवणीय अनूप तथा मैंग्रोव पाए जाते हैं। यहाँ लगभग 3,600 पौधों और जीवों की प्रजातियाँ पाई जाती हैं जिसमें संकटापन्न समुद्री गाय और भारतीय प्रायद्वीप की विशेष 6 मैंग्रोव प्रजातियाँ शामिल हैं।
प्रश्न 4.
भारत में पर्वतीय वनों का विस्तार से वर्णन कीजिए।
उत्तर:
भारत में पर्वतीय वन :
भारत में पर्वतीय क्षेत्रों में ऊँचाई के पर्वतीय वनों को निम्नलिखित दो वर्गों के साथ तापमान घटने के साथ-साथ वनस्पति में भी अन्तर आ जाता है। अन्तर्गत विभाजित किया गया है।
(1) उत्तरी पर्वतीय वन:
ऊँचाई बढ़ने के साथ हिमालय पर्वत शृंखला में उष्ण कटिबंधीय वनों से टुण्ड्रा प्रदेश में पाई जाने वाली प्राकृतिक वनस्पति पाई जाती है। हिमालय के गिरिपद में पर्णपाती वन पाए जाते हैं। इसके उपरान्त 1,000 से 2,000 मीटर की ऊँचाई पर आर्द्र शीतोष्ण कटिबंधीय वन पाए जाते हैं। उत्तरी-पूर्वी भारत की उच्चतर पहाड़ी श्रृंखलाओं और पश्चिमी बंगाल तथा उत्तराखण्ड के पर्वतीय क्षेत्रों में चौड़े पत्तों वाले ओक और चेस्टनट के समान सदाबहार वन पाए जाते हैं। इस क्षेत्र में 1,500 से 1,750 मीटर की ऊँचाई पर व्यापारिक महत्त्व के चीड़ के वन पाए जाते हैं। हिमालय के पश्चिमी भाग में बहुमूल्य वृक्ष प्रजाति देवदार के वन पाए जाते हैं। देवदार की लकड़ी अधिक मजबूत होती है जिसका निर्माण कार्य में प्रयोग किया जाता है।
इसी प्रकार चिनार और वालन जिसकी लकड़ी कश्मीर के हस्तशिल्प उद्योग में उपयोग में लाई जाती है, पश्चिमी हिमालय क्षेत्र में अत्यधिक मात्रा में मिलती है। 2,225 से 3,048 मीटर की ऊँचाई पर ब्ल्यूपाइन और स्प्रूस वृक्ष पाए जाते हैं। इस ऊँचाई पर अनेक स्थानों पर शीतोष्ण कटिबंधीय घास भी उगती है। इससे अधिक ऊँचाई पर अल्पाइन वन और चरागाह पाए जाते हैं। 3,000 से 4,000 मीटर की ऊँचाई पर सिल्वर फर, जूनीफर, पाइन, बर्च और रोडोडेन्ड्रान आदि वृक्ष पाए जाते हैं। यहाँ ऋतु प्रवास अर्थात् स्थानान्तरण करने वाले समुदाय यथा- गुज्जर, बकरवाल, गद्दी और भूटिया इन चरागाहों में पशुचारण करते हैं। शुष्क उत्तरी ढालों की तुलना में अधिक वर्षा वाले हिमालय के दक्षिणी ढालों पर अधिक मात्रा में वनस्पति पाई जाती है। अधिक ऊँचाई वाले भागों में टुण्ड्रा वनस्पति यथा मॉस व लाइकेन पाई जाती है।
(2) दक्षिणी पर्वतीय वन:
भारत में दक्षिणी पर्वतीय वन मुख्य रूप से प्रायद्वीप के तीन भागों यथा- पश्चिमी घाट, विंध्याचल और नीलगिरी पर्वत श्रृंखलाओं में पाए जाते हैं। ये पर्वत श्रृंखलाएँ उष्ण कटिबंध में आती हैं तथा इनकी समुद्र तल से ऊँचाई लगभग 1,500 मीटर है। इसी कारण यहाँ ऊँचाई वाले क्षेत्र में शीतोष्ण कटिबंधीय और निचले क्षेत्रों में उपोष्ण कटिबंधीय प्राकृतिक वनस्पति पाई जाती है। केरल, तमिलनाडु और कर्नाटक राज्यों तथा पश्चिमी घाट में इस प्रकार की वनस्पति विशेष रूप से पाई जाती है। नीलगिरी, अन्नामलाई और पालनी पहाड़ियों पर पाए जाने वाले शीतोष्ण कटिबंधीय वनों को शोलास के नाम से जाना जाता है। इन वनों में पाए जाने वाले वृक्षों में मगनोलिया, लैरेल, सिनकोना और वैटल हैं। ये आर्थिक महत्त्व के हैं। इस प्रकार के वन सतपुड़ा और मैकाल श्रेणियों में भी पाए जाते हैं।
प्रश्न 5.
भारत में वेलांचली व अनूप वनों का विस्तार से वर्णन कीजिए।
उत्तर:
वेलांचली व अनूप वन
भारत में विभिन्न प्रकार के आर्द्र व अनूप आवास पाए जाते हैं। भारत में लगभग 39 लाख हैक्टेयर भूमि आर्द्र है। इसके 70 प्रतिशत भाग पर चावल की खेती की जाती है। उड़ीसा में चिलका तथा भरतपुर में केवलादेव राष्ट्रीय पार्क अन्तर्राष्ट्रीय महत्त्व की आर्द्र भूमियों के अधिवेशन, रामसर अधिवेशन के अन्तर्गत रक्षित जल कुक्कुट आवास हैं। आर्द्र भूमि के प्रकार भारत की आर्द्र भूमि को निम्नलिखित आठ वर्गों के अन्तर्गत रखा गया है।
- दक्षिण में दक्कन पठार के जलाशय और दक्षिण-पश्चिमी तटीय क्षेत्र की लैगून व अन्य आर्द्र भूमि।
- राजस्थान, गुजरात और कच्छ की खारे जल वाली भूमि।
- गुजरात, राजस्थान में पूर्व में केवलादेव राष्ट्रीय पार्क तथा मध्य प्रदेश की ताजे जल वाली झीलें व जलाशय।
- भारत के पूर्वी तट पर डेल्टाई आर्द्र भूमि व लैगून यथा चिलका झील आदि।
- गंगा के मैदान में ताजे जल वाले कच्छ क्षेत्र।
- ब्रह्मपुत्र घाटी में बाढ़ के मैदान व उत्तर पूर्वी भारत और हिमालय गिरिपद के कच्छ व अनूप क्षेत्र।
- कश्मीर और लद्दाख की पर्वतीय झीलें और नदियाँ।
- अण्डमान और निकोबार द्वीप समूह के द्वीप चापों के मैंग्रोव और इसके आर्द्र क्षेत्र।
मैंग्रोव वनों के क्षेत्र:
भारत में मैंग्रोव वन 6,740 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में फैले हुए हैं जो कि विश्व के मैंग्रोव क्षेत्र का 7 प्रतिशत है। मैंग्रोव लवण कच्छ, ज्वारीय संकड़ी खाड़ी, पंक मैदानों और ज्वारनदमुख के तटीय क्षेत्रों में पाए जाते हैं। इसमें बहुत से लवण से प्रभावित न होने वाले पेड़-पौधे होते हैं। बंधे जल व ज्वारीय प्रवाह की संकड़ी खाड़ियों से आड़े-तिरछे ये वन विभिन्न किस्म के पक्षियों को आश्रय प्रदान करते हैं। भारत में मैंग्रोव वन अण्डमान और निकोबार द्वीप समूह व पश्चिमी बंगाल के सुन्दरबन डेल्टा में अत्यधिक विकसित हैं। इसके अलावा ये महानदी, गोदावरी और कृष्णा नदियों के डेल्टाई भाग में पाए जाते हैं। इन वनों में बढ़ते अतिक्रमण के कारण इनका संरक्षण आवश्यक हो गया है।
प्रश्न 6.
भारत में वन आवरण का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
भारत में वन आवरण: राजस्व विभाग से प्राप्त आँकड़ों के अनुसार भारत में 23.28 प्रतिशत भाग पर वन फैले हुए हैं। आंकड़ों के अनुसार वन क्षेत्र तथा वास्तविक वन आवरण अलग-अलग हैं। भारत में वन आवरण का विवेचन निम्नलिखित बिन्दुओं के अन्तर्गत किया गया है-
(1) वन क्षेत्र :
राजस्व विभाग के अनुसार अधिसूचित वह क्षेत्र चाहे वहाँ वृक्ष हों या न हों, वन क्षेत्र कहलाता है। वन क्षेत्र राज्यों के राजस्व विभाग से प्राप्त होता है।
(2) वन आवरण :
वन आवरण प्राकृतिक वनस्पति का झुरमुट है तथा वास्तविक रूप से वनों से ढका है। वन आवरण की पहचान वायुचित्रों और उपग्रह से प्राप्त चित्रों से की जाती है। इंडिया स्टेट फॉरेस्ट रिपोर्ट 2011 के अनुसार वास्तविक वन आवरण केवल 21.05 प्रतिशत है। उनमें से 12.29 प्रतिशत भाग पर सघन वन और 8.75 प्रतिशत पर विवृत वन पाए जाते हैं।
(3) वन क्षेत्र और वन आवरण में राज्यवार भिन्नता:
भारत में वन क्षेत्र और वन आवरण दोनों में ही राज्यवार भिन्नता पाई जाती है। यथा – लक्षद्वीप में वन क्षेत्र शून्य है, वहीं अण्डमान और निकोबार में 86.93 प्रतिशत क्षेत्र वन के अधीन है। भारत में 10 प्रतिशत से कम वन क्षेत्र वाले राज्य मुख्य रूप से देश के उत्तर और उत्तर-पश्चिमी भाग में स्थित हैं। इसमें राजस्थान, गुजरात, पंजाब, हरियाणा और दिल्ली हैं। पंजाब और हरियाणा के अधिकतर वनों को कृषि के लिए साफ कर दिया गया है। गुजरात, राजस्थान, हरियाणा अर्द्ध शुष्क क्षेत्र हैं। तमिलनाडु और पश्चिमी बंगाल राज्यों में 10 से 20 प्रतिशत भाग पर वन पाए जाते हैं। प्रायद्वीपीय भारत में दादर और नगर हवेली, तमिलनाडु और गोवा के अलावा शेष सभी राज्यों में 20 से 30 प्रतिशत भूमि वनों के अन्तर्गत है। देश के पूर्वी राज्यों में 30 प्रतिशत से अधिक भूमि पर वन पाए जाते हैं। पर्वतीय स्थलाकृति और अधिक वर्षा वनों के विकास के लिए उपयुक्त होती है।
(4) वन आवरण में भिन्नता:
भारत में वन क्षेत्र की तरह वास्तविक वन आवरण में भी अन्तर पाया जाता। जम्मू-कश्मीर में वन आवरण 9.5 प्रतिशत है जबकि अण्डमान निकोबार द्वीप समूह में 84.01 प्रतिशत वन आवरण है। देश के 15 राज्यों में कुल भूमि के 33 प्रतिशत से अधिक भाग पर वन पाए जाते हैं जो कि पारिस्थितिक सन्तुलन को बनाए रखने के लिए एक आधारभूत आवश्यकता है। वास्तविक वन आवरण के अधीन क्षेत्र के आधार पर देश के राज्यों को चार वर्गों में विभाजित किया जा सकता है। यथा-
- अधिक वन संकेन्द्रण वाले प्रदेश जिनमें 40 प्रतिशत से अधिक वन आवरण पाया जाता है।
- मध्यम वन संकेन्द्रण वाले प्रदेश जिनमें 20 से 40 प्रतिशत तक वन आवरण पाया जाता है।
- कम वन संकेन्द्रण वाले प्रदेश जिनमें 10 से 20 प्रतिशत तक वन आवरण पाया जाता है।
- अति कम वन संकेन्द्रण वाले प्रदेश जिनमें 10 प्रतिशत से कम वन आवरण पाया जाता है
प्रश्न 7.
भारतीय वन नीति के बारे में बताते हुए इसके उद्देश्य स्पष्ट कीजिए।
अथवा
भारत में वन नीति पर टिप्पणी लिखिए।
उत्तर:
भारतीय वन नीति: वनों का जीवन और पर्यावरण के साथ जटिल सम्बन्ध है । वन प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से व्यक्तियों को आर्थिक व सामाजिक लाभ पहुँचाते हैं। अतः वनों के संरक्षण की मानवीय विकास में एक महत्त्वपूर्ण भूमिका है। इसके फलस्वरूप भारत सरकार ने सम्पूर्ण देश के लिए वन संरक्षण नीति सन् 1952 में लागू की जिसे 1988 में संशोधित किया गया। इस नवीन वन नीति के अनुसार सरकार सतत पोषणीय वन प्रबंध पर बल देगी जिससे एक तरफ वन संसाधनों का संरक्षण व विकास किया जायेगा, वहीं दूसरी तरफ स्थानीय व्यक्तियों की आवश्यकताओं को पूरा किया जायेगा। उद्देश्य – इस वन नीति के निम्नलिखित उद्देश्य हैं-
- देश में 33 प्रतिशत भाग पर वन लगाना जो कि वर्तमान राष्ट्रीय स्तर से 6 प्रतिशत अधिक है।
- पर्यावरण सन्तुलन बनाए रखना तथा पारिस्थितिक असन्तुलित क्षेत्रों में वन लगाना।
- देश की प्राकृतिक धरोहर, जैव विविधता तथा आनुवांशिक पूल का संरक्षण करना।
- मृदा अपरदन और मरुस्थलीकरण रोकना तथा बाढ़ व सूखा नियंत्रण करना।
- निम्नीकृत भूमि पर सामाजिक वानिकी व वनारोपण के द्वारा वन आवरण का विस्तार करना।
- वनों की उत्पादकता में वृद्धि करके वनों पर आश्रित ग्रामीण जनजातियों को इमारती लकड़ी, ईंधन, चारा और भोजन उपलब्ध करवाना और लकड़ी के स्थान पर अन्य वस्तुओं को उपयोग में लाना।
- वृक्षारोपण को बढ़ावा देने के लिए पेड़ों की कटाई रोकने के लिए जन-आन्दोलन चलाना, जिसमें महिलाओं की भागीदारी सुनिश्चित करना, जिससे वनों पर दबाव कम हो।
प्रश्न 8.
भारत में वन्य प्राणियों की संख्या कम होने के मुख्य कारण बताइये तथा वन्य प्राणी संरक्षण का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
भारत में वन्य प्राणियों की संख्या कम होने के कारण:
भारत में वन्य प्राणी एक विशिष्ट प्राकृतिक धरोहर है। एक अनुमान के अनुसार विश्व के ज्ञात पौधों और प्राणियों की किस्मों में से 4 से 5 प्रतिशत किस्में भारत में पाई जाती हैं। देश में इतने बड़े पैमाने पर जैव विविधता मिलने का कारण यहाँ पर पाये जाने वाले विभिन्न प्रकार के पारिस्थितिकी तंत्र हैं जिनको युगों से संरक्षित रखा गया है। समय के साथ पारिस्थितिकी तंत्रों के आवास मानव क्रियाओं द्वारा प्रभावित हुए तथा फलस्वरूप जैव प्रजातियों की संख्या कम हो गई है। कुछ जैव प्रजातियाँ तो लुप्त होने के कगार पर हैं। भारत में वन्य प्राणियों की संख्या कम होने के मुख्य कारण निम्नलिखित हैं
- औद्योगिक और तकनीकी विकास के फलस्वरूप वनों के दोहन की गति तीव्र हो गई है।
- कृषि, मानवीय बस्ती, सड़कों, खदानों, जलाशयों आदि के लिए भूमि से वनों को साफ कर दिया गया।
- स्थानीय व्यक्तियों ने चारे, ईंधन और इमारती लकड़ी के लिए वनों से पेड़ काट डाले तथा वनों पर अनावश्यक दबाव बढ़ा दिया है।
- मानव ने अपने पालतू पशुओं के लिए नवीन चरागाहों की खोज में वन्य जीवों और उनके आवासों को नष्ट कर दिया है।
- रजवाड़ों एवं संभ्रान्त वर्ग के व्यक्तियों ने शिकार को क्रीड़ा बनाया तथा एक ही बार में सैकड़ों वन्य जीवों को मार डाला। वर्तमान समय में भी व्यापारिक महत्त्व के लिए पशुओं का वध किया जा रहा है।
- जंगलों में असमय लगने वाली आग से भी वन तथा वन्य प्राणियों की प्रजातियाँ नष्ट हो गई हैं E वन्य प्राणी संरक्षण राष्ट्रीय व विश्व प्राकृतिक धरोहर बचाने के लिए तथा पारिस्थितिक पर्यटन को बढ़ावा देने के लिए वन्य प्राणियों का संरक्षण महत्त्वपूर्ण है। भारत में वन्य प्राणी संरक्षण के लिए निम्नलिखित उपाय किए गए हैं-
(1) वन्य प्राणी अधिनियम :
भारत में सन् 1972 में वन्य प्राणी अधिनियम पास हुआ जो कि वन्य प्राणियों के संरक्षण और रक्षण की कानूनी रूपरेखा तैयार करता है। इस अधिनियम के दो प्रमुख उद्देश्य हैं। यथा-
- अधिनियम के तहत अनुसूची में सूचीबद्ध संकटापन्न प्रजातियों को सुरक्षा प्रदान करना।
- नेशनल पार्क, पशु विहार जैसे संरक्षित क्षेत्रों को कानूनी सहायता प्रदान करना। इस अधिनियम को सन् 1991 में पूरी तरह से संशोधित कर दिया जिसके अन्तर्गत कठोर सजा का प्रावधान किया गया है। इसमें कुछ पौधों की प्रजातियों को बचाने तथा संकटापन्न प्रजातियों के संरक्षण का प्रावधान है। देश में 103 नेशनल पार्क तथा 535 वन्य प्राणी अभयवन हैं। वन्य प्राणी संरक्षण का क्षेत्र काफी विस्तृत है और इसमें मानव कल्याण की असीम सम्भावनाएँ निहित हैं।
(2) प्रोजेक्ट टाइगर और प्रोजेक्ट ऐलीफेन्ट योजनाएँ:
यूनेस्को के मानव और जीवमण्डल योजना के तहत भारत सरकार ने वनस्पतिजात और प्राणीजात के संरक्षण के लिए महत्त्वपूर्ण कदम उठाए हैं। इसके तहत देश में सन् 1973 से प्रोजेक्ट टाइगर तथा सन् 1992 से प्रोजेक्ट ऐलीफेन्ट जैसी विशेष योजनाएँ इन प्रजातियों के संरक्षण तथा उनके आवास बचाने के लिए चलाई जा रही हैं। प्रोजेक्ट टाइगर योजना का मुख्य उद्देश्य भारत में बाघों की संख्या का स्तर बनाए रखना है जिससे वैज्ञानिक, सौन्दर्यात्मक, स्कृतिक और पारिस्थितिक मूल्यों को बनाए रखा जा सके।
इससे प्राकृतिक धरोहर को भी संरक्षण प्राप्त होगा जिसका व्यक्तियों के लिए शिक्षा और मनोरंजन के रूप में लाभ प्राप्त होगा। शुरू में यह योजना 9 बाघ निचयों अर्थात् आरक्षित क्षेत्रों में शुरू की गई थी जो कि 16,339 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र पर फैली थी। वर्तमान में यह योजना 44 क्रोड बाघ निचयों में लगभग 36988 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र तथा 17 राज्यों में संचालित की जा रही है। देश में बाघों की संख्या 2006 में 1411 थी जो वर्ष 2010 में बढ़कर 1706 हो गई थी। यह योजना मुख्य रूप से बाघ केन्द्रित है लेकिन इसके अन्तर्गत पारिस्थितिक तंत्र की स्थिरता पर जोर दिया जाता है। बाघों की संख्या का स्तर तभी ऊँचा रह सकता है जबकि पारिस्थितिक तंत्र के विभिन्न पोषण स्तरों और इसकी भोजन कड़ी को बनाए रखा जाये।
(3) अन्य योजनाएँ:
उक्त योजनाओं के अलावा भारत सरकार के द्वारा कुछ और परियोजनाएँ यथा- मगरमच्छ प्रजनन परियोजना, हंगुल परियोजना और हिमालय कस्तूरी मृग परियोजना भी देश में चलाई जा रही हैं।
प्रश्न 9.
भारत के 18 जीवमण्डल निचयों को सूचीबद्ध कीजिए।
उत्तर:
भारत के जीवमण्डल निचय : भारत के 18 जीवमण्डल निचय सूचीबद्ध रूप में अग्रलिखित हैं
- नीलगिरी :
नीलगिरी जीवमण्डल निचय कुल 5,520 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में फैला हुआ है। इस निचय में वायनाड वन्य जीवन सुरक्षित क्षेत्र, नगरहोल, बांदीपुर और मदुमलाई, निलंबूर का सम्पूर्ण वन से ढका ढाल, ऊपरी नीलगिरी पठार, सायलेण्ट वैली तथा सिरुवली पहाड़ियों का क्षेत्र शामिल है। यह देश के तमिलनाडु, केरल और कर्नाटक राज्यों में विस्तृत है। - नन्दा देवी:
नन्दा देवी जीवमण्डल निचय 5860.69 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में फैला हुआ है। इस निचय में उत्तराखण्ड राज्य के चमोली, पिथौरागढ़ और अल्मोड़ा जिलों के भाग शामिल है। - नोकरेक :
नोकरेक जीवमण्डल निचय 820 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में विस्तृत है। इस निचय में मेघालय राज्य में गारो पहाड़ियों का क्षेत्र शामिल है। - मानस :
मानस जीवमण्डल निचय 2,837 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में विस्तृत है। इस निचय में असम राज्य के कोकराझार, बोगाई गाँव, बरपेटा, नलबाड़ी, कामरूप तथा दारांग जिलों के क्षेत्र शामिल हैं। - सुन्दरबन :
सुन्दरबन जीवमण्डल निचय 9,630 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में फैला हुआ है। इस निचय में गंगा – ब्रह्मपुत्र नदी तंत्र का डेल्टा तथा पश्चिमी बंगाल प्रान्त का क्षेत्र शामिल है। - मन्नार की खाड़ी :
मन्नार की खाड़ी जीवमण्डल निचय 10,500 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में विस्तृत है। इस निचय में तमिलनाडु राज्य के अधीन भारत और श्रीलंका के मध्य स्थित मन्नार की खाड़ी का भारतीय हिस्सा शामिल है। - ग्रेट निकोबार :
ग्रेट निकोबार जीवमण्डल निचय 885 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में फैला हुआ है। इस निचय में अण्डमान निकोबार द्वीप समूह के अन्तर्गत अण्डमान-निकोबार के सुदूर दक्षिणी द्वीप का भाग शामिल है। - सिमलीपाल :
सिमलीपाल जीवमण्डल निचय 4,374 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में फैला हुआ है। इस निचय में उड़ीसा राज्य में मयूरभंज जिले का भाग शामिल है। - डिब्रू – साईकोवा:
डिब्रू – साईकोवा जीवमण्डल निचय 765 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में फैला हुआ है इस निचय में असम राज्य में डिब्रूगढ़ और तिनसुकिया जिलों के भाग शामिल हैं। - दिहांग – देबाँग:
दिहांग – देबाँग जीवमण्डल निचय 5111.5 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में विस्तृत है। इस निचय में अरुणाचल प्रदेश राज्य में सियाँग और देबाँग जिलों के भाग शामिल हैं। - कंचनजुंगा:
कंचनजुंगा जीवमण्डल निचय 2,619.92 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में विस्तृत है । इस निचय में उत्तर और पश्चिम सिक्किम राज्य के भाग शामिल हैं। - पंचमढ़ी :
पंचमढ़ी जीवमण्डल निचय 4981.72 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में विस्तृत है। इस निचय में मध्य प्रदेश राज्य में बेतूल, होशंगाबाद और छिंदवाड़ा जिलों के भाग शामिल हैं। - अगस्त्य मलाई:
अगस्त्य मलाई जीवमण्डल निचय 3500.36 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में विस्तृत है। इस निचय में केरल राज्य में अगस्त्य मलाई पहाड़ियों का क्षेत्र शामिल है। - अचनकमर-अमरकंटक:
अचनकर्मर – अमरकंटक जीवमण्डल निचय 3,835.51 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में विस्तृत है। इस निचय में मध्य प्रदेश राज्य में अनुपुर और दिन दोरी जिलों के भाग तथा छत्तीसगढ़ में विलासपुर जिले का भाग शामिल है। - कच्छ:
कच्छ जीवमण्डल निचय 12,454 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में विस्तृत है। इस निचय में कच्छ का भाग, गुजरात के राजकोट, सुन्दर नगर एवं पाटन जिले शामिल हैं। - ठंडा रेगिस्तान :
इस निचय का विस्तार 7,770 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में है। इस निचय में जिन वैली नेशनल पार्क एवं प्रतिवेश, चन्द्रताल तथा सारचू, किब्बर वन्य प्राणी अभयवन, हिमाचल प्रदेश शामिल है। - शेष अचलम :
इस निचय का विस्तार लगभग 4,756 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में है, इस निचय में पूर्वी घाट में शेष अचलम की पहाड़ियाँ, आन्ध्रप्रदेश में चितूर तथा कड्डप्पा जिलों के भाग शामिल हैं। - पन्ना:
जीव मण्डल निचय का विस्तार लगभग 2,999 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में है। इस निचय में मध्यप्रदेश के पन्ना एवं छत्तरपुर जिलों का भाग शामिल है।